भारत की एकमात्र वूमन बौक्सर जिन की जिंदगी बहुत कठिन व अभावों से भरी रही. फिर भी अपने आत्मविश्वास और लगन के बल पर उन्होंने 5 बार विश्व चैंपियन का खिताब जीता और बौक्सिंग में ओलिंपिक मैडल जीत कर देश का नाम रोशन किया.

जी हां, हम बात कर रहे हैं भारतीय महिला बौक्सिंग चैंपियन मैंगते चुंगवेईजंग मैरी कौम की, जिन का निक नेम मैग्नीफिशिएट मैरी कौम है और ये एम.सी. मैरी कौम के नाम से भी जानी जाती हैं.

मेरी कौम अब एशियाई खेलों में भी गोल्ड मैडल जीतने वाली पहली महिला मुक्केबाज बन गई हैं. 17वें एशियन गेम्स में ओलिंपिक के बाद मैरी कौम की यह पहली प्रतियोगिता थी, जिस में मैरी ने भाग लिया और यह उन के लिए बहुत शानदार अनुभव रहा. एशियाई खेलों में पहला गोल्ड मैडल जीत कर उन्होंने एक और मैडल अपने नाम कर लिया.

पेश हैं, मैरी से बातचीत के महत्त्वपूर्ण अंश:

राष्ट्रमंडल खेलों में महिलाओं का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा और एशियन गेम्स में भी महिलाओं ने बेहतर प्रदर्शन किया था. आप अपने देश की महिलाओं से क्या कहना चाहेंगी?

मैं बहुत खुश हूं कि दोनों खेलों में महिलाओं का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा. मैं सभी महिलाओं से कहना चाहूंगी कि वे किसी भी क्षेत्र में बेहतर हो सकती हैं. अपने में कौन्फिडैंस बनाए रखें तो कोई काम मुश्किल नहीं है. हर अच्छे काम में दिक्कतें आती हैं पर कभी भी हिम्मत न हारें आगे बढ़ती रहें.

आप ने बौक्सिंग के क्षेत्र में आने के लिए कब सोचा और आप किस से प्रभावित हुईं?

मेरा जन्म मणिपुर के चुराचंदपुर जिले के कांगाथेई गांव के एक गरीब परिवार में हुआ. गरीबी के कारण हमारी जिंदगी बहुत कठिनाइयों से भरी थी. घर में बड़ी होने के कारण मैं ने अपने मांबाप की मदद करने की सोची और मेरी खेलकूद में रुचि बचपन से थी, इसलिए मैं ने निर्णय लिया कि बौक्सिंग के क्षेत्र में मैं नाम कमाऊंगी. पर यह बात मैं ने अपने मातापिता से छिपा कर रखी क्योंकि उस समय खेल में महिलाओं के लिए बौक्सिंग के बारे में सोचना भी मुमकिन नहीं था. मैं मणिपुर के बौक्सर डिंगको सिंह से प्रेरित थी, जिन्होंने 1998 में एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीता था. मेरा मुख्य उद्देश्य अपने परिवार को गरीबी से ऊपर उठाना था और मैं अपने नाम से ही जानी जाऊं, यही मेरा मकसद था.

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