आज के बदलते दौर ने बच्चे के पालनपोषण को आसान बना दिया है. आज मातापिता छोटे बच्चे को ले कर कहीं बाहर जाने से नहीं कतराते. परिस्थिति चाहे कैसी भी हो, डायपर्स के प्रयोग से बच्चे को भी आराम मिलने लगा है. लेकिन इस के इस्तेमाल में थोड़ी सावधानी बरती जाए तो और भी आसानी हो जाती है अन्यथा कई बार लेने के देने भी पड़ सकते हैं. इस बारे में मुंबई की श्री गुरु मैटरनिटी एंड चिल्ड्रंस नर्सिंगहोम की बाल रोग विशेषज्ञा डा. सविता एस नाइक कहती हैं कि डायपर्स फायदेमंद होता है, पर इसे उचित रूप से इस्तेमाल करना जरूरी है. डायपर्स में नमी सोखने की शक्ति होती है, जो कपड़ों में कम होती है. इसलिए अगर इसे बच्चे को एक बार पहना दिया जाए तो 2 या 3 बार पेशाब करने के बाद ही डायपर बदला जाता है. अगर उस ने मलत्याग किया हो तो इसे तुरंत बदलना जरूरी होता है, क्योंकि बच्चे की कोमल त्वचा को इस से नुकसान हो सकता है. गीले डायपर से बच्चे को कई प्रकार की त्वचा की बीमारियां हो जाती हैं. पेशाब में यूरिया, ऐसिड, अमोनिया आदि होते हैं, जो त्वचा में खुजली पैदा करते हैं. इस से बच्चों की त्वचा लाल हो जाती है.

जांच करती रहें

इसलिए जब भी बच्चा डायपर पहने हो तो मां को पीछे हाथ लगा कर जांच करते रहना चाहिए. कुछ बच्चे एक बार में अधिक पेशाब करते हैं. अगर उस ने 2-3 घंटों के बाद पेशाब किया हो तो डायपर जल्दी गीला हो जाता है. तब डायपर जल्दी बदलना जरूरी हो जाता है. अगर रात में उसे डायपर पहना कर सुलाया हो तो हर 2 घंटों बाद जांच करनी चाहिए कि डायपर कितना गीला है. डायपर की ऊपरी परत हमेशा सूखी रहनी चाहिए. गीला होने पर ही यह त्वचा के संपर्क में आती है और शिशु की वहां की त्वचा लाल हो जाती है. उस के बाद खुजली, सूजन या फिर त्वचा लाल हो जाती है. इसे डायपर डर्मेटिक्स कहते हैं. हलका लाल होने पर इमोजिएंट क्रीम लगाने से त्वचा मुलायम हो जाती है और लाली भी कम हो जाती है.

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