परदे पर हीरो, पढ़ाई में जीरो

एक इंटरव्यू में अभिनेत्री जाह्नवी कपूर से जब उन की शिक्षा के बारे में पूछा गया, तो पहले तो उन्होंने गर्व से कहा कि उन्होंने केवल 9वीं कक्षा तक पढ़ाई की है क्योंकि बचपन से उन्हें पढ़ाई पसंद नहीं थी और 5 साल की उम्र से वे अपनी मां और अभिनेत्री श्रीदेवी के साथ उन के शूटिंग सैट पर जाती रहती थी. उन्हें ये सब देखना पसंद था क्योंकि उन्हें भी अभिनेत्री बनना था. फिर अचानक कहती हैं कि क्या अभिनय के लिए शिक्षा जरुरी है? ऐसा मैं नहीं मानती. क्रिएटिविटी के लिए शिक्षा कहीं पर भी आवश्यक नहीं होती. पुराने कलाकर तो अधिकतर कम पढ़ेलिखे या बिलकुल भी शिक्षित नहीं थे. फिर भी सब ने अच्छा काम किया और सफल रहे.

यह सही है कि जाह्नवी जैसी कई आर्टिस्ट शिक्षा को अभिनय में जरूरी महसूस नहीं करते क्योंकि उन्हें पता होता है कि उन्हें अच्छा काम मिलने में कोई संघर्ष नहीं है क्योंकि वे सेलेब्स के बच्चे हैं और उन के पिता ही फिल्म के प्रोड्यूसर हैं. इन से अलग कुछ कलाकार ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर इंडस्ट्री में काम शुरू किया है.

एक इंटरव्यू में अभिनेता विकी कौशल से उन का इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद अभिनय में उतरना क्या सही है, पूछने पर उन का कहना है कि पढ़ेलिखे होने पर चरित्र के ग्राफ को सम झने में आसानी होती है क्योंकि अभिनय में भी चरित्र का खाका बनाया जाता है, जिस के अनुसार यह पूरी फिल्म बनती है, साथ ही आज की तकनीक को सम झना भी बहुत जरूरी है.

समाज में शिक्षा और शिक्षितों का महत्त्व बहुत अधिक होता है, फिर चाहे वह बौलीवुड हो या आम इंसान. हर व्यक्ति के जीवन में शिक्षा की मुख्य भूमिका होती है. जैसा कहा जाता है कि शिक्षा के बिना जीवन का कोई महत्त्व नहीं होता क्योंकि इस के द्वारा ही व्यक्ति को सफलता की सीढ़ी चढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.

शिक्षा केवल कैरियर के लिए ही नहीं, बल्कि व्यक्ति के मार्गदर्शन, एक योजनाबद्ध और संवेदनशील के साथ आगे बढ़ने में सहायक होती है. कई बार कुछ कारणों से सेलेब्स की शिक्षा अधूरी रह जाती है, लेकिन इस का खमियाजा उन्हें आगे चल कर भुगतना पड़ता है.

करते हैं खुद को अपडेट

पुराने कई कलाकारों ने एक समय के बाद खुद को अपडेट करने के लिए अंगरेजी सीखी ताकि विदेश में उन्हें किसी प्रकार की समस्या न हो. इस के अलावा यह देखा गया है कि जिन सेलेब्स के बच्चों को आसानी से ऐक्टिंग फील्ड में आने का मौका मिलता है, वे खासकर कम पढ़ाई करते हैं. इस के अलावा उन की एक फिल्म सफल न होने पर भी उन्हें कई बार मौका मिलता है, जिस से वे आगे जा कर अभिनय सीख जाते हैं.

ऐसे में वे ग्लैमर से आकर्षित हो कर इंडस्ट्री में आ जाते हैं और खुद को स्थापित नहीं कर पाते, जबकि आउटसाइडर को बहुत मुश्किल से एक मौका मिलता है और उस में वह अगर सफल नहीं होता है, तो दूसरा औफर मिलना मुश्किल होता है. इसलिए उन का पढ़ालिखा होना बहुत जरूरी होता है क्योंकि अभिनय में सफल न होने पर उन्हें दूसरे काम करने पड़ते हैं क्योंकि मुंबई जैसे शहर में बिना जौब के रहना कठिन होता है.

आज फिल्म मेकिंग में भी तकनीक का बहुत प्रयोग होता है. ऐसे में शिक्षित कलाकारों को किसी भी निर्देशन को फौलो करने में आसानी होती है. आइए, जानते हैं, वे सेलेब्स जो कालेज नहीं गए,

सोनम कपूर

सोनम कपूर ने 12वीं कक्षा तक पढ़ने के बाद पत्राचार के जरीए ग्रैजुएशन करने के लिए एडमिशन लिया, लेकिन बीच में पढ़ाई छोड़ अपने फिल्मी सफर की शुरुआत कर ली. एक इंटरव्यू में सोनम ने कहा, ‘‘मैं ने 12वीं कक्षा की पढ़ाई बीच में छोड़ दी और अभिनेत्री बन गई क्योंकि मैं 4 साल तक इंतजार नहीं कर सकती थी, लेकिन आज शिक्षा का महत्त्व सम झती हूं. मेरे पिता अनिल कपूर ने मु झे कई बार पढ़ाई पूरी करने के लिए कहा, पर मेरा मन पढ़ाई से ऊब चुका था. आज के दौर मैं सभी का शिक्षित होना आवश्यक है.’’

काजोल

काजोल ने बौलीवुड में एक से बढ़ कर एक फिल्मों में काम किया है और आज भी वे बौलीवुड में पूरी तरह से सक्रिय हैं. काजोल ने 17 साल की उम्र में बौलीवुड में कदम रख लिया था जिस के चलते उन्होंने बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी. एक इवेंट में काजोल ने कहा, ‘‘मैं ने कभी दिल लगा कर पढ़ाई नहीं की है. स्कूल की शिक्षा समाप्त कर मैं ने फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन आज मैं शिक्षा के महत्त्व को जानती हूं. मु झे दुख इस बात का है कि मैं ने एक बहुत बड़ी गलती की है. आज मैं अपने बच्चों को पूरी शिक्षा देने की कोशिश कर रही हूं.’’

कंगना रनौत

अपने बयानों की वजह से अकसर सुर्खियों में रहने वाली कंगना 12वीं कक्षा में ही फेल हो गई थीं. इस हिसाब से वे 10वीं कक्षा पास ही हैं. वे कहती हैं, ‘‘मैं असल पढ़ाई तो नहीं कर पाई, पर इंडस्ट्री ने मु झे अच्छी तरह से पाठ पढ़ा दिया है. मैं जानती हूं कि बड़े शहरों में रहने वाली लड़कियों को अपनी शिक्षा पूरी करने का मौका मिलता है क्योंकि वे कौन्फिडैंट और चेतनाशील होती हैं, लेकिन छोटे शहरों में लोग लड़कियों के अधिक पढ़ने पर जोर नहीं देते, उन की इच्छा को दबा दिया जाता है और उन की शादी कर दी जाती है. महिलाओं को उन की आजादी के साथ रहने देना जरूरी है और उन से किसी भी प्रकार की आशा रखना ठीक नहीं जैसाकि शादी के बाद परिवार वाले करते हैं.’’

आलिया भट्ट

अपने हुस्न और अपनी अदाकारी से लोगों का दिल जीतने वाली एक्ट्रैस आलिया भट्ट भी केवल 12वीं कक्षा पास हैं. वे कहती हैं, ‘‘शिक्षा को ले कर मु झे किसी प्रकार का रिग्रैट नहीं है. मैं आगे पढ़ाई के लिए कभी कालेज जाना नहीं चाहती थी और न ही आगे पढ़ाई को फिर से जारी रखना चाहूंगी क्योंकि मैं 100% कैरियर इस क्षेत्र में ही बनाऊंगी.

अर्जुन कपूर

अभिनेता अर्जुन कपूर की पढ़ाई में कभी दिलचस्पी नहीं थी. उन्होंने मुंबई के एक स्कूल में 11वीं कक्षा तक पढ़ाई की है, पढ़ाई छोड़ने की वजह 11वीं कक्षा की परीक्षा क्लियर न कर पाना था, जिस के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी. एक संस्था के उद्घाटन पर उन्होंने बताया, ‘‘शिक्षा सभी के लिए बहुत जरूरी है, जितना एक बच्चा पढ़ेगा उतना ही वह बच्चा भविष्य में देश के लिए अच्छा काम करेगा. एक ऐक्टर के तौर पर मैं अनुभव करता हूं कि मेरी शिक्षा, मेरा लालनपालन और मेरी लाइफ उस का ही अस्तित्व है, जिसे मैं शिक्षा के द्वारा अच्छा बना सकता था.’’

करिश्मा कपूर

90 के दशक की पौपुलर अभिनेत्री करिश्मा कपूर ने टीनऐज में फिल्मों में कदम रखा था. ऐसा उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के खराब हो जाने पर किया था. उन्होंने पढाई छोड़ कैरियर पर अधिक बल दिया ताकि परिवार को आर्थिक रूप से कुछ सहायता मिले. करिश्मा कहती हैं, ‘‘मैं अपने कैरियर को ले कर आश्वस्त नहीं थी, लेकिन धीरेधीरे सब सही हुआ. मेरी मां ने हमेशा हम दोनों बहनों को ग्लैमर से दूर आम बच्चों की तरह पाला है. शिक्षा का महत्त्व हमेशा रहता है, जिसे मैं आज फील करती हूं.’’

टाइगर श्रौफ

जैकी श्रौफ के बेटे टाइगर ने भी 12वीं के बोर्ड एग्जाम के बाद पढ़ाई छोड़ दी और मार्शल आर्ट सीखने विदेश चले गए. वे कहते हैं, ‘‘मेरा आगे पढ़ने का मन नहीं था. अगर पहली फिल्म ‘हीरोपंती’ सफल नहीं होती, तो मु झे आगे पढ़ाई के लिए सोचना पड़ता. यह सही है कि आज शिक्षित होना सभी के लिए आवश्यक है.

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विक्की कौशल ने दोबारा रचाई शादी! जानें क्या है मामला

बौलीवुड एक्टर विक्की कौशल ने साल 2021 में एक्ट्रेस कटरीना कैफ संग शादी रचाई थी, जिसकी फोटोज और वीडियो आज भी सोशलमीडिया पर वायरल होती रहती हैं. इसी बीच एक्टर विक्की कौशल की एक वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें वह दोबारा घोड़ी पर चढे हुए नजर आ रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

ऐसे हुई विक्की कौशल की दोबारा शादी

 

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हाल ही में शादी के बाद पहले अवौर्ड शो आईफा 2022 में पहुंचे विक्की कौशल की शो के होस्ट रितेश देशमुख और मनीष पॉल ने टांग खींची. दरअसल, शो में अकेले आए विक्की कौशल की टांग खींचते हुए होस्ट ने उन्हें घोड़ी चढाई और फिर  कैटरीना कैफ का बड़ा सा पोस्टर लेकर उन्हें वरमाला पहनाई. एक्टर की इस वीडियो पर फैंस के मजेदार रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं.

 

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शादी के बाद लाइफ के बारे में कही ये बाद

 

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आईफा अवॉर्ड 2022 में फिल्म ‘सरदार उधम सिंह’ के लिए बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड जीत चुके विक्की कौशल ने हाल ही में शादी के बाद अपनी लाइफ के बारे में चुप्पी तोड़ते हुए एक इंटरव्यू में कहा था कि  ‘कैटरीना कैफ के साथ मैरिड लाइफ बहुत अच्छी चल रही है… सुकून भरी है. मैं कैटरीना कैफ को अवॉर्ड शो में मिस कर रहा हूं. उम्मीद है कि अगले साल हम आईफा में एक साथ आएंगे.’

 

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बता दें, ‘सरदार उधम सिंह’ के बाद एक्टर विक्की कौशल ‘गोविंदा नाम मेरा’ और आनंद तिवारी और लक्ष्मण उतरेकर की अनटाइटल्ड फिल्म का हिस्सा हैं. वहीं ‘सूर्यवंशी’ के बाद एक्ट्रेस कैटरीना कैफ फिल्म ‘टाइगर 3’, फिल्म ‘मेरी क्रिसमस’ और फिल्म ‘फोनभूत’ जैसी फिल्मों की शूटिंग में बिजी हैं, जिसके कारण दोनों एक दूसरे से दूर हैं. हालांकि वह कई बार एयरपोर्ट पर साथ नजर आ चुके हैं.

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‘सम्राट पृथ्वीराज’ की रिलीज के बीच छाए Manushi Chhillar के लुक्स, फैंस कर रहे तारीफ

Miss World 2017 का खिताब अपने नाम कर चुकीं मॉडल और एक्ट्रेस मानुषी छिल्लर (Manushi Chhillar) इन दिनों अक्षय कुमार के साथ अपनी फिल्म सम्राट पृथ्वीराज को लेकर चर्चा में हैं. जहां फिल्म की तारीफ हो रही है तो वहीं एक्ट्रेस के इंडियन लुक्स के फैंस कायल हो गए हैं. इसी के चलते आज हम आपको बॉलीवुड में अपनी डेब्यू फिल्म सम्राट पृथ्वीराज के प्रमोशन में पहने मानुषी के इंडियन लुक्स की झलक दिखाएंगे.

अनारकली सूट में पहुंची मंदिर

 

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अपनी डेब्यू फिल्म की रिलीज के बीच एक्ट्रेस मानुषी छिल्लर सिद्धिविनायक मंदिर पहुंची. जहां वह सफेद अनारकली में बेहद खूबसूरत लग रही थीं. फुल स्लीव्स औऱ हल्की एम्बौयडरी के साथ बालों में गजरा लगाए एक्ट्रेस बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

प्रमोशन के दौरान दिखी सादगी

 

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इसके अलावा एक्ट्रेस मानुषी बेहद सादगी भरे अंदाज में अपनी फिल्म का प्रमोशन करती नजर आईं. औफशोल्डर अनारकली में वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं. वहीं फोटोज देखकर फैंस उनकी तारीफें करते नहीं थक रहे थे.

साड़ी में भी दिखाई अदाएं

 

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हाल ही में एक्ट्रेस मानुषी छिल्लर ने साड़ी पहनी थी. फ्यूशिया पिंक कढ़ाईदार साड़ी में गोल्डन बॉर्डर एक्ट्रेस बेहद सिंपल लेकिन एलिगेंट लग रही थीं. फैंस को एक्ट्रेस का ये सादगी भरा अंदाज काफी पसंद आ रहा है.

इंडियन लुक्स में आती हैं नजर

 

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फिल्म के प्रमोशन के दौरान ही नहीं एक्ट्रेस मानुषी छिल्लर कई बार इंडियन लुक्स में नजर आ चुकी हैं. रफ्फल साड़ी हो या लहंगा, हर लुक में वह बेहद स्टाइलिश लगती है. हालांकि फैंस को उनकी सादगी काफी पसंद है. इसके अलावा फिल्म सम्राट पृथ्वीराज में एक्ट्रेस की अक्षय कुमार संग कैमेस्ट्री फैंस का दिल जीत रही है. वहीं सोशलमीडिया पर उनकी एक्टिंग के भी चर्चे जोरों पर हैं. हालांकि देखना होगा की एक्ट्रेस की डेब्यू फिल्म दर्शकों के दिलों पर कितना राज कर पाती है.

 

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REVIEW: जानें कैसी है Akshay और Manushi की फिल्म Samrat Prithviraj

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः आदित्य चोपड़ा

लेखक व निर्देशकः डॉं.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी

कलाकारः अक्षय कुमार, मानुषी छिल्लर, मानव विज, संजय दत्त, सोनू सूद, ललित तिवारी व अन्य

अवधिः दो घंटे 15 मिनट

भारतीय इतिहास में सम्राट पृथ्वीराज चैहान को वीर योद्धा माना जाता है. मगर उन्ही पर बनायी गयी फिल्म ‘‘सम्राट पृथ्वीराज’’ में  पृथ्वीराज की वीरता पर ठीक से रेखांकित नही किया गया है. इसके अलावा पिछले एक सप्ताह से अक्षय कुमार और डां. चंद्रप्रकाश द्विवेदी जिस तरह के विचार व्यक्त कर रहे थे,  उससे फिल्म कोसों दूर है. डां.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने यह फिल्म एक खास नरेटिब को पेश करते हुए बनायी है, मगर इसमें भी बुरी तरह से असफल रहे है.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है गजनी,  अफगानिस्तान में मो. गोरी(मानव विज )के दरबार से, जहां बंदी बनाए गए सम्राट पृथ्वीराज चैहान (अक्षय कुमार ) को लाया जाता है, उनकी आंखें जा चुकी हैं. दर्शक दीर्घा में चंद बरदाई (सोनू सूद )भी हैं. वह वहां भी सम्राट की महानता का बखान करने वाला गीत गा रहे हैं. पृथ्वीराज का मुकाबला तीन शेरों से होता है, जिन्हे वह शब्द भेदी बाण से मार गिराते हैं. फिर वह मो.  घोरी से कहते हैं कि जानवरांे को छोड़िए आप या आपका बहादुर सैनिक मुझसे लड़ें. यदि मेरी जीत हो तो मेरे साथ सभी हिंदुस्तानियों को रिहा किया जाए. इसके बाद वह जमीन पर गिर पड़ते हैं और फिर कहानी अतीत में चली जाती है. और कहानी शुरू होती है कनौज के राजा जयचंद(आशुतोष राणा) की बेटी संयोगिता(मानुषी छिल्लर) और अजमेर के राजा पृथ्वीराज की प्रेम कहानी से. फिर तराइन का पहला युद्ध होता है, जहां मो. गोरी को हार का सामना करना पड़ता है. तो वहीं अजमेर के राजा पृथ्वीराज (अक्षय कुमार) को दिल्ली का राजा बनाया जाना उनके संबंधी और कन्नौज के राजा जयचंद (आशुतोष राणा) को रास नहीं आता. यही नहीं सम्राट पृथ्वीराज खुद से प्रेम करने वाली जयचंद की बेटी संयोगिता (मानुषी छिल्लर) को भी स्वयंवर के मंडप से उठा लाते हैं. इससे अपमानित जयचंद तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज के हाथों शिकस्त हासिल कर चुके गजनी के सुलतान मोहम्मद गोरी (मानव विज) को पृथ्वीराज को धोखे से बंदी बनाकर उसे सौंप देने की चाल चलता है.  जिसमें वह कायमाब होता है और सम्राट पृथ्वीराज,  मो. गोरी के बंदी बन जाते हैं.  कहानी फिर से वर्तमान में आती है पृथ्वीराज के आव्हान को स्वीकार कर मो.  गोरी ख्ुाद पृथ्वीराज  से युद्ध करने के लिए मैदान में उतरता है. फिर क्या होता है, इसके लिए फिल्म देखना ही ठीक होगा.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म में संजय दत्त के अभिनय को छोड़कर ऐसा कुछ भी नही है, जिसकी तारीफ की जाए. फिल्म के लेखक व निर्देशक डां.  चंद्र प्रकाश द्विवेदी के बारे में कहा जाता है कि उन्हे इतिहास की बहुत अच्छी समझ है, मगर अफसोस फिल्म देखकर इस बात का अहसास नही होता. हमने अब तक जो कुछ किताबांे में पढ़ा है, या जो लोक गाथाएं सुनी हैं,  उनसे विपरीत फिल्म का क्लायमेक्स  गढ़कर डां.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने देश की जनता के सामने एक नए इतिहास को पेश किया है. यह इतिहास उन्हे कहां से पता चला यह तो वही जाने. पटकथा में विखराव बहुत है. बतौर निर्देशक वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. फिल्म को बनाते समय डॉं.  चंद्र्रप्रकाश द्विवेदी यह भी भूल गए कि यह फिल्म ग्यारहवीं सदी की है न कि वर्तमान समय की. फिल्म के गीत और भाषा वर्तमान समय की है. फिल्म में पृथ्वीराज चैहान व संयोगिता के संवादो में उर्दू शब्द ठॅूंेसे गए हैं. ‘हद कर  दी. . ’गाना कहीं से भी ग्यारहवी सदी का गाना होनेे का अहसास नही कराता. ‘ये शाम है बावरी सी. . ’गाना भी एैतिहासिक फिल्म के अनुरूप नही है.  इतना ही नही शाकंभरी मंदिर में पृथ्वीराज अपनी पत्नी व अन्य के साथ डांडिया व गरबा डंास करते हैं. . क्या कहना. . यह है इतिहास के जानकार. . .  इंटरवल से पहले तराइन के पहले युद्ध के छोटे से दृश्य को नजरंदाज कर दें, तो फिल्म में एक भी युद्ध दृश्य नहीं है, जबकि कहानी वीर योद्धा पृथ्वीराज चैहान की है. फिल्म के सभी एक्शन दृश्य हाशिए पर ढकेलने लायक हैं. प्रेम कहानी व जयचंद की कहानी को ज्यादा महत्व दिया गया है. इसके साथ ही नारी सम्मान व नारी उत्थान पर भी कुछ अच्छे संवाद है. ‘चाणक्य’ सीरियल व ‘पिंजर’ जैसी फिल्म के लेखक व निर्देशक डॉं. चंद्र प्रकाश द्विवेदी के अब तक के कैरियर का यह सबसे घटिया काम है.  इतना ही नहीं वह जो बयान बाजी कर रहे हैं और फिल्म से जो बात निकलकर आती है, उसमे विरोधाभास है. फिल्म देखकर अहसास होता है कि मो. गोरी को हिंदुस्तान भारत पर आक्रमण करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह तो पृथ्वीराज चैहाण को भी नही मारना चाहता था. वह इतना चाहता था कि पृथ्वीराज उसके सामने सिर झुका लें. आखिर लेखक एवं निर्देशक स्पष्ट रूप से कहना क्या चाहते हैं?वह बार बार अंतिम ंिहंदू राजा की बात जरुर करते हैं.

फिल्म में वह पृथ्वीराज और उनके बचपन के दोस्त व राज दरबारी कवि चंद बरदाई की दोस्ती व उसके इमोशंस को भी ठीक से चित्रित नही कर पाए. मगर इसमें उनका कोई दोष नही है. कहा जाता है कि इंसान के निजी जीवन की फितरत व स्वभाव जाने अनजाने उसके लेखन व उसकी बातों सामने आ ही जाता है.

फिल्म का वीएफएक्स बहुत कमजोर है. फिल्म के शुरूआत में शेर से लड़ने वाले दृश्य का वीएफएक्स ही नही एडीटिंग भी कमजोर है.

अभिनयः

अफसोस पृथ्वीराज के किरदार में अक्षय कुमार कहीं से भी फिट नहीं बैठते. वह हर दृश्य में कमजोर साबित हुए है. संयोगिता के किरदार में विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर भी निराश करती है. वह विश्व सुंदरी का ताज पहने हुए जितनी खूबसूरत लगी थी, इस फिल्म में वह उतनी खूबसूरत नही लगी. जहां तक अभिनय का सवाल है, तो हर दृश्य में उनका सपाट चेहरा ही नजर आता है. यदि मानुषी को अभिनय जगत में  कामयाब होना है, तो उन्हे बहुत मेहनत करने की जरुरत है.  काका कान्हा के किरदार में संजय दत्त अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. चंद बरादाई के किरदार में सोनू सूद प्रभावित करने में विफल रहे हैं. वास्तव में उनके किरदार को सही ढंग से लिख ही नही गया. मो. गोरी के किरदार में मानव विज का चयन ही गलत है. इसके अलावा विलेन को इतना कमजोर दिखाया गया है कि कल्पना नहीं की जा सकती. वैसे मो.  गोरी का किरदार छोटा ही है.

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REVIEW: दिल को छू लेने वाली गाथा है ‘मेजर’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः महेश बाबू और सोनी पिक्चर्स

निर्देशकः शशि किरण टिक्का

लेखकः अदिवी शेष

कलाकारः अदिवी शेष,सई मांजरेकर, शोभिता धूलिपाला,प्रकाश राज,रेवती, डॉ. मुरली शर्मा व अन्य

अवधिः दो घंटे 28 मिनट

26/11 को मुंबई में एक साथ कई जगह हुए आतंकवादी हमले में ताज होटल में छिपे आतंकियों से  बेकसूर आम जनता को बचाने के लिए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के नेतृत्व में एनएसजी कमांडो ताज होटल में घुसकर आतंकियों को ढूंढ ढूंढ़कर मार रहे थे. पर कुछ आतंकियों की घेरे बंदी में मेजर संदीप उन्नीकृष्णन इस कदर अकेले फंसे कि वह शहीद हो गए. ऐसे ही वीर के जीवन पर फिल्मकार शशि किरण टिक्का व लेखक व अभिनेता अदिवी शेष फिल्म ‘‘मेजर’’ लेकर आए हैं. जो कि तमिल, तेलगू मलयालम व हिंदी में एक साथ तीन जून को प्रदर्शित हुई है. पूरी फिल्म देखने के बाद एक बात उभर कर आती है कि यह फिल्म सिर्फ मेजर संदीप के बलिदानों के लिए श्रद्धांजलि नही है,बल्कि यह फिल्म एक अकेली पत्नी के बलिदानों और अपने बेटे को खोने वाले माता पिता के बलिदानों को भी श्रृद्धांजली है.  फिल्म सैनिकों के परिवार की मनः स्थिति व दर्द का सटीक चित्रण करती है.

कहानीः

स्व. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की बायोपिक फिल्म ‘‘मेजर’’ की कहानी की शुरूआत संदीप के बचपन से होती है,जिन्हे हर चीज से डर लगता है. लेकिन जब किसी की जिंदगी बचानी हो,तो वह खुद को नुकसान पहुंचाने से पहले दो बार नहीं सोचता. उसे वर्दी से प्यार है. इसलिए उसे जेल में खेलना पसंद है. उसे जेल में कैदियों से बात करना पसंद है. यही वजह है कि वह बचपन  से ‘वर्दी’,‘नेवी’ व सैनिक की जीवन शैली से मोहित है. कालेज में पहुॅचने के बाद भी संदीप उन्नीकृष्णन (आदिवी शेष) के डीएनए में एक सुरक्षात्मक प्रवृत्ति अंतर्निहित है. स्कूल दिनों में ही संदीप की मुलाकात ईशा से हो जाती है,जो कि अपने माता पिता की व्यस्तता के चलते घर में अकेले पन के चलते दुःखी रहती है. . फिर दोनों के बीच प्यार पनपता है और विवाह भी करते हैं. संदीप के पिता चाहते है कि बेटा डाक्टर बने,मगर संदीप तो सैनिक बनना चाहता है. और उसका एनडीए की ट्रेनिंग के लिए चयन हो जाता है. ट्रेनिंग के बाद संदीप एनएसजी कमांडो बन जाता है. बहुत जल्द वह मेजर ही नहीं बल्कि नए एनसीजी कमांडो को टे्निंग देने लगते हैं. अचानक 2008 में मुंबई पर आतंकवादी हमला होता है. जब ताज होटल के लिए कमांडो रवाना होते हैं,तो मेजर संदीप खुद से उनका नेतृत्व करते हैं और महज 31 वर्ष की अल्प उम्र में वह वीरगति को प्राप्त होते हैं.

लेखन व निर्देशनः

इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि 26/11 के दुःखद आतंकवादी हमले (जिससे सभी परिचित हैं ) के गड़े मर्दे उखाड़ने में समय बर्बाद करने की बजाय लेखक अदिवि शेष  व निर्देशक शशि किरण टिक्का अपना सारा ध्यान एक इंसान के तौर पर शहीद मेजर संदीप के ही इर्द गिर्द सीमित रखते हैं. लेकिन संदीप की अपने सेना के साथियों के बारे में कुछ ट्रैक अधूरे लगते हैं. फिल्म की पटकथा जिस अंदाज में लिखी गयी है,उसके चलते ढाई घ्ंाटे तक फिल्म दर्शकों को कुछ भी सोचने का वक्त नही देती. इंटरवल से पहले फिल्म कुछ ज्यादा ही फिल्मी हो गयी है. पर इंटरवल के बाद तो हर दृश्य कमाल का है. मगर संदीप और ईशा की पहली मुलाकात का दृश्य प्रभावित नहीं करता,यह कमजोर लेखन के साथ ही कमजोर निर्देशन की वजह से होता है. इतना ही नही संदीप व ईशा के रोमांस को ठीक से उकेरा नही गया. मतलब रोमांस को कुछ वक्त दिया जा सकता था. यह अलग बात है कि बाद में दोनों की कैमिस्ट्री कमाल की उभरकर आती है.

अमूमन इस तरह की युद्ध परक या सैनिक पर बनी फिल्मों में जबरन देशभक्ति को ठॅूंसा जाता है. मगर फिल्म ‘मेजर’ में कहीं भी उपदेशात्मक देशभक्ति नही है. फिल्म रोमांचक शैली में बनी है. रोमांच के पल व एक्शन दृश्य शानदार बन पड़े हैं.  फिल्म तो मेजर के विचारों और उनकी बहदुरी का सेलीब्रेशन है. इतना ही नही फिल्म का क्लायमेक्स भी एकदम हटकर व शानदार है. यह फिल्म शहीद के पार्थिव शरीर के वक्त रूदन दिखाकर दर्शको को इमोशनल ब्लैकमेल नही करती है. क्लामेक्स में शहीद मेजर संदीप पिता के संवाद काफी प्रभाव छोड़ते हैं.

अक्षत अजय शर्मा के संवाद दिल तक पहुंचते हैं. कुछ जगहों पर श्रीचरण पकाला का संगीत कमजोर पड़ जाता है.

अभिनयः

फिल्म की कहानी व पटकथा लिखने के साथ ही चिकने चेहरे वाले किशोर संदीप के किरदार में अदिवि शेष ने जान डाल दी है. कहा जाता है कि जब अभिनेता खुद ही कहानी,पटकथा व किरदार लिखता है,तो वह किरदार लिखते लिखते उस किरदार का हिस्सा बन चुका होता है,उसके बाद उस किरदार को परदे पर पेश करना उसके लिए अति सहज होता है. कम से कम यह बात यहां अदिवि शेष के संदर्भ में एकदम सटीक बैठती है. जीवन से क्या चाहिए,इसकी समझ के साथ उसके लिए विपरीत परिस्थितियों में भी लड़ने को तैयार मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के किरदार को अपने अभिनय से अदिवी शेष ने जीवंतता प्रदान की है.

सही मायनों में देखा जाए तो सई मंाजरेकर को पहली बार एक बेहतरीन किरदार निभाने का अवसर मिला है. ईशा के किरदार में वह न सिर्फ खूबसूरत लगी हैं, बल्कि ईशा के अकेले मन की बेबसी को बहुत ही अच्छे ढंग से परदे पर उकेरने में सफल रही हैं. मगर भावनात्मक दृश्यों में वह विफल रही हैं और उनकी अनुभवहीनता उभरकर सामने आती है. इतना ही नही आर्मी आफिसर की पत्नी के दर्द को भी व्यक्त करने में वह बुरी तरह से असफल रही हैं. इस फिल्म की कमजोर कड़ी तो सई मांजरेकर ही हैं. एक बिजनेस ओमन व एक छोटी बच्ची की मां प्रमोदा के छोटे किरदार में शोभिता धूलिपाला अपनी छाप छोड़ जाती हैं. मुरली शर्मा भी छोटी सी भूमिका में याद रह जाते हैं.

संदीप के पिता के किरदार में प्रकाश राज और मंा के किरदार में रेवती ने अपनी तरफ से सौ प्रतिशत दिया है. वैसे भी यह दोनो माहिर कलाकार हैं. यह दोनों जिस तरह से अपने बेटे से प्यार करते हैं या उसकी मौत पर बारिश में भीगते हुए शोक करते हैं,यह दृश्य अति यथार्थ परक व  दिल दहला देने वाले हैं. इन्हे रोते देख दर्शक की आंखे भी नम हो जाती हैं. मुरली शर्मा और अनीश कुरुविला का अभिनय ठीक ठाक है.

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वर्चुअल प्रोडक्शन तकनीकः सिनेमा जगत में नई क्रांति

वैज्ञानिक उन्नति के साथ ही सिनेमा में भी नई नई तकनीक का इजाद होता रहता है. कोविड की आपदा के दौरान जब फिल्मों की शूटिंग बंद हो गई और कई तरह की समस्याएं सामने नजर आने लगी.  तब फिल्म निर्देशक विक्रम भट्ट ने विचार करना शुरू किया कि ऐसी कौन सी तकनीक अपनाई जाए.  जिससे फिल्मों की शूटिंग कम समय में भव्य स्तर पर और कम खर्च में की जा सके. तब उन्हें वर्चुअल प्रोडक्शन तकनीक का ज्ञान मिला. उसके बाद विक्रम भट्ट ने के सेरा सेरा संग हाथ मिलाया और अब मंुबई में गोराई. बोरीवली में के सेरा सेरा और विक्रम भट्ट का स्टूडियो वर्चुअल वर्ल्ड बनकर तैयार है. जो कि भारत का पहला और सबसे बड़ा एलईडी वर्चुअल प्रोडक्शन स्टूडियो है. इस स्टूडियो में वर्चुअल कंटेंट का प्रोडक्शन जोरों पर शुरू हो गया है. विक्रम भट्ट ने इस वर्ष वर्चुअल प्रोडक्शन के तहत बनी पांच फिल्में प्रदर्शित करने की योजना पर काम कर रहा है.

‘वर्चुअल प्रोडक्शन तकनीक’ का उपयोग कर विक्रम भट्ट ने भारत की पहली वर्चुअल फिल्म ‘‘जुदा होके भी‘‘ का निर्माण कर लिया है.  जिसमें उन्हें के सेरा सेरा के सतीश का सहयोग मिला है. फिल्म ‘‘जुदा होके भी‘‘ की कहानी 20 साल पहले विक्रम भट्ट द्वारा निर्देशित सफलतम फिल्म ‘‘राज‘‘ के आगे की कहानी है.  इस फिल्म का लेखन महेश भट्ट ने किया है.  जबकि निर्देशन विक्रम भट्ट का है.  इसमें नायक की भूमिका अक्षय ओबराय ने निभाई है.  फिल्म ‘‘ जुदा होके भी‘‘ 15 जुलाई को सिनेमाघरों में पहुंचेगी.  इसका मोशन पोस्टर 30 मई को लांच किया गया.

इस अवसर पर पत्रकारों से बात करते हुए विक्रम भट्ट ने कहा-‘‘यह कोई जादू नहीं बल्कि यह दो सफर की शुरूआत है. एक सफर है मेरा और मेरे बॉस का. मेरे मेंटॉर का. मेरे पिता का. जिनके सहारे मैं बचपन से चला आ रहा हॅूं और आज वह मेरी कंपनी के क्रिएटिब हेड हैं. मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की बात क्या हो सकती है कि उनके गाइडेंस के तहत हमारी फिल्में बन रही हैं. नई तकनीक यानी कि ‘वर्चुअल प्रोडक्शन’ के तहत बनी मेरी नई फिल्म ‘‘जुदा होके भी ’’ मेरी बीस वर्ष पहले की सफल फिल्म ‘राज’ के आगे की कहानी है. जहां हमने ‘राज’ को छोड़ा था. वहीं से हमने ‘जुदा होके भी’ को शुरू किया है. इस सफर के साथ दूसरा सफर शुरू हुआ ‘वर्चुअल प्रोडक्शन’ का. जब लॉक डाउन आया और फिल्मों की शूटिंग रोकनी पड़ी. तो हमने इस एक नई तकनीक को ढूंढ़ा और अपनाया. जो कि ‘वर्चुअल प्रोडक्शन’ तकनीक है. इसी नई तकनीक का हिस्सा है यह स्टूडियो. जहां आप बैठे हुए हैं. यहां पर विशाल एलईडी स्क्रीन है. हमने भारत की पहली वर्चुअल फिल्म ‘जुदा होके भी’ का निर्माण यहीं पर किया है. यह साठ बाय पचास का स्टूडियो है. फिल्म में हिल स्टेशन से लेकर ट्ेन तक सब कुछ है और हमने यह सब वर्चुअली ही तैयार किया है. हमने इस तकनीक को अपनाया और फिर हमने इस संबंध में के सेरा सेरा के चेअरमैन सतीश से बात की और वह हमारे साथ आ गए. हम इस वर्ष ‘जुदा हो के भी’ को मिलाकर पांच फिल्में प्रदर्शित करने वाले है. इसके बाद प्रति वर्ष 25 वर्चुअल फिल्में बनाकर प्रदर्शित करने की हमारी योजना है. हम कम पैसे मंे इतनी बड़ी व भव्य फिल्में बनाकर दर्शकों तक पहुंचाएंगे. जिसकी कल्पना लोग नहीं कर सकते. यह दो सफर अब हमारे लिए एक सफर बन गए हैं. अब तकनीक और रचनात्मकता का अनूठा मिलन हुआ है. हमने भले ही भारत की पहली वर्चुअल फिल्म ‘जुदा होके भी’ बना ली है. पर यही सिनेमा का भविष्य है.  ’’

जबकि महेश भट्ट ने कहा-‘‘जब मैं अपनी 53 वर्ष की यात्रा को देखता हॅंू. तो पाता हॅंू कि जब जब मेरा बुरा वक्त आया. तब तब कहीं न कहीं से अजीब सी ताकत या अजीब सी एनर्जी मुझे मिलती रही है. कुछ नया मेरे अंदर प्रगट हुआ. इस कोविड आपदा के दौरान कुछ ऐसा ही विक्रम के साथ हुआ. दो वर्ष तक दुनिया रूकी रही और विक्रम लगातार प्रयास रत रहा कि कुछ नई राह निकाली जाए. कोविड के दौरान हम देख रहे थे कि किसी तरह फिल्म की योजना बनती थी. सरकार से इजाजत लेकर सेट पर शूटिंग के लिए पहुॅचते थे. फिर कोई बीमार हो जाता था और शूटिंग बंद हो जाती थी. सेट बनाने में लगा पैसा पानी पानी हो रहा था. कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही थीं. लेकिन कौन कहता है कि मिरायकल घटित नही होतेे. एक दिन विक्रम ने मुझसे अजीब जुबान मे कुछ कहा. कभी विक्रम मेरी उंगली पकड़कर चला करता था. आज मैं विक्रम का हाथ पकड़कर चलता हूं. तो विक्रम ने मुझसे  वर्चुअल प्रोडक्शन तकनीक’ के बारे में बात की. तो यह अजीब सा दौर है. इस तकनीक के चलते हम इसी सेट पर सुबह एअरपोर्ट का दृश्य. लंच के बाद घर के दृश्य और रात में न्यूयार्क.  अमरीका के दृश्य फिल्मा सकते हैं. यहां कम समय में हम भव्यतम फिल्म बना सकते हैं. कलाकार को भी ज्यादा समय देने की जरुरत नही.  हर फिल्म का बजट आधे से भी कम हो जाएगा. हम यहां दस करोड़ रूपए में सौ करोड़ का लुक दे सकते हैं. इससे पूरी फिल्म इंडस्ट्री को फायदा होगा. मैने अनुभव किया कि ‘के सेरा सेरा’ के चेअरमैन सतीश दूसरों की तरह अतीत में ही जान फंूकने की कोशिश करने की बजाय भविष्य की ओर देखते हैं. वह सदैव आगे बढ़ने में यकीन करते हैं. आज कंटेंट चलेगा.  जिसे हम इस नई तकनीक के साथ भव्यरूप में बेहतरीन कंटेंट दर्शकों तक पहुॅचा सकेंगें. ’’

‘के सेरा सेरा’के चेअरमैन सतीश ने कहा-‘‘यह पूरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक रिव्यूलोशन है. इस तकनीक की जानकारी जैसे जैसे दूसरे फिल्मकारों तक पहुॅचेगी.  वैसे वैसे लोगों के लिए यह फायदेमंद साबित होगा. ’’

‘‘फिल्म ‘‘जुदा होके भी ’’ भी रहस्य प्रधान प्रेम कहानी और संगीतमय फिल्म है. इस फिल्म में प्रेम कहानी में हॉरर है. हॉरर में प्रेम कहानी नही है. फिल्म ‘जुदा होके भी ’की टैग लाइन है-‘‘लव एज ए न्यू एनिमी. ’सीधे शब्दों में कहे तो इस फिल्म में प्यार का दुश्मन हॉरर है.

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KK ने 53 वर्ष की उम्र में कहा दुनिया को अलविदा, कोलकाता में हुआ निधन

बीते दिनों जहां पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला के मर्डर से पूरा देश हैरान था तो वहीं अब बौलीवुड के पौपुलर सिंगर केके (KK) ने दुनिया को अलविदा कह दिया है, जिसके चलते इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

हार्ट अटैक से हुआ निधन

 

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हाल ही में सिंगर केके कोलकाता में एक कंसर्ट करने पहुंचे थे. वहीं कंसर्ट में परफॉर्मेंस के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ गया, जिसके बाद सिंगर को अस्पताल पहुंचाया गया. हालांकि अस्पताल में डौक्टर्स ने केके को मृत घोषित कर दिया. खबरों की मानें तो केके का हार्ट अटैक के कारण निधन हुआ है. लेकिन अभी तक पूरा मामला साफ नहीं हो पाया है.

आखिरी वीडियो आया सामने

 

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कई बौलीवुड की हिट फिल्मों का गाना गा चुके सिंगर केके के लाइव कंसर्ट की कुछ वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है, जिसमें वह आखिरी बार गाना गाते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं सेलेब्स भी इस आखिरी वीडियो को देखकर भावुक होते नजर आ रहे हैं.

सेलेब्स ने जताया दुख

केके के निधन से बौलीवुड और टीवी इंडस्ट्री को तगड़ा झटका लगा है. वहीं फैंस और सेलेब्स सोशलमीडिया के जरिए सिंगर को श्रद्धांजलि देते हुए नजर आ रहे हैं. बौलीवुड के जाने माने सिंगर शंकर महादेवन, श्रेया घोषाल, हर्षदीप कौर के अलावा एक्टर सलमान खान, अजय देवगन और अक्षय कुमार जैसे सितारे उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. वहीं टीवी इंडस्ट्री के कलाकार भी सिंगर के निधन से दुखी हैं.

केके के हैं कई हिट गाने

‘हम रहे या ना रहें कल, कल याद आएंगे ये पल…’, दिल इबादत, तू जो मिला जैसे हिट गाने केके गा चुके हैं, जिसे आज भी फैंस सुनना पसंद करते हैं. वहीं अपने कोलकत्ता कंसर्ट के दौरान सिंगर ने यही गाने गाए थे.

बता दें, हाल ही में पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या हुई थी, जिसके बाद बीते दिन उनका अंतिम संस्कार किया गया था. इसी के चलते पूरी इंडस्ट्री शोक में थी. वहीं सिंगर केके के निधन से फैंस बेहद दुखी हैं.

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रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः टीसीरीज और अनुभव सिन्हा

निर्देशकः अनुभव सिन्हा

कलाकारः आयुश्मान खुराना,एंड्यिा केवीचूसा,शोवोन जमन,अभिनव राज सिंह,मनोज पाहवा,जे डी चक्रवर्ती, शारिक खान,कुमुद मिश्रा

अवधिः दो घंटे 28 मिनट

जब हिंदुत्व की बयानबाजी पूरे देश में क्रूर भेदभाव को बढ़ावा दे रही है,उस दौर में फिल्मकार अनुभव सिन्हा एक फिल्म ‘‘अनेक’’ लेकर आए हैं,जो कि युद्ध,शंाति, नक्सलवाद, नस्लीय भेदभाव आदि को लेकर अनेक सवाल उठाते हुए इस बात पर भी सवाल उठाती है कि भारतीय होने के असली मायने क्या हैं?उपदेशात्मक शैली की यह फिल्म ऐसी उपदेशात्मक फिल्म है,जो राजनीतिक अखंडता को बिना रीढ़ की हड्डी वाले सिनेमाई परिदृश्य में पेश करती है. फिल्म पूर्वोत्तर भारतीयों के दिलों की कहानी सुनाती है.  फिल्म इस कटु सत्य को भी रेखांकित करती है कि सिर्फ 24 किमी चैड़े गलियारे से बाकी देश से जुड़े उत्तर पूर्व के राज्यों के किसानों की पूरी फसल हाईवे पर खड़े ट्रकों में सड़ जाती है,क्योंकि उन्हें दूसरी तरफ से आती फौज की गाड़ियों के लिए जगह बनानी होती है. फिल्म यह सवाल भी उठाती है कि कोई तो है जो चाहता है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों और पूर्वोत्तर में अशांति ही बनी रहे. फिल्म में एक किरदार का संवाद-‘‘शांति एक व्यक्तिपरक परिकल्पना है. ‘‘बहुत कुछ कह जाता है.

1947 में भारत को आजादी मिलने के साथ ही हमसे ही अलग होकर पाकिस्तान बना था. उस वक्त कई छोटे छोटे राज्य भारत का हिस्सा बन गए थे. जम्मू व कश्मीर धारा 370 के साथ भारत से जुड़े थे और पूर्वोत्तर के सात राज्य धारा 371 के तहत भारत के साथ जुड़े. पर आजादी के ेबाद से ही कश्मीर में आतंकवादी व अलगाव वादी संगठन हावी रहे हैं,जिन्हे पाकिस्तान का साथ भी मिलता आ रहा है. कश्मीर में जो कुछ होता रहता है,उसकी खबरें हिंदू मुस्लिम के नाम पर काफी प्रचारित की जाती रही हंै. अब कश्मीर से धारा 370 खत्म हो गयी है. तो वही आजादी के बाद से ही पूर्वोत्तर राज्यों मंे भी अलगाव वादी सक्रिय हैं. वहां पर आए दिन हिंसा होती रहती है. कश्मीर के मुकाबले पूर्वोत्तर राज्यांे की जनता की समस्याएं अलग हैं. उन्हे अलगाव वादियों की यातनाएं तो सहन करनी ही पड़ती ै,साथ में उन्हे हर दिन नस्लीय भेदभाव का भी सामना करना पड़ता. भारत के ेदूसरे राज्यों के लोग उन्हे भारतीय की बजाय चीनी कह कर ज्यादा संबोधित करते हैं. इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों की जमीन हकीकत क्या है,वहा कौन सा अलगाव वादी गुट ड्ग्स व अन्य अवैध ध्ंाधों से जुड़ा हुआ है,इसकी भी खबरें पूरे देश के लोगों तक नही पहुॅच पाती है. यदि यह कहा जाए कि पूर्वाेत्तर के सात राज्य वास्तव में भारत से अलग थलग पड़े हुए हंै,तो शायद गलत नहीं होगा. कश्मीर की तरह पूर्वोत्तर राज्य सदैव मीडिया की सूर्खियांे में नही रहते.  अनुभव सिन्हा ने अपनी फिल्म ‘अनेक’ में पूर्वोत्तर राज्यों की जमीनी सच्चाई को उजागर करने का एक प्रयास किया है.  यह फिल्म पढ़े लिखे व राजनीतिक रूप से जागरूक लोगों के दिलों को झकझोरती है,मगर ना समझ व पूर्वोत्तर राज्यों से पूरी तरह से अनभिज्ञ दर्शकों को यह फिल्म बोर लग सकती है.

कहानी

पूर्वोत्तर भारतीय मुक्केबाज एडो ( एंड्रिया केविचुसा) राष्ट्रीय टीम में एक स्थान अर्जित करने का सपना देख रही है,मगर वह देश के उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है,जहां  उसके अपने लोग हर दिन नस्लीय दुव्र्यवहार सहते हैं. भारतीय अधिकारी ऐडोे की बजाय हरियाणा की लड़की के पक्ष मे हैं,क्योकि एडो ‘चीनी या चिंकी नजर आती ैहै, जबकि हरियाणवी लड़की भारतीय नजर आती है. पर एडो का कोच हार नही मान राह.  एडो के स्कूल शिक्षक पिता वांगनाओ (मिफाम ओत्सल) सरकारी बलों के खिलाफ एक विद्रोही समूह जॉनसन का गुप्त रूप से नेतृत्व कर रहे हैं,जो अपनी सांस्कृतिक पहचान को छीनने से बचाना चाहते हैंपर पिता की इस सच्चाई से एडो अनभिज्ञ है. . इनके बीच भारत सरकार का एक अंडरकवर एजेंट अमन उर्फ जोशुआ (आयुष्मान खुराना) खड़ा होता है,जो अपनी वफादारी की परीक्षा देता है.  वह गांव वालों के बीच घुलमिल जाता है. उसका वांगनाआके केघर आना जाना है. मुक्केबाज एडो उससे प्यार करने लगती है, जिसका जोशुआ फायदा उठाता रहता है.

जोशुआ पूर्वोत्तर के अलगाववादी जनजातियों के दो युद्धरत गुटों के बीच शांति समझौता करने की कोशिश कर रहा है. जोशुआ ने वांगनाओं पर नजर रखने के लिए ही युवा महिला मुक्केबाज ऐडो से प्यार @दोस्ती का नाटक कर रहा है.  जोशुआ की योजना वांगनाओं को बड़ी मछली टाइगर सांगा के खिलाफ खड़ा करना है.  टाइगर और जॉनसन दोनों आतंकवादी गुट हैं और अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त हैं. यह दोनों अवैध रूप से टोल एकत्र करने,हथियार के कारोबार,हिंसा से लेकर ड्ग्स के ध्ंाधे में लिप्त हैं. जोशुआ भी ड्रग्स और बंदूकों की आपूर्ति करने के लिए मैदान में उतरकर उन्ही के बीच का होने की बात साबित करने में सफल हो जाता है.

इधर टाइगर सांगा एक लंबा टीवी साक्षात्कार देता है. जिसकी वजह से भारत सरकार,मंत्री व दिल्ली पुलिस सक्रिय होती है. भारत सरकार की तरफ से मध्यस्थता करने की जिम्मेदारी कश्मीर निवासी अबरार बट्ट (मनोज पाहवा ) को दी जाती है. टाइगर सांगा से बात होती है. अब्रारर इस बात वर अडिग है कि भारतीय ंसंविधान व भारतीय झंडा रहेगा. टाइगर सांगा उन्हें 1940 के दशक में किए गए कुछ वादों की याद दिलाते हुए भारत सरकार पर उन पर मुकरने का आरोप लगाते हैं. तब अब्ररार ‘जॉनसन’ के नाम को मोहरा के तौर पर उपयोग करते है. लोग इस बात से अनजान हैं कि ‘जॉनसन‘ एक छद्म नाम है, जिसे भारत ने टाइगर सांगा की ताकत पर लगाम लाने के लिए प्रेरित किया है.

उधर अबरार बट्ट ने अमन उर्फ जोशुआ के खिलाफ भी कुछ लोगों को लगा रखा है,जो उन्हे खबर करते हंै कि अमन तो एडो के प्यार में है. तब उसके हर कदम पर निगरानी की जाने लगती है. अमन के फोन टेप किए जाने लगते हैं. इस बीच वांगनाओं मैम्यार जा चुका है. उसे हमेशा के लिए खत्म करने के लिए सैनिक कमांडो की टुकड़ी के साथ अमन को भेजा जाता है. अमन अपने एक अन्य साथी की मदद से अबरार की इच्छा के विपरीत वांगनाओं को गिरफ्तार कर दिल्ली ले आता है. और भारत सरकार को टाइगर सांगा के आपराधिक होने के ढेर सारे सबूत भी देता है.

लेखन व निर्देशन

अनुभव सिन्हा इससे पहले ‘आर्टिकल 15’ व ‘मुल्क’ सहित कई बेहतरीन फिल्में बना चुके हैं. मगर ‘अनेक’ कई जगहों पर राजनीतिक व्याख्यान या भारत में अलगाववादी आंदोलनों पर प्रवचन की तरह लगती है. फिल्म एक साथ उन दो प्रश्नों से निपटता है,जिन्होंने कई समावेशी भारतीय विचारकों को परेशान किया हैः एक भारतीय कौन है? और दूसरा क्या राज्यों को उनकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर पहचानना सही है, जब उन्हें मध्य भारत या उत्तर भारत की स्थिति से देखा जाए? फिल्म में हिंसा व खूनखराबा कुछ ज्यादा ही भर दिया गया है. बेवजह दो गुटों या पुलिस बल व अलगाव वादियों के बीच मुठभेड़ के लंबे लंबे दृश्य ठूॅंसकर फिल्म की लंबायी बढ़ा दी गयी है. फिल्म को एडिट टेबल पर कसे जाने की जरुरत है. कहानी के स्तर पर नयापन इतना ही है कि लोग समझ सकेंगे कि पूर्वाेत्तर राज्यों की समस्या कितनी विकराल रूप ले चुकी है. फिल्म में मुक्केबाजी की प्रतियोगिता के दौरान जब हरियाणा की बॉक्सर एडा से कहती हैं कि इंडिया तेरे बाप का है तो एडा  उसे पंच मारकर कहती हैं कि इंडिया किसी के बाप का नहीं हैं.  इंडिया सबका है. यही वह बात है,जिसे हर भारतीय को समझाने के लिए फिल्मकार ने यह फिल्म बनायी है. मगर फिल्म की गति धीमी और सब कुछ बहुत नीरस है.

बतौर निर्देशक अनुभव सिन्हा ने बेहतरीन काम किया है. वह एक ऐसे विषय पर फिल्म लेकर आए हैं,जिस पर ज्यादा से ज्यादा काम किया जाना चाहिए. उन्होने फिल्म के लिए कलाकारों का चयन भी एकदम सटीक ही किया है. लेकिन अनुभव सिन्हा ने फिल्म की शुरूआत बहुत गलत ढंग से की है. फिल्म की शुरूआत होती है,एक नाइट क्लब से जहां से नायिका एडो को गिरफ्तार किया जाता है.  जबकि उसकी कोई गलती नही है. ऐसा महज नाइट क्लब चलाने वाले व पुलिस के बीच आपसी मतभेद के कारण किया जाता है. इसके अलावा

बतौंर फिल्म सर्जक अनुभव सिन्हा की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह अपनी फिल्म में सवाल उठाते हैं,मगर किसी भी बात का स्पष्ट कारण नही बताते. जब आप पूर्वोत्तर राज्यों के गुरिल्ला लड़ाकों के खिलाफ खुलकर नहीं हैं, तो एक वैध स्पष्टीकरण जरूरी है. ृृयह फिल्म राष्ट्र और उत्तर पूर्व के नेताओं के बीच संघर्ष के पीछे के कारण को उचित स्पष्टीकरण देने में विफल रहती है. क्या विचारधाराएं हैं, क्या मांगें हैं, किससे लड़ रहे हैं?

भारत सरकार द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों के साथ तिस तरह का छलावा किया जाता रहता है,उसी छलावे के प्रतीक स्वरूप फिल्मकार ने एडा और जोशवा की प्रेम कहानी को छलावा के रूप में पेश किया है.

फिल्म का नाम भी भ्रामक ही है.  फिल्म के नाम से फिल्म का विषय स्पष्ट नही होता.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो लीक से हटकर फिल्में करते आ रहे अभिनेता आयुश्मान खुराना ने इस फिल्म में अमन उर्फ जोशुआ का किरदार निभाया है. मगर  वह एक्शन दृश्यों में बुरी तरह से मात खा गए हैं. पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों का दर्द अवश्य आयुश्मान ख्ुाराना की झुंझलाहट से साफ तौर पर उजागर होती है. वह गंभीर दृश्यों मेंं ज्यादा जमते हैं. फिल्म के अबरार बट्ट के किरदार में मनोज पाहवा में काफी संजीदा व सधा हुआ अभिनय किया है. कई दृश्यों में वह भारत के सुरक्षा सलाहकर अजीत दोवाल की याद दिलाते हैं. जबकि मंत्री के किरदार में कुमुद मिश्रा का अभिनय जानदार है. उनकी मुस्कान बहुत कुछ कह जाती है. अबरार के निर्देश पर जोशोआ उर्फ अमन की राह में रोड़ा बनने वाले तेलंगाना राज्य से आने वाले एजेंट के किरदार में जेडी चक्रवर्ती  का अभिनय ठीक ठाक है. भारत के लिए मुक्केबाजी करने के लिए आतुर उत्त्र पूर्व राज्य की एडा के किरदार में एंड्रिया केविचुसा का अभिनय शानदार है. उसके चेहरे से नस्लीय भेदभाव के दर्द को समझा जा सकता है. पवलीना हजारिका के किरदार में दीप्लिना डेका ने कमाल का अभिनय किया है. वह दर्शकों को अंत तक याद रह जाती हैं. शोवन जमान,राज सिंह, अजी बगरिया, शारिक खान, हनी यादव, मुबाशीर बशीर बेग, अमीर हुसैन आशिक और लोइटोंगबाम दोरेंद्र का अभिनय ठीक ठाक है.

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सपनों का जगह से कोई संबंध नहीं होता- समीक्षा भटनागर

मशहूर बौलीवुड अदाकारा समीक्षा भटनागर मूलत: देहरादून, उत्तराखंड की रहने वाली हैं. उन्हें बचपन से ही नृत्य व संगीत का शौक रहा. उन के इस शौक को बढ़ावा देने के मकसद से उन के पिता कृष्ण प्रताप भटनागर और मां कुसुम भटनागर देहरादून से दिल्ली रहने आ गए. यहां समीक्षा भटनागर ने अपनी कत्थक डांस अकादमी खोली. फिर 2 साल बाद अपनी प्रतिभा को पूरे विश्व तक पहुंचाने के मकसद से वे मुंबई आ गईं. सीरियल ‘एक वीर की अरदास वीरा’ सहित कई सीरियलों व फिल्मों में वे अभिनय कर चुकी हैं.

बतौर निर्माता कुछ म्यूजिक वीडियो और एक लघु फिल्म ‘भ्रामक’ भी समीक्षा ने बनाई, जिसे नैटफ्लिक्स पर काफी सराहा गया. इन दिनों वे ‘धूपछांव’ सहित करीबन पांच फिल्में कर रही हैं.

प्रस्तुत हैं समीक्षा भटनागर से हुई ऐक्सक्लूसिव बातचीत के अंश:

देहरादून जैसे छोटे शहर से मुंबई आ कर फिल्म अभिनेत्री बनने की यात्रा कैसी रही?

मेरी राय में हर लड़की को बड़ेबड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने के लिए प्रयास करने का हक है. सपनों का जगह से कोई संबंध नहीं होता. मेरे सपनों को पूरा करने में, मेरे पैशन को आगे बढ़ाने में मेरे पिता कृष्ण प्रताप भटनागर व मां कुसुम भटनागर ने मेरा पूरा सहयोग किया. मैं ने अपनी मां से ही कत्थक नृत्य सीखा है. वे बचपन से कत्थक नृत्य करती रही हैं. उन की इच्छा थी कि मैं भी कत्थक नृत्य सीखते हुए आगे बढ़ूं. मैं गाती भी हूं. मैं भी अपने पैशन के प्रति पूरी लगन से जुड़ी रही.

देहरादून से दिल्ली आने के बाद मैं ने काफी कुछ सीखा. कुछ समय बाद मैं ने महसूस किया कि यदि मुझे रचनात्मक क्षेत्र में कुछ बेहतरीन काम करना है, तो दिल्ली से मुंबई जाना होगा. इसलिए मुंबई आ गई. मुंबई पहुंचते ही मुझे अच्छा रिस्पौंस मिला. मुझे पहला टीवी सीरियल ‘एक वीर की अरदास वीरा’ करने का अवसर मिला.

अकसर देखा जाता है कि टीवी सीरियल में शोहरत पाने के बाद कलाकार थिएटर की तरफ मुड़ कर नहीं देखते. आप के सीरियल लोकप्रिय थे. फिर भी आपने थिएटर किया?

मुझे टीवी सीरियल में अभिनय करते देख लोग प्रशंसा कर रहे थे.लेकिन मैं अपने अभिनय से संतुष्ट नहीं हो रही थी. एक कलाकार के तौर पर मुझे लग रहा था कि मेरे अंदर इस से अधिक बेहतर परफौर्म करने की क्षमता है.

पर कहीं न कहीं गाइडैंस की जरुरत मुझे महसूस हुई. यह थिएटर में ही संभव था. थिएटर में मेरे निर्देशक मुझे डांटते थे. वे कहते थे कि एक ही लाइन को हर बार कुछ अलग तरह से बोलो. थिएटर करते हुए मेरे अंदर का आत्मविश्वास बढ़ा. वैसे भी मैं अपनेआप को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा प्रयास करती रहती हूं. मैं अपने स्किल पर काम करती रहती हूं. मैं खुद अपने काम से कभी संतुष्ट नहीं होती. थिएटर पर मैं ने ‘रोशोमन ब्लूज’ नामक नाटक के 70 से अधिक शो में अभिनय किया. उस के बाद मुझे फिल्में मिलीं.

आप की पहली फिल्म तो ‘कलेंडर गर्ल’ थी?

मैं अपनी पहली फिल्म ‘पोस्टर बौयज’ को मानती हूं. वैसे मैं ने औडिशन देने के बाद फिल्म ‘कलैंडर गर्ल’ में बिजनैस ओमन का छोटा सा कैमियो किया था. मेरा सपना तो सिल्वर स्क्रीन ही है. मगर मैं ने शुरू में टीवी पर काम किया क्योंकि फिल्म नगरी में मैं किसी को जानती नहीं थी. जैसे ही मुझे अपनी प्रतिभा को उजागर करने का अवसर मिला, मैं ने रुकना उचित नहीं समझ. टीवी एक ऐसा माध्यम है, जहां आप जल्दी सीखते हैं. टीवी पर काम करने से आप की परफौर्मैंस को ले कर तुरंत लोगों की प्रतिक्रिया मिलती है, जिसे समझ कर आप अपने अंदर सुधार ला सकते हैं. टीवी पर काम करते हुए हम संवाद को जल्द से जल्द याद करना सीख जाते हैं. हमारी संवाद अदायगी सुधर जाती है.

फिल्म ‘पोस्टर बौयज’ में आप को पहली बार सनी देओल, बौबी देओल, श्रेयश तलपड़े सहित कई दिग्गज कलाकारों के साथ अभिनय करने का अवसर मिला था. उस वक्त आप के मन में किसी तरह का डर था या नहीं?

जब मैं टीवी सीरियल कर रही थी, उस वक्त एक सहायक निर्देशक ने मुझ से कहा था कि मैडम आप खूबसूरत हैं और अभिनय में माहिर हैं. आप को फिल्में करनी चाहिए. उस वक्तमैं ने उन से कहा था कि मौका मिलने पर वे भी कर लूंगी.

फिर एक दिन उसी ने मुझे फोन कर के ‘पोस्टर बौयज’ के लिए औडीशन कर के भेजने के लिए कहा कि मेरे पास आडिशन की स्क्रिप्ट आई और मैं ने भी आडिशन कर के भेज दिया. जिस दिन मेरे पास आडिशन की स्क्रिप्ट आई, उस के तीसरे दिन मैं इस फिल्म की शूटिंग कर रही थी. तो मैं ने सोच लिया था कि अब मुझे आगे बढ़ते जाना है. मैं ने इस फिल्म के लिए काफी मेहनत की थी. पहले ही दिन मेरा 4 पन्ने का दृश्य था. इस सीन में मैं फिल्म के अंदर बौबी को डांटती हूं.

इस के मास्टर सीन के फिल्मांकन में तालियां बज गईं और मेरा आत्मविश्वास अचानक बढ़ गया. बौबी सर ने काफी सपोर्ट किया. श्रेयश तलपड़े से अच्छी सलाह मिली. मुझे कभी इस बात का एहसास ही नही हुआ कि मैं बड़े कलाकारों के साथ काम कर रही हूं. फिल्म के प्रदर्शन के बाद मेरे व बौबी सर के अभिनय की काफी तारीफ हुई. लेकिन इस फिल्म को बौक्स औफिस पर जिस तरह की सफलता मिलनी चाहिए थी उस तरह की नहीं मिली. अब मुझे फिल्म ‘धूपछांव’ के प्रदर्शन का बेसब्री से इंतजार है.

फिल्म ‘धूप छांव’ किस तरह की फिल्म है. इस फिल्म में आप को क्या खास बात नजर आई?

मैं हमेशा एक कलाकार के तौर पर खुद को ऐक्सप्लोर करती हूं. मैं इस बात में यकीन नहीं करती कि आप ऐसा कर लोगे तो आप को किरदार मिलने लगेंगे.एक दिन निर्देशक हेमंत सरन ने मुझे इस फिल्म का औफर दिया, जिस में पारिवारिक मूल्यों की बात की गई है. रिश्तों की जो अहमियत खत्म हो गई है, उस पर यह फिल्म बात करती है.

जब आप संयुक्त परिवार या अपने परिवार के साथ रहते हैं तब आप को एहसास होता है कि परिवार कितनी अहमियत रखता है. आप बेवजह बाहर खुशियां तलाश रहे थे. फिल्म ‘धूपछांव’ में भाई, पतिपत्नी के रिश्तों की बात की गई है. यदि पति नहीं है, तो पत्नी किस तरह जिंदगी जी रही है, उस की बात की गई है. इस में जीवनमूल्यों को अहमियत दी गई है. इस में भावनाओं का सैलाब है. फिल्म ‘धूपछांव’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी.

इस के अलावा और कौन सी फिल्में कर रही हैं?

‘धूपछांव’ के अलावा मैं ने एक फिल्म ‘जागीपुर’ की है. इसे हम ने भारतबंगलादेश की सीमा पर फिल्माया है. इस में कुछ राजनीतिक बातों के अलावा रिश्तों पर बात की गई है. मैं ने इस में वकील का किरदार निभाया है, जोकि अपने भाई के लिए लड़ती है. इस में मेरे साथ जावेद जाफरी भी हैं. वे भी वकील हैं.

एक फिल्म ‘द एंड’ की है, जोकि हिंदी व पंजाबी 2 भाषाओं में बनी है. इस फिल्म में मेरे साथ देव शर्मा, दिव्या दत्ता, दीप सिंह राणा भी हैं. इस के अलावा एक हास्यप्रधान वैब सीरीज ‘जो मेरे आका,’ की जिस में मेरे साथ श्रेयश तलपड़े व कृष्णा अभिषेक भी हैं.

आप ने अपने गायन स्किल के ही चलते म्यूजिक वीडियो बनाए. पर कत्थक डांस के लिए कुछ करने वाली हैं?

सोशल मीडिया पर मैं अपने कत्थक नृत्य के वीडियो डालती रहती हूं. इस के अलावा मेरी एक फिल्म ‘धड़के दिल बारबार’ है, जिस में मेरा किरदार एक क्लासिक डांस टीचर का है, जोकि बच्चों को क्लासिकल डांस सिखाती है. फिल्म की शुरुआत ही मेरे कत्थक डांस के साथ होती है. इस के अलावा मैं कत्थक पर कुछ खास वीडियो भी बनाने वाली हूं.

कोई ऐसा किरदार जिसे आप निभाना चाहती हों?

मैं हमेशा अलग तरह के किरदार निभाती आई हूं. मैं प्रियंका चोपड़ा की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं. मैं ने उन की फिल्म ‘बर्फी’ देखी थी. इस में उन का अभिनय सामान्य अभिनय नहीं था. इसी तरह मुझे ‘मर्दानी’ पसंद है. मैं ने भी जिमनास्टिक और मार्शल आर्ट में ट्रेनिंग ले रखी है. बाइक चला लेती हूं. मुझे मेरी आर्मी पृष्ठभूमि वाला किरदार निभाने की इच्छा है. देशभक्ति वाला किरदार निभाना है.

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Karan Johar की बर्थडे पार्टी में दिखा हसीनाओं का जलवा, देखें फोटोज

बीते दिनों बौलीवुड के जाने माने प्रौड्यूसर करण जौहर ने अपना 50वां बर्थडे (Karan Johar 50th Birthday) सेलिब्रेट किया, जिसमें टीवी औऱ बौलीवुड की बड़ी बड़ी हस्तियां देखने को मिली. वहीं इस आलीशान पार्टी में एक्ट्रेसेस के फैशन के जलवे सोशलमीडिया पर छा रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं बौलीवुड एक्ट्रेस ऐश्वर्या राय बच्चन से लेकर टीवी एक्ट्रेस रिद्धि डोगरा के करण जौहर की पार्टी में लुक्स की झलक…

ऐश्वर्या का लुक था खास

 

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अपने फैशन से कान्स में जलवे बिखेरने वालीं एक्ट्रेस ऐश्वर्या राय बच्चन का करण जौहर की पार्टी में लुक बेहद खास था. सीक्विन और शाइनी गोल्डन गाउन में पहुंची एक्ट्रेस अपनी कर्वी फिगर फ्लौंट करती हुई नजर आ रही थीं. हगिंग मर्मेड गाउन में ऐश्वर्या किसी जलपरी से कम नहीं लग रही थीं.

अनुष्का का दिखा हौट अवतार

 

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बौलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा भले ही कम पार्टी का हिस्सा बनती हैं. लेकिन करण जौहर की पार्टी में उन्होंने अपने लुक्स पर कोई कसर नहीं छोड़ी. बर्थडे बैश में अनुष्का शर्मा ब्लैक कलर की थाई स्लिट ड्रेस पहनकर पहुंची थीं, जिसमें ड्रैस की नेकलाइन काफी नजर खींच रही थीं.

सेक्सी लुक में दिखीं जान्हवी कपूर

 

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करण जौहर के बर्थडे बैश में जान्हवी कपूर सीक्वेंस एंब्रॉइडरी से सजे पिंक कलर के थाई स्लिट शिमरी गाउन में पहुंची थीं, जो बेहद खूबसूरत लग रहा था. पहनकर पहुंची थीं, जिसमें वह बेहद ही खूबसूरत नजर आ रही थीं. वहीं इस गाउन में वी नेकलाइन फैंस का ध्यान खींच रहा था. हालांकि इस लुक को लेकर वह ट्रोलिंग की शिकार भी हो गई हैं.

रानी और माधुरी ने खींचा ध्यान

 

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करण जौहर की पार्टी में रानी मुखर्जा और माधुरी दीक्षित भी नजर आईं थीं, जिसमें दोनों के वेस्टर्न अवतार ने फैंस का ध्यान खींचा था. वहीं फैंस को दोनों एक्ट्रेसेस का अवतार बेहद खूबसूरत लगा था.

 

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टीवी एक्ट्रेस भी नहीं रही पीछें

 

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बौलीवुड के अलावा टीवी एक्ट्रेस रिद्धि डोगरा भी करण जौहर की पार्टी का हिस्सा बनीं थीं, जिसमें ब्लैक कलर के आउटफिट में वह सिंपल लेकिन स्टाइलिश लग रही थीं. फैंस को उनका ये लुक बेहद पसंद आ रहा है.

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वीडियो क्रेडिट- Viral Bhayani

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