Love Story: चिर आलिंगनरत- मोहन को गौरी मैम से कैसे प्यार हो गया

Love Story: संसार भर के सागरों में की जाने वाली क्रूज? यात्राओं में अलास्का की क्रूज सब से अधिक मनोहारी और रोमांचकारी मानी जाती है. इस यात्रा हेतु सिल्विया और मोहन 2 दिन पहले कनाडा के वैंकूवर नगर के बंदरगाह से नौर्वेजियन क्रूज लाइन के शिप पर सवार हुए थे.

क्रूज 7 दिन का था और शिप आज प्रात: जूनो नगर में आ कर रुका था. उन्होंने शिप पर ओशन व्यू कमरा बुक कराया था, जिस की खिड़की से दूरदूर तक लहराता सागर और यदाकदा ऊंचेऊंचे वृक्षों की हरीतिमा से आच्छादित द्वीपों का मंत्रमुग्धकारी बियाबान दिखाई देता था. यद्यपि इस प्रेमी युगल को पारस्परिक संग के दौरान किसी अन्य मुग्धकारी उत्तेजक की आवश्यकता नहीं थी, तथापि क्रूज शिप का मोहक वातावरण और महासागर का सम्मोहन अद्वितीय कैमिस्ट्री के जनक थे.

दोनों पृथ्वी पर स्वर्ग का आनंद प्राप्त कर रहे थे. जूनो अलास्का प्रांत की राजधानी है. अलास्का प्रांत की आबादी अधिक नहीं है, परंतु अलास्का की राजधानी होने के कारण यह नगर महासागर के किनारे बसा एक बड़ा कसबा सा है. शिप से उतर कर उन्होंने एक बस पकड़ ली.

उन्होंने 2 घंटे में कसबा व बाजार देख लिया. उन्हें यह देख कर आश्चर्य हुआ था कि बाजार में कुछ दुकानें गहनों की थीं जिन में अधिकांश के मालिक मुंबई के मूल निवासी थे.समयाभाव के कारण वे रोपवे और सी प्लेन की राइड पर नहीं गए.

तत्पश्चात वे मेंडेनहौल ग्लेशियर देखने और व्हेलवाच के लिए बोट से चल दिए. उस बोट में 2 ही हिंदीभाषी पर्यटक थे. शेष में अधिकांश इंग्लिश बोलने वाले अथवा अलास्का की आदिमजातियों की भाषा वाले थे, जिन में मुख्यतया ट्लिंगिट भाषा बोलने वाले थे.

अत: उसे और सिल्विया को आपस में कुछ भी बोलने और चुहलबाजी करने का निर्बाध अवसर उपलब्ध था. दोनों अन्यों की उपस्थिति से अनभिज्ञ रह कर इस अद्भुत यात्रा का आनंद ले रहे थे और जीवनिर्जीव सब पर हिंदी में अच्छीबुरी टिप्पणी कर के हंसते रहे थे.

मेंडेनहौल ग्लेशियर देख कर सिल्विया तो जैसे पागल हो रही थी. उस के और ग्लेशियर के बीच तट के निकट के सागर का एक भाग था. ग्लेशियर सागर के उस भाग के पार स्थित पर्वत से निकल रहा था. वह सुदूर पर्वत से निकल कर हिम की एक विस्तृत नदी की भांति चल कर सागर में समा रहा था. ऊपर से खिसक कर आई हिम सागर किनारे आ कर रुक जाती थी और वहां विशाल हिमखंड के रूप में परिवर्तित हो जाती थी जैसे सागर में कूदने के पूर्व उस की गहराई की थाह लेना चाह रही हो.

कुछकुछ अंतराल के पश्चात सागर किनारे स्थित शिलाखंड पीछे से आने वाली हिम के दबाव से भयंकर गरजना के साथ टूटता था और टुकड़ों में बिखर कर समुद्र में तैरने लगता था.हिमशिला टूटते समय सहस्रों पक्षी उस के नीचे से अपने प्राण बचाने को चिचिया कर निकलते थे. सिल्विया और मोहन यह देख कर हैरान थे कि उन पक्षियों ने सागर किनारे जमी उस हिमशिला के नीचे कुछ अंदर जा कर अपनी कालोनी बसा रखी थी.

हिमखंड के टूटने से उत्पन्न गरजना और जल का उछाल थम जाने पर वे पक्षी उस के नीचे बनी अपनी कालोनी में पुन: चले जाते थे. हिम के टूटे हुए खंड सागर में आइसबर्ग बन कर तैरने लगते थे.सिल्विया और मोहन जहां खड़े थे, वहां से बाईं ओर सागर में दूर तक वे आइसबर्ग दिखाई देते थे. उन के दाहिनी ओर एक पहाड़ी थी, जिस के ऊपर से एक झरना बह रहा था.

उस का आकर्षण सिल्विया को खींचने लगा और वह उस के किनारेकिनारे ऊपर दूर तक जाने लगी. मोहन भी उस के पीछेपीछे चलता गया.एकांत पा कर सिल्विया मोहन से सट गई और बोली, ‘‘मोहन, मेरा मन तो यहीं खो जाने को हो रहा है.’’पता नहीं क्यों तभी मोहन के मन में किसी अनहोनी की आशंका व्याप्त हो गई, परंतु मोहन ने सिल्विया को बांहों में भर लिया और उसे एक चुंबन दिया.

तभी यात्रियों की बोट पर वापसी का अलार्म बज गया और वे जल्दीजल्दी बोट पर वापस आ गए.बोट यात्रियों को व्हेल, सी लायन, सामन मछली, बोल्ड ईगिल आदि जीवधारियों को दिखाने हेतु गहरे समुद्र की ओर चल दी. व्हेलों के निवास के क्षेत्र में जब बोट पहुंची और यात्रियों ने उन की उछलकूद तथा श्वास के साथ पानी के फुहारे छोड़ने के दृश्यों का आनंद लेना प्रारंभ किया, तभी उन की बोट नीचे से एक भीषण ठोकर खा कर उछली और उलट गई. किसी यात्री को संभलने का अवसर नहीं मिला.

कोई डूब रहा था तो कोई तैर रहा था.कुछ यात्री बोट को पकड़ने उस की ओरतैरे भी, परंतु बोट अपने नीचे फंसी व्हेल केसाथ गहरे समुद्र में खिंची जा रही थी. सिल्विया और मोहन ने पानी में बहती लाइफ जैकेट पकड़ कर पहन ली और बोट से समुद्र में गिरे एकचप्पू को पकड़ कर पानी के ऊपर रुके हुए थे. पानी बेहद ठंडा था. थोड़ी देर में चीखपुकार कम हो गई. कुछ यात्री डूब गए थे और कुछ अशक्त हो रहे थे.मोहन और सिल्विया भी शिथिल होने लगे थे.

ऐसे में दोनों के मन एकदूसरे पर केंद्रित हो गए थे. मोहन एकटक सिल्विया की आंखों में देखे जा रहा था. सिल्विया भी उसे अपलक देख रही थी. दोनों के मानस एकदूसरे को ऐसे आत्मसात कर रहे थे कि किसी के होंठ हिलें न हिलें, दूसरा उस के मन की भाषा पढ़ लेता था.दिन ढल रहा था और मोहन का मन आशानिराशा के भंवर में डूबनेउतराने लगा था.

व्याकुलता पर नियंत्रण रखने हेतु वह सिल्विया से प्रथम मिलन की घटना को वर्णित करने लगा था और सिल्विया होंठों पर स्मितरेखा उभार कर तन्मयता से सुनने लगी थी. ‘‘सिल्विया, तुम से प्रथम मिलन में ही मैं सम?ा गया था कि तुम जीवन के विषय में निर्द्वंद्व सोच वाली, साहसी और नटखट स्वभाव की हो. मैं तभी से तुम्हारी इस अदा पर फिदा हो गया था.

उस दिन तुम होटल के कौरीडोर में मोबाइल कान में दबाए किसी से बात करती हुई निकल रही थीं, तभी मैं कमरे से निकल रहा था और तुम मुझ से टकरा गई थीं और तुम्हारे मुंह से अनायास निकल गया था कि ओह, आई एम सौरी. मैं भी अपने उच्छृंखल स्वभाव के वशीभूत हो बोल पड़ा था कि यू आर वैल्कम. तुम नहले पर दहला धर देने में माहिर थीं और बिना किसी झिझक के मेरी ओर बढ़ कर मुझे से फिर टकरा कर बोली थीं कि देन टेक इट. इस पर हम दोनों बेसाख्ता हंस दिए थे और यही बन गया था हमारी अंतरंग दोस्ती का सबब. ‘‘फिर मैं ने तपाक से हाथ बढ़ा कर कहा था कि आई एम मोहन,’’ तुम ने अविलंब हाथ बढ़ा कर अपना नाम बताया था.

मैं तुम्हारे हाथ को सामान्य से अधिक देर तक अपने हाथ में लिए रहा था और तुम ने भी हाथ वापस खींचने का कोई उपक्रम नहीं किया था. तुम्हारे जाते समय मैं ने केवल शरारत हेतु एक आंख मारते हुए पूछ लिया था कि सो, व्हेयर आर वी मीटिंग दिस ईविनिंग ऐट एट पी. एम.? और तुम ने उत्तर दिया था कि औफकोर्स, इन योर रूम.‘‘शाम होने पर मैं तुम्हारे आने हेतु जितना उत्सुक था, उतना आश्वस्त नहीं था.

तुम्हारे आने और न आने की आशानिराशा के काले में झलता हुआ मैं काफी पहले से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था, जब अपने वादे के अनुसार तुम ने ठीक 8 बजे मेरे कमरे की घंटी बजा दी थी. घंटी सुनते ही मैं ने लपक कर दरवाजा खोला था और तुम को देख कर प्रसन्नता के आवेग में आगापीछा सोचे बिना तुम्हें बांहों में भर कर बोला था कि ओह सिल्विया. लंबे बिछोह के उपरांत मिलने वाले प्रेमी की भांति तुम ने भी मुझे बांहों में समेट लिया था.

फिर मैं ने अपनी सांसों को सामान्य करते हुए तुम्हें कुरसी पर बैठा दिया था और स्वयं सामने की कुरसी पर बैठ गया था. कुछ क्षण तक हम दोनों में एक प्रश्नवाचक सा मौन व्याप्त रहा था. फिर उसे तोड़ते हुए मैं सहज हो कर अपना परिचय देने लगा था कि सिल्विया, मैं मोहन मूल रूप से नैनीताल के एक गांव का रहने वाला हूं. मेरे मातापिता और छोटी बहन पहाड़ पर ही रहते हैं.

आजकल दिल्ली में टी.सी.एस. में जौब करता हूं. उसी सिलसिले में कोच्चि आया हूं. अभी 1 सप्ताह तक और यहां रुकना है. फिर कुछ रुक कर चुहल करने के अंदाज में आगे जोड़ा था कि और मैं निबट कुंआरा हूं.’’इतना बोलने के श्रम से मोहन हांफ गया था और एक निरीह सी दृष्टि से सिल्विया को देखने लगा था. तब सिल्विया बोल पड़ी, ‘‘मुझे सब याद है मोहन. मैं ने अपना परिचय देते हुए कहा था कि मैं सिल्विया मूलरूप से कोच्चि की ही रहने वाली हूं और इसी होटल में असिस्टैंट मैनेजर के पद पर कार्यरत हूं.

मेरे मातापिता बग इस दुनिया में नहीं हैं, परंतु उन की प्रेमकथा यहां अभी तक प्रचलित है. मेरी माता जेन का जन्म फ्रांस में हुआ था. वे अपनी युवावस्था में फ्रांस से भ्रमण हेतु यहां आई थीं. उन्हें समुद्र से बहुत लगाव था. मेरे पिता शंकर एक छोटी सी यात्री बोट के चालक थे और उस के मालिक भी.एक दिन जब मौसम काफी खराब था, तब मेरी मां उन की नाव के पास आई थीं और पिता से समुद्र में घूमने की जिद करने लगी थीं. वे पूरी नाव का भाड़ा देने को कह रही थीं.

पिता ने मौसम का हवाला दे कर पहले तो मना किया परंतु सुंदर गोरी महिला की जिद के आगे उन का हृदय पिघल गया. आखिरकार वे अविवाहित नौजवान थे और जिंदादिल भी.‘‘पिता की आशंका के अनुसार नाव के समुद्र में कुछ दूरी तक पहुंचतेपहुंचते तूफान आ गया और नाव को उलट कर बहा ले गया. पिता कुशल तैराक थे और अपनी जान पर खेल कर मां को बचा कर किनारे ले आए.

मां बेहोश थीं और उन का पताठिकाना न जानने के कारण पिता उन्हें अपने घर ले आए. देर रात्रि में होश आने पर मां ने अपने को उन के द्वारा लिपटाए हुए और अश्रु बहाते हुए पाया. वह लजाई तो अवश्य परंतु अलग होने के बजाय उन से और जोर से लिपट गईं और फिर सदैव के लिए उन की हो कर कोच्चि में ही रुक गई थीं.’’सिल्विया के सांस लेने हेतु रुकते ही मोहन बोल पड़ा, ‘‘उसी ढंग से तुम उस दिन होटल के कमरे में मुझ से लिपट गई थीं और सदैव के लिए मेरी हो कर रह गई थीं.

फिर मैं दिल्ली की अपनी जौब छोड़ कर कोच्चिवासी हो गया था.’’ यह सुन कर सिल्विया हलदी सा मुसकरा दी थी. फिर वह बोली, ‘‘तुम ने मुझे जिंदगी में वह सब दिया है, जिस की मुझे चाह थी. हम ने कितनी तूफानी जिंदगी जी है? कितनी बार हम आंधीपानी के तूफानों, वीरान जंगलों और पहाड़ों के जानलेवा झंझवातों में फंसते रहे हैं और हर बार तुम हम दोनों को जीवित बाहर निकालते रहे हो,’’ फिर कुछ आशंकित हो कर प्रश्न किया, ‘‘क्या आज नहीं बचाओगे मेरे मोहन?’’मोहन ने सिल्विया को आश्वस्त करने हेतु कह दिया, ‘‘बचाऊंगा, अवश्य बचाऊंगा मेरी मोहिनी,’’ परंतु उस के शब्दों में वह आत्मविश्वास नहीं था, जो उस के सामान्य स्वभाव में रहता था.

दिन में तो मोहन और सिल्विया एकदूसरे से प्रेमालाप करते रहे थे, परंतु अंधेरा हो जाने और किसी प्रकार की सहायता आती न दिखाई देने पर उन के मन में निराशा व्याप्त हो गई.तब मोहन ने आगे बढ़ कर सिल्विया को अपनी बांहों के घेरे में ले लिया और उस के मुख से अनायास निकला, ‘‘मेरी सिल्विया, क्षमा करना.’’सिल्विया की पथराई सी आंखों के कोरों से मात्र अश्रु ढलका था. दूसरे दिन जूनो से आई एक रैस्क्यू बोट को एक हिंदुस्तानी युवक तथा एक गोरी युवती के बांहों में जकड़े शरीर लहरों पर तैरते मिले थे.

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Motivational Story: हौसले बुलंद हैं- समाज की परवाह किए बिना सुहानी ने क्या किया

Motivational Story: रात सिर्फ करवटें ही तो बदली थीं, नींद न आनी थी, न आई. फिर सुबह ताजी कैसे लगती. 4 बजे ही बिस्तर छोड़ दिया. समीर सो रहे थे पर उन्हें मेरी रात भर की बेचैनी सोतेसोते भी पता था. नींद में ही आदतन कंधा थपथपाते रहे थे. बोलते रहे, ‘‘सुहानी, सो जाओ. चिंता मत करो.’’

मैं ने फ्रैश हो कर पानी पीया. अपने लिए चाय चढ़ा दी. 20 साल की अपनी बेटी पीहू के कमरे में भी धीरे से झंक लिया. वह सो रही थी. मैं चुपचाप बालकनी में आ कर बैठ गई. इंतजार करने लगी कि कब सुबह हो तो बाहर सैर पर ही निकल जाऊं. सोसाइटी की सड़कों को साफ करने वाली लड़कियां काम पर लग चुकी थीं. मेरे दिल में इन लड़कियों के लिए बहुत करुणा, स्नेह रहता है. करीब 20 से 50 साल के ये लोग इतनी सुबह अपना काम शुरू कर चुके हैं. मुंबई में यह दृश्य आम है पर इन की मेहनत देख कर दिल मोम सा हुआ जाता है.

देख इन सब को रही थी पर मम्मी की चिंता में दिल बैठा जा रहा था. रात को उन्होंने फोन पर बताया था कि उन का बीपी बहुत हाई चल रहा है. वे गिर भी गई थीं, कुछ चोटें आई हैं. सुनते ही मन हुआ कि उन्हें देखूं. पीहू ने कहा भी कि नानी को वीडियोकौल कर लो मम्मी. पर 80 साल

की मेरी मम्मी को वीडियोकौल करना आता ही नहीं है. उन्हें कई बार कहा कि मम्मी व्हाट्सऐप या वीडियोकौल सीख लो, कम से कम आप को देख ही लिया करूंगी पर उन की इस टैक्नोलौजी में कोई रुचि ही नहीं है. तड़प रही हूं कि जाऊं, उन्हें देखूं, उन की देखभाल करूं. पर मायके नहीं जाऊंगी, यह फैसला कर लिया है तो कर लिया.

5 साल पहले मैं जब रुड़की मायके गई तो वहीं से यह फैसला कर के आई थी कि अब यहां कभी नहीं आऊंगी. मैं अपने से कई साल बड़े अपने बड़े भाईबहन के नफरतभरे दिलों की आग सहन नहीं कर पाती. वे मुझ से सालों बाद भी नाराज हैं. उन की नजर में मैं ने ऐसा गुनाह किया है जिसे माफ नहीं किया जा सकता.

प्यार करने का गुनाह. ब्राह्मण की बेटी हो कर एक मुसलिम से प्रेमविवाह करने का गुनाह. स्वार्थी, लालची भाईबहन को निश्छल समीर कैसे समझ आते.

वे तो मम्मी थीं कि समीर से मिलते ही समझ गई थीं कि उन की बेटी समीर के साथ हमेशा खुश रहेगी. मम्मी ने कैसे इस समाज को झेला है, मैं ही जानती हूं. मैं बहुत छोटी थी, पापा चले गए थे. मम्मी अगर अपने पैरों पर न खड़ी होतीं तो हम इन भाईबहन के सामने कैसे जीते, यह सोच कर ही खौफ आता है.

आसमान में जब इतना उजाला दिख गया कि सैर पर जाया जा सकता है तो मैं ने अपने सैर के शूज पहने और धीरे से घर से निकल गई. आज कदम सुस्त थे, मन जैसा था, वैसी ही चाल थी, थकी सी, उदास. गार्डन के चक्कर काटने के साथसाथ आज मन अतीत की गलियों में भी घूम रहा था. जब मैं ने मम्मी को अपने दिल की बात बताई, उन्होंने सिर्फ इतना पूछा, ‘‘एडजस्ट कर लोगी? सबकुछ अलग होगा.’’

मैं ने कहा था, ‘‘हां, मम्मी. सब ठीक होगा. समीर को इन 3 सालों में अच्छी तरह समझ

चुकी हूं.’’

‘‘तुम दोनों कब शादी करना चाहते हो?’’

‘‘मम्मी जब आप कहें कर लेंगे.’’

‘‘तो फिर ठीक है, जल्द ही करवा देती हूं. तुम्हारे भाईबहन को भनक भी पड़ गई तो मुश्किल हो जाएगी.’’

मैं खुशी के मारे रोती हुई मम्मी के गले लग गई थी. उन्होंने भी किसी छोटी बच्ची की तरह मुझे अपने से लिपटा लिया. फिर मम्मी ने अपने दम पर हमारी शादी करवाई, अपने बुलंद हौसलों के साथ. जाति, धर्म को दूर धकेल दिया. बहनभाई सिर पीटते रह गए. मैं तो नई गृहस्थी संभालने में व्यस्त थी पर मम्मी ने जो ?ोला वह सोच कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मम्मी टीचर रही हैं. यह शादी करवाने पर स्कूल में उन का सोशल बायकौट हुआ, स्कूल का चपरासी तक उन्हें पानी ला कर नहीं देता था. 1 महीना उन्होंने स्कूल के स्टाफरूम में बैठ कर अकेले खाया, अकेले बैठ कर चुपचाप अपने काम किए और किसी से बिना बात किए घर वापस.

मम्मी ने उस समय किसी की चिंता नहीं की, उन की बेटी खुश है, सिर्फ यही बात उन के लिए माने रखती थी. उन्होंने तो हर जाति के स्टूडैंट्स को बराबर स्नेह दिया था. हमारे घर उन के कितने ही मुसलिम स्टूडैंट्स उन से मिलने आ जाते थे. हम मांबेटी ने तो पता नहीं कितनी बार उन की लाई हुई ईद की सेवइयां खाई थीं जिन्हें मेरे भाईबहन छूते भी नहीं थे.

खुद को गर्व से कट्टर ब्राह्मण बताने वाला भाई शराब पी सकता था, दुनिया के सारे गलत काम कर सकता था पर ईद की सेवइयां कैसे छूता. बहन अपनी बीमारी में एक मौलवी से खुद को ?ाड़वाने जा सकती थीं, पर छोटी बहन के मुसलिम पति को, एक सभ्य, शिष्ट इंसान को कैसे स्वीकार करतीं. उन का धर्म न नष्ट हो जाता.

आज मैं कुछ जल्दी ही थक गई, मन की थकान ज्यादा थकाती है वरना इस समय तो मैं गार्डन में कूदतीफांदती चल रही होती हूं. शायद  ही कभी बैंच पर बैठने की नौबत आई हो. आज मैं थोड़ी देर के लिए बैंच पर बैठ गई.

शुरूशुरू में मम्मी मेरे पास काफी दिन रहीं. समीर ने ही कहा था कि आप कुछ दिन हमारे साथ शांति से रह लें. धीरेधीरे मेरे लालची भाईबहन को मम्मी की बातों से समझ आया कि छोटी बहन तो ससुराल में सुखी है, पति के साथ बनारस में समृद्ध गृहस्थी की उन्हें खबर मिली तो उन्हें सम?ा आ गया कि छोटी बहन से बिगाड़ना नुकसानदायक होगा. समीर अच्छी जौब में रहे हैं. 1-2 बार हिंदूमुसलिम की नफरतों से भरे स्वार्थी, बेशर्म भाईबहन ने समीर से बीमारी के बहाने पैसे भी मांग लिए जो उन्होंने खुशीखुशी दे भी दिए पर हर बार जब भी मतलब निकल जाता है उन की मुसलमानों के प्रति नफरत देख कर मेरा खून खौल जाता.

गिरने की कोई सीमा ही नहीं काम निकलना होता तो समीरसमीर करते हैं और काम पूरा होते ही समीर सिर्फ एक मुसलमान रह जाते हैं. बनारस घूमना है तो आ कर घर भी रह गए, मंदिरों के दर्शन भी कर लिए, खूब आवभगत हो गई. पर जाते ही फिर वही सब. फिर वे सब मुंबई भी आ गए, फिर वही सब किया. ऐसे सिलसिलों से किस का मन नहीं थकेगा.

5 साल पहले मायके गई थी. अब उन्हें मुझ से कोई स्वार्थ नहीं था, सब काम हो ही चुके थे. बातबात पर सुनाया जाने लगा कि मांबेटी ने ब्राह्मण हो कर धर्म को गर्त में गिरा दिया. इतने सालों बाद अब मैं यह सब सुनने के मूड में नहीं रहती. देखा जाए तो बात पुरानी हो चुकी है. अब इस पर बात होनी नहीं चाहिए थी पर मेरे पढ़ेलिखे भाईबहन धर्म के नाम पर जितने तमाशे हो सकते हैं, सब कर सकते हैं.

मुझे लगता है जब तक वे लोग इस धरती पर रहेंगे, जातिधर्म के नारे लगाते रहेंगे. ऐसी

बुद्धि पर मुझे अब तरस आता है. मैं इन लोगों से डरती नहीं, इन्हें हिंदूमुसलमान करने में जिंदगी बितानी है, मुझे यह बताना है कि अंतर्जातीय विवाह होते रहने चाहिए, धर्म, जाति के चक्कर में न पड़ कर प्यार देखा जाए, इंसान के गुण देखे जाएं. वे भी अपने पिछले रास्ते पर चल रहे हैं, मैं भी अपने बुलंद हौसलों के साथ जीवन में आगे बढ़ रही हूं.

पिछली बार मुझे लगा कि मैं यह सब अब नहीं सहूंगी, कह कर आई हूं कि अब कभी नहीं आऊंगी. कह कर आई हूं सब रिश्ते खत्म और यह सच भी है कि मैं अब उन लोगों की शक्ल भी नहीं देखना चाहती जिन के लिए छोटी बहन की खुशी कुछ नहीं, धर्म ही सबकुछ है.

मेरी उन लोगों से कैसे निभ सकती है जिन के लिए धर्म, जाति ही सबकुछ है जबकि मेरे लिए यह सबकुछ माने नहीं रखता. मम्मी से

फोन पर बात रोज होती है, पर उन्हें 5 सालों से देखा नहीं है. इस बात का दुख रहता है. अब वे बीमार हैं. मुझे पता है कि वहां उन की सेवा नहीं होती है. वे वहां अकेली ही हैं. मैं चाहती हूं कि मैं उन की बीमारी में उन की देखभाल करूं. बैठेबैठे पता नहीं मैं क्याक्या सोचती रही. फिर फोन में टाइम देखा. 6 बज रहे थे. कब से बैठी रह गई. घर जा कर पीहू और समीर के लिए टिफिन बनाना है.

अचानक कुछ सोच मम्मी को फोन मिला लिया. हैरान सी कमजोर

आवाज आई, ‘‘अरे, इतनी जल्दी? क्या हुआ?’’

‘‘मम्मी. किसी तरह दिल्ली आ जाओ टैक्सी में. मैं आप को दिल्ली एअरपोर्ट पर मिल जाऊंगी. वहां से आप को अपने साथ ले आऊंगी. फिर तबीयत ठीक होने तक आराम से मेरे साथ कुछ दिन रह कर जाना. दिल्ली तक आ पाओगी?’’

मम्मी हंस पड़ीं, ‘‘इतनी सुबहसुबह यह क्या प्लान बना रही है?’’

मैं भी अचानक हंस पड़ी, ‘‘मैं उस मां की बेटी हूं जिस के हौसले मैं ने हमेशा बुलंद देखे हैं. आप बीमार हैं, मुझे आप की देखभाल करनी है. चलने लायक तो हो न. बस एअरपोर्ट पहुंच जाओ, बाकी मैं सब देख लूंगी.’’

मम्मी की आवाज की कमजोरी अब गायब हो चुकी थी. अब उन की आवाज में एक उल्लास था. कहा, ‘‘ठीक है बना ले प्रोग्राम. यहां से क्याक्या चाहिए, बता देना.’’

मुझे हंसी आ गई, ‘‘कुछ नहीं चाहिए मम्मी. वहां सब कबाड़ है.’’

मेरे कहने का मतलब समझ मम्मी जोर से हंसी, बोलीं, ‘‘सही कह रही है.’’

हम दोनों फिर थोड़ी देर हंसतीबोलती रहीं. मुझे इतनी हिम्मती मां की बेटी होने पर हमेशा गर्व रहा है.

हां, मैं ऐसे ही जीऊंगी बेखौफ, निडर उन सब बेकार के रिश्तों से दूर. मम्मी को लाना है, उन की देखभाल करनी है. रास्ता निकाल लिया है मैं ने. जब ठीक हो जाएंगी, जब कहेंगी, ऐसे ही छोड़ भी आऊंगी. बस अब घर जा कर कल की ही फ्लाइट बुक करती हूं. मैं एक बार फिर अपने बुलंद हौसलों पर खुद को ही शाबाशी देती हुई अब तेज कदमों से घर की तरफ बढ़ गई.

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Bollywood Gossips: फिल्मी जगत से जुड़े नए अपडेट्स

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इस फिल्म का चलना जरूरी है

लंबे समय के बाद अनन्या पांडे को बड़ी फिल्म मिली है. अब यह बात अलग है कि उन्हें फिल्म में नैपो किड्स के गौडफादर करण जौहर ने कास्ट किया है. कुछ भी हो लेकिन अनन्या के लिए ‘तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी’ का चलना बेहद जरूरी है नहीं तो इंडस्ट्री में आगे टिक पाना उन के लिए बहुत मुश्किल होने वाला है. उन के साथ इंडस्ट्री में आने वाली उन की फ्रैंड्स जाह्नवी, सारा काफी आगे निकल चुकी हैं तो यह उन के लिए एक और चुनौती है. फिल्म का ट्रेलर दर्शकों को दमदार नहीं लगा तो ऐसे में हम तो आप को आल द बैस्ट ही बोल सकते हैं, अनन्या.

क्या है शनाया का नया प्लान

विक्रांत मैसी के साथ शनाया की फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ कुछ खास नहीं चली. शनाया की अदाकारी भी फिल्म में ठीकठाक ही थी और देखने से यह लग रहा था कि अभी उन्हें और मेहनत करने की जरूरत है. वैसे अभी उन की और एक फिल्म लाइन में हैं ‘तू या मैं’ जिस का निर्देशन आनंद राय कर सकते हैं. फिल्म रोमांटिक होगी और आनंद की मानें तो यह फिल्म अभी तक की सभी लव स्टोरीज पर भारी पड़ेगी. अगर यह बात सही निकली तो शनाया की तो बल्लेबल्ले हो जाएगी.

पहले स्टोरी फिर कैरेक्टर

आयुष्मान खुराना को दर्शक ‘विक्की डोनर,’ ‘आर्टिकल 15’ जैसी बेहतरीन फिल्मों के लिए पसंद करते हैं. इन फिल्मों की खास बात इन की स्टोरी थी. इन की स्टोरी में सोसायटी के लिए एक संदेश था. वैसे कौमेडी फिल्मों में भी आयुष्मान छाए रहे लेकिन इन फिल्मों की बात ही अलग थी. आयुष्मान का कहना है कि वे फिल्म के लिए हां करने से पहले उस की स्टोरी देखते हैं और फिर अपने कैरेक्टर पर ध्यान देते हैं. अगर स्टोरी नहीं जमी तो वे फिल्म नहीं करते. शायद तभी दर्शकों को अच्छी फिल्में देखने को मिल रही हैं नहीं तो वही बूढ़े खान और कुमार थकी हुई कहानियां परोसते मिलते

टौक्सिक बोल दिया लोगों ने

एक तरफ धनुष अपनी फिल्म ‘तेरे इश्क में’ की सफलता से खुश नजर आ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ एक दर्शक वर्ग उन की फिल्म को टौक्सिक बोल रहा है. वैसे बात कुछ हद तक सही भी है कि क्या प्यार ही आजकल की जैनरेशन की प्रायोरिटी रह गई है. प्यार तो ठीक है लेकिन उस के लिए अपनी जान और अपना परिवार तक दांव पर लगा देना कहां की सम?ादारी है. धनुष, आप की ऐक्टिंग एकदम सही थी लेकिन आप का यह फिल्म चुनना कुछ दर्शकों को आहत तो कर ही गया.

यह इश्क नहीं आसान

आजकल पूरा बौलीवुड जैसे इश्क में डूबा हुआ है, ‘तेरे इश्क में’ के साथसाथ विजय वर्मा और फातिमा सना शेख की ‘गुस्ताख इश्क’ भी सिनेमाघरों में आई. चूंकि ज्यादा शोशा नहीं हुआ तो फिल्म को ज्यादा स्क्रीन नहीं मिल सके फिर भी कुछ दर्शकों को यह पसंद आई. इस की स्टोरी में भी कोई खास दम नहीं है. विजय वर्मा बड़े परदे पर लीड रोल में आने को ले कर बहुत ऐक्साइटेड थे लेकिन नतीजा टांयटांय फिस्स निकला. कोई बात नहीं विजय, आप बेहतरीन अदाकार हैं और ओटीटी पर छाए हुए हैं. वैसे भी बड़े परदे से इश्क आसान नहीं होता.

कृति के कैरियर को मिला बूस्ट

‘तेरे इश्क में’ कृति सैनन और धनुष की जोड़ी को दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं. कृति के किरदार की इंटैंसिटी को लगभग सभी ने पसंद किया. फिल्म को मिली बंपर ओपनिंग के बाद कृति काफी खुश हैं. उन के लिए इस फिल्म का चलना जरूरी था क्योंकि उन की पिछली फिल्में औसत ही रही थीं. वैसे पैप्स आजकल उन के नए घर की तसवीरें लेने में भी काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं और बता रहे हैं कि उन का नया घर लगभग 80 करोड़ का है. फिर तो अच्छा हुआ कि यह फिल्म चल गई नहीं तो अंधविश्वासी यह कहने में एक मिनट भी नहीं लगाते कि कृति का नया घर उन के लिए पनौती है.

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बाजी जारी है: शतरंज की बिसात पर कोनेरू हम्पी की दूसरी चाल

लेखिका – भव्या डोरे
Koneru Humpy: कोनेरू हम्पी ने अपने कंधों पर डाली हुई धारीदार स्लेटी जैकेट को जरा सा कस लिया. सामने रखे शतरंज के क्रीम रंग के मुहरों को उन्होंने विधिवत ढंग से व्यवस्थित किया. उन की प्रतिद्वंद्वी महाराष्ट्र की 19 वर्षीय प्रतिभाशाली दिव्या देशमुख अपनी घुमावदार कुरसी पर हलके से झूलती हुई इंतजार कर रही थीं. दिव्या टाइमर सैट करने के लिए आगे बढ़ीं. दोनों महिलाओं ने एकदूसरे से हाथ मिलाया.

जुलाई, 2025 में जार्जिया अंतर्राष्ट्रीय शतरंज महासंघ के महिला विश्व कप की मेजबानी कर रहा था. पहली बार 2 भारतीय खिलाड़ी फाइनल में आमनेसामने थीं. 3 दिनों तक लगातार बराबरी के मुकाबलों के बाद हम्पी और दिव्या आखिरी बार आमनेसामने भिड़ीं थीं.

मैच शुरू हुआ. हम्पी ने क्वीन्स गैम्बिट  खेला. उन्होंने रानी के सामने रखे प्यादे को आगे बढ़ाया, एक ऐसी चाल जो बोर्ड के केंद्र पर नियंत्रण बनाने की कोशिश थी. लगभग 15 मिनट में दिव्या ने उन्हें मात दे दी. भारत की पहली और सब से वरिष्ठ महिला ग्रैंडमास्टर ने भारत की नवीनतम और सब से युवा ग्रैंडमास्टर के खिलाफ आखिरी मैच में गलती कर दी थी.

2 महीने बाद विजयवाड़ा स्थित अपने घर में मुझ से बात करते हुए 38 वर्षीय हम्पी ने उस हार पर विचार किया. इस दौरान उन्होंने एक साधारण सफेद कुरता और छोटी बिंदी लगाई हुई थी. पीछे एक हलके रंग का परदा लहरा रहा था.

‘‘निश्चित रूप से यह एक कठिन और चुनौतीपूर्ण मुकाबला था,’’ हम्पी ने कहा, ‘‘इस स्तर पर बने रहने के लिए आप को युवाओं के खिलाफ संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि उन के पास बहुत ऊर्जा होती है, वे हमारी पीढ़ी की तुलना में अधिक तैयार और बेहतर प्रशिक्षित हैं.’’

तजरबे की झलक

हम्पी की बातों में 3 दशक से ज्यादा के तजरबे की झलक है. उन्होंने 1993 में प्रतिस्पर्धात्मक शतरंज खेलना शुरू किया था. तब वे लगभग 6 वर्ष की थीं. उस के 3 साल बाद उन्होंने अपना पहला राष्ट्रीय खिताब जीता. उस के बाद उन्होंने इस खेल की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक के रूप में अपनी पहचान बनाई. 2002 में अपने 15वें जन्मदिन के सिर्फ 1 महीने बाद हम्पी भारत की पहली महिला ग्रैंडमास्टर बनीं. उस समय दुनिया की सब से युवा ग्रैंडमास्टर. 2003 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार मिला जो देश के शीर्ष खेल सम्मानों में से एक है. 2007 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया जो देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. तब मैं अपने चरम पर थी उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित रूप से मेरा चरम अब पीछे छूट चुका है.’’

2014 में हम्पी ने दसरी अन्वेश से विवाह किया. वे प्रशिक्षण से इलैक्ट्रिकल इंजीनियर हैं और एक उद्योगपति के बेटे. 2 साल बाद गर्भावस्था के कठिन समय में हम्पी ने शतरंज की बिसात से दूरी बना ली.

भले ही हम्पी ने कुछ समय के लिए अपनी रफ्तार कम की हो, उन की कहानी किसी अधूरे रह गए कैरियर की नहीं है. यह संतुलित सधे धैर्य की है. 2018 में शतरंज में अपनी वापसी के बाद उन्होंने कई बड़ी हारों का सामना किया है और मेहनत से मिली जीतों का जश्न भी मनाया है. एक समय ऐसा भी आया जब वे चेस को लगभग छोड़ने वाली थीं.

‘‘मैं तो छोड़ने का सोच ही रही थी क्योंकि मैं केवल शतरंज नहीं खेलना चाहती हूं अगर मैं पर्याप्त प्रतियोगी नहीं हूं या फिर सफल नहीं हूं. अगर में खेल रही हूं तो फिर मुझे कुछ हासिल करना होगा, किसी के लिए प्रेरणा बनना ही होगा,’’ उन्होंने मुझ से कहा.

‘‘हालांकि मां बनने से हम्पी की प्राथमिकताओं का विस्तार हुआ है लेकिन खेल के प्रति उन का समर्पण अभी भी बना हुआ है. अब वे अपने कैरियर के दूसरे पड़ाव में हैं. अनुभव और आत्मविश्वास से भरी हुईं.’’

विश्व चैंपियन

पिछले कुछ वर्षों में हम्पी ने प्रभावशाली जीतें हासिल की हैं, जिन में महिलाओं के रैपिड शतरंज में विश्व चैंपियन का खिताब शामिल है. यह खेल का एक तेज गति वाला प्रारूप है. यह खिताब उन्होंने 2019 और 2024 में 2 बार जीता. उन के अलावा सिर्फ एक और महिला हैं जिन्होंने 2 बार यह खिताब जीता है. 2008 के बाद हम्पी  की रैंकिंग शीर्ष 5 से नीचे कभी नहीं गई.

न्यूज पब्लिकेशन हम्पी की वापसी का वर्णन करने के लिए अकसर अतिशयोक्ति भरे सनसनीखेज शब्दों का सहारा लेते हैं. सनसनीखेज, प्रेरणादायक, चकित कर देने वाला. लेकिन उन की उपलब्धियों को परिस्थितियों से अलग कर के नहीं देखा जा सकता.

‘‘ज्यादातर मामलों में बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी और मानसिक श्रम मां के हिस्से ही आता है और पेशेवर रूप से काम करते हुए ऐसा करने का मतलब होता है एक साथ कई काम करना.’’

पत्रकार जेनिया डी कुन्हा ने स्पोर्ट्स पब्लिकेशन ईएसपीएन के लिए गए एक लेख में कहा, ‘‘2 बार की विश्व चैंपियन बनते हुए ऐसा करना? इस के लिए जबरदस्त जुझारूपन की जरूरत पड़ती है.’’

पहले हम्पी किसी मैच में ड्रा करने वाली होती तो वे ‘जीतने के लिए जरूरत से ज्यादा जोर लगातीं,’ वे याद करती हैं. लेकिन जब वे खेल में वापस लौटीं, ‘‘मुझे अपनी ताकत समझ में आई, कहां दबाव डालना है और कहां रुकना है,’’ वे बताती हैं, ‘‘इस ब्रेक ने मेरी शतरंज को एक नए दृष्टिकोण से देखने में मदद की. मैं पूरी तरह से तरोताजा थी, मेरा दिमाग बिलकुल साफ था.’’

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ओएनजीसी के कर्मचारी और दोहा एशियन गेम्स के गोल्ड मैडल विजेता दिल्ली में (जनवरी 2007), कोनेरू हम्पी ने 2006 में ओएनजीसी जॉइन किया. Pic : PRAKASH SINGH/AFP/Getty Images

मेहनत से बनाई पहचान

हम्पी के पिता अशोक कोनेरू अपनी बेटी को हमेशा से किसी खेल से जोड़ना चाहते थे. उन्होंने अपने पिता से टैनिस और शतरंज सीखा था. वे इंडियन ऐक्सप्रैस की एक कहानी में बताते हैं कि 90 के दशक की शुरुआत में जब हम्पी बड़ी हो रही थी, 2 बहनें वीनस और सेरेना विलियम्स वैश्विक स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त कर रही थीं. अशोक के लिए उन का उभार टेनिस की महिमा और पुरस्कार दोनों की संभावना का प्रमाण था.

‘‘इसीलिए मैं चाहता था कि वह (हम्पी) टैनिस खेले,’’ वे इंडियन ऐक्सप्रैस को बताते हैं. लेकिन, ‘‘जब मैं खेल का अध्ययन कर रहा था, हम्पी शतरंज की तरफ आकर्षित हो गई,’’ अशोक ने कहा, ‘‘तब मैं ने हम्पी से मेरे पिता को हराने के लिए कहा. वे क्लब स्तर के शतरंज खिलाड़ी थे, महज 8 साल की उम्र में उस ने उन्हें हरा दिया. उस के बाद मैं ने उस के खिलाफ खेलना शुरू किया. मैं टूरनामैंट स्तर का खिलाड़ी था. 11 साल की उम्र में वह मुझे भी हराने में सक्षम थी.’’

हम्पी ने जल्द ही घर से बाहर भी अपनी पहचान स्थापित कर ली. शतरंज खेलना शुरू करने के कुछ समय बाद ही उन्हें जिला और राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में भी सफलता मिली. इसी बीच अशोक ने भी अप्लाइड साइंस के प्रोफैसर की नौकरी छोड़ दी ताकि वे हम्पी को पूर्णकालिक रूप से प्रशिक्षित कर सकें और उन के साथ टूरनामैंट्स के लिए होने वाली यात्राओं में उन के साथ जा सकें.

मैनुअल एरान फ्रंटलाइन पत्रिका के लिए 1998 के एक लेख में बताते हैं, ‘‘हम्पी एक गंभीर श्रोता और कम बोलने वाली बच्ची है, लेकिन जब बात शतरंज के वैरिएशन को ले कर हो तो वह खुल कर बात करती है.’’

मैनुअल भारत के पहले अंतर्राष्ट्रीय मास्टर थे, जिन का चैन्नई की समृद्ध शतरंज संस्कृति की नींव रखने में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है. हालांकि हम्पी केवल 10 वर्ष की थी, लेकिन बहुत धैर्य के साथ खेलती थी. मैनुअल ने टिप्पणी की, ‘‘वह कभी जल्दबाजी में आक्रमण नहीं करती. पहले वह अपने मुहरों से बिसात बिछाती है और जब समय सही होता है तब वार करती है.’’

इस समय तक हम्पी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रही थीं. पत्रकार सूजन निनान ने ईएसपीएन में लिखा कि उन के पिता का यह फैसला कि वे हम्पी को किशोरावस्था की शुरुआत से ही लड़कों के टूरनामैंट में दाखिला दिलाएंगे. इस ने हम्पी को तेजी से आगे बढ़ने में मदद की. शतरंज उन गिनेचुने खेलों में से एक है जहां पुरुष और महिलाएं एक ही टूरनामैंट में एकदूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं.

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कोनेरू हम्पी ने अपनी स्ट्रैंथ को समझ कर यह सीखा कि कहां जोर लगाना है और कहां रुक जाना है. Pic : K Bhaskar/The The India Today Group/Getty Images

आत्मविश्वास को मजबूती

हम्पी ‘‘अंडर-12 लड़कों के एशियाई टूरनामैंट 1999 में इकलौती लड़की थीं, जिसे उन्होंने जीता था. अगले साल उन्होंने अंडर-14 लड़कों का टूरनामैंट जीता,’’ सूजन ने लिखा.

इन जीतों से हम्पी के आत्मविश्वास को मजबूती मिली. उस दौर में उन्हें लगता था कि बिसात पर सच में उन की टक्कर की महिला प्रतिद्वंद्वियां बहुत कम हैं.

‘‘मुझे महिला प्रतियोगिता में जीतने की बजाय पुरुषों के खिलाफ जीतने पर ज्यादा आत्मविश्वास महसूस होता था,’’ हम्पी ने मुझ से कहा, ‘‘मुझे ऐसा करने से अधिक खुशी मिलती थी क्योंकि मैं कहीं ज्यादा कठिन प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ खेल रही थी.’’

हम्पी का रास्ता स्पष्ट था. उन्होंने शतरंज के अलावा कभी किसी दूसरे कैरियर के बारे में सोचा भी नहीं. कभी स्कूल पूरा नहीं किया, कभी सामान्य बचपन का अनुभव नहीं किया. लेकिन उन्हें इस का कोई पछतावा नहीं है.

‘‘अगर मैं सफल नहीं होती तो शायद मुझे ऐसा महसूस होता, लेकिन चूंकि मैं ने सफलता देखी है और दुनिया के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की है, मुझे कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ,’’ वे कहती हैं.

लैंगिक भेदभाव ने हम्पी के उभार की धार को कुछ धीमा किया. 2002 में भारत की पहली महिला ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल करने के तुरंत बाद वे एक ऐसे दौर में पहुंच गईं जिसे वे दु:स्वप्न जैसा कहती हैं. पुरुष खिलाडि़यों ने उन की आलोचना की और क्षमताओं को कम आंका. उन्होंने याद किया.

तब वे 15 वर्ष की थी, ‘‘उस के बाद कुछ प्रतियोगिताओं में मुझे सफलता नहीं मिली,’’ हम्पी ने मुझ से कहा.

साल 2003 में हम्पी ने नागपुर में होने वाली एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता में क्वालिफायर स्तर की श्रेणी में भाग लेने का निर्णय लिया, जबकि वे अपनेआप ही उच्च श्रेणी में प्रवेश कर सकती थीं. वे अपने आलोचकों को चुप कराना चाहती थीं. बताया जाता है कि उन्होंने करीब 300 पुरुष खिलाडि़यों के समूह में प्रतिस्पर्धा की. उन्होंने याद किया कि अंतिम

और सब से अहम बाजियों में से एक के दौरान देखने वालों की भीड़ उमड़ आई थी. हम्पी के प्रतिद्वंद्वी ने मैच को ड्रा पर समाप्त करने की पेशकश की, लेकिन वे अड़ी रहीं. यह मैच वे जीतना चाहती थीं.

‘‘बाद में मैं एक बहुत बुरी स्थिति में पहुंच गई थी, जहां से वह प्रतिद्वंद्वी मुझे मात दे सकता था,’’ हम्पी ने कहा, ‘‘लेकिन अंत में किसी तरह मैं ने वह मैच जीत लिया. वह टूरनामैंट में दूसरे स्थान पर रही. मुझे लगता है उस के बाद से अब तक मुझे आलोचना का सामना नहीं करना पड़ा है,’’ वे हंसती हैं.

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कोनेरू के पिता अशोक ने जहां अपनी जौब छोड़ कर उन्हें कोचिंग देना शुरू किया, वहां उन की मां लता उन्हें प्रोत्साहित करती रहीं. Photo by K Bhaskar/The The India Today Group / Getty Images

चुनौतियां भी कम न थीं

अन्य चुनौतियां भी थीं जैसे प्रायोजकों की कमी. शुरुआत में बैंक औफ बड़ौदा ने लगभग 6-7 वर्षों तक हम्पी को प्रायोजित किया था, उन्होंने याद किया. लेकिन अचानक ही सब रुक गया. ठीक उसी समय जब 2002 में वे ग्रैंडमास्टर बनी थीं.

‘‘मेरी जगह उन्होंने एक क्रिकेटर को ब्रैंड ऐंबैसेडर रख लिया,’’ हम्पी ने कहा, ‘‘तो उन सालों में कोई स्पौंसरशिप नहीं थी.’’

अशोक सहायता के लिए कौरपोरेट को लगातार पत्र लिखते, लेकिन बदले में मिलती एक शालीन चुप्पी, उन्होंने एक समाचार रिपोर्ट में याद किया.

2006 तक हम्पी ने ‘औयल ऐंड नैचुरल गैस कौरपोरेशन’ (ओएनजीसी) में एक पर्सनल ऐडमिनिस्ट्रेटर की नौकरी कर ली. उन्हें प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए जाने की अनुमति थी, बस शर्त यह थी कि वे इस के लिए शीर्ष प्रबंधन को सूचित करेंगी.

इसी बीच हम्पी ने लगातार मेहनत जारी रखी. अक्तूबर, 2007 में उन्होंने ईएलओ रेटिंग सिस्टम में 2,606 के आंकड़े को भी छुआ. यह आंकड़ा शतरंज खिलाड़ी की मजबूती को उस के प्रतिद्वंद्वी से मुकाबले में प्रदर्शन के आधार पर मापा जाता है. हम्पी से पहले केवल एक महिला ने 2,600 की सीमा को पार किया था. उसी साल अशोक को द्रोणाचार्य पुरस्कार मिला, जो उत्कृष्ट खेल प्रशिक्षकों को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है. 2009 में हम्पी ने अपने कैरियर के अब तक के सब से ऊंचे ईलो रेटिंग 2,623 का आंकड़ा हासिल किया.

2009 में हम्पी ने महिला ग्रैंड प्रिक्स प्रतियोगिता भी जीती. यह अंतर्राष्ट्रीय शतरंज महासंघ द्वारा आयोजित टूरनामैंटों की एक शृंखला है. कोनेरू हम्पी ने भारतीय महिला शतरंज के लिए वही काम किया है जो सानिया मिर्जा ने भारतीय महिला टैनिस और साइना नेहवाल ने भारतीय महिला बैडमिंटन के लिए किया है.

न्यू इंडियन ऐक्सप्रैस की एक रिपोर्ट में हम्पी  की प्रशंसा करते हुए लिखा गया कि वे लगातार मानकों को ऊंचा और ऊंचा करती जा रही हैं.

2014 में हम्पी ने अन्वेश से शादी के ठीक बाद यात्रा की हनीमून के लिए नहीं बल्कि शारजाह में होने वाले महिला ग्रैंड प्रिक्स में खेलने के लिए.

हम्पी भले ही टैनिस नहीं खेलीं लेकिन उन का सानिया मिर्जा और सेरेना विलियम्स से एक सा?ा पहलू था- तीनों ने मातृत्व के बीच कमाल की वापसी की.

खेल और परिवार

शतरंज का खेल अपने खिलाडि़यों से उतनी शारीरिक मांग नहीं करता जितनी कि कई अन्य खेल करते हैं. लेकिन फिर भी किसी भी पेशे की तरह ब्रेक एक खिलाड़ी की प्रतिस्पर्धात्मक धार धीमी कर सकता है. इसलिए हरकोई जल्दी और अपनी शर्तों पर वापसी नहीं कर पाता. गर्भावस्था के दौरान हम्पी ने शतरंज से दूरी बना ली. वे प्रसवपूर्व जटिलताओं से जू?ा रही थीं और डाक्टरों ने भी 5वें महीने के बाद बैड रैस्ट की सलाह दी.

‘‘मैं शतरंज देखने के लिए भी बहुत उत्सुक नहीं थी. मैं परिवार के साथ आराम करते हुए समय बिताना चाहती थी,’’ उन्होंने याद किया, ‘‘मुझे उस का कोई पछतावा नहीं है. मैं उस समय को बहुत खुशनुमा समय के रूप में याद करती हूं.’’

जहां हम्पी के लिए यह सिर्फ एक विराम था, खेल से कोई बड़ी दूरी नहीं. वे जानती थीं कि वे वापस लौटेंगी. बस यह पता नहीं था कि कब. 2017 में बेटी आहना के जन्म के तुरंत बाद निमंत्रण आने शुरू हो गए. लेकिन हम्पी तैयार नहीं थीं. 2018 में जब उन की बेटी लगभग 1 साल की थी, उन्होंने खेल में वापस लौटने के लिए सावधानीपूर्ण कदम उठाए.

‘‘यह सबकुछ एकदूसरे के सहयोग पर निर्भर करता है,’’ हम्पी ने मुझ से कहा, ‘‘मैं बहुत खुश हूं कि मेरे मातापिता भी उसी शहर में रहते हैं जहां मैं हूं. मेरे पति भी बहुत सहयोगी हैं. सहयोग की भावना के बिना बच्चे को छोड़ कर किसी भी पेशे में वापस लौट पाना मुश्किल होता है क्योंकि एक मां के तौर पर आप को यह महसूस होना चाहिए कि आप का बच्चा सुरक्षित और सहज है.’’

हम्पी की मां लता ने भले ही कभी शतरंज न खेला हो लेकिन वे अच्छी तरह जानती थीं कि उन की बेटी के लिए इस खेल के क्या माने हैं.

‘‘मेरी मां हमेशा मेरे कैरियर पर नजर रखती हैं और मुझे प्रोत्साहित करती रहती हैं,’’ हम्पी ने खेल पत्रिका स्पोर्ट स्टार से कहा, ‘‘वे यह सुनिश्चित करती हैं कि मैं अपने खेल पर पर्याप्त समय दे पाऊं. शादी के बाद मुझे खाना बनाने और घर के दूसरे कामों में काफी समय देना पड़ता था लेकिन वे मुझे लगातार याद दिलाती रहती हैं कि यह सब मेरी प्रैक्टिस की कीमत पर न हो.’’

किसी भी टूरनामैंट के लिए अकसर 15 से 20 दिनों तक की यात्रा करनी पड़ती है. जब हम्पी यात्रा पर जाती थीं तो उन के मातापिता आहना की देखभाल करते थे. शुरूशुरू में यह दूरी मुश्किल होती थी. हम्पी जब वापल लौटती थीं तो आहना कई दिनों तक उन से ही लिपटी रहती थी. लेकिन अब यह दूरी कुछ हद तक सहज हो गई है. वे बारबार फोन काल या छोटीछोटी चीजें के जरीए इस फासले को दूर कर लेती हैं.

महत्त्वपूर्ण मुकाम

हम्पी ने अपनी वापसी के लिए 2018 के चेस ओलिंपियाड को चुना जोकि अंतर्राष्ट्रीय शतरंज महासंघ द्वारा हर 2 साल में आयोजित कराई जाने वाली एक टीम प्रतियोगिता है. यह फैसला उन्हें इसलिए सही लगा क्योंकि इस में वे भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रही थीं. प्रतियोगिता से 1 महीना पहले ही उन्होंने अभ्यास शुरू कर दिया ताकि अपनी प्रतिस्पर्धात्मक धार वापस पा सकें. लेकिन टीम का प्रदर्शन उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. भारत कुल मिला कर 8वें स्थान पर रहा.

उसी साल नवंबर में हुए एक और टूरनामैंट में हम्पी दूसरे दौर से ही बाहर हो गईं. परिणाम प्रभावशाली नहीं थे, उन्होंने बताया. लेकिन 2019 में हम्पी फिर से अपनी लय में वापस आने लगीं. सितंबर में उन्होंने रूस के स्कोल्कोवो में आयोजित ‘वूमंस ग्रैंड प्रिक्स’ में जीत हासिल की. कुछ महीनों बाद मोनाको में हुए अगले ग्रैंड प्रिक्स इवेंट में उन्होंने रजत पदक हासिल किया. इन प्रतियोगिताओं में जीतने वाले खिलाडि़यों को उच्च स्तरीय प्रतियोगिताओं के लिए क्वालिफाई करने का मौका मिलता है.

साल के अंत में हम्पी ने अपने कैरियर का एक महत्त्वपूर्ण मुकाम हासिल किया. उन्होंने पहली बार ‘वूमंस वर्ल्ड रैपिड चेस चैंपियनशिप’ का खिताब जीता. जीतों का सिलसिला जारी रहा. फरवरी, 2020 में हम्पी ने कैरन्स कप का खिताब जीता, जिसे दुनिया की सब से ज्यादा प्रतिस्पर्धी महिला शतरंज प्रतियोगिताओं में से एक माना जाता है.

मातृत्व ने हम्पी को सिर्फ एक नया नजरिया ही नहीं दिया बल्कि परिस्थितियों के हिसाब से उन की ढलने की क्षमता को और ज्यादा मजबूत किया.

‘‘पहले जब मैं किसी अलग टाइम जोन में जाती थी तब मु?ो ठीक से नींद नहीं आती थी, जिस का असर मेरे खेल पर तुरंत दिखाई पड़ता था,’’ उन्होंने बताया, ‘‘लेकिन मां बनने के बाद मैं इन चीजों की आदी हो गई हूं.’’

हम्पी की ही तरह उन का खेल भी एक नई ऊंचाई पर पहुंचा. पिछले 5 सालों में शतरंज की लोकप्रियता दुनियाभर में तेजी से बढ़ी है.

रूस और चीन का दबदबा

शतरंज के इस अप्रत्याशित उभार का एक सिरा जुड़ता है कोविड-19 महामारी से. जब लोग अपने घरों में कैद थे और बाहरी दुनिया से कटे हुए थे, तब उन्होंने औनलाइन शतरंज में सुकून और मानसिक राहत पाई. इस की लोकप्रियता को और बढ़ावा दिया लोकप्रिय संस्कृति के एक तत्त्व ने. अक्तूबर, 2020 में नैटफ्लिक्स पर ‘द क्वीन्स गैम्बिट’ नामक एक सीरीज रिलीज हुई जो एक युवा प्रतिभाशाली महिला शतरंज खिलाड़ी की उथलपुथल भरी यात्रा पर आधारित थी. रिपोर्टों के अनुसार, इस सीरीज को 1 महीने के भीतर 62 मिलियन घरों में देखा गया. तब से ले कर अप्रैल 2022 तक दुनिया के सब से बड़े औनलाइन शतरंज समुदाय चेस.कौम के मासिक उपयोगकर्ताओं की संख्या 8 मिलियन से बढ़ कर लगभग 17 मिलियन तक पहुंच गई.

भारत में एक तीसरा प्रेरक कारक भी काम कर रहा था. यह देश अब उस खेल में उभर रहा था, जिस पर पारंपरिक रूप से रूस और चीन का दबदबा रहा था. 2009 में भारत में कुल 20 ग्रैंडमास्टर थे. इस साल नवंबर तक यह संख्या बढ़ कर 91 तक पहुंच गई. पिछले वर्ष भारत की महिला और पुरुष दोनों टीमों ने शतरंज ओलिंपियाड में ऐतिहासिक रूप से पहली बार स्वर्ण पदक जीते. अक्तूबर, 2025 तक दुनिया के शीर्ष 100 खिलाडि़यों में 12 भारतीय थे, वहीं शीर्ष 100 महिला खिलाडि़यों में 7 भारतीय थीं.

इस का मतलब यह भी है कि आज के उभरते शतरंज खिलाड़ी असाधारण प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं.

‘‘मेरे समय से तुलना करें तो अब 14 या 15 साल की उम्र ही किसी भी खिलाड़ी का शिखर माना जाता है,’’ हम्पी कहती हैं, ‘‘अगर आप 12 या 13 साल की उम्र तक ग्रैंडमास्टर नहीं बनते हैं तो आप इसे पेशेवर कैरियर के तौर पर नहीं ले सकते.’’

परिणामस्वरूप कम उम्र के खिलाड़ी अधिक तेज और बेहतर तैयारी के साथ आते हैं. उन्हें अभ्यास के लिए पहले से ज्यादा अवसर उपलब्ध हैं. चाहे वे टूरनामैंट हों या औनलाइन प्रतियोगिताएं.

‘‘निश्चित रूप से युवा खिलाडि़यों के पास ज्यादा ज्ञान और तैयारी होती है क्योंकि वे शतरंज पर ज्यादा समय बिताते हैं,’’ हम्पी ने कहा, ‘‘वे मु?ा से ज्यादा खेल रहे हैं, इसलिए उन के साथ प्रतिस्पर्धा करना काफी चुनौतीपूर्ण है.’’

वे मानती हैं कि उन का अनुभव ही उन की सब से बड़ी ताकत है. वर्षों तक तराशी हुई समझ और खेल पर गहरी पकड़.

हम्पी कहती हैं कि वे अब चयनात्मक हो गई हैं और पहले की तुलना में कम टूरनामैंट खेलती हैं. उन की प्राथमिकता वे प्रतियोगिताएं हैं जो उन्हें विश्व चैंपियनशिप के लिए क्वालीफाई करने में मदद करें. वे देर रात तक चलने वाले औनलाइन टूरनामैंट्स से भी बचती हैं.

जोखिम भी कम नहीं

हम्पी ने 2024 में लगभग 8 टूरनामैंट खेले. इस साल अब तक उन्होंने 5 टूरनामैंट खेले हैं और कुछ और बाकी हैं. वहीं युवा खिलाड़ी आमतौर पर एक ही अवधि में दर्जनभर टूरनामैंट खेलते हैं. अब वे ओपन सर्किट से भी दूर हो चुकी हैं, जिस में पुरुष और महिला दोनों खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं.

हालांकि हम्पी ने पुरुषों और महिलाओं के खेलने के तरीकों में कुछ अंतर जरूर बताए लेकिन उन्होंने इन फर्कों को ताकत के रूप में देखा.

‘‘महिलाएं जो खेलती हैं, उस में बहुत चयनात्मक होती हैं खासकर ओपनिंग्स में लेकिन जो भी वे खेलती हैं, उस के लिए वे बहुत गहराई से और अच्छी तरह तैयार होती हैं,’’ उन्होंने कहा, ‘‘वहीं पुरुष खिलाडि़यों का ओपनिंग रेपर्टौयर कहीं ज्यादा व्यापक होता है लेकिन वे ज्यादा जोखिम भी लेते हैं.’’

आज महिलाओं का शतरंज भी पहले की तुलना में ज्यादा प्रतिस्पर्धी हो गया है. इस का दर्शक वर्ग भी पहले से कहीं ज्यादा बड़ा है. इतिहास में सब से ज्यादा देखे गए 5 महिला मैचों में से 4 तो पिछले 2 साल में ही खेले गए. लेकिन अभी भी बहुत कम टूरनामैंट ऐसे हैं, जहां पुरुषों और महिलाओं के लिए पुरस्कार राशि समान हो. उदाहरण के लिए इंटरनैशनल चेस फेडरेशन (स्नढ्ढष्ठश्व) ने जार्जिया में हुई महिला विश्वकप की विजेता के लिए 50 हजार डौलर की पुरस्कार राशि रखी थी, जबकि ओपन कैटेगरी जहां पुरुष और महिला दोनों खेलते हैं के विजेता के लिए 1 लाख, 20 हजार डौलर का पुरस्कार तय किया गया था.

पहले की तुलना अलग रख दें तो अब स्थिति काफी बेहतर है,’’ हम्पी ने कहा, ‘‘हमारे पास आमंत्रित टूरनामैंट नहीं होते थे और इनाम राशि भी अच्छी नहीं थी. 5 या 6 हजार यूरो को ही अच्छा माना जाता था,’’ उन्होंने याद किया, ‘‘आज आमंत्रित महिला टूरनामैंट में 30 से 40 हजार यूरो सामान्य हैं. इस हिसाब से सुधार हुआ है. लेकिन पुरुष खिलाडि़यों की तुलना में यह काफी कम है.’’

बुरा वक्त भी रहा

पिछले वर्ष हम्पी काफी बुरे दौर से गुजरीं. नार्वे में एक टूरनामैंट में उन्होंने अंतिम से दूसरे स्थान पर अपना सफर समाप्त किया और जल्द ही अगले टूरनामैंट में भी हार गईं. क्या यह अंत की शुरुआत थी? मायूस हो कर, उन्होंने अपने पति और मातापिता से कहा कि वे अब खेल छोड़ने को तैयार हैं. लेकिन यह निर्णय उन्हें सही नहीं लगा.

‘‘किसी न किसी समय हर खिलाड़ी नीचे आता ही है और उसे खेल से बाहर होना पड़ता है,’’ हम्पी ने कहा, ‘‘मैं सोच रही थी कि मैं अपनी पूरी क्षमता कैसे दिखा सकती हूं और इस हालात से खुद को कैसे बाहर निकाल सकती हूं.’’

दिसंबर, 2024 में जब हम्पी ने न्यूयौर्क में महिला विश्व रैपिड शतरंज चैंपियनशिप में भाग लिया, तब उन्हें खिताब की मजबूत दावेदार नहीं माना जा रहा था. हालांकि वे 2019 में यह खिताब जीत चुकी थीं. वे अपना पहला मैच हार गईं. लेकिन फिर कुछ बदला. उन्होंने अगले 3 मैच ड्रा किए और 7 मैच जीते.

आखिरी राउंड से पहले हम्पी और अन्य 6 फाइनलिस्ट के अंक समान थे. फाइनल मुकाबले में हम्पी ने इंडोनेशियाई खिलाड़ी आइरीन सुकंदर को हराया और सभी प्रतिस्पर्धी खिलाडि़यों में सब से ज्यादा अंक हासिल किए. इस जीत ने उन का नजरिया बदल दिया.

‘‘इस ने मुझे दोबारा शतरंज खेलने के लिए प्रेरित किया और मुझे लगा कि मैं फिर से खेलना चाहती हूं,’’ वे याद करती हैं.

अपनी वापसी के 7 वर्षों बाद हम्पी शायद और अधिक विचारशील हो गई हैं लेकिन जीतने की भूख अभी भी उतनी ही तीव्र है. हार का दर्द लंबे समय तक बना रहता है. शतरंज के मुहरे पैक हो जाने के बाद भी.

‘‘यह मेरे साथ तब तक रहता है जब तक मैं फिर से नहीं जीत जाती,’’ हम्पी ने हंसते हुए कहा, ‘‘कुछ मैच ऐसे हैं जो मुझे अभी तक परेशान करते हैं यहां तक कि 2011 के पुराने खेल भी.

‘‘यह आसान नहीं है. मैं अभी भी सीख रही हूं कि इसे कैसे संभालना है,’’ हम्पी ने कहा, ‘‘लेकिन संयोग से अपने परिवार और बेटी के कारण घर लौटते ही मैं आराम महसूस करती हूं. जब मैं घर होती हूं तो पूरी तरह उन के साथ होती हूं और जब मैं खेल में होती हूं तो इस दूसरी दुनिया को पूरी तरह बंद कर देती हूं.’’

समय मिलने पर क्या करती हैं?

घर पर हम्पी की कार्यक्रम काफी लचीला है. उन की दिनचर्या में लगभग 1 घंटा शारीरिक गतिविधियों जैसे जौगिंग या योग और 5-6 घंटे शतरंज का अभ्यास शामिल है. यह तब है जब पास में अगर कोई प्रतियोगिता आने वाली हो.

‘‘लेकिन जब कोई टूरनामैंट नहीं होता तो मैं बहुत सख्त नहीं रहती,’’ हम्पी ने कहा, ‘‘अगर मुझे समय मिलता है तो मैं देखती हूं वरना प्राथमिकता अपनी बेटी के साथ समय बिताने की होती है.’’

आहना उस उम्र से बड़ी हो गई है जब उन की मां ने शतरंज खेलना शुरू किया था लेकिन अब तक आहना ने इस खेल में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

हम्पी शतरंज के बाहर भी खुशी तलाशती हैं. वे फिल्में देखती हैं, परिवार के साथ समय बिताती हैं, ध्यान करती हैं और बोर्ड गेम खेलती हैं. ‘द क्वीन्स गैम्बिट’ जिस में सफेद मुहरे वाला खिलाड़ी क्वीन का प्यादा दो घर आगे बढ़ा कर केंद्र पर नियंत्रण करता है. एक ऐसी रणनीति है जिसे हम्पी अकसर इस्तेमाल करती हैं जैसे उन्होंने जार्जिया में दिव्या के खिलाफ मैच में किया था. लेकिन उन्होंने नैटफ्लिक्स की यह सीरीज नहीं देखी है.

‘‘मैं सीरीज देखने की शौकीन नहीं हूं क्योंकि एक बार शुरू कर दूं तो मुझे इस की लत पड़ जाती है,’’ हम्पी ने मुझ से कहा.

अगर कभी उन की अपनी कहानी स्क्रीन पर दिखाई जाए तो वे बौलीवुड अभिनेत्री तापसी पन्नू को अपना किरदार निभाते हुए देखना पसंद करेंगी.

इस वर्ष दिसंबर में हम्पी ग्लोबल चेस लीग और वर्ल्ड रैपिड और ब्लिट्ज चैंपियनशिप में खेलेंगी. रिटायरमैंट अभी उन की योजना में नहीं है. वे एक समय सोचती थीं कि अपनी बेटी के 10 साल की उम्र में खेल छोड़ देंगी. यह अहम मोड़ अब 2 साल दूर है. हम्पी के रुकने या धीरे होने का कोई संकेत नहीं दिखता है.

‘‘अगर आप का टूरनामैंट खराब रहा या आप अपने सब से खराब प्रदर्शन पर खेल रहे हैं लेकिन आप सिर्फ एक मैच जीतते हैं तो भी आप को वापस आने और अपनी ताकत दिखाने की ललक रहती है,’’ हम्पी ने कहा, ‘‘एक जीत यह दिखाती है कि आप अभी भी जीतने में सक्षम हैं. मुझे लगता है कि यही मुझे खेल के प्रति प्रेरित रखता है.’’

Koneru Humpy

Beauty Tips: फुंसियां फोड़ने के बाद रह गए दाग? जानिए आसान घरेलू नुस्खे

Beauty Tips: मेरे हाथ काफी रूखे रहते हैं. मौइस्चराइजर लगाने के बाद भी ये सामान्य नहीं दिखते. कोई उपाय बताएं जिस से ये नर्ममुलायम बने रहें?

हाथों की स्किन में औयल ग्लैंड्स नहीं होने के कारण इन्हें औयल देना पड़ता है. इसलिए इन्हें मुलायम और चिकना बनाए रखने के लिए हाथ धोने के बाद हमेशा कोई थिक क्रीम लगाएं. यह आप की त्वचा में औयल को बनाए रखने में मदद करेगी.

आप हाथ धोने के लिए कौन सा साबुन इस्तेमाल करती हैं इस पर भी ध्यान दें. ज्यादातर साबुन आप के हाथों को रूखा बना देते हैं, इसलिए लिक्विड सोप ही बेहतर है. रात को आप थोड़ी सी वैसलीन अपने हाथों पर लगा कर इसे एक ओवरनाइट ट्रीटमैंट की तरह भी इस्तेमाल कर सकती हैं. बस हाथ धोने के बाद इसे अपने हाथों पर लगाएं और कौटन के दस्ताने पहन कर सो जाएं.

मेरी उम्र 22 साल है. मेरी स्किन बहुत सैंसिटिव है. मैं जब भी कोई क्रीम, मेकअप प्रोडक्ट यूज करती हूं तो मेरे फेस पर दाने निकल जाते हैं. ऐसे में मैं बहुत परेशान रहती हूं. बताएं मैं क्या करूं?

आप कोशिश करें कि इस्तेमाल में लाई जाने वाली क्रीम खुशबू वाली न हो. हो सकता है उस की खुशबू से आप को ऐलर्जी हो. इसलिए आप सैंसिटिव स्किन के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली क्रीम ही खरीदें. जब भी यह क्रीम यूज करें तो इसे लगाने से पहले स्किन टोनर लगा कर उसे सूखने दें. उस के बाद क्रीम लगाएं.

यदि आप को दानों की समस्या रहती है तो ब्र्रैंडेड प्राइमर का इस्तेमाल करने से आप की प्रौब्लम सौल्व हो सकती है. आप को औयल फ्री प्राइमर का ही इस्तेमाल करना चाहिए.

मेरी उम्र 30 साल है. मेरी आईलैशेज काफी कम और छोटी हैं. मुझे कोई उपाय बताएं, जिस से उन की ग्रोथ हो सके?

घनी आईलैशेज के लिए अरंडी का तेल काफी फायदेमंद माना जाता है. इस में रिसिनोलिक ऐसिड पाया जाता है. यह बालों की जड़ों में रक्तप्रवाह को बढ़ाता है और पलकों के विकास के लिए उत्तेजित करता है.

अरंडी के तेल से न सिर्फ आप की पलकें घनी होंगी बल्कि यह पलकों को टूटने से भी बचाएगा. इसे लगाने के लिए अपने चेहरे को अच्छी तरह साफ कर लें. ध्यान रहे कि आप की आंखों पर किसी तरह का मेकअप न हो. अब साफ मसकारा ब्रश लें. इस ब्रश को अरंडी के तेल में डुबोएं और पलकों पर लगाएं. इसे रातभर पलकों पर लगा रहने दें और सुबह गुलाबजल या फिर मेकअप वाइप्स की मदद से साफ कर लें.

मेरी उम्र 16 साल है. मेरे चेहरे पर फुंसियां निकली थीं तो मैं ने उन्हें फोड़ दिया था. अब उन के मार्क्स रह गए हैं जो देखने में भद्दे लगते हैं. कोई घरेलू उपाय बताएं जिस से मार्क्स खत्म हो जाएं तथा मेरे चेहरे का ग्लो लौट आए?

कई बार दानों को छील देने से त्वचा पर उस के भद्दे निशान पड़ जाते हैं. आप घर पर रोज सुबहशाम अपने चेहरे को धो कर एएचए सीरम से फेस की मसाज कर सकती हैं. ऐसा करने से मार्क्स काफी हद तक कम हो जाएंगे. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो आप माइक्रोडर्मा एब्रेजर व लेजर थेरैपी की सिटिंग्स ले सकती हैं. इस थेरैपी में लेजर की किरणों से त्वचा को रीजनरेट कर के नया रूप दिया जाता है. उस के बाद यंग स्किन मास्क से त्वचा को निखारा जाता है.

वैक्सिंग के बाद मेरी स्किन पर लाल धब्बे उभर आते हैं. मैं अनचाहे  बालों को हटाने के लिए क्या उपाय अपना सकती हूं?

आप वैक्सिंग से पहले ऐंटीऐलर्जिक टैबलेट ले सकती हैं. वैसे इस समस्या से परमानैंट छुटकारा पाने के लिए पल्स लाइट ट्रीटमैंट की सिटिंग्स ले सकती हैं. ये एक इटैलियन टैक्नोलौजी है जो अनचाहे बालों को रिमूव करने का सब से तेज, सुरक्षित व दर्दरहित समाधान है. लेजर अंडरआर्म्स के बालों पर ज्यादा इफैक्टिव होती है. इसी कारण इस की कुछ ही सिटिंग्स में बाल न के बराबर हो जाते हैं. इस से 80% तक अनचाहे बाल दूर हो जाते हैं और शेष बाल इतने पतले और हलके रंग के हो जाते हैं कि वे नजर नहीं आते.

  मेरे चेहरे पर ब्लैकहैड्स हैं जो आसानी से नहीं निकलते हैं. बताएं मैं क्या करूं?

ब्लैकहैड्स को फेस पैक के जरीए निकाल पाना पौसिबल नहीं है क्योंकि वे पोर्स के अंदर होते हैं और पोर्स को खोल कर क्लीन करने के लिए स्क्रब करना जरूरी होता है. इन ब्लैकहैड्स को रिमूव करने के लिए आप किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक से वेज या फ्रूट पील करवा सकती हैं. 15 दिन में एक बार पील करवा लेने से ब्लैकहैड्स व व्हाइट हैड्स रिमूव हो जाएंगे साथ ही चेहरे पर निखार भी आएगा.

इस के साथ ही डेली बेसिस पर अपने फेस को क्लीन करने के लिए स्क्रब बना लें. घर पर बादाम व दलिया खुरदरा पीस कर पाउडर बनाएं और इस में चुटकीभर हलदी और गुलाबजल मिला कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को अपनी नाक व चेहरे पर लगा कर हलके हाथों से स्क्रब कीजिए और थोड़ी देर बाद सादे पानी से धो लें.

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Beauty Tips

निकाह होने वाला है, हर कोई सीख दे रहा है- मैं इस तनाव से कैसे निपटूं?

Health Problems: जल्द ही मेरा निकाह होने वाला है. घर में तरहतरह के लोग आ कर मुझे तरहतरह की सीख दे कर जाते हैं. ये माहौल मेरे तनाव का कारण बन गया है. ऐसी चीजों के कारण मैं अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकलती हूं, तो अम्मी चिल्लाने लगती हैं. मैं ये सब बातें और बरदाश्त नहीं कर सकती. इस तनाव को कैसे दूर करूं?

आप का परेशान होना लाजमी है लेकिन यदि आप के अपने परिवार वालों के सामने अपनी बात रखेंगी तो वे इसे जरूर समझेंगे. उन्हें बताएं कि कैसे लोगों की बातें आप को परेशान कर रही हैं. वे कोई न कोई हल जरूर निकालेंगे. इस के अलावा आप लोगों की बातों से बचने के लिए काम का बहाना दे सकती हैं.

यदि कोई अच्छी सीख दे रहा है तो अवश्य लें लेकिन यदि आप को लगता है कि इस से आप सिर्फ तनावगस्त हो रही हैं तो उन्हें प्यार से बात समझाएं. तनाव से बचने के लिए दिनभर अच्छी गतिविधियों में शामिल हों. अच्छा खाएं, अच्छा पिएं. सुबह उठ कर व्यायाम करें. दोस्तों के साथ हंसीमजाक करें. इस सब कड़ी में यह याद रखिए कि तनाव बढ़ाने वाली बातों को बारबार न दोहराएं क्योंकि ये आप के तनाव का और बढ़ाती हैं जो आप के स्वास्थ्य को बिगाड़ सकता है.

मेरी उम्र 18 साल है. मेरे घर वालों ने मेरी शादी तय कर दी है. परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और मेरे पिता भी ज्यादातर बीमार रहते हैं इसलिए मैं ने शादी के लिए हां तो कह दी है लेकिन अंदर से बहुत परेशान रहने लगी हूं. कुछ अच्छा नहीं लगता. आप ही बताएं मैं क्या करूं? क्या यह फैसला सही है?

अपने देश में यह नया नहीं है जब किसी लड़की को परिवार के बुरे हालातों की वजह से जल्दी शादी करनी पड़ी हो. आप के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है तो तनावग्रस्त होना लाजमी है. यहां सही या गलत फैसला जैसा कुछ नहीं रह जाता है. आप बस एक जिंदगी से दूसरी जिंदगी में शामिल होने जा रही हैं.

हालांकि यह एक बड़ा बदलाव है लेकिन कभी न कभी सभी को इस बदलाव का सामना करना ही पड़ता है. अब इसे सकारात्मकता या नकारात्मकता से लेना व्यक्ति पर निर्भर करता है. आप के लिए यही सलाह है कि इस फैसले से परेशान न हों. चूंकि आप की शादी तय हो चुकी है तो क्यों न इसे पूरी खुशी और सकारात्मक सोच के साथ अपनाया जाए.

अपने मन को शांत करने के लिए दोस्तों से बात करें. होने वाले पति के साथ फोन पर घुलनेमिलने और उसे जानने की कोशिश करें. घर में भी अपने हंसीमजाक से चहलपहल बढ़ाएं.

2 महीनों में मेरी शादी होने वाली है और अभी घर में बहुत सारी तैयारियां बाकी हैं. दरअसल, घर में लोग कम होने के कारण मुझे सभी कामों में हाथ बंटाना पड़ता है और शादी की शौपिंग भी खुद ही करनी पड़ती है. ऐसे में आराम का वक्त ही नहीं मिलता है. जिस के कारण मैं हर वक्त तनाव महसूस करती हूं. चिड़चिड़ी भी हो गई हूं. बताएं मैं क्या करूं?

शादी पास आने तक होने वाली दुलहन अकसर तनावग्रस्त महसूस करने लगती है. इस के कारण अलगअलग होते हैं लेकिन इन्हें सफलता थोड़ा मुश्किल होता है. हालांकि आप को घर के कामों में हाथ बंटाना पड़ता है. इस का मतलब यह नहीं है कि बिलकुल आराम नहीं करेंगी. शादी के तनाव भरे माहौल में खुद के लिए वक्त अवश्य निकालें.

काम के साथ आराम करेंगी तो चिड़चिड़ेपन से भी नजात मिलेगी. लोगों के साथ मिल कर थोड़ी हंसीठिठोली करें तो मन शांत और खुश रहेगा. रात को जल्दी सोने जाएं और 7-8 घंटों की नींद लें. सोने से पहले कुनकुने पानी से नहाएं और फिर सरसों का तेल गरम कर के हाथों पैरों की मालिश करें. इस के अलावा हलके हाथों से स्काल्प की भी मसाज करें. इस से दिनभर की थकान दूर होगी और नींद भी अच्छी आएगी. अच्छा खाएं और ढेर सारा पानी पिएं.

मैं 25 साल की हूं और जल्द ही मेरी शादी होने वाली है. शादी के बाद ससुराल में मेरी जिंदगी कैसी होगी, ये सवाल मुझे बहुत परेशान करता है. ऊपर से खुश हूं लेकिन अंदर ही अंदर यह डर खाए जा रहा है. इस तनाव को कैसे दूर करूं?

शादी के बाद विशेषकर एक लड़की की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है. नई जिम्मेदारियों का खयाल अकसर तनाव का कारण बनता है. लेकिन यह आप को मानसिक रूप के साथसाथ शारीरिक रूप से भी बीमार कर सकता है. शादी जैसे माहौल में विशेषकर दूल्हादुलहन का पौजिटिव रहना बेहद जरूरी है. इस के लिए सब से पहले खुद को इन सब सवालों से मुक्त कर दें.

रोज हैल्दी नाश्ता करें क्योंकि यह आप को पूरे दिन ऐक्टिव रहने में कदद करता है. फाइबर, हरी सब्जियां, फलों और ड्राई फ्रूट्स का सेवन अवश्य करें. दिनभर ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. दोस्त के साथ समय बिताएं और हंसीमजाक में शामिल हों.

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Health Problems

Movie Ticket Price: मदारी का तमाशा नहीं फिल्म

Movie Ticket Price: सिनेमा टिकट महंगे हैं, बहुत महंगे हैं, साथ में पौपकौर्न भी महंगे हैं, बहुत महंगे हैं. मुसीबत यह है कि आप सिनेमाहाल में अपने साथ अपना खाना भी नहीं ले जा सकते. फिर फिल्म इंडस्ट्री रोना रोती है कि चंद फिल्मों के अलावा बाकी सब को भारी नुकसान सहना पड़ता है और सरकार से दुहाई करती है कि सिनेमा उद्योग को टैक्सों, रैगुलेशनों से राहत भी दे और कुछ सब्सिडी भी दे.

कर्नाटक में सरकार ने कर्नाटक सिनेमा (रैगुलेशन अमैंडमैंट) एक्ट 2025 के अंतर्गत 200 रुपए का मैक्सीमम टिकट प्राइस तय कर दिया तो मल्टीप्लैक्स ऐसोसिएशन औफ इंडिया ने कनार्टक हाई कोर्ट में रिट पेश की, जिस से उसे स्टे मिल गया और यह राहत दर्शकों को नहीं मिली है. अब मामला अपीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट में है जहां स्टे को रखते हुए जजों ने कहा कि महंगा टिकट, महंगा पानी, महंगे पौपकौर्न सिनेमा इंडस्ट्री को मार डालेंगे, यह रैगुलेशन एक्ट नहीं. सिनेमा मालिकों का कहना था कि महंगे टिकट लोगों की चौइस है, वे चाहें तो फिल्म न देखें पर सिनेमा इंडस्ट्री को टैक्स देते हुए पैसा कमाने का मौलिक हक है.

असल में तो इंडस्ट्री पर जो भारीभरकम टैक्स लगा है वह हमेशा से फिल्मों को चूसता रहा है. इस पर टैक्स केवल क्राउड मैनेजमैंट का लगना चाहिए और वह भी लोकल पुलिस द्वारा. अतिरिक्त पुलिस फोर्स लगाने के लिए बाकी किसी को फूलतीफलती इंडस्ट्री को दोहने का कोई हक नहीं है.

फिल्म इंडस्ट्री प्योर ऐंटरटेनमैंट के लिए नहीं है, मदारी का तमाशा नहीं है. फिल्म का माध्यम किताबों की तरह एक सशक्त मीडियम, कुछ अलग कहने का है. दक्षिण में तो स्टार्स को भगवान की तरह पूजा जाता रहा है क्योंकि उन्होंने परदे पर आम आदमी की भावनाएं पेश की हैं. जो काम राजा राम नहीं कर पाए थे वे एनटी रामाराव, एमजी रामचंद्रन, जयललिता, विजय ने किया है. इस पर सरकारी कंट्रोल अपनेआप में गलत है.

एक फिल्म बनाना बहुत महंगा और पेचीदा काम है. इस में सैकड़ों लोग लगते हैं. मंच पर किए जाने वाले नाटकों से कहीं ज्यादा लंबा समय लगता है. नईनई तकनीक से सिनेमा महंगा हो रहा है और उसे न अपनाओ तो पिछड़ जाने का डर रहता है. इस की कीमत तो दर्शकों को देनी होगी पर सरकारें ऐंटरटेनमैंट टैक्स या जीएसटी या स्क्रीन सेस के नाम पर भरपूर कमाई करे यह अन्याय है. जनता पर सिनेमा मालिकों का टिकट महंगा करना या पौपकौर्न 500 के करना नहीं.

यह लूट ईर्ष्या की प्रतीक है. नेता और बाबू से ज्यादा पौपुलर कोई हो यह चिढ़ की निशानी है. दर्शकों को अपना फैसला करने दो. असल में तो सिनेमा इंडस्ट्री को बिना फिल्म की जांच किए सपोर्ट करना सरकार का काम है क्योंकि यह अभिव्यक्ति का मामला है. इस पर सैंसर बोर्ड बैठाना या टिकट के दाम तय करना नहीं.

Movie Ticket Price

Office Working Hours: अनफेयर है यह कौंसैप्ट

Office Working Hours: अब वीक में कितने दिन दफ्तर, फैक्टरी या मार्केट की दुकान में जाना पड़ेगा, एक बड़ा इशू बनता जा रहा है. एक खास क्लास पैदा हो गई है जो कम से कम सैटरडे और संडे की छुट्टी चाहती ही है और अगर ट्यूज्डे या थर्सडे को कोर्ट, बैंक हौलिडे आ जाए तो मंडे और फ्राइडे को भी छुट्टी चाहती है.

लंबी छुट्टियां अब वर्क कल्चर का एक हिस्सा बन रही हैं. दिल्ली में हाई कोर्ट के जजों ने फैसला लिया कि केसों की पैंडैंसी को कम करने के लिए वे महीने में एक सैटरडे को काम करेंगे तो ऐडवोकेट्स ने हल्ला मचा दिया. अभी हाई कोर्ट ने गलती यह की कि एक फिक्स सैटरडे नहीं रखा और हर हाई कोर्ट की बैंच को अपना सैटरडे चुनने की इजाजत दे दी. इस का मतलब है कि उस दिन लगने वाले केसों के ऐडवोकेट पहले से अपने प्रोग्राम नहीं बना सकते.

हाई कोर्ट हो या कोई भी ऐस्टैबलिशमैंट यह सप्ताह में 5 दिन काम का कौंसैप्ट एक तरह से अनफेयर है क्योंकि यह सुविधा केवल कुछ को ही मिल सकती है. जब इन खास लोगों को वीकैंड या लौंग वीकैंड पर छुट्टी चाहिए होती है तो लाखों लोगों को इन को ऐक्स्ट्रा सर्विस देने के लिए अपने घरों से निकलना होता है.

जब देशभर में छुट्टी होती है तो भी बिजली, पानी, इंटरनैट, टीवी, रेडियो चल रहा होता है और वहां लोग काम कर रहे होते हैं. जब लोग घरों से निकल कर सड़कों पर होते हैं तो पुलिस की ड्यूटी बढ़ जाती है. मौलों, दुकानों, रेस्तराओं में ऐक्स्ट्रा स्टाफ की जरूरत होती है. चूंकि देश में भेदभाव बड़ा है, कमाई का ऐक्स्ट्रा चांस देख कर सब सर्विस देने वाले मौजूद रहते हैं पर एक तरह से यह अन्याय है.

आज बहुत सी सर्विसेज सब को 24 घंटों सातों दिनों चाहिए तो उन्हें भी अपनी सेवाएं 24 घंटे सातों दिनों देने को तैयार रहना चाहिए.

हाई कोर्ट 5 दिन ही क्यों बैठे, 24 घंटे क्यों न चले जैसे पुलिस थाने चलते हैं? ऐडवोकेट 24 घंटों सातों दिन क्यों न अवेलेवल हों जैसे डाक्टरों से उम्मीद की जाती है कि वे संडे, सैटरडे, हौलिडे पर ही नहीं, रात के 2 बजे भी आ जाएं?

हाई कोर्ट को ही नहीं सभी तरह की सेवाओं में काम के घंटों को स्टैगर करने की आदत होनी चाहिए. हर काम, हर सेवा, हर मशीन 24 घंटों चले, यह एक आइडियल तरीका है. अगर संडे को सेवा चाहिए तो उस सर्विस देने वाले को हर तरह का कानूनी प्रोटैक्शन भी संडे को मिलना चाहिए. बात सिर्फ हाई कोर्ट्स की नहीं हर फील्ड की है. यह बाइबल वाला कौंसैप्ट कि भगवान ने 6 दिन काम किया, 7वें दिन आराम किया, फालतू की कहानी है.

Office Working Hours

American Women: चुनौती है धार्मिक कट्टरवाद

American Women: अमेरिका जाना अभी बहुत से देशों के युवाओं का ड्रीम है और वहां से आने वाली हजार बुरी खबरों के बावजूद हमारे यंग मैन ही नहीं, यंग गर्ल्स भी अमेरिका में लंबे समय के लिए जाने के लिए छटपटा रहे हैं. दूसरी ओर गैलप के सर्वे ने कहा है कि अमेरिका की यंग गर्ल्स में 15 से 44 की उम्र वाली 40-42% अमेरिका छोड़ कर कहीं और बसना चाहती हैं. इसी ऐज के यंग मैन में सिर्फ 18-20% बाहर जाना चाहते हैं.

अमेरिका की लड़कियां 2008 से ही देश छोड़ने को उतावली होने लगी थीं जब रिपब्लिकन राष्ट्रपति जार्ज बुश प्रैसिडैंट थे. यह इच्छा बराक ओबामा के राष्ट्रपति काल में फिर बढ़ी पर जो बाइडन के प्रैसिडैंट बनने के बाद कुछ कम हुई. अब डोनाल्ड ट्रंप के युग में तो तेजी से बढ़ी है.

इस की वजह तो गैलप सर्वे में साफ नहीं है पर यह साफ है कि अगर भारत से लड़कियां दूसरे देशों में जाना चाहती हैं और अमेरिका से भी जाना चाहती हैं तो वजह बढ़ता कट्टरवाद है. अमेरिका और भारत दोनों धार्मिक फंडामैंटलिज्म की ओर बढ़ रहे हैं.

इस फंडामैंटलिज्म में सीधे व साफ शब्दों में तो औरतों पर पाबंदियां नहीं लगाई गईं पर वीकली चर्च में जाना लगभग जबरदस्ती बना दिया जाता है जहां बारबार प्रीस्ट बाइबल के उन हिस्सों को दोहराता जहां लड़कियों को अच्छी पत्नी, अच्छी मां, अच्छी घरवाली, अच्छी सेविका बनो का उपदेश दिया जाता है.

अमेरिका में जम कर अबौर्शन पर बहस चल रही है और एक के बाद एक राज्य अबौर्शन पर रोक लगा कर लड़कियों से काम करने, पैसा कमाने, युवकों के बराबर बनने और सब से बड़ी बात मरजी से सैक्स की आजादी छीन रहे हैं. जो सैक्स की आजादी में शादी करे बिना अपनी खुशी से सैक्स कर केप्रैगनैंट हो जाएं उन के लिए बड़ी आफत खड़ी कर दी जाती है.

रिपब्लिकनों की आंखों के तारे चार्ली कर्क के टीवी व हालों के शो बहुत पौपुलर हुए थे क्योंकि वह औरतों को बाइबल के अनुसार चलने को बारबार कहता था और मेलफीमेल औडियंस जम कर तालियां बजाते थे. उन की गोली मार कर हत्या कर दी गई तो उन्हें शहीद का सा दर्जा दे दिया गया है.

यह जनाब जम कर औरतों को कहते रहे हैं कि औरतों का काम तो घरों में रहना, खाना पकाना, बच्चे पैदा करना और सब से बड़ी बात पतियों की भरपूर सेवा करना ही है. इन के हाल भरे रहते थे. यूट्यूब प्रवचन के लाखों दर्शक होते थे. ऐसे माहौल में युवा लड़कियां क्यों न अमेरिका छोड़ना चाहेंगी. यह बात दूसरी है कि हर लड़की को यह मौका नहीं मिलेगा क्योंकि जो मौका वे चाहती हैं, कहीं नहीं मिलेगा. धर्मगुरुओं के चंगुल हर जगह हैं, बराबर के से.

अमेरिका की बड़ी उम्र की औरतें उन यंग औरतों से चिढ़ी रहती हैं जो पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हैं और अपना घर खुद चला सकती हैं. दूसरी पुरातनपंथी अपने पतियों की गुलामी करती रहीं. व्हाइट या गैरव्हाइट औरतें आज बेहद जैल्स हैं कि जेन जी हो या मिलेनियल जैनरेशन अपने मन की कर सकती है. इन की संख्या अभी भी रेशो में कम है और इसलिए ऐजिंग औरतें राजनीति में दखल दे कर ऐसी पौलिसियां बनवा रही हैं जो औरतों के विरुद्ध जाएं.

American Women

Family Kahani: जिंदगी जीने का हक- केशव के मन में उठी थी कैसी ललक

Family Kahani: प्रणव तो प्रिया को पसंद था ही लेकिन उस से भी ज्यादा उसे अपनी ससुराल पसंद आई थी. हालांकि संयुक्त परिवार था पर परिवार के नाम पर एक विधुर ससुर और 2 हमउम्र जेठानियां थीं. बड़ी जेठानी जूही तो उस की ममेरी बहन थी और उसी की शादी में प्रणव के साथ उस की नोकझोक हुई थी. प्रणव ने चलते हुए कहा था, ‘‘2-3 साल सब्र से इंतजार करना.’’

‘‘किस का? आप का?’’

‘‘जी नहीं, जूही भाभी का. घर की बड़ी तो वही हैं, सो वही शादी का प्रस्ताव ले कर आएंगी,’’ प्रणव मुसकराया, ‘‘अगर उन्होंने ठीक समझा तो.’’

‘‘यह बात तो है,’’ प्रिया ने गंभीरता से कहा, ‘‘जूही दीदी, मुझे बहुत प्यार करती हैं और मेरे लिए तो सबकुछ ही ठीक चाहेंगी.’’

प्रणव ने कहना तो चाहा कि प्यार तो वह अब हम से भी बहुत करेंगी और हमारे लिए किसे ठीक समझती हैं यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन चुप रहा. क्या मालूम बचपन से बगैर औरत के घर में रहने की आदत है, भाभी के साथ तालमेल बैठेगा भी या नहीं.

अभिनव के लिए लड़की देखने से पहले ही केशव ने कहा था, ‘‘इतने बरस तक यह मकान एक रैन बसेरा था लेकिन अभिनव की शादी के बाद यह घर बनेगा और इस में हम सब को सलीके से रहना होगा, ढंग के कपड़े पहन कर. मैं भी लुंगीबनियान में नहीं घूमूंगा और अभिनव, प्रभव, प्रणव, तुम सब भी चड्डी के बजाय स्लीपिंग सूट या कुरतेपाजामे खरीदो.’’

‘‘जी, पापा,’’ सब ने कह तो दिया था लेकिन मन ही मन डर भी रहे थे कि पापा का एक भरेपूरे घर का सपना वह पूरा कर सकेंगे कि नहीं.

केशव मात्र 30 वर्ष के थे जब उन की पत्नी क्रमश: 6 से 2 वर्ष की आयु के 3 बेटों को छोड़ कर चल बसी थी. सब के बहुत कहने के बावजूद उन्होंने दूसरी शादी के लिए दृढ़ता से मना कर दिया था.

वह चार्टर्ड अकाउंटेंट थे. उन्होंने घर में ही आफिस खोल लिया ताकि हरदम बच्चों के साथ रहें और नौकरों पर नजर रख सकें. बच्चों को कभी उन्होंने अकेलापन महसूस नहीं होने दिया. आवश्यक काम वह उन के सोने के बाद देर रात को निबटाया करते थे. उन की मेहनत और तपस्या रंग लाई. बच्चे भी बड़े सुशील और मेधावी निकले और उन की प्रैक्टिस भी बढ़ती रही. सब से अच्छा यह हुआ कि तीनों बच्चों ने पापा की तरह सीए बनने का फैसला किया. अभिनव के फाइनल परीक्षा पास करते ही केशव ने ‘केशव नारायण एंड संस’ के नाम से शहर के व्यावसायिक क्षेत्र में आफिस खोल लिया. अभिनव के लिए रिश्ते आने लगे थे. केशव की एक ही शर्त थी कि उन्हें नौकरीपेशा नहीं पढ़ीलिखी मगर घर संभालने वाली बहू चाहिए और वह भी संयुक्त परिवार की लड़की, जिसे देवरों और ससुर से घबराहट न हो.

जूही के आते ही मानो घर में बहार आ गई. सभी बहुत खुश और संतुष्ट नजर आते थे लेकिन केशव अब प्रभव की शादी के लिए बहुत जल्दी मचा रहे थे. प्रभव ने कहा भी कि उसे इत्मीनान से परीक्षा दे लेने दें और वैसे भी जल्दी क्या है, घर में भाभी तो आ ही गई हैं.

‘‘तभी तो जल्दी है, जूही सारा दिन घर में अकेली रहती है. लड़की हमें तलाश करनी है और तैयारी भी हमें ही करनी है. तुम इत्मीनान से अपनी परीक्षा की तैयारी करते रहो. शादी परीक्षा के बाद करेंगे. पास तो तुम हो ही जाओगे.’’

अपने पास होने में तो प्रभव को कोई शक था ही नहीं सो वह बगैर हीलहुज्जत किए सपना से शादी के लिए तैयार हो गया. लेकिन हनीमून से लौटते ही यह सुन कर वह सकते में आ गया कि पापा प्रणव की शादी की बात कर रहे हैं.

‘‘अभी इसे फाइनल की पढ़ाई इत्मीनान से करने दीजिए, पापा. शादीब्याह की चर्चा से इस का ध्यान मत बटाइए,’’ प्रभव ने कहा, ‘‘भाभी की कंपनी के लिए सपना आ ही गई है तो इस की शादी की क्या जल्दी है?’’

‘‘यही तो जल्दी है कि अब इस की कोई कंपनी नहीं रही घर में,’’ केशव ने कहा.

‘‘क्या बात कर रहे हैं पापा?’’ प्रभव हंसा, ‘‘जब देखिए तब मैरी के लिटिल लैंब की तरह भाभी से चिपका रहता है और अब तो सपना भी आ गई है बैंड वैगन में शामिल होने को.’’

सपना हंसने लगी.

‘‘लेकिन देवरजी, भाभी के पीछे क्यों लगे रहते हैं यह तो पूछिए उन से.’’

‘‘जूही मुझे बता चुकी है सपना, प्रणव को इस की ममेरी बहन प्रिया पसंद है, सो मैं ने इस से कह दिया है कि अपने ननिहाल जा कर बात करे,’’ कह कर केशव चले गए.

‘‘जब बापबेटा राजी तो तुम क्या करोगे प्रभव पाजी?’’ अभिनव हंसा, ‘‘काम तो इस ने पापा के साथ ही करना है. पहली बार में पास न भी हुआ तो चलेगा लेकिन जूही, तुम्हारे मामाजी तैयार हो जाएंगे अधकचरी पढ़ाई वाले लड़के को लड़की देने को?’’

‘‘आप ने स्वयं तो कहा है कि देवरजी को काम तो पापा के साथ ही करना है सो यही बात मामाजी को समझा देंगे. प्रिया का दिल पढ़ाई में तो लगता नहीं है सो करनी तो उस की शादी ही है इसलिए जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा है मामाजी के लिए.’’

जल्दी ही प्रिया और प्रणव की शादी भी हो गई. कुछ लोगों ने कहा कि केशव जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए और कुछ लोगों की यह शंका जाहिर करने पर कि बच्चों के तो अपनेअपने घरसंसार बस गए, केशव के लिए अब किस के पास समय होगा और वह अकेले पड़ जाएंगे, अभिनव बोला, ‘‘ऐसा हम कभी होने नहीं देंगे और होने का सवाल भी नहीं उठता क्योंकि रोज सुबह नाश्ता कर के सब इकट्ठे ही आफिस के लिए निकलते हैं और रात को इकट्ठे आ कर खाना खाते हैं, उस के बाद पापा तो टहलने जाते हैं और हम लोग टीवी देखते हैं, कभीकभी पापा भी हमारे साथ बैठ जाते हैं. रविवार को सब देर से सो कर उठते हैं, इकट्ठे नाश्ता करते हैं…’’

‘‘फिर सब का अलगअलग कार्यक्रम रहता है,’’ केशव ने अभिनव की बात काटी, ‘‘यह सिलसिला कई साल से चल रहा है और अब भी चलेगा, फर्क सिर्फ इतना होगा कि अब मैं भी छुट्टी का दिन अपनी मर्जी से गुजारा करूंगा. पहले यह सोच कर खाने के समय पर घर पर रहता था कि तुम में से जो बाहर नहीं गया है वह क्या खाएगा लेकिन अब यह देखने को सब की बीवियां हैं, सो मैं भी अब छुट्टी के रोज अपनी उमर वालों के साथ मौजमस्ती और लंचडिनर बाहर किया करूंगा.’’

‘‘बिलकुल, पापा, बहुत जी लिए… आप हमारे लिए. अब अपनी पसंद की जिंदगी जीने का आप को पूरा हक है,’’ प्रणव बोला.

‘‘लेकिन इस का यह मतलब नहीं है कि पापा बाहर लंचडिनर कर के अपनी सेहत खराब करें,’’ प्रभव ने कहा, ‘‘हम में से कोई तो घर पर रहा करेगा ताकि पापा जब घर आएं तो उन्हें घर खाली न मिले.’’

‘‘हम इस बात का खयाल रखेंगे,’’ जूही बोली, ‘‘वैसे भी हर सप्ताह सारा दिन बाहर कौन रहेगा?’’

‘‘और कोई रहे न रहे मैं तो रहा करूंगा भई,’’ केशव हंसे.

‘‘यह तो बताएंगे न पापा कि जाएंगे कहां?’’ प्रणव ने पूछा.

‘‘कहीं भी जाऊं, मोबाइल ले कर जाऊंगा, तुझे अगर मेरी उंगली की जरूरत पड़े तो फोन कर लेना,’’ केशव प्रिया की ओर मुड़े, ‘‘प्रिया बेटी, इसे अब अपना पल्लू थमा ताकि मेरी उंगली छोड़े.’’

लेकिन कुछ रोज बाद प्रिया ने खुद ही उन की उंगली थाम ली. एक रोज जब रात के खाने के बाद वह घूमने जा रहे थे तो प्रिया भागती हुई आई बोली, ‘‘पापाजी, मैं भी आप के साथ घूमने चलूंगी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि आप सड़क पर अकेले घूमते हैं और मैं छत पर तो क्यों न हम दोनों साथ ही टहलें?’’ प्रिया ने उन के साथ चलते हुए कहा.

‘‘मगर तुम छत पर अकेली क्यों घूमती हो?’’

‘‘और क्या करूं पापाजी? प्रणव को तो 2-3 घंटे पढ़ाई करनी होती है और मुझे रोशनी में नींद नहीं आती, सो जब तक टहलतेटहलते थक नहीं जाती तब तक छत पर घूमती रहती हूं.’’

‘‘टीवी क्यों नहीं देखतीं?’’

‘‘अकेले क्या देखूं, पापाजी? सब लोग 1-2 सीरियल देखने तक रुकते हैं फिर अपनेअपने कमरों में चले जाते हैं.’’

‘‘अब तो बस कुछ ही महीने रह गए हैं प्रणव की परीक्षा में,’’ केशव ने दिलासे के स्वर में कहा, ‘‘तुम चाहो तो इस दौरान मायके हो आओ.’’

‘‘नहीं, पापाजी, उस की जरूरत नहीं है. बस, रात को यह थोड़ा सा वक्त अकेले गुजारना मुश्किल हो जाता है लेकिन अब इस समय आप के साथ घूमा करूंगी, गपें मारते हुए.’’

‘‘मैं बहुत तेज चलता हूं. थक जाओगी.’’

‘‘चलिए, देखते हैं.’’

कुछ दूर जाने के बाद, एक कौटेज में से एक प्रौढ़ महिला निकलती हुई दिखाई दीं. प्रिया पहचान गई. मालिनी नामबियार थीं, जो उस की शादी की दावत में आई थीं तब पापाजी ने बताया था कि ये सब भाई आज जो कुछ भी हैं मालिनीजी की कृपा से हैं. यह इन की गणित की अध्यापिका और स्कूल की प्राचार्या हैं, बहुत मेहनत की है इन्होंने इन सब पर.

मगर पापाजी ने जिस कृतज्ञता से आभार प्रकट किया था, किसी भी भाई ने मालिनीजी की खातिर में उतनी रुचि नहीं दिखाई थी.

उन्हें देख कर मालिनीजी रुक गईं. पापाजी ने उस का परिचय करवाया. मालिनीजी भी उन के साथ टहलते हुए प्रिया से बातें करने लगीं. कुछ देर के बाद केशव को टांगें घसीटते देख कर बोलीं, ‘‘थक गए? चलिए, कौफी पी जाए.’’

‘‘मगर कौफी यहां कहां मिलेगी?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘मेरे घर पर.’’

प्रिया ने केशव की ओर देखा, वह बगैर कुछ कहे मालिनी के पीछे उस के घर में चले गए. जब मालिनीजी कौफी लाने अंदर गईं तो प्रिया ने पूछा, ‘‘आप पहले भी यहां आ चुके हैं, पापा?’’

केशव सकपकाए.

‘‘बच्चों की पढ़ाई के सिलसिले में आना पड़ता था. इसी तरह जानपहचान हो गई तो आनाजाना बना हुआ है.’’

‘‘आंटी ने शादी नहीं की?’’

‘‘अभी तक तो नहीं.’’

प्रिया ने कहना चाहा कि अब इस उम्र में क्या करेंगी लेकिन तब तक मालिनीजी कौफी की ट्रौली धकेलती हुई आ गईं. जितनी जल्दी वह कौफी लाई थीं उस से लगता था कि तैयारी पहले से थी. प्रिया को कच्चे केले के चिप्स बहुत पसंद आए.

‘‘किसी छुट्टी के दिन आ जाना, बनाना सिखा दूंगी,’’ मालिनी ने कहा.

‘‘तरीका बता देने से भी चलेगा, आंटी. अब तो रोज घूमते हुए आप से मुलाकात हुआ करेगी सो किसी रोज पूछ लूंगी,’’ प्रिया ने चिप्स खाते हुए कहा.

मालिनी ने चौंक कर उस की ओर देखा.

‘‘तुम रोज सैर करने आया करोगी?’’

‘‘हां, आंटी?’’

‘‘अरे, नहीं, 2 रोज में ऊब जाएगी,’’ केशव हंसे.

‘‘नहीं, पापाजी. ऊबी तो अकेले छत पर टहलते हुए हूं.’’

‘‘तुम छत पर अकेली क्यों टहलती हो?’’ मालिनी ने भौंहें चढ़ा कर पूछा.

जवाब केशव ने दिया कि प्रणव परीक्षा की तैयारी के लिए रात को देर तक पढ़ता है और तब तक समय गुजारने को यह टहलती रहती है. टीवी कब तक देखे और उपन्यास पढ़ने का इसे शौक नहीं है.

‘‘मगर प्रणव रात को क्यों पढ़ता है?’’

‘‘सुबह जल्दी उठ कर पढ़ने की उसे आदत नहीं है और दिन में आफिस जाता है,’’ केशव ने बताया.

‘‘आफिस में 5 बजे के बाद आप सब मुवक्किल से मिल कर उन की समस्याएं सुनते हो न?’’ मालिनीजी ने पूछा, ‘‘अगर चंद महीने प्रणव वह समस्याएं न सुने तो कुछ फर्क पड़ेगा क्या? काम तो उसे वही करना है जो आप बताओगे. सो कल से उसे 5 बजे से पढ़ने की छुट्टी दे दो ताकि रात को मियांबीवी समय से सो सकें.’’

‘‘यह तो है…’’

‘‘तो फिर कल से ही प्रणव को स्टडी लीव दो ताकि किसी का भी रुटीन खराब न हो,’’ मालिनीजी का स्वर आदेशात्मक था, होता भी क्यों न, प्राचार्य थीं.

प्रिया ने सिटपिटाए से केशव को देख कर मुश्किल से हंसी रोकी.

‘‘हां, यही ठीक रहेगा. लाइबे्ररी तो आफिस में ही है. वहीं से किताबें ला कर घर पर पढ़ता है, कल कह दूंगा कि दिन भर लाइबे्ररी में बैठ कर पढ़ता रहे, कुछ जरूरी काम होगा तो बुला लूंगा,’’ केशव बोले.

लौटते हुए केशव ने प्रिया से कहा कि वह प्रणव को न बताए कि मालिनीजी ने उस की स्टडी लीव की सिफारिश की है, नहीं तो चिढ़ जाएगा.

‘‘टीचर से सभी बच्चे चिढ़ते हैं और स्कूल छोड़ने के बाद तो उन की हर बात हस्तक्षेप लगती है.’’

‘‘यह बात तो है, पापाजी. वैसे यह बताने की भी जरूरत नहीं है कि हम मालिनीजी से मिले थे,’’ प्रिया ने केशव को आश्वस्त किया.

अगले रोज से प्रणव ने रात को पढ़ना छोड़ दिया. प्रिया ने मन ही मन मालिनीजी को धन्यवाद दिया. जिस रोज प्रणव की परीक्षा खत्म हुई, रात के खाने के बाद केशव ने उस से पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है, कहीं घूमने जाओगे?’’

‘‘जाना तो है पापा, लेकिन रिजल्ट निकलने के बाद.’’

‘‘तो फिर कल मुझ से पूरा काम समझ लो, वैसे तो तुम सब संभाल ही लोगे फिर भी कुछ समस्या हो तो इन दोनों से पूछ लेना,’’ केशव ने अभिनव और प्रभव की ओर देखा, ‘‘तुम लोगों के पास वैसे तो अपना बहुत काम है लेकिन इसे कुछ परेशानी हो तो वक्त निकाल कर देख लेना, कुछ ही दिनों की बात है. मैं जल्दी आने की कोशिश करूंगा.’’

‘‘आप कहीं जा रहे हैं, पापा?’’ सभी ने एकसाथ चौंक कर पूछा.

‘‘हां, कोच्चि,’’ केशव मुसकराए, ‘‘शादी करने और फिर हनीमून…’’

‘‘शादी और आप… और वह भी अब?’’ अभिनव ने बात काटी, ‘‘जब करने की उम्र थी तब तो करी नहीं.’’

‘‘क्योंकि तब तुम सब को संभालना था. अब तुम्हें संभालने वालियां आ गई हैं तो मैं भी खुद को संभालने वाली ला सकता हूं. कोच्चि के नाम पर समझ ही गए होंगे कि मैं मालिनी की बात कर रहा हूं,’’ कह कर केशव रोज की तरह घूमने चले गए.

‘‘अगर पापा कोच्चि का नाम न लेते तो भी मैं समझ जाता कि किस की बात कर रहे हैं,’’ प्रभव ने दांत पीसते हुए कहा, ‘‘वह औरत हमेशा से ही हमारी मां बनने की कोशिश में थी. मैं ने आप को बताया भी था भैया और आप ने कहा था कि आप इस घर में उस की घुसपैठ कभी नहीं होने देंगे.’’

‘‘तो होने दी क्या?’’ अभिनव ने चिढ़े स्वर में पूछा, ‘‘वह हमारे घर न आए इसलिए कभी अपनी या तुम्हारे जन्मदिन की दावत नहीं होने दी. हालांकि त्योहार के दिन किसी रिश्तेदार के घर जाना मुझे बिलकुल पसंद नहीं था लेकिन उस औरत से बचने के लिए मैं बारबार बूआ या मौसी के घर जाने की जलालत भी झेल लेता था. अगर पता होता कि हमारी शादी के बाद वह हमारी मां की जगह ले लेगी तो मैं न अपनी शादी करता न तुम्हें करने देता.’’

‘‘लेकिन अब तो हम सब की शादी हो गई है और पापा अपनी करने जा रहे हैं,’’ प्रणव बोला.

‘‘हम जाने देंगे तब न? हम अपनी मां की जगह उस औरत को कभी नहीं लेने देंगे,’’ प्रभव बोला.

‘‘सवाल ही नहीं उठता,’’ अभिनव ने जोड़ा.

‘‘मगर करोगे क्या? अपनी शादियां खारिज?’’ प्रणव ने पूछा.

‘‘उस से कुछ फर्क नहीं पड़ेगा,’’ जूही बोली, ‘‘क्योंकि पापाजी की जिम्मेदारी आप लोगों को सुव्यवस्थित करने तक थी, जो उन्होंने बखूबी पूरी कर दी. अब अगर आप उस में कुछ फेरबदल करना चाहते हो तो वह आप की अपनी समस्या है. उस से पापाजी को कुछ लेनादेना नहीं है.’’

‘‘उस सुव्यवस्था में फेरबदल हम नहीं पापा कर रहे हैं और वह हम करने नहीं देंगे,’’ अभिनव ने कहा.

‘‘मगर कैसे?’’ प्रणव ने पूछा.

‘‘कैसे भी, सवाल मत कर यार, सोचने दे,’’ प्रभव झुंझला कर बोला. फिर सोचने और सुझावों की प्रक्रिया बहस में बदल गई और बहस झगड़े में बदलती तब तक केशव आ गए, वह बहुत खुश लग रहे थे.

‘‘अच्छा हुआ तुम सब यहीं मिल गए. मैं और मालिनी परसों कोच्चि जा रहे हैं, शादी तो बहुत सादगी से करेंगे मगर यहां रिसेप्शन में तो तुम लोग सादगी चलने नहीं दोगे,’’ केशव हंसे, ‘‘खैर, मैं तुम लोगों को अपनी मां के स्वागत की तैयारी के लिए काफी समय दे दूंगा.’’

‘‘मगर पापा…’’

‘‘अभी मगरवगर कुछ नहीं, अभिनव. मैं अब सोने या यह कहो सपने देखने जा रहा हूं,’’ यह कहते हुए केशव अपने कमरे में चले गए.

‘‘पापाजी बहुत खुश हैं,’’ जूही ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता वह आप के कहने से अपना इरादा बदलेंगे.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं सो बदलने को कह कर हमें उन की खुशी में खलल नहीं डालना चाहिए,’’ सपना बोली.

‘‘और चुपचाप उन्हें अपनी मां की जगह उस औरत को देते हुए देखते रहना चाहिए?’’ अभिनव ने तिक्त स्वर में पूछा.

‘‘उन मां की जगह जिन की शक्ल भी आप को या तो धुंधली सी याद होगी या जिन्हें आप तसवीर के सहारे पहचानते हैं? उन की खातिर आप उन पापाजी की खुशी छीन रहे हैं जो अपनी भावनाओं और खुशियों का गला घोंट कर हर पल आप की आंखों के सामने रहे ताकि आप को आप की मां की कमी महसूस न हो?’’ अब तक चुप बैठी प्रिया ने पूछा, ‘‘महज इसलिए न कि मालिनीजी आप की टीचर थीं और उन्हें या उन के अनुशासन को ले कर आप सब पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं?’’

कोई कुछ नहीं बोला.

‘‘जूही दीदी, सपना भाभी, सास के आने से सब से ज्यादा समस्या हमें ही आएगी न?’’ प्रिया ने पूछा, ‘‘क्या पापाजी की खुशी की खातिर हम वह बरदाश्त नहीं कर सकतीं?’’

‘‘पापाजी को अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का पूरा हक है और हम उन के लिए कुछ भी सह सकती हैं,’’ सपना बोली.

‘‘सहना तब जब कोई समस्या आएगी,’’ जूही ने उठते हुए कहा, ‘‘फिलहाल तो चल कर इन सब का मूड ठीक करो ताकि कल से यह भी पापाजी की खुशी में शामिल हो सकें.’’

तीनों भाइयों ने मुसकरा कर एकदूसरे को देखा, कहने को अब कुछ बचा ही नहीं था.

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