Serial Story: हृदय परिवर्तन (भाग-2)

पहला भाग पढ़ने के लिए- हृदय परिवर्तन भाग-1

राधिका को इस रिश्ते में कोई खामी नजर नहीं आई. वजह सुनंदा का खूबसूरत होना था. रही 8 वर्षीय बच्ची की मां होने की बात, तो थोड़ी हिचक के साथ विनय ने इसे भी स्वीकार कर लिया. सुनंदा वास्तव में खूबसूरत थी. मगर पता नहीं क्यों मैं इस रिश्ते से खुश नहीं था. मेरा मानना था कि विनय को एक घर संभालने वाली साधारण महिला से शादी करनी चाहिए थी. मजबूरी न होती तो शायद ही सुनंदा इस रिश्ते के लिए तैयार होती क्योंकि दोनों के व्यक्तित्व में जमीनआसमान का अंतर था. जुगाड़ से क्लर्की की नौकरी पाने वाला विनय कहीं से भी सुनंदा के लायक नहीं था. मुझे सुनंदा पर तरस भी आया कि काश उस का पति असमय न चल बसा होता तो उस का एक ऐश्वर्यपूर्ण जीवन होता.  विनय मेरा दोस्त था. पर जब मैं मानवता की दृष्टि से देखता था तो लगता था कि कुदरत ने सुनंदा के साथ बहुत नाइंसाफी की. उस की बेटी भी निहायत स्मार्ट व सुंदर थी, जबकि विनय की पहली पत्नी से पैदा दोनों संतानों में वह आकर्षण न था. अकेली स्त्री के लिए जीवन काटना आसान नहीं होता सो सुनंदा के मांबाप ने सामाजिक सुरक्षा के लिए सुनंदा को विनय के साथ बांधना मुनासिब समझा.

सुनंदा ने अतीत को भुला दिया और विनय को अपनाने में ही भलाई समझी. विनय उस के रूपरंग का इस कदर दीवाना हो गया कि न तो उसे बच्चों की सुध रही न ही रिश्तदारों की. सब से कन्नी काट ली. और तो और सुनंदा के रूपसौंदर्य को ले कर इस कदर शंकित हो गया कि उसे छोड़ कर औफिस जाने में भी गुरेज करता. मैं अब उस के घर कम ही जाता. मुझे लगता विनय को मेरी मौजूदगी मुनासिब नहीं लगती. वह हर वक्त सुनंदा के पीछे साए की तरह रहता. उस के रंगरूप को निहारता. सुनंदा अपने पति की इस कमजोरी को भांप  गई. फिर क्या था अपने फैसले उस पर थोपने लगी. विनय के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से सब से ज्यादा परेशान अमन और मोनिका थे. वे दोनों एकदम से अलगथलग पड़ गए. विनय कहीं से आता तो सीधे सुनंदा के कमरे में जा कर उसे आलिंगनबद्ध कर लेता. बच्चों का हालचाल लेना महज औपचारिकता होती.

सुनंदा के रिश्ते में शादी थी. विनय व सुनंदा अपनी बेटी के साथ वहां जा रहे थे. अमन भी जाना चाहता था. उस ने दबी जबान से जाने की इच्छा जाहिर की तो विनय ने उसे डांट दिया, ‘‘जा कर पढ़ाई करो. कहीं जाने की जरूरत नहीं.’’ अमन उलटे पांव अपने कमरे में आ कर अपनी मां की तसवीर के सामने सुबकने लगा. तभी राधिका आ गई. उस को समझाबुझा कर शांत किया. विनय वही करता जो सुनंदा कहती. विनय का सारा ध्यान सुनंदा की बेटी शुभी पर रहता. बहाना यह था कि वह बिन बाप की बेटी है. विनय सुनंदा के रंगरूप पर इस कदर फिदा था कि उसे अपने खून से उपजे बच्चों का भी खयाल नहीं था. अमन किधर जा रहा है, क्या कर रहा है, उस की कोई सुध नहीं लेता. बस बच्चों के स्कूल की फीस भर देता, उन की जरूरत का सामान ला देता. इस से ज्यादा कुछ नहीं. अमन समझदार था. पढ़ाईलिखाई में अपना वक्त लगाता. थोड़ाबहुत भावनात्मक सहारा उसे अपनी बूआ राधिका से मिल जाता, जो विनय की उपेक्षा से उपजी कमी को पूरा कर देता.

अब विनय अपने पुश्तैनी मकान को छोड़ कर शारदा के मकान में रहने लगा. यह वही मकान था जिसे शारदा की मां अपने मरने के बाद अपने नाती अमन के नाम कर गई थीं. पुश्तैनी मकान में संयुक्त परिवार था, जहां उस की निजता भंग होती. भाईभतीजे उस के व्यवहार में आए परिवर्तन का मजाक उड़ाते. अब जब वह अकेले रहने लगा तो सुनंदा के प्रति कुछ ज्यादा ही स्वच्छंद हो गया. राधिका कभीकभार बच्चों का हालचाल लेने आ जाती. मुझे अमन से विनय का हालचाल मिलता रहता. विनय के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से मैं भी आहत था. सोचता उसे राह दिखाऊं मगर डर लगता कहीं अपमानित न होना पड़े. अमन से पता चला कि सुनंदा मां बनने वाली है तो विश्वास नहीं हुआ. 2 बच्चे पहली पत्नी से तो वहीं सुनंदा से एक 8 वर्षीय बेटी. और पैदा करने की क्या जरूरत थी? अमन इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने चला गया. मोनिका बी.ए. में थी. वह खुद 45 की लपेट में था. ऐसे में बाप बनने की क्या तुक? यहीं से मेरा मन उस से तिक्त हो गया. मुझे दोनों घोर स्वार्थी लगे. मैं ने राधिका से पूछा. पहले तो उस ने आनाकानी की, बाद में हकीकत बयां कर दी. कहने लगी कि इस में मैं क्या कर सकती हूं. यह उन दोनों का निजी मामला है. उस ने पल्लू झाड़ लिया, जो अच्छा न लगा. कम से कम विनय को समझा तो सकती थी. दूसरी शादी करते वक्त मैं ने उसे आगाह किया था कि यह शादी तुम दोनों सिर्फ एकदूसरे का सहारा बनने के लिए कर रहे हो. तुम्हें अकेलेपन का साथी चाहिए, वहीं सुनंदा को एक पुरुष की सुरक्षा. जहां तुम्हारे बच्चों की देखभाल करने के लिए एक मां मिल जाएगी, वहीं सुनंदा की बेटी को एक बाप का साया. विनय मुझ से सहमत था. मगर अचानक दोनों में क्या सहमति बनी कि सुनंदा ने मां बनने की सोची?

सुनंदा ने एक लड़के को जन्म दिया. वह बहुत खुश थी. विनय की खुशी भी देखने लायक थी मानों पहली बार पिता बन रहा हो. राधिका को सोने की अंगूठी दी. वह बेहद खुश थी. कुछ दिनों के बाद एक होटल में पार्टी रखी गई. मैं भी आमंत्रित था. रिश्तेदार पीठ पीछे विनय की खिल्ली उड़ा रहे थे मगर वह इस सब से बेखबर था. सुनंदा से चिपक कर बैठा अपने नवजात शिशु को खेला रहा था. अमन और मोनिका उदास थे. उदासी का कारण था उन की तरफ से विनय की बेरुखी. रुपयापैसा दे कर बच्चों को बहलाया जा सकता है, मगर उन का दिल नहीं जीता जा सकता. अमन और मोनिका को सिर्फ मांबाप का प्यार चाहिए था. मां नहीं रहीं, मगर पिता तो अपने बच्चों को भावनात्मक संबल दे सकता था. मगर इस के उलट पिता अपनी नई पत्नी के साथ रासरंग में डूबा था. जबकि दूसरी शादी करने के पहले उस ने अमन व मोनिका को विश्वास में लिया था. अब उन्हीं के साथ धोखा कर रहा था. पूछने पर कहता कि मैं ने दोनों की परवरिश में कया कोई कमी रख छोड़ी है? उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाया और अब क्व10 लाख दे कर अमन को इंजीनियरिंग करवा रहा हूं.

अब विनय से कौन तर्क करे. जिस का जितना बौद्धिक स्तर होगा वह उतना ही सोचेगा. राधिका भी दोनों बच्चों की तरफ से स्वार्थी हो गई थी. परित्यक्त राधिका को विनय से हर संभव मदद मिलती रहती सो वह अमन और मोनिका में ही ऐब ढूंढ़ती.मेरे जेहन में एक बात रहरह कर शूल की तरह चुभती कि आखिर सुनंदा ने एक बेटे की मां बनने की क्यों सोची? अमन मौका देख कर मेरे पास आया और व्यथित मन से बोला, ‘‘क्या आप को यह सब देख कर अच्छा लग रहा है? यह मेरे साथ मजाक न हीं कि इस उम्र में मेरे पिता बाप बने हैं.’’ गुस्सा तो मुझे भी आ रहा था. मैं ने उस के मुंह पर विनय पर कोई टीकाटिप्पणी करने से बचने की कोशिश की पर ऐसे समय मुझे शारदा की याद आ रही थी. वह बेचारी अगर यह सब देख रही होती तो क्या बीतती उस पर. किस तरह से उस के बच्चों को बड़ी बेरहमी के साथ उस का ही बाप हाशिये पर धकेल रहा था. कैसे पुरुष के लिए प्यारमुहब्बत महज एक दिखावा होता है. शारदा से उस ने प्रेम विवाह किया था. कैसे इतनी जल्दी उसे भुला कर सुनंदा का हो गया. तभी 2 बुजुर्ग दंपती मेरे पास आ कर खड़े हो गए. उन की बातचीत से जाहिर हो रहा था कि सुनंदा के मांबाप हैं. बहुत खुश सुनंदा की मां अपने पति से बोली, ‘‘अब सुनंदा का परिवार संपूर्ण हो गया. 1 लड़का 1 लड़की.’’

तो इसका मतलब विनय के परिवार से अमन और मोनिका हटा दिए गए, मेरे मन में यह विचार आया. घर आ कर मैं ने गहराई से चिंतनमनन किया तो पाया कि सुनंदा द्वारा एक बेटे की मां बनना विनय के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने का जरीया था. ऐसे तो विनय की 2 संतानें और सुनंदा की 1. लेकिन आज तो विनय उस के रूपजाल में फंसा हुआ है, कल जब उस का अक्स उतर जाएगा तब वह क्या करेगी? हो सकता है वह अपने दोनों बच्चों की तरफ लौट जाए तब तो वह अकेली रह जाएगी. यही सब सोच कर सुनंदा ने एक पुत्र की मां बनने की सोची ताकि पुत्र के चलते विनय खून के रिश्ते से बंध जाए. साथ ही पुत्र के बहाने धनसंपत्ति में हिस्सा भी मिलेगा वरना अमन और मोनिका ही सब ले जाएंगे, उस के हिस्से में कुछ नहीं आएगा. औसत बुद्धि का विनय सुनंदा की चाल में आसानी से फंस गया यह सोच कर मुझे उस की अक्ल पर तरस आया.

अमन ने बी.टैक कर के अपने पसंद  की लड़की से शादी कर ली, जान कर विनय ने उस से बात करना छोड़ दिया. वहीं अमन का कहना था, ‘‘जब उन्हें हमारी परवाह नहीं तो हम क्यों उन की परवाह करें. क्या दूसरी शादी उन्होंने हम से पूछ कर की थी? कौन संतान चाहेगी कि उस के हिस्से का प्रेम कोई और बांटे?’’ ‘‘ऐसा नहीं कहते. उन्होंने तुम्हें पढ़ायालिखाया,’’ मैं बोला. ‘‘पढ़ाना तो उन्हें था ही. पढ़ा कर उन्होंने हमारे ऊपर कौन सा एहसान किया है? नानी हमारे नाम काफी रुपयापैसा छोड़ गई थीं. आज भी पापा जिस मकान में रहते हैं वह मेरी नानी का है और मेरे नाम है.’’ ‘आज के लड़के काफी समझदार हो गए हैं. उन्हें बरगलाया नहीं जा सकता,’ यही सोच कर मैं ने ज्यादा तूल नहीं दिया. मोनिका की शादी कर के विनय पूरी तरह सुनंदा का हो कर रह गया. न कभी अमन के बारे में हाल पूछता न ही मोनिका का. समय बीतता रहा. विनय ने सुनंदा के लिए एक फ्लैट खरीदा. फिर वहीं जा कर रहने लगा. अमन को पता चला तो बनारस आया और अपने मकान की चाबी ले कर दिल्ली लौट गया. विनय ने उसे काफी भलाबुरा कहा. खिसिया कर यह भी कहा कि पुश्तैनी मकान में उसे फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. अमन ने उस की बात का कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि वह जानता था कि यह उतना आसान नहीं जितना पापा सोचते हैं.

सुनंदा की लड़की भी शादी योग्य हो गई थी. सुनंदा उस की शादी किसी अधिकारी लड़के से करना चाहती थी, जबकि विनय उतना दहेज दे पाने में समर्थ नहीं था. बस यहीं से दोनों में मनमुटाव शुरू हो गया. सुनंदा उसे आए दिन ताने मारने लगी. कहती, ‘‘अमन को पढ़ाने के लिए 10 लाख खर्च कर दिए वहीं मेरी बेटी की शादी के लिए रुपए नहीं हैं?’’ ‘‘ऐसी बात नहीं है. फ्लैट खरीदने के बाद मेरे पास 10 लाख ही बचे हैं. 35 लाख कहां से लाऊं?’’

‘‘अमन से मांगो,’’ सुनंदा बोली.

‘‘बेमलतब की बात न करो. मैं ने तुम्हारे लिए उस से अपना रिश्ता हमेशा के लिए खत्म कर लिया है.’’

‘‘मेरे लिए?’’ सुनंदा ने त्योरियां चढ़ाईं, ‘‘यह क्यों नहीं कहते दो पैसे आने लगे तो तुम्हारे बेटे के पर निकल आए?’’

‘‘कुछ भी कह लो. मैं उस से फूटी कौड़ी भी मांगने वाला नहीं.’’

‘‘ठीक है न मांगो. पुश्तैनी मकान बेच दो.’’

‘‘विनय को सुनंदा की यह मांग जायज लगी. वैसे भी संयुक्त परिवार के उस मकान में अब रहने को रह नहीं गया था. अमन को भनक लगी तो भागाभागा आया.’’ ‘‘मकान बिकेगा तो सब को बराबरबराबर हिस्सा मिलेगा,’’ अमन विनय से बोला.

‘‘सब का मतलब?’’

‘‘मोनिका को भी हिस्सा मिलेगा.’’

‘‘मोनिका की शादी में मैं ने जो रुपए खर्च किए उस में सब बराबर हो गया.’’ ‘‘आप को कहते शर्म नहीं आती पापा? मोनिका क्या आप की बेटी नहीं थी, जो उस की शादी का हिसाब बता रहे हैं?’’‘‘तुम दोनों के पास मकान है.’’ ‘‘वह मकान मेरी नानी का दिया है. यह मकान मेरे दादा का है. कानूनन इस पर मेरा हक भी है. बिकेगा तो मेरे सामने. हिसाब होगा तो मेरे सामने,’’ अमन का हठ देख कर सामने तो सुनंदा कुछ नहीं बोली, मगर जब विनय को अकेले में पाया तो खूब लताड़ा, ‘‘बहुत पुत्रमोह था. मिल गया उस का इनाम. मेरे बेटेबेटी के मुंह का निवाला छीन कर उसे पढ़ायालिखाया, बड़ा आदमी बनाया. अब वही आंखें दिखा रहा है.’’ ‘‘मैं ने किसी का निवाला नहीं छीना. वह भी मेरा ही खून है.’’

‘‘खून का अच्छा फर्ज निभाया,’’ सुनंदा ने तंज कसा.

‘‘बेटी तुम्हारी है मेरी नहीं,’’ विनय की सब्र का बांध टूट गया.

आगे पढ़िए- क्या सुनंदा अपने सौतेले बच्चों को मां जैसा प्यार दे पाई…

 

Serial Story: धोखा (भाग-2)

दूसरे दिन सुबह जब सब नाश्ता कर रहे थे तो रश्मि ने रोहन से कहा, ‘‘सुनिए, मेरे खयाल में अब तो काफी दिन हो चुके हैं, अगर शालिनी का काम बाकी है तो वह किसी गर्ल्स होस्टल में इंतजाम कर लेगी?’’

‘‘क्यों ऐसी भी क्या जल्दी है?’’ रोहन ने कहा.

‘‘बात कुछ नहीं बस बच्चों के ऐग्जाम सिर पर हैं… उन की पढ़ाई नहीं हो पा रही… फिर मेहमान कुछ दिन के ही अच्छे होते हैं.’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो रश्मि? क्या शालिनी से यह सब कहते ठीक लगेगा? फिर एक तो वह तुम्हारी सहेली है… इस नए शहर में कहां जाएगी?’’

‘‘कहीं भी जाए या कहीं भी इंतजाम करे यह हमारी सिरदर्दी नहीं,’’ रश्मि ने कुछ झल्ला कर कहा.

‘‘ठीक है कुछ दिन और देखो या तो वह कोई इंतजाम कर लेगी या फिर मैं  ही उस का कोई इंतजाम कर दूंगा. तुम परेशान न हो,’’ रोहन उसे दिलासा दे कर औफिस चला गया.  रोहन का सारा दिन उधेड़बुन में बीता. अब उसे शालिनी का साथ अच्छा लगने लगा था. वह उस के बिना नहीं रहना चाहता था, परंतु रश्मि का क्या इलाज किया जाए? बहुत सोचने के बाद रोहन ने एक उपाय सोचा. उस ने शहर से बाहर बनी नई कालोनी में एक मकान किराए पर लिया और उस में शालिनी को शिफ्ट कर दिया.

एक बार को शालिनी हिचकिचाई. कहा, ‘‘रोहन, क्या यह ठीक होगा?’’

‘‘देखो शालिनी तुम्हारा कोई नहीं है और अब न ही मैं तुम्हारे बिना रह सकता हूं. तुम बताओ क्या तुम मेरे बिना रह पाओगी? इतने दिन साथ गुजारने के बाद क्या हम दोनों को एकदूसरे की आदत नहीं हो गई है?’’

‘‘यह तो ठीक है, परंतु रश्मि और बच्चे. ऊपर से यह समाज क्या हमें जीने देगा?’’ शालिनी कुछ सोचते हुए बोली.

‘‘देखो शालिनी अब मेरीतुम्हारी बात बहुत बढ़ गई है. अब न तो मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं और न ही तुम्हारे बिना रह सकता हूं. तुम्हारी तो तुम ही जानो पर मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम्हारे विचार भी यही हैं.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, परंतु रश्मि मेरी सहेली है और उस के साथ यह अन्याय होगा.’’

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‘‘तुम्हें अब सिर्फ अपने और मेरे बारे में सोचना है शालिनी,’’ रोहन ने बात खत्म करते हुए कहा, ‘‘अब देखो इस शहर में कितने ही लोगों से तुम्हें मिलवा दूंगा, जिन्होंने न सिर्फ 2-2 शादियां कर रखी हैं वरन दोनों निभा भी रहे हैं.’’

‘‘परंतु लोग क्या कहेंगे?’’ शालिनी बोली.

‘‘देखो शालिनी, अब तुम कुछ मत सोचो. सोचो तो सिर्फ अपनी नई जिंदगी के बारे में.’’  रोहन की बात सुन कर शालिनी ने उस से सोचने के लिए 2 दिन का समय मांगा.

‘‘ठीक है, मैं चलता हूं. तुम्हारी जरूरत का सारा सामान यहां है.’’  रोहन घर पहुंचा तो रश्मि और बच्चे उसे अकेला देख कर बहुत खुश हुए. उन्होंने सोचा कि शालिनी चली गई है अपने शहर.

रश्मि ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘आज अकेले? क्या शालिनी वापस चली गई?’’

रोहन चुप रहा और अपने कमरे में कपड़े चेंज करने चला गया. रश्मि कुछ सोचती रह गई. जब वह वापस आया तो रश्मि ने फिर दोहराया, ‘‘आप ने बताया नहीं कि शालिनी वापस चली गई क्या?’’  ‘‘देखो रश्मि, तुम ने चाहा कि शालिनी यहां से चली जाए और वह चली गई. अब वह कहां गई और क्यों गई, इस से तुम्हें मतलब नहीं होना चाहिए. रहा मेरे जल्दी आने का प्रश्न तो आज मैं यह फैसला कर के आया हूं कि अब मैं शालिनी से शादी कर रहा हूं. तुम साथ रहोगी या अलग यह फैसला तुम्हें करना है.’’  रश्मि और बच्चे यह सुन कर हैरान रह गए.

‘‘तुम्हें पता भी है कि तुम क्या कह रहे हो?’’ रश्मि ने लगभग चीखते हुए कहा. दोनों बच्चे शलभ और रीतिका डर गए. तभी रश्मि को लगा कि उन्हें बच्चों के सामने ये सब बातें नहीं करनी चाहिए. अत: उस ने सामान्य होने की कोशिश की और बच्चों से कहा, ‘‘बेटा, आप अपने कमरे में जा कर पढ़ाई करो.’’

अब बच्चे इतने भी छोटे नहीं थे कि वे अपनी मां की बात न समझ सकें. दोनों  सिर झुकाए अपने कमरे में चले गए.  ‘‘हां, अब बताओ कि तुम क्या कह रहे थे? तुम्हें शालिनी से शादी करनी है? तुम इतनी बड़ी सजा मुझे कैसे दे सकते हो? सिर्फ तुम्हारे कारण मैं अपने मातापिता और घरपरिवार को छोड़ कर आई थी.’’

‘‘हां तुम आई थीं पर यह फैसला भी तुम्हारा था. फिर मैं कब मना कर रहा हूं, क्या बिगड़ जाएगा अगर शालिनी भी हमारे साथ रहे?’’ रोहन ने कहा.  ‘‘यह कभी नहीं हो सकता रोहन, तुम मुझे इतना बड़ा धोखा नहीं दे सकते.’’

‘‘धोखा, जो धोखा करता है उसे धोखा ही तो मिलता है. यही दुनिया का सत्य है. तुम ने भी तो अपने मातापिता को धोखा दिया था. तुम्हारी मां असमय गुजर गईं. वे क्या जी पाईं और पिताजी? वे भी जैसे जी रहे हैं वह जीना नहीं होता. क्या तुम ने उन के लिए सोचा? आज बात करती हो धोखे की.’’

‘‘उस की वजह भी तुम थे रोहन… तुम ने तो मुझे न घर का छोड़ा और न घाट का,’’ रश्मि ने सिर थामते हुए कहा.

‘‘अब यह फैसला तुम्हारा है रश्मि तुम साथ रहो या अलग. हां यह जरूर है कि तुम्हारे और बच्चों के खर्च का पैसा मैं तुम्हें देता रहूंगा,’’ रोहन ने कहा.

‘‘बस करो रोहन… तुम क्या दोगे, जाओ आज मैं ने तुम्हें शालिनी दी, तुम्हारा नया घर, नई पत्नी, तुम्हें मुबारक… मुझे तुम से कुछ नहीं चाहिए. चले जाओ यहां से अभी इसी वक्त,’’ रश्मि ने चिल्ला कर कहा तो रोहन चला गया.  रश्मि की आंखों के सामने सब कुछ घूमने लगा. उस की बनाई दुनिया, उस का घर, उस के सपने सब कुछ भरभरा कर ढह गया.  तभी बिल्ली ने कूद कर फ्लौवर पौट गिरा दिया तो रश्मि की तंद्रा भंग हुई.

‘‘फिरफिर क्या हुआ रश्मि,’’ मैं ने पूछा.

‘‘होना क्या था रोहन मुझे अधर में छोड़ कर चला गया और आज मैं अपने बच्चों के साथ अकेले जिंदगी गुजार रही हूं. सारे दुख, सारा अकेलापन अपने अंदर समेटे चलती जा रही हूं बस.’’

‘‘परंतु कब तक?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जब तक जीवन है… न मैं हारूंगी, न रोहन के पास जाऊंगी और न ही अपने पिता के पास.’’

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‘‘चल जाने भी दे. जब भी कभी तू अकेलापन महसूस करेगी मुझे अपने करीब पाएगी.’’  उधर रोहन ने शालिनी से शादी कर ली और अपने नए घर में मगन हो गया. धीरेधीरे उन का रिश्ता सभी को मालूम हो गया. सामने तो कोई कुछ नहीं कहता था, परंतु पीठ पीछे सभी उस की बुद्धि पर तरस खाते, ‘‘देखो रोहन ने इस उम्र में अपनी इतनी सुंदर, सुघड़ पत्नी व 2 बच्चों को छोड़ कर नई शादी कर ली,’’ नरेंद्रजी बोले.  ‘‘भई, हम तो रश्मि भाभी के बारे में सोचते हैं… वे अकेली ही हर हालात का सामना कर रही हैं,’’ निरंजन कुछ सोचते हुए बोले.  ऐसा नहीं था कि रोहन को इन सब बातों का पता नहीं था, परंतु वह बड़ी चतुरता से सफाई दे देता था.  एक दिन रोहन लौटा तो उस के हाथ में शिमला के 2 टिकट थे. घर में घुसते ही  चिल्लाया, ‘‘शालिनी… ओ शालू देखो मैं क्या लाया हूं?’’

आगे पढ़ें- उसे सकते में देख कर शालिनी बोली…

Serial Story: धोखा (भाग-4)

दवा चलती रही. रोहन हर संभव कोशिश करता कि शालिनी खुश रहे. पर कहीं न कहीं से कुछ ऐसा हो जाता कि शालिनी को रश्मि का बुझा चेहरा और रितिका के शब्द याद आ जाते. उस की हालत बद से बदतर होती जा रही थी. अब इस बात की चर्चा आसपास भी होने लगी थी. अभी दोपहर को वह बालकनी में खड़ी थी कि रूहेला ने इशारा करते हुए नीलिमा से कहा, ‘‘सुना है शालिनी न्यूरोलौजिस्ट के पास गई थीं. उन्हें कुछ दिमागी बीमारी है.’’  ‘‘अरे भई किसी का बुरा कर के कोई सुखी हुआ है कभी? मुझे तो बेचारी रश्मि पर तरस आता है. इस ने उस का पति छीन कर उसे और उस के 2 बच्चों के साथ बुरा किया. अब भरेगी भी तो यही,’’ नीलिमा बोलीं.

इतना सुन कर शालिनी कमरे में आ गई और आते ही बस्तर पर पड़ गई. जब लंच के लिए रोहन आया तो उस ने देखा और तुरंत उसे ले कर डाक्टर के यहां गया.  डाक्टर साहब चिंतित हो कर बोले, ‘‘रोहन इतनी दवा के बावजूद शालिनी में कोई सुधार नहीं हो रहा है. मुझे लगता है कि इन्हें हौस्पिटीलाइज करना पड़ेगा.’’

‘‘कुछ भी कीजिए डाक्टर साहब, परंतु शालिनी को ठीक कर दीजिए.’’

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उसी समय डाक्टर ने शालिनी को दाखिल कर लिया.  रोहन अब तिहरी मुसीबत में फंस गया. एक तरफ उस का काम, दूसरी तरफ घर और अब अस्पताल भी सुबहशाम जाना. वह बुरी तरह थक चुका था. उस दिन के बारे में सोचता जब वह शालिनी को ले कर घर और बच्चों को छोड़ कर आया था. विवाहेतर संबंधों का सच अब उस की समझ में अच्छी तरह से आ रहा था, परंतु क्या हो सकता था. अब गले पड़े ढोल को बजाने के सिवा कोई चारा नहीं था. न तो वह शालिनी को छोड़ कर वापस रश्मि के पास जा सकता था और शालिनी थी कि वह ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी. खैर जैसेतैसे वह अपनी तीनों जिम्मेदारियां निभाने की कोशिश कर रहा था.  एक दिन रश्मि बाजार गई वहीं उसे कविता मिली. दोनों ही बड़ी गर्मजोशी से मिलीं. तभी कविता बोली, ‘‘चल, बहुत दिनों के बाद मिली हैं कहीं बैठ कर कौफी पीती हैं.’’

‘‘नहीं कविता, जल्दी घर जाना है. बच्चों के पेपर चल रहे हैं,’’ रश्मि ने जवाब दिया.

‘‘चल भी न… कितने दिनों बाद तो मिली हैं… थोड़ी गपशप हो जाएगी,’’ और फिर दोनों एक कैफे हाउस में चली गईं.  बातें करतेकरते बात शालिनी पर आ कर ठहर गई. अचानक कविता बोली, ‘‘सुना है रश्मि आजकल रोहन बहुत परेशानी में है.’’

‘‘क्यों? अब तो उसे खुश रहना चाहिए. उस ने शालिनी से शादी भी कर  ली जो वह चाहता था और मैं भी उस से कोई वास्ता नहीं रखती जिस का उसे डर था…’’

‘‘अरे, यह सब तो ठीक है परंतु सुना है शालिनी डिप्रैशन में आ गई है और आजकल सिटी अस्पताल में दाखिल है.’’

‘‘डिप्रैशन में वह? परंतु उसे तो वह सब प्राप्त है जिस की उस को चाह थी… अब उसे और क्या चाहिए? देखा जाए तो डिप्रैशन में तो मुझे आना चाहिए… मेरा तो सब कुछ उस ने छीन लिया है. खैर, छोड़ो सब समय का खेल है नहीं तो मैं क्यों अपना घर छोड़ कर रोहन के साथ घर बसाती? पर कविता यह तो बता कि तुझे कैसे पता चला कि वह सिटी अस्पताल में दाखिल है?’’

‘‘अरे मैं तो इन के एक दोस्त को देखने गई थी तो वहां रोहन मिले थे. वही बता रहे थे.’’

‘‘अच्छा किस वार्ड में है? रूम नंबर क्या है?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘क्यों अब भी तुझे उस से मिलने जाना है?’’ कविता ने पूछा.

‘‘हां, यार सोच रही हूं मिल लेती हूं. कुछ भी हो वह मेरी सहेली है और उस की देखभाल करने वाला कोई भी तो नहीं. उस की करनी उस के साथ और मेरी करनी मेरे साथ,’’ कह रश्मि शालिनी का रूम नंबर ले कर घर आ गई.  शलभ और रितिका ने उस से बहुत मना किया, परंतु उस ने यही कहा कि इस सारे किस्से में जितनी गुनहगार शालिनी है उस से कहीं अधिक गुनहगार रोहन है और इस का खमियाजा अकेली शालिनी उठा रही है.  अकेले दिन वह शालिनी से मिलने अस्पताल पहुंची. वहां उस ने देखा कि शालिनी चीखचिल्ला रही है. तभी डाक्टर आए और उसे नींद का इंजैक्शन लगा दिया. धीरेधीरे शालिनी नींद के आगोश में चली गई. रश्मि वहां रखी कुरसी पर बैठ कर गहरी सोच में डूब गई. उसे शालिनी पर बड़ा तरस आ रहा था.  वह सोच रही थी क्या यह वही शालिनी है, जो उस के पास आई थी तब कितनी निर्मल, कितनी खुशमिजाज और सुंदर थी और आज ऐसे पड़ी है बेचारी… रश्मि का दिमाग कुछ कह रहा था और दिल कुछ और. दिल तो कह रहा था कि यह उस की सहेली है उसे ऐसी हालत में नहीं छोड़ना चाहिए, मगर दिमाग में तो चल रहा था कि उस ने उस के साथ क्या किया था. वह बड़ी दुविधा में पड़ी थी, परंतु उस के पैर डाक्टर के कैबिन की तरफ चल पड़े.

‘‘डाक्टर साहब मैं अंदर आ सकती हूं?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘यस, कम इन,’’ डाक्टर बोले.

उस ने डाक्टर साहब से शालिनी के बारे में सारी जानकारी ली और उसे डिस्चार्ज करा लिया. अगले दिन जब रोहन शालिनी के कमरे में पहुंचा तो शालिनी वहां नहीं थी. उस ने नर्स से पूछा तो उस ने बताया कि कल कोई मेम साहब आई थीं. अपने को उस का दूर का रिश्तेदार बता रही थीं. वे ही उसे अपने साथ ले गई हैं.  रोहन ने बहुत खोजबीन की, परंतु कुछ हासिल न हुआ. उस ने बहुत हंगामा भी किया, किंतु कुछ हाथ न लगा तो उस ने डाक्टर को धमकी दी कि वह लापरवाही के तहत पुलिस में एफआईआर दर्ज कराएगा परंतु डाक्टर ने उसे न जाने क्या पट्टी पढ़ाई कि वह चुपचाप अपने घर चला गया.  रोहन घर पहुंचा तो उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे. उस का तो यह हाल हो गया कि धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का. खाली घर उसे काटने को दौड़ रहा था. एक ओर शालिनी जिस का कुछ पता न था तो दूसरी ओर रश्मि उस के पास जाने का उस में साहस न था.

एक डर यह भी रोहन को सता रहा था कि कहीं कोई शालिनी के बारे में न पूछ ले. शालिनी कहां गई कहां नहीं, उसे यह पता नहीं था. कहीं उस का कोई रिश्तेदार न आ धमके. रोहन अपने स्तर पर चुपचाप उस की खोजबीन में लगा था. इसी उधेड़बुन में वह चला जा रहा था. देखा सामने से रश्मि आ रही है. वह उस से बचना चाहता था कि वह सामने आ गई और उसे देख कर बोली, ‘‘कैसे हो रोहन?’’

‘‘ठीक हूं,’’ रोहन ने जवाब दिया.

‘‘और शालिनी कैसी है?’’

‘‘प्रश्न सुन कर रोहन को काटो तो खून नहीं. सारी बातें यहीं पूछोगी…

रश्मि चलो कहीं बैठ कर कौफी पीते हैं,’’ रोहन ने कहा.

‘‘इस की जरूरत नहीं,’’ रश्मि बोली.

‘‘रश्मि सच तो यह है कि शालिनी की तबीयत बहुत खराब थी. उसे मैं ने सिटी अस्पताल में दाखिल कराया था, किंतु पता नहीं उस की कौन सी दूर की रिश्तेदार वहां आई और मेरी गैरमौजूदगी में उसे अपने साथ ले गई.’’

‘‘फिर तुम ने ढूंढ़ा नहीं शालिनी को?’’

‘‘बहुत ढूंढ़ रहा हूं, परंतु कुछ पता नहीं चल रहा,’’ रोहन परेशान सा बोला.

‘‘अब क्या करोगे? पुलिस में रिपोर्ट करोगे?’’

‘‘यही तो नहीं कर सकता हूं.’’

‘‘क्यों?’’ रश्मि ने पूछा.

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‘‘क्योंकि डाक्टर और उस की अनजानी रिश्तेदार मुझे धमकी दे रहे हैं कि वह मुझे दफा 420 के केस में फंसा देंगे, क्योंकि एक पत्नी  और बच्चों के होते हुए मैं ने दूसरी शादी की. मैं ने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया… मुझे माफ कर दो रश्मि.’’  ‘‘रोहन तुम तो वह इनसान हो जो किसी का भी सगा नहीं हो सकता न मेरा और न शालिनी का. जानना चाहते हो शालिनी कहां है? वह मेरे पास है और धीरेधीरे स्वास्थ्य लाभ कर रही है. किंतु अब वह तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती. जैसे ही वह ठीक हो जाएगी वापस दिल्ली चली जाएगी… और तुम अपना स्वयं सोच लो.’’  रोहन कोई जवाब देता उस से पहले ही रश्मि उस की नजरों से दूर जा चुकी थी. उस के चेहरे पर संतोष की रेखा थी. जो धोखा रोहन ने उसे दिया था आज उस का जवाब उस ने दे दिया था.

Serial Story: धोखा (भाग-3)

‘‘क्या लाए हैं?’’ शालिनी ने पूछा.

‘‘सोचो क्या हो सकता है?’’

शालू मुसकरा कर बोली, ‘‘क्या होगा सिनेमा के टिकट होंगे या फिर होटल में डिनर का औफर.’’

‘‘नहीं डार्लिंग, हम कल 1 हफ्ते के लिए शिमला जा रहे हैं. क्या नजारा होगा तुम कल्पना भी नहीं कर सकतीं. चलो फटाफट पैकिंग कर लो.’’  दूसरे दिन जब वे शिमला पहुंचे तो लगभग सारे होटल बुक थे और फिर औटो वाले की सहायता से जो होटल मिला उसे देख कर रोहन को जबरदस्त झटका लगा. वही होटल और तो और वही कमरा जहां वह पहली बार रश्मि को ले कर आया था.

उसे सकते में देख कर शालिनी बोली, ‘‘क्या हुआ, आप कहां खो गए?’’

‘‘कुछ नहीं बस यों ही जरा सोच रहा था कि देखो वक्त भी क्याक्या खेल दिखाता है. अभी कुछ दिन की तो बात है. मैं किसी काम से शिमला में आया था और उस वक्त भी यही होटल और तो और यही कमरा था शालिनी,’’ रोहन ने आधा झूठ और आधा सच बोला. वह उसे यह कैसे बताता कि यहां इसी कमरे में उस ने और रश्मि ने अपना हनीमून मनाया था. झूठ तो उस ने कह दिया, किंतु उस का मन उखड़ गया था.  दूसरे दिन दोनों घूमने निकल गए. यह भी अजीब बात थी जिस रश्मि को छोड़ कर शालिनी के लिए वह बेताब था और उस के साथ शादी कर के उस के साथ हनीमून मनाने आया था उसे छोड़ कर हर जगह उसे रश्मि नजर आ रही थी. वह काफी परेशान हो रहा था. उस के अंदर यह बदलाव शालिनी भी महसूस कर रही थी, परंतु उस ने सोचा कि हो सकता है कोई औफिस की बात उसे परेशान कर रही हो. उस ने बहुत पूछा भी परंतु उस ने उसे टाल दिया.  आज उसे लगा कि 2-2 नावों पर सवार होना कितना कठिन है. होटल आ कर वह बिस्तर पर ढेर सा हो गया.

‘‘क्या बात है रोहन, काफी थकेथके से लग रहे हो और काफी परेशान भी?’’

रोहन ने कहा, ‘‘हां थक तो गया हूं… ऐसा करते हैं शालिनी वापस चलते हैं.’’

‘‘क्यों?’’

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‘‘बस, औफिस का एक जरूरी काम याद आ गया… जाना जरूरी है, फिर कभी प्रोग्राम बना लेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ शालिनी बोली और फिर पैकिंग करने लगी. दूसरे दिन वापस आ गए. सब काम अपने ढर्रे पर चलने लगे.

एक दिन रोहन व शालिनी शौपिंग के लिए गए तो उन्होंने रितिका को देखा. वह अपनी सहेली के साथ स्कूटी पर जा रही थी. तभी एक बाइक सवार ने उस की स्कूटी में टक्कर मार दी और वे दोनों गिर पड़ीं. रोहन और शालिनी उस की तरफ दौड़े. उसे उठाने के लिए शालिनी ने हाथ बढ़ाया तो उस ने बड़ी नफरत से उस का हाथ झटक दिया.

शालिनी ने कहा, ‘‘रितिका, तुम ठीक तो हो?’’

‘‘तुम तो ठीक हो… मैं ठीक हूं या नहीं इस से तुम्हें क्या फर्क पड़ता है,’’ रितिका ने गुस्से और नफरत से कहा.

‘‘ऐसा न कहो बेटा… मैं तुम्हारी मां के समान हूं,’’ शालिनी ने कुछ मायूसी से कहा.

‘‘आप जानती हैं कि मां क्या होती है? कभी आप ने जाना मां को? मां तो बस देना ही जानती है और आप ने तो बस छीनना ही जाना है… हम से हमारे पापा को छीना, हमारे घर की सुखशांति छीनी, मेरी मां का सुहाग छीना, आप क्या जाने मां और मां के त्याग को.’’  ‘‘रितिका क्या तुम ने बात करने की तमीज छोड़ दी,’’ रोहन ने चिल्लाते हुए कहा.

‘‘पापा, मैं ने तो सिर्फ बात करने की तमीज छोड़ी है, किंतु आप ने तो हम सब को छोड़ दिया,’’ और सिसकते हुए रितिका अपने जख्म को बिना देखे चली गई.  दोनों का मूड खराब हो गया था. दोनों वापस घर आ गए. दूसरे दिन रोहन अपने  औफिस चला गया. शालिनी के कानों में रितिका के कहे शब्द हथौड़े की तरह पड़ रहे थे. ‘जानती हो मां क्या होती है? तुम ने तो बस छीना है… तुम ने मेरे पापा को छीना है, हमारे घर की सुखशांति छीनी है.’

‘‘छीनी है… छीनी है… छीनी है… हां मैं ने अपनी सहेली का घर उजाड़ा है… उसे बरबाद कर दिया है, मैं दोषी हूं,’’ एकाएक शालिनी अपना सिर पकड़ कर जोरजोर से चिल्लाई.

तभी अचानक रोहन आ गया. बोला, ‘‘क्या हुआ शालू, तुम चिल्ला क्यों रही थीं? क्यों परेशान लग रही हो?’’

‘‘कुछ खास नहीं बस यों ही कुछ पुरानी यादें याद हो आई थीं. मगर तुम कैसे आ गए?’’

‘‘वे अपने कुछ जरूरी कागजात घर भूल गया था… शालिनी लिफाफे में कुछ कागज थे… तुम ने देखे क्या?’’

‘‘नहीं तो? कहां रखे थे?’’

‘‘अलमारी में थे. जरा देखो तो,’’ रोहन ने कहा और फिर सोफे पर बैठ गया. शालिनी बैडरूम की तरफ थी. थोड़ी दूर ही चली थी कि गिर पड़ी.

‘‘अरे, क्या हुआ?’’ रोहन तेजी से उस की तरफ लपका. शालिनी को उठा कर बैड पर लिटाया और पानी ला कर उस के चेहरे पर छींटे मारने लगा. शालिनी ने धीरे से आंखें खोलीं.

‘‘क्या हुआ शालू? तबीयत खराब थी तो मुझे बताया होता. मैं पहले तुम्हें डाक्टर के पास ले जाता. खैर, कोई बात नहीं, अब चलते हैं.’’

‘‘नहीं रोहन, मुझे नहीं जाना डाक्टर के पास. कोई खास बात नहीं है… मैं ठीक हूं.’’

रोहन उस का माथा सहलाने लगा, ‘‘देखो शालिनी, लगता है अकेलेपन की वजह से तुम्हारी तबीयत खराब हो गई है… कुछ व्यस्त रहा करो.’’

‘‘रोहन मैं ने बहुत गलत काम किया है न… बहुत बड़ी गलती की है.’’

‘‘कौन सी गलती शालू?’’

‘‘मैं ने अपनी सहेली का पति छीना… उस का घर उजाड़ा दिया… उस की हाय लगेगी मुझे.’’

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‘‘हम ने कोई गलत काम नहीं किया है शालू… हम ने प्यार किया है… दोनों एकसाथ जीवन गुजारना चाहते हैं… शादी की है क्या गलत किया है? मैं ने तो रश्मि को भी कहा था कि वह हमारे साथ रहे. क्या 2 पत्नियां एकसाथ नहीं रह सकतीं और यदि नहीं तो हम क्या कर सकते हैं? मैं तो उस का खर्चा भी उठाने को तैयार था, किंतु वह ज्यादा स्वाभिमानी बनना चाहती है तो उस में हमारा क्या दोष?’’  उस के बाद रोहन उसे समझाबुझा कर वापस अपने औफिस चला गया. शालिनी ने एक नौवल उठाया, परंतु उस का मन फिर किसी भी काम में नहीं लगा. बारबार उसे रितिका की बात याद आ रही थी. उस का मन फिर किसी भी काम नहीं लगा. बारबार उसे रितिका की बात याद आ रही थी. उस का मन भी बारबार उसे ही दोषी मान रहा था. जैसेतैसे शाम हुई और रोहन औफिस से आ गया. उस ने चाय बनाई और दोनों अपनाअपना कप ले कर टैरेस में आ गए.

‘‘क्या बात है, आज कुछ परेशान दिखाई दे रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं, बस यों ही मन नहीं लग रहा.’’

‘‘चलो तो आज कहीं घूमफिर आते हैं… तुम्हारा मन भी बहल जाएगा,’’ और फिर दोनों तैयार हो कर बाहर निकल गए. पास ही एक पार्क था. दोनों जा कर नर्म घास पर बैठ गए.

अभी कुछ देर ही हुई थी उन्हें वहां बैठे तभी एक तरफ कुछ शोर सा हुआ.  उत्सुकतावश दोनों भी वहां पहुंच गए. बड़ा ही अजीब नजारा था. एक औरत अपने पति के साथ मारपीट कर रही थी. उन्होंने कारण पूछा तो पता चला कि उस ने अपने पति को दूसरी औरत के साथ पकड़ लिया था. यह कहने को तो एक साधारण बात थी, परंतु इस बात ने शालिनी के मनमस्तिष्क पर उलटा प्रभाव डाला. उस के दिमाग में रश्मि का चेहरा घूम गया. उसे और गिल्टी महसूस होने लगी.  अब यह रोज का नियम हो गया था कि शालिनी चुपचाप अपने काम निबटा कर उदास सी रहती. उस की इस हालत से रोहन परेशान रहने लगा. जो जीवन उन्होंने चुना था वह उन्हें बजाय खुशी देने के परेशानी देने लगा और हद तो तब हुई जब शालिनी न सिर्फ डिप्रैशन में, बल्कि आक्रामक भी हो गई. छोटीछोटी बातों पर नाराज हो जाना, गुस्से में कोई भी चीज उठा कर फेंक देना उस का नियम बन गया.  एक दिन तो छोटी सी कहासुनी पर शालिनी ने कप उठा कर रोहन को दे मारा. तब रोहन को लगा कि अब कुछ ठीक नहीं है. वह उसे ले कर न्यूरोलौजिस्ट के पास गया.  डाक्टर ने शालिनी की जांच कर के कहा, ‘‘रोहन, शालिनी के दिमाग को कोई सदमा लगा है, जिस की वजह से इन की यह दशा हुई है,’’ फिर डाक्टर ने कुछ दवाएं लिखीं और कहा, ‘‘इन्हें ज्यादा से ज्यादा खुश रखने की कोशिश करें.’’

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Serial Story: धोखा (भाग-1)

हमेशाखुद भी खुश रहने वाली तथा औरों को भी खुश रखने वाली रश्मि को न जाने आजकल क्या हुआ है कि हमेशा खोईखोई सी रहती, पूछने पर टाल जाती.  आखिर जब मुझ से रहा न गया तो एक दिन मैं उसे पकड़ कर बैठ गई और फिर पूछा, ‘‘रश्मि, आज मैं तुझे छोड़ने वाली नहीं, बता न आखिर हुआ क्या है?’’

‘‘कुछ भी नहीं कविता, तू तो यों ही परेशान हो रही है.’’

‘‘कुछ तो हुआ है, तू बताती क्यों नहीं? देख आज मैं तुझे छोड़ने वाली नहीं.’’

‘‘जाने भी दे… अपने लिए मैं किसी को दुखी नहीं करना चाहती,’’ रश्मि ने कुछ उदास स्वर में कहा.

‘‘रश्मि, तू मुझे अब अपना नहीं मानती, ऐसा लगता है. देख हमारी दोस्ती आज की नहीं है और मरते दम तक हम दोस्त रहेंगे.’’

‘‘वह तो है.’’

‘‘देख अपना दुख मुझे नहीं बताएगी तो किसे बताएगी?’’ उस के कंधे पर हाथ रखते हुए मैं ने कहा.

‘‘हां, तुझ से तो बताना पड़ेगा वरना मेरा दम घुट जाएगा,’’ रश्मि बोली, ‘‘तू तो जानती है कि क्या कुछ नहीं गुजरा मुझ पर परंतु वक्त का खेल समझ कर सब स्वीकार करती रही. रोहन 2 बच्चे दे कर मुंह मोड़ गया और दूसरी शादी कर ली. मैं ने सह लिया. सब रिश्तेदार 1-1 कर के चले गए. किसी ने भी यह नहीं सोचा कि मैं अपने 2 बच्चों के साथ कैसे जीऊंगी? क्या करूंगी? वह तो भला हो नेहा का जिन्होंने अपने पति से कह कर मुझे यह नौकरी दिलवा दी और मेरे घर की गाड़ी चल पड़ी.’’

‘‘यह तो मैं भी जानती हूं और तेरे साहस की मिसाल मैं ही नहीं, बल्कि जितने भी परिचित हैं, सब देते हैं,’’ मैं ने उसे सहारा देते हुए कहा, ‘‘पर अब जब सब कुछ ठीक हो गया, फिर तेरी उदासी की बात समझ में नहीं आ रही. इतना सब कुछ सहते हुए भी तूने अपना जीवन बड़ी जिंदादिली से जीया ही नहीं, उस के हर पल को महसूस भी किया,’’ मैं ने कहा, ‘‘अपने बच्चों के कैरियर को बहुत ऊपर पहुंचाया. यही नहीं कालोनी में अच्छी इज्जत भी कमाई. अब तो सब ठीक है, फिर क्या बात है?’’

‘‘तू ठीक कह रही है पर एक बात तो है न कि कब्र का हाल मुरदा ही जानता है,’’ उस ने कुछ हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा ऐसा क्या है? देख बहुत देर हो गई अब रुक मत.’’

रश्मि खयालों में खो गई. मानो उस का जीवन उस के सामने चलचित्र की तरह घूम रहा हो…

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रोहन का उस की जिंदगी में आना… वह उस की तरफ यों खिंचती चली गई जैसे पतंग के साथ डोर. दुनिया के रिवाज सब उस के लिए बेमानी हो गए थे. मम्मीपापा ने कितना डांटा था. जमाने की ऊंचनीच सब समझाई थी. पर वह तो जैसे दीवानी हो गई थी जैसे ही मोबाइल की घंटी बजती बस उसे रोहन ही दिखाई देता और वह पागलों की तरह दौड़ी चली जाती. पापा गुस्सा होते, मम्मी अपना वास्ता देतीं, पर उस के लिए सब बेकार था सिवा रोहन के.  एक दिन जब वह रोहन से मिलने जा रही थी तो पापा ने डांटते हुए कहा, ‘‘तुम नहीं मानोगी… क्या है उस आवारा लफंगे में जो तुम्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा?’’

‘‘पापा मैं उस से बहुत प्यार करती हूं और उस के बिना नहीं रह सकती.’’

‘‘बहुत पछताओगी तुम… बेटा मान जाओ वह अच्छा लड़का नहीं है,’’ पापा ने समझाते हुए कहा.

‘‘पापा वह मेरी जिंदगी है,’’ रश्मि जिद करते हुए बोली.

‘‘तो खत्म कर दो अपनी जिंदगी,’’ झल्लाते हुए पापा बोले.

‘‘क्या कह रहे हो जी? कुछ भी हो रश्मि हमारी इकलौती बेटी है,’’ मम्मी बोलीं.

‘‘उसी का तो फायदा उठा रही है… पर जीते जी कैसे कुएं में धकेल दें अपनी बेटी को?’’

‘‘पापा कुछ भी हो मैं रोहन से ही शादी करूंगी.’’

‘‘तो फिर अपना चेहरा हमें कभी न दिखाना,’’ पापा क्रोध से बोले.

‘‘ऐसा मत कहो मैं अपनी बेटी के बिना नहीं रह सकूंगी,’’ मम्मी ने सिसकते हुए कहा.

‘‘चुप रहो. तुम्हारे ही लाड़ का नतीजा हमें भुगतना पड़ रहा है,’’ पापा गरजते हुए बोले. और रश्मि सब को अनदेखा कर रोहन के साथ चली गई. बाद में पता चला कि दोनों ने शादी कर ली है और झांसी में बस गए हैं. भानू प्रताप ने अपने सीने पर पत्थर रख लिया परंतु उन की पत्नी चंद्रिका बेटी की याद में बीमार पड़ गईं और एक दिन उस की याद को अपने साथ लिए दुनिया से विदा हो गईं.   उधर रश्मि रोहन के साथ बहुत खुश थी. लेकिन जब उसे अपने मातापिता की  याद आती तो उदास हो जाती. शुरूशुरू में रोहन उस का बहुत ध्यान रखता था. समय के साथ वह 1 बेटी और 1 बेटे की मां बन गई.

कुछ दिनों से रश्मि नोट कर रही थी कि रोहन अब उस का उतना ध्यान नहीं रखता जितना पहले रखता था. कुछ दिन तो इसे हलके में लिया. सोचा शायद काम का बोझ ज्यादा है, परंतु फिर यह रोज का नियम बन गया.

‘‘रोहन, आजकल तुम बहुत व्यस्त रहने लगे हो,’’ रश्मि ने कुछ उदास हो कर कहा.

‘‘भई घर चलाना है तो काम तो करना ही पड़ेगा,’’ रोहन ने कहा.

‘‘काम तो पहले भी होता था, पर आजकल कुछ ज्यादा हो रहा है क्या?’’

रोहन टाल कर चला गया. पर आज रश्मि ने इसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लिया. अब तो रात को भी देर से आना रोहन का नियम बन गया था. रश्मि पूछने की कोशिश करती तो झगड़ा होने लगता.  उस दिन तो हद ही हो गई… उस की सहेली आई थी. मुसकराते हुए रश्मि ने पहले तो परिचय कराया, ‘‘रोहन, यह मेरी सहेली है. शिमला से आई है. यहां इसे कुछ काम है. करीब हफ्ता भर रहेगी.’’

‘‘रश्मि यह मेरा घर है कोई धर्मशाला नहीं जो कोई भी यहां आ कर रहे.’’

रश्मि देखती रह गई.

‘‘रोहनजी आप चिंता न करें मैं मैनेज कर लूंगी,’’ शालिनी ने कहा.

‘‘अरे नहीं, मैं तो मजाक कर रहा था,’’ रोहन ने हंसते हुए कहा.  सब ने इसे मजाक में ले लिया, पर रश्मि नहीं जानती थी कि उस ने अपने लिए कितनी

बड़ी खाई खोद ली है. जो रोहन रोज देर रात आता था, वह शाम की चाय घर में ही पीने लगा. शुरू में तो रश्मि खुश हुई. पर फिर धीरेधीरे उसे समझ में आने लगा कि रोहन उस के लिए नहीं बल्कि शालिनी के लिए जल्दी आता है. चाय पीने के बाद दोनों ही किसी न किसी बहाने निकल जाते. कभी बाहर से खाना खा कर आते कभी उसे आदेश दे कर बनवाते.

‘‘मम्मी, ये आंटी और कितने दिन रहने वाली हैं?’’ एक दिन रश्मि के बेटे शलभ ने पूछा.

‘‘क्यों बेटे, आंटी से तुम्हें क्या तकलीफ है?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘मम्मी जब देखो आप आंटी की सेवा में लगी रहती हो जैसे वे कोई नवाब हों,’’ शलभ ने कुछ चिढ़ते हुए कहा.

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‘‘हां मम्मी और वे तो कोई काम नहीं करतीं. बस पापा से बातें करती रहती हैं जैसे वे ही इस घर की मालिक हों.’’

‘‘बेटा ऐसा नहीं कहते. वे मेहमान हैं, उन्हें कुछ काम है यहां. जब हो जाएगा तो चली जाएंगी,’’ रश्मि ने बच्चों को तो दिलासा दे दिया, किंतु अपने को न समझा सकी. सारी रात बड़ी बेचैनी में काटी और फैसला किया कि सुबह शालिनी और रोहन से बात करेगी.

आगे पढ़ें- दूसरे दिन सुबह जब सब नाश्ता कर रहे थे तो…

Serial Story: कल पति आज पत्नी (भाग-2)

पूर्व कथा

वैद्यराज दीनानाथ शास्त्री की इकलौती संतान कमलदीप अपनी लड़कियों जैसी हरकतों के कारण उन की चिंता का विषय बना हुआ था. पढ़ाई में तो उस की दिलचस्पी रहती नहीं थी, अलबत्ता नाटकनौटंकियों में वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. जलसों में वह कृष्ण की रासलीला में राधा बनता तो अपने साथियों के बीच सिनेमा की नायिकाओं सा अभिनय करता. बेटे के रंगढंग वैद्यजी और उन की पत्नी सुशीला देवी को अजीब लगते. उसे सुधारने के लिए बड़े जतन कर उन्होंने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कराने अमेरिका भेज दिया. कोर्स पूरा करने के बाद कमलदीप वहीं नौकरी करने लगा और कुछ समय पहले उस ने फोन पर बताया कि उस ने वहां शादी कर ली है. अब वह एक कौन्फ्रैंस में भाग लेने एक हफ्ते के लिए भारत आ रहा था. वैद्यजी पत्नी सहित उसे लेने एअरपोर्ट पहुंच गए, परंतु जब बेटा आया तो पहला वज्रपात तो उस की किन्नरों जैसी चाल, रंगढंग व हुलिया देख कर हुआ और दूसरा यह सुन कर कि बेटा बहू नहीं लाया बल्कि स्वयं किसी की पत्नी बन गया है यानी उस ने समलैंगिक विवाह किया है. कैलिफोर्निया के कानून के अनुसार 6 महीने वह अपने पार्टनर का पति होता है और 6 महीने पत्नी. यह सुन वैद्यजी और सुशीला देवी बुरी तरह बौखला गए.

अब आगे…

भारतीय संस्कृति और अपनी मर्यादा के लिए जब वैद्यजी से नहीं रहा गया तो उन्होंने आव देखा न ताव और बेटे के गाल पर जोर का तमाचा जड़ दिया. ‘व्हाई डिड यू हिट मी’ के साथ कमलदीप जोर से चीखा. चीख सुन कर जैक भी आवेश में बोला कि ‘‘हे मैन, हाऊ डेयर यू टच माई वाइफ एंड व्हाई दिस लेडी इज शाउटिंग एट हिम? यू हैव नो राइट टु स्कोल्ड हिम ऐंड बीट हिम, ही इज माय वाइफ.’’ इसी के साथ वह जोरजोर से चिल्लाने लगा.

शोरगुल में वहां भीड़ इकट्ठा हो गई. भीड़ देख कर एअरपोर्ट सिक्योरिटी प्रोटैक्शन फोर्स की पुलिस भी आ गई. इंस्पैक्टर ने झटपट कार्यवाही शुरू कर दी. भीड़ को तितरबितर किया तो बस 4 ही लोग बचे थे जिन के बीच झगड़ा था.

पूछताछ करने पर पता चला कि एक पक्ष मातापिता हैं जो अपने लड़के को डांट रहे हैं और अपने साथ ले जाना चाहते हैं. दूसरा पक्ष है 2 लड़के, जो विदेश से आए हैं. एक लड़का भारतीय, जिस के माता- पिता मौजूद हैं और दूसरा लड़का विदेशी, जो पहले लड़के को अपनी पत्नी बता रहा है और मातापिता पर जबरदस्ती उस को अपने साथ ले जाने का यानी अपहरण का आरोप लगा रहा है जबकि मातापिता का कहना है कि विदेशी लड़का बहलाफुसला कर उन के बेटे को अपनी पत्नी होने का दावा कर के उसे अपने साथ चलने को मजबूर कर रहा है और उन के बेटे का अपहरण करना चाहता है. बेटा है कि चुप खड़ा, कुछ बोलता ही नहीं.  पुलिस का मानना था कि किसी की पत्नी को जबरदस्ती पति से अलग करना और ले जाना अपहरण (किडनैपिंग) के अंतर्गत संगीन अपराध है. अत: सभी को गिरफ्तार कर लिया गया और दोनों पक्षों को अलगअलग कोठरी में बंद कर दिया गया. वैद्यजी और पंडिताइन को एक कोठरी में और दोनों लड़कों को अलगअलग दूसरी तथा तीसरी कोठरी में. रात ढल रही थी, बोल दिया गया कि सुबह 10 बजे डीसीपी साहब के सामने सभी को पेश किया जाएगा.

पूछताछ के दौरान बताया गया कि भारतीय कानून की धारा 377 के अधीन एक ही सैक्स के 2 वयस्क चाहे वे 2 लड़के या 2 लड़कियां हों, आपस में संभोग नहीं कर सकते हैं. जैक ने अपना पासपोर्ट और मैरिज सर्टिफिकेट दिखाया और कहा कि हम लोगों ने कैलिफोर्निया में शादी की है और वहां का कानून इस शादी को पूर्णत: मान्यता देता है और वे लोग भारतीय कानून के अंतर्गत नहीं आते.

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जैक का पलड़ा भारी था. डीसीपी ने कमलदीप का अलग से इंटरव्यू लिया, डांटा भी, समझाया भी कि क्यों भारतीय संस्कृति की धज्जियां उड़ा रहे हो? लेकिन उस ने एक न मानी. डीसीपी साहब मजबूर थे. मातापिता को बुला कर साफसाफ बता दिया कि इन दोनों लड़कों पर भारतीय कानून लागू नहीं होता और भारतीय पुलिस को विदेशी नागरिकों को उन के देश के कानून के तहत सुरक्षा देना जरूरी है. अत: वे या तो राजीनामा लिख कर और माफी मांगते हुए अपने घर वापस जाएं अन्यथा सभी को अदालत में  पेश कर के मुकदमा चलाया जाएगा.

मातापिता ने आपस में सलाह की कि जब अपना ही सिक्का खोटा है तो दूसरे का क्या दोष और माफीनामा लिख बेटे को उस के हाल पर छोड़ दिया. लौट आए वापस अपने घर, अपना सा मुंह ले कर, मातम सा माहौल बन गया घर में. शाम के वक्त अपने समाज के कुछ खास मिलने वालों को बेटेबहू से मिलाने के लिए न्योता भी दे चुके थे पर सभी को यह कह कर टाला कि उन का कार्यक्रम रद्द हो गया है. किसी जरूरी काम से उन्हें रुकना पड़ा और वे लोग नहीं आ पाए.

पहली बार वैद्यजी को लगा कि उन्होंने अपनी इज्जत बचाने के लिए सचमुच झूठ बोला, झूठ का सहारा लिया. कितना व्याकुल हो रहा था उन का अंतर्मन कि एक सच को छिपाने के लिए झूठ का सहारा लेना पड़ा.

वैसे तो कई मामलों में कई बार झूठ बोलना पड़ता है लेकिन आज का झूठ उन से सहन नहीं हो पा रहा था. बेटे के प्यार और लगाव के कारण अंतर्मन में एक द्वंद्व सा चल रहा था. मातापिता का प्यार रोष में परिवर्तित हो रहा था. एक तरफ था मां का ममत्व और दूसरी तरफ था पिता का प्यार, जो अपने बेटे को अपने से ज्यादा उन्नत तथा प्रगतिशील इंसान के रूप में देखना चाहते थे जिस में खुद की योग्यता के सहारे, अपनेआप से दुनिया में हर तरह की विपदाओं को पार करते हुए समाज में अपना एक अस्तित्व बनाने की क्षमता हो. इसी परेशानी से जूझते हुए मातापिता रात भर सो नहीं पाए.

दोनों सोचते रहे, किसी के मरने पर सिर्फ मौत का ही गम होता है, मगर इज्जत तो नहीं जाती. यहां तो इज्जत का, अपनी संस्कृति का, अपनी मानमर्यादा का बखेड़ा खड़ा हुआ है. अगर शहर में किसी को भी पता चले तो समाज में वे क्या मुंह दिखाएंगे? क्या बहाना करें, कैसे टालें इस बात को, कैसे बचाएं अपनी इज्जत को? बस, यही सोचतेसोचते सवेरा हो गया.

सुबह की दिनचर्या शुरू हुई और दोनों के लिए सुबह की चाय तथा आज के ताजा अखबारों का पुलिंदा बरामदे में चटाई पर रखा था. पंडितजी आ कर बैठ गए. चश्मा लगाया और चाय का प्याला उठाया. अखबारों का पुलिंदा खोलते हुए मुख्य पेज की हैडलाइन पर नजर पड़ी कि धारा 377 के खिलाफ देश के सभी महानगरों में खुद को एल.जी.बी.टी. मानने वाले लोग एकजुट हो कर विशाल प्रदर्शन के साथ रैली निकाल रहे हैं और कल 28 जून, रविवार को भारत की राजधानी दिल्ली में एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया जा रहा है जिस में एल.जी.बी.टी. के सभी सदस्य देश के विभिन्न शहरों तथा विदेशों से भारी संख्या में एकत्रित हो कर विशाल रैली का आयोजन कर रहे हैं. यह रैली इंडिया गेट से चल कर राजपथ, जनपथ होते हुए संसद मार्ग स्थित जंतरमंतर पर आएगी और यहां से संसद भवन के सामने प्रदर्शन होगा और मांगें रखी जाएंगी.  इस ऐतिहासिक रैली का नेतृत्व कैलिफोर्निया से आई युवा जोड़ी करेगी. के.डी. जोकि कैलिफोर्निया में भारतीय प्रवासी हैं और उन के पति जैक जो स्वीडन से हैं. दोनों ने कैलिफोर्निया में शादी की है और पतिपत्नी के रूप में रह रहे हैं.

काफी देर तक पंडितजी अखबारों को उलटपलट कर देखते रहे. तभी पंडिताइन भी आ पहुंचीं और बोलीं कि आज के अखबार में ऐसा क्या ढूंढ़ रहे हैं कि आप को इतनी आवाजें दीं पर आप ने कोई जवाब नहीं दिया.

थोड़ा उत्तेजित हो कर वैद्यजी बोले, ‘‘देखो, तुम्हारा बेटा क्या गुल खिला रहा है. पत्नी बन कर लौटा है विदेश से अपने पति के साथ. बस, इसी का ढिंढोरा पीटने आया है यहां. कल दिल्ली में इन दोनों के नेतृत्व में एक विशाल रैली का आयोजन किया जा रहा है. इन की मांग है कि 2 वयस्कों के बीच चाहे दोनों लड़के हों या लड़कियां, आपस में यौन संबंधों को तथा शादी करने के अधिकारों को मान्यता देनी होगी और धारा 377 को कानून की किताब से हटाना होगा. इन का मानना है कि 2 वयस्कों के बीच किसी भी प्रकार की सैक्स क्रियाएं तथा यौन संबंधों के खिलाफ किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही नहीं होनी चाहिए.

‘‘2 जुलाई को दिल्ली उच्च न्यायालय में इसी मामले में इन की याचिका पर सुनवाई होगी, जिस के लिए देश के मान्यताप्राप्त वकीलों को इन के हक में पैरवी करने के लिए बुलाया जा रहा है. इन का मानना है कि भारत को अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारते हुए दुनिया के अग्रसर देशों की पंक्ति में खड़े हो कर, दुनिया में अपनी एक नई पहचान बनाते हुए 100 साल से ज्यादा पुरानी कानूनी धारा 377 को मिटाना होगा.

‘‘आधुनिक युग में देश की युवा पीढ़ी पर सैक्स क्रियाएं तथा आपसी यौन संबंधों को ले कर किसी प्रकार के भय के दायरे में रहना बहुत भारी मानसिक दबाव है और यह मानव अधिकार के विरुद्ध भी है तथा देश की उन्नति के लिए बहुत बड़ी रुकावट है. आज की युवा पीढ़ी को चाहिए पूर्ण स्वतंत्रता अपने विचारों की, सोच की, काम करने की, जीने की और आगे बढ़ने की.’’

वैद्यजी घूरती निगाहों से पंडिताइन को देखते हुए आगे बोले, ‘‘देख लो, अपने लाड़ले को. हम ने तो उसे अमेरिका पढ़ने के लिए भेजा था कि यहां आ कर अपना कुछ बड़ा काम करेगा. बड़ा आदमी बनेगा, कुछ नाम रोशन करेगा और हमारा नाम भी रोशन होगा. हां, बड़ा आदमी तो नहीं बन सका, वहां जा कर पत्नी बन कर जरूर आ गया और नाम तो रोशन कर ही रहा है, सारे अखबारों में उस की चर्चा छपी है.’’

सुबहशाम खाली समय में यही चर्चा   का एक मुद्दा था. तरहतरह के  सवाल भी उठते रहे और सारा इतिहास भी चर्चित होता रहा. धीरेधीरे दिमाग से रूढि़वादिता के परदे उठने शुरू हुए जब चर्चा चली कि महाराज दशरथ की 3 रानियां थीं, द्रौपदी के 5 पति, कृष्ण की अनेक प्रेमिकाएं. शादी तो की रुक्मिणी से और अपने साथ रखा राधा को. सारी दुनिया के सामने खुलेआम आज भी चर्चा राधा और कृष्ण की होती है. रुक्मिणी और उन के बच्चों के बारे में किस को कितना मालूम?

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वात्स्यायन का कामसूत्र, अजंताएलोरा की गुफाओं में विभिन्न मुद्राओं में सामूहिक संभोग की विभिन्न क्रियाओं का खुलेआम जनता के लिए सचित्र प्रदर्शन. वेश्यावृत्ति का प्रचलन तो सदियों से चला आ रहा है. वैशाली की नगरवधू, आम्रपाली, चित्रलेखा, वसंतसेना…आदि न जाने कितने ही नाम लीजिए, जिन्हें राजनर्तकियों का सम्मान प्राप्त था.

समाज तो जनता का समूह है. समाज के कर्ताधर्ता समाज के माननीय कर्णधार जब अपनी हवस मिटाने के लिए किसी भी तरह का कोई असामाजिक काम कर बैठते हैं तो उन के विरुद्ध कौन आवाज उठाने की हिम्मत करे? बल्कि समाज के लिए वही एक नया प्रचलन शुरू हो जाता है और बस, धीरेधीरे समाज के लोग भी उन्हीं पदचिह्नों पर चलते हुए इसे सामाजिक पद्धति का हिस्सा मानने लगते हैं.

यहां तक कि पुराने जमींदार तो किसी मनचाही स्त्री को उठवा लेते थे और बाद में सलामती के साथ उसे घर भेज देते थे. घर वालों को थोड़ा सा मेहनताना दे देते थे और यदि कहीं किसी ने धौंस दिखाई तो तबाही का रास्ता अपना लेते थे. पहले जमाने में क्याक्या जुल्म नहीं होते थे. मजाल थी किसी की कि परदे से बाहर निकले और बोल दे किसी के सामने. भेड़बकरियों की तरह औरतों से भरे होते थे राजामहाराजाओं तथा रईसों के हरम. कानून भी तो जनता के लिए कम, हुकूमत के लिए ज्यादा काम करता है.

गंभीर हो गए दोनों कि बातें कहां से चलीं और क्या मोड़ ले बैठीं. ऐसी ही होती हैं बातें. ज्यादा बातें बस, बाल की खाल. कहीं से शुरू और पता नहीं किसकिस को लपेट लें. खैर, सोचविचार और सभी बातों का निष्कर्ष यही निकला कि आज जो भी कुछ हो रहा है, कोई नया तो है नहीं. ये सब क्रियाएं तो सदियों से चली आ रही हैं. बस, समय और जरूरत के अनुसार तरीके बदल रहे हैं. इसी तरह सामाजिक प्रचलन भी बदलता रहता है.

रोजाना अखबारों में तरहतरह के लेख छपने लगे. जैसे किसी सामाजिक बदलाव के लिए एक अभियान चालू हो गया हो. अलगअलग अखबारों में विज्ञापन तथा समीक्षाएं आती रहीं. वीमन लिबरेशन, फ्री सैक्स, लिव इन रिलेशन- शिप, यूनिसैक्स सैलून तथा ड्रैसेज, गे टूरिज्म, गे-कल्चर आदि. 2 जुलाई को सभी अखबारों में रेडियो और टैलीविजन के लगभग सभी चैनलों पर दिल्ली उच्च न्यायालय के एल.जी.बी.टी. के हक में फैसले की समीक्षा के अलावा इस पर पक्षविपक्ष के वादविवाद भी चलते रहे.

दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार अब किसी भी प्रकार की सैक्स क्रियाएं कानून के दायरे से बाहर हैं. अगले दिन 3 जुलाई के अखबारों में एक ही चर्चा थी. देश के सभी महानगरों में एल.जी.बी.टी. के सदस्य और उन के समर्थक उल्लास प्रदर्शित करते रहे. जगहजगह जुलूस निकाले गए.

एल.जी.बी.टी. की अलगअलग शाखाओं में रात भर उन के सदस्य अपनी स्वतंत्रता का जश्न मनाते रहे. सब से ज्यादा चर्चा का विषय था कमलदीप और उस का पति जैक. सभी अखबारों में इन दोनों के दांपत्य जीवन के बारे में लेख प्रकाशित हुए. इस युवा जोड़ी को सब की सहमति से समाज के इस ऐतिहासिक बदलाव का हीरो मान लिया गया. हर चैनल पर उन दोनों का इंटरव्यू दिखाया जा रहा था. इन का कहना है कि दुनियाभर के ज्यादातर विकसित देशों ने 2 वयस्कों को चाहे वे दोनों लड़के हों या लड़कियां, आपस में मरजी से साथ रहने की और शादी करने की मान्यता दी हुई है. अत: हमारा अभियान अभी पूरा नहीं हुआ. इस के लिए देश के ब्याहशादी के कानून में बदलाव जरूरी है. अत: इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए एल.जी.बी.टी. के कार्यकर्ता एक घोषणापत्र जारी करेंगे जिस की ड्राफ्ंिटग की जा रही है और शीघ्र ही इस के अनुसार कार्यवाही चालू की जाएगी. सामने बैठे एक चैनल के प्रतिनिधि ने आगे के कार्यक्रम तथा कार्ययोजना पर उन से संक्षिप्त में प्रकाश डालने का आग्रह किया.  कमलदीप और जैक ने एकदूसरे के साथ भाषा तथा विचारों का तालमेल जोड़ते हुए अपनी संस्था की कार्यप्रणाली की समीक्षा कुछ इस प्रकार की :

एल.जी.बी.टी. का पहला कार्यक्रम है, जन जागरूकता अभियान. सभी एल.जी.बी.टी. के सदस्य अपनेअपने क्षेत्रों में सामाजिक कार्यों को बढ़ावा देते हुए जनता के हृदय से रूढि़वादिता का सामाजिक भय समाप्त करेंगे.

दूसरा प्रोग्राम है, दहेज प्रथा की समाप्ति. सभी महानगरों में एल.जी.बी.टी. हौस्टल बनाए जाएंगे जहां शादी से पहले लिव इन रिलेशन के तहत बाहर से आए लड़के और लड़कियों को अपने मनचाहे साथी के साथ रहने की सुविधा होगी. इस तरह सामाजिक जानकारी तथा आपस में विचारों का आदानप्रदान करते हुए अपने जीवनसाथी का वे स्वयं ही चुनाव कर सकेंगे, बिना किसी रोकटोक अथवा दानदहेज के. संस्था के द्वारा कौंट्रैक्चुअल शादी का प्रयोजन तथा सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी.

तीसरा उद्देश्य है, तलाक के मामलों में कटौती. युवाओं के साथसाथ रहने के बाद भी शादी के गठबंधन को स्वीकार या अस्वीकार करने की छूट. कौंट्रैक्चुअल शादी के प्रचलन से अदालतों के फैसले का जीवन भर इंतजार नहीं करना होगा जिस से वकीलों की भारी फीस तथा जीवन का एक अमूल्य भाग नष्ट होने से रोका जा सकेगा. साथ ही संस्था की काउंसलिंग शाखा द्वारा आपस में मेलजोल व समन्वय का माहौल बना रहेगा. युवा पीढ़ी अपने साथ कामकाज तथा कैरियर की ओर ज्यादा ध्यान देगी. उस पर मानसिक दबाव कम होने से देश की कार्यप्रणाली का विकास होगा.

चौथा उद्देश्य है, हर बड़े शहर में एल.जी.बी.टी. क्लबों की स्थाप. यहां पर आधुनिक सैक्स शिक्षा का प्रावधान होगा. सुरक्षित सैक्स तथा अलगअलग सैक्स क्रियाओं के बारे में वीडियो कौन्फ्रैंस के माध्यम से शिक्षा दी जाएगी.

एड्स या एचआईवी जैसी घातक बीमारियों की रोकथाम तथा एम.एम. सैक्स, डब्ल्यू.एम. सैक्स, डब्ल्यूडब्ल्यू सैक्स, बाई सैक्स और ट्रांस सैक्स के अलावा पी.वी. सैक्स, ऐनल सैक्स, ओरल सैक्स तथा रौबोटिक एवं आर्टीफिशियली असिस्टेड सैक्स आदि के बारे में भी ज्ञानार्जन की सुविधा होगी. इस के साथसाथ हमारे हैड औफिस में एक विंग की स्थापना करते हुए कामसूत्र जैसे ग्रंथों को अपग्रेड किया जाएगा. इस अपग्रेडेशन से आधुनिक सैक्स क्रियाओं का सचित्र विवरण सामने आएगा.

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हमारा पांचवां उद्देश्य, डी.आई.एन.के. यानी ‘डबल इनकम एंड नो किड’ को बढ़ावा देते हुए देश की बढ़ती जनसंख्या की रोकथाम तथा भुखमरी की समाप्ति. ‘फ्री सैक्स’, ‘लिव इन रिलेशनशिप’, ‘गे’ तथा ‘लेस्बियन’ विवाह आदि के प्रचलन से प्राकृतिक प्रजनन में कमी आ जाएगी. ऐसी युवा जोडि़यों की आमदनी दोगुनी होगी और बच्चों का भार भी उन के ऊपर नहीं होगा.

फिर भी ऐसी युवा जोड़ी अगर शादी के बाद या बिना शादी के भी अपना घर बसाने के लिए बच्चे चाहेंगी तो वे अनाथ आश्रमों से अथवा भिखारियों के बच्चों को गोद ले सकेंगे, जिस से गरीब परिवारों का आर्थिक संकट दूर होगा और बिना मांबाप के बच्चों का सही ढंग से लालनपालन तथा उन की पढ़ाईलिखाई ठीक से हो सकेगी. ऐसे बच्चे समाज के साथ देश के सुदृढ़ नागरिक बन सकेंगे. इस तरह देश के भावी कर्णधारों को उच्चस्तर के परिवार में रहनसहन के अवसर प्राप्त होंगे. इस से देश का आध्यात्मिक, आर्थिक, वैज्ञानिक तथा व्यापारिक क्षेत्र में विकास होगा.

इन सब गतिविधियों को देखते हुए तथा समाज के बदलते हुए चलन को समझते हुए मातापिता यानी पंडिताइन और वैद्यजी का मानसिक दबाव कुछ कम होना शुरू हुआ. शाम तक समाज के लोग उन के घर आने शुरू हो गए और मातापिता को उन के होनहार बेटे के लिए बधाई देते रहे. मातापिता चुपचाप तमाशा देख रहे थे, समझ में नहीं आया कि ये सब उन का मजाक उड़ा रहे हैं या वास्तव में उन का बेटा हीरो बन चुका है.

Serial Story: कल पति आज पत्नी (भाग-1)

25 जून की मध्य रात्रि. समय लगभग साढ़े 3 बजे का था. वैद्यराज दीनानाथ शास्त्री अपनी पत्नी सुशीला देवी के साथ इंदिरा गांधी इंटरनैशनल एअरपोर्ट पर बैठे कैलिफोर्निया से आने वाली उड़ान का इंतजार कर रहे हैं. जहाज के आने का समय 4 बजे का है. अनाउंसमैंट हो चुका है कि फ्लाइट ठीक समय पर आ रही है.

पतिपत्नी अपने इकलौते बेटे कमलदीप और उस की पत्नी के आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. बेटा कमलदीप 4 साल पहले कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट औफ फैशन डिजाइनिंग में पढ़ने गया था. पहली बार तो बेटा 6 महीने बाद ही आ गया था. दूसरी बार 1 साल बाद आया तो उस के रंगढंग काफी बदले हुए थे. वह बातें करता तो हिंदी कम और अमेरिकन अंगरेजी का मिश्रण ज्यादा होता. उस पर आधेआधे शब्दों का उच्चारण, जो कम ही समझ में आता. रंगीले भड़कदार अजीबोगरीब सी बनावट के कपड़े, बिना बांहों की शर्ट और कमर के नीचे की जीन्स, घुटनों से नीची और टखनों से ऊपर. सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल, आंखों में काजल तथा कानों में छोटीछोटी बालियां. बात करते हुए हाथों का इशारा, गरदन का हिलाना और आंखों का मटकाना, इसी के साथ चाल में अजीब सी मस्ती.

बेटे का हुलिया और चालढाल देख कर वैद्यजी को कुछ अच्छा नहीं लगा, लेकिन यही सोच कर चुप रह गए कि चलो, एक और साल की ही तो बात है, कोर्स पूरा होने पर जब लौट कर घर आएगा तो धीरेधीरे यहां के रीतिरिवाजों में ढल कर ठीक हो जाएगा.

वैसे भी कमलदीप को मजबूरी में ही बाहर पढ़ने के लिए भेजना पड़ा था. 19 साल की उम्र तक विभिन्न कक्षाओं में 3 बार फेल होने के बाद वह सैकंड डिवीजन से इंटर की परीक्षा पास कर पाया था. मथुरा के आसपास ही नहीं, बल्कि दूरदराज के भी किसी कालेज में उसे दाखिला न मिलने की वजह से वैद्यजी को बेटे के भविष्य की चिंता थी. पढ़ाई में उस की कोई खास दिलचस्पी तो थी नहीं, बस लोकल ड्रामा कंपनियों के साथ रह कर तरहतरह के नाटकों में ज्यादातर लड़कियों की भूमिकाएं करने में उसे मजा आता था.

मथुरावृंदावन के सालाना जलसों में कृष्ण की रासलीला में राधा की भूमिका पर पिछले 3 साल से उस का एकाधिकार था. शहर के लोग वैद्यजी को बधाई देते हुए कमलदीप के अभिनय की तारीफ करते थे. मगर वैद्यजी को बेटे के रंगढंग देखते हुए उस के भविष्य की चिंता बनी रहती थी.

स्कूल में भी कमलदीप खाली समय में अपने साथियों के बीच लड़कियों की सी हरकतें तथा सिनेमा की नायिकाओं की नकल करता. अब तो उस का ज्यादातर समय किसी न किसी नाटक में अभिनय के बहाने रासलीला की रिहर्सल में बीतने लगा था. वैद्यजी का माथा तो तब ठनका जब उन्होंने बेटे को घर के पिछवाड़े  प्रेमिका के रूप में दूसरे लड़के के साथ रासक्रीड़ा की विभिन्न मुद्राओं में मग्न देखा.

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उस घटना के बाद से वैद्यजी का मन व्याकुल था. तभी उन्होंने अगले दिन अखबारों में बड़ेबड़े विज्ञापन देखे कि दिल्ली के होटल अशोका में विश्वस्तर के कालेजों तथा विश्वविद्यालयों का मेला लग रहा है जिस में कौन्फ्रैंस, सेमिनार तथा काउंसलिंग के जरिए बच्चों के इंटरव्यू होंगे और उन को विदेशों में उच्च शिक्षा में ऐडमिशन मिलेगा.

वैद्यजी ने सोचा कि बेटा विदेश जा कर कुछ पढ़ाईलिखाई करेगा तो एक तो उस का कैरियर बन जाएगा और वहां उस का यह छिछोरापन भी धीरेधीरे समाप्त हो जाएगा. यही सोच कर वैद्यजी ने तुरंत कमलदीप को साथ ले कर दिल्ली चलने का फैसला किया.

काफी भागदौड़ के बाद कैलिफोर्निया के इंस्टिट्यूट औफ फैशन डिजाइनिंग में एक स्थानीय एजेंट ने उस के ऐडमिशन के लिए हां कर दी. ऐडमिशन की फीस, वीजा, जाने का खर्च और 1 साल की फीस तथा रहनेखाने का खर्च आदि मिला कर लगभग 12 लाख रुपए जमा कराने थे. वैद्यजी को रकम भारी तो लगी, मगर बेटे के भविष्य और उस के कैरियर की खातिर ऐडमिशन की तैयारी शुरू हो गई. डेढ़ महीने बाद बेटा फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने अमेरिका चला गया.

जहाज आ चुका था, अत: दोनों पतिपत्नी बाहर जा कर रेलिंग के सहारे खड़े हो गए. यात्रियों का आना शुरू हो गया था.

वैद्यजी पत्नी के साथ भीड़ में बहूबेटे को टटोल रहे थे कि पंडिताइन कुछ बेचैन सी घबराहट के साथ बोलीं कि आप ही ध्यान रखिए, मैं तो शायद उसे पहचान भी नहीं पाऊंगी. पिछले ढाई साल में अपना कमलदीप कितना बदल गया होगा. पंडितजी थोड़ा कटाक्ष से बोले, ‘‘तुम मां हो. अपने बेटे को नहीं पहचान पाओगी तो और कौन पहचानेगा? फिर भी कोई हिंदुस्तानी लड़का किसी गोरी अंगरेजन के साथ आता दिखाई दे तो समझ लेना कि तुम्हारा कमल ही होगा.’’

6 महीने पहले ही कमलदीप ने मां को बताया था कि वह 1 साल से किसी संस्था के साथ काम कर रहा है और एक घनिष्ठ मित्र के साथ ही एक कमरे के फ्लैट में रहता है. उसी के साथ उस ने पिछले महीने शादी भी कर ली है. उस का नाम जैक है और वह स्वीडन से है. दोनों का पिछले 1 साल में विदेशों में भी काफी आनाजाना रहा है. अभी तक कनाडा, आस्ट्रेलिया, स्वीडन, स्पेन तथा यूरोप आदि के दौरे कर चुके हैं.

मातापिता भी यह सोच कर संतुष्ट थे कि शायद किसी अच्छे ओहदे पर बेटा काम कर रहा होगा क्योंकि एकडेढ़ साल में उस ने कोई रुपया नहीं मंगाया. अपना खर्च स्वयं चला रहा है और विदेशों में भी उस का काफी घूमनाफिरना रहता है. अत: बेटा अपने पैरों पर खड़ा है और शायद कामकाज की व्यस्तता के कारण ज्यादा बात नहीं कर पाता.

बस, 3 दिन पहले ही उस का टैलीफोन आया था कि एक हफ्ते के लिए वे दोनोें दिल्ली आ रहे हैं. दिल्ली में औल इंडिया कौन्फ्रैंस है तथा जरूरी मीटिंग्स अटैंड करनी हैं. अत: 1 दिन से ज्यादा वह उन के साथ नहीं रह पाएगा. आगे का कार्यक्रम वहीं पर डिसाइड होगा कि उन्हें कहांकहां जाना है और क्याक्या करना है.

आने वाले यात्रियों की जैसेजैसे भीड़ छंट रही थी, मातापिता की बेचैनी भी उसी तरह बढ़ रही थी. पंडिताइन रोंआसी सी आवाज में बोलीं, ‘‘बस जी, बहुत हो चुका, अब नहीं भेजना है उसे वापस. बहुत रह चुका विदेश में, दुनिया घूम चुका है. अब तो शादी भी कर ली है. बस, यहीं रहेगा, बहू के साथ, हमारे पास. आगे बच्चे होंगे, परिवार बढ़ेगा. कैसे संभालेंगे बच्चों को अकेले रह कर विदेश में, यहां किसी चीज की कमी नहीं है हमारे पास. बस, यहीं रहेगा और जो कुछ भी करना है करे, मगर करेगा यहीं रह कर.’’

वैद्यजी भी खामोशी में ऐसा ही कुछ सोच रहे थे कि पंडिताइन की हालत देख कर उन का भी दिल पसीज गया. अपनेआप को संभाला और पंडिताइन को सहारा दिया कि एकाएक 2 लड़के सामने से आते हुए वैद्यजी को दिखाई दिए जो थोड़ी दूर पर हंसते- खिलखिलाते से मस्ती के साथ अजीब से रंगरंगीले पहनावे में थे.

वैद्यजी बड़े उल्लास भरे स्वर में पंडिताइन से बोले, ‘‘लो, देखो, लगता है कि तुम्हारा लाल कमलदीप आ गया,’’ वैद्यजी थोड़ा और रुक कर बोले, ‘‘लेकिन इस के साथ तो कोई अंगरेज लड़का है. बहूरानी जैसी तो कोई उस के साथ दिखाई नहीं दे रही.’’

अपना चश्मा ठीक करती पंडिताइन बोलीं, ‘‘वह क्या कोई साड़ीलहंगा पहन कर आएगी यहां. आजकल तो सारे एक जैसे ही कपड़े पहनते हैं. लड़का हो या लड़की, सब एक जैसे लगते हैं. पहननेओढ़ने में, चालढाल में, बातचीत करने में और फिर उस की बहू तो अंगरेज है. आजकल तो कई बार लड़के और लड़की में कोई फर्क पता ही नहीं लगता.’’

देखते ही देखते दोनों थोड़ा और पास आ गए. कमलदीप ने अपने मातापिता को इंतजार करते हुए देख लिया और भागते हुए उन के पास आ गया. अपने साथी को वहीं छोड़ कर ऊंचे स्वर में कमलदीप दूर से ही चिल्लाया, ‘‘हाय डैड, हाय मौम. व्हाट हैपैंड टू यू, लुक टु बी वैरी सीरियस. आर यू औल राइट मौम. कम औन, आई एम हियर,’’ और कहतेकहते कमलदीप रेलिंग से बाहर आ गया.

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पिताजी का आशीर्वाद और मां का प्यार बांधे रहा उसे थोड़ी देर. धीरेधीरे लग रहा था कि कमलदीप कितना बदल गया है. एक सभ्य घराने का लड़का और बोलचाल में, पहनावे में और चालढाल में लड़कियों जैसी हरकत करता है तथा कूल्हे मटकाते हुए हिजड़ों जैसी चाल चलता है. उस का जिप्सियों जैसा पहनावा, अजीबअजीब से रंगीन छोटेबड़े, ऊंचेनीचे कपड़े, कानों में बालियां, हाथों में मोटे कड़े, रंगीन चूडि़यों के साथ और गले में रंगीन रस्सियों की माला जिस में तरहतरह के रंगबिरंगे पत्थर गुथे हुए थे.

पंडिताइन से रहा नहीं गया तो बोलीं कि यह क्या हुलिया बनाया हुआ है तू ने? यह लड़कियों वाला भेष बना कर आया है तू यहां. कमलदीप बोला, ‘‘अरे, क्या मौम आप का वही पुराना घिसापिटा सा कल्चर, यू नो दिस इज द यूनीसैक्स ड्रैस-लेटैस्ट इन फैशन. यानी लड़के हों या लड़कियां अब सभी एक सी ही ड्रैस से काम चला लेते हैं.’’

वैद्यजी कुछ झिझकते हुए से बोले, ‘‘बेटा…लेकिन लेटैस्ट में लड़का लड़की तो नहीं बन जाता या वह भी है?’’

‘‘ओ, डैड यू आर ग्रेट. यू सीम टू अंडरस्टैंड एवरीथिंग वैरी क्विकली.’’

माताजी से रुका नहीं जा रहा था अत: बात बीच में ही काटते हुए कुछ संकुचित सी हो कर बोलीं, ‘‘तू ने तो शादी कर ली है न. कहां है बहू, तू लाने वाला था न अपने साथ.’’

‘‘ओ यैस, आई विल गिव यू ए बिग सरप्राइज. आई एम ट्र ू टू माई वर्ड्स,’’ और कहतेकहते उस ने अपने साथी जैक को आवाज दी, ‘‘कम हियर एंड मीट दैम, शी इज माई मौम एंड मीट माई डैड.’’

पंडिताइन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि बहू के नाम पर यह किस से मिला रहा है उन का बेटा.

सामने जैक खड़ा था. और वह भारतीय सभ्यता की नकल करता हुआ हाथ जोड़ते हुए बोला, ‘‘हाय, डैड एंड मौम. आई एम जैक, योअर सन इन ला.’’ लेकिन जब उस ने आगे कहा, ‘‘होप यू लाइक मी टु बी द हसबैंड औफ योर सन के.डी.’’ उस की बात को आगे बढ़ाते हुए डिटेल में समझाते हुए कमलदीप ने कहा कि हम ने 6 महीने पहले ही कैलिफोर्निया कोर्ट में शादी की है. इट इज ए कौंट्रैक्चुअल मैरिज और कौंट्रैक्ट के अनुसार, हर 6 महीने बाद हमारे रिश्ते यानी कि हसबैंड और वाइफ के रिश्ते बदल जाते हैं. यानी शादी के समय जैक मेरी पत्नी थी और मैं उस का पति लेकिन पिछले 2 हफ्ते से जैक मेरा पति है और मैं इस की पत्नी.

यह सब कमलदीप एक ही सांस में कह गया, अमेरिकन अंगरेजी के साथ हिंदी में भी. मातापिता को दोनों की बातें सुन कर बड़ा अटपटा सा लगा. क्या बोल रहा है यह, कहीं कोई मजाक तो नहीं कर रहा है? वैद्यजी बड़े असमंजस में थे कि पंडिताइन बोलीं, ‘‘देखा आप ने, कैसा मजाक कर रहा है यह मांबाप के साथ. अमेरिका में क्या रहा कि सारी शर्म, मानमर्यादा, बड़ों का सम्मान सभी कुछ खो दिया इस ने, पता नहीं इस को कि बड़ों से ऐसा मजाक नहीं करते. समझाइए इसे आप ही, मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

वैद्यजी संभलते हुए बोले कि चलो, बहुत हो चुका मजाक, अब बताओ कि यह तुम्हारे साथ जैक कौन है, कहां से आया है और बहूरानी कहां है?

‘‘आई एम सीरियस डैड…आप क्या समझते हैं कि मैं आप से कोई मजाक करूंगा. दिस इज ट्रू, ही इज माई हसबैंड एंड आई एम हिज वाइफ सिंस लास्ट टू वीक्स. बिफोर दैट आई वाज हसबैंड एंड ही यूज्ड टु बी माई वाइफ,’’ कमलदीप यह सब कहता जा रहा था और वैद्यजी का पारा चढ़ता जा रहा था. चेहरा तमतमाने लगा, जिसे देख कर पंडिताइन ने भांप लिया कि कुछ गड़बड़ है जिसे वैद्यजी सहन नहीं कर पा रहे हैं. अत: पंडिताइन अपने पति का साथ देते हुए काफी उत्तेजित स्वर में बोलीं, ‘‘के.डी., ठीठीक क्यों नहीं बताता कि आखिर बात क्या है. पहेलियां बुझाना बंद कर और साफसाफ बता कि माजरा क्या है?’’

के.डी. हक्काबक्का सा सोच रहा था कि किन शब्दों में बताए इन को? पंडितजी के.डी. की बांह पकड़ कर पूरी ताकत से उसे झकझोरते हुए बोले, ‘‘यह नालायक क्या बताएगा तुम्हें, लड़की बन कर आया है तुम्हारे पास. यह कह रहा है कि जैक से उस ने शादी की है, वह इस का पति है और यह तुम्हारा लाड़ला इस की पत्नी.’’

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पति के मुंह से यह सुनते ही पंडिताइन भी बौखला गईं और अपनी भरीभरी आवाज में चिल्लाईं, ‘‘बोलता क्यों नहीं कि यह सब झूठ है, क्या तू लड़का हो कर इस गधे की पत्नी बन कर रहेगा.’’

– क्रमश:

Serial Story: घमंडी (भाग-1)

‘‘यह चांद का टुकड़ा कहां से ले आई बहू?’’ दादी ने पोते को पहली बार गोद में ले कर कहा था,  ‘‘जरा तो मेरे बुढ़ापे का खयाल किया होता. इस के जैसी सुंदर बहू कहां ढूंढ़ती फिरूंगी.’’

कालेज तक पहुंचतेपहुंचते दादी के ये शब्द मधुप को हजारों बार सुनने के कारण याद हो गए थे और वह अपने को रूपरंग में अद्वितीय समझने लगा था. पापा का यह कहना कि सुंदर और स्मार्ट लगने से कुछ नहीं होगा, तुम्हें पढ़ाई, खेलकूद में भी होशियारी दिखानी होगी, भी काम कर गया था और अब वह एक तरह से आलराउंडर ही बन चुका था और अपने पर मर मिटने को तैयार लड़कियों में उसे कोईर् अपने लायक ही नहीं लगती थी. इस का फायदा यह हुआ कि वह इश्कविश्क के चक्कर से बच कर पढ़ाई करता रहा. इस का परिणाम अच्छा रहा और आईआईटी और आईआईएम की डिगरियां और बढि़या नौकरी आसानी से उस की झोली में आ गिरी. लेकिन असली मुसीबत अब शुरू हुई थी. शादी पारिवारिक, सामाजिक और शारीरिक जरूरत बन गई थी, लेकिन न खुद को और न ही घर वालों को कोई लड़की पसंद आ रही थी. अचानक एक शादी में मामा ने दूर से कशिश दिखाई तो मधुप उसे अपलक देखता रह गया. तराशे हुए नैननक्श सुबह की लालिमा लिए उजला रंग और लंबा कद. बचपन से पढ़ी परी कथा की नायिका जैसी.

‘‘पसंद है तो रिश्ते की बात चलाऊं?’’ मां ने पूछा. मधुप कहना तो चाहता था कि चलवानेवलवाने का चक्कर छोड़ कर खुद ही जा कर रिश्ता मांग लोे, लेकिन हेकड़ी से बोला,  ‘‘शोकेस में सजाने के लिए तो ठीक है, लेकिन मुझे तो बीवी चाहिए अपने मुकाबले की पढ़ीलिखी कैरियर गर्ल?’’

‘‘कशिश क्वालीफाइड है. एक मल्टीनैशनल कंपनी में सैक्रेटरी है. अब तुम उसे अपनी टक्कर के लगते हो या नहीं यह मैं नहीं कह सकता,’’ मामा ने मधुप की हेकड़ी से चिढ़ कर नहले पर दहला जड़ा.

खिसियाया मधुप इतना ही पूछ सका,  ‘‘आप यह सब कैसे जानते हैं?’’

‘‘अकसर मैं रविवार को इस के पापा के साथ गोल्फ खेल कर लंच लेता हूं. तभी परिवार के  बारे में बातचीत हो जाती है.’’

‘‘आप ने उन को मेरे बारे में बताया?’’

‘‘अभी तक तो नहीं, लेकिन वह यहीं है, चाहो तो मिलवा सकता हूं?’’

कहना तो चाहा कि पूछते क्यों हैं, जल्दी से मिलवाइए, पर हेकड़ी ने फिर सिर उठाया,  ‘‘ठीक है, मिल लेते हैं, लेकिन शादीब्याह की बात आप अभी नहीं करेंगे.’’

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‘‘मैं तो कभी नहीं करूंगा, परस्पर परिचय करवा कर तटस्थ हो जाऊंगा,’’ कह कर मामा ने उसे डाक्टर धरणीधर से मिलवा दिया. जैसा उस ने सोचा था, धरणीधर ने तुरंत अपनी बेटी कशिश और पत्नी कामिनी से मिलवाया और मधुप ने उन्हें अपने मम्मीपापा से. परिचय करवाने वाले मामा शादी की भीड़ में न जाने कहां खो गए. किसी ने उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश भी नहीं की. चलने से पहले डा. धरणीधर ने उन लोगों को अगले सप्ताहांत डिनर पर बुलाया जिसे मधुप के परिवार ने सर्हष मान लिया. मधुप की बेसब्री तो इतनी बढ़ चुकी थी कि 3 रोज के बाद आने वाला सप्ताहांत भी बहुत दूर लग रहा था और धरणीधर के घर जा कर तो वह बेचैनी और भी बढ़ गई. कशिश को खाना बनाने, घर सजाने यानी जिंदगी की हर शै को जीने का शौक था. ‘‘इस का कहना है कि आप अपनी नौकरी या व्यवसाय में तभी तरक्की कर सकते हो जब आप उस से कमाए पैसे का भरपूर आनंद लो. यह आप को अपना काम बेहतर करने की ललक और प्रेरणा देता है,’’ धरणीधर ने बताया,  ‘‘अब तो मैं भी इस का यह तर्क मानने लग गया हूं.’’

उस के बाद सब कुछ बहुत जल्दी हो गया यानी सगाई, शादी. मधुप को मानना पड़ा कि कशिश बगैर किसी पूर्वाग्रह के जीने की कला जानती यानी जीवन की विभिन्न विधाओं में तालमेल बैठाना. न  तो उसे अपने औफिस की समस्याओं को ले कर कोई तनाव होता और न ही किसी घरेलू नौकर के बगैर बताए छुट्टी लेने पर यानी घर और औफिस सुचारु रूप से चला रही थी. मधुप को भी कभी आज नहीं, आज बहुत थक गई हूं कह कर नहीं टाला था.

समय पंख लगा कर उड़ रहा था. शादी की तीसरी सालगिरह पर सास और मां ने दादीनानी बनाने की फरमाइश की. कशिश भी कैरियर में उस मुकाम पर पहुंच चुकी थी जहां पर कुछ समय के लिए विराम ले सकती थी. मधुप को भी कोई एतराज नहीं था. सो दोनों ने स्वेच्छा से परिवार नियोजन को तिलांजलि दे दी. लेकिन जब साल भर तक कुछ नहीं हुआ तो कशिश ने मैडिकल परीक्षण करवाया. उस की फैलोपियन ट्यूब में कुछ विकार था, जो इलाज से ठीक हो सकता था. डा. धरणीधर शहर की जानीमानी स्त्रीरोग विशेषज्ञा डा. विशाखा से अपनी देखरेख में कशिश का उपचार करवाने लगे. प्रत्येक टैस्ट अपने सामने 2 प्रयोगशालाओं में करवाते थे.

उस रात कशिश और मधुप रात का खाना खाने ही वाले थे कि अचानक डा. धरणीधर और कामिनी आ गए. डा. धरणीधर मधुप को बांहों में भर कर बोले,  ‘‘साल भर पूरा होने से पहले ही मुझे नाना बनाओ. आज की रिपोर्ट के मुताबिक कशिश अब एकदम स्वस्थ है सो गैट सैट रैडी ऐंड गो मधुप. मगर अभी तो हमारे साथ चलो, कहीं जश्न मनाते हैं.’’

‘‘आज तो घर पर ही सैलिब्रेट कर लेते हैं पापा,’’ कशिश ने शरमाते हुए कहा, ‘‘बाहर किसी जानपहचान वाले ने वजह पूछ ली तो क्या कहेंगे?’’

‘‘वही जो सच है. मैं तो खुद ही आगे बढ़ कर सब को बताना चाह रहा हूं. मगर तुम कहती हो तो घर पर ही सही,’’ धरणीधर ने मधुप को छेड़ा, ‘‘नाना बनने वाला हूं, उस के स्तर की खातिर करो होने वाले पापाजी.’’

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डा. धरणीधर देर रात आने वाले मेहमानों के आगमन की तैयारी की बातें करते रहे. कामिनी ने याद दिलाया कि घर चलना चाहिए, सुबह सब को काम पर जाना है, वे नाना बनने वाले हैं इस खुशी में कल छुट्टी नहीं है.

‘‘पापा, आप के साथ ड्राइवर नहीं है. आप अपनी गाड़ी यहीं छोड़ दें. सुबह ड्राइवर से मंगवा लीजिएगा. अभी आप को हम लोग घर पहुंचा देते हैं,’’ मधुप ने कहा.

‘‘तुम लोग तो अब बेटाजी, तुरंत आने वाले मेहमान को लाने की तैयारी में जुट जाओ. हमारी फिक्र मत करो. गाड़ी क्या आज तो मैं हवाईजहाज भी चला सकता हूं,’’ धरणीधर जोश से बोले.

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Serial Story: घमंडी (भाग-3)

‘‘उस का तो अब सवाल ही नहीं उठता, तुम्हारे 7 या 70 खून भी माफ,’’ मधुप हंसा. मगर उस के स्वर में क्षमायाचना या पश्चात्ताप नहीं था. समझ तो गया कि कशिश को तलाक के कागज मिल गए हैं और यह कह कर कि अब उस का सवाल ही नहीं उठता, उस ने बात भी खत्म कर दी थी व कशिश को उस की गुस्ताखी और औकात की याद भी दिला दी थी. यों तो उसे वकील से भी संपर्क करना चाहिए था पर इस से अहं को ठेस लगती. कशिश से जवाब न मिलने पर जब वकील उस से अगले कदम के बारे में पूछेगा तो कह देगा कशिश ने भूल सुधार ली है.

मधुप को कशिश के औफिस जाने पर तो एतराज नहीं था, लेकिन जबतब मम्मीपापा के घर जा कर कशिश का उदास होना उसे पसंद नहीं था. घर की देखभाल के लिए जाना भी जरूरी था, नौकरों के भरोसे तो छोड़ा नहीं जा सकता था. मधुप ने कशिश को समझाया कि क्यों न पापा के क्लीनिक संभालने वाले विधुर डा. सुधीर से कोठी में ही रहने को कहें. सुन कर कशिश फड़क उठी जैसे किसी बहुत बड़ी समस्या का हल मिल गया हो. उस के बाद कशिश पूर्णतया सहज और तनावमुक्त हो गई.

‘‘आज मैं औफिस नहीं जाऊंगी, घर पर रह कर छोटेमोटे काम करूंगी जैसे कपड़ों की अलमारी में आने वाले महीनों में जो नहीं पहनने हैं उन्हें सहेज कर रखना और जो ढीले हो सकते हैं उन्हें अलग रखना वगैरह,’’ एक रोज कशिश ने बड़े सहज भाव से कहा, ‘‘फिक्र मत करो, थकाने वाला काम नहीं है और फिर घर पर ही हूं. थकान होगी तो आराम कर लूंगी.’’

मधुप आश्वस्त हो कर औफिस चला गया. जब वह लंच के लिए घर आया तो कशिश घर पर नहीं थी. नौकर ने बताया कि कुछ देर पहले गाड़ी में सामान से भरे हुए कुछ बैग और सूटकेस ले कर मैडम बाहर गई हैं.

‘‘यह नहीं बताया कि कब आएंगी या कहां गई हैं?’’

‘‘नहीं साहब.’’

जाहिर था कि सामान ले कर कशिश अपने पापा के घर ही गई होगी. मधुप ने फोन करने के बजाय वहां जाना बेहतर समझा. ड्राइव वे में कशिश की गाड़ी खड़ी थी. उस की गाड़ी को देखते ही बजाय दरवाजा खेलने के चौकीदार ने रुखाई से कहा, ‘‘बिटिया ने कहा है आप को अंदर नहीं आने दें.’’

तभी अंदर से डा. सुधीर आ गया. बोला, ‘‘कशिश से अब आप का संपर्क केवल अपने वकील द्वारा ही होगा सो आइंदा यहां मत आइएगा.’’

‘‘कैसे नहीं आऊंगा… कशिश मेरी बीवी है…’’

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‘‘वही बीवी जिसे आप ने बदचलनी के आरोप में तलाक का नोटिस भिजवाया है?’’ सुधीर ने व्यंग्य से बात काटी, ‘‘आप अपने वकील से कशिश की प्रतिक्रिया की प्रति ले लीजिए.’’

मधुप का सिर भन्ना गया. बोला, ‘‘मुझे कशिश को नोटिस भेजने की वजह बतानी है.’’

‘‘जो भी बताना है वकील के द्वारा बताइए. कशिश से तो आप की मुलाकात अब कोर्ट में ही होगी,’’ कह कर सुधीर चला गया. ‘‘आप भी जाइए साहब, हमें हाथ उठाने को मजबूर मत करिए,’’ चौकीदार ने बेबसी से कहा. मधुप भिनभिनाता हुआ अर्देशीर के औफिस पहुंचा.

‘‘आप की पत्नी भी बगैर किसी शर्त के आप को तुरंत तलाक देने को तैयार है सो पहली सुनवाई में ही फैसला हो जाएगा. हम जितनी जल्दी हो सकेगा तारीख लेने की कोशिश करेंगे,’’ अर्देशीर ने उसे देखते ही कहा.

‘‘मगर मुझे तलाक नहीं चाहिए. मैं अपने आरोप और केस वापस लेना चाहता हूं. आप तुरंत इस आशय का नोटिस कशिश के वकील को भेज दीजिए,’’ मधुप ने उतावली से कहा. अर्देशीर ने आश्चर्य और फिर दया मिश्रित भाव से उस की ओर देखा.

‘‘ऐसे मामलों को वकीलों द्वारा नहीं आपसी बातचीत द्वारा सुलझाना बेहतर होता है.’’

‘‘चाहता तो मैं भी यही हूं,

लेकिन कशिश मुझ से मिलने को ही तैयार नहीं है. आप तुरंत उस के वकील को केस और आरोप वापस लेने का नोटिस भिजवा दें.’’

‘‘इस से मामला बहुत बिगड़ जाएगा. कशिश की वकील सोनाली उलटे आप पर अपने क्लाइंट को बिन वजह परेशान करने और मानसिक संत्रास देने का आरोप लगा देगी.’’

‘‘कशिश की वकील सोनाली?’’

‘‘जी हां, आप उन्हें जानते हैं?’’

‘‘हां. कशिश की बहुत अच्छी सहेली है.’’‘‘तो आप उन से मिल कर समझौता कर लीजिए. वैसे भी हमारे लिए तो अब इस केस में करने के लिए कुछ रहा ही नहीं है,’’ अर्देशीर ने रुखाई से कहा.

मधुप तुंरत सोनाली के घर गया. उस की आशा के विपरीत सोनाली उस से बहुत अच्छी तरह मिली. ‘‘मैं बताना चाहता हूं कि मैं ने वह नोटिस कशिश को महज झटका देने को भिजवाया था. उसे अपनी गलती का एहसास करवाने को. उस के गर्भवती होने की खबर मिलते ही मैं ने उस से कहा भी था कि अब तलाक का सवाल ही नहीं उठता, तो बात को रफादफा करने के बजाय कशिश ने मामला आगे क्यों बढ़ाया सोनाली?’’

‘‘क्योंकि तुम ने उस के स्वाभिमान को ललकारा था मधुप या यह कहो उस पर अपनी मर्दानगी थोपनी चाही थी. यदि उसी समय तुम नोटिस भिजवाने के लिए माफी मांग लेते तो हो सकता था कि कशिश मान जाती. लेकिन तुम ने तो अपने वकील को भी नोटिस खारिज करने

को नहीं कहा, क्योंकि इस से तुम्हारा अहं आहत होता था. मानती हूं सर्वसाधारण से हट कर हो तुम, लेकिन कशिश भी तुम से 19 नहीं है शायद 21 ही होगी. फिर वह क्यों बनवाए स्वयं को डोरमैट, क्यों लहूलुहान करवाए अपना सम्मान?’’ सोनाली बोली.

‘‘मेरे चरित्रहीनता वाले मिथ्या आरोप को मान कर क्या वह स्वयं ही खुद पर कीचड़ नहीं उछाल रही?’’

‘‘नहीं मधुप, कशिश का मानना है कि विवाह एक पवित्र रिश्ता है, जो 2 प्यार करने वालोेंके बीच होना चाहिए. बगैर प्यार के शादी या एकतरफा प्यार में पतिपत्नी की तरह रहना लिव इन रिलेशनशिप से भी ज्यादा अनैतिक है, क्योंकि लिव इन में प्यार को परखने का प्रयास तो होता है, लेकिन एकतरफा प्यार अभिसार नहीं व्याभिचार है सो अनैतिक कहलाएगा और अनैतिक रिश्ते में रहने वाली स्त्री चरित्रहीन…’’

‘‘मगर कशिश का एकतरफा प्यार कैसे हो गया? वह अच्छी तरह जानती है कि मैं उसे कितनी शिद्दत से प्यार करता हूं,’’ मधुप ने बात काटी. ‘‘कशिश का कहना है कि तुम सिर्फ खुद से और खुद की उपलब्धियों से प्यार करते हो. कशिश जैसी ‘ब्रेन विद ब्यूटी’ कहलाने वाली बीवी भी एक उपलब्धि ही तो थी तुम्हारे लिए… अगर तुम्हें उस से वाकई में प्यार होता तो तुम उस के लिए चरित्रहीन जैसा घिनौना शब्द इस्तेमाल ही नहीं करते.’’

‘‘वह तो मैं ने कशिश के उकसाने पर ही किया था. खैर, अब बोलो आगे क्या करना है या तुम क्या कर सकती हो?’’

‘‘बगैर तुम्हारे आरोप की धज्जियां उड़ाए या तुम्हारे वकील को कशिश के चरित्र पर कीचड़ उछालने का मौका दिए, आपसी समझौते से तलाक दिलवा सकती हूं.’’

‘‘मगर मैं तलाक नहीं चाहता सोनाली.’’ ‘‘कशिश चाहती है और मैं कशिश की वकील हूं,’’ सोनाली ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘वही करूंगी जो वह चाहती है.’’

‘‘तो तलाक करवा दो, मगर इस शर्त पर कि मुझे अपने बच्चे को देखने का हक होगा.’’

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‘‘चरित्रहीन का आरोप लगाने के बाद तुम किस मुंह से यह शर्त रख सकते हो मधुप?’’ बच्चे के लिए यह तलाक हो जाने के बाद या तो तुम दूसरी शादी कर लेना या अपनी उपलब्धियों अथवा घमंड को पालते रहना बच्चे की तरह,’’ कह कर सोनाली व्यंग्य से हंस पड़ी.

‘‘सलाह के लिए शुक्रिया,’’ घमंडी मधुप इतना ही कह सका. पर उसे लग रहा था कि उस के पैरों में अभी जंजीरें पड़ी हैं. चांद का टुकड़ा तो वह था पर चांद का जिस पर न कोई जीवन है, न हवा, न पानी, बस उबड़खाबड़ गड्ढे हैं.

Serial Story: घमंडी (भाग-2)

उसी जोश में तेज गाड़ी भगाते हुए उन्होंने सड़क के किनारे खड़े ट्रक को इतनी जोर से टक्कर मार दी कि गाड़ी में तुरंत आग लग गई, जिस के बुझने पर राख में सिर्फ अस्थिपंजर और लोहे के भाग मिले. शेष सब कुछ पल भर में ही भस्म हो गया. कशिश तो इस हादसे से जैसे विक्षप्त ही हो गई थी. अकेली संतान होने के कारण समझ ही नहीं पा रही थी कि कैसे खुद को संभाले और कैसे मम्मीपापा द्वारा छोड़ी गई अपार संपत्ति को. मधुप उस के अथाह दुख को समझ रहा था और यथासंभव उस की सहायता भी कर रहा था, लेकिन कशिश को शायद उस दुख के साथ जीने में ही मजा आ रहा था. औफिस तो जाती थी, लेकिन मधुप और घर की ओर से प्राय: उदासीन हो चली थी. मधुप का संयम टूटने लगा था. एक रोज कशिश ने बताया कि उस ने वकील से पापा की संपत्ति का समाजसेवा संस्था के लिए ट्रस्ट बनाने को कहा था मगर उन का कहना है कि फिलहाल कोठी को किराए पर चढ़ा दो और पैसे को फिक्स्ड डिपौजिट में डालती रहो. कुछ वर्षों के बाद जब पापा के नातीनातिन बड़े हो जाएं तो उन्हें फैसला करने देना कि वे उस संपत्ति का क्या करना चाहते हैं.

‘‘बिलकुल ठीक कहते हैं वकील साहब. मम्मीपापा जीवित रहते तो यही करते और तुम्हें भी वही करना चाहिए जो मम्मीपापा की अंतिम इच्छा थी,’’ मधुप ने कहा.

‘‘अंतिम इच्छा क्या थी?’’

‘‘अपने नातीनातिन को जल्दी से दुनिया में बुलवाने की. हमें उन की यह इच्छा जल्दी से जल्दी पूरी करनी चाहिए,’’ मधुप ने मौका लपका और कशिश को अपनी बांहों में भर लिया.

कशिश कसमसा कर उस की बांहों से निकल गई. फिर बोली,  ‘‘मम्मीपापा के घर से निकलते ही तुम रात भर उन की यह इच्छा तो पूरी करने में लगे रहे थे और इसलिए बारबार बजने पर भी फोन नहीं उठाया था…’’

‘‘फोन उठा कर भी क्या होता कशिश?’’ मधुप ने बात काटी, ‘‘फोन तो सब

कुछ खत्म होने के बाद ही आया था.’’

‘‘हां, सब कुछ ही तो खत्म हो गया,’’ कशिश ने आह भर कर कहा.

‘‘कुछ खत्म नहीं हुआ कशिश, हम हैं न मम्मीपापा के सपने जीवित रखने को,’’ कह कर मधुप ने उसे फिर बांहों में भर लिया.

‘‘प्लीज मधुप, अभी मैं शोक में हूं.’’

‘‘कब तक शोक में रहोगी? तुम्हारे इस तरह से शोक में रहने से मम्मीपापा लौट आएंगे?’’

कशिश ने मायूसी से सिर हिलाया. फिर बोली, ‘‘मगर मुझे सिवा उन की याद में रहने के और कुछ भी अच्छा नहीं लगता.’’

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‘‘मगर मुझे ब्रह्मचारी बन कर रहना अच्छा नहीं लग रहा. अपनी पुरानी जिंदगी के साथ ही मुझे अब बच्चा भी चाहिए, मधुप ने आजिजी से कहा.’’ ‘‘कहा न, मैं अभी उस मनोस्थिति में नहीं हूं.’’ ‘‘मनोस्थिति बनाना अपने हाथ में होता है कशिश. मैं अब बच्चे के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहता. औलाद सही उम्र में होनी चाहिए ताकि अपनी सेवानिवृत्ति से पहले आप अपने बच्चों को जीवन में व्यवस्थित कर सकें,’’ मधुप ने समझाने के स्वर में कहा.

‘‘उफ, तो आप भी सोचने लगे हैं और वह भी बहुत दूर की,’’ कशिश व्यंग्य से बोली. मधुप तिलमिला गया. कशिश समझती क्या है अपने को? बजाय इस के कि उस के संयम और सहयोग की सराहना करे, कशिश उस का मजाक उड़ा रही है. बहुत हो गया, अब कशिश को उस की औकात बतानी ही पड़ेगी.

‘‘बेहतर रहेगा तुम भी ऐसा ही सोचने लगो,’’ मधुप ने भी उसी अंदाज में कहा.

‘‘अगर न सोचूं तो?’’ ‘‘तो मुझे मजबूरन तुम्हें तलाक दे कर औलाद के लिए दूसरी शादी करनी होगी. बहुत इंतजार कर लिया, अब मैं और मेरे मातापिता बच्चे के लिए और इंतजार नहीं कर सकते.’’

कशिश फिर व्यंग्य से हंस पड़ी, ‘‘यही वजह तलाक के लिए काफी नहीं होगी.’’ ‘‘जानता हूं और उंगली टेढ़ी करनी भी. तुम्हें चरित्रहीन साबित कर के आसानी से तलाक ले सकता हूं. फर्जी गवाह या फोटो तो 1 हजार मिलते हैं.’’ ‘‘तुम्हें तो उन की तलाश भी नहीं करनी पड़ेगी… मेरी तरक्की से जलेभुने बहुत लोग हैं, तुम जो चाहोगे उस से भी ज्यादा मुफ्त में कह देंगे,’’ कशिश के कहने के ढंग से मधुप भी हंस पड़ा.

तलाक की बात कशिश को बुरी तो बहुत लगी थी, लेकिन इस समय वह बात को बढ़ा कर एक और समस्या खड़ी नहीं करना चाहती थी सो उस ने बड़ी सफाईर् से बात बदल दी, ‘‘फोटो के जिक्र पर याद आया मधुप, आज के अखबार में तुम ने सुशील का फोटो देखा?’’

‘‘हां और उसे पेज थ्री पर आने के लिए बधाई भी दे दी,’’ मधुप हंसा, ‘‘कब से हाथपैर मार रहा था इस के लिए.’’ बात आईगई हो गई. 3-4 रोज के बाद कशिश अपनी अलमारी में कुछ ढूंढ़ रही थी कि सैनेटरी नैपकिन के पैकेट पर नजर पड़ते ही वह चौंक पड़ी. 2 महीने से ज्यादा हो गए, उस ने उन का इस्तेमाल ही नहीं किया. इस की वजह अवसाद भी हो सकती है. मगर क्या पता खुशी दरवाजे पर दस्तक दे रही हो? उस ने तुरंत डा. विशाखा को फोन किया. कुछ काम निबटा कर वह डा. विशाखा के पास जाने को निकल ही रही थी कि कुरियर से जानेमाने वकील अर्देशीर द्वारा भिजवाया गया मधुप का तलाक का नोटिस मिला. कशिश का सिर घूम गया.

वह कुछ देर कुछ सोचती रही फिर मुसकरा कर बाहर आ गई. डा. विशाखा उस की जांच करने के बाद मोबाइल नंबर मिलाने लगीं, ‘‘बधाई हो मधुप, कशिश को 10 सप्ताह का गर्भ है. तुम तुरंत मेरे नर्सिंगहोम में पहुंचो, मैं तुम दोनों को एकसाथ कुछ सलाह दूंगी,’’ कह विशाखा कशिश की ओर मुड़ी, ‘‘अब तक सब ठीक रहा है, तो आगे भी ठीक रहेगा वाला रवैया नहीं चलेगा. तुम्हें अपना बहुत खयाल रखना होगा, जो तुम तो रखने से रहीं इसलिए मधुप को यह जिम्मेदारी सौपूंगी.’’

कशिश मुसकरा दी. उस मुसकराहट में छिपा विद्रूप और व्यंग्य डा. विशाखा ने नहीं देखा. मधुप से खुशी समेटे नहीं सिमट रही थी. बोला, ‘‘आप फिक्र मत करिए डा. विशाखा. मैं साए की तरह कशिश के साथ रहूंगा, लंबी छुट्टी ले लूंगा काम से.’’

‘‘मगर मैं तो जब तक जा सकती हूं, काम पर जाऊंगी,’’ कशिश ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘घर में बेकार बैठ कर बोर होने का असर मेरी सेहत पर पड़ेगा.’’

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‘‘वह तो है, जरूर काम पर जाओ मगर निश्चित समय पर खाओपीओ और आराम करो,’’ कह कर विशाखा ने दोनों को क्या करना है क्या नहीं यह बताया.

‘‘हम दोनों लंच के लिए घर आया करेंगे, फिर आराम करने के बाद कुछ देर के बाद जरूरी हुआ तो औफिस जाएंगे, फिर रात के खाने के बाद नियमित टहलने. इस में तुम कोईर् फेरबदल नहीं कारोगी,’’ मधुप ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘करूंगी तो तुम मुझे तलाक दे दोगे?’’ कशिश के स्वर में व्यंग्य था.

आगे पढ़ें- मधुप को कशिश के औफिस जाने पर तो…

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