बचपन से अभिनय की इच्छा रखने वाली 26 वर्षीय कनाडा मूल की रहने वाली अभिनेत्री प्रिया बैनर्जी ने तमिल और तेलगू फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत की. प्रिया साल 2011 में ‘मिस कनाडा’ भी रह चुकी हैं. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने तीन महीने की एक्टिंग कोर्स की और अभिनय के क्षेत्र में उतर गयी. नम्र और स्पष्टभाषी प्रिया किसी गलत बात को सहन नहीं कर सकती. यही वजह है कि अभी तक उन्हें सही लोग मिलते गए. उन्हें पता है कि इंडस्ट्री आउटसाइडर के लिए मुश्किल है, पर उनहें उसमें रहना आता है. अभी वह अपनी आने वाली फिल्म ‘दिल जो न कह सका’ में मुख्य भूमिका निभा रही हैं और उसके प्रमोशन को लेकर व्यस्त हैं. उनसे बात करना रोचक था, पेश है अंश.

अपने बारे में बताएं.

मैं कनाडा में जन्मी और पली बढ़ी हुई हूं. हिंदी मैंने अभी-अभी सीखा है. कनाडा में मेरे पिता इंजीनियर हैं और मेरी मां हाउसवाइफ. मुझे बचपन से अभिनय का शौक था. स्कूल कालेज में जहां भी मौका मिलता, मैं थिएटर में अभिनय कर लेती थी. मार्केटिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद जो थोड़ा ब्रेक मिला, उसमें मैंने कुछ करने का मन बनाया और मुंबई चली आई और मौसी के घर रहने लगी. हालांकि फिल्में देखना पसंद करती थी, लेकिन यही मेरा प्रोफेशन बनेगा, ऐसा सोचा नहीं था. फिर मैंने अनुपम खेर के एक्टिंग स्कूल में ज्वाइन किया और छोटा सी एक्टिंग कोर्स कर लिया, क्योंकि मैं इस ब्रेक में कुछ एक्टिंग कर वापस कनाडा जाना चाहती थी. प्रशिक्षण के दौरान एक तेलगू फिल्म की औडिशन हो रही थी, मैंने उसमें औडिशन दिया और 200 लड़कियों में मैं चुन ली गयी. उस फिल्म की शूटिंग सैनफ्रांसिस्को में दो महीने की थी, मुझे बहुत अच्छा लगा था. फिर प्रमोशन के लिए इंडिया आई और मैंने तीन तेलगू और एक तमिल फिल्म की. हिंदी फिल्म ‘जज्बा’ भी मिली. यहीं से एक्टिंग में रूचि आ गयी. अभी मैं मुंबई में रहती हूं और मेरे पेरेंट्स कनाडा में.

आपको अभिनय की प्रेरणा किससे मिली?

मैं बचपन से मां के साथ बैठकर शाहरुख, सलमान और आमिर की फिल्में देखती थी. वहां केवल मैं ही हिंदी फिल्म देखती थी, मेरे बाकी दोस्तों को हिंदी फिल्म अच्छी भी नहीं लगती थी. मेरी पसंद हिंदी फिल्मों में अधिक थी.

पहला ब्रेक कब मिला? क्या इंडस्ट्री में ‘कास्टिंग काउच’ का सामना करना पड़ा?

मुझे हिंदी फिल्मों में ब्रेक फिल्म ‘जज्बा’ से मिला, उस समय में केवल 23 साल की थी. मुझे ‘कास्टिंग काउच’ का सामना आज तक नहीं करना पड़ा, मुझे किसी ने एप्रोच तक नहीं किया. मेरे निर्माता निर्देशक का व्यवहार मेरे साथ हमेशा अच्छा रहा. मेरे हिसाब से ऐसा हर फिल्म इंडस्ट्री में होता रहता है, ये नयी नहीं है. मैंने जो सुन रखा था, इंडस्ट्री वैसी बुरी नहीं. आज हर फील्ड में अच्छे और बुरे लोग रहते हैं, यहां पता चल जाता है, वहां नहीं, क्योंकि इंडस्ट्री में जाने-पहचाने चेहरे होते है. ऐसे में आपको चुनना पड़ता है कि क्या सही क्या गलत है. ‘फोर्सफुली’ यहां कुछ भी नहीं होता.

इस फिल्म का औफर कैसे मिला?

इसकी कहानी रोमांटिक है और मुझे रोमांटिक फिल्में बहुत पसंद है. जब निर्देशक नरेश लालवानी ने इस फिल्म का नैरेशन दिया, तो मैं बहुत प्रभावित हुई. कहानी उनकी ही लिखी हुई है और उन्होंने मुझे किसी फिल्म में काम करते देखा था. इस तरह ये फिल्म मिली. इसकी शूटिंग लन्दन और शिमला में हुई है.

आपके यहां अकेले रहने और काम करने में परिवार का सहयोग कितना रहा?

पहले तो माता-पिता को लगा कि मैं वापस आ जाउंगी. अभी भी हर रोज पूछते हैं कि मैं कब वापस आउंगी. हर दो-तीन महीने बाद मैं कनाडा जाती हूं. वे हर तरह की आजादी देते हैं और मेरी खुशी में वे अपनी खुशी मानते हैं.

फिल्मों में इंटिमेट सीन्स करने में आप कितनी सहज हैं?

कहानी में जरूरत के बिना अगर इंटिमेट सीन्स हो तो मैं कभी करना पसंद नहीं करुंगी. पब्लिसिटी के लिए इंटिमेट सीन्स मैं कभी कर नहीं सकती. अगर स्टोरी को आगे कहने में ऐसे सीन्स जरूरी है, तो मुझे कोई ऐतराज नहीं. मेरे माता-पिता भी मुझे इतनी आजादी देते हैं कि मैं जो भी काम करूं, वह सही तरीके से करूं.

इंडस्ट्री में किसी प्रकार का संघर्ष रहा?

पहली फिल्म मिलने में कोई संघर्ष नहीं थी, लेकिन एक अच्छी फिल्म मिलने का संघर्ष हमेशा रहता है और ये सबके साथ होता है. अगले 5 साल तक ये संघर्ष और अधिक होगी. उसे मैं सहजता से लेती हूं.

आगे क्या करने वाली हैं?

आगे तीन फिल्में सूची में है जिसमें थ्रिलर, पीरियोडिक और रोमांटिक सभी है. अभी मैंने तेलगू में एक वेब सीरीज की है, जो आने वाली है.

क्या आउटसाइडर को सही फिल्मों का मिलना मुश्किल होता है?

अभी मैं जहां हूं, यहां मैं अपने हिसाब से फिल्में चुन सकती हूं, लेकिन मैं न्यूकमर हूं और बहुत अधिक च्वाइस मिलना मुश्किल होता है. ऐसे में जो भी फिल्म आती है उसमें से चुनती हूं. मेरे हिसाब से मुझे बहुत अधिक ‘चूजी’ होना ठीक नहीं. काम करते रहना चाहिए, ताकि मैं फिल्म मेकर और दर्शकों के बीच रह सकूं, जिससे मुझे बड़ा ब्रेक मिले.

कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है क्या?

मैं फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली के साथ फिल्म करने की इच्छा रखती हूं. वे अपनी फिल्मों को ‘लार्जर देन लाइफ’ बनाते हैं. वे स्टोरी, सेट से लेकर हिरोइन तक को एक अलग परिवेश में पेश करते हैं. इसके अलावा बांग्ला फिल्म में काम करने की इच्छा रखती हूं.

आपकी ब्यूटी सीक्रेट क्या है? कितनी फूडी हैं? अपने पर्स में 5 जरूरी चीजें क्या रखती हैं?

अभी फिलहाल सिक्रेट कुछ खास नहीं है, क्योंकि मैं दो फिल्मों की शूटिंग कर रही थी. समय मिलने पर अपना ध्यान रख पाती हूं. मैं खूब सारा पानी पीती हूं. सबकुछ खाती हूं, डाइटिंग नहीं करती. जंक फूड कम खाती हूं, घर का खाना खूब खाती हूं. रात को सोने से पहले मेकअप जरूर उतार लेती हूं.

मुझे घर का खाना अधिक पसंद है, इसलिए मैंने मां से चिकन बिरयानी और अंडा करी बनाना सीखा है.

मैं अपने पर्स में लिपस्टिक, लिप ग्लौस, हैण्ड सेनेटाइजर, कंघी और घर की चाभी रखती हूँ. मुझे अधिक मेकअप पसंद नहीं, सिंपल रहना पसंद करती हूं.

फैशन कितना पसंद करती हैं?

मैं फैशन पहनने से अधिक देखना पसंद करती हूं. वेस्टर्न ड्रेस आरामदायक होता है. मेरी स्टाइलिस्ट है जो मेरे पहनावे की देखभाल करती है. मुझे काला रंग बहुत पसंद है. मेकअप अधिक नहीं पसंद करती.

फिटनेस के लिए क्या करती हैं?

मैं ‘जिम’ में अधिक नहीं जाती. ‘रनिंग’ करती हूं. सप्ताह में दो से तीन दिन मैं 40 मिनट दौड़ती हूं, इसके बाद कार्डियो करती हूं.

समय मिले तो क्या करना पसंद करती हैं?

फिल्में देखना, टीवी शो देखना, संगीत सुनना और माता-पिता से बातें करना पसंद है. मुझे अकेले रहना बहुत पसंद है.

युवाओं को क्या संदेष देना चाहती हैं?

अपने ‘ड्रीम’ को फौलो करें, धैर्य रखें, जब भी वह मिले तो मेहनत और हार्ड वर्क से अपने आप को प्रूव करने की कोशिश करें. लोग कुछ भी कहे, अपने ड्रीम को कभी न छोड़ें.

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