कर्तव्य पालन- भाग 1: क्या रामेंद्र को हुआ गलती का एहसास

भोजन की मेज पर राजेश को न पा कर रामेंद्र विचलित हो उठे, बेमन से रोटी का कौर तोड़ कर बोले, ‘‘आज फिर राजेश ने आने में देरी कर दी.’’

‘‘मित्रों में देरी हो ही जाती है. आप चिंता मत कीजिए,’’ अलका ने सब्जी का डोंगा उन की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘राजेश का रात गए तक बाहर रुकना उचित नहीं है. 10 बज चुके हैं.’’

‘‘मैं क्या कर सकती हूं. मैं ने थोड़े ही उसे बाहर रुकने को कहा है,’’ अलका समझाने लगी.

‘‘तुम्हीं ने उस की हर मांग पूरी कर के उसे सिर चढ़ा रखा है. आवश्यकता से अधिक लाड़प्यार ठीक नहीं होता.’’

क्रोध से भर कर अलका कोई कड़वा उत्तर देने जा रही थी, पर तभी यह सोच कर चुप रही कि रामेंद्र से उलझना व उन पर क्रोध प्रकट करना बुद्धिमानी नहीं है. नाहक ही पतिपत्नी की मामूली सी तकरार बढ़ कर बतंगड़ बन जाएगी. फिर हफ्तेभर के लिए बोलचाल बंद हो जाना मामूली सी बात है. मन को संयत कर के वह पति को समझाने लगी, ‘‘राजेश बुरे रास्ते पर जाने वाला लड़का नहीं है, आप अकारण ही उसे संदेह की नजर से देखने लगे हैं.’’ रामेंद्र ने थोड़ा सा खा कर ही हाथ खींच लिया. अलका भी उठ कर खड़ी हो गई. त्रिशाला का मन क्षुब्ध हो उठा. आज उस ने अपने हाथों से सब्जियां बना कर सजाई थीं, सोचा था कि मातापिता दोनों की राय लेगी कि उस की बनाई सब्जियां नौकर से अधिक स्वादिष्ठ बनी हैं या नहीं. पर दोनों की नोकझोंक में खाने का स्वाद ही खराब हो गया. वह भी उठ कर खड़ी हो गई.

नौकर ने 3 प्याले कौफी बना कर तीनों के हाथों में थमा दी. परंतु रामेंद्र बगैर कौफी पिए ही अपने शयनकक्ष में चले गए और बिस्तर पर पड़ गए. बिस्तर पर पड़ेपड़े वे सोचने लगे कि अलका का व्यवहार दिनप्रतिदिन उन की तरफ से रूखा क्यों होता जा रहा है? वह पति के बजाय बेटे को अहमियत देती रहती है. रातरात भर घर से गायब रहने वाला बेटा उसे शरीफ लगता है. वह सोचती क्यों नहीं कि बड़े घर का इकलौता लड़का सभी की नजरों में खटकता है. लोग उसे बहका कर गलत रास्ते पर डाल सकते हैं. कुछ क्षण के उपरांत अलका भी शयनकक्ष में दाखिल हो गई. फिर गुसलखाने में जा कर रोज की तरह साड़ी बदल कर ढीलाढाला रेशमी गाउन पहन कर पलंग पर आ लेटी.

रामेंद्र ने निर्विकार भाव से करवट बदली. बच्चों के प्रति अलका की लापरवाही उन्हें कचोटती रहती थी कि ब्यूटीपार्लरों में 4-4 घंटे बिता कर अपने ढलते रूपयौवन के प्रति सजग रहने वाली अलका आखिर राजेश की तरफ ध्यान क्यों नहीं देती? अलका के शरीर से उठ रही इत्र की तेज खुशबू भी उन के मन की चिंता दूर नहीं कर पाई. वे दरवाजे की तरफ कान लगाए राजेश के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए बारबार दीवारघड़ी की ओर देखने लगे. डेढ़ बज के आसपास बाहर लगी घंटी की टनटनाहट गूंजी तो रामेंद्र अलका को गहरी नींद सोई देख कर खुद ही दरवाजा खोलने के उद्देश्य से बाहर निकले, पर उन के पहुंचने के पूर्व ही त्रिशाला दरवाजा खोल चुकी थी. राजेश उन्हें देख कर पहले कुछ ठिठका, फिर सफाई पेश करता हुआ बोला, ‘‘माफ करना पिताजी, फिल्म देखने व मित्रों के साथ भोजन करने में समय का कुछ खयाल ही नहीं रहा.’’ बेटे को खूब जीभर कर खरीखोटी सुनाने की उन की इच्छा उन के मन में ही रह गई क्योंकि राजेश ने शीघ्रता से अपने कमरे में दाखिल हो कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था.

उस के स्वर की हड़बड़ाहट से वे समझ चुके थे कि राजेश शराब पी कर घर लौटा है. सिर्फ शराब ही क्या, कल को वह जुआ भी खेल सकता है, कालगर्ल का उपयोग भी कर सकता है. मित्रों के इशारे पर पिता की कठिन परिश्रम की कमाई उड़ाने में भी उसे संकोच नहीं होगा. उद्विग्नतावश उन्हें नींद नहीं आ रही थी. बारबार करवटें बदल रहे थे. फिर मन बहलाने के खयाल से उन्होंने किताबों के रैक में से एक किताब निकाल कर तेज रोशनी का बल्ब जला कर उस के पृष्ठ पलटने शुरू कर दिए. तभी किताब में से निकल कर कुछ नीचे गिरा. उन्होंने झुक कर उठाया तो देखा, वह इरा की तसवीर थी, जो न मालूम कब उन्होंने पुस्तक में रख छोड़ी थी. तसवीर पर नजर पड़ते ही पुरानी स्मृतियां सजीव हो उठीं. वे एकटक उस को निहारते रह गए. ऐसा लगा जैसे व्यंग्य से वह हंस रही हो कि यही है तुम्हारी सुखद गृहस्थ पत्नी, बेटा. कोई भी तुम्हारे कहने में नहीं है. तुम किसी से संतुष्ट नहीं हो. क्या यही सब पाने के लिए तुम ने मेरा परित्याग किया था… लगा, इरा अपनी मनपसंद हरी साड़ी में लिपटी उन के सिरहाने आ कर बैठ गई हो व मुसकरा कर उन्हें निहार रही हो. कल्पनालोक में गोते लगाते हुए वे उस की घनी स्याह रेशमी केशराशि को सहलाते हुए भर्राए कंठ से कह उठे, ‘सबकुछ अपनी पसंद का तो नहीं होता, इरा. मैं तुम्हें हृदय की गहराइयों से चाहता था, पर…’

इरा अचानक हंस पड़ी, फिर रोने लगी, ‘तुम झूठे हो, तुम ने मुझे अपनाना ही कहां चाहा था.’ उन की आंखों की कोरों से भी अश्रु फूट पड़े, ‘इरा, तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ पाओगी.’ दरअसल, रामेंद्र अपनी पढ़ाई समाप्त कर के छुट्टियां बिताने अपने ननिहाल कलकत्ता के नजदीक एक गांव में गए. एक दिन जब वे नहर में नहाने गए तो वहां कपड़े धोती हुई सांवली रंगत की बड़ीबड़ी आंखों वाली इरा को ठगे से घूरते रह गए. वह उन की नानी के घर के बराबर में ही रहती थी. दोनों घरों में आनाजाना होने के कारण रामेंद्र को उस से बात करने में कोई मुश्किल पेश नहीं आई. सभी गांव वालों का नहानाधोना नहर पर होने के कारण वहां मेले जैसा दृश्य उपस्थित रहता था. वे अपने हमउम्र साथियों के साथ वहीं मौजूद रहते थे, इधरउधर घूम कर प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लूटते रहते. इरा नहर में कपड़े धो कर जब उन्हें आसपास के झाड़झंकार पर सूखने के लिए डालने आती तो वहां पर पहले से मौजूद रामेंद्र चुपके से उस की तसवीरें खींच लेते. कैमरे की चमक से चकित इरा उन की तरफ घूरती तो वे मुंह फेर कर इधरउधर ताकने लगते. इरा के आकर्षण में डूबे वे जब बारबार नानी के गांव आने लगे तो सब के कान खड़े हो गए. लोग उन दोनों पर नजर रखने लगे, पर दुनिया वालों से अनजान वे दोनों प्रेमालाप में डूबे रहते.

‘मुझे दुलहन बना कर अपने घर कब ले जाओगे?’ इरा पूछती.

‘बहुत जल्दी,’ वे इरा का मन रखने को कह देते, पर अपने घर वालों की कट्टरता भांप कर सोच में पड़ जाते. फिर बात बदल कर गंभीरता से कह उठते, ‘इरा, तुम मछली खाना बंद क्यों नहीं कर देतीं? क्या सब्जियों की कमी है जो इन मासूम प्राणियों का भक्षण करती रहती हो?’

यह सुन वह हंस पड़ती, ‘सभी बंगाली खाते हैं.’

‘पर हमारे घर में मांसाहार वर्जित है.’

‘पहले शादी तो करो. मैं मछली खाना बंद कर दूंगी.’ एक दिन ननिहाल वालों ने उन की चोरी पकड़ कर उन्हें खूब डांटाफटकारा. इरा को भी काफी जलील किया गया. घबरा कर वे प्यारव्यार भूल कर ननिहाल से भाग आए. मामामामी ने उन के मातापिता को पत्र लिख कर संपूर्ण वस्तुस्थिति से अवगत करा दिया. पत्र पढ़ते ही घर में तूफान जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई. मां ने रोरो कर आंखें लाल कर लीं. पिताजी क्रोध से भर कर दहाड़ उठे, ‘वह गंवई गांव की मछुआरिन क्या हमारे घर की बहू बनने के लायक है? आइंदा वहां गए तो तुम्हारी टांगें तोड़ कर रख दूंगा.’ उस के बाद पिताजी जबरदस्ती उन्हें अपनी फैक्टरी में ले जा कर काम में लगाने लगे.

उधर, मां ने उन के रिश्ते की बात शुरू कर दी. एक दिन टूटीफूटी लिखावट में इरा का पत्र मिला. लिखा था, ‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं…आ कर ले जाओ.’ वे तड़प उठे व मातापिता की निगाहों से छिप कर नानी के गांव जा पहुंचे, पर उन के वहां पहुंचने से पूर्व ही इरा के घर वाले उसे ले कर कहीं लापता हो चुके थे.

सुंदर माझे घर: भाग 3- दीपेश ने कैसे दी पत्नी को श्रद्धांजलि

पेंट करवाने के लिए एक दिन दीपेश ने अपने कमरे की अलमारी खोली, तो कपड़े में लिपटी एक डायरी मिली. डायरी नीरा की थी. वे उसे खोल कर पढ़ने का लोभ छोड़ नहीं पाए. जैसेजैसे डायरी पढ़ते गए, नीरा का एक अलग ही स्वरूप उन के सामने आया था, एक कवयित्री का रूप. पूरी डायरी कविताओं से भरी पड़ी थी. एक कविता- ‘सुंदर मा झे घर’ की पंक्तियां थीं…

क्षितिज के उस पार की

सुखद सलोनी दुनिया को

लाना चाहती हूं…

एक सुंदर घर

बसाना चाहती हूं,

जहां तुम हो

जहां मैं हूं…

कविता लिखने की तिथि देखी तो विवाह की तिथि से एक माह बाद की थी. दीपेश ने पूरी डायरी पढ़ ली तथा उसी समय नीरा की कविताओं का संकलन करवाने का निश्चय कर लिया. एक महीने के अधिक परिश्रम के बाद दीपेश ने नीरा की चुनी हुई कविताओं को संकलित कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाने के लिए प्रकाशक को दे दी थीं.

अचानक बज उठी फोन की घंटी ने उन की विचार तंद्रा को भंग किया. नितिन का फोन था, ‘‘पापा, आप कैसे हैं? अपनी दवाइयां ठीक से लेते रहिएगा. आप हमारे पास आ जाइए. आप के अकेले रहने से हमें चिंता रहती है.’’

‘‘बेटा, मैं ठीक हूं. तुम चिंता मत किया करो. वैसे भी, मैं तुम से दूर कहां हूं जब भी इच्छा होगी, मैं आ जाऊंगा.’’

बच्चों की चिंता जायज थी. लेकिन वे इस घर को कैसे छोड़ कर जा सकते हैं जिस की एकएक वस्तु में खट्टीमीठी यादें दफन हैं, साथ गुजारे पलों का लेखाजोखा है. एकदो बार बच्चों के आग्रह पर दीपेश उन के साथ गए भी लेकिन कुछ दिनों बाद ही उन के बरामदे से दिखते अनोखे सूर्यास्त की सुखदसलोनी लालिमा का आकर्षण उन्हें इस घर में खींच लाता था. वह उन की प्रेरणास्रोत थी. उसी से उन्होंने जीवनदर्शन पाया था कि जीवन भले ही समाप्त हो रहा हो लेकिन आस कभी नहीं खोनी चाहिए क्योंकि प्रत्येक अवसान के बाद सुबह होती है और इसी सत्य पर इन की कितनी ही रचनाओं का जन्म यहीं इसी कुरसी पर बैठेबैठे हुआ था.

वह अंदर जाने के लिए मुड़े ही थे कि स्कूटर की आवाज ने उन्हें रोक लिया. प्रकाशक के आदमी ने उन के हाथ में पांडुलिपि देते हुए मुखपृष्ठ के लिए कुछ चित्र दिखाए. एक चित्र पर उन की आंखें ठहर गईं. घर के दरवाजे से निकलती औरत और नीचे कलात्मक अक्षरों में लिखा हुआ था… ‘सुंदर मा झे घर’.

चित्र को देख कर दीपेश को एकाएक लगा, मानो नीरा ही घर के दरवाजे पर उस के स्वागत के लिए खड़ी है. वह नीरा नहीं, बल्कि उस की कल्पना का ही मूर्तरूप था. दीपेश ने बिना किसी और चित्र को देखे उस चित्र के लिए अपनी स्वीकृति दे दी.

दीपेश जानते थे कि आने वाले कुछ दिन उस के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होंगे. पांडुलिपि का अध्ययन कर प्रकाशक को देना था. किसी विशिष्ट व्यक्ति से मिल कर विमोचन के लिए तारीख को साकार करने का उन का यह छोटा सा प्रयास भर ही तो था. शायद अपनी अर्धांगिनी को श्रद्धांजलि देने का इस से अच्छा सार्थक रूप और भला क्या हो सकता था.

रिश्तों का सच- भाग 2: क्या सुधर पाया ननद-भाभी का रिश्ता

‘बेटा, विवाह के बाद सब से नजदीकी रिश्ता पतिपत्नी का ही होता है. बाकी संबंध गौण हो जाते हैं. माना कि सभी संबंधों की अपनीअपनी अहमियत है, लेकिन किसी भी रिश्ते पर कोई रिश्ता हावी नहीं होना चाहिए, वरना कोई भी सुखी नहीं रहता. तुम्हीं बताओ, इतनी कोशिशों के बाद भी क्या तुम्हारी दीदी खुश है?’ समझातेसमझाते पिताजी सवाल सा कर उठे थे. ‘तो मैं क्या करूं? चंद्रिका की खुशी के लिए उन से सारे संबंध तोड़ लूं या फिर दीदी के लिए चंद्रिका से,’ रवि असमंजस में था, ‘आप तो जानते ही हैं कि दोनों ही मुझे कितनी प्रिय हैं.’

‘संबंध तोड़ने के लिए कौन कहता है,’ पिताजी धीरे से हंस पड़े थे, फिर गंभीर हो, बोले, ‘यह तो तुम भी मानते ही होगे कि चंद्रिका मन से बुरी या झगड़ालू नहीं है. मेरा कितना खयाल रखती है, तुम्हारे लिए भी आदर्श पत्नी सिद्ध हुई है.’ ‘फिर दीदी से ही उस की क्या दुश्मनी है?’ रवि के इस सवाल पर थोड़ी देर तक उसे गहरी नजरों से देखने के बाद वे बोले ‘कोई दुश्मनी नहीं है. याद करो, पहली बार वह भी कितनी उत्साहित थी. इस सब के लिए. अगर कोई दोषी है तो वह स्वयं तुम हो.’

‘मैं?’ सीधेसीधे अपने को अपराधी पा रवि अचकचा उठा था. ‘हां, तुम उन दोनों के बीच एक दीवार बन कर खड़े हो. कुछ करने का मौका ही कहां देते हो. आखिर वह तुम्हारी पत्नी है, वह तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है, लेकिन तुम हो कि अपनी बहन के आते ही उस के पूरे के पूरे व्यक्तित्व को ही नकार देते हो,’ पिताजी सांस लेने के लिए तनिक रुके थे.

रवि सिर झुकाए चुप बैठा किसी सोच में डूबा सा था. ‘बेटा, मुझे बहुत खुशी है कि तुम्हारी दीदी और तुम में इतना स्नेह है. भाईबहन से कहीं अधिक तुम दोनों एकदूसरे के अच्छे दोस्त हो, पर अपनी दोस्ती की सीमाओं को बढ़ाओ. अब चंद्रिका को भी इस में शामिल कर लो. यह उस का भी घर है. उसे तय करने दो कि वह अपने मेहमान का कैसे स्वागत करती है. विश्वास मानो, इस से तुम सब के बीच से तनाव और गलतफहमियों के बादल छंट जाएंगे. और तुम सब एकदूसरे के अधिक पास आ जाओगे.’

‘‘अंदर कितनी देर लगाओगे?’’ चंद्रिका की आवाज सुन वह चौंक उठा, ‘अरे, इतनी देर से मैं बाथरूम में ही बैठा हूं.’ झटपट नहा कर वह बाहर निकल आया. चाय और गरमागरम नाश्ते की प्लेट उस का इंतजार कर रही थी. इस दौरान वे खामोश ही रहे. जूठे कप व प्लेटें समेटती चंद्रिका की हैरत यह देख और बढ़ गई कि रवि पत्र को हाथ लगाए बगैर ही एक पत्रिका पढ़ने लगा है.

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’ चंद्रिका का चिंतित चेहरा देख कर अपनी हंसी को रवि ने मुश्किल से रोका, ‘‘हां, ठीक है, क्यों?’’ ‘‘फिर अभी तक दीदी का पत्र क्यों नहीं पढ़ा?’’ चंद्रिका के सवाल के जवाब में वह लापरवाही से बोला, ‘‘तुम ने तो पढ़ा ही होगा, खुद ही बता दो, क्या लिखा है?’’

‘‘वे कल दोपहर की गाड़ी से आ रही हैं.’’ ‘‘अच्छा,’’ कह वह फिर पत्रिका पढ़ने में मशगूल हो गया. कुछ देर तक चंद्रिका वहीं खड़ी गौर से उसे देखती रही, फिर कमरे से बाहर निकल गई.

दूसरे दिन रविवार था. सुबहसुबह रवि को अखबार में खोया पा कर चंद्रिका बहुत देर तक खामोश न रह सकी, ‘‘दीदी आने वाली हैं. तुम्हें कुछ खयाल भी है?’’ ‘‘पता है,’’ अखबार में नजरें जमाए हुए ही वह बोला.

‘‘खाक पता है,’’ चंद्रिका झुंझला उठी थी, ‘‘कुछ सामान वगैरह लाना है या नहीं?’’ ‘‘घर तुम्हारा है, तुम जानो,’’ उस की झुंझलाहट पर वह खुद मुसकरा उठा.

कुछ देर तक उसे घूरने के बाद पैर पटकती हुई चंद्रिका थैला और पर्स ले बाहर निकल गई. ?जब वह लौटी तो भारी थैले के साथ पसीने से तरबतर थी. रवि आश्चर्यचकित था. वह दीदी की पसंद की एकएक चीज छांट कर लाई थी.

‘‘दोपहर के खाने में क्या बनाऊं?’’ सवालिया नजरों से उसे देखते हुए चंद्रिका ने पूछा. ‘‘तुम जो भी बनाओगी, लाजवाब ही होगा. कुछ भी बना लो,’’ रवि की बात सुन चंद्रिका ने उसे यों घूर कर देखा, जैसे उस के सिर पर सींग उग आए हों.

दोपहर से काफी पहले ही वह खाना तैयार कर चुकी थी. रवि की तेज नजरों ने देख लिया था कि सभी चीजें दीदी की पसंद की ही बनी हैं. वास्तव में वह मन ही मन पछता भी रहा था. उसे महसूस हो रहा था कि उस के बचकाने व्यवहार की वजह से ही दीदी और चंद्रिका इतने समय तक अजनबी बन परेशान होती रहीं.

‘‘ट्रेन का टाइम हो रहा है. स्टेशन जाने के लिए कपड़े निकाल दूं?’’ चंद्रिका अपने अगले सवाल के साथ सामने खड़ी थी. अपने को व्यस्त सा दिखाता रवि बोला, ‘‘उन्हें रास्ता तो पता है, औटो ले कर आ जाएंगी.’’ ‘‘तुम्हारा दिमाग तो सही है?’’ बहुत देर से जमा हो रहा लावा अचानक ही फूट कर बह निकला था, ‘‘पता है न कि वे अकेली आ रही हैं. लेने नहीं जाओगे तो उन्हें कितना बुरा लगेगा. आखिर, तुम्हें हुआ क्या है?’’

‘‘अच्छा बाबा, जाता हूं, पर एक शर्त पर, तुम भी साथ चलो.’’ ‘‘मैं?’’ हैरत में पड़ी चंद्रिका बोली, ‘‘मैं तुम दोनों के बीच क्या करूंगी.’’

‘‘फिर मैं भी नहीं जाता.’’ उसे अपनी जगह से टस से मस न होते देख आखिर, चंद्रिका ने ही हथियार डाल दिए, ‘‘अच्छा उठो, मैं भी चलती हूं.’’

चंद्रिका को साथ आया देख दीदी पहले तो हैरत में पड़ीं, फिर खिल उठीं. शायद पिछली बार के कटु अनुभवों ने उन्हें भयभीत कर रखा था. स्टेशन पर चंद्रिका को भी देख एक पल में सारी शंकाएं दूर हो गईर्ं. वे खुशी से पैर छूने को झुकी चंद्रिका के गले से लिपट गईं.

रवि सोच रहा था, इतनी अच्छी तरह से तो वह घर में भी कभी नहीं मिली थी. ‘‘किस सोच में डूब गए?’’ दीदी का खिलखिलाता स्वर उसे गहरे तक खुशी से भर गया. सामान उठा वह आगेआगे चल दिया. चंद्रिका और दीदी पीछेपीछे बतियाती हुई आ रही थीं.

खाने की मेज पर भी रवि कम बोल रहा था. चंद्रिका ही आग्रह करकर के दीदी को खिला रही थी. हर बार चंद्रिका के अबोलेपन की स्थिति से शायद माहौल तनावयुक्त हो उठता था, इसीलिए दीदी अब जितनी सहज व खुश लग रही थीं, उतनी पहले कभी नहीं लगी थीं. खाने के बाद वह उठ कर अपने कमरे में आ गया. वे दोनों बहुत देर तक वहीं बैठी बातों में जुटी रहीं. कुछ देर बाद चंद्रिका कमरे में आ कर दबे स्वर में बोली, ‘‘यहां क्यों बैठे हो? जाओ, दीदी से कुछ बातें करो न.’’

‘‘तुम हो न, मैं कुछ देर सोऊंगा…’’ कहतेकहते रवि ने करवट बदल कर आंखें मूंद लीं. रात के खाने की तैयारी में चंद्रिका का हाथ बंटाने के लिए दीदी भी रसोई में ही आ गईं. रवि टीवी खोल कर बैठा था.

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खुशियों की दस्तक- भाग 2: क्या कौस्तुभ और प्रिया की खुशी वापस लौटी

‘‘इस बात को हुए 1 साल हो गया. लाखों खर्च हुए पर अभी भी तकलीफ नहीं गई. मांबाप कितना करेंगे, उन की तो सारी जमापूंजी खत्म हो गई है. अपने इलाज के लिए अब मैं स्वयं कमा  रही हूं. टिफिन तैयार कर मैं उसे औफिसों में सप्लाई करती हूं.’’

‘‘मैं आप का दर्द समझता हूं. मैं भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजर रहा हूं. कितनी खूबसूरत थी मेरी जिंदगी और आज क्या हो गई,’’ कौस्तुभ ने कहा. एकदूसरे का दर्द बांटतेबांटते कौस्तुभ और प्रिया ने एकदूसरे का नंबर भी शेयर कर लिया. फिर अकसर दोनों के बीच बातें होने लगीं. दोनों को एकदूसरे का साथ पसंद आने लगा. वैसे भी दोनों की जिंदगी एक सी ही थी. एक ही दर्द से गुजर रहे थे दोनों. एक दिन घर वालों के सुझाव पर दोनों ने शादी का फैसला कर लिया. कोर्ट में सादे समारोह में उन की शादी हो गई.कौस्तुभ को एक नाइट कालेज में नौकरी मिल गई. साथ ही वह शिक्षा से जुड़ी किताबें भी लिखने लगा और अनुवाद का काम भी करने लगा. 2 साल के अंदर उन के घर एक चांद सा बेटा हुआ. बच्चा पूर्ण स्वस्थ था और चेहरा बेहद खूबसूरत. दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा. बेटे को अच्छी शिक्षा दिला कर ऊंचे पद पर पहुंचाना ही अब उन का लक्ष्य बन गया था. बच्चा पिता की तरह तेज दिमाग का और मां की तरह आकर्षक निकला. मगर थोड़ा सा बड़ा होते ही वह मांबाप से कटाकटा सा रहने लगा. वह अपना अधिकांश वक्त दादादादी या रामू काका के पास ही गुजारता, जिसे उस की देखभाल के लिए रखा गया था.

कौस्तुभ समझ रहा था कि वह बच्चा है, इसलिए उन के जले हुए चेहरों को देख कर डर जाता है. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. लेकिन 8वीं कक्षा के फाइनल ऐग्जाम के बाद एक दिन उस ने अपने दादा से जिद की, ‘‘बाबा, मुझे होस्टल में रह कर पढ़ना है.’’

‘‘पर ऐसा क्यों बेटे?’’ बाबा चौंक उठे थे.कौस्तुभ तो अपने बेटे को शहर के सब से अच्छे स्कूल में डालने वाला था. इस के लिए कितनी कठिनाई से दोनों ने पैसे इकट्ठा किए थे. मगर बच्चे की बात ने सभी को हैरत में डाल दिया. दादी ने लाड़ लड़ाते हुए पूछा था, ‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो बेटा, भला यहां क्या प्रौब्लम है तुम्हें? हम इतना प्यार करते हैं तुम से, होस्टल क्यों जाना चाहते हो?’’ मोहित ने साफ शब्दों में कहा था, ‘‘मेरे दोस्त मुझे चिढ़ाते हैं. वे कहते हैं कि तुम्हारे मांबाप कितने बदसूरत हैं. इसीलिए वे मेरे घर भी नहीं आते. मैं इन के साथ नहीं रहना चाहता.’’ मोहित की बात पर दादी एकदम से भड़क उठी थीं, ‘‘ये क्या कह रहे हो? तुम तो जानते हो कि मम्मीपापा कितनी मेहनत करते हैं तुम्हारे लिए, तभी तुम्हें नएनए कपड़े और किताबें ला कर देते हैं. और तुम्हें कितना प्यार करते हैं, यह भी जानते हो तुम. फिर भी ऐसी बातें कर रहे हो.’’ तभी कौस्तुभ ने मां का हाथ दबा कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और दबे स्वर में बोला, ‘‘ये क्या कर रही हो मम्मी? बच्चा है, इस की गलती नहीं.’’

मगर कई दिनों तक मोहित इसी बात पर अड़ा रहा कि उसे होस्टल में रह कर पढ़ना है, यहां नहीं रहना. दादादादी इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. आखिर पूरे घर में चहलपहल उसी की वजह से तो रहती थी. तब एक दिन कौस्तुभ ने अपनी मां को समझाया, ‘‘मां, मैं चाहता हूं, हमारा बच्चा न सिर्फ शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहे और इस के लिए जरूरी है कि हम उसे अपने से दूर रखें. वह हमारे साथ रहेगा तो जाहिर है कभी भी खुश और मानसिक रूप से मजबूत नहीं बन सकेगा. मेरी गुजारिश है कि वह जो चाहता है, उसे वैसा ही करने दो. मैं कल ही देहरादून के एक अच्छे स्कूल में इस के दाखिले का प्रयास करता हूं. भले ही वहां फीस ज्यादा है पर हमारे बच्चे की जिंदगी संवर जाएगी. उसे वह मिल जाएगा, जिस का वह हकदार है और जो मुझे नहीं मिल सका.’’

2 सप्ताह के अंदर ही कौस्तुभ ने प्रयास कर के मोहित का ऐडमिशन देहरादून के एक अच्छे स्कूल में करा दिया, जहां उसे 70 हजार डोनेशन के देने पड़े. पर बच्चे की ख्वाहिश पूरी करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था. मोहित को विदा करने के बाद प्रिया बहुत रोई थी. उसे लग रहा था जैसे मोहित हमेशा के लिए उस से बहुत दूर जा चुका है. और वास्तव में ऐसा ही हुआ. छुट्टियों में भी मोहित आता तो बहुत कम समय के लिए और उखड़ाउखड़ा सा ही रहता. उधर उस के पढ़ाई के खर्चे बढ़ते जा रहे थे जिन्हें पूरा करने के लिए कौस्तुभ और प्रिया को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही थी. समय बीतते देर नहीं लगती. मोहित अब बड़ा हो चुका था. उस ने बीए के बाद एम.बी.ए. करने की जिद की. अबतक कौस्तुभ के मांबाप दिवंगत हो चुके थे. कौस्तुभ और प्रिया स्वयं ही एकदूसरे की देखभाल करते थे. उन्होंने एक कामवाली रखी थी, जो घर के साथ बाहर के काम भी कर देती थी. इस से उन्हें थोड़ा आराम मिल जाता था. मगर जब मोहित ने एम.बी.ए. की जिद की तो कौस्तुभ के लिए पैसे जुटाना एक कठिन सवाल बन कर खड़ा हो गया. कम से कम 3-4 लाख रुपए तो लगने ही थे. इतने रुपयों का वह एकसाथ इंतजाम कैसे करता?

तब प्रिया ने सुझाया, ‘‘क्यों न हम घर बेच दें? हमारा क्या है, एक छोटे से कमरे में भी गुजारा कर लेंगे. मगर जरूरी है कि मोहित ढंग से पढ़ाईलिखाई कर किसी मुकाम तक पहुंचे.’’ ‘‘शायद ठीक कह रही हो तुम. घर बेच देंगे तो काफी रकम मिल जाएगी,’’ कौस्तुभ ने कहा. अगले ही दिन से वह इस प्रयास में जुट गया. अंतत: घर बिक गया और उसे अच्छी रकम भी मिल गई. उन्होंने बेटे का ऐडमिशन करा दिया और स्वयं एक छोटा घर किराए पर ले लिया. बाकी बचे रुपए बैंक में जमा करा दिए ताकि उस के ब्याज से बुढ़ापा गुजर सके. 1 कमरे और किचन, बाथरूम के अलावा इस घर में एक छोटी सी बालकनी थी, जहां बैठ कर दोनों धूप सेंक सकते थे.

बेटे के ऐडमिशन के साथ खर्चे भी काफी बढ़ गए थे, अत: उन्होंने कामवाली भी हटा दी और दूसरे खर्चे भी कम कर दिए. अब उन्हें इंतजार था कि बेटे की पढ़ाई पूरी होते ही उस की अच्छी सी नौकरी लग जाए और वे उस के सपनों को पूरा होते अपनी आंखों से देखें.

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Summer Special: ब्रेकफास्ट में बनाएं ये हैल्दी परांठे

लंच हो या डिनर रोज ही हमारे घरों में बनाया जाता है चूंकि यह प्रतिदिन बनता है इसलिए हर गृहिणी के लिए यह सबसे बड़ी समस्या होती है कि ऐसा क्या बनाया जाए जो हैल्दी भी हो, आसानी से बन भी जाये और घर के सभी सदस्यों को पसन्द भी आ जाये. आज हम आपको ऐसे ही दो परांठे बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप बड़ी आसानी से बना सकतीं हैं. चूंकि इनकी स्टफिंग बहुत टेस्टी होती है इसलिए इनके साथ अतिरिक्त सब्जी बनाने के स्थान पर  आप इन्हें अचार, चटनी, दही आदि के साथ सर्व कर सकतीं हैं तो आइए देखते हैं इन्हें कैसे बनाते हैं-

-सोया परांठा

कितने लोगों के लिए           4

बनने में लगने वाला समय       20 मिनट

मील टाइप                           वेज

सामग्री(आटे के लिए)

गेहूं का आटा                     1 कप

नमक                               1/4 टीस्पून

तेल                                  1 टीस्पून

सामग्री(स्टफिंग के लिए)

सोया ग्रेन्यूल्स                    1कप

बारीक कटा प्याज              1

कटी हरी मिर्च                     3

कटा हरा धनिया                  1 लच्छी

नमक                                 स्वादानुसार

बारीक कटा लहसुन           6 कली

अमचूर पाउडर                  1/2 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर              1/2 टीस्पून

सेंकने के लिए तेल            पर्याप्त मात्रा में

विधि

आटे को नमक और तेल डालकर पानी की सहायता से गूंथकर 20 मिनट के लिए ढककर रख दें. सोया ग्रेन्यूल्स को गर्म पानी में आधे घण्टे के लिए भिगोकर हाथों से निचोड़कर पानी निकाल दें. अब इन्हें बिना पानी के मिक्सी में दरदरा पीस लें. अब एक पैन में 1 टीस्पून तेल गरम करके प्याज, लहसुन और हरी मिर्च को सॉते कर लें. सोया  ग्रेन्यूल्स और सभी मसाले डालकर अच्छी तरह चलाएं. ठंडा होने पर 1 टेबलस्पून मिश्रण परांठे में  भरें. दोनों तरफ तेल लगाकर सुनहरा होने तक सेंके. टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

-हरा भरा सत्तू परांठा

कितने लोगों के लिए           4

बनने में लगने वाला समय       20 मिनट

मील टाइप                           वेज

सामग्री (परांठे के लिए)

गेहूं का आटा                    1 कप

मैदा                                 1/4 कप

नमक                               1/4 टीस्पून

पालक प्यूरी                     1/2 कप

अजवाइन                       1/4 टीस्पून

सामग्री(भरावन के लिए)

सत्तू                             1 कप

कटा प्याज                   1

कटी हरी धनिया            1 लच्छी

कटी हरी मिर्च                4

दरदरी कुटी लहसुन          6 कली

हींग                                1/4 टीस्पून

कुटी लाल मिर्च                1/4 टीस्पून

अमचूर पाउडर                1/4 टीस्पून

नमक                             1/4 टीस्पून

जीरा                              1/4 टीस्पून

चाट मसाला                    1/4 टीस्पून

हल्दी पाउडर                   1/4 टीस्पून

कसूरी मैथी                      1 टेबलस्पून

सेकने के लिए तेल अथवा घी

विधि

गेहूं के आटे में नमक, पालक प्यूरी, तेल और मैदा मिलाकर नरम आटा गूंथ लें. इसे आधे घण्टे के लिए ढककर रख दें.

भरावन बनाने के लिए एक पैन में तेल गरम करके प्याज, लहसुन, हरी मिर्च भूनकर, जीरा और हींग डालकर कसूरी मैथी, सभी मसाले और सत्तू डाल दें.अब इसमें 1 टीस्पून पानी डालकर चलाएं और गैस बंद कर दें. कटा हरा धनिया डालकर ठंडा होने दें. तैयार आटे में से 1 छोटी लोई लेकर 1 टेबलस्पून भरावन भरकर चारों तरफ से बंद करें और दोनों तरफ घी लगाकर सुनहरा होने तक सेककर टमाटर की चटनी के साथ सर्व करें.

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45 साल की उम्र और एक Miscarriage के बाद प्रैग्नेंट होना

आर्थिक सुरक्षा और सेहतमंद माहौल उत्पन्न करने के लिये कई सारे दम्पति देरी से प्रेग्नेंसी का विकल्प चुन रहे हैं. वैसे, हमेशा ही हर चीज के फायदे और नुकसान होते हैं और नुकसान के बारे में जानकारी होने पर उन्हें सही तरीके से संभालना महत्वपूर्ण होता है.

आपको बता दें कि, 45 की उम्र वाली महिलाओं से जन्में बच्चे की हेल्दी होने की संभावना 1 फीसदी तक कम हो जाती है. साथ ही गर्भावस्था के समय महिलाओं में गेस्टेशनल डायबिटीज और हाइरपटेंशन का स्तर काफी हद तक बढ़ जाता है. अधिक उम्र में गर्भवती होने वाली महिलाओं के लिए न सिर्फ कंसीव करना मुश्किल होता है बल्कि अगर महिला गर्भवती हो जाती है तब भी उसे हाई रिस्क ग्रुप में रखा जाता है. इसका कारण ये है कि 40 से 50 साल की उम्र में गर्भवती होने वाली महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान कई खतरों का सामना करना पड़ता है.

गर्भ धारण से जुड़े जोखिम और सुझाव बात रहीं हैं वरिष्ठ परामर्शी प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ, डॉ. मनीषा रंजन. जब आपकी उम्र बढ़ती जाती है तो आपको कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और इसलिये अतिरिक्त सावधान रहना और सबसे बेहतर संभावित परिणाम के लिये अतिरिक्त चीजें करना बेहद जरूरी है. बाँझपन की स्थिति में आप अपने एग्स को फ्रीज कर सकती हैं या फिर डॉक्टर्स या विशेषज्ञों की देखरेख में आईवीएफ जैसे अस्सिटेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजिस (एआरटी) का सहारा ले सकती हैं. वैसे, प्रजनन की दवाओं या उपचार की मदद के बिना 45 साल की उम्र के बाद माँ बनने की संभावना थोड़ी कम होती है.

45 साल की उम्र में बच्चे के बारे में विचार करना

हाइपरटेंशन, डायबिटीज और प्रसव से जुड़ी समस्याएं 40 की उम्र के बाद आम होती हैं. ये समस्याएं बेहद ही आम हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आपको इनका सामना करना ही होगा. हालांकि, आपको 40 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होने के खतरों के बारे में जानकारी जरूर होनी चाहिये.

35 की उम्र के बाद, महिलाओं का प्रजनन दर कम होना शुरू हो जाता है. इसके परिणामस्वरूप, महिलाओं को निम्नलिखित जोखिमों के साथ प्रजनन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है :

गर्भावस्था जनित डायबिटीज

गर्भवास्थाजनित डायबिटीज (मधुमेह) गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है, जो अब काफी आम होता जा रहा है. 20 से 34-35 वर्ष के उम्र की महिलाओं की तुलना में 40 से अधिक उम्र की महिलाओं को गर्भावस्थाजनित डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा होता है. इसकी वजह से गर्भावस्था में मुश्किलें पेश आ सकती हैं.

क्रोमोसोमल असामान्यताएं

चूँकि, बढ़ती उम्र की महिलाओं में अंडों की संख्या कम हो जाती है, बाकी अंडों की क्वालिटी कम होने लगती है, जिसके परिणामस्वरूप डीएनए का स्तर कम होता जाता है. इसकी वजह से शिशुओं में क्रोमोसोमल असामान्यताएं हो सकती हैं, जिसकी वजह से वे डाउन सिंड्रोम जैसे मानसिक विकारों से ग्रसित हो सकते हैं.

मृत शिशु पैदा होने की आशंका

40 वर्ष से अधिक उम्र की गर्भवती महिलाओं में 35-39 साल की महिलाओं की अपेक्षा मृत शिशु के पैदा होने का खतरा अधिक होता है. अपने बच्चे के मूवमेंट पर नजर रखना बेहद जरूरी हो जाता है, खासकर यदि आप अपनी नियत तारीख को पार कर चुकी हैं. यदि आप महसूस करती हैं कि आपके बच्चे का मूवमेंट धीमा हो गया है, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर या प्रसूति इकाई से संपर्क करना चाहिये.

40 साल की उम्र के बाद, योनि मार्ग से प्रसव के दौरान मृत बच्चे के पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है. माँ और बच्चे दोनों को बचाने के लिये इस उम्र में सीजेरियन डिलीवरी तेजी से लोकप्रिय हो रही है.

देरी से गर्भावस्था की अन्य समस्याओं में शामिल हैं :

  1. अस्वास्थ्यकर अंडे
  2. प्रीक्लेम्पसिया
  3. प्लेसेंटा के साथ जटिलता (जैसे कि प्लेसेंटा प्रिविया)
  4. समय से पहले प्रसव
  5. सी-सेक्शन की जरूरत
  6. नियत समय से पहले प्रसव पीड़ा होना
  7. जन्म के समय कम वजन वाले बच्चे का जन्म
  8. एक्टोपिक गर्भाधान
  9. गर्भपात

45 साल की उम्र के बाद स्वस्थ गर्भधारण किस प्रकार हो सकता है?

किसी भी उम्र में एक सेहतमंद जीवनशैली बनाए से अच्छी प्रेग्ननेंसी सुनिश्चित हो सकती है. सही वजन बनाकर रखें, धूम्रपान और शराब का सेवन छोड़ दें, संतुलित आहार लें, प्रेग्नेंसी के पहले और उसके दौरान कैफीन लेने से बचें, प्रोसेस्ड फूड नहीं लें और रोजाना एक्सरसाइज करें.

जीवन, नकारात्मक और सकारात्मक पहलुओं से भरपूर है. कई सारी परेशानियों के बावजूद, 40 के बाद की उम्र में प्रेग्नेंट होना आम और सेहतमंद है. बड़ी उम्र में माँ बनना अच्छा और मुश्किल दोनों ही एक साथ हो सकता है. यदि आपने जीवन में देरी से बच्चा करने का फैसला किया है तो एक फर्टिलिटी डॉक्टर से बात करें, जो आपको कई सारी संभावनाओं के बारे में बता सकते हैं और सबसे सही विकल्प चुनने में आपका मार्गदर्शन कर सकते हैं. प्रेग्नेंट होने से पहले अपने डॉक्टर से अपनी सेहत से जुड़ी कोई समस्या हो तो इसके बारे में अपनी आनुवंशिकी जाँच कराएं.

तो मम्मा आप तैयार हो जाइये, क्योंकि आप कर सकती हैं.

यदि गर्भावस्था के दौरान आपको बेहतरीन देखभाल मिलती है, अच्छा खाना खाती हैं और एक सेहतमंद जीवनशैली जीती हैं और नौ महीनों तक अपना पूरा ध्यान रखती हैं और अपनी प्रेग्नेंसी में सबसे बढ़िया स्वास्थ्य के साथ कदम रखती हैं तो आपकी प्रेग्नेंसी परेशानीमुक्त होगी और आप एक हेल्दी डिलीवरी कर पाएंगी.

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भारत में धर्म की दुकानें

भारत के गुरू, स्वामी, धर्माचार्य, महंत, पंडित, पुजारी इस मामलों में अपने अमेरिकी तरहतरह के चर्चों में पादरियों, प्रिस्टों, बिशपों, पेस्टरों से बेहतर हैं. भारत में शायद ही किसी पर सैक्सुअल एब्यूज करने का आरोप लगता है पर अमेरिका के दक्षिण में चर्च के एक संप्रदाय साउदर्न बापटिस्ट कनवेंशन के पास 2000 से 2019 तक के 700 चर्च के पादरियों पर लगाए गए आरोपों की लंबी लिस्ट है. वर्षों से साउदर्न बापटिस्ट कनवेंशन चर्च इस लिस्ट में नए नाम जरूर जोड़ता रहा है पर इसे पब्लिक होवे से रोकता रहा है.

मई 2022 में जब यह रिपोर्ट लीक हो गई और इस लिस्ट के चेहरे टीवी स्क्रीनों पर दिखने लगे तो चर्च ने माना कि इन लोगों ने सैंकड़ों लोगों की जिंदगियों से खेला है और साउदर्न बापटिस्ट कनवेंशन चर्च रूस चर्च के पादरियों के गुनाहों के शिकारों को कुछ न्याय दिलाने का वायदा करता है.

विदेशी चर्च को भारत में एक समझा जाता है जबकि विदेशों में चर्च सैंकड़ों टुकड़ों में बंटा है ठीक वैसे ही जैसे हमारे यहां हर मंदिर, हर आश्रम, हर मठ अपने एक गुरू या संप्रदाय की निजी संपत्ति होता है. न चर्च, न गुरूद्वारों न बौंध मठ, न मंदिर किसी एक सत्ता के अंग है. वे सब अलगअलग अस्तिाव रखते हैं और सब के पास अपार संपत्ति है और धर्म की गाड़ी ईश्वर नहीं पैसा चलाता है जो भक्त दान करते हैं और चर्च या धर्म की हर दुकान में काम करने वालों को सेक्स सुख पाने का अक्सर खास मोटिव होता है. कैलीक्रोर्निया के इस चर्च में कम से कम 700 लोगों पर दोष लगाया जा चुका है और जब से यह भंडाफोड़ हुआ है, नए नाम जुड़ रहे हैं.

चर्च की चर्चा इसलिए की जा रही है कि भारत में धर्म की दुकानें आमतौर पर इन आरोपों से मुक्त रहती हैं. हमारे भक्त अमेरिकी भक्तों से ज्यादा भक्तिभाव रखते हैं और अपने पंडि़तों, स्वामियों गुरूओं के खिलाफ ज्यादा बोलते नहीं है. आसाराम बापू जैसे इक्केटुक्के मामलों में सजा हुई है पर आमतौर पर अगर मामला अदालत में चला जाता भी है तो जज या तो घबरा कर उसे टालते रहते है या मामले में पूरे सुबूत नहीं है कह कर बंद कर देते हैं.

सैक्सुअल एब्यूज पर हर तरह के धर्म लाखों डालर के समझौते हर साल आजकल कर रहे हैं. पीडि़तों को वे कहते हैं कि भगवान  के काम में ज्यादा दखलअंदाजी न करो, मरने के बाद ईश्वर को क्या जवाब दोगे. भक्त जो ईश्वर की काल्पनिक भक्ति में अगाध विश्वास रखता है आमतौर पर चुप रहता है. चर्चा के पादरियों के सैक्सुअल एब्यूज का उस के पास वही उत्तर होता है जो एक हिंदू के पास है. ईश्वर सब देखता है, ईश्वर सब पापों का दंड खुद देगा.

धर्म के हर तरह के दुकानदारों, भक्तों को इस तरह भ्रमित कर रखा है कि वे संतों, महंतों, पादरियों मुल्लाओं की हर ज्यादती को वरदान समझते हैं. वे तनमन और धन से की जाने वाली सेवा में तन में की जाने वाली सेवा का कोई अवसर नहीं छोडऩा चाहते. जिन गुनाहों पर सेक्यूलर सरकार और कानून गुनाहगार को जेल में डाल देता है, उसी को धर्म केवल पाप कहता है और या तो प्रायश्चित करवाता है या कह देता है कि चाय भरने के बाद ईश्वर की अदालत में होगा. जब गुनाहगार ईश्वर का अपना एजेंट हो तो कौन सा कानून उसे सजा देगा यह अमेरिका में स्पष्ट है, भारत में भी.

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Travel Special: पर्यटकों को लुभाता रंगीलो राजस्थान

मैं अपने परिवार के साथ अपनी कार से राजस्थान यात्रा पर गया था. लगभग तीनचौथाई राजस्थान की यात्रा कर के घर लौटा. यात्रा के दौरान ऐसा प्रतीत हुआ कि पूरा राजस्थान अपने गौरवशाली अतीत की ऐतिहासिक गाथाओं, वैभवशाली महलों, ऐतिहासिक किलों के साथ ही अपनी आकर्षक लोककला, संगीत, नृत्य एवं रोचक आश्चर्यजनक रीतिरिवाजों तथा संस्कृति से पर्यटकोंको लुभाता है.

इस के साथ ही राजस्थान पर्यटन विभाग, होटल, रैस्टोरैंट एवं पर्यटकों की पसंद की सामग्री के व्यवसायी तथा पर्यटन से जुड़े लोग गाइड आदि भी पर्यटकों विशेषतौर पर विदेशी पर्यटकों को रिझाने में पूरी तरह से जागरूक हैं. राजस्थान में विदेशी पर्यटक भी बड़ी तादाद में आते हैं.

हम लोगों ने राजस्थान में प्रवेश सवाई माधोपुर से किया. सवाई माधोपुर में प्रवेश करते ही रेगीस्तान का जहाज ऊंट हमें दिखाई देने लगे. विचित्र बात यह थी कि ऊंट के बालों की कटिंग इस तरह की गई थी कि उन के पीठ एवं पेट पर जलते दिए एवं अन्य कलाकृतियां उभर आई थीं. पहले तो हमें लगा कि संभवत: काले पेंट से ये कलाकृतियां बनाई गई हैं, लेकिन पूछने पर पता चला कि ये कलाकृतियां ऊंट के बालों को काट कर बनाई गई हैं. ऊंट तो हम ने पहले भी देखे थे, लेकिन यह ऊंट पेंटिंग पहली बार देखी.

आकर्षण का केंद्र

रणथंभौर किले के पास पहुंचतेपहुंचते राजस्थान लोकसंस्कृति, ढांणी (राजस्थायनी ग्राम) की जीवनशैली आदि को उजागर करते तथा किले के आकार के होटल एवं रैस्टोरैंट नजर आए जोकि यकीनन पर्यटकों को लुभाने के लिए ही बने हैं. रणथंभौर किला एवं रिजर्व फौरैस्ट पर्यटन, जंगल सफारी हेतु हरे रंग से रंगी खुली छत वाले वाहन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे जबकि रणथंभौर किले तक जाने वाली सड़क बेहद खस्ता हालत में थी. यह जंगल के असली लुक के मद्देनजर था या फिर सवाई माधोपुर के फौरैस्ट डिपार्टमैंट की लापरवाही की वजह से समझ नहीं पाए.

जब हम लोग प्रसिद्ध स्थल पुष्कर पहुंचे तो उस वक्त वहां विश्व प्रसिद्ध कार्तिक मास में लगने वाला मेला समापन की ओर था. तब भी वहां देशविदेश के सैलानियों का सैलाब उमड़ रहा था. मेला अभी भी अपने पूरे शबाब पर था. लगभग

3-4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले मेले में सर्कस, जादू, मौत का कुआं के साथ ही राजस्थानी परिधानों, कलाकृतियों, विभिन्न खाद्यपदार्थों के स्टाल्स के साथ ही पशु मेले में ऊंटदौड़ देशीविदेशी पर्यटकों को समान रूप से लुभा रही थी.

राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा वहां नित नए सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं रोचक प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही थीं. प्रतियोगिताएं सिर्फ राजस्थान के अंचल के लोगों के लिए ही आयोजित थीं, लेकिन वे प्रतियोगिताएं राजस्थानी संस्कृति के तहत ही थीं. मसलन, विदेशी पर्यटकों के लिए पगड़ी बांधने की प्रतियोगिता आयोजित की गई जोकि यकीनन उन्हें लुभाने के लिए ही आयोजित की गई थी जबकि लंबी मूंछों की प्रतियोगिता में प्रतियोगियों की डेढ़ 2 फिट लंबी मूंछें देशीविदेशी पर्यटकों को आकर्षित कर रही थीं.

ऐतिहासिक धरोहरों की भूमि

विदेशी पर्यटक, राजस्थान में सब से अधिक पुष्कर में ही निश्चिंत एवं स्वच्छंद हो कर विचरते नजर आए. बड़े होटलों के अलावा बहुतायत में वहां के स्थानीय लोगों ने भी अपने मकानों के कुछ हिस्से को गैस्टहाउस के रूप में परिवर्तित कर दिया था जिस में सिर्फ देशी पर्यटक ही नहीं, अपितु विदेशी पर्यटक भी रुक कर स्थानीय लोगों के परिवारों के साथ घुलमिल कर रह रहे थे.

जयपुर, बीकानेर, उदयपुर, जोधपुर के आलीशान महल अपनी भव्यता की वजह से देशीविदेशी दोनों ही किस्म के पर्यटकों को लुभाते हैं तो अधिकांश महलों, किलों एवं हवेलियों पर स्वामित्व अभी भी राज परिवारों एवं हवेलियों के भूतपूर्व स्वामियों के वंशजों का ही है. वे वंशज भी अपने पूर्वजों की इन धरोहरों को सिर्फ भलीभांति संभालने में ही जागरूक नहीं हैं बल्कि पर्यटकों विशेषतौर पर विदेशी पर्यटकों को उन की आकर्षक प्रस्तुति कर लुभाने में भी पूरी तरह सक्रिय हैं.

साफसुथरे राजमहलों के कक्षों में अपने पूर्वजों के हथियार, वस्त्र, वाहन, दर्पण, कटलरी, बड़ेबड़े पात्र, सुरा पात्र, गंगाजल पात्र, उन के भव्य चित्र, विभिन्न अवसरों के एवं शिकार करते, पोलो खेलते हुए उन के चित्र उन के शयनकक्ष, उन के राज दरबार में उन के भव्य राजसिंहासन, दीवाने आम, दीवाने खास आदि की भव्य प्रस्तुति इस भांति प्रदर्शित की गई है कि देशीविदेशी दोनों ही किस्म के पर्यटकों को वह लुभाती है जबकि हवेलियों की भव्यता अतीत के साहूकारों, महाजनों के वैभव को दर्शाती है.

उन के बहीखाते, कमलदान तक हवेलियों में सुरक्षित हैं. विभिन्न महलों में राजपरिवार द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले हमाम एवं शौचालय तक पूरी तरह से ठीक हालत में पर्यटकों हेतु प्रदर्शित हैं.

राजसी ठाटबाट का अनुभव

प्राचीन राज वैभव तथा राज परिवार के पहनावे की एक झलक प्रस्तुत करने के उद्देश्य से ही संभवत: लगभग हर प्रसिद्ध महल एवं किले की देखरेख में राज परिवार के वंशजों द्वारा नियुक्त कर्मचारी राजसी ड्रैस चूड़ीदार पाजामा, बंद गले का कोट तथा केसरिया पगड़ी में विदेशी पर्यटकों को विशेषतौर पर लुभाते हैं.

कई विदेशी पर्यटक इन राजसी डै्रसों से सुसज्जित कर्मचारियों के साथ फोटो खिंचवा रहे थे तो कई विदेशी पर्यटक इन से अपनेआप को सैल्यूट करवाते हुए छवि को अपने कैमरे में कैद कर रहे थे. लगभग हर महल, हवेली एवं किले में देशीविदेशी पर्यटकों से प्रवेश शुल्क लिया जाता है जिस से अर्जित आय राज परिवार के वंशजों के पास तो जाती ही है इस के अतिरिक्त लगभग हर प्रतिष्ठित किले, महल का एक हिस्सा राज परिवार के वंशजों ने फाइव स्टार होटलों एवं रैस्टोरैंटों के रूप में परिवर्तित कर दिया है जिस से होने वाली अच्छीखासी आमदानी से वे अभी भी राजसी ठाटबाट के साथ अपना जीवन गुजार रहे हैं.

शानदार महल

उदयपुर के शानदार महलों को देखने के दौरान गाइड ने बताया कि उदयपुर राज परिवार के वंशजों के पूरे राजस्थान में लगभग 12 फाइवस्टार होटल हैं, जबकि विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए राजस्थान के कई स्थलों पर किलेमहलों के स्वरूप में नवर्निमित होटल भी दिखाई पड़े.

यह भी देखने में आया कि कई किलों, महलों के सामने कठपुतली वाले कठपुतली नचा कर, लोक गायक राजस्थानी लोकगीत गा कर तथा सपेरे बीन की धुन पर डोलते हुए सांप दिखा कर विदेशी पर्यटकों को लुभा रहे थे.

देश के अन्य प्रांतो में वन्य जीव संरक्षण कानून के चलते भले ही बंदर, भालू नचाते मदारी, बीन की धुन पर डोलते सांप यहां तक कि सर्कस में भी वन्य जीव दिखने बंद हो गए हैं, लेकिन राजस्थान के किलों के सामने विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए सपेरों को बीन की धुन पर डोलते सांप दिखाई की संभवतया विशेष छूट दी गई है.

जैसलमेर में किलों एवं हवेलियों के साथ ही पर्यटकों को जो दृश्य सब से अधिक आकर्षित करता है वह है रेगिस्तान के टीले, दूरदूर तक फैली रेत तथा उन में हवा से अंकित लहरें. उस विशाल रेगिस्तान में ऊंट एवं ऊंट गाड़ी से घूमना एक रोमांचकारी अनुभव होता है.

विशाल रेगिस्तान में ऊंट की सवारी

जैसलमेर शहर से लगभग 20-25 किलोमीटर दूरी पर विशाल रेगिस्तान स्थित है तथा उसी रेगिस्तान पर लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर भारतपाकिस्तान का बौर्डर है. रेगिस्तान को वहां के लोग ‘सम’ कहते हैं तथा  ‘कैमल सफारी’ के बुकिंग सैंटर एवं एजेंट्स के माध्यम से बुकिंग कर ऊंट एवं ऊंट गाड़ी द्वारा रेगिस्तान भ्रमण तथा रेगिस्तान के समीप ही टैंट में संचालित होटल्स में कैंप फायर तथा लोक गायकों के लोकगीत एवं लोक नर्तकियों के नृत्य, देशीविदेशी दोनों ही तरह के पर्यटकों को बेहद लुभाते हैं.

उन टैंट्स में संचालित होटल एवं खुले मंच पर लोकगीत एवं नृत्य के कार्यक्रम में नर्तकियां अतिथि पर्यटकों का स्वागत बाकायदा तिलक लगा कर एवं आरती उतार कर करती हैं, जिस से देशीविदेशी पर्यटक अभिभूत हो उठते हैं.

वैसे लगभग पूरे राजस्थान में ही पर्यटन स्थलोें पर पर्यटकों का स्वागत पूरे सम्मान के साथ किया जाता है. राजस्थानी लोग पर्यटकों को आदर से ‘साब जी’ कह कर संबोधित करते हैं. यहां तक कि राहगीरों से भी कुछ पूछने पर वे बड़े प्रेम एवं आदर के साथ पर्यटकों को जानकारी उपलब्ध कराते हैं.

पधारो म्हारे देश

एक जगह राह भटक जाने पर एक ग्रामीण मोटरसाइकिल सवार हमे सही रोड तक पहुंचाने हेतु लगभग 2-3 किलोमीटर तक मोटरसाइकिल चल कर हमें सही रोड पर पहुंचा कर लौटा तो हमें लगा कि वास्तव में राजस्थानी ‘पधारो म्हारे देश…’ गा कर ही पर्यटकों का स्वागत नहीं करते बल्कि उसे चरितार्थ भी पूरी आत्मीयता से करते हैं.

विदेशी पर्यटकों द्वारा ग्रामीण अंचल के अनपढ़ लोगों की फोटोग्राफी करने पर वे अनपढ़ लोग भी अब उन्हें ‘थैक्यू’ कहना सीख गए हैं, साथ ही ‘टैन रूपीज’ की मांग भी फोटोग्राफी के बदले में करने से वे नहीं चूकते. मजे कि बात तो यह हुई कि जब एक विदेशी महिला को राजस्थानी पगड़ी पहन कर घूमते हुए मैं ने देखा तो उस का फोटो अपने कैमरे में कैद करने का लोभ नहीं छोड़ सका. बदले में उस विदेशी महिला ने हंसते हुए कुछ व्यंग्य से कहा कि गिव मी टैन रूपीज.

मीणा सरकार ‘बूंदा’ के नाम पर नामांकित ‘बूंदी’ शहर में किला, नवल सागर, चित्रशाला, रानी की बाबड़ी, सुखमहल आदि पर्यटन स्थल हैं पर सभी स्थल शासकीय उपेक्षा से ग्रस्त प्रतीत हुए. नवल सागर झील का पानी पूरी तरह से काई से आच्छादित था तथा घाट जीर्णशीर्ण नजर आए. किला एवं चित्रशाला की दीवारों में विश्वप्रसिद्ध भीति चित्र चित्रितत हैं जिन में किले की अपेक्षा चित्रशाला के भीति चित्र पर्यटकों को अधिक आकर्षित करते हैं.

18वीं शताब्दी के राजस्थान की संस्कृति, धार्मिक, गाथाएं, राजारानी के जीवन के विभिन्न पहलुओं, युद्ध आदि के आकर्षक रंगीन चित्र चित्रशाला की दीवारों एवं छतों पर चित्रित हैं. लगभग 200 वर्ष का समय व्यतीत हो जाने के बावजूद उन चित्रों के रंग पूरी तरह से धूमिल नहीं हुए हैं.

उम्दा खरीदारी

जैसलमेर शहर में किले के रास्ते पर विदेशी पर्यटकों को भरमाती हुई कामशक्ति वर्धक चादरें बेची जा रही थीं. बकायदा उन चादरों पर इस आशय की स्लिप भी टंकित की गई थी

जिस में लिखा हुआ था ‘नो नीड फौर वियाग्रा मैजिक बैडशीट.’ बैडशीट का साइज बताने का भी उन का रोचक तरीका था कुछ बैडशीट पर टंकित स्लिप पर लिखा था ‘बेडशीट साइज वन वाइफ ओके.’

टूरिस्ट गाइड भी अपने विचित्र अंदाज में किलों, महलों का इतिहास तो बताते ही साथ ही देशी पर्यटकों को यह बतलाने से भी नहीं चूकते कि कब किस फिल्म की शूटिंग कहां हुई, कब कौन सा हीरोहीरोइन यहां आए, यहां आ कर क्या किया, क्या कहा आदि. लेकिन लगभग हर गाइड देशीविदेशी दोनों ही तरह के पर्यटकों को ‘राजस्थान टैक्सटाइल्स एंपोरियम’ एवं अन्य टूरिस्ट इंटरैस्ट की सामग्री के विक्रेताओं के पास अवश्य ले जाते हैं जहां से टूरिस्ट द्वारा खरीद पर उन्हें अच्छाखासा कमीशन मिलता है.

जयपुर ही नहीं राजस्थान के अन्य स्थलों

पर भी गाइड्स पर्यटकों को कपड़ों एवं अन्य सामग्री की दुकानों पर अवश्य ले जाते हैं जहां दुकानदार भी मार्केट रेट से अधिक रेट पर सामग्री बेचते हैं.

चित्तौड़गढ़ के टैक्सटाइल्स ऐंपोरियम में यह कह कर हम लोगों को साड़ी बेची गईर् कि इस साड़ी को फिटकरी के घोल में डाल कर सुखाने के बाद साड़ी से चंदन की महक आती है, लेकिन कई बार फिटकरी के घोल में डाल कर सुखाने के बाद भी उस में से चंदन की महक नहीं आई.

इन बातों को दरकिनार कर दें तो यह तो मानना ही पड़ेगा कि राजस्थान देश के अन्य पर्यटन स्थल की अपेक्षा एक अलग ही अनूठे अंदाज से पर्यटकों को लुभाता है तो उस के पर्यटन स्थलों के गाइड्स एवं दुकानदारों का भरमाने, छलने का अंदाज भी अनूठा है.

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यदि मुझे पीसीओएस है तो मुझे Pregnant होने में कितना समय लगेगा?

सवाल-

यदि मुझे पीसीओएस है तो मुझे गर्भवती होने में कितना समय लगेगा?

जवाब-

यदि आपको पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) है और आप गर्भधारण करना चाहती हैं तो आप की गर्भावस्था कई चीजों से प्रभावित हो सकती है. इस में आप के अपने स्वास्थ्य के साथसाथ आप के पार्टनर की उम्र और सामान्य स्वास्थ्य का भी हाथ होता है. यदि आप की उम्र 35 साल से कम है और आप नियमित रूप से अंडोत्सर्ग कर रही हैं और यदि आप को एवं आप के पार्टनर को आप के प्रजनन को प्रभावित करने वाली कोई दूसरी चिकित्सा संबंधी परेशानियां नहीं हैं तो इस बात की संभावना अधिक है कि 1 साल के अंदर या उस से भी जल्दी आप गर्भधारण कर सकती हैं. यदि आप के पार्टनर को चिकित्सा संबंधी कोई परेशानी है जैसेकि शुक्राणु की संख्या कम होना या यदि आप को ऐंडोमिट्रिओसिस या फाइब्रौयड्स जैसी स्त्रीरोग संबंधी कोई दूसरी समस्या है तो आप को गर्भवती होने में 1 साल से ज्यादा का समय लग सकता है. ज्यादातर महिलाओं में 32 साल की उम्र के बाद प्राकृतिक प्रजनन की क्षमता घटने लगती है और 37 की उम्र तक आतेआते इस में और गिरावट आ जाती है. यदि आप का मासिकधर्म यानी माहवारी नियमित नहीं हैं या फिर प्रजनन संबंधी ऐंडोमिट्रिओसिस जैसी कोई और समस्या है तो रिप्रोडक्टिव ऐंडोक्राइनोलौजिस्ट और गाइनोकोलौजिस्ट के पास जाएं.

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पीसीओएस यानी पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम एक सामान्य हारमोन में अस्थिरता से जुड़ी समस्या है जो महिलाओं की प्रजनन आयु में उन के गर्भधारण में समस्या उत्पन्न करती है. यह देश में करीब 10% महिलाओं को प्रभावित करती है. पीसीओएस बीमारी में ओवरी में कई तरह के सिस्ट्स और थैलीनुमा कोष उभर जाते हैं जिन में तरल पदार्थ भरा होता है. ये शरीर के हारमोनल मार्ग को बाधित कर देते हैं जो अंडों को पैदा कर गर्भाशय को गर्भाधान के लिए तैयार करते हैं. पीसीओएस से ग्रस्त महिलाओं के शरीर में अत्यधिक मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन होता है. इस की अधिक मात्रा के चलते उन के शरीर में पुरुष हारमोन और ऐंड्रोजेंस के उत्पादन की मात्रा बढ़ जाती है. अत्यधिक पुरुष हारमोन इन महिलाओं में अंडे पैदा करने की प्रक्रिया को शिथिल कर देते हैं. इस का परिणाम यह होता है कि महिलाएं जिन की ओवरी में पौलीसिस्टिक सिंड्रोम होता है उन के शरीर में अंडे पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है और वे गर्भधारण नहीं कर पातीं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- पीसीओएस से ग्रस्त हौसला न करें पस्त

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घर और औफिस में यों बनाएं तालमेल

मान्या की शादी 4 महीने पहले ही हुई है. वह बैंक में है. पहले संयुक्त परिवार में रह रही थी. इसलिए उस पर काम का बोझ अधिक नहीं था. लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही पति का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया. मान्या को भी पति के साथ जाना पड़ा. वह जिस बैंक में थी उस की अन्य शाखा भी उस शहर में थी, इसलिए मान्या ने भी वहां तबादला करा लिया.

दोनों परिवार से दूर अनजाने शहर में रह रहे हैं. यहां मान्या के ऊपर घर व औफिस की दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा. बचपन से संयुक्त परिवार में रही थी. इसलिए उस ने अकेले काम का इतना अधिक बोझ कभी नहीं संभाला था. उस का टाइम मैनेजमैंट गड़बड़ाने लगा. वह घर और दफ्तर के कार्यों के बीच अपना सही संतुलन नहीं बना पा रही थी. धीरेधीरे उस की सेहत पर इस का असर दिखने लगा.

एक दिन अचानक मान्या औफिस में बेहोश  हो गई. उसे हौस्पिटल ले जाया गया. डाक्टर ने बताया कि वह तनाव से घिरी है. इस का असर उस के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा है. उस के बेहोश होने की वजह यही है.

1 हफ्ता मान्या ने घर पर आराम किया. कई रिश्तेदार और दोस्त उस से मिलने आए. एक दिन उस की एक खास सखी भी आई, जो मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर थी. उस ने बताया, ‘‘तुम्हारे तनाव और बीमारी की वजह तुम्हारे द्वारा टाइम को सही तरीके से मैनेज नहीं करना है. वर्किंग वूमन के लिए अपने टाइम को इस तरह से बांटना कि तनाव और डिप्रैशन जैसी स्थिति न आए, बहुत जरूरी होता है.’’

आधुनिक समय में कामकाजी महिलाओं को घर और औफिस की दोहरी जिम्मेदारियां उठानी पड़ रही हैं, जिन में वे उलझ जाती हैं. वे हर जगह खुद को साबित करने और अपना शतप्रतिशत देने की चाह में तनाव की शिकार हो जाती हैं. पति और बच्चों के साथ समय नहीं बिता पातीं. सोशल लाइफ से दूर होती जाती हैं. औफिस में घर की परेशानियां और घर में औफिस की परेशानियों के साथ कार्य करना, ऐसे बहुत से कारण हैं, जो उन की जिंदगी में कहीं न कहीं ठहराव सा ला देते हैं, जो उन की सुपर वूमन की छवि पर एक प्रश्नचिह्न होता है.

ऐसे में जिंदगी में आई इन मुश्किलों का सामना जिंदादिली के साथ किया जाए, तो हार के रुक जाने का मतलब ही नहीं बनता. वैसे भी जिंदगी में सफलता का मुकाम कांटों भरी राह को तय करने के बाद ही मिलता है.

दोहरी जिम्मेदारी निभाएं ऐसे

आइए जानते हैं किस तरह वर्किंग वूमन अपनी दोहरी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए दूसरी महिलाओं के लिए कामयाबी की मिसाल बन सकती हैं:

जमाना ब्यूटी विद ब्रेन का है. अत: सुंदरता के साथसाथ बुद्धिमत्ता भी जरूरी है. हमेशा सकारात्मक सोच रखें. नकारात्मक विचारों को खुद पर हावी न होने दें.

ऐसी दिनचर्या बनाएं, जिस में आप अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ को समय दे सकेें.

अपने व्यक्तित्व पर ध्यान दें. अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करें, क्योंकि यह आप के व्यक्तित्व विकास में बाधक बनती है. अपने अंदर आत्मनिरीक्षण करने की आदत विकसित करें. इस के अलावा अपने दोस्तों, शुभचिंतकों से भी अपनी कमियां जानने की कोशिश करें.

वर्किंग वूमन के लिए टाइम मैनेजमैंट बहुत जरूरी है. इसलिए औफिस और घर पर समय की बरबादी को रोकने का हर संभव प्रयास करें. कौन सा कार्य कितने समय में करना है, इस की रूपरेखा मस्तिष्क या लिखित रूप में आप के पास होनी चाहिए.

घर के कामों में परिवार के सदस्यों और बच्चों की मदद जरूर लें. साथ ही अपनी समस्याओं को परिवार के सदस्यों से प्यार से बताएं.

औफिस में अकसर आप को आलोचना का शिकार भी होना पड़ता होगा. ऐसी बातों को नकारात्मक ढंग से न लें. अपनी कार्यक्षमता, संयमित व्यवहार और अपने आदर्शों से आप किसी न किसी दिन अपने आलोचकों को मुंह बंद कर ही देंगी.

यदि आप को औफिस में अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं, तो उन से पीछा छुड़ाने के बजाय उन्हें सकारात्मक तरीके से निभाएं, क्योंकि ऐसी जिम्मेदारियां आप की कार्यक्षमता की, परीक्षा की जांच के लिए भी आप को दी जा सकती हैं.

वीकैंड पति व बच्चों के नाम कर दें. इस दिन मोबाइल फोन से जितनी हो सके दूरी बना कर रखें. बच्चों और पति को उन की फैवरेट डिश बना कर खिलाएं. शाम के समय मूड फ्रैश करने के लिए परिवार के साथ पिकनिक स्पौट या आउटिंग पर जाएं. इस तरह आप खुद को अगले सप्ताह के कामों के लिए फ्रैश और कूल महसूस करेंगी.

औफिस में अपने काम को पूरी ईमानदारी और लगन से करें. लंच में ज्यादा समय न खराब करें. देर तक मोबाइल पर बातें करने से बचें.

औफिस में सहकर्मियों से न तो अधिक निकटता रखें और न ही अजनबियों जैसा व्यवहार करें. औफिस में सहकर्मियों के साथ फालतू की बहस से बचें. उन के साथ आप को जादा देर तक काम करना होता है. अत: उन के साथ दोस्ताना संबंध बना कर चलें.

फिस की परेशानियों को घर न लाएं. ज्यादा देर टीवी देख कर या मोबाइल पर बातें कर के समय खराब न करें.

जहां तक हो घर जा कर खाना खुद ही बनाएं. रोजरोज बाहर का खाना और्डर न करें. यह आप और आप के परिवार के लिए सही नहीं.

आप की दोहरी भूमिका निभाने में पारिवारिक सदस्यों का सहयोग बहुत ही जरूरी है. इसलिए  व्यवहारिक जीवन में पतिपत्नी को एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और एकदूसरे की परेशानी को हल करने के लिए आपस में काम बांट लेने चाहिए.

आप का अपने लिए भी समय निकालना जरूरी है ताकि आप इस बीच शौपिंग आदि कर के अपना मूड फ्रैश कर सकें. रोजाना औफिस और घर के बीच की भागदौड़ की थकावट आप की सुंदरता कम कर सकती है. इस के लिए पार्लर में जा कर अपने सौदर्य में चार चांद लगाएं. चाहें तो पति को एक दिन के लिए बच्चों की जिम्मेदारी सौंप कर फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाएं.

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