लड़की बोझ क्यों

बेटे पैदा करने का दबाव औरतों पर कितना ज्यादा होता है इस का नमूना दिल्ली के एक गांव में मिला जिस में एक मां ने अपनी 2 माह की बेटी की गला घोंट कर हत्या कर दी और फिर उसे कुछ नहीं सू झा तो एक खराब ओवन में छिपा कर बच्ची के चोरी होने का ड्रामा करने लगी. इस औरत के पहले ही एक बेटा था और आमतौर पर औरतें एक बेटे के बाद और बेटी से खुश ही होती हैं.

हमारा समाज चाहे कुछ पढ़लिख गया हो पर धार्मिक कहानियों का दबाव आज भी इतना ज्यादा है कि हर पैदा हुई लड़की एक बो झ ही लगती है. हमारे यहां पौराणिक कहानियों में बेटियों को इतना अधिक कोसा जाता है कि हर गर्भवती बेटे की कल्पना करने लगती है.

रामसीता की कहानी में राम तो राजा बने पर सीता के साथ हमेशा भेदभाव होता रहा. महाभारत काल की कहानी में कुंती हो या द्रौपदी या फिर हिडिंबा सब को वे काम करने पड़े थे जो बहुत सुखदायी नहीं थे.

ये कहानियां अब हमारी शिक्षा का अंग बनने लगी हैं. औरतों को त्याग की देवी का रूप कहकह कर उन का जम कर शोषण किया जाता है और वे जीवनभर रोतीकलपती रहती हैं. कांग्रेसी शासन में बने कानूनों में औरतों को हक मिले पर उन का भी खमियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ता है क्योंकि हर हक भोगने के लिए पुलिस और अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ता है और भाई या पिता को उस के साथ जाना पड़ता है तो वे उस दिन को कोसते हैं जब बेटी पैदा हुई थी. हर औरत के अवचेतन मन में इन पौराणिक कहानियों और औरतों के व्रतों, त्योहारों से यही सोच बैठी है कि वे कमतर हैं और उन्हें ही अपने सुखों का बलिदान करना है.

रोचक बात है कि लगभग सारे सभ्य समाज में, जहां धर्म का बोलबाला है, औरतें एक न एक अत्याचार की शिकार रहती हैं. पश्चिमी अमीर देशों में भी औरतों की स्थिति पुरुषों के मुकाबले कमजोर है और बराबर की योग्यता के बावजूद वे ग्लास सिलिंग की शिकार रहती हैं और एक स्तर के बाद उन की पदोन्नति रुक जाती है. जब पूरे विश्व में पुरुषों का बोलबाला हो तो क्या आश्चर्य कि दिल्ली के चिराग दिल्ली गांव की नई मां को बेटी के जन्म पर अपना दोष दिखने लगा हो और गलती को सुधारने के लिए उसे मार ही डाला हो.

अब उस औरत को सजा देने की जगह मानसिक रोगी अस्पताल में कुछ दिन रखा जाना चाहिए. वह अपराधी है पर उस के अपराध पर उसे जेल भेजा गया तो उस के पति और बेटे का जीवन दुश्वार हो जाएगा. पति न तो दूसरी शादी कर सकता है, न घर अकेले चला सकता है.

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आर्थ्राइटिस और नीरिप्लेसमैट से जुड़ी प्रौब्लम का इलाज बताएं?

सवाल-

मेरी नानी और मां दोनों को आर्थ्राइटिस के कारण नीरिप्लेसमैंट सर्जरी करानी पड़ी थी. मु झे भी दोनों घुटनों में औस्टियोआर्थ्राइटिस है. मेरी उम्र केवल 48 साल है. क्या मु झे भी नीरिप्लेसमैट कराना होगा?

जवाब-

आनुवांशिक कारणों के कारण आर्थ्राराइटिस का खतरा बढ़ जाता है. लेकिन आप परेशान न हों, प्रारंभिक स्तर पर आर्थ्राराइटिस का उपचार दवाइयों और ऐक्सरसाइज से ही किया जाता है. कई बार इंजैक्शन भी लगाए जाते हैं. इस से आराम मिलता है. इन सब के बाद भी जब परेशानी कम नहीं होती तब सर्जरी का विकल्प चुना जाता है. वैसे और्थोपैडिक सर्जन 48 की उम्र में नी रिप्लेसमैंट करने से बचते हैं, इस के बजाय अलाइनमैंट ठीक करने की सर्जरी की जाती है, सामान्यत: घुटने का जोड़ एक तरफ से खराब होता है, दूसरी तरफ का ठीक रहता है. अलाइनमैंट ठीक होने से घुटने का प्राकृतिक जोड़ बचा रहता है और दर्द में भी आराम मिलता है. इस के अलावा युवा मरीजों के लिए आंशिक घुटना प्रत्यारोपण का विकल्प भी चुना जाता है. इस में पूरे जोड़ के बजाय केवल क्षतिग्रस्त भाग को बदला जाता है. इस में रिकवरी काफी जल्दी होती है.

सवाल-

मेरी सास की उम्र 63 साल है. डाक्टर ने उन्हें नीरिप्लेसमैंट कराने का कहा है. हम ने रोबोटिक नी रिप्लेसमैंट के बारे में काफी सुना है. मैं जानना चाहती हूं कि यह पारंपरिक तकनीक से कितनी बेहतर है?

जवाब-

पारंपरिक सर्जरी की तुलना में रोबोटिक सर्जरी अधिक सटीक और सूक्ष्म होती है. इस के परिणाम भी बहुत अच्छे आते हैं और रिकवरी भी तेज होती है. घुटना प्रत्यारोपण की पारंपरिक तकनीक में इंप्लांट को ठीक तरह से बैठाने के लिए घुटने की मैनुअल तरीके से घिसाई की जाती है. जबकि रोबोटिक में सीटी स्कैन और आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस की सहायता से मरीज के घुटने का 3 डी स्कैन तैयार किया जाता है. इस में पहले ही योजना बना ली जाती है कि इंपलांट को किस तरह फिट करेंगे ताकि अलाइमैंट बेहतर हो. इस में स्वस्थ हड्डियों को कम नुकसान पहुंचता है और ज्यादा ऊतक भी क्षतिग्रस्त नहीं होते हैं. अलाइमैंट भी अच्छा होता है, इसलिए रोबोटिक्स को पारंपरिक घुटना प्रत्यारोपण से बेहतर माना जाता है.

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सवाल-

34 साल की उम्र में एक दुर्घटना में चोट लगने से मेरा लिगामैंट टूट गया था. लेकिन तब मैं ने सर्जरी नहीं करवाई थी. 14-15 साल बाद मु झे नीआर्थ्राइटिस हो गया है. क्या लिगामैंट टियर सर्जरी कराने से यह समस्या ठीक हो जाएगी?

जवाब-

लिगामैंट टियर होने से कुछ लोगों को घुटने में तेज दर्द होता है तो कई लोगों के पैर में लचक आ जाती है. घुटने के लगातार लचक खाने से 10-15 वर्षों में उस में आर्थ्राराइटिस विकसित हो जाता है. एक बार आर्थ्राराइटिस होने पर लिगामैंट का उपचार भी करें तो कोई फायदा नहीं होगा. इस से बचने के लिए जरूरी है कि दुर्घटना या खेलकूद में लिगामैंट क्षतिग्रस्त हो जाए तो तुरंत सर्जरी कराएं. इस के लिए और्थोस्कोपिक सर्जरी दूरबीन से की जाती है और रिकवरी भी बहुत तेज होती है. लेकिन अकसर लोग सोचते हैं कोई फ्रैक्चर तो नहीं है, इसलिए यह समय के साथ अपनेआप ठीक हो जाएगा. ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए और तुरंत सर्जरी करानी चाहिए.

सवाल-

मेरा वजन 98 किलोग्राम है और लंबाई 5 फुट 1 इंच है. मु झे दोनों घुटनों में आर्थ्राइटिस है. अकसर लोग मु झे बैरियाट्रिक सर्जरी कराने की सलाह देते हैं, कहते हैं. वजन कम होने से मेरा आर्थ्राइटिस ठीक हो जाएगा?

जवाब-

यह सही है कि वजन अधिक होने से घुटनों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है. वजन कम करने से दर्द और सूजन में आराम मिलता है, घुटनों की मूवमैंट भी बेहतर होता है. अर्ली आर्थ्राइटिस में हम दवाइयों के साथ ऐक्सरसाइज और वजन कम करने की सलाह भी देते हैं. सर्जरी के पहले भी हम मरीज को वजन कम करने की सलाह देते हैं क्योंकि वजन अधिक होने से कृत्रिम जोड़ों पर भी दबाव पड़ता है. लेकिन यह पूरी तरह से गलत है कि वजन कम करने से आर्थ्राइटिस ठीक हो जाता है. आर्थ्राइटिस के कारण जोड़ को जितना नुकसान पहुंच चुका होता है वह तो वजन कम करने से ठीक नहीं होता, लेकिन घुटनों पर लोड कम कर के जोड़ को और अधिक नुकसान पहुंचाने से बचाया जा सकता है.

सवाल-

मैं 46 वर्षीय घरेलू महिला हूं. पिछले कुछ दिनों से मेरे दोनों घुटनों में बहुत दर्द हो रहा है. दैनिक गतिविधियां करने में भी परेशानी होती है और सीढि़यां चढ़नाउतरना तो जैसे मेरे लिए असंभव हो गया है?

जवाब-

यह आर्थ्राइटिस की शुरुआत है. आमतौर पर आर्थ्राइटिस की शुरुआत 55-60 साल की उम्र में होती है. लेकिन आप को यह समस्या अर्ली एज में ही हो गई है. आनुवंशिक कारण, चोट लगने या पोषण की कमी से जोड़ों में टूटफूट जल्दी शुरू हो जाती है. आप अपनी डाइट में प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दें. कैल्सियम और विटामिन डी के सप्लिमैंट्स लें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें, इस से घुटने के जोड़ स्वस्थ्य रहेंगे. इन से आराम न मिले तो डाक्टर को दिखाएं.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Summer Special: घर पर बनाएं लजीज मटर कुलचे

अगर आपको घर पर मार्केट के मटर कुलचे खाने का मन है तो घर पर ये रेसिपी ट्राय कर सकती हैं. ये आसान रेसिपी बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी को पसंद आएगी.

सामग्री:

सूखी मटर- 2 कप,

हरी मिर्च- 2 ,

प्याज- 1 कप,

टमाटर- 1 कप,

नींबू का रस- 1 टेबलस्पून,

अमचूर पाउडर- 1/2 टीस्पून,

चाट मसाला- 2 टेबलस्पून,

मीठा सोडा पाउडर- 3 चुटकी,

हल्दी पाउडर- 1/4 टीस्पून,

नमक- स्वादानुसार,

हरा धनिया- 1/2 कप

मैदा- 200 ग्राम,

दही- 1/4 कप,

बेकिंग सोडा- 1/4 टीस्पून,

चीनी- 1 टीस्पून,

कसूरी मेथी- 1 टीस्पून,

हरा धनिया- 1 टीस्पून ,

नमक- स्वादानुसार,

तेल- आवश्यकता अनुसार

विधि –

1- मटर कुलचा बनाने के लिए सबसे पहले दो कप सूखी मटर को पानी में डालकर 6-7 घंटों के लिए छोड़ दें. अब प्रेशर कुकर में पानी डाल कर इसमें मटर, तीन चुटकी में मीठा सोडा, आधा चम्मच हल्दी पाउडर व थोड़ा सा नमक मिलाकर उबाल लें.

2- अब मटर को चम्मच की मदद से मैश करें. अब इसमें एक कप कटा प्याज, कटी हरी मिर्च, एक कप टमाटर, दो टेबलस्पून चाट मसाला, आमचूर पाउडर व स्वादानुसार नमक डालकर अच्छे से मिक्स करें. अब इसमें नींबू का रस डालकर 5 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं.

3- अब इसे एक कटोरी में निकाल कर इसमें हरा धनिया मनाए मिलाएं.

4- कुलचा बनाने के लिए सबसे पहले एक बर्तन में 200 ग्राम मैदा ले ले. अब इसमें आधा कप दही, एक चम्मच चीनी, एक चम्मच बेकिंग सोडा, स्वादानुसार नमक व ऑयल डालकर दोनों हाथों से अच्छी तरह मिक्स करें.

5- अब गुनगुने पानी से मैदे को मुलायम आटे की तरह गूंथ ले. अब इसे मोटे तौलिये से कवर करके 5 घंटों के लिए रख दें.

6- अब आपको जितने कुलचे बनाने हैं मैदे कि उतनी बराबर लोई बनाकर बेलन से गोल गोल मोटा बेल लें. अब उसके ऊपर कसूरी मेथी व हरा धनिया डालकर हाथों से दबाए.

7- अब तवे को गैस पर रखकर गर्म करें . अब तवे पर औयल लगाकर कुलचे को तवे पर रख कर सेकें . जैसे ही कुल्चा फूलने लगे तो इसे दूसरी तरफ पलट कर सेक लें. इसी तरह सभी कुल्छे तैयार करें व एक कैस्ट्रोल में किचन पेपर बिछाकर रखते जाए.

8- लीजिए आपके मटर कुलचे बनकर तैयार है अब आप इसे गर्मागर्म सर्व करें.

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20 Tips: बच्चों को खेल-खेल में सिखाएं काम की बातें

तेजी से बदलती जीवनशैली का प्रभाव क्या केवल आप के जीवन पर ही पड़ रहा है? क्या समय की कमी सिर्फ आप को ही परेशान करती है? औफिस की व्यस्तता और मल्टीटास्किंग से क्या आप ही परेशान हैं? नहीं, ये तमाम बातें आप के अलावा आप के बच्चों को भी परेशान करती हैं. जिन की वजह से अकसर वे चिड़चिड़े और आलसी दिखते हैं और आप की बात नहीं मानते हैं. उन्हें छोटीछोटी बातें समझाने में भी दिक्कत आती है.

पेरैंट्स होने के नाते आप परेशान हो जाते हैं. 6 से 12 साल की उम्र बहुत से बदलावों की होती है. इस दौरान शारीरिक बदलावों के साथसाथ बच्चों में स्वभाव को ले कर भी कई तरह के बदलाव देखे जाते हैं. लेकिन वह उम्र होती है जब बच्चों को कई अहम बातों के बारे में बताना जरूरी होता है. ऐसे में विशेषज्ञों की राय काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है. खासतौर से कामकाजी पेरैंट्स के लिए यह किसी चुनौती से कम नहीं कि वे अपने छोटे या बढ़ते बच्चों को कैसे समझाएं या उन के साथ कैसे डील करें.

  1. पढ़ाई में लगाएं फन का तड़का
  2. बच्चों के साथ उन की फन ऐक्टिविटीज में भाग लें.
  3. बच्चों को पेंटिंग का बहुत शौक होता है. इस कार्य में उन का अच्छा दोस्त बना जा सकता है.
  4. उन्हें बताएं कि कौन से 2 रंग मिलाने पर कौन सा नया रंग बनता है.
  5. उन से अपने बचपन की बातें शेयर करें. उन्हें यह न बताएं कि आप बचपन में हर काम में बहुत निपुण थे, बल्कि बताएं कि फलां कार्य करने में आप को भी बहुत परेशानी होती थी.
  6. बच्चों के संग समय बिताएं. उन के साथ टीवी देखें. उन की पसंदनापसंद के बारे में पूछें.
  7. अपना टेस्ट उन के साथ शेयर करें. मसलन, अगर आप उन्हें बताना चाहते हैं कि बाहर गरमी से आने पर तुरंत फ्रिज का ठंडा पानी पीने से गला खराब हो सकता है, तो इस बात पर अमल भी कर के दिखाएं.
  8. अगर आप पिता हैं तो छुट्टी वाले दिन उन के साथ उन के स्कूल बैग का हालचाल जानें. उन के दोस्त बनें, डांटफटकार करने वाले पिता नहीं.
  9. अपनी रुचियां उन पर न थोपें, बल्कि उन की पसंदीदा चीजों संग अपनी रुचि भी जाहिर करें.
  10. उन्हें मजेमजे में बताएं कि शैतानियों में क्या अच्छाबुरा होता है. जैसेकि हर इनसान को पेड़ पर चढ़ना आना चाहिए, लेकिन पेड़ से गिरने पर जोर की चोट भी लग सकती है. इसलिए अपने सामने उन्हें ऐसा करने की सलाह दें.
  11. किसी अनजान से बात न करें. यह बात उन्हें किसी ऐक्टिविटी के माध्यम से समझाने की कोशिश करें. हो सके तो इस तरह की बातें अपने बच्चों को उन के दोस्तों के सामने समझाएं.
  12. छुट्टी वाले दिन सुबह जल्दी उठ कर पार्क जाएं, जौगिंग करें. यह बात केवल मौखिक रूप से न समझाएं, बल्कि छुट्टी वाले दिन आप खुद भी जल्दी उठ कर बच्चों के साथ पार्क जाएं.
  13. गुड और बैड टच के बारे में प्यार से समझाएं
  14. बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं खासतौर पर बढ़ती उम्र में जब वे अपने और अपने पेरैंट्स के शरीर में अंतर देखते हैं.
  15. वे इस बात की ओर भी बहुत जल्दी ध्यान देते हैं कि लड़के और लड़की के शरीर में काफी अंतर होता है.
  16. जब बच्चा आप से अपने प्राइवेट अंगों के बारे में कुछ पूछे तो उसे समझाएं कि लड़की और लड़के में यह अंतर उन के प्रजनन अंगों की वजह से होता है.
  17. बच्चे को निजी अंगों के वैज्ञानिक नाम बताने से झिझकें नहीं. आप नहीं बताएंगे तो वह बाहर से कुछ और ही सीख कर आएगा.
  18. उन्हें बताएं और किताब का हवाला दें कि देखो किताब में इसे पेनिस या इसे वैजाइना कहते हैं.
  19. 2-3 साल के बच्चे को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में बताने का सब से अच्छा समय होता है. उन्हें बताएं कि कोई अनजान उन के निजी अंगों को नहीं छू सकता. केवल मातापिता उन्हें छू सकते हैं.
  20. उन्हें बताएं कि अगर कोई अनजान व्यक्ति उन के निजी अंगों को छूता है तो उन्हें क्या करना चाहिए.

– डा. संदीप गोविल, मनोचिकित्सक, सरोज सुपर स्पैश्यालटी अस्पताल, नई दिल्ली

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तैयारी मिलन की रात की

जीवन के कुछ बेहद रंगीन पलों, जिन की कल्पना मात्र से धड़कनें तेज हो जाती हैं और माहौल में रोमानियत छा जाती है, में से एक है शादी की पहली रात यानी मिलन की वह रात जब दो धड़कते जवां दिल तनमन से मिलन को तैयार होते हैं.

चाहे किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति क्यों न हो? वह अपनी पहली रात की यादों की खुशबू को हमेशा अपने जेहन में बसाए रखना चाहता है. मिलन की यह रात एक प्रेम, रोमांस और रोमांच तो पैदा करती ही है साथ ही अगर सावधानीपूर्वक इस के आगमन की तैयारी न की जाए तो यह पूरे जीवन के लिए टीस बन कर रह जाती है. जीवन की इस खास रात को यादगार बनाने के लिए अगर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो बेशक यह रात हमेशाहमेशा के लिए खास बन जाएगी.  घूंघट में लिपटी, फूलों की सेज पर बैठी दुलहन के पारंपरिक कौंसैप्ट से अलग बदलाव आने लगे हैं. अब तो युवा शादी तय होते ही बाकायदा इसे सैलिब्रेट करने की योजना में विवाह से पहले ही जुट जाते हैं.

रोमानियत और रोमांच की इस रात को अगर थोड़ी तैयारी और सावधानी के साथ मनाया जाए तो जिंदगी फूलों की तरह महक उठती है वरना कागज के फूल सी बिना खुशबू हो जाती है. दो लफ्जों की यह कहानी ताउम्र प्यार की सुरीली धुन बन जाए इस के लिए कुछ बातों का जरूर खयाल रखें. मुंह की दुर्गंध करें काबू : यह समस्या किसी को भी हो सकती है. मुंह से दुर्गंध आना एक आम समस्या है पर यही समस्या मिलन की रात आप के पार्टनर पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है. चूंकि नवविवाहितों को इस खास रात बेहद करीब आने का अवसर मिलता है. ऐसे में थोड़ी सी भी लापरवाही आप के पार्टनर के मनमें आप के लिए खिन्नता व दूरी पैदा कर सकती है. इसलिए बेहतर है कि अगर आप के मुंह से दुर्गंध आती है तो पहले ही इस का बेहतर इलाज करा लें या फिर इसे दूर करने के लिए मैंथौल, पीपरमैंट या फिर सुगंधित पानसुपारी आदि लें. आप बेहतर क्वालिटी के माउथ फ्रैशनर का भी प्रयोग कर  सकते हैं.

सैंट का प्रयोग करें :

कहते हैं शरीर की सुगंध सामने वाले को सब से ज्यादा प्रभावित करती है. पसीने के रूप में शरीर से निकलने वाली दुर्गंध आप की छवि खराब कर सकती है. मिलन की रात ज्यादातर लोग इसे ले कर गंभीर नहीं होते जबकि यह सब से अहम है.  आप के तन की खुशबू सीधे आप के पार्टनर के मन पर प्रभाव डालती है जिस से मिलन का मजा दोगुना हो जाता है. शारीरिक दुर्गंध कोई बड़ी समस्या नहीं है. आजकल बाजार में आप की पसंद और चौइस के अनुसार ढेरों फ्लेवर व विभिन्न ब्रैंड्स के डिओ उपलब्ध हैं.  ‘आप चाहें तो अपने पार्टनर की पसंद पूछ कर उसी ब्रैंड का डिओ, सैंट, स्पे्र आदि इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के दो फायदे हैं एक तो आप की सकारात्मक इमेज बनेगी दूसरे पसीने की दुर्गंध से बचेंगे, जिस से आप की पार्टनर आप से खुश भी हो जाएगी.

अनचाहे बालों से मुक्ति :

कई बार अनाड़ीपन में पहली रात का मजा किरकिरा हो जाता है. लापरवाही और बेफिक्री आप को इम्बैरेंस फील करा सकती है. बोयोलौजिकली हमारे शरीर के हर हिस्से में बाल होते हैं जिन में गुप्तांगों के बाल भी शामिल हैं. मिलन की रात से पहले ही अपने शरीर के इन अंगों के बालों को अवश्य हटा लें. यह न केवल हाइजिनिक दृष्टि से जरूरी है बल्कि यह कम्फर्टेबिलिटी का पैमाना भी है. बाजार में कई तरह के हेयर रिमूवर व क्लीनर मिलते हैं, जिन से आसानी से इन बालों को रिमूव किया जा सकता है. अगर इम्बैरेंस होने से बचना है तो इस बात का खयाल अवश्य रखें.

मासिक धर्म न आए आड़े :

कई बार ऐसा होता है कि मिलन की रात वाले दिन ही मासिक धर्म एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ कर आप के हसीन सपनों पर पानी फेर देता है. इस रात मासिक धर्म आप के मिलन पर भारी न पड़े, इस के लिए जरूरी है कि अगर आप के मासिक धर्म की तिथि इस दौरान है तो पहले ही डाक्टर से मिल कर इस का समाधान कर लें. माहवारी ऐक्सटैंड या डिले करने वाली दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं. डाक्टर की सलाह से उन का उपयोग करें.

कुछ यों करें साथी को तैयार

कई बार मिलन की हड़बड़ी में पार्टनर की भावनाओं की परवा किए बगैर युवा गलती कर बैठते हैं. इसलिए जब तक साथी मिलन के लिए पूरी तरह तैयार न हो उस पर बिलकुल दबाव न डालें.

बेसब्र होने के बजाय धीरज से पार्टनर के पास जाएं. बातचीत करें. उस के शौक, चाहत, लक्ष्य आदि के बारे में बात करें.

अगर पार्टनर अपने अतीत के बारे में स्वयं कुछ बताना चाहे तो ठीक अन्यथा कुरेदकुरेद कर उस के अतीत को जानने का प्रयत्न न करें.

पार्टनर के हावभाव, तेवर व आंखों की भाषा पढ़ने की कोशिश करें, उसे जो पसंद हो, वही करें. अपनी चौइस उस पर न थोपें.

आप की पार्टनर अपने घर को अलविदा कह कर आप के घर में  सदा के लिए आ गई है, ऐसे में जल्दबाजी में संबंध बनाने के बजाय उस का विश्वास जीतने की कोशिश करें व सामीप्य बढ़ाएं.

संभव हो तो अपने परिवार के सदस्यों के बारे में उस की पसंदनापसंद, स्वभाव, प्रवृत्ति तथा घर के तौरतरीकों के बारे में हलकीफुलकी बातें कर सकते हैं.

पार्टनर की कमियां निकालने के बजाय उस की खूबियों की चर्चा करें, फिर देखिए मिलन की रात कैसे सुपर रात बनती है.

इन बातों का भी रखें ध्यान 

  1. अपने बैडरूम का दरवाजा खिड़की अच्छी तरह बंद करें. उन्हें खुला बिलकुल न छोड़ें.
  2. ड्रिंक न करें, जरूरी हो तो ओवरडोज से बचें. नशा सारी खुमारी पर पानी फेर सकता है.
  3. कमरे में तेज रोशनी न करें. हलके गुलाबी या रैड लाइट वाले जीरो वाट के बल्ब का इस्तेमाल करें.
  4. पार्टनर के साथ जोरजबरदस्ती बिलकुल न करें. उसे प्यार से तैयार करें. पहले बातचीत से नजदीक आएं फिर मिलन के लिए आलिंगनबद्ध करें व बांहों के आगोश में समा जाएं.
  5. भारीभरकम वैडिंग गाउन, लहंगे, साड़ी पहनने से बचें. हलकेफुलके नाइट गाउन को तरजीह दें. सैक्सी अंत:वस्त्र ऐसे में माहौल को रोमानियत प्रदान करते हैं.
  6. रूम फ्रैशनर का प्रयोग करें पर जरूरत से ज्यादा नहीं. हो सकता है आप के पार्टनर को इस से ऐलर्जी की समस्या हो.
  7. बैड की पोजिशन जरूर चैक करें. ज्यादा आवाज करने वाले बैड आप को इम्बैरेंस कर सकते हैं.

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एक बदनाम–आश्रम 3 ! मीडिया के सामने निकला प्रकाश झा का डर

अपने बेखौफ और बेबाक विषयों से समाज को सच्चाई का आइना दिखानेवाले , सत्ता की राजनीति हो या आस्था के नाम पर धर्म गुरुओं की राजनीति, बिना किसी भय के सच्ची कहानियों को बड़े पर्दे पर दिखाने की इनकी कला कमाल की हैं . जी हा, बेखौफ और निडरता से हर कहानी को बड़ी ही बारीकी से कह देनेवाले डायरेक्टर प्रकाश झा ने हाल ही में आश्रम 3 के प्रेस कॉन्फ्रेंस पहली बार कहा की हां,उन्हे भी डर लगता हैं. जब किसी अनचाही हलचल या विरोध का सामना होता हैं.

मुंबई में जुहू के पांच सितारा होटल में रखी गई MX Player की सबसे बड़ी वेब श्रृंखला एक बदनाम–आश्रम 3 के प्रेस कांफ्रेंस पर जब डायरेक्टर प्रकाश झा को पूछा गया कि आश्रम के पहले सीजन में उनके खिलाफ एफ. आई.आर दर्ज की गई और अब के सीजन में उनपर स्याही फेकी गई ऐसे में लगातार हो रहे हंगामों से क्या वो डर भी जाते हैं?

इनपर प्रकाश झा कहते हैं,“ आश्रम के बारे में ऐसा हैं कि कही कुछ भी हो सकता हैं , कोई कुछ भी कर सकता हैं. क्योंकि हमने विषय ही ऐसा चुना हैं जो समाज का विषय हैं लोगो से संबंध रखता हैं , लेकिन यहां किसी एक व्यक्ति या कल्पना की कहानी नहीं हैं. और मैं ये कहूं की मुझे डर नही लगता ये भी गलत बात हैं. लेकिन डर के जीना भी अच्छा नहीं लगता, तो उसके साथ जीता हूं. और हमेशा से मन करता हैं कि जो कहना हैं वो तो कहना ही हैं. किसी व्यक्ति को अगर व्यक्तिगत रूप से चोट पहुंचाए बिना कुछ कह सकूं,तो मैं कोशिश करता हूं की उसे कहूं अब चाहे वो राजनीतिक हो चाहे हो धार्मिक हो या चाहे वो व्यवसायिक हो. बाकी पत्थर फेंके जाते हैं , गालियां पड़ती हैं, एफ आई आर दर्ज होते हैं चलो कोई नही लोगों के हाथ मजबूत होंगे”.

आश्रम के बॉबी बाबा निराला का चोला पहनकर मायाजाल फैला रहे हैं ऐसे में, जब प्रकाश झा की पूछा गया कि उन्हें बॉलीवुड में वो किसे बाबा निराला समझते है तो उन्होंने हंसकर कहा कि” मेरे सारे दोस्त तो मुझे ही बाबा निराला समझते हैं . मुझसे बड़ा निराला तो कोई हैं ही नहीं . मैं किसी और का नाम क्यों लू”. खैर हसकर प्रकाश झा ने मीडिया के सवालों का बड़ी ही सहजता से जवाब दिया .

आपको बता दे की इस प्रेस कांफ्रेंस में डायरेक्टर और प्रोड्यूसर प्रकाश झा के अलावा दर्शन कुमार, अध्यन सुमन, सचिन श्रॉफ, राजीव सिद्धार्थ, त्रिधा चौधरी ,अनुप्रिया गोयनका और MX Player के सी सी ओ गौतम तलवार भी मौजूद थे. एक बदनाम –आश्रम 3 , MX player पर 3 जून से स्ट्रीम की जाएगी जिसे लोग मुफ्त में देख सकेंगे.

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GHKKPM: परिवार के प्रौपर्टी से सई को बेदखल करेगी भवानी, पाखी का प्लान होगा पूरा

सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisi Ke Pyaar Mein) की कहानी को दिलचस्प बनाने के लिए मेकर्स सीरियल में नए-नए ट्विस्ट ला रहे हैं. वहीं सीरियल के नए प्रोमो भी फैंस के साथ शेयर कर रहे हैं. जहां हाल ही के प्रोमो में पाखी, सम्राट की मौत के बाद विराट सई को अलग करते हुए दिखी थी तो वहीं अब सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में पाखी, भवानी की मदद से सई को प्रौपर्टी से बेदखल करती हुई दिखेगी.

विराट करता है बचाने की कोशिश

अब तक आपने देखा कि जगताप के कारण सई को दो करोड़ रुपए चुकाने की नौबत आ गई है. हालांकि विराट पूरी कोशिश कर रहा है कि वह सई की मदद कर सके, जिसके चलते वह मल्हार की हत्या के संबंध में अस्पताल के कर्मचारियों से पूछताछ करता है. जहां एक नर्स सच जानने के बावजूद सई को कसूरवार बताती है. वहीं प्रोफेसर थुराट के कहने पर एक नर्स झूठ बोलती है कि उन्होंने सई को मल्हार को इंजेक्शन लगाते हुए देखा और यहां तक ​​कि उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया था.

जगताप देगा धमकी

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि जगताप सई को फोन करेगा और उससे कहेगा कि अगर वह उससे शादी करती है तो उस पर लगे सभी आरोपों को खारिज कर देगा. हालांकि सई उसे चेतावनी देगी की वह अब शादीशुदा है और अगर उसे सबक सिखा कर रहेगी. वहीं सई को मुसीबत से निकालने के लिए शिवानी अपने गहने देती है. वहीं सम्राट और  देवी अपनी तरफ से उसे पैसे देते हैं. हालांकि सई पैसे लेने से इंकार कर देती है.

 

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सई को प्रोपर्टी से बेदखल करेगी भवानी

 

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इसके अलावा आप देखेंगे कि भवानी और ओंकार, वकील को चौह्वाण निवास पर बुलाते हैं और परिवार की संपत्तियों पर सई को कोई अधिकार न देने की बात कहेंगे. हालांकि वकील कहेगा कि वे ऐसा तभी कर सकते हैं जब विराट सई को तलाक दे दें और उसे कोई संपत्ति देने से इनकार कर दें. वहीं पाखी कहेगी कि विराट, सई को तलाक नहीं देंगा. दूसरी तरफ, विराट जगताप के अड्डे पर जाएगा और गुंडों को पीटेगा. इसी बीच विराट पर वह बंदूक तान देगा.

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शो में एंट्री की बीच दोबारा मां बनीं ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की ‘दयाबेन’

पौपुलर कौमेडी सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ इन दिनों सुर्खियों में है. दरअसल, हाल ही में शो के प्रौड्यूसर ने दयाबेन की एंट्री की बात कही थी, जिसके चलते फैंस काफी खुश हो गए थे. इसी बीच दयाबेन के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस दिशा वकानी (Disha Vakani) दोबारा मां बन गई हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

दोबारा मामा बने सुंदरलाल

दरअसल, एक्ट्रेस दिशा वकानी ने हाल ही में बेटे को जन्म दिया है, जिसकी जानकारी उनके बिजनेसमैन पति मयूर पाडिया और सुंदर यानी एक्ट्रेस के रियल भाई मयूर वकानी ने दी है. एक्ट्रेस के भाई और एक्टर मयूर वकानी ने ने तो अपनी खुशी जाहिर करते हुए एक इंटरव्यू में कहा है कि “मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि मैं दोबारा मामा बन गया. 2017 में दिशा ने एक बेटी को जन्म दिया था और अब वह फिर से मां बनी है और मैं दोबारा मामा बन गया हूं. मैं बहुत ज्यादा खुश हूं.”

दयाबेन की एंट्री पर कही ये बात  

 

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हाल ही में दयाबेन की ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) शो में एंट्री की खबर पर सुंदरलाल का किरदार निभाने वाले दिशा वकानी के भाई एक्टर मयूर वकानी ने एक इंटरव्यू में कहा है कि “दिशा जाहिर तौर पर शो में वापसी करेगी. ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ एक ऐसा शो है, जिसमें दिशा वकानी (Disha Vakani) ने लंबे समय तक काम किया है. तो उन्हें क्यों नहीं वापस लौटना चाहिए. हम उस घड़ी का इंतेजार कर रहे हैं, जब दिशा सेट पर वापसी करेंगी और काम करना शुरू करेंगी.”

बता दें, हाल ही में तारक मेहता के प्रौड्यूसर असित मोदी ने एक इंटरव्यू में दयाबेन के कैरेक्टर को वापस लाने की बात कही थी. हालांकि उन्होंने इस बात का खुलासा नहीं किया था कि दयाबेन के किरदार में एक्ट्रेस दिशा वकानी की वापसी होगी की नहीं.

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क्या महामारी ने बच्चों को सामाजिक रूप से असामान्य बना दिया है?

महामारी हमारी जिंदगी के सबसे मुश्किल वक्त में से एक रहा है. इसने सबकी जिंदगी को बहुत ही कठिन बना दिया और इस महामारी के दौरान जिन लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी हुई, वो हैं हमारे बच्चे. इसकी वजह है उनके बेहद ही महत्वपूर्ण विकास में रुकावट आई. ना केवल वयस्कों को, बल्कि बच्चों को भी इसी मुश्किल दौर से होकर गुजरना पड़ रहा है. बच्चों के लिये बाहरी दुनिया से सामाजिक संपर्क बढ़ाने का यह शुरूआती दौर होता है, जिससे आगे चलकर उनमें बातचीत करने की कुशलता और समझदारी बढ़ती है. बच्चे अपने साथियों को देखकर व्यवहार करना सीखते हैं और उनसे बातचीत से हाव-भाव और तौर-तरीका सीखते हैं.

Dr Amit Gupta, Senior Consultant Paediatrician & Neonatologist, Motherhood Hospital, Noida  के अनुसार, एक बच्चे के विकास के शुरूआती चरणों में बहुत सारे सामाजिक संपर्क शामिल होने चाहिये, क्योंकि वे बच्चे के सकारात्मक विकास में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं. महामारी के दौरान, मुख्य रूप से बच्चों के बीच सामाजिक संपर्क नदारद था और उन्हें कई तौर-तरीकों और भावनाओं को सीखने और समझने में भी परेशानी हुई. अपने साथियों और बाहरी दुनिया से लगातार प्रतिक्रिया ना मिलना, जो उन्हें व्यवहार सिखाने में मदद करती हैं, ने बच्चों के लिये सही-गलत की पहचान करना मुश्किल कर दिया. उनका व्यवहार दूसरों पर क्या प्रभाव डालता है, इसने आगे उनकी समझ को जटिल बना दिया.

सामाजिक संपर्क की कमी-

बाहरी दुनिया से अचानक ही संपर्क कट जाने से बच्चे किसी भी तरह की गतिविधि में हिस्सा लेने से ज्यादा कतराने लगे. सामाजिक संपर्क की कमी और ज्यादातर वक्त डिजिटल स्क्रीन के सामने बिताने से बच्चे सामाजिक संपर्कों से दूर हो गये. इसका असर यह हुआ कि अपनों या औरों के साथ बातचीत की शुरूआत करने में काफी असहज महसूस करने लगे. सामाजिक भागीदारी से बचने से और भी रुकावटें पैदा होंगी और सामाजिक असहजता से बचने के लिए बातचीत का मार्ग बंद हो जाता है.

जो बच्चे पिछले दो सालों से घरों में बंद थे, उन्हें लंबे समय तक सामाजिक संपर्क की कमी की वजह से आमने-सामने बातचीत करने में असहजता महसूस हो रही है. कुछ समय एकांत में रहने की वजह से उनके लिये इस माहौल में ढलने में परेशानी महसूस हो रही है. यदि इस पर ध्यान ना दिया जाए तो कई बार यह सामाजिक असहजता, सोशल एंग्‍जाइटी में बदल सकती है हो सकता है कि बच्चे अपने उन अनुभवों से चूक गए हों जो सामाजिक रूप से उनके विकास में सहयोगी थे, लेकिन यह असहजता उन पर स्थायी प्रभाव नहीं डालेगी. एक बच्चे का मस्तिष्क अपने शुरूआती चरणों में अभ्यास और दोहराव के साथ विकसित होता है और अभी भी ठीक होने की हैरतअंगेज क्षमता पैदा कर सकता है.

लगातार बातचीत से बच्चे सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, जो उन्हें बिना किसी झिझक के फिर से जुड़ने के लिये प्रेरित करता है.

बच्चों पर असामान्य प्रभाव-

पेरेंट्स को इस असहजता को कम करने के लिये अपने बच्चे के साथ जरूर बात करनी चाहिये, क्योंकि इस बात के लिये वे अपने पेरेंट्स की ओर देखते हैं कि अलग-अलग परिस्थितियों में किस तरह की प्रतिक्रिया होनी चाहिये. भले ही महामारी के इस चरण ने बच्चों पर असामान्य प्रभाव डाला हो, लेकिन बच्चे बदलते परिवेश को अपना लेते हैं और वे सही और बेहतर हो जाएंगे. आखिरकार, मानवजाति चुनौतीपूर्ण स्थितियों से लड़ने में हमेशा ही मजबूत रही है.

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देश खुशहाल रहेगा जब औरतें खुश रहेंगी

लो जी देश की औरतों और उन के परिवारों को (मंदिर और मसजिद भी) ले जाने के लिए प्रचार का धुआंधार कार्यक्रम ज्ञानवाणी मसजिद और मथुरा से चालू हो गया है. जितनी मंदिर के नाम पर सुर्खियां आएंगी उतने ज्यादा मंदिरों के ग्राहक बढ़ेंगे और पूजा सामग्री भी ज्यादा बिकेगी, मोहल्लेका मंदिर हो या चारधाम, लाइनें बढेंगी, लोग कुंडलियों, वास्तु, आयुर्वेद, शुभ समय, पूजापाठ को दोड़ेंगे. यह औरतों को पता भी नहीं चलेगा कि इस की कीमत वे दे रही हैं, वे तो इस बात से खुश हैं कि उन का धर्म चमचमा रहा है या इस बात से गम में कमजोर हो रही है कि उन के धर्म पर हमले हो रहे हैं.

मंदिर मसजिद विवाद का अंतिम असर जो जीवन भर दर्द रहेगा, औरत पर पड़ता है. यह उसी का बेटा या पति है जो उस भीड़ में गला फाड़ता है जो मंदिरमंदिर चिल्ला रही है और घर आ कर पूछता है खाने को क्या है? वह  काम पर नहीं जाता पर खाना ज्यादा मांगना है क्योंकि उस का गला सूख रहा है, बदन दर्द कर रहा है.

जो चंदा मंदिर के नाम पर उपद्रव करने के लिए जमा किया वह औरत की आय का हिस्सा है. जिस का घर जलाया गया, बुलडोजर से तोड़ा गया वह औरत की सुरक्षा की छाया थी. जिसे रात्रि जागरण के लिए बुलाया गया, 4 घंटे जमीन पर बैठा कर कीर्तन गाए गए जिस के अंत में मंदिर वहीं चाहिए के नारे लगे वह औरतें ही थीं. ये वे औरतें हैं जो घर लौट कर कपड़े धोएंगी, सुखाएंगी, राशन, लाएंगी, खाना बनाएंगी, पर घर साफ रखेंगी. न मंदिर यह काम करेगा, न मसजिद.

अगर शहरों में मंदिरमसजिद को ले कर दंगे हुए तो आज का खाना कैसे बने या मिलेगा इसी औरत को होगी. अगर मंदिर के आदेश पर घर में 12 मूर्तियां या फोटो लगा दी गई तो उन के कपड़े धोने उन के आगे दिए जलाने का काम औरत का ही है जो उस महान हिंदू धर्म की रक्षा कर रही है जो उसे पाप योनि का कहना है, उसे वस्तु मान कर दान करवाता है, जीवन भर सुहागन रहने के लिए तरहतरह व्रत करवाता है, पति के लौन पर दोषी ठहरा कर स्थान वे कोने में फेंक देता है.

वाराणसी और मथुरा में अयोध्या के बाद क्या होगा यह निरर्थक अगर देश की औरतें खुश नहीं हैं उन्हें तो अंधविश्वास की आग में झोंक कर जय सती माता का नारा लगा दिया जाता है.

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