2013 में प्रदर्शित फिल्मकार मृगदीप सिंह लांबा की फिल्म ‘‘फुकरे’’ लोगों के दिलों में अपनी एक खास जगह बनाने में कामयाब हुई थी. अब मृगदीप सिंह अपनी उसी फिल्म का चार वर्ष बाद सिक्वअल ‘‘फुकरे रिटर्न’’ लेकर आए हैं, मगर यह फिल्म पहले की तरह आकर्षित नहीं करती.

फिल्म ‘फुकरे रिटर्न’ की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां ‘फुकरे’ की कहानी खत्म हुई थी. भोली पंजाबन (रिचा चड्ढा) एक वर्ष से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है और अब वह बाहर निकलने के लिए आतुर है. जेल की यातना से वह तंग आ चुकी है, इसलिए वह मंत्री बृजमोहन की हर तरह की शर्त मानने को तैयार हो जाती है. मंत्री की शर्त के अनुसार जेल से बाहर आते ही वह दस करोड़ रूपए उन्हे देगी. मंत्री के आश्वासन के चलते 24 घंटे के अंदर भोली पंजाबन जेल से बाहर आ जाती है. तो उसे पता चलता है कि उसका पूरा साम्राज्य खत्म हो चुका है. उसके साथ जुड़े रहे चारों फुकरे किस्म के युवक चूचा (वरुण शर्मा), लाली (मनजोत सिंह), जफर (अली फजल), हनी (पुलकित सम्राट) अब अपनी अपनी जिंदगी में मस्त हो चुके हैं.

चूचा अक्सर चिड़ियाघर में जाकर शेर के बच्चे के साथ खेलता रहता है. इस वजह से शेर से उसकी दोस्ती हो गयी है. लाली कालेज जाने लगा है. हनी को प्रिया शर्मा (प्रिया आनंद) से प्यार हो गया है. जफर फिर से संगीत की दुनिया में रम गया है और उसे नीतू (विशाखा सिंह) से प्यार हो गया है. भोली पंजाबन इन चारों को एक बार फिर डरा धमकाकर अपने लिए काम करने के लिए मजबूर कर देती है.

इतना ही नही वह पंडित जी (पंकज त्रिपाठी) को भी अगुवा कर अपने साथ कर लेती है. चूचा एक बार फिर सपने देखने लगा है. चूचा के सपने का गुणा भाग लगाकर हनी लाटरी का नंबर निकालने लगा है. भोली पंजाबन के कहने पर हनी अपने नाम पर एक लाटरी की कंपनी शुरू करता है. इसके तहत वह घोषणा करता है कि जिस इंसान का नंबर लाटरी में लगेगा, उसे उसकी रकम को दोगुना मिलेगा. इसके लिए एक लाख लगाने पर सौ रूपए के स्टैंप पेपर पर अग्रीमेंट लिखकर देते हैं. इसकी भनक मंत्री जी को लगती है, तो वह नंबर बदलवा देता है. क्योंकि मंत्री जी का अपना लाटरी का बहुत बडा धंधा है.

यदि हनी का नंबर सही हो जाता तो मंत्री जी की कंपनी को भी नुकसान होता. मंत्री की चालाकी के चलते यह चारों दिल्ली की जनता के दोषी हो जाते है और भागते हुए जमुना नदी में गिर जाते हैं. सभी मान लेते हैं कि यह सभी मर गए. पर यह बच जाते हैं. अब चूचा एक बार फिर सपना देखता है. यह सपना है एक खजाने का. खजाने को हथियाने के लिए भोली पंजाबन उनके साथ हो जाती है, पर मंत्री जी अपनी चालाकी में है. भोली पंजाबन जब मंत्री से मदद मांगती है, तो मंत्री बृजमोहन चारों लड़कों को अपने पास भेजने का आदेश देते हैं.

बृजमोहन की आवभगत और शर्त सुनने के बाद हनी का दिमाग चलता है, वह भोली पंजाबन को एक संदेश देता है. फिर भोली पंजाबन मुख्यमंत्री से मिलती है और बृजमोहन के अड्डों पर छापा पड़ता है. अब खजाने की तलाश में यह सभी जहां पहुंचते हैं, वह बृजमोहन का छिपा हुआ गोदाम है, जहां कामनवेल्थ खेलों के समय के घोटाले का सामान छिपाकर रख गया है. इसका लाइव टेलीकास्ट होता है. पुलिस व मुख्यमंत्री पहुंचते हैं. मंत्री की गिरफ्तारी सबूतों के साथ हो जाती है.

मृगदीप सिंह लांबा ने ‘‘फुकरे’’ की सफलता को भुनाने के लिए सिक्वल बनाने का निर्णय तो ले लिया, मगर वह इस बात को नजरंदाज कर गए कि ‘फुकरे’ की सफलता की वजहें क्या थी. ‘फुकरे’ में दिल्ली वाली भाषा, बात करने का तरीका और चार लड़कों द्वारा छोटी छोटी चोरियांकरना आदि सब कुछ बहुत वास्तविक लगता था, मगर ‘फुकरे रिर्टन’ में सब कुछ अति बनावटी नजर आता है. एक भी दृश्य ऐसा नही है,जिसके संग दर्शक रिलेट कर सकें.

इतना ही नहीं ‘फुकरे’ में दर्शक चारों लड़कों के साथ इस तरह रिलेट कर पाया था कि जब यह चारों भोली पंजाबन के चंगुल में फंसते हैं, तो इनसे दर्शक को सहानुभूति होती है, पर ‘‘फुकरे रिटर्न’’ यहां भी निराश करती है. फिल्म की लचर पटकथा के ही चलते फिल्म में तीन प्रेम कहानियां हैं, मगर सभी बहुत ही सतही स्तर पर हैं. फिल्म में जिस घोटाले का जिक्र किया गया है, उसे देखकर लोगों को पूर्व नेता सुरेशकलमाड़ी की याद आ सकती है. मगर इस घोटाले के मुद्दे को जिस तरह से फिल्म में पेश किया गया, उससे इसकी तरफ किसी का ध्यान नही जाता.

इंटरवल से पहले फिल्म घिसटती हुई आगे बढ़ती है. इंटरवल के बाद घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं, मगर वह दर्शक को अपनी तरफ खींच पाने में असमर्थ रहते हैं. दर्शक सोचना शुरू करता है कि फिल्म कब खत्म होगी. फिल्म का क्लायमेक्स भी दमदार नहीं है. फिल्मकार की सबसे बड़ी कमजोरी यह रही कि उसने इस बार सारा ध्यान भोली पंजाबन, मंत्री ब्रजमोहन व चूजा पर ही लगाया, पर घटनाक्रम व हालात ठीक से गढ़े नहीं गए.

लाली व जफर के किरदारों को तवज्जो ही नहीं दी, जिसके चलते फिल्म काफी कमजोर हो जाती है. निर्देशक व पटकथा लेखक की अपनी कमजोरियों के चलते रिचा चड्ढा व पंकज त्रिपाठी जैसे बेहतरीन कलाकार भी फिल्म को संभाल नहीं पाते. फिल्म के कुछ दृश्य तो बहुत ही गलत है. आखिर चूचा वगैरह किस वजह से बार बार चिड़ियाघर में शेर के पिंजड़े के पास जाता रहता है, यह समझ से परे है. पूरी फिल्म देखने के बाद दर्शक को मनोरंजन की बजाय सिरदर्द ही मिलता है. फिल्म का गीत संगीत भी प्रभावित नहीं करता. संवाद भी कुछ खास नही है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो रिचा चड्ढा, पंकज त्रिपाठी व अली फजल ने अच्छी परफार्मेंस दी है. बाकी कलाकार बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं करते.

दो घंटे बीस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘फुकरे’’ का निर्माण फरहान अख्तर व रितेया सिद्धवानी की कंपनी ‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’ ने किया है. निर्देशक मृगदीप सिंह लांबा, लेखक विपुल विग और मृगदीप सिंह लांबा, संगीतकार समीर उदीन, राम संपत, प्रेम हरदीप व सुमीत बेल्लारी,कैमरामैन अंद्रे मेंनेजीस तथा कलाकार हैं – रिचा चड्ढा, पंकज त्रिपाठी, अली फजल, वरूण शर्मा, पुलकित सम्राट, मंजोत सिंह, प्रिया आनंद,विशाखा सिंह, मकरंद देशपांडे व अन्य.

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