पुणे के गुप्ता परिवार को कोरोना के घर नजरबंद हुए एक हफ्ते से भी अधिक हो गया था.शुरू शुरू में तो ललिता और विरल को बहुत अच्छा लग रहा था क्योंकि विवाह के दो वर्ष  बाद ये पहला मौका था जब उन्हें एकसाथ इतना समय मिल रहा था. परन्तु चार दिनों  के बाद ही दोनो में नोंकझोंक होने लगी.विरल को जहाँ ललिता की हर बात पर रोकटोक करना अखरने लगा था वहीं ललिता को विरल का सारा दिन बस बिस्तर पर पसरे रहना पसंद नही आता था.

बात दोनो से शुरू होती थी और फिर परिवार तक चली जाती थी.

छोटी छोटी बातों के मुद्दे बनने लगे थे.पहले अगर कुछ ऐसी बहस होती थी तो दोनो इधर उधर चले जाते थे .अब दोनो के पास कोई विकल्प नही था.रही सही कसर तब पूरी हो गई जब विरल ने ललिता को फोन पर अपनी मम्मी से घर की एक एक बात को शेयर करते हुये सुना.

ललिता के अनुसार घर मे बैठे बैठे वो इतनी घुट चुकी है तो अगर अपना तनाव अपनी मम्मी के साथ बाँट रही है तो क्या बुरा हैं?

ललिता के शब्दों में"विरल का तो वर्क फ्रॉम होम चल रहा हैं पर मेरा तो काम दुगना हो गया हैं"

"विरल तो ऑफिस के काम के बहाने से घर पर बिल्कुल भी मदद नही करता हैं.जब देखो या तो लैपटॉप या मोबाइल से चिपका रहता हैं और मुझे देखते ही फौरन चौकन्ना सा हो जाता हैं"

ललिता को अब ऐसा लगने लगा हैं कि विरल का कहीं और चक्कर भी चल रहा हैं.

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