धारावाहिक ‘ना आना इस देस लाडो’ में अम्मांजी की सशक्त भूमिका निभा कर चर्चा में आईं टीवी अभिनेत्री मेघना मलिक रियल लाइफ में स्पष्टभाषी और हंसमुख हैं.

हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली मेघना को बचपन से ही अभिनय का शौक था. यही वजह थी कि अंगरेजी में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने दिल्ली के नैशनल स्कूल औफ ड्रामा में अभिनय की शिक्षा प्राप्त की. थिएटर में अभिनय के साथसाथ उन्होंने कई विज्ञापनों में भी काम किया. उसी दौरान उन्हें ‘ना आना इस देस लाडो’ में अम्मांजी की भूमिका के लिए चुना गया. हालांकि उन की उम्र के हिसाब से यह किरदार उन से काफी बड़ी उम्र की महिला का था पर उस की कहानी उन के दिल को छू गई इसलिए उन्होंने हां कर दी.

इस समय मेघना लाइफ ओके पर प्रसारित हो रहे धारावाहिक ‘गुस्ताख दिल’ में बरखा की भूमिका निभा रही हैं, जो अच्छीअच्छी साडि़यों और सुंदर ब्लाउज पहन कर बीचबीच में आती है.

मेघना से बात करना रोचक था. पेश हैं, बातचीत के खास अंश:

इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

अभिनय मुझे कालेज लाइफ से ही बहुत पसंद था. कालेज में मैं जब भी स्टेज पर जाती थी, तो कुछ और हो जाती थी, जिस से मुझे बहुत आनंद आता था. इसीलिए जब मैं पढ़ाई पूरी कर रही थी तभी मन में विचार आया कि अभिनय की तालीम ली जाए, इसलिए एनएसडी में ऐडमिशन ले लिया.

आप की सफलता में परिवार का कितना सहयोग रहा?

मेरे मातापिता ने मुझे और मेरी बहन दोनों को हमेशा आत्मनिर्भर होने की सलाह दी. यही वजह थी कि मैं ने पढ़ाई पूरी की फिर इस क्षेत्र में आई. मेरी बहन मीमांसा मलिक मीडिया से जुड़ी है.

मुंबई आ कर रहना और काम का मिलना, इस में कितना संघर्ष था?

मैं 2000 में मुंबई आई. यहां एक नामचीन कंपनी में काम किया. साथसाथ हर फिल्मी औफिस जाती थी और वहां अपना फोटो डाल आती थी. फिर टीवी और विज्ञापन फिल्मों में जो भी काम मिला, मैं करती रही. बस ऐसे ही दिन गुजरते गए. फिर ‘लाडो’ में अम्मांजी की भूमिका मिली और मैं चर्चा में आ गई. मेरा कैरियर चल पड़ा. लेकिन अभी भी संघर्ष जारी है. मुंबई में टिके रहना आसान नहीं होता. पर मैं खुश हूं कि मुझे सही समय पर सही काम मिला और मैं भटकी नहीं.

आप की भूमिका ‘गुस्ताख दिल’ में उतनी खास नहीं है जितनी ‘ना आना इस देस लाडो’ में थी. ऐसा होने पर आप कैसे अपनी अभिनय की महत्त्वाकांक्षा को ऐडजस्ट करती हैं?

यह एकदम सही है कि मुझे मन मार कर ऐडजस्ट करना पड़ता है, पर रोजीरोटी के लिए काम तो मिलना ही चाहिए, भले ही दमदार न हो. ‘ना आना इस देस लाडो’ में अम्मांजी की भूमिका वाकई मेरे लिए दमदार थी, क्योंकि उसे अच्छी तरह लिखा गया था. इसीलिए मैं ने उस के लिए हां कर दी थी.

आप को किस तरह की भूमिका पसंद है, नकारात्मक या सकारात्मक?

मैं नकारात्मक या सकारात्मक किसी भी भूमिका पर अधिक ध्यान नहीं देती. मुझे परदे पर जो किरदार जीवंत लगे, उसे करने में मजा आता है. वैसे मुझे कौमेडी करना भी पसंद है.

अभिनय के अलावा आप और क्या कर रही हैं? अपने प्रांत हरियाणा के लिए कुछ प्लान है?

इलैक्शन कमीशन ने 2012 में मुझे स्टेट आइकौन के रूप में ब्रैंड ऐंबैसडर बनाया है, जिस के तहत कालेज में लड़कियों को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. वह मैं समयसमय पर करती रहती हूं. हरियाणा में लिंग अनुपात में पिछले सालों की अपेक्षा काफी सुधार आया है. सरकार पौलिसी में बदलाव कर रही है पर इसे कंट्रोल करना आसान नहीं है. कोई भी बदलाव हमेशा घर से शुरू होता है, जहां पत्नी, बेटी, बहन सभी को सम्मान मिले और आर्थिक रूप से वे आत्मनिर्भर हों. उन्हें कोई बोझ न समझे. समाज और परिवार के मानसिकता में बदलाव जरूरी है.

मैं अपने मातापिता को हर साल कहीं घुमाने ले जाती हूं. मुंबई मेरी कर्मभूमि है पर समय मिलते ही मातापिता के पास जाती हूं, क्योंकि जो कुछ भी मैं ने पाया अपने परिवार से मिली प्रेरणा से ही पाया है.

आप कितनी फैशनेबल हैं? आप को कैसे परिधान पसंद हैं?

मैं जो ठीक से कैरी कर सकूं, उसे पहनती हूं यानी जो आरामदायक हो, जिसे पहन कर मैं आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो सकूं. वैसे कैजुअल अधिक पहनती हूं जिस में जींसटीशर्ट खास पसंद हैं.

कितनी फूडी हैं? कोई खास व्यंजन पसंद है?

मैं फूडी नहीं, लेकिन डाइटिंग नहीं करती. मुझे सरसों का साग व मक्के की रोटी पसंद है. मीठा भी बहुत पसंद है पर अवौइड करती हूं.

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