लेखक- सुशील कुमार भटनागर
ब्याह के बाद रंजना और निखिल शिमला चले गए थे घूमने. वहां से लौटने के बाद रंजना अपने पति निखिल के साथ ही आई थी अजमेर. निखिल का चेहरा मुरझाया हुआ था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसे अपने विवाह की कतई खुशी नहीं है. सुबह नाश्ते के बाद अनायास ही मुझ से वह पूछ बैठा था, ‘पापाजी, यदि आप बुरा न मानें तो एक बात पूछ सकता हूं आप से?’
‘हां बेटा, क्या बात है, पूछो?’
‘पापाजी, मुझे ऐसा लगता है जैसे रंजना मेरे साथ खुश नहीं है.’
‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है बेटा. रंजना ने तो खुद ही तुम्हें पसंद किया है?’ रीना बीच में ही बोल पड़ी थी.
‘नहीं, मम्मीजी, रंजना का कहना है कि वह किसी और से प्यार करती है. उस की शादी मेरे साथ उस की इच्छा के विपरीत जबरदस्ती कराई गई है.’
निखिल की बात सुन कर हम दोनों के चेहरे उतर गए थे.
‘अरे बेटा, रंजना कालेज में नाटकों में भाग लिया करती थी सो मजाक करती होगी तुम से. वैसे भी बड़ी ही चंचल और मजाकिया स्वभाव की है हमारी रंजना. उस की किसी भी बात को कभी अन्यथा मत लेना. बड़े लाड़प्यार में पली है न, सो शोखी और नजाकत उस की आदतों में शुमार हो गई है,’ रंजना की मां ने बड़ी सफाई से बात टाल दी थी.
‘पर मम्मीजी, अभी हमारी शादी को 1 महीना ही तो हुआ है. रंजना जबतब मुझ से जिद करती रहती है कि मैं उसे उस के फ्रैंड से मिलवा दूं जिस से वह प्यार करती है, नहीं तो वह आत्महत्या कर लेगी. कभी यह कहती है कि आप क्यों मेरे साथ नाहक अपना जीवन बरबाद कर रहे हो, क्यों नहीं मुझे तलाक दे कर दूसरा ब्याह कर लेते? यह सब सुनसुन कर तो मेरे होशोहवास गुम हो जाते हैं.’
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‘बहुत बुरी बात है बेटा, मैं उसे समझा दूंगी. तुम थके होगे, आराम कर लो कुछ देर,’ कहती हुई रंजना की मां कांपते कदमों से रसोई की ओर बढ़ गई थीं. मौके की नजाकत भांपते हुए मैं भी बाहर आंगन में आ कर अखबार खोल कर बैठ गया था.
रंजना निखिल के साथ ससुराल जाने को अब कतई तैयार नहीं थी. रीना और मैं ने उसे खूब समझाया था. रंजना की मां यह कहते हुए रो पड़ी थीं, ‘अब क्यों अपने मांबाप की लाशें देखना चाहती है तू? क्यों जान लेने पर तुली है हमारी? तू यही चाहती है न कि तेरी करतूतें जगजाहिर हों और हम कहीं के न रहें, बिरादरी में नाक कट जाए हमारी. अपनी इज्जत की खातिर जहर खा कर मर जाएं हम.’
‘बेटी, तेरी शादी हो गई, तेरा घर बस गया. इतना अच्छा, सुंदर, समझदार पति और इज्जतदार ससुराल मिली है तुझे, उस के बाद भी ऐसी बेवकूफी करने पर तुली है तू. जरा अक्ल से काम ले, अपना जीवन देख, अपना भविष्य देख, अपनी गृहस्थी देख. क्यों मूर्खताभरी बातें करती है? जो संभव नहीं है उस के लिए क्यों सोचती है? हम तेरे भले के लिए कह रहे हैं, और इसी में सीमा की भी भलाई है. तू अब यह फिल्मी प्यारमोहब्बत का चक्कर छोड़ और अपना घर व अपनी मानमर्यादा देख.
‘सीमा तेरी सगी बड़ी बहन है. अभी तक उसे कुछ भी पता नहीं चला है. तू ही सोच जब उसे पता चलेगा इन सब बातों का तो उस का क्या हाल होगा? भूचाल सा आ जाएगा उस की हंसतीखेलती जिंदगी में,’ मैं गिड़गिड़ाते हुए रो पड़ा था.
हमारे समझाने पर रंजना अपनी ससुराल चली गई थी पर 5वें दिन ही निखिल का पत्र मिला. लिखा था, ‘पापाजी, रंजना का फिर वही हाल है. कहती है, मैं बंधुआ मजदूर हूं आप की, दासी हूं आप की, नौकरानी हूं आप की पर पत्नी किसी और की हूं. छोड़ दो मुझे और मुक्त हो जाओ वरना मैं घर से किसी दिन भाग जाऊंगी या आत्महत्या कर लूंगी, फिर तुम सब लोग कोर्टकचहरी के चक्कर में फंस जाओगे. हम सब बहुत तनाव में हैं, आप पत्र मिलते ही फौरन चले आइए.’
हम निखिल के पत्र पर कोई कदम उठा पाते इस के पहले ही हमें खबर मिल गई थी कि रंजना ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा ली थी. जब तक हम जयपुर पहुंचे तब तक सारा खेल खत्म हो चुका था. वह जल कर मर चुकी थी.
रंजना की पार्थिव देह देख कर मन हुंकार कर उठा था. ऐसा जी चाह रहा था कि नरेंद्र की जान ले लूं. यह सब नरेंद्र की वजह से ही हुआ था. पर मैं मजबूर था, ऐसा नहीं कर सकता था. एक तरफ रंजना की पार्थिव देह थी तो दूसरी तरफ नरेंद्र, मेरी बड़ी बेटी सीमा का सुहाग था. और फिर जिस राज को जान कर सीमा का घर बरबाद न हो, यह सोच कर छिपाए बैठे थे हम, उसे यों ही आवेश में आ कर उजागर कर देना मूर्खता ही होती.
‘नहीं, नहीं, यह राज दफन कर दूंगा मैं अपने सीने में,’ मैं बुदबुदा उठा था.
पुलिस केस बना था रंजना की मौत पर. पुलिस ने मुझ से, रंजन से और रंजना की मां से भी पूछताछ की थी पर हम ने स्पष्ट कह दिया था कि हमें कुछ भी पता नहीं कि रंजना की मौत किन परिस्थितियों में हुई है. अभी हम कुछ भी बता पाने की स्थिति में नहीं हैं. और फिर रंजना के दाहसंस्कार के बाद हम अजमेर चले आए थे. उस के बाद क्या हुआ, कुछ पता नहीं. साले साहब से इतना जरूर पता चला था कि पुलिस ने दहेज हत्या का केस बना कर गिरफ्तार कर लिया था रमानाथजी के पूरे परिवार को. उस के बाद क्या हुआ हम ने कभी जानने की कोशिश भी नहीं की थी. रंजना की यादें उस पुराने मकान में सताती थीं इसलिए हम ने उस मकान से दूर नया मकान खरीद लिया था और नए मकान में आ गए थे.
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प्रकरण की सुनवाई हेतु हमें कोर्ट से भी कोई नोटिस नहीं मिला था. पर आज आरती को इस हाल में देख कर अपराधबोध हुआ था मुझे और मैं सिहर उठा था किसी अनजाने भय से.
दीवारघड़ी ने रात के 2 बजने की सूचना दी तो मेरी तंद्रा भंग हो गई. अपनी उंगलियों में फंसी हुई समाप्तप्राय सिगरेट को खिड़की से बाहर उछाल दिया और पलट कर पुन: पलंग पर लेट कर अपनी आंखें मूंद लीं मैं ने.
‘‘जीजाजी, दरवाजा खोलिए, चाय लाई हूं मैं,’’ सलहज साहिबा ने दरवाजा खटखटाया तो मेरी आंख खुल गई. मैं ने नजर उठा कर दीवारघड़ी की ओर देखा, सुबह के 6 बज रहे थे. रीना भी जाग गई थी दरवाजे पर थाप की आवाज सुन कर. मैं ने दरवाजा खोला तो सलहज साहिबा मेरा चेहरा देख कर बोलीं, ‘‘लगता है जीजाजी रात भर सोए नहीं.’’
‘‘हां, आज रात जाग कर एक बहुत महत्त्वपूर्ण फैसला किया है मैं ने.’’
‘‘क्या?’’ वह आश्चर्य से मेरे चेहरे पर अपनी नजरें टिकाते हुए पूछ बैठी.
‘‘यही कि रिश्ते के नाम पर कलंक हूं मैं. जब मेरी गरज थी, रंजना को ब्याहना था तब तो रमानाथजी के हाथ जोड़े फिरता था मैं, और जब रंजना ने गलत कदम उठा कर अपनी ससुराल में आत्मदाह कर लिया तो उन निर्दोष लोगों की सुध तक नहीं ली कभी मैं ने. मैं अपने फर्ज से, अपने कर्तव्य से विमुख हो गया. क्या रंजना के मरने से रिश्ता भी मर गया? नहीं, रिश्ते तो प्रीत की डोर के पक्के बंधन होते हैं, ये यों ही नहीं टूट जाया करते.
आज आएदिन अखबारों में दहेज और दहेज हत्याओं के प्रकरण प्रकाशित होते रहते हैं. मैं यह तो नहीं कह सकता कि उन में से कितने सही होते हैं पर इतना जरूर कह सकता हूं कि उन में से ज्यादातर मामले में मेरे जैसे कायर पिता और आजकल की रंजना जैसी नादान और बेवकूफ लड़कियां होती हैं जो विवाह पूर्व के प्रेमप्रसंग, स्वतंत्र और उन्मुक्त जीवन की चाह में अपनी ससुराल में अपने संबंध बिगाड़ लेती हैं.
इस तरह पैदा हुई कलह पर अपना पूरा जोर दिखाने के लिए दहेज विरोधी कानून का सहारा ले कर अपने जीवन को या तो तलाक के कगार तक पहुंचा देती हैं या जीवनभर के लिए अपने पति और ससुराल वालों से रिश्तों में विष घोल लेती हैं और या फिर रंजना की तरह ही आत्महत्या कर लेती हैं.
पर अब मैं चुप नहीं रहूंगा. मैं अगर अब भी चुप रहा तो चैन से मर भी न सकूंगा. यह बोझ अब और नहीं ढो पाऊंगा. जो इस समाज के डर से, अपनी इज्जत के डर से अब तक ढोता आ रहा हूं. पर अब मैं कोर्ट में अपना बयान दूंगा. जज साहब को रंजना की मौत के सभी सत्य तथ्यों से अवगत करा दूंगा और निखिल का वह पत्र भी अजमेर से ला कर सौंप दूंगा जो उस ने मुझे रंजना के आत्मदाह से पूर्व लिखा था. हम अब रमानाथजी और उन के परिवार को रंजना का हत्यारा होने के गलत आरोप से बचाएंगे. यह हमारा फर्ज है, और अटल फैसला भी.’’
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