Shanaya Kapoor Debut: डेब्यू के लिए तैयार स्टारकिड, रो पड़े संजय कपूर

Shanaya Kapoor: कपूर खानदान से एक और बेटी फिल्मों में डेब्यू करने को तैयार है, जिस की खूबसूरती के चर्चे आम हैं. युवाओं की पसंदीदा शनाया कपूर फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ से अभिनय कैरियर की शुरुआत करने जा रही हैं, जिस का ट्रेलर हाल ही में जारी किया गया, जहां संजय कपूर अपनी बेटी के कैरियर की पहली शुरुआत देख कर इतने भावुक हो गए कि स्टेज पर बिना कुछ बोले आंखों में आंसू लिए वापस अपनी सीट पर बैठ गए.

रो पड़े संजय कपूर

संजय कपूर ही नहीं, उन की वाइफ महीप कपूर भी अपनी बेटी की पहली फिल्म के ट्रेलर लौंच पर भावविभोर नजर आईं.

फिल्म की बात करें तो ‘आंखों की गुस्ताखियां’ एक रोमांटिक फिल्म है जिस में शनाया के हीरो विक्रांत मैसी हैं. खास बात यह है कि फिल्म का नाम ‘आंखों की गुस्ताखियां है’ लेकिन ट्रेलर में हीरोइन शनाया आंखों पर काली पट्टी बांधे नजर आई हैं. इस बात के पीछे क्या राज है, यह तो फिल्म रिलीज होने पर ही पता चलेगा.

रिजैक्शन का दर्द

शनाया भले ही स्टारपुत्री हैं, लेकिन उन्होंने भी रिजैक्शन का दर्द झेला है. शनाया के अनुसार एक फिल्म के लिए उन्होंने ऑडिशन दिया था जोकि उन की बहुत ही फेवरिट फिल्म थी लेकिन उस फिल्म में मामला नहीं जमा. उस रिजैक्शन से वे बहुत ज्यादा दुखी हुई थीं.

वे कहती हैं कि मुझे एक बात समझ में आई कि हम फिल्म नहीं चुनते बल्कि फिल्म हमें चुनती है. फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ के लिए मैं ऐसा कह सकती हूं कि इस फिल्म में मैं ने सबा शेरगिल का किरदार निभाया है जो एक महत्त्वाकांक्षी अभिनेत्री है.

वे कहती हैं,”डायरेक्टर संतोष सिंह ने जब इस फिल्म के लिए चुनाव किया, तो इस बात का मुझे अनुभव हुआ क्योंकि जिस प्रोजैक्ट के लिए ऑडिशन दिया था वह सफल नहीं हुआ, लेकिन उसी डायरेक्टर ने मेरा ऑडिशन टेप डायरेक्टर संतोष सिंह को दिया और वही ऑडिशन टेप देख कर डायरेक्टर संतोष ने मुझे इस फिल्म के लिए साइन कर लिया.

आने वाली फिल्में

फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ 11 जुलाई, 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. इस फिल्म के अलावा शनाया कपूर आदर्श गौरव के साथ एक थ्रिलर फिल्म में भी काम कर रही हैं.  Shanaya Kapoor

Parenting Tips: जानें बच्चे को कितना दें जेब खर्च

Parenting Tips: मृणालिनी अपने दोनों बच्चों को हर सप्ताह 10 रूपये जेब खर्च देती थी और बच्चे उस दिन खुशी-खुशी स्कूल जाते थे, लेकिन कई बार कुछ बच्चों के पेरेंट्स उन्हें अधिक पैसे देते है, जिससे उनके बच्चों को ख़राब लगता था, कई बार तो उसने अपने पैसे जेब से निकाले नहीं और कह दिया माँ ने आज जेब खर्च नहीं दिया, शायद भूल गयी होगी. बच्चे ने ये बात माँ को कभी नहीं बताया. अगली सप्ताह फिर 10 रुपये जोड़कर जब 20 रुपये होते, तो वे पैसे निकाल कर स्कूल कैंटीन से कुछ खा लेते थे. एक दिन माँ की नजर सोनू की बैग साफ़ करते-करते 10 रुपये पर पड़ी, उन्होंने बेटे से इसकी वजह पूछी, क्योंकि जेब खर्च वाले दिन मृणालिनी अपने बच्चों को टिफिन न देकर फ्रूट्स देती थी. इस पर 8 साल का सोनू रोने लगा,उसकी दीदी मिताली ने सारी बात बताई. तब माँ ने दोनों को किसी बात को उनसे न छुपाने की सलाह दी और अगले सप्ताह से माँ ने हर सप्ताह 20 रुपये देना शुरू कर दिया.

रखे नजर खर्च पर

जेब खर्च बच्चे को दिया जाय या नहीं, इसे लेकर वैज्ञानिक, समाजशात्री और मनोचिकित्सक की राय अलग-अलग है. कुछ के अनुसार पॉकेट मनी से बच्चे को पैसे की कीमत सिखाना आसान होता है. इससेबच्चा किसी भी चीज को खरीदते समय पैसे के बदले में वस्तु लेने के लायक है या नहीं उसकी परख कर पाताहै. यहींचीजें उसको भविष्य में बचत करने की जरुरत को समझने में सहायक होता है. जबकि कुछ मानते है कि इससे बच्चे में पैसे की लालच बढ़ जाती है और उतने पैसे न मिलने पर कुछ गलत कर बैठते है. देखा जाय तो जेब खर्च बच्चे को बना और बिगाड़ भी सकती है. इसलिए बच्चे को सोच-समझ कर जेब खर्च देना चाहिए और बच्चा किस पर उस पैसे को खर्च करता है, उसकी जानकारी पेरेंट्स को होनी चाहिए. कई बार बच्चे के पास अधिक पैसे न होने पर किसी दूसरे बच्चे के बैग से या माता-पिता की अलमारी से भी निकालते हुए पाया गया है, ऐसा होने परबच्चे के साथ माता-पिता का सीधा संवाद होना चाहिए. छोटे बच्चे अधिकतर जो भी गलत करते है, डर की वजह से बता देते है, लेकिन थोड़े बड़े बच्चे ऐसा नहीं करते. इसलिए व्यस्त होने पर भी बच्चे के साथ रोज कुछ क्वालिटी समय बिताएं.

समझाएं पैसे का महत्व

इस बारें में मुंबई की मनोचिकित्सक डॉ. हरीश शेट्टी कहते है कि बच्चे को जेब खर्च देते समय कुछ बातों का ख़ास ध्यान रखना चाहिए, जो निम्न है,

  • परिवार की आमदनी जितनी भी हो, उसमे पारदर्शिता का होना, अर्थात् बच्चे को भी उसके बारें में जानकारी होना,
  • परिवार में किसी लक्ज़री सामान को खरीदते समय लिए गए निर्णय में बच्चों की भागीदारीका होना, इससे बच्चे को अपने भविष्य में किसी वस्तु को खरीदते समय निर्णय लेने में आसान होना,
  • बचत की इच्छा का विकसित होना,
  • वित्तीय ज्ञान होनाआदि है.

पेरेंट्स न करें गलतियाँ

कुछ पेरेंट्स के पास कमाई का जरिया अधिक होता है, जिससे वे अपनी झूठी शान दिखाने के लिए कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते है, जिसका पछतावा उन्हें बाद में होता है,इसलिए कुछ बातों को बच्चों के साथ शेयर न करना ही अच्छा होता है. सुझाव निम्न है,

  • बचपन में पेरेंट्स को जेब खर्च का न मिलना,
  • खुद के बच्चे की सारी इच्छाएं पूरी करना,
  • बच्चे को शांति से बैठने के लिए भी उनकी पसंद की वस्तु देना,
  • बच्चे की जिद को पहले पूरा करने के लिए आपस में कॉम्पिटीशन करना आदि कई है.
  • पैसे की मात्रा आपसी समझ के आधार पर दें,
  • बच्चे को हमेशा अस्तित्व, एहसास और पर्यावरण का ज्ञान होने की जरुरत,
  • पैसा देते समय हमेशा पेरेंट्स को बच्चे के व्यवहार को ध्यान दें, जिससे बच्चा अपनी शान किसी के आगे न दिखाएं, उसे नीचा न समझे, किसी के लिए भी सम्मान उसके व्यवहार में होना जरुरी है.

दें रिवॉर्ड गलत व्यवहार के लिए

इसके आगे डॉ. हरीश कहते है कि अगर बच्चा कही से पैसा निकाला है तो उसकी जरुरत क्या है, उसे पेरेंट्स को देखना है. मेरे पास अधिकतर बच्चे फ़ोन को लेकर आते है जैसे किसी के पास आई फ़ोन है, लेकिन मेरे पास नहीं. इस तरह की समस्या से पेरेंट्स परेशान रहते है, बच्चे के हिसाब से ये चीजे अगर किसी के पास है, तो उसका आत्मविश्वास उससे अधिक बढ़ जाता है. ऐसे बच्चों को माता-पिता सामने बैठाकर आत्मविश्वास के बारें में समझाना जरुरी है.

अपने अनुभव के बारें में मनोचिकित्सक कहते है कि एक परिवार में केवल 20 रूपये मिसिंग था. महिला ने अपने मेड को शक किया, उसके मना करने पर उन्होंने बच्चों से पूछा, बच्चों ने पहले मना किया, फिर छोटा बच्चा बड़े को बाथरूम में ले गया और उससे अपनी गलती बताने को कहा. बड़े ने कहा, तुम भी तो मेरे साथ बड़ा पाव खाए हो, तो तुम्ही बता दो. माँ के कान में ये बात पड़ने पर माँ ने इसका रिवॉर्ड उन दोनों के लिए एक सप्ताह टीवी न चलाने का रखा, इससे दोनों रोने और कूदने लगे, जैसे कुछ गंभीर बात हो, पर माँ अपनी बात पर अटल रही, इससे फॅमिली के बीच संवाद बढ़ा और माँ की इस रिवार्ड से बच्चों ने फिर कभी अनुपयुक्त काम नहीं किया.

इसके अलावा एक टीनेजर बच्चे ने 50 हजार रूपये अलमारी से निकाल कर उड़ा दिया और खुद माँ के साथ जाकर पुलिस स्टेशन में कंप्लेन किया. पुलिस ने पडोसी और घरवालों से पूछताछ की, लेकिन कुछ पता नहीं चला. शक के आधार पर पुलिस उस बच्चे को पकड़ी और थोड़ी जोर लगाकर बात करने पर उसने बताया कि माँ के घर से जाने पर वह पड़ोस से चाभी लेकर पैसा निकाला था. डॉक्टर के अनुसार ऐसे बच्चों को सुधारना आसान होता है. पैरेंट्स को घबराना नहीं चाहिए. मेरा सभी माता-पिता से कहना है कि बच्चों को इमोशनल सेफ्टी अवश्य दें. कुछ गलत करने पर माता-पिता और स्कूल उसे सही करें. Parenting Tips

Unwanted Hairs: अनचाहे बालों से परेशान हैं? तुरंत नोट करें ये नुस्खे

Unwanted Hairs: हेयरलेस दिखना सब को अच्छा लगता है खासकर गरमी के मौसम में शौर्ट ड्रैस में तो यह जरूरी ही हो जाता है. आप चाहें शेविंग, वैक्सिंग या ट्वीचिंग करा सकती हैं. अब घर बैठे आप खुद लेजर हेयर रिमूवर से अनचाहे बालों से छुटकारा पा सकती हैं. लेजर हेयर रिमूवर क्या है: लेजर प्रकाश किरणों से हेयर फौलिकल्स को जला कर नष्ट कर दिया जाता है, जिस के चलते हेयर रिप्रोडक्शन नहीं हो पाता है. इस प्रोसैस में एक से ज्यादा सिटिंग्स लेनी पड़ती हैं.

सैल्फ लेजर हेयर रिमूवर:

लेजर तकनीक 2 तरीकों से बाल हटाती है- एक आईपीएल और दूसरा लेजर हेयर रिमूवर. दोनों एक ही सिद्धांत पर काम करती हैं- हेयर फौलिकल्स को नष्ट करना. आमतौर पर घर में हैंड हेल्ड आईपीएल रिमूवर का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, इस में लेजर बीम नहीं होती फिर भी इंटैंस पल्स लाइट बीम द्वारा यह टारगेट एरिया के बालों की जड़ों तक पहुंच कर फौलिकल्स को लेजर की तरह मार देती हैं जिस के चलते वह एरिया बहुत दिनों तक हेयरलेस रहता है. इसे चेहरे पर भी यूज कर सकती हैं पर आंखों को बचा कर.

आईपीएल हेयर रिमूवर किस के लिए सही है: आधुनिक विकसित तकनीक से निर्मित आईपीएल रिमूवर सभी तरह के बालों से छुटकारा पाने का दावा करता है. आमतौर पर त्वचा और बालों के रंग में कंट्रास्ट यानी स्पष्ट अंतर रहने पर यह अच्छा परिणाम देता है, जैसे फेयर स्किन और डार्क स्किन में यह उतना अच्छा काम नहीं कर सकता है क्योंकि इसे मैलानिन और फौलिकल्स में अंतर सम झने में कठिनाई होती है. ऐसे में स्किन बर्न की संभावना रहती है.

आईपीएल की सीमा:

लेजर की तुलना में आईपीएल कम शक्तिशाली होता है, इसलिए हेयर फौलिकल्स को उतनी ज्यादा शक्ति से नहीं मारता है जितना प्रोफैशनल लेजर रिमूवर से और इसलिए इस का असर धीमा होता है. इसे आंखों के बेहद नजदीक और होंठों के ऊपर इस्तेमाल न करें. आंखों के निकट यूज से पहले चश्मा लगा लें. प्रैगनैंसी और ब्रैस्टफीडिंग में भी बिना डाक्टर की सलाह के न इस्तेमाल करें.

आईपीएल इस्तेमाल से पहले: इस की शुरुआत सर्दी के मौसम में बेहतर है. टारगेट एरिया पर कोई पाउडर, परफ्यूम या कैमिकल न हो. बाल अधिक बड़े हों तो उन्हें 3-4 मिलीमीटर तक ट्रिम कर लें.

कैसे इस्तेमाल करें:

इस हेयर रिमूवर को इस्तेमाल करना आसान है. आईपीएल को बिजली लाइन में प्लग कर मशीन को टारगेट एरिया के निकट लाएं. फिर उस एरिया पर 90 डिग्री पर रखते हुए इसे औन कर आईपीएल बीम फोकस करें. यह प्रति मिनट 100 या ज्यादा शौट्स या फ्लैशेज उत्पन्न कर आप के बालों को मिनटों में हटा देगा.

लगभग 30 मिनटों के अंदर आप पैरों, कांख और बिकिनी लाइन के बालों से मुक्त हो सकती हैं. अपनी त्वचा और बालों के रंग (काले, भूरे, सुनहरे) रूप (मोटाई, लंबाई) के अनुसार दिए गए निर्देशानुसार लाइट इंटैंसिटी को एडजस्ट कर सकती हैं. शुरू में इसे 2 सप्ताह के अंतराल पर फिर इस्तेमाल करना होगा. बाद में पूर्णतया हेयरलेस त्वचा दिखने के लिए हर 3-4 महीनों पर इसे यूज करना होगा पर बाल पहले की तुलना में कम घने, पतले और हलके रंग के होंगे.

फायदे:

यह कम शक्तिशाली प्रकाश किरणों का इस्तेमाल करता है, जिस से लेजर की तुलना में बहुत कम साइड इफैक्ट होने की संभावना है.

इस के लिए बारबार बैटरी बदलने या रिचार्ज की आवश्यकता नहीं है. आमतौर पर निर्माता इस डिवाइस की लाइफ 10+वर्षों तक बताते हैं.

आईपीएल मुंहासे, बर्थ मार्क, फाइन लाइंस आदि के कुछ हलके दागधब्बे भी हटा सकता है.

साइड इफैक्ट और कौस्ट

इस्तेमाल के दौरान हलका दर्द महसूस होना:

ऐसे में आइस पैक या नंबिंग क्रीम से आराम मिलेगा. टारगेट एरिया की त्वचा का हलका रैड या पिंक होना अथवा फूलना. यह  2-3 दिनों में स्वत: ठीक हो जाता है.

बहुत ज्यादा लाइट के चलते मामूली स्किन बर्न हो सकता है. कभी स्किन पिगमैंट मैलानिन को हानि होने से धब्बा हो सकता है.

विशेष:

कोई चाहे कितना भी दावा करे लेजर से भी परमानैंट हेयरलेस होना संभव नहीं है. कुछ महीनों के बाद इसे फिर रिपीट करना होगा. लेजर आईपीएल से बेहतर है पर यह बहुत महंगा है.

लेजर हेयर रिमूवल कौस्ट:

लेजर हेयर रिमूविंग की कौस्ट इन बातों पर निर्भर करती है- छोटा शहर या मैट्रो, टारगेट एरिया, त्वचा और बालों का रंग, कितनी सीटिंग्स होंगी और लेजर विधि का चुनाव. आमतौर पर प्रोफैशनल द्वारा फुलबौडी लेजर रिमूविंग की कौस्ट करीब  2 लाख होता है.

उदाहरण:

कांख के बालों के लिए ₹2,000 से ₹4,000, हाथों के बालों के लिए ₹7,000 से ₹1,45,000, पैरों के बालों के लिए ₹11,000 से ₹21,000 तक लग सकते हैं.

आईपीएल की कौस्ट:

मीडियम लैवल आईपीएल करीब ₹5,500 में मिल जाता है. इस का मूल्य नंबर औफ शौट्स या फ्लैशेज अथवा अन्य फीचर्स पर भी निर्भर करता है. Unwanted Hairs

Family Story: ब्लाउज- इंद्र ने अपनी पत्नी के कपड़ों के साथ क्या किया?

Family Story: इंद्रपत्नी की मृत्यु के बाद बेटी के साथ अमेरिका चले गए थे. 65 साल की आयु में जब पत्नी विमला कैंसर के कारण उन का साथ छोड़ गई तो उन की जीवननैया डगमगा उठी. इसी उम्र में तो एकदूसरे के साथ की जरूरत अधिक होती है और इसी अवस्था में वह हाथ छुड़ा कर किनारे हो गई थी.

पिता की मानसिक अवस्था को देख कर अमेरिकावासी दोनों बेटों ने उन्हें अकेला छोड़ना उचित नहीं समझा और जबरदस्ती साथ ले गए. अमेरिका में दोनों बेटे अलगअलग शहर में बसे थे. बड़े बेटे मनुज की पत्नी भारतीय थी और फिर उन के घर में 1 छोटा बच्चा भी था, इसलिए कुछ दिन उस के घर में तो उन का मन लग गया. पर छोटे बेटे रघु के घर वे 1 सप्ताह से अधिक समय नहीं रह पाए. उस की अमेरिकन पत्नी के साथ तो वे ठीक से बातचीत भी नहीं कर पाते थे. उन्हें सारा दिन घर का अकेलापन काटने को दौड़ता था. अत: 2 ही महीनों में वे अपने सूने घर लौट आए थे.

अब घर की 1-1 चीज उन्हें विमला की याद दिलाती और वे सूने घर से भाग कर क्लब में जा बैठते. दोस्तों से गपशप में दिन बिता कर रात को जब घर लौटते तो अपना घर ही उन्हें बेगाना लगता. अब अकेले आदमी को इतने बड़े घर की जरूरत भी नहीं थी. अत: 4 कमरों वाले इस घर को उन्होंने बेचने का मन बना लिया. इंद्र ने सोचा कि वे 2 कमरों वाले किसी फ्लैट में चले जाएंगे. इस बड़े घर में तो पड़ोसी की आवाज भी सुनाई नहीं पड़ती, क्योंकि घर के चारों ओर की दीवारें एक दूरी पैदा करती थीं. फ्लैट सिस्टम में तो सब घरों की दीवारें और दरवाजे इतने जुड़े हुए होते हैं कि न चाहने पर भी पड़ोसी के घर होते शोरगुल को आप सुन सकते हैं.

सभी मित्रों ने भी राय दी कि इतने बड़े घर में रहना अब खतरे से भी खाली नहीं है. आए दिन समाचारपत्रों में खबरें छपती रहती हैं कि बूढ़े या बूढ़ी को मार कर चोर सब लूट ले गए. अत: घर को बेच कर छोटा फ्लैट खरीदने का मन बना कर उन्होंने धीरेधीरे घर का अनावश्यक सामान बेचना शुरू कर दिया. पुराना भारी फर्नीचर नीलामघर भेज दिया. पुराने तांबे और पीतल के बड़ेबड़े बरतनों को अनाथाश्रम में भेज दिया. धोबी, चौकीदार, नौकरानी और ड्राइवर आदि को जो सामान चाहिए था, दे दिया. अंत में बारी आई विमला की अलमारी की. जब उन्होंने उन की अलमारी खोली तो कपड़ों की भरमार देख कर एक बार तो हताश हो कर बैठ गए. उन्हें हैरानी हुई कि विमला के पास इतने अधिक कपड़े थे, फिर भी वह नईनई साडि़यां खरीदती रहती थी.

पहले दिन तो उन्होंने अलमारी को बंद कर दिया. उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि इतने कपड़ों का वे क्या करेंगे. इसी बीच उन्हें किसी काम से मदुरै जाना पड़ा. वे अपनी कार से निकले थे. वापसी पर एक जगह उन की कार का टायर पंक्चर हो गया और उन्हें वहां कुछ घंटे रुकना पड़ा. जब तक कोई सहायता आती और कार चलने लायक होती, वे वहां टहलने लगे. पास ही रेलवे लाइन पर काम चल रहा था और सैकड़ों मजदूर वहां काम पर लगे हुए थे. काम बड़े स्तर पर चल रहा था, इसलिए पास ही मजदूरों की बस्ती बस गई थी.

इंद्र ने ध्यान से देखा कि इन मजदूरों का जीवन कितना कठिन है. हर तरफ अभाव ही अभाव था. कुछ औरतों के शरीर के कपड़े इतने घिस चुके थे कि उन के बीच से उन का शरीर नजर आने लगा था. एक युवा महिला के फटे ब्लाउज को देख कर उन्हें एकदम से अपनी पत्नी के कपड़ों की याद हो आई. वे मन ही मन कुदरत पर मुसकरा उठे कि एक ओर तो जरूरत से ज्यादा दे देती है और दूसरी ओर जरूरत भर का भी नहीं. इसी बीच उन की गाड़ी ठीक हो गई और वे लौट आए.

दूसरे दिन तरोताजा हो कर इंद्र ने फिर से पत्नी की अलमारी खोली तो बहुत ही करीने से रखे ब्लाउज के बंडलों को देखा. जो बंडल सब से पहले उन के हाथ लगा उसे देख कर वे हंस पड़े. वे ब्लाउज 30 साल पुराने थे. कढ़ाई वाले उस लाखे रंग के ब्लाउज को वे कैसे भूल सकते थे. शादी के बाद जब वे हनीमून पर गए तो एक दिन विमला ने यही ब्लाउज पहना था.

उस ब्लाउज के हुक पीछे थे. विमला को साड़ी पहनने का उतना अभ्यास नहीं था. कालेज में तो वह सलवारकमीज ही पहनती थी तो अब साड़ी पहनने में उसे बहुत समय लगता था. उस दिन जब वे घूमने के लिए निकलने वाले थे तो विमला को तैयार हो कर बाहर आने के लिए कह कर वे होटल के लौन में आ कर बैठ गए. कुछ समय तो वे पेपर पढ़ते रहे और कुछ समय इधरउधर के प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते रहे. आधे घंटे से ऊपर समय हो गया, मगर विमला बाहर नहीं आई. वे वापस कमरे में गए तो कमरे का दृश्य देख कर जोर से हंस पड़े. कमरे का दरवाजा खोल कर विमला दरवाजे की ओट में हो गई. और वह चादर ओढ़े थी.

वे बोले, ‘‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुईं?’’

‘‘नहीं. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी. तुम्हें कैसे बुलाऊं, समझ में नहीं आ रहा था.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘ब्लाउज बंद नहीं हो रहा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हुक पीछे हैं और मुझ से बंद नहीं हो रहे.’’

‘‘तो कोई दूसरी ड्रैस पहन लेतीं.’’

‘‘पहले यह उतरे तो… मैं तो इस में फंसी बैठी हूं.’’

विमला की स्थिति देख कर वे बहुत हंसे थे. फिर उन्होंने उस के ब्लाउज के पीछे के हुक बंद कर दिए थे. तब कहीं जा कर उस ने साड़ी पहनी थी. ब्लाउज के हुक बंद करने का उन का यह पहला अनुभव था और वे इतना रोमांचित हो गए कि विमला के ब्लाउज के हुक उन्होंने फिर से खोल दिए. वह कहती ही रह गई कि इतनी मुश्किल से साड़ी बांधी है और तुम ने सारी मेहनत बेकार कर दी. उस के बाद जब भी वह इस ब्लाउज को पहनती थी तो दोनों खूब हंसते थे.

मगर आज हंसने वाली बहुत दूर जा चुकी थी. हनीमून के दौरान पहना गया हर ब्लाउज उन्हें याद आने लगा. सफेद मोतियों से सजा काला ब्लाउज तो विमला के गोरे रंग पर बेहद खिलता था. जिस दिन विमला ने यह ब्लाउज पहना था उस की उंगलियां उस की गोरी पीठ पर ही फिसलती रहीं.

तब वह खीज उठी और बोली, ‘‘बस करो सहलाना गुदगुदी होती है.’’

‘‘अरे, अपनी बीवी की ही तो पीठ सहला रहा हूं.’’

‘‘मैं ने कहा न गुदगुदी होती है.’’

‘‘अरे, तुम्हारी तो पीठ में गुदगुदी हो रही है यहां तो सारे शरीर में गुदगुदी हो रही है.’’

‘‘बस करो अपनी बदमाशी.’’

विमला की खीज को देख कर उन्होंने चलतेचलते ही उसे अपनी बांहों के घेरे में कस कर कैद कर लिया था और वह नीला ब्लाउज तो विमला पर सब से ज्यादा सुंदर लगता था. नीली साड़ी के साथ वह नीला हार और नीली चूडि़यां भी पहन लेती थी. उस की चूडि़यों की खनक इंद्र को परेशान कर जाती थी. विमला जितनी बार भी हाथ उठाती चूडि़यां खनक उठती थीं और सड़क चलता आदमी मुड़ कर देखता कि यह आवाज कहां से आ रही है.

इंद्र चिढ़ाने के लिए विमला से बोले, ‘‘ये चूडि़यां क्या तुम ने राह चलतों को आकर्षित करने के लिए पहनी हैं? जिसे देखो वही मुड़ कर देखता है. यह मुझ से देखा नहीं जाता.’’

तब विमला खूब हंसी और फिर उस ने मजाकमजाक में सारी चूडि़यां उतार कर इंद्र के हवाले करते हुए कहा, ‘‘अब तुम ही

इन्हें संभालो.’’ तब एक पेड़ की छाया में बैठ कर इंद्र ने विमला की गोरी कलाइयों को फिर से चूडि़यों से भर दिया था.

इतनी प्यारी यादों के जाल में इंद्र इतना उलझ गए और 1-1 ब्लाउज को ऐसे सहलाने लगे मानो विमला ही लिपटी हो उन ब्लाउजों में.

इंद्र बड़ी मुश्किल से यादों के जाल से बाहर आए. फिर उन्होंने दूसरा बंडल उठाया. इस बंडल के अधिकतर ब्लाउज प्रिंटेड थे. उन्हें याद हो आया कि एक जमाने में सभी महिलाएं ऐसे ही प्रिंटेड ब्लाउज पहनती थीं. प्लेन साड़ी और प्रिंटेड ब्लाउज का फैशन कई वर्षों तक रहा था. उन्हें उस बंडल में वह काला प्रिंटेड ब्लाउज भी नजर आ गया जिसे खरीदने के चक्कर में उन में आपस में खूब वाक् युद्ध हुआ था.

विमला को एक शादी में जाना था और उस की तैयारी जोरशोर से चल रही थी.

एक दिन सुबह ही चेतावनी मिल गई थी, ‘‘देखो आज शाम को जल्दी वापस आना. मुझे बाजार जाना है. शीला की शादी में मुझे काली साड़ी पहननी है और उस के साथ का प्रिंटेड ब्लाउज खरीदना है.’’

‘‘तुम खुद जा कर ले आना.’’

‘‘नहीं तुम्हारे साथ ही जाना है. उस के साथ की मैचिंग ज्वैलरी भी खरीदनी है.’’

‘‘अच्छा कोशिश करूंगा.’’

‘‘कोशिश नहीं, तुम्हें जरूर आना होगा.’’

‘‘ओ.के. मैडम. आप का हुक्म सिरआंखों पर.’’ पर शाम होतेहोते इंद्र यह बात भूल गए और रात को जब घर लौटे तो चंडीरूपा विमला से उन का सामना हुआ. उन्हें अपनी कही बात याद आई तो तुरंत अपनी गलती को सुधार लेना चाहा. बोले, ‘‘अभी आधा घंटा है बाजार बंद होने में. जल्दी से चलो.’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं जाना. आधे घंटे में भी कोई खरीदारी होती है?’’

‘‘अरे, तुम चलो तो.

तुम्हारे लिए मैं बाजार फिर से खुलवा लूंगा.’’

‘‘बस करो अपनी बातें. मुझे पता है आजकल तुम मुझे बिलकुल प्यार नहीं करते. सारा दिन काम और फिर दोस्त ही तुम्हारे लिए सब कुछ हैं आजकल.’’

‘‘यही बात मैं तुम्हारे लिए कहूं तो कैसा लगेगा? अब तो तुम्हारे बच्चे ही तुम्हारे लिए सब कुछ हैं. तुम मेरा ध्यान नहीं रखती हो.’’

‘‘शर्म नहीं आती है तुम्हें

ऐसा कहते हुए? बच्चे क्या सिर्फ मेरे हैं?’’

विमला की आंखों में आंसू देख कर वे संभल गए और बोले, ‘‘अब जल्दी चलो. झगड़ा बाद में कर लेंगे,’’ और फिर उन्होंने जबरदस्ती विमला को घसीट कर कार में बैठाया और कार स्टार्ट कर दी थी.

पहली ही दुकान में उन्हें इस काले प्रिंटेड ब्लाउज का कपड़ा मिल गया. फिर ज्वैलरी शौप में काले और सफेद मोतियों की मैचिंग ज्वैलरी भी मिल गई. फिर वे बाहर ही खाना खा कर घर लौटे.

इसी बंडल में उन्हें बिना बांहों का पीली बुंदकी वाला ब्लाउज भी नजर आया. जब विमला ने पहली बार बिना बांहों का ब्लाउज पहना था तो वे अचरज से उसे देखते रह गए थे. फिर दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं उन्होंने महसूस की थीं. एक ओर तो वे विमला की गोल मांसल और गोरी बांहों को देखते रह गए, तो दूसरी ओर उन में ईर्ष्या की भावना भी पैदा हो गई. वे विमला को ले कर बहुत ही पजैसिव हो उठे थे इसलिए उन्होंने विमला से कहा, ‘‘मेरी एक बात मानोगी?’’

‘‘बोलो.’’

‘‘यह ब्लाउज पहन कर तुम बाहर मत जाना. लोगों की नजर लग जाएगी.’’

‘‘बेकार की बातें मत करो. मेरी सारी सहेलियां पहनती हैं. किसी को नजर नहीं लगती है. तुम अपनी सोच को जरा विशाल बनाओ. इतने संकुचित विचारों वाले मत बनो.’’

‘‘मुझे जो कहना था, कह दिया. आगे तुम्हारी मरजी,’’ कह कर वे बिलकुल खामोश हो गए.

विमला ने उन की बात रख ली और फिर कभी बिना बांहों वाला ब्लाउज नहीं पहना. उसी बंडल में 20 ब्लाउज ऐसे निकले जो बिना बांहों के थे. लगता था विमला ने एकसाथ ही इतने सारे ब्लाउज सिलवा लिए थे. पर अब देखने से पता चलता कि उन्हें कभी इस्तेमाल ही नहीं किया गया.

अब उन्होंने अगला बंडल उठाया. इस में तरहतरह के ब्लाउज थे. कुछ रेडीमेड ब्लाउज थे, कुछ डिजाइनर ब्लाउज थे, 1-2 ऊनी ब्लाउज और कुछ मखमल के ब्लाउज भी थे.

जब काले मखमल के ब्लाउज पर इंद्र ने हाथ फेरा तो वे बहुत भावुक हो उठे. जब विमला ने यह काला ब्लाउज पहना तो उन की नजर उस की गोरी पीठ और बांहों पर जम कर रह गई.

40 साल पार कर चुकी विमला भी उस नजर से असहज हो उठी और बोली, ‘‘कैसे देख रहे हो? क्या मुझे पहले कभी नहीं देखा?’’

‘‘देखा तो बहुत बार है पर इस मखमली ब्लाउज में तुम्हारी गोरी रंगत बहुत खिल रही है. मन कर रहा है कि देखता ही रहूं.’’

‘‘तो मना किस ने किया है,’’ वह इतरा कर बोली.

कुछ साडि़यां ब्लाउजों सहित हैंगरों पर लटकी थीं. एक पेंटिंग साड़ी इंद्र ने हैंगर सहित उतार ली. हलकी पीली साड़ी पर गहरे पीले रंग के बड़ेबड़े गुलाब बने थे. इस साड़ी को पहन कर 50 की उम्र में भी विमला उन्हें कमसिन नजर आ रही थी. उस की देहयष्टि इस उम्र में भी सुडौल थी. अपने शरीर का रखरखाव वह खूब करती थी. जरा सा मेकअप कर लेती तो अपनी असली उम्र से 10 साल छोटी लगती.

उधर इंद्र ने कभी अपने शरीर की ओर ध्यान नहीं दिया. उन की तोंद निकल आई थी. बाल तो 40 के बाद ही सफेद होने शुरू हो गए थे. बाल काले करने के लिए वे कभी राजी नहीं हुए. सफेद बाल और तोंद के कारण वे अपनी उम्र से 10 साल बड़े लगते थे.

तभी तो एक दिन जब उन के एक मित्र घर आए तो गजब हो गया. मित्र का स्वागत करने के लिए विमला ड्राइंगरूम में आई और हैलो कह कर चाय लाने अंदर चली गई. उस दिन विमला ने यही पीली साड़ी पहनी हुई थी. वह चाय की ट्रे रख कर फिर अंदर चली गई.

आधे घंटे बाद जब मित्र चलने लगे तो बोले, ‘‘यार तू ने भाभीजी से मिलवाया ही नहीं.’’

‘‘अरे अभी तो तुम्हें हैलो कह कर चाय रख कर गई थी.’’

‘‘वे भाभी थीं क्या? मैं ने समझा तुम्हारी बेटी है.’’

‘‘अब तुम चुप हो जाओ, नहीं तो मेरे से पिटोगे.’’

‘‘जो मैं ने देखा और महसूस किया, वही तो बोला. अब इस में बुरा मानने की क्या बात है? छोटी उम्र की लड़की से शादी करोगे तो बापबेटी ही तो नजर आओगे.’’

‘‘तुम मेरे मेहमान हो अन्यथा उठा कर बाहर फेंक देता.’’

दोनों की बातें सुन कर विमला भी ड्राइंगरूम में चली आई. फिर अपने पति के बचाव में बोली, ‘‘लगता है भाईसाहब का चश्मा बदलने वाला है. जा कर टैस्ट करवाइए. अब सफेद बालों और काले बालों से तो उम्र नहीं जानी जाती. आप मेरे पति का मजाक नहीं उड़ा सकते.’’

बात हंसी में उड़ा दी गई. पर हकीकत यही थी कि विमला अपनी उम्र से 10 साल छोटी और इंद्र अपनी उम्र से 10 साल बड़े लगते थे.

छोटे बेटे की शादी में सिलवाए ब्लाउज ने तो उन्हें हैरानी में ही डाल दिया. अधिकतर विमला अपनी खरीदारी स्वयं ही करती थी और स्वयं ही भुगतान भी करती थी. पर उस दिन दर्जी की दुकान से एक नौकर ब्लाउज ले कर आया और क्व800 की रसीद दे कर पैसे मांगने लगा. क्व800 एक ब्लाउज की सिलवाई देख कर वे चकित रह गए. उन्होंने रुपए तो नौकर को दे दिए पर विमला से सवाल किए बिना नहीं रह पाए.

‘‘तुम्हारे एक ब्लाउज की सिलवाई रू 800 है?’’

‘‘हां, है. पर तुम्हें इस से क्या मतलब? मेरे बेटे की शादी है, मेरा भी सजनेसंवरने का मन है.’’

‘‘इतना महंगा ब्लाउज पहन कर ही तुम लड़के की मां लगोगी?’’

‘‘आज तक तो कभी मेरे खर्च का हिसाब नहीं मांगा. आज भी चुप रहो भावी ससुरजी,’’ कह कर विमला जोर से हंस दी.

उन्हें तो उस ब्लाउज में कुछ विशेष नजर नहीं आया था पर विमला की सहेलियों के बीच वह ब्लाउज चर्चा का विषय रहा. उस ब्लाउज को देखते ही उन्हें विमला का वह सुंदर चेहरा याद हो आया, जो बेटे की शादी की खुशी में दमक रहा था.

फिर उन की नजर कुछ ऐसे ब्लाउजों पर भी पड़ी, जिन्हें देख कर लगता था कि उन्हें कभी पहना ही नहीं गया है. पता नहीं विमला को ब्लाउज सिलवाने का कितना शौक था. उन्हें लगा इतने ब्लाउज देख कर वे पागल हो जाएंगे. औरत का मनोविज्ञान समझना उन की समझ से परे था. पर अफसोस जिस विमला को ब्लाउज सिलवाने का इतना शौक था, वही विमला जीवन के आखिरी दिनों में ब्लाउज नहीं पहन सकती थी.

2 साल पहले उसे स्तन कैंसर हुआ और जब तक उस का इलाज शुरू होता वह पूरी बांह में फैल चुका था. उस से अपनी बांह भी ऊपर नहीं उठती थी. बीमारी और कीमोथेरैपी ने उस के गोरे रंग को भी झुलसा दिया था. 3 महीनों में ही वह अलविदा कह गई थी.

आज इंद्र उन्हीं ब्लाउजों के अंबार में बैठे यादों के सहारे कुछ जीवंत क्षणों को फिर से जीने का प्रयास कर रहे थे. पर कुछ समय बाद वे उठे और उन्होंने अपने नौकर को आवाज लगाई. कहा, ‘‘इस अलमारी के सारे कपड़ों को संदूकों में बंद कर के कार में रख दो.’’

सुबह होते ही इंद्र कार ले कर उस रेलवेलाइन जा पहुंचे और फिर दोनों संदूकों को मजदूरों के हवाले कर बहुत ही हलके मन से घर लौट आए कि विमला के कपड़ों से किसी की नग्नता ढक जाएगी. Family Story

Top 10 Monsoon Food Recipes In Hindi: मौनसून की टॉप 10 फूड रेसिपी हिंदी में

Monsoon Food Recipes In Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Monsoon Food Recipes In Hindi 2025. मौनसून में बाहर की चीजें खाने से हेल्थ पर इफेक्ट पड़ता है और कई तरह की बीमारियां पैदा होती हैं. वहीं इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर देखने को मिलता है क्योंकि वह बिना सोचे समझे बाहर की बनीं चीजें खा लेते हैं. इसी लिए आज हम आपके लिए कुछ मौनसून की टेस्टी रेसिपीज लेकर आए हैं, जिन्हें आप अपने बच्चों को आसानी से घर पर बनाकर खिला सकते हैं. इन Food Recipes से आप घर बैठे अपने बच्चों और फैमिली का कुकिंग से दिल जीत सकती हैं. अगर आपको भी है मौनसून के इस सीजन में घर पर नई नई रेसिपी ट्राय करनी है तो यहां पढ़िए गृहशोभा की Monsoon Food Recipes In Hindi.

1. Monsoon Special: नाश्ते में बनाएं इंस्टेंट जाली डोसा

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नाश्ता हर महिला की रोज की ही समस्या है, घर में जितने सदस्य उतनी ही विविध पसन्द. पुरानी पीढ़ी को उपमा, वेरमिसेली और उत्तपम जैसी चीजों के स्थान पर परांठा, पूरी जैसे खाद्य पदार्थ पसन्द आते हैं तो नई पीढ़ी को परांठे और पूरी ऑयली लगते हैं. ब्रेड और उससे बने नाश्ते भी रोज नहीं खाये जा सकते. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए आज हम आपको एक ऐसे नाश्ते के बारे में बता रहे हैं जिसे घर पर उपलब्ध सामग्री से ही बड़ी आसानी से बनाया जा सकता है, साथ ही यह बच्चे बड़े सभी को बहुत पसंद भी आएगा.

2. Monsoon Special: दूध से मिठाई बनाने के टिप्स

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मिठाई भारतीयों का एक प्रिय डेजर्ट है. भोजनोपरांत कुछ मीठा होना ही चाहिए. पेड़ा, बर्फी, लड्डू, रबड़ी, आदि अनेकों मिठाईयां हैं जिन्हें बेसन, खोया और आटा आदि से बनाया जाता है. दूध से रबड़ी, कुल्फी, श्रीखंड आदि बनाये जाते हैं. दूध से मिठाईयां बनाते समय आंच का ध्यान रखने की अतिरिक्त सावधानी रखने की आवश्यकता होती है क्योंकि गैस की धीमी, तेज और मद्धिम आंच से ही दूध की मिठाइयों की रंगत निर्धारित होती है.

3. Monsoon Special: घर पर बनाएं बच्चों के लिए ये शानदार मिल्क शेक

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बच्चों को अक्सर दूध पीना पसंद नहीं होता, कई बार दूध के साथ बच्चों का छत्तीस का अकड़ा भी रहता है. लेकिन बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए दूध बहुत ज़रूरी खाद्य पदार्थ होता है. इसलिए हर माता-पिता अपने बच्चों को दूध पीने के लिए देते हैं. ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि दूध ना देकर दूध से तैयार कुछ बेहतरीन रेसिपीज को बनाकर सेवन के लिए ज़रूर दिया जाए…

4. Monsoon Special: बारिश में बनाएं रेड कैबेज पकौड़े

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बारिश का मौसम प्रारम्भ हो चुका है और रिमझिम फुहारों के बीच पकौड़े खाने का मजा भी कुछ अलग ही होता है. आमतौर पर हम प्याज, आलू या मिक्स वेज पकौड़े बनाते हैं पर आज हम आपको इन सबसे अलग रेड कैबेज अर्थात रेड या पर्पल कैबेज के पकोड़े बनाना बता रहे हैं जो सेहतमंद भी हैं और स्वादिष्ट भी. रेड कैबेज में विटामिन के और फाइबर प्रचुर मात्रा में तथा जिंक, मैग्नीशियम और आयरन अल्प मात्रा में पाए जाते हैं.

5. Monsoon Special: बारिश में लें टेस्टी चाट का मजा

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बारिश का मौसम शुरू हो चुका है, और बारिश की रिमझिम फुहारों के पड़ते ही मन कुछ चटपटा और तीखा खाने को करने लगता है. चाट यूं तो हर मौसम में ही अच्छी लगती है परन्तु बारिश में चाट खाने का मजा ही कुछ और होता है. इसी तरीके में आज हम आपको चाट की झटपट बनने वाली दो रेसिपीज के बारे में बता रहे हैं जिन्हें आप बड़ी आसानी से बना सकती हैं…

6. Monsoon Special: 3 तरह की ग्रेवी से सब्जी का स्वाद बढ़ाए

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सब्जी का स्वाद उसकी ग्रेवी से बढ़ जाता है. भारतीयो को हर खाने में मिर्च मसाले पसंद आते है, भारतिय रसोई में सब्जी में ग्रेवी कई तरीके से बनाई जाती है. कई ऐसे पकवान होते हैं जो बिना ग्रेवी के अच्छे ही नहीं लगते, जैसे- छोले, पनीर की सब्जी, और आलू दम इत्यादि. आज हम तीन ऐसी ग्रेवी के बारे में बताने जा रहे हैं जो आप विभिन्न सब्जी रेसिपीज में ट्राई कर सकती हैं. हालांकि इस दौरान यह ध्यान रखना जरूरी है कि सब्जी में ग्रेवी किस तरह की रखनी है, यानि पतली या गाढ़ी. इस बात को ध्यान में रखते हुए अगर आप सब्जी की ग्रेवी बनाएंगी तो परिवार वाले उंगलियां चाटते हुए सब्जी के स्वाद का आनंद उठाएंगे.

7. Monsoon Special: चटनी के साथ परोसें गरमागरम मूंग दाल के पकौड़े

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मौनसून में पकौड़े हर किसी को पसंद आते हैं, लेकिन अक्सर लोग घर पर बनाने की बजाय रेस्टोरेंट से बनाना पसंद करते हैं. पर आज हम आपको मूंग दाल के पकौड़े की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप चटनी के साथ मूंग दाल के पकौड़ों के साथ अपनी फैमिली को गरमागरम परोसें.

8. Monsoon Special: फैमिली के लिए बनाएं ओनियन चीज पिज्जा

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अगर आप भी बारिश के मौसम में कुछ टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहती हैं तो ओनियन चीज पिज्जा की ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन साबित होगा. ओनियन चीज पिज्जा आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप अपनी फैमिली को स्नैक्स में खिला सकते हैं.

9. Monsoon Special: बारिश में लें चीजी कॉर्न समोसे का मजा

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बारिश का मौसम देश में अपनी दस्तक दे चुका है. इस समय कॉर्न भरपूर मात्रा में बाजार में मिलता है. यूं तो आजकल फ्रोजन कॉर्न के रूप में साल भर ही कॉर्न उपलब्ध रहते हैं परन्तु बारिश का तो मौसम ही भुट्टों का होता है. देशी भुट्टे जहां छोटे दाने के वहीं स्वीट कॉर्न बड़े दाने और मिठास लिए होते हैं. कॉर्न में आयरन, फाइबर, तथा अनेकों मिनरल्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं इसलिए इन्हें अपनी डाइट में किसी न किसी रूप में अवश्य शामिल करना चाहिए.

10. Monsoon Special: स्नैक्स में खिलाएं पनीर हौट डौग

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बारिश के मौसम में अगर आप टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहती हैं तो पनीर हौट डौग की ये रेसिपी आपके लिए अच्छा औप्शन है. पनीर हौट डौग को आप आसानी से अपनी फैमिली के लिए कम समय में बना सकते हैं. Monsoon Food Recipes In Hindi

Social Story: पुश्तैनी रिवॉल्वर

Social Story: वैसे तो रणबीर ग्रुप ने शहर में कई दर्शनीय इमारतें बनाई थीं, लेकिन उन के द्वारा नवनिर्मित ‘स्वप्नलोक’ वास्तुशिल्प में उन का अद्वितीय योगदान था. उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री एवं अन्य विशिष्ट व्यक्तियों की प्रशंसा के उत्तर में ग्रुप के चेयरमैन रणबीर ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘किसी भी प्रोजैक्ट की कामयाबी का श्रेय उस से जुड़े प्रत्येक छोटेबड़े व्यक्ति को मिलना चाहिए, इसीलिए मैं अपने सभी सहकर्मियों का बहुत आभारी हूं, खासतौर से अपने आर्किटैक्ट विभोर का जिन के बगैर मैं आज जहां खड़ा हूं वहां तक कभी नहीं पहुंचता.’’

समारोह के बाद जब विभोर ने रणबीर को धन्यवाद दिया तो उस ने सरलता से कहा, ‘‘किसी को भी उस के योगदान का समुचित श्रेय न देने को मैं गलत समझता हूं विभोर.’’

‘‘ऐसा है तो फिर मेरी सफलता का श्रेय तो मेरी सासससुर खासकर मेरी सास को मिलना चाहिए सर,’’ विभोर बोला, ‘‘यदि आप का इस सप्ताहांत कोई और कार्यक्रम न हो तो आप सपरिवार हमारे साथ डिनर लीजिए, मैं आप को अपने सासससुर से मिलवाना चाहता हूं.’’

‘‘मैं गरिमा और बच्चों के साथ जरूर आऊंगा विभोर. तुम्हारे सासससुर इसी शहर में रहते हैं?’’

‘‘जी हां, मैं उन के साथ यानी उन के ही घर में रहता हूं सर वरना मेरी इतनी बड़ी कोठी लेने की हैसियत कहां है…’’

‘‘कमाल है, अभी कुछ रोज पहले तो हम तुम्हारी प्रमोशन की पार्टी में तुम्हारे घर आए थे और उस से पहले भी आ चुके हैं, लेकिन उन से मुलाकात नहीं हुई कभी.’’

‘‘वे लोग मेरी पार्टियों में शरीक नहीं होते सर, न ही मेरी निजी जिंदगी में दखलंदाजी करते हैं. लेकिन मेरे बीवीबच्चों का पूरा खयाल रखते हैं. इसीलिए तो मैं इतनी एकाग्रता से अपना काम कर रहा हूं, क्योंकि न तो मुझे बीमार बच्चे को डाक्टर के पास ले जाना पड़ता है और न ही बीवी के अकेलेपन को दूर करने या गृहस्थी के दूसरे झमेलों के लिए समय निकालने की मजबूरी है. जब भी फुरसत मिलती है बेफिक्री से बीवीबच्चों के साथ मौजमस्ती कर के तरोताजा हो जाता हूं,’’ विभोर बोला.

‘‘ऋतिका इकलौती बेटी है?’’

‘‘नहीं सर, उस के 2 भाई अमेरिका में रहते हैं. पहले तो उन का वापस आने का इरादा था, मगर मेरे यहां आने के बाद दोनों लौटना जरूरी नहीं समझते. मिलने के लिए आते रहते हैं. कोठी इतनी बड़ी है कि किसी के आनेजाने से किसी को कोई दिक्कत नहीं होती.’’

रणबीर को ऋतिका के मातापिता बहुत ही सुलझे हुए, संभ्रांत और सौम्य

लगे. खासकर ऋतिका की मां मृणालिनी. न जाने क्यों उन्हें देख कर रणबीर को ऐसा लगा कि उस ने उन्हें पहले भी कहीं देखा है.

उस के यह कहने पर मृणालिनी ने बड़ी सादगी से कहा, ‘‘जरूर देखा होगा ‘दीपशिखा’ महिला क्लब के किसी समारोह या फिर अपनी शादी में,’’ मां की मृत्यु में कहना मृणालिनी ने मुनासिब नहीं समझा.

‘‘ठीक कहा आप ने,’’ रणबीर चहका, ‘‘किसी समारोह की तो याद नहीं, लेकिन बहुत सी तसवीरों में आप हैं मां के साथ.’’

‘‘मां की शादी से पहले की तसवीरों में भी देखा होगा, क्योंकि मैं और रुक्की शादी के पहले एक बार एनसीसी कैंप में मिली थीं और वहीं हमारी दोस्ती हुई थी.’’

रणबीर भावुक हो उठा. उस की मां रुक्मिणी को रुक्की उन के बहुत ही करीबी लोग कह सकते थे. रूप और धन के दंभ में अपने को विशिष्ट समझने वाली मां यह हक किसीकिसी को ही देती थीं यानी मृणालिनी उस की मां की अभिन्न सखी थीं.

‘‘विभोर को मालूम है कि मां आप की सहेली थीं?’’ रणबीर ने पूछा.

‘‘नहीं, क्योंकि उस का हमारे परिवार से जुड़ने से पहले ही रुक्की का देहांत हो गया था. विभोर बहुत मेहनती और लायक लड़का है,’’ मृणालिनी ने दर्प से कहा.

‘‘सही कह रही हैं आप. विभोर के बगैर तो मैं 1 कदम भी नहीं चल सकता. और अब तो मुझे आप का सहारा भी चाहिए मांजी. मां के देहांत के बाद आज आप से मिल कर पहली बार लगा जैसे मैं फिर से सिर्फ रणबीर बन कर जी सकता हूं.’’

‘‘गाहेबगाहे ही क्यों जब जी करे,’’ मृणालिनी ने स्नेह से उस का सिर सहलाते

हुए कहा.

‘‘रणबीर सर से क्या बातें हुईं मां?’’ अगली सुबह विभोर ने पूछा.

‘‘कुछ खास नहीं, बस उस की मां के बारे में,’’ मृणालिनी ने अनमने भाव से कहा.

‘‘पूरी शाम?’’ विभोर ने हैरानी से पूछा.

‘‘रुक्की थी ही ऐसी विभोर, उस के बारे में जितनी भी बातें की जाएं कम हैं, अमीर बाप की बेटी होने के बावजूद उस में रत्ती भर घमंड नहीं था. वह एनसीसी की अच्छी कैडेट थी. उस के बाप ने उसे रिवौल्वर इनाम में दिया था. मेरी निशानेबाजी से प्रभावित हो कर रुक्की ने अपने रिवौल्वर से मुझे प्रैक्टिस करवाई थी. तभी तो मुझे निशानेबाजी की प्रतियोगिता में इनाम मिला था.’’

‘‘लगता है मां अपनी सहेली की याद आने की वजह से विचलित हैं,’’ ऋतिका बोली.

‘‘और अब विचलित होने की बारी मेरी है, क्योंकि हम व्हिस्पर वैली में जो अरेबियन विलाज बना रहे हैं न उस बारे में मुझे आज रणबीर सर से विस्तृत विचारविमर्श करना है और अगर मां की याद में व्यथित होने के कारण उन्होंने मीटिंग टाल दी या दिलचस्पी नहीं ली तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी,’’ विभोर ने कहा.

लेकिन उस का खयाल गलत था. रणबीर ने बड़े उत्साह और दिलचस्पी से विभोर की प्रस्तावना पर विचार किया और सुझाव दिया, ‘‘अपने पास जमीन की कमी नहीं है विभोर. क्यों न तुम 2 को जोड़ कर पहले 1 बड़ा भव्य विला बनाओ. अगर लोगों को पसंद आया तो और वैसे बना देंगे.’’

‘‘लेकिन कीमत बहुत ज्यादा हो जाएगी सर और फिर कोई ग्राहक न मिला तो?’’

‘‘परवाह नहीं,’’ रणबीर ने उत्साह से कहा, ‘‘खुद के काम आ जाएगा. यही सोच कर बनाओ कि यह बेचने के लिए नहीं अपने लिए है. विभोर, तुम दूसरे काम उमेश और दिनेश को देखने दो. तुम इसी प्रोजैक्ट के निर्माण पर ध्यान दो और जल्दी यह काम पूरा करो. मैं सतबीर से कह दूंगा कि तुम्हें पैसे की दिक्कत न हो.’’

‘‘फिर तो देर होने का सवाल ही नहीं उठता सर,’’ विभोर ने आश्वासन दिया. उस के बाद वह काम में जुट गया.

रणबीर इस प्रोजैक्ट में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहा था, अकसर साइट पर भी आता रहता था. एक सुबह जब विभोर साइट पर जा रहा था तो उस ने देखा कि ढलान शुरू होने से कुछ पहले उस के कई सहकर्मियों की गाडि़यां और मोटरसाइकिलें, स्कूटर सड़क के किनारे खड़े हैं और कुछ लोग उस की गाड़ी को रोकने को हाथ हिला रहे हैं.

‘‘रणबीर साहब की गाड़ी भी खड़ी है साहब,’’ ड्राइवर ने गाड़ी रोकते हुए कहा.

विभोर चौंक पड़ा कि क्या वे इतनी सुबह यहां मीटिंग कर रहे हैं?

‘‘सर, बड़े साहब की गाड़ी में उन की लाश पड़ी है,’’ उसे गाड़ी से उतरते देख कर एक आदमी लपक कर आया और बोला.

विभोर भागता हुआ गाड़ी के पास पहुंचा. रणबीर ड्राइवर की सीट पर बैठा

था, उस की दाहिनी कनपटी पर गोली लगी थी और दाहिने हाथ में रिवौल्वर था. सीटबैल्ट बंधी होने के कारण लाश गिरी नहीं थी. रणबीर जौगर्स सूट और शूज में थे यानी वे सुबह को सैर के लिए तैयार हुए थे. ‘वे तो घर के पास के पार्क में ही सैर करते थे. फिर गाड़ी में यहां कैसे आ गए?’ विभोर सोच ही रहा था कि तभी पुलिस की गाड़ी आ गई.

इंस्पैक्टर देव को देख कर विभोर को तसल्ली हुई. उस के बारे में मशहूर था कि कितना भी पेचीदा केस क्यों न हो वह सप्ताह भर में सुलझा लेता है.

‘‘लाश पहले किस ने देखी?’’ देव ने पूछा.

‘‘मैं ने इंस्पैक्टर,’’ एक व्यक्ति सामने आया, ‘‘मैं प्रोजैक्ट मैनेजर विभास हूं. मैं जब साइट पर जाने के लिए यहां से गुजर रहा था तो साहब की गाड़ी खड़ी देख कर रुक गया. गाड़ी के पास जा कर मैं ने अधखुले शीशे से झांका तो साहब को खून में लथपथ पाया. मैं ने तुरंत साहब के घर और पुलिस को फोन कर दिया.’’

कुछ देर बाद रणबीर की पत्नी गरिमा, बेटी मालविका, बेटा कबीर, छोटा भाई सतबीर और उस की पत्नी चेतना आ गए. देव ने शोकविह्वल परिवार को संयत होने के लिए थोड़ा समय देना बेहतर समझा. कुछ देर के बाद गरिमा ने विभोर से पूछा कि क्या साइट पर कुछ गड़बड़ है, क्योंकि आज रणबीर रोज की तरह सुबह सैर पर निकले थे, पर चंद मिनट बाद ही लौट आए और चौकीदार से गाड़ी की चाबी मंगवा कर गाड़ी ले कर चले गए.

‘‘हमें तो किसी ने फोन नहीं किया,’’ विभास और विभोर ने एकसाथ कहा, ‘‘और साइट के चौकीदार को तो हम ने साहब का नंबर दिया भी नहीं है.’’

‘‘क्या मालूम भैया ने खुद दे दिया हो,’’ सतबीर बोला, ‘‘वह इस प्रोजैक्ट में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहे थे.’’

‘‘अगर किसी ने फोन किया था तो इस का पता मोबाइल से चल जाएगा,’’ देव ने कहा, ‘‘यह बताइए यह रिवौल्वर क्या रणबीर साहब का अपना है?’’

गरिमा और बच्चों ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘मैं इस रिवौल्वर को पहचानता हूं इंस्पैक्टर,’’ सतबीर बोला, ‘‘यह हमारा पुश्तैनी रिवौल्वर है.’’

‘‘लेकिन यह रिवौल्वर था कहां सतबीर?’’ गरिमा ने पूछा.

सतबीर ने कंधे उचकाए, ‘‘मालूम नहीं भाभी. दादाजी के निधन के कुछ समय बाद मैं पढ़ने के लिए बाहर चला गया था. जब लौट कर आया तो पापा पुरानी हवेली बेच कर हम दोनों भाइयों के लिए नई कोठियां बनवा चुके थे. पुराने सामान का खासकर इस रिवौल्वर का क्या हुआ, मुझे खयाल ही नहीं आया.’’

‘‘चाचा जब बड़े दादाजी गुजरे तब दयानंद काका थे क्या?’’ कबीर ने पूछा.

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘क्योंकि दयानंद काका को जरूर मालूम होगा कि यह रिवौल्वर किस के पास था,’’ कबीर बोला.

‘‘यह दयानंद काका कौन हैं और कहां मिलेंगे?’’ देव ने उतावली से पूछा.

‘‘घर के पुराने नौकर हैं और हमारे साथ ही रहते हैं,’’ गरिमा बोली.

‘‘उन से रिवौल्वर के बारे में पूछना बहुत जरूरी है, क्योंकि आत्महत्या दिखाने की कोशिश में हत्यारे ने गोली चला कर रिवौल्वर मृतक के हाथ में पकड़ाया है,’’ देव बोला.

‘‘दयानंद काका आ गए,’’ तभी औटो से एक वृद्ध को उतरते देख कर मालविका ने कहा.

‘‘साहब, काकाजी की जिद्द पर हमें इन्हें यहां लाना पड़ा,’’ दयानंद के साथ आए एक युवक ने कहा.

‘‘अच्छा किया,’’ सतबीर ने कहा और सहारा दे कर बिलखते दयानंद को गाड़ी के पास ले गया.

‘‘इस रिवौल्वर को पहचानते हो काका?’’ देव ने कुछ देर के बाद पूछा.

दयानंद ने आंसू पोंछ कर गौर से रिवौल्वर को देखा. फिर बोला, ‘‘हां, यह तो साहब का पुश्तैनी रिवौल्वर है. यह यहां कैसे आया?’’

‘‘यह रिवौल्वर किस के पास था?’’ सतबीर ने पूछा.

‘‘किसी के भी नहीं. बड़े बाबूजी के कमरे की अलमारी में जहां उन का और मांजी का सामान रखा है, उसी में रखा रहता था.’’

‘‘आप को कैसे मालूम?’’ कबीर ने पूछा.

‘‘हमीं से तो रणबीर भैया उस कमरे की साफसफाई करवाते थे. इस इतवार को भी करवाई थी.’’

‘‘तब मैं कहां थी?’’ गरिमा ने पछा.

‘‘होंगी यहीं कहीं,’’ दयानंद ने अवहेलना से कहा.

‘‘भैया कब क्या करते थे, इस की कभी खबर रखी आप ने?’’

‘‘पहले मेरे सवाल का जवाब दो काका,’’ देव ने बात संभाली, ‘‘उस रोज क्या उन्होंने यह रिवौल्वर अलमारी से निकाला था?’’

‘‘जी हां, हमेशा ही सब चीजें निकालते थे, फिर उन्हें बड़े प्यार से पोंछ कर वापस रख देते थे.’’

‘‘इतवार को भी रिवौल्वर वापस रखा था?’’

‘‘मालूम नहीं, हम तो अपना काम खत्म कर के भैया को वहीं छोड़ कर आ गए थे.’’

‘‘भैया को मांबाप से बहुत लगाव था. उन्होंने उन का कमरा जैसा था वैसा ही रहने दिया था. वे हमेशा उस कमरे में अकेले बैठना पसंद करते थे,’’ सतबीर ने जैसे सफाई दी.

इंस्पैक्टर देव फोटोग्राफर और फोरेंसिक वालों के साथ व्यस्त हो गया.

फिर शोकसंतप्त परिवार से बोला, ‘‘मैं आप की व्यथा समझता हूं, लेकिन हत्यारे को पकड़ने के लिए मुझे आप सब से कई अप्रिय सवाल करने पड़ेंगे. अभी आप लोग घर जाइए. लेकिन कोई भी घर से बाहर नहीं जाएगा खासकर दयानंद काका.’’

‘‘जो हमें मालूम होगा, हम जरूर बताएंगे इंस्पैक्टर. लेकिन हम सब से ज्यादा विभोर बता सकते हैं, क्योंकि भाभी से भी ज्यादा समय भैया इन के साथ गुजारते थे,’’ सतबीर ने विभोर का परिचय करवाया.

रणबीर के शरीर को पोस्टमाटर्म के लिए ले जाने को जैसे ही ऐंबुलैंस में रखा, पूरा परिवार बुरी तरह बिलखने लगा.

‘‘आप ही को इन सब को संभालना होगा विभोर साहब,’’ विभास ने कहा.

‘‘घर पर और भी कई इंतजाम करने पड़ेंगे विभास. आप साइट का काम बंद करवा कर बंगले पर आ जाइए और कुछ जिम्मेदार लोगों को अभी बंगले पर भिजवा दीजिए,’’ विभोर ने कहा.

विभोर जितना सोचा था उस से कहीं ज्यादा काम करने को थे. बीचबीच में मशवरे के लिए उसे परिवार के पास अंदर भी जाना पड़ रहा था. एक बार जाने पर उस ने देखा कि ऋतिका और मृणालिनी भी आ गई हैं. मृणालिनी गरिमा को गले लगाए जोरजोर से रो रही थी. चेतना और सतबीर उन्हें हैरानी से देख रहे थे.

‘‘ये मेरी सास हैं और आप की मां की घनिष्ठ सहेली. यह बात कुछ महीने पहले ही उन्होंने सर को बताई थी, तब से सर अकसर उन से मिलते रहते थे,’’ विभोर ने धीरे से कहा.

‘‘हां, भैया ने बताया तो था कि मां की एक सहेली से मिल कर उन्हें लगता है कि जैसे मां से मिले हों. मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि वे आप की सास हैं,’’ सतबीर बोला.

‘‘विभोर साहब, बेहतर रहेगा अगर आप अपनी सासूमां को संभाल लें, क्योंकि उन के इस तरह रोने से भाभी और बच्चे और व्यथित हो जाएंगे और फिर हमें उन्हें संभालना पड़ेगा,’’ चेतना ने कहा.

‘‘आप ठीक कहती हैं,’’ कह कर विभोर ने ऋतिका को बुलाया, ‘‘मां को घर ले जाओ ऋतु. अगर इन की तबीयत खराब हो गई तो मेरी परेशानी और बढ़ जाएगी.’’

कुछ देर बाद ऋतिका का घर से फोन आया कि मां का रोनाबिलखना बंद ही नहीं हो रहा, ऐसी हालत में उन्हें छोड़ कर वापस आना वह ठीक नहीं समझती. तब विभोर ने कहा कि उसे आने की आवश्यकता भी नहीं है, क्योंकि वहां कौन आया या नहीं आया देखने की किसी को होश नहीं है.

एक व्यक्ति के जाने से जीवन कैसे अस्तव्यस्त हो जाता है, यह विभोर को पहली बार पता चला. सतबीर और गरिमा ने तो यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि रणबीर ने जो प्रोजैक्ट शुरू कराए थे, उन्हें उस की इच्छानुसार पूरा करना अब विभोर की जिम्मेदारी है. उन दोनों को भरोसा था कि विभोर कभी कंपनी या उन के परिवार का अहित नहीं करेगा. विभोर की जिम्मेदारियां ही नहीं, उलझनें भी बढ़ गई थीं.

रणबीर की मृत्यु का रहस्य उस के मोबाइल पर मिले अंतिम नंबर से और भी उलझ गया था. वह संदेश एक अस्पताल के सिक्का डालने वाले फोन से भेजा गया था और वहां से यह पता लगाना कि फोन किस ने किया था, वास्तव में टेढ़ी खीर था. पहले दयानंद के कटाक्ष से लगा था कि वह गरिमा के खिलाफ है और शायद गरिमा रणबीर की अवहेलना करती थी, लेकिन बाद में दयानंद

ने बताया कि वैसे तो गरिमा रणबीर के प्रति संर्पित थी बस उस की नियमित सुबह की सैर या दिवंगत मातापिता के कमरे में बैठने की आदत में गरिमा, बच्चों व सतबीर की कोई दिलचस्पी नहीं थी. दयानंद के अनुसार यह सोचना भी कि सतबीर या गरिमा रणबीर की हत्या करा सकते हैं, हत्या जितना ही जघन्य अपराध होगा.

मामला दिनबदिन सुलझने के बजाय उलझता ही जा रहा था. इंस्पैक्टर

देव का कहना था कि विभोर ही रणबीर के सब से करीब था. अत: उसे ही सोच कर बताना है कि रणबीर के किस के साथ कैसे संबंध थे. रणबीर की किसी से दुश्मनी थी, यह विभोर को बहुत सोचने के बाद भी याद नहीं आ रहा था और अगर किसी से थी भी तो उस की पहुंच रणबीर के रिवौल्वर तक कैसे हुई? इंस्पैक्टर देव का तकाजा बढ़ता जा रहा था कि सोचो और कोई सुराग दो. Social Story

Social Story: भाभी हो तो ऐसी

Social Story: ‘‘क्या आप मेरी बात सुनने की कृपा करेंगी?’’ रघु चीखा था. पर उस की पत्नी ईशा एक शब्द भी नहीं सुन पाई थी. वह कंप्यूटर पर काम करते हुए इयरफोन से संगीत का आनंद भी उठा रही थी. लेकिन ईशा ने रघु की भावभंगिमा से उस के क्रोधित होने का अनुमान लगाया और कानों में लगे तारों को निकाल दिया.

‘‘क्या है? क्यों घर सिर पर उठा रखा है?’’ ईशा भी रघु की तरह क्रोध में चीखी.

‘‘तो सुनो मेरी कजिन रम्या विवाह के बाद यहीं वाशिंगटन में रहने आ रही है. उस के पति रोहित यहां किसी सौफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत हैं. विवाह के बाद वह भारत से पहली बार यहां आ रही है. उस का फोन आया तो मुझे मजबूरन कुछ दिन अपने साथ रहने को कहना पड़ा,’’ रघु ने स्पष्ट स्वर में कहा.

‘‘रम्या कुछ जानापहचाना नाम लगता है. कहीं वही तुम्हारी बूआजी की बेटी तो नहीं जिन के पड़ोस में तुम कई वर्ष रहे हो?’’

‘‘हां वही, सगी बहन से भी अधिक अपनापन मिला है उस से. इसीलिए न चाह कर भी अपने साथ रहने का आमंत्रण देने को मजबूर हो गया,’’ क्रोध उतरने के साथ ही रघु का स्वर भी सहज हो गया था.

‘‘ठीक है, वह तुम्हारी फुफेरी बहन है और यह तुम्हारा घर. मैं कौन होती हूं उसे यहां आने से रोकने वाली? पर मैं साफ कह देती हूं कि मुझ से कोई आशा मत रखना. अगले 2-3 महीने मैं बहुत व्यस्त रहूंगी. मुझ से उन के स्वागतसत्कार की आशा न रखना,’’ ईशा ने अपना निर्णय सुना दिया. थोड़ी कहासुनी के बाद ईशा दोबारा अपने काम में व्यस्त हो गई. न जाने क्यों आजकल उन दोनों का हर वार्त्तालाप बहस से शुरू हो कर झगड़े में बदल जाता है. दोनों उच्च शिक्षा प्राप्त करने भारत से आए थे. पहली बार उस ने रघु को विदेशी विद्यार्थी सहायता केंद्र में देखा था और देखती ही रह गई थी. नैननक्श, रूपरंग, कदकाठी किसी भी नजरिए से वह भारतीय नहीं लगता था. पर उसे हिंदी बोलते देख उसे सुखद आश्चर्य हुआ था.

‘‘अरे, आप तो हिंदी बोल लेते हैं?’’ ईशा ने आश्चर्य से प्रश्न किया था.

‘‘शायद आप जानना चाहती हैं कि मैं भारतीय हूं या नहीं. तो सुनिए मैं हूं रघुनंदन, विशुद्ध भारतीय. हिंदी में काम चला लेता हूं, पर मेरी मातृभाषा तेलुगू है. उस्मानिया मैडिकल कालेज से एमबीबीएस कर के यहां रैजिडैंसी कर रहा हूं. और आप?’’

‘‘मैं…मैं ईशा मुंबई से बी.फार्मा कर के यहां एमएस कर रही हूं. पहली बार अमेरिका आई हूं, अत: जहां भी कोई भारतीय नजर आता है तो मन बात करने को मचल उठता है,’’ ईशा ने अपना परिचय दिया.

‘‘यकीन मानिए आप को निराश नहीं होना पड़ेगा. यहां आप को इतने भारतीय मिलेंगे कि विदेश में होने की भावना अधिक समय तक मन में नहीं टिकेगी,’’ कह रघु हंस दिया. धीरेधीरे दोनों के बीच मित्रता गहरी होने लगी. दोनों इतनी जल्दी विवाह के बंधन में बंध जाएंगे यह दूसरों ने तो क्या स्वयं रघु और ईशा ने भी नहीं सोचा था. वर्षों पहले ईशा के मातापिता कार दुर्घटना में चल बसे थे. संपन्न परिवार की इकलौती वारिस ईशा को उस के नानानानी और मामा ने बड़े प्यार से पाला था. रघु ने ईशा के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा तो ईशा ने तुरंत स्वीकार लिया. ईशा के नानानानी ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी. साथ ही राहत की सांस ली कि ईशा ने स्वयं ही योग्य वर चुन लिया. पर रघु के मातापिता को जब यह पता चला कि ईशा दूसरी जाति की है तो उन्होंने मुंह बना लिया. उन के यहां एक पंडित हर चौथे रोज आता था और उस ने उन्हें पढ़ा दिया था कि विजाति में विवाह करने से नर्क मिलता है.

‘जब तुम ने निर्णय ले ही लिया है, तो हमारे आशीर्वाद की क्या जरूरत है. समझ लेना हम दोनों मर गए तुम्हारे लिए. पिता का ई मेल पढ़ कर सकते में आ गया रघु. ईशा और रघु एक सादे समारोह में विवाह के  बंधन में बंध गए. ईशा के नानानानी उस के विवाह का जश्न मनाना चाहते थे, पर रघु ने साफ मना कर दिया. भारत जाने पर यदि वह अपने घर नहीं जा सकता तो कहीं नहीं जाएगा. रघु के कई संबंधी आसपास ही रहते थे पर उस के मातापिता के डर से अधिकतर उस से कतराने लगे थे. विवाह के बाद दोनों ने सुखद भविष्य की कल्पना की थी. पर विवाहपूर्व का प्रेम कपूर की भांति उड़ गया. दोनों हर बात पर भड़कते हुए एकदूसरे को खरीखोटी सुनाते और एकदूसरे को आहत करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते थे. ऐसे में रम्या के आने का समाचार सुन कर पुलक उठा था रघु. रम्या और उस के परिवार से उस की अनेक मधुर यादें जुड़ी थीं. उसे लगा मानो रेगिस्तान में गरम हवा के थपेड़ों के बीच अचानक ठंडी बयार बहने लगी हो. उस ने सोचा था कि रम्या के आने का समाचार सुन कर ईशा खुश होगी. विवाह के बाद पहली बार उस के परिवार का कोई आ रहा था पर ईशा के व्यवहार ने उसे बहुत आहत किया था अगले 2 सप्ताह रघु ने जितने उत्साह से रम्या के स्वागत की तैयारी की उतनी तो अपने विवाह की भी नहीं की थी. ईशा कुतूहल से सब देखती पर देख कर भी अनदेखा कर देती. न वह टोकती न रघु उत्तर देता. दोनों के बीच दिनरात की चिकचिक का स्थान अब तटस्थता ने ले लिया था.

रम्या और रोहित जब आए तो ईशा अपने कक्ष में थी. रम्या का चहकना सुन कर वह अपने कक्ष से बाहर आई. ‘‘ईशा भाभी,’’ रम्या उत्साह से बोली और लपक कर ईशा से लिपट गई.

‘‘रोहित मैं कहती थी न कि रघु भैया ने हीरा चुना है ईशा के रूप में. कैसा गरिमापूर्ण व्यक्तित्व है और कैसा अद्भुत सौंदर्य,’’ रम्या ने रोहित से कहा.

‘‘इस में कतई संदेह नहीं. मैं ने तो फोटो देखते ही कह दिया था,’’ रोहित ने हां में हां मिलाई.

‘‘फोटो से कहां पता चलता है. वह न बोलता है न भावनाओं को व्यक्त करता है,’’ रम्या अब भी मुग्धभाव से ईशा को निहार रही थी.

‘‘रम्या, छोड़ो यह नखशिख वर्णन. दोनों जल्दी से नहाधो कर तैयार हो जाओ. आज का भोजन हम बाहर करेंगे,’’ रघु ने रम्या के वार्त्तालाप को बीच में ही रोक दिया था.

‘‘क्या रघु भैया. हवाईजहाज का बेस्वाद खाना खा कर परेशान हो गए हम तो. हम तो घर का खाना खाएंगे. भाभी तुम चिंता मत करो मैं अभी 5 मिनट में नहाधो कर आई. आज सब के लिए खाना मैं बनाऊंगी और रम्या तुरंत बाथरूम में चली गई.’’ रम्या शीघ्र ही नहाधो कर आ गई. गुलाबी रंग के सूट में एकदम तरोताजा लग रही थी. ईशा कनखियों से उसे देखती रही. कोई खास गहने नहीं पहने थे उस ने. गले में मंगलसूत्र और दोनों हाथों में सोने की 4-4 चूडि़यां. कानों में शायद हीरे के कर्णफूल थे. हाथपैरों में लगी मेहंदी देख कर वह स्वयं को रोक नहीं सकी.

‘‘बड़ी अच्छी मेहंदी लगाई है. रंग अभी तक गहरा है,’’ ईशा ने रम्या की हथेलियां थामते हुए मेहंदी के डिजाइन पर नजर दौड़ाई.

‘‘इतनी आसानी से थोड़े छूटेगी… पूरे 8 घंटे बैठ कर लगवाई थी,’’ और रम्या खिलखिला कर हंस दी.

‘‘कोई बात नहीं. विवाह क्या बारबार होता है? हमारे विवाह में न मेहंदी, न डोली, न बाजा और न ही बराती. बस 2-4 मित्र और 2 हस्ताक्षर.’’

‘‘क्या कह रही हो भाभी?’’

‘‘मेरे लिए कौन करता यह सब? मातापिता तो रहे नहीं. नानानानी, मामामामी यहां आ नहीं सके. हम वहां गए नहीं और रघु के मातापिता के बारे में तो तुम जानती ही हो,’’ खाना बनाते हुए दोनों घनिष्ठ सहेलियों की तरह बातें कर रही थीं.

‘‘अरे, मैं तो भूल ही गई, कितनी मूर्ख हूं मैं भी,’’ अचानक रम्या ने माथे पर हाथ मारा. फिर, ‘‘मेरे साथ आओ,’’ कह वह ईशा को अपने साथ खींच ले गई. ‘‘यह देखो, आप दोनों के लिए शांता मामी ने भेजा है. शांता मामी आप दोनों को बहुत याद करती हैं. रघु का नाम लेते ही उन की आंखें छलछला जाती हैं. मनोहर मामा कुछ नहीं बोलते या फिर उन का दर्प बोलने नहीं देता. पर मन की बात चेहरे पर आ ही जाती है. उन की दयनीय स्थिति देख कर कलेजा मुंह को आता है.’’ ईशा ने सिल्क की भारी जरी की साड़ी पर हाथ फेरा था. कढ़ाईदार साड़ी और 1 हीरे का सैट. उपहार देख कर ईशा बुत सी बनी बैठी रह गई.

‘‘रघु के लिए शेरवानीनुमा कुरतापाजामा है. मामी का बहुत मन था कि रघु अपने विवाह के समय इसे पहने.’’

‘‘पता नहीं रम्या, मैं यह सब उपहार ले भी पाऊंगी या नहीं. रघु को तुम नहीं जानती. वे एकदम से आगबबूला हो जाते हैं.’’

‘‘मैं खूब जानती हूं रघु को. भाभी यह तो मातापिता का आशीर्वाद है. इसे अस्वीकार कर के तुम उन का अपमान नहीं कर सकतीं,’’ और फिर रम्या ने उपहार ईशा के कक्ष में रख दिए.

‘‘खाना बहुत स्वादिष्ठ बना है. किस ने बनाया है?’’ रघु ने भोजन करते हुए पूछा.

‘‘हम दोनों ने मिल कर बनाया है,’’ कहते हुए ईशा को न जाने क्याक्या याद आया.

नानी ने बड़े जतन से उसे खाना बनाना सिखाया था. उस के बनाए खाने की सब कितनी प्रशंसा करते थे. क्या हो गया है उसे? विवाह के बाद तो उस की जीवन में रुचि ही समाप्त हो गई है. रम्या और रोहित 1 सप्ताह ईशा और रघु के साथ रहे. इस बीच रोहित ने अलग अपार्टमैंट ले लिया. विवाहपूर्व वह अपने मित्र के साथ रहता था, किंतु नई जगह रम्या को अकेलापन न लगे, इसलिए रघु के घर के पास ही नए घर में व्यवस्थित होने का निर्णय लिया था. जब भी समय मिलता दोनों मिलने चले आते. रम्या ने शीघ्र ही कुछ नए मित्र बना लिए और कुछ पुराने खोज निकाले. जब से रम्या आई थी ईशा की जीवनशैली भी बदलने लगी थी. रम्या ने उस के जीवन में भी नई ऊर्जा का संचार कर दिया था. इसी बीच 7 महीने का समय बीत गया. एक दिन रम्या और रोहित अचानक आ धमके.

‘‘आज हम बहुत जरूरी बात करने आए हैं, चायपानी सब बाद में,’’ रम्या आते ही बोली.

‘‘तो पहले कह ही डालो, फिर चैन से बैठो,’’ रघु ने कहा.

‘‘हम भारत जा रहे हैं,’’ रम्या ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘क्या? सदा के लिए?’’

‘‘नहीं, मेरे भोले भैया, केवल 1 माह के लिए. दिव्या का विवाह है और…’’

‘‘दिव्या कौन?’’ ईशा ने पूछा.

‘‘रम्या की छोटी बहन है,’’ रघु का उत्तर था.

‘‘और क्या?’’

‘‘मनोहर मामा की षष्टिपूर्ति (60 साल का होना) का उत्सव है 20 जून को.’’

‘‘अच्छा,’’ रघु के मुख से निकला.

‘‘आप दोनों भी चलने की तैयारी कर लो,’’ रम्या ने मानो आदेश दिया हो.

‘‘हम क्यों?’’ रघु ने पूछा.

‘‘यह भी ठीक है, आप तो मेरे विवाह में भी नहीं आए थे तो दिव्या के विवाह में क्यों जाने लगे. पर मनोहर मामा की षष्टिपूर्ति के उत्सव में तो आप अवश्य जाना चाहेंगे.’’

‘‘कभी नहीं, उन्होंने तुम्हें आमंत्रित किया है, सभी मित्रों, संबंधियों को भी किया होगा, पर मुझे सूचित करने की जरूरत नहीं समझी.’’

‘‘यह भी ठीक है, फिर भी सोच लो. अपने घर जाने के लिए भी क्या किसी निमंत्रण की जरूरत होती है?’’

‘‘रम्या, क्या तुम पापा के क्रोध को नहीं जानतीं? हमारे विवाह के समय उन्होंने हमें आशीर्वाद तक नहीं दिया.’’

‘‘तुम ने आशीर्वाद मांगा ही कब भैया? क्या तुम ईशा को ले कर एक बार भी उन से मिलने गए?’’

‘‘उन्होंने कभी बुलाया भी तो नहीं.’’

‘‘विवाह तुम ने अपनी मरजी से किया… तुम्हें स्वयं जाना चाहिए था. यह देखो षष्टिपूर्ति उत्सव का निमंत्रणपत्र. उत्तराकांक्षी के स्थान पर तुम्हारा नाम लिखा है. तुम्हें तो स्वयं जा कर सारा प्रबंध करना चाहिए. मनोहर मामा का जन्मदिन तो याद है न तुम्हें?’’ और रम्या ने निमंत्रणपत्र रघु की ओर बढ़ा दिया. रघु देर तक निमंत्रणपत्र को देखता रहा. फिर रम्या को लौटा दिया.

‘‘तुम्हारे तर्क अपने स्थान पर ठीक हैं रम्या, पर मैं इस तरह जाने के लिए स्वयं को आश्वस्त नहीं कर पा रहा हूं,’’ रघु ने दोटूक शब्दों में कहा. कुछ देर तक मौन पसरा रहा मानो चाह कर भी कोई कुछ बोल नहीं पा रहा हो.

‘‘रम्या, रघु अपनी मरजी के मालिक हैं पर मैं तुम्हारे साथ चलूंगी. मुझे नानानानी से भी क्षमा मांगनी है… उन का आशीर्वाद लेना है. रघु के मातापिता से मेरा भी कोई संबंध है. अपने मातापिता को तो मैं खो चुकी हूं, पर अब उन्हें नहीं खोना चाहती,’’ ईशा ने अपना निर्णय सुनाया.

‘‘यह हुई न बात. मुझे अपनी ईशा भाभी पर गर्व है. हम गरमगरम जलेबियां और समोसे ले कर आए थे. 50% लक्ष्य प्राप्त करने में तो हमें सफलता मिल ही गई. चलो, अब गरमगरम चाय पीएंगे,’’ और फिर रम्या और ईशा चाय बनाने चली गईं. रोहित जलेबियां और समोसे प्लेट में लगाने लगा. रघु मुंह फुलाए सोफे पर बैठा अपने ही विचारों में खोया था.

‘‘भ्राताश्री, कब तक यों बैठे रहेंगे? आइए, चाय लीजिए,’’ रम्या नाटकीय अंदाज में बोल कर खिलखिला दी.

‘‘रम्या बहुत नटखट हो गई हो तुम. जब देखो तब मेरा मजाक उड़ाती रहती हो,’’ रघु चाय का कप उठाते हुए बोला.

‘‘कैसी बातें करते हो भैया, मजाक और आप का? मैं ऐसा साहस भला कैसे कर सकती हूं? मैं तो केवल आप को अपने साथ भारत ले जाने की कोशिश कर रही हूं,’’ रम्या मुसकराई.

‘‘लगता है तुम अपनी कोशिश में कुछकुछ सफलता प्राप्त कर रही हो.’’

‘‘कुछकुछ सफलता? अर्थात आप भी हमारे साथ चल रहे हैं?’’

‘‘हां, जब ईशा ने जाने का निर्णय ले ही लिया है, तो मैं उसे अकेले तो नहीं छोड़ सकता,’’ रघु ने संकुचित स्वर में कहा तो हंसते हुए भी ईशा की आंखों में आंसू भर आए, जिन्हें छिपाने के लिए उस ने मुंह फेर लिया. Social Story

Best Family Story: देसी वाइफ

Best Family Story: ‘‘हैलो.’’

‘‘बोलो.’’

‘‘सुनो.’’

‘‘सुनाओ.’’

‘‘एक खुशखबरी है.’’

‘जल्दी कहो.’’

‘‘उस के बदले में क्या दोगी?’’

‘‘जो बोलोगे.’’

‘‘पक्का?’’

‘‘पक्का. अब बोल भी दो. हमेशा सौदेबाजी करते हो. व्यापारी बाप के बेटे जो हो.’’

‘तुम्हारा पासपोर्ट है न?’’

‘‘प्लीज रमन पहेलियां मत बुझाओ. जल्दी से बताओ.’’

‘‘अच्छा गैस करो क्या बात हो सकती है. अब तो मैं ने हिंट भी दे दिया है.’’

‘‘बाहर घुमाने ले कर जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां, डार्लिंग, हमारी तो लौटरी निकल आई है. कंपनी मुझे 6 महीने के लिए लंदन भेज रही है.’’

‘‘सच, कहीं तुम मुझे बेवकूफ तो नहीं बना रहे? इतनी अच्छी खबर सुना कर अगर बेवकूफ बनाया तो मैं तुम से बात नहीं करूंगी.’’

‘‘नहीं, मैं सच बोल रहा हूं. अगले महीने की 10 तारीख को वहां रिपोर्ट करनी है. जरा अपना पासपोर्ट निकाल कर देख लो, कहीं ऐक्सपायर तो नहीं हो गया है.’’ मीता तो फोन रख कर वहीं कुरसी पर धम से बैठ गई. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो कुछ भी उस ने फोन पर सुना वह सच है. ,लंदन जाने का उस का सपना बहुत पुराना था. लोग जब भी विदेश जाने की बात करते, तो उस के लिए विदेश का मतलब केवल और केवल लंदन जाना होता था. स्कूल में उस की एक पक्की सहेली होती थी. उस के पापा का ट्रांसफर एक बार कंपनी की तरफ से लंदन हो गया था. वह उन के साथ 1 साल के लिए लंदन चली गई थी और जब वहां से लौट कर आई थी तो कितने मजे ले कर पूरे लंदन को देखने की बात उस ने बताई थी. उस ने इस अनुभव को इतनी बार सुना था कि सहेली का यह अनुभव उसे अपना अनुभव लगने लगा था. उस ने भी लंदन देखने का सपना बहुत बार देखा था. आज की बात से उसे सपना साकार होता नजर आ रहा था. मीता और रमन के विवाह को अभी 3 साल ही हुए थे. अभी तक परिवार बढ़ाने की बात उन्होंने नहीं सोची थी. आज मीता को लग रहा था कि अच्छा ही हुआ कि उन के यहां कोई बच्चा अभी नहीं था. वह आराम से घूम सकती थी. वह एक कोचिंग सैंटर में नौकरी करती थी और वह कभी भी काम छोड़ सकती थी.

बड़े उत्साह के साथ दोनों ने तैयारी शुरू की. वहां ठहरने की समस्या भी सुलझ गई. जब रमन ने अपनी मां को लंदन जाने की बात बताई तो वे बोलीं, ‘‘वहां जा कर कहां ठहरोगे? होटल तो वहां बहुत महंगे हैं. फ्लैट भी लोगे तो भी बहुत महंगा पड़ेगा. मैं सोच रही हूं कि तुम एक पेइंग गैस्ट की तरह मेरी सहेली रानी के घर रुक जाओ. तुम्हें रानी मासी की तो याद होगी जो तुम्हें बचपन में स्कूटर पर घुमाती थीं और चौकलेट भी ला कर देती थीं?’’

‘‘हां मौम, अच्छी तरह याद है. क्या आजकल वे लंदन में हैं?’’

‘‘हां शादी के बाद वह लंदन चली गई थी और तब से वहीं है. उस का घर बड़ा है और वह पेइंग गैस्ट रखती है. उस की बेटी और दामाद उस के साथ ही रहते हैं. दामाद अंगरेज है. मैं उस का फोन नंबर दे दूंगी, बाकी बात तुम खुद कर लेना.’’

‘‘मौम, यह तो बहुत अच्छा हुआ. आप मुझे फोन नंबर भेज दो. मैं आज ही उन से बात कर लूंगा. मीता वहां एक भारतीय परिवार के साथ रहेगी तो उस के लिए ठीक रहेगा.’’ रमन की मां ने अपने सहेली को फोन मिलाया और उस से बात की, तो रमन को फोन नंबर मिला तो उस ने भी रानी मासी से बात कर ली. रानी बोलीं, ‘‘मेरी बेटी नीना और दामाद को पेइंग गैस्ट रखने में कोई आपत्ति नहीं होगी. लेकिन उस वक्त मैं यहां नहीं रहूंगी. मैं कुछ समय के लिए अपनी छोटी बेटी के पास अमेरिका जा रही हूं.’’ फोन पर ही सब पक्का हो गया. निश्चित समय पर मीता और रमन नीना के घर जा पहुंचे. नीना और रौबिन ने उन का स्वागत किया और उन्हें रहने की जगह दिखाई. चारों हमउम्र थे. रौबिन आधा भारतीय बन चुका था और नीना आधी अंगरेज. वह जन्म से भारतीय थी पर उस का लालनपालन और शिक्षा लंदन में होने के कारण उस पर पश्चिमी सभ्यता का असर ज्यादा था. नीना घर से 10 बजे निकलती, इसलिए 9 बजे तक किचन उस के पास होता.  इस के बाद ही मीता का किचन में प्रवेश होता. दोनों के बीच यही तय हुआ था. नीना के जाने के बाद ही रौबिन भी चला जाता और वह नाश्ते में आमतौर पर केवल फल और दूध ही लेता. मीता चायकौफी आदि अपने कमरे में ही बना लेती और 10 बजे के बाद जब वह किचन में घुसती तो उसे किचन पूरी तरह व्यवस्थित मिलता. नीना पूरी सफाई कर के ही बाहर निकलती. मीता झट से रमन के लिए नाश्ता बनाती, जो अधिकतर आमलेट और टोस्ट ही होता.

रमन को भारतीय खाना ही भाता था और मीता को खाना बनाने में बहुत आनंद आता था. वह रोज ही दाल, सब्जी, चावल और रोटी बनाती. बाहर का सब काम भी वह स्वयं ही करती. उस की सारी दोपहर बाहर ही बीतती. बाजार का रास्ता उस ने याद कर लिया था. सब सामान खरीद कर वह एक पार्क में जा कर बैठ जाती और वहां बैठ कर प्रकृति और लोकल लोगों को देखने का लुत्फ लेती. फिर घर लौट आती और बड़े प्यार से खाना बनाती. पश्चिमी सभ्यता में पलीबढ़ी नीना व्यवहार में बिलकुल विदेशी थी. उस ने हर क्षेत्र में सीमाएं बनाई हुई थीं. उन सीमाओं को न वह पार करती थी और न ही औरों को करने देती थी. वह और उस का पति दोनों अपना सारा काम स्वयं करते थे. दोनों चायकौफी अपनीअपनी बना कर पीते थे तो अपनेअपने कपड़े भी खुद ही प्रेस करते थे. हफ्ते में 1 दिन वाशिंग मशीन चलती थी. गंदे कपड़े नीना इकट्ठा करती और मशीन में डालती, तो धुल जाने पर रौबिन कपड़ों को सुखाने के लिए डालता. घर की सफाई करते वक्त सब चीजों की झाड़पोंछ नीना करती और वैक्यूम क्लीनर रौबिन चलाता.

मीता को तो अपने पति रमन का हर काम करने में खुशी होती थी. उस की पसंद का भोजन बनाना उस की प्राथमिकता थी. अलगे दिन रमन को कौन से कपड़े पहनने हैं, यह सोच कर उन्हें निकाल कर वह प्रेस करती थी. एक दिन जब वह रमन की कमीज प्रेस कर रही थी, तो नीना जल्दी घर आ गई. मीता को कमीज प्रेस करता देख कर वह बोली, ‘‘तुम रमन की कमीज क्यों प्रेस कर रही हो? उसे यह काम खुद करना चाहिए. यदि तुम्हें पति की सेवा का ज्यादा शौक है तो करो. पर यह काम रौबिन के सामने मत करना वरना उस की भी अपेक्षा हो जाएगी कि मैं भी उस की कमीज प्रेस करूं. ऐसा मैं करने वाली नहीं. उस ने तो पहले से ही तुलना करनी शुरू कर दी है कि इंडियन वाइफ कितनी अच्छी होती है.’’

मीता ने हैरानी से नीना की ओर देखा तो नीना बोली, ‘‘मैं इस बात को ले कर बहुत सीरियस हूं. तुम अपने छोटेछोटे कामों से हमारे बीच तनाव पैदा कर रही हो. रौबिन ने मुझ में एक इंडियन वाइफ तलाशनी शुरू कर दी है, जो मैं कभी बन नहीं सकती. इसलिए हम पर कुछ रहम करो.’’ मीता को बहुत अजीब लगा. उस के तो सपने में भी ऐसी बात नहीं आ सकती थी कि उस के व्यक्तिगत कामों से भी नीना इतना प्रभावित हो सकती है. रात को उस ने रमन को सारी बात बताई तो वह बोला, ‘‘जैसा नीना बोले वैसा कर लो. हमें 2 महीने और बिताने हैं, क्यों किसी को तकलीफ दी जाए.’’ तभी एक घटना और घट गई. उस दिन रविवार था. सब अपनेअपने टाइम से उठ रहे थे. सब से पहले नीना उठी. उस ने अपने लिए कौफी बनाई और अपना आईपैड ले कर बैठ गई. उस के बाद रौबिन उठा. उस ने अपने लिए ग्रीन टी बनाई और न्यूज पेपर ले कर बैठ गया. बाद में मीता रसोई में आई और उस ने 2 कप अदरक वाली चाय बनाई. उस ने चाय बनाने से पहले नीना से भी पूछा कि क्या वह भी चाय लेगी पर उस ने मना कर दिया. चाय ले कर वह अपने कमरे में चली गई. रमन और उस ने आराम से चुसकियां ले कर चाय पी और बौंबे को याद किया जहां प्लेट में डाल कर व चुसकी ले कर ही लोग चाय पीते हैं. उस के बाद रमन बोला, ‘‘जानेमन आज जरा चंपी कर दो, यहां तो बाल कटवाने इतने महंगे हैं कि सोचा है कि अब इंडिया जा कर ही बाल कटवाऊंगा और तब ही मालिश भी होगी. पर आज तुम अपने हाथों का कमाल दिखा दो.’’

मीता झट से चंपी मालिश करने के लिए तेल उठा लाई और उस ने मालिश करनी शुरू कर दी. रमन आंखें बंद कर के चंपी मालिश का मजा लेने लगा. तभी रौबिन को कोई काम याद आया तो रमन से बात करने के लिए उस ने उन के दरवाजे पर दस्तक दी. रमन फौरन बोला कि अंदर आ जाओ. अंदर आ कर उस ने जो दृश्य देखा उस से तो वह हैरान हो गया. वह पूछ बैठा, ‘‘यह क्या हो रहा है? क्या इंडियन वाइफ यह भी करती है?’’ रमन और मीता जोर से हंसे. रमन बोला, ‘‘आज सुबह से सिर थोड़ा भारी था, इसलिए मीता ने चंपी मालिश कर के उसे दूर कर दिया.’’ रौबिन ने अजीब नजरों से मीता की ओर देखा. मीता को तुरंत नीना की चेतावनी याद आ गई. उस के हाथ एकदम से रुक गए और उस का चेहरा फक हो गया. रौबिन ने भी उस के चेहरे के भाव बदलते देखे तो वह बिना कोई भी बात किए कमरे से बाहर आ गया. उस के चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी. बाहर आ कर वह नीना से बोला, ‘‘ये इंडियन पति भी अजीब होते हैं. अपनी वाइफ से नौकरों की तरह काम करवाते हैं. देखो तो रमन आराम से कुरसी पर बैठा है और वह उस की सेवा में खड़ी है.’’

इसे रमन ने भी सुना तो वह कमरे से बाहर आ कर बोला, ‘‘रौबिन तुम्हें गलतफहमी हो रही है. मैं मीता से जबरदस्ती कुछ भी नहीं करवाता हूं. वह सब अपनी मरजी से करती है. उसे मना करने का भी पूरा अधिकार है.’’ बाद में नीना बोली, ‘‘ये इंडियन औरतें आदमियों को अच्छे से बिगाड़ कर रखती हैं. मैं इन से नफरत करती हूं.’’ अंदर मीता ने भी सुना. वह डर गई कि अब नीना से सामना होगा तो वह न जाने क्याक्या बोलेगी. बाद में जब दोनों का आमनासामना हुआ तो नीना बोली, ‘‘अपने पति की सेवा इंडिया जा कर करना. मेरे लिए समस्या पैदा मत करो. तुम्हें क्या पता कि आजकल रौबिन के मन में सारा दिन क्या चलता रहता है. वह कहता है कि वह इंडियन लड़की से शादी करना चाहता था. उस की दादी जोकि ब्रिटिश टाइम में बहुत समय इंडिया रह कर आई थीं, हमेशा ही इंडियन वाइफ के गुणगान किया करती थीं. तब उस के मन में भी आता था कि वह बड़ा हो कर एक इंडियन लड़की से शादी करेगा. इसलिए जब उस की दोस्ती मुझ से हुई तो वह मेरी ओर आकर्षित हो गया. पर अब तुम्हें देखने के बाद ही उसे समझ में आया है कि इंडियन वाइफ क्या होती है. और सुनो, वह मुझे कहता है कि उस के साथ धोखा हो गया है.’’

मीता बोली, ‘‘मुझे बहुत दुख है कि मेरे कारण तुम दोनों के बीच तनाव चल रहा है. मैं ध्यान रखूंगी कि मैं ऐसा कोई काम न करूं जिस से रौबिन को लगे कि मैं तुम से बेहतर हूं.’’ उस दिन रौबिन का जन्मदिन था. सुबह ही रमन और मीता ने उसे बधाई दी. रमन बोला, ‘‘आज स्पैशल क्या हो रहा है?’’

रौबिन बोला, ‘‘आज मुझे अपनी मदर इन ला की याद आ रही है. हर बर्थडे पर वे गाजर से एक स्वीट डिश बनाती थीं. मुझे उस का नाम याद नहीं आ रहा है. नीना जरा बताओ तो उस डिश का क्या नाम है?’’ नीना बोली, ‘‘इतने सालों से खाते आ रहे हो और अभी तक नाम याद नहीं हुआ. उसे गजरेला कहते हैं.’’ रमन झट से बोला, ‘‘मीता बहुत स्वादिष्ठ गजरेला बनाती है. आज तुम्हारे बर्थडे पर बनाएगी. क्यों मीता पक्का रहा न? आज शाम को मैं भी गजरेला खाऊंगा और इंडिया को और अपनी मां को याद करूंगा.’’ इस सब के बीच मीता कुछ बोल ही नहीं पाई. जानती थी कि उस का गजरेला बनाना नीना को बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा. पर अब वह असहाय थी. मना करती तो रमन और रौबिन को बुरा लगता और बनाती है तो नीना को अच्छा नहीं लगता.

नीना बोली, ‘‘शाम को वापस आते वक्त इंडियन स्टोर से मैं लेती आऊंगी. मीता को कष्ट देने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘नहीं मीता को ही बनाने दो. घर के बने खाने की तो बात ही कुछ और होती है,’’ रौबिन बोला. मीता ने मेहनत से गजरेला बनाया. शाम को छोटी सी पार्टी में सब ने गजरेला की तारीफ की. यहां तक कि नीना ने भी उंगलियां चाटचाट कर गजरेला खाया और सारी प्लेट साफ कर दी. नीना को खाते देख कर मीता ने सोचा कि आज तो वह कोई शिकायत नहीं करेगी.

रौबिन बोला, ‘‘मैं ने नीना से विवाह इसलिए किया था कि मुझे इंडियन वाइफ मिलेगी. लेकिन इंडियन वाइफ क्या होती है यह मैं ने मीता से मिल कर ही जाना है. मैं चाहता हूं कि अगले जन्म में मैं रमन बन कर पैदा होऊं.’’ इतना सुनते ही नीना, मीता और रमन के चेहरे के भाव बदल गए. उन के चेहरे देख कर रौबिन ने झट से अपना स्टेटमैंट बदल दिया, ‘‘ओह मैं कहना, यह चाह रहा था कि मीता बहुत अच्छी है. अगले जन्म में मुझे मीता जैसी पत्नी मिले. गजरेला बहुत टेस्टी था. थैंक यू वैरी मच.’’ उस के बाद वातावरण वही नहीं रहा. मीता और रमन अपने कमरे में आ गए. रमन बोला, ‘‘रौबिन पगला गया है. ऐसे ही व्यवहार करता रहा तो अपनी आधी इंडियन वाइफ से भी हाथ धो लेगा.’’

‘‘मुझे तो अब नीना से डर लग रहा है. कल पता नहीं क्याक्या सुनाएगी. अभी कुछ दिन यहां और बाकी हैं. फिर तो इन्हें बाय बोल देना है.’’ सुबह मीता इंतजार करती रही कि नीना घर से चली जाए तभी वह अपने कमरे से बाहर निकले. पर नीना काम पर नहीं गई. तब मीता नीचे आई. नीना बोली, ‘‘रौबिन तुम्हारा दीवाना बनता जा रहा है. मैं इसे सहन नहीं कर सकती हूं. तुम अपना बंदोबस्त कहीं और कर लो या इंडिया लौट जाओ. तुम नहीं जानती हो कि हर जगह वह तुम्हारी ही बात करता है और तारीफों के पुल बांधता है. मुझे तुम जैसी बनने को बोलता है. मैं जैसी हूं वैसी ही रहूंगी. तुम यहां से जाओ तो मेरा भला हो जाएगा.’’ मीता बात सुन कर सन्न रह गई. रात को जब रमन ने सुना तो बोला, ‘‘अगली फ्लाइट से तुम वापस चली जाओ. अगले हफ्ते ही तुम्हारी सहेली की शादी है. वहां जा कर शादी का मजा लो. अगले हफ्ते मैं भी आ जाऊंगा.’’ फिर ऐसा ही हुआ. रौबिन को बिना बताए ही मीता ने लंदन छोड़ दिया. नीना ने चैन की सांस ली. रौबिन को पता ही नहीं चला कि मीता अचानक क्यों चली गई. पर उस के मन में इंडियन वाइफ की जो छाप छोड़ कर गई उसे मिटाना आसान नहीं होगा. वह बारबार यही दोहराता रहा कि अगले जन्म में वह एक इंडियन पति के रूप में पैदा होना चाहता है. Best Family Story

Family Story: पूरा हुआ अधूरा प्यार

Family Story: सुबह होते ही  दीप  का  मोबाइल बज  उठा, ‘‘हाय जीजू, कैसे हो? रात कैसी थी? दीदी सो रही हैं या नहीं. आप ने उन्हें सोने भी दिया या नहीं?’’

‘‘बसबस, सवाल ही पूछती रहोगी या कुछ जवाब भी देने दोगी,’’ दीप ने बीना से कहा, बीना उस की नईनवेली पत्नी शिखा की लाड़ली बहन है. ‘‘लो बहन से ही पूछो. मैंने सबकुछ कह दिया तो तुम दोनों ही शरम से लाल हो जाओगी.’’

शिखा और बीना की बातें शुरू हुईं तो लगा मानो वर्षों बाद बात हो रही है.

बीना का रिजल्ट निकला. वह पास हो गई थी. शिखा ने ही बीना को पढ़ाया था. नौकरी लगने के फौरन बाद ही शिखा ने बीना को इंजीनियरिंग कालिज में प्रवेश दिला दिया था. कालिज की पढ़ाई का भारी खर्च शिखा के ही कंधों पर था क्योंकि मां एक साधारण अध्यापिका थीं और पिता कुछ नहीं करते थे.

शिखा को तो मां ने अतिरिक्त ट्यूशन पढ़ापढ़ा कर इंजीनियरिंग का कोर्स पूरा कराया था पर बीना का बोझ शिखा ने उठा लिया था.

आज की युवा पीढ़ी की तरह मौजमस्ती से दूर केवल पढ़ाई को लक्ष्य बना कर दोनों बहनों ने सफलता प्राप्त की.

शिखा बहुत बड़ी कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर थी, उस का वेतन 20 हजार रुपए महीना था. पर देखने में वह इतनी सीधी थी कि उसे देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वह इतनी पढ़ीलिखी है और 20 हजार रुपए महीना कमाने वाली लड़की है.

शिखा देखने में सुंदर भी थी. 2 साल से उस के लिए रिश्ते आ रहे थे पर वह उन्हें टालती जा रही थी.

शिखा ने एक दिन मां से पूछ ही लिया, ‘‘मां, आप लड़के के बारे में पूछ रही थीं न, अगर दूसरी बिरादरी का लड़का होगा तो भी आप मान जाएंगी न?’’

‘‘ओह हो, तो यह बात है. मेरी रानी बिटिया को कोई भा गया है. बता, जल्दी से बता. मुझे बिरादरी अलग होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. बस, लड़का लायक होना चाहिए.’’

‘‘मां, जब एक बार मैं बीमार पड़ी थी तब आफिस के कई साथी हालचाल पूछने आए थे, उन में वह लड़का भी था. उस ने सफेद कुरतापाजामा पहना हुआ था. बाल थोड़े लंबे थे.’’

‘‘अच्छाअच्छा, तू दीप की बात कर रही है जिसे देख कर मैं ने उसे शायर की उपाधि दी थी.’’

‘‘हां, मां. हम दोनों एक ही प्रोजेक्ट पर काम करते हैं. बहुत ही अच्छा लड़का है. मेरी तरह वह भी उड़ने वाले लड़कों में से नहीं है.’’

‘‘उस की मां को पता है कि तुम दूसरी जाति की हो?’’

‘‘उस की मां को सब पता है. वह यह जानती है कि मैं हरियाणा के जाट परिवार से हूं. अब आप की तरफ से अगर हां हो तो दीप मुझे एक दिन अपनी मां से मिलवाने ले जाएगा.’’

‘‘ठीक है जब उन की तरफ से हां हो जाएगी तब हम भी उन से मिल लेंगे.’’

मां बड़ी खुश थीं. एक बड़ा बोझ उन के सिर से जैसे उतर गया हो. अगले इतवार को ही दीप शिखा को अपनी मां से मिलवाने ले गया. शिखा बहुत ही सामान्य कपड़ों में और बिना किसी मेकअप के दीप के घर उन की मां से मिलने आई थी. दीप की मां तो उसे देखते ही मुग्ध हो गई थीं. उन्हें तेजतर्रार लड़कियों से बड़ा डर लगता था.

उन के मन में एक ही इच्छा थी कि दीप को उस की तरह ही सीधी-

सादी लड़की मिले क्योंकि एक  तो वह बेहद सरल स्वभाव का था दूसरे छलकपट और दिखावे से भी बहुत दूर रहता था. बस, अपने काम की दुनिया में वह मस्त रहने वाला इनसान था.

शिखा को देख कर दीप की मां उस से बातें करने में खो गईं. दोनों की बातों में दीप जैसे अकेला पड़ गया तो वह चुपचाप उठ कर कंप्यूटर पर जा बैठा था.

पहली ही मुलाकात में शिखा ने अपने और अपने परिवार के बारे में दीप की मां को सबकुछ बता दिया था. दीप के बारे में तो वह जानती ही थी.

दीप की मां ने पहली मुलाकात में ही शिखा को अपनी बेटी के रूप में स्वीकार कर लिया तो दोनों परिवार मिले और बात आगे बढ़ी. शादी की तारीख तय हुई और फिर खरीदारी शुरू हो गई. दीप की मां ने सारी खरीदारी शिखा को साथ ले जा कर की.

इस तरह रोज की मुलाकातों में शिखा की व्यवहारकुशलता और बचत करने की आदत से भी वह परिचित हो गई थीं.

जीवन की कठिनाइयों ने शिखा को पैसे का मूल्य समझना सिखा दिया था. वह कहीं भी फुजूलखर्ची न तो खुद करती न दूसरों को करने देती थी. दीप की मां जस्सी शिखा के बारे में सोचसोच कर हैरान होती कि देखो जमाने की हवा से शिखा कितनी दूर है. इतना कमाती है फिर भी सोचसमझ कर ही खर्च करती है. जस्सी की ओर से खरीदारी पूरी हो चुकी थी. तभी एक दिन शिखा का फोन आया.

‘‘मां, आप से एक बात पूछनी है. आप बुरा मत मानना और किसी को भी बताना नहीं, यहां तक कि दीप को भी नहीं बताना.’’

‘‘क्या बात है? कोई गंभीर समस्या है क्या?’’

‘‘नहीं मां, कोईर् गंभीर बात नहीं है. पर फिर भी आप की रजामंदी के बिना मैं कुछ नहीं करूंगी.’’

‘‘अच्छा बोलो, मैं वादा करती हूं कि तुम्हारा पूरा साथ दूंगी.’’

‘‘मां शादी पर पहनने वाली ड्रेस मैं बनवाना नहीं चाहती. इधर मैं ने बाजार में सब देखा. कोई भी डे्रस 10-12 हजार रुपए से कम की नहीं है. सिर्फ एक दिन पहनने के लिए इतना पैसा बरबाद करने का मेरा मन नहीं है. क्या मैं किराए पर ले कर पहन लूं. आजकल किराए पर एक से एक बढि़या ड्रेस और साथ में मैचिंग गहने मिलते हैं. आप तो जानती हैं कि मैं दोबारा ऐसे कपड़े पहनने वाली नहीं हूं. यदि आप मेरा साथ देंगी तभी मैं यह कदम उठा सकती हूं. दूसरे दिन ही सब सामान वापस चला जाएगा.’’

‘‘तू कैसी लड़की है?’’ जस्सी ने कहा, ‘‘शादी की डे्रेस पर तो सब लड़कियां अपने पूरे अरमान निकाल लेती हैं और तू कहती है कि बनवानी ही नहीं है. बेटी, मैं पैसे देती हूं, तू अपनी पसंद की बनवा ले.’’

‘‘मां, बात पैसे की नहीं है. मेरी समझ में यह पैसे की बरबादी है. आप भी मेरी बात से सहमत होंगी.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी क्या कहती हैं?’’

‘‘वह कहती हैं कि अगर समधनजी मान जाएं तो ऐसा कर लो. मां को तो मैं ने मना लिया है, अब आप को मनाना बाकी है.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम चाहो वैसा कर लो. मुझे कोई आपत्ति नहीं है और यह रहस्य मेरे तक ही सीमित रहेगा.’’

‘‘थैंक्यू मां,’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया.

जस्सी के मन में अब शिखा के लिए आदर का भाव और भी बढ़ गया. उस ने सोचा कि देखो शिखा कितना सोचती है अपने परिवार के बारे में. बेकार में पैसा उड़ाने में विश्वास नहीं रखती है. कल को पति के घर को भी अच्छे से संभाल लेगी.

शादी का दिन आ पहुंचा. गुलाबी रंग के लहंगेचुनरी में शिखा का सौंदर्य निखर उठा था. गहने उस की सुंदरता को और भी बढ़ा रहे थे. शिखा की डोली विदा हो कर दीप के घर आ गई थी. सब तरह के रीतिरिवाजों से निबट कर जब आराम करने के लिए शिखा अपने कमरे में जाने लगी तो उस ने अपनी सास को इशारे से कमरे में बुला लिया. बहुत ही ध्यान से शिखा ने कपड़े उतार कर अटैची में बंद किए. सब गहने उतार कर डब्बे में रखे. इस काम में जस्सी ने शिखा की मदद की. बहुत ही ध्यान से दर्जनों सेफ्टीपिन लहंगे और चुनरी से निकाले. सबकुछ सहेज कर रखने के बाद शिखा ने राहत की सांस ली और अपनी सास को एक बार फिर दिल से थैंक्यू कहा.

सास ने प्यार से उसे बांहों में भर लिया और बोलीं, ‘‘बेटी, जैसे तुम ने अपने मायके का पूरा ध्यान रखा है उसी तरह से ससुराल का भी ध्यान रखना.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है मां. अब तो यह मेरा घर है. मेरी जान इसी पर न्योछावर है.’’

रात होतेहोते दीप के दोस्तों और मौसेरे, चचेरे भाईबहनों ने मिल कर बोलना शुरू किया, ‘‘अरे दीप, किस होटल में कमरा बुक किया है. चलो, तुम दोनों को छोड़ आएं.’’

‘‘हम अपनेआप चले जाएंगे, तुम लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

घर मेहमानों से भरा हुआ था क्योंकि वह 2 कमरों का एक छोटा सा फ्लैट था. दीप भी जानता था कि समाज के रिवाज के अनुसार उसे शिखा को ले कर किसी होटल में जाना ही पड़ेगा, अन्यथा आज की सोच वाले उस के दोस्त उस का पीछा नहीं छोड़ेंगे. रात के 10 बज चुके थे, दीप और शिखा ने सब को ‘बाय’ किया और अपनी कार में घर से चल दिए. रास्ते में शिखा ने दीप से पूछा कि होटल के कमरे में कितने रुपए लगेंगे?

‘‘पांचसितारा होटल में 5 हजार, तीनसितारा होटल में 3 हजार और एक सितारा होटल में 1 हजार रुपए. तुम बोलो कि तुम्हें कहां चलना है, पैसे का प्रबंध मैं ने कर रखा है.’’

‘‘और कंपनी के गेस्ट हाउस के कमरे के कितने?’’

‘‘मुफ्त. केवल 100 रुपए चौकीदार को टिप के रूप में देने पड़ेंगे.’’

‘‘तो चलो वहीं चलते हैं.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है. लोग क्या कहेंगे?’’

‘‘मेरा दिमाग बिलकुल ठीक है,’’ शिखा बोली, ‘‘मैं लोगों की चिंता नहीं करती. पैसे की बरबादी मैं नहीं करती, यह तुम अच्छे से जानते हो.’’

‘‘यह रात फिर कभी नहीं आएगी. बाद में ताना मत मारना कि मैं कंजूस हूं.’’

‘‘नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा,’’ इतना कह कर शिखा ने धीरे से दीप के हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

दीप ने कार गेस्ट हाउस की दिशा में मोड़ दी. रात बहुत हो चुकी थी फिर भी सड़क के किनारे एक फूल वाला अपने फूल समेटने की तैयारी में था. दीप ने कार रोकी और उस के सारे गुलाब के फूल खरीद लिए. दीप जानता था कि शिखा को गुलाब के फूल बहुत अच्छे लगते हैं.वह सप्ताह में एक दिन गुलाब के फूलों का एक गुच्छा खरीद कर घर ले जाती थी और उन्हें ही सहेज कर हफ्ता निकाल देती थी.

कार गुलाबों से महक उठी. गेस्ट हाउस के उस कमरे को दोनों ने मिल कर सजाया. दोनों के दिलों में प्यार की महक थी इसलिए वह साधारण सा कमरा भी किसी पांचसितारा होटल से अधिक सुंदर लग रहा था. दोनों एकदूसरे की बाहों में खो गए थे.

सुबह होते ही घर जाने की तैयारी हुई. शिखा बहुत ही खुश नजर आ रही थी. दीप ने पूछा, ‘‘क्या बात है बहुत खुश हो.’’

‘‘हां, वो तो है. मैं बहुत खुश हूं क्योंकि आज मैं दीपशिखा बन गई हूं.’’

‘‘दीप भी तो शिखा के बिना अधूरा था,’’ दीप बोला, ‘‘चलो, अब दीपशिखा मिल कर चलें,’’ शिखा हसंती हुई बोली.

शिखा का खिला हुआ चेहरा देख कर जस्सी ने उसे गले से लगा लिया था. शिखा की खुशी का एक और राज भी था जिसे उस ने मां को नहीं बताया था. पहले दिन से उस ने अपने घर की सुरक्षा का बीमा अपने हाथों में ले लिया था. Family Story

Monsoon Special: अब घर पर ही बनाएं स्वादिष्ट मिल्क केक

Monsoon Special: मिठाई की बात की जाए और मिल्क केक का नाम ना आए ऐसा तो हो ही नहीं सकता. सबसे ज्यादा पसंद किए मिठाईयों मेंसे एक है मिल्क केक. इस मिठाई को आप घर पर भी बड़ी आसानी से बना सकती हैं. जानिए अपनी मनपसंद मिठाई बनाने की विधि.

सामग्री

– 3 लीटर दूध

– 2 टेबल स्पून नींबू का रस

– 1 टी स्पून हरी इलायची

– 1 टेबल स्पून देसी घी

– 250 ग्राम चीनी

– तेल

– बादाम (गार्निशिंग के लिए)

विधि

एक भारी कड़ाही में दूध लेकर उबालें. फिर इसमें 2 टेबल स्पून नींबू का रस डालकर तब तक हिलाएं जब तक दूध फटना न शुरू हो. फिर इसमें 1 टी स्पून हरी इलायची, 1 टेबल स्पून देसी घी और 250 ग्राम चीनी डालकर अच्छे से मिक्स करते हुए पकाएं. जब तक सारा मिश्रण कड़ाही के किनारों को छोड़ने न लगे.

इस सारे मिश्रण को तेल से ग्रीस की हुई ट्रे में निकालकर ऊपर से बादाम से गार्निश करें. सारी रात के लिए ढककर रखें. फिर मनचाहे आकार में काटकर सर्व करें. Monsoon Special

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