क्या ‘गोपी बहू’ ने औनस्क्रीन देवर संग कर ली है सगाई, जानें क्या है सच

कलर्स के रियलिटी शो Bigg Boss 15 का हिस्सा रह चुकीं एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्जी (Devoleena Bhattacharjee) आए दिन सुर्खियों में रहती हैं. वहीं हाल ही में अपनी सर्जरी के बाद देवोलीना भट्टाचार्जी ने कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह अपनी सगाई की अंगूठी  (Devoleena Bhattacharjee Engagement) को फ्लौंट करती नजर आ रही हैं. वहीं इस फोटो में उन्हें प्रपोज करते हुए गोपी बहू यानी देवोलीना के औनस्क्रीन देवर विशाल सिंह (Vishal Singh) नजर आ रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

सगाई की फोटोज हुई वायरल

दरअसल, एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्जी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर कुछ फोटोज शेयर की थीं, जिनमें साथ निभाना साथिया के जिगर यानी एक्टर विशाल सिंह,  देवोलीना भट्टाचार्जी को घुटनों पर बैठकर प्रपोज करते नजर आ रहे थे. वहीं दूसरी फोटोज में विशाल सिंह के साथ हाथ में फूल और डायमंड रिंग फ्लौंट करते हुए देवोलीना नजर आ रही थीं. वहीं दोनों ने इन फोटोज के साथ कैप्शन में #IT’S OFFICIAL लिखा था, जिसके बाद फैंस और सेलेब्स दोनों को बधाई देते हुए दिखाई दिए थे.

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सगाई का ये था सच

 

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सगाई की फोटोज वायरल होने के बाद देवोलीना भट्टाचार्जी और विशाल सिंह ने अपनी एक वीडियो में अपनी सगाई का सच बताया. दरअसल, देवोलीना भट्टाचार्जी ने बताया कि वह जल्द ही इट्स ऑफिशियल नाम की एक म्यूजिक वीडियो में विशाल सिंह संग काम करने वाली हैं, जिसके चलते दोनों ने झूठी सगाई का नाटक किया था. वहीं सच जानने के बाद फैंस निराश नजर आए.

डेटिंग को लेकर सुर्खियों में रहता है कपल

 

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साथ निभाना साथिया में देवर भाभी के रोल में नजर आ चुके देवोलीना भट्टाचार्जी और विशाल सिंह अक्सर अपनी डेटिंग की खबरों के चलते सुर्खियों में रहते हैं. हालांकि दोनों ने कभी अपने रिलेशनशिप को लेकर कोई खुलासा नहीं किया है. लेकिन दोनों की सगाई की खबर से फैंस का खुश नजर आए थे.

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फ़िल्मी परिवेश में जन्मी और पली – बड़ी हुई 24 साल की यंग एक्ट्रेस अनन्या पांडे ने अपनी कोमलता और खूबसूरती से इंडस्ट्री में एक जगह बना ली है. उनमे हर नई किरदार को करने में एक जुनून है, जो उन्हें बाक़ी नई एक्ट्रेस से अलग बनाती है. सोशल मीडिया पर छाने वाली अनन्या के फोलोअर्स काफी है. चंकी पांडे और भावना पांडे की इस बेटी ने फिल्म स्टूडेंट ऑफ़ द इयर 2 से इंडस्ट्री में कदम रखी और एक के बाद एक अलग-अलग फिल्मों में नजर आ रही है. फिल्मों के अलावा अनन्या ने कई विज्ञापनों में भी काम किया है. इसकी वजह उनका सौम्य स्वभाव है.

अभिनय के साथ-साथ वह युनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ कैलिफोर्निया, लोस एन्जिलोस में फैशन डिजाईनिंग की कोर्स भी कर चुकी है. अनन्या का फैशन स्किल काफी अच्छा है और वह अपने हिसाब से पोशाक का चयन करती है. इसके अलावा अनन्या को घूमना और जिम जाना बहुत पसंद है, इसलिए वह कई बार पैपराज़ी फोटोग्राफर का शिकार हो जाती है.हिंदी सिनेमा जगत में अनन्या अपने बोल्ड लुक और हॉट पर्सनालिटी के लिए जानी जाती है. बॉलीवुड में इस एक्ट्रेस की एक्टिंग को काफी सराहनीय माना जाता है, जिसे अनन्या ने हर फिल्म में काफी मेहनत कर संभव बनाई. उनकी फिल्म ‘गहराइयाँ’ रिलीज पर है,उन्होंने कुछ बातें अपनी जर्नी की शेयर की, आइये उन बातों को जानते है.

जरुरी है रिलेशन को बनाए रखना

रिलेशनशिप के बारें में अनन्या बताती है कि प्यार मेरे लिए दोस्ती है, जिसे मैंने अपने पेरेंट्स से सीखा है. 24 साल की शादीशुदा जिंदगी बिता लेने के बाद भी वे अच्छे फ्रेंड्स है. उनमें आपस में झगड़े भी होते है, पर वे दोनों साथ में खुश रहते है. मेरे लिए वही व्यक्ति मेरा जीवनसाथी बन सकता है, जिसके साथ मैं कोम्युनिकेट अच्छी तरह से कर सकूँ और वह मुझे हमेशा हंसाए. उसे मेरे पिता की तरह होने की आवश्यकता है. रियल लाइफ में मेरा पेरेंट्स के साथ सबसे गहरा रिश्ता है.

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पसंद है चुनौतीपूर्ण फिल्में

गहराइयाँ फिल्म में अनन्या ने काफी चुनौती पूर्ण भूमिका निभाई है,जो उनकी उम्र से बड़ी भूमिका है. उनका कहना है कि मैं इसे बोल्ड चरित्र नहीं, बल्कि मैच्योर, इमोशनल चरित्र कहना पसंद करुँगी, जिसे करने सेपहले मैं घबराई हुई थी, लेकिन मुझे इसे करना भी था, क्योंकि ये मेरी विशलिस्ट के डायरेक्टर शकुन बत्रा की है. उन्होंने किसी फिल्म को फ़िल्मी से अधिक रियल दर्शाने की कोशिश की है. इसलिए निर्देशक शकुन बत्रा के साथ बैठकर मेरे किरदार को समझना पड़ा. केवल मैं ही नहीं बल्कि मेरे को स्टार सिद्दांत चतुर्वेदी को भी अपनी भूमिका के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. इस फिल्म से मैंने बहुत सारी बातें सीखी है, जिसमें अगर कोई दुखी है, तो भले ही वह जोर से रोये नहीं, उसके आंसू न बहे , लेकिन उसके अंदर उसका इमोशन तो है और उसे पर्दे पर सजीव करना आसान नहीं होता. वैसे ही अगर आप दुखी होने पर हँसते है, तो उसमे ख़ुशी नहीं, बल्कि उस दबी हुई दुःख का एहसास होता हो,ऐसे कई मुश्किल अभिनय मैंने दीपिका से सीखे है. ये भाग मेरे लिए बहुत कठिन था. इसके अलावा किसी भी रिश्ते की गहराई में जाने पर अगर आपको धोखा मिलता है, तो उसे बिना छुपाये बाहर निकाल देना और शेयर करना जरुरी होता है, क्योंकि अपने अंदर किसी स्ट्रेस को रखकर मैं कुछ अलग नहीं सोच सकती और ये सभी के लिए लागू होती है.भले ही कोई कुछ कहे पर मुझे अपने रिश्ते को सच्चाई से जीना पसंद है.

एन्जॉयड द शूट

अनन्या को इस चरित्र को निभाने के बाद में कुछ समस्या भी आई.अनन्या कहती है कि निर्देशक के अनुसार मैं टिया खन्ना की तरह हूँ, इसलिए मुझे अधिक मेहनत करने की जरुरत नहीं है, लेकिन रियल लाइफ में मैं वैसी लड़की नहीं. दर्शक मुझे अनन्या नाम से नहीं, बल्कि टिया के रूप में याद रखेंगे और मेरे लिए ये डरावनी बात थी, पर मैंने खुद को इस डर से निकाला और शूट को एन्जॉय किया, लेकिन ये सही है कि मैं इस

पॉजिटिव सोच है जरुरी

अनन्या हर फिल को खुद चुनती है और अगर कुछ गलत हुआ तो उसकी जिम्मेदारी खुद को ही समझती है. उनके पेरेंट्स अनन्या की इस मैच्योरिटी को पसंद करते है. वह हमेशा सकारात्मक सोच रखना पसंद करती है. इतना ही नहीं अनन्या ने साल 2019 में सो पॉजिटिवएक संस्था ‘डिजिटल सोशल रेस्पोंसिबिलिटी’ को ध्यान में रखकर की है. वह कहती है कि मैं एक सेफ कम्युनिटी डिजिटल पर बनाना चाहती थी. केवल मेरे साथ ही नहीं हर किसी के साथ ऐसा होने पर, खासकर इन्स्टाग्राम पर लोग एक दूसरे को नफरत की निगाह से देख रहे थे, पर हर इंसान चुप था, जबकि एक बातचीत शुरू होने की जरुरत थी, जिसके साथ भी ऐसा होता है, वह व्यक्ति कैसे और कहाँ कॉम्प्लेन करें. सो पॉजिटिवने एक स्ट्रीम लाइन और गाइडबुक बनाई है, जहाँ परेशान व्यक्ति कहाँ और कैसे शिकायत करें. पिछले साल कोविड की दूसरी लहर के समय मैंने एक सीरीज बनाई थी, जो सोशल मीडिया फॉर सोशल गुड के नाम से था. मैंने 10 यंग लोगों से उनके काम के बारें में बात किया तो पता चला कि वे सोशल मिडिया पर अच्छे काम के लिए जुड़े है, जिसमें बीमार को एम्बुलेंस मुहैय्या करवाना, जरुरतमंदों को ऑक्सिजन सिलिंडर दिलवाना, स्ट्रीट जानवरों को सुरक्षा देना आदि कई काम कर रहे है, लेकिन इस काम के पीछे कौन व्यक्ति एक्टिव है, उसे बताने की कोशिश की है. इसका अनुभव भी मेरे साथ अच्छा हुआ है. जब मैं दूसरे शहर में भी किसी यूथ से मिलती हूँ तो यूथ इस मुहीम की तारीफ़ करते है और इस मुहीम से जुड़ने के बाद वे खुद को कभी अकेला महसूस नहीं करते.

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पेरेंट्स का मिला सहयोग

अनन्या आगे कहती है कि मैं पिता के बहुत करीब हूँ. मेरे पिता परिवार की एक मजबूत इंसान है. उन्होंने हमेशा समझाया है कि जीवन में सफलता और असफलता से अधिक प्रभावित नहीं होना चाहिए, दोनों ही परिस्थिति में न्यूट्रल रहने की जरुरत है. असफलता से सफलता को हैंडल करना अधिक मुश्किल है. इसके अलावा मेरे पिता ने कभी मुझे किसी बात पर टोका नहीं, लेकिन जरुरत के समय हमेशा मेरे साथ रहे.

कटु सत्य: भाग 3- क्या हुआ था छवि के साथ

अवसर पा कर मां से बात कही तो वे एकदम घबरा गईं. उन्होंने इधरउधर देखा, फिर उस का हाथ पकड़ कर कोने में ले गईं और संयत हो कर बोलीं, ‘‘क्या बकवास कर रही है, छवि?’’

‘‘मां, आप का व्यवहार देख कर लग रहा है, मेरी बातों में सचाई है. कम्मो, वह वृद्ध औरत जो सीता दादी की मां है और जिसे सब पगली कहते हैं, ने मुझ से जो कुछ भी कहा, वह सच है.’’

‘‘व्यर्थ के पचड़ों में मत फंसो. जो मुझ से कहा है वह घर में किसी अन्य से न कहना. हलदी की रस्म प्रारंभ होने वाली है, कपडे़ बदल कर वहां पहुंचो.’’ मां किसी उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना उसे आदेश देती हुई चली गईं.

दादाजी, जिन्हें वह सदा सम्मान देती आई थी, आज उसे दरिंदा नजर आने लगे- इंसान के रूप में खूंखार जानवर, जिन्होंने जायदाद के लिए अपने छोटे भाई की पत्नी को मरने को मजबूर किया, कम्मो को बरबाद किया. इन जैसे लोगों के  लिए किसी का मानसम्मान कोई माने नहीं रखता, यहां तक कि जायदाद के आगे इंसानी रिश्तों, भावनाओं की भी इन के लिए कोई अहमियत नहीं है. वे अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं. पर उन से भी ज्यादा मां का व्यवहार उसे आश्चर्यजनक लग रहा था. वे शहर में महिला मुक्ति आंदोलन की संरक्षक हैं. जहां कहीं अत्याचार होते, वे अपनी महिला वाहिनी ले कर पहुंच जातीं हैं तथा पीडि़ता को न्याय दिलवाने का प्रयत्न करती हैं. पर यहां सबकुछ जानतेसमझते हुए भी वे मौन हैं. पर क्यों?

 

यह सच है कि यह घटना उन के सामने घटित नहीं हुई लेकिन उस वृद्धा को तो न्याय दिलवा सकती थीं जो अब भी न्याय की आस में भटक रही है. तो क्या वे दादाजी, अपने ससुर, के विरुद्ध आवाज उठातीं, अवचेतन मन ने सवाल किया, अगर वे ऐसा करतीं तो क्या उन का भी वही हाल नहीं होता जो उस वृद्धा का हुआ. और फिर वे सुबूत कहां से लातीं. किसी आरोप को सिद्ध करने के लिए सुबूत चाहिए. कौन दादाजी के विरुद्ध गवाही देता? आश्चर्य तो उसे इस बात का था कि पापा जज होते हुए भी मौन रहे.

छवि का मन बारबार उसे धिक्कार रहा था, ‘पर अब तुम क्या कर रही हो, तुम्हें भी तो अब सब पता है. क्यों नहीं सब के सामने जा कर सचाई उगल देती. क्यों नहीं दादाजी के चेहरे पर लगे मुखौटे को हटा कर उन का वीभत्स चेहरा समाज के सामने ला कर उन्हें बेनकाब कर देती.

पर क्या यह इतना आसान है. सचाई यह है कि इंसान दूसरों से तो लड़ भी ले लेकिन अपनों के आगे बौना हो जाता है. गांव की जिन मधुर स्मृतियों को वह सहेजे हुए थी, उन में ग्रहण लग गया था. उस का मन कर रहा था कि यहां के घुटनभरे माहौल से कहीं दूर भाग जाए जहां उसे सुकून मिल सके. पर जाए भी तो जाए कहां, जहां भी जाएगी, क्या इन विचारों से मुक्ति पा पाएगी? तो वह क्या करे? क्या वह भी पूरा जीवन अपने परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही इस अन्याय को दिल में समाए जीवन गुजार दे. पर वह ऐसे नहीं जी पाएगी. तब, वह क्या करे?

उस का सर्वांग सुलग उठा. मन का ज्वालामुखी फटने को आतुर था. ‘आज तो मीडिया का जमाना है. इस घटना को किसी पत्रपत्रिका में प्रकाशित करवा दो,’ अवचेतन मन से आवाज आई.

हां, यही ठीक होगा. आरोपी को दंड नहीं दिलवा पाई तो क्या हुआ, समाज का यह विदू्रप चेहरा, कटु सत्य तो कम से कम सामने आएगा. कम से कम ऐसी घटनाओं को अंजाम देने से पहले लोग एक बार तो सोचेंगे, किसी को आत्मदाह के लिए बाध्य तो नहीं किया जाएगा.

उस ने डायरी निकाली तथा अपने विचारों को कलमबद्ध करने लगी. मन के झंझावातों से मुक्त होने का उस के पास एक यही साधन था. अपने लेख को किसी पत्रिका में छपवा कर दादाजी को बेनकाब करने का उस ने मन ही मन प्रण कर लिया था.

‘‘दीदी, आप क्या कर रही हैं, यहां भी आप का लिखनापढ़ना नहीं छूटा. चलिए, नीचे सब आप को ढूंढ़ रहे हैं.’’ नील ने आ कर कहा.

‘‘हां, चल रही हूं,’’ उस ने डायरी अपने सूटकेस में रख दी.

नील उसे लगभग खींचते हुए नीचे ले आई. शिखा को हलदी लगाई जा रही थी. कुछ औरतें ढोलक पर बन्नाबन्नी गा रही थीं. मां के चेहरे पर उसे देखते ही चिंता की रेखाएं खिंच गईं. शायद, उन्हें डर था कि वह कहीं किसी से कुछ कह न दे, व्यर्थ रंग में भंग हो जाएगा.

सब को हंसतेगाते देख कर भी वह स्वयं को सहज नहीं कर पा रही थी. उसे लग रहा था कि वह भीड़ में अकेली है. तभी उस ने सोचा, उसे जो करना है वह तो करेगी ही पर वह हंसीखुशी के माहौल को बदरंग नहीं करेगी.

जब लौट कर आई तो उस ने डायरी के पन्ने फटे पाए. पीछेपीछे उस की मां भी आ गई. उसे परेशान देख कर बोली, ‘‘बेवकूफ लड़की, गड़े मुरदे उखाड़ने की कोशिश मत कर, मत भूल कि वे तेरे दादाजी हैं, इस गांव के सम्मानित व्यक्ति. लोगों के लिए देवतास्वरूप. ऐसा तो सदियों से होता आ रहा है. वैसे भी , तेरी बात पर विश्वास कौन करेगा? वह तो अच्छा हुआ कि मैं किसी काम से यहां आई थी, तेरा सूटकेस खुला देख कर बंद करने लगी तो डायरी देख कर शक हुआ और मैं ने देख लिया. अगर तेरी यह हरकत घर में किसी को भी पता चल गई तो तेरे साथ हमारा जीना भी दूभर हो जाएगा.

फिर जायदाद, आखिर यह पैसा इंसान को किस हद तक गिराएगा. नीचे ताईजी की आवाज सुन कर मां दनदनाती हुई चली गई थी. वह लाचार सी बैठी सोचने लगी कि हर काल, हर समय में ‘जिस की लाठी उस की भैंस’ वाली कहावत ही चरितार्थ होती रही है. जिस के हाथ में ताकत है वही समर्थ है. कानून उस के हाथ का खिलौना बन कर रह जाता है. शायद इसीलिए मांपापा सबकुछ जानते और समझते हुए भी चुप रहे और शायद इसी मानसिकता के तहत उस के अन्याय के विरुद्ध मुंह खोलने की कोशिश को मां गलत ठहरा कर उसे चुप रहने के लिए विवश कर रही हैं. बारबार उस वृद्धा के शब्दों के साथ उस का अट्टहास मनमस्तिष्क में गूंज कर उसे बेचैन करने लगा. ‘पिछले 40 वर्षों से मैं उसे न्याय दिलवाने के लिए भटक रही हूं पर कोई मेरी बात पर विश्वास ही नहीं करता. सब मुझे पगली कहते हैं, पगली.’ वह तो उस वृद्धा से भी अधिक लाचार है. वह कम से कम न्याय की गुहार तो लगा रही है पर  वह तो सब जानतेबूझते हुए भी चुप रहने को विवश है.

वह बेचैनी में अपना मोबाइल सर्च करने लगी. तभी मंदिर में वृद्धा से बातचीत का वीडियो नजर आया. साथ ही, गन्ने के खेत में लोगों का कम्मो के साथ जोरजबरदस्ती का भी वीडियो था. साथ ही, उस में कम्मो की आवाज, ‘मैं डायन नहीं हूं, डायन नहीं हूं. मैं बड़े ठाकुर को नहीं छोड़ूंगी.’ यह आवाज उसे विचलित करने लगी थी. अपने बेटे के जीवन की भीख मांगते आदमी का तथा उस की आवाज को नकारते दादाजी की आवाज के साथ कम्मो को मारने का आदेश देते हुए दादाजी की आवाज ने उसे संज्ञाशून्य बना दिया था. सारे सुबूत सिर्फ एक ही ओर इशारा कर रहे थे.

‘तुम विवश नहीं हो, संवेदनशील मस्तिष्क कभी विवश नहीं हो सकता,’ अपने भीतर की यह आवाज सुन कर एकाएक उस ने निर्णय लिया कि वह अपनी पत्रकार मित्र शिल्पा की सहायता से वीडियो क्लिप के जरिए अपराधियों को दंड दिलवाएगी तथा समाज का यह विद्रूप चेहरा सामने लाएगी. समाज का कटु सत्य तो कम से कम समाज के सामने आएगा, सोच कर छवि ने संतोष की सांस ली.

शिल्पा और उस की टीम के एक महीने के अथक परिश्रम के बाद आखिर धीरजपुर गांव का धीरज टूट गया और दादाजी का घिनौना रूप समाज के सामने आ ही गया. टीवी पर फ्लैश होती वीडियो क्लिप को देख कर मां बाप हैरान थे पर छवि संतुष्टि का अनुभव कर रही थी.

कटु सत्य: भाग 1- क्या हुआ था छवि के साथ

करीब 10 वर्षों बाद छवि अपने गांव धीरजपुर आई है. इस गांव में उस का बचपन बीता है. यहां उस के दादाजी, तायाजी, ताईजी और उन के बच्चे व चचेरे भाईबहन हैं. तायाजी की बड़ी बेटी शिखा का विवाह है. चारों ओर धूमधाम है. कहीं हलवाई बैठा मिठाई बना रहा है तो कहीं मसाले पीसे जा रहे हैं, कहीं दरजी बैठा सिलाई कर रहा है तो कहीं हंसीठिठोली चल रही है. पर वह सब से अनभिज्ञ घर की छत पर खड़ी प्राकृतिक सौंदर्य निहार रही थी. चारों तरफ हरेभरे खेत, सामने दिखते बगीचे में नाचते मोर तथा नीचे कुएं से पानी भरती पनिहारिन के दृश्य आज भी उस के जेहन में बसे थे. वह सोचा करती थी न जाने कैसे ये पनिहारिनें सिर पर 2 और बगल में 1 पानी से भरे घड़े ले कर चल पाती हैं.

यह सोच ही रही थी कि छत पर एक मोर दिखाई दिया. फोटोग्राफी का उसे बचपन से शौक था और जब से उस के हाथ में स्मार्टफोन आया है, हर पल को कैद करना उस का जनून बनता जा रहा था, मानो हर यादगार भोगे पल से वह स्वयं को सदा जोड़े रखना चाहती हो. कुतूहलवश उस ने उस के नृत्य का वीडियो बनाने के लिए अपने मोबाइल का कैमरा औन किया पर वह मोर जैसे आया था वैसे ही चला गया, शायद प्रकृति में आए बदलाव से वह भी अछूता नहीं रह पाया.

अनमने मन से वह अंदर आई. दीवानखाने में लगे विशालकाय कपड़े का कढ़ाईदार पंखा याद आया जिसे बाहर बैठा पसीने में लथपथ नौकर रस्सी के सहारे झला करता था और वह व अन्य सभी आराम से बैठे पंखे की ठंडी हवा में मस्ती किया करते थे. वह सोचने लगी, न जाने कैसी संवेदनहीनता थी कि हम उस निरीह इंसान के बारे में सोच ही नहीं पाते थे.

पिछले 10 वर्षों में सबकुछ बदल गया है, कच्चे घरों की जगह पक्के घरों, टूटीफूटी कच्ची सड़कों की जगह पक्की सड़कों तथा हाथ के पंखों की जगह बिजली से चलने वाले पंखों ने ले ली है. किसीकिसी घर में गैस के चूल्हे तथा पानी की पाइपलाइन भी आ गई हैं. विकास सिर्फ शहरों में ही नहीं, गांव में भी स्पष्ट नजर आने लगा है.

‘‘दीदी, चलिए आप को गांव घुमा लाऊं,’’  छोटी बहन नील ने उस के पास आ कर कहा.

गांव घूमने की चाह उस के अंदर भी थी. सो वह उस के साथ चल पड़ी. पहले वह मंदिर ले कर गई. मंदिर परिसर में ही एक छोटा सा मंदिर और दिखा. रानी सती मंदिर. वहां पहुंचने के बाद छवि ने नील की ओर आश्चर्य से देखा.

‘‘दीदी, हमारी छोटी दादी अपने पति के साथ यहीं सती हुई थीं. उन की स्मृति में दादाजी ने उन के नाम से मंदिर बनवा दिया. जिस दिन वे सती हुई थीं, उस दिन यहां हर साल बहुत बड़ा मेला लगता है. दूरदूर से औरतें आ कर अपने सुहाग की मंगलकामना करते हुए उन के समान बनने की कसमें खाती हैं,’’ श्रद्धा से नतमस्तक होते हुए नील ने कहा.

‘‘छोटी दादी सती हो गई थीं पर यह तो आत्मदाह हुआ. क्या किसी ने उन्हें रोकने का प्रयास नहीं किया?’’ आश्चर्य से छवि ने पूछा.

‘‘यह तो पता नहीं दीदी, पर लोग कहते हैं कि वे अपने पति को बेहद चाहती थीं. वे उन की मृत्यु को सहन नहीं कर पाईं. अंतिम क्षण तक साथ रहने की कामना के साथ वे श्मशान घाट तक गईं. जब अग्नि ने जोर पकड़ लिया तब वे चिता में कूद पड़ीं. जब तक लोग कुछ समझ पाते तब तक उन का शरीर धूधू कर जलने लगा. उन को बचाने की सारी कोशिशें व्यर्थ हो गई थीं,’’ नील ने कहा.

‘‘यह घटना कब घटित हुई?’’

‘‘करीब 40 वर्ष हो गए होंगे.’’

नील की बात सुन कर छवि अपने विचारों में खोने लगी थी…

 

इस मंदिर की उसे याद क्यों नहीं है? ‘बचपन की सब बातें याद थोड़े ही रहती हैं,’ सोच कर मन को तसल्ली दी. फिर यहां रही ही कितना है वह.

4 वर्ष की थी तभी अपने मांपापा के साथ शहर चली गई थी. बीचबीच में कभी आती भी थी तो हफ्तादोहफ्ता रह कर चली जाती थी. पिछले 10 वर्षों  से तो उस का आना ही नहीं हो पाया. कभी उस की परीक्षा तो कभी भाई प्रियेश की. इस बार शिखा दीदी के विवाह को देखने की चाह उसे गांव लाई थी, वरना उस की तो मैडिकल में प्रवेश परीक्षा के लिए कोचिंग चल रही हैं.

वह तो आ गई पर उस का भाई प्रियेश आ ही नहीं पाया. अगले सप्ताह से उस की पै्रक्टिकल परीक्षा होने वाली है. शहर की भागदौड़ वाली जिंदगी में गांव की सहज, स्वाभाविक एवं नैसर्गिक स्मृतियां उस के जेहन में जबतब आ कर उसे सदा गांव से जोड़े रखती थीं. इन स्मृतियों को जबजब उस ने अपनी कहानी और कविताओं में ढाला था, चित्रों में गढ़ा था, उस की सहेलियां मजाक बनातीं, ‘साइंस स्टूडैंट हो कर भी इतनी भावुक क्यों हो, कल्पनाओं की दुनिया से निकल कर यथार्थ की दुनिया में रहना सीखो.’ तब वह कहती, ‘यह मेरा शौक है. दरअसल, मैं जीवन में घटी हर घटना को मस्तिष्क से नहीं दिल से महसूस करना चाहती हूं, उन का हल खोजना चाहती हूं. शायद, शहर की मशीनी जिंदगी से त्रस्त जीवन को मेरा यह शौक मेरे दिल को सुकून पहुंचाता है, जीवन के हर पहलू को समझने की शक्ति देता है और यही दर्द, मेरे दिल से निकली ध्वनियों में प्रतिध्वनित होता है.’

तभी विचारों के भंवर से निकलते हुए छवि ने नील से कहा, ‘‘और तू कह रही है कि हर वर्ष यहां मेला लगता है तथा स्त्रियां उन के जैसा ही बनने की कामना करती हैं.’’

‘‘हां दीदी.’’

‘‘इस का अर्थ है कि हम सतीप्रथा का विरोध करने के बजाय उसे बढ़ावा देने का प्रयत्न कर रहे हैं.’’

नील उस की बात का कोई उत्तर नहीं दे पाई. वे दोनों निशब्द आगे बढ़ते गए. चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा था. वह उसे आत्मसात करने का प्रयत्न करने लगी.

‘‘दीदी, देखो यह ट्यूबवैल. याद है, यहां हम नहाया करते थे. यहां से देखो तो जहां तक नजर आ रहा है वह पूरी जमीन  अपनी है. यह देखो गेहूं, सरसों के खेत, यह मटर तथा गन्ने के खेत. यहां से गन्ने वीरपुर स्थित शूगर फैक्टरी में जाते हैं. देखो, गन्ने ट्रकों पर लादे जा रहे हैं. दीदी, गन्ना खाओगी?’’ अचानक नील ने पूछा.

‘‘हां, क्यों नहीं.’’

छवि को गन्ना चूसना बेहद पसंद था. शहर में भी मां गन्ने के सीजन में गन्ने मंगा लेती थीं. वह और प्रियेश आंगन में बैठ कर आराम से गन्ना चूसा करते थे. अब जब गन्ने के खेत के पास खड़ी है तब बिना गन्ना चूसे कैसे आगे बढ़ सकती है. नील ने गन्ना तोड़ा और वे दोनों गन्ने का स्वाद लेने लगीं. गन्ने की मिठास से मन की कड़वाहट दूर हो गई. घर लौटने से पूर्व  उस ने प्राकृतिक सौंदर्य को कैद करने के लिए कैमरा औन किया ही था कि कुछ लोगों के चिल्लाने व एक औरत के भागने की आवाज सुनाई दी. उस ने नील की ओर देखा.

‘‘दीदी, यह औरत बालविधवा है. इस के देवर के घर बच्चा पैदा हुआ था. पर कुछ ही दिनों में वह मर गया. उस के देवर ने इसे यह कह कर घर से निकाल दिया कि यह डायन है, इसी ने उस के बच्चे को खा लिया है. तब से यह घरघर मांग कर खाती है और इधरउधर घूमती रहती है. बच्चे वाली औरतें तो इसे अपने पास फटकने भी नहीं देतीं. आज किसी बच्चे से अनजाने में टकरा गई होगी, जिस की वजह से इसे पीटा जा रहा है,’’ नील ने उस की जिज्ञासा शांत करने का प्रयत्न किया.

‘‘नील, क्या तुम्हें भी ऐसा लगता है कि यह डायन है?’’

‘‘नहीं दीदी, पर गांव के लोग ऐसा मानते हैं.’’

‘‘लोग नहीं, अशिक्षा उन के मुंह से यह कहलवा रही है. अगर ये शिक्षित होते तो ऐसा कभी नहीं कहते,’’ कहते हुए वह आगे बढ़ी तथा उस औरत को बचाने का प्रयत्न करते हुए अपने मन की बात उस ने लोगों से कही.

‘‘आप यहां की नहीं हो. आप क्या जानो इस की करतूतें,’’ एक गांववाला बोला.

‘‘भाई, यह एक इंसान हैं और एक इंसान के साथ ऐसा व्यवहार शोभा नहीं देता.’’

‘‘अगर इंसान होती तो बच्चों की मौत नहीं होती, 1-2 नहीं, पूरे 4 बच्चों को डस गई है यह डायन.’’

‘‘भाई, बच्चों की मृत्यु संयोग भी तो हो सकता है. किसी बेसहारा पर इस तरह के आरोप लगाना उचित नहीं है.’’ वह कुछ और कहने जा रही थी, तभी पीछे से किसी ने कहा,‘‘चलो भाई, चलो, ये बड़े ठाकुर साहब की पोती हैं. इन के मुंह लगना उचित नहीं है.’’ यह कह कर सब चले गए.

आगे पढ़ें- छवि के दिल पर हथौडे़ की…

किचन की जरुरत है चॉपिंग बोर्ड

चॉपिंग बोर्ड अर्थात एक ऐसा बोर्ड जिस पर रखकर सब्जियों की कटाई छंटाई की जा सके क्योंकि सब्जियों और फलों को काटे बिना तो प्रयोग करना ही सम्भव नहीं है, यद्यपि इन्हें बिना चॉपिंग बोर्ड के भी काटा जा सकता है परन्तु चॉपिंग बोर्ड पर काटने का सबसे बड़ा लाभ है कि एक तो इन्हें हाइजीनिक तरीके से काटा जा सकता है, दूसरे चॉपिंग बोर्ड पर बारीक से बारीक कटाई की जा सकती है और हाथ भी खराब नहीं होते. आज यू ट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे सोशल प्लेटफॉर्म के कारण भोजन के क्षेत्र में मानो क्रांति सी आ गयी है. यहां पर भांति भांति की डिशेज की भरमार है जिसके कारण आम जन जीवन के खानपान में तो काफी विविधता हो ही गयी है साथ ही सब्जियों की कटाई में भी विविधता आ गयी है. चॉपिंग बोर्ड के माध्यम से आप अपने काम को काफी आसान बना सकतीं हैं.

चॉपिंग बोर्ड के प्रकार

मुख्यतः दो प्रकार के चॉपिंग बोर्ड होते हैं-सादा बोर्ड और चाकू अटैच्ड बोर्ड आप अपनी उपयोगिता के अनुसार कोईभी ले सकतीं हैं. बाजार में आज निम्न चॉपिंग बोर्ड उपलब्ध हैं-

-वुडन चॉपिंग बोर्ड

ये मूलतः लकड़ी के बने होते हैं. इन्हें प्रयोग करने के बाद टांगने के लिए हुक भी लगा होता है. इन्हें दोनों तरफ से प्रयोग किया जा सकता है. जहां तक सम्भव हो जॉइंट वाले बोर्ड की अपेक्षा एक ही पीस वाले बोर्ड को खरीदना चाहिए.

-प्लास्टिक के चॉपिंग बोर्ड

लकड़ी की अपेक्षा ये वजन और मूल्य दोनों में ही हल्के होते हैं परन्तु इनकी सबसे बड़ी खामी है कि सब्जियों की कटाई के दौरान इनमें चाकू के निशान पड़ जाते हैं जिनमें बाद में गंदगी भरने लगती है.

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-स्टील और मार्बल के चॉपिंग बोर्ड

ये काफी मजबूत और चिकनी सर्फेस वाले होते हैं. मार्बल के बोर्ड वजन में भारी होने के कारण डेली उपयोग के लिए अधिक उपयोगी नहीं होते वही स्टील के बोर्ड हल्के फुल्के और साफ करने में भी आसान होते हैं.

-चॉपर

चॉपिंग बोर्ड के अलावा आज बाजार में इलेक्ट्रिक और नॉन इलेक्ट्रिक दोनों ही प्रकार के चॉपर की भरमार है.इनमें मोटी के साथ साथ बारीक से बारीक कटिंग भी बड़ी आसानी से की जा सकती है. कुछ चॉपर में तो कटी सब्जियों को रखने के लिए भी अलग अलग बॉक्सेज भी होते हैं आप अपनी उपयोगिता के अनुसार कोई भी चॉपर खरीद सकतीं हैं.

ध्यान रखने योग्य बातें

-चॉपिंग करने के बाद बोर्ड को तुरंत पानी से धोकर साफ करके ही रखें.

-रेगुलर यूज़ के लिए लकड़ी के बोर्ड सबसे अच्छे रहते हैं क्योंकि ये काफी टिकाऊ और मजबूत रहते हैं परन्तु प्रयोग के तुरंत बाद इन्हें पानी से धोकर सूती कपड़े से पोंछकर टांग दें ताकि उसका पानी पूरी तरह निकल जाए अन्यथा इनकी लकड़ी काली पड़ जाती है.

-वुडन बोर्ड को साफ करके तेल से ग्रीस कर दें इससे वह काफी समय तक खराब नहीं होगा.

-किसी भी प्रकार की बीन्स काटते समय उनमें पीछे की तरफ एक रबर बैंड लगा लें इससे चॉपिंग करने में बहुत आसानी रहेगी.

-मीट, अंडा जैसी मांसाहारी खाद्य पदार्थों को काटने के लिए अलग चॉपिंग बोर्ड रखें ताकि किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचा जा सके.

-आजकल बाजार में स्टील के फिंगर प्रोटेक्टर भी आते हैं जिन्हें उंगलियों में पहनकर आराम से सब्जियां काटी जा सकतीं हैं , यदि आप पहली बार चॉपिंग बोर्ड का प्रयोग कर रहीं है इस प्रोटेक्टर का प्रयोग अवश्य करें ताकि किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचीं रहें.

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एक भावनात्मक शून्य: क्या हादसे से उबर पाया विजय

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सौत से सहेली: भाग 1- क्या शिखा अपनी गृहस्थी बचा पाई

लेखिका-दिव्या साहनी

नीरजाने शिखा को अपने घर के गेट के पास कार से उतरते देखा तो उस की मुट्ठियां कस गईं. उन का घर दिल्ली की राजौरी गार्डन कालोनी में था जहां पुराने होते हुए मकानों में से कुछ को तोड़ कर नए फ्लोर बना कर बेचे जा रहे थे और सड़क पर आ जा रहे लोगों को पहली मंजिल से आराम से देखा जा सकता था. आजकल सड़कों पर सन्नाटा सा ज्यादा रहता है, इसलिए शिखा को कार से उतरते ही नीरजा ने देख लिया.

‘‘आजकल तेरे पति और शिखा के बीच चल रही आशिकी की औफिस में खूब चर्चा

हो रही है. तुम जल्दी से कुछ करो, नहीं तो

एक दिन पछताओगी,’’ अपने पति राजीव की सहयोगी आरती की इस चेतावनी को नीरजा पिछले 15 दिनों से लगातार याद कर रही थी.

राजीव की इस प्रेमिका से नीरजा 3 दिन पहले एक समारोह में मिली थी. वहीं पर बड़ा अपनापन जताते हुए नीरजा ने शिखा को अपने घर रविवार को लंच पर आने का निमंत्रण दिया था.

शिखा के लिए दरवाजा खोलने से पहले उस ने घर का मुआयना किया. सोफा चमचमा रहा था. सौफे पर मैचिंग कुशन तरतीब से लगे थे. दीवारों पर महंगी तो नहीं पर सुंदर पेंटिंग्स थीं. एसी चल रहा था और उस ने पंखा बंद कर रखा था ताकि कोई आवाज पंखें की घरघर में दब न जाए. वह जानती थी कि उसे आज क्या करना है.

शिखा की बेचैनी भरे सहमेपन को नीरजा ने दूर से ही भांप लिया था. घंटी का बटन दबाने से पहले शिखा को बारबार हिचकिचाते देख वह मुसकराई और फिर से दरवाजा खोलने चल पड़ी.

राजीव नहाने के बाद शयनकक्ष में तैयार हो रहा था. अपने दोनों बेटों सोनू और मोनू को नीरजा ने कुछ देर पहले पड़ोसिन अंजु के बच्चों के साथ खेलने भेज दिया था.

‘‘कितनी सुंदर लग रही हो तुम,’’ खुल

कर मुसकरा रही नीरजा दरवाजा खोलेते ही यों शिखा के गले लगी मानो दोनों बहुत पक्की सहेलियां हों.

‘‘थैंक यू,’’ जवाबी मुसकान फौरन होंठों पर सजा कर शिखा ने ड्राइंगरूम में नजरें घुमाईं और फिर प्रशंसाभरे स्वर में कहा, ‘‘बहुत अच्छ सजा रखा है ड्राइंगरूम को.’’

‘‘थैंक यू, डियर वैसे तुम्हारे कारण कमरे की सुंदरता को चार चांद लग गए हैं.’’

‘‘आप कुछ…’’

‘‘‘आप’ नहीं ‘तुम’ बुलाओ मुझे तुम, शिखा. मेरा नाम ले सकती हो तुम,’’ नीरजा ने उसे प्यार से टोक दिया.

‘‘ओ.के. मैं कह रही थी कि तुम कुछ ज्यादा ही मेरी तारीफ कर रही हो. मेरे हिसाब से तो तुम मुझ से ज्यादा सुंदर हो.’’

‘‘अरे यार, हम शादीशुदा औरतों की सुंदरता में वह कशिश कहां जो तुम कुंआरियों में होती है. देखो, मेरा कोई आशिक नहीं है और तुम्हारे चाहने वालों की पक्का एक लंबी लिस्ट होगी.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ शिखा के मन की बेचैनी फौरन उस की आंखों से झांकने लगी थी.

नीरजा के जवाब देने से पहले ही राजीव ड्राइंगरूम में आ गया. उस ने शिखा का अभिवादन किया. नीरजा दोनों की नजरों को

पढ़ रही थी. परस्पर आकर्षण को छिपाने का प्रयास दोनों को करते देख वह मन ही मन हंस पड़ी ‘‘राजीव देखे तो शिखा मान नहीं रही है कि वह मुझ से कहीं ज्यादा सुंदर है. आप उसे इस बात का विश्वास दिलाओ. तब तक मैं चायनाश्ता तैयार कर लाती हूं,’’ नीरजा ने शिखा का कंधा बड़े प्यार से दबाया और फिर मुसकराती हुई रसोई की तरफ बढ़ चली.

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नीरजा की मुसकराहट को देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह अपने पति की प्रेमिका के प्रति अपने मन में रत्तीभर भी वैरभाव रखती होगी.

उसे चायनाश्ता तैयार करने में करीब

15 मिनट लगते पर उस ने जानबूझ कर कुछ ज्यादा ही देर लगाई ताकि वह राजीव और शिखा को परेशान होने दे. अंदर ड्राइंगरूम में राजीव और शिखा औफिस से संबंधित वार्त्तालाप कर रहे थे पर केवल दिखाने भर के लिए.

अचानक किचन से कई कपप्लेटों के टूटने की तेज आवाज सुन दोनों चौंक कर खड़े हो गए.

‘‘हाय, मर गई रे,’’ नीरजा की दर्द में डूबी आवाज भी जब दोनों के कानों तक पहुंची, तो लगभग भागते हुए रसोई की तरफ बढ़े.

बरामदे में कपप्लेटों के टुकड़े, चाय व नाश्ता फर्श पर बिखरा पड़ा था. फर्श पर गिरी नीरजा अपने बांएं घुटने को पकड़े कराह रही थी.

‘‘क्या हुआ?’’ नीरजा के पास बैठ कर राजीव ने चिंतित लहजे में सवाल किया.

‘‘पैर फिसल गया मेरा… बहुत दर्द है घुटने में,’’ नीरजा की लाल हो रही आंखों से आंसू बह रहे थे.

‘‘चलो, कमरे में चलो,’’ राजीव उस के कंधों को सहारा दे कर उसे उठाने की कोशिश करने लगा.

‘‘अभी नहीं उठ सकती हूं मैं. शिखा, तुम फ्रिज से बर्फ निकाल लाओ, प्लीज… हाय रे…’’ नीरजा जोर से कराही.

शिखा भागती हुई बर्फ लाने रसोई में चली गईर्. राजीव उसे हौसला रखने के लिए कह रहा था, पर नीरजा रहरहकर जोर से करा उठती.

बर्फ ला कर शिखा ने नीरजा के घुटने की ठंडी सिंकाई शुरू कर दी. राजीव फर्श की सफाई करने लग गया.

‘‘कुछ आराम पड़ रहा है?’’ कुछ देर बाद चिंतित शिखा ने प्रश्न किया तो नीरजा रो ही पड़ी.

‘‘दर्द के मारे मेरी जान निकली जा रही है, शिखा. आई एम सो सौरी… तुम्हारी खातिर करने के बजाय मैं ने तो तुम्हें इस झंझट में फंसा दिया,’’ नीरजा ने शिखा से माफी मांगी.

‘‘अरे, इंसान ही इंसान के काम आता है, नीरजा. क्या तुम बैडरूम तक चल सकोगी

सहारे से?’’ शिखा हौसला बढ़ाने वाले अंदाज

में मुसकराई.

‘‘नहीं, दर्द बहुत ज्यादा है. सुनिए, आप डाक्टर राजेश को फोन करो कि वे ऐंबुलैंस भेज दें. मुझे विश्वास है कि मेरी घुटने हड्डी जरूर ही टूटी या खिसक गई है. घुटने का ऐक्सरे होना जरूरी है… हाय रे… पता नहीं करोना के बाद इन अस्पतालों का क्या हाल होगा.’’

राजीव ने और्थोपैडिक सर्जन डाक्टर राजेश से मोबाइल पर बात करी. उन्होंने फौरन ऐंबुलैंस भेजने का वादा किया.

करीब 30 मिनट के बाद स्ट्रैचर पर लेटी नीरजा ऐंबुलैंस से डाक्टर राजीव के नर्सिंगहोम पहुंच गई. शिखा उस के साथ आईर् थी जबकि राजीव उन के पीछे अपनी कार से नर्सिंगहोम पहुंचा.

डाक्टर राजेश की फिजियोथेरैपिस्ट मीनाक्षी से नीरजा की पुरानी

जानपहचान थी. अपने कमर का दर्द दूर करने के लिए 6 महीने पहले नीरजा 3 सप्ताह के लिए उस की देखभाल में रही थी.

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मीनाक्षी ने जांचपड़ताल हो जाने के बाद डाक्टर राजेश के कक्ष से बाहर आ कर उन दोनों को बताया, ‘‘हड्डी खिसक जाने के कारण घुटने के जोड़ पर सूजन आ गई है. पूरे 3 हफ्ते का प्लस्तर चढ़ेगा. नीरजा को इतने समय तक बिस्तर में पूरा आराम करना होगा.’’

यह सुन कर राजीव चिंतित हो उठा. उस ने पहले अपनी मां को मेरठ फोन किया तो पता लगा कि वे उस के छोटे भाई के पास रहने मुंबई गई हुई हैं.

अपनी सास को कानपुर फोन किया तो मामूल पड़ा कि उस के ससुर की 2 दिन बाद ऐंजयोग्राफी होनी है. वे वर्षों से उच्च रक्तचाप के मरीज हैं और पिछले दिनों से उन की छाती में दर्द कुछ ज्यादा ही रहने लगा था.

राजीव ने सुस्त स्वर में जब यह समाचार कुछ देर बाद नीरजा को सुनाया तो उस ने फौरन शिखा का हाथ पकड़ कर उस से प्रार्थना करी, ‘‘शिखा, क्या तुम इस कठिन समय में  मेरा साथ दोगी? मेरा दिल कह रहा है कि मुझे अपनी इस छोटी बहन के होते हुए किसी भी बात की फिक्र करने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘श्योर, नीरजा. मैं संभाल लूंगी सब.

बस, तुम जल्दी से ठीक हो जाओ,’’ शिखा ने उत्साहित लहजे में नीरजा को आश्वस्त किया

तो भावविभोर हो नीरजा ने बारबार उस का हाथ चूम डाला.

अपने प्रेमी राजीव की पत्नी की ‘गुड बुक्स’ में आने की खातिर शिखा ने उस क्षण से नीरजा की घरगृहस्थी की अच्छी देखभाल करने का बीड़ा उठा लिया. वह यह सोचसोच कर प्रसन्न हो उठती कि आगामी कुछ दिनों तक उसे राजीव के करीब रहने के भरपूर अवसर प्राप्त होंगे.

अपने पैर पर प्लस्तर चढ़वा कर नीरजा ऐंबुलैंस से करीब 3 घंटे बाद घर पहुंच गई. सारे समय शिखा उस के पास रुकी थी.

‘‘तुम स्वभाव से कितनी अच्छी हो, शिखा. मैं तुम्हारे इन एहसानों का बदला कभी नहीं उतार आऊंगी,’’ आभार प्रकट करने वाले ऐसे वाक्यों को बोलते हुए नीरजा की जबान बिलकुल थक नहीं रही थी.

आगे पढ़ें- उस दिन नीरजा के यहां…

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Valentine’s Special: स्किन के हेल्थ में सुधार करें ‘Matcha’, स्किनकेयर रूटीन में करें शामिल

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

क्या आप भी अपने चेहरे का ग्लो बढ़ाने के लिए फेसपैक, फेसमास्क का इस्तेमाल करते हैं. अगर ऐसा है, तो इस बार कुछ अलग ट्राय करके जरूर देखें. हम बात कर रहे हैं माचा की, जो इन दिनों ब्यूटी ट्रेंड का एक हिस्सा है.  कहने को माचा एक जापानी ग्रीन टी है, लेकिन सौंदर्य लाभ के लिए सबसे ज्यादा डिमांड वाली वेरिएंट के रूप में उभरी है. पिछले कुछ समय में माचा ने काफी पॉपुलेरिटी हासिल की है. यह एक बारीक पिसा हुआ पाउडर है, जो 12वीं शताब्दी से जापानी संस्कृति का हिस्सा रहा है. स्किन की कई समस्याओं को कम करने के लिए इस पांरपरिक उपाय का उपयोग किया जाता है. ब्यूटी एक्सपट्र्स के अनुसार, माचा एक पॉपुलर एंटी ऑक्सीडेंट है , जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की रक्षा करता है. इसके अलावा ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करके स्किन को स्वस्थ बनाने में भी मददगार है. बता दें कि माचा का हरा रंग क्लोरोफिल से आता है , जो तैलीय और मुंहासों वाली स्किन को संतुलित करने में हेल्प करता है.  इसमें मौजूद विटामिन ए, सी, के , बी जैसे सभी पोषक तत्व स्वस्थ स्किन के लिए कोलेजन का उत्पादन करते हैं और समय से पहले स्किन की उम्र को बढऩे से रोकते हैं. तो आइए जानते हैं कि अपनी स्किन के स्वास्थ्य में सुधार के लिए माचा का उपयोग कैसे किया जा सकता है.

स्किन को टोन करने के लिए-

– एक कटोरी में दो चम्मच माचा पाउडर लें और इसमें गुलाबजल मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बना लें.

– लैवेंडर असेंयिशयल ऑयल की कुछ बूंदें डालें और अच्छी तरह मिलाएं.

– इस पेस्ट को अपने चेहरे और गर्दन पर लगाएं.

– 15 मिनट के बाद मास्क सूखने के बाद इसे धो लें.

चमकदार और साफ स्किन पाने के लिए इस होममेड स्किनटोनर का इस्तेमाल हफ्ते में 3 बार करें.

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चेहरे की चिकनाई को रोकने के लिए-

– एक कटोरी में माचा पाउडर को मुल्तानी मिट्टी के साथ मिलाएं .

– इसमें टी ट्री ऑयल की कुछ बूंदें डालें.

– एक चिकना पेस्ट बनाने के लिए पानी डालें.

– अब इसे अपने चेहरे और गर्दन पर लगाएं.

– सूखने दें और सादा पानी से धो लें.

यह  होमेमड फेसमास्क  स्किन से अतिरिक्त तेल को हटा देगा और पोर्स को भी कम कर देगा.

एक्सफोलिएट करने के लिए-

– एक  कटोरी में दो चम्मच  माचा ग्रीन टी पाउडर और एक चम्मच पिसी हुई कॉफी बीन्स लें.

– इसमें थोड़ा सा दही मिलाकर पेस्ट बना लें.

– अच्छी तरह ब्लेंड करें और इस मिश्रण को चेहरे व गर्दन पर लगाएं.

– इसे कुछ मिनट के लिए लगा छोड़ दें और फिर सूखने पर फर्म मसाज स्ट्रोक का उपयोग करके स्किन को धीरे से स्क्रब करें.

– अब पानी से धो लें और स्किन को धीरे से थपथपाएं.

यह होममेड स्क्रब गंदगी और मृत स्किन कोशिकाओं को भीतर से हटाकर स्किन को कोमलता प्रदान करेगा.

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Valentine’s Special: घर पर आसानी से बनाएं टाकोज

टाकोज एक मेक्सिकन डिश है जिसे मैदा से बनी रोटी को फोल्ड करके सब्जियों और चीज की फिलिंग का प्रयोग करके बनाया जाता है. बच्चों को बेहद प्रिय होता है टाकोज. बाजार में यह काफी महंगे दामों पर मिलते ही हैं साथ ही मैदा से बनाये जाने के कारण स्वास्थ्यप्रद भी नहीं होते तो क्यों न इन्हें घर पर ही मैदा की जगह गेहूं के आटे से बनाया जाए. घर पर बनाने से आप इसकी फिलिंग में अपनी मनपसंद सब्जियों का प्रयोग कर सकतीं हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

कितने लोंगों के लिए          6

बनने में लगने वाला समय     30 मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री (कवरिंग के लिए)

गेहूं का आटा                  1 कप

नमक                            1/4 टीस्पून

अजवाइन                       1/4 टीस्पून

घी या तेल                      2 टेबलस्पून

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सामग्री(फिलिंग के लिए)

बारीक कटा प्याज               1

लहसुन अदरक पेस्ट              1 टीस्पून

बारीक कटी शिमला मिर्च      1

उबले कॉर्न                           1 कप

टमाटर                                   2

उबले और मैश किये आलू         2

चीज क्यूब                             6

टोमेटो सॉस                           1 टीस्पून

शेजवान सॉस या चटनी          1 टीस्पून

चिली फ्लैक्स                       1/2 टीस्पून

ऑरिगेनो                             1/2 टीस्पून

मिक्स हर्ब्स                          1/2 टीस्पून

नीबू का रस                        1 टीस्पून

नमक                                  स्वादानुसार

तेल                                     1 टीस्पून

विधि

टाकोज की कवरिंग  बनाने के लिए गेहूं के आटे में नमक, अजवाइन और 1 टीस्पून तेल अच्छी तरह मिलाएं. अब धीरे धीरे पानी मिलाते हुए रोटी जैसा नरम आटा लगाकर 15 मिनट के लिए सूती कपड़े से ढककर रख दें. 15 मिनट बाद आटे को हाथ से थोड़ा मसलें और 6 टुकड़ों में काट लें. इससे मध्यम मोटाई की रोटी बेलकर तवे पर दोनों तरफ से हल्का सा सेंक लें. इसी प्रकार सभी रोटियां सेककर एक कैसरोल में रख लें.

फिलिंग बनाने के लिए सबसे पहले टमाटर के बीज निकाल कर बारीक काट लें. एक पैन में 1 टेबलस्पून तेल गरम करके प्याज और अदरक, लहसुन के पेस्ट को भूनकर शिमला मिर्च, टमाटर और कॉर्न के दाने डालकर नमक डाल दें और ढककर धीमी आंच पर सब्जियों के गलने तक पकाएं. मैश किये आलू, ऑरिगेनो, मिक्स हर्ब्स, चिली फ्लैक्स  और नीबू का रस डालकर भली भांति चलाएं.

अब टाकोज बनाने के लिए एक कटोरी में टोमेटो सॉस और शेजवान सॉस को मिक्स कर लें. तैयार रोटी पर दोनों सॉसेज को अच्छी तरह फैलाएं.

आधे हिस्से पर आधा चीज क्यूब ग्रेट करके 1 टेबलस्पून  सब्जियों की फिलिंग डालें ऊपर से फिर किसा चीज डालकर रोटी को फोल्ड करें और इस फोल्ड रोटी को तवे पर धीमी आंच पर घी या बटर लगाकर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेकें. तैयार टाकोज के खुले हिस्से पर टोमेटो सॉस लगाकर सर्व करें. इसी प्रकार सारे टाकोज तैयार करें.

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करें ये भी प्रयोग

-टाकोज की कवरिंग बनाने के लिए आप गेहूं के आटे के स्थान पर मल्टीग्रेन आटे का भी प्रयोग कर सकतीं हैं.

-यदि घर में रोटियां बच जाए तो उन्हें हल्का सा स्टीम करके नरम करें और मनचाही फिलिंग भरकर स्वादिष्ट टाको तैयार कर सकतीं है.

-आमतौर पर बच्चे सब्जियां खाना पसंद नहीं करते टाकोज के जरिये आप उन्हें सभी हैल्दी सब्जियां खिला सकतीं हैं.

-फिलिंग में आप आलू के स्थान सोया पनीर या सादा पनीर का प्रयोग भी कर सकतीं हैं.

-ब्रेड स्लाइस को भी आप तेल में तलकर हल्का सा फोल्ड करके इंस्टेंट टाको की कवरिंग तैयार कर सकतीं हैं.

मेरा बौयफ्रेंड किसी और को चाहने लगा है, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं एक लड़के से 3 वर्षों से प्यार करती हूं. वह भी मुझ से प्यार करता है. बीच में हम दोनों में कुछ मनमुटाव हो गया था. अब वह कहता है कि वह मुझे नहीं किसी और को चाहता है. मैं उसे भुला नहीं सकती. दिनरात रोती हूं. कभी वह कहता है कि लौट आओ. मुझे उस के व्यवहार को ले कर बहुत गुस्सा आता है, यह सोच कर कि उस ने मेरा मजाक बना रखा है. क्या मैं उस पर भरोसा करूं या नहीं?

जवाब

एकदूसरे को समझने के लिए 3 साल का समय बहुत होता है. यदि आप का प्रेमी आप से साफसाफ कह चुका है कि वह आप को नहीं किसी और लड़की को चाहता है तो आप को किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए और उस से किनारा कर लेना चाहिए. अपने पहले प्यार को भुलाना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है पर नामुमकिन नहीं. समय बीतने के साथ आप के दिलोदिमाग से उस की यादें मिट जाएंगी.

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लगभग एक साल पहले भंवरताल गार्डन जबलपुर में रहने वाली आयशा ने स्वास्थ्य महकमे में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर तैनात अपने पति डा. शफातउल्लाह खान की हत्या इसलिए करवा दी थी, क्योंकि उस का पति अपने विभाग की कई महिला कर्मचारियों से अवैध संबंध रखता था. अपनी अय्याशी की वजह से पत्नी के साथ संबंध भी नहीं बनाता था और पत्नी को प्रताडि़त करता था. हद तो तब हो गई जब पति ने पत्नी की नाबालिग भतीजी को अपनी हवस का शिकार बना लिया और इस से नाबालिग को गर्भ ठहर गया. तंग आ कर पत्नी ने सुपारी दे कर उस की हत्या करवा दी. इसी तरह दिसंबर 2019 में नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव थाना क्षेत्र में एक युवक आशीष की हत्या उस के दोस्त पंकज ने इसलिए कर दी थी, क्योंकि आशीष ने पंकज की पत्नी से सैक्स संबंध बना रखे थे.

ये घटनाएं साबित करती हैं कि समाज में बढ़ते व्यभिचार और विवाहेत्तर संबंधों के कारण अपराधों का ग्राफ भी तेजी से बढ़ रहा है. आमतौर पर विवाह होने के बाद पति और पत्नी के बीच के सैक्स संबंध प्रारंभ के कुछ वर्षों में तो ठीक रहते हैं, परंतु बच्चों के जन्म के बाद पार्टनर की जरूरतों पर पर्याप्त ध्यान न देना और सैक्स संबंधों के प्रति लापरवाही कलह का कारण बन जाते हैं.

सैक्स स्पैशलिस्ट बताते हैं कि सुखद सैक्स उसी को माना जाता है जिस में दोनों पार्टनर और्गेज्म पा सकें. यदि पतिपत्नी सैक्स संबंधों में एकदूसरे को संतुष्ट कर पाने में सफल होते हैं तो उन के दांपत्य संबंधों की कैमिस्ट्री भी अच्छी रहती है.

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