'ब्लैक फ्राईडे', 'सरकार' और 'लाइफ इन मेट्रो' जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले केके मेनन का मानना है कि 'एक्टर' पैदाइशी होते हैं, जबकि 'स्टार' बनाए जाते हैं.

गैर फिल्मी परिवार से आने वाले केके मेनन ने अपनी पहचान बतौर अभिनेता बना ली है, लेकिन वो खुद को स्टार नहीं मानते हैं.

'स्टार' और 'एक्टर' के बीच के फर्क पर वो कहते हैं, ''जेब में पैसा हो तो कोई भी स्टार बन सकता है, स्टार बनना कोई रॉकेट साइंस नहीं है. अभिनेता, गायक, आर्टिस्ट और पेंटर होना सब किस्मत में लिखा होता है.''

खुद को खुशकिस्मत बताते हुए वो कहते हैं, ''मैं उन चुनिंदा खुशकिस्मत लोगों में से हूं, जिन्हें अभिनेता बनने का सौभाग्य मिला.'' अपनी फिल्म के सौ करोड़ के क्लब में शामिल होने के सवाल पर केके कहते हैं, ''सौ करोड़ी फिल्म बनाने के लिए अच्छा अभिनय और कहानी जरूरी नहीं है, बल्कि फिल्म की पैकेजिंग, मार्केटिंग पर खर्च करने के लिए पैसे जरूरी हैं.''

वो कहते हैं कि अब 80 करोड़ की लागत से बनी फिल्म 100 करोड़ कमाए, तो मुनाफे की दर कम हो जाती है और मैं ऐसी फिल्मों से नहीं जुड़ा हूं. वहीं नामी स्टार्स के साथ फिल्म बनाने वाले निर्माताओं के बारे में वो कहते हैं, ''तीन दिन के धंधे के लिए बनाई गई फिल्म को सिनेमा नहीं कहा जा सकता. ऐसे धंधे के लिए तो ठेला भी धकेला जा सकता है.''

केके कहते हैं, ''सबको ध्यान रखना चाहिए कि किसी फिल्म की उम्र उसे बनाने वाले की उम्र से अधिक हो.'' अपने अभिनय की तुलना क्रिकेट से करते हुए उन्होंने कहा, ''मैं टी-20 भी खेलता हूं और टेस्ट मैच भी खेलता हूं. लेकिन मैं टेस्ट मैच वाले शॉट्स टी-20 में नहीं खेलूंगा.''

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