Best Hindi Story: अपने हुए पराए- श्वेता को क्यों मिली फैमिली की उपेक्षा

Best Hindi Story: ‘‘अजय, हम साधारण इनसान हैं. हमारा शरीर हाड़मांस का बना है. कोई नुकीली चीज चुभ जाए तो खून निकलना लाजिम है. सर्दीगरमी का हमारे शरीर पर असर जरूर होता है. हम लोहे के नहीं बने कि कोई पत्थर मारता रहे और हम खड़े मुसकराते रहें.

‘‘अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने की भूल करेंगे तो शायद सामने वाले का सम्मान ही न कर पाएं. हम प्रकृति के विरुद्ध न ही जाएं तो बेहतर होगा. इनसानी कमजोरी से ओतप्रोत हम मात्र मानव हैं, महामानव न ही बनें तो शायद हमारे लिए उचित है.’’

बड़ी सादगी से श्वेता ने समझाने का प्रयास किया. मैं उस का चेहरा पढ़ता रहा. कुछ चेहरे होते हैं न किताब जैसे जिन पर ऐसा लगता है मानो सब लिखा रहता है. किताबी चेहरा है श्वेता का. रंग सांवला है, इतना सांवला कि काले की संज्ञा दी जा सकती है…और बड़ीबड़ी आंखें हैं जिन में जराजरा पानी हर पल भरा रहता है.

अकसर ऐसा होता है न जीवन में जब कोई ऐसा मिलता है जो इस तरह का चरित्र और हावभाव लिए होता है कि उस का एक ही आचरण, मात्र एक ही व्यवहार उस के भीतरबाहर को दिखा जाता है. लगता है कुछ भी छिपा सा नहीं है, सब सामने है. नजर आ तो रहा है सब, समझाने को है ही क्या, समझापरखा सब नजर आ तो रहा है. बस, देखने वाले के पास देखने वाली नजर होनी चाहिए.

‘‘तुम इतनी गहराई से सब कैसे समझा पाती हो, श्वेता. हैरान हूं मैं,’’ स्टाफरूम में बस हम दोनों ही थे सो खुल कर बात कर पा रहे थे.

‘‘तारीफ कर रहे हो या टांग खींच रहे हो?’’

श्वेता के चेहरे पर एक सपाट सा प्रश्न उभरा और होंठों पर भी. चेहरे पर तीखा सा भाव. मानो मेरा तारीफ करना उसे अच्छा नहीं लगा हो.

‘‘नहीं तो श्वेता, टांग क्यों खींचूंगा मैं.’’

‘‘मेरी वह उम्र नहीं रही अब जब तारीफ के दो बोल कानों में शहद की तरह घुलते हैं और ऐसा कुछ खास भी नहीं समझा दिया मैं ने जो तुम्हें स्वयं पता न हो. मेरी उम्र के ही हो तुम अजय, ऐसा भी नहीं कि तुम्हारा तजरबा मुझ से कम हो.’’

अचानक श्वेता का मूड ऐसा हो जाएगा, मैं ने नहीं सोचा था…और ऐसी बात जिस पर उसे लगा मैं उस की चापलूसी कर रहा हूं. अगर उस की उम्र अब वह नहीं जिस में प्रशंसा के दो बोल शहद जैसे लगें तो क्या मेरी उम्र अब वह है जिस में मैं चापलूसी करता अच्छा लगूं? और फिर मुझे उस से क्या स्वार्थ सिद्ध करना है जो मैं उस की चापलूसी करूंगा. अपमान सा लगा मुझे उस के शब्दों में, पता नहीं उस ने कहां का गुस्सा कहां निकाल दिया होगा.

‘‘अच्छा, बताओ, चाय लोगे या कौफी…सर्दी से पीठ अकड़ रही है. कुछ गरम पीने को दिल कर रहा है. क्या बनाऊं? आज सर्दी बहुत ज्यादा है न.’’

‘‘मेरा मन कुछ भी पीने को नहीं है.’’

‘‘नाराज हो गए हो क्या? तुम्हारा मन पीने को क्यों नहीं, मैं समझ सकती हूं. लेकिन…’’

‘‘लेकिन का क्या अर्थ है श्वेता, मेरी जरा सी बात का तुम ने अफसाना ही बना दिया.’’

‘‘अफसाना कहां बना दिया. अफसाना तो तब बनता जब तुम्हारी तारीफ पर मैं इतराने लगती और बात कहीं से कहीं ले जाते तुम. मुझे बिना वजह की तारीफ अच्छी नहीं लगती…’’

‘‘बिना वजह तारीफ नहीं की थी मैं ने, श्वेता. तुम वास्तव में किसी भी बात को बहुत अच्छी तरह समझा लेती हो और बिना किसी हेरफेर के भी.’’

‘‘वह शायद इसलिए भी हो सकता है क्योंकि तुम्हारा दृष्टिकोण भी वही होगा जो मेरा है. तुम इसीलिए मेरी बात समझ पाए क्योंकि मैं ने जो कहा तुम उस से सहमत थे. सहमत न होते तो अपनी बात कह कर मेरी बात झुठला सकते थे. मैं अपनेआप गलत प्रमाणित हो जाती.’’

‘‘तो क्या यह मेरा कुसूर हो गया, जो तुम्हारे विचारों से मेरे विचार मेल खा गए.’’

‘‘फैशन है न आजकल सामने वाले की तारीफ करना. आजकल की तहजीब है यह. कोई मिले तो उस की जम कर तारीफ करो. उस के बालों से…रंग से…शुरू हो जाओ, पैर के अंगूठे तक चलते जाओ. कितने पड़ाव आते हैं रास्ते में. आंखें हैं, मुसकान है, सुराहीदार गरदन है, हाथों की उंगलियां भी आकर्षक हो सकती हैं. अरे, भई क्या नहीं है. और नहीं तो जूते, चप्पल या पर्स तो है ही. आज की यही भाषा है. अपनी बात मनवानी हो या न भी मनवानी हो…बस, सामने वाले के सामने ऐसा दिखावा करो कि उसे लगे वही संसार का सब से समझदार इनसान है. जैसे ही पीठ पलटो अपनी ही पीठ थपथपाओ कि हम ने कितना अच्छा नाटक कर लिया…हम बहुत बड़े अभिनेता होते जा रहे हैं…क्या तुम्हें नहीं लगता, अजय?’’

‘‘हो सकता है श्वेता, संसार में हर तरह के लोग रहते हैं…जितने लोग उतने ही प्रकार का उन का व्यवहार भी होगा.’’

‘‘अच्छा, जरा मेरी बात का उत्तर देना. मैं कितनी सुंदर हूं तुम देख सकते हो न. मेरा रंग गोरा नहीं है और मैं अच्छेखासे काले लोगों की श्रेणी में आती हूं. अब अगर कोई मुझ से मिल कर यह कहना शुरू कर दे कि मैं संसार की सब से सुंदर औरत हूं तो क्या मैं जानबूझ कर बेवकूफ बन जाऊंगी? क्या मैं इतनी सुंदर हूं कि सामने वाले को प्रभावित कर सकूं?’’

‘‘तुम बहुत सुंदर हो, श्वेता. तुम से किस ने कह दिया कि तुम सुंदर नहीं हो.’’

सहसा मेरे होंठों से भी निकल गया और मैं कहीं भी कोई दिखावा या झूठ नहीं बोल रहा था. अवाक् सी मेरा मुंह ताकने लगी श्वेता. इतनी स्तब्ध रह गई मानो मैं ने जो कहा वह कोरा झूठ हो और मैं एक मंझा हुआ अभिनेता हूं जिसे अभिनय के लिए पद्मश्री सम्मान मिल चुका हो.

‘‘श्वेता, तुम्हारा व्यक्तित्व दूर से प्रभावित करता है. सुंदरता का अर्थ क्या है तुम्हारी नजर में, क्या समझा पाओगी मुझे?’’

मैं ने स्थिति को सहज रूप में संभाल लिया. उस पर जरा सा संतोष भी हुआ मुझे. फीकी सी मुसकान उभर आई थी श्वेता के चेहरे पर.

‘‘हम 40 पार कर चुके हैं. तुम सही कह रही थीं कि अब हमारी उम्र वह नहीं रही जब तारीफ के झूठे बोल हमारी समझ में न आएं. कम से कम सच्ची और ईमानदार तारीफ तो हमारी समझ में आनी चाहिए न. मैं तुम्हारी झूठी तारीफ क्यों करूंगा…जरा समझाओ मुझे. मेरा कोई रिश्तेदार तुम्हारा विद्यार्थी नहीं है जिसे पास कराना मेरी जरूरत हो और न ही मेरे बालबच्चे ही उस उम्र के हैं जिन के नंबरों के लिए मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ूं. 2 बच्चियों का पिता हूं मैं और  चाहूंगा कि मेरी बेटियां बड़ी हो कर तुम जैसी बनें.

‘‘हमारे विभाग में तुम्हारा कितना नाम है. क्या तुम्हें नहीं पता. तुम्हारी लिखी किताबें कितनी सीधी सरल हैं, तुम जानती हो न. हर बच्चा उन्हीं को खरीदना चाहता है क्योंकि वे जितनी व्यापक हैं उतनी ही सरल भी हैं. अपने विषय की तुम जीनियस हो.’’

इतना सब कह कर मैं ने मुसकराने का प्रयास किया लेकिन चेहरे की मांसपेशियां मुझे इतनी सख्त लगीं जैसे वे मेरे शरीर का हिस्सा ही न हों.

श्वेता एकटक निहारती रही मुझे. सहयोगी हैं हम. अकसर हमारा सामना होता रहता है. श्वेता का रंग सांवला है, लेकिन गोरे रंग को अंगूठा दिखाता उस का गरिमापूर्ण व्यक्तित्व इतना अच्छा है कि मैं अकसर सोचता हूं कि सुंदरता हो तो श्वेता जैसी. फीकेफीके रंगों की उस की साडि़यां बहुत सुंदर होती हैं. अकसर मैं अपनी पत्नी से श्वेता की बातें करता हूं. जैसी सौम्यता, जैसी सहजता मैं श्वेता में देखता हूं वैसी अकसर दिखाई नहीं देती. गरिमा से भरा व्यक्तित्व समझदारी अपने साथ ले कर आता है, यह भी साक्षात श्वेता में देखता हूं मैं.

‘‘अजय, कम से कम तुम तो ऐसी बात न करो,’’ सहसा अपने होंठ खोले श्वेता ने, ‘‘अच्छा नहीं लगता मुझे.’’

‘‘क्यों अच्छा नहीं लगता, श्वेता? अपने को कम क्यों समझती हो तुम?’’

‘‘न कम समझती हूं मैं और न ही ज्यादा… जितनी हूं कम से कम उतने में ही रहने दो मुझे.’’

‘‘तुम एक बहुत अच्छी इनसान हो.’’

अपने शब्दों पर जोर दिया मैं ने क्योंकि मैं चाहता हूं मेरे शब्दों की सचाई पर श्वेता ध्यान दे. सुंदरता किसे कहा जाता है, यह तो कहने वाले की सोच और उस की नजरों में होती है न, जो सुंदरता को देखता है और जिस के मन में वह जैसी छाप छोड़ती है. खूबसूरती तो सदा देखने वाले की नजर में होती है न कि उस में जिसे देखा जाए.

‘‘तुम चाय पिओगे कि नहीं, हां या ना…जल्दी से कहो. मेरे पास बेकार बातों के लिए समय नहीं है.’’

‘‘श्वेता, अकसर बेकार बातें ही बड़े काम की होती हैं, जिन बातों को हम जीवन भर बेकार की समझते रहते हैं वही बातें वास्तव में जीवन को जीवन बनाने वाली होती हैं. बड़ीबड़ी घटनाएं जीवन में बहुत कम होती हैं और हम पागल हैं, जो अपना जीवन उन की दिशा के साथ मोड़तेजोड़ते रहते हैं. हम आधी उम्र यही सोचते रहते हैं कि लोग हमारे बारे में क्या सोचते होंगे, तीनचौथाई उम्र यही सोचने में गुजार देते हैं कि वह कहीं हमारे बारे में बुरा तो नहीं सोचते होंगे.’’

धीरे से मुसकराने लगी श्वेता और फिर हंस कर बोली, ‘‘और उम्र के आखिरी हिस्से में आ कर हमें पता चलता है कि लोगों ने तो हमारे बारे में अच्छा या बुरा कभी सोचा ही नहीं था. लोग तो मात्र अपनी सुविधा और अपने सुख के बारे में सोचते हैं, हम से तो उन्हें कभी कुछ लेनादेना था ही नहीं.’

जीवन का इतना बड़ा सत्य इतनी सरलता से कहने लगी श्वेता. मैं भी अपनी बात पूरी होते देख हंस पड़ा.

‘‘वह सब तो मैं पहले से ही समझती हूं. हालात और दुनिया ने सब समझाया है मुझे. बचपन से अपनी सूरत के बारे में इतना सुन चुकी हूं कि…’’

‘‘कि अपने अस्तित्व की सौम्यता भूल ही गई हो तुम. भीड़ में खड़ी अलग ही नजर आती हो और वह इसलिए नहीं कि तुम्हारा रंग काला है, वह इसलिए कि तुम गोरी मेकअप से लिपीपुती महिलाओं में खड़ी अलग ही नजर आती हो और समझा जाती हो कि सुंदरता किसी मेकअप की मोहताज नहीं है.

‘‘मैं पुरुष हूं और पुरुषों की नजर सुंदरता भांपने में कभी धोखा नहीं खाती. जिस तरह औरत पुरुष की नजर पहचानने में भूल नहीं करती… झट से पहचान जाती है कि नजरें साफ हैं या नहीं.’’

‘‘नजरें तो तुम्हारी साफ हैं, अजय, इस में कोई दो राय नहीं है,’’ उठ कर चाय बनाने लगी श्वेता.

‘‘धन्यवाद,’’ तनिक रुक गया मैं. नजरें उठा कर मुझे देखा श्वेता ने. कुछ पल को विषय थम सा गया. सांवले चेहरे पर सुनहरा चश्मा और कंधे पर गुलाबी रंग की कश्मीरी शाल, पारदर्शी, सम्मोहित सा करता श्वेता का व्यवहार.

‘‘अजय ऐसा नहीं है कि मैं खुश रहना नहीं चाहती. भाईबहन, रिश्तेदार, अपनों का प्यार किसे अच्छा नहीं लगता और फिर अकेली औरत को तो भाईबहन का ही सहारा होता है न. यह अलग बात है, वह सब की बूआ, सब की मौसी तो होती है लेकिन उस का कोई नहीं होता. ऐसा कोई नहीं होता जिस पर वह अधिकार से हाथ रख कर यह कह सके कि वह उस का है.’’

चाय बना लाई श्वेता और पास में बैठ कर बताने लगी :

‘‘मेरी छोटी बहन के पति मेरी जम कर तारीफ करते हैं और इस में बहन भी उन का साथ देती है. लेकिन वह जब भी जाते हैं, मेरा बैंक अकाउंट कुछ कम कर के जाते हैं. बच्चों की महंगी फीस का रोना कभी बहन रोती है और कभी भाभी. घर पर पड़ी नापसंद की गई साडि़यां मुझे उपहार में दे कर वे समझते हैं, मुझ पर एहसान कर रहे हैं. उन्हें क्या लगता है, मैं समझती नहीं हूं. अजय, मेरी बहन का पति वही इनसान है जो रिश्ते के लिए मुझे देखने आया था, मैं काली लगी सो छोटी को पसंद कर गया. तब मैं काली थी और आज मैं उस के लिए संसार की सब से सुंदर औरत हूं.’’

अवाक् रह गया था मैं.

‘‘मेरी तारीफ का अर्थ है मुझे लूटना.’’

‘‘तुम समझती हो तो लुटती क्यों हो?’’

‘‘जिस दिन लुटने से मना कर दिया उसी दिन शीशा दिख जाएगा मुझे…जिस दिन मैं ने अपने स्वाभिमान की रक्षा की, उसी दिन उन का अपमान हो जाएगा. मैं अकेली जान…भला मेरी क्या जरूरतें, जो मैं ने उन की मदद करने से मना कर दिया. मुझे कुछ हो गया तो मेरा घर, मेरा रुपयापैसा भला किस काम आएगा.’’

‘‘तुम्हें कुछ हो गया…इस का क्या मतलब? तुम्हें क्या होने वाला है, मैं समझा नहीं…’’

‘‘मेरी 40 साल की उम्र है. अब मेरी शादी करने की उम्र तो रही नहीं. किस के लिए है, जो सब मैं कमाती हूं. मैं जब मरूंगी तो सब उन का ही होगा न.’’

‘‘जब मरोगी तब मरोगी न. कौन कब जाने वाला है, इस का समय निश्चित है क्या? कौन पहले जाने वाला है कौन बाद में, इस का भी क्या पता… बुरा मत मानना श्वेता, अगर मैं तुम्हारी मौत की कामना कर तुम्हारी धनसंपदा पर नजर रखूं तो क्या मुझे अपनी मृत्यु का पता है कि वह कब आने वाली है. अपना भी खा सकूंगा इस की भी क्या गारंटी, जो तुम्हारा भी छीन लेने की आस पालूं. तुम्हारे भाई व बहन 100 साल जिएं लेकिन उन्हें तुम्हें लूटने का कोई अधिकार नहीं है.’’

पलकें भीग गईं श्वेता की. कमरे में देर तक सन्नाटा छाया रहा. चश्मा उतार कर आंखें पोंछीं श्वेता ने.

‘‘अजय, वक्त सब सिखा देता है. यह संसार और दुनियादारी बहुत बड़ा स्कूल है, जहां हर पल कुछ नया सीखने को मिलता है. बहुत अच्छा बनने की कोशिश भी इनसान को कहीं का नहीं छोड़ती. मानव से महामानव बनना आसान है लेकिन महामानव से मानव बनना आसान नहीं. किसी को सदा देने वाले हाथ मांगते हुए अच्छे नहीं लगते. मैं सदा देती हूं, जिस दिन इनकार करूंगी…’’

‘‘तुम्हें महामानव होने का प्रमाणपत्र किस ने दिया है? …तुम्हारे भाईबहन ने ही न. वे लोग कितने स्वार्थी हैं क्या तुम्हें दिखता नहीं. इस उम्र में क्या तुम्हारा घर नहीं बस सकता, मरने की बातें करती हो…अभी तुम ने जीवन जिया कहां है… तुम शादी क्यों नहीं कर लेतीं. इस काम में तुम चाहो तो मैं और मेरी पत्नी तुम्हारा साथ देने को तैयार हैं.’’

अवाक् रह गई थी श्वेता. इस तरह हैरान मानो जो सुना वह कभी हो ही नहीं सकता.

‘‘शायद तुम यह नहीं जानतीं कि हमारे घर में तुम्हारी चर्चा इसलिए भी है क्योंकि मेरी पत्नी और दोनों बेटियां भी सांवले रंग की हैं. पलपल स्वयं को दूसरों से कम समझना उन का भी स्वभाव बनता जा रहा है. तुम्हारी चर्चा कर के उन्हें यह समझाना चाहता हूं कि देखो, हमारी श्वेताजी कितनी सुंदर हैं और मैं सदा चाहूंगा कि मेरी दोनों बेटियां तुम जैसी बनें.’’

स्वर भर्रा गया था मेरा. श्वेता के अति व्यक्तिगत पहलू को इस तरह छू लूंगा मैं ने कभी सोचा भी नहीं था.

चुप थी श्वेता. आंखें टपकने लगी थीं. पास जा कर कंधा थपथपा दिया मैं ने.

‘‘हम आफिस के सहयोगी हैं… अगर भाई बन कर तुम्हारा घर बसा पाऊं तो मुझे बहुत खुशी होगी. क्या हमारे साथ रिश्ता बांधना चाहोगी? देखो, हमारा खून का रिश्ता तो नहीं होगा लेकिन जैसा भी होगा निस्वार्थ होगा.’’

रोतेरोते हंसने लगी थी श्वेता. देर तक हंसती रही. चुपचाप निहारता रहा मैं. जब सब थमा तब ऐसा लगा मानो नई श्वेता से मिल रहा हूं. मेरा हाथ पकड़ देर तक सहलाती रही श्वेता. सर पर हाथ रखा मैं ने. शायद उसी से कुछ कहने की हिम्मत मिली उसे.

‘‘अजय, क्या पिता बन कर मेरा कन्यादान करोगे? मैं शादी करना चाहती हूं पर यह समझ नहीं पा रही कि सही कर रही हूं या गलत. कोई ऐसा अपना नहीं मिल रहा था जिस से बात कर पाती. ऐसा लग रहा था, कोई पाप कर रही हूं क्योंकि मेरे अपनों ने तो मुझे वहां ला कर खड़ा कर दिया है जहां अपने लिए सोचना भी बचकाना सा लगता है.’’

मैं सहसा चौंक सा गया. मैं तो बस सहज बात कर रहा था और वह बात एक निर्णय पर चली आएगी, शायद श्वेता ने भी नहीं सोचा होगा.

‘‘सच कह रही हो क्या?’’

‘‘हां. मेरे साथ ही पढ़ते थे वह. एम.ए. तक हम साथ थे. 15 साल पहले उन की शादी हो गई थी. मेरे पिताजी के गुजर जाने के बाद मुझ पर परिवार की जिम्मेदारी थी इसलिए मेरी मां ने भी मेरा घर बसा देना जरूरी नहीं समझा. भाईबहनों को ही पालतेब्याहते मैं बड़ी होती गई…ऊपर से मेरा रंग भी काला. सोने पर सुहागा.

‘‘पिछली बार जब मैं दिल्ली में होने वाले सेमिनार में गई थी तब सहायजी से वहां मुलाकात हुई थी.’’

‘‘सहायजी, वही जो दिल्ली विश्वविद्यालय में ही रसायन विभाग में हैं. हां, मैं उन्हें जानता हूं. 2 साल पहले कार एक्सीडेंट में उन की पत्नी और बेटे का देहांत हो गया था. उन की बेटी यहीं लुधियाना में है.’’

‘‘और मैं उस बच्ची की स्थानीय अभिभावक हूं,’’ धीरे से कहा श्वेता ने. एक हलकी सी चमक आ गई उस की नजरों में. मैं समझ सकता हूं उस बच्ची की वजह से श्वेता के मन में ममता का अंकुर फूटा होगा. सहाय भी बहुत अच्छे इनसान हैं. बहुत सम्मान है उन का दिल्ली में.

‘‘क्या सहाय ने खुद तुम्हारा हाथ मांगा है?’’

‘‘वह और उन की बेटी दोनों ही चाहते हैं. मैं कोई निर्णय नहीं ले पा रही हूं. मैं क्या करूं, अजय. कहीं इस में उन का भी कोई स्वार्थ तो नहीं है.’’

‘‘जरा सा स्वार्थी तो हर किसी को होना ही चाहिए न. उन्हें पत्नी चाहिए, तुम्हें पति और बच्ची को मां. श्वेता, 3 अधूरे लोग मिल कर एक सुखी घर की स्थापना कर सकते हैं. जरूरतें इनसानों को जोड़ती हैं और जुड़ने के बाद प्यार भी पनपता है. मुझे 2 दिन का समय दो. मैं अपने तरीके से सहाय के बारे में छानबीन कर के तुम्हें बताता हूं.’’

शायद श्वेता के शब्दों का ही प्रभाव होगा, एक पिता जैसी भावना मन को भिगोने लगी. माथा सहला दिया मैं ने श्वेता का.

‘‘मैं और तुम्हारी भाभी सदा तुम्हारे साथ हैं, श्वेता. तुम अपना घर बसाओ और खुश रहो.’’

श्वेता की आंखों में रुका पानी झिलमिलाने लगा था. पसंद तो मैं उस को सदा से करता था, उस से एक रिश्ता भी बंध जाएगा पता न था. उस का मेरा हाथ अपने माथे से लगा कर सम्मान सहित चूम लेना मैं आज भी भूला नहीं हूं. रिश्ता तो वह होता है न जो मन का हो, रक्त के रिश्ते और उन का सत्य अब सत्य कहां रह गया है. किसी चिंतक ने सही कहा है, जो रक्त पिए वही रक्त का रिश्तेदार.

सहाय, श्वेता और वह बच्ची मृदुला, तीनों आज मेरे परिवार का हिस्सा हैं. श्वेता के भाईबहन उस से मिलतेजुलते नहीं हैं. नाराज हैं, क्या फर्क पड़ता है, आज रूठे हैं, कल मान भी जाएंगे. आज का सत्य यही है कि श्वेता के माथे की सिंदूरी आभा बहुत सुंदर लगती है. अपनी गृहस्थी में वह बहुत खुश है. मेरा घर उस का मायका है. एक प्यारी सी बेटी की तरह वह चली आती है मेरी पत्नी के पास. दोनों का प्यार देख कभीकभी सोचता हूं लोग क्यों खून के रिश्तों के लिए रोते हैं. दाहसंस्कार करने के अलावा भला यह काम कहां आता है.

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Family Story: रिश्ता दोस्ती का- क्या सास की चालों को समझ पाई सुदीपा?

Family Story: 12 साल की स्वरा शाम में खेलकूद कर वापस आई. दरवाजे की घंटी बजाई तो
सामने किसी अजनबी युवक को देख कर चकित रह गई.

तब तक अंदर से उस की मां सुदीपा बाहर निकली और मुस्कुराते हुए बेटी से
कहा,” बेटे यह तुम्हारी मम्मा के फ्रेंड, अविनाश अंकल हैं . नमस्ते करो
अंकल को.”

“नमस्ते मम्मा के फ्रेंड अंकल ,” कह कर हौले से मुस्कुरा कर वह अपने कमरे
में चली आई और बैठ कर कुछ सोचने लगी. कुछ ही देर में उस का भाई विराज भी
घर लौट आया. विराज स्वरा से दोतीन साल ही बड़ा था.

विराज को देखते ही स्वरा ने सवाल किया,” भैया आप मम्मा के फ्रेंड से मिले?”

“हां मिला, काफी यंग और चार्मिंग हैं. वैसे 2 दिन पहले भी आए थे. उस दिन
तू कहीं गई हुई थी.”

“वह सब छोड़ो भैया. आप तो मुझे यह बताओ कि वह मम्मा के बॉयफ्रेंड हुए न ?”

” यह क्या कह रही है पगली, वह तो बस फ्रेंड है. यह बात अलग है कि आज तक
मम्मा की सहेलियां ही घर आती थीं. पहली बार किसी लड़के से दोस्ती की है
मम्मा ने.”

” वही तो मैं कह रही हूं कि वह बॉय भी है और मम्मा का फ्रेंड भी. यानी वह
बॉयफ्रेंड ही तो हुए न,” मुस्कुराते हुए स्वरा ने कहा.

” ज्यादा दिमाग मत दौड़ा. अपनी पढ़ाई कर ले,” विराज ने उसे धौल जमाते हुए कहा.

थोड़ी देर में अविनाश चला गया तो सुदीपा की सास अपने कमरे से बाहर आती हुए
थोड़ी नाराजगी भरे स्वर में बोलीं,” बहू क्या बात है, तेरा यह फ्रेंड अब
अक्सर ही घर आने लगा है.”

“अरे नहीं मम्मी जी वह दूसरी बार ही तो आया था और वह भी ऑफिस के किसी काम
के सिलसिले में ही आया था.”

” मगर बहू तू तो कहती थी कि तेरे ऑफिस में ज्यादातर महिलाएं हैं. अगर
पुरुष हैं भी तो वे अधिक उम्र के हैं. जब कि यह लड़का तो तुझ से भी छोटा
लग रहा था.”

” मम्मी जी हम समान उम्र के ही हैं. अविनाश मुझ से केवल 4 महीने छोटा है.
एक्चुअली हमारे ऑफिस में अविनाश का ट्रांसफर हाल में ही हुआ है. पहले उस
की पोस्टिंग हेड ऑफिस मुंबई में थी. सो इसे प्रैक्टिकल नॉलेज काफी ज्यादा
है. कभी भी कुछ मदद की जरूरत होती है तो यह तुरंत आगे आ जाता है. तभी यह
ऑफिस में बहुत जल्द सब का दोस्त बन गया है. अच्छा मम्मी जी आप बताइए आज
खाने में क्या बनाऊं?”

” जो दिल करे बना ले बहू, पर देख लड़कों को जरूरत से ज्यादा मेलजोल बढ़ाना
सही नहीं होता. तेरे भले के लिए ही कह रही हूं बहू.”

” अरे मम्मी जी आप निश्चिंत रहिए. अविनाश बहुत अच्छा लड़का है,” कह कर
हंसती हुई सुदीपा अंदर चली गई मगर सास का चेहरा बना रहा.

रात में जब सुदीपा का पति अनुराग घर लौटा तो खाने के बाद सास ने अनुराग
को कमरे में बुलाया और धीमी आवाज में उसे अविनाश के बारे में सब कुछ
बताने लगी.

अनुराग ने मां को समझाने की कोशिश की,” मां आज के समय में महिलाओं और
पुरुषों की दोस्ती आम बात है. वैसे भी आप जानती ही हो सुदीपा कितनी
समझदार है. आप टेंशन क्यों लेते हो मां ?”

” बेटा मेरी बूढ़ी हड्डियों ने इतनी दुनिया देखी है जितनी तू सोच भी नहीं
सकता. स्त्रीपुरुष की दोस्ती यानी घी और आग की दोस्ती. आग पकड़ते समय
नहीं लगता बेटे. मेरा फर्ज था तुझे समझाना सो समझा दिया.”

” डोंट वरी मां ऐसा कुछ नहीं होगा. अच्छा मैं चलता हूं सोने,” अविनाश मां
के पास से तो उठ कर चला आया मगर कहीं न कहीं उन की बातें देर तक उस के
जेहन में घूमती रहीं. वह सुदीपा से बहुत प्यार करता था और उस पर पूरा
यकीन भी था. मगर आज जिस तरह मां शक जाहिर कर रही थीं उस बात को वह पूरी
तरह इग्नोर भी नहीं कर पा रहा था.

रात में जब घर के सारे काम निपटा कर सुदीपा कमरे में आई तो अविनाश ने उसे
छेड़ने के अंदाज में कहा ,” मां कह रही थीं आजकल आप की किसी लड़के से
दोस्ती हो गई है और वह आप के घर भी आता है.”

पति के भाव समझते हुए सुदीपा ने भी उसी लहजे में जवाब दिया,” जी हां आप
ने सही सुना है. वैसे मां तो यह भी कह रही होंगी कि कहीं मुझे उस से
प्यार न हो जाए और मैं आप को चीट न करने लगूं. ”

” हां मां की सोच तो कुछ ऐसी ही है मगर मेरी नहीं. ऑफिस में मुझे भी
महिला सहकर्मियों से बातें करनी होती हैं पर इस का मतलब यह तो नहीं कि
मैं कुछ और सोचने लगूं. मैं तो मजाक कर रहा था.”

” आई नो एंड आई लव यू, ” प्यार से सुदीपा ने कहा.

” ओहो चलो इसी बहाने यह लफ्ज़ इतने दिनों बाद सुनने को तो मिल गए,”
अविनाश ने उसे बाहों में भरते हुए कहा.

सुदीपा खिलखिला कर हंस पड़ी. दोनों देर तक प्यार भरी बातें करते रहे.

वक्त इसी तरह गुजरने लगा. अविनाश अक्सर सुदीपा के घर आ जाता. कभीकभी
दोनों बाहर भी निकल जाते. अनुराग को कोई एतराज नहीं था इसलिए सुदीपा भी
इस दोस्ती को एंजॉय कर रही थी. साथ ही ऑफिस के काम भी आसानी से निबट
जाते. सुदीपा ऑफिस के साथ घर भी बहुत अच्छे से संभालती थी. अनुराग को इस
मामले में भी पत्नी से कोई शिकायत नहीं थी.

पर मां अक्सर बेटे को टोकतीं ,”यह सही नहीं है अनुराग. तुझे फिर कह रही
हूं, पत्नी को किसी और के साथ इतना घुलनमलने देना उचित नहीं.”

” मां एक्चुअली सुदीपा ऑफिस के कामों में ही अविनाश की हेल्प लेती है.
दोनों एक ही फील्ड में काम कर रहे हैं और एकदूसरे को अच्छे से समझते हैं.
इसलिए स्वाभाविक है कि काम के साथसाथ थोड़ा समय संग बिता लेते हैं. इस
में कुछ कहना मुझे ठीक नहीं लगता मां और फिर तुम्हारी बहू इतना कमा भी तो
रही है. याद करो मां जब सुदीपा घर पर रहती थी तो कई दफा घर चलाने के लिए
हमारे हाथ तंग हो जाते थे. आखिर बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सके इस के
लिए सुदीपा का काम करना भी तो जरूरी है न. फिर जब वह घर संभालने के बाद
काम करने बाहर जा रही है तो हर बात पर टोकाटाकी भी तो अच्छी नहीं लगती
न. ”

” बेटे मैं तेरी बात समझ रही हूं पर तू मेरी बात नहीं समझता. देख थोड़ा
नियंत्रण भी जरूरी है बेटे वरना कहीं तुझे बाद में पछताना न पड़े,” मुंह
बनाते हुए मां ने कहा.

” ठीक है मां मैं बात करूंगा ,” कह कर अनुराग चुप हो जाता.

एक ही बात बारबार कही जाए तो वह कहीं न कहीं दिमाग पर असर डालती है. ऐसा
ही कुछ अनुराग के साथ भी होने लगा था. जब काम के बहाने सुदीपा और अविनाश
शहर से बाहर जाते तो अनुराग का दिल बेचैन हो उठता. उसे कई दफा लगता कि
सुदीपा को अविनाश के साथ बाहर जाने से रोक ले या डांट लगा दे. मगर वह ऐसा
कर नहीं पाता. आखिर उस की गृहस्थी की गाड़ी यदि सरपट दौड़ रही थी तो उस
के पीछे कहीं न कहीं सुदीपा की मेहनत ही तो थी.

इधर बेटे पर अपनी बातों का असर पड़ता न देख अनुराग के मांबाप ने अपने
पोते और पोती यानी बच्चों को उकसाना शुरू किया. एक दिन दोनों बच्चों को
बैठा कर वह समझाने लगे,” देखो बेटे आप की मम्मा की अविनाश अंकल से दोस्ती
ज्यादा ही बढ़ रही है. क्या आप दोनों को नहीं लगता कि मम्मा आप को या
पापा को अपना पूरा समय देने के बजाय अविनाश अंकल के साथ घूमने चली जाती
है? ”

” दादी जी मम्मा घूमने नहीं बल्कि ऑफिस के काम से ही अविनाश अंकल के साथ
जाती हैं, ” विराज ने विरोध किया.

” भैया को छोड़ो दादी जी पर मुझे भी ऐसा लगता है जैसे मम्मा हमें सच में
इग्नोर करने लगी हैं. जब देखो ये अंकल हमारे घर आ जाते हैं या मम्मा को
ले जाते हैं. यह सही नहीं.”

“हां बेटे मैं इसलिए कह रही हूं कि थोड़ा ध्यान दो. मम्मा को कहो कि अपने
दोस्त के साथ नहीं बल्कि तुम लोगों के साथ समय बिताया करें.”

उस दिन संडे था. बच्चों के कहने पर सुदीपा और अनुराग उन्हें ले कर वाटर
पार्क जाने वाले थे. दोपहर की नींद ले कर जैसे ही दोनों बच्चे तैयार होने
लगे तो मां को न देख कर दादी के पास पहुंचे, “दादी जी मम्मा कहां है दिख
नहीं रही?”

“तुम्हारी मम्मा गई अपने फ्रेंड के साथ.”

“मतलब अविनाश अंकल के साथ?”

“हां ”

” लेकिन उन्हें तो हमारे साथ जाना था. क्या हम से ज्यादा बॉयफ्रेंड
इंपॉर्टेंट हो गया ?” कह कर स्वरा ने मुंह फुला लिया. विराज भी उदास हो
गया.

लोहा गरम देख दादी मां ने हथौड़ा मारने की गरज से कहा, ” यही तो मैं कहती
आ रही हूं इतने समय से कि सुदीपा के लिए अपने बच्चों से ज्यादा
महत्वपूर्ण वह पराया आदमी हो गया है. तुम्हारे बाप को तो कुछ समझ ही नहीं
आता.”

” मां प्लीज ऐसा कुछ नहीं है. कोई जरुरी काम आ गया होगा,” अनुराग ने
सुदीपा के बचाव में कहा.

” पर पापा हमारा दिल रखने से जरूरी और कौन सा काम हो गया भला? ” कह कर
विराज गुस्से में उठा और अपने कमरे में चला गया. उस ने अंदर से दरवाजा
बंद कर लिया.

स्वरा भी चिढ़ कर बोली,” लगता है मम्मा को हम से ज्यादा प्यार उस अविनाश
अंकल से हो गया है.”

वह भी पैर पटकती अपने कमरे में चली गई. शाम को जब सुदीपा लौटी तो घर में
सब का मूड ऑफ था.

सुदीपा ने बच्चों को समझाने की कोशिश करते हुए कहा,” तुम्हारे अविनाश
अंकल के पैर में गहरी चोट लगी लग गई थी. तभी मैं उन्हें ले कर अस्पताल
गई.”

” मम्मा आज हम कोई बहाना नहीं सुनने वाले. आप ने अपना वादा तोड़ा है और
वह भी अविनाश अंकल की खातिर. हमें कोई बात नहीं करनी ,” कह कर दोनों वहां
से उठ कर चले गए.

स्वरा और विराज मां की अविनाश से इन नज़दीकियों को पसंद नहीं कर रहे थे.
वे अपनी ही मां से कटेकटे से रहने लगे. गर्मी की छुट्टियों के बाद बच्चों
के स्कूल खुल गए और विराज अपने हॉस्टल चला गया.

इधर सुदीपा के सासससुर ने इस दोस्ती का जिक्र उस के मांबाप से भी कर
दिया. सुदीपा के मांबाप भी इस दोस्ती के खिलाफ थे. मां ने सुदीपा को
समझाया तो पिता ने भी अनुराग को सलाह दी कि उसे इस मामले में सुदीपा पर
थोड़ी सख्ती करनी चाहिए और अविनाश के साथ बाहर जाने की इजाजत कतई नहीं
देनी चाहिए.

इस बीच स्वरा की दोस्ती सोसाइटी के एक लड़के सुजय से हो गई. वह स्वरा से
दोचार साल बड़ा था यानी विराज की उम्र का था. वह जूडोकराटे में चैंपियन
और फिटनेस फ्रीक लड़का था. स्वरा उस की बाइक रेसिंग से भी बहुत प्रभावित
थी. वे दोनों एक ही स्कूल में थे. दोनों साथ स्कूल आनेजाने लगे. सुजय
दूसरे लड़कों की तरह नहीं था. वह स्वरा को अच्छी बातें बताता. उसे सेल्फ
डिफेंस की ट्रेनिंग देता और स्कूटी चलाना भी सिखाता. सुजय का साथ स्वरा
को बहुत पसंद आता.

एक दिन स्वरा सुजय को अपने साथ घर ले आई. सुदीपा ने उस की अच्छे से आवभगत
की. सब को सुजय अच्छा लड़का लगा इसलिए किसी ने स्वरा से कोई पूछताछ नहीं
की. अब तो सुजय अक्सर ही घर आने लगा. वह स्वरा की मैथ्स की प्रॉब्लम भी
सॉल्व कर देता और जूडोकराटे भी सिखाता रहता.

एक दिन स्वरा ने सुदीपा से कहा,” मम्मा आप को पता है सुजय डांस भी जानता
है. वह कह रहा था कि मुझे डांस सिखा देगा.”

” यह तो बहुत अच्छा है. तुम दोनों बाहर लॉन में या फिर अपनी कमरे में
डांस की प्रैक्टिस कर सकते हो.”

” मम्मा आप को या घर में किसी को एतराज तो नहीं होगा ?” स्वरा ने पूछा.

” अरे नहीं बेटा. सुजय अच्छा लड़का है. वह तुम्हें अच्छी बातें सिखाता
है. तुम दोनों क्वालिटी टाइम स्पेंड करते हो. फिर हमें ऐतराज क्यों होगा?
बस बेटा यह ध्यान रखना सुजय और तुम फालतू बातों में समय मत लगाना. काम
की बातें सीखो, खेलोकूदो, उस में क्या बुराई है ?”

“ओके थैंक यू मम्मा,” कह कर स्वरा खुशीखुशी चली गई.

अब सुजय हर संडे स्वरा के घर आ जाता और दोनों डांस प्रैक्टिस करते. समय
इसी तरह बीतता रहा. एक दिन सुदीपा और अनुराग किसी काम से बाहर गए हुए थे.
घर में स्वरा दादीदादी के साथ अकेली थी. किसी काम से सुजय घर आया तो
स्वरा उस से मैथ्स की प्रॉब्लम सॉल्व कराने लगी. इसी बीच अचानक स्वरा को
दादी के कराहने और बाथरूम में गिरने की आवाज सुनाई दी.

स्वरा और सुजय दौड़ कर बाथरूम पहुंचे तो देखा दादी फर्श पर बेहोश पड़ी है.
स्वरा के दादा ऊंचा सुनते थे. उन के पैरों में भी तकलीफ रहती थी. वह अपने
कमरे में सोए पड़े थे. स्वरा घबरा कर रोने लगी तब सुजय ने उसे चुप कराया
और जल्दी से एंबुलेंस वाले को फोन किया. स्वरा ने अपने मम्मी डैडी को भी
हर बात बता दी. इस बीच सुजय जल्दी से दादी को ले कर पास के अस्पताल भागा.
उस ने पहले ही अपने घर से रुपए मंगा लिए थे. अस्पताल पहुँच कर उस ने बहुत
समझदारी के साथ दादी को एडमिट करा दिया और प्राथमिक इलाज शुरू कराया. उन
को हार्ट अटैक आया था. अब तक स्वरा के मांबाप भी हॉस्पिटल पहुंच गए थे.

डॉक्टर ने सुदीपा और अनुराग से सुजय की तारीफ करते हुए कहा,” इस लड़के ने
जिस फुर्ती और समझदारी से आप की मां को हॉस्पिटल पहुंचाया वह काबिलेतारीफ
है. अगर ज्यादा देर हो जाती तो समस्या बढ़ सकती थी और जान को भी खतरा हो
सकता था. ”

सुदीपा ने बढ़ कर सुजय को गले से लगा लिया. अनुराग और उस के पिता ने भी
नम आंखों से सुजय का धन्यवाद कहा. सब समझ रहे थे कि बाहर का एक लड़का आज
उन के परिवार के लिए कितना बड़ा काम कर गया. हालात सुधरने पर स्वरा की
दादी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.

घर लौटने पर दादी ने सुजय का हाथ पकड़ कर गदगद स्वर में कहा,” आज मुझे
पता चला कि दोस्ती का रिश्ता इतना खूबसूरत होता है. तुम ने मेरी जान बचा
कर इस बात का एहसास दिला दिया बेटे की दोस्ती का मतलब क्या है.”

“यह तो मेरा फर्ज था दादी जी, ” सुजय ने हंस कर कहा.

तब दादी ने सुदीपा की तरफ देख कर ग्लानि भरे स्वर में कहा,” मुझे माफ कर
दे बहू. दोस्ती तो दोस्ती होती है, बच्चों की हो या बड़ों की. तेरी और
अविनाश की दोस्ती पर शक कर के हम ने बहुत बड़ी भूल कर दी. आज मैं समझ
सकती हूं कि तुम दोनों की दोस्ती कितनी प्यारी होगी. आज तक मैं समझ ही
नहीं पाई थी. ”

सुदीपा बढ़ कर सास के गले लगती हुई बोली,” मम्मी जी आप बड़ी हैं. आप को मुझ
से माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं. आप अविनाश को जानती नहीं थीं इसलिए आप
के मन में सवाल उठ रहे थे. यह बहुत स्वाभाविक था. पर मैं उसे पहचानती हूं
इसलिए बिना कुछ छुपाए उस रिश्ते को आप के सामने ले कर आई थी. ”

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सुदीपा ने दरवाजा खोला तो सामने हाथों में फल
और गुलदस्ता लिए अविनाश खड़ा था. घबराए हुए स्वर में उस ने पूछा,” मैं ने
सुना है कि अम्मां जी की तबीयत खराब हो गई है. अब कैसी हैं वह? ”

” बस तुम्हें ही याद कर रही थीं,” हंसते हुए सुदीपा ने कहा और हाथ पकड़
कर उसे अंदर ले आई.

Romantic Story: निराधार शक: कैसे एक शक बना दोनों का दुश्मन?

Romantic Story: मैं अंकित से नाराज थी. परसों हमारे बीच जबरदस्त झगड़ा हुआ था और इस कारण पिछली 2 रात से मैं ढंग से सो भी नहीं पाई हूं.

परसों शाम हम दोनों डिस्ट्रिक्ट पार्क में घूम रहे थे कि अचानक मेरे कालेज के पुराने 5-6 दोस्तों से हमारी मुलाकात हो गई, जैसा कि ऐसे मौकों पर अकसर होता है, पुराने दिनों को याद करते हुए हम सब खूब खुल कर आपस में हंसनेबोलने लगे थे.

सच यही है कि उन सब के साथ गपशप करते हुए आधे घंटे के लिए मैं अंकित को भूल सी गई थी. उन को विदा करने के बाद मुझे अहसास हुआ कि उस का मूड कुछ उखड़ाउखड़ा सा था.

मैं ने अंकित से इस का कारण पूछा तो वह फौरन शिकायती अंदाज में बोला, ‘‘मुझे तुम्हारे इन दोस्तों का घटिया व्यवहार जरा भी अच्छा नहीं लगा, मानसी.’’

‘‘क्या घटिया व्यवहार किया उन्होंने?’’ मैं ने चौंक कर पूछा.

‘‘मुझे बिलकुल पसंद नहीं कि कोई तुम से बात करते हुए तुम्हें छुए.’’

‘‘अंकित, ये सब मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं और मुझे ले कर किसी की नीयत में कोई खोट नहीं है. उन के दोस्ताना व्यवहार को घटिया मत कहो.’’

‘‘मेरे सामने तुम्हारी कोल्डड्रिंक की बोतल से मुंह लगा कर कोक पीने की रोहित की हिम्मत कैसे हुई? उस के बाद तुम ने क्यों उस बोतल को मुंह से लगाया?’’ उस की आवाज गुस्से से कांप रही थी.

‘‘कालेज के दिनों में भी हमारे बीच मिलजुल कर खानापीना चलता था, अंकित. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि तुम इस छोटी सी बात पर क्यों इतना ज्यादा नाराज…’’

‘‘मेरे लिए यह छोटी सी बात नहीं है, मानसी. अब इस तरह की घटिया और चीप हरकतें तुम्हें बंद करनी होंगी.’’

‘‘क्या तुम मुझे ‘चीप’ कह रहे हो?’’ मुझे भी एकदम गुस्सा आ गया.

‘‘तुम चुपचाप मेरी बात मान क्यों नहीं लेती? बेकार की बहस शुरू करने के बजाय तुम मेरी खुशी की खातिर अपनी गलत आदतों को फौरन छोड़ देने की बात क्यों नहीं कह रही हो?’’

‘‘तुम मुझे आज खुल कर बता ही दो कि तुम्हारी खुशी की खातिर मैं अपनी और कौनकौन सी घटिया और चीप आदतें छोड़ूं?’’

‘‘सब से पहले किसी भी लड़के से इतना ज्यादा खुल कर मत हंसोबोलो कि वह तुम्हें चालू लड़की समझने लगे.’’

‘‘अंकित, क्या तुम मुझ पर अब चालू लड़की होने का आरोप भी लगा रहे हो?’’ तेज गुस्से के कारण मेरी आंखों में आंसू छलक आए थे.

‘‘मैं आरोप नहीं लगा रहा हूं. बस, सिर्फ तुम्हें समझा रहा हूं. मेरे मन की सुखशांति के लिए तुम्हें अपने व्यवहार को संतुलित बनाने में कोई एतराज नहीं होना चाहिए.’’

‘‘तुम समझाने की आड़ में मुझे अपमानित कर रहे हो, अंकित. अरे, तुम अभी से मेरे चरित्र पर शक कर मुझे पुराने दोस्तों के साथ खुल कर हंसनेबोलने को मना कर रहे हो तो शादी के बाद तो अवश्य ही मेरे मुंह पर ताला लगा कर रखोगे. तुम्हारी 18वीं सदी की सोच देख कर तो मुझे तुम पर हैरानी हो रही है.’’

‘‘बेकार की बहस में पड़ने के बजाय हम दोनों एकदूसरे के विचारों को समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या अपनी शादीशुदा जिंदगी को हंसीखुशी से भरपूर रखने की जिम्मेदारी हम दोनों की नहीं है?’’ वह अपना आपा खो कर जोर से चिल्लाते हुए बोला.

‘‘जो आदमी मुझे चालू और चीप समझ रहा है, मुझे उस से शादी करनी ही नहीं है,’’ मैं झटके से मुड़ी और पार्क के गेट की तरफ चल पड़ी.उस ने मुझे आवाज दे कर रोकना चाहा, पर मैं रुकी नहीं. घर पहुंच कर मैं देर तक रोती रही. मेरे हंसनेबोलने को नियंत्रित करने का उस का प्रयास मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा.

अपने मन में बसी नाराजगी के चलते पूरे 2 दिन अंकित को इंतजार कराने के बाद मैं ने रविवार की सुबह उस की कौल रिसीव की.

‘‘कुछ देर के लिए मिलने आ सकती हो, मानसी?’’ अंकित की आवाज में अभी भी खिंचाव के भाव मैं साफ महसूस कर सकती थी.

मैं ने भावहीन लहजे में जवाब दिया, ‘‘मेरा आना नहीं हो सकता क्योंकि मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘किसी भी जरूरी काम का बहाना बना कर थोड़ी देर के लिए आ जाओ.’’

‘‘मुझे मम्मीपापा से झूठ बोलना सिखा रहे हो?’’

‘‘प्यार में कभीकभी झूठ बोलना चलता है, यार.’’

‘‘तुम मुझ से प्यार करते हो?’’

‘‘अपनी जान से ज्यादा,’’ वह एकदम भावुक हो उठा था.

‘‘ज्यादा झूठ बोलने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं और यह बात मैं तुम्हें आमनेसामने समझाना चाहूंगा.’’

‘‘ठीक है, आधे घंटे बाद मुझे मेन सड़क पर मिलना.’’

‘‘थैंक यू, यू आर ए डार्लिंग.’’ उस का स्वर किसी छोटे बच्चे की तरह खुशी से भर गया तो मैं भी खुद को मुसकराने से रोक नहीं पाई थी.

हमारी पहली मुलाकात मेरी अच्छी सहेली रितु की शादी के दौरान करीब 2 महीने पहले हुई थी. अंकित उस के बड़े भाई का दोस्त था. हमारे मिलने का सिलसिला चल निकला. खूब बातें होतीं, मौजमस्ती करते. इन कुछ मुलाकातों के दौरान मेरे व्यक्तित्व से प्रभावित हो वह मुझे अपना दिल दे बैठा था.

मेरी नजरों में वह एक उपयुक्त जीवनसाथी था, पर परसों के अपने संकुचित व्यवहार से उस ने मेरा दिल बहुत दुखाया था. मेरे जिस हंसमुख व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर उस ने मुझे अपना दिल दिया था अब मेरा वही खास गुण उसे चुभने लगा था. अपनी मोटरसाइकिल के पास खड़ा अंकित मेन सड़क पर मेरा इंतजार कर रहा था. मुझे देखते ही उस का चेहरा फूल सा खिल उठा.

मैं पास पहुंची तो वह खुशी भरे लहजे में बोला, ‘‘यू आर लुकिंग वैरी ब्यूटीफुल, मानसी.’’

‘‘थैंक यू,’’ उस के मुंह से अपनी प्रशंसा सुन कर मैं न चाहते हुए भी मुसकरा उठी थी.

‘‘मुझे परसों के अपने व्यवहार के लिए तुम से क्षमा…’’

मैं ने उस के मुंह पर हाथ रख कर उसे चुप किया और बोली, ‘‘अब उस बात की चर्चा शुरू कर के मूड खराब करने के बजाय पहले कुछ खा लिया जाए, मुझे बहुत जोर से भूख लग रही है.’’

‘‘जरूर,’’ उस ने किक मार कर मोटरसाइकिल स्टार्ट कर दी.

मेरे मनपसंद रेस्तरां में हम ने पहले पेट भर कर चायनीज खाना खाया. फिर आमिर खान की ‘थ्री इडियट’ फिल्म दोबारा देखी. वहां से निकल कर आइसक्रीम खाई और उसी डिस्ट्रिक्ट पार्क में घूमने पहुंच गए जहां 2 दिन पहले हमारा झगड़ा हुआ था.

वहां हम हाथ पकड़ कर मस्त अंदाज में घूमने लगे. अब तक बीते पूरे समय के दौरान नाराजगी का कोई नामोनिशान मेरे व्यवहार में मौजूद नहीं था. उस ने तो कई बार झगड़े की चर्चा छेड़नी भी चाही, पर हर बार मैं ने वार्तालाप की दिशा बदल दी थी. मन में डर भी था कि बेवजह फिर कहीं बात का बतंगड़ न बन जाए.

टहलते हुए हम पार्क के ऐसे एकांत कोने में पहुंचे जहां आसपास कोई नजर नहीं आ रहा था. मैं ने रुक कर उस का हाथ चूमा तो उस ने मुझे अपनी मजबूत बांहों में एकाएक भर कर मेरे होठों से अपने होंठ जोड़ दिए थे.

मैं ने आंखें मूंद कर इस पहले चुंबन का भरपूर आनंद लिया था.

अंकित से अलग होने के बाद मैं प्यार भरे अंदाज में फुसफुसा उठी थी, ‘‘अब तुम से दूर रहने का मन नहीं करता है, अंकित.’’

‘‘मेरा भी,’’ वह अपनी सांसों को नियंत्रित नहीं कर पा रहा था.

‘‘हम जल्दी शादी कर लेंगे?’’

‘‘हां.’’

‘‘मैं जैसी हूं, तुम्हें पसंद तो हूं न?’’

‘‘तुम मुझे बहुत ज्यादा पसंद हो.’’

‘‘तब मुझ पर अपने स्वभाव को बदलने के लिए परसों जोर क्यों डाल रहे थे?’’

‘‘तुम भूली नहीं हो उस बात को?’’ वह बेचैन नजर आने लगा.

‘‘नहीं,’’ मैं ने उसे सचाई बता दी.

उस ने अटकते हुए अपने दिल की बात कह दी, ‘‘मानसी, इस मामले में मैं तुम से झूठ नहीं बोलूंगा. तुम्हें किसी भी अन्य युवक के साथ ज्यादा खुला व्यवहार करते देख मेरा मन गलत तरह की कल्पनाएं करने लगता है. तुम्हारा जो व्यवहार मुझे अच्छा नहीं लगता, उसे छोड़ देने की बात कह कर मैं ने क्या कुछ गलत किया है?’’

‘‘इस मामले में तुम अब मेरे मन की बात ध्यान से सुनो, अंकित,’’ मैं भावुक लहजे में बोलने लगी, ‘‘तुम बहुत अच्छे हो… मेरे सपनों के राजकुमार जैसे सुंदर हो… मैं सचमुच तुम्हारी जीवनसंगिनी बनना चाहती हूं, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ उस की आंखों में तनाव के भाव उभर आए.

‘‘किसी दोस्त या सहयोगी के साथ तुम्हारे खुल कर हंसनेबोलने को ले कर मैं तुम्हारे साथ कभी झगड़ा नहीं करना चाहूंगी. शादी के बाद तुम मुझे कितना भी प्यार करो, मेरा जी नहीं भरेगा. बैडरूम में मेरा खुला व्यवहार देख कर मेरे चरित्र के बारे में अगर तुम ने गलत अंदाजे लगाए तो हमारी कैसे निभेगी? हमें एकदूसरे के ऊपर पूरा विश्वास…’’

‘‘मैं इतना कमअक्ल इंसान…’’

मैं ने भी उसे बीच में ही टोक कर अपने मन की बात कहना जारी रखा, ‘‘प्लीज, पहले मेरी पूरी बात सुन लो. आज अपने मम्मीपापा से झूठ बोल कर तुम से मिलने आई थी. तुम्हें अपना हाथ पकड़ने दिया… अपनी कमर में बांहें डाल कर चलने दिया. होंठों पर आज पहली बार किस करने की छूट दी. मैं ने वह खास प्रेमी होने का दर्जा आज तुम्हें दिया जो कल को मेरी मांग में सिंदूर भी भरेगा.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रही हो?’’ अंकित की आंखों में बेचैनी और उलझन के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘मैं यह कहना चाह रही हूं कि जब तक तुम अपनी आंखों से किसी युवक के साथ ऐसा कुछ होता न देखो… जब तक तुम मेरा कोई झूठ न पकड़ो, तब तक मेरे चरित्र पर शक करने की भूल मत करना.

‘‘मैं ने आज तक किसी गलत नीयत वाले युवक को दोस्त का दर्जा नहीं दिया है और न ही कभी दूंगी. फ्लर्ट करने के शौकीन इंसानों को मैं अपने से दूर रखना अच्छी तरह जानती हूं. माई लव, मैं स्वभाव से हंसमुख हूं, चरित्रहीन नहीं.’’

उस ने पहले मेरे आंसुओं को पोंछा और फिर संजीदा लहजे में बोला, ‘‘मानसी, मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा है. मेरी समझ में आ गया है कि तुम्हारे खुले व हंसमुख व्यवहार के कारण मेरे मन में हीनभावना पैदा हो गई थी जिस से मुझे मुक्ति पाना जरूरी है. मैं अब भविष्य में तुम्हारे ऊपर निराधार शक कर तुम्हारा दिल नहीं दुखाऊंगा.’’

‘‘सच कह रहे हो?’’

‘‘बिलकुल सच कह रहा हूं.’’

‘‘अब कभी मेरे ऊपर निराधार शक नहीं करोगे?’’

‘‘कभी नहीं.’’

‘‘आई लव यू वैरी मच.’’ मैं भावविभोर हो उस से लिपट गई.

‘‘आई लव यू टू.’’ उस ने मेरे होंठों से अपने होंठ जोड़े और मेरे तनमन को मदहोश करने वाले दूसरे चुंबन की शुरुआत कर दी थी.

Romantic Story

Gardening in Winter: सर्दियों में पौधों की देखभाल कैसे करें

Gardening in Winter: सर्दियों के मौसम में जिस तरह हमे ठंड से बचाव की जरुरत होती है वैसे ही पौधों को भी बचाव की जरुरत होती है. दरअसल, कई पौधे सर्दियों में अपनी वृद्धि को धीमा कर देते हैं या निष्क्रिय अवस्था dormant state में चले जाते हैं, जिसके कारण उन्हें कम पानी चाहिए होता है. तापमान कम होने और धूप कम निकलने के कारण मिट्टी से पानी का वाष्पीकरण evaporation धीमा हो जाता है और अगर ऐसे में हम उन्हें ज्यादा पानी दें तो पौधें मरने लगते हैं इसलिए  सर्दी के सीजन में भी पौधों को स्पेशल केयर की जरूरत होती है. यदि आप चाहते हैं कि आपके घर के बगीचे में लगे सारे पौधे ज्यादा ठंड होने पर भी

खिलखिलाते रहे तो इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. इसलिए आइये जानें कि आप ठंड  में अपने पौधों को कितना और अब पानी दें जिससे ये हमेशा हेल्‍दी और हरे भरे रहें.

किस समय देना चाहिए पानी

सर्दियों में ठंडी के मौसम में यदि शाम के समय पौधों को पानी देते हैं तो रात के समय मिट्टी में पानी के जमने की सम्भावना होती है, जिससे मिट्टी में उपस्थित होल्स बंद हो जाते हैं और पौधे की जड़ों तक अच्छी तरह हवा का आदान-प्रदान नहीं हो पाता है. ठंड के मौसम में दोपहर के समय या फिर जब दिन का तापमान 10°C से अधिक हो, तब पौधों को पानी देना सबसे सही रहता है. इस समय, पौधे की मिट्टी द्वारा पानी अच्छे से सोख लिया जाता है. ठण्ड के समय सूर्यास्त से कम से कम एक घंटे पहले तक पानी दिया जा सकता है, ताकि पानी मिट्टी में गहराई तक अवशोषित हो सके.

मिट्टी की जांच करे

पानी देने से पहले मिट्टी की नमी की जांच करना सबसे अच्छा तरीका है. अपनी उंगली को गमले की मिट्टी में 2-3 इंच तक डालकर देखें. अगर ज्यादा नमी है तो थोड़ा रुक कर पानी  दें अगर नमी कम है तो तुरंत पानी दें.

किन पौधों को कब दें पानी

मिर्च, नींबू, धनिया, पुदीना आदि कुछ पौधे ऐसे होते हैं, जिन्हें आपको 5 से 6 दिन में थोड़ा सा पानी दे देना चाहिए.

वहीं अगर गुलाब का पेड़ लगा है, तो 2 से 3 दिन में आप उसे थोड़ा पानी दें. गुलाब की रूट्स मोटी होती हैं, इसलिए उन्हें कम समय में पानी देते हैं तो ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता है.

वहीं मनी प्लांट या अन्‍य बेल वाले पौधों को आपको 10 से 15 दिनों में पानी देना चाहिए, इससे वह हरे-भरे बने रहते हैं.’

कम पानी चाहने वाले पौधे (जैसे: कैक्टस, सकुलेंट्स, स्नेक प्लांट, जीजी प्लांट) जब मिट्टी की ऊपरी 3-4 इंच परत पूरी तरह सूखी लगे तब पानी दें. सर्दी में   15-20 दिन में एक बार इन्हें पानी दें.

सामान्य पौधे (जैसे: इंडोर प्लांट, मनी प्लांट, तुलसी, गुड़हल) जब मिट्टी की ऊपरी 2 इंच परत सूखी लगे इन्हें तब पानी दें.. सर्दी में 15-20 दिन में एक बार इन्हें पानी की जरुरत होती है.

पानी देने का सही तरीका

अगर आपको ठंड के दिनों में अपने प्लांट्स को हरा-भरा देखना है तो उनमें हर रोज पानी नहीं डालना चाहिए. दरअसल, हर पौधे में पानी देने का अलग तरीका होता है. ऐसे में आप सर्दियों में एक या दो दिन छोड़कर ही पानी डालें. इसके अलावा पौधे की मिट्टी सूखी नजर आने पर भी पानी देना चाहिए. पौधों में पानी इस तरीके से दें कि वह पानी पत्तियों में ना ठहर जाएं बल्कि सीधे गमले में जाएँ वरना सर्दी में पानी के कारण पत्तियां गलने लगेंगी.

पौधे को धीरे-धीरे और गहराई से पानी दें, ताकि मिट्टी की पूरी गहराई तक पानी पहुंच सके.

पौधे के चारों ओर की मिट्टी को भी पानी दें.

सर्दियों में कीटों की जांच करें

सर्दियों में पौधे ओवरवाटरिंग के कारण तनाव में आ जाते हैं, जिससे वे कीटों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं. नियमित रूप से पौधों की पत्तियों और तनों की जांच करते रहें क्योंकि कीटों का प्रकोप बढ़ सकता है. अधिकांश छोटे कीट जैसे एफिड्स (Aphids), व्हाइटफ्लाई (Whitefly), और स्पाइडर माइट्स (Spider Mites) पत्तियों के निचले हिस्से में छिपते हैं. इन हिस्सों की नियमित जाँच करें.

कवर करें प्लांट्स

हमेशा सर्दी के दिनों में आपके पौधे अगर खुले में रखें हैं या फिर गार्डन है तो आपको उसके ऊपर किसी चीज से कवर जरूर करना चाहिए. इससे ठंडी हवा और ओस फूल और पत्तियों को मुरझाने और सूखने नहीं देंगे और आपके प्लांट एकदम ग्रीन नजर आएंगे. रात के समय में पौधों को हल्के कपड़े, पुआल या प्लास्टिक की चादर से ढकें. इस बात का ध्यान रखें कि कवर जमीन से पूरा सटा होना चाहिए, ताकि अंदर की गर्मी बाहर न निकले, क्योंकि रात के समय में पाला पड़ने की संभावना रहती है.

Gardening in Winter

Cooking Together: पतिपत्नी हफ्ते में 3-3 दिन खाना बनाने का काम बांट लें

Cooking Together: अब आप सोच रहे होंगे कि ये क्या बात है. अब क्या ऐसा भी होगा. अरे होगा नहीं, जनाब हो रहा है. आजकल हस्बैंड और वाइफ दोनों ही वर्किंग कपल हैं.  फिर ऐसे में पति  शाम को आकर टेबल पर पैर पसारकर बैठे और पत्नी ऑफिस से आते ही खाने के इंतज़ाम में लग जाये. ये किस पत्नी को अच्छा लगेगा.

आप ईमानदारी से बताएं कि क्या आप नहीं चाहती कि हफ्ते में कुछ दिन किचन की जिम्मेवारी पति की हो और ऐसा हो भी क्यों ना. आखिर आप दोनों ही शाम को काम से थक कर लौटते हैं. फिर आकर खाना बनाने की जिम्मेवारी पत्नी कि ही क्यों हो? आप भी तो पति के बराबर ही कमा रही है फिर आपको भी आराम क्यों न मिले?

इस पर क्या कहती है हार्वर्ड रिसर्च

हार्वर्ड रिसर्च में दावा: हर दिन पति के लिए किचन में समय बिताने वाली महिलाएं हैं कम खुशहाल. अध्ययन के मुताबिक, जो महिलाएं रोजाना खाना बनाने की जिम्मेदारी निभाती हैं, वे शादीशुदा जीवन में बोरियत महसूस करती हैं. वहीं, साथ मिलकर या बाहर का खाना पसंद करने वाले कपल्स ज्यादा खुश रहते हैं. इस शोध के लिए हार्वड के शोधकर्ताओं ने 12,000 विवाहित जोड़ों पर 15 साल तक नज़र रखी, उसके बाद यह निष्कर्ष निकाला है.

पति के लिए रोजाना खाना बनाने से क्यों नाखुश होती हैं महिलाएं

जब एक महिला रोज अपने पति के लिए खाना बनाती है, तो वह स्वतः ही “सेवा कर्मचारी” की भूमिका में आ जाती है. भले ही उसके पति ने कभी इसके लिए उसे न कहा हो. वह मनोवैज्ञानिक रूप से खुद को खाना बनाने के लिए जिम्मेदार मानने लगती है और घर में एक समान भागीदार की बजाय वह भोजन के माध्यम से “घर में अपनी जगह बनाने” वाली व्यक्ति की तरह महसूस करने लग जाती है. इसके अलावा रोजाना खाना बनाने के कारण पत्नी को ऊबन भी महसूस होने लगती है और एक समय के बाद उसे इस काम को करने में बिलकुल भी खुशी महसूस नहीं होती है और वह चिड़चिड़ा महसूस करने लगती है.

कपल्स को खुश रखती है साथ खाना बनाने की आदत

इस अध्ययन से यह बात पता चला है कि वे कपल्स सबसे ज्यादा खुशहाल जोड़े होते हैं जो या तो साथ मिलकर खाना बनाते हैं, बारी-बारी से खाना बनाते हैं, या पति रसोई संभालता है, या बस खाना बाहर से ऑर्डर करता है. इस शोध में सबसे दिलचस्प बात यह सामने आई है कि पुरुष तब भी ज़्यादा खुश रहते हैं जब उनकी पत्नियां उनके लिए लगातार खाना नहीं बनातीं.

आइये जाने पति पत्नी हफ्ते में 3 -3 दिन खाना बनाने का काम बांट लें तो इसके क्या फ़ायदे हैं.

पत्नी चूं चूं करना बंद कर देगी

मैं क्या पागल हूं जो ऑफिस से आते ही काम में लग जाओ. ये रोने लगभग हर महिला का है. वे खाना बनाती तो हैं लेकिन वे बड़ बड़ वाली रोटियां होती हैं जिन्हे पति भी खाना पसंद नहीं करता इसलिए पति को चाहिए वो पत्नी का रोना सुनने के बजाये खुद भी अपने हाथ हिलाएं इससे एक तो पत्नी की सुनने से बचेगा दूसरा पत्नी भी रिलैक्स रहेगी तो घर में सुकून बना रहेगा.

अपनी पसंद का खाना मिलेगा

पति है खाने पीने का शौकीन उसे लगता है छुट्टी वाले दिन तो कुछ डिफरेंट खाने को मिले. ये सोच कर वो youtube का पिटारा खोल कर बैठ जाता है और पत्नी से फरमाइश कर बैठता है कि यार आज तो कुछ अच्छा बनाकर खिला डॉन पूरा हफ्ता तुमने भागते दौड़ते बेकार कामचलाऊ खाना बनाकर खिलाया है.

बस फिर क्या था खाना तो मिला नहीं उल्टा पत्नी ने पुरे हफ्ते की भड़ास निकल दी. मुझे भी एक ही छुट्टी का दिन मिलता है आराम करने को इसमें साहब की फर्माइशे ही ख़तम नहीं होती. मैं आज कुछ नहीं बनाऊंगी बहार से मंगा लोन ये लगभग हर घर का हाल होता है. इसलिए ऐसा न हो कुछ अच्छे के चक्कर में घर के खाने से भी हाथ धोना पड़ें.

इससे तो अच्छा है छुट्टी के दिन खाने की जिम्मेवारी आप ले लें और बनायें अपनी पसंद का खाना. इससे पत्नी भी खुश होगी और आपको भी पसंद का खाना खाने को मिलेगा. दूसरे, आपकी पाककला में इजाफ़ा होगा सो अलग.

हर चीज organize अपने आप रहने लगेगी

जब पति रेगुलर किचन में खाना बनाएंगे तो उन्हें पता रहेगा कि कौन सी कहाँ होती है पर उसे वहीं पर कैसे वापस रखना है. क्योंकि अगली बार उन्हें वह चीज इस्तेमाल करनी है तो वे उसे सही तरीके से ही रखेंगे. इससे रोज रोज की किचकिच भी ख़तम होगी और यह दर भी कि आज पति किचन में गए हैं तो पुरे किचन का सामान बिखरकर ही आएंगे. अब विो ऐसा नहीं करेंगी क्योंकि उनको भी किचन में काम करने की आदत हो जाएगी.

दोनों बच्चों को समय दे पाएंगे

अगर पत्नी को भी खाना बनाने से कुछ दिन आराम मिलेगा तो वह भी फ्री होकर प्यूरी फॅमिली के साथ टाइम स्पेंड कर पाएंगी. वह भी किचन से निकलकर कुछ और कर पाएगी. दोनों साथ मिलकर बच्चों के साथ गेम अदि खेल पाएंगे और टीवी भी देख पाएंगे.

किचन का काम बांट लेने पर कपल ज्यादा खुश रहते हैं

दरअसल जब कोई महिला अपनी इच्छा से खाना नहीं बनाती है, बल्कि उसे जबरदस्ती ज़िम्मेदारी के रूप में खाना बनाना पड़ता है तो वह हताश और थकान महसूस करने लगती है, जिसका सीधा असर उसके रिश्ते पर पड़ता है. दरअसल जब एक महिला खुद को किचन से दूर रखकर अपने रिश्ते के अन्य पहलुओं और अपने करियर पर ज्यादा ध्यान देती है तो वह ज्यादा खुश रहती है और अपने पति के साथ खुशनुमा समय बिता पाती है, जिससे उसे रिश्ते में खुशी महसूस होती है. परिणामस्वरूप: वह अपने जीवन में ज़्यादा दिलचस्प, ज़्यादा खुश और ज्यादा संतुष्ट रहती है.

आत्मसंतुष्टि भी मिलेगी

खुद से कोई काम करके या म्हणत करके बनाये गए खाने में कोई कमी भी नज़र नहीं आती और साथ ही बच्चों और पत्नी को आये दिन नए व्यंजनों का स्वाद चखा कर आत्मसंतुष्टि की अनुभूति भी कर सकते हैं, तरीफ मिलेगी सो अलग.

पति क्यूँ ना बने आत्मनिर्भर

जब पत्नी मायके जाती है तो अक्सर पति परेशां हो जाते हैं कि  इतने दिन वे किचन का काम कैसे मैनेज करेंगे. रोज रोज बहार से खाना लाएं तो वह भी सेहत के लिए ठीक नहीं है. ऐसे में अगर पति को खाना बनाना आता हो तो पतियों में आत्मनिर्भरता भी आएगी. वे कभी मजबूर महसूस नहीं करेंगे. किसी भी परिस्थिति में मनचाहा भोजन बना कर मजे उड़ा सकते हैं.दोस्तों को बुला कर नाना प्रकार के व्यंजन बना कर परोसने पर वे खुश होंगे और उनके बीच अपनी एक अलग पहचान बनाई जा सकती है. पाक कला में माहिर होना कोई आसान नहीं है अतः दोस्त इस कला में माहिर होने के कारण आपको अलग सम्मान की नजर से देखते हैं.

Cooking Together

Hema Malini ने धर्मेंद्र के जाने के बाद प्रौपर्टी की जगह सनी देओल से मांगी यह चीज

Hema Malini: लीजेंड एक्टर धर्मेंद्र के निधन के बाद मानो एक युग समाप्त हो गया, पूरी जिंदगी सबको प्यार बांटने वाले धर्मेंद्र की मौत के बाद सिर्फ उनके घर वाले ही फूटफूट कर नहीं रोए बल्कि सलमान खान से लेकर कपिल शर्मा तक जो धर्मेंद्र को अपना फादर फिगर मानते थे उनके भी आंसू अभी तक नहीं थम रहे. सबको हमेशा प्यार बांटने वाले धर्मेंद्र सबसे ज्यादा अपनी दूसरी पत्नी हेमा मालिनी से बेइंतेहा प्यार करते थे, हेमा मालिनी को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए फिल्म शोले की शूटिंग के दौरान वह सब कुछ कर रहे थे जिससे हेमा मालिनी प्रभावित हो.

आखिर कार धर्मेंद्र अपने प्यार के इजहार में सफल रहे और 1980 में धर्मेंद्र हेमा मालिनी की शादी हो गई. तब से लेकर अब तक धर्मेंद्र और हेमा मालिनी के प्यार में कोई कमी नहीं आई .

हाल ही में जब लीजेंड धर्मेंद्र की मौत हुई तो सभी के मन में यह सवाल उठा की धर्म जी हेमा मालिनी को और उनकी बेटियों को प्रॉपर्टी में हिस्सा देंगे की नहीं.

लेकिन जातेजाते भी धर्म जी सभी बच्चों के साथ पूरा न्याय करते हुए सबको प्रॉपर्टी का बराबर हिस्सा देकर गए. लेकिन हेमा मालिनी ने प्रॉपर्टी और पैसा लेने से इनकार कर दिया और सनी देओल को अपने घर बुलाकर दिल की बात की जो दिल को छूने वाली थी. सनी देओल जो हेमा मालिनी की बहुत इज्जत करते हैं वह धर्म पाजी की मौत के बाद हेमा मालिनी से भी लगातार टच में रहे हेमा मालिनी ने सनी देओल से कहा मैंने उनसे कभी कोई उम्मीद नहीं की थी सिवाय प्यार के. वह मेरे लिए हमेशा से साथ रहे थे जब भी मुझे जरूरत थी वह मेरे साथ थे, इसलिए मेरी इच्छा है कि धर्म जी के जाने के बाद भी देओल परिवार का साथ उनके साथ वैसे ही बना रहे जैसे धर्म जी के रहते था.

हेमा ने सनी देओल से वादा लिया कि धर्म पाजी की तरह सनी भी हेमा और उनकी बेटियों का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे, हेमा के अनुसार उनको धर्मेंद्र की प्रॉपर्टी या पैसा कुछ नहीं चाहिए सिर्फ देओल परिवार का साथ और प्यार उनके परिवार को हमेशा मिलता रहे बस यही वादा चाहिए, क्योंकि सनी देओल अपने पिता से बेहद प्यार करते हैं इसलिए उन्होंने हेमा मालिनी की इच्छा का आदर करते हुए उनका पूरा सम्मान देते हुए हमेशा साथ निभाने का वादा किया.

Hema Malini

Career Planning: बच्चे पेरैंट्स के खिलाफ जा कर क्यों चुनते हैं खुद की राह

Career Planning: मांबाप चाहे इंसान के हों या पशुपक्षी के, वे अपने बच्चों को हमेशा सुरक्षित देखना चाहते हैं. मगर कुछ समय बाद यही बच्चे अपने घोंसले से बाहर निकल कर पंख फैलाते हुए खुले आसमान में उड़ जाते हैं क्योंकि यही दुनिया का दस्तूर है.

जब एक मां 9 महीने अपने बच्चे को कोख में रखती है, अपने खून से सींच कर उसे बड़ा करती है तो उस बच्चे के लिए हर मां ज्यादा प्रोटैक्टिव हो जाती है. उस की सांसें, उस की धड़कनें बच्चों में समा जाती हैं. उस के बाद बच्चा भले ही कितना भी बड़ा हो जाए वह मांबाप के लिए हमेशा छोटा ही रहता है.

प्यार और सुरक्षा

मगर बच्चों के लिए ज्यादा प्यार और सुरक्षा की भावना उस वक्त चिंता का विषय बन जाती है, जब वही बच्चे अपने मांबाप की सोच से अलग कुछ नया करने की राह पर निकलते हैं जबकि मांबाप अपने बच्चों को बड़े होने के बाद भी ऐसे प्रोफेशन में डालना चाहते हैं जहां उन का भविष्य सुरक्षित हो. जैसे लगभग हर मां अपनी बेटी को टीचर के जौब में या सरकारी नौकरियों में देखना चाहती है क्योंकि उन के हिसाब से यही नौकरियां उन की बेटियों का भविष्य सुरक्षित कर सकती हैं.

कोई भी मांबाप नहीं चाहते कि उन का बच्चा कोई रिस्क ले या नौकरी और पैसा कमाने के चक्कर में मांबाप की नजरों से दूर हो कर दूसरे शहरों में जा कर नौकरी करे. ऐसे में मांबाप बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के चक्कर में बच्चों को नई राह चुनने से रोकते हैं, जहां पर सफलता के चांसेस बहुत कम होते हैं, फिर चाहे वह ग्लैमर फील्ड में ऐक्टिंग हो, मौडलिंग हो या कोई और काम या फिर स्पोर्ट्स फील्ड में खिलाड़ी ही क्यों न बनना हो, हर बच्चे का सपना आसमान को छूने का होता है. नाम, शोहरत, पैसा कमाने का होता है. मगर आमतौर पर मांबाप अपने बच्चों को डाक्टर और इंजीनियर बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं.

बच्चों के सपने और ख्वाहिश

ऐसे में जो बच्चे अपने सपनों का गला घोंट कर मांबाप के कहे अनुसार नौकरी कर लेते हैं वे कुएं का मेंढक बन कर रह जाते हैं और एक ही दायरे में कैद हो जाते हैं और जो बच्चे मांबाप की मरजी के खिलाफ जा कर अपनी अलग राह चुनते हैं वे लोगों के लिए अपने पीछे बहुत कुछ छोड़ जाते हैं, एक अलग पहचान बना लेते हैं.

इस के लिए कई बार उन्हें भले ही लंबा या मुश्किल सफर तय करना पड़ता है लेकिन साथ में उन को यह सुकून जरूर होता है कि भले ही कामयाबी मिली या नाकामयाबी कम से कम कोशिश तो की. मन में यह मलाल नहीं रहता कि काश, मैं ने अपना सपना पूरा किया होता.

यों जिंदगी में कुछ बड़ा करने के लिए रिस्क तो लेना ही पड़ता है. वास्कोडिगामा ने अगर कोशिश नहीं की होती तो वह भारत की खोज कैसे करता. इसी तरह अगर कोलंबस ने सोचा न होता कि समुद्र के दूसरे किनारे क्या है तो वह कभी अमेरिका की खोज नहीं कर पाता.

सोच सही है मगर

मतलब यह कि जो इंसान जोखिम उठा कर अपनी राह पकड़ते हैं वही दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाते हैं और नई खोज कर पाते हैं. मांबाप की सोच अपनी जगह सही है, लेकिन कई बार अपना सपना पूरा करने के लिए मांबाप के खिलाफ जा कर भी कदम उठाने पड़ते हैं. उन की यह कोशिश अगर 20 से 25 उम्र के बीच में होती है तभी वह राजनीति, स्पोर्ट्स और ग्लैमर वर्ल्ड में अपनी खास जगह बना पाते हैं क्योंकि अगर वे कम उम्र में अपने कैरियर की शुरुआत करते हैं तब कहीं 7 या 8 साल में जा कर अपनी मंजिल पाते हैं.

महिला वर्ल्ड कप जीतने वाली महिला क्रिकेट टीम ने कई सालों तक प्रैक्टिस की. अगर उस दौरान उन के मांबाप अपने बच्चों को सपोर्ट नहीं करते तो क्रिकेट में कभी भी मिताली राज, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर, गावस्कर नहीं बन पाते. न ही बौक्सिंग में मेरी कौम या टैनिस में सानिया मिर्जा सफलता अर्जित कर अपनी जगह बना पातीं क्योंकि सफल क्रिकेटर मिताली राज बनने के लिए या सचिन तेंदुलकर बनने के लिए कई सारे बैट और बौल बिकते हैं, लेकिन जीतते वही हैं जिन में जीतने का जनून और जज्बा होता है.

डिलिवरी बौय बनना या अकाउंटेंट बनना आसान होता है, लेकिन शेफ या सीए बनना उतना ही मुश्किल होता है.

जरूरी है इमोशनल सपोर्ट

इसी तरह मुंबई में हर दिन हजारों, लाखों लोग ऐक्टर बनने की ख्वाहिश ले कर मुंबई में कदम रखते हैं, लेकिन सुपरस्टार वही बनता है जिस में कुछ कर दिखाने का जनून होता है. लेकिन अपने इस मुश्किल भरे सफर में अगर उन को मांबाप का साथ मिल जाता है तो यह मुश्किल सफर आसान हो जाता है लेकिन वहीं अगर अपनी जिंदगी जीने और अपनी नई राह चुनने में मांबाप की दुत्कार, मार या विरोध मिलता है तो कई बार मंजिल तो मिलती है, लेकिन सफर कांटों भरा हो जाता है.

अपनी राह खुद बनाई

बौलीवुड में कई ऐसे कलाकार हैं जो आज सफलता की चरम सीमा पर हैं. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें अपने घर वालों का सपोर्ट नहीं मिला.

मल्लिका शेरावत, कंगना रनौत ने अपने घर वालों के खिलाफ जा कर न सिर्फ सफलता हासिल की, बल्कि एक मुकाम भी हासिल किया. वहीं राजीव वर्मा जो एक जानेमाने ऐक्टर हैं, अपने पिता के विरोध की वजह से ऐक्टर बनने के बावजूद डिप्रैशन में चले गए.

रवि किशन जो बौलीवुड और भोजपुरी के जानेमन ऐक्टर हैं, उन को अपने पिता की मार से बचते हुए चुपचाप मुंबई भागना पड़ा क्योंकि रवि किशन के पिता अपने बेटे के अभिनय क्षेत्र में जाने के सख्त खिलाफ थे.

बौलीवुड में कई ऐसे ऐक्टर हैं जो आज बहुत सफल हैं लेकिन उन्हें अपने मांबाप की जिद के चलते कैरियर बनाने में मानसिक या आर्थिक सपोर्ट नहीं मिला और उन को अपने सपने पूरे करने के लिए घर से भागना पड़ा.

इस से यही निष्कर्ष निकलता है कि अगर कोई बच्चा अपने मांबाप के खिलाफ जा कर कुछ नया करने की ख्वाहिश रखते हैं तो मांबाप को उन का सपोर्ट करना चाहिए क्योंकि कई बार हमारे खुद के बच्चों में ऐसी प्रतिभा छिपी होती है जिस का हमें खुद ही ज्ञान नहीं होता. इस प्रतिभा का पता हमें उस वक्त चलता है जब हमारे खुद के बच्चे हम से विद्रोह कर समाज में अपना नाम कमाते हैं और उन के नाम से ही कई बार मांबाप को भी पहचान मिलती है,

फिर चाहे क्रिकेटर विराट कोहली, सचिन तेंदुलकर हों या सलमान, शाहरूख और माधुरी दीक्षित ही क्यों न, इन सभी मशहूर हस्तियों के मांबाप अपने बच्चों के नाम से पहचाने जाते हैं और मांबाप को भी उन पर गर्व है.

इसलिए अगर आप अपने बच्चों से प्यार करते हैं, तो एक बार उन पर भरोसा कर के जरूर देखें. आप का थोड़ा सा साथ और बच्चों पर विश्वास उन्हीं बच्चों को सफलता की चरम सीमा तक ले जाएगा.

Career Planning

Financial Tips: यंग हैं तो मांबाप का पैसा ही सबकुछ नहीं है

Financial Tips: नईनई जौब और पहली तारीख में अकाउंट में आता पैसा भला किसे अच्छा नहीं लगेगा. लेकिन मजा तब किरकिरा हो जाता है जब महीना खत्म होने से पहले ही सारी सैलरी खर्च हो जाती है और सोचने पर भी याद नहीं आता कि खर्चा कहां हुआ है जबकि घर का सारा खर्च तो मम्मीपापा कर रहे हैं फिर ऐसा मैं ने क्या खर्चा कर दिया?

अगर आप भी ऐसा ही महसूस कर रहे हैं, तो हम आप को बता दें ऐसा तब होता है जब हम पर कोई जिम्मेदारी नहीं होती, तो लगता है कि महंगा फोन ले लेते हैं, स्टारबग में कौफी पी लेते हैं, ब्रैंडेड जूते ले लेते हैं, दोस्तों पर खर्चा कर देते हैं. इस तरह जरूरत से ज्यादा खर्च और बिना प्लानिंग के इनवेस्टमैंट न कर पाने के कारण अंत में हाथ खाली रह जाता है.

इसलिए अगर नई जौब है और घर की कोई जिम्मेदारी नहीं है तो यह न समझें कि मांबाप का पैसा ही सब कुछ है क्योंकि आप को अभी घर का खर्चा नहीं है. खानेपीने का खर्चा नहीं करना पड़ रहा. लेकिन शादी के बाद जब अलग घर बसाएंगे तब तो सारे खर्च खुद ही करने पड़ेंगे. जब तक शादी करो तब तक हाथ में अच्छीखासी रकम होनी चाहिए. जो भी आप की सैलरी हो उस में से एक बड़ा हिस्सा बचा कर रखें.

नौकरी लगने के साथ ही सेविंग्स शुरू करें

यह न सोचें कि अभी तो नौकरी लगी ही है अभी से क्या पैसे बचाना. यह सोचेंगे तो कभी सेव नहीं कर पाएंगे. 20 से 25 की उम्र में सेविंग शुरू करने के कई फायदे हैं. अगर आप अभी से सेव करेंगे तो आप की लगाई छोटी रकम भी आप के रिटायरमेंट तक लाखों में हो जाएगी. जैसेकि 5 करोड़ का रिटायरमैंट कार्पस 20 की उम्र में ₹5,000/माह से संभव है, लेकिन 35 की उम्र में इस के लिए ₹20,000/माह से अधिक की आवश्यकता हो सकती है (रिटर्न दर के आधार पर).

कम उम्र से निवेश करने के चलते आप शेयर मार्केट के उतरचढ़ाव को अच्छी तरह से सीख लेते हैं और रिस्क लेने की स्थिति में भी ज्यादा होते हैं क्योंकि अभी आप पर फैमिली का कोई बर्डन नहीं होता. इस से आप को खर्चों और बचाने के बीच का संतुलन बैठाना भी आ जाता है.

इमरजैंसी फंड भी बनाना सही रहता है

आज एआई का जमाना है. कब किस की जौब चली जाए कहा नहीं जा सकता. अगर अचानक से जौब चली जाए, कोई मैडिकल प्रौब्लम आ जाए, शेयर्स में पैसा डूब जाए वगैरह तो ऐसी कोई भी दिक्कत होने पर इमरजैंसी के लिए जोड़ा  हुआ पैसा ही काम आता है. अपने 3 से 6 महीने के कुल मासिक खर्चों के बराबर राशि इमरजैंसी फंड में रखें.

उदाहरण के तौर पर यदि आप का मासिक खर्च ₹30,000 है, तो आप का लक्ष्य ₹90,000 से ₹1,80,000 के बीच होना चाहिए.

इनकम के और तरीके भी खोजें

अगर जौब में सैलरी कम है या आप के पास वीकेंड पर समय है तो एक ही काम करने के बजाए अपना दायरा बढ़ाएं. जैसे लेखन, ग्राफिक्स डिजाइन, कोडिंग, फ्रीलांसिंग या फिर कोई बिजनैस कर के पैसा कमाएं.

सैलरी से बड़ी न हो ईएमआई

अपने बेतुके खर्च जैसेकि महंगा वीडियोगेम, महंगा फोन, बाइक, गाड़ी, बड़ा घर जैसी चीज पर जब तक जरूरी न हो लोन न लें क्योंकि क्रेडिट कार्ड का बकाया, पर्सनल लोन और पेड लोन पर लगने वाला ब्याज आप की कमाई का बड़ा हिस्सा खा जाता है. आप के अधिकांश व्यक्तिगत कर्ज (जैसे क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन) पर लगने वाला ब्याज (12% से 36% तक) आप के निवेश से मिलने वाले औसत रिटर्न (8% से 12% तक) से बहुत अधिक होता है. इसलिए अगर आप का निवेश 10% कमा रहा है और आप का कर्ज 18% ले रहा है, तो आप हर साल 8% का शुद्ध नुकसान उठा रहे हैं. ऐसा करने से बचें और सोचसमझ कर उधार लें. अगर कर्ज लेना जरूरी हो, तो हमेशा सब से कम ब्याज दर वाला विकल्प चुनें.

हर खर्च से पहले बनाएं बजट

अकसर लोग बिना बजट बनाए खर्च करते हैं और बाद में पछताते हैं. इसलिए महीने की शुरुआत में ही जरूरतों की एक सूची बनाएं फिर उसी के अनुसार खर्च करें. इस से आप को पहले से यह पता रहेगा कि कहां और कितना खर्च करना है और कितना बचाना है. बजट सुनिश्चित करता है कि आप अपना पैसा उन चीजों पर खर्च करें जो आप के लिए सब से ज्यादा मायने रखती हैं नकि केवल आवेग में आ कर फुजूलखर्च करें. बजट कोई बंधन नहीं है, यह एक योजना है जो आप को वित्तीय स्वतंत्रता की ओर ले जाती है. इसे हर महीने की शुरुआत में कुछ देर लगा कर जरूर बनाएं.

साइलेंट किलर

आजकल डिजिटल सब्सक्रिप्शन एक साइलेंट किलर की तरह काम करते हैं. वे छोटे दिखते हैं, लेकिन अगर आप ध्यान न दें, तो वे आप की बचत पर बड़ा असर डालते हैं. नैटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, डिज्नी+हौटस्टार हम ले तो लेते हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या आप के पास उन सब को देखने का टाइम है भी या यों ही इन पर पैसा वेस्ट हो रहा है?

इसलिए यदि आप ने किसी सब्सक्रिप्शन का उपयोग पिछले 3 महीने में 3 बार से कम किया है, तो उसे तुरंत कैंसिल कर दें. यदि आप के पास कई ओटीपी है, तो उसे एक बंडल पैक में लेने पर विचार करें, जो अकसर सस्ता पड़ता है.

एक ही टोकरी में सारे अंडे न रखें

मतलब यह कि अपनी सारी सेविंग एक ही जगह पर मत लगाएं बल्कि उन्हें अलगअलग जगह पर इनवेस्ट करें जैसेकि सारे पैसे सोने में, एफडी में या शेयर बाजार में मत डालें. इक्विटी, डेबिट, गोल्ड या सरकारी योजनाओं में बैलेंस कर के निवेश करें क्योंकि यदि किसी एक सैक्टर (जैसे आईटी) या एक संपत्ति वर्ग (जैसे रियल एस्टेट) में मंदी आती है, तो आप के पोर्टफोलियो का केवल एक हिस्सा प्रभावित होगा. बाकी निवेश (जैसे सोना या डेट फंड) उस नुकसान को संतुलित कर सकते हैं.

अनावश्यक खर्चों को कम करें

अकसर हम छोटेछोटे खर्चों को नजरअंदाज कर देते हैं, जैसे  बारबार बाहर खाना, हर सुबह महंगे कैफे की कौफी लेना या औनलाइन शौपिंग. इन खर्चों को कम करें. घर से खाना बना कर ले जाएं और बाहर खाने की आदत को सीमित करें. औनलाइन शौपिंग में डिस्काउंट के चक्कर में अनावश्यक चीजें न खरीदें. औनलाइन फूड डिलीवरी शुल्क, बिना इस्तेमाल किए गए जिम सदस्यता शुल्क, इस तरह के हर खर्चे को ट्रैक करें और महीने के अंत में देखें कि कहां कटौती की जा सकती है.

युवाओं में बचत से ही सेल्फ कॉन्फिडेंस आता है

युवाओं में बचत से आत्मविश्वास (self-confidence) बढ़ता है क्योंकि यह उन्हें आर्थिक सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और भविष्य के लिए तैयारी का एहसास कराता है, जिससे वे चुनौतियों का सामना करने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में अधिक सक्षम महसूस करते हैं, जो उनके आत्म-सम्मान और निर्णय लेने की क्षमता को मजबूत करता है.

इसलिए अगर नई जॉब है और घर की कोई जिम्मेवारी नहीं है तो ये ना समझों कि माँ बाप का पैसा ही सब कुछ है.क्यूंकि आपको अभी घर का खर्चा नहीं करना पढ़ रहा. खाने पीने का खर्चा नहीं करना पड़ रहा. लेकिन शादी के बाद जब अलग घर बसाओगे तब तो सारे खर्च खुद ही करने पड़ेंगे.  जब तक शादी करो तब तक हाथ में अच्छी खासी रकम होनी चाहिए. जो भी आपकी सैलेरी हो उसमे से एक बड़ा हिस्सा बचाकर रखों. बचत करने से आपका सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ता है आइये जाने कैसे-

लाइफ के लिए सिक्योरिटी की फीलिंग आती है

जब आप बचत करते हैं तो आपको पता होता है कि किसी भी अचानक आ जाने वाले खर्च के लिए आपके पास पैसा है जैसे कि अगर कोई मेडिकल इमरजेंसी आ गई हैं, नौकरी छूट गई हैं या फिर जेल हो गई है किसी गलत केस में फंस गए हैं तो भी आपके पास पैसा है और आप कुछ समय तक बैठकर अपना गुजरा कर सकते हैं इससे एक अलग ही मानसिक शांति मिलती हैं.

आत्मनिर्भर बनते हैं आप

बचत करने से आपको अपने छोटे बड़े खर्चों के लिए माँ बाप की कमाई का मुँह देखना नहीं पड़ता. आप किसी पर निर्भर नहीं है. अगर कहीं बाहर घूमने जाने का मन है तो किसी को जवाब नहीं देना है आपने इसके लिए बचत करके अपना पैसा खुद जोड़ा है तो कोई आपको मना नहीं करेगा. अगर iphone के लिए क्रेजी हैं तो बचत करके कुछ महीनों में ले सकते है.

फ्रीडम और कंट्रोल मिलता है 

बचत आपको अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण देती है. आपको हर छोटे खर्च के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, जिससे स्वतंत्रता की भावना आती है.

स्मार्ट डिसीजन मेकिंग आती है

बचत की प्रक्रिया में व्यक्ति वित्तीय योजना बनाना और समझदारी से खर्च करना सीखता है. ये कौशल जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी बेहतर निर्णय लेने में मदद करते हैं.

‘मैं कर सकता हूं’ की मानसिकता आती है

बचत उन्हें यह विश्वास दिलाती है कि वे अपनी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं, जिससे उनकी मानसिकता ‘मैं कर सकता हूँ’ (I can do it) वाली हो जाती है, न कि ‘मैं नहीं कर सकता’.

Financial Tips

Career Advice: मनचाही जौब पिकअप करें लेकिन सैलरी की चिंता न करें

Career Advice: कनफ्यूशियस ने कहा था, “वह नौकरी चुनें जो आप को पसंद हो और आप को अपने जीवन में एक दिन भी काम नहीं करना पड़ेगा.”

इस का मतलब है कि जब आप किसी ऐसे काम में शामिल होते हैं जिसे आप पसंद करते हैं, तो वह काम थकाऊ या भारी नहीं लगता, बोझिल महसूस नहीं होता क्योंकि मनचाहे काम में हर कदम का मजा आता है. यह बारिश में बिना भीगे चलने जैसा है.

लेकिन कई बार जब हम जौब करने जाते हैं, तो अपनी मनचाही जौब का औफर होते हुए भी हम उसे जौइन नहीं कर पाते हैं क्योंकि वहां सैलरी कम होती है. लेकिन इस का नतीजा यह होता है कि वहां काम में मन नहीं लगता और उस जौब से हम सटिस्फाई नहीं हो पाते.

इस के विपरीत जो काम आप करना चाहते हो उस में सैलरी कम हो सकती है लेकिन वह काम आप के मन का है तो वहां ग्रोथ के चांस आप को ज्यादा मिलेंगे. जैसेकि अगर आप की कदकाठी अच्छी है और आप को होटल में अच्छे पैकेज के साथ जौब औफर हुई हो पर वह काम आप के मन का नहीं है क्योंकि आप तो किसी फोटोग्राफर के यहां असिस्टेंट बनना चाहते हैं, तो फिर इस में इतना क्या सोचना. सैलरी तो ऐक्सपीरियंस से बढ़ जाएगी लेकिन मनचाहा काम करने का मौका दोबारा शायद न मिलें.

आप को 1-2 साल मनचाहा काम करना चाहिए उस के बाद तय करना चाहिए कि अब मुझे यह बढ़ी हुई सैलरी चाहिए और मनचाहे काम में यह सैलरी नहीं मिलेगी. इस के बाद आराम से सोच कर तय करें कि आप को क्या करना है.

अगर आप को लगता है कि इसी लाइन में आप अपने मनचाहे पैसे कमा सकते हैं, तो ठीक है वरना दूसरे जगह जौब मिल रही है तो वहां जौइन करें. लेकिन पहली और दूसरी जौब यह सोच कर पिक न करें कि आप की पर्सनैलिटी और एजुकेशन रिकौर्ड के हिसाब से यही सही है.

बहुत सारी कंपनी सिर्फ एजुकेशन रिकौर्ड के हिसाब से और प्रेजेंटेशन के हिसाब से जौब देती हैं. लेकिन काम आप के मन का नहीं होता. इस समय आप लर्न पर फोकस करें अर्न पर नही. लर्निंग मोर इंपोर्टेंट है अर्निंग मोर इंपोर्टेंट नहीं है. आप को एक बार काम का ऐक्सपीरियंस हो जाएगा तो सैलरी भी बढ़ जाएगी या फिर आप को समझ आ जाएगा कि यह जौब आप के लिए नहीं है. लेकिन जब तक कर रहे हैं पूरी मेहनत के साथ करें. आप को क्लियर हो जाएगा कि आप आगे क्या करने चाहते हैं. इसी में आगे बढ़ना चाहते हैं या फिर कुछ करना है

मनचाही नौकरी पाने के फायदे

लर्न नौट अर्न कौंसेप्ट : आज आप जो ज्ञान और कौशल प्राप्त कर रहे हैं, वह कल आप की मार्केट वैल्यू को बढ़ाएगा. एक बार जब आप किसी क्षेत्र के विशेषज्ञ बन जाते हैं, तो भविष्य में उच्च वेतन और बेहतर अवसर अपनेआप मिलने लगते हैं. यह एक निवेश की तरह है. आप अभी छोटे रिटर्न स्वीकार करते हैं ताकि भविष्य में बड़े रिटर्न मिल सकें.

एक छोटी कंपनी जहां सैलरी कम हो वहां सीखने का माहौल काफी अच्छा होता है. वहां गलतियां करना और नई चीजें आजमाना अकसर स्वीकार्य होता है. यहां आप नएनए प्रयोग कर सकते हैं और आगे बढ़ने के नए नए रास्ते अपना सकते हैं.

सैटिसफैक्शन और हैप्पीनैस

आप को भले ही पैसे थोड़े कम मिल रहे हों लेकिन जो भी आप कर रहे हैं उसे कर के खुश हैं, तो यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि जब आप वह काम करते हैं जो आप को पसंद है तो आप अपने काम से अधिक संतुष्ट और खुश रहेंगे. यह भावना आप को जीवन में और अधिक खुशी दे सकती है.

काम करने की इंस्पैरेशन मिलती है

जब आप के मन का काम होता है तो उसे करने के लिए इंस्पैरेशन मिलती है. आप अपने काम में आगे बढ़ने के लिए खुद ही कोशिश करते हैं और सफल प्रयास करते रहते हैं. यहां आप को किसी को आगे बढ़ने और मेहनत करने के लिए बोलना नहीं पड़ता.

परफौर्मेंस भी बैटर

एक खुश और प्रेरित कर्मचारी स्वाभाविक रूप से बेहतर प्रदर्शन करता है. आप के काम की गुणवत्ता में सुधार होगा और आप एक बेहतर परिणाम प्राप्त करने में सक्षम होंगे.

मैंटल हैल्थ

जब आप ऐसा काम करते हैं जो आप को खास पसंद नहीं है तो उसे करने में आप को उलझन होती है और आप उसे बोझ समझ कर करते हैं. लेकिन जब आप अपनी पसंद का काम करते हैं तो आप को खुशी महसूस होती है, काम का सारा तनाव और थकान भी दूर हो जाती है.

जौब की स्टैबिलिटी

जब आप काम का आनंद लेते हैं, तो आप कम तनावग्रस्त होते हैं. नापसंद काम के विपरीत मनचाहा काम आप को मानसिक रूप से थकाता नहीं, जिस से आप लंबे समय तक उसी कैरियर में बने रहते हैं. इस के परिणामस्वरूप जौब टर्नओवर (बारबार नौकरी बदलना) कम होता है, जो कैरियर को एक मजबूत आधार देता है.

ग्रोथ के चांस

आप अपनी मनचाही फील्ड में सिर्फ काम ही नहीं करते, बल्कि मैस्टेरी हासिल करना चाहते हैं. यह आंतरिक इच्छा आप को लगातार सीखने, प्रशिक्षित होने और नए कौशल (स्किल्स) विकसित करने के लिए प्रेरित करती है. इस से आप को ग्रोथ करने के चांस ज्यादा मिलते हैं.

वर्क लाइफ बैलेंस कर सकते हैं

जब आप के मन का काम होता है तो आप को काम करने में मजा आता है और उस काम में आने वाली चुनौतियों को भी आप झेल लेते हैं. उस का तनाव भी आप घर नहीं लाते हैं क्योंकि वहां आने वाली प्रौब्लम को आप अपनी मरजी और खुशी से फेस कर रहे होते हैं.

सैलरी कम है तो कैसे मैनेज करें

अपने खर्चों को नियंत्रित करें : यदि आप की मनचाही नौकरी की सैलरी कम है, तो आप को अपने खर्चों को नियंत्रित करने और एक बजट बनाने की आवश्यकता होगी.

स्किल्स को बढ़ाना

अपनी मनचाही फील्ड में अपनी स्किल को लगातार बेहतर बनाते रहें. इस से आप को भविष्य में बेहतर सैलरी वाली भूमिकाएं पाने में मदद मिल सकती है. ऐसे नए कौशल सीखें जो आप को अपनी वर्तमान नौकरी में बेहतर सैलरी या प्रमोशन दिला सकें.

साइड बिजनैस या जौब शुरू कर सकते हैं

अगर आप को सैलरी कम लग रही है तो आप साइड बाई साइड कोई और काम भी कर सकते हैं. जैसेकि आप कोचिंग में पढ़ा सकते हैं, डांस क्लास ले सकते हैं, अकाउंट का काम कर सकते हैं.

आर्थिक वृद्धि

शुरुआत में सैलरी कम हो सकती है, लेकिन उत्कृष्टता और विशेषज्ञता के कारण आप भविष्य में अधिक मूल्यवान बन जाते हैं और अंततः आप को बेहतर सैलरी और अवसर मिलते हैं जो केवल पैसे के लिए काम करने वाले को नहीं मिलते.

 क्रेडिट कार्ड और लोन से दूर रहें

यदि सैलरी कम है, तो अनावश्यक कर्ज (खासकर क्रेडिट कार्ड का महंगा ब्याज) आप के बजट को बरबाद कर सकता है.

छोटे निवेश शुरू करें

अगर आप थोड़ा भी बचा पा रहे हैं, तो उसे एफडी, आरडी या कम जोखिम वाले म्यूचुअल फंड (जैसे एसआईपी) में निवेश करें. चक्रवृद्धि ब्याज की शक्ति लंबी अवधि में आप की मदद करेगी.

Career Advice

Winter Glowup Formula : सोनी सब स्टार्स का सीक्रेट्स कैमरा रेडी लुक

Winter Glowup Formula: ठंड का मौसम आप की त्वचा से जरूरी नमी आसानी से छीन सकता है और सर्दियों में त्वचा संबंधी समस्याएं शुरू हो सकती हैं.

जैसेजैसे सर्दी बढ़ती है, ठंडी हवाएं और आरामदायक शामों के साथ एक आम समस्या भी सामने आने लगती है- सूखी, पपड़ीदार और थकी हुई त्वचा.

शूटिंग के लंबे घंटे, भारी मेकअप और बाहरअंदर के बदलते तापमान के कारण टीवी कलाकारों के लिए स्किन केयर और भी जरूरी हो जाता है क्योंकि उन की रोजमर्रा की दिनचर्या कैमरा रेडी, हैल्दी स्किन पर निर्भर करती है. इस सीजन में सोनी सब के कलाकार दीक्षा जोशी, अक्षया हिंदालकर, श्रेनु पारिख बता रही हैं कि वे कौनकौन सी सावधानीपूर्ण रूटीन, आसान आदतें और सुकून देने वाली विंटर स्किन केयर टिप्स अपनाती हैं, जो उन्हें ठंड में भी ग्लो बनाए रखने में मदद करती है.

सोनी सब के कलाकारों का विंटर स्किन केयर टिप्स

यहां हम आप को सोनी सब के 3 ऐक्ट्रैस के ब्यूटी हैक्स के बारे में बताएंगे, जिस से उन की त्वचा सर्दियों में भी चमकदार दिखती है.

तो आइए, सब से पहले बात करते हैं ऐक्ट्रैस दीक्षा जोशी की जो पुष्पा इंपोसिबल में दीप्ति की भूमिका निभा रही हैं और इस बिजी शैड्यूल में भी वे अपनी स्किन केयर कैसे करती हैं.

स्किन केयर रिचुअल की तरह

टीवी ऐक्ट्रैस दीक्षा जोशी का कहना है, “जब आप रोज शूट करते हैं, तो मौसम और तनाव का असर सब से पहले स्किन पर दिखता है. सर्दियों में मैं स्किन केयर को एक छोटी सी रिचुअल की तरह लेती हूं नकि किसी जल्दी में किए गए काम की तरह. मैं एक जैंटल क्लींजर से शुरुआत करती हूं, फिर हाइड्रेटिंग सीरम लगाती हूं और उस के बाद एक रिच मोइस्चराइजर से सब कुछ सील कर देती हूं ताकि मेकअप के नीचे त्वचा टाइट न लगे. मैं हमेशा अपनी वैनिटी में फेशियल मिस्ट और लिपबाम रखती हूं क्योंकि स्टूडियो लाइट्स और एसी इस मौसम में त्वचा को बहुत ड्राई कर देते हैं.”

मेरे लिए विंटर स्किन केयर अनुशासन से शुरू

वहीं ऐक्ट्रैस पुष्पा इंपोसिबल में राशि की भूमिका निभा रही अक्षया हिंदालकर कहती हैं,“लोग सोचते हैं कि स्किन केयर का मतलब महंगे प्रोडक्ट्स हैं, लेकिन मेरे लिए विंटर स्किन केयर अनुशासन से शुरू होता है. मैं दिनभर गुनगुना पानी पीती हूं, मौसमी फल खाती हूं और शूट खत्म होते ही मेकअप उतार देती हूं, चाहे रात में कितनी भी देर हो जाए. ठंड में मैं क्रीमी क्लींजर और थोड़ा मोटा मोइस्चराइजर इस्तेमाल करती हूं अन्यथा मेरी त्वचा खिचीखिची लगती है. मैं हमेशा सनस्क्रीन लगाती हूं, भले ही ज्यादातर शूट इनडोर हो. लाइट्स और धूप दोनों का असर हमारी सोच से ज्यादा होती है. मेरी पसंदीदा विंटर रिचुअल है. रात को कुछ बूंदें फेशियल औयल की लगा कर चेहरे की मसाज करना. इस से दिनभर की थकान उतर जाती है और सुबह त्वचा नरम और शांत महसूस होती है.”

सर्दियों में स्किन केयर मेरे लिए नौन नेगोशिएबल है

‘गाथा शिव परिवार की गणेश कार्तिकेय’ में पार्वती की भूमिका निभा रही टीवी ऐक्ट्रैस श्रेणु पारिख कहती हैं,“किरदार निभाने में घंटों भारी कौस्ट्यूम और मेकअप में रहना पड़ता है, इसलिए खासकर सर्दियों में स्किन केयर मेरे लिए नौन नेगोशिएबल है. शूट से पहले मैं हाइड्रेटिंग टोनर और बैरियर स्ट्रेंथनिंग मोइस्चराइजर से स्किन प्रेप करती हूं ताकि लेयर्स के नीचे त्वचा पैची या इरिटेटेड न हो. पैकअप के बाद मैं डबल क्लींजिंग रूटीन फौलो करती हूं ताकि हर तरह का मेकअप और प्रदूषण पूरी तरह हट जाएं. मेरे लिए सर्दियां मतलब धीरे चलो, अपनी त्वचा की जरूरतें सुनो और छोटेछोटे लेकिन नियमित प्रयास करो.”

इन टीवी ऐक्ट्रैस की तरह आप भी विंटर सीजन में स्किन केयर अगर अनुशासन से करेंगी तो आप की स्किन भी हाइड्रेटेड और ग्लो करेगी. तो क्यों न अभी से स्किन केयर  के ये खास सीक्रेट्स अपनाएं.

Winter Glowup Formula

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