लेखिका -पूजा यादव

वर्जिनिटी या कौमार्थ न आज कोई अजूबा है न पहले कभी था. पश्चिमी देशों में नई पत्नी को अपनी वर्जिनटी साबित करने के लिए पहली रात को खून से सनी चादर तक दिखानी होती थी. इस का अर्थ यही है कि अधिकतर लड़कियां शादी तक वर्जिन नहीं रहती थीं. ऐसा कोई नियम लड़कों पर लगा नहीं था. पहले लड़की का फ्यूचर अच्छे पति पर टिका था. आज चाहे लड़का हो या लड़की घर से बाहर रह कर पढ़ने या नौकरी करने को मजबूर हैं.

आज बच्चे 1 या 2 ही होते हैं और जीवन के हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा है. 10वीं कक्षा के बाद मुश्किल से ही घर में रह पाते हैं. बेहतर से बेहतरीन की तलाश में बड़े शहरों का या जहां मनचाहा कोर्स मिले वहां का रुख कर लेते हैं और शादी करने की किसी को कोई जल्दी नहीं होती.

युवा पीढ़ी शादी के बंधन से तो बचना चाहती है, लेकिन शरीर की किसी भी जरूरत को पूरा करने से हिचकती नहीं है. जरूरतें उम्र के साथसाथ जाग ही जाती हैं. स्वतंत्र वातावरण में वैसे भी कोई नियंत्रित नहीं कर सकता है. लड़कों को तो इस मामले में हमेशा से ही छूट रही है. उन पर तो कोई जल्दी और आसानी से उंगली भी नहीं उठाता पर अब लड़कियों के भी आत्मनिर्भर होने से उन पर भी जल्दी शादी का दबाव नहीं रहा.

बदल गई है जीवनशैली

लड़केलड़कियों का एकसाथ रहना एक सामान्य बात ही नहीं जरूरत भी हो गई है. बहुत बार 3-4 कमरों के सैट में 2-3 लड़कियों और 2-3 लड़कों के साथसाथ रहने में भी कोई बुराई नहीं है. कुछ साल साथ रह कर अपनी सुविधानुसार सही समय पर शादी के बारे में सोचें तो बहुत ही अच्छी बात है. लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब कुछ समय साथ रहने के बाद दोनों के विचार नहीं मिलते और अलग हो जाते हैं.

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