‘‘क्या बात है शालू सुस्त क्यों नजर आ रही हो?’’ औफिस से लौटते राजेश को मेरी उदासी पहचानने में 1 मिनट का समय भी नहीं लगा.
‘‘आज एक बुरी खबर सुनने को मिली है,’’ मेरी आंखों में आंसू भर आए.
‘‘कैसी बुरी खबर?’’ वे फौरन चिंता से भर उठे.
‘‘आप को मेरी सहेली वंदना याद है?’’
‘‘हां, याद है.’’
‘‘वह बहुत बीमार है. शायद ज्यादा दिन न जीए,’’ मैं ने उन्हें रुंधे गले से जानकारी दी.
‘‘वैरी सैड,’’ सिर्फ ये 2 शब्द बोल कर उन्होंने जब सतही सा अफसोस जताया और
जूतों के फीते खोलने में लग गए, तो मुझे गुस्सा आ गया.
‘‘आप इस बारे में और कुछ नहीं जानना चाहेंगे?’’ भावावेश के कारण मेरी आवाज कांप रही थी.
‘‘तुम बोलो मैं सुन रहा हूं.’’
‘‘लेकिन सुन कितने अजीब से ढंग से रहे हो. अरे, मैं उस वंदना की बात कर रही हूं जिस से आप शादी के बाद घंटों बतियाते थे, जो बिलकुल घर की सदस्य बन कर यहां सुबह से रात तक रहा करती थी. आज करीब 15 साल बाद मैं आप की उस लाडली साली की दुखभरी खबर सुना रही हूं और आप सिर्फ वेरी सैड कह रहे हो,’’ मैं गुस्से से फट पड़ी.
‘‘मैं और क्या कहूं शालू. जीनामरना तो इस दुनिया में चलता ही रहता है,’’ उन्होंने भावहीन से लहजे में जवाब दिया.
‘‘आप ऐसी दार्शनिकता किसी और मौके पर बघारना. मेरा मन वंदना से मिलने का कर रहा है. उस की इतने सालों से कोई खबर नहीं थी और आज मिली है तो कैसी बुरी खबर मिली है,’’ मेरा गला फिर से भर आया.
‘‘क्या करोगी उस से मिल कर?’’
‘‘यह आप कैसा अजीब सा सवाल पूछ रहे हो. अरे, वह मेरी सब से प्यारी सहेली है.’’
‘‘उस प्यारी सहेली ने पिछले 15 सालों में तुम्हें न कभी फोन किया, न चिट्ठी लिखी और न ही कभी मिलने आई.’’
‘‘इस कारण मेरे दिल में उस के लिए बसे प्यार और दोस्ती के भाव रत्तीभर कम नहीं हुए हैं.’’
‘‘मैं तो सिर्फ ये कहना चाह रहा हूं कि जो इंसान अब ज्यादा जीएगा ही नहीं, उस से मिल कर मन को दुखी करने का क्या फायदा है.’’
‘‘यह फायदेनुकसान की बात ही नहीं है. मेरा दिल उस से मिलना चाह रहा है और मैं जाऊंगी.’’
‘‘बच्चों के ऐग्जाम आने वाले…’’
‘‘ऐग्जाम अगले महीने हैं और आगामी सोम और मंगल को उन के स्कूल में छुट्टी है. हम शनिवार को निकलेंगे और मंगल तक लौट आएंगे.’’
‘‘लेकिन उन की देखभाल…’’
‘‘वे अपनी चाची के पास रहेंगे. मैं ने नीतू से मोबाइल पर बात कर ली है.’’
‘‘देखो, यों जिद…’’
‘‘प्लीज, राजेश मुझे वंदना से मिलना ही है.’’
मेरे आंसुओं के सामने उन्होंने हथियार डालते हुए कह दिया, ‘‘ओके. हम शनिवार की रात को निकलेंगे. मैं ट्रेन के टिकट बुक करा देता हूं,’’ कह वे मुझे ड्राइंगरूम में अकेला छोड़ कर कपड़े बदलने बैडरूम में चले गए.
मेरे दोनों बेटों का ट्यूशन से लौटने में अभी वक्त था. मैं थकीहारी सी आंखें मूंद कर वहीं बैठीबैठी वंदना की यादों में खो गई…
वरना मेरी बचपन की सहेली थी. हमारे घर आसपास ही थे इसलिए हम साथसाथ खेल और पढ़ कर बड़े हुए थे.
राजेश को मेरे लिए मेरे मम्मीपापा ने ढूंढ़ा था. मेरी सास बीमारी रहती थी और घर का सारा काम करने की जिम्मेदारी मुझे ही बड़ी जल्दी संभालनी पड़ी थी.
मैं ने बीएड में प्रवेश पाने के लिए परीक्षा शादी के पहले दे रखी थी. शादी के बाद मुझे परीक्षा में सफल हो जाने का समाचार मिला, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
वंदना ने मेरा साथ न दिया होता, तो मैं कभी बीएड न कर पाती. मुझे पूरे सालभर तक रोज कालेज जाने के अलावा घर लौट कर भी बहुत पढ़ना-लिखना पड़ता था.
वंदना रोज मेरे घर आ जाती. मेरा घर के कार्यों में ही नहीं बल्कि कालेज से मिले असाइनमैंट पूरे करने में भी हाथ बंटाती. मेरी सास उस की बहुत तारीफ करती. राजेश से वह जल्द ही खूब खुल गई थी और जीजासाली की नोक झोंक के चलते हमारे घर का माहौल बड़ा खुशनुमा रहता.
मेरा बीएड का रिजल्ट बड़ा अच्छा रहा. इस खुशी के मौके पर मैं ने वंदना को बड़ा सुंदर और कीमती सूट उपहार में दिया.
मैं ने बीएड के बाद एक पब्लिक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. वंदना पहले की तरह रोज तो नहीं, पर सप्ताह में 2-3 बार तब भी हम से मिलने आ जाया करती थी. राजेश के साथ फोन पर किसी भी विजय पर लंबीलंबी चर्चा करती. वह तो शुक्र था कि इन दोनों के बीच फोन पर बातें मुफ्त में होती थीं क्योंकि राजेश ने एक खास स्कीम फोन कंपनी से ले रखी थी. वे ऐसा न करते, तो इन दोनों की गपशप का बिल हर महीने हजारों रुपए आता. उन दिनों मोबाइलों का रेट कुछ ज्यादा था. वह राजेश को लैंडलाइन पर नहीं, मोबाइल पर फोन करती थी.
मेरी शादी के करीब 2 साल बाद वंदना का रिश्ता उस की मम्मी ने तय किया. उस के पापा की हार्टअटैक से मौत हुए तब 6-7 साल का समय बीत चुका था.
लड़का अच्छा था, उस का घरबार भी ठीक था, पर उन दोनों की शादी तय करी गई तारीख से केवल 5 दिन पहले टूट गई.
वंदना और उस लड़के के बीच न जाने क्या घटा जो वह शादी नहीं हो सकी. दोनों तरफ के लोगों ने बहुत पूछा, पर शादी टूटने का सही कारण न वंदना ने किसी को बताया, न उस लड़के ने. वह इस विषय पर मेरे सामने भी चुप्पी साध लेती थी. लोगों को तरहतरह की अफवाहें उड़ाने का मौका मिल गया. तब वंदना ने अपनी ननिहाल के शहर मेरठ शिफ्ट करने का फैसला किया. अपनी शादी टूटने के करीब 3 महीने बाद वह अपनी मां के साथ मेरठ चली गई. फिर कानपुर शिफ्ट हो गई. तब से उस के और हमारे बीच संपर्क खत्म होता गया. शुरूशुरू में 2-4 बार टैलीफोन पर बातें हुईं, पर मुझे ऐेसे अवसरों पर साफ महसूस होता कि वह अनमनी हो कर ही मुझ से बातें करती.
‘‘वंदना बदल गई है. उस के दिल पर शादी टूट जाने से गहरा जख्म लगा है. बहुत कटीकटी सी बोलती है फोन पर,’’ मैं उन दिनों राजेश से अकसर ऐसी शिकायत दुखी मन से किया करती, पर ये मुझ पर ज्यादा ध्यान नहीं देते.
लगभग 15 साल बीत गए थे वंदना को दिल्ली छोड़े हुए. वह अब कानपुर में गंभीर रूप से बीमार पड़ कर जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही थी. इतने लंबे समय में उस के जीवन में क्याक्या घटा है, इस की कोई जानकारी मेरे पास नहीं थी.
शनिवार को हम दोनों गाड़ी से चल दिए. सारे रास्ते में मैं ने वंदना को याद करते हुए कई बार आंसू बहाए. अपनी सीट पर बैठे हुए जिस अंदाज में राजेश बारबार करवट बदल रहे थे, उस से यह साफ जाहिर हो रहा था कि वे भी कुछ बेचैन हैं. स्टेशन से पहले ही उन्होंने किसी को मोबाइल से कहा, ‘‘5 मिनट में बाहर आते हैं.’’
कानपुर स्टेशन से बाहर आने के बाद जिस बात ने मुझे बड़ा हैरान किया, वह थी एक औटोरिकशेवाले का राजेश को सलाम करना और बिना हम से पूछे हमारा बैग उठा कर अपने रिकशा की तरफ बढ़ जाना.
‘‘यह औटो वाला आप को कैसे जानता है,’’ मैं ने अचंभित स्वर में पूछा, तो राजेश गंभीर अंदाज में मेरा चेहरा ध्यान से देखने लगे.
‘‘मेरे सवाल का जवाब दीजिए न?’’ उन्हें हिचकिचाते देख मैं ने उन पर दबाव डाला.
‘‘शालू, तुम वंदना से मिलना चाहती हो न,’’ उन्होंने संजीदा लहजे में मुझ से ये पूछा.
‘‘हम यहां इसीलिए तो आए हैं,’’ उन का सवाल सुन कर मेरे मन में अजीब सी उलझन के भाव उभरे.
‘‘हां, और अब तुम मेरी एक प्रार्थना पर ध्यान दो प्लीज. आगेआगे जो घटेगा, उसे लेकर तुम्हारे मन में कई तरह की भावनाएं और सवाल उभरेंगे. तुम कृपा कर के उन्हें अपने मन में ही रखना.’’
‘‘आप ऐसी अजीब सी बंदिश क्यों लगा रहे हैं मुझ पर?’’
‘‘क्योंकि कुछ सवालों के जवाब दिए नहीं जा सकते. शब्दों से मनोभावनाओं को व्यक्त करना हमेशा संभव नहीं होता है. उन्हें व्यक्त करने का प्रयास पीड़ादायक होता है और सुनने वाला कहीं अर्थ का अनर्थ लगा ले, तो स्थिति और बिगड़ जाती है, शालू.’’
‘‘मेरी समझ में तो आप की कोई बात नहीं आ रही है,’’ मैं परेशान हो उठी.
‘‘ध्यान रखना कि तुम्हें कोई सवाल नहीं पूछना है मुझ से,’’ उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और औटो की तरफ चल पड़े.
औटो वाले ने 20 मिनट बाद हमें खन्ना नर्सिंगहोम की ऊंची सी इमारत तक अपनेआप पहुंचा दिया. फिर गेट पर खड़े वाचमैन ने राजेश को परिचित अंदाज में सलाम किया. रिसैप्शनिस्ट भी उन्हें पहचानती थी. उस नर्सिंगहोम के मालिक डाक्टर सुभाष ने मुझे अपना परिचय राजेश के बचपन के दोस्त के रूप में दिया. वहां की सिस्टर और आयाओं की मुसकान साफ दर्शा रही थी कि वे सब राजेश को अच्छी तरह जानतेपहचानते हैं.
मेरी जानकारी में राजेश कभी कानपुर नहीं आए थे, लेकिन इन सब बातों से मेरे लिए यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं था कि यहां मुझ से छिपा कर वे आते रहे हैं. उन्हें अपनी कंपनी के काम से अकसर टूर पर जाना पड़ता है. मेरी जानकारी में आए बिना उन का यहां आना कोई मुश्किल काम न था.
‘‘मुझ से क्यों छिपाते रहे हो आप यहां अपना आना?’’ मैं राजेश से यह सवाल पूछना चाहती थी, पर उन्होंने तो पहले ही कोई सवाल पूछने पर बंदिश लगा दी थी.
मुझे डाक्टर सुभाष के पास छोड़ कर राजेश बिना कुछ कहे कक्ष से बाहर चले गए. डाक्टर साहब ने मेरे लिए चाय मंगवाई और फिर मुझ से बातें करने लगे.
‘‘राजेश को मैं सालों से जानता हूं, पर वे ऐसा हीरा इंसान हैं, इस का अंदाजा मुझे पिछले
1 साल में ही हुआ, भाभीजी,’’ उन की आंखों
में अपने दोस्त के लिए गहरे सम्मान के भाव मौजूद थे. मेरी समझ में नहीं आया कि वे क्यों राजेश को ‘हीरा’ कह रहे हैं, सो मैं खामोश रही. वैसे मैं सारे मामले को समझने के लिए बड़ी उत्सुकता से उन के आगे बोलने का इंतजार कर रही थी.
‘‘आजकल कौन किसी के काम आता है, भाभीजी. सचमुच अपना राजेश अनूठा इंसान है. जरूर आप ने ही उसे इतना ज्यादा बदल दिया है,’’ मेरी प्रशंसा कर वे हंस पड़े तो मुझे भी मुसकराना पड़ा.
‘‘राजेश वंदना के इलाज का सारा खर्चा उठा कर बड़ी इंसानियत का काम रह रहा है. मैं भी जितनी रियायत कर सकता हूं, कर रहा हूं, पर फिर भी दवाइयां महंगी होती हैं. आप की सहेली के इलाज पर डेढ़दो लाख का खर्चा तो जरूर हो चुका होगा आप लोगों का. यहां का हर कर्मचारी और डाक्टर राजेश को बड़ी इज्जत की नजरों से देखता है, भाभीजी.’’
यह दर्शाए बिना कि मैं इस सारी जानकारी से अनजान हूं, मैं ने वार्त्तालाप को आगे बढ़ाने के लिए पूछा, ‘‘अब वंदना की तबीयत कैसी है?’’
‘‘ठीक नहीं है, भाभीजी. जो कुछ हो सकता है, हम कर रहे हैं, पर ज्यादा लंबी गाड़ी नहीं खिंचेगी उस की.’’
‘‘ऐसा मत कहिए, प्लीज,’’ मेरी आंखों से आंसू बह चले.
‘‘मैं आप को झूठी तसल्ली नहीं दूंगा. भाभीजी. अस्थमा ने उस के फेफड़ों को इतना कमजोर कर दिया है कि अब उस का हृदय भी फेल होने लगा है. उस ने बहुत कष्ट भोग लिया है. अब उसे छुटकारा मिल ही जाना चाहिए.’’
‘‘मुझे उस से मिलवा दीजिए, प्लीज.’’
डाक्टर सुभाष के आदेश पर एक वार्डबौय मुझे वंदना के कमरे तक छोड़ गया. मैं अंदर प्रवेश करती उस से पहले ही राजेश बाहर आए.
‘‘जाओ, मिल लो अपनी सहेली से,’’ उन्होंने थके से स्वर में मुझे से कहा और फिर मेरा माथा बड़े भावुक से अंदाज में चूम कर वहां से चले गए.
मैं ने वंदना को बड़ी मुश्किल से पहचाना. उस का चेहरा और बदन सूजा सा नजर आ रहा था. उस की सांसें तेज चल रही थीं और उसे तकलीफ पहुंचा रही थीं.
‘‘शालू, तू ने बड़ा अच्छा किया जो मुझसे मिलने आ गई. बड़ी याद आती थी तू कभीकभी. तुझ से बिना मिले मर जाती, तो मेरा मन बहुत तड़पता,’’ मेरा स्वागत यों तो उस ने मुसकरा कर किया, पर उस की आंखों से आंसू भी बहने लगे थे. मैं उस के पलंग पर ही बैठ गई. बहुत कुछ कहना चाहती थी, पर मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, तो उस की छाती पर सिर रख कर एकाएक बिलखने लगी. ‘‘इतनी दूर से यहां क्या सिर्फ रोने आई है, पगली. अरे, कुछ अपनी सुना, कुछ मेरी सुन. ज्यादा वक्त नहीं है हमारे पास गपशप करने का,’’ मुझे शांत करने का यों प्रयास करतेकरते वह खुद भी आंसू बहाए जा रही थी.
‘‘तू कभी मिलने क्यों नहीं आई? अपना ठिकाना क्यों छिपा कर रखा? मैं तेरा दिल्ली में इलाज कराती, तो तू बड़ी जल्दी ठीक हो जाती, वंदना,’’ मैं ने रोतेरोते उसे अपनी शिकायतें सुना डालीं.
‘‘यह अस्थमा की बीमारी कभी जड़ नहीं छोड़ती है, शालू. तू मेरी छोड़ और अपनी सुना. मैं ने सुना है कि अब तू शांत किस्म की टीचर हो गई है. बच्चों की पिटाई और उन्हें जोर से डाटना बंद कर दिया है तूने,’’ उस ने वार्त्तालाप का विषय बदलने का प्रयास किया.
‘‘किस से सुना है ये सब तुम ने वंदना?’’ मैं ने अपने आंसू पोंछे और उस का हाथ अपने हाथों में ले कर प्यार से सहलाने लगी.
‘‘जीजाजी तुम्हारी और सोनूमोनू की ढेर सारी बातें मुझे हमेशा सुनाते रहते हैं,’’ जवाब देते हुए उस की आंखों में मैं ने बेचैनी के भाव बढ़ते हुए साफसाफ देखे.
‘‘वे यहां कई बार आ चुके हैं?’’
‘‘हां, कई बार. मेरा सारा इलाज वे ही…’’
‘‘क्या तुम्हें पता है कि उन्होंने मुझे अपने यहां आने की, तुम्हारी बीमारी और इलाज कराने की बातें कभी नहीं बताई हैं?’’
‘‘हां, मुझे पता है.’’
‘‘क्यों किया उन्होंने ऐसा? मैं क्या तुम्हारा इलाज कराने से उन्हें रोक देती? मुझे अंधेरे में क्यों रखा उन्होंने?’’ ये सवाल पूछते हुए मैं बड़ी पीड़ा महसूस कर रही थी.
‘‘तुम्हें कुछ न बताने का फैसला जीजाजी ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर लिया था, शालू.’’
‘‘पर क्यों किया उन्होंने ऐसा फैसला?’’
‘‘उन का मत था कि तुम शायद उन के ऐक्शन को समझ नहीं पाओगी.’’
‘‘उन का विचार था कि तुम्हारे इलाज कराने के उन के कदम को क्या मैं नहीं समझ पाऊंगी?’’
‘‘हां, और मुझ से बारबार मिलने आने की बात को भी,’’ वंदना का स्वर बेहद धीमा और थका सा हो गया.
कुछ पलों तक सोचविचार करने के बाद मैं ने झटके से पूछा, ‘‘अच्छा, यह तो बताओ कि तुम जीजासाली कब से एकदूसरे से मिल रहे हो?’’
एक गहरी सांस छोड़ कर वंदना ने बताया, ‘‘करीब सालभर पहले वे टूर पर बनारस आए हुए थे. वहां से वे अपने एक सहयोगी के बेटे की शादी में बरात के साथ यहां कानपुर आए थे. यहीं अचानक इसी नर्सिंगहोम के बाहर हमारी मुलाकात हुई थी. वे अपने पुराने दोस्त डाक्टर सुभाष से मिलने आए थे.’’
‘‘और तब से लगातार यहां तुम से मिलने आते रहे हैं?’’
‘‘हां, वे सालभर में 8-10 चक्कर यहां के लगा ही चुके होंगे. उन का भेजा कोई न कोई आदमी तो मुझ से मिलने हर महीने जरूर आता है.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘यहां का बिल चुकाने, मुझे जरूरत के रुपए देने. मैं कोई जौब करने में असमर्थ हूं न. मुझ बीमार का बोझ जीजाजी ही उठा रहे हैं शालू.’’
अचानक मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी और एक ही झटके में सारा माजरा मुझे समझ आ गया.
‘‘तुम्हारा और तुम्हारे जीजाजी का अफेयर चल रहा है न… मुझ से छिपा कर तुम से मिलने का. तुम्हारी बड़ी आर्थिक सहायता करने का और कोई कारण हो ही नहीं सकता है, वंदना,’’ मारे उत्तेजना के मेरा दिल जोर से धड़कने लगा. उस ने कोई जवाब नहीं दिया और आंसूभरी आंखों से बस मेरा चेहरा निहारती रही.
‘‘मेरा अंदाजा ठीक है न?’’ मेरी शिकायत से भरी आवाज ऊंची हो उठी. पलभर में मेरी आंखों पर वर्षों से पड़ा परदा उठ गया है. मेरी सब से अच्छी सहेली का मेरे पति के साथ अफेयर तो तब से ही शुरू हो गया होगा जब मैं बीएड करने में व्यस्त थी और तुम मेरे हक पर चुपचाप डाका डाल रही थी. तुम ने शादी क्यों तोड़ी, अब तो यह भी मैं आसानी से समझ सकती हूं. तब कितनी आसानी से तुम दोनों ने मेरी आंखों में धूल झोंकी.’’
‘‘न रो और न गुस्सा कर शालू. तेरे अंदाज ठीक है, पर तेरे हक पर मैं ने कभी डाका नहीं डाला. कभी वैसी भयंकर भूल मैं न कर बैठूं, इसीलिए मैं ने दिल्ली छोड़ दी थी. हमेशा के लिए तुम दोनों की जिंदगियों में से निकलने का फैसला कर लिया था. मुझे गलत मत समझ, प्लीज.
‘‘जीजाजी बड़े अच्छे इंसान हैं. हमारे बीच जीजासाली का हंसीमजाक से भरा रिश्ता पहले अच्छी दोस्ती में बदला और फिर प्रेम में.
‘‘हम दोनों के बीच दुनिया के हर विषय पर खूब बातें होतीं. हम दोनों एकदूसरे के सुखदुख के साथी बन गए थे. हमारे आपसी संबंधों की मिठास और गहराई ऐसी ही थी जैसी जीवनसाथियों के बीच होनी चाहिए.
‘‘फिर मेरा रिश्ता तय हुआ पर मैं ने अपने होने वाले पति की जीजाजी से तुलना करने की भूल कर दी. जीजाजी की तुलना में उस के व्यक्तित्व का आकर्षण कुछ भी न था.
‘‘मैं जीजाजी को दिल में बसा कर कैसे उस की जीवनसंगिनी बनने का ढोंग करती. अत: मैं ने शादी तोड़ना ही बेहतर समझ और तोड़ भी दी.
‘‘जीजाजी मुझे मिल नहीं सकते थे क्योंकि वे तो मेरी बड़ी
बहन के जीवनसाथी थे. तब मैं ने भावुक हो कर उन से खूबसूरत यादों के सहारे अकेले और तुम दोनों से दूर जीने का फैसला किया और दिल्ली छोड़ दी.’’
‘‘मैं तो कभी तुम दोनों से न मिलती पर कुदरत ने सालभर पहले मुझे जीजाजी से अचानक मिला दिया. तब तक अस्थमा ने मेरे स्वास्थ्य का नाश कर दिया था. मां के गुजर जाने के बाद मैं बिलकुल अकेली ही आर्थिक तंगी और जानलेवा बीमारी का सामना कर रही थी.
‘‘जीजाजी के साथ मैं ने उन के प्रेम में पड़ कर वर्षों पहले अपनी जिंदगी के सब से सुंदर 2 साल गुजारे थे. उन्हें भी वह खूबसूरत समय याद था. मुझे धन्यवाद देने के लिए उन्होंने सालभर से मेरी सारी जिम्मेदारी उठाने का बोझ अपने ऊपर ले रखा है. मैं बदले में उन्हें हंसीखुशी के बजाय सिर्फ चिंता और परेशानियां ही दे सकती हूं.
‘‘यह सच है कि 15 साल पहले तेरे हिस्से से चुराए समय को जीजाजी के साथ बिता कर मैं ने सारी दुनिया की खुशियां और सुख पाए थे. अब भी तेरे हिस्से का समय ही तो वे मुझे दे कर मेरी देखभाल कर रहे हैं. तेरे इस एहसान को मैं इस जिंदगी में तो कभी नहीं चुका पाऊंगी, शालू. अगर मेरे प्रति तेरे मन में गुस्सा या नफरत हो, तो मुझे माफ कर दे. तुझे पीड़ा दे कर मैं मरना नहीं चाहती हूं,’’ देर तक बोलने के साथसाथ रो भी पड़ने के कारण उस की सांसें बुरी तरह से उखड़ गई थीं.
मैं ने उसे छाती से लगाया और रो पड़ी. मेरे इन आंसुओं के साथ ही मेरे मन में राजेश और उसे ले कर पैदा हुए शिकायत, नाराजगी और गुस्से के भाव जड़ें जमाने से पहले ही बह गए.