कालेज का पहला दिन था. मैं काफी नर्वस थी. अपनी क्लास ढूंढ़ रही थी. तभी मेरी मुलाकात एक लड़के से हुई. उस को देखते ही मुझे कुछ अपनेपन का एहसास हुआ. कहते हैं न, लव एट फर्स्ट साइट. बिलकुल वैसा ही था वह एहसास. उस ने पूछा, ‘‘कालेज में नई हो क्या?’’ मैं ने कहा, ‘‘हां, मैं अपनी क्लास ढूंढ़ रही हूं.’’

फिर वह मुझे क्लासरूम तक छोड़ कर आया. बातोंबातों में पता लगा हम दोनों सेम स्ट्रीम के स्टूडैंट हैं. बस, वह मुझे से सीनियर है. क्लासरूम तक जाते हुए उस ने इस कालेज के बारे में न जाने कितनी बातें बिना रुके बता दी थीं. मैं उसे सुनती जा रही थी और वह बोलता जा रहा था.

इस तरह अकसर हमारी मुलाकात कालेज कैंपस में होने लगी. कभी किताब के बहाने, तो कभी नोट्स के बहाने. उस के माथे पर बिखरे हुए बाल, उस की मुसकराहट मुझे आकर्षित करती थी. वह जो कहता, मैं मान लेती. देखते ही देखते 2 साल गुजर गए. मगर न मैं ने कभी अपनी फीलिंग्स उस से शेयर कीं और न ही उस ने मुझेसे. उस का फाइनल ईयर था. जैसेजैसे समय नजदीक आता जा रहा था, मेरी घबराहट बढ़ती जा रही थी. यह सोच कर मेरा मन दुखी रहता था कि वह अब इस कालेज से चला जाएगा. मैं हमेशा बेचैन रहती थी. एक दिन उस ने मुझे  कौफी शौप में बुलाया और कहा, ‘‘अब शायद हमारी मुलाकात न हो. मैं आगे की पढ़ाई के लिए बेंगलुरु जा रहा हूं.’’

यह सुन कर मैं एक पल के लिए उस की आंखों में देखती रही. मुझे  लगा शायद अब वह अपने दिल की बात कहेगा. फिर उस ने कहा, ‘‘तुम दिल की बहुत अच्छी हो. तुम हमेशा मेरी अच्छी दोस्त बन कर रहना.’’

मैं ने उस की बात का कोई जवाब नहीं दिया. बस, इतना ही पूछा, ‘‘तुम तो खुश हो न, बेंगलुरु जाने की बात से?’’

वह बोला, ‘‘हां, मैं बहुत खुश हूं. मेरी गर्लफ्रैंड भी वहीं रहती है.’’

पिछले 2 सालों में उस ने कभी अपनी गर्लफ्रैंड के बारे में नहीं बताया था. मैं उस से कुछ नहीं कहना चाहती थी. अब उस के सामने अपने प्यार का इजहार भी नहीं करना चाहती थी. और उसे रोते हुए विदा भी नहीं करना चाहती थी. वह चला गया और मेरा प्यार हमेशा के लिए अधूरा रह गया.

वह जो उस के साथ गुजरा, वह वक्त, वह लम्हा अब भी मेरी सांसों में जिंदा है. अब उस की ही खुमारी में आने वाला वक्त भी गुजर ही जाएगा. वह जो गुजर गया वह बेशकीमती था, उसे संभाल कर कहीं रख सकें, ऐसा कोई कोना नहीं मिला.

कुछ गुजरा वक्त, कुछ उस की यादें, कुछ उस के फीके पड़ते निशान, कुछ उस की खींची हुई लकीरें जो अभी फीकी नहीं पड़ी हैं. कुछ उन से जुड़ा, कुछ अलग होता हुआ सा, कुछ पीछे छूटता हुआ सा, कुछ उसे फिर से पा लेने की ख्वाहिश, कुछ उसे फिर से लौटा लाने की चाह, कुछ उसे रोक लेने की कोशिश, कुछ उसे एक बार फिर से महसूस करने की ख्वाहिश. कुछ है, कहीं है, जाने कहां खोया, कब खोया, कैसे खोया पर फिर उसे ढूंढ़ लाने और बांध कर रख लेने की ख्वाहिशें.

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