टौरेट सिंड्रोम से पीड़ित रहे अमरीकन मोटीवेशनल प्रवक्ता और शिक्षक ब्रैड कोहेन तमाम मुसीबतों का सामना करते हुए सफल शिक्षक बने थे. फिर उन्होंने अपनी कहानी पर एक किताब भी लिखी, जिस पर अमरीका में 2008 में एक फिल्म ‘‘फ्रंट आफ द क्लास” बनी थी, उसी के अधिकार लेकर ‘यशराज फिल्मस’ ने फिल्म ‘हिचकी’ का निर्माण किया है. मगर यह फिल्म रानी मुखर्जी के अभिनय को नजरंदाज करने पर शून्य हो जाती है. अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि रानी मुखर्जी महज अपने अभिनय के बल पर इस फिल्म को बाक्स आफिस पर कितनी सफलता दिला पाएंगी?

फिल्म ‘‘हिचकी’’ की कहानी टौरेट सिंड्रोम की बीमारी से पीड़ित शिक्षक नैना माथुर (रानी मुखर्जी) के इर्दगिर्द घूमती है. इस बीमारी की वजह से उन्हें बार बार हिचकी आती है. इसके चलते बचपन में उन्हें 12 स्कूल बदलने पड़े और अब जब वह शिक्षक के तौर पर विद्यार्थियों को पढ़ाना चाहती हैं, तो उसे 18 स्कूलों ने नौकरी देने से इंकार कर दिया. जबकि नैना माथुर के पास कई डिग्रियां हैं. पर वह हार नही मानती. जबकि नैना माथुर सभी को टौरेट सिंड्रोम के बारे में विस्तार से बताती भी हैं. अंततः पांच साल के संघर्ष के बाद नैना माथुर को एक कैथौलिक स्कूल में नौकरी मिल जाती है. इस स्कूल के संस्थापक को भी बोलने की समस्या थी. इस स्कूल में शिक्षा के अधिकार के तहत भर्ती गरीब बच्चों की कक्षा नौ एफ को भौतिक शास्त्र पढ़ाने का अवसर नैना माथुर को मिलता है. नैना माथुर इन बच्चों को आम प्रचलित पद्धति की बजाय अनोखे तरीके से पढ़ाती हैं. इस कक्षा के बच्चे झोपड़पट्टी के हैं, तो स्वाभाविक तौर पर वह अपनी शिक्षक को परेशान भी करते हैं और नैना, आतिश (हर्ष मयार) सहित 14 विद्रोही व शरारती बच्चों से निपटती भी हैं.

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