Child Care : रेयांश और रुद्रांश डेढ़ साल के छोटे जुड़वा बच्चे हैं, जिन्हें कुछ भी मना करने पर अपना सिर पटकने लगते हैं. उन दोनों की मां हमेशा परेशान रहती हैं कि आखिर दोनों ऐसा क्यों करते हैं? एक बार तो एक ने साइकिल पर चढ़ने से मना करने पर अपने सिर को इतनी जोर से जमीन पर पटका कि उस के होंठ कट गए, खून तक निकालने लगा.
मां नेहा को हमेशा डर सताता रहता है कि कहीं ये बच्चे खुद को अधिक जख्मी न कर लें और दिनभर अपना काम छोड़ कर उन के पीछे भागती रहती है. नेहा को लगता है कि कुछ सालों में बच्चे बड़े हो जाएंगे और सब ठीक हो जाएगा, उन की यह जिद कम हो जाएगी.
लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो सकेगा? असल में एक शिशु का हताशा या क्रोध के कारण अपना सिर पटकना, जैसाकि गुस्से में होता है, आम बात है. लेकिन कुछ बच्चे ध्यान आकर्षित करने के लिए सिर पीटना एक प्रभावी गतिविधि समझते हैं. मातापिता या अन्य वयस्कों से बच्चों को जितनी अधिक प्रतिक्रिया मिलती है, उतनी ही अधिक संभावना है कि वे इस आदत को जारी रखते हैं.
आप को यह जान कर हैरानी होगी कि लगभग 20% बच्चों में सिर पटकने की आदत होती है, जो उम्र के साथसाथ कई बार कम होती है. लेकिन अगर बच्चा दिन में कई बार यह करने लगे तो शिशु रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना उचित होता है.
अनकंट्रोल्ड बिहैवियर
इस बारे में गुड़गांव के मदरहुड हौस्पिटल की नियोनेटोलौजिस्ट ऐंड पीडियाट्रिशन डा. शैली गुप्ता कहती हैं कि इसे शिशु का टैंट्रम कहते हैं.कोई बच्चा, अगर उस की बात नहीं मानी गई, तो अनकंट्रोल्ड बिहैवियर करता है जैसे या तो वह अपनेआप को हर्ट करता है या फिर रोना शुरू कर देता है, पेरैंट्स को बाइट्स करता है, मारता है आदि. यह अधिकतर 1 साल के बाद बच्चे में शुरू हो जाता है और 1 से 4 साल के बच्चे को होती है और यह नौर्मल माना जाता है. इस समय वह अपनी बात समझा नहीं पाता, सब चीजों को बड़ा कर ऐक्सप्रेस करता है, मसलन जमीन पर लेट जाना, जोरजोर से रोने लगना, सिर पटकना आदि. बातों की जगह वह ऐक्शन से अपनी बात समझाने की कोशिश करता है.
इस उम्र में ऐंग्जाइटी, फ्रस्ट्रैशन, गुस्सा आदि की फीलिंग्स आनी शुरू हो जाती है, लेकिन कम्युनिकेट करना नहीं आता, इसलिए ऐसा वह यह सब करता है.
इस के अलावा ऐसे बच्चों में तब भी ऐसे व्यवहार दिखता है, जब उन्हें अधिक भूख लगी हो या नींद आ रही हो, थक गए हों आदि.
वे कहती हैं कि मेरे पास ऐसी समस्या ले कर कई पेरैंट्स आते हैं, जिस में सब से पहले मैं उन के ग्रोथ को देखती हूं, जैसे बच्चा ऐनिमिक है या नहीं, ठीक से खाना नहीं खाता, पोषण की कमी है, स्लीप पैटर्न सही नहीं है, जिस में 8 से 10 घंटे की नींद ले रहा है या नहीं आदि देखना पड़ता है. 2 साल से छोटे बच्चों को दिन में 2 नैप देना पड़ता है और 2 साल से बड़े को 1 नैप देना सही होता है.
व्यवहार को बढ़ावा
डा. शैली आगे कहती हैं कि सुबह से जागा बच्चा अगर शाम तक ऐक्टिव है, तो टैंट्रम होगा. इसलिए ऐसे बच्चों के न्यूट्रिशन और उस के पैटर्न को देखने के बाद पेरैंट्स की हैबिट को भी देखना पड़ता है. कुछ पेरैंट्स बहुत अधिक बोसी होते हैं और बच्चे को हर बात से मना करते हैं, जो उन के ऐसे व्यवहार को बढ़ावा देते हैं. असल में 1 से 4 साल के बच्चे की एक इंडिपैंडेसी और ओपिनियन होता है कि वे क्या पहनना क्या खाना हैं, खुद ही डिसाइड करना चाहते हैं, ऐसे में पेरैंट्स को उन की हैल्प करने की जरूरत होती है.
अधिक उदारता भी ठीक नहीं
कुछ पेरैंट्स ऐसे भी होते हैं, जो बहुत ही उदार होते हैं, किसी प्रकार की बाउंड्री बच्चे के लिए नहीं बनाते, जबकि यह करना आवश्यक होता है. मसलन, कितने समय तक खेलना है, खाना कब खाना है, कब सोना है आदि. इस के अलावा कुछ पेरैंट्स पहले बच्चे को आजादी देते हैं, लेकिन बाद में बहुत अधिक स्ट्रिक्ट हो जाते हैं, जो बच्चे की टैंट्रम को बढ़ाता है, क्योंकि उसे अचानक रोकटोक पसंद नहीं आता. इस प्रकार अधिक स्ट्रिक्ट और अधिक छूट देना दोनों ही चीजें बच्चों के विकास में बाधक बनती हैं.
खुद को रखें शांत
डाक्टर शैली कहती हैं कि 4 साल के होने तक बच्चे अगर सिर पटकते हैं, तो यह नौर्मल ही समझना चाहिए, लेकिन इस के बाद भी अगर उस की आदत सिर पटकने की है और उसे चोट लग रही है, तो डाक्टर की सलाह लेने की जरूरत है. इस से औटिज्म या न्यूरोलोजिकल कोई इशू नहीं होगा, लेकिन कुछ समस्या बच्चे में अवश्य है, जिसे किसी बालरोग विशेषज्ञ को कंसल्ट कर जान लेना उचित होता है. दिन में 1 बार से अधिक और सप्ताह में 3 से 4 बार से अधिक सिर पटकने पर बच्चे को डाक्टर के पास अवश्य ले जाएं, ताकि आप बच्चे की समस्या को समझ सकें. साथ ही शिशु अगर सिर पटकता है, तो पेरैंट्स को उस पर चिल्लाना नहीं है, बल्कि खुद को शांत रखना है. जितना पेरैंट्स शोर मचाएंगे, उतना ही बच्चा सिर पटकेगा.
बच्चे का स्टिमुलेशन जरूरी
डाक्टर शैली कहती हैं कि आजकल कुछ पेरैंट्स वर्क फ्रौम होम हैं, ऐसे में किसी मेड बच्चे की देखभाल करती है, जबकि ऐसे बच्चों को किसी की पूरे टाइम देखभाल करने की जरूरत होती है, जिस में मेड से अधिक जरूरत दादी या नानी की होती है, जो धीरज के साथ बच्चे को पूरा समय व्यस्त रख पाती हैं, क्योंकि इस उम्र में बच्चों की उत्सुकता हर चीज के बारे में अधिक होती है.
केवल खाना खिलाना और सुलाना काफी नहीं होता, उन्हें हर समय बिजी रखना पड़ता है. इस के अलावा बच्चे को स्टिमुलेशन की आवश्यकता होती है, जिस में पार्क में घूमने ले जाना, बच्चों के साथ उन्हें खेल खेलने देना, खिलौनों के साथ खेलने देना आदि सबकुछ उन की रूटीन में शामिल होना चाहिए.
कोविड 19 का दिख रहा असर
यह सही है कि आज औटिज्म के केसेज अधिक बढ़े हैं, जो पहले बहुत कम हुआ करता था, क्योंकि कोविड 19 के समय के बच्चे न तो स्कूल जा पाए और न ही उन्हे ग्रैंड पेरैंट्स का सहयोग मिला. उस समय पेरैंट्स भी घर से ही काम कर रहे थे. ऐसे में उस समय के बच्चे को डिजिटल औटिज्म हुआ, क्योंकि उन की ब्रैन की ग्रोथ के लिए स्टिमुलेशन नहीं मिला, जो बहुत जरूरी होता है. जैसेकि बाहर जा कर बर्ड्स या ऐनिमल्स को देखना, पार्क में घूमना, कीचड़ हाथ में लगाना आदि बहुत जरूरी होता है. यह सब नहीं मिलने की वजह से औटिज्म और अटेंशन डेफिसिट या हाइपरऐक्टिविटी डिसऔर्डर (ADHD) की संख्या में वृद्धि हुई है. यह सब उन परिवारों में थोड़े कम होते हैं, जहां पर अधिक लोग बच्चे की देखभाल करते हैं.
इस प्रकार समय रहते ऐसे जिद्दी या सिर पटकने वाले बच्चों के बिहैवियरियल पैटर्न को ऐक्सपर्ट के साथ चर्चा कर लेनी चाहिए, ताकि बच्चे के विकास में किसी प्रकार की समस्या न हो.