देश में इन दिनों मध्यम व उच्च श्रेणी के निजी नर्सिंग होम व निजी अस्पतालों से ले कर बहुआयामी विशेषता रखने वाले मल्टी स्पैशलिटी हौस्पिटल्स की बाढ़ सी आई हुई है.

दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र व गुजरात जैसे आर्थिक रूप से संपन्न राज्यों से ले कर ओडिशा, बिहार व बंगाल जैसे कम संपन्न राज्यों तक में भी ऐसे बहुसुविधा उपलब्ध करवाने वाले अस्पतालों को संचालित होते देखा जा सकता है.

हजारों करोड़ रुपए की लागत से शुरू किए जाने वाले इन अस्पतालों को संचालित करने वाला व्यक्ति या इस से संबंधित ग्रुप कोई साधारण व्यक्ति या ग्रुप नहीं होता. निश्चित रूप से ऐसे अस्पताल न केवल धनाध्य लोगों द्वारा खोले जाते हैं बल्कि इन के रसूख भी काफी ऊपर तक होते हैं.

इतना ही नहीं, बड़े से बड़े राजनेताओं व अफसरशाही से जुड़े लोगों का इलाज करतेकरते साधारण अथवा मध्यम या उच्चमध्यम श्रेणी के मरीजों की परवा करना या न करना ऐसे अस्पतालों के लिए कोई माने नहीं रखता.

नामीगिरामी बड़े अस्पतालों में फोर्टिस, मैक्स, अपोलो, कोलंबिया एशिया रेफरल हौस्पिटल, नोवा स्पैशलिटी हौस्पिटल, ग्लोबल हैल्थ सिटी, बीजीएस ग्लोबल हौस्पिटल, सर गंगाराम हौस्पिटल आदि शामिल हैं. यहां एक ही छत के नीचे किसी भी मरीज के हर किस्म की बीमारी की जांचपड़ताल, उस से संबंधित हर किस्म के मैडिकल टैस्ट व हर प्रकार के औपरेशन की सुविधा उपलब्ध रहती है.

पांचसितारा होटल्स जैसी सुविधाएं प्रदान करने वाले अस्पतालों का खर्च उठा पाना साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं है. ऐसे अस्पतालों में छोटा औपरेशन अथवा मध्यम श्रेणी की बीमारी का इलाज भी लाखों रुपए में हो पाता है. इस में शक नहीं कि देश में लाखों संपन्न मरीज ऐसे हैं जो इन या इन जैसे दूसरे बड़े अस्पतालों से अपना इलाज करवा कर स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं. परंतु यदि हमें यह पता चले कि इतने विशाल भवन, वृहद आकार व प्रकार वाले इन्हीं पांचसितारा सरीखे अस्पतालों में मरीजों के साथ खुलेआम लूट नहीं, बल्कि डकैती की जा रही है तो यह उन अस्पतालों के लिए किसी कलंक से कम नहीं है.

आज यदि ऐसे कई बड़े अस्पतालों की वैबसाइट खोल कर देखें या इन अस्पतालों के भुक्तभोगी मरीजों द्वारा साझा किए गए उन के अनुभवों पर नजर डालें तो ऐसे अस्पतालों की वास्तविकता तथा इन विशाल गगनचुंबी इमारतों के पीछे का भयानक सच पढ़ने को मिल जाएगा.

बेशक, कुछ रिव्यू लिखने वालों ने इन अस्पतालों की सक्रियता व उन के स्टाफ के बरताव की तारीफ भी लिखी है. परंतु प्रश्न यह है कि लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद यदि एक भी मरीज या उस के तीमारदार अस्पताल के प्रति कोई नकारात्मक विचार ले कर जाते हैं तो आखिर ऐसा क्यों?

इलाज के नाम पर लूट

पिछले दिनों मनीश गोयल नामक नवयुवक ने दिल्ली के शालीमार बाग स्थित एक हौस्पिटल के अपने अनुभव को सोशल मीडिया पर एक वीडियो द्वारा साझा किया. उस ने बताया कि उस के मरीज को एक बाईपास सर्जरी के बाद 19 जून को डिस्चार्ज किया जाना था. अस्पताल से उस औपरेशन का पैकेज बाईपास सर्जरी की फीस के साथ 2 लाख 2 हजार रुपए में तय हुआ था. मरीज अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पा रहा था तथा उस के परिजन अस्पताल के इलाज से संतुष्ट नहीं थे और मरीज को अन्यत्र स्थानांतरित करना चाह रहे थे. यह जान कर अस्पताल ने 5 लाख 61 हजार रुपए का बिल मरीज के तीमारदारों को दे दिया. किसी कारणवश 19 जून के बाद मरीज ने अपना इलाज इसी अस्पताल में एक सप्ताह और कराया. अब एक सप्ताह के बाद हौस्पिटल ने मरीज को नया बिल 11 लाख 37 हजार रुपए का पेश कर दिया.

मनीश गोयल के अनुसार, नेफरो के डाक्टर की डेली विजिट के नाम पर बिल में पैसे मांगे गए जबकि डाक्टर 3 दिनों में केवल एक बार आते हैं. परंतु अस्पताल ने उन के विजिट के पैसे 1 दिन में 2 बार विजिट की दर से लगाए हैं. इसी प्रकार 1 और डाक्टर, जिन्होंने मरीज की बाईपास सर्जरी की थी, 4 दिनों से छुट्टी पर थे फिर भी उन के नाम पर प्रतिदिन विजिट के पैसे बिल में मांगे जा रहे थे. इतना ही नहीं, इन सब के अतिरिक्त अस्पताल ने एक सप्ताह में 5 लाख 25 हजार रुपए मूल्य की दवाइयों का बिल भी अलग से लगा दिया. इन सब के बावजूद, मरीज का कहना है कि उसे अपेक्षित स्वास्थ्य लाभ भी नहीं मिल सका.

उपरोक्त घटना इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त है कि इस प्रकार के अस्पताल मरीजों के इलाज के लिए तो कम, मरीजों को लूटने व उन्हें कंगाल करने की नीयत से ज्यादा खोले गए हैं. कुछ मरीजों ने इसी अस्पताल के बारे में अपना तजूरबा साझा करते हुए यहां तक लिखा है कि यहां कैंसर के मरीज को गलत दवाइयां दी गईं तथा उन का गलत इलाज किया गया. एक मरीज ने लिखा कि अस्पताल वालों का वास्तविक मकसद पैसा कमाना है. कुछ मरीजों ने इन अस्पतालों में भारी भीड़ और उस भीड़ के चलते होने वाली असुविधाओं का भी उल्लेख किया है.

दीपेश अरोड़ा नामक एक भुक्तभोगी ने अपने रिव्यू में एक अन्य सुपर स्पैशलिटी हौस्पिटल के बारे में लिखा कि उस के परिवार का एक प्रिय सदस्य अस्पताल में गलत इलाज किए जाने की वजह से मर गया. अस्पताल में सफेद यूनिफौर्म में कातिलों की टीम मौजूद है. जबकि राजेश सिंह जैसे किसी व्यक्ति के अनुभव के अनुसार, उसी अस्पताल के एक डाक्टर की देखभाल तथा उन की निगरानी करने का तरीका काबिलेतारीफ है.

दरअसल, भारत में बड़े अस्पतालों की बढ़ती संख्या का समाचार इन दिनों न केवल समूचे दक्षिण एशियाई देशों में, बल्कि अफ्रीका तथा यूरोपीय देशों में भी फैल चुका है. स्वयं इन अस्पतालों के प्रचारतंत्र इन की अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि करने में सक्रिय रहते हैं. पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बंगलादेश तथा अरब देशों के तमाम संपन्न मरीज भारत की ओर खिंचे चले आते हैं और ये अस्पताल इन्हीं बेबस मरीजों की मजबूरी का नाजायज फायदा उठा कर उन से मनचाहे पैसे वसूलते रहते हैं. धीरेधीरे उन की यही आदत प्रवृत्ति में शामिल हो जाती है और इस का शिकार लगभग प्रत्येक दूसरे मरीज को होना पड़ता है. ऐसे अस्पतालों पर तथा इन के द्वारा की जा रही लूट व डकैती पर सख्त नजर रखने की जरूरत है.

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