उत्तरप्रदेश के फतेहपुर के एक छोटे से गांव अमौली से निकलकरफिल्म इंडस्ट्री में पहचान बनाने वाले अभिनेता दिलीप आर्यको बचपन से अभिनय का शौक रहा है. उन्होंने एक लम्बी संघर्ष के बाद अपनी मंजिल पायी है. उनके पिता राजगीर मिस्त्री हुआ करते थे. 11 वर्ष की आयु में दिलीप ने अपने पिता को खो दिया. उनके निधन के बाद, माँ के खेत में काम करने के दौरान दिलीप छोटे-छोटे काम कर अपनी पढाई पूरी की. इसके बाद अभिनय के क्षेत्र में पैर जमाना महज उनकी मेहनत और लगन का परिणाम है. उनकी वेब सीरीज ‘बीहड़ के बागी रिलीज हो चुकी है, जिसमें उन्होंने मुख्य भूमिका डकैत शिव कुमार पटेल की निभाई है. उनके काम को सराहना मिल रही है. उनसे बात हुई, पेश है अंश.

सवाल- इस वेब सीरीज में काम करने की वजह क्या रही?

ये कहानी 90 के दशक के एक डाकु शिवा की है, जिसके आसपास कहानी घूमती है. इसमें मैंने मुख्य भूमिका निभाई है. इसे करना बहुत कठिन था. ये कहानी बुंदेलखंड के डकैत ददुआ के जीवन से प्रेरित है.

सवाल- कितनी चुनौती रही?

मेरे लिए इस फिल्म को करना बहुत मुश्किल था, क्योंकि ये अलग तरह की फिल्म है. मैं सहज व्यक्तित्व का इंसान हूं और मुझे  डकैत की भूमिका निभानी पड़ी. उस चरित्र में खुद को ढालना मुश्किल था. इसके अलावा डाकुओं की कई बड़ी फिल्में पहले भी बनी है, इसलिए मेरे लिए एक बड़ी चुनौती थी कि ये फिल्म दूसरे फिल्म से अलग और अच्छा हो. ये बुंदेलखंड की कहानी है,इसकी शूटिंग उत्तरप्रदेश के बुन्देलखंड के चित्रकूट में की गई है.वहां बहुत बड़ी जंगल है, इसलिए डकैत वहां अधिक पनपते थे, क्योंकि वहां छुपने की जगह है. डकैत, डकैती कर एक राज्य से दूसरे राज्य पैदल ही चले जाते थे, जिससे किसी भी राज्य के लिए उन्हें पकड़ना मुश्किल होता था. इसके अलावा वहां के आदिवासी, जो बीड़ी बनाते है, ये डकैत वही आकर शरण लेकर इनके बीच में रहते थे और उनके जरुरत के अनुसार उनकी आर्थिक मदद करते है.

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सवाल- अभिनय की प्रेरणा कहाँ से मिली?

मुझे बचपन से ही अभिनय का शौक था, क्योंकि मेरे गांव में एक नेता हेलीकॉप्टरसे आये थे, जिसे देखने सारा गांव उमड़ पड़ा था. मैंने एक बुजुर्ग से पूछा था कि मैं हेलीकॉप्टर में कैसे बैठ सकता हूं, उसने मुझे नेता या अभिनेता बनने की सलाह दी. ये बात मेरे अंदर घर कर गयी. गांव से मैं दिल्ली पढने आया और पढाई के साथ-साथ थिएटर भी करने लगा. इस दौरान मैने पैसे के लिए सिलाई शुरू कर दिया था और शाम को नाटक के रिहर्सल के लिए जाता था. इसके बाद मुझे लखनऊ में भारतेंदु नाटक एकेडमी में दाखिला मिल गया. वहां से पूणे में फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट में जाकर फिल्म मेकिंग सीखा और मुंबई आ गया.

सवाल- पहली बार परिवार से अभिनय की बात कहने पर उन्होंने इसे कैसे लिया?

पहले तो वे हँसे, क्योंकि उन्हें एक्टिंग के बारें में कोई जानकारी नहीं थी. हमारे पास उस समय न तो खेत था, न मकान था और न ही कुछ था. पिता राजगीर मिस्त्री का काम करते थे. उनकी मृत्यु के बाद माँ के ऊपर हम 6 भाई बहनों की जिम्मेदारी आ गई. पूरा परिवार कच्ची मिट्टी के झोपडी रहता था. मेरे बड़े भाई और मैंने मजदूरी शुरू कर दी. मुझे रोज उससे 4 रुपये और भाई को 7 रुपये मिलते थे. मजदूरी के बाद मैंने सिलाई करना शुरू किया, क्योंकि मेरी पढाई मजदूरी की वजह से ख़राब हो रही थी. इस तरह बड़ी मेहनत से मैंने अपनी पढाई, काम और एक्टिंग पूरी की. निर्देशक के कहने पर मेरी माँ अतिया भी इस वेब सीरीज में माँ की भूमिका को किया है.

सवाल- पहला ब्रेक कैसे मिला?

पहला ब्रेक मुझे प्रकाश झा के यहाँ 10 साल सहायक निर्देशक के रूप में काम कर चुके रितम श्रीवास्तव ने इस वेब सीरीज के ज़रिये दिया और मुझे ख़ुशी है कि मेरी भूमिका सबको पसंद आ रही है. मुंबई में मैं 2005 से हूं और अभी तक सरवाईवल के लिए कॉर्पोरेट थिएटर, नुक्कड़ नाटक आदि करता हूं.

सवाल- क्या आउटसाइडर को अधिक संघर्ष रहता है?

इंडस्ट्री में हुनर की कद्र है, लेकिन मौका मिलने में समय लगता है, क्योंकि मुंबई में लाखों लोग अभिनय के लिए आते है. पहचान बनाने में समय लगता है. अंदर से या बाहर से होना इंडस्ट्री के लिए कोई लेना देना नहीं होता. काबिल है तो काम मिलता है. मेरा संघर्ष अभी भी चल रहा है. सबसे अधिक कठिनाई अर्थक तंगी से निकलना होता है, क्योंकि अभिनय नियमित रोजगार का जरिया नहीं होता. पहली बार काम मिलने पर पैसे भी नहीं मिलते. आर्थिक तंगी हर रोज तनाव में ले जाता है.

सवाल- आगे की प्लानिंग क्या है?

मैं अलग-अलग कहानियों पर काम करने की इच्छा रखता हूं. अभिनय ही मेरा पैशन है. नाटकों में अभिनय और निर्देशन का काम चल रहा है. मुंबई में धैर्य से टिके रहना जरुरी है, तभी काम मिलता है, क्योंकि अभी कॉम्पिटीशन गला काट है.

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सवाल- क्या कोई ड्रीम है?

मैं राजनेताओं पर कटाक्ष करने वाली फिल्म में काम करना चाहता हूं, क्योंकि राजनीति अभी ख़राब दौर से गुजर रही है, सिस्टम कोलेप्स हो रहा है. सरकारी तंत्र की व्यवस्था बहुत ख़राब हो चुकी है. उसपर कुछ करने के लिए कहानियां ढूंढ रहा हूं, क्योंकि ये सरकारी लोग नेताओं के गुलाम होते है और आम इंसान के लिए कोई काम नहीं करते. मैंने एक काम के लिए 20 बार चक्कर लगाया, पर काम आजतक नहीं हो पाया.

सवाल- आपको अगर सुपर पॉवर मिले, तो क्या करना चाहेंगे?

सबसे पहले न्यायपालिका को ठीक करूंगा, जिसका डर किसी को नहीं है. उसका खौफ होने पर अपराध और भ्रष्टाचार दोनों ही कम होगा.

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