80 से अधिक फिल्मों में कोरियोग्राफी कर चुकी फराह खान एक निर्माता, निर्देशक, अभिनेत्री और एक मां हैं. अपने काम के बीच वह अपने पारिवारिक जीवन को भी संभालती हैं. ‘जो जीता वही सिकंदर’ फिल्म की कोरियोग्राफी जब सरोज खान ने अधिक काम के चलते छोड़ी थी, तब फराह ने उस काम को लिया और फिल्म के सफल होते ही रातों रात प्रसिद्ध हो गई. इसके बाद तो उनके पास काम की झड़ी लग गई. ‘कभी हां कभी ना’ के सेट पर फराह, शाहरु खान से मिलीं और अच्छे दोस्त बने और साथ मिलकर फिल्में बनाने लगे. इस कड़ी में उन्होंने कई फिल्में बनायीं, जिसमें कुछ सफल तो कुछ असफल रही. ‘ओम शांति ओम’, ‘मैं हूं ना’ ‘हैप्पी न्यू इयर’ उनकी सफल फिल्म हैं. फराह आज भी अच्छी और रोमांटिक फिल्में बनाना पसंद करती हैं. पेश है “एम्बीप्योर” के इवेंट के दौरान उनसे हुई बातचीत के अंश.
प्र. अच्छी सुगंध आप को किस तरह प्रभावित करती है?
अच्छी सुगंध मेरे लिए बहुत आवश्यक है. मुझे याद आता है जब मेरे बच्चे छोटे थे मैं उनको नहलाने के बाद टेलकॉम पाउडर लगाया करती थी और उस महक को मैं आज भी ‘मिस’ करती हूं. काम के दौरान जब मैं पूरे दिन शूट करती हूं तो थकान को दूर करने के लिए अच्छी ‘स्मेल’ होनी चाहिए. इसलिए मैं अपने पर्स में हमेशा परफ्यूम रखती हूं. मुझे ‘जोमेलोन’ जो यूरोपियन परफ्यूम है, उसका ऑरेंज और लाइम के मिक्सचर वाले सुगंध बहुत पसंद हैं.
प्र. फिल्म से आप अभी इतनी दूर क्यों हैं?
फिल्म का कोई निश्चित समय नहीं होता, आप जो चाहे वह मिले जरुरी नहीं. अचानक से फिल्म की स्टोरी आप तक पहुंचती है और आप फिल्म बना लेते हो.
प्र. कोई खास तरह की फिल्म क्या आप बनाना चाहती हैं?
मैं दो तीन प्रोजेक्ट पर काम कर रही हूं .दो छोटी और एक बड़ी फिल्म है. कौन सी बनाने वाली हूं अभी फाइनल नहीं किया है. काम चल रहा है. मुझे लव स्टोरी पसंद है पर पहले मैं जैसी लव स्टोरी की फिल्में देखती थी, अब नहीं दिखती. ‘लव स्टोरी’, ‘बोबी’, ‘एक दूजे के लिए’ आदि ऐसी ही खूबसूरत फिल्में हैं. ऐसी फिल्में देखकर ही मैं बड़ी हुई हूं. आजकल की फिल्में ‘सेक्स’ और ‘किसिंग सीन्स’ पर अधिक फोकस्ड है. प्यार का अनुभव अब लगता है, कहीं खो गया है.
प्र. फिल्मों में जरुरत से अधिक ‘सेक्स’ परोसने का अर्थ आपके हिसाब से क्या है?
शायद उन्हें लगता है कि वे अधिक मॉडर्न हो गए हैं. किसिंग कोई गलत नहीं है अगर उसको सही परिप्रेक्ष्य में दिखाया जाये. इसके अलावा प्यार को फिल्माने का यह आसान तरीका है. पहले आपको प्यार के दृश्य के लिए कई संवाद बोलने पड़ते थे, आंखों में दिखाने पड़ते थे, अभिनय भाव-भंगिमा सब करना पड़ता था. अब उसे कम कर किसिंग करवा लेते हैं, और फटाफट प्यार हो गया दिखा दिया जाता है. मैंने तो अभी तक कोई किसिंग सीन शूट नहीं किया है. मुझे करण जौहर पाखंडी कहते हैं. मेरे बच्चे इस अवस्था में किसिंग देखकर आंखें मूंद लेते हैं. लेकिन मैं जानती हूं कि 10 साल बाद उन्हें ये अच्छा लगेगा.
प्र. काम के साथ परिवार में सामंजस्य कैसे बिठाती हैं?
यही वजह है कि मैंने काम को थोड़ा कम किया है, उनके साथ समय बिताना , हॉलिडे प्लानिंग करना ये सब मैं करती हूं और इस समय को ‘मिस’ नहीं होने देना चाहती. अभी मेरे बच्चे 8 साल के हो गए हैं, वे हमेशा चाहते हैं कि माता पिता उनके साथ कही भी जायें. थोड़ी दिनों के बाद वे खुद आत्मनिर्भर हो जायेंगे. तब मैं अधिक से अधिक फिल्में बनाउंगी. मेरे बेटे को किताबें पढने का शौक है. मेरी बेटियां पेंटिंग सीखती हैं. इसके अलावा तीनो जुडो और लड़कियां बैले डांस सीख रही हैं. मैं बच्चों को अधिक दबाव में नहीं रखती, उनको पूरी आज़ादी देती हूं.
प्र. कुछ ड्रीम प्रोजेक्ट है?
मैं हमेशा चाहती हूं कि जो भी फिल्म बनाऊं, सबको एंटरटेन करं. बोर न करुं. आज एक दौर यह भी चला है कि निर्माता, निर्देशक बड़े-बड़े स्टार ले लेते हैं और सही स्क्रिप्ट न होने से फिल्म का मज़ा खत्म हो जाता है. फिल्म जो भी बने, दर्शक पसंद करें. आजकल लोग ‘रिव्यू’ पर अधिक जाने लगे हैं जबकि फिल्मों का बिजनेस जरुरी है. सभी फिल्में कमोबेश देखी जानी चाहिएं, तभी आगे और फिल्में बनेंगी, व्यवसाय के अभाव में आज कई स्टूडियो बंद हो चले हैं. रिव्यू लिखने वाले को भी फिल्मों को सहयोग देने की आवश्यकता है.
प्र. रियल स्टोरी बेस्ड फिल्में मसलन सीरियल किलर, मर्डर वाली फिल्में खूब बन रही हैं ,ऐसे में मनोरंजन की भूमिका कहां रह पाती है?
ये सही है, लेकिन इसमें फिल्म बनाने वाले की नियत सामने आती है. कई फिल्में मैंने देखी हैं जिन्हें बड़े ही संजीदा तरीके से बनाया गया है. ऐसी फिल्मों में रिसर्च की आवश्यकता अधिक होती है. जिससे व्यक्ति उसे सोचने पर मजबूर हो. ‘भाग मिल्खा भाग’ ‘तलवार’ जैसी फिल्म जो मुझे काफी अच्छी लगी. जिसे दर्शकों ने भी पसंद किया. अगर लोग किसी घटना को जल्दी कैश करने के उद्देश्य से फिल्म बनाते हैं तो वह ठीक नहीं. इससे फिल्म का स्तर गिरता है और फिल्म दर्शकों को पसंद नहीं आती. विषय भी हर निर्देशक को अलग रूप में आकर्षित करता है. लेकिन इसे रुचिकर कैसे बनाएं ये निर्देशक पर निर्भर करता है.
प्र. जीवन में आए नकारात्मक भाव को कैसे दूर करती हैं?
जीवन में हमेशा मैं खुश रहती हूं. किसी काम के न होने पर मैं देखती हूं कि लोग बहुत अपसेट हो जाते हैं. उनका दिन ख़राब हो जाता है. एक अच्छी चीज से आप सौ बातें ऐसी गिन सकती हैं जो अच्छी हो रही हें. सौ नहीं तो दस ही सही, ये मैं अपनी आंखों से देख सकती हूं. निगेटिव कोई बात होने पर मैं उसे छोड़ आगे बढ़ने में विश्वास करती हूं.
प्र. आप की फिटनेस का राज क्या है?
मेरा ट्रेनर योगेश है जो मुझे नियमित वर्क आउट और डाइट पर ध्यान दिलाता है. अभी मैं आयुर्वेद पर काफी ध्यान दे रही हूं. खाने की नियमित रूटीन मेरे पास है और उस हिसाब से मैं चलती हूं.