कोरोना की दूसरी लहर के दौरान रेवती को एक दिन अचानक कुछ कोरोना के लक्षण प्रतीत हुए तो हॉस्पिटल में एडमिड रहना पड़ा,  1सप्ताह बाद जब घर आयीं तब तक उनकी लगभग समस्त जमापूंजी इलाज पर खर्च हो चुकी थी क्योंकि उनके परिवार का कोई मेडिकल बीमा नहीं था.

कोरोना के कारण राजाराम जी की अचानक मृत्यु हो गयी. उनके जाने के बाद जब ऑफिसियल और इंश्योरेंस क्लेम करने के लिए कागजों की तलाश की गई तो पता चला कि उन्होंने किसी को अपना नॉमिनी ही नहीं बनाया था. इससे क्लेम मिलने में देरी तो हुई ही साथ ही नॉमिनी रजिस्टर करवाने के लिए अनावश्यक रूप से अनेकों ऑफिसों के चक्कर भी लगाने पड़े सो अलग.

अस्मिता के घर में वित्तीय मामले उसके पति ही सम्भालते थे. उसे न तो इन्वेस्टमेंट के बारे में कोई जानकारी थी और न ही सेविंग्स के बारे में एक दिन अचानक उसके पति को हार्टअटैक आया और वे चल बसे. उनके जाने के बाद सब कुछ समझने में उसे काफी वक्त लग गया दूसरों की अनावश्यक मदद तो लेनी ही पड़ी साथ ही कई प्लान्स की तो किश्तें भी लेट हो गई जिसके कारण पेनॉल्टी  भरनी पड़ी.

हमारे सामाजिक ढांचे में आमतौर पर भारतीय परिवार पुरुष प्रधान होते हैं घर के आर्थिक मामलों का हिसाब किताब वे ही रखते हैं. इसके अतिरिक्त कई परिवारों में जब पति अपनी पत्नियों को इस बाबत जानकारी देना भी चाहते हैं तो वे, "हमें वैसे ही घर के क्या कुछ कम काम हैं जो अब ये भी सम्भालें कहकर झिटक देतीं हैं." परन्तु कोरोना जैसे छोटे से वायरस ने मानव जीवन की अनिश्चितता को पूरी दुनिया के सामने ला खड़ा किया है. कब परिवार पर कोरोना कहर बनकर टूट पड़ेगा ये कोई भी नहीं जानता इसलिए वर्तमान परिदृश्य में घर का वित्तीय प्रबंधन करना बेहद आवश्यक है जिसमें बचत, मेडिकल बीमा और इन्वेस्टमेंट जैसे मुद्दे अवश्य शामिल हों.

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