DIWALI 2019: फैमिली के साथ ऐसे मनाएं फेस्टिवल

रोशनी का त्योहार दीवाली हो या कोई और उत्सव, जब तक 10-20 लोग मिल कर धूम न मचाएं आनंद नहीं आता. सैलिब्रेशन का मतलब ही मिल कर खुशियां मनाना और मस्ती करना होता है. पर मस्ती के लिए मस्तों की टोली भी तो जरूरी है.  आज बच्चे पढ़ाई और नौकरी के लिए घरों से दूर रहते हैं. बड़ेबड़े घरों में अकेले बुजुर्ग साल भर इसी मौके का इंतजार करते हैं जब बच्चे घर आएं और घर फिर से रोशन हो उठे. बच्चों से ही नहीं नातेरिश्तेदारों और मित्रों से मिलने और एकसाथ आनंद उठाने का भी यही समय होता है.

सामूहिक सैलिब्रेशन बनाएं शानदार

पड़ोसियों के साथ सैलिब्रेशन:  इस त्योहार आप अपने सभी पड़ोसियों को साथ त्योहार मनाने के लिए आमंत्रित करें. अपनी सोसाइटी या महल्ले के पार्क अथवा खेल के मैदान में पार्टी का आयोजन करें. मिठाई, आतिशबाजी और लाइटिंग का सारा खर्च मिल कर उठाएं. जब महल्ले के सारे बच्चे मिल कर आतिशबाजी का आनंद लेंगे तो नजारा देखतेही बनेगा. इसी तरह आप एक शहर में रहने वाले अपने सभी रिश्तेदारों और मित्रों को भी सामूहिक सैलिब्रेशन के लिए आमंत्रित कर सकते हैं.

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डांस पार्टी:  भारतीय वैसे भी डांस और म्यूजिक के शौकीन होते हैं तो क्यों न प्रकाशोत्सव के मौके को और भी मस्ती व उल्लास भरा बनाने के लिए मिल कर म्यूजिक डांस और पार्टी का आयोजन किया जाए.  पूरे परिवार के साथसाथ पड़ोसियों को भी इस में शरीक करें ताकि यह उत्सव यादगार बन जाए. बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों के चाहें तो अलगअलग ग्रुप बना सकते हैं ताकि उन के मिजाज के अनुसार संगीत का इंतजाम हो सके. बुजुर्गों के लिए पुराने फिल्मी गाने तो युवाओं के लिए आज का तड़कताभड़कता बौलीवुड डांस नंबर्स, अंत्याक्षरी और डांस कंपीटिशन का भी आयोजन कर सकते हैं.

स्वीट ईटिंग कंपीटिशन

प्रकाशोत्सव सैलिब्रेट करने का एक और बेहतर तरीका है कि तरहतरह की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएं. मसलन, स्वादिष्ठ मिठाईयां बनाने की प्रतियोगिता, कम समय में ज्यादा मिठाई खाने की प्रतियोगिता, खूबसूरत रंगोली बनाने की प्रतियोगिता आदि. आप चाहें तो जीतने वाले को इनाम भी दे सकते हैं. इतना ही नहीं, कौन जीतेगा यह शर्त लगा कर गिफ्ट की भी मांग कर सकते हैं.

वन डे ट्रिप

आप त्योहार का आनंद अपने मनपसंद  शहर के खास टूरिस्ट स्थल पर जा कर भी ले सकते हैं. सभी रिश्तेदार पहले से बुक किए गए गैस्ट हाउस या रिजौर्ट में पहुंच कर अलग अंदाज में त्योहार मनाएं और आनंद उठाएं. त्योहार मनाने का यह अंदाज आप के बच्चों को खासतौर पर पसंद आएगा.

तनहा लोगों की जिंदगी करें रोशन 

आप चाहें तो त्योहार की शाम वृद्घाश्रम या अनाथालय जैसी जगहों पर भी बिता सकते हैं और अकेले रह रहे बुजुर्गों या अनाथ बच्चों की जिंदगी रोशन कर सकते हैं. पटाखे, मिठाई और कैंडल्स ले कर जब आप उन के बीच जाएंगे और उन के साथ मस्ती करेंगे तो सोचिए उन के साथसाथ आप को भी कितना आनंद मिलेगा. जरा याद कीजिए ‘एक विलेन’ फिल्म में श्रद्घा कपूर के किरदार को या फिर ‘किस्मत कनैक्शन’ फिल्म में विद्या बालन का किरदार. ऐसे किरदारों से आप अपनी जिंदगी में ऐसा ही कुछ करने की प्रेरणा ले सकते हैं. इनसान सामाजिक प्राणी है. अत: सब के साथ सुखदुख मना कर ही उसे असली आनंद मिल सकता है.

सामूहिक सैलिब्रेशन के सकारात्मक पक्ष

खुशियों का मजा दोगुना

जब आप अपने रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों के साथ सामूहिक रूप से त्योहार मनाते हैं तो उस की खुशी अलग ही होती है. घर की सजावट और व्हाइटवाशिंग से ले कर रंगोली तैयार करना, मिठाई बनाना, शौपिंग करना सब कुछ बहुत आसान और मजेदार हो जाता है. हर काम में सब मिल कर सहयोग करते हैं. मस्ती करतेकरते काम कब निबट जाता है, पता ही नहीं चलता. वैसे भी घर में कोई सदस्य किसी काम में माहिर होता है तो कोई किसी काम में. मिल कर मस्ती करते हुए जो तैयारी होती है वह देखने लायक होती है.

मानसिक रूप से स्वस्थ त्योहारों के दौरान मिल कर खुशियां मनाने का अंदाज हमारे मन में सिर्फ उत्साह ही नहीं जगाता वरन हमें मानसिक तनाव से भी राहत देता है.  यूनिवर्सिटी औफ दिल्ली की साइकोलौजी की असिस्टैंट प्रोफैसर, डा. कोमल चंदीरमानी कहती हैं कि त्योहारों के समय बड़ों का आशीर्वाद और अपनों का साथ हमें ऊर्जा, सकारात्मक भावना और खुशियों से भर देता है. समूह में त्योहार मनाना हमारे मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है. इस से हमारा सोशल नैटवर्क और जीवन के प्रति सकारात्मक सोच बढ़ती है, जीवन को आनंद के साथ जीने की प्रेरणा मिलती है.  हाल ही में अमेरिका में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि जिन लोगों का समाजिक जीवन जितना सक्रिय होता है उन के मानसिक रोगों की चपेट में आने की आशंका उतनी ही कम होती है. शोध के अनुसार, 15 मिनट तक किया गया सामूहिक हंसीमजाक दर्द को बरदाश्त करने की क्षमता को 10% तक बढ़ा देता है.  अपने होने का एहसास: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अकसर हमें अपने होने का एहसास ही नहीं रह जाता. सुबह से शाम तक काम ही काम. मिल कर त्योहार मनाने के दौरान हमें पता चलता है कि हम कितने रिश्तेनातों में बंधे हैं. हम से कितनों की खुशियां जुड़ी हैं. तोहफों के आदानप्रदान और मौजमस्ती के बीच हमें रिश्तों की निकटता का एहसास होता है. हमें महसूस होता है कि हम कितनों के लिए जरूरी हैं. हमें जिंदगी जीने के माने मिलते हैं. हम स्वयं को पहचान पाते हैं. जीवन की छोटीछोटी खुशियां भी हमारे अंदर के इनसान को जिंदा रखती हैं और उसे नए ढंग से जीना सिखाती हैं.

बच्चों में शेयरिंग की आदत

आप के बच्चे जब मिल कर त्योहार मनाते हैं तो उन में मिल कर रहने, खानेपीने और एकदूसरे की परवाह करने की आदत पनपती है. वे बेहतर नागरिक बनते हैं.

बच्चे दूसरों के दुखसुख में भागीदार बनना सीखते हैं. उन में नेतृत्व की क्षमता पैदा होती है. घर के बड़ेबुजुर्गों को त्योहार पर इकट्ठा हुए लोगों को अच्छी बातें व संस्कार सिखाने और त्योहार से जुड़ी परंपराओं और आदर्शों से रूबरू कराने का मौका मिलता है.

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गिलेशिकवे दूर करने का मौका 

उत्सव ही एक ऐसा समय होता है जब अपने गिलेशिकवों को भूल कर फिर से दोस्ती की शुरुआत कर सकता है. त्योहार के नाम पर गले लगा कर दुश्मन को भी दोस्त बनाया जा सकता है. सामने वाले को कोई तोहफा दे कर या फिर मिठाई खिला कर आप अपनी जिंदगी में उस की अहमियत दर्शा सकते हैं. सामूहिक सैलिब्रशन के नाम पर उसे अपने घर बुला कर रिश्तों के टूटे तार फिर से जोड़ सकते हैं.

कम खर्च में ज्यादा मस्ती

जब आप मिल कर त्योहार मनाते हैं, तो आप के पास विकल्प ज्यादा होते हैं. आनंद व मस्ती के अवसर भी अधिक मिलते हैं. इनसान सब के साथ जितनी मस्ती कर सकता है उतनी वह अकेला कभी नहीं कर सकता. एकल परिवारों के इस दौर में जब परिवार में 3-4 से ज्यादा सदस्य नहीं होते, उन्हें वह आनंद मिल ही नहीं पाता जो संयुक्त परिवारों के दौर में मिलता था. सामूहिक सैलिब्रेशन में मस्ती और आनंद ज्यादा व खर्च कम का फंडा काम करता है.

कभी भी इन कारणों से न करें शादी

अक्सर बहुत सी लड़कियों की शादी बहुत जल्दी हो जाती हैं और बाद में पछताती हैं लेकिन ये वो शादी अपनी मर्जी से नहीं करती हैं. किसी न किसी की कोई मजबूरी होती है तभी वो जल्दी शादी के बंधन में बंध जाती हैं बिना कुछ सोचे, बिना कुछ समझे अपनी जिंदगी की खुशियों पर लगाम लगाकर वो आगे बढ़ जाती हैं और सोचती हैं कि शायद यहीं उनकी तकदीर थी, लेकिन अगर आप शादी कर रहीं हैं तो कभी भी उन कारणों से शादी न करें जिससे कारण आपको बाद में अफसोस हो. ऐसे कई कारण होतें है…

फैमिली प्रेशर

अक्सर परिवार वाले शादी का आप पर दबाव बनाते हैं कि अब तो शादी कर लेनी चाहिए या फिर मां-बाप को लगता है कि पता नहीं इससे अच्छा लड़का कब मिलेगा… ये लड़का बहुत अच्छा है बेटा तू शादी कर ले ये सब कह कर बेटी की शादी कर देते हैं और बेटी भी मां-बाप की बात में आकर शादी कर लेती है…फिर बाद में पछतावा होता है क्योंकि आप शादी दबाव में आकर करती हैं और आप उस वक्त शादी के लिए रेडी नहीं रहती.भले ही रिश्ता निभ जाए लेकिन बहुत कुछ है जिसके लिए आपको अफसोस होगा.

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उमर निकली जा रही है…                                   

अक्सर फैमिली वाले ये कहकर भी शादी के लिए दबाव बनाते हैं कि अरे उमर निकली जा रही है अब नहीं करेगी तो कब करेगी शादी. 25 की हो चली है भला इसके बाद कौन करेगी शादी. 25 के बाद तो लड़का भी नहीं मिलता है इसलिए कर ले शादी लेट शादी करेगी तो आगे के लिए दिक्कत हो जाएगी ये सब कह कर लड़की की शादी कर देते मां-बाप तो ऐसा कभी भी न करें बल्कि लड़की को पूरा मौका दें जब वो तैयार हो तभी शादी करें.

रिश्तेदारों का दबाव-

कभी-कभी मां-बाप तो समझ जाते हैं लेकिन कुछ रिश्तेदार ऐसे होते हैं जो लकड़ी के मां-बाप पर दबाव बनाते हैं कि बहुत अच्छा लड़का है इसकी शादी कर दीजीए भला इससे अच्छा परिवार अब कहां मिलेगा ज्यादा सोचिए मत और शादी फिक्स कर दिजीए…ऐसी तमाम बातें कहकर रिश्तेदार भी दबाव बनाते हैं…. तो सावधान हो जाइए..ऐसा कभी  न करें वरना आप खुद पछताएगी.

ब्रेकअप से उभरने के लिए-

अक्सर लड़कियों का ब्रेकअप होता है तो वो बहुत उदास और दुखी होती हैं ऐसे में अगर उनके पास शादी का ऑफर आता है तो उसे एक्सेप्ट कर लेती हैं अपने प्यार को भुलाने के लिए तो ऐसा भूलकर भी कभी न करें क्योंकि आप जिससे शादी करेंगी उससे आपको प्यार नहीं होगा तो आप शादी करके भी अपने प्यार को भूल नहीं पाएंगी और खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारेंगी.

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लड़के का बैक बैलेंस और सुन्दरता देखकर-

अक्सर कुछ लड़कियां लड़के का वेल सेटल्ड होना देखकर उनका बैंक बैलेंस देखकर उनकी सुन्दरता देखकर शादी के लिए हां कर देती हैं लेकिन उनका व्यवहार कैसा होता है पता ही नहीं होती और जब लड़के का व्यवहार लड़की के अनुरुप नहीं होता तो वो रिश्ता ज्यादा नहीं चलता इसलिए पहले लड़के को जानिए उसे समझिए,….जब आपको लगे कि अब अन्दर कोई डाउट नहीं है आप रेडी हैं तभी हां करिए.

ये सभी वो कारण है जिनके कारण लड़कियां शादी करती हैं और फिर पछताती हैं तो कभी भी इन कारणों से शादी न करें और खुद को शादी के लिए वक्त दें और मां-बाप भी इस बात को समझे.

अगर आपका भी है इकलौता बच्चा तो हो जाएं सावधान

जिन मातापिता का एक ही बेटा या बेटी है, वे सावधान हो जाएं. एक अध्ययन में दावा किया गया है कि जिन दंपतियों का एक ही बच्चा है तो उस के मोटापे का शिकार होने की संभावना 2 या 2 से अधिक बच्चों वाले परिवार की तुलना में ज्यादा होती है. यह अध्ययन 12,700 बच्चों पर किया गया. यह अध्ययन यूरोपीय रिसर्च प्रोजैक्ट आईडैंटिफिकेशन ऐंड प्रिवैंशन औफ डाइटरी ऐंड लाइफस्टाइल इंडस्ट हैल्थ इफैक्ट्स इन चिल्ड्रन ऐंड इंफैक्ट्स का हिस्सा है. इस प्रोजैक्ट का उद्देश्य 2 से 9 साल तक के बच्चों के खानपान, जीवनशैली और मोटापा व उस के प्रभावों पर गौर करना है. यूनिवर्सिटी औफ गोथेनबर्ग स्थित साहग्रैस्का ऐकैडमी में अनुसंधानकर्ता मोनिका हंसबर्गर का कहना है कि जिस परिवार में एक ही बच्चा है, उस में मोटापे का खतरा ज्यादा बच्चों वाले परिवार की तुलना में 50% से अधिक होता है. इस की वजह छोटे परिवार का माहौल और पारिवारिक संरचना में अंतर हो सकता है. अध्ययन के अनुसार यूरोप में 2.20 करोड़ बच्चे मोटापे के शिकार हैं. इटली, साइप्रस और स्पेन में बच्चों में मोटापा यूरोप के उत्तरी देशों की तुलना में 3 गुना अधिक है.

बीमारियों का खतरा

लगभग 70% मोटे बच्चों के भारीभरकम वयस्क में स्थानांतरित होने की पूरी आशंका रहती है. एकतिहाई बच्चे अपनी किशोरावस्था तक मोटे हो जाते हैं. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में 13 से 16 साल के बीच की उम्र सीमा में हर 10 में से 1 स्कूली बच्चा मोटापे का शिकार है. ऐसोचैम द्वारा विश्व हृदय दिवस के ठीक पहले किए गए सर्वेक्षण में 25 निजी और सरकारी स्कूलों के 3,000 बच्चों को शामिल किया गया. बच्चों में तेजी से बदलती जीवनशैली और खानपान की आदतों को इस के लिए जिम्मेदार बताया गया. लगभग 35% अभिभावक अपने बच्चों को रोज 40 से 100 रुपए दिन के समय कैंटीन में भोजन करने के लिए देते हैं, जबकि 51% बच्चे 30-40 रुपए पास्ता और नूडल्स में खर्च करते हैं. सर्वेक्षण में कहा गया है कि मोटापे के शिकार बच्चों में हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा 35% तक बढ़ जाता है. मोटे बच्चों में उच्च रक्तचाप, उच्च कोलैस्ट्रौल स्तर, मधुमेह और दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है.

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अगर आप का बच्चा मोटा है

क्या आप नहीं चाहेंगे कि आप का बच्चा ताउम्र स्वस्थ और निरोगी रहे? लेकिन यदि वह बचपन में ही मोटापे की गिरफ्त में आ गया तो उस का परिणाम उसे ताउम्र भुगतना पड़ेगा. मोटापे से संबंधित नौनकम्युनिकेबल बीमारियां जैसे टाइप-2 डायबिटीज, मैलाइटस, इंसुलिन रैजिसटैंस, मैटाबोलिक सिंड्रोम और पौलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम ओवरवेट बच्चों को शिकार बना सकते हैं. यदि आप का बच्चा मोटा है तो उसे कैंसर का खतरा अन्य बच्चों की अपेक्षा ज्यादा है. वजन बढ़ने के कारण 10 तरह के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. मैडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि मोटापे के कारण गर्भाशय का कैंसर बढ़ने का खतरा ज्यादा है. इस के बाद पित्ताशय, गुरदा, गर्भाशय, थायराइड और ब्लड कैंसर की बारी आती है. बौडी मास इंडैक्स ज्यादा होने के कारण लिवर, मलाशय, अंडाशय और स्तन कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है. लंदन स्कूल औफ हाइजीन ऐंड ट्रीपकल मैडिसिन के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन 50 लाख लोगों पर किया. वैसे मोटापा सौ रोगों की जड़ है. इस से उच्च रक्तचाप और हृदय रोग होने की आशंका भी बढ़ जाती है. जर्नल न्यूट्रीशन ऐंड डायबिटीज में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, बच्चों में मोटापे का संबंध उन का खानपान, उन की टीवी देखने की आदत और घर के बाहर खेलने जाने के वक्त पर बहुत निर्भर करता है और इस में मातापिता की भूमिका महत्त्वपूर्ण है. अध्ययन के अनुसार जिस परिवार में 1 ही बच्चा है, वह मुश्किल से ही बाहर खेलने जाता है. वह घर में ही दुबका रहता है और शिक्षा का स्तर भी प्राय: कम ही होता है. उस का अधिकांश वक्त बैडरूम में टीवी देखने में व्यतीत होता है.

परेशानी का सबब

एक शोध से पता चला है कि 97% इकलौते बच्चे ओवरइटिंग और ओवरडाइट के कारण मोटापे के शिकार हुए हैं. शोध में 5 से 8 साल की आयु के इकलौते स्कूली बच्चों को शामिल किया गया था. यह भी पाया गया कि ये बच्चे अपनी डाइट की तुलना में ऐक्सरसाइज बहुत कम करते हैं. एक सर्वे से पता चलता है कि 8 से 18 साल की उम्र के बच्चे औसतन 3 घंटे प्रतिदिन टीवी देखने में खर्च करते हैं. इकलौता बच्चा आमतौर पर घर पर ही रहता है. मैदानी खेलों से उस का कोई नाता नहीं रहता. पलंग या कुरसी पर बैठेबैठे या तो वह वीडियो गेम खेलता है या फिर टीवी देखता है. टीवी के सामने बैठ कर ही वह भोजन करता है. इस से उसे इस बात का पता ही नहीं चलता कि कितना खा गया. शुरू में तो मांबाप अपने इकलौते को गोलमटोल होते देख बडे़ खुश होते हैं, लेकिन जब वह ओवरवेट या गुब्बारे की भांति फूलता चला जाता है, तो उन्हें चिंता सताने लगती है. सच भी है, यदि 5 साल के बच्चे का वजन 75 किलोग्राम और 8 साल के बच्चे का वजन 140 किलोग्राम हो जाए तो यह न केवल बच्चों के लिए अपितु मातापिता के लिए भी परेशानी का सबब बन जाता है.

उड़ता है मजाक

सोशल मीडिया पर मोटापे को ले कर तकलीफदेह और डराने वाले मजाक बहुत ज्यादा होते हैं. विशेष कर ट्विटर ऐसे चुटकुलों का अहम ठिकाना बना हुआ है. अमेरिका के नैशनल इंस्टिट्यूट औफ हैल्थ के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन ब्लौग, ट्विटर, फेसबुक, फोरम, लिकर और यूट्यूब जैसी सोशल साइटों पर वजन को ले कर होने वाली चर्चाओं को ले कर किया गया. इस में ट्विटर शीर्ष पर रहा जहां मोटापे का सब से ज्यादा मजाक उड़ाया जाता है और कमैंट किए जाते हैं. ट्विटर के बाद फेसबुक दूसरे स्थान पर है. शोधकर्ताओं ने 2 महीनों के दौरान 13.7 लाख पोस्ट का अध्ययन किया, जिन में फैट, ओबेस, ओबैसिटी या ओवरवेट जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था. इन में सर्वाधिक इस्तेमाल ‘फैट’ शब्द का हुआ और ज्यादातर यह प्रयोग नकारात्मक था. जाहिर है ऐसे कमैंट्स से बच्चों में हीनभावना पैदा होती है और वे कुंठा के शिकार हो जाते हैं. वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से यह बात सामने आई है कि बच्चों के अभिभावक अपने बच्चों के मोटापे के प्रति समय के बाद चेतते हैं. वे तब अपने बच्चों के बारे में जान पाते हैं जब वे मोटापे की गिरफ्त में पूरी तरह आ चुके होते हैं.

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शारीरिक मेहनत भी है जरूरी

बच्चे स्लिप और चुस्तदुरुस्त हों तो ही अच्छे लगते हैं. इसलिए शैशव अवस्था से ही उन के मोटापे पर निगरानी रखें. उन का खानपान इस प्रकार निर्धारित करें कि वे कभी मोटापे का शिकार न हों. बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए पोषक आहार मिलना जरूरी तो है पर वह संतुलित होना चाहिए. किसी भी चीज की अति बुरी होती है. अपने बच्चों की फिटनैस पर ध्यान दें. इस के लिए कमर्शियल फिटनैस क्लबों की सेवाएं ली जा सकती हैं. मांबाप को चाहिए कि वे अपने ओवरवेट बच्चे को डाक्टर को दिखाएं. इस के अलावा डाइटिशियन से उस की खुराक निर्धारित करवाएं. बच्चों की सेहत का ध्यान रखना मांबाप का फर्ज है. दिन भर में एक बार जरूर बच्चे को अपने साथ खाना खिलाएं. खाने में साबूत अनाज, फलों, सब्जियों की मात्रा ज्यादा रखें तथा जंक और प्रोसैस्ड फूड पर लगाम लगाएं. बच्चों से अच्छी बात मनवाने के लिए जबरदस्ती न करें और न ही किसी तरह का लालच दें, बल्कि उन्हें दोस्त बन कर समझाएं ताकि वे अपनी खानपान संबंधी आदतों में सुधार करें तथा टीवी या कंप्यूटर के सामने घंटों गुजारने के बजाय उन का समय मैदान में खेलकूद में गुजरे.

मेरी देह मेरा अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने एक नए फैसले में 158 साल पुराने कानून, जिसमें किसी अन्य की पत्नी के साथ सहमति से यौन संबंध बनाने पर भी दंड दिया जा सकता है, असंवैधानिक करार दिया है. यह कानून अपनेआप में अनैतिक था और हमेशा इस पर आपत्तियां उठती रही हैं पर पहले हिंदू कानून और फिर अंग्रेजी कानून बदला नहीं गया. रोचक बात यह है कि यदि पति किसी के साथ संबंध बनाए तो पत्नी को यह हक नहीं था कि वह शिकायत कर सके. एक और रोचक बात इस कानून में यह थी कि गुनहगार पत्नी नहीं परपुरुष ही होता था.

इस कानून का आधार यह था कि पत्नियां पतियों की जायदाद हैं और परपुरुष उन से संबंध बना कर संपत्ति का दुरुपयोग न करें. यदि पति इजाजत दे दे तो यह कार्य दंडनीय न था. यानी मामला नैतिकता या विवाह की शुद्धता का नहीं, मिल्कीयत का था.

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पहले भी 2-3 बार यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका या और एकतरफा होने के कारण इसे असंवैधानिक करने की मांग की जा चुकी थी पर अदालतों ने हस्तक्षेप नहीं किया और न ही संसद ने यह कानून बदला. अंग्रेजों को दोष देने की जगह असल में भारतीय संसद इस कानून के लिए जिम्मेदार है जिस ने 70-75 साल इसे थोपे रखा.

वैसे यह कानून निष्क्रिय सा ही था और बहुत कम मामले ही दर्ज होते थे, पर फिर भी विवाहित औरत और उस के प्रेमी पर तलवार तो लटकी ही रहती थी कि न जाने कब पति शिकायत कर दे और प्रेमी जेल में बंद हो जाए और पत्नी की जगहंसाई हो जाए.

बहुत सी विवाहिताएं अपने पति का घर छोड़ कर प्रेमी के साथ रहने से कतराती थीं कि कहीं पुलिस मामला न बन जाए पर पत्नी के पास यह अधिकार न था कि वह किसी और विवाहिता या अविवाहिता के साथ रहने वाले पति पर मुकदमा दायर कर सके.

हां, वैवाहिक कानून में इस मामले में दोनों को तलाक लेने का हक पहले से ही बराबर का है पर प्रक्रिया लंबी है और थाने के चक्कर वकीलों के चक्करों से ज्यादा दुखदाई होते हैं.

पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह अनैतिक कार्य व्यभिचार है और परपुरुष को ही अपराधी बनाना गलत नहीं, क्योंकि इस से गैरपुरुष के साथ यौन संबंध बनाने वाली औरत को सुरक्षा व संरक्षण मिलता है. सुप्रीम कोर्ट बराबर का मतलब यह मान रहा था कि पत्नी पर भी मुकदमा चले.

अब के फैसले में यह कहा गया है कि पत्नी पर भी आपराधिक मामला नहीं बनेगा और उस के प्रेमी पर भी नहीं. इस फैसले का मतलब अब यह भी है कि लोकसभा भी कानून नहीं बना सकती क्योंकि यह गैरसंवैधानिक घोषित कर दिया गया है. यदि संसद पहले से कानून बना कर कुछ करती तो गुंजाइश थी कि सांसद मनचाहा बीच का रास्ता अपना लेते.

यह सैक्स संबंधों में उदारता का लाइसैंस नहीं है, यह स्त्रीपुरुष के संबंधों को थानेदारों से बचाने का कवच है. पतिपत्नी संबंध आपसी सहमति का संबंध है, इस में कानून की सहायता से जोरजबरदस्ती नहीं चलनी चाहिए. नैतिकता का पाठ पढ़ाने और हिंदू संस्कृति की दुहाई देने वाले अगर अपने धर्म ग्रंथों के पृष्ठ खंगालेंगे तो पाएंगे कि जिन देवीदेवताओं को वे पूजते हैं उन में से लगभग हर देवीदेवताओं के विवाहेतर संबंध रहे हैं.

भारतीय समाज में घरों में भी और बाजारों में भी सैक्स का खुलापन आज भी है और हम जो शराफत का ढोल पीटते हैं वह केवल इसलिए कि हम सब अपनी खामियों को छिपा कर रखने में सफल रहे हैं. हम हर उस व्यक्ति का मुंह तोड़ सकते हैं जो सच कहने की हिम्मत करता है और महान भारतीय हिंदू संस्कृति का राज केवल यहीं तक सीमित है. आज जो बलात्कार के मामले सामने आ रहे हैं, इसलिए कि औरतों को संपत्ति मानने की तो सामाजिक, सांस्कारिक सहमति पहले से ही है. अगर औरत सड़क पर दिखे तो उसे उठा कर वैसे ही इस्तेमाल करा जा सकता है जैसे सड़क पर पड़े 2 हजार रुपए के नोट को.

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पतिपत्नी संबंध बराबर के हों, मधुर हों, सुखी हों, यह जिम्मेदारी पतिपत्नी दोनों की है, बराबर की है. कानून की धौंस दे कर अब पति अपनी पत्नी को किसी और से बात करने पर धमका नहीं सकता. यह नैतिक, प्राकृतिक और मौलिक अधिकार है.

पुरुष भी दिखाते हैं महिलाओं वाले इन 5 कामों में दिलचस्पी

पुरुष और महिला के स्वभाव का जब आंकलन किया जाता हैं तो दोनों की आदतों में बहुत फर्क नजर आता है. लेकिन कहीं ना कहीं पुरुष उन कामों में दिलचस्पी दिखाते हैं जिनके लिए महिलाओं को जाना जाता है, लेकिन पुरुष इसे मानने से कतराते हैं.

आज हम आपको महिलाओं के वो काम बताने जा रहे हैं जिसमें पुरुष अपनी दिलचस्पी दिखाते हैं और मानने से कतराते हैं. तो आइये जानते हैं इन कामों के बारे में.

शौपिंग के होते हैं क्रेजी

शौपिंग का नाम सुनते ही हर किसी के दिमाग में यह बात आती है कि औरतें शौपिंग के बिना नहीं रह सकती. लेकिन पुरुष भी इस मामले में किसी से कम नहीं होते. उन्हें नए-नए और स्टाइलिश कपड़े पहनना बहुत पसंद होता है. खुद को वे लड़कियों से ज्यादा मेंटेन रखना चाहते हैं.

पार्लर जाना होता है पसंद

लड़के लड़कियों की तरह पार्लर जाना भी बहुत पसंद करते हैं. वह पैडीक्योर,हेड मसाज,फेशियल, हेयर आदि बहुत से ट्रीटमेंट भी लेते हैं.

गौसिप में भी पीछे नहीं पुरुष

वैसे तो गौसिप में औरतों का ही नाम लिया जाता है लेकिन पुरुष इसमें पीछे नहीं होते. जब 2 या 4 दोस्त इकट्ठे हो जाते हैं तो राजनीति से लेकर लव लाइफ तक की गौसिप उनकी बातों का हिस्सा बनती है.

कुकिंग करना

महिलाओं को रसोई की रानी कहा जाता है लेकिन यह बात भी सही है कि बेहतर खाना बनाने में पुरुष ज्यादा बेहतर होते हैं. कुछ लड़कों को अलग-अलग फ्लेवर का खाना बनाना अच्छा लगता है.

इमोशनल भी होते हैं पुरुष

अक्सर बात-बात पर रोना महिलाओं की आदत होती हैं. वहीं, बड़ी से बड़ी परेशानी में भी पुरुष आंसू नहीं बहाते लेकिन वह इमोशनल होते हैं. कुछ बातों में वह खुद पर काबू नहीं रख पाते और किसी अपने के सामने रो पड़ते हैं.

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