शालिनी खरे, (भोपाल)

कविता.....

ईश्वर सी साकार हैं तू, गंगा सी सदा बहती है

हर पल ईश्वर सी साकार हैं तू, मेरी पतवार है तू

शब्दों को न जानती न पहचानती, फिर भी ज्ञान का भंडार है तू

हमारी  पाठशाला है तू, धरा सी स्थिर है तू

अपनी तीखी वाणी से, परतें खोलती हैं तू

कभी मधु सी मीठी हो, अमृत घोलती है तू

सब कुछ बदल गया, पर न बदली हैं मां तू

हर दर्द में मुस्कराती, हम सब के ख्वाब संजोती  है तू

बच्चें कितना भी दुख दे, हंस कर सह लेती हैं तू

हर तूफान  के आगे, अविचल,अडिग खड़ी

रहती  हैं तू ।।

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लघुकथा

"एक साथ"

शारदा ने फोन पर मां से ढ़ेर सारी बातें की. आज बेटे ने उसे बहुत सुन्दर और प्यारी भेंट भी दी. पूरा दिन घूमने का प्लान था, पति विपिन भी अपनी मां से बात कर रहे थे. फोन रख शारदा से बोले "मैं तुम लोगें के साथ नहीं आ पाऊंगा ,क्योंकि मुझे मां के साथ मंदिर जाना हैं"

ये सुनकर शारदा गुस्से से बोली,"मैंने भी तो अपनी मां को मना कर दिया आश्रम सत्संग में जाने को तो क्या आप नहीं कर सकते?"

पर विपिन न माना. मांऔर पापा की बात सुन बेटे ने कहा, "मां, क्यों न हम यह दिन कुछ इस तरह से मनाये, पापा,आप दादी को ले आए और मैं अभी आया!" "अरे, तू कहा जा रहा हैं?"

"अरे मां, तीनों मातृशक्तिया एक साथ मदर्स डे मनाएंगी न!" शारदा मुस्कुरा दी.

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