12वर्ष के अपने अभिनय कैरियर में सोहा अली खान ने व्यावसायिक फिल्मों की बनिस्बत ‘रंग दे बसंती’, ‘मुंबई मेरी जान’, ‘मुंबई कटिंग’, ‘मिडनाइट चिल्ड्रेन’, ‘चार फुटिया छोकरे’ जैसी यथार्थपरक फिल्मों को ही प्रधानता दी.

हाल ही में सोहा सिख दंगों पर आधारित फिल्म ‘31 अक्तूबर’ में एक सिख महिला के किरदार में नजर आई हैं. पेश हैं, उन से हुई गुफ्तगू के कुछ अंश:

फिल्म ‘31 अक्तूबर’ में आप का एक पीडि़त सिख परिवार की महिला का किरदार निभाने की वजह?

इस फिल्म को करने के पीछे मेरी इतिहास में रुचि रही. यह फिल्म 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे के दौरान की एक रात की कहानी है. इस सिख परिवार के साथ जो कुछ हुआ था, उस की एक मानवीय कहानी है.

हम ने इस फिल्म में दिखाया है कि उस वक्त किस तरह से लोगों ने अपनी जिंदगी को खतरे में डाल कर दूसरों की मदद की थी, उन की जिंदगी बचाई थी. कहानी के इस मानवीय पहलू ने मुझे इस फिल्म के साथ जुड़ने के लिए मजबूर किया.

32 वर्ष बाद सिख दंगों की कथा को बयां करने का कारण?

यह एक ऐसी कहानी है, जिसे आज के दौर में सुनाना बहुत जरूरी है. आज माहौल बहुत अजीब हो गया है, जिसे देखो वही इनटौलरैंस यानी असहिष्णुता की बात कर रहा है. हमारी यह फिल्म उसी असहिष्णुता की कहानी है. इस फिल्म को देखने के बाद आज की युवा पीढ़ी की समझ में आना चाहिए कि वास्तव में इनटौलरैंस क्या होता है? उस दौर में लोगों ने यथार्थ में अपनी जिंदगी को खतरे में डाल कर दूसरों की जिंदगी बचाई थी. उस वक्त लोगों ने यह नहीं देखा था कि वे जिन की जिंदगी बचा रहे हैं, वे किस कौम या मजहब से हैं.

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