सुरेखा और रीना अच्छी दोस्त थीं, दोनों अपनी हर बात एक दूसरे से शेयर करने लगी थी. रीना ने सुरेखा को बताया था कि उसके मायके में उसकी माँ और भाई भाभी के झगडे चलते रहते हैं जिनसे वह बहुत आहत रहती है. रीना को लगता था कि हर बात बार बार पति को क्या बतानी, अपनी दोस्त से ही सब कह कर मन का गुबार निकाल कर दिल हल्का कर लेती. तीन साल तो दोनों में बहुत  गहरी दोस्ती रही पर धीरे धीरे बहुत छोटी छोटी बातों में एक दूरी आने लगी,एक दिन किसी पड़ोसन ने बेवजह रीना से झगड़ा किया, सुरेखा बिना कारण जाने ही रीना को नीचे दिखाने के लिए आकर खड़ी हो गयी और कहने लगी ,''अरे, इसकी किसी से नहीं बनेगी, इसकी तो माँ  और भाई के झगडे ख़तम नहीं होते, इसने झगडे करना ही तो सीखा है.''

हैरान रह गयी रीना, आँखें छलछला उठीं, वह वहां से चुपचाप हट गयी, लगा कि ये क्या गलती कर दी, किसी को अपना दोस्त समझ कर दिल का दुःख शेयर कर लिया तो क्या यह इतना बड़ा गुनाह हो गया कि आज सबके सामने वो दोस्त उसी बात को सामने रख अपमान कर रही है. उसने कान पकडे कि कभी किसी को दोस्त समझने की गलती नहीं करेगी, इस बात को बीते दस साल हो गए हैं, रीना कहती हैं,  ‘’अपने मायके की टेंशन दोस्त से शेयर करने को जो गलती कभी की थी, उससे सबक यही मिला है कि आज के दोस्त कब दुश्मन बन जाएँ, कब आपकी ही बात को आपके खिलाफ इस्तेमाल करेंगें, पता ही नहीं चलेगा. तबसे कोई कितना भी अच्छा दोस्त बन जाए, मैंने अपने दुःख कभी किसी से वैसे शेयर नहीं किये जैसे कभी सुरेखा से शेयर किये थे.''

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