कौमार्थ शह देता है धर्म

लेखिका -पूजा यादव

वर्जिनिटी या कौमार्थ न आज कोई अजूबा है न पहले कभी था. पश्चिमी देशों में नई पत्नी को अपनी वर्जिनटी साबित करने के लिए पहली रात को खून से सनी चादर तक दिखानी होती थी. इस का अर्थ यही है कि अधिकतर लड़कियां शादी तक वर्जिन नहीं रहती थीं. ऐसा कोई नियम लड़कों पर लगा नहीं था. पहले लड़की का फ्यूचर अच्छे पति पर टिका था. आज चाहे लड़का हो या लड़की घर से बाहर रह कर पढ़ने या नौकरी करने को मजबूर हैं.

आज बच्चे 1 या 2 ही होते हैं और जीवन के हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा है. 10वीं कक्षा के बाद मुश्किल से ही घर में रह पाते हैं. बेहतर से बेहतरीन की तलाश में बड़े शहरों का या जहां मनचाहा कोर्स मिले वहां का रुख कर लेते हैं और शादी करने की किसी को कोई जल्दी नहीं होती.

युवा पीढ़ी शादी के बंधन से तो बचना चाहती है, लेकिन शरीर की किसी भी जरूरत को पूरा करने से हिचकती नहीं है. जरूरतें उम्र के साथसाथ जाग ही जाती हैं. स्वतंत्र वातावरण में वैसे भी कोई नियंत्रित नहीं कर सकता है. लड़कों को तो इस मामले में हमेशा से ही छूट रही है. उन पर तो कोई जल्दी और आसानी से उंगली भी नहीं उठाता पर अब लड़कियों के भी आत्मनिर्भर होने से उन पर भी जल्दी शादी का दबाव नहीं रहा.

बदल गई है जीवनशैली

लड़केलड़कियों का एकसाथ रहना एक सामान्य बात ही नहीं जरूरत भी हो गई है. बहुत बार 3-4 कमरों के सैट में 2-3 लड़कियों और 2-3 लड़कों के साथसाथ रहने में भी कोई बुराई नहीं है. कुछ साल साथ रह कर अपनी सुविधानुसार सही समय पर शादी के बारे में सोचें तो बहुत ही अच्छी बात है. लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब कुछ समय साथ रहने के बाद दोनों के विचार नहीं मिलते और अलग हो जाते हैं.

कमी न तो लड़कों को लड़कियों की है और न लड़कियों को लड़कों की. कोई दूसरा साथी मिल जाता है और फिर वही सब. अब शहरों के कामकाजी और सफल युवाओं का यह रहनसहन ही बन गया है.

यह बात भी है कि 27-28 की आयु आतेआते घर वाले चाहते हैं कि अब लड़के की शादी हो जानी चाहिए और फिर शुरू होती है एक अदद सीधी, घरेलू, कमउम्र ऐसी लड़की की खोज जिसे जमाने की हवा ने टच तक न किया हो यानी एकदम वर्जिन.

ये भी पढ़ें- औरतों और लड़कियों के लिए लडने का हक

बदलनी होगी सोच

एक लड़का अपनी 29-30 साल की उम्र तक न जाने कितनी लड़कियों के साथ सैक्स कर चुका हो उस के बाद शादी के लिए अनछुई कली की ख्वाहिश रखता है. यह हवाई बात है. अब वह समय है जब लड़कों को भी अपनी सोच बदलनी होगी क्योंकि जितना अधिकार लड़कों को है उतना ही अधिकार लड़कियों को भी है अपनी जिंदगी को अपनी तरह से गुजारने का.

जब जीवनशैली में परिवर्तन आ ही गया है तो इसे वर्जिन और प्योर के दायरे से बाहर निकल कर खुले दिल से स्वीकार करने का साहस भी दिखाया जाने लगा है पर फिर भी वर्जिनिटी का भूत बहुतों के सिर पर सवार रहता है.

शादी से पहले किस की जिंदगी में क्या हुआ यह माने नहीं रखता, बल्कि शादी के बाद एकदूसरे के प्रति प्यार, विश्वास, सहयोग और समर्पण ही शादी को सफलता के मुकाम तक ले जाता है, इसलिए जहां जिंदगी में इतने बदलाव आए हैं वहीं लड़कों को अपनी मानसिकता में भी बदलाव लाना होगा कि वर्जिन जैसा कोई शब्द न आज है और न कभी था. इसलिए इस बात को जितनी जल्दी समझ लें जीवन उतनी ही जल्दी आसान होगा.

दोषी कौन

समाज और धर्म ने अपनी सारी मेहनत लड़कियों पर ही झोंक दी उन्हें संस्कार देने में गऊ बनाने में. आज लड़कियां प्रतिस्पर्धा के हर क्षेत्र में लड़कों से 4 कदम आगे हैं. लेकिन कुछ लड़के आज भी वही बरसों पुरानी मानसिकता

से ग्रस्त हैं. आज भी उसी पत्नी के सपने देखते हैं जो दूध के गिलास के साथ उन का स्वागत करे और घर के साथसाथ बाहर भी उन के कंधे से कंधा मिलाए.

इस में उन धार्मिक कथाओं का बहुत असर है जिन में सैक्स संबंधों में एकतरफा नियंत्रण के गुण जम कर गए जाते हैं. हिंदू पौराणिक कहानियां हों अथवा नाटक की या किसी और धर्म की, ऐसे नियमों से भरी हैं जिन में शादी से पहले संबंध बने. इन में अधिकांश में लड़की को दोषी ठहराया गया और दोषी पुरुष को छोड़ दिया गया.

जरूरी नहीं वर्जिन होना

इस के अवशेष आज भी हमारे दिमाग पर बैठे हैं. बहुत से तलाक के मामलों में लड़के विवाहपूर्ण संबंधों का इतिहास सोच कर बैठ जाते हैं, जबकि आधुनिक कानून ज्यादा उदार है और प्रावधान है कि जब तक कोई लड़की किसी दूसरे से संबंध बनाए न रख रही है, उस का पति तलाक का हक नहीं रखता. विवाह की शर्तों में आज के कानून में वर्जिन होना भी जरूरी नहीं है. अत: वर्जिनिटी को दिमाग से निकाल दें. ये ज्यादातर चोंचले ऊंची जातियों के हैं जो अपनी शुद्धतों का ढोल पीटने के लिए औरतों पर अत्याचार उसी तरह करते रहे हैं जैसे समाज के पिछड़े वर्गों के लिए.

वक्त के साथ वर्जिन लड़कियां लड़कों की कल्पना में ही रह जाएंगी क्योंकि सचाई यह है कि आज नहीं तो कल यह शब्द शब्दकोष से गायब हो ही जाना है, इसलिए खुद को इस सचाई से रूबरू रखना और समय अनुसार स्वयं को ढाल लेना ही सरल जीवन का गुरुमंत्र है.

ये भी पढ़ें- कोचिंग का धंधा

वर्जिनिटी : भ्रम न पालें

किसी भी युवती के लिए पहले सैक्स के दौरान उस की वर्जिनिटी सब से ज्यादा माने रखती है. युवती की योनि के ऊपरी हिस्से में पतली झिल्ली होती है जो उस के वर्जिन होने का प्रमाण देती है, लेकिन किसी भी युवती की योनि और उस के ऊपरी सिरे में स्थित हाइमन झिल्ली को देख कर यह पता लगाना कि वह वर्जिन है कि नहीं न तो संभव है न ही ठीक. सैक्स के दौरान अकसर पार्टनर द्वारा युवती की योनि से रक्तस्राव की उम्मीद की जाती है लेकिन ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पहली बार सैक्स के दौरान युवती के वर्जिन होने के बावजूद उस की योनि से रक्तस्राव नहीं होता, फिर भी साथी  द्वारा यह मान लिया जाता है कि युवती पहले भी सैक्स कर चुकी है, जबकि पहली बार सैक्स के दौरान युवती की योनि से स्राव होने या न होने को उस के वर्जिन होने का सुबूत नहीं माना जा सकता, क्योंकि पहली बार में बहुत सी युवतियों को इसलिए रक्तस्राव नहीं होता, क्योंकि खेलकूद, साइकिल चलाना आदि की वजह से उन की योनि में स्थित झिल्ली कब फट जाती है उन्हें स्वयं नहीं पता चलता. इस का कारण हाइमन झिल्ली का बहुत पतला व लचीला होना है. कभीकभी युवती में जन्म के समय से ही यह झिल्ली मौजूद नहीं होती. ऐसे में पहले सैक्स के दौरान योनि से रक्तस्राव न होने के आधार पर युवती के चरित्र पर संदेह करना गलत होता है.

पहली बार सैक्स के दौरान युवक अपने साथी से उस के कुंआरी होने का सुबूत भी मांगते हैं, जबकि वह खुद के कुंआरे होने का सुबूत देना उचित नहीं समझते. इस वजह से पहला सैक्स जिसे हम वर्जिनिटी का नाम देते हैं, आगे चल कर सैक्स संबंधों में बाधा बन जाता है. युवती की वर्जिनिटी पर शक की वजह से कई तरह की गलतफहमियां जन्म लेती हैं. इस का प्रमुख कारण कुंआरेपन को ले कर लोगों से सुनीसुनाई बातें हैं.

किसी भी युवक या युवती के लिए पहली बार किए जाने वाले सैक्स का जो रोमांच होता है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह एक ऐसी स्टेज है जहां युवकयुवती एकदूसरे के सामने अपने सारे कपड़े उतारने और सैक्स को ले कर होने वाली झिझक को दूर करने की शुरुआत करते हैं. यहीं से युवकयुवती के कुंआरेपन की समाप्ति होती है और यही वह स्टेज है जहां दोनों अपनी वर्जिनिटी खोते हैं.

युवती को अपने कुंआरेपन का सुबूत देने के लिए कई तरह की परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है जोकि सरासर गलत है. अगर युवती पुरुष से कुंआरे होने का सुबूत नहीं मांगती तो उसे भी चाहिए कि अपने साथी पर विश्वास करते हुए उस के कुंआरेपन पर सवाल खड़ा न करे. अकसर युवती के कुंआरेपन को ले कर घरेलू ंिहंसा व तलाक जैसी नौबत भी आ जाती है. अपने चरित्र का प्रमाण देने के लिए युवती को तमाम तरह के सुबूत पेश करने के लिए कहा जाता है.

सैक्स के दौरान वर्जिनिटी को ले कर आने वाले खून की कुछ बूंदों के प्रति पुरुषवर्ग इतना गंभीर होता है कि वह वर्षों से चले आ रहे इस दकियानूसी खयाल से बाहर आने की सोच भी नहीं सकता, जबकि अपने कुंआरेपन को गृहस्थी के बीच का मुद्दा बनाना गलत है. इसलिए युवकयुवतियों को चाहिए कि वे पहले सैक्स को यादगार बनाएं न कि वर्जिनिटी के चक्कर में पड़ कर संबंधों में दरार पैदा करें.

ये भी पढ़ें- 9 Tips: घर की सीढ़ियों का भी रखें ख्याल

प्यार और भरोसे से करें शुरुआत

नीरज की अरेंज्ड मैरिज थी, अत: वह अपनी होने वाली पत्नी से कभी मिला नहीं था. ऐसे में नीरज के दोस्त शादी की पहली रात को ले कर नीरज को तमाम तरह की सलाह देने में लगे हुए थे. उस के एक दोस्त ने कहा कि वह अपनी पत्नी के साथ पहली रात के सैक्स यानी सुहागरात में पत्नी के वर्जिन होने का पता लगाने के लिए योनि से रक्तस्राव होने पर जरूर ध्यान दे. अगर रक्तस्राव हुआ तो समझ ले कि पत्नी ने किसी के साथ सैक्स नहीं किया है, अगर नहीं हुआ तो वह पहले सैक्स कर चुकी है.

लेकिन नीरज ने दोस्त की इस बात पर ध्यान न दिया, क्योंकि वह जानता था कि पहले सैक्स में रक्तस्राव होना जरूरी नहीं. इस से यह पता चलता है कि वर्जिन होने के लिए सुबूत देने की जरूरत नहीं होती बल्कि पहली बार किए जाने वाले सैक्स की शुरुआत प्यार और भरोसे के साथ की जाए तो यह न केवल ज्यादा मजा देने वाला होता है, बल्कि इस से रिश्ता और भी गहरा व विश्वसनीय बन जाता है.

बातचीत है जरूरी

सैक्स व मनोरोग विशेषज्ञ डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन का कहना है कि कौमार्य खोने के पहले एकदूसरे के बारे में अच्छी तरह से जान लें, क्योंकि सैक्स आनंद के लिए किया जाता है न कि भूख मिटाने के लिए. इसलिए सैक्स को मजेदार बनाने की कोशिश करें, आपस में कामुक बातचीत की शुरुआत हो और धीरेधीरे यह बातचीत शर्म से ऊपर उठ कर सैक्स संबंध के रूप में आगे बढे़. इस तरह सैक्स का मजा दोगुना हो जाता है और पतिपत्नी के बीच शर्म का परदा भी उठ जाता है.

पहले सैक्स को ज्यादा मजेदार व यादगार बनाने के लिए वर्जिनिटी जैसे दकियानूसी खयाल से ऊपर उठ कर शारीरिक व मानसिक संतुष्टि को ज्यादा महत्त्व देना चाहिए. इस के अलावा किसी तरह की अजीबोगरीब उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए जिन से जीवन साथी को किसी तरह की ठेस पहुंचे.

कैसी प्रेमिका की चाहत

एक सर्वे के अनुसार 51% युवा प्रेमियों को प्रेमिका की ब्यूटी, 36% को ब्रेन और 15% को प्रेमिका की ब्यूटी विद ब्रेन दोनों का कौंबिनेशन प्रभावित करता है.

प्रेमी प्रेमिका की तरह अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर प्रेमिका को चुनते हैं.

आइए जानें वे क्या पसंद करते हैं अपनी प्रेमिका में :

–       युवा प्रेमी को साफसफाई का खयाल रखने वाली प्रेमिका अधिक पसंद आती है.

–       युवा प्रेमी को प्रेमिका की बौडी लैंग्वेज, बाल, आंखें, मुसकराहट भी अपनी ओर आकर्षित करती है.

–       युवा प्रेमी बहुत होनहार प्रेमिका की चाहत नहीं रखते बल्कि उन्हें हर सामान्य कार्य में रुचि रखने वाली प्रेमिका ज्यादा पसंद आती है.

–       51% युवाओं का मानना है कि उन्हें प्रेमिका की खूबसूरती के अलावा उस का केयरिंग नेचर बहुत प्रभावित करता है.

–       आत्मविश्वासी प्रेमिका युवा प्रेमी को ज्यादा पसंद आती है.

–       अकसर युवक ऐसी प्रेमिका को पसंद करते हैं जो अपना अधिकांश समय उन्हें ही दे.

–       बातबात पर इमोशनल होने वाली पे्रमिका से वे दूरी बनाने में ही भलाई समझते हैं.

–       युवा प्रेमी अकसर ऐसी प्रेमिका चाहते हैं, जो सैक्सी और कौपरेट करती हो.

– रुचि सिंह

ये भी पढ़ें- Married Life में इसकी हो नो ऐंट्री

पुराने प्रेम का न बजायें ढोल

भारतीय साहित्य से लेकर धार्मिक कथाओं में सेक्स न ही हीन माना गया है और न ही इसमें किसी तरह की पाबंदी का जिक्र है. लेकिन जहां तक बात समाज की आती है, इसका रूप बिलकुल विपरीत दिखता है. यहां सेक्स को लेकर बात करना अच्छा नहीं माना जाता लेकिन मजाक और गालियां आम बात हैं. किशोरों को इसकी जानकारी देने में शर्म आती है लेकिन पवित्र बंधन के नाम पर विवाह में बांधना और किसी अनजान के साथ सेक्स करने को मजबूर करना रिवाज है. ऐसा ही एक बड़ा अंतर मर्द और औरत के प्रति कामइच्छाओं को लेकर रहा. यहां कौमार्य सिर्फ लड़की के लिए मायने रखता है, पुरुष का इससे कोई लेना देना नहीं है.

यानि लड़की का विवाह पूर्व सेक्स करना पाप की श्रेणी में आता रहा, हालांकि पुरुष इससे अछूता ही रहा. लेकिन बदलाव श्रृष्टी का नियम है. और कुछ ऐसा ही बदलाव समाज मेें दस्तक दे रहा है, जहां कुछ प्रतिशत ही सही पर विवाह पूर्व सेक्स एक समझदार जोड़े की शादी को प्रभावित नहीं कर रहा. इसलिए पुराने प्रेम का ढोल बजाते रहने से कोई सुख नहीं, कोई समझदारी नहीं.

शहरीकरण का प्रभा

भारत में शहर तीन श्रेणी में हैं. एक सर्वेक्षण में श्रेणी के शहरों में हुई पूछताछ में सामने आया कि अब दोनो ही साथी एक दूसरे के अतीत को वर्तमान में नहीं लाते. साथ ही तलाक और अफेयर के बढ़ते चलन में ऐसा संभव नहीं है कि कोई विवाह पूर्व सेक्स से अछूता रहा हो. ये अब एक सामान्य बात रह गई है. मायने ये रखता है कि विवाह के बाद साथी एक दूसरे के साथ कितने ईमानदार हैं. वहीं बी और सी श्रेणी के शहरों में करीब 40 से 48 प्रतिशत लोग विवाह पूर्व सेक्स का समर्थन करते हैं लेकिन सिर्फ अपने मंगेतर के साथ. उनका मानना है कि मंगनी के बाद शादी उसी व्यक्ति से होनी है तो सेक्स शादी के पहले हो या बाद में, मायने नहीं रखता.

ये भी पढ़ें- हिंसक बच्चों को चाहिए मनोवैज्ञानिक सलाह

सवाल वर्जिनिटी का

अब एक सवाल आता है, वर्जिनिटी का. हर समय यही क्यों उम्मीद की जाए कि लड़की वर्जिन हो? मेरे पास इस प्रश्न का सीधा उत्तर तो नहीं है लेकिन मुझे अभी हाल में ही आयी एक मूवी ‘विक्की डोनर’ के  वो डायलॉग याद आ रहे हैं जब रिश्ते की बात के समय आयुष्मान को पता चलता है कि लड़की (यामी गौतम) का कोई अतीत भी है. तब आयुष्मान सीधा सवाल करता है कि, “सेक्स हुआ था क्या”? वह ‘नहीं’ में उत्तर देती है.  इस पर अपनी बात को जस्टिफाई करते हुए आयुष्मान कहता है कि “सेक्स नहीं हुआ तो उसे शादी थोड़ी न बोल सकते है”!!

कितना अजीब है यह विचार आज के ज़माने में. पर यह हमारे भारतीय समाज की हकीकत बयां करता है. इशारा करता है उस भारतीय मानसिकता की तरफ! मैं इसे अच्छा या बुरा नहीं कहूंगी. किसी के लिए फीलिंग होना, प्यार होना तो स्वाभाविक है . १० में से ९ लोगों के पास कुछ न कुछ कहानी भी होगी. लेकिन वह रिलेशनशिप कितना आगे बढ़ा यह जानने की  इच्छा  सिर्फ पुरुषों में ही नहीं महिलाओं में भी रहती हैं. लेकिन जब पुरुष को पता चलता है कि उसकी पत्नी शादी से पहले किसी के साथ रिलेशनशिप में थी तो वह यह बात आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता . कब शुरू होता है तानों और उल्हानों का सफर.

एक घटना –  सुनील अपनी पत्नी -संगीता से शादी के कुछ महीने बाद से ही  नाराज चल रहा था. सुनील को शक था कि उसकी पत्नी अब भी अपने पूर्व प्रेमी से मिलती है. लड़की के मायके वालों के हस्तक्षेप के बाद भी परिस्थितियां नहीं बदली और सुनील का दिन प्रतिदिन शक बढ़ता चला गया. जबकि विवाह से पहले सुनील खुद एक लड़की के साथ कुछ सालों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था. बे बुनियाद शक की वजह से वह अक्सर अपनी पत्नी के ऊपर हाथ भी उठाने लगा. 1 दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि सुनील क्रोध में आपे से बाहर हो गया और उसने गुस्से में संगीता का गला दबा कर उस की हत्या कर दी .

पत्नी सती सावित्री क्यों

ऐसे आदमी जिनका खुद का एक पास्ट होता है, लेकिन उनको पत्नी सती सावित्री चाहिए होती है क्यों? उनके हिसाब से हर औरत का भी पास्ट होता है. यही सोच के साथ वो अपनी पत्नी पर कभी विश्वास नहीं करते. जबकि ऐसे व्यक्तियों को तो और ज्यादा अंडरस्टैंडिंग होना चाहिए.

उदाहरण -१

रीना जो कि एक कंपनी की एच आर है, इसलिए परेशान है क्योंकि उसके पति को रीना के शादी से पहले के सम्बन्धो के बारे में पता है और अब वो उस पर शक करता है! रीना ने बहुत सी बार अपने पति को समझाना चाहा कि सेक्स नहीं हुआ था और मैं विवाह से पहले वर्जिन थी. लेकिन फिर भी उसका पति शक करता है! अब यह कितनी ही दुःख की बात है और सिर्फ इतनी सी बात के लिए एक अच्छे रिश्ते के बाकि सारे पहलू दब जाते है और मजा चला जाता है.

पहलू और मुद्दे और भी हैं

एक रिश्ते के बहुत सारे पहलू होते हैं और यह उस समय की परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है. जबकि लम्बी अवधि में पुराने संबंध ज्यादा मैटर नहीं करते.  फिर भी राइ का पहाड़ बनाने की आदत से सब कुछ नष्ट हो जाता है. इसी कारण  हमारे देश में विर्जिनिटी रिकंस्ट्रक्शन की सर्जरी शुरू हो चुकी है! ये वो महिलायें/ लड़की करवातीं हैं जिनके शादी के पहले सेक्स संबंध थे और अब नहीं चाहतीं कि उनके पति को ये बात पता चले!

उदाहरण 2-

मैं यह सोचती हूं कि इस प्रकार के पुरुष माइनॉरिटी में है यानी ऐसी सोच वाले पुरुष आज के समय में कम होंगे. लेकिन हाल में हुआ किस्सा मुझे ऐसा न सोचने पर मजबूर कर रहा है! हुआ यूं कि मेरा एक मित्र (30साल)  जोकि आज की पीढ़ी का बहुत ही पढ़ा लिखा युवा है, वो इस बात पर अड़ा हुआ है की उसे ऐसी पत्नी चाहिए जो कि वर्जिन हो! हालांकि उसका तर्क ये है कि वो खुद वर्जिन है और चाहता है की उसका जीवन साथी भी वर्जिन हो! उसके नजरिए से देखें तो बात सही लगेगी लेकिन मेरा सवाल यह है कि  क्या पत्नी सिर्फ वर्जिन होने से रिश्ता अच्छा हो जायेगा?

योनी की झिल्ली सफल वैवाहिक जीवन की निशानी क्यों

आज भी हमारे समाज में लड़की के कुंवारेपन पर ज्यादा जोर दिया जाता है. शादी की पहली रात योनि की झिल्ली का फटना सफल वैवाहिक जीवन की निशानी मानी जाती है. कैसी है यह मानसिकता और यह समाज का दोहरा पन. सुहागरात के दौरान योनी की झिल्ली  के फटने को ही सफल वैवाहिक जीवन की निशानी मान लिया जाता है.  यह मानसिकता अधिकांश पुरुष वर्ग की है चाहे वह किसी भी धर्म या समाज का हिस्सा हो. तभी तो आज भी बलात्कार के बाद मानसिक प्रताड़ना एक महिला वर्ग के हिस्से ही रहती है और बलात्कारी या शोषण करने वाला आजाद घूमता है.

ये भी पढ़ें- पति से घर का काम कैसे कराएं

ना बदलने वाला समाज और पुराना दृष्टिकोण

लड़कियों या महिलाओं के प्रति यह सोच यह मानसिकता कोई नई बात नहीं इसकी जड़े बहुत पुरानी और गहरी हैं आज भी उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों या राज्यों में लड़की की पैदाइश के बाद खुशियां नहीं मनाते, बोझा ही मानते हैं. भले ही सरकार ने भ्रूण टेस्ट पर रोक लगा दी हो या उसे गिराने पर सजा या जुर्माना लगा दिया हो लेकिन आज भी बहुत से गांवों में , लड़की का पता चलने पर भ्रूण गिरा दिया जाता है या पैदा होते ही उसे किसी गटर में यह नाले में फेंक दिया जाता है वरना मार दिया जाता है. यानी समाज का दृष्टिकोण लही घिसा पिटा और पुराना.

शारीरिक संबंध के लिए कोई निश्चित पैमाना नहीं

मैं यहां कदापि नहीं कहूंगी कि शादी से पहले लड़के या लड़की को आपसी शारीरिक संबंध बनाने की छूट हो. पर यदि महिला के कुंवारेपन को पुरुष आंकता है तो पुरुष के कुंवारेपन को महिला को आंकने का अधिकार क्यों नहीं? यदि सेक्स की चाह पुरुष कर सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? कितने ही ऐसे  पुरुष होंगे जिन्होंने शादी से पहले किसी न  से शारीरिक संबंध बनाये होंगे या हस्तमैथुन किया होगा. फिर एक औरत के लिए पाबंदी क्यों?

आंकड़ों के अनुसार

आज के समय में पश्चिमी देशों में वर्जिनिटी नाम की कोई चिड़िया नहीं. वहां बालिग पुरुष व महिला आपसी रजामंदी से संबंध बना सकते हैं. जबकि हमारे देश में आज भी 71-79.9 प्रतिशत महिलाएं/ लड़कियां मिल जाएंगी जिन्होंने शादी से पहले किसी से संबंध न बनाया हो पर यही प्रतिशत पुरुषों मामले में सिर्फ 31-35 प्रतिशत ही होगा. इन देशों में अधिकतर लड़की लड़कियां 13 -16 साल की उम्र में ही सेक्सुअल रिलेशन बना लेते हैं और इन रिलेशंस के लिए वहां कोई तूल नहीं. इन देशों की संस्कृति में इसे मान्यता प्राप्त है.

तोड़नी होंगी वर्जनाएं

आज सोशल मीडिया का समय है. हम सबको अपनी सोच को बदल इन वर्जनाओं को तोड़ना होगा. समझना होगा कि शादी की शर्तों में वर्जिनिटी  है. एक औरत का चरित्र योनि की झिल्ली नहीं. वह भी पूरे सम्मान की अधिकारी है. वैसे तो आज  वर्जिनिटी अपने आप में कोई बड़ा सवाल नहीं माना जा सकता. इस सोच को बदलने के लिए मां बाप को भी अपनी मानसिकता को बदलना होगा. अगर लड़कों के लिए अपनी वर्जिनिटी खोना कोई बड़ा मुद्दा नहीं , तो लड़कियों के लिए भी नहीं होना चाहिए.

उम्र को क्यों करें नजरअंदाज

तीन पीढ़ी में देखा जाए तो विवाह की उम्र तेजी से बढ़ती हुई नजर आएगी. महिला सशक्तिकरण और जागरुक्ता की लहर तेज होने वाली ये पहली पीढ़ी है. जाहिर है आगे की पीढ़ियों के लिए संघर्ष थोड़ा कम होगा. दादी का बाल विवाह हुआ था, मां का विवाह 20 वर्ष तक हो चुका था पर आज विवाह 25-27 वर्ष से ऊपर होना आम बात है, लेकिन हार्मोनल बदलाव अपनी गति से ही चलते हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो दादी ने आज की उम्र में होने वाले सेक्स से पहले ही सेक्स कर लिया था. लेकिन उन्हें समाज की इजाजत थी. लड़कियां आज इस इजाजत का इंतजार नहीं करतीं , लेकिन उनके साथी के लिए ये बात ज्यादा मायने नहीं रखती क्योंकि वो भी इसी दौड़ में शामिल हैं. लेकिन फिलहाल ये समानता एक छोटे वर्ग तक ही सीमित है.

रिश्ते की नींव हो मजबूत

उसने तम्हें छुआ तो नहीं था, तुम उसके साथ कितनी बार सोर्इं? लड़की के शादी से पूर्व अफेयर की जानकारी अगर उसके पति को है तो ये सवाल लड़की के लिए आम बात रहे, भले वो उसे और उसके चरित्र को छलनी कर रहे हैं. हद्द तो यहां तक रही कि कुछ महिलओं को अपनी दूसरी शादी में भी ऐसे सवालों का सामना करना पड़ा. पर क्या ये वाकई मायने रखता है? आज कुछ पुरुषों के पास इसका जवाब है. जिन्हें लगता है कि ये मायने नहीं रखता, वो अपनी शादी को सफल बना रहे हैं. कुछ प्रतिशत ही सही, लेकिन साथी के इस खुले बर्ताव और अपनी पत्नी पर भरोसे के कारण ही आज महिलाएं अपने अतीत में हुए अत्याचार के बारे में खुलकर बोल पा रही हैं. कहते हैं कि सफल विवाह की नींव भरोसा और ईमानदारी होती है. इसलिए अगर लड़की अपने अतीत की कहानी साथी को सुनाती है तो इससे साफ जाहिर है कि वो अपने रिश्ते में ईमानदार रहना चाहती है. वहीं अगर वो छुपाती है और रिश्ते पर किसी प्रकार की आंच नहीं आने देती तो ये बात मायने नहीं रखती कि विवाह पूर्व उसका किससे कैसा रिश्ता था.

ये भी पढ़ें- हाइपरसेंसिटिव नार्सिसिज़्म-ईर्ष्या का नशा

क्या कहता है धर्म

बहुत कम लोग होते हैं जो धर्म को बहुत नजदीक से समझते और जानते हैं. ज्यादातर लोग सुनी सुनाई बातों को भरोसे के साथ मानते चले आते हैं क्योंकि ये बात किसी पूजनीय ने बताई होती है. ऐसे में वो अपनी बुद्धी नहीं लगाना चाहते. ऐसे में ज्यादातर पुरुष प्रधान का प्रभाव रहा जो महिलाओं के लिए लक्ष्मण रेखा बनाता रहा. जरूरी नहीं उनकी बताई बात किसी वेद, धार्मिक कथा या पुराण में लिखी हो. अगर नजदीक से समझा जाए तो सेक्स के विषय में धार्मिक कथाओं में खासा खुलापन भी देखने को मिलेगा. हालांकि एक प्रकार का दोगलापन यहां भी है. कुंती को विवाहपूर्व जन्मा पुत्र त्यागना पड़ा था लेकिन उसी कुंती की वधु को पांच पतियों का साथ मिला. यहां अतंर सिर्फ विवाह का था. फिर भी कुछ कथाएं हैं जो इस खुलेपन की ओर इशारा करती हैं. कुरुवंश को आगे बढ़ाने में ऋषि पराशर और सत्यवति के विवाहपूर्व संतान व्यास का सहारा लिया गया था. महाभारत में इस बात का भी वर्णन है कि अगर कोई बिना ब्याही स्त्री अपने मन का सेक्स पार्टनर चुनती है और उससे सेक्स की इच्छा जताती है तो उस पुरुष को उसकी इच्छा का मान रखना होता है. ऐसा न करने पर वो दण्ड का अधिकारी होता है. अर्जुन का श्राप इसका एक उदाहरण है. इसके अलावा साहित्य के कुछ पन्नों में भी इस विषय में खासा खुलापन दिखाया गया है जहां खुले में संबन्ध बनाने, और नजदीकी रिश्तों में कामइच्छा प्रकट करने का जिक्र है.

कौमार्य: चरित्र का पैमाना क्यों

हमारे शास्त्रों और सामाजिक व्यवस्था ने वर्जिनिटी यानी कौमार्य को विशेष रूप से महिलाओं के चरित्र के साथ जोड़ कर उन के लिए अच्छे चरित्र का मानदंड निर्धारित कर दिया है.

हमारे समाज में वर्जिनिटी की परिभाषा इस के बिलकुल विपरीत है. दरअसल, समाज और शास्त्रों के अनुसार इस का अर्थ है कि आप प्योर हैं. हम किसी चीज या वस्तु की प्युरिटी की बात नहीं कर रहे हैं वरन लड़की की प्युरिटी की बात कर रहे हैं. लड़की की वर्जिनिटी को ही उस की शुद्धता की पहचान बना दी गई है. लड़कों की वर्जिनिटी की कहीं कोई बात नहीं करता. बात केवल लड़कियों की वर्जिनिटी की करी जाती है.

आज भी कई जगह वर्जिनिटी टैस्ट के लिए सुहाग रात को सफेद चादर बिछाई जाती है. 2016 में महाराष्ट्र के अहमद नगर में खाप पंचायत के द्वारा लड़के द्वारा लड़की को जबरन वर्जिनिटी टैस्ट के लिए विवश किया गया और जब लड़की इस में फेल हुई तो दोनों को अलग करने के लिए सामदामदंडभेद सबकुछ अजमाया गया, परंतु लड़के ने हार नहीं मानी और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां से उसे न्याय मिला.

वर्जिन नहीं तो जिंदगी नर्क

समाज में न जाने इस तरह के कितने मामले हैं, जिन में लड़कियों का जीवन इसलिए नर्क बन जाता है, क्योंकि वे लड़की वर्जिन नहीं होतीं शादी से पहले उन्होंने किसी के साथ संबंध इच्छा या अनिच्छा से बनाया हो, इसी वजह से उन्हें कैरेक्टरलैस और बदचलन मान लिया जाता है.

डा. ईशा कश्यप कहती हैं कि वर्जिनिटी को ले कर हमारा समाज बहुत छोटी सोच रखता है. जिस के कारण आज भी लड़कियों की स्थिति काफी दयनीय है. यहां तक कि कई बार तलाक तक हो जाता है और लड़की की आवाज को अनसुना कर दिया जाता है.

कल्याणपुर की नलिनी सिंह का कहना है कि आज भी अगर लड़की वर्जिन नहीं है तो शादी के बाद उसे उस के पति और समाज की घटिया सोच का शिकार होना पड़ता है.

इंजीनियरिंग कालेज की छात्रा अखिला पुरवार ने कहा कि जब लड़कों की वर्जिनिटी कोई माने नहीं रखती तो फिर लड़कियों की वर्जिनिटी को ले कर इतना बवाल क्यों?

ये भी पढ़ें- Coronavirus Effect: लोगों में सहकर्मियों को लेकर बदल गई है सोच

हम सब अपने को चाहे कितना मौडर्न कह लें, लेकिन अपनी सोच में बदलाव नहीं ला पा रहे हैं. यदि वर्जिनिटी पर सवाल उठाना ही है तो पहले लड़के की वर्जिनिटी पर सवाल उठाना होगा क्योंकि वह किसी भी समय किसी भी लड़की को शिकार बना कर उस की वर्जिनिटी को जबरदस्ती भंग कर देता है. लेकिन जब शादी का सवाल आता है तो वह किसी लड़की को अपना जीवनसाथी बनाने के पहले उस के चरित्र पर बदचलन का दाग लगाने में एक पल भी नहीं लगता है.

धार्मिक बातों में विरोधाभास

हिंदू धर्म में परस्पर विरोधी बातें कही गई हैं. एक ओर तो कुंआरी कन्या को देवी मानते हुए कंजिका पूजन की प्रथा का आज भी चलन है. सामान्यतया सभी परिवारों में नवरात्रि में छोटी कन्या को भोजन और भेंट देने का रिवाज है. दूसरी ओर शास्त्र, पुराण, रामायण, महाभारत सभी समवेत स्वर में कहते हैं कि स्त्री आजादी के योग्य नहीं है या वह स्वतंत्रता के लिए अपात्र है.

मनु स्मृति में तो स्पष्ट कहा है-

‘पिता रक्षंति कौमारे, भर्ता रक्षित यौवने

रक्षंति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातंत्र महेति’ (मनुस्मृति 9-3)

स्त्री जब कुमारी होती है तो पिता उस की रक्षा करते हैं, युवावस्था में पति, वृद्धावस्था में पति नहीं रहा तो पुत्र उस की रक्षा करता है. तात्पर्य यह है कि जीवन के किसी भी पड़ाव पर स्त्री को स्वतंत्रता का अधिकार नहीं है. बात केवल मनुस्मृति तक सीमित नहीं है, महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस में इस की पुष्टि करते हुए कहा है कि स्वतंत्र होते ही स्त्री बिगड़ जाती है.

‘महावृष्टि चलि फूटि कियारी जिमि भये बिगरहिं नारी’

महाभारत में भी कहा गया है कि पति चाहे बूढ़ा, बदसूरत, अमीर या गरीब हो, परंतु स्त्री के लिए वह उत्तम आभूषण होता है. गरीब, कुरूप, निहायत बेवकूफ या कोढ़ी हो, पति की सेवा करने वाली स्त्री को अक्षय लोक की प्राप्ति होती है.

मनुस्मृति में स्पष्ट है कि पति चरित्रहीन, लंपट, अवगुणी क्यों न हो साध्वी स्त्री देवता की तरह उस की सेवा करे वाल्मीकि रामायण में भी इसी तरह का उल्लेख है.

हिंदुओं का सब से लोकप्रिय महाकाव्य ऐसी स्त्री को सच्ची पतिव्रता मानता है, जो स्वप्न में भी किसी परपुरुष के बारे में न सोचे. तुलसी दासजी यहां भी नहीं रुके. उन्होंने उसी युग को कलियुग कह दिया, जब स्त्री अपने सुख की कामना करने लगती है.

इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के प्रभाव से आज हमारे समाज में विवाह से पूर्व कौमार्य का भंग होना बेहद शर्मनाक माना जाता है.

इसी यौनशुचिता की रक्षा में हमारा न सिर्फ पूरा बचपन और कैशोर्य कैद कर दिया जाता है वरन हमारी बुनियादी आजादी भी हम सब से छीन ली जाती है.

क्यों बुना गया यह जाल

वर्जिनिटी को बचाने का सारा टंटा सिर्फ इसलिए है कि महिलाएं अपने पति को यह मानसिक सुख दे सकें कि वही उन के जीवन का पहला पुरुष है. यह वही है, जिस के लिए आप ने स्वयं को सालों तक दूसरे लड़कों और पुरुषों से बचा कर रखा है.

शादी से पहले लड़कियों को हजारों तरह के निर्देश दिए जाते हैं कि यहां नहीं जाओ, उस से मत मिलो, लड़कों से दूरी बना कर रखो, उन से दोस्ती मत करो, रिश्तेदारों के यहां अकेले मत जाओ, शाम से पहले घर लौट आना आदिआदि. ये सारे प्रतिबंध सिर्फ कौमार्य की रक्षा को दिमाग में रख कर ही लगाए जाते हैं.

सूरत की असिस्टैंट प्रोफैसर कहती हैं कि हम यह भी कह सकते हैं कि वर्जिनिटी हमारी है, लेकिन हमारी हो कर भी हमारे लिए नहीं है. इसलिए आजकल लड़कियों का कहना है कि जब यहां हमारे लिए है ही नहीं तो इसे बचाने का क्या फायदा?

हालांकि आज 21वीं सदी में वर्जिनिटी को बचाए रखने का चलन अब फुजूल की बात होती जा रही है, परंतु आज भी ऐसी लड़कियों की कमी नहीं है, जो इसे कुछ भी न मानते अपनी वर्जिनिटी तोड़ने की हिम्मत नहीं कर पातीं हैं. इन में से कुछ के आड़े अपने संस्कार की हैवी डोज या फिर अगर किसी को पता चल गया तो क्या होगा? या कई बार सही मौका नहीं मिल पाना भी इस की वजह बन जाता है.

वैसे अच्छी बात यह हो गई है कि अब लड़कियां उन्हें बुरा नहीं मानती, जिन्होंने अपनी मरजी से वर्जिनिटी खोने को चुना है.

मार्केटिंग प्रोफैशनल इला शर्मा बीते कई सालों से मुंबई में रहती हैं. वे कहती हैं कि यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं है, जिस पर इतना बवाल मचाया जाए. यदि लड़के वर्जिन लड़की चाहते हैं तो उन्हें भी पहले अपनी वर्जिनिटी को संभाल कर रखना चाहिए. लड़कियों की वर्जिनिटी के लिए पूरा समाज सजग है और सब यही चाहते हैं कि लड़कियां वर्जिन ही रहें, लेकिन लड़कों के बारे में ऐसा नहीं सोचा जाता. मु झे समाज के इस दोहरे पैमाने से बहुत तकलीफ होती है.

मगर वर्जिनिटी को ले कर मुखर निशा सिंह एक चौंकाने वाली बात कहती हैं कि आप यह कैसे मान सकते हैं कि 1-2 सैंटीमीटर की कोई नाजुक सी  िझल्ली, 5 फुट की लड़कियों के पूरे अस्तित्व पर भारी पड़ सकती है? यह सुनने में अजीब सा लगता है, परंतु अफसोस कि सच यही है. एक पतली सी  िझल्ली जिसे विज्ञान की भाषा में ‘हाइमन’ कहा जाता है, हम लड़कियों के पूरे अस्तित्व को किसी भी पल कठघरे में खड़ा कर सकती है.

निशा कहती हैं कि उन की उम्र 40 साल होने जा रही है, लेकिन वे आज भी वर्जिन हैं. कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि इतने सालों से घर से बाहर रहने के बावजूद दिमाग की कंडीशनिंग काफी हद तक वैसी ही है. सच तो यह है कि कई बार अपने को आजाद छोड़ने के बाद भी अपने को सहज या नौर्मल नहीं पाती हूं. मु झे लगता है कि मेरे संस्कार और मांपापा का भरोसा तोड़ने से जुड़े अपराधबोध के डर से ही मैं आज तक चाहेअनचाहे वर्जिन हूं.

ये भी पढ़ें- शराफत की भाषा है कहां

नोएडा की एक विज्ञापन कंपनी में काम करने वाली नीलिमा घोष वर्जिनिटी पर महिलाओं की सोच की थोड़ी स्पष्ट तसवीर दिखाती हैं कि मु झे लगता है कि लड़के चाहते तो हमेशा यही हैं कि उन की पत्नी वर्जिन हो, अगर नहीं हो तो भी चल जाता है. यह चला लेना ही बताता है कि अंदर ही अंदर लड़कों को इस बात से फर्क पड़ता है, इसलिए उन्हें सच बताना आफत मोल लेना है. इसलिए पति हो या बौयफ्रैंड से  झूठ बोलना ही ज्यादा सही है वरना इस बात को ले कर किसी भी समय कोई भी सीन क्रिएट कर सकते हैं. इसलिए अपने सुखी भविष्य के लिए  झूठ बोलना ही अकलमंदी है.

मौडर्न को भी वर्जिन की चाह

वैसे तो आज के समय में सम झदार लोगों के लिए वर्जिनिटी का कोई मतलब नहीं रह गया है, परंतु यह भी स्वीकार करना होगा कि आज भी यदि किसी वजह से कोई लड़की अपनी वर्जिनिटी खो चुकी है तो लोगों के लिए ‘खेली खाई’ है और वह सर्वसुलभ है. उस के लिए लोगों का सोचना होता है कि जब एक बार किसी के साथ मजे ले चुकी है तो फिर दूसरों के साथ भला क्या दिक्कत है.

तलाकशुदा महिलाएं अकसर इस की शिकार होती हैं. मेरठ के एक प्राइवेट स्कूल की अध्यापिका बुलबुल आर्य कहती हैं कि मु झे लगता है कि कई लोग यह सोचते हैं कि मैं उन के लिए आसानी से उपलब्ध हूं. उन की तरफ से ऐसा कोई भी इशारा पाए बिना ही सब यह मान कर चलते हैं कि शादी के बाद मैं सैक्स की हैबिचुअल हो चुकी हूं और अब पति मेरे साथ नहीं हैं, इसलिए वे इस कमी को पूरी करने के लिए आतुर रहते हैं.’ ऐसी सोच मेरे लिए बहुत डिस्गस्टिंग है कि सिर्फ मेरी वर्जिनिटी खत्म होने से मैं उन सब के लिए उपलब्ध लगती हूं.

बुलबुल जैसी लड़कियों के लिए व्यक्तिगत रूप से वर्जिनिटी कोई बड़ा मुद्दा न होते हुए भी बड़ा हो जाता है.

यौनशुचिता को ले कर चली आ रही सोच का पोषण करते हुए विज्ञान ने हाइमन की सर्जरी जैसे उपायों को भी चलन में ला दिया है. यद्यपि अपने देश में यह अभी शुरुआती दौर में है और काफी महंगी भी है, परंतु यह इशारा करता है कि हम विवाहपूर्व भी अपनी सैक्सुअल लाइफ को जीना और ऐंजौय करना चाहती हैं. लेकिन अपनी ‘अच्छी लड़की’ वाली इमेज कभी नहीं टूटने नहीं देना चाहती हैं ताकि पति की तरफ से वर्जिन पत्नी को मिलने वाली इज्जत और प्यार मिल सके.

समाज की गंदी सोच

वास्तविकता यह है कि वर्जिनिटी के सवाल पर हम सुविधा में हैं. वर्जिनिटी पर हम एक ही समय पर 2 तरह से सोचते हैं. एक ओर तो ऐसे सभी कैरेक्टर सर्टिफिकेट्स को चिंदीचिंदी कर के फाड़ कर फेंक देना चाहते हैं, जिन्हें वर्जिनिटी जारी करती है और दूसरी तरफ हम खुद ही चाहेअनचाहे उसे बचा कर रखना चाहते हैं. हमारा समाज और हम सभी अभी भी इस सोच से ग्रस्त हैं कि वर्जिनिटी खो चुकी लड़कियां गंदी होती हैं.

मांबाप अपनी बेटियों को विवाहपूर्व यौन संबंधों से बचाने के लिए अकसर ‘हम तुम पर बहुत भरोसा करते हैं.’ जैसे भावनात्मक हथियार का प्रयोग करते हैं. ऐसे में यदि कोई लड़की अपनी वर्जिनिटी खत्म करती भी है तो वह अपने मांबाप का भरोसा तोड़ने के अपराधबोध से ग्रस्त हो जाती है.

वैसे अब लड़कियों में यह चाह तो जगने लगी है कि जैसे लड़कों के लिए वर्जिनिटी खोना कोई मसला नहीं है वैसे ही लड़कियों के लिए भी न हो, परंतु अभी तो बहुत कोशिशों के बाद भी हमारा समाज इस मसले पर सहज नहीं है. बस अब इस पर होने वाले बवाल से बचने के लिए लड़कियां  झूठ बोलने में अवश्य सहज हो गई हैं.

इस संदर्भ में ‘पिंक’ मूवी का उल्लेख करना चाहूंगी जो स्त्री की यौनस्वतंत्रता के प्रति समाज की मानसिकता को जगाने का प्रयास करती है.

देह उपयोग को ले कर स्त्री की अपनी इच्छाअनिच्छा को भी उसी अंदाज में स्वीकार करना होगा जैसेकि पुरुष की इच्छाअनिच्छा को समाज सदियों से स्वीकार करता आ रहा है. इस विचार से ‘पिंक’ एक फिल्म नहीं वरन एक मूवमैंट?? है. यदि स्त्री को अपने अधिकार के लिए लड़ना है तो आवश्यक है कि समाज में माइंड सैट बदलना होगा.

समाज की धारणा को बदलने के लिए पहले स्त्री को स्वयं अपनी सोच को बदलने की आवश्यकता है.  -पद्मा अग्रवाल द्य

‘‘हम सब अपने को चाहे कितना मौडर्न कह लें, लेकिन अपनी सोच में बदलाव नहीं ला पा रहे हैं. यदि वर्जिनिटी पर सवाल उठाना ही है तो पहले लड़के की वर्जिनिटी पर सवाल उठाना होगा क्योंकि वह किसी भी समय किसी भी लड़की को शिकार बना कर उस की वर्जिनिटी को जबरदस्ती भंग कर देता है…’’

ये भी पढ़ें- अगला युग कैसा

‘‘वैसे तो आज के समय में सम झदार लोगों के लिए वर्जिनिटी का कोई मतलब नहीं रह गया है, परंतु यह भी स्वीकार करना होगा कि आज भी यदि किसी वजह से कोई लड़की अपनी वर्जिनिटी खो चुकी है तो लोगों के लिए ‘खेली खाई’ है और वह सर्वसुलभ है…’’

वर्जिनिटी शरीर की नहीं ग्रसित मानसिकता की उपज

इस साल जनवरी में मेरा रिश्तेदार की शादी में गुजरात जाना हुआ. वहां जाने के लिए मैंने हमेशा की तरह ट्रेन का सफ़र चुना. ट्रेन का सफ़र मुझे हमेशा रोमांचित करता है खासकर तब जब नयी जगह जाना हो. सरसराती हवाएं, दूर दूर तक खेतों में पड़ती नजर, उगता-डूबता सूरज यह सब चीजें अच्छा अनुभव कराती हैं. ट्रेन ने जैसे ही दिल्ली पार की तो मैंने सफ़र में समय काटने के लिए जेन ऑस्टिन की चर्चित नॉवेल प्राइड एंड प्रेज्यूडिस पढने के लिए निकाली. जैसे ही कुछ देर तक पढ़ा, कि सामने वाली सीट पर दो लड़के, यूँही कोई 20-22 के करीब, आपस में बात कर रहे थे और उनकी आवाज मेरे कानों तक आने लगी. उनकी बातों में प्रमुखता से सेक्स, ठरक, वर्जिनिटी वे कुछ शब्द थे जो किताब से मेरा ध्यान हटा रहे थे.

एक लड़का दुसरे को कहता “शादी ऐसी लड़की से होनी चाहिए जो वर्जिन हो. इससे लड़की की लोयालिटी का पता चलता है कि वह आपके प्रति कितनी ईमानदार रहेगी. फिर ‘माल’ भी तो नया रहता है.” फिर इसी बात को और भी लम्पटई शब्दों में दूसरा लड़का विस्तार देने लगा. उन दोनों की बातों में वह सब चीजें थी जो उस उम्र के युवा किसी लड़की के योवन को लेकर अनंत कल्पनाओं में बह जाते हैं. खैर, उनकी सेक्स को लेकर चल रही अधकचरी समझ मुझे इतनी समस्या में नहीं डाल रही थी, जितनी इस जेनरेशन के लड़कों में आज भी खुद के लिए तमाम आजाद यौनिक इच्छाओं और महिलाओं की योनिकता पर नियंत्रण रखने वाली पुरानी सोच से समस्या लग रही थी. यह सब उसी प्रकार से था, कि लड़का आजादी से अपनी सेक्सुअल प्लेजर का शुरू से मजा ले लेना चाहता है जिसके बारे में बताते हुए वह प्राउड महसूस भी करता है और उसके साथ उठने बैठने वाले उसके साथी उसे स्टड, प्ले बॉय का टेग लगा कर प्रोत्साहन करते हैं, वहीँ लड़की अगर किसी लड़के के साथ उठती बैठती है तो उसे रंडी, या स्लट कह देते हैं.

“पढ़ालिखा” समाज

हमारे देश में आज भी लड़का या उसका परिवार शादी करने से पहले इस बात को लेकर संतुष्ट होना चाहता है कि लड़की वर्जिन अथवा कथित तौर पर ‘पवित्र’ हो. ऐसा नहीं है कि यह कोई गाये बगाहे आया मामला है, इस प्रकार के अनेकों उदाहरण मिल जाते हैं, जहां पढ़े-लिखे होने के बावजूद भी ज्यादातर लड़के वर्जिन दुल्हन ही तलाशते हैं. तमाम मेट्रोमोनिअल साइटों पर सीधे सीधे वर्जिन या कुंवारी कन्या का ख़ासा विवरण वाला कालम होता है जिसे खासकर अखबार या सोशल मीडिया पर पढने वाला तबका बड़े चाव से देखता भी है.

पिछले साल की बात है कलकत्ता में कनक सरकार नाम के 20 साल से कार्यरत एक सीनियर प्रोफेसर ने फेसबुक में एक पोस्ट डाली जिसमें उन्होंने शादी के लिए वर्जिन दुल्हन को शादी के लिए जस्टिफाई किया था जिसकी तुलना उन्होंने कोल्ड्रिंक की बोतल और बिस्किट की पैकेट से किया था. उन्होंने लिखा “वर्जिन ब्राइड- क्यों नहीं? वर्जिन लड़की सील लगी बोतल या पैकेट की तरह होती है. क्या तुम सील टूटी बोतल या पैकेट खरीदना चाहोगे? नहीं न.” पोस्ट में आगे उन्होंने लिखा “वर्जिन लड़की अपने भीतर वैल्यू, कल्चर, सेक्सुअल हाय्जीन समेटे रखती है. वर्जिन लड़की का मतलब घर में परि होने का एहसास है.” यानी उन्होंने किसी लड़की की तुलना बड़े शर्मनाक तरीके से बेजान बोतल और बिस्किट के पैकेट से कर दी.

ये भी पढ़ें- जैसे लोग वैसा शासक

इसी तरह नासिक से भी ऐसी घटना सामने आई थी जब एक दुल्हे को संदेह हुआ कि उसकी पत्नी वर्जिन नहीं है उसने टेस्ट कराया और इस कारण उसने अपनी पत्नी को ही छोड़ दिया. आज भी अगर आम सर्वे करवा दिया जाए तो यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि अधिकतर लड़के अपनी पत्नी के रूप में ऐसी दुल्हन चाहेंगे जिसका हाय्मन यानी झिल्ली टूटी नहीं हो. आज भी ग्रामीण इलाकों के बड़े हिस्से में वर्जिनिटी टेस्ट कराने पर विश्वास किया जाता है. जिसके तमाम उदाहरण हमारे आसपास दिखाई दे जाते हैं, या खुद में भी.

रस्में रिवाज की जड़ें

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वर्जिनिटी को महिला योग्यता में सबसे सम्पूर्ण देखा जाता है. इसका सीधा जुड़ाव शुद्धता से समझा जाता है. ऐसी विकृति घर से ही शुरू हो जाती है जब घर में बड़े लोग घर की बेटी को सलीके से रहने की ट्रेनिंग दे रहे होते हैं. जहां माँबाप बातबात पर बेटी को ‘नाक न कटाने’ के लिए अपील करते रहते है जिसका मतलब घर की इज्जत से होता है और घर की इज्जत तो लड़की की वेजाइना में ही समाई होती है. इसके लिए कई तरह की रोकाटाकी कि कपडे ठीक से पहनो, छाती पर चुन्नी ओढो, ज्यादा हंसो मत, बाहर मत घूमों इत्यादि सिर्फ इसलिए ही होता है कि उसकी तथाकथित वर्जिनिटी को बचाया जा सके. महिलाओं से एस्पेक्ट किया जाता है कि अगर वह अच्छी लड़की बनना चाहती है तो उन्हें शादी तक वर्जिन रहना ही पड़ेगा. जाहिर सी बात है हम पुरुष प्रधान समाज में रहते हैं. जहां महिला को संपत्ति के तौर पर देखा जाता है. जहां दूल्हा शादी के दिन दुल्हन के गले में सिन्दूर या मंगलशूत्र ही इसलिए बांधता है ताकि आधिकारिक तौर पर क्लेम कर सके कि उसके शरीर पर सिर्फ उसी का हक है.

शादी वाली रात लड़कियों से उम्मीद लगाईं जाती है कि उसी रात उसकी झिल्ली टूटेगी और वेजाइना से खून गिरेगा. इसे लड़की की इमानदारी, आचरण, चालचलन, और घर की परवरिश के तौर पर समझा जाता है. जिसका पता लगाने के लिए आज भी कई तरह की अवैज्ञानिक और अतार्किक रस्में प्रैक्टिस में लायी जाती हैं. जैंसे- ‘पानी की धीज’, जिसमें लड़की को सांस रोक कर पानी में तब तक डुबाए रखा जाता है जब तक पति द्वारा 100 कदम न पुरे हो जाएं. उसी प्रकार, कुछ इलाकों में ‘अग्निपरीक्षा’ की रस्म होती है जिसमें गरम जलते रोड को हाथ में रखना पड़ता है. अगर कोई इसे करने में असफल हो जाए तो उससे जबरन उसके कथित पार्टनर के नाम की उगलवाते हैं और उस लड़के या लड़की के परिवार वालों से पैसों की भरपाई की जाती है.

ऐसे ही एक रस्म होती है ‘कुकरी की रस्म’, जिसमें सुहागरात वाले दिन बेड पर सफ़ेद चादर बिछाई जाती है. अगले दिन घर के बड़े सदस्य आकर चादर में लगे खून के दाग देख कर लड़की के वर्जिन होने का विश्वास हांसिल कर पाते हैं. ऐसे ही एक और आम रस्म जिसे टूफिंगर के नाम से भी जाना जाता है. जिसमें गांव की दाई या घर की कोई बड़ी महिला लड़की की वेजाइना में ऊँगली फेर कर अंग के कसावट अथवा झिल्ली की जांच करती है. आमतौर पर टूफिंगर का तरीका रेप विक्टिम की जांच के लिए यूज़ किया जाता था जिसकी आलोचना ह्यूमन राईट एक्टिविस्ट ने की थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी 2013 में इस पर आपत्ति जताते हुए अवैज्ञानिक कहा था. इसी प्रकार गुजरात हाई कोर्ट ने भी इसे लेकर विशेष टिप्पणी की थी जिसमें इस टेस्ट को रेप विक्टिम की अधिकारों का हनन मन गया.

धर्मपाखंड का बुना जाल

किन्तु ऐसा नहीं कि महिला के खिलाफ इस प्रकार की रस्में यूँही बनती चली गई, बल्कि इसके पीछे धर्मकर्म के पाखण्ड ने जितना योगदान दिया उतना शायद ही किसी और चीज ने दिया होगा. साल 2014 में दिल्ली सेशन कोर्ट के न्यायधीश ने अपने जजमेंट में कहा था कि “विवाह्पूर्ण यौन संबंध अनैतिक है और हर ‘धर्म के सिद्धांत’ के खिलाफ है.” इससे दो बात जाहिर हुई, एक यह कि कोर्ट के जज इतने जिम्मेदार पद पर बैठ कर पाखंड और पिछड़ेपन की गवाही दे रहे थे. दूसरा यह कि विवाह से पहले स्वेच्छा से किये जाने वाले यौन संबंधो पर धर्म ने हमेशा कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है.

वहीँ, महिला पवित्रता या इमानदारी को अगर नंगी आंखो से समझना हो तो देश में कथित तौर पर पुरुषों में उत्तम की संज्ञा दिए जाने वाले भगवान राम के कृत्य से समझा जा सकता है जब रावण के कब्जे से छूटने के बाद भगवान् राम के कहने पर माता सीता तक को अपनी पतिव्रता की पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी. जिसका गुणगान मौजूदा समय में भी बड़े उत्साह से किया जाता है. वहीँ अनुसूया को इसी पतिव्रता को साबित करने के लिए तीनों लोकों के महादेवों के सामने सशर्त नग्न अवस्था में आना पड़ा. भारत में तमाम ग्रन्थ महिला को पुरुष के अधीन कब्जे में रखे जाने की बात खुल्लम खुल्ला करते हैं. जिसे यदा कदा पढ़ समझ या पंडितों से सुन कर आम लोग अपने जीवन में में उतारते हैं.

भारत में सत्यार्थ प्रकाश लिखने वाले दयानंद सरस्वती जिन्हें आर्य समाज का जन्मदाता कहा जाता है उन्होंने अपनी किताबी के चतुर्थ समुल्यास में विधवा विवाह पर रोक लगाए रखने के लिए महिला शुद्धता के तमाम कुतर्क प्रस्तुत करने की कोशिश की. जिसमें मनु, वेदों के रेफरेन्सेस को ख़ास तौर पर शामिल किया गया. यही सब कारण भी थे कि पुराने समय में ऐसी प्रथाए प्रैक्टिस में लाइ गई जिसमें विधवा महिला को सती कर दिया, बालिका विवाह कर दिया, पढने से रोका गया, बाहर काम करने वाली को कुलटा कहा गया इत्यादि.

इसी प्रकार तमाम धर्म चाहे वह इसाई हो या इस्लाम सबमें महिला की पवित्रता से जुडी बातें देखने को मिल जाएंगी. बाइबल कहता है “दुल्हे को यदि संदेह होता है कि उसकी दुल्हन वर्जिन नहीं है तो वह उसे उसके पिता की चौखट पर जबरन खींच कर लेकर जा सकता है. और उसे पत्थरों की चोट से मार भी सकता है. जिसका तांडव देखने के लिए ख़ास तौर पर दर्शकों की भीड़ जुटाई जा सकती है.” (ओल्ड टेस्टामेंट- खंड 5, 22:13-21), वहीँ इस्लाम में भी महिला को एक वस्तु के तौर पर कब्जे में लेने व व्यापार करने की वस्तु माना जाता रहा.

ये भी पढ़ें- सारे अवसर बंद हो गए

यह बात तय है कि योनिकता पर खासकर महिला की योनिकता पर हमेशा से धर्म नियंत्रण करता रहा है. जिसमें बिना शादी किये या शादी से बाहर जाकर सेक्स करना प्रतिबंधित व शर्मनाक माना जाता रहा. संभव है कि धर्म ग्रंथो में पुरुषवादी सोच का इस तरह के प्रतिबन्ध बुनने का कारण उस समय गर्भनिरोधक की अपर्याप्तता भी कहा जा सकता है, ताकि वंश में पैदा होने वाला बच्चा शुद्ध तौर से पिता के ख़ून का ही हो.

सेक्सुअलिटी को लेकर संकुचित सोच

पश्चिमी देशों में कुछ अमूल परिवर्तनों के कारण आज वर्जिनिटी को लेकर कुतर्की और महिला विरोधी सोच में एक हद तक बदलाव देखने को मिले है, जिसका बड़ा कारण वहां महिलाओं में बढती आत्मनिर्भरता है. लेकिन भारत जैंसे बड़े जनसँख्या वाले देश में आज भी इस तरह की सोच का होना दुखद है. यहां के रुढ़िवादी कल्चर में सेक्स या इंटरकोर्स को देखने का एक नजरिया सेट है. जिसमें महिला पवित्रता का पता लगाने का तरीका हाय्मन के टूटने से ही लगाया जाता है. सेक्स को पीआईवी के मेथड से ही समझा जाता है. किन्तु ऐसे में पुरुष और महिला के बीच ओरल सेक्स या एनल सेक्स भी सेक्स के तरीके है फिर उनका क्या?

क्या यह एक बड़ी वजह नहीं कि इस कारण आज भी देश दुनिया में एलजीबीटीक्यू की योनिकता को लोग एक्सेप्ट नहीं कर पा रहे हैं. क्योंकि जिस कथित वर्जिनिटी को समाज का बड़ा हिस्सा महिला की पवित्रता मान कर चलता है और उसके भीतर पेनिस के घुसने को ही सेक्स समझता है तो उसमें तो एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी स्टैंड ही नहीं करती. इनमें पीआईवी सेक्स होता ही नहीं. तो क्या फिर इस कारण ही समाज द्वारा इनके सेक्स/रिश्तों को अवैध करार दे दिया जाता है और उनके सेक्स के अनुभवों को एक्सेप्ट ही नहीं किया जाता? जबकि इनमें से कई लोग जब पहली बार अपने पार्टनर के साथ संपर्क में आते है या आए होंगे तो खुद के ‘वर्जिनिटी’ लूस होने का उसी प्रकार एहसास पाते होंगे जैंसे हेट्रोसेक्सुअल लोग महसूस करते हों. इसलिए पहले तो यह समझें कि सेक्सुअलिटी काफी काम्प्लेक्स चीज है जिसे पीआईवी तक समेटना लेंगिक भेदभाव करने को दर्शाता है. और फिर यह कि वर्जिनिटी का पवित्रता से कोई लेना देना नहीं है.

नए स्तर से सोचने की जरुरत

आज तमाम वैज्ञानिक समझ से यह बात जगजाहिर है कि वर्जिनिटी नाम की चीज कुछ नहीं होती है. वैश्विक समाज जिस कथित वर्जिनिटी(झिल्ली) को लड़की का ख़ास गहना मान कर चलता है वह बिना किसी पुरुष के संपर्क में आए, समय के साथ खुद ब खुद टूट सकती है. जिसके लिए लड़की का उछल कूद, दौड़ना भागना, बाइक या साइकिल चलाना या मास्टरबेट करना ही काफी वजह है. एक रिपोर्ट में कहा गया कि जिसे हम आमतौर पर वर्जिनिटी मानते हैं वह दुनिया की 90 फीसदी आबादी बिना शारीरिक हुए पहले खो चुकी होती है. जबकि उन्हें इस बारे में पता भी नहीं होता है. जाहिर है इस सब चीजों के बावजूद आज भी हमारे दिमाग से महिलाओं को किसी विशेष खांचे में डालने की आदत पूरी तरह से नहीं गई है.

हाल ही हैदराबाद में फॅमिली इंस्टिट्यूट नाम के एक इंस्टिट्यूट में महिलाओं के लिए ख़ास तरह के प्रोग्राम शुरू करने का विज्ञापन ख़बरों में चढ़ा. जिसमें प्री-मैरिज ट्रेनिंग, आफ्टर मैरिज ट्रेनिंग, कुकिंग, ब्यूटी टिप्स, सिलाई से रिलेटेड कोर्सेज थे. जिसमें एक आदर्श गृहणी बनने के लिए किस तरह से गुणों को निखारना है यह सब था. जाहिर है किसी महिला को विशेष खांचे में ढालने की तरह ही था.

यह चीजें दिखाती हैं कि आज भी वर्जिनिटी को लेकर समाज में कितना संकुचित सोच लोगों के भीतर व्याप्त है. जिसकी सबसे गहरी चोट समाज में आम महिला के साथ साथ विधवा महिलाओं को झेलना पड़ता है, जहां समाज में उन्हें घोषित तौर पर सेकंड हैंड माल या डिसट्रोएड माल समझा जाता है. जिन्हें दया या सांत्वना तो मिल जाती है लेकिन पहले जैसी डिग्निटी के साथ उन्हें समाज में जगह नहीं मिल पाती. वहीँ एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी को सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ता है. जिस कारण उन्हें हिराकत की नजरों से देखा जाता है.

हमें यह बात समझने की जरुरत है कि वर्जिनिटी किसी स्त्री या पुरुष के भीतर नहीं होती, यह इंसानों के अंतर मन में समाहित होती है. लेकिन इन कृत्यों के कारण किसी लड़की को एक ख़ास उम्र तक हर समय डर डर कर जीना सिखाया जाता है. लड़की किशोरावस्था में पहुंची नहीं कि घर में शादी को लेकर चिंता पसरने लगती है. जिसके चलते वह हमेशा तनाव में रहती है. इसी सोच के चलते आज स्थिति यह भी है कि शादी के लिए देश दुनियां में लड़कियां वेजाइना में झिल्ली पाने के लिए हाय्मनोप्लास्टी सर्जरी करवा रही हैं. यह सामजिक दबाव ही है कि इस तरह सर्जरी या तो स्वेच्छा से या मजबूरन महिला को करवाना पड़ रहा है.

वर्जिन रहने के फितूर के कारण कामकाजी औरतें बहुत से जोखिम नहीं लेती और कहीं आने जाने से डरतीं हैं. विधवा या तलाकशुदा से शादी करने से पहले पुरुष दस बार यही सोचते रहते हैं कि होने वाली पत्नी वर्जिन नहीं होगी.

यह दिखाता है कि महिलाओं का वस्तुकरण आज भी समाज में व्याप्त हैं किन्तु इसके साथ यह भी कि कुछ बदलाव आएं जरूर हैं. जिसमें महिलाओं ने अपने अधिकारों को लेकर खुद संघर्ष किया है. एक आदर्श गृहणी के तौर पर हो सकता है घर परिवार दुल्हन से तथाकथित शुद्धता की मांग कर रहे हों, लेकिन आत्मनिर्भर महिला जो कहीं बाहर काम कर अपना खर्चा खुद उठा रही है और अपनी शर्तों पर जी रही हो, वह इन दकियानूसी बेड़ियों को तोडती हुई भी देखि जा सकती है जिसकी स्वीकार्यता बदले समय के साथ स्थापित भी हो रही है. इसलिए जरुरी यह है कि किसी रिश्ते में बंधते समय इस तरह की मांग/इच्छा रखने से बेहतर भविष्य के लिए बेहतर रिश्ते के लिए विश्वास की नीव रखी जाए.

ये भी पढ़ें- दिल में घृणा जबान पर कालिख

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें