हमारे यहां हर लड़की औरत आए दिन बौडीशेमिंग के चलते ट्रोलिंग का शिकार होती रहती है. इसी के चलते लड़कियों को अपना मोटापा अपने सपनो को पूरा करने में बाधक लगने लगता है.  जबकि मोटापे यानी कि बौडी शेमिंग का सपनों से या इंसान की प्रतिभा व कार्यक्षमता से कोई संबंध नहीं है. इसी बात को रेखंाकित करने के लिए फिल्मकार सतराम रमानी फिल्म ‘‘डबल एक्स एल’’ लेकर आ रहे हैं. जिसमें सोनाक्षी सिन्हा और हुमा कुरेशी की अहम भूमिकाएं हैं. सतराम रमानी इससे पहले ‘सुरक्षित सेक्स’ और ‘कंडोम’ जैसे टैबू वाले विषय पर ‘‘हेलमेट’’ जैसी फिल्म बनाकर शोहरत बटोर चुके हैं.

प्रस्तुत है सतराम रमानी से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

आपको फिल्मों का चस्का कैसे लगा?

-मेरे घर का कोई भी सदस्य फिल्म इंडस्ट्री से नहीं जुड़ा हुआ है. मैं सिंधी समुदाय से हॅूं. मेरे पिता का बिजनेस है. लेकिन मेरे पिता जी का थिएटर की तरफ काफी झुकाव रहा है. तो वह मुझे बचपन से ही मराठी थिएटर देखने के लिए ले जाया करते थे. जिसके चलते मेरे अंदर थिएटर यानी नाटक देखने और कुछ सीखने की इच्छा बलवती होती रही है. मुझे हर नाटक में एक नया क्रिएशन देखकर अच्छा लगता था. तो मेरा प्रेरणास्रोत कहीं न कहीं थिएटर ही रहा.

क्या आपने फिल्म निर्देशन की कोई ट्रेनिंग भी हासिल की?

-जी हॉ!. . जलगांव से मैं पुणे पहुंचा,  जहां एमआई टी कालेज हैं. इस कालेज में फिल्म मेकिंग का कोर्स भी होता है. जलगांव में तो फिल्म मेकिंग का जिक्र भी भी नही होता था. उस वक्त तक तो लोगो को यह भी नहीं पात था कि फिल्म मेंकिंग भी एक प्रोफेशन हो सकता है. पर अब धीरे धीरे हालात बदल रहे हैं. उन दिनों सोशल मीडिया भी नही था. जब मैने कुछ रिसर्च किया तो मेरी समझ में आया कि मैं एमआई टी ज्वाइन कर लॅूं, तो शायद मेरा कुछ हो सकता है.

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