पल्ल्वी अपने बेटे चेतन के 12वीं कक्षा पास करने पर बहुत खुश थी, क्योंकि चेतन के अच्छे नंबर आए थे और उस का दाखिला भी मशहूर कालेज में हो गया था. लेकिन चेतन के कालेज शुरू होते ही मांबेटे के बीच दूरी बढ़ने लगी. चेतन कालेज और पढ़ाई में व्यस्त रहने लगा. जो खाली समय मिलता उस में दोस्तों से बातें करता या फिर टीवी देखता. घर में उस की मां भी हैं, वह इस बात को भूल सा गया. पहले पल्लवी पूरा दिन चेतन के काम में व्यस्त रहती थी, मगर अब खाली बैठी रहती हैं. चेतन के घर में रहते हुए भी उन्हें अकेलापन महसूस होता. वे जब भी चेतन से बात करने उस के कमरे में जातीं तो चेतन हमेशा एक ही जवाब देता कि कि मम्मी, मैं अभी थोड़ा बिजी हूं. थोड़ी देर बाद आप से बात करता हूं.

चेतन की बातें सुन कर पल्लवी पुरानी बातें याद करने लगती कि कैसे सुबह उठ कर उस के लिए टिफिन तैयार करती थी, उस की यूनीफौर्म, नाश्ता सब कुछ समय से पहले ही तैयार रखती ताकि उसे स्कूल के लिए देर न हो. उस के स्कूल से आने से पहले ही जल्दीजल्दी उस का पसंदीदा खाना तैयार करती ताकि बेटे को गरमगरम खाना खिला सके. शाम को कैसे दोनों बातें करते थे, कैसे साथ खाना खाते थे. मगर समय के साथ सब कुछ बदल गया.

1. पेरैंट्स में बढ़ता अकेलापन

आज पल्लवी की तरह बहुत से पेरैंट्स अकेलेपन की स्थिति से गुजर रहे हैं. आज इंटरनैट, मोबाइल व सोशल मीडिया ने युवाओं की जीवनशैली को इतना व्यस्त बना दिया है कि उन के पास अपने पेरैंट्स के लिए समय ही नहीं रहा. वे अपने कैरियर व दोस्तों में इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें अपने पेरैंट्स के अकेलेपन से कोई वास्ता नहीं रहा. ऐसे में पेरैंट्स के जीवन में खालीपन आने लगता है.

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जमशेदपुर की लालिका चौधरी कहती हैं, ‘‘मेरे पति और मेरे बेटे के बीच दूरी इतनी बढ़ गई है कि वे दोनों कईकई दिनों तक एकदूसरे से बात तक नहीं करते. आशुतोष जब छोटा था तब तो ठीक था, लेकिन जैसे ही कालेज जाने लगा बहुत बिजी रहने लगा. हमारे लिए उस के पास टाइम ही नहीं रहता. कालेज से आता तो अपने लैपटौप व फोन में ही व्यस्त रहता. शाम को दोस्तों के साथ घूमने निकल जाता. हम सोचते चलो कोई बात नहीं संडे को हमारे साथ समय बिताएगा, लेकिन संडे को वह काफी देर से सो कर उठता. हम कहीं बाहर चलने के लिए कहते तो मना कर देता. कभीकभी उस के इस व्यवहार पर मेरे पति को गुस्सा आ जाता और वे उसे डांट देते, जिस से घर का माहौल खराब हो जाता.’’

2. टैक्नोलौजी से बढ़ी दूरियां

आज हम फेस टू फेस बात करना पसंद नहीं करते, लेकिन हमारी फेसबुक पर टैग, पोस्ट व लाइक करने में पूरी रुचि होती है. भले ही टैक्नोलौजी हमें लोगों के पास ले आई हो, लेकिन उस ने हमें अपनों से दूर भी कर दिया है. हम अपने फोन में इतने व्यस्त रहते हैं कि पेरैंट्स से बात करने का समय ही नहीं मिलता. अब तो बच्चे मां से व्हाट्सऐप पर मैसेज कर के ही पूछते हैं कि मां खाना बन गया क्या? प्लीज बन जाए तो मेरे कमरे में ले आना या फिर व्हाट्सऐप पर मैसेज कर देना. मैं खुद ले आऊंगा. इस टैक्नोलौजी ने तो अब साथ बैठ कर खाना खाने की परंपरा को भी खत्म सा कर दिया है. अब बच्चे अपने कमरे में लैपटौप पर पिक्चर देखते हुए या फेसबुक पर गपशप करते हुए खाना खाना पसंद करते हैं. अगर उन्हें डांट कर अपने साथ खाना खिलाया जाए तो वे बेमन से खाते हैं. खाने की मेज पर एकदम शांत बैठे रहते हैं. उन्हें ऐसे बैठे देख कर पेरैंट्स सोचते हैं कि इस से तो अच्छा था कि अकेले ही खा लेते.

3. मां की बातें लगती हैं उबाऊ

जैसे ही बच्चे स्कूल से कालेज जाने लगते हैं उन्हें मां की बातें भी उबाऊ लगने लगती हैं. मां की चौइस अच्छी नहीं लगती है. मां अगर कह दें कि बेटा यह क्या पहन रखा है, वह शर्ट पहनो, जो हम ने तुम्हें बर्थडे पर दिलवाई थी तो तुरंत उलटा जवाब देते हैं कि मां, आप को फैशन की बिलकुल समझ नहीं है. वैसी शर्ट पहन कर भला कौन कालेज जाता है?

यह तो कुछ भी नहीं है, मां अगर घर से निकलते समय टिफिन पैक कर के दें तो तुरंत गुस्से में जवाब देते हैं कि अब मैं बड़ा हो गया हूं. हर वक्त मां को मौडर्न जमाने के बारे में बताते रहते हैं कि मां अब आप का जमाना नहीं रहा. यह मौडर्न जमाना है. आप के समय की चीजें पुरानी हो चुकी हैं. अब तो हाईटैक जमाना आ गया है. अब फोन व व्हाट्सऐप से ही पढ़ाई की जाती है. इसलिए आप अपने जमाने को अपने तक ही सीमित रखा करें.

4. जब अच्छे लगने लगते हैं हमउम्र

कई बार ऐसा भी देखा जाता है जब हमें कोई हमउम्र अच्छा लगने लगता है, तो हम हर समय उसी के साथ व्यस्त रहते हैं. अपने पेरैंट्स को भूल जाते हैं. घर आने पर भी फोन पर उसी से बातें करते हैं. उसी के बारे में सोचते रहते हैं.

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5. दोस्तों के लिए टाइम है, पैरेंटस के लिए नहीं

दिन भर दोस्तों के साथ रहने के बावजूद घर आने पर भी पैरेंट्स से बात करने के बजाय दोस्तों के साथ ही फोन पर लगे रहते हैं. देर रात तक दोस्तों के साथ चैट करते हैं, सुबह लेट उठते हैं फिर फटाफट तैयार हो कर कालेज के लिए भाग जाते हैं. मां कुछ भी बोलें तो कहते हैं कि मां अभी टाइम नहीं है, शाम को बात करेंगे. पेरैंट्स के लिए उन की शाम कब आएगी यह वे ही जानें.

ऐसा बिलकुल नहीं है कि इस अकेलेपन के लिए केवल युवा ही जिम्मेदार हैं. कहीं न कहीं पेरैंट्स भी ऐसी छोटीछोटी गलतियां कर बैठते हैं, जिन की वजह से इन के बीच दूरी बढ़ती जाती है. हम आज बच्चों के करीब तभी रह सकते हैं जब हम थोड़ा उन की तरह व्यवहार करें, उन्हें समझें.

6. कभी तुलना न करें

अकसर मातापिता अपने बच्चों से कहते रहते हैं कि हम जब तुम्हारी उम्र के थे तो सारा काम अकेले ही करते थे. इस तरह की बातें न करें. आप को यह बात समझनी होगी कि आप का समय अलग था, आज का समय अलग है. इस तरह से तुलना करने की वजह से बच्चे आप से दूर होने लगते हैं. वे आप की बात नहीं सुनते. हर समय अपने में व्यस्त रहने लगते हैं. फिर उन के इस तरह के व्यवहार के कारण आप को अकेलापन महसूस होने लगता है.

7. प्रतिक्रिया से बिगड़ती है बात

बच्चों के कुछ गलत करने पर मातापिता तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं. उन्हें डांटने लगते हैं. आप जल्दबाजी में ऐसा बिलकुल न करें, प्यार से समझाएं. अगर आप उन के साथ सख्ती से पेश आएंगे, तो वे आप से दूर होने लगेंगे.

8. थोड़ी स्वतंत्रता दें

पेरैंट्स ऐसा सोचते हैं कि बच्चों को स्वतंत्रता दी तो वे बिगड़ जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं है. आप उन्हें जितना नियंत्रण में रखेंगे वे आप से उतना ही दूर होते जाएंगे.

9. खुद को भी बदलें

आज हर चीज तेजी से बदल रही है, इसलिए आप भी खुद को थोड़ा बदलने की कोशिश करें. आप के बच्चे आप को जिस चीज में सुधार लाने के लिए कहें, उस में थोड़ा बदलाव लाएं, बच्चों को अच्छा लगेगा. अकसर ऐसा होता है कि अगर घर में बच्चे के दोस्त आए हैं तो पेरैंट्स जिस ड्रैस में होते हैं, उसी में उन के सामने चले जाते हैं. ऐसा न करें. पेरैंट्स के इस तरह से आने से हो सकता है कि उन के बेटे के दोस्त बाद में उस का मजाक उड़ाएं और फिर इस वजह से आप का बेटा घर पर अपने दोस्तों को बुलाना ही बंद कर दें.

आप ने घर पर कैसी भी ड्रैस क्यों न पहनी हो. लेकिन बच्चे के दोस्त के सामने अच्छे कपड़ों में ही जाएं. कई बार बच्चे चाहते हैं कि आप भी उस के दोस्त की मां की तरह जींस पहनें. अगर आप मोटी हैं और आप के ऊपर वैस्टर्न कपड़े अच्छे नहीं लगते तो अपनी पर्सनैलिटी में सुधार लाएं. माना कि आप अपना मोटापा तुरंत कम नहीं कर सकतीं, लेकिन आप ऐसी ड्रैस तो पहन ही सकती हैं जिस में आप का बच्चा आप को अपने दोस्तों से मिलवाने में हिचकिचाए नहीं.

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10. क्या हो बच्चों की भूमिका

अगर आप पढ़ाई के सिलसिले में दूसरे शहर में हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि आप के और आप के घर वालों के बीच दूरी न बढ़े. आप उन से दूर हैं तो क्या हुआ? आप उन से फोन से जुड़े रहें. उन के फोन का जवाब दें. कई युवाओं के साथ यह भी देखा गया है कि वे कैरियर की टैंशन में इतने परेशान रहते हैं कि पेरैंट्स से उन का लगाव कम होने लगता है. वे हर समय अपने कैरियर की चिंता करते रहते हैं. आप को यह बात समझनी जरूरी है कि कैरियर अपनी जगह है और घर वाले अपनी जगह. कुछ बच्चे जब छुट्टियों में घर आते हैं तो उस वक्त भी दोस्तों के साथ ही व्यस्त रहते हैं, लेकिन आप ऐसा न करें. आप ज्यादा से ज्यादा समय पेरैंट्स के साथ बिताएं, उन से बातें करें, उन के साथ शौपिंग पर जाएं, उन के लिए सरप्राइज प्लान करें.

अगर घर में अपने पेरैंट्स के साथ रहते हैं तो अपनी पढ़ाई, दोस्त व कालेज से थोड़ा समय निकाल कर अपने घर वालों के साथ बिताएं. कालेज में हैं तो एक बार फोन कर पेरैंट्स का हालचाल पूछ लें. अपने लैपटौप पर अकसर फिल्म देखते रहते हैं. किसी दिन पेरैंट्स को साथ ले कर उन की पसंदीदा फिल्म देखें. इस तरह पेरैंट्स और बच्चों के बीच दूरी नहीं बनेगी और रिश्तों में मिठास बनी रहेगी.

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