एक विराट संस्कृति और विरासत सहेजे हमारी राजधानी दिल्ली देश और दुनिया के तमाम पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करती है. यह आकर्षण सिर्फ मेट्रो के चलते नही हैं बल्कि यहां कि हस्तलिपि, कला से लेकर मुगलकालीन इमारतें तक पर्यटन को बढ़ावा देती है. यहां के मंदिरों में भी सालभर रौनक दिखाई देती है. अगर संस्कृति और विरासत से इतर होकर बात करें तो खेलकूद और खानपान के मामले में भी दिल्ली गजब है.

ये है राजधानी के प्रसिद्ध पर्यटन केन्द्र

अक्षरधाम मन्दिर

अक्षरधाम मन्दिर दिल्ली की संस्कृति का एक अनोखा तीर्थ है. इसे 26 दिसम्बर 2007 में गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिका‌र्ड्स में शामिल किया गया. आप यहां शाम के समय एक दर्शनीय म्युजिकल फाउंटेन शो देख सकते हैं जिसमें भारतीय दर्शन के अनुरूप जन्म, जीवनकाल और मृत्यु चक्र का उल्लेख किया जाता है. यह मंदिर के साठ एकड़ के हरे-भरे लॉन, बाग और कांस्य की उत्कृष्ट प्रतिमा में भारत के उन बाल-वीरों, वीर योद्धाओं, राष्ट्रीय देशभक्तों और महान महिला विभूतियों का सम्मान किया गया है, जो मूल्यों और चरित्र के प्रेरणास्रोत रहे हैं.

दिल्ली हाट, आईएनए

दिल्ली हाट आपको भरतीय कला और विरासत की जादुई दुनिया में ले जाती है, जहां हस्तशिल्प, भोजन और सांस्कृतिक गतिविधियों का शानदार परिदृश्य मौजूद होता है. यहां आपको हस्तशिल्प, भोजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम सब देखने को मिलेगी. यहां स्टालों पर विभिन्न राज्यों और संघशासित क्षेत्रों के बहुत अच्छे-अच्छे स्वाद वाले पकवान लिए जा सकते हैं.

बहाई मंदिर

बहाई मंदिर को लोट्स टेम्पल भी कहते है. कमल के फूल के आकार का यह मंदिर पूरे विश्व में बने सात बड़े मंदिरों में से अंतिम बना मंदिर है. कमल की खिली हुई पंखुड़ियों के चारों ओर पानी के नौ तालाब है, जो प्राकृतिक प्रकाश में प्रकाशमान होते हैं.  गोधूलि वेला में रोशनी में नहाया बहाई मंदिर शानदार दिखाई देता है.

बिरला मंदिर

दिल्ली के प्रमुख मंदिरों और प्रमुख पर्यटन केन्द्र में से एक लक्ष्मी नारायण मंदिर को बिरला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.इसे उद्योगपति जी. डी. बिरला ने साल 1938 में बनवाया था.यह मंदिर लक्ष्मी (समृद्धि की देवी) और नारायण (संरक्षक) को समर्पित है. इस मंदिर का उद्घाटन महात्मा गांधी ने इस शर्त पर किया गया था कि इस मंदिर में सभी जाति के लोगों को प्रवेश  मिलेगा.

हुमायुं का मकबरा

यह शानदार मकबरा भारत में मुग़ल वास्तुकला का पहला महत्वपूर्ण उदाहरण है. इसका निर्माण हुमायूं की मृत्यु के बाद 1565 ई. में उसकी ज्येष्ठ विधवा बेगा बेगम ने करवाया था. चाहरदीवारी के भीतर बने चौरस बागीचे (चाहरबाग) देखने लायक हैं नहरों के साथ बने पैदल मार्ग और बीचों-बीच स्थापित एकदम सटीक अनुपात वाले मकबरे के ऊपर दोहरे गुम्बद शोभायमान हैं. चाहरदीवारी के भीतर मुग़ल शासकों की कई कब्रें हैं.

इंडिया गेट

नई दिल्‍ली के मध्‍य चौराहे में 42 मीटर ऊंचा इंडिया गेट है जो मेहराबदार “आर्क-द ट्रायम्‍फ” के रूप में है. यहां उन 70,000 भारतीय सैनिकों का स्‍मारक है. जिन्‍होंने विश्‍व युद्ध के दौरान ब्रिटिश आर्मी के लिए अपनी जान गंवाई थी. इस स्‍मारक में अफगान युद्ध-1919 उत्‍तर-पश्चिम पाकिस्‍तान में मारे गए 13516 से अधिक ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के नाम भी अंकित है. इंडिया गेट की आधारशिला 1921 में माननीय डयूक ऑफ कनॉट ने रखी थी और इसे एडविन ल्‍यूटन ने डिजाइन किया था. अन्‍य स्‍मारक अमर ज्‍योति भारत स्‍वतंत्रता के काफी बाद स्‍थापित की गई थी. मेहराब के नीचे यह अमर-ज्‍योति दिन-रात जलती रहती है, जो दिसंबर 1971 के भारत पाक युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद दिलाती है. सरात में इंडिया गेट को फ्लडलाइट से जगमगाया जाता है जबकि समीपवर्ती फव्वारों को रोशनियों से जगमगाते हैं.

जामा मस्जिद

भारत की सबसे बड़ी मस्जिद पुरानी दिल्‍ली में है. इसके प्रांगण में 25,000 लोग बड़ी आसानी से आ सकते है. मुगल सम्राट शाहजहां ने इसका निर्माण साल 1644 में शुरू किया था. इस मस्जिद में तीन गेट चार मीनारें और 40 मीटर की लम्‍बी छोटी मीनारें है जो लाल बालुई पत्थर और सफेद संगमरमर से बनी है.

जंतर मंतर

जयपुर के महाराजा जयसिंह ने इस वेधशाला का निर्माण कराया था उन्‍होंने उज्‍जैन, वाराणसी और मथुरा मे भी इसी तरह की और वेधशालाओं का निर्माण कराया था. जयसिंह को सही माप लेने के लिए मौजूदा अंतरीक्षीय उपकरण काफी छोटे लगे इसलिए उन्‍होंने बड़े और अधिक सही उपकरणों को निर्मित कराया था.

लोधी का मकबरा

पुराना ओल्‍ड लेडी वैलिन्‍गटन पार्क जिसे अब लोदी गार्डन के नाम के नाम से जाना जाता है. यह अष्‍टभुजाकार मकबरा सैयद और लोदीकालीन स्मारक हैं जिसमें गुम्बद, मस्जिदें और पुल हैं. इसका शीश और बड़ा गुम्‍बद वर्गाकार और किनारों पर कंगूरे और अग्रभाग बने होने के कारण मकबरा दो मंजिला होने का भ्रम पैदा करता है.

संसद भवन

स्‍तंमावली भवन है. इसमें कई सचिवालय कार्यालय,समितियों के कक्ष और एक उत्‍कृष्‍ट पुस्‍तकालय है. इम्पीरियल शैली में निर्मित इस भवन में एक खुला प्रांगण और 144 स्‍तंभ है. लकड़ी की दीवारों और तीन अर्धवर्तुल भवनों के साथ गुम्‍बदाकार वर्तुल केंद्रीय हाल जिसका उपयोग राज्‍य सभा और लोक सभा की बैठकों के लिए किया जाता है.

पुराना किला

यह किला काफी निर्जन स्‍थान पर है जहां चारों ओर हरियाली है. दिल्‍ली इन्‍द्रप्रस्‍थ के कई अति प्राचीन शहरों के अवशेष पर निर्मित पुराना किला लगभग दो किलोमीटर की परिधि में लगभग आयताकार में है. इसकी मोटी प्राचीरों को कंगूरों द्वारा सुसज्जित किया गया इसमें तीन मार्ग है जिसके दोनों ओर बुर्ज लगाए गए हैं. इसके चारों तरफ खंदक है जो यमुना नदी से जुड़ी है जो किला के पूर्वी ओर बहती है. उत्‍तरी द्वार को तलाकी दरवाजा या परित्‍यक्‍त द्वार कहते हैं. जो पारंपरिक इस्‍लामिक उत्‍कीर्ण मेहराब के साथ हिन्‍दू छतरियों और ब्रेकटों का समिश्रण है जबकि दक्षिणी दरवाजे को हुमायूँ दरवाजा कहते हैं ये भी इसी तरह बना है.

कुतुब मीनार

यह मीनार भारत में ही नहीं बल्कि विश्‍व की बेहतरीन स्‍मारक है इसे दिल्‍ली के अंतिम हिन्‍दू शासक की पराजय के बाद 1193 में कुतुबुद्धीन ऐबक ने 73 मीटर ऊंची विजय मीनार के रूप में इसे बनवाया था. इस पांच मंजिलें इमारत में हर मंजिल में एक बालकनी है और पहली तीन मंजिलें लाल बलुआ पत्‍थर से निर्मित है और चौथी तथा पांचवीं मंजिलें मार्बल और बलुआ पत्‍थरों से निर्मित हैं. मीनार के निकट भारत की पहली क्‍वातुल-इस्‍लाम मस्जिद है. यह 27 हिन्‍दू मंदिरों को तोड़कर इसके अवशेषों से निर्मित की गई है.इस मस्जिद के प्रांगण में एक 7 मीटर ऊँचा लौह-स्‍तंभ है. माना जाता है कि यदि आप इसके पीछे पीठ लगाकर इसे घेराबंद करते है तो आपकी इच्‍छा होगी पूरी हो जाएगी.

लाल किला

इस विशाल लाल किला की लाल बालुई पत्‍थर की दीवारें जमीन से 33 मीटर ऊंची हैं जो मुगल शासकों की राजसी शक्ति और प्रताप की याद दिलाती है. 1638 में बनी इस प्राचीर का निर्माण मुख्‍यत: आक्रमणकारियों से बचाने के लिए किया गया था. अब यह शहर के शोर शराबे से भी बचाती हैं. यहां स्‍वतंत्रता दिवस पर हजारों की संख्‍या में लोग एकत्रित होते हैं. इसके अन्दर कई महत्‍वपूर्ण इमारतें है जैसे कि ड्रम हाउस, दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम, मोतिया मस्जिद, शाही हमाम तथा रंग महल बने हुए हैं.

सफ़दरजंग का मकबरा

हुमायूं के मकबरे की परंपरा में सफदरजंग का मकबरा दिल्‍ली का अंतिम चारों तरफ से बंद बागीचों वाला मकबरा है. यहां पर साल 1753-54 में मुगल शासक मोहम्‍मद शाह के अधीन रहे अवध के नवाब सफदरजंग की कब्रगाह है.

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