Family Story in Hindi: बर्मा के जंगलों में

Family Story in Hindi: मोरे भारत और बर्मा की सीमा पर इम्फाल से 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गांव है जो चारों तरफ पहाडि़यों से घिरा है. रास्ते में मेरी गाड़ी खराब हो गई और मैं काफिले से बिछुड़ गया. मोरे से 10 किलोमीटर पहले एक सैनिक छावनी पर हमें रुकना पड़ा. वहां हमारी तलाशी ली गई. पता चला कि आगे रास्ता अचानक खराब हो गया है. करीब 4 घंटे हमें वहां रुकना पड़ा फिर हम रवाना हुए.

हम अभी कुछ दूर ही चले थे कि बीच रास्ते में बड़ेबड़े पत्थर रखे दिखाई दिए. ड्राइवर और हम सभी यात्री उतर कर पत्थर हटाने लगे. इतने में 10-12 हथियारबंद लोगों ने हमें घेर लिया और बंदूक की नोक पर मुझे साथ चलने को कहा. ड्राइवर और बाकी यात्रियों को उन्होंने छोड़ दिया. मैं हाथ ऊपर कर के उन के साथसाथ चलने लगा.

करीब 2 घंटे तक जंगल में पैदल चलने के बाद, उन के साथ मैं एक पहाड़ी के नीचे पहुंचा तो देखा वहां

3-4 झोपडि़यां बनी हुई थीं. वहीं उन का कैंप था. एक झोंपड़ी में लकड़ी के खंभे के सहारे मुझे बांध दिया गया. थोड़ी देर बाद एक लड़की आई और उस ने मुझे चाय व बिस्कुट खाने को कहा. मेरे हाथ ढीले कर दिए गए. मैं ने चाय पी ली. अगले दिन सुबह उन का नेता आया और मुझ से प्रश्न करने लगा. शुद्ध हिंदी में उसे बात करते देख मुझे बहुत ताज्जुब हुआ.

‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘मंगल सिंह,’’ मैं ने जवाब में कहा, ‘‘मैं नई दिल्ली स्थित एक अखबार में संवाददाता की हैसियत से काम कर रहा हूं. यहां मैं संसद सदस्यों के दौरे की रिपोर्ट लिखने आया था. मैं पहली बार इस इलाके में आया हूं. यहां मेरा कोई जानपहचान का नहीं है.’’

‘‘लगता है हमारे लोग आप को गलती से उठा लाए हैं. हमारा निशाना तो कृष्णमूर्ति था जो इस इलाके में मादक पदार्थों की तस्करी करता है. आप का चेहरा थोड़ाथोड़ा उस से मिलता है. मुझे खबर मिली थी कि वह आप वाली गाड़ी में ही सफर कर रहा है. फिर भी आप के बारे में तहकीकात की जाएगी. यदि आप की बात सच होगी तो कुछ दिन बाद आप को छोड़ दिया जाएगा. तब तक आप को यहीं रखा जाएगा. आप को जो तकलीफ हुई उस के लिए मैं माफी चाहता हूं’’

‘‘क्या आप मेरे घर या संपादक तक मेरी खबर भिजवा सकते हैं बूढ़े मांबाप मेरी चिंता करेंगे.’’

‘‘आप एक पत्र लिख दें. दिल्ली में मेरे संगठन से जुड़े लोग आप के अखबार तक आप का पत्र पहुंचा देंगे पर पत्र पहले मैं पढूंगा. उस में इन सब बातों का जिक्र नहीं होना चाहिए. आप के हाथपांव मैं खोल देता हूं पर आप भागने की कोशिश न करें, क्योंकि अभी आप बर्मा के जंगलों में हैं. यदि आप भागेंगे तो हम आप को गोली मार देंगे और यदि आप कृष्णमूर्ति नहीं हैं तो आप को आजादी मिल जाएगी.’’

‘‘यदि आप बुरा न मानें तो मैं कृष्णमूर्ति के बारे में और ज्यादा जानना चाहता हूं आखिर यह किस्सा क्या है?’’ मेरा पत्रकार मन एक अनजान व्यक्ति के बारे में जानने को इच्छुक हो उठा था.

‘‘हमारा संगठन हर उस व्यक्ति के खिलाफ है जो मादक पदार्थों की तस्करी में लिप्त है. मैं ने उसे चेतावनी भी दी थी पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आता. अत: इस संगठन के कमांडर ने उसे गोली मारने का आदेश दिया है. इस बार फिर वह बच निकला है. लेकिन कब तक बचेगा. हमारे आदमी उसे ढूंढ़ ही लेंगे.’’

‘‘नशीले पदार्थों की तस्करी रोकने के लिए तो पुलिस है, कानूनव्यवस्था है. आप यह काम क्यों कर रहे हैं?’’ मुझ से रहा नहीं गया और पूछ लिया.

‘‘हम एक तरह से कानून की ही मदद कर रहे हैं. हमारे देश के लोग यदि नशे के गुलाम बनेंगे तो देश का भविष्य कैसा होगा. आप तो जानते ही हैं कि एक बार जिस को नशे की लत लग जाए फिर उस की बरबादी निश्चित है. हम अपनी मातृभूमि की सेवा करते हैं. किसी भी बाहरी व्यक्ति को यह हक नहीं है कि हमारे भाईबहनों को पतन के रास्ते पर ले जाए. चूंकि कानून की नजरों में हम बागी हैं इसलिए कानून से हमें भागना पड़ता है. हमारी अपनी न्याय व्यवस्था है जिस में कमांडर का आदेश ही सर्वोपरि है. इस में कोई अपील या सुनवाई नहीं होती. आप के देश के नियमकानून काफी लचीले हैं. कई बार व्यक्ति अपराध कर के साफ बरी हो जाता है और फिर उसी काम को करने लगता है. खैर, इस विषय को यहीं समाप्त करते हैं.’’

इतना कह कर संगठन का वह नेता चला गया और मेरे हाथपैर खोल दिए गए. मैं थोड़ा इधरउधर टहल सकता था. वहां कुल 15 आदमी और 3 लड़कियां थीं. लड़कियों का मुख्य काम खाना बनाना था पर उन्हें हथियार चलाना भी आता था. मैं ने अपने संपादक को एक छोटा सा पत्र लिख दिया था ताकि वह मेरे मांबाप को सांत्वना दे सकें. कुछ देर के बाद एक लड़की आई और मुझे खाना खाने के लिए कहने लगी. वहां जा कर देखा तो पूरा शाकाहारी भोजन का प्रबंध था. मैं खुश हो गया क्योंकि मैं शुद्ध शाकाहारी था. भोजन में चावल, दाल, आलूप्याज की सब्जी, रोटी और सलाद था. मैं ने सब चिंता छोड़ कर भरपेट खाया क्योंकि खाना मुझे काफी स्वादिष्ठ लगा.

अगले दिन सुबह 5 बजे मेरी नींद खुल गई. मैं नित्यकर्म से निबट कर बाहर आ कर  बैठ गया. सूरज धीरेधीरे पहाड़ी के पीछे उदय हो रहा था. इतना सुंदर नजारा मैं ने जीवन में कभी नहीं देखा था. वह जगह प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर थी. दूरदूर तक पेड़ ही पेड़ दिखाई पड़ रहे थे. उन पर तरहतरह के पक्षियों के चहचहाने की आवाजें आ रही थीं. मैं कुछ समय तक इन में खो गया.

मेरी तंद्रा तब टूटी जब एक लड़की चाय, बिस्कुट ले आई और उस ने मुझ से अंगरेजी में पूछा कि इस के अलावा और भी कुछ चाहिए. मैं ने  भी अंगरेजी में उसे जबाब दिया कि यहां और क्या- क्या मिल सकता है. वह बोली कि

ब्रेड, केक, पेस्ट्री आदि सभी चीजों का प्रबंध है और 8 बजे नाश्ता भी मिल जाएगा. नाश्ते में आलू का परांठा और टमाटर की चटनी होगी. उस के बोलने के अंदाज से मुग्ध हो कर मैं एकटक उसे ही देखता रहा तो वह चली गई.

थोड़ी देर बाद देखा कि कुछ बर्मीज औरतें सामान ले कर आ रही हैं. एक के पास बरतन में दूध था. किसी के पास सब्जी थी तो कोई चावल लाई थी. यानी जो भी खानेपीने का सामान चाहिए वह आप खरीद सकते हैं.

मैं भी उन के पास चला गया. कैंप की रसोई प्रमुख का नाम नीना था. उस ने अपनी जरूरत के हिसाब से सामान खरीद लिया. कल क्या लाना है, यह भी बता दिया. यह सब देख कर नीना से मैं ने पूछा, ‘‘क्या सब सामान ये लोग यहां ला कर दे देते हैं?’’

‘‘बर्मीज लोग बड़े शांत, सरल हृदय होते हैं. छल, कपट और झूठ बोलना तो जैसे जानते ही नहीं. यहां काम मुख्य तौर पर औरतें ही करती हैं. सभी तरह का व्यापार इन्हीं के हाथ में है. अभी जो औरतें यहां सामान ले कर आई

हैं, ये करीब 10 किलोमीटर की दूरी तय कर के आई हैं. शाम को फिर एक बार सामान ले कर आएंगी.’’

‘‘ये औरतें रोज इतना पैदल सफर कर लेती हैं.’’

‘‘नहीं,’’ नीना बोली साइकिल पर 50-60 किलो माल ले आती हैं. यहां अभी भी पूरी ईमानदारी से काम होता

है. मिलावट करना ये लोग जानते ही नहीं.’’

अब तक मैं समझ गया था कि नीना से मुझे और भी जानकारी मिल सकती है. बस, इसे बातचीत में लगाना होगा. तब मुझे इस संगठन के बारे में काफी नई बातें जानने को मिल सकती हैं और जितने दिन यहां रहना पड़ेगा थोड़ी परेशानी कम हो सकती है. अत: जब भी मौका मिलता मैं नीना से बातचीत करता रहता.

इस तरह 4-5 दिन गुजर गए. नीना कभीकभी गिटार पर कोई धुन भी बजाने लगती तो मैं भी जा कर साथ में गाने लगता. वह काफी अच्छा गिटार बजाना जानती थी. मुझे भी संगीत का काफी शौक था. मैं हिंदी गाने और भजन गाता और वह उसे गिटार पर बजाने की कोशिश करती. यह देख कर राजन नामक उस के साथी को भी जोश आ गया और वह बगल के किसी गांव से एक ढोलक ले आया. इस तरह हम लोग रोज रात में गानाबजाना करने लगे.

सच ही है, संगीत में कोई भेदभाव नहीं होता, मजहब की दूरी नहीं होती, कोई अमीरगरीब की सोच नहीं होती.

एक रात मैं सो रहा था कि एक बड़े काले सांप ने मुझे काट लिया और भाग कर झोंपड़ी के कोने में छिप गया. मुझे बहुत दर्द हुआ और मैं जोर से चिल्लाया. आवाज सुन कर नीना और 3-4 व्यक्ति दौड़ेदौड़े आए. मैं ने उन्हें बताया कि मुझे सांप ने काटा है और अभी भी वह झोंपड़ी में मौजूद है.

नीना दौड़ कर एक डंडा ले आई और सांप को खोज कर मार दिया. मैं उस का साहस देख कर आश्चर्यचकित रह गया. फिर नीना ने बताया कि यह सांप तो बहुत जहरीला है अब आप लेट जाइए इस का जहर निकालना पड़ेगा वरना यह पूरे शरीर में फैल सकता है. मैं लेट गया. नीना ने जहां सांप ने काटा था वहां चाकू से एक चीरा लगाया और मुंह से चूसचूस कर जहर निकालने लगी. फिर मुझे नींद आ गई. सुबह पता चला कि नीना रात भर मेरे पास बैठी रही. एक अनजान व्यक्तिके लिए इतनी पीड़ा उस ने उठाई.

अब धीरेधीरे नीना मुझ से खुलने लगी. हम आपस में विविध विषयों पर बातचीत करने लगे. उस के व्यक्तित्व के बारे में मुझे और जानकारी मिली. उस के मांबाप की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हो गई थी. अब उस का दुनिया में कोई नहीं था. मणिपुर विश्व- विद्यालय से उस ने अंगरेजी में एम.ए. किया था और आगे उस का इरादा पीएच.डी. करने का है.

नीना ने बाकायदा संगीत सीखा था. वह बहुत अच्छा खाना बनाती थी. देखने में सुंदर थी. मैं उसे थोड़ीथोड़ी हिंदी भी सिखाने लगा. वह मेरी इस तरह सेवा करने लगी जैसे कोई ममतामयी मां अपने बच्चे की देखभाल करती है. मुझे जीवन- दान तो उस ने दिया ही था. अब तक कैंप के और लोग भी मुझ से थोड़ा खुल गए थे.

वहां कुछ नेपाली औरतें भी आती थीं जिन्हें हिंदी का ज्ञान था. उन से मैं ने बर्मा के बारे में काफी प्रश्न किए. तो पता चला कि बर्मा में भारत की तरह भ्रष्टाचार नहीं है. लोग घर पर ताला न भी लगाएं तो चोरी नहीं होती. दिन भर मेहनत करते हैं और रात को खाना खा कर सो जाते हैं. सब अनुशासन में रहते हैं. खेती वहां का मुख्य व्यवसाय है.

मेरा मन वहां लग गया था. पर बीचबीच में घर के लोगों की चिंता हो जाती थी. समय अच्छी तरह कट रहा था. इस तरह करीब 20-25 दिन गुजर गए. नीना मेरे साथ एकदम खुल गई थी. उस का संकोच पूरी तरह समाप्त हो गया था. मेरे मन में भी कैंप छोड़ कर दिल्ली लौटने की इच्छा समाप्त हो गई थी पर परिवार के प्रति मेरी जिम्मेदारी थी. जीने के लिए अखबार की नौकरी भी जरूरी थी.

एक दिन अचानक कैंप का वही नेता जो पहले आया था लौट आया. सब बहुत खुश हुए. उस ने मुझे बुलाया और कहा, ‘‘मेरे कमांडर ने आप को छोड़ने का आदेश दे दिया है. 1-2 दिन के बाद आप को मोरे गांव तक पहुंचा देंगे. वहां से आप को इम्फाल की बस मिल जाएगी. आप को जो कष्ट पहुंचा उस के लिए मैं अपने कमांडर की तरफ से क्षमा चाहता हूं.’’

‘‘क्षमा कैसी. मेरा तो जाने का मन ही नहीं कर रहा पर जाना तो पड़ेगा ही क्योंकि आप के कमांडर का आदेश है. आप के साथियों ने मेरा काफी ध्यान रखा जिस के लिए मैं इन सब का आभारी हूं. नीना ने तो मुझे नया जीवन दिया है. मैं उस का ऋणी भी हूं. हां, जाने से पहले मेरी एक शर्त आप को माननी पड़ेगी अन्यथा मैं यहीं पर आमरण अनशन करूंगा,’’ मैं ने कहा.

‘‘वह क्या? आप को तो खुश होना चाहिए कि आप आजाद हो  रहे हैं. हां, कमांडर ने आप के लिए 10  हजार रुपए भेजे हैं. रास्ते के खर्च के लिए और आप के एक मास के वेतन के नुकसान की भरपाई करने के लिए. इम्फाल एअरपोर्ट पर दिल्ली का टिकट आप को मिल जाएगा, इस का प्रबंध हो गया है. दिल्ली में हम ने आप के संपादक और आप के मातापिता तक खबर भेज दी थी और आप की पूरी तहकीकात हम कर चुके हैं. अब आप अपनी शर्त के बारे में बताएं,’’ थाम किशोर ने पूछा.

‘‘मैं नीना से शादी करना चाहता हूं यदि आप को और नीना को कोई एतराज न हो तो. यदि मैं नीना जैसी लड़की को पत्नी के रूप में पा सका तो अपने आप को धन्य समझूंगा. आप सोचविचार कर मुझे जवाब दें और नीना से भी पूछ लें,’’ मैं ने कहा.

पूरे कैंप में खामोशी छा गई. उन     लोगों को मेरी बात पर काफी आश्चर्य हुआ. खामोशी थाम किशोर ने ही तोड़ी.

‘‘भावुकता से भरी बातें न करें. आप की जाति, संप्रदाय, आचारविचार सब अलग हैं. नीना कैसे माहौल में

रह रही है आप देख ही चुके हैं. हम लोग मातृभूमि की सेवा का संकल्प कर चुके हैं. फिर भी मुझे नीना से तथा अपने कमांडर से पूछना होगा. आप

2-4 दिन और रुकें फिर मैं आप को फैसला सुना देता हूं.’’

बाद के दिनों में नीना ने मुझ से थोड़ी दूरी बढ़ानी चाही पर मैं ने उसे ऐसा करने नहीं दिया. नीना ने बताया कि वह भी मुझे पसंद करती है और शादी भी करने को तैयार है लेकिन क्या इस शादी से आप के घर वाले एतराज नहीं करेंगे?

मैं ने उस के मन में उठे संदेह को शांत करने के लिए समझाया कि मेरे मातापिता को ऐसी बहू चाहिए जो उन की सेवा कर सके. तुम्हारा सेवाभाव तो मैं देख चुका हूं. तुम को पा कर मेरा   जीवन सफल हो जाएगा. बस, कमांडर हां कर दे तो बात बन जाए.

3 दिन के बाद संगठन के नेता थाम किशोर सिंह ने यह खुशखबरी दी कि कमांडर ने हां कर दी है और कहा है कि धूमधाम से कैंप में ही शादी का प्रबंध किया जाए. वह भी आने की कोशिश करेंगे.

मेरी और नीना की शादी धूमधाम से वहीं कैंप में कर दी गई और एक झोंपड़ी में सुहागरात मनाने का प्रबंध भी कर दिया गया. अगले दिन सुबह कैंप से विदा होने की तैयारी करने लगे. सभी सदस्यों ने रोते हुए हमें विदा किया.

थाम किशोर ने एक लिफाफा दिया और कहा कि कमांडर ने नीना को एक तोहफा दिया है. वह तो आ नहीं सके. हम लोग मोरे इम्फाल होते हुए दिल्ली पहुंच गए. नीना पूरे सफर में बहुत खुश थी.

घर पहुंच कर थोड़ा विश्राम कर के नीना ने कमांडर का तोहफा खोला. Family Story in Hindi

Social Story: हिंदुस्तान जिंदा है- दंगाइयों की कैसी थी मानसिकता

Social Story: अब वह कहां जिंदा थी कि किसी का नाम बताती. बस, सड़क के किनारे एक नंगी लाश के रूप में पड़ी मिली थी. मीना के पति को बाजार में छुरा मारा गया था, मर्द को दंगाई नंगा नहीं करते क्योंकि दंगाई भी मर्द होते हैं.

मीना और मौलवी रशीद दोनों ने अपनीअपनी लाशें उठा कर उन का अंतिम संस्कार किया था. ये दोनों जिस शहर के थे वहां की फितरत में ही दंगा था और वह भी धर्म के नाम पर.

इस शहर के लोग पढ़ेलिखे जरूर थे पर नेताओं की भड़काऊ बातों को सुन कर सड़कों पर उतर आना, छतों से पत्थरों की वर्षा करना और फिर गोली चलाना इन की आदत हो गई थी. कोई तो था जो निरंतर इस दंगा कल्चर को बढ़ावा दे रहा था ताकि जनता बंटी रहे और उन का मकसद पूरा होता रहे.

मौलवी रशीद और मीना दोनों एकसाथ पढ़े थे. दोनों का बचपन भी साथसाथ ही गुजरा था. दोनों आपस में प्रेम भी करते थे, लेकिन इन की आपस में शादी इसलिए नहीं हुई कि दोनों का धर्म अलगअलग था और ऐसे कट्टर धार्मिक, सोच वाले शहर में एक हिंदू लड़की किसी मुसलमान लड़के से शादी कर ले तो शहर में हंगामा बरपा हो जाए.

मीना ने तो चाहा था कि वह रशीद से शादी कर ले लेकिन खुद रशीद ने यह कह कर मना कर दिया था कि यदि तुम चाहती हो कि 4-5 मुसलमान मरें तो मैं यह शादी करने के लिए तैयार हूं. और फिर मीना अपने दिल पर पत्थर रख कर बैठ गई थी.

इसी के बाद दोनों के जीवन की धारा बदल गई. रशीद ने अपने संप्रदाय में एक नेक लड़की से शादी कर अपनी गृहस्थी बसा ली तो मीना ने अपनी ही जाति के एक लड़के के साथ शादी कर ली. फिर तो दोनों एक ही शहर में रहते हुए एकदूसरे के लिए अजनबी बन गए.

इधर धर्म का बाजार सजता रहा, धर्म का व्यापार होता रहा और इस धर्म ने देश को 2 टुकड़ों में बांट दिया. इनसान के लिए धर्म एक ऐसा रास्ता है जिसे केवल मन में रखा जाए और खामोशी के साथ उस पर विश्वास करता चला जाए न कि उस के लिए बेबस औरतों को नंगा किया जाए, संपत्तियों को जलाया जाए और बेगुनाह लोगों की जानें ली जाएं.

मौलवी रशीद की कोई संतान नहीं थी पर मीना के 2 बच्चे थे. एक 3 साल का और दूसरा 3 मास का. पति के मरने के बाद मीना बिलकुल बेसहारा हो गई थी. अब उस शहर में उस का दर्द, उस की जरूरतों को समझने वाला मौलवी रशीद के अलावा दूसरा कोई भी नहीं था.

सांप्रदायिक दंगों का सिलसिला शहर से खत्म नहीं हो रहा था. कभी दिन का कर्फ्यू तो कभी रात का कर्फ्यू. इनसान तो क्या जानवर भी इस से तंग हो गए थे. मौलवी रशीद ने टेलीविजन खोला तो एक खबर आई कि प्रशासन ने शाम को कर्फ्यू में 2 घंटे की ढील दी है ताकि लोग घरों से बाहर निकल कर अपनी दैनिक जरूरतों की वस्तुओं को खरीद सकें. मौलवी रशीद को मीना के 3 माह के बच्चे की चिंता थी क्योंकि पति की मौत के बाद मीना की छाती का दूध सूख गया था. उस बच्चे के लिए उसे दूध लेना था और ले जा कर हिंदू इलाके में मीना के घर देना था.

रशीद जब घर से स्कूटर पर चला तो उसे थोड़ा डर सा लगा था. वह सआदत हसन मंटो (उर्दू का प्रसिद्ध कथाकार) तो था नहीं कि अपनी जेब में 2 टोपियां रखे और हिंदू महल्ले से गुजरते समय सिर पर गांधी टोपी तथा मुसलमान महल्ले से गुजरते समय गोल टोपी लगा ले.

खैर, रशीद किसी तरह हिम्मत कर के मीना के बच्चे के लिए दूध का पैकेट ले कर चला तो रास्ते भर लोगों की तरहतरह की बातें सुनता रहा.

किसी एक ने कहा, ‘‘इस का मीना के साथ चक्कर है. मीना को कोई हिंदू नहीं मिलता क्या?’’

दूसरे के मुंह से निकला, ‘‘लगता है इस का संपर्क अलकायदा से है. हिंदू इलाके में बम रखने जा रहा है. इस मौलवी का हिंदू महल्ले में आने का क्या मतलब?’’

दूसरे की कही बातें सुन कर तीसरे ने कहा, ‘‘यदि अलकायदा का नहीं तो इस का संबंध आई.एस.आई. से जरूर है. तभी तो इस की औरत को नंगा कर के गोली मारी गई.

रशीद ने मीना के घर पहुंच कर उसे आवाज लगाई और दूध का पैकेट दे कर वापस आ गया. एक सेना का अधिकारी, जो मीना के घर के सामने अपने जवानों के साथ ड्यूटी दे रहा था, उस ने रशीद को दूध देते देखा. मौलवी रशीद उसे देख कर डर के मारे थरथर कांपने लगा. वह आर्मी अफसर आगे बढ़ा और रशीद की पीठ को थपथपाते हुए बोला, ‘‘शाबाश.’’

रशीद जब अपने महल्ले में पहुंचा तो देखा कि लोग उस के घर को घेर कर खड़े थे. वह स्कूटर से उतरा तो महल्ले के मुसलमान लड़के उस की पिटाई करते हुए कहने लगे, ‘‘तू कौम का गद्दार है. एक हिंदू लड़की के घर गया था. तू देख नहीं रहा है कि वे हमें जिंदा जला रहे हैं? हमारी बहनबेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. क्या उस महल्ले के हिंदू मर गए थे जो तू उस के बच्चे को दूध पिलाने गया था.’’

एक बूढ़े मौलाना ने कहा, ‘‘रशीद, तू महल्ला खाली कर फौरन यहां से चला जा नहीं तो तेरी वजह से इस महल्ले पर हिंदू कभी भी हमला कर सकते हैं. तेरा मीना के साथ यह अनैतिक संबंध हम को बरबाद कर देगा.’’

इस बीच पुलिस की एक जीप वहां आई और पुलिस वाले यह कह कर चले गए कि यहां तो मुसलमानों ने ही मुसलमान को मारा है, खतरे की कोई बात नहीं है. लगता है कोई पुरानी रंजिश होगी.

मार खाने के बाद रशीद अपने घर चला गया और बिस्तर पर लेट कर कराहने लगा. कुछ देर के बाद फोन की घंटी बजी. फोन मीना का था. वह कह रही थी, ‘‘रशीद, तुम्हारे जाने के बाद महल्ले के कुछ हिंदू लड़के मेरे घर में घुस आए थे और उन्होेंने दूध के साथ घर का सारा सामान सड़क पर फेंक दिया. अब मैं क्या करूं. तुम जब तक माहौल सामान्य नहीं हो जाता मेरे घर मत आना. बच्चे तो जैसेतैसे जी ही लेंगे.’’

रशीद फोन पर हूं हां कर के चुप हो गया क्योंकि उसे चोट बहुत लगी थी. वह लेटेलेटे सोच रहा था कि हिंदूमुसलिम फसाद में एक तरफ से कुछ भी नहीं होता है. दोनों तरफ से लड़ाई होती है और कौम के नेता इस जलती हुई आग पर घी डालते हैं. यदि हिंदू मुसलमान को मारता है तो वही उस को सड़क से उठाता भी है. अस्पताल भी वही ले जाता है, वही पुलिस की वर्दी पहन कर उस का रक्षक भी बनता है और वही जज की कुरसी पर बैठ कर इंसाफ भी करता है, कहीं तो कुछ है जो टूटता नहीं.

4 दिन बाद कुछ हालात संभले थे. इस दौरान समाचारपत्रों ने बहुत सी घटनाओं को अपनी सुर्खियां बनाया था. इन्हीं में एक खबर रशीद और मीना को ले कर छपी थी कि ‘हिंदू इलाके में एक मुसलमान अपनी प्रेमिका से मिलने आता है.’

ऐसे माहौल में समाचारपत्रों का काम है खबर बेचना. अगर सच्ची खबर न हो तो झूठी खबर ही सही, उन के अखबार की बिक्री बढ़नी चाहिए. अब तो राजनीतिक पार्टियां भी अपना अखबार निकाल रही हैं ताकि पार्टी की पालिसी के अनुसार समाचार को प्रकाशित किया जाए. आजादी के बाद हम कितने बदल गए हैं. अब नेताओं को देश की जगह अपनी पार्टी से प्रेम अधिक है.

शहर में कर्फ्यू समाप्त हो गया था. रशीद भी अब पूरी तरह से ठीक हो गया था. उस ने फैसला किया कि अब यह शहर उस के रहने के लायक नहीं रहा पर शहर छोड़ने से पहले वह मीना से मिलना चाहता था.

वह घर से निकला और सीधा मीना के घर पहुंचा. उसे घर के दरवाजे पर बुलाया और हमेशाहमेशा के लिए उसे एक नजर देख कर मुड़ना ही चाहता था कि कुछ लोग उस को चारों ओर से घेर कर खड़े हो गए.

रशीद ने मीना से सब्जी काटने वाला चाकू मांगा और सब को संबोधित कर के बोला, ‘‘आप लोगों को मुझे मारने की आवश्यकता नहीं है. मैं अपने पेट में चाकू मार कर आत्महत्या करने जा रहा हूं. अब यह शहर जीने लायक नहीं रह गया.’’

उस भीड़ ने रशीद को पकड़ लिया और एक सम्मिलित स्वर में आवाज आई, ‘‘भाई साहब, हम आप को मारने नहीं बल्कि देखने आए हैं. आप की पत्नी को हिंदुओं ने नंगा कर के गोली मारी थी और आप एक हिंदू विधवा के बच्चों के लिए दूध लाते रहे. अब आप जैसे इनसान को देखने के बाद यकीन हो गया है कि हिंदुस्तान जिंदा है और हमेशा जिंदा रहेगा. Social Story

Europe Trip: पैसा भी कम खर्च हो और मजा भी आए, ऐसे करें टूर की प्लानिंग

Europe Trip: यूरोप ट्रिप हिना का सपना था. उस का यह सपना पूरा हुआ भी, लेकिन यह ट्रिप उस के लिए एक कड़वी याद बन कर रह गया जो बजट बनाया था उस से 3 लाख ज्यादा खर्च हो गए. पूरा ट्रिप उसी ने प्लान किया था. पति ने और कंट्रीब्यूट करने से इनकार कर दिया. क्रैडिट कार्ड की ईएमआई बनवानी पड़ी.
यूरोप ट्रिप प्लान करना आसान नहीं है. इतनी सारी प्लानिंग करने में बहुत बोरियत होती है क्योंकि पूरी जानकारी नहीं होती. पूरा परिवार मिल कर प्लानिंग करे तो कुछ ही दिनों में मजेमजे में पूरी प्लानिंग हो जाएगी.

जरूरी चीजें नोट करें

किन देशों में जाना चाहते हैं. कितने दिन जाना है. कहां पर, किस दिन, क्या खास है, यह रिसर्च कर के नोट करें. नुपुर के यूरोप पहुंचने के दिन ही एम्स्टर्डम में फ्लौवर फैस्टिवल था, लेकिन उस की एम्स्टर्डम की बुकिंग लास्ट वाले दिनों में थी, तब तक फैस्टिवल खत्म हो चुका था. उसे हमेशा अफसोस रहेगा कि काश वह पहले एम्स्टर्डम चली जाती. खराब प्लानिंग की वजह से ऐसा हुआ.
यूरोप का वीजा लगते ही ऐक्शन मोड में आ जाएं. होटल बजट में मिले तो बेहतर है वरना बच्चों के साथ बैठ कर कुछ अपार्टमैंट या गैस्टहाउस देखें. बुकिंग कराने से पहले उन में सहूलियतें चैक करें. रिव्यूज पढ़ें. देखें कि ट्रेन, ट्राम या बस का कौन सा स्टेशन पास में है, घूमने की जगहें वहां से कितनी दूर हैं.
पैरिस में अदीबा की फैमिली का गैस्टहाउस मेन सिटी से काफी दूर था. आनेजाने में ही काफी वक्त लग जाता था. वे पूरा पैरिस घूम ही नहीं पाए.
एक से दूसरे देश कैसे जाना है, इस की पूरी रिसर्च कर के ही बुकिंग कराएं. कहां पर, कौनकौन से पर्यटन स्थल हैं, इस की लिस्ट बना लें. यह भी नोट करें कि कहां, कितना टिकट लगेगा.

कहीं खाना बजट न बिगाड़ दे

शालिनी अपनी 2 टीनऐजर बेटियों के साथ यूरोप घूमने गई. वहां से लौटे तो बजट दोगुना हो चुका था. उन्होंने तोबा कर ली है कि कभी विदेश का रुख नहीं करेंगे. उन की गलती यह थी कि बच्चों ने खाने पर जम कर पैसा लुटाया. इंडियन खाने से ले कर, लोकल क्विजीन, आइसक्रीम, नूडल्स, पिज्जा, कोल्डड्रिंक सबकुछ खाया. अकसर लोग कहते हैं कि बच्चे खाना तो खाएंगे ही. लेकिन क्या जरूरी है कि सबकुछ ट्राई किया ही जाए? क्यों न प्लानिंग के वक्त ही बच्चों को समझा दिया जाए कि वहां जा कर किस चीज पर खर्च करना है, किस पर नहीं तो बच्चे अपना माइंड मेकअप कर के जाएंगे. खर्च बजट के अंदर रहेगा. बाद में भी कभी जा पाएंगे. यूरोप बहुत बड़ा है, कई बार जाया जा सकता है.

वंदना ने खानेपीने की लिस्ट बनाई. तय किया कि कभीकभार केवल डिनर बाहर से करेंगे और वह भी पेट भरने लायक. उस ने 1 हफ्ता पहले से ही कुक को मठरी, लड्डू वगैरह बनाने में लगा दिया. बच्चों को भी कुक के साथ लगाया. बच्चों ने यूट्यूब से सीख कर ओवन में बिस्कुट बना लिए. मखाने और बाकी ड्राई फ्रूट रोस्ट कर के पैक कर लिए. मुरमुरे और ड्राई फू्रट की नमकीन भी बना ली. इंसान को अपनी मेहनत की कद्र होती है. बच्चों ने बनाने में मेहनत की थी, इसलिए उन्होंने वहां वह सब खाया भी.

आभा अपने साथ ट्रैवल कूकर ले गई. यह कूकर औनलाइन या किसी दुकान से डेढ़-दो हजार रुपए में मिल जाता है. यह एक इलैक्ट्रिक स्टोव और पतीला होता है. इस में मैगी, चावल बना सकते हैं, पर होटल में ऐसा नहीं कर सकते वरना अलार्म बज जाएगा और मोटा फाइन लगेगा जो आप को भरना पड़ेगा. गैस्टहाउस में उसे यूज कर सकते हैं. लेकिन बरतन आप को खुद धोने होंगे. वे आप को केवल ब्रेकफास्ट देते हैं और उस के बरतन धोते हैं. वैसे वहां माइक्रोवैव और ओवन भी मिल जाता है. उन में चावल बना कर खा सकते हैं. घर से चावल, दाल, मसाले, तेल ले जाएं. सब्जियां पास के स्टोर से ले सकते हैं. दालचावल, सब्जीचावल, पुलाव, खिचड़ी बना सकते हैं.

कुछ पारंपरिक रैस्टोरैंट या कैफेज में टेबल के पैसे अलग से देने पड़ सकते हैं. इटली के शहर वेनिस में पिज्जा खाने जाएंगे तो 2-3 यूरो यानी ढाईतीन सौ रुपए केवल टेबल के लगेंगे वरना शौक से खड़े हो कर पिज्जा खा सकते हैं. किसी भी रैस्टोरैंट या कैफे में और्डर करने से पहले मेन्यू में रेट जरूर चैक कर लें.
पूरी फैमिली जा रही है तो हर शहर में अपार्टमैंट ले सकते हैं. खाना बनाने के लिए मौडर्न रसोई मिलेगी. अपार्टमैंट में वे नाश्ता नहीं देंगे. नाश्ता और डिनर खुद बना सकते हैं. काम को बांट लें. सफाई का खयाल रखें और घूमने के लिए जाते समय बरतन धो कर, शैल्फ पोंछ कर जाएं. शायद आप का सवाल होगा कि ट्रिप पर भी काम करें क्या? यकीन मानिए, सब मिल कर काम करेंगे तो मजा आएगा. बहुत सारा पैसा बचेगा, जिसे आप किसी और ट्रिप पर खर्च कर सकते हैं.

क्या नहीं करना है

रैडी टू ईट सब्जियां न ले जाएं. होटल में ये किसी काम की नहीं और गैस्टहाउस में इन की जरूरत नहीं क्योंकि आप ताजा खाना बना सकते हैं. वैसे भी प्रोसैस्ड फूड पेट खराब कर के ट्रिप का मजा किरकिरा कर सकता है.
सैंडल, जूतियां पैक न करें. स्पोर्ट्स शूज पहन कर जाएं. अच्छे स्पोर्ट्स शूज बर्फ पर भी काम आते हैं. जिसे चलनेफिरने में परेशानी हो, वह बर्फ के जूते ले जा सकता है.
5 लोग और 6-7 फोन या 2 लोग, 4 फोन होंगे तो ट्रिप का मजा कैसे आएगा? 2 फोन ले कर जाएं. एक फोन में मंथली डेटा पैक ले लें. दूसरा फोन केवल वाईफाई के लिए रखें. यकीन करें, बहुत हलका महसूस होगा.
बच्चों को और खुद को भी समझाएं कि शौपिंग नहीं करनी है. हर चीज के दाम करीब सौ गुणा होंगे.
स्विट्जरलैंड में चौकलेट फैक्टरी में खाली पेट न जाएं. वहां बहुत सारी चौकलेट टेस्ट कर सकते हैं. वह टिकट में शामिल होती है, अलग से पैसे नहीं देने पड़ते.
मंजुला की फैमिली ने सोचा जम कर चौकलेट खाएंगे, इसलिए नाश्ता कर के नहीं गए. खाली पेट चौकलेट खा कर सब का पेट खराब हो गया. बाकी का ट्रिप कैसा रहा होगा, आप अंदाजा लगा सकते हैं.
किसी से उलझना नहीं है. अंजलि की फैमिली स्टेशन पर पहुंची तो ट्रेन प्लेटफौर्म पर खड़ी थी. भागते हुए एक लोकल बच्चे को धक्का लग गया और वह नीचे गिर गया. बच्चे की मां चिल्लाने लगी. सौरी बोलने के बजाय अंजलि उस से बहस करने लगी. अंजलि के हस्बैंड ने बच्चे की मां से माफी मांगी. ट्रेन मिस हुई. मूड खराब हुआ. बच्चे की मां पुलिस को फोन कर देती तो पूरा ट्रिप खराब हो जाता.
डाइटिंग न करें खासकर ब्रेकफास्ट के समय वरना शरीर में कमजोरी आ जाएगी और घूम नहीं पाएंगे. मीठा खाने से ज्यादा परहेज न करें. फ्रूट्स जरूर खाएं.ये ऐनर्जी और पौष्टिकता देंगे.
नई ऐक्सरसाइज या वर्कआउट ट्राई न करें. मसल्स में कोई प्रौब्लम हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे.
स्विट्जरलैंड में बोतलबंद पानी न खरीदें. सूटकेस में 2 खाली पानी की बोतल पैक कर के ले जाएं. वहां जगहजगह पानी के सिंगल फाउंटेन जैसे नल मिल जाएंगे. वह पानी सेफ होता है. पेट खराब नहीं होगा.
पैरिस में मैट्रो में लापरवाही से न बैठें. फोन का खास खयाल रखें. वहां कभीकभी फोन स्नैचिंग होती है.
अंदाजा न लगाएं वरना आप भटक जाएंगे. ट्रेन, ट्राम या बस के बारे में पक्का पता न हो तो पूछ लें. लोग काफी हैल्पफुल होते हैं. सब विस्तार से बताते हैं और ट्रेन वगैरह के स्टेशन तक छोड़ आते हैं. दूर तक भी.

इन टिप्स को आजमा कर ट्रिप हसीन याद बन सकता है

– पांखुड़ी यूरोप गई तो फ्लाइट में उस के पैरों में सूजन आ गई. फ्लाइट लैंड होने पर जूते पहनने में बहुत मुश्किल हुई. इसलिए ऐक्स्ट्रा लैग स्पेस वाली सीटें लें. थोड़े ऐक्स्ट्रा पैसे लगेंगे, लेकिन ये खर्च करना बनता है. पहले बुक न हों तो फ्लाइट में जाने के बाद एअर होस्टेस से पूछ लें. खाली होंगी तो वे पेमैंट ले कर अपग्रेड कर देंगे.
– जिन को टेलबोन का दर्द हो, उन्हें बीचबीच में उठ जाना चाहिए वरना यह भयानक रूप ले लेगा. अपनी सीट के पास या इमरजैंसी ऐग्जिट के पास कुछ मिनट के लिए खड़े हो सकते हैं.
– बीच में कहीं ले ओवर है तो एअरपोर्ट पर बैठे ही न रहें या सोएं नहीं. थोड़ा घूम लें, हलकीफुलकी स्ट्रैचिंग कर सकते हैं. हाथमुंह धो कर फ्रैश हो लें. ब्रश कर लें ताकि डैंटल हैल्थ ठीक रहे.
– सभी लोग एक ही टाइम पर न सोएं. फ्लाइट मिस हो सकती है. कई बार थकान की वजह से गहरी नींद आ जाती है, टाइम का पता नहीं चलता.
– एअरपोर्ट पर लाउंज ऐक्सैस है तो ढेर सारी वैरायटीज में से वही खाएं जो आसानी से
पच जाए. पेट खराब हो गया तो फ्लाइट में परेशानी होगी.
– कई लोगों को फ्लाइट का खाना डाइजैस्ट नहीं होता, इसलिए खाने से पहले अपने पेट की हालत देख लें.
– सारी दवाइयां जरूर पैक करें. दवाइयों के साथ प्रिस्क्रिप्शन भी रख लें, एअरपोर्ट पर आप से पूछा जा सकता है. होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक दवाइयों के परचे भी साथ रखें.
– कोई खास कंडीशन है तो प्लान करने से पहले डाक्टर की सलाह ले लें. वहां रैजिडेंट्स को
ही मुश्किल से डाक्टर की अपाइंटमैंट मिलती है, इसलिए यह न सोचें कि विदेश में बेहतर इलाज मिलेगा.
– यूरोप का वीजा मिलते ही अकसर लोग बहुत ज्यादा खुश हो जाते हैं और धड़ाधड़ शौपिंग करते हैं. सर्दी के कपड़े तो होंगे ही, उन्हीं को यूज कर लें तो बेहतर है वरना इस शौपिंग का खर्च भी ट्रिप के हिस्से आएगा.
– एक से दूसरे देश जाने में ज्यादा सामान से परेशानी होगी. कम से कम कपड़े रखें. वहां हमेशा सर्दी रहती है. लेयर्स में कपड़े पहनने का प्लान बनाएं.
– एक से दूसरे देश या शहर जाने के लिए फ्लाइट लेंगे तो बजट गड़बड़ा जाएगा. वहां की ट्रेनों में फ्लाइट जैसी सुविधाएं होती हैं. सीट के पास चार्जर पौइंट होते हैं, जहां फोन, पावर बैंक, लैपटौप चार्ज कर सकते हैं. सीट के सामने ट्रे भी होती है, जहां लैपटौप रख कर आराम से
काम कर सकते हैं. ट्रेनों का वाईफाई काफी फास्ट होता है तो कोई परेशानी नहीं होगी. हां, आप के प्रोजैक्ट ज्यादा कौन्फिडैंशियल हैं तो अपना डेटा ही यूज करें. इन ट्रेनों के टौयलेट भी फ्लाइट की तरह मौडर्न होते हैं.
– ट्रेन में कहीं भी टिकट चैकर मिल सकते हैं. पासपोर्ट और टिकट की कौपी (हार्ड और सौफ्ट दोनों) अपने पास रखें ताकि मांगने पर दिखा सकें.
– यूरोप के लगभग हर देश के रेलवे स्टेशन एअरपोर्ट से कम नहीं होते. ट्रेन के शैड्यूल्ड टाइम से कम से कम आधा घंटा पहले जरूर पहुंच जाएं. प्लेटफौर्म ढूंढ़ने में वक्त लग सकता है. ट्रेनें बिलकुल टाइम पर चलती हैं. कभीकभार किसी टैक्निकल गड़बड़ी की
वजह से ट्रेन सिर्फ 2-4 मिनट के लिए लेट हो सकती है.
– वहां की कई ट्रेनों में रूल होता है कि फोन पर बात नहीं कर सकते. कोई भी रूल तोड़ने पर जुरमाना हो सकता है वह भी मोटी रकम का. ट्रेन पर चढ़ते ही सैटल होने से पहले रूल्स को ध्यान से पढ़ लें.
– आप को वहां भाषा की प्रौबल्म होगी क्योंकि यूरोप के कई देशों में लोगों को इंग्लिश नहीं आती खासकर इटली में. वहां औनलाइन ट्रांसलेशन का सहारा लेना पड़ेगा.
– गैस्टहाउस, अपार्टमैंट या होटल ट्रेन स्टेशन से कितना दूर है, कौन से स्टेशन पर उतरना है, यह नोट कर लें क्योंकि स्टेशनों के नाम काफी अलग होते हैं, याद नहीं रहते, साथ ही आप को पता होना चाहिए कि वहां पहुंचना कैसे है. कई गैस्टहाउस एक बड़ी बिल्डिंग में होते हैं. नीचे हर फ्लोर का फोन होता है जो नेम प्लेट जैसा लग सकता है, संजना की फैमिली कितनी ही देर, वेनिस के गैस्टहाउस के पास भटकती रही. पास में खड़े थे लेकिन पता ही नहीं चला कि कहां से फोन करना है.
– लोकल घूमने में टैक्सी आप का पूरा बजट बिगाड़ देगी. वहां का पब्लिक ट्रांसपोर्ट बहुत अच्छा है. आप को बसों, लोकल ट्रेनों और ट्राम में सफर करने में मजा आएगा. हर जगह घंटे के हिसाब से पास बनते हैं. लेकिन शमिता वाली गलती न करें. उस ने एम्स्टर्डम में पास बनवा लिया, वह भी 3 दिन का. वहां जा कर पता चला कि वह पास एक ही कंपनी की बसों में चलता है. पास के चक्कर में घूमने का पूरा मजा किरकिरा हो गया. हां, स्विट्जरलैंड में स्विस पास काफी काम आता है. उस एक पास से आप कई ट्रेनों, ट्राम, क्रूज पर सफर कर सकते हैं. कुछ डैस्टिनेशंस के टिकटें भी शामिल होते हैं. बाकी डैस्टिनेशंस के टिकटों में डिस्काउंट मिलता है. वैबसाइट पर जा कर सबकुछ चैक कर लें. हर देश के ट्रैवलिंग पास में ऐक्स्ट्रा चीजें भी होती हैं. यह पास औनलाइन खरीद सकते हैं.
– ट्रेन, ट्राम, मैट्रो टिकट बुकिंग का सैल्फ सिस्टम होता है. पहली बार थोड़ा मुश्किल लग सकता है.
– हर शहर के ट्रांसपोर्ट का ऐप होता है, वहां पहुंचते ही वह ऐप इंस्टौल कर लें. बस, ट्राम, ट्रेन का रूट और टाइम चैक कर के मजे से पूरा शहर घूम सकते हैं.
– कई बार जानकारी के अभाव में गलत जगह पैसा खर्च हो जाता है. हिमानी का परिवार हौंगकौंग में डिज्नीलैंड की सैर कर चुका था. उन्होंने पैरिस में भी डिज्नीलैंड के टिकट बुक करा लिए. उन्हें लगा कि वहां कुछ अलग होगा, लेकिन सबकुछ लगभग एकजैसा था. लिहाजा, पछतावे के कारण बाकी ट्रिप का मजा नहीं ले पाए. जरूरी नहीं कि हर जगह जाना ही है. हो सकता है कुछ चीजें आप दूसरे देशों में देख चुके हों.
– कुछ जगहें मौसम पर निर्भर करती हैं जैसे स्विट्जरलैंड में टिटलिस माउंटेन उस दिन जाना चाहिए जब वहां धूप हो वरना आप के पैसे खराब हो जाएंगे. सुबह 5-6 बजे, इस की वैबसाइट पर जाएं और मौसम की लाइव अपडेट्स देखें. वो सन्नी शो कर रहा है तो तुरंत टिकट बुक करा लें. वहां धूप होगी, तभी आप पूरा नजारा देख पाएंगे. ऐसी ही स्थितियां दूसरी जगहों के लिए भी हो सकती हैं. पहले से पूरी रिसर्च कर लें.
– टिटलिस माउंटेन पर तापमान माइनस में चला जाता है, ऊनी दस्ताने, टोपी, मोटे मोजे, बर्फ में चलने वाले जूते साथ ले कर जाएं. होटल से सब पहन कर जाएंगे तो रास्ते में गरमी लगेगी. अत: वहीं जा कर पहनें.
– कोई टिकट औनलाइन बुक न हो तो घबराएं नहीं जैसे पैरिस में ऐफिल टावर का टिकट. सुबह जल्दी निकलें. आराम से टिकट मिल जाएगा. हर जगह के टिकटों के बारे में रिसर्च कर लें कि कौन सा टिकट औनलाइन बुक कराना जरूरी है.
– वहां गैस्टहाउस के मालिक भी वहीं रहते हैं. 1, 2 या 3 कमरे गैस्ट के लिए रखते हैं. गैस्टहाउस के रूल्स पढ़ लें. कई जगह चैक आउट करते समय बैडशीट, तकिए के कवर हटा कर टब में डालने होते हैं और रसोई का कूड़ा डब्बों में रखना होता है क्योंकि सफाई खुद ही करनी होती है. वहां मेड नहीं होती. कूड़ेदान के रंग के हिसाब से गीला और सूखा कूड़ा रखना होता है.
– कुछ लोग, डाइनिंगटेबल पर एक साइड अपने लिए रखते हैं और दूसरी साइड गैस्ट के लिए. बैठने से पहले पूछ लें कि आप को किस साइड बैठना है. फ्रिज में से चीजें निकालते वक्त खयाल करें कि आप केवल ब्रेकफास्ट के लिए ही दूध, जूस, ब्रैड, बटर, जैम, कौफी ले सकते हैं क्योंकि ब्रेकफास्ट ही रूम के चार्जेस में शामिल होता है. वह भी अलग रखा होता है.
यूरोप ट्रिप की प्लानिंग करने में जितना ज्यादा समय लगाएंगे, उतना ही ज्यादा आप वहां ऐंजौय कर पाएंगे.

Family Story: पहली किस्त- रहस्यमय और दिलचस्प बन गया था मामला

Family Story: प्रिया ने औफिस पहुंचते ही बिना समय गंवाए फाइल में लगी चिट्ठियों को पढ़ कर उन्हें छांटने का काम शुरू कर दिया. उसे मालूम था संपादक आज स्तंभ की फाइलें मांगेंगे. मैगजीन की डैडलाइन आ चुकी है. काम शुरू हुए 10 मिनट ही हुए थे कि उसे लगा उस की कुरसी की बगल में कोई खड़ा है. बिना कुछ कहे देर से. संपादक ने फाइल के लिए चपरासी भेजा होगा, प्रिया ने यही समझ. लेकिन चेहरा घुमा कर देखा तो हड़बड़ा गई. बगल में धीर खड़ा था.
धीर प्रिया के औफिस में ही काम करता था. रिपोर्टर था, लेकिन धीर से उस का व्यक्तिगत तौर पर परिचय नहीं था. बातचीत कभी नहीं रही. आमनेसामने दिख गए तो बस एकदूसरे को विश कर दिया. धीर की 6 महीने पहले पौलिटिकल ब्यूरो में नियुक्ति हुई थी, इतना ही वह उस के बारे में जानती थी.
प्रिया काम में पूरी तरह लीन थी, इसलिए धीर संकोचवश जल्दी उसे बोल नहीं पाया. प्रिया कुरसी छोड़ कर उठ खड़ी हुई. नियुक्ति के आधार पर धीर भले ही जूनियर था, लेकिन उम्र में कम से कम उस से 2-3 साल बड़ा तो होगा ही.
‘‘जी कहिए,’’ प्रिया ने पूछा.
‘‘मैं धीर हूं. पौलिटिकल ब्यूरो में हूं.’’
‘‘मैं जानती हूं. मुझ से कोई काम है?’’ प्रिया ने उसे पूरा सम्मान देते हुए कहा.
‘‘जी.’’
‘‘कहिए?’’
‘‘बैठिएबैठिए. आप काम कीजिए. अभी नहीं. लंच के समय बात करेंगे. आप से अलग
से कुछ बात करनी है,’’ धीर ने कहने के साथ
ही प्रिया की बगल में बैठी लड़की की तरफ
नजर दौड़ाई.
लड़की का नाम ऋचा था. प्रिया से जूनियर थी. पत्रों और स्तंभ के लिए आई रचनाओं को अलग कर फाइल में लगाने का काम करती थी.
प्रिया ने कुछ नहीं कहा. वह खामोशी से धीर के चेहरे को देख रही रही. वह समझ गई जो भी बात है, धीर उस लड़की के सामने नहीं कहना चाहता. वह थोड़ा परेशान हुई. स्तंभ विभाग और पौलिटिकल ब्यूरो एकदम अलगअलग विभाग हैं. काम को ले कर भी इन दोनों विभाग के बीच किसी तरह का संबंध नहीं है, फिर औफिस की ऐसी क्या बात है जो धीर को अकेले में करनी है? प्रिया समझ नहीं पाई. उस के चेहरे से धीर ने समझ लिया कि वह परेशान है ‘‘मैं लंच करने के बाद लाइब्रेरी में आप का इंतजार करूंगा,’’ धीर ने प्रिया की हैरानी पर बिना ध्यान दिए कहा और उसे उसी तरह उलझन में छोड़ चला गया.
प्रिया ने कह तो दिया ठीक है, लेकिन उस के दिल में धुकधुकी मची थी.
‘देखा जाएगा,’’ अंत में प्रिया मन में उठ रहे तरहतरह के सवालों को झटक फिर से काम में जुट गई.
‘द पब्लिक फोरम’ मैगजीन में आए प्रिया को 1 साल हो गया था. यह उस की पहली नौकरी थी. शुरू में उसे भी ऋचा की तरह पाठकों के पत्रों, स्तंभ के लिए आई रचनाओं को छांटने का जिम्मा मिला था. 4 महीने बाद ही संपादक ने उस की मेहनत से खुश हो कर उक्वसे स्तंभ विभाग का इंचार्ज बना दिया था. 1 साल बीत जाने के बावजूद दफ्तर में उस की घनिष्ठता किसी से नहीं हो पाई थी.

शायद उसे यह पंसद ही नहीं था. लंच के समय साथ में बैठी कुछ महिला सहयोगियों से थोड़ी गपशप हो गई, औफिस में आतेजाते लोगों को विश कर दिया, नमस्ते का जवाब दे दिया, बस इतना ही.
6 महीने पहले धीर जब नयानया औफिस में आया था तो पहली नजर में ही वह प्रिया को अच्छा लगा था, लेकिन इस से ज्यादा कुछ नहीं. दुबलापतला, 6 फुट से थोड़ी कम लंबाई, गोराचिट्टा, उलटी मांग से बाल संवांरता, खुशमिजाज दिखा वह. प्रिया खुद सुंदर थी. रंग गोरा होने के साथसाथ उस के नैननक्श भी बहुत अच्छे थे, खासकर उस की काली गहरी बड़ी आंखें काफी आकर्षक थीं. दफ्तर में बहुत से लोग उस के आगेपीछे घूमते रहते. उसे इस का पूरा अंदाजा था. उस की जरा सी लगावट को कोई गंभीरता से न ले ले, यह हमेशा उस के दिमाग में बना रहता था. इसलिए भी वह शायद रिजर्व रहती थी. धीर वैसे खुद गंभीर स्वभाव का कभी नहीं था, लेकिन प्रिया की गंभीरता उसे अच्छी लगती थी.
‘द पब्लिक फोरम’ का औफिस 2 बड़े हालों में था. गेट से औफिस में घुसते ही एक
बड़ा हाल था. इस हाल में 40 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी. हाल में एक किनारे पार्टीशन के जरीए 4 कैबिन बने थे जिन में एक कैबिन पौलिटकल ब्यूरो का था. कुल 3 लोग की मेजें इस में लगी थीं. धीर यही बैठता था. इस हाल के बाद एक बहुत बहुत बड़े कमरे की लाइब्रेरी में बदल दिया था. इस के बाद छोटा सा हाल, जिस में 20 लोगों के बैठने का इंतजाम था.
स्तंभ विभाग इसी छोटे हाल में था. यानी धीर और प्रिया के विभाग के बीच अच्छाखासा फासला था.
लंच ब्रेक में धीर लंच करने के बाद लाइब्रेरी में प्रिया का इंतजार कर रहा था. प्रिया वहां पहुंची तो अखबार में वह सिर गड़ाए मिला. प्रिया के पहुंचते ही उस ने तुरंत बगल की खाली कुरसी उसे औफर की.
इस के पहले कि प्रिया कुछ उस से पूछे, धीर ने जेब से एक कटिंग निकाली और बिना कुछ कहे उसे प्रिया की तरफ बढ़ा दिया. यह कटिंग अंगरेजी अखबार में छपे एक विज्ञापन की थी. प्रिया की उत्सुकता बढ़ गई. उस ने अखबार की कटिंग हाथ में ले कर विज्ञापन को ध्यान से देखा. यह एक सार्वजनिक नोटिस था. उस ने उत्सुकता के साथ उसे पढ़ना शुरू किया-
‘मेरी पत्नी ईशा 15 जुलाई से आभूषण और नक्दी ले कर घर से लापता है. उस के किसी भी लेनदेन से मेरा और मेरे परिवार का कोई संबंध नहीं है-
सुदीप, शिकागो, अमेरिका.’
नोटिस में दिल्ली का एक पता दिया था.
ईशा, पिता रोमेश,
बीसी 23, कैलाश कालोनी, नई दिल्ली.

नोटिस अंगरेजी में था. इसे पढ़ते ही प्रिया के दिमाग में पहला सवाल यही आया कि यह शिकागो का मामला है, फिर नोटिस भारत से छपने वाले अखबार में क्यों दिया गया है? नोटिस से स्पष्ट था पत्नी ईशा अमेरिका से भागी है, लेकिन उस के पति और उस के परिवार को यह कैसे मालूम कि ईशा अमेरिका से भाग कर भारत ही आई है? वह अमेरिका के किसी दूसरे शहर में या किसी यूरोपीय देश में भी तो किसी के साथ भाग सकती है?
प्रिया ने धीर को कटिंग लौटाते हुए उसे सवालिया निगाह से देखा. दरअसल ये सारे सवाल पहले से उस के सामने खड़े थे. उन के जवाब धीर ही दे सकता था.
‘‘संपादकजी ने दी है इनवैस्टिगेट कर स्टोरी करने के लिए. कल दी थी. कहा है कि लड़की और लड़के वाले के घर वालों से बातचीत कर पता लगाओ, इस पर खबर करो,’’ धीर ने प्रिया की उत्सुकता शांत करने की
कोशिश की.
प्रिया के सामने खड़ेबड़े प्रश्न का यह पूरा जवाब नहीं था. वह अभी भी चुपचाप उसी सवालिया निगाह से धीर को देख रही थी.
धीर समझ गया. बोला, ‘‘असल में मेरी संपादक से जब बात हुई तो उन से मैं ने कहा कि इस मामले में लड़की से और उस के मांबाप से बात करनी पड़ सकती है. मेरे साथ संपादकजी का भी मानना है कि लड़की भारत में ही होगी, बहुत मुमकिन है मांबाप के घर में. ऐसे में लड़की, उस के मांबाप से बात करनी होगी, रिपोर्टर हूं और पुरुष भी, हो सकता है लड़की मुझ से बात न करे. कोई महिला रिपोर्टर बात करे तो यह मुमकिन हो सकता है. मैं ने यह भी उन से निवेदन की कि मैं ने सामाजिक या ह्यूमन इंटरैस्ट की खबर कभी नहीं की है, आप किसी महिला रिपोर्टर को ही यह मामला सौंप दीजिए तो ज्यादा अच्छा होगा.’’
‘‘फिर?’’ प्रिया की उत्सुकता जस की तस बनी थी. उस के मन में घुमड़ रहे प्रश्न का अभी तक जवाब नहीं मिला था. धीर अपनी बात को थोड़ा लंबा खींच रहा था. बोला, ‘‘वे कहने लगे औफिस में कोई ऐसी महिला रिपोर्टर है नहीं जो इस तरह की जांचपड़ताल कर सके. जो 2-3 हैं वे फैशन, प्रदर्शनी, सैलिब्रिटीज के इंटरव्यू तक ही सीमित रहती हैं. यह अलग तरह की खोजबीन वाली खबर है. फिर इस में लड़के का परिवार मुझ से परिचित है, इसलिए छपने से पहले यह बाते इधरउधर फैले, यह मैं नहीं चाहता. इसलिए तुम्हें यह मामला सौंपा है.’’
‘‘लेकिन इस में मैं कहां से आ गई?’’ प्रिया के लिए अब बरदाश्त करना मुश्किल हो गया.

‘‘लड़की और उस के मांबाप से बात करने वाला मुद्दा उन के सामने मैं ने फिर से उठाया और कहा कि औफिस से कोई महिला कलीग साथ रहे तो बेहतर होगा. वे तुरंत तैयार हो गए. उन्होंने मेरा सुझव मान लिया, कहा तुम देख लो कौन ठीक रहेगा. मैं कह दूंगा या तुम ही कह देना किसी को,’’ कह कर धीर कुछ देर के लिए चुप हो गया.
प्रिया सारी कहानी समझ गई.
‘‘मैं ने आप का नाम लिया उन से तो वे तैयार हो गए. मुझे लगा कि आप यह काम बेहतर कर सकती हैं,’’ धीर ने अपनी बात खत्म की.
‘‘लेकिन मैं ने कभी रिपोर्टिंग नहीं की है,’’ प्रिया ने कहा.
‘‘मैं ने आप को बताया न कि महिला रिपोर्टर कोई यहां होती तो वे मुझे यह खबर करने को नहीं कहते.’’
प्रिया अभी भी संतुष्ट नहीं थी. वह धीर से इस सवाल का जवाब बेताबी से चाहती थी कि उस के दिमाग में मेरा नाम ही क्यों आया? धीर से उस की इस से पहले कभी बात नहीं हुई थी, फिर उसे अचानक यह इलहाम कैसे हो गया कि मैं काबिल हूं, मैं कर सकती हूं यह काम? बहुत सी लड़कियां हैं ऐडिटोरियल में और दूसरे विभागों में, फिर मैं ही क्यों? लेकिन वह समझ गई कि ये सारे सवाल धीर के लिए समस्या खड़ी कर देंगे. न जाने क्यों वह यह नहीं चाहती थी. वैसे भी धीर का प्रस्ताव सामने आते ही उसे आश्चर्य के साथ खुशी भी हुई थी. रिपोर्टिंग का मौका मिल रहा है. दिल ने तत्काल हां कह दी. कमबख्त दिमाग परेशान कर रहा था.
‘‘तो आप इस असाइनमैंट के लिए तैयार हैं?’’ अभी प्रिया यह सब सोच ही रही थी कि उसे धीर की आवाज सुनाई दी.
‘‘ठीक है, अगर संपादकजी का आदेश है
तो मैं कैसे मना कर सकती हूं,’’ प्रिया ने अपनी तरफ से सीधे हां या ना में जबाब नहीं दिया, अपनी कोई इच्छा जाहिर नहीं होने दी. संपादक की आड़ ली.
धीर इस की वजह समझ रहा था. पहला परिचय था. ऐसे में कोई भी लड़की इतनी सावधानी बरतती.
लंच अवकाश खत्म हो चुका था. 2-4 लोग लाइब्रेरी में आ गए थे. दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई. दोनों अपनेअपने विभाग में चले गए.

इनवैस्टिगेशन कहां से शुरू करनी है, किस तरह इस पर आगे बढ़ना है, यह योजना धीर को ही बनानी थी. धीर यह जानता था, लेकिन वह किसी भी योजना पर प्रिया की मुहर लगवा कर आगे बढ़ना चाहता था. प्रिया के ईगो को कहीं चोट न पहुंचे, यह भी देखना था उसे.
शाम को औफिस की छुट्टी होने पर प्रिया औफिस में थोड़ी देर के लिए रुक गई. बड़े हाल में अभी भी 15-20 लोग थे. इन में ज्यादातर दूसरी शिफ्ट वाले थे जिन की दोपहर 2 बजे से ड्यूटी शुरू होती है.
धीर के दोनों सहयोगी जा चुके थे. प्रिया अपना बैग ले कर धीर के कैबिन में आ गई. धीर के साथ अकेले उस के कैबिन में बैठने में प्रिया को संकोच तो था, लेकिन किसी तरह की घबराहट नहीं थी. जो काम हो रहा था वह संपादक के संज्ञान में था. उसे धीर की परिपक्वता और पेशेगत ईमानदारी पर भरोसा था. कैबिन की दीवारें शीशे की थीं, यह भी अच्छा था.
विज्ञापन के जरीए इस मामले की जो कुछ जानकारी मिली थी वह यही थी कि किसी ईशा की शादी शिकागो के सुदीप से हुई थी. वे दोनों संपन्न परिवारों से हैं. शादी के कुछ महीने बाद पत्नी ईशा अपने या ससुराल के दिए गहनों को ले कर बगैर ससुराल वालों को बताए गायब हो गई. उस के चले जाने के बाद उस के पति सुदीप ने उस के भागने और उस से संबंध खत्म करने के बारे में अखबार में नोटिस दिया है. उन दोनों मियांबीवी के बीच में कोई कानूनी मसला भी है या नहीं, इस की जानकारी दोनों के पास नहीं थी.

ईशा और सुदीप की शादी टूटी यह कोई बड़ी बात नहीं है, शादियां टूटती रहती हैं. बड़ा सवाल यह है कि ईशा आखिर भागी क्यों? शादी नहीं टिकी तो तलाक ले सकती थी. क्या वहां ससुराल में उसे प्रताडि़त किया जा रहा था? वहां घर से निकलने पर पाबंदी थी और मौका मिला तो भाग गई? फिर वहां से भागी तो गई कहां? दिल्ली अपने मायके या कहीं और गहनों के साथ भागने का संबंध कहीं धोखाधड़ी और ठगी से तो नहीं जुड़ा है? यानी गहने और पैसा लूटने के लिए ही उस ने शादी की और फिर मौका देख कर फरार हो गई. अगर यह धोखाधड़ी का मामला है तो क्या उस के घर वाले भी इस में शामिल हैं. ऐसी कई खबरें पहले भी आ चुकी हैं या फिर शिकागो में किसी और से चक्कर चला और ईशा उस के साथ भाग गई?
इन सवालों के जवाब ढूंढ़ना आसान नहीं था. दोनों के सामने मुश्किल यह थी कि इन में से कोई भी संभावना सही हो सकती है. धीर समझ रहा था भावी तहकीकात इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने से ही संबंधित है.

‘‘गनीमत यह है प्रिया कि दिल्ली का एक पता हमारे पास है. इस के सहारे हम खोजबीन शुरू कर सकते हैं वरना शिकागो जाना पड़ता. शिकागो तो छोडि़ए, संपादकजी कैलाश कालोनी तक का टैक्सी का पैसा देने को तैयार न हों,’’ कहने के साथ धीर हंसा. प्रिया भी मुसकराई.
‘‘हालांकि मुझे आश्चर्य यह भी है कि पति ने अपनी पत्नी का नाम लिख कर उसे तो सार्वजनिक तौर पर बदनाम किया ही, उस के घर का पता दे कर उस के परिवार के इज्जत की भी बखिया उधेड़ दीं. मुझे लगता है कि ऐसा जानबूझ कर किया गया है. सवाल यह भी है आखिर इतनी नफरत क्यों है लड़के और उस के घर वालों को?’’ प्रिया ने कहा.
धीर को भी यह कुछ अजीब लगा. सच में इस तरह का काम तो कोई जलाभुना, बुरी तरह विक्षिप्त पति ही कर सकता है.
ईशा के घर का पता एक बड़ी लीड थी और दोनों ने यह तय किया कि पहले वे ईशा के यहां जाएंगे. खोजबीन की शुरुआत वहीं से हो सकती है.
दूसरे दिन सुबह 10 बजे धीर और प्रिया कैलाश कालोनी में खोजते हुए रोमेश की कोठी पहुंच गए. कैलाश कालोनी की एक चौड़ी सी लेन के आखिरी कोने पर रोमेश की कोठी थी. दरवाजे पर विशालकाए गेट. बाहर सड़क पर 3 गाडि़यां खड़ी थीं. सभी महंगी. ढाई मंजिल की इस कोठी की निचली मंजिल रोमेश ने किराए पर दे रखी थी. पहली मंजिल पर वे खुद परिवार के साथ रहते थे. सब से ऊपर बरसाती, 1 कमरा और 1 बाथरूम.
प्रिया थोड़ी सहमी थी. धीर ने उसे आश्वस्त किया. रोमेश के घर के दरवाजे पर पहुंच कर धीर ने दरवाजे पर लगी घंटी का बटन दबाया. थोड़ी देर में ही दरवाजा खुल गया, जिन्होंने दरवाजा खोला उन की 50-55 की उम्र रही होगी.
‘‘कहिए. किस से मिलना है?’’
‘‘जी रोमेशजी से,’’ धीर ने कहा.
‘‘मैं ही हूं रोमेश बताइए?’’
रोमेश इस तरह दरवाजे पर ही मिल जाएंगे, यह दोनों ने नहीं सोचा था.
‘‘जी हम दोनों ‘द पब्लिक फोरम’ मैगजीन से हैं. रिपोर्टर हैं. ‘टाइम्स औफ इंडिया’ में एक नोटिस छपा है कि आप की बेटी अमेरिका से आभूषण ले कर लापता है,उस सिलसिले में खोजबीन करने आए हैं,’’ झटके से उबरते ही धीर ने बगैर किसी संकोच के कहा.
रोमेश यह सुनते ही उत्तेजित हो गए, ‘‘पहली बात तो यह है कि मेरी बेटी घर में ही है. कहीं लापता नहीं है. दूसरे हम इस बारे में आप लोगों से कोई बात नहीं करना चाहते हैं. आप को खोजबीन के लिए किस ने कहा?’’
धीर यह जवाब सुनने के लिए पहले से तैयार था. उस ने थोड़ा कड़े शब्दों में कहा, ‘‘देखिए आप नहीं बात कीजिएगा तो हम शिकागो में सुदीप और उन के परिवार वालों से बात कर लेंगे. हम तो स्टोरी देंगे ही. आप का पक्ष नहीं जाएगा. लिख देंगे आप ने जानबूझ कर बात करने से मना कर दिया.’’
यह सुनते ही रोमेश के आत्मविश्वास को झटका लगा. चेहरे पर हलकी सी परेशानी नजर आई. थोड़ी देर दरवाजे पर खड़े सोचते रहे. फिर उन्होंने दरवाजा पूरा खोल दिया, ‘‘आइए…’’

भीतर ले जा कर उन्होंने प्रिया और धीर को ड्राइंगरूम में बैठाया. ड्राइंगरूम की सजावट और वहां रखे कीमती समान को देख कर दोनों समझ गए रोमेश पैसे वाले हैं. दोनों को बैठा कर वे भीतर गए. 5 मिनट बाद वापस आए. शायद वे इस नई मुसीबत के बारे में पत्नी और परिवार के दूसरे सदस्यों से सलाह करने गए थे.
‘‘क्या पूछना चाहते हैं आप लोग?’’
‘‘बस 1-2 सवाल. जैसे यह नोटिस अखबार में क्यों दिया गया है? आप की बेटी ईशा घर में है या नहीं है? अगर है तो वह शिकागो से बगैर किसी को बताए कैसे चली आई? क्या संदीप ने यह विज्ञापन गलत दिया है?’’
‘‘ईशा घर में ही है. वह कहीं नहीं गई थी. वह कभी गायब नहीं थी. विज्ञापन में जो कुछ है वह सरासर झठ है,’’ रोमेश ने उसी तरह सख्त स्वर में कहा.
दोनों को आश्चर्य हुआ लेकिन उन्होंने चेहरे से इसे जाहिर नहीं किया.
‘‘फिर सुदीप की तरफ से नोटिस क्यों छपवाया गया?’’
‘‘यह तो आप उन्हीं से पूछिए, हम नहीं जानते क्यों नोटिस दिया गया,’’ रोमेश का चेहरा निर्विकार था.
थोड़ी देर किसी ने कुछ नहीं कहा. वैसे धीर जानता था रोमेश बोलेंगे. उस का अंदाजा सही निकला.
‘‘ईशा को 10 मई को शिकागो जाना था. उन लोगों को हवाईजहाज के टिकट का इंतजाम करना था. शिकागो से यहां टिकट भेजना था. उन्होंने टिकट तो भेजा नहीं उलटे यह नोटिस छपवा दिया,’’ रोमेश ने कहा.
‘‘ऐसा कैसे कर सकते हैं वे?’’
‘‘यह भी आप उन्हीं लोगों से पूछिए. मैं क्या बता सकता हूं. मेरा इतना पैसा शादी में खर्च हुआ. मेरी बेटी की जिंदगी भी खराब हुई.’’
धीर समझ गया रोमेश पूरा सच नहीं बोल रहे हैं.
‘‘नोटिस में आरोप है कि ईशा उन लोगों के जेवरात के साथ गायब है?’’

‘‘सरासर झठ है यह. ईशा वही गहने ले कर आई है जो शादीशुदा लड़कियां हमेशा पहने रहती हैं जैसे दोनों हाथों के कंगन, गले का हार, कानों की बालियां. बाकी अपने सारे गहने वह शिकागो छोड़ कर आई है.’’
रोमेश की बातों ने मामले को और उलझ दिया था. यह मामला अब पेचीदा बन चुका था. धीर ने एकाध सवाल और किया, फिर दोनों ने रोमेश से विदा ली.
पूरी बातचीत में प्रिया चुप रही. रोमेश के यहां से बाहर निकलते ही प्रिया धीर से बोली, ‘‘एक बात समझ में नहीं आ रही है. लड़की घर में है. रोमेश की बात से लग रहा है कि वह राजीखुशी यहां आई है. फिर नोटिस में भागने की बात क्यों कही गई है? ईशा या उसके पति के बीच मान लीजिए अनबन हुई, ईशा को वापस आना पड़ा तो भागने व गहनों की चोरी की बात नोटिस में क्यों दी गई?’’
‘‘पेंच तो यही है. फिर रोमेश कह रहे हैं कि ईशा की ससुराल वालों ने ही शिकागो से उसे दिल्ली भेजा, 10 मई को शिकागो वापसी के लिए वे टिकट भेजने वाले भी थे. इन की बात से तो यही समझ जा सकता है कि ईशा शिकागो से भागी नहीं है. वैसे भी पहली बार अमेरिका पहुंची किसी लड़की के लिए वहां से भागना आसान नही है,’’ धीर कुछ सोचते हुए बोला.
‘‘लेकिन यह भी तो हो सकता है शादी के बाद गहनों और दूसरे सामान को हड़पने के लिए ईशा और उस के घर वालों ने यह खेल खेला हो,’’ प्रिया ने शंका जाहिर की.
‘‘मुझे नहीं लगता थोड़े से गहनों के लिए इतनी बदनामी कोई लड़की का बाप या उस के घर वाले लेंगे? जबकि रोमेश खुद काफी संपन्न दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में सुदीप धोखाधड़ी का केस नहीं करता, अपने नोटिस में इस केस का हवाला नहीं देता, नोटिस को सनसनीखेज नहीं बनाता. मामला कुछ और है.’’
‘‘रोमेश से सच तो मिलेगा नहीं. किसी तीसरे को ढूंढ़ना पड़ेगा,’’ प्रिया ने कहा.
‘‘जैसे?’’
‘‘जैसे संदीप का यहां कोई रिश्तेदार हो, रोमेश का निकट संबंधी या फिर दोनों परिवारों का कौमन दोस्त मिले तो सही जानकारी सामने आ सकती है.’’
धीर ने चौंक कर प्रिया की तरफ देखा. उस की आंखों में प्रिया को ले कर प्रशंसा के भाव थे.
बोला, ‘‘सही कह रही हो.’’
उधर प्रिया भी रोमेश के यहां जो कुछ हुआ उस से वह धीर से प्रभावित हुई थी. उसे लगा कि रोमेश के साथ हुए पूरे वार्त्तालाप में धीर ने अपनी पकड़ बनाए रखी थी. उन की धमकी से डरा नहीं. उन्हें बात करने पर मजबूर किया. उसे यह भी अच्छा लगा कि साथ बाहर निकलते ही धीर ‘आप’ की जगह ‘तुम’ पर आ गया.
सुदीप के घर वालों से बात करने के लिए शिकागो में बैठे उस के परिवार से कैसे संपर्क किया जाए, यह दोनों की समझ में नहीं आ रहा था. थोड़ी देर चुपचाप दोनों सड़क पर चलते रहे. धीर जिस तरह चिंतन में लगा था उस में प्रिया ने उसे टोकना उचित नहीं समझ.

अचानक धीर ठिठक कर रुक गया. प्रिया ने उस की आंखों में चमक देखी. समझ गई वह किसी नतीजे पर पहुंच गया है. धीर ने पिछली पौकेट में रखे अपने पर्स से टाइम्स का विज्ञापन निकाला. संभव है यह विज्ञापन दिल्ली में छपने के लिए अमेरिका से सुदीप ने नहीं भेजा हो. यदि ऐसा हुआ है तो दिल्ली में यह विज्ञापन जिस ने भी दिया होगा उस का पता मिलना मुश्किल नहीं है. विज्ञापन में पता होगा या फिर अखबार के विज्ञापन विभाग से विज्ञापनकर्ता का पता मिल जाएगा.
अखबार में छपवाए गए नोटिस को धीर ने एक बार फिर ध्यान से देखा. एक कोने में नीचे एक मोबाइल नंबर था. यह नंबर दिल्ली का ही लग रहा था. उसे लगा इस नंबर को मिलाया जाए. फिर और कोई चारा भी नहीं था. उस ने प्रिया को बताया. प्रिया उछल पड़ी. अंधेरे में हलकी रोशनी मिल गई.
धीर ने प्रिया को अपने मोबाइल से उस नंबर को मिलाने को कहा.
‘‘लोग लड़कियों से बात करने में थोड़ा लिहाज करते हैं. मना करना भी होगा तो दो टूक मना नहीं करेंगे,’’ धीर ने तर्क दे कर उस की हिम्मत बंधाई तो प्रिया तैयार हो गई.

प्रिया ने फोन मिलाया. थोड़ी देर तक घंटी बजने की आवाज सुनती रही. फिर किसी ने उधर से फोन उठा लिया. उस ने धीर की तरफ देखा. धीर ने अंगूठे के इशारे से बैकअप किया.
‘‘हैलो. कौन बोल रहा है?’’ उधर से आवाज आई, ‘‘जी मैं प्रिया बोल रही हूं, द पब्लिक फोरम मैगजीन से,’’ इस के बाद प्रिया ने जिस तरह फोन पर बात की धीर समझ गया तीर सही निशाने पर लग गया है.
प्रिया करीब 5 मिनट तक बात करती रही. बातचीत के बीच में उस ने पर्स से पेन निकाल हथेली पर कुछ नोट भी किया. उस के चेहरे पर खुशी थी. बातचीत में सफलता उसे मिल गई थी.
‘‘यह फोन नबंर सुदीप के फूफाजी का था. सुरेश थे ये,’’ फोन कटते ही प्रिया ने धीर को बताया, ‘‘इन्होंने इस शादी में मध्यस्थता की थी. इन का कहना है कि सुदीप के साथ धोखा हुआ है. यह भी कि रोमेश गलत कह रहे हैं कि ईशा को चूंकि टिकट नहीं भेजा गया इसलिए शिकागो नहीं गई. वे मिल कर बात करने को तैयार है. उन का ग्रीन पार्क में हौंडा मोटर साइकिल का शोरूम है. पता लिखवाया है. कल बुलाया है,’’ एक सुर में धड़ाधड़ प्रिया धीर को सबकुछ बताती रही. हथेली पर उस ने सुरेश के शोरूम का पता नोट किया था. प्रिया को इस रिपोर्टिंग में मजा आने लगा था. रूटीन से हट कर धीर के साथ एक नई दुनिया देखने को मिल रही थी, एक अलग अनुभव. उस का आत्मविश्वास बढ़ रहा था.
सुरेश से मिलना बेहद जरूरी है, दोनों यह समझ रहे थे. लेकिन दिन के 2 बज गए थे. सुबह उन्होंने औफिस में हाजिरी नहीं लगाई थी. इसलिए सुरेश की मुलाकात को धीर ने दूसरे दिन के लिए टाल दिया. उन्हें फिर से फोन कर प्रिया ने अगले दिन का समय ले लिया.
उस रोज सुबह से ही आसमान को काले बादलों ने ढक लिया था. अभी बारिश नहीं हुई थी, अंधेरा छा गया था, ठंडी हवाओं ने मौसम को काफी खुशनुमा बना दिया था. मौसम के बदले रुख को देख प्रिया और धीर ने औफिस 9 बजे ही छोड़ दिया. सुरेश ने उन्हें दोपहर 12 बजे का समय दिया था. लेकिन डर यह था कहीं बारिश न शुरू हो जाए. ग्रीन पार्क उन के औफिस से दूर था. जब वे ग्रीन पार्क पहुंचे तो उस समय उन के पास काफी समय था. थ्रीव्हीलर से उतर कर उन्होंने इधरउधर टहलना शुरू किया. मौसम अच्छा था. अच्छे मौसम में इस तरह की चहलकदमी ट्रैफिक के शोरशराबे के बावजूद अच्छी लग रही थी.
दोनों जब सुरेश के शोरूम पर पहुंचे उस समय हलकीहलकी बूंदें पड़ने लगी थीं. सुरेश शोरूम में मिल गए. उन दोनों का इंतजार कर रहे थे. दोनों ने अपना परिचय दिया. सुरेश ने गरमजोशी से दोनों का स्वागत किया, तुरंत चाय मंगाई.

धीर ने अभी 1-2 शुरुआती सवाल पूछे ही थे कि सुरेश अपनी तरफ से शुरू हो गए. वे पहले से भरे पड़े थे, किसी से मिल कर सबकुछ बताने के लिए बैचेन थे. उधर बाहर तेज बारिश शुरू हो गई थी.
‘‘सुदीप का मैं सगा फूफा हूं. लड़की के पिता रोमेश के परिवार से भी मेरा पुराना परिचय है. हालांकि दोनों परिवारों का परिचय शादी के विज्ञापन के जरीए हुआ था. फिर मुझे दोनों पार्टियों ने शादी में मध्यस्थ बना दिया. सच पूछिए तो पागल कुत्ते ने काट लिया था मुझे.’’
धीर और प्रिया ने ठहाका लगाया. माहौल कुछ हलका हुआ.
सुरेश ने एक नई जानकारी दोनों को दी, ‘‘प्रिया को 10 मई को न्यूयौर्क और फिर वहां से शिकागो जाना था. टिकटें रोमेश को भेज दिए गए थे. उन्हें टिकटे मिल गए थे. प्रिया को वहां कैसे और किस तरह पहुंचना है, यह सब जानकारी देने के लिए 2 दिन पहले 8 मई को सुदीप की मां ने शिकागो से रोमेश को फोन किया. फोन पर रोमेश घबराए हुए थे. सुदीप की मां ने जब उन से उन की घबराहट की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि ईशा घर से गायब है. वह घर पर नहीं है. इसलिए वह 11 मई को न्यूयार्क नहीं पहुंच रही है. सुदीप की मां ने उन से पूछा भी कि ईशाकहां गई है और कैसे गई है, लेकिन रोमेश इस का ठीक से जवाब नहीं दे पाए.’’

मामला दिलचस्प और रहस्यमय बनता जा रहा था. पर यह समझ में नहीं आ रहा था कि रोमेश ने कैसे अपनी बेटी के गायब होने की बात सीधे उस के ससुराल वालों को बता दी? कोई दूसरा बहाना बना सकते थे. शायद उस समय इतना घबरा रहे होंगे कि मुंह से सच निकल गया, धीर इस नतीजे पर पहुंचा.
ईशा के बारे में उस के पिता से यह सब सुनने के बाद सुदीप के घर वालों के होश उड़ गए. घबराई हुई सुदीप की मां ने दूसरे दिन मुझे फोन किया. सारी बात बताई और कहा कि रोमेश से मिल कर मैं बहू के बारे में पता लगाऊं. मैं रोमेश के यहां गया. 11 मई की यह बात है. रोमेश उदास थे. निहायत शालीनता से उन्होंने बात की. यह बताया कि ईशा तो 7 मई से घर में नहीं है. कहां गई है उन्हें नहीं पता. अपनी बेटी की इस करतूत पर उन्होंने शर्मिंदगी भी जाहिर की.
सुरेश ने थोड़ा गंभीर हो गए, ‘‘उन की बात सुनने के बाद मुझे 2 चीजें अजीब लगी.’’
पहली यह कि 4 दिन बीत जाने के बाद भी रोमेश ने अपनी लड़की के गायब होने की पुलिस में रिपार्ट नहीं लिखाई. दूसरी, ये सब जब बता रहे थे तो उन के चेहरे पर उदासी थी, वे लज्जित थे, लेकिन जवान बेटी के इस तरह से गायब हो जाने के बावजूद मुझे कहीं से कोई घबराहट नजर नहीं आई. ऐसा कैसे हो सकता है? जिस की बेटी गायब हो वह इतना संयत दिखे? मेरे दिमाग में बारबार यह सवाल चोट पहुंचा रहा था. इस के बाद मैं ईशा की खबर लेने उन के घर 2-3 बार गया तो उन का व्यवहार बदला नजर आया. काफी रुखे लहजे में बात करने लगे थे.’’
‘‘जबरन की गई शादी तो नहीं थी यह. यानी ईशा की मरजी के खिलाफ यह शादी की गई हो और यहां आने के बाद वह शिकागो वापस जाना नहीं चाहती हो?’’ धीर ने पूछा.
‘‘ऐसा तो कभी नहीं लगा. शादी और उस के पहले संगीत पार्टी वगैरह की जो भी रस्में हुई उन में वह हमेशा खुश दिखाई दी, हर रस्म उस ने खुशीखुशी की,’’ फिर जैसे सुरेश को कुछ याद आया,’’ शादी और विदाई का पूरा वीडियो मेरे ही पास है. शाम को मेरे घर आइएगा, मैं दिखाता हूं. आप लोगों को खुद पता चल जाएगा कि ईशा की शादी जोरजबरदस्ती हुई थी या उस की सहमति से.’’
धीर ने प्रिया को देखा. रात में जाने की समस्या उसे ही हो सकती थी.
‘‘ठीक है आप घर का पता दे दीजिए. हम लोग शाम को आ जाएंगे,’’ प्रिया ने तुरंत कहा.

शोरूम से बाहर निकलते ही प्रिया ने धीर की तरफ देखा. कई चीजें भीतर घुमड़ रही थीं. लेकिन वह पहले धीर की राय जानना चाहती थी.
‘‘यह तो साफ है कि रोमेश झठ बोल रहे थे. टिकट न भेजने वाली दलील बकवास है. अब सवाल यह है कि ईशा टिकट आने के बाद भी शिकागो वापस क्यों नहीं लौटी? दूसरे क्या वाकई अपने घर से गायब हुई थी और गायब हुई थी तो क्यों? घर से गई थी तो कहां गई थी?’’ धीर ने कहा.
प्रिया ने कुछ नहीं कहा. वह खुद भी कुछ हद तक इसी नतीजे पर पहुंची थी. वह यह भी समझ रही थी कि इन कडि़यों को सुलझना आसान नहीं है.
‘‘यार भूख लगी है. कुछ खाओगी?’’ धीर ने पूछा.
प्रिया ने ‘हां’ कहने में देर नहीं लगाई. दोनों ही ग्रीन पार्क में एक दक्षिण भारतीय रेस्तरां गए. ढोसा और लैमन राइस मंगाए. कोल्ड कौफी पी. तृप्त हो कर जब रेस्तरां के बाहर निकले तो दोनों के सामने समस्या अब यह थी कि सुरेश के यहां जाने स पहले शाम 6 बजे तक का समय वे कहां बिताएं. दफ्तर जाने का कोई मतलब नहीं था. सुबह हाजिरी लगा चुके थे.
‘‘आईपैक्स में फोटो प्रदर्शनी लगी है वहां चले?’’ धीर ने सुझव दिया.
प्रिया ने इसे भी तुरंत स्वीकार कर लिया. धीर का साथ उसे अच्छा लग रहा था. प्रदर्शनी में उन्होंने काफी समय बिताया. कुछ फोटो को ले कर बहस भी हुई. प्रिया अब धीर से पूरी तरह खुल चुकी थी. धीर हैरान था. क्या यह वही लड़की है जो औफिस में अपने में एकदम गुमसुम रहती थी?

शाम 6 बजे सुरेश के बताए पते पर जब वे पुरानी दिल्ली उन के घर पहुंचे तो दोनों ही भीतर से ताजगी महसूस कर रहे थे. सुरेश के पास दिल्ली में हुई शादी की वीडियो, तसवीरों के अलावा शिकागो में एक पांचसितारा होटल में लड़के वालों की तरफ से आयोजित शादी की रिशैप्शन की तसवीरें भी थीं. वीडियो में कई जगह ईशा पति, सासससुर, मेहमानों के साथ हंसती और ठहाके लगाते दिखाई दी. खुशीखुशी से बाकायादा पोज दे कर फोटो खिंचवाए थे उस ने. कहीं यह नहीं लग रहा कि वह उदास है या उस के साथ किसी तरह जोरजबरदस्ती हुई है.

जयमाला व शादी की अन्य रस्मों, हर जगह उस का मुसकराता चेहरा दिखा. सहेलियों,बहनों के साथ ठिठोली करती, ठहाके लगाती ईशा की अलबम में कई तसवीरें थीं.
‘‘मेरी कुछ दिन पहले ही शिकागो में सुदीप के मांबाप से बात हुई है. उन्होंने बताया कि शिकागो में ईशा 6 महीने रही. इस दौरान एकदम सामान्य थी, सुदीप के साथ कई पार्टियों में खुशीखुशी गई. भारत आने के पहले सुदीप के साथ जम कर शौपिंग की, अपने घर वालों के लिए कई चीजें खरीदीं,’’ सुरेश ने बताया.
इन तसवीरों को देख कर धीर के मन में एक नया शक पैदा हुआ. ईशा के शिकागो वापस न जाने की एक वजह सुदीप ही तो नहीं है, कहीं सुदीप में किसी तरह का दोष हो, कोई कमी हो जिसे शादी के बाद बिस्तर पर समझने और महसूस करने के बाद ईशा का मन उस से उचट गया हो. लेकिन अगर ऐसा कुछ रहा होता तो ईशा ने एक हफ्ते में ही वह कमी ढूंढ़ ली होगी, फिर शिकागो में इतने दिन सामान्य रहने और हंसीखुशी सुदीप के साथ पार्टियों में जाने का नाटक नहीं करती, न ही रोमेश को ये सब झठ बोलने की जरूरत थी.
दोनों जब सुरेश के घर से निकले तो शाम के 7 बज चुके थे. धीर ने रेस्तरां में चाय पीने के साथ सभी राय करने का प्रस्ताव रखा. प्रिया रुकना तो चाहती थी पर उस की अपनी मजबूरी थी. बोली, ‘‘दफ्तर के समय के बाद इतनी देर तक कभी बाहर नहीं रही. मां सख्त हैं और कई तरह के सवाल पूछने लगेंगी. लड़कियों की अलग मजबूरी होती है.’’

यह सुनने के बाद धीर ने फिर उसे रुकने के लिए नहीं कहा.

रात में बिस्तर पर लेटेलेटे धीर ने अभी तक जो कुछ जानकारी मिली, उस का विश्लेषण शुरू किया. इस जानकारी के बावजूद यह समझना मुश्किल था कि टिकट मिलने के बावजूद ईशा वापस क्यों नहीं गई? अपने साथ 2 परिवारों के सम्मान को क्यों दांव पर लगा दिया? फिर उस के पति ने इस तरह का घटिया सार्वजनिक विज्ञापन क्यों दिया?
धीर को लगा उसे रोमेश के घर एक बार फिर जाना चाहिए. वही एक मजबूत स्रोत है. उसे लग रहा था कुछ बातें उन्होंने अभी नहीं बताई हैं. स्टोरी फाइल करने से पहले ईशा से भी मिलना होगा. बात करने से सामने मना कर दे तो भी. बात करने को तैयार हो गई तब तो और भी अच्छा है. हालांकि दूसरी संभावना पर उसे शक था. -क्रमश:

Family Story

Monsoon Special: मुहांसों और तैलीय त्वचा से निबटें, जानिए ऐक्सपर्ट से…

Monsoon Special: मौनसून का मौसम भले ही गरमी से राहत दिलाता हो लेकिन यह त्वचा के लिए कई समस्याएं भी साथ लाता है. इस मौसम में नमी बढ़ जाती है, पसीना अधिक आता है और त्वचा तैलीय हो जाती है, जिस से मुंहासे, फोड़ेफुंसियां और रैशेज जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं. अगर समय रहते इन समस्याओं पर ध्यान न दिया जाए तो ये लंबे समय तक त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती हैं.
आइए, जानते हैं कुछ खास घरेलू नुसखों के बारे में जो आप की त्वचा को मौनसून में साफ, स्वस्थ और चमकदार बनाए रखने में मदद कर सकते हैं:

ग्रीन ग्राम और मेथी का स्किन क्लींजिंग पाउडर

मौनसून में सब से जरूरी होता है कि अपनी त्वचा को नियमित रूप से अच्छी तरह साफ किया जाए ताकि पसीना और धूलगंदगी त्वचा के रोमछिद्रों को बंद न कर सके. इस के लिए आप एक खास स्किन क्लीनिंग पाउडर बना सकते हैं:

विधि: 1 टेबलस्पून मूंग दाल (ग्रीन ग्राम) पाउडर,
1 टेबलस्पून चने की दाल (बेसन) पाउडर,
1 टीस्पून मेथी के बीजों का पाउडर. इन सभी को मिला कर एक एअरटाइट डब्बे में रखें.

रोजाना 1 टीस्पून पाउडर को गुलाबजल में मिला कर चेहरे पर लगाएं और 2-3 मिनट मसाज करने के बाद धो लें. यह त्वचा को गहराई से साफ करता है और मुंहासों को बढ़ने से रोकता है.

रात को पीएं नीबू, सेंधा नमक वाला पानी और लगाएं हनी व एग पैक

त्वचा की चमक और अंदर से डिटौक्स करने के लिए यह उपाय बहुत कारगर है. यह शरीर के अंदर से गरमी कम करता है और त्वचा पर असर दिखाता है.

विधि
– रात को 1 गिलास पानी में 1 टीस्पून सेंधा नमक और
1/2 नीबू का रस मिलाएं और पीएं.
– बचे हुए नीबू के रस को 1 टीस्पून शहद और अंडे की सफेदी के साथ मिला कर चेहरे पर लगाएं.
– 15-20 मिनट बाद ठंडे पानी से धो लें.
इसे 6 से 8 हफ्तों तक लगातार करने से त्वचा साफ, चिकनी और चमकदार बनती है. यह उपाय त्वचा की गहराई से सफाई करता है और मुंहासों को जड़ से खत्म करता है.

घमौरियों से राहत के लिए बौडी डस्टिंग पाउडर

मौनसून में पसीना अधिक आने से पीठ, सीने, पेट और माथे पर छोटेछोटे लाल दाने (घमौरियां) हो जाते हैं जो खुजली और जलन पैदा करते हैं.

विधि
– समान मात्रा में बोरिक पाउडर, चंदन पाउडर और टैल्कम पाउडर मिलाएं.
– इस मिश्रण को दिन में 2 बार शरीर पर बुरकें विशेषकर उन जगहों पर जहां पसीना अधिक आता हो. यह त्वचा को ठंडक देता है, पसीने को सोखता है और खुजली से राहत दिलाता है.

काले जीरे का लेप सूजन को रोके

त्वचा पर मुंहासे या फोड़ेफुंसियों की शुरुआत हो रही हो तो काले जीरे से बनी यह घरेलू दवा बहुत असरदार होगी:

विधि
– काले जीरे को पानी में पीस कर पेस्ट बना लें.
– इस पेस्ट को प्रभावित हिस्सों पर लगाएं.
यह उपाय त्वचा की सूजन को शुरुआती स्तर पर ही कम कर देता है और संक्रमण को फैलने से रोकता है

नीम की छाल का चमत्कारी प्रयोग

अगर चेहरे पर बारबार फुंसियां होती हैं और उन में मवाद भर जाता है तो यह उपाय फायदेमंद रहेगा:

विधि
– नीम के पत्तों को उबालें और उस पानी में नीम की छाल को पीसें.
– इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं.
नीम ऐंटीबैक्टीरियल और ऐंटीसैप्टिक होता है जो त्वचा से संक्रमण को खत्म करता है और त्वचा को साफ करता है.
Monsoon Special

Family Story: तीन औरतों वाला घर

Family Story: ‘‘उफ, कितनी गरमी है. पता नहीं कब मेरा नंबर आएगा,’’ भावना सामान्य से अधिक गरमी महसूस कर रही थी. आज उसे हौस्पिटल में भीड़ भी अधिक नजर आ रही थी. वह रूमाल से पंखा झलने की कोशिश करने लगी ताकि चेहरे पर ताजा हवा फैले और वह राहत की सांस ले. लेकिन यह हवा उसे कहां आराम दिलाने वाली थी. वह अंदर से बेचैनी महसूस कर रही थी.
‘‘पानी पियोगी? कौन सा महीना है? तुम्हारे साथ कोई और नहीं दिख रहा?’’ अचानक कई सवाल उस के पास आए तो भावना ने गरदन घुमा कर देखा. एक करीब 55-60 वर्ष की महिला पास की सीट पर बैठी उस की तरफ पानी की बोतल बढ़ाए थी. भावना ने उसे आश्चर्य से देखा.
‘‘मैं ने पूछा पानी पियोगी?’’
उस महिला द्वारा पुन: पूछने पर भावना ने उस के हाथों से बोतल ले कर पानी की कुछ घूंट गले के नीचे उतारे और राहत की सांस लेते हुए पानी की बोतल वापस उस महिला की तरफ बढ़ा दी और कहा, ‘‘थैंक्स आंटी.’’
‘‘किस के साथ आई हो? पहला बच्चा है न?’’
‘फिर से सवाल,’ भावना मन ही मन झंझला उठी लेकिन जाहिर नहीं होने दिया. बस एक छोटा सा जवाब दिया, ‘‘हां.’’
‘‘मैं तुम्हारी उम्र से समझ गई थी कि यह तुम्हारा पहला बच्चा है. अभी तो कुछ महीने बाकी होंगे डिलिवरी में? हैं न?’’ बुजुर्ग महिला भावना के पेट के उभार को देखते हुए बोली.
‘‘क्या आंटी, थोड़ा पानी क्या पिला दिया आप तो मेरा प्रेजैंट, फ्यूचर सब जानने के लिए परेशान हो गईं,’’ भावना ने जवाब दिया पर अपना यह व्यवहार उसे स्वयं अच्छा नहीं लगा. अत: बोली, ‘‘सौरी आंटी, मुझे यों जवाब नहीं देना चाहिए था. लेकिन आप मुझे इरिटेट मत कीजिए प्लीज.’’
‘‘कोई बात नहीं बेटा, मैं तो हूं ही बड़बोली. सब से बात करने लगती हूं बिना किसी जानपहचान के.’’
‘‘कृष्णा आइए,’’ अपना नाम सुन कर वह महिला डाक्टर के कैबिन में चली गई. अपना चैकअप कराने के बाद कृष्णा कैबिन से बाहर आई.

अगला नंबर भावना का था. भावना कैबिन में गई. डाक्टर उसे कुछ भी कहने

से पहले उस के पेरैंट्स को बुलाना चाहती थी. भावना ने अपनी स्थिति बताई लेकिन डाक्टर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. अत: उसे अपने साथ कोई अभिभावक लाने के लिए कहा. कैबिन से निकल कर भावना बाहर कुरसी पर बैठ गई.
कृष्णा परची पर लिखी दवा ले कर नर्स के पास गई और खाने का रूटीन पूछने लगी. फिर निर्देशों को समझने के बाद बाहर जाने के लिए आगे बढ़ी कि अचानक उस के कदम रुक गई, ‘‘अरे राम्या, क्या हुआ? यह चोट कैसे लग गई?’’
‘‘कुछ नहीं दीदी… एक औटो वाले से टकरातेटकराते बची हूं. बचने के क्रम में साइड में गिर पड़ी तो बस हलकी सी खरोचें आ गईं. यहां फर्स्ट एड के लिए आई हूं.’’
‘‘चल जल्दी, पहले दवाई ले ले,’’ कहते हुए कृष्णा राम्या को कंपाउंडर के पास ले गई.
इधर भावना भी अस्पताल से निकलने के लिए कैबिन के पास से उठ कर मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ी. उस के कदमों की गति मंद और बो?िल थी. उस के मन में भाव उमड़ रहे थे कि अब वह क्या करे. वह कुंआरी ही गर्भवती हो गई थी. वह मन ही मन खुद को कोसने लगी कि कितनी बेवकूफ हूं मैं. उस के मन में शारीरिक भूख थी और मैं पगली उसे प्यार समझ बैठी. लोग सही कहते हैं, यह उम्र बहुत नाजुक होती है. थोड़ा भी लापरवाह बनो तो न जाने किधर बहक जाएं. मैं बुद्धू राह भटक गई और उस की रसीली बातों में आ गई.

शंका का गुबार समेटे भावना आगे बढ़ती जा रही थी कि तभी किसी की आवाज

आई, ‘‘भावना…’’
भावना ने पलट कर देखा तो राम्या आ
रही थी.
‘‘भावना तुम यहां? बात क्या है?’’ राम्या भावना के पेट का उभार देख कर बोली.
राम्या को अचानक सामने देख कर भावना झेंप गई. उसे अपने किए पर ग्लानि भी महसूस हो रही थी. वह कुछ भी बोलने में असहज महसूस कर रही थी. परिस्थितियों को भांपते हुए राम्या भावना और कृष्णा को पास के रैस्टोरैंट में चलने के लिए बोली. पहले तो वे दोनों तैयार नहीं होईं मगर बाद में राम्या के स्नेहिल हठ के आगे हार मान लेती हैं और फिर तीनों रैस्टोरैंट के फैमिली कैबिन में गा बैठीं.
राम्या ने खाने का और्डर दिया. कृष्णा और भावना एकदूसरे से पूर्वपरिचित नहीं थे मगर राम्या इन दोनों से ही परिचित थी. राम्या एक तलाकशुदा महिला थी, उम्र लगभग 40 वर्ष. वह मां नहीं बन सकती थी इस कारण उस का वैवाहिक जीवन खराब मोड़ पर आ गया था. पति दूसरी महिला की तरफ मुड़ चुके थे. ससुराल वाले भी अपने बेटे का पक्ष लेते. वह रोजरोज के झगड़े से ऊब चुकी थी. प्रताड़ना सहतेसहते उस का धैर्य भी खत्म हो गया था. थकहार कर उस ने अपने पति से तलाक ले लिया और फिर अपने जीवन को अकेले ही बेहतर ढंग से जीने की सोची. अब वह प्राइवेट जौब कर रही थी और किराए के मकान में अकेली रहती थी.
कृष्णा की उम्र का छठा दशक बीत रहा था. पति को गुजरे करीब 10 वर्ष हो गए चुके थे. पति के गुजरने के बाद वह अकेली हो गई थी. एक बेटा था जो विदेश में ही बस गया था. ऐसे में उस ने दुख और अकेलेपन का रोना रोने के बजाय जीवन को आनंदमय रखना उचित समझ. भावना नवयुवती थी जिस के मातापिता नहीं थे और वह अपने भैयाभाभी के साथ रहती थी.
‘‘मैं बेकार का सवाल पूछ कर तुम्हें आहत नहीं करना चाहती लेकिन बहुत समय बाद मिले हैं तो तुम्हारा हालचाल जानने की इच्छा हो रही है. मुझे अपनी बड़ी बहन समझ,’’ राम्या ने भावना के हाथ पर अपनी स्नेहिल हाथ रखते हुए कहा.
‘‘बिटिया… तुम्हें हौस्पिटल में परेशान सा देखा था. तुम्हें अपनी बात हमारे बीच साझ करनी चाहिए. यदि कोई समस्या हो तो बोलो. शायद बात करने से कोई समाधान निकल आए,’’ कृष्णा ने भी भावना को प्यार से समझया.
वेटर और्डर किए गए खाने को टेबल पर रख कर चला गया. भावना राम्या की तरफ एक सरसरी निगाह डाली और फिर तुरंत नजरें नीचे कर लीं. फिर एक गहरी सांस लेते हुए बोली, ‘‘मेरा 7वां महीना चल रहा है. मेरा प्रेमी मुझे धोखा दे कर भाग गया. भैयाभाभी ने मुझ से रिश्ता तोड़ लिया क्योंकि मेरा गर्भपात नहीं हो सकता था. मेरी जान को खतरा है. शुरू में मैं ने ध्यान नहीं दिया. प्रेमी ने शादी करने का आश्वासन दिया था, मगर अब मुझे छोड़ दिया. किसी तरह एक वूमन होस्टल में रहने का आश्रय मिला. डाक्टर का कहना है कि बच्चे की स्थिति थोड़ी ठीक नहीं लग रही है. हो सकता है कि समय से पहले सिजेरियन करना पड़े. ऐसे में वह बिना किसी अभिभावक को साथ रखे हाथ नहीं लगाना चाहते, रिस्क है. मैं अब इस बच्चे के साथ जीना चाहती हूं,’’ कहते हुए भावना सुबकने लगी तो थोड़ी देर के लिए सन्नाटा पसर गया.
‘‘चुप हो जाओ. अब तुम खुद को अकेली मत समझ. मैं तुम्हारा साथ दूंगी. तुम्हारी नादानी के कारण जो परिस्थितियां उभरी हैं उन के लिए तुम्हारा बौयफ्रैंड भी जिम्मेदार है. अब वर्तमान और भविष्य को संवारो,’’ राम्या ने भावना को धैर्य बंधाया.
‘‘यह ठीक कह रही है बेटी. तुम्हारे लिए हम अभिभावक बनेंगे,’’ कृष्णा ने?भी भावना को तसल्ली दी.
राम्या ने भावना की स्थिति को देखते हुए अपने साथ रहने को कहा लेकिन भावना ने मना कर दिया.
‘‘किसी भी चीज की जरूरत हो तो बेहिचक कहना,’’ दोनों ने भावना को आश्वस्त किया कि अब वह अकेली नहीं है.

भावना का 8वां महीना शुरू हो गया. डाक्टर ने गर्भ की स्थिति देखते हुए

तुरंत सिजेरियन करने की सलाह दी. ऐसे में कृष्णा ने फौर्म पर गार्जियन के रूप में हस्ताक्षर किए, वहीं राम्या अन्य व्यवस्थाओं को पूरा करने में व्यस्त रही. भावना ने बच्चे को जन्म दिया लेकिन वह बहुत कमजोर था. ऐसे में अभी पूरी तरह उसे डाक्टर की निगरानी में रखना था.
देखतेदेखते 10-12 दिन गुजर गए. डाक्टर ने मां और बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी. राम्या उसे अपने घर ले आई. 2-3 दिन तो सब ठीक रहा लेकिन धीरेधीरे पासपड़ोस में कानाफूसी होने लगी. महल्ले वाले राम्या को पहले ही हेय दृष्टि से देखते थे लेकिन अब भावना को साथ रखने के बाद लोग नाराजगी भी जाहिर करने लगे. भावना कुंआरी मां थी और राम्या तलाकशुदा अकेली औरत.
‘‘मैं कहती थी न… यह एकदम गिरी हुई औरत है. देखो इस की संगति… लड़की बिन ब्याही मां है. इज्जत नाम की चीज तो है ही नहीं इन के पास.’’
‘‘देखते जाओ… अब तो धीरेधीरे पूरा महल्ला दूषित होगा.’’
‘‘ऐसे कैसे दूषित होगा? हम क्या हाथ पर हाथ धर कर बैठने के
लिए हैं? बात करेंगे इन
के मकानमालिक से. जल्दी हटाना होगा इस गंदगी को.’’
अब आएदिन राम्या को महल्ले वालों के तानों और गुस्से से गुजरना पड़ रहा था. शुरू में तो वह बेबाकी से जवाब देती मगर अब उस के मकानमालिक ने भी जल्द से जल्द मकान खाली करने का आदेश दे दिया.

एक शाम कृष्णा राम्या के घर बैठी थी.

उस की बातें सुन कर बोलीं, ‘‘हमारा समाज
अकेली महिला को जीने कहां देता है. यदि वह संघर्ष करते हुए सिर उठा कर जीने की कोशिश करती है तो उस के सिर को झकाने या कुचलने का हर संभव प्रयास किया जाता है.’’
‘‘सही बात बोल रही हैं दीदी. देखिए न, मेरा पति तो मजे से अपनी लाइफ जी रहा है लेकिन मुझे क्या कुछ नहीं झेलना पड़ रहा है. इस भावना को देखो गलती तो उसे लड़के ने भी की लेकिन सारी तकलीफ यह झेल रही है,’’ कहते हुए राम्या का चेहरा मायूस हो गया.
‘‘यह समाज पुरुषों की तो हजार गलतियां माफ कर देता है लेकिन स्त्री की एक गलती उस के साथ जीवनपर्यंत चलती रहती है. लोग कहते हैं कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है लेकिन एक स्त्री हो कर तुम भावना की मदद कर रही हो तो समाज विरोध कर रहा है.’’
कुछ देर तक दोनों चुप रहीं. तभी भावना बच्चे को सुला कर कमरे से बाहर आई और एक तरफ बैठने के बाद बोली, ‘‘आप दोनों को मेरी वजह से परेशानी हो रही है. मेरे किए की सजा आप लोग क्यों भुगतेंगी? मैं यहां से चली जाती हूं?’’
यह सुन कर कृष्ण बोली, ‘‘खबरदार जो फिर ऐसा कहा. परेशानी से तो हमारा नाता ही रहा है. मेरे पति के गुजरने के बाद मेरा बेटा मुझे यहां अकेले छोड़ गया. खोजखबर लेने भी नहीं आता. इंतजार कर रहा है कि कब बुढि़या मरे तो प्रौपर्टी बेच कर विदेश में ही अपना बंगला खरीद लूं.’’
‘‘मैं ने भी खुशियों की बगिया कहां देखी है? इस उम्र में अकेले लोगों की सवाल करती नजरों और दिल भेदते तानों के साथ जी रही हूं,’’ राम्या ने भी अपनी बात कही.

तीनों बैठी सोचविचार कर रही थीं कि क्या किया जाए. तभी कृष्णा बोली, ‘‘राम्या,

इस मकान को खाली कर दो और तुम दोनों चलो मेरे घर. अब हम तीनों वहां एकसाथ रहेंगे.’’
‘‘लेकिन दीदी…’’ राम्या असमंजस के भाव में इतना ही बोल पाई.
‘‘ज्यादा सोचविचार मत करो. हम तीनों अलगअलग अकेले क्यों जीएं? क्यों न हम एकसाथ एक परिवार के रूप में रहें. आज से हम एक परिवार के अंग हो गए. चलो मेरे घर.’’
राम्या और भावना के पास फिलहाल कृष्णा की बात मानने के सिवा दूसरा कोई उपाय नहीं था. दोनों कृष्णा के घर शिफ्ट हो गईं. अब कृष्णा का घर भराभरा सा लगने लगा. उस के एकांत जीवन में राम्या, भावना के साथ एक नन्हे बच्चे की किलकारियां कुछ अलग ही एहसास बिखेरने लगी थीं.
कामवाली आई तो उस ने समझ कि मेहमान आए हैं.
कृष्णा ने कहा, ‘‘कुंती, आज से तुम्हारा काम बढ़ गया है. अब ये दोनों यही रहेंगी और हां… घर की साफसफाई में विशेष ध्यान देना. छोटा बच्चा है, कोई दिक्कत न हो.’’

धीरेधीरे तीनों वहां सैट हो गईं. कुंती भी उन

दोनों के साथ काफी घुलमिल गई. भावना के बच्चे से उसे भी लगाव हो गया.
एक दिन बच्चे को गोद में रख कर उस की मालिश करते हुए कुंती कृष्णा से बोली, ‘‘दीदी, अगर बुरा न मानो तो एक बात बोलूं?’’
‘‘क्या? बोल.’’
‘‘भावना दीदी इस बच्चे को बिना पिता के सारी जिंदगी संभाल पाएंगी?’’
‘‘तू ऐसा क्यों पूछ रही है?’’
‘‘बस… मेरे मन में यह बात आई. मैं कहती हूं कि बिना पुरुष के क्या स्त्री के जीवन के कोई माने हैं? अकेले तो वह बेसहारा लावारिस जैसी ही हुई न?’’
‘‘यही तो हम महिलाओं को सिखाया जाता है कि पुरुष की छत्रछाया के बिना उस का जीवन कुछ भी नहीं. लेकिन तू ही बता, जब स्थिति विकट हो जाए तो अकेले जीना गलत है क्या? स्त्री का जीवन सिर्फ जिम्मेदारी उठाने और कष्ट झेलने के लिए होता है क्या? तू अपनी देख न, घरों में काम कर के अपना और परिवार का खर्च चल रही है. तेरा मर्द कुछ करता नहीं उलटे तेरी ही कमाई चुरा कर शराब पीता है और तुझ से मारपीट करता है. अब बोल, तू उस का सहारा है कि वह तेरा?’’ कृष्णा बोली.
कुंती ने चुपचाप सिर झका लिया.
‘‘अरे… स्त्रीपुरुष दोनों एकदूसरे के लिए जरूरी होते हैं लेकिन कुछ पुरुष स्त्रियों के मानसम्मान आदि रौंद कर अपनी मर्दानगी दिखाने में ही विश्वास रखते हैं. वैसे लोगों को यह बताना जरूरी है कि स्त्री यदि चाहे तो अकेले भी जीवन जी सकती है. सीता ने भी तो अकेले ही लवकुश को पाला और संघर्ष किया था न?’’
‘‘दीदी आप ने सही कहा. हम स्त्रियां भी अपनी जिंदगी जीएं यही होना चाहिए. स्त्री जिस मकान को घर बनाती है उस में उसे कितना महत्त्व मिलता है? मायके में पराए घर जाने वाली होती है और ससुराल में दूसरे घर से आई पराए व्यक्ति के रूप में देखा जाता है. ऊपर से कुछ तो अपनी सुविधानुसार पत्नी बदलने का औप्शन भी रखते हैं,’’ राम्या ने कृष्णा की बात से सहमति जताते हुए कहा और फिर अपने दुख को भी याद करने लगी.
‘‘कुंती, जरा चाय बना कर लाना. राम्या, अब छोड़ो ये सब बातें, कुछ नमकीन ले आओ चाय के साथ लेने के लिए,’’ राम्या को उस की दुखद याद से बाहर लाने के लिए कृष्णा बोली.
तीनों परिवार जीवन जी रही थीं. हंसीठिठोली करने के साथ एकदूसरे के सुखदुख में भी सहभागी थीं. कुंती का भी अब धीरेधीरे सब के बीच मन रमने लगा. उसे लगता उसे कुछ सखियां मिल गईं. भावना का बच्चा तो सब के मनोरंजन का प्रमुख साधन था. उस के सामने रहते मजाल है जो कोई अपने दुख को याद करे?

जीवन इतना आसान भी तो नहीं होता. अब शायद फिर से उन के जीवन के

ऊबड़खाबड़ रास्ते की शुरुआत होने वाली थी जिस पर उन्हें चलना था. अचानक एक दिन कृष्णा का बेटा अनूप घर आया. बेटे को अचानक आया देख कर कृष्णा की ममतामयी आंखें छलछला उठीं. दिल में नवांकुर फूटने लगे. उल्लास कुछ ऐसा था मानो बेटे ने अभीअभी उस के गर्भ से जन्म लिया हो.
‘‘अनूप… तुझे मां का प्यार खींच ही लाया न? आ बेटा, चल अंदर,’’ कृष्णा भीगती आंखों और लड़खड़ाती जबान से इतना ही बोल पाई.
अनूप घर के अंदर जा कर सीधे सोफे पर बैठ गया. कृष्णा तेजी से रसोई की तरफ बढ़ी और डब्बों में मठरी ढूंढ़ने लगी. उसे मालूम था कि अनूप को मठरियां बहुत पसंद हैं.
‘‘यह कुंती भी न, बोली थी कि थोड़ी मठरियां बना दे लेकिन आजकल पर टालती रही. शायद बेटे का आभास ने ही मेरी जबान से कहलवाया हो मठरी बनाने के लिए,’’ कृष्णा बड़बड़ा रही थी.
एक प्लेट में कुछ नमकीन और मिठाई रख कर कृष्णा बेटे के लिए ले आई, ‘‘ले बेटा, कुछ खा कर पानी पी ले फिर खाना लगाती हूं.’’
बेटे के लिए कृष्णा के पास खुशी दिखाने के लिए शायद शब्द न थे. वह सोच रही थी कि अब उस का बनवास खत्म हो गया है. शायद बेटा यहीं रहने की बात करे या उसे अपने साथ विदेश ले जाए. तब तक भावना भी कमरे से बाहर हौल में आ गई.
उसे देखते ही अनूप बोला, ‘‘यही है न जो इस घर पर कब्जा जमाए बैठी है तुम्हारी सारी प्रौपर्टी हथियाने के लिए?’’
अनूप की बात सुन कर कृष्णा को झटका लगा. वह समझ नहीं पा रही थी कि बेटे को समझए या डांटे.
तभी अनूप फिर से बोल पड़ा, ‘‘देखो मां, बहुत हो गया ड्रामा. अब पिताजी जो भी प्रौपर्टी छोड़ गए हैं वह सब मुझे दे दो.’’
‘‘सब तेरा ही है बेटा. लेकिन मेरा क्या? मैं तुम्हारी नहीं? कभी यह भी बोल देता कि मां तुम पर मेरा पूरा अधिकार है और मैं तुम्हें अपने पास रखूंगा,’’ इस बार कृष्णा की आंखें दुख से छलछला उठीं.
‘‘तुम्हें पता है न, मैं ने विदेशी लड़की से शादी की है और मुझे वहां की नागरिकता भी मिल गई है तो मैं यहां आने से रहा. तुम्हें वहां नहीं ले जा सकता, सेजल नाराज हो जाएगी. ऊपर से वहां के माहौल में तुम सैट नहीं कर पाओगी.’’
‘‘बेटा, एक मां को औलाद का प्यार ही सब जगह सैट कर देता है,’’ कृष्णा ने अपने आंसू पोछते हुए कहा, ‘‘खैर, यह अचानक तुझे प्रौपर्टी कैसे याद आ गई?’’
‘‘तुम्हें क्या लगता है मुझे कुछ नहीं पता? तुम्हारी हर खबर मेरे पास पहुंचती है. मैं भले ही विदेश रहता हूं लेकिन मेरे कुछ शुभचिंतक हैं यहां,’’ अनूप खुद को होशियार दिखाते हुए बोला.
भावना कुछ बोलना चाह रही थी. उस की आंखों से महसूस हो रहा था कि अनूप की बातें उसे बुरी लग रही हैं मानो वह सोच रही हो कि मांबेटे के फसाद की जड़ वही है. लेकिन कृष्णा ने इशारे से उसे कुछ न बोलने की हिदायत दे दी.
‘‘वाह बेटा, तू सच में बहुत होशियार है. मुझ पर नजर रख रहा था. शायद तेरे मन में यही होगा कि कब यह बुढि़या टपके कि सारी प्रौपर्टी समेट लूं. शायद तेरी यह दुर्भावना तेरे पिता पहले ही समझ चुके थे इसीलिए सबकुछ मेरे नाम कर गए. अरे मूर्ख, मातापिता सबकुछ अपनी औलाद के लिए ही करते हैं. बदले में उम्मीद करते हैं कि वह बुढ़ापे का सहारा बनेगी. लेकिन तुम…’’
कृष्णा दुख और क्रोध के सागर में डूब गई. अनूप 2 दिन बाद आने की कह कर चला गया, साथ में बोल गया कि प्रौपर्टी के पेपर बनवा कर लाऊंगा. तुम्हें सारी प्रौपर्टी मेरे नाम करनी होगी.
आज का दिन काफी उथलपुथल भरा बन गया था. अनूप के जाने के बाद भावना कृष्णा के नजदीक आ कर बोली, ‘‘आंटी, मेरे कारण आप को भी कष्ट होने लगा. मैं…’’
‘‘चुप पगली, मेरा बेटा तो पहले से ही ऐसा है. मैं बुढि़या नाहक उस से उम्मीद लगा बैठी. तुम लोग अब मेरे साथ रहोगी मेरा परिवार बन कर, हमेशा,’’ कह कर कृष्णा सोफे पर बैठ गई.

शाम का समय था. राम्या भी औफिस से आ चुकी थी. कुंती भी आ कर रसोई में

बरतन करने लग गई थी. भावना से राम्या को सारी बातें मालूम हो गईं, ‘‘दीदी… अनूप आया था? आप अपनी प्रौपर्टी में से कुछ उसे दे दीजिए. आखिर वह बेटा है आप का,’’ राम्या ने कृष्णा
को समझया.
‘‘सारी दे दूं लेकिन वह भी मुझे समझे. मेरे प्रति अपनी जिम्मेदारियां समझे. नहीं, मैं उसे सबक जरूर सिखाऊंगी. हम ने उसे पढ़ालिखा कर कमाने लायक बनाया. उसे पढ़ाने में तो गांव के खेत बिक गए. लेदे कर 2 मकान हैं. एक मकान में मेरे पति के नाम से स्कूल चलता है और एक यह घर. उस स्कूल वाले मकान को मैं गरीब बच्चों के लिए दान कर दूंगी ताकि जरूरमंद बच्चे अच्छे से पढ़ सकें. कम से कम पति का नाम मेरे जाने के बाद भी तो बचा रहेगा.’’
‘‘और यह घर?’’ राम्या हलकी आवाज
में बोली.
‘‘यह घर हम तीनों का आश्रय है. हम तीनों तनहा बेसहारा इस छत के नीचे परिवार बन गए. वकील को बुलाओ और एक कारपैंटर को भी,’’ कृष्णा कुछ सोचते हुए राम्या से बोली.
राम्या, एक वकील को बुलाया. कृष्णा ने उसे अपनी सारी बात बताई. जरूरी पेपर तैयार कर के अगले दिन आने का कह कर वकील
चला गया. कारपैंटर को भी कृष्णा ने जरूरी निर्देश दे दिए.

वकील पेपर तैयार कर के लाया जिन पर कृष्णा ने अपने हस्ताक्षर कर दिए.

पेपर के अनुसार स्कूल वाला मकान कृष्णा की मृत्यु के बाद गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए दान कर दिया जाए तथा अपने रहने वाले घर में भावना और राम्या को नौमिनी बना दिया. यही नहीं, अपनी बाकी जिंदगी तथा मृत्यु के बाद से जुड़े सभी कर्तव्यों के लिए इन्हीं दोनों का नाम दिया. वकील पेपर की एक कौपी कृष्णा को दे कर चला गया.
‘‘आंटी आप ने तो हमें वे सारे अधिकार दे दिए जो परिवार के किसी सदस्य के ही पास होती हैं,’’ भावना कहते हुए कृष्णा के पैरों के पास बैठ गई. राम्या भी वहीं पास में बैठ गई.
‘‘अब तुम दोनों मेरा परिवार हो. बेटे को क्यों दूं? वह विदेश में रह कर अच्छाखासा कमाता है. अब वह खुद बनाए प्रौपर्टी. विदेश
क्या गया हमारे संस्कारों को छोड़ दिया. मैं ने लिख दिया है कि मरने के बाद मेरा क्रियाकर्म तुम लोग करना.’’
कृष्णा बोल रही थी कि तभी कारपैंटर आ गया. थैले से सामान निकाल कर दिखाया जो सच में बहुत सुंदर था. कृष्णा ने उसे मुख्यद्वार के बाहर लगाने का निर्देश दिया.
‘‘लेकिन इस की क्या जरूरत थी दीदी?’’
‘‘जरूरत थी राम्या. अनूप ने कहा न उस
के पास हमारी हर खबर पहुंचती है. मैं भी समझती हूं कि वह खबर पहुंचाने वाले महल्ले के कौन से लोग हैं. इसे लगाने के बाद अनूप जान जाएगा कि यह घर किस का है,’’ कृष्णा न कह कर कारपैंटर को वह डिजाइन सही से लगाने का निर्देश दे दिया.
उस खूबसूरत सी डिजाइन में बड़े अक्षरों में लिखा था ‘त्रिकांता हाउस.’
आज से इन तीनों महिलाओं ने पूरा जीवन एकसाथ जीने के लिए एकदूसरे का हाथ थाम लिया.

Family Story

Irregular Periods: पीरियड्स टाइम पर नहीं आते? अपनाएं ये तरीके

Irregular Periods: पीरियड्स के दौरान लड़कियों या महिलाओं में काफी हारमोनल और शारीरिक बदलाव दिखते हैं. कभीकभी पीरियड्स से जुड़े लक्षणों को मामूली सम?ा कर उन्हें अनदेखा कर दिया जाता है, लेकिन कुछ मामलों में लक्षण नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है. अगर पीरियड्स इररेग्युलर नहीं हैं, तो ओवुलेशन भी इररेग्युलर होता है. इस से कंसीव करने में समस्या होती है. इररेग्युलर पीरियड्स हारमोनल इंबैलेंस की तरफ इशारा करते हैं. ये आगे चल कर थायराइड, पीसीओएस या इंसुलिन रिजिस्टैंस जैसी समस्याओं का कारण बन सकते हैं. इसलिए अगर आप के पीरियड्स मिस हो जाते हैं या इररेग्युलर रहते हैं तो इसे नजरअंदाज न करें.

यह बौडी के ओवरस्ट्रैस्ड होने की वजह हो सकता है. इस के अलावा मैटाबोलिक इंबैलेंस या पीसीओएस और पीसीओडी जैसी समस्याएं भी इस की वजह हो सकती हैं. इस समस्या को कंट्रोल रखने के लिए ब्लड शुहर रैग्युलेट करना और एड्रनल ग्लैंड को हैल्दी रखना जरूरी है.

आइए, जाने इररेग्युलिटी पीरियड्स को नजरअंदाज करने से क्याक्या परेशानियां और बीमारियां हो सकती हैं:

लिवर रोग

अनियमित पीरियड्स से लिवर पर भी असर पड़ सकता है, जिस से फैटी लिवर जैसी बीमारियां हो सकती हैं. कांगबुक सैमसंग अस्पताल और सियोल, दक्षिण कोरिया में सुंगक्यूंकवान यूनिवर्सिटी स्कूल औफ मैडिसिन के एमडी सेउंघो रयू ने कहा, ‘‘हमारी स्टडी बताती है कि लंबे या अनियमित पीरियड साइकिल नौनअल्कोहोलिक फैटी लिवर डिसीज के खतरे का विकास कर सकते हैं या उस के जोखिम को बढ़ा सकते हैं.’’

औक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के डाइटिशियन और ओविसिटी रिसर्चर डा. दिमित्रियोस कोटोकिडिस ने कहा, ‘‘यह स्टडी यह देखने के लिए की गई थी कि क्या हारमोंस से लिवर पर कोई प्रभाव पड़ता है. स्टडी में पाया गया कि सैक्स हारमोन ऐस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरौन का असामान्य स्तर नौनअल्कोहौलिक फैटी लिवर रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है.

थायराइड

पीरियड्स समय पर ना आ रहे हों और आप उन्हें नजरअंदाज करें तो थायराइड की समस्या भी हो सकती है. दरअसल, हाइपोथायरायडिज्म (थायराइड हारमोन की कमी) और हाइपरथायरायडिज्म (थायराइड हारमोन की अधिकता) दोनों स्थितियां पीरियड्स में गड़बड़ी ला सकती हैं, जिस से महिलाओं को अत्यधिक ब्लीडिंग, हजका ब्लीडिंग या महीनों तक पीरियड न आने की समस्या हो सकती है.

कंसीव करने में परेशानी

अगर पीरियड्स रेग्युलर नहीं हैं तो ओवुलेशन भी इररेग्युलर होता है. इस से कंसीव करने में समस्या होती है.

ऐनीमिया या कमजोरी

कुछ महिलाओं में इररेग्युलर पीरियड्स के साथ हैवी ब्लीडिंग होती है. इस से कमजोरी, एनीमिया (खून की कमी) जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

स्किन और हेयर प्रौब्लम्स

इररेग्युलर पीरियड्स से चेहरे पर मुंहासे, बाल ?ाड़ना या शरीर पर अनचाहे बाल बढ़ना जैसी समस्याएं भी देखने को मिल सकती हैं. इसलिए अगर पीरियड्स अकसर इररेग्युलर होते हैं तो इसे हलके में न लें. यह शरीर के अंदर कुछ गड़बड़ी का संकेत हो सकता है.

वेट का कम या ज्यादा होना

अगर इररेग्युलिटी पीरियड्स को नजरअंदाज किया जाए तो वेट लगातार बढ़ भी सकता है और कम भी हो सकता है.

पेल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज

पेल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज (पीआईडी) एक गंभीर संक्रमण है जो महिलाओं के जननांगों के अंदर के अंगों जैसे गर्भाशय, अंडाशय और फैलोपियन ट्यूब्स को प्रभावित करता है. इस बीमारी में महिलाओं को इररेग्युलर पीरियड्स होते हैं और पेट के निचले हिस्से में दर्द, बुखार, मतली, उल्टी या दस्त भी हो सकते हैं. बच्चे के जन्म, गर्भपात के जरीए भी बैक्टीरिया रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट में प्रवेश कर सकते हैं.

यह मुख्य रूप से यौनसंचारित संक्रमण के कारण होता है खासकर क्लैमिडिया और गोनोरिया जो जननांगों तक पहुंच कर सूजन पैदा करता है. यदि इसे समय पर इलाज न मिले तो पीआईडी महिला की प्रजनन क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है, और यह बच्चे पैदा करने की क्षमता पर भी स्थाई असर डाल सकता है.

पीरियड्स को ठीक करने का तरीका

– हारमोन बैलेंस करने वाली हैल्दी डाइट लें.

– नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें.

– टैंशन से दूर रहें और उसे कम करने की कोशिश करें.

– वजन को नियंत्रित रखने की कोशिश करें.

– शराब और सिगरेट का सेवन न करें.

– उचित मात्रा में पोषक तत्त्व खाएं.

– पर्याप्त नींद लें.

Irregular Periods

Chilli Potato: टेस्ट में ट्विस्ट

Chilli Potato : ‘बारिश के मौसम में चटपटे जायके भी चखने हैं और कुछ नया भी चाहिए तो ये रैसिपीज आप के लिए ही हैं.’

चिली पोटैटो सामग्री

– 200 ग्राम आलू
– 20 ग्राम कौर्नफ्लोर
– 30 ग्राम लहसुन
– 15 ग्राम अदरक
– 20 एमएल टोमैटो सौस
– 10 एमएल चिली सौस
– 5 एमएल सिरका
– 25 एमएल शहद
– 5 ग्राम सफेद तिल
– थोड़ा सा हरा प्याज कटा
– 100 एमएल तेल
– नमक स्वादानुसार.

विधि

आलुओं के छिलके उतार कर लंबा पतला काट कर थोड़ी देर ठंडे पानी में छोड़ दें. फिर सौस बनाने के लिए एक कड़ाही में प्याज, अदरकलहसुन, शहद, चिली सौस और सिरका डाल कर अच्छी तरह चलाएं. जब सौस तैयार हो जाए तब कटे आलुओं के टुकड़ों को कौर्नफ्लोर में डिप कर के क्रिस्पी होने तक डीप फ्राई करें. फिर एक प्लेट में निकाल कर हरे प्याज और सफेद तिल से गार्निश कर सर्व करें.

Hindi Story: एलियन से प्रेम

Hindi Story: आखिर कौन था वह आदमी जिस की खातिर निशा बेचैन हो उठती थी? उस की बेचैनी उस दिन और बढ़ गई जब उस ने एक शाम छत से किसी बेजान शरीर को श्मशान की तरफ ले जाते देखा…

‘‘अभी तक तो जीवन में गति ही नहीं थी, फिर अब यह जीवन इतनी तेजी से क्यों भाग रहा है? सालों बाद ऐसा क्यों महसूस हो रहा है?’’ आधी रात बीत  चुकी थी और घड़ी की टिक… टिक… टिक… करती आवाज.

चारों तरफ कमरे में अंधेरा था, मगर लैंप की रोशनी में घड़ी को निहारती निशा की आंखें थकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. ये आंखें शायद कह रही थीं कि अगर यह घड़ी रुक जाए तो शायद समय भी ठहर जाए, फिर तो जिंदगी अपनेआप ठहर जाएगी. इसी इंतजार में निशा अभी तक के जीवन का तोलमोल करती न जाने कब तक बैठी सोचती रही कि कभी इतना एकाकीपन न था मगर आज?

औफिस के छोटे से उस कैबिन में 7 लोग बैठते थे. उंगलियां कंप्यूटर पर काम करती थीं, मगर  हर समय हंसीमजाक और ठहाके. निशा भी उन में से एक थी, मगर क्या मजाल जो चेहरे पर कभी मुसकराहट की एक छोटी सी भी लकीर दिखाई दे जाए. उधर से कमैंट मिलते, ‘‘हंसने में भी टैक्स लगता है क्या?’’

निशा जैसी थी वैसी ही थी. कोई परिवर्तन नहीं, सालों से एक ही जीवन, एक ही रूटीन, एक ही व्यवहार, कहीं कोई बदलाव नहीं. न कोई इच्छा, न आकांक्षा, न जीवन के प्रति कोई चाहत. जीवन यों ही दौड़ता चला जा रहा था, मगर रोकने का कोई प्रयास भी नहीं, सिर्फ चलते रहो, गतिहीन जीवन का एहसास लिए. न पीछे मुड़ने की चाहत, न सामने देखने की इच्छा…यही थी निशा.

उन 7 लोगों में 3 महिलाएं और 3 पुरुष थे. 7वीं निशा थी, जिस के बारे में यह कहा जा सकता था रक्तमांस से बना एक पुतला जिसमें जान डाल दी गई थी. इसलिए उसे स्त्री या पुरुष न कह कर इंसान कहा जाए तो बेहतर होगा.

निशा की बगल वाली कुरसी पर नेहा बैठती थी. हर समय हंसीमजाक. निशा उस में शामिल नहीं होती, मगर विरोध भी नहीं करती. सभी की बातें सुनती जवाब भी देती, लेकिन अपनी उसी धीरगंभीर मुद्रा में.

नेहा हमेशा निशा को टोकती, ‘‘निशा, तुम शादी क्यों नहीं करती?’’

निशा अपनी उसी चिरपरिचित मुद्रा में जवाब देती. ‘‘कोई मिले तब तो करूं.’’

तब नेहा गुस्से में कहती. ‘‘क्यों इतनी बड़ी दुनिया में पुरुषों की कमी है क्या? कहो तो मैं बात करूं?’’

‘‘मगर मेरे लायक तो इस दुनिया में कोई है ही नहीं. मेरे खयाल से अभी उस ने जन्म ही नहीं लिया है.’’

‘‘इतना घमंड,’’ नेहा ऊंचे स्वर में बोलती.

‘‘इस में घमंड की क्या बात है, जो सही है वही कहा है मैं ने,’’ निशा सहज भाव से कहती.

‘‘इस धरती पर तो तुम्हारा कोई है ही नहीं. कहो तो दूसरे ग्रह से किसी एलियन को पकड़ कर लाती हूं, उसी से कर लेना,’’ नेहा मुंह बना कर कहती.

‘‘अगर मेरे लायक होगा तो उसी से कर लूंगी,’’ निशा सहज हो कर कहती.

एमबीए करने के बाद निशा को इस मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते हुए 10 वर्ष गुजर गए थे. उस के साथ काम करने वाले कितने लोग आए और कंपनी छोड़ कर चले गए. मगर निशा ने इस कंपनी को नहीं छोड़ा. इस बडी सी दुनिया में निशा के जीवन के 2 ही आधार थे- एक उस की यह कंपनी और दूसरा वह घर जहां वह पेइंगगैस्ट थी या यों कहें तो जीवन जीने का बहाना.

गोपाल मजाक में कभी निशा को कहते, ‘‘निशाजी आप की खूबसूरती पर तरस आता है.’’

‘‘क्यों?’’ निशा मौनिटर की तरफ देखती हुई पूछती.

‘‘इस खूबसूरती को छूने वाली आंखें कहां हैं?’’ गोपाल हंसते हुए कहते.

‘‘क्यों? घर से ले कर चौराहों, सड़कों और औफिस तक कितनी आंखें पीछा करती हैं. आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?’’ निशा मुंह बनाते हुए कहती.

‘‘ये सारी आंखें तो सिर्फ आप के बाहरी सौंदर्य को छूती हैं, मगर इस सौंदर्य के पीछे छिपी आत्मा को छूने वाला कहां है?’’ गोपाल पूछते.

‘‘वह इस दुनिया में नहीं आया है,’’ निशा सहज भाव से कहती.

जीवन की शुरुआत होती है, फिर मंथर गति से चलती हुई अंत तक पहुंचती है. शुरुआत फिर अंत. मगर अब तक किस ने जाना था कि निशा के जीवन की शुरुआत कब हुई और कब अंत हो गया.

निशा के जीवन के बारे में सभी कहते, ‘‘निशा तुम ने अपना जीवन समाप्त कर लिया.’’

कठोर धरातल पर चलती निशा का हृदय भी उसी एहसास के तले दब चुका था. संवेदनाओं से ऊपर उठ चुकी निशा बड़ी सहज हो कर बोल उठती. ‘‘मगर मेरे जीवन की तो अभी शुरुआत ही नहीं हुई है.’’

समय और जीवन दोनों में होड़ लगी थी, जीत किस की होगी, यह न समय को पता था ना जीवन को. समय को एहसास था वह आगे निकल चुका है, जीवन पीछे है. जीवन को भी यही लगता कि वह आगे है, समय पीछे है. मगर वास्तविकता यह थी कि दोनों साथसाथ चल रहे थे. निशा की जिंदगी इसी एहसास के साथ चल रही थी. हर रोज वह घर से निकलती गलियों को पार करती सड़क पर आती और सड़क पर खड़ी उन इमारतों को देखती जो सालों से यों ही खड़ी थीं. उन के पास से कितने लोग आए और गुजर गए. आनेजाने का सिलसिला सालों से चलता आ रहा था. मगर इमारते वहीं की वहीं थीं.

कभीकभी निशा सिहर उठती उन को देख कर. वे बोलती प्रतीत होतीं. निशा सुनने का प्रयास करती और एक दिन उस ने सुना.

‘‘कुछ पल ठहर जाओ,’’ घबराई हुई निशा के कदम और तेज हो गए.

आज सुबह जैसे ही निशा ने अपने कैबिन में प्रवेश किया, उसे ठहाकों की आवाज मिली. देखा, गोपाल हंस रहे थे, साथ में सारे सहयोगी भी.

‘‘आइए निशाजी आप का स्वागत है,’’ गोपाल ने कहा.

‘‘क्या बात है मेरी प्रमोशन हो गई क्या?’’ निशा ने भी उसी अंदाज में कहा.

‘‘प्रमोशन तो नहीं, मगर आप की बगल वाली कुरसी का पड़ोसी बदल गया है, अब इस कमरे में हम 7 की जगह 8 हो गए हैं,’’ गोपाल ने कहा.

‘‘कौन है वह?’’ निशा ने पूछा.

‘‘धैर्य रखिए, जल्द ही आप का पड़ोसी आएगा,’’ रमेश ने मुंह बनाते हुए कहा.

गोपाल चुप थे. निशा ने तिरछी नजरों से मिस्टर रमेश की तरफ देखा और व्यंग्य से मुसकराती हुई बोली, ‘‘रमेश मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, मगर देख रही हूं, आप जरूर अनमने से हो गए हैं.’’

समय मुसकरा रहा था.

‘‘घमंड मत करो निशा, प्रारब्ध को कैसे टालोगी?’’ आज वही सवेरा था,

वही औफिस, वही लोग, मगर निशा अनमनी हो चुकी थी. उस की बगल वाली कुरसी पर बैठा वह विचित्र मानव कुछ इस तरह का था कि न बैठने का शऊर, न बात करने की तमीज देख कर लगता मानो किसी  सर्कस से भागा जोकर हो. जोरजोर से बोलना, जोरजोर से हंसना, हर किसी से जबरदस्ती बात करना. उस का बेढंगा व्यक्तित्व निशा को अनमना कर चुका था. पूरे औफिस में वह हंसी का पात्र था.

निशा उसे देख कर क्रोधित हो उठती, ‘‘इस के साथ मैं काम कैसे कर पाऊंगी?’’

निशा गंभीर थी. उस के दिमाग में एक बार इस्तीफे का भी खयाल आया. मगर फिर निशा ने अपनेआप को समझे लिया कि मुझे इस से क्या? यह जिस तरह का है, अधिक दिन टिकेगा नहीं.

उस के बेढंगेपन ने सभी को परेशान कर दिया था, जिन में निशा कुछ अधिक ही थी. उस की अजीब आदतें थीं, न किसी की बात मानता था, न किसी का कहा हुआ करता था. अच्छा या बुरा अपनी मरजी का मालिक था. सभी उस से बातें करते, सिर्फ निशा को छोड़ कर.

वक्त बितता रहा, जीवन चलता रहा. सभी थे वह भी था. मगर एक बात किसी ने महसूस नहीं की कि हर क्षण थोड़ाथोड़ा माहौल बदल रहा है. मगर यह कैसा बदलाव था? समय भी असमंजस में था. वह सभी से कुछ भी बोल जाता, मगर एक निशा ही थी, जिस के पास आते ही उस का व्यक्तित्व बदल जाता था.

महसूस निशा ने भी किया था, मगर उस की चेतना ने उसे नकार दिया था. उस की बातें सभी को खिजाती थीं, मगर आज हंसाने लगी थीं. वह ‘एक’ कहीं हावी तो नहीं हो रहा था, मगर किस कारण से?

आज सुबह ही औफिस में उस की किसी से कहासुनी हो गई, माहौल गरम था. सभी की प्रतिक्रिया उस के प्रति नकारात्मक थी. जो सीनियर थे उन्होंने उसे डांटा, जो जूनियर थे वे पीठ पीछे कानाफूसी कर रहे थे और जो साथ वाले थे उस के सामने उस की आलोचना कर रहे थे. उस माहौल में निशा अनमनी हो चुकी थी. उस से रहा नहीं गया क्योंकि सभी का कार्य इस से प्रभावित हो रहा था. वह उठी और पहली बार जोर से चिल्लाई, ‘‘विशाल तुम इधर आओ.’’

वह करीब आया., ‘‘यह क्या तमाशा हो

रहा है?’’

वह और करीब आया. बहुत करीब. निशा ने उस की आंखें देखी और चौंक पड़ी.

गुस्सा, उत्तेजना कहां थे सब? समय कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला. निशा विशाल को समझती रही. विशाल खामोश अपलक देखता, सुनता रहा. आज निशा अपनी उम्र से कहीं अधिक बड़ी थी और विशाल उम्र से बहुत छोटा, एक मासूम बच्चा.

रात्रि का दूसरा पहर बीत चुका था, मगर निशा की आंखों में नींद नहीं थी. ‘वे आंखें’ और जिंदगी मानो घुलमिल गई थी. क्या था उन आंखों में? क्षोभ, विक्षोभ, ग्लानि या उस से अलग कुछ और? भविष्य का कोई संकेत? ‘वे आंखें’ और निशा का हृदय…तपते रेत पर जल की बूंदें थीं या बंजर जमीन को जल ने भिगोने की कोशिश की थी? चौंक पडी निशा, झटके से बिस्तर से उठ खड़ी हुई, ‘‘नहीं,’’ और फिर आईने के पास खड़ी हो गई, ‘‘नहीं,’’ फिर से वही आवाज.

‘यह मैं नहीं हूं. यह निशा नहीं है यह हो ही नहीं सकती,’ कब तक वह बड़बड़ाती रही, उसे स्वयं याद नहीं था. पल गुजर गए. अब निशा बिलकुल शांत थी. द्वंद्व निद्रा से छोटा पड़ गया था. औफिस का वही माहौल था जो पहले था. ऐसा नहीं कहा जा सकता था क्योंकि आज तो वह था मगर, निशा. वह तो निश्चल, स्थिर थी. उस दिन निशा की उंगलियां कीबोर्ड पर और आंखें स्क्रीन पर थीं. तभी आवाज आई, ‘‘मैम, जरा यह पेपर डिस्कस करना है.’’

ठहरे हुए जल में मानो किसी ने पत्थर फेंका हो. निशा ने नजरें उठाईं. करीब खड़ा वह पूछ रहा था. निशा ने कुछ नहीं कहा सिर्फ सहमति में सिर हिलाया. वह बोलता रहा, वह सुनती रही. वह जा चुका था, मगर वह किसी के हृदय को विकल कर चुका था.

आईने के सामने खड़ी निशा स्तब्ध थी, ‘‘यह मैं नहीं कोई और है,’’ अपने चांदी से चमकते बालों को वह बड़े जतन से काले बालों के भीतर छिपा रही थी. ‘‘यह क्या देख रही हूं मैं? जो देख रही हूं, महसूस कर रही हूं क्या वह सच है? विचित्र एहसास है यह. आज स्वयं में स्फुरण महसूस कर रही हूं. एक अजीब शक्ति, उत्साह, नयापन… यह जिंदगी के प्रति मेरा नजरिया क्यों बदल रहा है? क्या कारण हो सकता है.’’

निशा ने स्वयं को ढूंढ़ना चाहा तो सकपका गई. सामने वही आंखें थीं, वही मासूम सा चेहरा. ‘‘नहीं’’ रोमरोम चीत्कार कर उठा था. वह झटके से उठ खडी हुई.

विशाल की खिलखिलाहट पूरे औफिस में गूंज रही थी. वही बेसिरपैर की बातें जिन का निशा कभी विरोध किया करती थी, किंतु आज वह मुसकान में बदल चुकी थी. निशा विशाल से खुल चुकी थी. अब केंचुल के भीतर छटपटाती जिंदगी बाहर निकल चुकी थी. वह हंसती, उस से बातें करती, उस से लड़ती झगड़ती और जब कभी विशाल उस के बहुत करीब आता तो चाह कर भी दूरी नहीं बना पाती. उस के बाहरी व्यक्तित्व से अलग हट कर उस के भीतर कुछ पढ़ने का प्रयास निशा के व्यक्तित्व को बदल रहा था.

हर पल, हर क्षण उस की आंखें उसे देखतीं, कुछ ढूंढ़तीं, खोजतीं, उस के हृदय को टटोलतीं और जब वह आंखें बंद करती तो स्तब्ध रह जाती, ‘‘कितना स्वच्छ, कितना निर्मल, कितना पवित्र. फिर बाहरी आवरण ऐसा क्यों है?’’ लंच का समय होता और विशाल की व्यक्तिगत बातें शुरू हो जातीं, फिर  तो ठहाकों से पूरा माहौल गूंज उठता.

विशाल मुंह बनाते हुए बोल रहा था, ‘‘यह कंप्यूटर की मगजमारी मुझे रास नहीं आती, वे भी क्या दिन थे जब मैं नानी के यहां गांव में कभी नहर के किनारे, कभी आम के पेड़ पर तो कभी खेतों में होता था और मजा तो तब आता जब दूसरे के बगीचे से आम चुराता था.’’

गोपाल ने पूछा, ‘‘आम चुराते हुए कभी आप पकड़ में आए या नहीं?’’

कई बार विशाल ने कहा, ‘‘एक बार मैं आम चुरा कर भाग रहा था कि खेत वाले ने मुझे देख लिया. फिर क्या था, डंडा ले कर जो वह मेरे पीछे दौड़ा मैं आगेआगे और वह पीछेपीछे. फिर तो नहर, खेत, बगीचा, पोखर पार करता हुआ घर पहुंचा तो नानी वहां पहले से ही डंडा ले कर बैठी हुई थीं.’’

विशाल का इस प्रकार लगातार बोलना और लोगों का सुनना, औफिस की दिनचर्या बन चुकी थी. कहीं हंसनेहंसाने का दौर चल रहा था तो कहीं भीतर द्वंद्व चल रहा था. निशा हर पल एक युद्ध लड़ रही थी.

‘‘आखिर उस में क्या है? क्यों मैं खिंची चली जा रही हूं. नहीं. मुझे उस से दूरी बनानी होगी,’’ उस की यह दृढ़ता विशाल के आते ही न जाने कहां चली जाती.

उस दिन निशा अनमनी हो कर अपनी कुरसी पर बैठी कंप्यूटर पर काम कर रही थी. तभी विशाल तूफान की तरह आया, ‘‘क्या निशाजी जब देखो तब काम, छोडि़ए भी आइए थोड़ा गप्प की जाए.’’

निशा झल्ला गई, ‘‘मुझे परेशान मत करो, बहुत से काम करने हैं.’’

‘‘मैं करने दूंगा तभी तो करेंगी,’’ और फिर विशाल ने निशा के हाथ से फाइल ले ली और उस के दोनों हाथों को पकड़ कर खींचते हुए उसे टैरेस तक ले गया, ‘‘देखिए, इस खुली हवा में आप की तबीयत खुश हो जाएगी.’’

निशा सिहर उठी थी और अनजाने में उस के मुंह से निकल पड़ा. ‘‘मगर मेरी खुशी से तुम्हें क्या मतलब?’’

‘‘मतलब है तभी तो यहां लाया हूं,’’ विशाल ने कहा.

‘‘क्या?’’ चौंक उठी निशा.

‘‘पहले आप मेरे करीब आइए,’’ विशाल ने बडे सहज भाव से कहा.

निशा की आंखें फैल गईं.

‘‘मैं ने कहा न आप पहले मेरे करीब आइए,’’ कह कर विशाल स्वयं ही निशा के बहुत करीब आ गया.

सांसें बुरी तरह निशा को स्पर्श करने लगी थीं. निशा ने अपनी आंखें बंद कर लीं. जिंदगी को इतने करीब से उस ने कहां देखा था. निशा का रोमरोम झंकृत हो चला था. सांसें तेज चल रही थीं. अभी तक उस का हाथ विशाल के हाथों में ही था. विशाल उस के और करीब आया. उस के होंठ निशा के गालों को स्पर्श कर रहे थे. यथार्थ को भूल चुकी थी निशा. मदहोशी छाने लगी थी. आज उस के पांव तले जमीन नहीं थी. अपने अस्तित्व को भूल चुकी थी वह. स्वयं से बाहर निकलना चाहती थी, मगर वर्षों से अपने आसपास उस ने जो बेडियां कस ली थीं. उन्हें तोड़ना आसान नहीं था. आज आत्मा में छटपटाहट थी. शरीर भी आत्मा का साथ दे रहा था.

कांप रही थी निशा. जीवन… सिर्फ जीवन… इतना खूबसूरत? इतनी गहराई? इतनी संवेदनशीलता?

इस अनुभूति का तो उसे ज्ञान ही नहीं था. आपा खो बैठी निशा और विशाल को अपनी बांहों में ले लिया. उस की पूरी दुनिया उस की बांहों के इर्दगिर्द समा चुकी थी. निशा की बांहें कसती जा रही थीं मानो आज उस की आत्मा और पूरा शरीर विशाल में समा जाना चाहता था.

संवेदना के इस सागर में गहरी उतरती गई निशा. न डूबने का भय, न इस सागर से ऊपर निकलने की लालसा. डूबती गई निशा. आज वह सागर की गहराई से भी आगे निकलना चाहती थी कि अचानक निशा के कानों में विशाल की आवाज गूंजी मानो बहुत दूर से आ रही हो, ‘‘जन्मदिन मुबारक हो निशा जी.’’

और फिर पीछे से औफिस की पूरी मंडली आ पहुंची. निशा की तंद्रा भंग हो गई, ‘‘यह क्या? कहां थी वह?’’ उसे संभलने में समय लगा मगर विशाल ने उसे संभाल लिया. सभी खिलाखिला रहे थे.

निशा असहज हो उठी. तभी गोपाल बोल उठे, ‘‘निशाजी,’’ जो हम लोग आज तक नहीं कर पाए वह विशाल ने कर दिखाया. आप की फाइल में से आप के जन्मदिन के बारे में पता किया गया. आप ने तो कभी नहीं बताया था.’’

निशा की आंखें बंद थीं. रात काफी बीत चुकी थी. बाहर सन्नाटा था, मगर भीतर तूफान था, ‘‘यह क्या किया मैं ने? वह मैं तो नहीं थी? निशा नहीं थी, वह तो कोई और ही थी?’’

अचानक उसे महसूस हुआ पास ही कोई खड़ा है. उस ने आंखें खोलीं, ‘‘अरे सामने तो निशा खड़ी है. फिर मैं कौन हूं?’’ सामने वाली निशा हंसी.

‘‘केंचुल से बाहर निकलो निशा. कब तक उस रूखे से बेजान, जीवनहीन केंचुल में बंद रहोगी? उतारो उसे. देखो उस साधारण से व्यक्तित्व को जिस ने तुम्हें जीवन जीने पर मजबूर कर दिया है. एक झटके में उठ बैठी निशा.

‘‘इस दुनिया में किसी की ताकत नहीं है जो निशा को बदल दे. यह तुम नहीं तुम्हारा वह बेजान सा केंचुल बोल रहा है जिस में तुम कैद हो. उधर से आवाज आई. तुम उस पल के बारे में बोल रही हो न. मैं लज्जित उस पल से,’’ निशा ने नजरें झकाते हुए कहा.

‘‘लज्जित क्यों हो? तुम्हारा अपने व्यक्तित्व पर जो गुरूर था वह

टूट गया या फिर एक साधारण से व्यक्ति ने तुम्हारी आत्मा को झकझर कर रख दिया है या फिर डरती हो उस दुनिया में जाने से जहां जाने में तुम्हें देर हो चुकी है या फिर इसी बेजान से जीवन जीने में तुम्हें आनंद आने लगा है या फिर आदत हो गई है?’’ उधर से सवाल पूछे गए.

‘‘इतने सवाल?’’ निशा की आंखें फैल गईं.

‘‘अपनेआप को ढूंढ़ो निशा. अपने भीतर झंको.’’

‘‘जीवन के इस मोड़ पर?’’

‘‘जीवन जीने के लिए किसी मोड़ को नहीं देखते हैं. कुछ लमहे जीने के लिए, उन लमहों को अंजाम देने की मत सोचो, पल को जीना सीखो.’’

निशा बदल चुकी थी, लेकिन पूरी तरह नहीं. केंचुल अब भी था. प्रत्येक क्षण वह उस में से झंकने की कोशिश अवश्य कर रही थी. परंतु इस बदलाव को किसी ने देखा नहीं. उम्र के इस मोड़ पर जिंदगी बदल रही थी. क्षणक्षण जीने की कोशिश हो रही थी. किंतु बेडि़यां तो अब भी थीं. कहीं द्वंद्व था तो कहीं दायरे सीमित थे. इन सब के बीच झलता निशा का अहं.

निशा जब भी विशाल को देखती एक अजीब कशिश महसूस करती. विचित्र कशमकश थी. एक तरफ उस की जुदाई बरदाश्त नहीं कर पाती, दूसरी तरफ उस की नजदीकियों को भी स्वीकार नहीं कर पाती थी. आंखें बंद करती तो आह निकलती. यह कैसी दुविधा है? कैसा द्वंद्व? यह जिंदगी तो मेरी नहीं, फिर मैं इसे कैसे ढो रही हूं? किंतु मैं इसे ढो कहां रही हूं? मैं तो इस में जी रही हूं, एक अद्भुत एहसास के साथ जिस में असीम गहराई है, जहां डूबने का न डर है, न किनारे आने की ख्वाहिश. आज खामोशियों में शोर है, अकेलेपन में भीड़ का एहसास है. यह कहां आ गई मैं जीवन के इस मोड़ पर?’’ और घबरा कर उस ने आंखें खोल दीं.

विचित्र क्षण था वह, दूरिया भी थीं, सन्नाटा भी था, मन में हलचल

थी, आवेग था मगर, ऊपर से सबकुछ शांत और रूखा था. क्षण बीत रहे थे कि अचानक आशा की एक किरण दिखाई पड़ी. दूर से एक औटो आता दिखा. निशा आगे बढ़ी, औटो को रोका और उस में बैठने ही वाली थी कि अचानक अचेतन ने पुकारा, ‘‘पीछे मुड़ कर देखो निशा,’’ और निशा पलटी. औटो की रोशनी में उस ने विशाल को देखा और स्तब्ध रह  गई.

‘‘वही आंखें,’’ उस के पांव स्वत: ही पीछे लौट पड़े. औटो आगे बढ़ गया. वह विशाल के पास गई और कहा, ‘‘बहुत जिद्दी हो तुम, चलो घर छोड़ दो.’’

घर पहुंच कर निशा ने कहा, ‘‘घर के अंदर नहीं चलोगे तुम?’’

‘‘नहीं मैम बहुत देर हो चुकी है.’’

‘‘क्यों सड़क पर तुम्हें देर नहीं हो रही थी? आओ मेरे साथ.’’

विशाल कुछ नहीं बोला. आज्ञाकारी बच्चे की तरह चुपचाप उस के पीछे चल पड़ा. दरवाजे पर पहुंच कर निशा ठिठक गई, फिर हंस पड़ी और बोली, ‘‘जानते हो मेरे भीतर की इस दुनिया में पहली बार किसी को प्रवेश मिला है.’’

चौंक गया विशाल, ‘‘क्यों मैडम?’’

‘‘मैं ने वह अधिकार किसी को नहीं दिया है.’’

‘‘क्यों?’’ विशाल ने पूछा.

‘‘कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ी,’’ निशा ने सहज होते हुए कहा.

‘‘तो क्या आज आवश्यकता है?’’ विशाल ने सवाल किया.

निशा ने पलट कर देखा, विशाल मुसकरा रहा था. वह कुछ नहीं बोली. वह भी चुप रहा. फिर खामोशी.

दीवारें दोनों को आंखें फाड़े देख रही थीं. कहीं द्वंद्व था, कहीं उफान था, अंतआर्त्मा की पुकार थी, पलपल उत्तेजना थी, जिंदगी जीवन चाहती थी मगर बाहरी आवरण इतना सख्त था कि बड़ी बेरहमी से इस ने सभी को कुचल डाला.

‘‘यहां घुटन हो रही है. चलो विशाल टैरेस की खुली हवा में चलते हैं,’’ और झटके से उठ खड़ी हुई निशा.

विशाल पीछेपीछे चल पड़ा. टैरेस पर आते ही निशा सहज हो गई.

विशाल ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘मैम, आप की दुनिया में प्रवेश के लिए क्षमा चाहता हूं, आप अपने बारे में कुछ बताएंगी?’’

‘‘मेरे होश में आने से पहले मेरे मातापिता का देहांत हो चुका था. चाचाचाची के यहां पलीबढ़ी, परंतु जिस दिन अपने पैरों पर खड़ी हुई उन्होंने भी दुनिया छोड़ दी.’’

झटके भर में निशा ने अपनी दुनिया में विशाल को प्रवेश दे दिया था, किंतु

एक झटके में उस ने इस द्वार को बंद भी कर दिया.

‘‘विशाल, तुम अपने घर से इतना दूर रहते हो, घर की याद नहीं आती है?’’

‘‘आदत हो गई है मैम,’’ उस ने दो टूक जवाब दिया.

‘‘छुट्टियों में जा रहे हो?’’ नहीं वह बोला.

‘‘क्यों?’’ निशा चौंकी.

‘‘क्योंकि वहां किसी को मेरी जरूरत नहीं.’’

‘‘क्यों?’’ उस ने फिर पूछा.

‘‘मुझे कोई पसंद नहीं करता मैम.’’ ‘‘तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? दुनिया का कोई मांबाप ऐसा नहीं होता,’’ निशा ने कहा.

‘‘पता नहीं. मैं तो घर का अर्थ जानता ही नहीं. बचपन से होस्टल में रहा हूं. छुट्टियों में कभी घर जाता तो खुश होने के बदले हजार नसीहतें मिलतीं. मेरी आदतें खराब हैं या मेरा व्यवहार बुरा है.’’

‘‘तुम ने कारण ढूंढ़ने की कोशिश की है?’’ निशा ने पूछा.

‘‘हां, वह इसलिए कि मुझ में कभी स्थिरता नहीं रही, बचपन में मैं बहुत शरारती था. मेरी शरारतें जब सीमाएं पार करने लगीं तो मुझे होस्टल में डाल दिया गया. मेरे शरारती होने का कारण मेरा संयुक्त परिवार था. मेरे मातापिता परिवार में ही उलझे रह गए और मैं अपनी मरजी का मालिक बनता गया,’’ कह कर विशाल चुप हो गया.

‘‘नौकरी तो अब तुम करने लगे हो,’’ मेरे खयाल से अब तो तुम्हारे

परिवार वाले तुम से संतुष्ट होंगे?’’ निशा ने पूछा.

‘‘नहीं, अब भी मैं स्थिर नहीं हूं. अभी तक मैं ने कई नौकरियां छोड़ी हैं. जो मिलता है उस से संतुष्ट नहीं हो पाता. किस चीज की तलाश है यह भी नहीं जान पाया. आज न मैं अपनेआप से संतुष्ट हूं, न दूसरे मुझ से,’’ कह कर विशाल चुप हो गया.

फिर एक लंबी चुप्पी. निशा ने फिर चुप्पी तोड़ी, ‘‘हमेशा अपनी कमियों को दूसरों के सामने क्यों उछालते हो, फिर हंसी के पात्र बनते हो.’’

‘‘बनने दीजिए, इस से कहीं न कहीं मुझे संतोष मिलता है,’’ विशाल ने कहा.

‘‘एक बात कहूं विशाल, तुम में हजारों गुण हैं, फिर भी जो तुम में मैं ने देखा, महसूस किया वह आज तक मैं ने कहीं नहीं पाया. जानते हो वह क्या है? तुम्हारा पारदर्शी व्यक्तित्व. अपने अवगुणों को इतनी आसानी से स्वीकार कर लेना, इगो तुम्हारे पास है ही नहीं, जो भीतर से वह बाहर से भी, बिलकुल स्वच्छ. तुम्हारी यही बातें मेरे हृदय को स्पर्श करती हैं,’’ निशा ने कहा.

विशाल ने निशा की तरफ देखा और कहा, ‘‘आप मेरे बारे में इतना सोचती हैं मैम?’’

‘‘क्या करूं तुम ने मजबूर जो कर दिया है,’’ निशा हंसी.

‘‘नहीं मैम, मजबूर तो आप ने मुझे कर दिया है. आप ने मुझे बदलने पर मजबूर कर दिया है. मुझे यह एहसास दिलाया है कि कोई है जो मेरी भावनाओं को समझता है. ऐसा मेरे जीवन में पहली बार हुआ है. मेरी सारी जिद आप के सामने खत्म हो जाती है. स्वयं को पहचानने लगा हूं आप के कारण.’’

निशा ने विशाल की तरफ देखा, मगर कहा कुछ नहीं. आज आंखें बोल रही थी.

‘‘आज तुम स्वयं को पहचान रहे हो विशाल, मगर यहां तो किसी जिंदगी को पूरे जीवन का एहसास मिल गया है. आज मेरे वश में होता तो इस पूरे पल को रोक लेती,’’ निशा ने आंखें बंद कर लीं.

विशाल उठ कर खड़ा हो गया, ‘‘मैं जा रहा हूं मैम.’’

अनायास निशा के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘नहीं, ऐसा मत कहो. इस एहसास से मुझे बाहर मत निकालो. ठहर जाओ. इस पल को समेट तो लूं. पता नहीं कब बिखर जाए.’’

विशाल चौंका, ‘‘निशाजी…’’

‘‘मत कहो निशाजी, भूल जाओ इस निशा को, मैं कैद हूं  इस निशा के भीतर, मुझे  बाहर आने दो. मेरी मदद करो विशाल. मेरी मदद करो,’’ और निशा विशाल के कदमों के पास बैठ गई. नियति आंखें फाड़े देख रही कि यह क्या. क्या है यह.

जीवनदान के लिए विनती की जा रही है या प्रेम की भीख मांगी जा रही है? कहां गया वह पूरा व्यक्तित्व, अस्तित्व? आज वनदेवी पौधों के सामने गुहार लगा रही थी या सृष्टि के रचयिता सृष्टि के सामने रो रहे थे? या फिर प्रकृति मानव के सामने सिर झकाए खड़ी थी?

समय स्तब्ध था और केंचुल दूर कहीं निढाल पड़ा था. मगर केंचुल के भीतर का जीवन अब बिलकुल शांत था. न कोई छटपटाहट, न कोई तडप. वह कैद से जो बाहर निकल पड़ा था.

समय बीत रहा था. एक जीव स्तब्ध था, दूसरा बिलकुल शांत और फिर निशा

के जीवन का वह क्षण आया. विशाल झका और निशा को ऊपर उठाया, पल बीता और निशा विशाल की बांहों में थी. इस अभूतपूर्व एहसास के बीच डूबतीउतरती निशा आज निशा से ऊपर निकल चुकी थी.

‘‘प्रेम करते हो मुझ से?’’ केंचुल के बाहर के जीव ने सवाल किया.

‘‘सम्मान करता हूं,’’ विशाल की आवाज थी.

फिर तो सवालजवाब का सिलसिला चल पड़ा.

‘‘मेरी भावनाओं को समझते हो?’’

‘‘मैं उन भावनाओं की कद्र करता हूं.’’

‘‘तुम ने मुझे प्रेम का एहसास दिलाया है विशाल.’’

‘‘नहीं, मैं सिर्फ जीवन को आप के करीब लाया है.’’

‘‘तुम ने मेरे व्यक्तित्व को बदल कर रख दिया है.’’

‘‘कहां. मैं ने तो सिर्फ आवरण उतारा है.’’

‘‘तुम्हारे कारण मैं अपनेआप को पहचान पाई हूं.’’

‘‘यह तो मेरे साथ हुआ है मैम. आप ने मुझे मेरी पहचान दिलाई है, कद्र करता हूं मैं आपकी.’’

‘‘सचमुच मेरी तरफ तुम्हारा यह झकाव है या मेरा भ्रम है ?’’

‘‘यह झकाव नहीं है मैम. मेरी अटूट श्रद्धा है आप के लिए.’’

‘‘तुम ने मुझ में क्या देखा विशाल?’’

‘‘वही जो मुझे अपने मातापिता, अपने परिवार से न मिला.’’

‘‘तुम्हारे कारण मेरे जीवन की शुरुआत हुई.’’

‘‘आप के कारण मेरे जीवन की तलाश

खत्म हुई.’’

कुदरत निशा को मुंह फाड़े देख रही थी. यह निशा को क्या हो गया है? यह अपने द्वारा किए गए सिर्फ सवालों को ही सुन रही है या  फिर विशाल के उत्तरों को भी सुन रही है? स्वयं में मदहोश निशा को न समय का ज्ञान था, न सामने वाला क्या कह रहा है उस का. वह तो स्वयं को कह रही थी और स्वयं को ही सुन रही थी. बांहों के घेरे अभी उस के इर्दगिर्द थे. चेतनाशून्य हो चुकी निशा कब तक उन घेरों में जीवन का एहसास लेती रही वह स्वयं न जान पाई.

रात्रि का दूसरा पहर… विशाल अब जा चुका था, मगर एहसास अब भी थे. जीवन भी

विचित्र खेल खेलता है. कब किस को किस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दे, पता नहीं चलता. इतनी कू्ररता क्यों? वह यह क्यों नहीं देखता कि इस मोड़ पर भीड़ है या सुनसान है, पांव थके हैं या चलने को आतुर, अकेला चल पाएगा या किसी हमकदम की जरूरत है? निशा ने बिना सोचेसमझे जिस जीवन को जीना शुरू किया था, उस जीवन की राह कहां तक जाती है उसे क्या पता था.

आज निशा यह सोचने पर मजबूर हो गई थी कि काश यह समय ठहर जाए, इस की गति थम जाए, मैं इसे करीब से देख तो लूं, इस की गहराइयों में जी तो लूं. पता नहीं फिर मिले न मिले.

आज तो ऐसा प्रतीत होता था मानो जीवन की गति इतनी तेज हो गई है कि उस के साथ चलने में उसके पांव थकने लगे थे, मगर भीतर ऊर्जा थी, स्फूर्ति थी.

अचानक निशा की तंद्रा टूटी, घड़ी के सामने बैठी वह बहुत देर से अपने अब तक के जीवन के पन्नों को पलट रही थी.

‘‘3 जीवन तो मैं ने जी लिए. परिवार के साथ, स्वयं के साथ और अब विशाल. चौथा जीवन कैसा होगा.?’’ झट से उठ पड़ी निशा.

दिन की शुरुआत विशाल की खिलखिलाहट से हुई, हंसतेहंसते उस ने जोरजोर से गाना शुरू किया.

निशा चिल्लाई, ‘‘तुम्हारी बेसिरपैर की हरकतें फिर शुरू हो गईं.’’

‘‘मैम, सामने देखिए न क्या नजारा है.’’

निशा ने कैबिन की खिड़की से झंका, ‘‘सामने तो लड़की बैठी है.’’

‘‘वही तो.’’ विशाल उछल रहा था.

‘‘यों बंदर की तरह क्या उछल रहे हो? कभी लड़की नहीं देखी क्या?’’

‘‘देखी है, मगर यह तो चीज ही कुछ और है.’’

‘‘चीज का क्या मतलब?’’ निशा फिर चिल्लाई, ‘‘तुम जानते हो इस तरह की भाषा मुझे पसंद नहीं. शर्म नहीं आती है तुम्हें?’’

‘‘सौरी मैम,’’ विशाल ने नजरें झका लीं. नजरें तो झक गईं, मगर समय की आंखें फैल गई.

अप्रतिम सौंदर्य की मूर्ति चित्रा को जो भी देखता, उस की नजरें थम सी जाती. चित्रा अब इस नए परिवार की सदस्य थी. उस ने औफिस जौइन कर लिया था. गौरवर्ण की चित्रा मनमोहिनी थी. मीठे रस घोलती अपनी बातों से सब का मन मोह लिया था उस ने. सभी उस से बातें करने, उस के संपर्क में रहने को आतुर रहते. विचित्र बात तो यह थी कि विशाल उन में सब से आगे था.

समय एक बार फिर करवट बदल रहा था. चित्रा ने बहुत कम समय में ही पूरे माहौल को बदल कर रख दिया. विशाल और चित्रा की खिलखिलाहट पूरे औफिस में गूंजती. लंच के समय में 2 ही केंद्रबिंदु होते चित्रा और विशाल. दोनों में लगातार नोकझंक चलती, कोई कम नहीं था. शुरू में तो सिर्फ मजाक था, मगर यह मजाक गंभीर बनता जा रहा था.

‘‘मैम देखिए चित्रा की आदतें मुझे अच्छी नहीं लगती,’’ विशाल हर पल कोई न कोई शिकायत ले कर निशा के पास आता रहता. वह उसे समझती तो चुप हो जाता.

यह दिनचर्या बन चुकी थी. विशाल के दिन की शुरुआत ही चित्रा से होती. भले ही वह शिकायत, लड़ाई या नोकझंक से शुरू होती. निशा के पास भी बैठता तो उसी की बातें करता. माहौल इतना जल्दी बदल जाएगा, यह किसी ने सोचा भी न था.

उस दिन सुबहसुबह निशा झल्लाई, ‘‘काम की बातें किया करो विशाल, जब देखो तब

चित्रा की बातें ले कर बैठ जाते हो.’’

‘‘मैं क्या करूं मैम, वह मुझ से उलझती रहती है.’’

‘‘तुम उलझने देते हो तभी तो उलझती है और सबों के साथ ऐसा क्यों नहीं करती?’’

‘‘मुझे क्या पता वह ऐसा क्यों करती है?’’ विशाल ने कहा.

‘‘अपनेआप में झंक कर देखो विशाल, जीवन तुम्हारे लिए मजाक है, लेकिन यह मजाक कहीं तुम्हारे लिए गंभीरता का विषय न बन जाए,’’ एक झटके में निशा ने कह तो दिया, मगर उस की बातें कहीं और अंकित हो चुकी थीं.

मोड फिर बदले थे, निशा जिंदगी को छू रही थी, मगर जिंदगी तो उसे स्पर्श करती हुई कहीं और निकल रही थी. एहसास सभी को हो रहे थे, लेकिन निशा अभी तक अनभिज्ञ थी. स्वयं में खोई हुई वह समय से अनजान, उस मंजिल की चाहत में चल पड़ी थी, जिस के पास जाने के रास्ते हैं भी या नहीं यह उसे पता नहीं था या फिर वह जानना ही नहीं चाहती थी?

2 दिन हो गए थे चित्रा नहीं आई थी. अपनेअपने काम में सभी मग्न थे किंतु विशाल… निशा ने उसे सुबह से ही नहीं देखा था. शाम हो चुकी थी, वह उसे ढूंढ़ती हुई बगल वाले कैबिन में गई. देखा कि विशाल शांति से अपना काम कर रहा था. निशा उस के पीछे खड़ी थी, मगर इस सब से अनजान विशाल का मनमस्तिष्क तो कहीं और था.

‘‘क्या बात है विशाल? बड़े गंभीर हो?’’

‘‘कुछ नहीं मैम,’’ बिना पीछे मुड़े ही उस

ने कहा.

निशा वहीं बैठ गई. केंचुल से कोई बाहर निकल रहा था. वह चुहलबाजी के मूड में आ गई. उस ने विशाल को छू कर कहा, ‘‘यह विशाल नहीं है,’’ वह और करीब आई. उस ने विशाल की आंखों को स्पर्श किया, ‘‘ये विशाल की आंखें नहीं है?’’ वह कभी उस की आंखों को स्पर्श करती, कभी होठों को तो कभी उस के बालों को और खिलखिला कर हंसती जाती. यह कौन आ गया? यह मेरा विशाल तो नहीं है?’’

अचानक विशाल पीछे मुड़ा, ‘‘मैम, यह आप को क्या हो गया है?’’

‘‘मुझे कुछ भी नहीं हुआ है, लेकिन तुम्हें जरूर कुछ हो गया है,’’ निशा ने गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘चलो उठो बहुत देर हो गई है,’’ कहते हुए वह उसे बाहर तक ले आई.

वह कुछ नहीं बोला, सिर झकाए उस के साथ चलता रहा.

‘‘तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, तुम मेरे घर चलो.’’

विशाल कुछ नहीं बोला, उस के साथ चल दिया. घर पहुंच कर निशा उसे सहज बनाने की कोशिश में लग गई. मगर वह ज्यों का त्यों बना रहा.

निशा उस के करीब बैठ गई, ‘‘क्या बात है मुझ से नहीं कहोगे?’’

कई बार पूछने के बाद भी विशाल कुछ नहीं बोला तो निशा उठने लगी. अचानक विशाल बच्चों की तरह निशा की गोद में सिर रख कर बिलख पड़ा.

निशा स्तब्ध रह गई, ‘‘यह क्या?’’

‘‘मैम, उस ने मेरे जीवन को बदल कर रख दिया है. मेरी सीधी सी जिंदगी में उथलपुथल मचा दी.’’

‘‘मगर किस ने? कुछ बताओगे?’’ निशा ने चौंकते हुए पूछा.

विशाल फिर चुप हो गया. निशा ने उस के चेहरे को अपनी हाथों में लिया और ऊपर उठाते हुए उस की आंखों में देखा. उस के हाथ कांप रहे थे, आंखों में सैलाब उतर आया था, हृदय में तूफान था, मगर इन सबसे ऊपर स्वयं को सहज बनाते हुए, आवाज में एक अजीव उत्कंठा लिए हुए निशा ने  क्षीण स्वर में पूछा, ‘‘किस ने.’’

‘‘चित्रा ने,’’ विशाल उत्तेजित होते हुए बोला.

निशा की आंखें फैल गई.

‘‘उस ने मेरी आत्मा को झकझर दिया है, वह मेरी जिंदगी में तूफान बन कर आई है. मैं उस के बिना नहीं जी सकता, नहीं रह सकता.’’

एकबारगी निशा का पूरा शरीर कांप उठा. विशाल अब बिलकुल शांत था. भीतर की पीड़ा उस ने किसी अपने के सामने जो रख दी थी.

विशाल जा चुका था. अधलेटी निशा आंखें खोले निहार रही थी, परंतु किसे? समय को या फिर स्वयं को? आज जीवन फिर स्तब्ध था, मौन था. आज उसे भी समय का ज्ञान न था. दूर पड़ा केंचुल निशा को बुला रहा था. और निशा… भीतर कुछ टूटा था. उस ने भी महसूस किया था. पर साथसाथ कुछ और महसूस किया था निशा ने. उस टूटन को और फिर उस टूटन के बाद हुए एहसास को. निशा ने करवट बदली.

विचित्र एहसास है, ‘‘इतनी पीड़ा…’’

सुबह हो चुकी थी वही दिनचर्या, किंतु एक खालीपन का एहसास लिए. अब पुरानी दिनचर्या में कुछ और शामिल हो चुका था. शाम को जल्दी घर लौटना, टैरेस में बैठ कर सामने बेजान से पर्वत को देखना और उसी के करीब डूबते सूर्य की लालिमा को निहारना.

शाम ढल चुकी थी, औफिस से 2 पांव बाहर निकले. ये पांव उसी इंसान के थे जहां

शरीर तो था, मगर आत्मा बेजान थी. वही रास्ते, वही मोड़. कुछ भी तो नहीं बदला था, सबकुछ पूर्ववत. पांव ठिठके सामने चौराहा था. आंखें सामने टिकीं. एक रास्ता श्मशान तक  जाता था. आंखें पीछे की ओर मुड़ीं और उस ने सोचा, ‘मुझे तो पीछे की ओर लौटना है.’

‘‘अचानक शोर…यह शोर कैसा?’’

‘‘क्या खामोश श्मशान ने शोर किया है?’’ उस ने सामने देखा. श्मशान तो खामोश था. उस ने फिर पीछे देखा. रास्ते भी खामोश थे. फिर यह शोर कहां से. अचानक बाईं ओर उस ने देखा और होठ मुसकुरा दिए. कुदरत ने भी उस मुसकराहट को देखा. उस ने भी मुसकुराना चाहा किंतु.

‘‘यह क्या?’’ उस की तो आंखें नम थीं. इस निशारूपी इंसान की मुसकुराहट बढ़ती गई और यह हंसी में तबदील तब हुई जब वह बरात ठीक  श्मशान के रास्ते के सामने से निकल गई.

टैरेस में बैठी निशा बिलकुल सहज थी और बातें कर रही थी मगर किस से. वहां तो कोई भी नहीं था. परंतु उस की बातों को सुना हवाओं ने, डूबते सूर्य ने, बेजान पहाड़ों ने. निशा कह रही थी. उस दिन जीवन कुछ यों लगा:

सूरज की मुसकुराहट तो थी मगर,

चांद की विरह की वेदना लिए हुए.

ओस की बूंदें तो थीं मगर,

क्षणभंगुरता के भय से सिमटी हुईं.

सुबह की हंसती लालिमा तो थी मगर,

शाम की उदास लालिमा का एहसास लिए हुए.

आकाश मुट्ठी में करने को आतुर,

पक्षी उत्साहित तो थे मगर,

धरती पर फिर से लौटने का गम लिए हुए.

मंदिर में घंटियों का शोर तो था मगर,

पत्थर की मूर्तियों की खामोशी लिए हुए.

बरात तो निकली थी मगर,

श्मशान की गलियों से गुजरते हुए.

जीवन सफर के आनंद से विभोर तो था मगर,

मंजिल न मिलने का दर्द लिए हुए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें