बदलते मूल्य: बाप-बेटे का बदलता रिश्ता

बाप और बेटों का रिश्ता संक्रमण काल से गुजर रहा है. पहले बाप बेटे की विश्वसनीयता एवं चरित्र पर शंका किया करते थे, अब बेटे भी बाप को शंकालु दृष्टि से देखने लगे हैं. वे बचपन से ही प्रेम को आत्मसात करतेकरते मूंछ की रेख आने तक पूर्ण परिपक्व हो जाते हैं और उन्हें यौवन पार करतेकरते पिताश्री की गतिविधियां संदिग्ध लगने लगती हैं. अब प्यार और विवाह में आयु का बंधन नहीं रहा. 60 के आसपास के चार्ल्स अभी भी राजकुमार हैं और वह आयु में अपने से बड़ी राजकुमारी कैमिला पार्कर को ब्याह कर राजमहल ले आए. पिता की शादी में युवा पुत्रों-हैरी और विलियम्स ने उत्साह से भाग लिया और आशीर्वाद…क्षमा करें, शुभकामनाएं दीं. कैमिला की बेटी लारा पार्कर नवयुगल को निहारनिहार कर स्वप्नलोक में खोती रही. वर्तमानकाल में सांस्कृतिक, सामाजिक व पारिवारिक मूल्य तेजी से बदल रहे हैं. ऐसे सामाजिक संक्रांतिकाल खंड में एक बेटे ने बाप से पूछा, ‘‘पापा, आज आप बडे़ स्मार्ट लग रहे हैं. कहां जा रहे हैं?’’

‘‘कहीं नहीं, बेटा,’’ बाप नजरें चुराते हुए बोला.

‘‘मेरी हेयरक्रीम से आप की चांद चमक रही है. अब समझ में आया. क्रीम जाती कहां है. मम्मी की नजरें बचा कर आईब्रो पेंसिल से मूंछें काली करते हैं. कहते हैं, कहीं नहीं जा रहे. क्या चक्कर है पिताश्री?’’ बेटे ने फिर पूछा.

‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ बाप सकपकाया जैसे चोरी पकड़ी गई हो. फिर बोला, ‘‘बेटा, तुम तो फालतू में शक वाली बात कह रहे हो.’’

‘‘फालतू में नहीं, पापा, जरूर दाल में कुछ काला है. मम्मी सही कहती हैं, आप के लक्षण ठीक नहीं. मैं ने भी टीवी सीरियल देखे हैं. आप के कदम बहक गए हैं. आप को परलोक की चिंता नहीं. मुझे अपने भविष्य की है,’’ बेटा गंभीरता से बोला.

‘‘तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथ में है. बेटा, पढ़नेलिखने में दिल लगाओ,’’ बाप ने समझाया.

‘‘मैं पढ़ने में दिल लगाऊं और आप…’’ कहतेकहते बेटा रुक गया.

बाप सोच रहा था. बेटे को डांटूं या समझाऊं. तभी उस की निगाह बेटे के पैर पर गई. अपना नया जूता बेटे के पैर में देख पहले तो उसे क्रोध आया पर अगले पल ही यह सोच कर रह गया कि बाप का जूता बेटे के पैर में आने लगा है. समझाने में ही भलाई है. फिर बोला, ‘‘तुम क्या कहना चाहते हो, बेटा?’’

बेटा मन ही मन सोच रहा था, ‘मेरा बाप बेकहम की तरह करोड़पति तो है नहीं, जो मुआवजा दे सके. न कोई सेलिब्रेटी है जिस का बदनाम हो कर भी नाम हो, न मैं आमिर की तरह अमीर हूं जो बाप से नाता तोड़ सकूं. पिताश्री घर में रहें इसी में परिवार की भलाई है. यह अकसर पैसा खींचने के लिए अच्छा है?’

प्रगटत: बेटे ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, पापा, बाहर जा रहा था. 100 रुपए दे दीजिए.’’

‘‘100 रुपए,’’ बाप दम साध कर बोला, ‘‘कल ही तो दिए थे. अब फिर…’’ पर उस ने समझौता करने में ही भलाई समझी. 100 रुपए देते हुए उस ने मुसीबत से छुटकारा पाया.

अब जेब खाली थी. अपना कार्यक्रम स्थगित किया, शयनकक्ष में झांका. पत्नी दूरदर्शन देखने में व्यस्त थी. पत्नी के मनोरंजन कार्यक्रम में व्यवधान डालने के परिणाम की कल्पना कर ही वह सिहर उठा. वह बाप से पति बनने की प्रक्रिया से गुजर रहा था. चुपचाप किचन में चाय बनाने लगा. पत्नी के व्यस्त कार्यक्रम के मध्य उसे चाय पिला कर पतिधर्म निभाने का विचार करने लगा. तभी बरतन गिरने की आवाज से चौंकी पत्नी की चिल्लाहट गूंजी, ‘‘पप्पू, क्या खटरपटर मचा रखी है? क्लाइमेक्स बरबाद कर दिया.’’

‘‘जी, पप्पू नहीं पप्पू का पापा,’’ पति ने भय से उत्तर दिया.

‘‘कितनी बार मना किया कि किचन में संभल कर काम करो. 20 साल में कुछ नहीं सीख पाए. तुलसी की साड़ी देखो, एक एपीसोड में 6 बदलती है और मैं 6 माह से यही रगड़ रही हूं. मेरे भाग्य में तुम्हीं लिखे थे,’’ पत्नी ने विषय बदल दिया.

‘‘अरे भाग्यवान, क्यों नाराज होती हो. लो, मेरे हाथ की चाय पियो,’’ पति चापलूसी के स्वर में बोला.

‘‘हाय राम, पूरा दूध डाल दिया. फिर भी चाय है या काढ़ा,’’ पत्नी चाय सुड़कते हुए बोली.

‘‘दवा समझ कर पी लो, मैं तो 20 साल से पी रहा हूं.’’

‘‘मेरे हाथ की चाय तुम्हें काढ़ा लगती है, तो कल से तुम्हीं बनाओ.’’

‘‘बुरा मान गईं. मैं तो रोज बनाता हूं. क्या देख रही हो, कुमकुम…’’

‘‘सीरियल का नाम भी याद है. मुझे बदनाम करते हो, देख लो मजेदार है.’’

‘‘नहीं, मुझे काम है,’’ कहते हुए पति कमरे से बाहर निकलने लगा.

‘‘कांटा लगा…देखोगे?’’

जब से आकाशीय तत्त्व ने दूरदर्शन के माध्यम से गृहप्रवेश किया है, दिन में चांद दिखने लगा है और रात में सूरज या यों कहें कि दिन में सोते हैं, रात में टीवी देखते हैं. घर में सभी की समयसारणी निश्चित है कि कौन कब क्या देखेगा. बच्चे पढ़ाई सीरियल के हिसाब से करते हैं. खाने का समय बदल ही गया है. जब पत्नी के जायके का सीरियल नहीं आता तभी खाना मिलता है. खाने का जायका भी सीरियल के जायके पर निर्भर हो गया है. रसपूर्ण सीरियल के मध्य ठंडा व नीरस और नीरस सीरियल के मध्य गरम और रसपूर्ण भोजन मिलता है. दूरदर्शन ने नई पीढ़ी को अत्यधिक समझदार बना दिया है. वे मम्मी से मासूमियत से माला-डी के बारे में पूछते हैं. वयस्कों के चलचित्र भोलेपन से देखते हैं.

हमारी कथा के नायक पति, जो कभीकभी बाप बन जाते हैं, क्रोधित होते हुए घर में प्रवेश करते हैं, ‘‘कहां है पप्पू, सूअर का बच्चा?’’

‘‘मैं यहां हूं, पापा.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ? क्यों आसमान सिर पर उठाए हो?’’ पत्नी ने हस्तक्षेप किया.

‘‘पूछो इस से, मोटरसाइकिल पर लिए किसे घुमा रहा था?’’

‘‘किसे घुमा रहा था. मेरी सिस्टर थी ललिता,’’ बेटे ने निर्भीक हो कर उत्तर दिया.

‘‘लो, एक नई सिस्टर पैदा हो गई. मुझे तो मालूम नहीं, तुम्हारी मम्मी से ही पूछ लेते हैं,’’ बाप ने बेटे की मां की ओर देखा.

‘‘हाय राम, यह भी दिन देखने थे. पहले बेटे पर, अब मुझ पर शक करते हो? मेरी भी अग्निपरीक्षा लोगे? यह सब सुनने के पहले मैं मर क्यों नहीं गई,’’ पत्नी ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा.

‘‘देखो मम्मी, पापा की बुद्धि कुंठित है, सोच दकियानूसी है, पुराने जमाने के आदमी हैं, दुनिया मंगल पर पहुंच रही है और आप हैं कि चांद पर अटके हैं. जरा आंखें खोलिए, पापा,’’ बेटे ने समझाया.

‘‘तुम ने मेरी आंखें खोल दीं, बेटे, अभी तक अंधा था. अब समझ आया, साहिबजादे क्या गुल खिला रहे हैं.’’

‘‘पापा, अब गुल नहीं खिलते, ईमेल खुलते हैं, चैटिंग होती है. सुपर कंप्यूटर के जमाने में आप स्लाइड रूल खिसका रहे हैं. बदलिए आप. मुझ से चाहते क्या हैं?’’ बेटे ने पूछा.

‘‘मैं क्या चाहूंगा? तुम अच्छी तरह पढ़लिख कर नाम कमाओ, बस.’’

‘‘पढ़लिख कर आप जैसी नौकरी करूं, यही न?’’

‘‘मैं ने यह नहीं कहा. कुछ भी अच्छा करो, कोई रोलमाडल चुनो. कुछ सभ्यता सीखो,’’ बाप ने समझाया.

‘‘आप की पीढ़ी से किसे चुनूं? गांधी, नेहरू, सुभाष, शास्त्री देखे नहीं. जे पी, विवेकानंद के बारे में बस, सुना है. आप के जमाने के रोलमाडल कौन हैं? फिल्म वाले, डकैत, पैसे वाले, रसूख वाले, दोहरे चरित्र के नेता, अफसर…आप बताएं किस जैसा बनूं?’’

‘‘तुम बहुत बातें करने लगे हो, यही सीखा है. तुम्हारे दादा के सामने मेरी आवाज नहीं निकलती थी.’’

‘‘आप कुछ नहीं कहते थे…क्यों?’’ बेटे ने प्रश्न किया.

‘‘मैं अनुशासित था.’’

‘‘आप यह नहीं कहेंगे, दादाजी अनुशासनप्रिय थे. आप के सामने बात करता हूं तो आप कहते हैं, मैं उद्दंड हूं. यह नहीं कहते कि आप अनुशासनप्रिय नहीं. आप की पीढ़ी अनुशासनप्रिय नहीं. परिणाम हमारी पीढ़ी है,’’ बेटे ने अपना पक्ष रखा.

‘‘कहां की बकबक लगा रखी है?’’ बाप खीजते हुए बोला.

‘‘आप कहें तो प्रवचन. हम कहें तो बकबक. यही आप की पीढ़ी का दोहरा चरित्र है. आप विचार करें, मैं बाहर मूड फे्रश कर के आता हूं,’’ कहता हुआ बेटा उठा और बाहर चला गया.

बाप सोच रहा था, ‘नई पीढ़ी में गजब का आत्मविश्वास है. पप्पू बात सही कह रहा था या गोली खिला कर चला गया?’

ये भी पढ़ें- कशमकश: क्या बेवफा था मानव

REVIEW: जानें कैसी है Tiger Shroff की Heropanti 2

रेटिंगः आधा स्टार

निर्माताः साजिद नाड़ियादवाला

निर्देशकः अहमद खान

कलाकारः टाइगर श्राफ,तारा सुतारिया, नवाजुद्दीन सिद्दिकी,

अवधिः दो घंटे  22 मिनट

2014 की सफल फिल्म ‘‘हीरोपंती’’ से अपने कैरियर की शुरूआत की थी,जिसका लेखन संजीव दत्ता,निर्देशन सब्बीर खान और निर्माण साजिद नाड़ियादवाला ने किया था. अब पूरे आठ वर्ष बाद उसी फिल्म का सिक्वअल ‘‘हीरोपंती’’ 29 अप्रैल को सिनेमाघरो में पहुंची है. फिल्म ‘‘हीरोपंती 2’’ के  निर्माता साजिद नाड़ियादवाला ने खुद ही इस बार कहानी लिखी है. यह बात गले नहीं उतरती कि साजिद ने क्या सोचकर अपनी इस बकवास कहानी पर फिल्म के निर्माण पर पैसे खर्च कर डाले. इससे ज्यादा बकवास फिल्म अब तक नही बनी है.

एक फिल्म के निर्माण में तकरीबन सौ से अधिक लोगों की मेहनत लगी होती है. एक फिल्म की सफलता व असफलता का असर हजार से अधिक परिवारों की रसोई पर पड़ता है. इस वजह से अमूमन मैं फिल्म की समीक्षा लिखते दर्शक फिल्म देखने न जाएं,ऐसा लिखने से बचने का प्रयास करता हॅूं,मगर ‘‘हीरोपंती 2’’ देखने का अर्थ सिरदर्द मोल लेेन के साथ ही समय व पैसे का क्रिमिनल वेस्टेज ही होगा.

कहानीः

लैला जादूगर (नवाजुद्दीन सिद्दिकी ) की आड़ में पूरे विश्व के साइबर क्राइम के मुखिया हैं. जिसने योजना बनायी है कि 31 मार्च के दिन भारत के सभी बैंको में सभी नागरिको के बैंक एकाउंट को हैककर सारा धन अपने पास ले लेंगें. बबलू( टाइगर श्राफ )दुनिया का सबसे बड़ा हैकर है,जिसकी सेवाएं कभी सीबाआई प्रमुख खान( जाकिर हुसेन ) के लिया करते थे. अब बबलू अपनी सेवाएं लैला को दे रहे हंै. लैला की बहन इनाया( तारा सुतारिया) ,बबलू से प्यार करती है. फिर बबलू का हृदय परिवर्तन भी होता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म ‘‘हीरोपंती 2’’ में ऐसा कुछ नही है,जिसे अच्छा कहा जा सके. घटिया कहानी,घटिया पटकथा और घटिया निर्देशन अर्थात फिल्म ‘‘हीरोपंती 2’’ है. लेखक व निर्देशक के दीमागी दिवालिएपन की हालत यह है कि एम्बूलेंस ड्रायवर का मकान अंदर से किसी आलीशान बंगले से कमतर नही है. टाइगर श्राफ की पहचान बेहतरीन डांसर व एक्शन दृश्यों को लेकर होती है,लेकिन इस फिल्म में यह दोनो पक्ष भी कमजोर हैं. फिल्म में कई एक्शन दृश्य ऐसे है, जिन्हे देखते हुए लगता है हम मोबाइल पर एक्शन का वीडियो देख रहे हो. मजेदार बात यह है कि एक्शन दृश्य देखकर हंसी आती है. एक व्यक्ति दोनों हाथांे में मशीनगन पकड़कर टाइगर श्राफ पर गोलियां चला रहा है,मगर टाइगर पर असर नही पड़ता. तो वहीं कहीं किसी भी दृश्य के बाद कोई भी गाना ठूंस दिया गया है. फिल्म में एक भी दृश्य ऐसा नही है,जिसमें कुछ नयापना हो. सब कुद बहुत बचकाना सा है. अब तीन मिनट के सिंगल गानों के जो म्यूजिक वीडियो बन रहे हैं,उनमें भी एक अच्छी कहानी होती है,मगर ‘हीरोपंती 2’’ की पटकथा इतनी खराब लिखी गयी है कि दर्शक अपना माथा पीटता रहता है.

अहमद खान अच्छे नृत्य निर्देशक रहे हैं,मगर बतौर निर्देशक वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. वैसे अहमद खान ने इससे पहले ‘बागी 2’ और ‘बागी 3’ जैसी अर्थहीन फिल्मंे  निर्देशित कर चुके हैं.

फिल्म में एक दृश्य पांच सितारा होटल के अंदर से शुरू होता है,जहां इयाना (तारा सुतारिया ) बबलू (टाइगर श्राफ ) की होटल के बाहर बीच सड़क पर अपने आदमियों से बबलू की पैंट उतरवाकर  पीठ के नीचे कमर पर तिल की तलाश करवाती है. यह अति भद्दा व वाहियात दृश्य है. इसे करने के लिए टाइगर श्राफ क्या सोचकर तैयार हुए,पता नही. जबकि इस दृश्य से कहानी का कोई लेना देना नही है.

इसके संवाद भी अति घटिया हैं. फिल्म में नवाजुद्दीन का संवाद है-‘‘यह तुम्हारी मां है और यह मेरी बहन है. अब तुम दोनो जाकर मां बहन करो. ’’

लैला यानी कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी के कम्प्यूटर रूम में सीसीटीवी कैमरा लगा है,जो कि अजीब ढंग से घूमता रहता है. यह कैमरा क्यों लगा हुआ है,किस पर निगाह रख रहा है,पता ही नहीं चलता.

अभिनयः

इनाया के किरदार में तारा सुतारिया का अभिनय अति घटिया है. पूरी फिल्म में वह विचित्र से कपड़े पहने,विचित्र सी हरकतें करते हुए नजर आती है.

जादूगर लैला के किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अब तक का सबसे निम्न स्तर का अभिनय किया है. वह कभी ट्रांसजेंडर की तरह हाव भाव करते व चलते नजर आते हैं,तो कभी कुछ अलग ही चाल ढाल होती है. नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने इस फिल्म में क्यों काम किया,यह समझ से परे है. शायद वह सिर्फ पैसा बटोरने के चक्कर में कला व अभिनय को तिलांजली देने पर उतारू हो चुके हैं.

टाइगर श्राफ हर दृश्य में अपना सपाट सा चेहरा लिए हुए नजर आते हैं. उनके चेहरे पर कहीं कोई भाव नहीं आते. बेवजह उछलकूद करते हुए नजर आते हैं.

अफसोस की बात यह है कि इस बकवास फिल्म के गीतों को संगीत से ए आर रहमान ने संवारा है. फिल्म के गाने घटिया हैं और बेवजह फिल्म के बीच बीच में ठॅूंसे गए हैं. फिल्म के अंत में ‘व्हिशल बाजा’ प्रमोशनल गाने में कृति सैनन को देखकर लगा कि शायद अब उनका कैरियर पतन की ओर जाने लगा है.

ये भी पढ़ें- Anupama-Anuj की रिंग हुई गायब, वनराज पर लगेगा सगाई में इल्जाम

Anupama-Anuj की रिंग हुई गायब, वनराज पर लगेगा सगाई में इल्जाम

सीरियल अनपुमा में फैमिली ड्रामा दर्शकों को बेहद पसंद आ रहा है. जहां फैंस #MaAn के एक होने से बेहद खुश हैं तो वहीं अनुपमा अनुज की खुशियों में ग्रहण लगाने के लिए तैयार बैठे वनराज, राखी दवे और बा पर दर्शकों को गुस्सा आ रहा है. इसी बीच अनुज-अनुपमा की सगाई में एक बार फिर बवाल देखने को मिलने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

राखी करेगी अनुपमा की बेइज्जती करने की कोशिश

अब तक आपने देखा कि सगाई में राखी एक बार फिर ताना कसती है. हालांकि अनुपमा उसे करारा जवाब देती है. वहीं सगाई सेलिब्रेशन की शुरुआत होते ही अनुपमा, लीला का आशीर्वाद लेती है. लेकिन वह मना कर देती है, जिसे देखकर बापूजी चिढ़ जाते हैं. वहीं राखी दवे नजर उतारने के नाम पर अनुपमा और अनुज पर पैसे फेंकती हुई दिखती है, जिसका जवाब देते हुए अनुपमा पैसे उठाते हुए कहती है कि इन पैसों से गरीबों की मदद करनी चाहिए.

सगाई की अंगूठी होगी गायब

 

View this post on Instagram

 

A post shared by STAR_PLUS (@starplusserial_1)

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा से बेइज्जती होकर राखी वे गुस्से में नजर आएगी. वहीं अनुज, अनुपमा के इस कदम पर उसकी तारीफ करेगा. वहीं दोनों अपनी सगाई में डांस करते हुए भी नजर आएंगे. हालांकि वनराज इस बात से नाखुश नजर आएगा. इसी के साथ आप देखेंगे कि सगाई में अंगूठी पहनाने की रस्म शुरु होगी. जहां पर अनुपमा, अनुज की सगाई की अंगूठियां गायब हो जाएंगी. वहीं दोनों को वनराज पर शक होगा, जिसका जवाब देते हुए वनराज अपना बचाव करते हुए कहेगा कि वह इतना अनुमानित नहीं हो सकता कि सगाई की अंगूठी गायब होने का अंदाजा लगा ले. हालांकि किसी तरह सगाई की अंगूठियां मिल जाएंगी.

बता दें, सीरियल अनुपमा का प्रीक्ववल अनुपमा नमस्ते अमेरिका ओटीटी पर काफी धूम मचा रहा है. दर्शकों को ये नया ट्रैक काफी पसंद आ रहा है.

ये भी पढ़ें- लता मंगेशकर को मिलेगी ‘नाम रह जाएगा’ में श्रद्धांजलि, पढ़ें खबर

लता मंगेशकर को मिलेगी ‘नाम रह जाएगा’ में श्रद्धांजलि, पढ़ें खबर

सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के गाने हमेशा से ही पूरे विश्व में प्रचलित है, उनके गानों की लिस्ट को गिनना असंभव है, 25 हज़ार से अधिक गीत गाने वाली मृदुभाषी और शांत स्वभाव की लता को ट्रिब्यूट देना अपने आप में एक बड़ी बात है, जिसे सभी बड़े-बड़े गायकों ने उनके गानों को गाकर श्रद्धांजलि देने की कोशिश की. स्टार प्लस पर इस शो को ‘नाम रह जाएगा’ के तहत किया जाएगा. इस शो की ज़ूम प्रेस कांफ्रेंस में सभी ने बहुत ही संजीदगी से भाग लिया और लता मंगेशकर के साथ बिताये उनके अनुभव और सीख को शेयर किया. इसमें 18 जाने-माने गायक कलाकार उनके गीतों को गाकर अपने तरीके से श्रद्धांजलि देंगे, जिसमें सोनू निगम, अरिजीत सिंह, शंकर महादेवन, नितिन मुकेश, नीति मोहन, अलका याज्ञनिक, साधना सरगम, उदित नारायण, शान, कुमार शानू, अमित कुमार, जतिन पंडित, जावेद अली, ऐश्वर्या मजूमदार, स्नेहा पंत, पलक मुच्छल और अन्वेषा मंच पर साथ मिलकर लता मंगेशकर के सबसे प्रतिष्ठित गीत गाकर श्रद्धांजलि देंगे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by StarPlus (@starplus)

प्रेस कांफ्रेंस के दौरान संगीतकार जतिन पंडित ने कहा कि संगीत के इसी दौर को गोल्डन पीरियड कहा जाता है और ये दौर अब चला गया है, उनकी प्योरिटी उनके संगीत में थी, जो आज भी सुनने पर सुकून देती है. लता जी की डिक्शन, गानों में जगह को भरना, र और श को इतनी अच्छी तरीके से प्रयोग करती थी, जो आज तक मैंने कहीं देखा नहीं है. इसके अलावा उनकी लो नोट्स, हाई नोट्स आदि को सहजता के साथ कर लेती थी. मैंने कभी कोई परेशानी उन्हें गाते हुए नहीं देखा है, यहाँ ये भी कहना जरुरी है कि उनकी आवाज के साथ-साथ उनके साथ में रहने वाले कम्पोजर, राइटर भी बहुत अच्छा काम करते थे, उस दौर की संगीतकार सलिल चौधरी, मदन मोहन, शंकर जयकिशन आदि सभी उनके सुर को एक अलग दिशा दी है.आज वैसी कोम्पोजीशन देना, उसे तराशना बहुत मुश्किल है. सारी चीजें जब एक साथ इकट्ठी हुई, तब एक बुनियाद बनी, जिसको हम सारी जिंदगी चलने पर भी नहीं पा सकते. मैंने लता जी के साथ कई काम किये है, संगीत के अलावा उन्हें ह्यूमर बहुत पसंद है. मैंने 9 साल की उम्र में उनके साथ गाना गया है. बचपन में मैं अपने पिता के साथ उनके घर जाया करता था, क्योंकि इनका पूरा परिवार संगीत को लेकर चर्चा करते थे. गानों के साथ-साथ उन्हें सेंस ऑफ ह्यूमर भी बहुत अच्छा था और कई खुबसूरत म्यूजिकल जोक्स सुनाया करती थी. मेरा अहो भाग्य है कि मैंने लताजी की संगीत को सुना और उनके साथ गाया भी है.

साधना सरगम कहती है कि मैं जब भी उनके साथ मिली हूँ, वह दिन मेरे लिए स्पेशल था. मेरे पाँव छूते ही वह मेरी हाल-चाल पूछती रहती थी. उनका प्यार हमेशा मेरे ऊपर रहा और जनसे भी मिलती थी उन्हें आशीर्वाद देती थी. रहमान के एक कॉन्सर्ट में वह मुझसे मिली और रियाज करने के बारें में पूछी थी, उन्होंने रियाज को सफलता का मूल मन्त्र माना है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by StarPlus (@starplus)

सिंगर शान कहते है कि आज जब गाना गाते है तोलोग उसे याद नहीं रखते, जबकि पुराने गीत आज सभी सुनते है. मेरे  मेरे पिता का लताजी के साथ बहुत अच्छा सम्बन्ध थे, लताजी को गाते वक्त सांस की आवाज कंट्रोल करने की क्षमता अद्भुत थी. मैं इसे सीखने की कोशिश कर रहा हूँ. गाना गाते समय साँस को छुपाकर लेना और उसकी आवाज माइक में न आना एक अद्भुत कला है.

नितिन मुकेश भावुक होकर कहते है कि कोविड में उन्होंने मुझे सहारा दिया मेरा ख्याल रखा, क्योंकि मुझे कोविड हो गया था. इसके बाद उन्होंने मुझे एक गिफ्ट देने की बात कही थी,  लेकिन मैं उनसे मिल नहीं पाया, क्योंकि वे पूरी तरह से आइसोलेशन में थी. उनका प्यार, स्नेह हमेशा रहा है, जिसे हम भूल नहीं सकते. संगीत लताजी के साथ शुरू होता है और उनके साथ ही ख़त्म हो गया है, क्योंकि संगीत और लताजी दोनों ही आम है.

ये भी पढ़ें- फिल्मी कहानी से कम नही है Alia-Ranbir की Love Story, पढ़ें खबर

दरबदर- भाग 1: मास्साब को कौनसी सजा मिली

इस बार मायके गई तो छोटी बहन ने समाज की खासखास खबरों के जखीरे में से यह खबर सुनाई, ‘‘बाजी, आप के सईद मास्साब की मृत्यु हो गई.’’

‘‘कब? कैसे?’’

पिछले महीने की 10 तारीख को. बड़ी तकलीफ थी उन्हें आखिरी दिनों में. पीठ में बैडसोर हो गए थे. न लेट पाते थे न सो पाते थे. रातरातभर रोतेरोते अपनी मौत का इंतजार करते पूरे डेढ़ साल बिताए थे उन्होंने.

इस दर्दनाक मौत की खबर ने मुझे रुला दिया. मैं ने आंसू पोंछते हुए पूछा, ‘‘लेकिन उन की तो 4-4 बीवियां, 6 बच्चे और एक छोटा भाई भी तो था न?’’

‘‘बाजी, जब बुरे दिन आते हैं न, तो साया भी साथ छोड़ देता है. उन की पहली बीवी तो 3 साल पहले ही

दुनिया से चली गई थी. दूसरी, तीसरी, चौथी बीवियों ने झांक कर भी नहीं

देखा. आखिरी वक्त में भाई ही भाई के काम आया.’’

यह सुन कर मुझे दिली तकलीफ पहुंची.

सईद मास्साब 10वीं क्लास में अंजुमन स्कूल में मेरे इंग्लिश के टीचर थे. लंबेचौड़े सांवले रंग के मास्साब के फोटोजैनिक चेहरे पर मोटे फ्रेम के चश्मे के नीचे बड़ीबड़ी आंखों में चमक हमेशा सजी रहती. अपने हेयरस्टाइल आर ड्रैसिंग सैंस के लिए स्टूडैंट्स के बीच बेहद लोकप्रिय थे वे. लड़कियां अकसर आपस में शर्त लगातीं, ‘देखना, सईद मास्साब आज कुरतापजामा के साथ कोल्हापुरी चप्पल पहन कर आएंगे.’ सुन कर दूसरी लड़की झट बात काटती हुई कहती, ‘नहीं, आज मास्साब जरूर पैंटशर्ट के साथ बूट पहन कर आएंगे.’ कोईर् कहती, ‘नहीं, मास्साब आज सलवारकुरते के साथ काली अचकन और राजस्थानी जूतियां पहन कर आएंगे चर्र…चूं करने वाली.’

जो लड़की शर्र्त हार जाती वह इंटरवल में पूरे ग्रुप को गोलगप्पे खिलाती. मास्साब इतने खुशमिजाज थे कि दर्दीली पोयम पढ़ाते वक्त भी उन के होंठों पर मुसकान की लकीर दिखाई पड़ती. लेकिन जब हम डिक्शनरी में वर्डमीनिंग देखते और गाइड में उस का अनुवाद पढ़ते तो मास्साब की मुसकान के पीछे छिपे गूढ़ अर्थ को समझने में महीनों सिर खपाते रहते.

‘मास्साब, आज मैं घर से बटुआ लाना भूल गई. घर वापस जाने के लिए रिकशे के पैसे नहीं…’ कोई लड़की कहती.

‘कोई बात नहीं, ये लीजिए 5 रुपए, ठीक से जाइएगा, समझीं,’ कहते हुए अपने पर्स की जिप खोलने लगते.

‘मास्साब, मेरे अब्बू के गैरेजमालिक की मां मर गई. मेरे अब्बू को तनख्वाह नहीं मिल सकी, इसलिए फीस नहीं ला सका.’ कोई लड़का हकलाते हुए यह कहता तो मास्साब कौपियों से सिर उठाए बिना, उस की सूरत देखे बगैर ही कहते, ‘कोई बात नहीं, मैं भर दूंगा, आप की फीस. नाम क्या है?’

‘फैयाज मंसूरी.’

‘ठीक है, जब अब्बू को तनख्वाह मिले तब ले आना,’ कह कर मास्साब चपरासी को बुला कर उस लड़के की फीस औफिस में उसी वक्त जा कर जमा करने के लिए नोट थमा देते. लेकिन पूरे साल लड़के के अब्बू को न तो तनख्वाह मिलती, न मास्साब को कभी अपने दिए गए पैसे याद रहते.

इंग्लिश के अच्छे टीचर के अलावा सईद मास्साब स्कूल की कल्चरल, स्पोर्ट्स और सोशल ऐक्टिविटीज में हमेशा आगे रहते. नौजवान खून में ऊंचे ओहदे की बुलंदियां छू लेने के लिए मेहनतकशी को हथियार बनाने की पुख्ता सोच उन के हर काम के लिए तत्पर रहने वाले किरदार से साफ झलकती. साइंस एग्जीबिशन में अपने मौडल ले कर दूसरे स्कूल जाना है बच्चों को, तो सईद मास्साब बस के इंतजाम से ले कर मौडल्स पैक करने, उन के डिटेल्स को टाइप कराने तक के पूरे काम अपने सिर ले लेते.

बच्चों को किसी टुर्नामैंट में जाना है तो सईद मास्साब बच्चों के स्पोर्ट्स ड्रैस, किट्स, फर्स्टएड बौक्स खरीदते हुए घर आने में लेट हो जाते तो मुंह फुला कर बैठी बीवी की तानाकशी भी झेलते. ‘पिं्रसिपल के बराबर तनख्वाह मिलती तो भी सब्र आ जाता. चौबीसों घंटे, घरबार, बच्चे सौदासुलूफ को भूले… आप बस, अंजुमन स्कूल के ही हो कर रह गए हैं. घर, बच्चों का तो खयाल ही नहीं.’

जुलाई के महीने में एक नई टीचर ने जौइन किया था. वह कुंआरी थी. कुछ महीनों के बाद पता चला उस की शादी तय हो गई. स्कूल में वह हाथ भरभर कर हरी रेशमी चूडि़यां और कुहनी तक मेहंदी लगा कर आईर् थी.

सालभर भी नहीं गुजरा, दुबई गए उस के शौहर ने दुबई से स्काईप पर ही टीचर को तलाक कह दिया तीन बार. रोतीबिलखती टीचर को सईद मास्साब जैसे हमदर्द का ही कंधा मिला पूरे स्कूल में दर्द का पहाड़ पिघलाने के लिए.

स्टाफरूम में अब सईद मास्साब को देख कर कानाफूसी शुरू होने लगी. ‘सुना है सईद सर जुलेखा मैडम से निकाह करने वाले हैं.’

‘तभी तो उन्हें रोज स्कूल से घर लाते, ले जाते हैं. कमाने वाली औरत पर ही सईद मास्साब पूरी हमदर्दी लुटाते हैं.’

‘क्या कह रहीं है आप?’ नसरीन मैडम चौंकी. ‘हां, सच कह रही हूं,’ आयशा मैडम बोली, ‘देखिए उन की पहली बीवी सरकारी स्कूल में टीचर हैं. दोनों की कमाई है. घर में हर तरह का ऐशोआराम है. अब मजहब के नाम पर बेसहारा को सहारा देने के बहाने सईद मास्साब को फिर एक कमाऊ औरत मिल गई है. और दूसरी बीवी पर खर्च तो करना नहीं पड़ेगा, बल्कि जरूरत पर जुलेखा मैडम उन के अकाउंट में पैसे डाल देगी.’

मुझे नजमा मैडम ने स्टाफरूम में मेरी क्लास की नोटबुक लाने भेजा था, तभी टीचर्स की ये बातें मेरे कानों में पड़़ीं तो सहज विश्वास नहीं हुआ. आता भी कैसे? हमारे बालमन पर सईद मास्साब की छवि आदर्श टीचर की छपी हुई थी.

मैं ने 12वीं पास कर ली. मेरी 2 छोटी बहनें, उस के बाद एक भाई है. मेरे अब्बू की मनिहारी की दुकान है. घर की खस्ता माली हालत ने मुझे एक प्राइवेट स्कूल में नर्सरी की टीचर बना दिया. उन्हीं दिनों मेरी स्कूल में लीव वैकैंसी पर नई टीचर आयरीन सहर ने जौइन किया. घुंघराले बालों वाली छरहरे बदन की भोले से चेहरे पर खड़ी नाक और सुडौल जिस्म वाली यह टीचर इतनी कमाल की आर्टिस्ट थी कि मिनटों में शिक्षापयोगी सहायक सामग्री बना कर क्लासरूम के शीशे वाली अलमारी में सजा देती. हम दोनों हमउम्र थे, इसलिए हाफटाइम में दोनों टिफिन के साथसाथ दिल की बातें भी शेयर करते. कुछ महीनों के बाद मैं ने गौर किया कि वह अपने पहनावे और जिस्मानी खूबसूरती के लिए बतलाए गए टिप्स पर संजीदगी से अमल करती और उस के फायदे बतला कर मुझे भी वैसा करने को कहती.

एक दिन वह स्कूल में नौर्मल दिनों से कहीं ज्यादा सजधज कर आईर् थी. मिलते ही चहकने लगी, ‘आज मेरा बौयफ्रैंड मुझे पिक करने आ रहा है,’ आयरीन ने बताया.

छुट्टी के बाद मुझे हैडमिस्ट्रैस ने बुलवा लिया. छुट्टी के आधे घंटे बाद मैं अपना बैग ले कर सड़क की तरफ बढ़ने लगी. तभी सामने का दृश्य देख कर आश्चर्यचकित रह गई. आयरीन जिन की मोटरसाइकिल पर बैठ रही थी, वे सईद मास्साब थे.

क्या ब्रेन स्ट्रोक दोबारा आने का खतरा होता है?

सवाल-

मेरी सास को एक बार ब्रेन स्ट्रोक हो चुका है. वे बहुत कमजोर हो गई हैं. क्या उन का दोबारा इस की चपेट में आने का खतरा है?

जवाब- 

उपचार के बाद भी आवश्यक सावधानियां बरतने जरूरी हैं क्योंकि एक बार स्ट्रोक की चपेट में आने पर पुन: स्ट्रोक का हमला होने की आशंका पहले सप्ताह में 11% और पहले 3 महीनों में 20% तक होती है. उन के खानपान का ध्यान रखें, उन्हें संतुलित और पोषक भोजन खिलाएं. हलकीफुलकी ऐक्सरसाइज करने या टहलने के लिए कहें. डाक्टर द्वारा सुझई दवाइयां समय पर दें.

ये भी पढ़ें-

पक्षाघात यानी ब्रेन स्ट्रोक दिमाग के किसी भाग में ब्लड सप्लाई बाधित होने या कम होने से होता है. दिमाग में औक्सीजन और पोषक तत्त्वों की कमी से ब्लड वैसेल्स यानी रक्त वाहिकाओं के बीच ब्लड क्लोटिंग की वजह से उस की क्रियाएं बाधित होने लगती है, इस कारण दिमाग की पेशियां नष्ट होने लगती है जिस से दिमाग अपना नियंत्रण खो देता है, जिसे स्ट्रोक सा पक्षाघात कहते हैं. यदि इस का इलाज समय पर नहीं कराया जाए तो दिमाग हमेशा के लिए डैमेज हो सकता है. व्यक्ति की मौत भी हो सकती है.

आज विश्व में करीब 80 मिलियन लोग स्ट्रोक से ग्रस्त हैं, 50 मिलियन से ज्यादा लोग स्थाई तौर पर विकलांग हो चुके हैं. ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के अनुसार 25% ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की उम्र 40 वर्ष है. इस बात को ध्यान में रखते हुए हर साल 29 अक्तूबर को ‘वर्ल्ड स्ट्रोक डे’ मनाया जाता है, जिस का उद्देश्य स्ट्रोक की रोकथाम, उपचार और सहयोग के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना है.

मुंबई के अपैक्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल के वरिष्ठ मस्तिष्क रोग स्पैशलिस्ट एवं न्यूरोलौजिस्ट डा. मोहिनीश भटजीवाले बताते हैं कि दुनियाभर में ब्रेन स्ट्रोक को मौत का तीसरा बड़ा कारण माना जा रहा है. केवल भारत में हर 1 मिनट में 6 लोगों की मौत हो रही है, क्योंकि यहां ब्रेन स्ट्रोक जैसी मैडिकल इमरजैंसी की स्थिति में इस के लक्षणों, कारणों, रोकथाम और तत्काल उपायों के प्रति जनजागरूकता का बहुत अभाव है जबकि ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों को तत्काल उपचार से उन के अच्छे होने के चांसेस 50 से 70% तक बढ़ जाते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जानें क्या है ब्रेन स्ट्रोक और क्या है इसका इलाज

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

12 Tips: छोटी-छोटी तारीफों में होंगे बड़े फायदे

अपनी तारीफ सुनना भला किसे अच्छा नहीं लगता? तारीफ के 2 मीठे बोल कानों में मिठास घोल देते हैं. तारीफ छोटेबड़े सभी में ऊर्जा का संचार करती है. बात पुरुषों की की जाए तो वे स्वभाव से थोड़े कड़क जरूर होते हैं पर उन के भीतर भी कहीं एक नन्हा सा दिल छिपा होता है, जो अपनी प्रशंसा सुनते ही तेजी से धड़कने लगता है.

आइए जानें कि पुरुष किस तरह की तारीफ सुनना पसंद करते हैं:

1. आज खूब जम रहे हैं:

लुक्स की तारीफ महिलाओं को ही नहीं पुरुषों को भी पसंद है. अपने ड्रैसिंग सैंस, अपने हेयरस्टाइल, अपने ब्रैंडेड जूतों को ले कर मिला कोई भी कौंप्लीमैंट पुरुषों को बेहद पसंद आता है. कपड़े खरीदने आदि में अगर कोई उन का सहयोग मांगे तो वे उसे बहुत अच्छा मानते हैं

2. यू आर वैरी सपोर्टिव:

कौंप्लीमैंट कंसीडिरेट होना, सहयोगियों के प्रति कोऔपरेटिव होना पौरुष की निशानी है. यह कौंप्लीमैंट यदि पुरुष सहकर्मियों से मिले तो सिर्फ अच्छा लगता है पर यदि महिलाएं यह कौंप्लीमैंट दें तो पुरुषों का स्वाभिमान कई गुना बढ़ जाता है, सीना गर्व से फूल जाता है.

3. आप का सैंस औफ ह्यूमर बहुत अच्छा है:

चतुर, हाजिरजवाब, खुशमिजाज पुरुष सभी को अच्छे लगते हैं. हर महफिल की वे शान होते हैं. यदि यह कौंप्लीमैंट अपने जानने वालों, मिलने वालों से मिले तो पुरुष गद्गद हो उठते हैं.

4. लविंग ऐंड केयरिंग:

जीवनसाथी या बच्चे, फ्रैंड्स अथवा कुलीग्स लविंग और केयरिंग कहें तो पुरुषों का आत्मबल बढ़ जाता है. परिवार के लिए वे जो कुछ भी करते हैं उस के लिए उन्हें यदि घर के सदस्य केयरिंग मान लें तो बस इतना ही काफी है.

5. ऐक्सीलैंट इन वर्क:

अपनी फील्ड में यदि पुरुष को उस का बौस, सहकर्मी या कोई सीनियर सर्वश्रेष्ठ कह दे या उस के प्रयासों की सराहना करे तो वह प्रफुल्लित हो उठता है. अपने कार्य की सराहना हर पुरुष में स्वाभिमान व कौन्फिडैंस भर देती है.

6. यू आर रीयली वैरी टैलेंटेड:

नौकरी, व्यापार के अतिरिक्त यदि कोई गुण आप में है और उस में आप उम्दा हैं, तो कोई उसे रेकगनाइज करे तो बहुत अच्छा लगता है. समाजसेवा, गाना, लिखना, खेलना किसी भी क्षेत्र में अपनी प्रतिभा की स्वीकृति न केवल पुरुषों को खुशी देती है, बल्कि उन्हें और अच्छा करने को भी लालायित करती है.

7. लुकिंग वैरी हौट टुडे:

महिलाओं की तरफ से खासतौर पर गर्लफ्रैंड की ओर से मिला यह कौंप्लीमैंट पुरुषों को घंटों, हफ्तों, महीनों तक खुश रख सकता है. आज के जमाने में यदि यह तारीफ सहकर्मियों से भी सुनने को मिले तो पुरुष उसे बेहद अच्छा मानते हैं.

8. आप अपनी उम्र से कम दिखते हैं:

पुरुषों को भी अपनी उम्र से कम दिखना अच्छा लगता है और यह कौंप्लीमैंट अगर महिलाओं से मिले तो सोने में सुहागा. किसी भी उम्र के पुरुष को अपनी उम्र से छोटा दिखना हमेशा पसंद होता है.

9. आप को तो बहुत लोग पसंद करते हैं:

कहने वाला न केवल इस से अपनी चाहत दर्शाता है, बल्कि वह खास व्यक्ति कितना प्रसिद्ध है यह भी बताता है. पुरुषों को ऐसे जुमले बहुत पसंद होते हैं. इस से उन की काम करने की शक्ति दोगुनी हो जाती है.

10. आप बड़े टैक्नोसेवी हैं:

गैजेट्स पर मास्टरी आज के जमाने में एक अतिरिक्त टैलेंट है. यदि पुरुष कंप्यूटर, लेटैस्ट ऐप्लीकेशंस, कैमरा, मोबाइल के विषय में कौंप्लीमैंट पाते हैं, तो इस से वे अच्छा फील करते हैं और उन की कार्यक्षमता भी निखरती है.

11. आप विश्वास के योग्य हैं:

किसी भी पुरुष को यह सुन कर बेहद अच्छा लगता है कि लोग उस पर विश्वास करते हैं. फिर चाहे बात चरित्र की हो या काम की, रिश्ते निभाने की हो या सहयोग करने की.

12. यू आर वैरी कूल:

कूल कहलाना आज के जमाने में कौंप्लीमैंट है. यह स्मार्टनैस और धैर्य को दर्शाता है. वर्कप्लेस पर, घर पर, कहीं भी यदि आप कूल कहे जाते हैं तो इस का मतलब आप में कोई बात है.

अकेले में पति की तारीफ पत्नी करे तो अच्छा लगता है, पर यदि सोसाइटी में सब के सामने पत्नी पति की तारीफ करे तो समझिए जीवन सुधर गया.

मेरा पति सिर्फ मेरा है: भाग-2

तब तक ससुरजी उसे समझाने आ गए, “सच कहूं बहू तो उस ने काफी कुछ किया है हमारे लिए. मेरे हार्ट की सर्जरी कराने में भी पानी की तरह पैसे बहाए. इन सब के बदले भुवन का थोड़ा वक्त ही तो लेती है. सुबह भुवन 1 घंटे जल्दी चला जाता है ताकि उस के साथ समय बिता सके और रात में थोड़ा अधिक रुक जाता है. बस, इतनी ही डिमांड है उस की.”

“यदि टीना को भुवन इतना ही पसंद था तो उसी से शादी क्यों नहीं करा दिया आप लोगों ने? मेरी जिंदगी क्यों खराब की?”

“बेटा टीना शादीशुदा है. उस की शादी भुवन से हो ही नहीं सकती.”

शादी के दूसरे दिन ही अपनी जिंदगी में आए इस कड़वे अध्याय को पढ़ कर अनुषा विचलित हो गई थी. सोचा मां को हर बात बता दे और सब कुछ छोड़ कर मायके चली जाए. मगर फिर मां की कही बातें याद आ गईं कि हमेशा धैर्य बनाए रखना.

आधे घंटे में भुवन वापस लौट आया. खापी कर और बरतन निबटा कर जब अनुषा अपने कमरे में पहुंची तो देखा भुवन टीना से बातें कर रहा है. अनुषा को देखते ही उस ने फोन काट दिया और अनुषा को बांहों में भरने लगा. अनुषा छिटक कर अलग हो गई और उलाहने भरे स्वर में बोली,” मेरी सौतन से बातें कर रहे थे?”

भुवन हंस पड़ा,”अरे यार सौतन नहीं है वह. बस मुझ पर मरती है और मैं भी उस के साथ थोड़ाबहुत हुकअप कर लेता हूं. बस और क्या. खूबसूरत है साथ चलती है तो अपना भी स्टैंडर्ड बढ़ जाता है. ”

बेशर्मी से बोलते हुए भुवन सहसा ही सीरियस हो गया,” देखो अनुषा, जीवनसाथी तो तुम ही हो मेरी. मेरे जीवन का हर रास्ता लौट कर तुम्हारे पास ही आएगा.”

‘वह तो ठीक है भुवन मगर ऐसा कब तक चलेगा? इस टीना को तुम में इतनी दिलचस्पी क्यों है ? कहीं न कहीं तुम भी उसे भाव देते होगे तभी तो उसे आगे बढ़ने का मौका मिलता है.”

“देखो यार, मेरा तो एक ही फंडा है, थोड़ी खुशी मुझे मिल जाती है और थोड़ी उसे. इस में गलत क्या हैऔफिस में मेरा पोजीशन बढ़ाती है और मैं उसे थोड़ा प्यार दे देता हूं. बस, इस से ज्यादा और कुछ नहीं. दिल में तो केवल तुम ही हो न…” कह कर भुवन ने लाइटें बंद कर दीं और न चाहते हुए भी अनुषा को समर्पण करना पड़ा.

समय इसी तरह निकलने लगा. लगभग रोजाना ही टीना घर आ धमकती.

वह जब भी आती भुवन के साथ फ्लर्ट करती, अदाएं बिखेरती और अनुषा पर व्यंग कसती.

एक दिन भुवन के बालों को अपनी उंगली में घुमाते हुए शोख आवाज में बोली,” एक राज बताऊं अनुषा, तुम्हारे काम आएगा. ”
अनुषा ने कोई जवाब नहीं दिया.

मगर टीना ने बोलना जारी रखा,” पता है, भुवन कब खुद पर काबू नहीं रख पाता?”

“कब?” भुवन ने टोका तो हंसते हुए टीना बोली, “जब कोई लड़की हलके गुलाबी रंग की नाइटी पहन कर उस के करीब जाए. फिर तो भुवन का खुद पर भी वश नहीं चलता.”

सुन कर भुवन सकपका गया और टीना हंसती हुई बोली, “वैसे अनुषा, एक बात और बताऊं,” भुवन के बिलकुल करीब पहुंचते हुए टीना ने कहा तो अनुषा का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा.

अनुषा को और भी ज्यादा जलाती हुई टीना बोलने लगी,” काले टीशर्ट और ग्रे जींस में तुम्हारा पति इतना हैंडसम लगता है कि बस फिर दुनिया का कोई भी पुरुष तुम्हारे पति के आगे पानी भरे. ”

अनुषा ने कोई जवाब नहीं दिया मगर टीना ने अपने फ्लर्टी अंदाज में बोलना जारी रखा,” जानते हो भुवन, तुम्हारी कौन सी अदा और कौन सी चीज मुझे अपनी तरफ खींचती है?”

अनुषा का गुस्सा देख भुवन टीना के पास से उठ कर दूर खड़ा हो गया तो नजाकत के साथ उस के करीब से गुजरती हुई टीना बोली,” यह तुम्हारा सब जान कर भी अंजान बने रहने की अदा. तोबा दिल का सुकून छिन जाता है जब तुम्हारी निगाहों में अपनी मोहब्बत देखती हूं. चलो अब चलती हूं मैं वरना कोई गुस्ताखी न हो जाए मुझ से…”

इस तरह की बेशर्मियां टीना अकसर करती.

हनीमून पर जाने से 2 दिन पहले की बात है. उस दिन रविवार था. भुवन सुबह से ही अपने कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा था. अनुषा दोपहर के खाने की तैयारियों में लगी थी. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो अनुषा ने जा कर दरवाजा खोला. सामने टीना खड़ी थी. खुले बाल, स्लीवलैस बौडीहगिंग टौप और जींस के साथ डार्क रैड लिपस्टिक में उसे देख कर अनुषा का चेहरा बन गया.

टीना नकली हंसी बिखेरती अंदर घुस आई और पूछा,” नई दुलहन आप के श्रीमान जी कहां हैं?

“वे अपने कमरे में काम कर रहे हैं.”

“ओके मैं मिल कर आती हूं.”

“आप बैठिए मैं बुला कर लाती हूं.”

अनुषा के इस कथन पर टीना ठहाके मार कर हंसती हुई बोली,” आंटी, सुना आप ने? आप की बहू तो मुझ से औपचारिकताएं निभा रही है. उसे पता ही नहीं कि मैं इस घर में किसी भी कमरे में किसी भी समय जा सकती हूं,” कहते हुए वह भुवन के कमरे की तरफ बढ़ गई.

अनुषा ने सवालिया नजरों से सास की तरफ देखा तो सास ने नजरें नीची कर लीं. टीना ने भुवन के कमरे में जा कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. करीब 1 घंटे बाद उस ने दरवाजा खोला. उतनी देर अनुषा के सीने में आग आग जलती रही. उसी समय जा कर उस ने हनीमून के टिकट फाड़ डाले. रात तक अपना कमरा बंद कर रोती रही.

सास ने उसे समझाते हुए कहा,” देख बहू, पुरुषों द्वारा 2 स्त्रियों के साथ संबंध बना कर रखना कोई नई बात तो है नहीं. सदियों से ऐसी बातें चली आ रही है. यहां तक कि देवीदेवता भी इस से विमुख नहीं. कृष्ण का ही उदाहरण ले जिन की 16 हजार रानियां थीं. रानी रुक्मणी के साथसाथ राधा से भी उन के संबंध थे. पांडु और राजा दशरथ की 3-3 पत्नियां थीं तो इंद्र ने भी अहिल्या के साथ…”

“मांजी आप प्लीज अपनी दलीलें मुझे मत दीजिए. मुझे मेरे दर्द के साथ अकेला रहने दीजिए. एक बात बताइए मांजी, आप को इस में कुछ भी गलत नहीं लग रहा? अगर ऐसा है और यह घर टूटता है तो आप इस का इल्जाम मुझ पर मत लगाइएगा ”

आगे पढ़ें- रोती हुई अनुषा बाथरूम में जा कर मुंह धोने लगी तो…

रेतीली चांदी: क्या हुआ था मयूरी के साथ

आपको समझ आते हैं ये 8 गाने?

बॉलीवुड की फिल्मों में यदि गाने न हों, तो फिल्म अधूरी-सी लगती है. कभी-कभी फिल्म हिट नहीं होती, मगर उसके गाने जरूर हिट हो जाते हैं. कई बार तो गानों से ही फिल्म का नाम पहचाना जाने लगता है. कई बार ये गाने गैर हिंदी होने हमारी समझ से परे होने के बावजूद, हमारे मन में इतना बस गए हैं कि उनकी धुन पर हम मगन होकर नाचने लगते हैं.

आज हम कुछ ऐसे गानों की बात कर हैं, जो हिंदी में ना हो कर भी हिंदी फिल्मों में और बॉलीवुड के अन्य गानों की तरह धूम मचा चुके हैं.

1. कोलावेरी डी (Kolaveri Di)

इस गाने के रिलीज के दौरान ये नॉन-हिंदी गानों की लिस्ट में टॉप पर था. इस गाने के शुरुआती बोल कुछ इस तरह से हैं ‘Why this Kolaveri Kolaveri Di’. यहां हम आपको बता देना चाहते हैं कि रजनीकांत के दामाद धनुष ने इस गाने को गाया था. ये लोगों के बीच काफी प्रचलित हुआ था. इसे लोग आज भी खूब पसंद करते हैं.

2. आ अंटे अमला पुरम (Aa Ante Amla Puram)

ये गाना एक आइटम सांग है, जो साल 2012 में लोगों के बीच खूब छा हुआ था. उस वक्त तो आलम ये हो गया था कि जब भी इस गाने को बजाया जाता था लोग बिना डांस किये नहीं मानते थे. इस गाने में आई अदाकारा को भी लोगों ने खूब पसंद किया था.

4. सेन्योरीटा (Senorita)

एक स्पेनिश गाना जो बॉलीवुड में काफ़ी फ़ेमस हुआ. ये गाना ऋतिक रोशन की फिल्म ‘ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा’ का है. आज भी इस गाने को सुनते ही लोग सर के बल डांस करने लगते हैं.

5. बोरो-बोरो (Boro Boro)

ये एक पार्शियन गाना है, इसके बावजूद ये बॉलीवुड में खूब पॉपुलर हुआ था. अभिनेता अभिषेक बच्चन ने भी इस गाने में कमाल का डांस कर, दर्शकों को खूब आकर्शित किया था. इस गाने के इतने पुराने होने के बावजूद, ये आज भी लोगों को बीच काफी मशहूर है और इस गाने पर लोग खूब थिरकते हैं.

6. माशाअल्लाह- माशाअल्लाह (Mashalla)

अभिनेता सलमान खान और कैटरीना कैफ की फिल्म ‘एक था टाइगर’ का ये गाना अरेबिक और हिंदी का मिश्रण है. हर कोई इस गाने पर सलमान और कटरीना के अंदाज में ही डांस करने की कोशिश करता है. ये गाना एक गैर हिन्दी होने के बावजूद आज तक लोगों के बीच यादगार बना हुआ है.

7. अपनी पोड़े (Apni Pode)

13 साल पहले आई तमिल फिल्म ‘घिलि’ (Ghili) का ये गाना आज भी लोगों के दिलों और दिमाग में बसा हुआ है.

8. नवराई माझी (Navrai Majhi)

ये गाना साल 2012 में आई फिल्म इंग्लिश विंग्लिश का एक मराठी सॉन्ग है. भले लोग इसे समझते न हों, लेकिन जब ये गाना चलता है, तो इस पर नाचना खूब पसंद करते हैं.

ये भी पढ़ें- फिल्मी कहानी से कम नही है Alia-Ranbir की Love Story, पढ़ें खबर

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें