Long Story in Hindi: औफिस से निकल कर दिव्या ने जब अपना फोन चैक किया तो दंग रह गई. ‘शिखर और पापाजी के इतनी सारी मिस्ड काल्स. क्या बात हो गई. सब ठीक तो होगा?’ खुद में ही बुदबुदाते हुए उस ने झट से अपने पति शिखर को फोन लगाया. ‘‘हैलो, शिखर तुम ने फोन किया था मुझे? क्या हुआ? सब ठीक तो है?’’ ‘‘उफ. मैडमजी को टाइम मिल गया फोन करने का,’’ शिखर की बातों में तलखी थी, ‘‘जाने कितनी बार मैं ने, पापा ने काल की तुम्हें लेकिन तुम क्यों हमारा फोन उठाने लगी.
बड़ी मैनेजर जो ठहरी.’’ ‘‘क्या हो गया तुम्हें. ऐसे क्यों बात कर रहे हो मुझ से?’’ ‘‘तो कैसे बात करूं, तुम्हीं बता दो मैनेजर साहब?’’ ‘‘यह क्या मैनेजरमैनेजर लगा रखा है, हां? क्या हुआ बोलोगे?’’ दिव्या झल्ला पड़ी.’’ ‘‘तुम्हें पता भी है, मां किचन में काम करते हुए गिर पड़ी. बहुत चोट आई हैं उन्हें. तुम फोन नहीं उठा रही थी तो मजबूरी में मुझे औफिस से घर आना पड़ा. एक तो वैसे ही वे गठिया की मरीज हैं, ऊपर से ये सब.’’ ‘‘मम्मीजी गिर पड़ीं? पर वे करने क्या गई थीं किचन में? सारा काम तो मैं कर के आई थी. कुछ चाहिए था तो सविता, काम वाली लड़की, को बोल देतीं?’’ दिव्या पूछने ही जा रही थी कि पैर में कोई फ्रैक्चर तो नहीं आया उन्हें? लेकिन उस से पहले ही शिखर ने फोन कट कर दिया. ‘क्या मुसीबत है यह.
मम्मीजी को जरूरत ही क्या थी किचन में जाने की, जब मैं ने पूरे दिन के लिए एक लड़की रख रखी है तो? कुछ चाहिए था तो कह देतीं उस से. उफ, न घर में चैन है न औफिस में,’ दिव्या एकदम से चीख उठी. उस ने पार्किंग से गाड़ी निकालते हुए सविता को फोन लगा कर पूछा कि कैसे मम्मीजी किचन में गिर पड़ीं और वह कहां थी उस वक्त? उस पर सविता डरते हुए बोली कि घर का सारा काम हो चुका था तो वह जरा टीवी देखने लगी. ‘‘मैं तुम्हें टीवी देखने के पैसे देती हूं या घर में सब का ध्यान रखने के?’’ दिव्या ने डांट लगाई तो वह ‘माफ कर दो दीदी, अब से ध्यान रखूंगी’ कहने लगी. ‘‘हां ठीक है. अच्छा सुनो, बहुत ज्यादा चोट तो नहीं आई न उन्हें?’’ पूछने पर सविता बोली कि बहुत ज्यादा चोट नहीं आई है.
बस जरा मोच आ गई है. ‘‘अच्छा ठीक है, जब तक मैं नहीं आती तुम मम्मीजी के पास ही बैठी रहना,’’ दिव्या ने यह सोच कर गहरी सांस ली कि शुक्र है कोई फै्रक्चर नहीं हुआ वरना तो और मुसीबत हो जाती. दिव्या एक बड़े सरकारी बैंक में मैनेजर है. इसी साल उस की प्रमोशन हुई है. बहुत जिम्मेदारी वाली पोस्ट है. लेकिन घर की जिम्मेदारियां भी कम नहीं हैं उस के पास. सुबह 5 बजे उठ कर घर के कामों में लग जाती है क्योंकि सुबह 9 बजे तक उसे भी अपने औफिस के लिए निकलना होता है.
सब के लिए नाश्ताखाना बना कर, अपने और शिखर के लिए लंच पैक कर फटाफट घर से औफिस के लिए निकल जाती है. सोचा था उस ने किसी खाना बनाने वाली को रख लेगी तो उसे जरा आराम हो जाएगा क्योंकि वह भी औफिस से आतेआते थक कर चूर हो जाती है. लेकिन दिव्या के सासससुर को किसी नौकरनौकरानी के हाथों का बना खाना पसंद नहीं है. घर की साफसफाई और बरतन, कपड़ों के लिए तो एक बाई आती है. लेकिन घर के छोटेमोटे कामों के लिए और सासससुर की देखभाल के लिए दिव्या ने फुलटाइम के लिए एक 17-18 साल की लड़की को रख रखा है.
वह लड़की सविता इसी बिल्डिंग में काम करने वाली एक बाई की बेटी है. सुबह 8 बजे वह यहां अपनी मां के साथ आ जाती है और शाम को 8 बजे अपनी मां के साथ ही अपने घर चली जाती है. रोज का उस का यही नियम है. पहले स्कूल जाती थी वह लेकिन फिर पढ़ाई में उस का मन नहीं लगा तो उस की मां ने उसे भी काम पर लगा दिया. यह सोच कर कि कुछ ज्यादा कमाई हो जाएगी तो सविता की शादी के लिए पैसे जोड़ सकेगी. पूरे दिन घर का और उस के सासससुर का ध्यान रखने के अलावा सविता सुबहशाम दिव्या को किचन में थोड़ी बहुत मदद भी कर दिया करती है जैसे सब्जी काट देना, आटा गूंध देना या आएगए मेहमानों को चायनाश्ता सर्व कर देना आदि. इन कामों के लिए वह उसे महीने के क्व12 हजार देती है वह भी अपनी सैलरी से. खैर, पैसे की बात नहीं है. लेकिन इतने पर भी उसे यह सुनने को मिले कि वह घर की जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पा रही है तो दुख तो होगा ही न.
दरअसल, बात यह है कि दिव्या की सास और उस के पति शिखर को उस के नौकरी करने से दिक्कत है, तभी तो छोटीछोटी बातों को ले कर उसे सुनाने लगते हैं. उस दिन भी यही हुआ था न. दिव्या को घर पहुंचने में जरा देर क्या हो गई, शिखर और उस की मां ने उसे कितना कुछ सुना दिया कि उसे घरपरिवार की जरा भी परवाह नहीं है. उस के लिए तो बस उस की नौकरी ही प्यारी है. दिव्या ने कहा भी कि उसे घर आने में इसलिए देर हो गई क्योंकि उस की सीजीएम सर के साथ मीटिंग थी. लेकिन शिखर और उस की मां कुछ समझने को तैयार ही नहीं थे बल्कि और ताने मारते हुए कहने लगे कि हां, इस की तो रोज ही कोई न कोई मीटिंग होती है.
बहुत बड़ी कलक्टर जो है. दिव्या उन की बातों के जवाब दे सकती थी, लेकिन उसे चुप रहना ज्यादा बेहतर लगा और जबाव देने से क्या हो जाता? क्योंकि इन्हें तो यही लगता है कि जौब के बहाने ही वो अपनी जिम्मेदारी से भागना चाहती है. देखना, आज भी दिव्या को कम नहीं सुनाया जाएगा. कहेंगे कि जानबूझ कर उस ने उन का फोन नहीं उठाया. अरे, शिखर की मां किचन में गिर पड़ीं तो क्या इस में भी दिव्या की ही गलती है? कुछ चाहिए था तो कह देती सविता से. लेकिन नहीं, किसी भी तरीके से दोषी जो ठहराना है बहू को. चलो, सास पुराने जमाने की महिला है, नहीं समझती कुछ.
लेकिन शिखर तो आज के जमाने की सोच रखने वाला इंसान है. कम से कम उसे तो समझना चाहिए कि उस की तरह दिव्या भी औफिस काम करने जाती है और वह भी घर आतेआते थक जाती है. शिखर भले ही कितना ही क्यों न बजा कह कि वह बाकी पतियों की तरह नहीं है जो पत्नी की तरक्की से जलता है और उसे आगे बढ़ते नहीं देखना चाहता लेकिन उस के बातविचार और हावभाव से दिख ही जाते हैं कि उसे दिव्या का आगे बढ़ना जरा भी अच्छा नहीं लगता.
तभी तो वह अपने बुजुर्ग मातापिता की देखभाल की दुहाई दे कर उसे नौकरी न करने की सलाह देता रहता है. शिखर का सोचना है कि दिव्या घर पर रह कर उस के बूढ़े मातापिता की देखभाल करे, घर संभाले, बच्चे पैदा करे. पैसे कमाने के लिए तो वी है न. ‘‘तुम हो तो क्या? क्या मैं अपनी सारी पढ़ाई चूल्हे में झंक दूं? नौकरी छोड़कर घर बैठ जाऊं? यही चाहते हो तुम? अरे, कौन सी कमी रखी है मैं ने तुम्हारे पेरैंट्स की देखभाल में? उन की देखभाल के लिए एक लड़की रख रखी है न, फिर क्यों तुम मुझ पर चड़े रहते हो हमेशा? जब देखो तुम्हें मुझ से कोई न कोई शिकायत रहती ही है. क्यों भई?’’ उस दिन दिव्या को भी गुस्सा आ गया, ‘‘तुम्हें कुछ पता भी होता है कि उन्हें कब डाक्टर के पास ले जा कर चैकअप कराना है या उन की दवाई वगैरह का कुछ ध्यान है तुम्हें? सब मेरे जिम्मे है.
बोलो न और क्या करूं मैं? मर जाऊं?’’ बोलतेबोलते दिव्या के आंसू निकल पड़े फिर सोचने लगी कि आखिर औरतों के साथ ही ऐसा क्यों होता है? शादी के पहले भी कभी उन्हें संस्कार के नाम पर तो कभी रीतिरिवाज के नाम पर जीने नहीं दिया जाता और शादी के बाद भी उन्हें इन सब में झंक दिया जाता है.
आखिर कब तक महिलाएं इन बोझें के तले दबी रहेंगी? क्या उन्हें अपनी जिंदगी, अपनी मरजी से जीने का अधिकार नहीं है? ‘‘ठीक है, अगर तुम्हें लगता है कि मैं अपनी जिम्मेदारी से भाग रही हूं और मैं तुम्हारे मातापिता का ठीक से ध्यान नहीं रख पा रही हूं तो एक काम करो, तुम अपनी जौब छोड़ दो और उन की देखभाल करो. मैं तो कमा ही रही हूं, घर चल जाएगा अच्छे से.’’ दिव्या के इतना कहते ही जैसे शिखर फट पड़ा. ‘‘उफ, तुम्हें जौब छोड़ने को क्या कह दिया, तुम्हारी मर्दानगी को धक्का लग गया और मेरा क्या. क्या मैं ने पढ़ाई नहीं की? जौब पाने के लिए मैं ने मेहनत नहीं की बोलो?’’ क्या जवाब देता वह क्योंकि दिव्या के सवाल का कोई जवाब था ही नहीं उस के पास. शिखर को कहां सुहाता है दिव्या का यों आगे बढ़ना. याद नहीं पिछले साल कैसे उस की प्रमोशन पर वह जलभुन उठा था.
बधाई देना तो दूर की बात, उस से ठीक से बात तक नहीं की थी उस ने. दिव्या को बुरा लगा था पर उस ने जाहिर नहीं होने दिया था. शिखर तो यही चाहता है कि दिव्या उस के टुकड़ों पर पले, जरूरत के समय हाथ फैला कर उस से पैसे मांगे, उस से दब कर रहे. लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है, इसीलिए तो वह चिढ़ा रहता है दिव्या से. ‘‘उफ, यह रैड सिगनल भी अभी होना था. जाने अब घर पहुंचने में और कितना समय लगेगा,’’ पीछे गाडि़यों की लंबी कतार देख वह खीज उठी.
दिल में एक धुकधुकी लगी थी कि घर पहुंचने पर फिर न जाने उसे क्याक्या सुनने को मिले. शिखर को तो बहाना ही मिल जायेगा उसे सुनाने का. यही तो वह चाहता है कि दिव्या कुछ गलती करे और वद्द अपनी भड़ास निकाले. ‘लेकिन ट्रैफिक जाम में फंस गई तो इस में मेरी क्या गलती है. दिल्ली है भाई यह, ट्रैफिक तो होगा ही न,’ मन में सोच दिव्या ने एक गहरी सांस ली और अपने मोबाइल पर कुछ देखने लगी. दिव्या को घर पहुंचतेपहुंचते रात के 8 बज गए. पता था उसे सुनना पड़ेगा, इसलिए पहले से तैयार थी.
अपना बैग उस ने वहीं सोफे पर पटक किचन में जा कर तेल गरम किया और सास के पैरों की मालिश करने उन के कमरे में पहुंच गईं. लेकिन गुस्से से तमतमाती सास ने अपने पैर खींच लिए और बोली, ‘‘ज्यादा दिखावा करने की जरूरत नहीं है. इतना ही था तो अपना फोन उठाती. हां, क्यों उठाओगी. तुम्हारी मां का फोन होता तो झट से उठा लेती.’’ ‘‘सच कह रही हूं मम्मीजी, मुझे फोन की आवाज सुनाई ही नहीं पड़ी वरना तो…’’ ‘‘वरना तो क्या? हमेशा यही बहाने बनाती हो. जब भी किसी काम के लिए फोन करती हूं, उठाती ही नहीं हो. कह दो न तुम से नहीं हो पाएगा.
हम चले जाएंगे अपने गांव. जी लेंगे कैसे भी कर के,’’ हमेशा की तरह झठमूठ आंसू बहा कर बेटे को दिखाने लगी. ‘‘नहीं मम्मीजी, ऐसा मत कहिए मैं तो आज जल्दी ही आ जाती घर पर एन वक्त पर मीटिंग आ गई. अच्छा अब आप आराम कीजिए, तब तक मैं खाना बना लेती हूं,’’ कह कर उस ने जल्दी से अपने कपड़े बदले और किचन में घुस गई. वह तो अच्छा था कि सविता सब्जी बना कर और आटा गूंध कर गई थी वरना तो और देर हो जाती आज. दिव्या के सासससुर की 9 बजे तक खाना खाने की आदत है.
इसलिए उसे समय के हिसाब से खाना बनाना होता है. सब को खाना परोस कर खुद खाने बैठी तो थकावट के मारे उस से खाया ही नहीं गया. किचन की साफसफाई करतेकरते रोज की तरह बैड पर जातेजाते रात के 11 बज गए. देखा तो शिखर खर्राटे लेते हुए आराम से सो रहा था. दिव्या मन ही मन कुड़ उठी कि देखो इसे कितने आराम से सो रहा है, जबकि मैं भी औफिस से थकहार कर घर आई हूं. लेकिन मेरी नींद और आराम से किसी को क्या लेनादेना? मम्मीजी की भी यही शिकायत होती है कि मैं उन का फोन नहीं उठाती. लेकिन जब कोई औफिस में काम कर रहा हो और घर से छोटीछोटी बातों के लिए फोन आए तो क्या करे कोई? किसी क्लाइंट से बात कर रही होती हूं या बौस के साथ मीटिंग चल रही होती है और उसी वक्त घर से फोन आ जाता है तो कैसे उठाऊं और बात कुछ खास नहीं होती, यही कि धोबी का बिल कहां रखा है. टीवी का रिमोट नहीं मिल रहा है.
फोन में पैसे खत्म हो गए, रिचार्ज करा दो जल्दी. दवाइयां खत्म हो गई हैं. आज रात का खाना क्या बनेगा वगैरहवगैरह. मन तो करता है दिव्या का कि बोल ही दे कि क्या सारे कामों का ठेका उस ने ही ले रखा है? अपने बेटे को क्यों नहीं कहते ये सब? लेकिन इसलिए कुछ नहीं बोलती क्योंकि बेकार में उसे कोई क्लेश नहीं चाहिए. पता नहीं औरतों के काम की वैल्यू कब समझेंगे लोग. दिव्या सोना चाह रही थी पर शिखर के खर्राटे उसे सोने कहां दे रहे थे. दिव्या की आदत है जरा सी भी आवाज हो तो उसे नींद नहीं आती है. सो अपनी अलमारी से एक किताब निकाल कर पढ़ने बैठ गई.
बड़े प्यार से मुसकरा कर किताब पर हाथ फेरते हुए वह सोचने लगी कि यह किताब उसे उस के एक दोस्त ने कालेज के फेयर वैल पार्टी में गिफ्ट की थी. उस दोस्त का नाम सुजाय था. हां, बंगाली था वह पर हिंदी काफी अच्छी बोल लेता था क्योंकि काफी साल बिहार में रह चुका था. उस ने 10वीं तक की पढ़ाई बिहार से ही किया था. फिर अपने पापा के साथ कोलकाता आ गया रहने.
लेकिन उस की दी यह किताब दिव्या पढ़ ही नहीं पाई कभी. मौका ही कहां मिला पढ़ने का उसे. कालेज बाद जौब की तैयारी में लग गई और फिर शादी के बाद घरगृहस्थी और नौकरी में ऐसी उलझ कि उलझती चली गई. शिखर की नींद न बिगड़े, इसलिए किताब ले कर हाल में आ गई और आराम से सोफे पर पसर कर किताब पढ़ने लगी. उसे यह किताब पढ़ते हुए बहुत मजा आ रहा था. नींद आ रही थी पर, ‘दो पेज और, बस दो पेज और’ कह कर पन्ने पलटें जा रही थी. यह 2 युवा लड़कालड़की आरोही और केशव की ‘लव स्टोरी’ है, जिस में लड़का और लड़की दोनों फर्स्ट ईयर के स्टूडैंट होते हैं. एक दिन लाइब्रेरी में दोनों आपस में टकरा जाते हैं और दोनों की हंसी छूट जाती है.
बातोंबातों में ही पता चलता है कि दोनों ही किताब प्रेमी हैं. केशव आरोही से प्रेम करने लगता है. कई बार उस ने उस के सामने अपने प्रेम का इजहार करना चाह भी पर फिर यह सोच कर रुक गया कि पता नहीं वह उस से प्रेम करती भी है या नहीं. आगे की कहानी जानने की उत्सुकता दिव्या को किताब से बांधे हुए थी. सच बात तो यह थी कि लड़की भी उस से प्रेम करती थी पर कह नहीं पा रही थी. उसे भी यही लग रहा था कि पता नहीं लड़का उस से प्रेम करता भी है या नहीं? इसी तरह दोनों कालेज के अंतिम वर्ष में पहुंच जाते हैं. लेकिन आज तक दोनों एकदूसरे से अपने दिल की बात नहीं कह पाते और दोनों के रस्ते अलग हो जाते हैं. कहानी तो बड़ी दिलचस्प है पर सैड भी.
काश, दोनों मिल पाते. वैसे इस किताब का लेखक है कौन? देखे तो जरा. राइटर का नाम देखते ही दिव्या की आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गईं क्योंकि इस किताब का राइटर कोई और नहीं बल्कि सुजाय ही था, जिस ने उसे यह किताब भेंट की थी. ‘तो क्या वह एक राइटर भी था?’ दिव्या ने खुद से सवाल किया. ‘लेकिन उसे देख कर लगा ही नहीं कभी की वह राइटर भी हो सकता है और उस ने कभी मुझे बताया भी नहीं कि वह लिखता भी है. कमाल है,’ अपने मन में सोच दिव्या ने जैसे ही किताब को अपने सीने से लगाया, उसे कुछ गिरने का आभास हुआ. ‘सूखे गुलाब का फूल और यह तो कोई लैटर लगता है. क्या लिखा है इस में? पढूं तो जरा: ‘‘हैलो दिव्या, तुम हैरान तो नहीं हो गईं राइटर का नाम पढ़ कर.
होना भी चाहिए क्योंकि मैं ने कभी तुम्हें बताया ही नहीं कि मैं लिखता भी हूं बल्कि मैं ने तो अपने किसी दोस्त तक को भी नहीं बताया कि मैं लिखता हूं. दरअसल, मुझे स्कूल के समय से ही लिखने का शौक रहा है और यह गुण मुझे अपनी मां से मिला है. वे भी लिखती थी पर अब वे इस दुनिया में नहीं हैं. वैसे मैं ने तुम से एक और बात छिपाई और वह यह कि मैं तुम से प्रेम करने लगा था दिव्या. हां, सच में मजाक नहीं कर रहा मैं. ‘‘लेकिन शायद तुम मुझ से प्रेम नहीं करती थी. तुम ने मुझे केवल एक दोस्त के रूप में देखा. वैसे यह जरूरी तो नहीं कि हम जिस से प्रेम करें, वह भी हम से वैसे ही प्रेम करे. प्यार, व्यापार थोड़े ही न है. यह किताब हमारे प्यार… सौरी, अपने प्यार को समर्पित और उसे मैं ने सौंप दी.
अगर इस दुनिया में रहा तो शायद फिर कभी मिलना हो सके… सुजौय…’’ लैटर पढ़ कर दिव्या की आंखों से आंसू बह निकले, ‘तो क्या सुजाय भी मुझ से प्रेम करता था और मैं उसे केवल अपना एक अच्छा दोस्त समझती रही और यह किताब क्या उस ने हमारे अधूरे प्रेम पर लिखी है. उफ, कितनी नादान थी मैं कि उस के प्रेम को समझ नहीं पाई,’ दिव्या अपने मन में सोच ही रही थी कि पीछे से किसी का स्पर्श पा कर जब वह पीछे मुड़ी तो शिखर खड़ा था. ‘‘यहां हाल में क्या कर रही हो? चलो सोने,’’ कह कर वह दिव्या का हाथ पकड़ कर कमरे में ले गया. लेकिन दिव्या की नींद उड़ चुकी थी.
वैसे दिव्या को कमरे में ले जाने का शिखर का अपना मकसद था. अपना मकसद पूरा होते ही वह करवट बदल कर सो गया और दिव्या टकटकी लगाए छत निहारती रह गई. आज भी सुजौय का चेहरा दिव्या को अच्छी तरह याद है. 6 फुट लंबा कद, काले घुंघराले बाल, सांवला रंग और पतली दाढ़ी उसे और आकर्षक बनाती थी. अकसर फ्री पीरियड में वह लाइब्रेरी में जा कर बैठ जाता था.
उस के पीछेपीछे दिव्या भी लाइब्रेरी चली जाती थी लेकिन उस का लाइब्रेरी जाने का मकसद किताबें पढ़ना नहीं होता था बल्कि सुजाय के साथ समय बिताना होता था. अच्छा लगता था उसे उस के साथ क्योंकि प्रेम जो करती थी वह उस से. सुजौय का शांत स्वभाव, धीरगंभीर चेहरा अनायास ही उसे अपनी तरफ खींचता चला गया. लेकिन उसे कभी पता ही नहीं चल पाया कि सुजौय भी उस से उतना ही प्रेम करता है. कालेज में एक दिव्या ही थी जिस से सुजौय अपनी सारी बातें शेयर करता था. उस ने ही बताया था उसे कि जब वह 10वीं में था तब उस की मां का देहांत हो गया था. फिर उस के पापा ने दूसरी शादी कर ली. सौतेली मां उसे देखना नहीं चाहती थीं, इसलिए उस के पापा ने उसे बाहर पढ़ने भेज दिया.
दिव्या अपने प्यार का इजहार करती भी तो कैसे क्योंकि उस के परिवार में प्यार जैसे शब्द के लिए कोई जगह नहीं थी. प्यार का मतलब पाप समझ जाता था उस के घर में. देखा था उस ने कैसे उस के ताऊजी ने अपनी ही बेटी की शादी एक आंख वाले लड़के से करा दी थी क्योंकि उस ने प्यार करने की जुर्रत की थी. ताऊजी को जरा भी दया नहीं आई अपनी ही बेटी के साथ ऐसा करते हुए. दिव्या के मातापिता भी कम दकियानूसी विचारधारा के नहीं थे. जानती थी वो कभी वह उस के प्यार को पनपने नहीं देंगे और क्या पता उस का भी हश्र ताऊजी की बेटी की तरह हो जाता.
इसलिए अपने प्यार को अपने अंदर ही दफन कर दिया उस ने. सुबह जल्दी उठना था इसलिए किसी तरह आंखें मूंद कर सोने की कोशिश करने लगी और उसे नींद आ भी गई. लेकिन सुबह भी उस के दिमाग में सुजौय की बातें और उस का चेहरा ही आता रहा. उस के पास उस का फोन नंबर नहीं था वरना उस से बात करती. पूछती कहां है अभी, क्या कर रहा है और उस की शादी हुई या नहीं? तभी उस के दिमाग में आया कि शायद किताब में उस का फोन नंबर हो. देखा तो किताब के एक पन्ने में उस का फोन नंबर लिखा था जो उस ने अपने हाथ से लिखा था. सुजौय से बात करने को उस का मन मचल उठा.
उस ने अभी फोन उठाया ही था कि शिखर की तेज आवाज से फोन छूट कर बिस्तर पर गिर पड़ा. ‘‘तुम यहां हो? चलो, मेरी नीले रंग की शर्ट मिल नहीं रही है ढूंढ़ कर दो, औफिस जाना है मुझे,’’ शिखर की बातों से तो यही लग रहा था जैसे वह उस की नौकरानी हो. ‘‘अरे, तुम खुद देख लो, तुम्हारी ही अलमारी में होगी,’’ दिव्या ने कहा क्योंकि उसे भी तो अपने औफिस के लिए समय से निकलना था. उसे तो कुछ करना नहीं होता, लेकिन दिव्या को औफिस जाने से पहले हजारों काम होते हैं. लेकिन शिखर ने तो जिद ही पकड़ ली कि वही उस की शर्ट ढूंढ़ कर दे. शर्ट उस की अलमारी में सामने ही पड़ी थी लेकिन इस अक्ल के अंधे को पता नहीं कैसे दिखाई नहीं पड़ी.
मन ही मन चिढ़ उठी वह पर औफिस जाने के समय किसी बहस में नहीं पड़ना चाहती थी, इसलिए चुप ही रही. दिव्या शिखर से तो क्या किसी से भी शादी नहीं करना चाहती थी. लेकिन उस के मांपापा कहने लगे कि पढ़लिख कर उस का दिमाग खराब हो गया है. नौकरी करने लगी है तो क्या अपने मन का करेगी. फिर भेदती निगाहों से कहने लगे कि कहीं उस ने अपने लिए कोई लड़का तो नहीं पसंद कर रखा है? ‘‘कैसी बातें करते हो आप लोग ठीक है आप लोगों को जो ठीक लगे करो,’’ दिव्या ने भी हथियार डाल दिए. शिखर से जब वह पहली बार मिली तो उस के व्यवहार से उसे यही लगा था कि लड़का शरीफ है. लेकिन शादी के बाद उसे पता चला कि इस के अंदर कितना बड़ा शैतान छिपा बैठा है. बातबात पर गालीगलौज, थप्पड़ मार देना बहुत मामूली बात थी उस के लिए.
पहले तो दिव्या सबकुछ चुपचाप सह लेती थी लेकिन जब से उसे पता चला कि शिखर का अपने ही औफिस में काम करने वाली एक महिला से प्रेम चल रहा है तो फिर वह भी मुखर हो गई. अरे, बातबात पर तानेउलाहने आखिर कोई कितना सहेगा? सब के लिए इतना करने पर भी कौन से उसे 2 मीठे बोल सुनने को मिल रहे हैं. शिकायत ही है सब को उस से. सौ काम करो, कोई शाबाशी देने नहीं आएगा. लेकिन एक छोटी सी गलती भी हो जाए तो सब सुनाने पहुंच जाते हैं. कभीकभी तो हम बिना कुछ गलत किए ही बुरे बन जाते हैं क्योंकि हम वह नहीं करते जैसा लोग चाहते हैं. शिखर कहता है वह उसे जौब करने दे कर उस पर एहसान कर रहा है.
‘‘हां, तो मत करो एहसान और यह जौब मुझे तुम्हारी मेहरबानी से नहीं मिली है बल्कि अपनी काबिलीयत पर मैं ने यह जौब पाई है, समझे तुम?’’ दिव्या की बात पर उसे जोर की मिर्ची लगी. जैसे उस ने उस की दुखती रग पर उंगली रख दी हो. सास भी लगीं बकबक करने कि उन की मति मारी गई थी जो वे नौकरी वाली लड़की ब्याह लाए. मगर दिव्या फिर कुछ न बोल कर अपने कमरे में आ गई और अंदर से कुंडा लगा लिया. ‘और क्या करूं मैं अब इन लोगों के लिए? आज तक मैं सब की खुशी के लिए अपनी खुशी का गला घोटती आई हूं लेकिन फिर भी इन्हें मुझ से ही शिकायत है. बच्चा कर लो… बच्चा कर लो.
अरे नहीं करना मुझे अभी कोई बच्चा क्योंकि मां बनने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं मैं,’ अपने मन में सोच वह कराह उठी कि आज तक अपने लिए क्या ही सोच उस ने? न तो वक्त पर खा पाती है न सो पाती है. आराम तो जैसे उस के हिस्से ही नहीं है. घर में अगर नल, पंखे, एसी कुछ भी बिगड़ जाए तो उस के लिए भी उसे ही कोसा जाता है कि वह कोई ध्यान नहीं रखती. कुछ कहो तो वही राग अलापने लगते हैं कि छोडृ दो न नौकरी. घरगृहस्थी संभालो अपनी. दिव्या को आज तक यह बात समझ नहीं आई कि औरतों से ही घरगृहस्थी संभालने को क्यों कहा जाता है.
क्यों शादी के बाद महिलाओं पर घरगृहस्थी संभालने की, सब के लिए खाना बनाने की, बच्चों को संभालने की, सासससुर का ध्यान रखने की जिम्मेदारी आ जाती है और अगर वे वर्किंग वूमन हैं तो वहां औफिस में भी उन्हें सुपर वूमन बन कर दिखाना होता है वरना पीछे रह जाएंगी. पति औफिस से आ कर आराम से सोफे पर पसर कर मोबाइल या टीवी खोल कर बैठ जाता है और पत्नी किचन में जा कर सब के लिए खाना पकाती है. लेकिन उस पर जब उसे यह सुनने को मिलता है कि अरे, यह कैसी सब्जी बनाई है तुम ने कोई टेस्ट ही नहीं है और दाल में नमक डालना भूल गई. क्या खाना बनाती हो.
कुछ ढंग का बनाना नहीं आता क्या तुम्हें? लेकिन कोई यह नहीं कहता कि तुम्हें भी भूख लगी होगी, आओ साथ में बैठ कर खाना खाओ. बहुत थक गई हो, थोड़ा आराम कर लो. रोज की तरह सुबह उठ कर सब को चाय देने के बाद जैसे ही दिव्या ने अपनी चाय को मुंह लगाया कि उधर से उस की सास चिल्लाईं, ‘‘अरे बहू, यह क्या अनर्थ कर रही है? आज तो निर्जला तीज का व्रत है, भूल गई क्या?’’ ‘‘हां याद है मम्मीजी पर मैं यह व्रत नहीं कर रही न? कहा तो था आप से मुझे वीकनैस होने लगाती है.’’ ‘‘अरे, तो इस व्रत में कौन सा तुम्हें कोई पहाड़ उठाना है. उपवास ही तो रखना है. सोई रहना अपने कमरे में.
पूजा तो शाम में होगी न.’’ ‘‘नहीं मम्मीजी, मुझ से भूखे नहीं रहा जाएगा. प्लीज, मुझे फोर्स मत कीजिए. वैसे भी मैं यह सब नहीं मानती. शिखर तुम ही समझओ न मम्मीजी को.’’ मगर शिखर अपनी मां का ही पक्ष लेने लगा कि वे सही तो कह रही हैं. ‘‘क्या सही कह रही हैं? किसी को जबरदस्ती भूखा रहने को कहना सही बात है तो एक काम करो, तुम भी मेरे लिए निर्जला व्रत रखो?’’ दिव्या की बात पर शिखर हैरानी से उसे देखने लगा जैसे उस ने कोई बहुत बड़ी गलत बात कह दी हो. ‘‘अरे तुम नहीं कर सकते और मुझ से यह ऐक्स्पैक्ट करते हो कि मैं तुम्हारे लिए निर्जला व्रत रखूं? ये सब फालतू की बातें हैं क्योंकि अगर सच में पत्नी के व्रत रखने से पति की आयु लंबी होती न तो आज मेरी बूआ विधवा नहीं होतीं. तुम्हें पता है वे अपने पति के लिए कौन सा व्रत नहीं रखती थीं? कभीकभी तो लगातार 2-2, 3-3 दिन सह जाती थीं.
लेकिन फिर भी फूफाजी उन का साथ छोड़ गए. किसी व्रतउपवास से नहीं बल्कि एकदूसरे के बीच प्यारविश्वास और ईमानदारी से रिश्ते की उम्र लम्बी होती है शिखर. ‘‘और रही समाज और लोगों के कहने की बात तो वह मैं देख लूंगी. एक काम करती हूं. आज औफिस से मां के घर चली जाऊंगी, तब तो लोग बातें नहीं बनाएंगे न?’’ दिव्या को लगा था उस की मां उसे जरूर समझेगी लेकिन उस की मां तो पहले से ही दकियानूसी विचारधारा की महिला हैं तो क्या समझतीं उसे. कहने लगीं कि क्या यही संस्कार दिए हैं उन्होंने उसे जो सास, पति से लड़ कर यहां आ गई. ‘‘काश, वही संस्कार और रीतिरिवाज आप ने अपने बेटे को भी सिखाए होते मां तो आज वह आप को और पापा को अकेले छोड़ कर दूसरा घर बसाता.
इसी शहर में रहते हुए कभी झंकने तक नहीं आता और मुझे संस्कार की परिभाषा दे रही हैं आप. मांबाप की इज्जत बेटी के हाथों में और संपत्ति बेटे के हाथों में?’’ दिव्या को भी गुस्सा आ गया. ‘‘चलती हूं, और फिर प्रणाम कह कर वह उलटे पांव लौट गई. पीछे से मां आवाज देती रहीं पर वह नहीं रुकी. मन बड़ा उदास हो गया उस का कि कोई उसे नहीं समझता. उस के मातापिता भी नहीं. तभी उसे सुजौय की याद आ गई कि कैसे वह महिलाओं के अधिकारों के बारे में उन के सम्मान के बारे में बातें किया करता था और उस की कहानियां भी तो महिलाप्रधान ही होती हैं. दिव्या ने उसी वक्त उसे फोन लगाया तो झट से उस ने फोन उठा लिया, जैसे वह उस के फोन का ही इंतजार कर रहा हो कब से.
दिव्या की आवाज सुन कर सुजौय इतना खुश हो गया कि पूछो मत. कहने लगा कि उसे विश्वास था कि एक दिन वह उसे जरूर फोन करेगी. अपने बारे में बताने लगा कि जौब करता था पर अब जौब छोड़ कर पूरी तरह से लेखन में अपना ध्यान लगा चुका है. यह भी बताया उस ने कि अब वह कोलकाता में नहीं रहता. हमेशा के लिए मुंबई शिफ्ट हो गया. उस की कहानियों पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं. शादी की बात पर सुजौय चुप लगा गया. मतलब साफ था कि आज तक दिव्या को नहीं भूल पाया है. इसलिए शादी भी नहीं की. पता नहीं क्यों दिव्या का मन उस से मिलने को छटपटा उठा. अभी जा तो नहीं सकती थी उस से मिलने लेकिन रोज ही दोनों फोन पर बातें करने लगे. इसी बीच दिव्या के ट्रांसफर की बात होने लगी. उसे 2-3 जगह का औप्शन देना था कि वह अपना ट्रांसफर कहां चाहती है.
दिव्या ने झट से मुंबई डाल दिया और सुजौय को व्हाट्सऐप पर मैसेज कर दिया कि आई एम कमिंग फ्राम मुंबई. दिव्या के मुंबई आने का मैसेज पढ़ सुजौय खुशी से उछल पड़ा और फिर डांस वाली इमोजी डाली तो दिव्या को जोर की हंसी आ गई. उस ने भी इधर से ‘दिल वाली इमोजी’ भेज दी. दिव्या के मुंबई जाने की बात जब शिखर को पता चली तो वह तो तांडव ही करने लगा कि वह अपना तबादला मुंबई कैसे करा सकती है और उस ने उसे बताया क्यों नहीं.
यहां उस के मांपापा का ध्यान कौन रखेगा? ‘‘शायद तुम भूल रहे हो शिखर कि वे तुम्हारे मांपापा हैं. इसलिए उन की जिम्मेदारी तुम्हारी बनती है मेरी नहीं, समझे तुम और यह तो तुम्हें भी पता होगा कि हमारा जहां भी ट्रांसफर होता है जाना ही पड़ता है.’’ दिव्या की बात पर शिखर कुछ बोल नहीं पाया, बस देखता रह गया. दिव्या समझ चुकी थी जो हमारी जिंदगी होती है वह हमारी है. किसी और का हक नहीं होता हमारी जिंदगी पर और अगर हम अपनी जिंदगी के फैसले खुद नहीं लेंगे तो और कौन लेगा? वैसे भी शिखर के साथ उस का जबरदस्ती का रिश्ता था. कोई इमोशन, कोई प्यार नहीं था इस रिश्ते में.
Long Story in Hindi