पिछले 2 साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. खुशी इतनी थी कि लगता था जैसे समय को पंख लग गए हों. न दिन की खबर, न रात को चैन. बात बहुत पुरानी नहीं है. साल 2012 में सियाली और अबीर का कुछ ऐसा ही हाल था. प्यार में दोनों दुनिया से बेखबर थे और प्यार की खुमारी का आलम यह था कि दोनों के दोस्त उन से कटने लगे थे. ऐसा होना लाजिम भी था, क्योंकि जब भी औफिस के आपाधापी के माहौल से कुछ फुरसत के लमहे मिलते, तो दोनों का फेसबुक स्टेटस बताता कि दोनों साथ में हैं, वहां किसी तीसरे की जगह नहीं. उन के प्यार की प्रगाढ़ता इतनी उफान पर थी कि दोनों ने तय किया कि अब जल्दी ही सामाजिक बंधन में बंधना है. 2 साल की अंतरंगता को सामाजिक स्वीकृति देने के लिए सियाली ने अबीर को अपने परिवार से मिलने को कहा, तो इस के लिए अबीर राजी हो गया. तयशुदा समय पर अबीर दीवाली की शाम सियाली के घर आया. अबीर के स्वभाव से सियाली वाकिफ थी, इसलिए उस के घर आने से पहले उस ने उस को अपने घर वालों के बारे में कुछ बताया नहीं था. ऐसा ही सियाली ने घर वालों के साथ भी किया था. घड़ी की सूइयां शाम के 6 बजा रही थीं. बेचैनी सियाली के घर वालों के हावभाव से साफ झलक रही थी. आलम यह था कि दीवाली की रौनक में दमकते घर के अलावा सियाली के मम्मीडैडी भी नए कपड़ों में चमक रहे थे. डोरबैल बजने पर दरवाजा खोलते ही अबीर कीचड़ से सने जूते पहने रंगोली बिखेरता हुआ आया और बिना किसी फौर्मैलिटी के सोफे पर पसर गया.

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