भारत में 30 जनवरी को कोरोना वायरस के संक्रमण का पहला मामला सामने आया था. 24-25 मई की रात 12 बजे से देशबंदी यानी तालाबंदी लागू है. 3 मई को संक्रमितों की संख्या बढ़कर 40 हजार  हो गई तो मरने वालों की तादाद तकरीबन डेढ़ हजार होने को है.

हालांकि कोविड-19 के हौटस्पौट अमेरिका और यूरोप की तुलना में यह आंकड़ा अपेक्षाकृत कम लग सकता है, लेकिन तसवीर का यह सिर्फ़ एक रुख़ है. अब तक भारत में 10 लाख लोगों का टेस्ट किया गया है, जो प्रति 10 लाख लगभग 694 के बराबर है और यह दुनिया में सबसे कम दरों में से एक है.

अस्पतालों में प्रति एक हजार लोगों पर मात्र 0.55 बेड और कुल 48 हजार वैटिलेटर के साथ 1.3 अरब की आबादी वाला यह देश कोरोना वायरस महामारी के आने  वाले गंभीर संकट का सामना कैसे करेगा, यह घोर चिंता का विषय है.

भारत जैसे युवा आबादी वाले ग़रीब देशों में कोरोना से निपटने के लिए हर्ड इम्यूनिटी एक प्रभावशाली रणनीति हो सकती है, लेकिन यह एक विवादास्पद दृष्टिकोण है. हाल ही में ब्रिटेन ने इसे ख़ारिज कर दिया था.

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शोधकर्ताओं ने भारत में कोरोना महामारी से बचाव के लिए हर्ड इम्यूनिटी या झुंड प्रतिरक्षण का सुझाव दिया था. शोधकर्ताओं की टीम ने सुझाव दिया था कि यदि एक नियंत्रित तरीक़े से अगले 7 महीनों में भारत के 60 फीसद लोगों को इस बीमारी से ग्रस्त होने दिया जाए तो नवंबर तक भारत में यह स्थिति आ जाएगी कि यह वायरस किसी नए व्यक्ति को संक्रमित नहीं कर सकेगा क्योंकि इतने सारे लोगों के संक्रमित हो जाने के बाद वायरस को ऐसे असंक्रमित लोग नहीं मिलेंगे जिन पर वह हमला कर सके और अपनी संख्या बढ़ा सके. हर्ड इम्यूनिटी या प्रतिरक्षात्मक क्षमता उस समय प्राप्त होगी, जब देश की अधिकांश आबादी (60 से 80 प्रतिशत) संक्रमित होकर फिर ठीक हो जाए.

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