इनसान की जो कामना पूरी हो जाती है उस के प्रति वह कुछ समय बाद उदासीन सा हो जाता है और दूसरी कामनाओं के पीछे भागने लगता है. आजकल विवाहित जोड़े, विवाह की बात तय होने के बाद एकदूसरे के लिए बहुत ही उतावले रहने लगते हैं, एकसाथ घूमतेफिरते हैं, खातेपीते हैं, भावी जीवन को ले कर बातें करते हैं, एकदूसरे के घर होने वाले आयोजनों में, उत्सवों में साथसाथ नजर आते रहते हैं, एकदूसरे के घर भी रह आते हैं, एकदूसरे का परिचय भी बड़े गर्व से लोगों से करवाते हैं. उस दौरान उन का एकदूसरे के प्रति समर्पण आसमान छू रहा होता है. दोनों को अपनी भावी ससुराल की हर चीज बहुत अच्छी लगती है. अगर कुछ बुरा भी लगता है तो उसे चुनौती समझ कर स्वीकार करते हैं. लेकिन यही कपल विवाह के साल 2 साल बाद एकदूसरे से उदासीन से हो जाते हैं, उकता से जाते हैं. यानी उन के प्रेम का रंग फीका पड़ने लगता है. एकदूसरे की अच्छाइयां बुराइयों में बदलने लगती हैं. जो बातें चैलेंज के रूप में ली थीं, वे जी का जंजाल बन जाती हैं. विवाह के पहले एकदूसरे का जो पहननाओढ़ना मन को बहुत भाता था, विवाह के कुछ समय बाद वही पहनावा फूहड़पन और भद्देपन में बदलने लगता है. एकदूसरे की कमियां गिनातेगिनाते रातें बीत जाती हैं. देखते ही देखते दोनों एकदूसरे से बेजार से हो जाते हैं. अलगअलग शौक पाल कर रास्ते अलगअलग करने लगते हैं. अगर दोनों जौब में होते हैं तो अधिक व्यस्तता का बहाना बना कर एकदूसरे से दूरियां बनाने लगते हैं.

बौलीवुड के सितारे इन की प्रेरणा बन जाते हैं. 10 में से 5 कलाकारों की यही कहानी होती है. रणधीर कपूरबबीता, अमृतासिंहसैफ, आमिर खान, संजय दत्त, रितिक रोशन आदि इसी राह पर चले हैं.

विवाह बाद दूरियां क्यों

दरअसल, हमारा जीवन एक गाड़ी की तरह है. पतिपत्नी उस गाड़ी के 2 पहिए हैं. यदि उन का संतुलन बिगड़े तो परिवार बिखरने तक की नौबत आ जाती है.

3-4 दशक पहले तलाक के मामले बहुत कम थे. उस के पीछे भी कुछ अहम कारण थे. उस समय युवकयुवतियों को सगाई के बाद भी मिलनेजुलने की इतनी छूट नहीं होती थी. एक सीमा रेखा होती थी. फोन पर बात होती थी. किसी पारिवारिक आयोजन में मुलाकात हो जाती थी. उन का जीवन एक ऐसी किताब की तरह होता था, जिस का 1-1 अध्याय पढ़ने को मिलता था. अगला अध्याय पढ़ने की उत्सुकता बनी रहती थी. इस प्रकार एकदूसरे के जीवन का 1-1 नया अध्याय पढ़ने में उम्र में, स्वभाव में परिपक्वता आ जाती थी. एकदूसरे के घरपरिवार, शिक्षा, कालेज, शौक, पुराने मित्रों के बारे में पता करते, सोचतेसमझते विवाह की नींव इतनी मजबूत हो जाती थी कि टूटने का सवाल ही नहीं उठता था.

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मगर आजकल अति आधुनिकता के पीछे भागते युवकयुवतियां अपने जीवन की किताब विवाह तय होते ही एकदूसरे को सौंप देते हैं. विवाह होने से पहले ही वे एकदूसरे की जीवन की किताब पढ़ चुकते हैं. इस कारण एकदूसरे के प्रति उत्सुकता, बेचैनी, जानने की ललक समाप्त हो जाती है.

नीरस बन जाती है जिंदगी

मृणाल का ही उदाहरण लें. वह बहुत ही मेधावी छात्रा थी. बंगाली परिवार से थी. कालेज में यूनियन के प्रैसिडैंट सुमीर, जो एक कट्टर ब्राह्मण परिवार से था, को दिल दे बैठी. दोनों एकदूसरे के आकर्षण में ऐसे डूबे कि सब कुछ भुला बैठे. मृणाल हर समय सुमीर की बातें करती. अब वह पढ़ने में पिछड़ने लगी. कईकई बार रात को भी गायब रहने लगी. परीक्षा परिणाम आया तो कई विषयों में अनुत्तीर्ण रही.

दोनों परिवारों के घोर विरोध के बावजूद दोनों का विवाह हो गया. पर कुछ ही सालों में मृणाल, जिस की सुंदरता खिलते गुलाब जैसी थी, पूर्णतया मुरझा गई. शुष्क काले घेरे शृंगार के नाम पर एक छोटी सी बिंदी बस. पीहर की बड़ी हवेली में रहने वाली ससुराल के छोटे से घर में रहती. दालचावल बीनती दिखती रही थी.

एक दिन मृणाल को उस की एक सहेली मिल गई तो मृणाल ने उसे बताया कि वह पहले खुल कर जीती थी पर उस के कट्टर ब्राह्मण ससुराल वालों ने दिल से नहीं स्वीकारा. बस बेटे की जिद के आगे घुटने टेक दिए थे. मुझे रसोईघर में खाना बनाने की अनुमति नहीं थी. रोज अपना खाना रसोईघर से बाहर बनाती. सास बहुत छुआछूत करती. सुमीर बिलकुल बदल चुका है. कहता है यहां रहना है तो उस की मां के अनुसार चलना होगा. किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल हो गया है. सारासारा दिन घर से बाहर रहता है. खानेपीने का कोई समय तय नहीं. उस की भी शिक्षा अधूरी है वरना कोई नौकरी ही कर लेती.

उस का यह हाल सुन सहेली की आंखें भर आईं. भरे मन से वह वहां से घर वापस आ गई. कुछ महीनों बाद सुमीर से तलाक ले कर मृणाल मायके लौट गई. यह सुन कर सहेली का मन बहुत उदास हो उठा कि विवाह से पहले प्रेम का, साथसाथ घूमनेफिरने, एकदूसरे को समझने का तलाक के रूप में अंत?

बढ़ती दूरियां

अर्थशास्त्री की नजर में किसी भी वस्तु का बाजार में भाव उस की भाग और पूर्ति के सिद्घांत पर टिका रहता है. जैसे बाजार में फल, सब्जी, दालें या अन्य किसी वस्तु की पूर्ति पर्याप्त मात्रा में है और मांग कम है तो बाजार भाव गिर जाता है. इस के विपरीत पूर्ति कम और मांग ज्यादा है, तो उस वस्तु के भाव एकदम बढ़ जाते हैं.

अर्थशास्त्र की मांग और पूर्ति का यही सिद्घांत वैवाहिक जीवन पर भी लागू होता है. यदि विवाह से पहले एकदूसरे की पूर्ति बहुत ज्यादा होती है अर्थात बहुत अधिक मिलनाजुलना रहता है तो विवाह के बाद मांग कम हो जाती है. दोनों आपस में छोटीबड़ी सभी बातें शेयर करते हैं. किसी बात पर कोई परदा नहीं है तो विवाह के बाद एकदूसरे के प्रति उत्सुकता समाप्त हो जाती है. जीवन में नीरसता सी आ जाती है. दूरियां बढ़ती हैं और फिर धीरेधीरे अलग होने के कगार पर आ खड़े होते हैं.

दूसरी ओर एक संतुलित तरीके से मिलनेजुलने पर आकर्षण बना रहता है. विवाह के बाद एकदूसरे को अच्छी तरह जानने की उत्सुकता बनी रहती है. विवाह के बाद दोनों एकदूसरे से अपनी बातें शेयर करते हैं तो जीवन में सरसता बनी रहती है. एकदूसरे को अधिक से अधिक जानने की कोशिश में आपस में बंधे रहते हैं.

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समय की मांग

समय की यह मांग है कि विवाह से पहले लड़का और लड़की एकदूसरे को अच्छी तरह समझपरख लें ताकि विवाह के बाद जीवन सही ढंग से गुजरे. पर कभीकभी युवा इस सुविधा का अनुचित फायदा उठाने लगते हैं. एकदूसरे को ज्यादा से ज्यादा प्र्रभावित करने के लिए अपनी आमदनी, परिवार, धनदौलत की बढ़ाचढ़ा कर तारीफ करते हैं. दोनों में से कोई एक या फिर दोनों ही एकदूसरे को सब्जबाग दिखाते हैं, जो भविष्य में जा कर घातक ही सिद्घ होता है.

गलतफहमी में न रहें

हमारे एक नजदीकी रिश्तेदारी में विवाह तय होने के बाद लड़कालड़की दोनों एकदूसरे का स्वभाव, आदतें समझने के बजाय एकदूसरे को प्रभावित करने के लिए झूठी शान बघारने लगे कि हमारे पास इतना धन है, इतना सोना है. खूब हवाई किले बनाने लगे. मगर जब विवाह हुआ तो पता चला कि दोनों ही साधारण परिवार से हैं. लड़की ने ससुराल में जा कर पाया कि लड़के द्वारा बघारी गई शेखियों में कुछ भी सच नहीं है. वह एक अति साधारण परिवार की बहू बन कर रह गई. असलियत खुलने पर बहुत झगड़ा हुआ. अपनी सारी उम्मीदों पर पानी फिरता देख 4 महीने में ही लड़की मायके लौट गई.

विवाह से पहले लड़केलड़कियों का आपस में मेलजोल सही है. इस दौरान दोनों को अपने स्वभाव, आदतें, जीवन स्तर की सही तसवीर पेश करनी चाहिए. अपने जीवन की पूरी किताब एकदूसरे को न सौंप दें. कुछ पाठ विवाहोपरांत पढ़ने में ही आनंद आता है.

अपने होने वाले जीवनसाथी को किसी गलतफहमी में न रहने दें. इसी में दोनों का फायदा है, क्योंकि झूठे हवामहल बनाने से विवाह की नींव कमजोर रहती है और विवाह का महल भरभरा कर गिर जाता है.

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