काम के साथ परिवार का सामंजस्य कैसे करती है अभिनेत्री परिवा प्रणति, पढ़ें पूरी इंटरव्यू

परिवा प्रणति आज एक खूबसूरत और विनम्र अभिनेत्री के रूप में जानी जाती है. उन्होंने हिन्दी फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया है. धारावाहिक तुझको है सलाम जिंदगीं, हमारी बेटियों का विवाह, अरमानों का बलिदान, हल्ला बोल, हमारी बहन दीदी, लौट आओ त्रिशा, बड़ी दूर से आये हैं आदि कई है. परिवा का जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ है. उनके पिता एक वायु सेना अधिकारी हैं. पिता का जॉब में बार – बार स्थानांतरण होने की वजह से परिवा कई शहरों में रह चुकी है. उनकी पढ़ाई दिल्ली में पूरी हुई है. ऐक्टिंग के दौरान परिवा को, ऐक्टर और वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर पुनीत सचदेवा से प्यार हुआ और शादी की. उन दोनों का एक बेटा रुशांक सिन्हा है. परिवा अपने खाली समय में पेंटिंग करना, लिखना और सूफी संगीत सुनना पसंद करती है, परिवा एक पशु प्रेमी है, उन्होंने कई बिल्लियां और कुत्ते पाल रखे है. इन दिनों परिवा सोनी सब पर चल रही शो वागले की दुनिया – नई पीढ़ी नए किस्से में वंदना वागले की भूमिका निभा रही है, जिसे सभी पसंद कर रहे है, रियल लाइफ परिवा एक बच्चे की माँ है, काम के साथ परिवार को कैसे सम्हालती है, आइए जानते है. 

मां की भावना को समझना हुआ आसान  

शो में परिवा माँ की भूमिका निभा रही है और रियल लाइफ में माँ होने की वजह से उन्हें एक माँ की भावना अच्छी तरह से समझ में आती है. वह कहती है कि बन्दना वागले की भूमिका मेरे लिए एक आकर्षक भूमिका है, इसमें मैँ दो बच्चे सखी और अपूर्वा की माँ हूँ, जिसमें बेटी समझदार है और बेटा थोड़ा शरारती है. देखा जाय, तो रियल लाइफ में भी बेटियाँ बेटों से थोड़ी अधिक समझदार होती है, वैसा ही शो में दिखाया गया है. रियल लाइफ में मेरा बेटा रुशांक सिन्हा 6 साल का है और बहुत शरारती भी है. असल में जब मैँ माँ बनी तो माँ की भावनाओं को समझ सकी, जिसका फायदा मुझे शो में मिल रहा है. मुझे याद आता है, जब मैँ काम कर रही थी, तो मेरी मा रोज मुझसे बात किये बिना नहीं सोती थी, लेकिन अब मैँ माँ की भावना को समझती हूँ. पेरेंट्स बनने के बाद मेरी हमेशा चिंता बच्चे की शारीरिक रूप से सुरक्षित रहने में होती है. 

काम के साथ करें प्लानिंग 

काम के साथ परिवार को सम्हालने के बारें में पूछने पर परिवा कहती है कि मैंने हमेशा कोशिश की है कि बच्चे को पता चले कि मेरा काम करना जरूरी है, साथ ही उसे हमेशा कुछ नया सीखने के लिए मैँ उसे प्रेरित करती हूँ, ताकि वह छोटी उम्र से ही कुछ सीखता रहे और व्यस्त रहें. धीरे -धीरे मेरा बेटा अब काफी कुछ समझने लगा है कि मेरा काम पर जाना जरूरी है. इसके अलावा मेरे पति और एक हेल्पिंग हैन्ड है, जो उसका ख्याल रखते है. कई बार जरूरत पड़ने पर मेरे पेरेंट्स भी सहयोग करने आ जाते है. बच्चे को सम्हालने में पति का अधिक सहयोग रहता है, उनका मेरे बेटे के साथ एक अलग दोस्ती है. मेरे पति भी हमेशा बेटे को कुछ नया सीखने की कोशिश करता है, उसे अभी टेनिस खेलने ले जातें है, बेटे को कुछ खाने को मन हुआ तो वे उसे बनाकर दे देते है. हम दोनों आपस में मिलकर अपने समय के अनुसार बेटे की परवरिश कर रहे है. मेरे पति ऐक्टर के अलावा वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफ़र भी है, इसलिए मैँ बेटे को कई बार जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क और ताडोबा नैशनल पार्क लेकर गए है, उसे भी ये सब पसंद है. 

जरूरत से अधिक प्रोटेक्शन देना ठीक नहीं 

अधिकतर बच्चे खाना खाने में पेरेंट्स को परेशान करते है, ऐसे में आप बच्चे को किस प्रकार से खाना खिलाती है? मैंने हमेशा घर का खाना खिलाने की कोशिश किया है, अगर वह सब्जियां नहीं खाता है, तो उसे पीसकर आटे में मिला देती हूँ, जिसे वह खा लेता है. अधिक समस्या करने पर नाना – नानी के पास भेज देती हूँ. मेरे पिता फौजी में थे, इसलिए अनुसाशन बहुत कड़ी रहती है, इसलिए वहाँ जाकर सब खाने लगता है. मैँ बेटे को लेकर अधिक प्रोटेक्टिव नहीं, क्योंकि मैँ उसे भोंदू बच्चा नहीं बनाना चाहती, लेकिन उसकी सुरक्षा पर ध्यान देती हूँ और एक आत्मनिर्भर बच्चा बनाना चाहती हूँ. हम दोनों उस पर अपनी इच्छाओं को थोपते नहीं, उसे निर्णय लेने की आजादी देते है. मैंने देखा है कि कई बार पेरेंट्स अपने बच्चे की गलती नहीं देखते, जो गलत होता है.  हमें अपने बच्चे की गलती भी पता होनी चाहिए. मैँ बचपन में बहुत समझदार बच्ची थी और सुरक्षित माहौल में बड़ी हुई हूँ. आजकल के बच्चे जरूरत से अधिक सेंसेटिव होते जा रहे है, जो पहले नहीं था. मुझे हमेशा कहा गया कि ‘नो’ सुनना भी हमें आना चाहिए. मेरे पेरेंट्स ने कभी किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला. जब मैंने उन्हे ऐक्टिंग की बात कही, तो उन्होंने मना नहीं किया, बल्कि सहयोग दिया.

एक्टिंग नहीं था इत्तफाक 

परिवा कहती है कि मुझे बचपन में बहुत कुछ बनना होता था, हर दो महीने में मेरी इच्छा बदलती थी, फिर पता चला कि एक ऐक्टर बहुत कुछ ऐक्टिंग के जरिए बन सकता है, फिर मैंने इस क्षेत्र में आने का मन बनाया. मैँ ऐक्टिंग को बहुत इन्जॉय करती हूँ.  

जर्नी से हूँ खुश 

परिवा कहती है कि मैँ अपनी जर्नी से बहुत खुश हूँ, जितना चाहा उससे कही अधिक मुझे मिला है. ऐक्टिंग के अलावा मैं कहानियां भी लिखती हूं, एक किताब लिखने की इच्छा है. 

Comedian भारती आचरेकर को है किस चीज का है Regret, आइयें जाने

4 दशक से अधिक समय तक अभिनय के क्षेत्र में बिता चुकी अभिनेत्री भारती अचरेकर के नाम से कोई अपरिचित नहीं, उन्होंने 17 साल की उम्र से ही थिएटर ज्वाइन कियाऔर टीवी, फिल्म और रंगमंच पर अपनी प्रतिभा से हर तरह की भूमिका निभाई. उनकी लोकप्रिय दूरदर्शन शो‘बागले की दुनिया’ जिसे आर के लक्षमण ने लिखा था. इसमें  भारती ने राधिकाबागले की भूमिका निभाई थी. उनकी हर भूमिका में एक सहजता और परिपक्वता दिखती है. फिर चाहे वह प्रिंसिपल की भूमिका हो या किसी घर की मालकिन, हरभूमिका को उन्होंने बहुत ही स्वाभाविक रूप से पर्दे पर पेश किया है, जिसे आज भी लोग याद करते है. उनके हिसाब से आज कॉमेडी के अंदाज बदल गए है और स्वाभाविक रूप से किसी को हसाना,आज बहुत कम लोग कर पाते है. सोनी सब पर भारती आचरेकर शो ‘वागले की दुनिया’के साथ वह नए रूप में आई है, जिसमें वह ने सीनियर मिसेज वागले की भूमिका में नजर आ रही हैं. वह रोज दादर से एक घंटा ट्रेवल कर मीरारोड शूटिंग के लिए जाती है. उन्होंने खास गृहशोभा के लिए बात की, पेश है कुछ अंश.

सवाल-पहले की शो और इस नए शो में क्या आप कुछ अंतर पाती है?

अंतर मुझे नहीं लग रहा है, क्योंकि इस शो में बहुत नए-नए इश्यु को लेकर आये है, जो बहुत अच्छे है. वैसे उस ज़माने में समस्या बच्चों और वयस्कों की अलग थी, आज अलग है. अभी सोशल मीडिया भी आ चुका है. इसमें कई इश्यु ऐसे है, जिसे मैंने न देखा और न सुना है. इसकी बहुत ही डेडिकेशन के साथ काम कर रही  है. इसमें बच्चों को लेकर आम जनजीवन के संस्कारों और तरीकों के बारें में कहानी अधिक है, जिसमें सकारात्मकता को दिखाया गया है, जिसे करने में भी अच्छा लगता है. पुरानी कहानी को कही भी दोहराया नहीं गया है.

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सवाल-आपने अधिकतर कॉमिक भूमिका निभाई है, अभिनय में किस भूमिका को करना कठिन होताहै, कॉमेडी या सीरियस ?

कॉमेडी करना कठिन होता है और रंगमंच पर सबने मेरी कॉमेडी को अधिक पसंद किया, जिससे मुझे उस तरह की भूमिका अधिक मिली. मैं 40 साल से अभिनय कर रही हूं और हर तरह की भूमिका निभाई है. मेरे लिए कुछ भी कठिन नहीं है.

सवाल-कॉमेडी में द्विअर्थी शब्दों के प्रयोग के बारें में आपकी सोच क्या है?

आज के  दर्शक पहले से काफी बदल गए है. अभी कॉमेडी टाइम पास के लिए की जाती है,क्योंकि दिन भर काम करने के बाद व्यक्ति को बहुत कम समय टीवी के लिए मिलता है. पहले कॉमेडी,कंटेंट के लिए की जाती थी. अभी भी कंटेंट वाली काफी शो है और दर्शक उसे देख सकते है. दुनिया बदली है, इसलिए सबकी सोच भी बदलना जरुरी है.

सवाल-कॉमेडी में किस बात का खास ध्यान रखना पड़ता है?

कॉमेडी अलग-अलग तरीके से की जाती है, कुछ लोग अपने ऊपर कॉमेडी लेते है, कुछ सिचुएशन के आधार पर की जाती है. मैने हर तरीके की कॉमेडी की है, लेकिन अब मैं भी बदल गयी हूं और नए ज़माने की कॉमेडी के साथ चलने की कोशिश कर रही हूं.

सवाल-आपने एक लम्बा समय अभिनय में बिताया है,कितने संतुष्ट है?

मैंने 17 साल की उम्र से अभिनय शुरू किया और 25 साल तक थिएटर में काम करती रही. उस समय सोशल मीडिया और चैनेल्स भी नहीं थे. साथ ही मैंने संगीत में ग्रेजुएट किया है. इसके बाद टीवी आई तो उसमें काम करना शुरू किया. फिर फिल्मों में काम मिलने लगा, उसे किया, लेकिन फिल्मों में महिला चरित्र कलाकारों को अधिक कामतब नहीं मिलती थी, जबकि पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाता था, ऐसे में टीवी और थिएटर में काम करने से संतुष्टि मिलती थी. अभी भी मैं नाटकों में काम करती हूं. इसके अलावा 10 साल तक टीवी की प्रोड्यूसर भी बनी, जो मैंने चैनल की तरफ से किया.बाद में मैंने खुद भी प्रोड्यूस की, पर अधिक सफल नहीं रही. कोई मलाल अब नहीं है.

सवाल-इतने सालों में आपको किसने अधिक प्रेरित किया?

ये बताना थोडा मुश्किल है, क्योंकि मैंने बहुत सारे बड़े-बड़े कलाकारों के साथ नाटकों में काम किया है, जिसमें अमोल पालेकर, डॉ. श्रीराम लागू, आदि सभी कलाकारों के साथ काम करते हुए मार्ग दर्शन मिले. आज के कलाकारों को तो ऐसे गुरु मिलना भी मुश्किल हो चुका है,  जिससे उन्हें कुछ सीखने का मौका मिले. वे करें तो करें क्या. उन्हें तो रेस में जाना है. यही चल रही है. पुरानी ‘बागले की दुनिया’और मराठी नाटक‘हमीदा बाईची कोठी’को मैं आज भी मिस करती हूं.

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सवाल-संगीत में आपने शिक्षा ली है, क्या उस दिशा में कुछ किया?

उस समय संगीत में इतना पैसा नहीं था, जिससे घर चले. आज संगीत को भी महत्व मिलता है. एक्टिंग अच्छी चल रही है. इस लिए उसमें कुछ नहीं कर पायी और मलाल रह गया है. मेरी माँ माणिक वर्मा गायिका थी और उन्होंने पद्मश्री भी प्राप्त की थी इसलिए परिवार में कला का माहौल हमेशा रहा और माता-पिता ने सहयोग भी दिया है. अभी मेरा एक बेटा है, जो विदेश में रहता है और दूसरे क्षेत्र में काम करता है. मुझे याद आता है, जब मैंने 34 साल की उम्र में अपने पति को खो दिया था.मेरा बेटा उस समय 9 साल का था और मुझे कमाने की जरुरत थी. ऐसे में संगीत के क्षेत्र में कोई पैसा नहीं मिल रहा था. अभिनय ने मेरा साथ दिया.

सवाल-क्या आपका बेटा भी अभिनय क्षेत्र में है?

मेरा एक बेटा है जो विदेश के इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में स्पेशल इफ़ेक्ट पर काम करता है.

सवाल-नई जेनरेशन के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

कभी-कभी मुश्किल उनके साथ काम करने की होती है. उनकी सोच मुझसे बहुत अलग है. मैं उसमें दखल नहीं देती. मैंने जो अपने जीवन में सीखा है, वह बहुत अलग है. अगर मैंने कभी किसी को कुछ कहा भी है तो कई बार उन्हें अच्छा नहीं लगता और मुझे पता चल जाता है, लेकिन कुछ लड़के लड़कियां है जो मुझसे सीखना चाहते है और मैं उन्हें सिखाती भी हूं. इसके अलावा आज प्रतियोगिता अधिक है, जबकि हमारे समय में कलाकारों की संख्या कम थी. इसलिए उन्हें उस रेस में पड़ना पड़ता है और उन्हें आगे निकलने की होड़ लगी रहती है.

सवाल-आपकी फिटनेस का राज क्या है?

मैं हमेशा खुश रहना पसंद करती हूं. इसके अलावा काम करते रहना चाहती हूं. काम न मिलने पर मैं दुखी हो जाती हूं.

सवाल-खाली समय में क्या करती है?

मुझे खाना बनाने का शौक है. इसके अलावा फिल्में देखना, किताबें पढना घूमना, नाटक देखना, बहनों के साथ मिलना आदि कई चीजे करती हूं. मुझे अक्षय कुमार, दीपिका पादुकोण और करीना कपूर की फिल्में बहुत पसंद है.

सवाल-गृहशोभा के लिए कोई खास मेसेज जो देना चाहती है?

काम अच्छा कीजिये , बच्चों को अच्छे संस्कार दीजिये. बच्चों को  किताब पढना सिखाइए, क्योंकि आज के बच्चे किताब पढना भूल चुके है. महिलाओं को जीवन में उतार-चढ़ाव मेंसकारात्मक सोच बनाए रखने की जरुरत होती है. इसके अलावा हर महिला को आत्मनिर्भर होने की जरुरतहै. इससे आत्मशक्ति बढती है और वे खुश रहती है. चौके चूल्हे में उसे गवाने की जरुरत नहीं होती.

आने वाला है 30 साल बाद ‘वागले की दुनिया’ शो, ‘साराभाई वर्सेज साराभाई’ एक्टर आएंगे नजर

कई हिंदी कॉमेडी शो और फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता सुमित माधवन किसी परिचय के मोहताज नहीं. उनकी कुछ चर्चित शो हद कर दी, साराभाई वर्सेज साराभाई, सजन रे झूठ मत बोलो आदि है. हिंदी के अलावा उन्होंने मराठी फिल्मों में भी काम किया है. इतना ही नहीं वे एक क्लासिकल सिंगर है. उन्होंने हमेशा उस शो में काम करना पसंद किया, जिसे करने में उन्हें मज़ा आये. बचपन से ही उन्हें अभिनय का शौक था, जिसमे उनके पिता राघवन और माँ प्रेमा ने हमेशा साथ दिया. 80 के दशक की चर्चित शो ‘वागले की दुनिया’ सोनी सब टीवी पर एक बार फिर से करीब 30 साल बाद आ रही है, जो आगे की पीढ़ी की कहानी बताएगी. सुमित ने इसमें वागले की बेटे की मुख्य भूमिका निभाई है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल-इस शो में आपके लिए चुनौती क्या होगी?

हर किरदार मेरे लिए चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन इस शो में मेरा जुड़ना अलग है, क्योंकि इस शो का प्रभाव दर्शकों के दिमाग पर पहले से छाया हुआ है, कई यादें जुडी हुई है. लेकिन मैं वो वागले नहीं हूं, मैं उनका बेटा हूँ और इस वागले की कहानी नयी पीढ़ी और नए किस्से के साथ है. 

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सवाल-आपने अपनी भूमिका के लिए कितनी तैयारी की है?

ये कॉमेडी शो नहीं है. ये पहले की तरह ही एक आम जिंदगी से जुडी हुई शो है, जिसमें एक व्यक्ति अपने परिवार और माता-पिता के साथ रहता है. उसकी जिंदगी में रोजमर्रा कुछ न कुछ समस्या आ ही जाती है, फिर कैसे वह इससे निकलता है, उसी को दिखाया है, जिसमें इमोशन, हंसी के साथ-साथ उन बातों को भी याद दिलाया जाएगा, जो नई पीढ़ी भूल चुकी है. असल में आज की पीढ़ी भाग-दौड़ की जिंदगी में सब भूलकर, पैसे के पीछे भाग रही है. ये सही है कि पैसा जरुरी है, पर रिश्तों को गर्माहट को नजरंदाज करना ठीक नहीं. इसलिए इस शो के लिए तैयारी अधिक नहीं करनी पड़ी. 

सवाल-एक्टिंग में आना इत्तफाक था या बचपन से सोचा था?

इत्तफाक नहीं था, मैंने बचपन से ही तय कर लिया था कि एक्टिंग करना है. मेरा पहला शो वर्ष 1985 में आया था तब मैं 15 साल का था. अभिनय के क्षेत्र में आये हुए 36 साल हो चुके है. मैंने चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में अभिनय शुरू किया था और आज यहाँ तक पहुंचा हूँ. 

सवाल-आपने एक लम्बा सफ़र तय किया है, कितना अंतर तब की कहानियों और आज की कहानी में पाते है? 

अंतर बहुत है, खासकर पेश करने का तरीका बहुत अलग हो चुका है. तब तकनीक अधिक नहीं थी, ऐसे में स्क्रिप्ट कलाकार को पकड़ा दिया जाता था और कलाकार के तैयार होने के बाद शूट कर लिया जाता था. आज अलग-अलग पहलू पर ध्यान दिया जाता है. पहले की पब्लिसिटी आज की तरह नहीं होती थी. तब फिल्मों के ही होर्डिंग्स लगते थे, आज के जैसे टीवी शोज के लिए होर्डिंग्स कभी लगे नहीं है. मेरे हिसाब से सबकुछ बदल जाय, ठीक है, पर इंसान की इंसानियत बदलनी नहीं चाहिए. 

सवाल-क्या परिवार का कोई सदस्य फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा था? उनका सहयोग कितना रहा?

नहीं, कोई भी मेरे परिवार में मनोरंजन की इंडस्ट्री से जुड़ा नहीं था. केवल मैं ही इस क्षेत्र में काम कर रहा हूँ, पर परिवार का सहयोग बहुत रहा है, तभी मैं इतना आगे बढ़ पाया हूँ. उन दिनों मेरे पेरेंट्स मुझे लेकर हर जगह घूमते थे और ऑडिशन दिलवाते थे. उनका सहयोग अगर नहीं होता, तो मैं यहाँ तक नहीं पहुँच पाता. हर क्षेत्र में निराशा होती है, लेकिन अभिनय इंडस्ट्री में उम्र को लेकर निराशा होती है. सही समय पर काम भले ही न मिले, पर उम्र बढती रहती है. उस समय मेरे पेरेंट्स ने केवल सहयोग ही नहीं, बल्कि काउंसलिंग भी की है. मैं भी कई बार काम न मिलने की वजह से निराश हुआ था, पर माता-पिता की वजह से आसानी से उससे बाहर निकल गया. हर परिवार को ऐसी मनस्थिति आज रखने की जरुरत है. 

सवाल-पत्नी का सहयोग कितना रहा है?

मेरी पत्नी चिन्मयी मराठी एक्ट्रेस है और अभी एक मराठी फिल्म की शूटिंग सांगली में कर रही है. बेटा नीरद संगीत निर्देशक है और बेटी बिया सिनेमेटोग्राफी की कोर्स पूणे में कर रही है. पूरा परिवार कला से जुड़ा हुआ है. माता-पिता पर्दे के आगे और बच्चे पर्दे के पीछे काम करेंगे. हम, दोनों पति-पत्नी का एक ही क्षेत्र में काम करने से आपसी तालमेल बहुत अच्छा रहता है. किसी भी स्क्रिप्ट के आने पर मैं पत्नी और बच्चों की राय लेता अवश्य लेता हूँ.

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सवाल-कोई ऐसी शो जिसने आपकी जिंदगी बदली हो?

धारावाहिक ‘साराभाई वर्सेज साराभाई’ ने मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी है. 

सवाल-आपने शास्त्रीय संगीत सीखा है, उस दिशा में क्या कर रहे है?

संगीत के क्षेत्र में कुछ करने की इच्छा थी, पर एक बड़ा प्रोजेक्ट मुझे मिल गया था. तब मैंने अभिनय को ही चुन लिया. संगीत की दिशा में काम न कर पाने का मुझे मलाल है. आगे समय मिला तो कुछ अवश्य करूँगा. 

सवाल-आपने थिएटर, फिल्में, शोज, डबिंग आदि किये है, किसमें आपको काम करना सबसे अधिक अच्छा लगता है?

जिस काम को करने में मेरा मन लगे, मैं उसी को करता हूँ. एक्टिंग में मुझे सबसे अधिक ख़ुशी मिलती है, इसलिए मैंने बाकी सबकुछ छोड़ दिया है. 

सवाल-आज के परिवेश में बच्चे पढलिखकर विदेश चले जाते है और माता-पिता अकेले रह जाते है, ऐसे में आप उन बच्चों को क्या सन्देश देना चाहते है?

ये सही है कि आज के यूथ को कुछ अच्छा करने के लिए विदेश जाना पड़ता है, लेकिन उन्हें ये ध्यान देना है कि वे दुनिया में क्यों आये है? वे इसे भूले नहीं. माता-पिता को साथ भले ही न रखे, पर करीब अवश्य रखे.

सवाल-क्या कोई मेसेज देना चाहते है? 

पिछले साल कोरोना संक्रमण ने जो कहर सभी पर ढाया है, उसका अर्थ शायद सभी को समझ में आ गया है. आज सबको धीरज के साथ रूककर, साँस लेकर आगे बढ़ना है. इसके अलावा जो आपके पास है, उससे आप गुजारा कर सकते है, इसी बात को कोविड 19 ने अच्छी तरह से सिखा दिया है. 

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