आजकल महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार की घटनाओं पर आधारित फिल्म, सीरियल और नाटकों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इन माध्यमों के जरिये पीड़ित स्त्रियों की व्यथा प्रदर्शित करना कोई नई बात नहीं है. ‘द साइलेंस’ भी उसी तरह की एक कहानी है. यह फिल्म कुछ साल पहले महराष्ट्र के छोटे से गांव में घटी एक सत्य घटना पर आधारित है. जहां महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली एडवोकेट पूजा कूटे ने स्वयं इस पूरे घटना का अभ्यास किया है. इस घटना के आरोपी के विरोध में पूजा कूटे सहायक वकील के रूप में काम कर चुकी हैं. पूजा का कहना है कि उस समय कठोर नियमों की कमी और मजबूत सबूतों के अभाव में आरोपी आसानी से निर्दोष साबित हो गया.
गांव में रहने वाली सीधी साधी लड़की चिनी (वेदश्री महाजन) जन्म से ही अपनी मां को खो चुकी है. उसके पिता बच्चों की मनपसंद मिठाई कौटन कैंडी बेचने का काम करते हैं. चिनी की बड़ी बहन मन्दाकिनी (कादंबरी कदम) मुंबई में जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर काम करती है. चिनी कुछ दिनों के लिए अपने मामा-मामी के घर पर रहने जाती है. उसके मामा (नागराज मंजुले) शुरू से ही विकृत मानसिकता के रहते है. खुद में कमी होने के कारण बच्चे नहीं होने का दोष हमेशा अपनी पत्नी (अंजलि पाटिल) पर लगाता है और वो चुपचाप अपने ऊपर हो रहे शारीरिक, मानसिक अत्याचार को सहती है. लेकिन चिनी को देखकर वह कुछ समय के लिए खुश हो जाती है और उसे मां का प्यार देती है. कभी कभी उसका मामा भी उसे खेलने और घुमाने ले जाता है. मामा पेशे से व्यापारी है. एक दिन वह चिनी को गेहूं के गोदाम में ले जाकर उसका बलात्कार करता है. यह बात चिनी अपनी मामी को बताती है. लेकिन मामी के पास चुप रहने के अलावा कोई विकल्प नही रहता है.
चिनी की बहन मुंबई से वापस आती है. वह चिनी की चुप्पी का मतलब तुरंत समझ जाती है जो उसका पिता नहीं समझ पाता है. वह पुलिस में शिकायत करती है. लेकिन उसका मामा सभी आरोपों से इंकार कर देता है और कहता है कि वो जूनियर आर्टिस्ट का कार्ड बनाने में लगे डेढ़ लाख का कर्ज चुकाने के लिए उसे ब्लैकमेल कर रही है. चिनी में अपनी बेटी तलाशती मामी झूठी गवाही देती है और मामा निर्दोष छूट जाता है.
थोड़ी बड़ी होने के बाद चिनी बहन के साथ मुंबई में रहने लगती है. लेकिन बचपन में लगा मानसिक धक्का वह किसी भी तरह नहीं भूल पाती है. बीती एक-एक घटनाएं उसे याद आती है और मामी से मिलने की इच्छा होती है. मामी जेल में है उसको पता है फिर भी वो उससे जाकर मिलती है. यहां उसे मामी के झूठी गवाही देने के पीछे का कारण का पता चलता है. मामी जानती थी कि पुलिस के हवाले करने के बाद भी मामा जेल से बाहर आ ही जाएगा, इसलिए उसने अपने पति को निर्दोष छुड़ाकर अपने हाथों से हत्या कर देती है, जिसके कारण मामी को जेल जाना पड़ता है. लेकिन मारने से पहले किसी गैरपुरुष से संबंध बनाकर गर्भवती होती है और साबित करके दिखाती है कि उसमें कमी नहीं थी.
इस दौरान चिनी को मुंबई की एक घटना याद आती है जिसमे चलती ट्रेन में एक लड़की का बलात्कार कर ट्रैक पर फेंक दिया जाता है. चिनी इस घटना की प्रत्यक्ष गवाह होती है. मामी से मिलने के बाद उसकी हिम्मत बढ़ती है और वो पुलिस को जाकर घटना की सच्चाई बताती है.
“अत्याचार की घटनाओं पर चुप रहने से कुछ नहीं होगा, हमे आगे बढ़कर विरोध करने की जरूरत है” जैसी बातों का सन्देश फिल्म का मुख्य विषय है. फिल्म एक सत्य घटना पर आधारित होने के कारण स्क्रीन प्ले में कुछ विशेष काम नहीं है. ‘द साइलेंस’ एक फीचर फिल्म होने से बेहतर एक शौर्ट फिल्म होती तो ज्यादा सफल रहती. फिल्म के कलाकार नए होते हुए भी अच्छा अभिनय किया है. नागराज मंजुले के संवाद दर्शकों तक स्पष्ट रूप से नहीं पहुंच पाते हैं. निर्देशक के रूप में गजेन्द्र अहिरे ने अपनी तरफ से पूरा प्रयास किया है. लेकिन फिल्म की सफलता उन दर्शकों पर निर्भर है जो फिल्म को सामाजिक सन्देश देने का माध्यम समझते हैं.
निर्माता- नवनीत हुल्लाद मोरादाबादी, अरुण त्यागी, अश्विनी सिदवानी एवं अर्पण भुखनवाला
निर्देशक एवं पठकथा – गजेन्द्र अहिरे
कलाकार – नागराज मंजुले, अंजलि पाटील, कादंबरी कदम, रघुवीर यादव, मुग्धा चाफेकर एवं वेदश्री महाजन
कहानी – अश्विनी सिदवानी
स्टार – 2 एंड हाफ