38साल की आबिदा मेरठ से दिल्ली नए जीवन और बेहतर उम्मीद के साथ आई थी. वह पढ़ीलिखी और सुल?ा सिंगल मदर थी. 4 साल पहले उस के पति का औफिस में किसी औरत से चक्कर चल रहा था तो दोनों में अनबन होने के बाद मामला तलाक तक जा पहुंचा.

3 साल लंबी चली कोर्ट काररवाई ने आबिदा को उक्ता तो दिया था पर इस बीच उस ने लड़ने की हिम्मत भी पा ली थी. आबिदा अपने मायके में थी और लंबी कोर्ट की काररवाई में उल?ा रही. जब उस का तलाक हुआ तो उस ने फैसला लिया कि वह अब अपने मायके में भी नहीं रहेगी. वह स्वाभिमानी थी. अत: अपने प्रति अपनी भाभी की तिरछी नजरों को सम?ा रही थी.

उस ने मायके और ससुराल से बिना किसी शिकायत के काफी पहले ही दिल्ली सैटल होने का फैसला ले लिया था. इस बीच वह नौकरी के लिए अप्लाई भी करती रही. जैसे ही तलाक की प्रक्रिया पूरी हुई तो वह अपने मायके से मदद स्वरूप सैटल होने लायक कुछ आर्थिक मदद ले कर अपने बेटे के साथ दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके रहने आ गई.

साथ में वह अपनी मां को कुछ समय के लिए अपने साथ ले आई थी ताकि जब तक सब ठीक नहीं हो जाता रियान की देखभाल हो सके.वह पढ़ीलिखी थी तो उसे गुरुग्राम की एमएनसी में नौकरी मिलने में ज्यादा समय नहीं लगा.

वैसे तो आबिदा दिल्ली कई बार आई थी पर ऐसा पहली बार हुआ जब वह अपने दम पर कोई बड़ी जिम्मेदारी ले कर यहां आई हो. उस के लिए सब से ज्यादा जरूरी बेटे की पढ़ाई थी जो 8वीं क्लास में पढ़ रहा था. नए और अच्छे स्कूल में ऐडमिशन करवाना और फिर अपने लिए भी नए अच्छे दोस्तों का सर्कल ढूंढ़ना जरूरी हो गया था.

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