आए दिन बलात्कार की घटनाएं हमें ?ाकझोर कर रख देती हैं, पर हम इन्हें रोकने के लिए कुछ खास कर नहीं पाते. सरकारें और पुलिस भी इन्हें घटने से रोक नहीं पा रहीं. गूगल, यूट्यूब पर बेशुमार वल्गर वीडियोज, घटिया फिल्म, विज्ञापन, गलत परवरिश, मर्दानगी साबित करने की बलवती इच्छा, बदला, दुश्मनी, जगहजगह नशे की दुकानें, मौडर्न सोच दिखा कर लड़कों पर अंधा भरोसा करती लड़कियां, दोहरे अर्थ वाले संवाद, घटिया सोच, घटती इंसानियत इत्यादि.

एक और बहुत बड़ा और महत्त्वपूर्ण कारण है लड़कों की मर्दानगी का मजाक उड़ाना या उन्हें उकसाना, जिस में कभी दोस्त, कभी रिश्तेदार तो कभी खुद लड़कियां शामिल होती हैं. ‘अरे यह तो मूंछों वाला बच्चा है’, ‘इस के तो अभी दूध के भी दांत नहीं टूटे’, ‘कहीं तीसरा जैंडर तो नहीं...’ आदि. घृणित वाक्यों से लड़कों की मर्दानगी को ठेस पहुंचते हैं जो उन के लिए असहनीय हो जाती हैं. इस से आहत हो कर वे अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए बलात्कार जैसा अनैतिक व घृणित कदम उठा लेते हैं.

बेतुकी बातें

बचपन से ही लड़कों के दिमाग में ये बातें अच्छी तरह बैठा दी जाती हैं कि ‘तुम लड़की नहीं मर्द हो, ताकतवर हो’, ‘लड़के रोते थोड़े ही हैं, रोती तो लड़कियां है’. मतलब यह कि तुम ज्यादा भावुक, जज्बाती भी नहीं हो सकतें.

लड़के घर में भी बहन, मां, बूआ, चाची, लड़कियों को देखते हैं कि उन्हें देर रात बाहर नहीं जाने दिया जाता क्योंकि बाहर उन्हें मर्दों से खतरा रहता है, कोई उन से जोरजबरदस्ती कर सकता है. पर लड़कों को कोई डर नहीं क्योंकि वे मर्द हैं. समाज में उन का बलात्कार अथवा यौन शोषण हो जाए तो उसे कलंक की भी संज्ञा नहीं दी जाती.

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