मराठी फिल्म ‘लयभारी’ से निर्माता के क्षेत्र में कदम रखने वाली शालिनी ठाकरे को बचपन से ही कुछ अलग करने की इच्छा थी. निर्माता के साथ-साथ वह एक सोशल वर्कर भी हैं. अमेरिका से अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह बिजनेस से जुड़ गयीं, लेकिन उन्हें कुछ और करने की इच्छा थी और उन्होंने अपनी एक संस्था कल्कि फाउंडेशन की स्थापना की, इसके द्वारा वे गरीब और अनाथ बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान देती हैं. वह महिलाओं की समस्या को फिल्मों के जरिये लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं. वह अपने आप को लकी मानती हैं, क्योंकि शादी से पहले माता-पिता और बाद में पति जितेन्द्र ठाकरे ने उनका हर काम में हमेशा साथ दिया. दोनों की एक बेटी मुस्कान ठाकरे (17 वर्ष) है.

उनके हिसाब से मराठी के कई विषय उन्हें बहुत पसंद हैं, लेकिन उसकी प्रतियोगिता हिंदी फिल्मों से रही है, ऐसे में एक मजबूत कहानी ही इसका मुकाबला कर सकती है. फिर उन्होंने ‘लयभारी’ बनायीं, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया और यहीं से वह प्रोड्यूसर बनीं. हिंदी फिल्म ‘लव सोनिया’ की सफलता पर उनसे बात हुई पेश है अंश.

सेक्स ट्रैफिकिंग पर फिल्म बनाने की इच्छा कैसे हुई ?

चाइल्ड ट्रैफिकिंगऔर सेक्स ट्रैफिकिंग की समस्या सालों से पूरे विश्व में है. इस फिल्म के निर्देशक तबरेज नुरानी 13 साल से इस फिल्म पर काम कर रहे थे. इसमें एक चरित्र तबरेज ऐसा है जिसने 65 लड़कियों को रेसक्यु भी किया है. मैंने सुना और पाया कि ये समस्या ग्लोबल है और इसे बनाकर लोगों में जागरूकता लायी जा सकती है. यह एक 17 साल की लड़की की कहानी है, जो महाराष्ट्र के मराठवाड़ा से निकलकर हांगकांग, लास एंजिलस और कई जगह गयी और कैसे उसने इससे अपने आप को निकाला. उसी को बताने की कोशिश की गयी है और यही लड़की फिल्म की हीरो है. ये मेरी प्रेरणा थी और मैंने प्रोड्यूस किया, क्योंकि ऐसे मुद्दे पर फिल्में बन चुकी है, पर एक लड़की कैसे इस हालात से निकलती है उसे बताने की कोशिश की गयी है और खुशी है कि लोग इसे पसंद कर रहे हैं.

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