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हमारे समाज में सुखी वैवाहिक जीवन का एकमात्र नुसखा कुंडली मिलान को माना जाता है. शादी के पूर्व लड़के और लड़की की जन्मकुंडली मिलाई जाती है. पंडितों और ज्योतिषियों ने हमारी विवाह परंपरा को कुंडली मिलान से ऐसा जोड़ा और जकड़ा है कि हिंदू विवाह इस के बिना संभव नहीं लगता. उन्होंने इस का खौफ पैदा कर रखा है. कुछ भविष्यवक्ता यहां तक कहते हैं कि वर और कन्या की कुंडली में यदि नाड़ी दोष है तो उस में से एक की मृत्यु अवश्यंभावी है. मंगल दोष कुंडली में हो तो यह भी बहुत हानि पहुंचाता है. ऐसे में हमारा धर्मभीरु समाज बिना कुंडली मिलान के शादी नहीं करता.

कुंडली मिलाने के बाद भी जीवन अभिशप्त

सवाल यह है कि जब पंडितों या ज्योतिषियों के द्वारा कुंडली मिलान करवा कर ही हमारे समाज में शादी होती है तो फिर क्या वजह है कि हम रोजरोज दहेज हत्या और प्रताड़ना की खबरें सुनते हैं? लड़कियों को क्यों मारापीटा जाता है? उन का पगपग पर अपमान क्यों होता है? वे ताउम्र घुटघुट कर जीने को मजबूर क्यों होती हैं?

कभी कोई मातापिता यह क्यों नहीं सोचते कि जब उन्होंने अपनी लाडली का विवाह कुंडली मिला कर किया था तब पति ने धक्के मार कर क्यों घर से निकाल दिया? जब कुंडली में नाड़ी और मंगल दोष नहीं था फिर क्यों बिटिया को मिट्टी का तेल डाल कर असमय मौत की नींद सुला दिया गया? सवाल यह भी है कि नाड़ी दोष या मंगल दोष निवारण के बाद क्यों कोई विवाहिता विधवा होती है और विधवा होने के बाद सारी उम्र अभिशप्त जीवन जीती है?

क्या कुंडली मिलाना जरूरी है

ज्योतिष और पंडित कहते हैं कि कुंडली में 36 गुण होते हैं. लड़का और लड़की दोनों के जितने ज्यादा गुण मिलेंगे उन का वैवाहिक जीवन उतना ही सुखी होगा. आमतौर पर वे मानते हैं कि यदि दोनों के 32 गुण मिल जाएं तो यह सर्वोत्तम होता है. लड़की को वह सब कुछ मिलेगा जिस की चाहत उसे होती है. 27 से अधिक गुण मिलना बेहद शुभ माना जाता है. 18 गुणों से ऊपर मिलने पर विवाह शुभ की श्रेणी में आता है.

यदि वर और कन्या की राशि एक हो तब भी विवाह को बेहद अच्छा और सफल बनने की भविष्यवाणी की जाती है. ऐसी मान्यता है कि एक राशि के लोगों का स्वभाव, विचारधारा, मानसिक स्तर सभी एक होते हैं. इसलिए उन के बीच किसी तरह का मनभेद, मतभेद नहीं होता.

लेकिन हकीकत यह है कि कुंडली मिला कर शादी करने के बाद भी जीवन में परेशानियां आती रहती हैं, जिन को लड़की को झेलना पड़ता है. इसलिए खुद से यह सवाल जरूर करना चाहिए कि क्या कुंडली मिलाना जरूरी है?

राशि एक फिर क्यों मतभेद

रेखा और विजय दोनों की राशि कन्या है. शादी के वक्त पंडित ने कहा कि दोनों की जोड़ी खूब सुखी रहेगी. दोनों के मातापिता गदगद थे. शादी खूब धूमधाम से हुई. शादी के मात्र ढाई महीने बीते होंगे कि रेखा ने एक रात फोन किया कि विजय ने उस पर हाथ उठाया. मातापिता दौड़ेदौड़े गए. वहां जा कर पता चला कि शादी के सप्ताह भर बाद से ही विजय रेखा के हर काम में मीनमेख निकालने लगा. उस के घर वाले भी उसी की सपोर्ट करते.

रेखा के मातापिता ने विजय को समझाना चाहा तो उस ने दोटूक कहा, ‘‘अपनी बेटी को समझाइए कि मेरी हर बात माने वरना ले जाएं यहां से.’’

अंतत: वही हुआ जो हमेशा होता है. बेटी को समझाया गया कि अपमान का कड़वा घूंट पी कर जिंदगी काटो. शादी के बाद मायके वालों का बेटी पर कोई अधिकार नहीं रहता. उस समय किसी के मन में यह खयाल नहीं आया कि कुंडली मिला कर शादी करने का क्या फायदा हुआ? एक राशि होने पर स्वभाव में इतना अंतर क्यों है? काश, कुंडली मिलाने की जगह वे लोग लड़के के स्वभाव के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेते तो यह नौबत नहीं आती.

मंगल निवारण के बाद अमंगल क्यों

ज्योतिषियों के अनुसार राधिका की जन्मकुंडली में मंगलदोष था. कुंडली मिलान करते समय नाड़ी दोष भी निकल आया. उस की कुंडली के दोष का निवारण किया गया.

उस के बाद भी बहुत खोजबीन करने के बाद एक लड़के से उस की कुंडली मिली. शादी के 2 साल तक सब ठीकठाक चला. तीसरे साल एक दुर्घटना में लड़के की मौत हो गई. राधिका पर क्या बीती, यह किसी ने नहीं सोचा. ससुराल वालों ने यह लांछन लगा कर उसे और उस की दुधमुंही बच्ची को घर से निकाल दिया कि वह मनहूस है. उसी की वजह से उन के बेटे के साथ हादसा हुआ.

लड़की का ही दोष क्यों

कारण कोई भी हो लड़की को दोषी ठहरा दिया जाता है. उस समय लड़के वाले यह क्यों नहीं सोचते कि अब उन की बहू का क्या होगा? बजाय इस के कि ससुराल के लोग लड़की की हिम्मत बढ़ाएं, उस का सारा हौसला पस्त कर दिया जाता है.

शादी के पहले कुंडली मिलाने की बात होती है. माना जाता है कि इस से वैवाहिक जीवन हंसीखुशी गुजरेगा, लेकिन शादी के बाद चुनचुन कर दोष लड़की में निकाला जाता है. आपस में खटपट हो तो लड़की का स्वभाव खराब है, कोई हादसा हो जाए तो लड़की अपशकुनी है. वह पाखंड दूर करने की बात करे तो नास्तिक है. सोचविचार कर काम करे तो घमंडी है, अपने आगे किसी की नहीं सुनती.

अंतिम फैसला यह सुनाया जाता है कि उस की कुंडली में ही दोष है. शादी के खूबसूरत रिश्ते का कुंडली के नाम पर मखौल बना दिया जाता है. लड़की की भावनाओं का, हर पल झेलते उस के दर्द का, तिलतिल जलते अरमानों की फिक्र किसी को नहीं होती.

तर्क से नकारें कुंडली मिलान को

हिंदू धर्म के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म में कुंडली मिलान की चर्चा नहीं है. चीन, फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन आदि तमाम देशों के लोग बिना कुंडली मिलान के शादी करते हैं. क्या उन के यहां शादियां सफल नहीं होतीं? क्या उन का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होता? यह हमें समझना होगा कि शादी 2 दिलों का रिश्ता होता है. यह पतिपत्नी की आपसी समझदारी, प्रेम और विश्वास पर टिका होता है. दोनों एकदूसरे की भावनाओं को समझें, एकदूसरे का सम्मान करें, तभी वैवाहिक जीवन की मधुरता और सफलता बनी रहेगी.

कुंडली मिलान पंडितों का काला धंधा है. समाज पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने और उस के नाम पर पैसे ऐंठने की भावना उन में प्रबल होती है. यही कारण है कि वे कुंडली मिलान को सुखी.

एक विवाह ऐसा भी

आयशा और सुदीप्तो ने 8 साल पहले प्रेम विवाह किया था. दोनों की जाति अलगअलग थी. लिहाजा, बहुत सारे विरोधों का सामना करना पड़ा. इन के मातापिता ने भी इन्हें नहीं अपनाया. अंतत: दोनों ने अपनी अलग दुनिया बसा ली. शादी के इतने वर्षों के बाद भी दोनों का प्रेम न सिर्फ बना हुआ है बल्कि पहले से भी ज्यादा बढ़ गया है. इतना ही नहीं, धीरेधीरे इन के मातापिता की भी समझ में बात आ गई कि दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं. शायद अरेंज्ड मैरिज होती तो वे इतने सुखी नहीं होते. अब वे लोग उन दोनों के साथ हैं. दोनों के विवाह में न कोई कुंडली मिली और न ग्रहों का निवारण हुआ. बस दोनों के दिल मिले. आपसी समझदारी और सही तालमेल की वजह से दोनों अपनी जिंदगी हंसीखुशी जी रहे हैं.

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