क्या स्पाइनल स्ट्रोक का इलाज सर्जरी के बिना हो सकता है?

सवाल-

मेरे ससुर की उम्र 58 साल है, उन्हें कुछ दिन पहले स्पाइनल स्ट्रोक आया था. डाक्टर ने सर्जरी कराने की सलाह दी है. क्या सर्जरी के बिना भी इस का उपचार संभव है?

जवाब-

स्पाइनल स्ट्रोक में स्पाइनल कार्ड की ओर रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाती है. स्पाइनल स्ट्रोक एक गंभीर स्थिति है और इस के लिए तुरंत उपचार की जरूरत होती है. अगर समस्या अधिक गंभीर नहीं है तो सूजन को कम करने, रक्त को पतला करने, रक्तदाब को कम करने और कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित करने वाली दवा से आराम मिल जाता है. आप के ससुर की स्थिति गंभीर होगी, इसलिए डाक्टर ने सर्जरी की सलाह दी है. सर्जरी से डरने की जरूरत नहीं है. मिनिमली इनवेसिव सर्जरी (एमईएस) तकनीक ने सर्जरी को बहुत आसान बना दिया है. इस में पारंपरिक सर्जरी की तुलना में परेशानियां कम होती हैं और अस्पताल में ज्यादा रुकने की जरूरत भी नहीं होती है.

GHKKPM: सई की प्रैग्नेंसी की खबरों के बीच Ayesha Singh के ये लुक हुए वायरल

सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी में हाल ही के ट्रैक में पाखी की सरोगेसी के चलते बवाल देखने को मिला था. वहीं इन दिनों शो में सई के प्रैग्नेंट (Sai Pregnancy) होने के कयास लगाए जा रहे हैं. वहीं प्रैग्नेंसी की तरफ उठते इन सवालों के बीच सई यानी एक्ट्रेस आयशा सिंह (Ayesha Singh Photoshoot) का बदला लुक फैंस को हैरान कर रहा है. आइए आपको दिखाते हैं आयशा सिंह के फोटोशूट की झलक…

मौर्डर्न बनीं सई

 

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हाल ही में अपने नए-नए लुक्स फैंस के साथ शेयर कर चुकीं एक्ट्रेस आयशा सिंह ने नया लुक शेयर किया है, जिसमें वह संस्कारी बहू नहीं बल्कि बोल्ड मौर्डर्न लुक में पोज देती हुई नजर आ रही हैं. ब्लू कलर के कोट पैंट में बिजनेस वूमन की तरह एक्ट्रेस आयशा सिंह कातिलाना पोज देती दिख रही हैं. वहीं फैंस उनके लुक्स की तारीफें कर रहे हैं.

वेस्टर्न लुक में दिखाईं अदाएं

 

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सीरियल में देसी अवतार में नजर आने वाली सई जोशी यानी एक्ट्रेस आयशा सिंह रियल लाइफ में काफी बोल्ड हैं, जिसका अंदाजा हाल ही में उनके फोटोशूट को देखकर लगाया जा सकता है. वेस्टर्न ड्रैस में एक्ट्रेस आयशा सिंह का फैशन और अदाएं देखकर फैंस दिवाने हो गए हैं और सोशलमीडिया पर तेजी से फोटोज वायरल हो रही हैं.

 

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देसी अवतार को भी बनाया हौट

 

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वेस्टर्न लुक के अलावा एक्ट्रेस आयशा सिंह ने अपने फोटोशूट में देसी लुक भी ट्राय किए थे. जहां एक लुक में वह ब्राइडल लहंगा कैरी करते दिखीं थीं तो वहीं एक में वह लहंगा कैरी करते हुए नजर आईं थीं. हालांकि इन लुक्स में भी वह हौटनेस का तड़का लगाते हुए दिखीं. दरअसल, अपने इन इंडियन लुक्स में मेकअप और डीपनेक ब्लाउज के साथ आयशा सिंह अदाए दिखाती नजर आईं थीं. फैंस को सई चौह्वाण का ये अंदाज काफी हैरान कर रहा है, जिसके चलते वह सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं.

Rakhi Special: ऐसे पहचानें BB, CC और DD क्रीम्स में फर्क

बात जब ब्यूटी कि आती है तो, महिलाएं ऐसा हर ब्यूटी प्रॉडेक्ट इस्तेमाल करने से नहीं चूकती जो उन्हें और खूबसूरत बनाए. बाजार में लगभग हर रोज महिलाओं कि जरूरत के मुताबिक नए ब्यूटी प्रॉडेक्ट्स कि भरमार होती रहती है, लेकिन ऐसे में अक्सर वे ये जांचना भूल जाती हैं कि आखिर यह कैसे काम करेगा, इसका क्या इफेक्ट होगा? और इन सब नए ब्यूटी प्रॉडेक्ट्स के चक्करों में आप मात खा जाती हैं.

अधिकतर महिलाएं तो मार्केट में आया नया प्रॉडेक्ट तो सिर्फ ट्राई करने के नाम ही खरीद लेंती है. जबकि जब बात आपकी सुदंरता और त्वचा कि होती है तो आपको थोड़ा सर्तक रहना होता है. हालांकि आप ये तय नहीं कर सकती कि आपके ब्यूटी किट में क्या होना चाहिए और क्या नहीं.

आज हम आपको मार्केट में मौजूद क्रीम्स में फर्क करना जरूर बताएंगे जो इन दिनों बाजार में धड़ल्ले से बिक रहीं है और शायद आप भी इसका भरपूर इस्तेमाल करती हैं. हर रोज इस्तेमाल में आने वाली इन ब्यूटी क्रीम्स में आसानी से अंतर समझिए.

अब जैसे कि बीबी (BB) क्रीम, सीसी क्रीम और डीडी क्रीम यह तमाम नाम आपने सुने-सुने लग रहें है, लेकिन इनकी चॉइस में आप अक्सर कंफ्युज रहती है. आज यहां हम आपका यही कंफ्युजन दूर करने की कोशिश कर रहें है, ताकि अगली बार आप सोच समझकर इन क्रीम्स का इस्तेमाल कर सके.

1. बीबी क्रीम ब्यूटी बाम या फिर ब्यूटी बेनिफिट के नाम से पहचाने जाने वाली यह क्रीम अब मार्केट में बहुत कॉमन हो चुकी है. स्किन को मीडियम व लाईट करवरेज देने वाली यह क्रीम स्किन टोन को भी बनाए रखती हैं. साथ ही डेली मॉइश्चराइजर कि तरह काम करने वाली यह क्रीम त्वचा का सूरज से भी बचाव करती है. जिन्हें ज्यादा मेकअप लगाना का रास नहीं आता उनके लिए यह क्रीम बिलकुल सही चॉइस है.

इन दिनों कुछ बीबी क्रीम्स ऐसी भी है जो स्किन को लाइट इफेक्ट भी देती है. लास्ट मिनट में फिक्स हुई डेट या मिटिंग में यह क्रीम आपको परफेक्ट लुक दे सकती है. बस अच्छे से मुंह धोकर बीबी क्रीम लगाकर पसंदीदा लिपस्टिक लगाकर लुक को पूरा कर सकती हैं.

2. सीसी क्रीम भारतीय बाजार में धीरे-धीरे पैर जमाती सीसी क्रीम में सीसी का मतलब है कवरेज कंट्रोल या फिर कलर कंट्रोल. यह नेक्स्ट जनरेशन क्रीम मल्टीपर्पज है, क्योंकि यह फेस के लिए फाउंडेशन, प्राइमर, ब्राइटनर कि तरह काम करने के साथ ही, फेस को सन प्रॉटेक्शन देती है और स्किन को एंटी एजिंग जैसे स्किन समस्याओं से बचाती है. कुछ सीसी क्रीम्स में तो फ्री रेडिकल फाइटर्स होते है, जो आपकी त्वचा को झाईयों के साथ ही सूरज से भी रक्षा करते है. ऐसे में यह क्रीम उनके लिए परफेक्ट है, जिन्हें रोज मेकअप करना पसंद है.

3. डीडी क्रीम डीडी का यहां मतलब है डेली डिफेंस, हालांकि यह क्रीम अभी इंडियन मार्केट के लिए बिलकुल नयी है. भले ही यह क्रीम सूरज से रक्षा नहीं करती, लेकिन यह चेहरे, हाथ और पैरों में नमी बनाएं रखती है. इस क्रीम को खासकर शरीर के रूखे अंगों के लिए ही बनाया गया है, जैसे कि कोहनी, अंगुलियां, पैर, घुटने इत्यादि. इतना ही नहीं विदेशी बाजार में तो कुछ एडवांस डीडी क्रीम्स भी उपलब्ध है, जो त्वचा को मुलायम बनाने के साथ ही स्किन के एंटी एंजिंग से भी लड़ती है.

फैमिली के लिए बनाएं ड्राय वैजिटेबल मंचूरियन

अगर आप अपनी फैमिली को फैस्टिवल के मौके पर स्वीट्स या मीठा खिलाने की बजाय चायनीज फूड की रेसिपी ट्राय करना चाहती हैं तो ड्राय वेजिटेबल मंचूरियन आपके लिए अच्छा औप्शन है. ड्राय वैजिटेबल मंचूरियन को आप आसानी से घर पर बना सकती हैं. वो भी हैल्दी तरीके से.

सामग्री

– 1 कप कद्दूकस की पत्तागोभी

– 1 गाजर कद्दूकस की

– 1/4 कप हरा प्याज कटा

– 1/4 कप शिमलामिर्च बारीक कटी

– 1/4 कप फ्रैंचबींस बारीक कटी

– 1 हरीमिर्च बारीक कटी

– 1 छोटा चम्मच अदरक कद्दूकस किया

– 3 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर

– 2 बड़े चम्मच मैदा

– 1 बड़ा चम्मच सोया सौस

– 2 छोटे चम्मच रैड चिली सौस

– 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर

– 2 बड़े चम्मच टोमैटो सौस

– 2 छोटे चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

– 2 छोटे चम्मच सिरका

– 1 बड़ा चम्मच प्याज बारीक कटा

– थोड़ा सा हरा प्याज बारीक कटा

– वैजिटेबल बौल्स फ्राई करने के लिए रिफाइंड औयल

– नमक स्वादानुसार.

विधि

पत्तागोभी में सभी सब्जियां हरीमिर्च, अदरक, 2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर, 2 बड़े चम्मच मैदा व थोड़ा सा नमक मिलाएं. इस में 1 छोटा चम्मच सोया सौस, कालीमिर्च चूर्ण मिला कर छोटीछोटी बौल्स बना कर डीप फ्राई कर लें. पुन: एक नौनस्टिक कड़ाही में 1 बड़ा चम्मच तेल गरम कर के प्याज, अदरक, लहसुन पेस्ट सौते करें. टोमैटो सौस, चिली सौस, सोया सौस व सिरका डालें. 1 कप पानी में बचा मैदा व कौर्नफ्लोर घोल कर मिश्रण में डालें. उबाल आने पर वैजिटेबल बौल्स डालें और मिश्रण के सूखने तक धीमी आंच पर पकाएं. हरे प्याज से सजा कर सर्व करें.

मेडिक्लेम खरीद रहे हैं तो इन 9 बातों पर दें ध्यान

हम सभी अपनी हेल्थ को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं. चाहे बूढ़े मां बाप हो या छोटे बच्चें सबकी बीमारी में अस्पताल में होने वाला खर्च आपकी सेविंग पर बड़ा असर डालते है. उम्र से संबंधित रोग ऐसे हैं जिन्हें आप रोक नहीं सकते. दूसरी और युवा अपनी लाइफ स्टाइल के कारण अलग तरह के रोगों का शिकार हो रहे हैं. अगर आपने पूरी तैयारी नहीं की है तो मेडिकल का खर्च आपकी बचत साफ कर देगा.

मेडिकल के इस तरह के खर्चों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस बहुत जरूरी है. इसमें दो तरह की पॉलिसी होती है. एक अकेले व्यक्ति के लिए और दूसरी पूरे परिवार के लिए. परिवार के लिए किए गए मेडिक्लेम की पॉलिसी का कोई भी सदस्य उपयोग कर सकता है.

अगर आप मेडिक्लेम पॉलिसी खरीद रहें हैं तो इन बातों का जरूर ध्यान रखें

1. पॉलिसी में अस्पताल में भर्ती होने और बाद के खर्च की सुविधा हो

2. कैशलेस सेवा के लिए हॉस्पिटल की लंबी सूची हो, आपके शहर के नामी हॉस्पिटल उस सूची में हों

3. इंश्योरेंस कंपनी की तरफ से 24*7 सहयोग की सेवा हो

4. क्लेम निपटाने की प्रक्रिया आसान हो

5. इनकम टैक्स छूट का लाभ हो, सेक्शन 80 (डी) के तहत इनकम टैक्स में छूट

6. कमरों के किराए पर किसी तरह की लिमिट न हो

7. क्रिटिकल इलनेस प्लान की सुविधा. इसमें कैंसर, टूटी जांघों, जलने और ह्दय से संबंधित रोगों को कवर किया जाता है

8. जीवन भर रिन्यूवल की सुविधा, हर साल रिन्यूवल छूट पर भी ध्यान दें

9. क्लेम जल्दी निपटाने की सुविधा

आजकल अधिकतर कंपनियां हेल्थ इंश्योरेंस ऑनलाइन खरीदने का विकल्प दे रही हैं. कंपनियों की वेबसाइट पर जाकर आप आसानी से प्रीमियम कैल्कुलेट कर सकते हैं. इसके लिए आपको उम्र और परिवार के सदस्यों की जानकारी देनी होगी. आप ऑनलाइन प्रीमियम का पेमेंट भी कर सकते हैं. इसके बाद पॉलिसी की आपको ईमेल और आपके पते पर भेज दी जाती है. पॉलिसी पसंद नहीं आने पर आप 15 दिन के भीतर उसे लौटा भी सकते हैं.

Senco Teej Special: तीज के मौके पर पत्नी को दें ये खास गिफ्ट

पति पत्नी के रिश्तों में त्योहार सबसे बड़ा महत्व रखता है. इन्ही त्योहार में से एक तीज का त्योहार है, जिसे बड़े धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता है. इस त्योहार में महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और अपने पति के लिए व्रत रखती है. लेकिन क्या पति को भी अपनी पत्नियों को तोहफा देकर शुक्रिया अदा नहीं करना चाहिए. इसीलिए सेन्को लाया है तीज के मौके पर लेटेस्ट गोल्ड एंड डायमंड्स सेट का कलेक्शन, जिसे आप गिफ्ट करके अपनी खूबसूरत पत्नी का दिल जीत सकते हैं.

सेन्को के इस खास कलेक्शन में आपको मिलेंगे एक से बढ़कर एक गोल्ड एंड डायमंड के हैवी नेकलेस, ईयरिंग और झुमके, कंगन, रिंग्स और बहुत कुछ…

सेन्को तीज स्पेशल कॉन्टेस्ट…

आपकी तीज को डबल स्पेशल बनाने के लिए इस बार सेन्को लाया है एक खास मौका, जहां आपको मिल सकते हैं सेन्को की तरफ से खूबसूरत तोहफे, बस आपको लेना होगा सेन्को तीज स्पेशल कॉन्टेस्ट में हिस्सा और देनें होंगे कुछ सवालों के सही जवाब…

सही जवाब देनें वाले चुनिंदा यूजर्स को मिलेगा एक स्पेशल सरप्राइज तो फिर देर किस बात की, नीचे दिए बैनर पर क्लिक कीजिए और बनिए इस कॉन्टेस्ट का हिस्सा और शानदार ईनाम के साथ अपनी तीज को बनाएं यादगार…

प्रायश्चित्त- भाग 2: क्या प्रकाश को हुआ गलती का एहसास

‘एक परिवार टूटता है तो कितने सपने टूटते हैं, कितने अरमान बिखरते हैं, पता है तुझे? प्रेम, जिस प्रेम की तू दुहाई दे रही है वह प्रेम नहीं, भ्रम है तेरा. कोरी वासना है. ऐसे पुरुष कायर होते हैं, न वे पत्नी के होते हैं न प्रेमिका के. प्रेम में कोई इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है? किसी के अरमानों की लाश पर अपने प्रेम का महल खड़ा करेगी तू. अपना किया किसी न किसी रूप में एक दिन अपने ही सामने आता है, पछताएगी तू,’ मां एक लंबी सांस ले कर फिर बोलीं, ‘कोई भी निर्णय लेने से पहले सोच ले, कहीं ऐसा न हो कि अपमान और तिरस्कार के दर्द को धोने के लिए तेरे पास प्रायश्चित्त के आंसू भी कम पड़ जाएं, पर मैं जानती हूं कि इसे तू समझ नहीं सकेगी. तू समझना ही नहीं चाहती. मेरी बात मान ले और एक बार प्रकाश की पत्नी से मिल कर आ.’

निशा तो नहीं गई, पर एक दिन निशा की मां माया प्रकाश की पत्नी रजनी से मिलने पहुंच गईं. रजनी को देख कर माया पलकें झपकाना भी भूल गईं. उन का मुंह खुला का खुला रह गया. रजनी कितनी सुंदर थी. निशा और रजनी की क्या तुलना, क्या यही देख कर प्रकाश निशा की ओर आकृष्ट हुआ.

‘बेटा, मैं निशा की मां हूं. पता है तुझे निशा और प्रकाश…’ वे आगे कुछ कह न सकीं. ‘पता है,’ सारी पीड़ा को मन के कुएं में डाल कर रजनी ने मानो मुसकराहट के आवरण से चेहरा ढक दिया हो. ‘और तू चुप है?’

‘और क्या करूं, मां?’ उस के  मुख से ‘मां’ का संबोधन सुन माया चकित थीं. रजनी बोलती रही, ‘प्यार कोई किला तो नहीं है न जिस के चारों ओर पहरा लगाया जाए या उसे जीतने के लिए जान की बाजी लगा दी जाए, आखिर कुछ तो होगा ही निशा में जो मेरा प्रकाश मुझ से छीन ले गई.’

‘बेटा, तुम ने प्रकाश से बात की?’ ‘मुझे उन से कोई बात नहीं करनी, वे कोई भी निर्णय लेने के लिए आजाद हैं. मां, वह प्यार क्या जिसे झली फैला कर भीख की तरह मांगा जाए. अधिकार तो दिया जाता है, जो छीना जाए उस अधिकार में प्यार कहां? आप चिंतित न हों.’

‘कैसे चिंतित न होऊं, एक मां हूं मैं, किसी की दुनिया उजाड़ कर बेटी की मांग सजाऊं? सारा दोष निशा का है.’ ‘निशा को क्यों दोष दे रही हैं आप, वह तो न मुझ से मिली है न मुझे जानती है, वह मेरी दुश्मन कैसे हो सकती है. दोष है तो मेरे समय का.’

‘और प्रकाश? प्रकाश का कोई कुसूर नहीं?’ ‘है मां, लेकिन, उसे सजा देने वाली मैं कौन होती हूं. अब तो उन्होंने मुझ से माफी मांगने का अपना अधिकार भी खो दिया है. कहीं पानी का बहाव पत्थर डालने से रुका है, वह तो उसी वेग से उछल कर बहने के लिए दिशा तलाश लेता है.’

रजनी के कहे शब्दों को माया समझ न सकीं. उन्हें लगा कि पति के विद्रोह ने इसे विक्षिप्त कर दिया है. उन्होंने मन ही मन फैसला किया कि उसे एक बार प्रकाश से मिलना होगा, जहां निशा न हो.

एक दिन निशा की अनुपस्थिति में प्रकाश आया. खुद पर नियंत्रण न रख सकीं और बोलीं, ‘बेटा, मैं एक मां हूं. तुम्हारा, निशा का, रजनी का, किसी का बुरा कैसे सोच सकती हूं, पर न्यायअन्याय के बारे में तो सोचना पड़ेगा न. माना कि निशा नादान है, प्यार ने उसे अंधा बना दिया है, उस ने आज तक जिस चीज पर उंगली रखी वह उसे मिली है. खोना क्या होता है, इस का उसे एहसास नहीं है. पर तुम तो समझदार हो, अपने अच्छेबुरे की अक्ल है तुम में. अपनी जिम्मेदारी समझ. तुम अकेली रजनी और 2 छोटेछोटे बच्चे किस के भरोसे छोड़ आए हो. क्या प्यार की खाई में इतने नीचे जा गिरे हो कि आसमान भी धुंधला दिखाई पड़ रहा है.’

प्रकाश की आंखें भर आईं. वे बोले, ‘मां, मैं सब समझता हूं. मैं मानता हूं कि मुझ से भूल हो गई. मैं ने रजनी की कीमत पर निशा की कामना नहीं की थी. मैं तो निशा और रजनी दोनों से माफी मांगने को तैयार हूं. निशा तो शायद माफ भी कर दे, पर रजनी, वह तो इस विषय में क्या, किसी भी विषय में मुझ से बात करने को तैयार नहीं. पत्थर बन गई है वह. मेरी क्षमायाचना का उस पर कोई असर नहीं होता. अगर मैं उस के कदमों पर गिर भी पड़ूं तो भी वह मुझे माफ नहीं करेगी, बेहद स्वाभिमानी औरत है वह,’ लाचारी प्रकाश के शब्दों में समाती गई. वे फिर बोले, ‘वक्त ने आज मुझे जिंदगी के उस चौराहे पर ला कर खड़ा कर दिया है, जहां की हर डगर निशा तक जाती है, सिर्फ निशा तक. अब तो न मुझे रजनी से बिछुड़ने का गम है न निशा से मिलने की खुशी.’

वक्त गुजरता गया. रजनी से तलाक मिल गया और प्रकाश का ब्याह निशा से हो गया. उस के बाद रजनी बच्चों को ले कर पता नहीं कहां चली गई. किसी को कुछ पता नहीं. न वह अपने मायके गई न ससुराल. उस के बगैर जीना इतना मुश्किल होगा, प्रकाश ने सोचा न था. प्रकाश चाह कर भी पूरी तरह खुद को रजनी से जुदा न कर सके. कई बार निशा झंझला कर कहती, ‘अगर उस रिश्ते का मातम मनाना था तो मुझ से ब्याह करने की क्या आवश्यकता थी. कोशिश तो करो, समय के साथ सबकुछ भुला सकोगे.’

‘क्या भुला सकूंगा, निशा मैं, यह कि 8 साल पहले अपना सबकुछ छोड़ कर एक भोलीभाली लड़की मेरे कदमों के पीछेपीछे चली आई थी, यह कि मैं ने अग्नि के सामने जीवनभर साथ निभाने की कसमें खाई थीं. कैसे भूल जाऊं उस की सिंदूर से भरी मांग, कैसे भूल जाऊं उस के हाथों की लाल चूडि़यां. किसी का सुखचैन लूट कर किसी की खुशियों पर डाका डाल कर तुम्हारा दामन खुशियों से भरा है मैं ने. मैं इतना निर्मोही कैसे हो गया? कैसे भूल जाऊं कि जो घरौंदा मैं ने और रजनी ने मिल कर बनाया था उसे मैं ने अपने ही हाथों नोच कर फेंक दिया और क्या कुसूर था उन 2 मासूम बच्चों का? क्या अधिकार था मुझे उन से खुशियां छीनने का? क्या कभी मैं इन तमाम बातों से अपने को मुक्त कर पाऊंगा?’

प्रायश्चित्त- भाग 3: क्या प्रकाश को हुआ गलती का एहसास

‘प्रकाश, क्या होता जा रहा है तुम्हें, संभालो खुद को. सत्य से सामना करने का साहस जुटाओ. बीता कल अतीत की अमानत होता है, उस के सहारे आज को नहीं जिया जा सकता. एक बुरा सपना समझ कर सबकुछ भूलने का प्रयास करो.’

‘काश कि यह सब एक सपना होता निशा, अफसोस तो यह है कि यह सब एक हकीकत है. मेरे जीवन का एक हिस्सा है.’

प्रकाश के दर्द को जान कर निशा खामोश थी, उस ने इस घटना को अपने जीवन की सब से बड़ी भूल के रूप में स्वीकार कर लिया था. वह समझती थी कि इंसान खुद को परिस्थितियों के अनुरूप नहीं ढाल पाता तो परिस्थितियां ही उसे अपने अनुरूप ढाल लेती हैं, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. रमिता का आगमन भी प्रकाश को सामान्य न कर सका. उस की बालसुलभ क्रियाएं भी उन्हें लुभा न सकीं. शायद कुछ पाने से ज्यादा कुछ खोने का गम था उन्हें.

प्रकाश के दिल की तड़प अब निशा के दिल को भी तड़पा जाती. तभी तो उस ने एक दिन कहा, ‘अगर रमिता में तुम्हें दीपक और ज्योति नजर आते हैं तो हम रजनी को ढूंढें़गे, उसे समझबुझ कर बच्चों को अपने पास ले आएंगे.’

‘नहीं निशा, अब मुझ में साहस नहीं है, रजनी के सामने जा कर खड़े होने का. और फिर रजनीरूपी बेल जिस वृक्ष से लिपटी है वह दीपक और ज्योति ही तो हैं. मैं उस की जड़ों को झकझरना नहीं चाहता. मैं रजनी के जीवन की बचीखुची रोशनी भी उस से छीनना नहीं चाहता.’

निशा का पूरा ध्यान रमिता की परवरिश की ओर लग गया. वक्त गुजरता गया. प्रकाश पहले से ज्यादा गुमसुम रहने लगे. हां, रमिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना उन्हें बखूबी आ गया था. वे नहीं चाहते थे कि प्रायश्चित्त की जो आग उन के दिल में सुलग रही है, उस की आंच भी रमिता तक पहुंचे. जिंदगी के 17-18 साल यों ही बीत गए.

रजनी नाम का जख्म समय के साथ भर तो गया, पर निशान अब भी बाकी था. 2 वर्षों पहले रजनी का एक खत प्रकाश के नाम आया. निशा ने उसे उलटपलट कर देखा, पर फिर प्रकाश को थमा दिया. पत्र सामने खुला पड़ा था, नजरें पत्र की लिखावट पर फिसलती चली गईं.

‘प्रकाश, तुम्हारे दोनों बच्चे अब बड़े हो गए हैं, ज्योति डाक्टर बन गई है और अपनी पसंद के लड़के से शादी कर रही है. तुम्हारा बेटा दीपक अब मुझे ले कर विदेश में बसना चाहता है. मैं जानती हूं, तुम्हारे हृदय के भीतर छिपा इन का पिता इन से मिलने को तड़प रहा होगा. अब मैं तुम से नाराज भी नहीं हूं. सच मानो, मैं ने तो तुम्हें कब का माफ कर दिया है.’

‘रजनी.’

नीचे पता लिखा हुआ था और साथ में ज्योति की शादी का कार्ड भी था.

प्रकाश ने कार्ड सहित पत्र निशा की ओर बढ़ा दिया.

‘नहीं निशा, मैं नहीं कर सकता रजनी का सामना. उस का दिल बहुत बड़ा है. वह कह सकती है कि उस ने मुझे माफ कर दिया. लेकिन मैं कैसे माफ कर दूं अपनेआप को? मेरी सजा यही है कि मैं उम्रभर तड़पता रहूं और यही होगा मेरे पापों का प्रायश्चित्त भी.’

‘तब से ले कर आज तक प्रायश्चित्त ही तो करती आ रही हूं मैं और आप भी. अब और कितना?’ सिसक उठी निशा.

भूलीबिसरी घटनाओं की यादें आआ कर दिमाग के दरवाजे को खटखटाती रहीं. मन अतीत की गलियों में पता नहीं कब तक भटकता रहा कि अचानक शांताबाई की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘बहूजी, आज और कितनी देर तक इस कमरे में रहेंगी आप? नाश्ता तैयार है,’’ निशा हड़बड़ा गई, स्वयं को व्यवस्थित करते हुए बोली, ‘‘साहब कहां हैं?’’

‘‘उन के पास तो कोई बैठा है, उसी से बातें कर रहे हैं.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘क्या पता, आवाज तो दामादजी जैसी है,’’ शांताबाई ने लापरवाही से कहा.

‘‘और तू अब बता रही है मुझे,’’ निशा उठ खड़ी हुई.

‘‘मैं तो आप को यह बताने आई थी कि आप को रमिता दीदी बुला रही हैं.’’

‘‘अच्छाअच्छा ठीक है, तू जा अपना काम कर.’’

मां को देखते ही रमिता बिफर पड़ी, ‘‘मां, वह क्या करने यहां आया है? कह दो उस से चला जाए यहां से, मैं उस की सूरत भी नहीं देखना चाहती.’’

‘‘हां, बेटा, ठीक है, तुम्हारे पापा उस से बात कर रहे हैं न, जो उचित होगा वही करेंगे. कोई भी निर्णय बिना कुछ सोचेसमझे मत लो.’’

रमिता ने नजर उठा कर देखा, सामने पापा खड़े थे और उन के पीछे सिर झकाए खड़ा था तुषार.

‘‘गलती हर इंसान से होती है, बेटी, पर अपनी गलती को स्वीकार कर लेने का साहस बहुत कम लोगों में होता है. अपने किए पर तुषार खुद शर्मिंदा है. वह मानता है कि वह भटक गया था. उसे अफसोस है कि उस ने तुम्हारा दिल दुखाया है. जन्मों के रिश्तों को पलों में मत टूट जाने दो, रमिता. मान लो बेटा कि तूफान तुम्हारे दिलों के द्वार पर दस्तक दे कर वापस लौट गया है. उठो रमिता और माफ कर दो तुषार को. आज वह तुम्हें मनाने आया है, अगर आज वह चला गया तो शायद लौट कर कभी न आए. मैं नहीं चाहता कि तुम दोनों रूठने और मनाने की सीमा पार कर जाओ. आज वह चल कर तुम्हारे पास आया है, इस का अर्थ यह नहीं कि वह सिर्फ दंड का अधिकारी है,’’ प्रकाश का गला बोलतेबोलते भर्रा उठा, स्वर थरथराने लगे, ‘‘उसे माफ कर दो, रमिता, नहीं तो पछतावे की आग से तुम भी नहीं बच सकोगी, सबकुछ जल कर राख हो जाएगा. प्यार भी और नफरत भी. कुछ भी नहीं बचेगा.’’

रमिता हैरान थी. आज जिंदगी में पहली बार पापा को इतना कुछ कहते सुन रही थी. पापा तुषार का पक्ष ले रहे हैं? मगर क्यों?

रमिता ने पलट कर प्रश्नभरी नजर मां पर डाली.

निशा भी प्रकाश से सहमत थी, मानो उस की निगाहें कह रही हों, ‘कुछ बातों को समझना इतना जरूरी नहीं होता रमिता जितना उन पर अमल करना.’

रमिता के कदम तुषार की ओर बढ़ चले. निशा ने आगे बढ़ कर नन्ही अंकिता को तुषार की गोद में दे दिया. रमिता जाते समय पलटपलट कर अपने मातापिता को देखती रही.

निशा और प्रकाश भी रमिता और तुषार को आंखों से ओझल होने तक देखते रहे. दोनों की आंखें अनायास ही छलक उठीं.

प्रायश्चित्त- भाग 1: क्या प्रकाश को हुआ गलती का एहसास

निशा के दिल और दिमाग में शून्यता गहराती जा रही थी. रोतेरोते रमिता का चेहरा लाल पड़ गया था, आंखों की पलकें सूज आई थीं. अपनी औलाद की आंखों में इतने सारे दुख की परछाइयां देख कर कौन मां विचलित नहीं हो जाएगी. इसलिए निशा का तड़प उठना भी स्वाभाविक ही था. वह एक बार रमिता को देखती, तो एक बार उस की गोद में पड़ी उस मासूम बच्ची अंकिता को जो दुनियादारी से बेखबर थी.

2 वर्षों पहले ही कितनी धूमधाम से निशा ने रमिता और तुषार का ब्याह किया था. दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. एकदूसरे से प्रेम करते थे, फिर.अचानक निशा की नजर दरवाजे पर खड़ी शांताबाई पर पड़ी.

‘‘क्या है, तू यहां खड़ीखड़ी क्या कर रही है?’’ घूरते हुए निशा ने शांताबाई से कहा, ‘‘तुझ से दूध मांगा था न मैं ने बच्ची के लिए. और, मेरे नहाने के लिए पानी गरम कर दिया तू ने?’’

‘‘दूध ही तो लाई हूं, बहूजी, और पानी भी गरम कर दिया है.’’ ‘‘ठीक है, अब जा यहां से,’’ शांताबाई से दूध की बोतल छीन कर निशा बोली, ‘‘अब खड़ेखड़े मुंह क्या देख रही है. जा, जा कर अपना काम कर,’’ निशा अकारण ही झंझला पड़ी उस पर.

‘‘बहूजी, फूल तोड़ दूं?’’ ‘‘और क्या, रोज नहीं तोड़ती क्या?’’ निशा अच्छी तरह जानती थी कि शांता क्यों किसी न किसी बहाने यहीं चक्कर काटते रहना चाहती है.

सुबह जब रमिता आई तो प्रकाश वहीं बाहर बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे. कोई नई बात नहीं थी, वैसे भी रमिता हर  3-4 दिन में मां की अदालत में तुषार के खिलाफ कोई न कोई मुकदमा ले कर हाजिर रहती और फैसला भी उसी के पक्ष में होता. कभी यह कि, तुषार आजकल लगातार औफिस से घर देर से आता है, तो कभी यह कि तुषार फिल्म दिखाने का वादा कर के समय पर नहीं आया, तो कभी यह कि तुषार मेरा जन्मदिन भूल गया.

इन बातों को उस की मां निशा ने भले ही महत्त्व दिया हो, पर पिता प्रकाश हर बात हंसी में उड़ा देते. अकसर यही होता कि शाम को तुषार आता, सारे गिलेशिकवे छूमंतर और दोनों हंसतेमुसकराते वापस अपने घर चले जाते. पर आज बात कुछ और ही थी. प्रकाश की आंखें अखबार पर मंडरा रही थीं, पर कान कमरे में चल रहे मांबेटी के संवाद पर ही लगे रहे.

‘‘बस, मां, अब और नहीं. अब यह न कहना कि झगड़ा तुम ने ही शुरू किया होगा या तुम्हें तो समझता करना ही नहीं आता. मैं अब उस घर में कभी कदम नहीं रखूंगी. मैं तो कभी सोच भी नहीं सकती कि तुषार के दिल में मेरे सिवा किसी और का भी खयाल रहता है. बताओ मां, मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी थी जो तुषार… मैं ने अपनी आंखों से उस लड़की की बांहों में बांहें डाले तुषार को बाजार में घूमते और फिर सिनेमाघर में जाते देखा है,’’ सिसकती हुई रमिता बोली, ‘‘मां, मैं तुषार से बहुत प्यार करती हूं, मैं उस के बिना जी नहीं सकती.’’

बेटी की बातें सुन कर निशा खामोश रह गई. प्रकाश बेचैनी से उस के उत्तर का इंतजार कर रहे थे. क्या निशा के पास रमिता के प्रश्न का कोई जवाब है? ‘‘कैसे बाप हो तुम? बेटी रोरो कर बेहाल हुई जा रही है और तुम्हारे पास उस के लिए सहानुभूति के बोल भी नहीं हैं.’’

प्रकाश ने देखा निशा की भी आंखें नम थीं और गला भरा हुआ था. ‘‘बैठो,’’ प्रकाश ने उस का हाथ पकड़ कर अपने करीब बैठा लिया और बोले, ‘‘कुछ देर के लिए उसे अकेला छोड़ दो. अभी वह बहुत परेशान है. वक्त हर समस्या का समाधान ढूंढ़ लेता है,’’ इतना कह कर प्रकाश की नजरें फिर अखबार के शब्दजाल में खो गईं.

प्रकाश की इन्हीं दार्शनिक बातों से निशा विचलित हो उठती है. निशा ने प्रकाश की चश्मा चढ़ी गंभीर आंखों को घूरा और मन ही मन सोचने लगी कि कहां से लाते हैं ये इतना धैर्य. ‘‘ऐसे क्या देख रही हो?’’ बिना देखे ही न जाने कैसे आभास हो गया उन्हें निशा के घूरने का.

‘‘कुछ नहीं,’’ ठहर कर बोली वह, ‘‘जो दर्द मुझे इस कदर तड़पा रहा है उस से आप इतने अनजान कैसे हो? सबकुछ परिस्थितियों के हवाले कर के इतना निश्ंिचत कैसे रहा जा सकता है?’’

‘‘निशा, कभीकभी जीवन में कुछ ऐसा घटता है जिस पर इंसान का वश नहीं रहता, कुछ नहीं कर सकता वह,’’ प्रकाश निशा के मन का तनाव कम करना चाहते थे.

‘‘तो आप का मतलब यह है कि हम यों ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें,’’ निशा बड़बड़ाती हुई कमरे की ओर बढ़ चली, ‘‘तुम पुरुष भी कैसे होते हो, गंभीर से गंभीर समस्या से भी मुंह मोड़ कर बैठ जाते हो.’’

उस कमरे में पहुंचते ही निशा के मन ने मन से ही प्रश्न किया, ‘तुम्हें सुनाई देती है किसी के सपने टूटने की आवाज? क्या होता है अरमानों का बिखरना, कैसे लुटती है किसी की दुनिया, क्या तुम जानती हो या नहीं जानती?’

निशा अपने भीतर की आवाज सुन कर सोचने लगी कि आज क्या होता जा रहा है उसे? 24 साल पहले की गई भूल का एहसास उसे आज क्यों हो उठा? तो क्या उस के किए की सजा उस की बच्ची को मिलेगी. अपनी गलतियों को याद कर उस की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. मन को नियंत्रित करने के सारे प्रयास विफल सिद्ध हुए. वक्त ने उसे अतीत के दलदल में धकेल दिया और वह उस में हर पल धंसती चली गई थी.

याद आ रहा था उसे मां का तमतमाया हुआ चेहरा. उस दिन उस ने मां को अपने और प्रकाश के विषय में सबकुछ बताया था. मां के शब्द उस के कानों में ऐसे गूंज रहे थे मानो कल की बात हो. ‘निशा, तू जानती है न बेटा, कि प्रकाश शादीशुदा है.’

‘हां मां,’  बात काटते हुए निशा बोली, ‘पर यह कहां का इंसाफ है कि एक इंसान जिस रिश्ते को स्वीकार ही नहीं करता, उस का बोझ ढोता रहे और फिर उस की पत्नी रजनी, वह खुद नहीं रहना चाहती प्रकाश के साथ.’

‘बेटा, रिश्ते कोई पतंग की डोर तो नहीं कि एक हाथ से छूटी और दूसरे ने लूट ली. और वह क्यों ऐसा चाहेगी, कभी सोचा है तू ने? एक पत्नी अपने पति के साथ कब रहना नहीं चाहती, जानना चाहती है तू, इसलिए नहीं कि वह उस से ज्यादा किसी और को चाहता है, बल्कि इसलिए कि उस ने उस के विश्वास को तोड़ा है. एक मर्यादा का उल्लंघन किया है,’ थोड़ा ठहर कर वे बोलीं.

ग्रहण- भाग 2: मां के एक फैसले का क्या था अंजाम

लेकिन प्रमोद को तो जैसे इस सब से कोई मतलब ही नहीं था. वह शादी से 1 दिन पहले घर आया. सुबह बरात जानी थी और रात को उस ने मुझ से कहा, ‘मां, तुम्हारी जिद और झूठे अहं की वजह से मेरी जिंदगी बरबाद होने वाली है. तुम चाहो तो अब भी सबकुछ ठीक हो सकता है. तुम सिर्फ एक बार, सिर्फ एक बार प्रभा से मिल लो. अगर मैं ने उस से शादी न की तो न मैं खुश रहूंगा, न कविता और न प्रभा. मुझ से अपनी ममता का बदला इस तरह चुकाने को न कहो, मां.’

मैं गुस्से से फुफकार उठी, ‘अगर तुझे अपनी मरजी से जीना है तो जहां चाहे शादी कर ले. पर याद रख, जिस क्षण तू उस कलमुंही के साथ फेरे ले रहा होगा, तब से मैं तेरे लिए मर चुकी होऊंगी.’

फिर मैं हलवाई के पास से मिट्टी के तेल का कनस्तर उठा लाई और प्रलाप करते हुए कहा, ‘ले प्रमोद, मैं खुद ही तेरे रास्ते से हट जाती हूं.’

प्रमोद ने मुझे रोका. वह रो रहा था. मैं उस के आंसुओं को देख कर पिघली नहीं, बल्कि विजयी ढंग से मुसकराई.

अगले दिन बरात में दूल्हा के अलावा बाकी सब मस्ती में झूम रहे थे, गा रहे थे, नाच रहे थे.

उन की शादी के बाद मैं चाहती थी कि वे दोनों कहीं घूमने जाएं. पर प्रमोद ने मना कर दिया. 2 दिनों बाद वह वापस मुंबई चला गया. मैं भी कविता के साथ उस की नई गृहस्थी बसाने गई. हम दोनों ने बड़े चाव से पूरे घर को सजाया.

सप्ताहभर बाद जब मैं पूना लौटी तो मन बड़ा भराभरा सा था, लग रहा था जैसे बरसों से देखा एक सपना पूरा हो गया. मेरे गुड्डेगुड्डी का घर बस गया.

उस वक्त मैं ने यह सोचा ही नहीं कि जीतेजागते इंसान गुड्डेगुडि़या जैसे नहीं होते. अगर सोचा होता तो कविता आधी रात को अकेली आ कर मुझ से यह सवाल न पूछती…

अचानक मेरी तंद्रा भंग हुई तो कहा, ‘‘कविता, तुम कल दिल्ली नहीं जाओगी. हम दोनों भोपाल जाएंगी,’’ मैं ने निर्णायक स्वर में कहा.

‘‘इस से क्या होगा, अम्मा?’’

‘‘देख कविता, प्रमोद तेरा पति है. उसे अब वही करना होगा जो तू चाहती है. शादी से पहले वह क्या करता था, मुझे इस से मतलब नहीं. पर अब…’’

‘‘अम्मा, आप ने उन दोनों की शादी क्यों नहीं की? न मुझे बीच में लातीं, न…’’ उस ने प्रतिवाद किया.

‘‘वह लड़की प्रमोद के लायक नहीं है,’’ मैं ने शुष्क स्वर में कहा.

‘‘क्यों नहीं है, अम्मा? वह भी पढ़ीलिखी है, सुशील है. सिर्फ इसलिए आप ने उसे नहीं स्वीकारा कि वह पैसे वाले घर की नहीं है, या…?’’ उस ने मेरे मर्म पर चोट की.

‘‘कविता, तुम्हें पता नहीं है, तुम क्या कह रही हो, मैं और कुंती बहुत पहले तुम दोनों की शादी तय कर चुकी थीं. शादीब्याह में खानदान का भी महत्त्व होता है, बेटी.’’

‘‘अम्मा, अगर मुझे पता होता कि आप ने इस शादी के लिए प्रमोद से जबरदस्ती की थी तो मैं कभी तैयार न होती. आप को भी तो पता था कि मैं फैशन डिजाइनिंग सीखने विदेश जाना चाहती थी. आप दोनों सहेलियों की वजह से प्रमोद भी दुखी हुए और मैं भी. आप ने ऐसा क्यों किया?’’ कविता फूटफूट कर रोने लगी.

मेरा दिल दहल उठा. मैं ने बड़े प्यार से उस का सिर सहलाते हुए कहा, ‘‘न रो बेटी, मैं वादा करती हूं कि तुझे तेरा पति वापस ला दूंगी.’’

पर उस की हिचकियां कम न हुईं. शायद उसे अब मुझ पर विश्वास नहीं रहा था.

पूना से मुंबई और फिर वहां से भोपाल…हम दोनों ही थक कर चूर हो चुकी थीं. मुझे पता था कि प्रभा ‘भारत कैमिकल्स’ में काम करती है. एक बार प्रमोद ने ही बताया था. वे दोनों भोपाल के इंजीनियरिंग कालेज में साथसाथ पढ़ते थे.

प्रमोद छुट्टियों में जब भी घर आता, प्रभा का जिक्र जरूर करता. पर मेरा उस से मिलने का कभी मन न हुआ. हमेशा यही लगता कि वह मेरे प्रमोद को मुझ से दूर ले जाएगी.

स्टेशन के ही विश्रामगृह में नहाधो कर हम एक रिकशा में बैठ कर ‘भारत कैमिकल्स’ के दफ्तर में पहुंचीं. वहां जा कर पता चला कि पिछले कुछ दिनों से प्रभा दफ्तर ही नहीं आ रही.

आखिरकार दफ्तर के एक चपरासी से प्रभा के घर का पता ले कर हम वहां चल पड़ीं. कविता पूरे रास्ते शांत थी. लग रहा था, जैसे वह इस नाटक की पात्र नहीं, बल्कि दर्शक है. प्रभा के घर के सामने रिकशे से उतरने के बाद कविता ने कहा, ‘‘अम्मा, आप अंदर जाइए. मैं यहीं बरामदे में बैठती हूं.’’

मैं ने घर की घंटी बजाई. 15-16 साल की एक लड़की ने दरवाजा खोला. मैं ने सीधे सवाल किया, ‘‘प्रमोद है?’’

वह चौंक गई. फिर संभल कर बोली, ‘‘वे तो दीदी के साथ अस्पताल गए हैं, आप अंदर आइए न.’’

उस की आवाज इतनी विनम्र थी कि मैं अंदर जा कर बैठ गई. घर सादा सा था, पर साफसुथरा था. वह मेरे लिए पानी ले कर आई और बोली, ‘‘मैं प्रभा दीदी की बहन हूं, विभा.’’

मैं ने अपना परिचय देने के बजाय फिर से सवाल पूछा, ‘‘प्रमोद यहां कब से है?’’

‘‘वे 2 दिनों पहले आए थे. मां जब से अस्पताल में भरती हुईं, तब से…’’ उस की आवाज भारी हो गई. फिर संयत स्वर में उस ने पूछा, ‘‘आप प्रमोदजी की मां हैं न? उन्होंने आप की तसवीर दिखाई थी.’’

‘‘घर में और कौनकौन हैं?’’

‘‘दीदी, मैं, छोटा भाई और मां.’’

विभा से छोटा भाई, यानी अभी स्कूल में ही होगा. मैं उठने ही लगी थी कि विभा बोल पड़ी, ‘‘आप बैठिए. मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं, फिर प्रमोदजी को यहां बुला लाऊंगी. अस्पताल यहां से ज्यादा दूर नहीं है.’’

‘‘बाहर मेरी बहू बैठी है, उसे भी अंदर बुला लाओ,’’ मुझे इतनी देर में पहली बार कविता का ध्यान आया.

‘‘जी, अच्छा,’’ कहती हुई विभा बाहर चली गई.

‘‘कविता के चेहरे से लग रहा था कि वह बहुत असहज महसूस कर रही है. विभा हम दोनों के लिए चाय और नाश्ता ले आई. उस के अंदर जाते ही कविता शुरू हो गई, ‘‘अम्मा, हम वापस चलते हैं. प्रमोद को बुरा लगेगा.’’

‘‘क्या बुरा लगेगा? मैं उस की मां हूं, तुम उस की पत्नी हो, बुरा तो हमें लगना चाहिए,’’ मैं ने गुस्से में कहा.

विभा तैयार हो कर आ गई, ‘‘आप लोग यहां बैठिए. मैं अभी उन्हें बुला कर लाती हूं.’’

‘‘नहीं, हम भी चलेंगे,’’ मैं उठ खड़ी हुई.

वह अचकचा गई, ‘‘आप क्यों…’’

‘‘चलो कविता,’’ मैं ने उसे भी उठने का इशारा किया. एक बार मैं जो तय कर लेती थी, कर के ही रहती थी. प्रमोद तो जानता ही था कि मैं कितनी जिद्दी हूं.

विभा अस्पताल पहुंच कर कुछ तेज कदमों से चलने लगी. वार्ड के बाहर तख्ती लगी थी, ‘कैंसर के मरीजों के लिए’. वह निसंकोच अंदर चली गई. कुछ मिनटों बाद प्रमोद लगभग दौड़ता हुआ बाहर आया, ‘‘मां, आप यहां?’’

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