2016 की मराठी भाषा की सुपरहिट फिल्म ‘‘सैराट’’ का शशांक खेतान ने हिंदी रीमेक ‘‘धड़क’’ बनाया है, जिसे देखकर अहसास होता है कि फिल्मकार ने ‘सैराट’ की ही औनर कीलिंग कर डाली है.  ‘धड़क’ से ‘सैराट’ की रूह गायब है.

कहा जाता है कि ‘समरथ को नहीं दोष गोसांई’..इसीलिए ‘धड़क’ के फिल्मसर्जक ने अपने धन बल का भरपूर उपयोग करते हुए क्षेत्रीय भाषा की अति संवेदनशील व औनर कीलिंग के साथ राजनीतिक व सामाजिक परिवेश पर कुठाराघात करने वाली फिल्म ‘‘सैराट’’ को ‘धड़क’ में तहस नहस कर दिया. फिल्मकार नागराज मंजुले ने जिस कौशल व गहराई के साथ ‘सैराट’ में जातिगत व क्लास के चलते भेदभाव व औनर कीलिंग को पेशकर लोगों को सोचने पर मजबूर किया था,उसमें शशांक खेतान बुरी तरह से पस्त नजर आते हैं. ‘सैराट’ की तरह ‘धड़क’ में प्रेमी जोड़े में डर व निराशा का अहसास उभरता ही नही है.

hindi film review dhadak

फिल्म की कहानी झीलों की नगरी उदयपुर में रहने वाले मधुकर बागला (इशान खट्टर) और राजशाही परिवार के तथा राजनेता रतन सिंह (आशुतोष राणा) की बेटी पार्थवी (जान्हवी कपूर) के इर्दगिर्द घूमती है. मधुकर के पिता का रेस्टोरेंट है.

मधुकर अच्छा कुक और टूर गाइड है. फिल्म की शुरुआत मधुकर के घर से होती है, वह सुबह सुबह सपना देख रहा है कि एक लड़की ने उसके पास आकर कहा कि इसबगोल पी लो, आज जीत उसी की होगी और उसे पुरस्कार वही देगी. खैर, प्रतियोगिता स्थल पर पहुंचने में देर होने के बावजूद जीत मधुकर बागला की होती है. पुरस्कार देने के लिए रतन सिंह अपने पूरे परिवार के साथ आए हैं. रतन सिंह अपनी बेटी पार्थवी से कहते हैं कि वह मधुकर को पुरस्कार दे. यहीं पर दोनों एक नजर में ही एक दूसरे को अपना दिल दे बैठते हैं. बाद में रतन सिंह अपने भाषण में अपनी प्रतिद्वंदी सुलेखा पर तीखे हमले करते हैं. इधर मधुकर और पार्थवी की मुलाकातें बढ़ती हैं. पता चलता है कालेज में दोनों को एक ही कक्षा में प्रवेश मिला है.

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जब मधुकर के पिता को इस प्रेम संबंध के बारे में पता चलता है, तो वह मधुकर से कहते हैं कि पार्थवी का परिवार उंची जाति का है, इसलिए उससे दूर रहो. यहां तक कि मधुकर के पिता मधुकर से अपने सिर की कसम ले लेते हैं कि वह अब पार्थवी से बात नहीं करेगा.

उधर पार्थवी को मधुकर का साथ चाहिए. उसे अपनी बात मनवानी आती है. अंततः मधुकर और पार्थवी की मुलाकातें, प्यार की तीखी नोकझोक चलती रहती है. इसकी भनक पार्थवी के भाई व रतन सिंह के बेटे रूप (आदित्य कुमार) को चलती है, तो वह मधुकर को सबक सिखाना चाहता है. पर चुनाव नजदीक होने के कारण मामला ठंडा हो जाता है. इधर रूप की जन्मदिन पर कोठी में आयोजित पार्टी में मधुकर के आने पर मधुकर को ‘किस’ देने की शर्त पार्थवी रखती है. अपने दोस्तों के साथ पहुंचकर मधुकर गाना भी गाता है. अब पार्थवी अपना वादा पूरा करने के लिए मधुकर को लेकर कोठी के एक कोने में जाती है. वह ‘किस’ दे इससे पहले ही रतन सिंह व रूप सिंह पहुंचकर पार्थवी को पकड़कर ले जाते हैं और कमरे में बंद कर देते हैं.

इधर मधुकर व उसके दोस्त भागकर अपने घर पहुंच जाते हैं. चुनाव जीतने के बाद रतन सिंह पुलिस पर दबाव डालकर मधुकर और उसके दोनों दोस्तों को पुलिस थाने मे खुब पिटवाते हैं. इसकी खबर जब पार्थवी को मिलती है, तो वह विद्रोही हो जाती है. पुलिस स्टेशन पहुंचकर अपनी कनपटी पर बंदूक रखकर अपने पिता रतन सिंह, भाई रूप सिंह व पुलिस वालों को दूर रहने के लिए कह कर मधुकर के साथ भागती है.

मधुकर व पार्थवी पहले मुंबई, फिर नागपुर होते हुए कोलकता पहुंचते है. वहां पर दोनों एक होस्टल में किराए पर कमरा लेकर रहना शुरू करते हैं. मधुकर को एक होटल में तथा पार्थवी को भी एक कंपनी में नौकरी मिल जाती है. उसके बाद दोनो शादी कर लेते हैं. उनका बेटा आदित्य दो साल का हो गया है. उधर पांच साल बाद हुए चुनाव में रतन सिंह चुनाव हार चुके हैं. बीच बीच में पार्थवी अपनी मां से बातें करती रहती है. इधर पार्थिव व मधुकर ने नया मकान खरीदा है और गृहप्रवेश की पूजा है. पार्थवी मां से फोन पर बात करती है, अचानक रतन सिंह फोन छीनकर पार्थवी की बातें सुनते हैं और फिर पार्थवी को जीती रहने का आशीर्वाद दे देते हैं. पर कुछ देर में पार्थवी का भाई रूप सिंह चार पांच लोगों के साथ पार्थवी के घर उपहार लेकर पहुंचते हैं. पार्थवी व मधुकर उनकी आवभगत करते हैं. फिर पूजा के लिए पार्थवी मिठाई लेने जाती है और जब वापस आती है, तो उसके सामने इमारत के नीचे उसके मकान से उसके पति मधुकर व बेटे आदित्य की लाश नीचे गिरती है.

फिल्म ‘‘धड़क’’ के प्रमोशन के दौरान निर्देशक शशांक खेतान सीना ठोककर दावा कर रहे थे कि यह फिल्म उनकी अपनी आवाज वाली फिल्म है. अपनी इसी बात को साबित करने तथा वर्तमान सरकार की ‘बेटी बचाओ’ मुहीम की वकालत करते हुए शशांक खेतान ने ‘धड़क’ में हीरो व उसके बेटे को मारकर हीरोईन को जिंदा रखा? पर क्या एक इमानदार फिल्मकार के तौर पर उन्हें यह जायज लगा? ज्ञातव्य है कि फिल्म ‘सैराट’ में हीरो व हीरोईन दोनों को हीरोइन का भाई मार देता है और उनका बेटा अनाथ हो जाता है.

फिल्म ‘‘धड़क’’ न तो संवेदनशील फिल्म बन सकी और न ही इसमें इंसानी भावनाएं ही उभर सकी. कम से कम ‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’ और ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ जैसी फिल्मों के निर्देशक से इस तरह की उम्मीद नहीं थी. ‘धड़क’ देखकर अहसास होता है कि शशांक खेतान के अंदर की रचनात्मकता खत्म हो चुकी है. परिणामतः दो किरदारों के बीच का प्रेम भी दर्शकों के दिलों तक नही पहुंचता. हां फिल्म के परदे पर सिर्फ जोधपुर की सुंदर व खूबसूरत लोकेशन की चमक जरुर है, जिसके लिए शशांक खेतान की बजाय फिल्म के कैमरामैन विष्णु राव बधाई के पात्र हैं. पटकथा के स्तर पर भी कुछ किरदारों को सही ढंग से तवज्जो नहीं दी गयी. फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी तो फिल्म का अंत ही है.

फिल्म ‘‘धड़क’’ की शुरुआत बहुत ही धीमी व बोझिल गति से होती है. शायद ‘सैराट’ से अलग ‘धड़क’ लगे इस प्रयास में शशांक खेतान फिल्म व विषयवस्तु के साथ पूरा न्याय नहीं कर पाए. इंटरवल तक यह फिल्म ‘सैराट’ की तुलना में शून्य साबित होती है. दर्शकों पर किसी भी तरह का प्रभाव नहीं डालती. इंटरवल के बाद फिल्म काफी नाटकीय हो जाती है. फिर भी मानवीय संवेदनाएं व भावनाएं अपना आकार लेती नजर नहीं आती हैं. रोमांस व औनर कीलिंग के साथ क्लास का अंतर, जातिगत भेदभाव, राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के चलते लिए जाने वाले निर्णय जैसे मुद्दे भी ठीक से उभर नहीं पाए. फिल्मकार ने जाति के अंतर को महज एक संवाद में कह कर अपना दायित्व निभा लिया है. समसामायिक भारत के सामाजिक परिवेश में जाति का मुद्दा किस तरह गर्म है, इसे दृष्यों के माध्यम से चित्रित करना भी निर्देशक ने उचित नहीं समझा.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो बेहतर काम करते हुए जान्हवी कपूर काफी खूबसूरत लगी हैं. मगर कई दृश्यों में उन्हें काफी मेहनत करने की जरुरत थी.

मधुकर बागला के किरदार में ईशान खट्टर का अभिनय उनकी पिछली फिल्म ‘बियांड द क्लाउड्स’ के मुकाबले कमजोर ही नजर आता है. मधुकर के दोस्तों के किरदार में दोनों कलाकारों ने बेहतर काम किया है.

जहां तक फिल्म के संगीत का सवाल है, तो फिल्म का पार्श्व संगीत ठीक है. मगर फिल्म के गाने प्रभावित नहीं करते. यहां तक ‘सैराट’ के मूल गाने ‘झिंगाट’ का भी ‘धड़क’ में बंटाधार हो गया.

कुल मिलाकर ‘‘सैराट’’ संग तुलना किए जाने पर ‘धड़क’ कहीं नहीं ठहरती. ‘सैराट’ देख चुके दर्शकों की उम्मीदों पर ‘धड़क’ खरी नहीं उतरती है.

दो घंटे 17 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘धड़क’’ का निर्माण ‘धर्मा प्रोडक्शन’ और जी स्टूडियो ने किया है. फिल्म के निर्देशक शशांक खेतान, कहानीकार नागराज मंजुले, फिल्म ‘सैराट’ पर आधारित, पटकथा लेखक शशांक खेतान, संगीतकार अजय अतुल, कैमरामैन विष्णु राव तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- ईशान खट्टर, जान्हवी कपूर, आशुतोष राणा, अंकित बिस्ट, श्रीधर वाटसर, आदित्य कुमार, ऐश्वर्या नारकर, खरज मुखर्जी व अन्य.

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