22 साल की नव्या लेयर्स में कटे अपने लंबे हलके ब्राउन रंग के बालों को झटकते हुए तौलिए से पोंछ रही थी और बालकनी में खड़ी अपार्टमैंट के नीचे मेन गेट से एक आकर्षक स्त्री को दरबान से कुछ पूछते देख रही थी. नहाधो कर अपने धुले हुए कपड़ों को बालकनी में रखे क्लोथ स्टैंड में सुखाते और गीले बालों को धूप दिखाते हुए वह सुबह 9 बजे अपार्टमैंट के नीचे का नजारा भी अकसर ले लेती है. बस, इस के बाद वर्क फ्रौम होम की हड़बड़ी. ओट्स, नूडल, ब्रैड कुछ भी नाश्ते में और लैपटौप खोल कर बैठ जाना.
लखनऊ के इंदिरा नगर के जिस अपार्टमैंट के एक फ्लैट में नव्या रहती है वह चौथे माले पर है. उस में 3 कमरे हैं, तीनों में अटैच लैट, बाथ और बालकनी है. हर कमरे में एसीपंखा, डबल बैड, छोटा सोफा, साइड टेबल, अलमीरा और दीवार में वार्डरोब है यानी संपूर्ण निवास की व्यवस्था है इस फ्लैट में. हौल में बड़ा सोफा, बड़ा टीवी और सैंटर टेबल अपनी निश्चित जगह पर सजी है. कौमन ओपन रसोई की बगल में थ्री सीटर डाइनिंग का भी इंतजाम है, जिस का फिलहाल यहां रहने वाले प्रयोग नहीं करते.
गैस कनैक्शन फ्लैट की ओनर लेडी का है और किराएदार सिलिंडर का पैसा चुकाते हैं.
इस फ्लैट में रहने वाले हर किराएदार को 7 हजार महीने के देने पड़ते हैं. इस के अलावा मेड का पैसा यही लोग साझा करते हैं.
नव्या अपने कमरे में पलंग पर औफिस का सामान सजा कर काम करने बैठ चुकी थी. दोपहर 12 बजे वह लंच बनाने के लिए उठेगी और तब शमा से उस की मुलाकात होगी.
कुछ गपशप और साथ रसोई में लंच तैयार करना फिर काम पर बैठ जाना. शमा जिसे नव्या शमा मैम कहती है, नव्या की कंपनी में ही उस से तीन 3 सीनियर टीम मैनेजर है.
नव्या है शोख, चंचल, नाजुक जिसे आजकल गर्ली कहा जाता है, जबकि शमा नव्या से बिलकुल अलग है. 26 साल की सांवलीसलोनी शमा 5 फुट 6 इंच की हाइट के साथ स्ट्रौंग पर्सनैलिटी की धनी है. उसे न तो नव्या की तरह 10 बार सैल्फी ले कर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की आदत है, न ही इंस्टा पर अपने फौलोअर्स बढ़ाने को ले कर कोई धुन. वह बिंदास अपने काम और नौकरी में मशरूफ रहती है, कभी मन किया तो घूमनाफिरना या फिर अपनी कोई पसंदीदा मूवी देख लेना. क्लीयर विजन, साफ सोच और तनाव से दूरी. शमा अपनी जिंदगी अपने बूते जीने की दम रखती है.
कोई उस की आलोचना करे, उस के रंग पर टिप्पणी करे, उसे खास फर्क नहीं पड़ता.
नव्या का कमरा हौल के बीच में था, एक ओर शमा का कमरा था, दूसरी ओर का कमरा अभी खाली था.
नव्या औफिस के काम में व्यस्त थी कि मुख्य दरवाजे की घंटी बजी. शमा नव्या की सीनियर थी, प्राइवेट कंपनी के सीनियरजूनियर कल्चर को निभाते हुए दरवाजा अकसर नव्या ही खोला करती थी. दरवाजा खोलते ही मकानमालकिन बिना कुछ कहे उस महिला को अंदर ले आई जिसे अभी कुछ देर पहले नव्या ने नीचे देखा था.
नव्या को मकानमालकिन से बस इतनी जानकारी मिली कि यह अश्विनाजी हैं, नजदीक के सरकारी कालेज में लैक्चरर बन कर आई हैं. अश्विनाजी तीसरे कमरे में किराएदार बन कर आ रही हैं.
नव्या कमरे में चली गई वह कुछ हद तक बो?िल महसूस करने लगी. शमा मैम के साथ उस की लगभग पटरी तो बैठी ही थी, भले गहरी न भी छने लेकिन यह अश्विनाजी पता नहीं कैसी होगी. कहीं ज्यादा रोकटोक, साजसंभाल पर न उतर आए. किशोरी से जुम्माजुम्मा 4-5 साल ही तो हुए थे उसे जवानी की दहलीज पर कदम रखे. आजादी के माने उस के लिए अपनी मरजी से पैर पसार कर जीना था. खैर, जो होगा देखा जाएगा.
दूसरे दिन दोपहर तक अश्विना आ गई. एक चौवन इंच के सूटकेस और दो हैंड बैग के साथ वह कमरे में आई और कमरे की साफसफाई में व्यस्त हो गई.
नव्या ने ही दरवाजा खोला था और छोटी सी मुसकराहट के सिवा इन दोनों के बीच कोई और बात नहीं हुई.
लंच के वक्त शमा ने नव्या को भेजा कि लंच के बारे में पूछ ले पर नव्या को अश्विना ने मना कर दिया. दोनों रोज की तरह अपनीअपनी प्लेट ले कर अपनेअपने कमरे में बंद हो गईं.
शाम 6 बजे नहाधो कर गुलाबी और सफेद जोड़ी का ए लाइन सूट पहन अश्विना ने 3 कप कौफी ट्रे में सजा कर शमा और नव्या के कमरे के बंद दरवाजे पर आवाज लगाई.
दोनों अपने कमरे से बाहर आईं तो अश्विना ने कहा, ‘‘मैं अश्विना, मेरी उम्र 32 साल है, आप लोग मु?ो दीदी कह सकतीं, मुझे अच्छा लगेगा. आओ कौफी पीती हैं. लंच के वक्त मेरी सफाई पूरी नहीं हुई थी…’’
‘‘अरे हम समझ गई थीं, कोई बात नहीं, चलिए आइए मेरे कमरे में, मेरा अभी कंप्यूटर से हटना मुश्किल है,’’ शमा ने कहा.
शमा और नव्या ने अपनी कौफी ले ली. दोनों शमा के साथ उस के कमरे में आ गईं.
शमा ने दोनों को पास अपने पलंग पर ही बैठा लिया. इन की शाम 8 बजे छुट्टी होती थी. अपनी इच्छा से वे 15 मिनट का टी ब्रेक ले सकती थीं और अभी उसी सुविधा के तहत नव्या अपने काम से कुछ देर के लिए उठ कर यहां आई थी.
तीनों एकदूसरे से घनिष्ठ होते हुए कौफी का आनंद ले रही थीं कि शमा की नजर अश्विना के पेट पर गई. उसे थोड़ा अजीब सा लगा. पेट सामान्य से बड़ा है न या शमा ही गलत देख रही है. देखने से तो अश्विना अविवाहित लग रही थी. शादीशुदा लड़की अकेली इस तरह भला क्यों रहने आएगी? शमा अपनी सोच को विराम दे कर फिर से काम पर लग गई.
अश्विना ने कहा, ‘‘मैं तुम ही कहूंगी तुम दोनों को, ठीक है न?’’
दोनों ने मुसकरा कर सहमति दी तो अश्विना ने कहा, ‘‘मेरा चयन यहां के सरकारी कालेज में बतौर लैक्चरर हुआ है, फिलहाल घर पर ही हूं. जब तक कालेज शुरू नहीं होता, लंच मैं ही बना लूंगी. हम सब अब से थोड़ी देर डिनर टेबल पर ही साथ डिनर करेंगे, लंच भले ही तुम लोग औफिस के काम के साथ ही कर लेना. क्यों यह ठीक होगा न?’’
‘‘अरे नहीं, हम अपना बना लेंगे,’’ नव्या ने कहा तो अश्विना ने कहा, ‘‘यह तो हो गई न पराएपन की बात. मैं आई हूं न तुम दोनों की दीदी. फिर तुम दोनों अपने औफिस का काम करो न. लंच तैयार कर के मैं बुला लूंगी न तुम दोनों को. अकेले नहीं खा पाऊंगी.’’
तीनों हंस पड़ीं, फिर नव्या उठ कर गई तो शमा ने कहा, ‘‘दी, आप को एतराज न हो तो हमें अपने बारे में बताएं?’’
‘‘मेरी कहानी में पेच है, इसलिए खुलतेखुलते ही खुलेगी. तुम बताओ तुम कहां की हो?’’ अश्विना इतनी जल्दी शायद खुद को खोलना नहीं चाहती थी.
‘‘मैं लखनऊ के गोमतीनगर की बेटी हूं. वहां मेरा पूरा परिवार है, संयुक्त परिवार. पापामां, मेरी 1 छोटी बहन, चाचाचाची और उन की 2 बेटियां और 1 बेटा.’’
‘‘फिर तुम यहां किराए के फ्लैट में?’’
शमा ने कंप्यूटर बंद कर दिया. शायद उस की आज की ड्यूटी खत्म हो गई थी. उस ने कहा, ‘‘दरअसल, मेरी जिंदगी अजीबोगरीब पड़ाव पर आ कर रुक गई थी. अगर मैं यहां आ कर अपनी नई जिंदगी की शुरुआत नहीं करती और परिवार और समाज की तथाकथित लाज और इज्जत की खातिर खुद को मिटा देती तो मेरी जिंदगी मेरी उन सहेलियों और पहचान की लड़कियों की तरह हो जाती जिन्होंने शिद्दत से अपनी जिंदगी बनाई, मेहनत की, डिगरी ली और अब एक साड़ी के रंग के लिए पति की निर्णय के अधीन हैं, जिन का प्रोफैशन बस सोशल मीडिया में खुद की सैल्फी पोस्ट कर के खुश रहना है. मैं ऐसे नहीं जी सकती थी इसलिए आज मैं यहां हूं.’’
‘‘तुम तो शानदार हो. तुम घर भी नहीं जाती?’’
‘‘उन्हें बताया भी नहीं कहां हूं, मां से कभी बात कर लेती हूं, दरअसल, मां की मौन सहमति तो है मेरे निर्णय पर लेकिन परिवार के डर से कभी जताती नहीं.’’
आज डिनर टेबल को अश्विना ने अच्छी तरह साफ कर लिया था. तीनों ने बनाई थी गोभीमटर की सब्जी, रोटी और अश्विना की खास दाल फ्राई.
साथ खाते हुए अश्विना ने नव्या से पूछा, ‘‘छुटकी तुम कहां की हो?’’
‘‘मैं गया बिहार की हूं दीदी.’’
‘‘बहुत दिन हो गए होंगे घर गए? अश्विना ने उस पर नेह जताया.
‘‘मेरे लिए क्या देर क्या सबेर. मैं ने तो प्रण कर घर छोड़ा है कि लौट कर दोबारा नहीं जाऊंगी.’’
अश्विना अवाक थी. संवेदना जताते पूछा, ‘‘हुआ क्या आखिर? ’’
‘‘मेरे पापा सही नहीं हैं, मां से मारपीट करते हैं, नशा भी करते हैं और फिर वही लड़ाई?ागड़ा, भाई तो दिनभर बाहर रह कर वक्त निकाल लेता है, लेकिन मेरी जो हालत होती मैं ही जानती थी. पढ़ाई पूरी करते ही मैं ने नौकरी की कोशिश की और जानबू?ा कर शहर से इतनी दूर चली आई.’’
‘‘मां के बारे में नहीं सोचा, बेचारी अकेली पिसने के लिए रह गई?’’ अश्विना कुछ दुखी दिख रही थी.
नव्या ने कहा, ‘‘अब यह तो उस की मरजी. चाहती तो पापा को छोड़ देती. वहां जाऊंगी तो पापा जबरदस्ती मेरी शादी करवा देंगे और वह भी अपने जैसे किसी लड़के से. मेरी मां कुछ भी नहीं कर पाएगी. अभी कम से कम अपना खर्चा मैं खुद उठा रही हूं, भाई को खर्चा भेज देती हूं कभीकभी… मुझे वहां याद ही कौन करता है… मैं यहां खुश हूं और घर कभी नहीं जाने वाली.’’
अश्विना ने अपना सिर झुका लिया. शमा समझ गई थी कि अश्विना को नव्या की अपनी मां के प्रति बेरुखी पसंद नहीं आई.
नव्या ने उत्सुक हो कर पूछा, ‘‘दी, आप बताइए न आप क्या लखनऊ की हैं?’’
अश्विना चुपचाप खाती रही तो शमा ने ही टोक दिया, ‘‘कहिए तो दीदी, हम साथ हैं, कुछ तो एकदूसरे से परिचित होना जरूरी है.’’
अश्विना ने अपना फोन उठाया और गैलरी में कुछ टटोलती दिखी.
कहा, ‘‘मैं लखनऊ की नहीं हूं, मैं मेरठ की हूं. 25 साल की थी, तब प्राइवेट स्कूल में बतौर टीचर पढ़ाने लगी. हम राजपूत हैं, हमारी बिरादरी में लड़कियों को समाज के सिर पर पगड़ी समझ जाता है. हमारी इंसानी रूह पगड़ी बनेबने ही एक दिन खत्म हो जाती है. लेकिन मैं ने ठान रखा था, रस्मरिवाज पर खुद की बलि मैं नहीं चढ़ाऊंगी. मेरी नौकरी लगते ही घर वाले मेरी शादी को उतावले हो गए. इधर मेरी जिंदगी में कुछ नया होना लिखा था. जिस प्राइवेट स्कूल में मैं टीचर थी, वहां के डाइरैक्टर शादाब सर टीचर्स डे पर अपने घर पर टीचरों के लिए पार्टी रखा करते थे.
‘‘शादाब सर की उम्र कोई 45 के पास की होगी, बहुत नेकदिल और मिलनसार थे. इस बार उन के यहां मेरी पहली पार्टी थी. मैं ने गुजराती ऐंब्रौयडरी में आसमानी रंग का पूरी बांह का केडिया टौप और आसमानी रंग का सफेद नीले सितारे जड़ा लहंगा पहन रखा था. मैं अपनी एक टीचर के साथ बात कर रही थी कि शादाब साहब अपने साले साहब को ले कर आए.
‘‘जरा छेड़छाड़ की अदा में मु?ा से मुखातिब हुए और कहा. मैं ने दीया ले कर बहुत ढूंढ़ा लेकिन हमारे साले साहब की बराबरी में आप से बढ़ कर कोई दिखी नहीं. ये हमारे इकलौते साले साहब महताब शेख हैं. नामी बिजनैस मैन और महताब ये हैं हमारे स्कूल की नई कैमिस्ट्री टीचर अश्विनाजी. चलो मैं जरा दावतखाने का देख आऊं, आप लोग मिलो एकदूसरे से.
‘‘शादाब सर के चले जाने के कुछ पल तक हम बेबाक से एकदूसरे के पास खड़े रहे. महताब हलके पीले फूल वाली शर्ट और नेवी डैनिम जींस में गजब के स्मार्ट लग रहे थे. मेरी हाइट 5 फुट 4 इंच की है, वे 5 फुट 10 इंच के हैं. मुझ से गोरे, चेहरे पर घनी काली दाढ़ी उन्हे मजबूत शख्स बना रही थी.
‘‘पार्टी शादाब सर के बंगले से लगे फूलों के गार्डन में चल रही थी. खूबसूरत रोशनी, संगीत, लजीज खाना और ड्रिंक्स माहौल था, जोश था, चाहतें थीं, सपने थे. महताब ने बात शुरू की, ‘‘आप आसमानी ख्वाब की हूर हो. मुझे अपना पता बता दो.’’
‘‘मैं अंदर ही अंदर चौंक गई. यह व्यक्ति पहली ही मुलाकात में शायरी कर गया, कहीं सही तो होगा न. लेकिन कैमिस्ट्री के सूखे रसायन में झरने की कलकल ध्वनि सुनाई दे गई मुझे और मैं उसी झरने की खोज में चल निकली.
‘‘मुझे भी बोलना आ गया. मैं ने कहा, ‘‘मैं कोई हूर नहीं, आप की नजरों में नूर हूं वरना मुझ जैसी साधारण…’’
‘‘अरे बस, इतना भी मत पिघलो कि मैं थाम न पाऊं, शरारत से जरा सा मुसकराए तो मैं ने पहली बार किसी पुरुष को देख शर्म से नजरें नीची कीं.
‘‘हमारा परिचय यों होतेहोते वक्त से वक्त चुरा कर मिलतेमिलाते हम इतने करीब आ गए कि हमें अब साथ रहने के कदम उठाने थे. महताब टाइल्स और होम डैकोर के बड़े बिजनैसमैन थे. मेरठ के अलावा कई और शहरों में उन का बिजनैस फैला था, जिन में एक लखनऊ भी था.
अश्विना ने उन दोनों को महताब और उस की साथ वाली तसवीर दिखाई. शमा की आंखों में तारीफ थी, लेकिन नव्या चहक उठी, ‘‘वाह आप मिनी स्कर्ट में? जीजू तो गजब के स्मार्ट लग रहे हैं. कितनी उम्र रही होगी उन की तब?’’ नव्या ने तसवीर अपने हाथ में लेते हुए कहा.
‘‘यह तसवीर हमारे परिचय के बाद छह महीने के अंदर की है. उन की तब उम्र 32 थी और मैं 26 की.
‘‘नव्या तसवीर से नजर हटा नहीं पा रही थी यह बात दोनों ने गौर की खासकर शमा ने देखा वह महताब को एकटक देख रही थी. शमा की अश्विना में दिलचस्पी बढ़ गई. उस ने पूछा, ‘‘फिर आप इधर कैसे आ गईं?’’
‘‘अश्विना खुलने लगी. मेरठ में जब हमारी मुलाकात हुई थी उस के सालभर पहले महताब का उस की पत्नी से तलाक हुआ था, दोनों को कोई बच्चा नहीं था, 5 साल की शादी के बाद तलाक की वजह बच्चा न होना बताया था मुझे महताब ने. खैर, हमारी शादी को मेरे घर वाले तो कतई तैयार नहीं होते, बड़े कट्टर हैं वे. इधर महताब भी एक शादी से निकलने के बाद तुरंत दूसरी शादी को तैयार नहीं थे, मजबूरन मैं ने तय किया कि उसी की शर्तों पर उस के साथ रहूं यानी लिव इन में. महताब भी इस के लिए तैयार थे. हमें न समाज की सहमति की जरूरत थी, न कानून और धर्म की. हम बड़ी बेसब्री से एकदूसरे को चाहते थे. बीच में कई सारे बिचौलिए थे, जाति, धर्म, समाज और इस के रिवाज. हम किसकिस की खुशामद करते और क्यों करते. हम आर्थिक रूप से स्वतंत्र थे और किसी भी सूरत में किसी का नुकसान नहीं कर रहे थे. लिव इन में अगर रिश्ते में कोई परेशानी आती है तो क्या वह शादी में नहीं आती? महताब की शादी ही तो टूटी थी. मैं ने सोचा रिश्ते में आपसी प्यार और भरोसा एकदूसरे को बांधे रखता है. कौन सा कानून हुआ है जो 2 लोगों को प्यार की डोर में बांधे रखता हो. महताब का लखनऊ में अच्छा व्यवसाय था, एक फ्लैट भी था जहां वे ठहरते थे. मैं ने घर वालों से बगावत कर के और शादाब सर की मदद से लखनऊ महताब के साथ बस गई. अब तक अच्छा ही चल रहा था या कह सकती हूं. मैं अच्छा चल रही थी क्योंकि अब मैं रुक गई तो सब रुक गया.
‘‘आज इतने सालों बाद जब हमारा बच्चा आ रहा है, महताब अब भी शादी को तैयार नहीं. कहते हैं शादी के लिए धर्म परिवर्तन करना पड़ सकता है जो उन्हें पसंद नहीं. मैं तैयार हूं उस के लिए भी, क्या फर्क पड़ता है, हम दोनों ही धर्म और कर्मकांड के बिन रोजाना जी रहे हैं, फिर हिंदू कहो या मुसलिम. मेरे लिए महताब का स्थाई साथ महत्त्व रखता है.
‘‘मगर महताब राजी नहीं. कहते हैं बच्चा आ रहा है तो उस के लिए मैं अपने जीने का तरीका नहीं बदल सकता. उसे भी इस सच के साथ जीने दो. लेकिन एक मां के लिए यह लज्जा की बात है कि वह अबोध बालक या बालिका को समाज और कानून की कैफियत के सामने खड़ा कर दे.
‘‘6 महीने और गुजर गए. अश्विना को बेटा हुआ था. नव्या कभीकभी बच्चे के साथ खेल कर चली जाती. शमा अपने काम से समय निकाल कर अश्विना के बच्चे की देखभाल में हाथ बंटाती.
‘‘अश्विना ने कालेज से 6 महीने की छुट्टी ली हुई थी. शमा बेटे का दूध बना कर लाई तो देखा अश्विना की आंखों से विकलता की यमुना बह रही है. शमा ने पास बैठ कर उस के सिर पर हाथ फिराते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ दी, आप इतनी लाचार और टूटी दिख रही हैं? कुछ और नया हुआ क्या?’’
‘‘मैं ने बेटे की तसवीर उसे कल रात को भेजी थी. यह बेटे की पहली तसवीर उस के 1 महीना पूरा होने पर भेजी. महताब ने देख कर रख दिया, लेकिन कहा कुछ नहीं.’’
‘‘दी मैं आप को दिलासा नहीं दूंगी कि व्यस्त होंगे या बाद में कहेंगे. मैं आप से पूछती हूं आप ने कमजोर पड़ने के लिए स्वतंत्रता का निर्णय लिया है? किसी उम्मीद पर घर छोड़ा है कि वे बाद में पसीज जाएंगे. आप ने तसवीर के साथ कुछ लिखा भी था?’’
‘‘लिखा कुछ नहीं, पता भेजा था,’’ अश्विना ने अपने सीने में अपना चेहरा छिपा लिया. शमा समझ रही थी उस के दर्द को.
‘‘दी आप को तो महताबजी याद आने लगे. आप रोक लो खुद को. अभी भी आप सम?ा नहीं. महताबजी की दिलचस्पी आप में रही नहीं. हो सकता है वे किसी और से…’’
‘‘अश्विना ने अपना सिर ऊपर किया, वह उठ कर बैठ गई. शायद शमा के मजबूत इरादे उसे हिम्मत देने लगे थे. उस ने कहा, ‘‘मैं ने आने से पहले पूछा कि क्या हमेशा मेरे साथ रहने की तुम्हारी मंशा नहीं? तुम अपनेआप में व्यस्त रहते हो, मैं कभी कुछ कहती नहीं, कई रातें वापस नहीं लौटते, बताने की जरूरत भी नहीं सम?ाते कि कहां थे, पूछती तो बिना जवाब दिए चले जाते जैसेकि मैं बीवी बनने की कोशिश न करूं. क्या मैं जबरदस्ती रुकी हूं? तुम मु?ो जाने को कहना चाहते हो? बच्चे के आने की खबर पर तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया नहीं. बच्चे के लिए क्या हमें अब शादी नहीं करनी चाहिए?’’
उस ने कहा, ‘‘तुम्हें जैसा ठीक लगे करो, बच्चे के नाम पर शादी नहीं करूंगा. तुम अपनी मरजी से आई थी, अपनी मरजी से जाओगी, मैं ने कोई जबरदस्ती नहीं की,’’ वह साफ मुझे जाने को कह रहा था और मै निकल आई.
अश्विना के हाथों को अपने हाथ में ले शमा ने कहा, ‘‘दी, आप पीछे की छूटी हुई दुनिया को भूल जाइए, आगे हम सब हैं न साथ, मुन्ना है.’’
‘‘शाम की चाय ये तीनों साथ ले रहे थे कि दरवाजे की घंटी बजी. पता नहीं अश्विना को क्या हुआ वह दौड़ कर दरवाजे पर गई और एक झटके से दरवाजा खोल दिया.
‘‘महताब खड़े थे सामने. एक बुके और बच्चे के लिए खिलौने और कुछ कपड़ों के सैट ले कर. लड़कियां अश्विना के पास आ गईं. शमा ने महताब के हाथ से सामान लिया और सभी को सोफे तक ले आई. अश्विना की आंखों में मोतियों की लड़ें सज चुकी थीं कि अब टूट पड़ेगी कि तब. शमा ने उन्हें इशारा किया और अश्विना ने अपने आंसुओं को जज्ब कर लिया.
‘‘नव्या की चहलपहल देखते ही बनती थी. वह तो हर कायदे को धता बता कर महताब के करीब हो जाने का बहाना ढूंढ़ रही थी. आश्चर्य कि नव्या ने उन के बेटे को महताब की गोद में दिया और उस ने उसे किसी और के बच्चे की तरह कुछ देर प्यार कर के नव्या को ही वापस थमा दिया. अश्विना से बहुत सामान्य बातचीत की जैसे उस की तबीयत कैसी है, कब कालेज जाएगी या बेटे का नाम क्या रखेगी? शमा ने देखा अश्विना बारबार कुछ और बातों की उम्मीद कर रही थी, बारबार टूटी हुई उम्मीद पर आसूं पी रही थी. डिनर महताब ने बाहर से मंगाया और सभी से घुलमिल कर बातें कीं. इस औपचारिकता के बाद अश्विना को महताब से कोई संपर्क नहीं हो पाया. इधर शमा गौर कर रही थी नव्या पर. जैसे उस की जिंदगी में पहले से कुछ अलग हो रहा था. जैसे पपीहे ने नया गीत गाया था, जैसे एक बंद पड़े बगीचे में वसंत आया था. कभी दरवाजे खोलती और कहीं से कोई आया गिफ्ट ले कर, वह उसे लिए अंदर चली जाती, कभी साथ बैठी हो और किसी के एक फोन पर उठ कर अपने कमरे में चली जाए और अंदर से कमरा बंद कर ले.
‘‘शमा वैसे तो अपने सोशल मीडिया अकाउंट से खास लगाव नहीं रखती थी लेकिन नव्या की गतिविधि ने उसे उकसाया कि वह नव्या के साथ जुड़े हुए अकाउंट खोल कर नव्या को चैक करे. हां बस जिस का अंदेशा था शमा को, नव्या ने एक बौडी ऐक्सपोज्ड ड्रैस में अपनी तसवीर के साथ महताब की तसवीर दे कर लिखा था, ‘‘मेरे महबूब का अनमोल तोहफा.’’
‘‘शमा को अश्विना के लिए बहुत बुरा महसूस हो रहा था. महताब देखने में जितना खूबसूरत है, अंदर से उतना ही हृदयहीन. शायद उसे नई लड़कियों से संबंध गढ़ने का चसका था. साथ में रहते हुए कभी तो अश्विना को यह बात पता चलेगी और यह उस के लिए बेहद बड़ा सदमा होगा. पर शमा नव्या को सम?ाएगी कैसे? वह अपने आगे किसी का दर्द नहीं सम?ाती? एक बात क्यों न करे वह. अगले दिन उसने अश्विना को किसी तरह राजी कर लिया कि वे दोनों मेरठ चलें अश्विना के घर. सोचा अश्विना अगर एक महीना भी अपने घर रह ले, शमा नव्या को महताब से हटा लेगी और अश्विना को इस अजाब से गुजरना नहीं पड़ेगा. दोनों अश्विना के घर पहुंचे और घर वालों के सर्द व्यवहार के बावजूद मां ने उन दोनों के लिए अतिथिकक्ष साफ करवा दिया.
‘‘शमा सोच रही थी कि किसी तरह बात चले तो वह इन की सोच की कुछ मरम्मत कर सके. यह मौका मिल ही गया. डाइनिंग पर अश्विना के पापा ने कहा, ‘‘तुम ने हमें त्याग कर एक मुसलिम से शादी रचाई, हम चुप्पी साध गए, मगर अब तुम बच्चे के साथ वापस आ गई हो तो अब तुम्हें हमारे कहे अनुसार चलना होगा.’’
शमा का पारा चढ़ने लगा. यह बड़ी कमाल की बात होती है, ‘‘हमारे अनुसार चलना होगा,’’ अश्विना और शमा दोनों तन गई. शमा ने कहा, ‘‘माफ करें, आप सही नहीं हो तब भी आप के अनुसार चलना होगा?’’
‘‘बिलकुल. यह सरासर लव जेहाद का मामला है, बेटी को बरगला कर मुसलिम धर्म में ले गए और बाद में छोड़ दिया.’’
‘‘अश्विना से अब चुप न रहा गया. वह लगभग चीख ही पड़ी,
‘‘किसी मुसलिम और हिंदू ने शादी की नहीं कि लव जेहाद का मामला बना दिया. बहुत आसान हो गया है न प्यार का कानूनी आड़ में कत्ल कर देना. हम दोनों ने प्रेम किया था, धर्म और जाति देख कर सौदा नहीं किया था. यह और बात है कि लिव इन में किन्हीं व्यक्तिगत कारणों से रहा नहीं गया. पर न हमारी शादी हुई न तो पति ने तलाक दिया. मैं ने खुद उस का घर छोड़ा.
‘‘चाची ने बीच में बेसुरा राग छेड़ा, ‘‘वाह क्या खूब काम किया, बिन ब्याही मां बन गई.’’
‘‘शमा से अब चुप न बैठा गया. उस ने तुरंत कहा, ‘‘अरे किस गली में भटक रही हैं चाची. मुख्य सड़क पर आइए. जब इन्होंने प्यार किया, 6 साल साथ रह कर सुखदुख सा?ा किया, तो बच्चा होना कौन सा बड़ा गुनाह है. इस से महताबजी की बेरुखी सहन नहीं हुई और इस ने उस के साथ रहने को इनकार किया. खुद्दारी देखिए जरा. शादी के बाद औरतें क्या करती हैं? पति अनदेखी करे तो परमेश्वर, गाली दे तो परमेश्वर, अपना स्वार्थ साध कर फेंक दे, दूसरी औरतों पर नजर सेंके, परमेश्वर. शादी के बाद तो पति का पत्नी पर जिंदगीभर अत्याचार करने की वसीयत बन जाती है न. और बच्चा शादी के बाद होता है तो कौन सा हमेशा प्यार का फसल होता है? अकसर तो वह पति के पत्नी पर बलात्कार का ही नतीजा होता है. यह बच्चा तो कम से कम प्यार का परिणाम है.’’
चाचा ने अब अपना लौजिक पेश किया, ‘‘खुद मुसलिम है इसलिए मुसलिम की तरफदारी कर रही है.’’
‘‘शमा इन के तर्क शास्त्र की कारीगरी पर सिर पीट रही थी, कहा, ‘‘चाचाजी, आप फिर दिशाहीन बातें कर रहे हैं. मेरी बातें आप को धार्मिक रूप से कट्टर लगीं? आज फिर सुन ही लीजिए, यह बात अश्विना दी को भी मैं बताते हुए रह गई थी. मेरे घर वालों ने मेरा नाम स्वर्णा रखा था. धर्म की आंख से देखिए तो वे हिंदू हैं. मेरी शादी भी हुई जमींदारी ठाकुर घराने में, पति को पुश्तैनी संपत्ति का बड़ा गुरूर था, कामधाम करना नहीं था, बस बापदादाओं की जमींदारी पर मौज और रौब. मेरे घर में पापा और चाचा की बेटियां हुईं 4. हमारा खानदान भी अच्छाभला खातापीता है और परिवार वालों को बेटी से ज्यादा खानदानी हैसियत की पड़ी रहती थी. शादी के वक्त मैं नौकरी कर रही थी और बता दिया था कि नौकरी नही छोड़ूंगी. शादी के बाद ही पति के रंगढंग से तो परेशान हो ही गई, महाशय अपने अहंकार की परवरिश के लिए मुझे नौकरी छोड़ने पर मजबूर करने लगे. मैं समझ गई चाहे अपनी जिंदगी भी दे दूं, इस के साथ मैं एक दिन भी खुश नहीं रह सकती. लेकिन खानदान की पहचान का ऐसा हौआ था कि मैं कहीं निकलने की सोच भी नहीं पा रही थी. एक दिन धोखे से मुझे वह मायके ले आया और हंगामा जो बरपाया कि सारे लोग मुझे ही कोसने लगे. आखिर उन्हें क्या समझती कि मै नौकरी मजे करने और पैसे लुटाने को नहीं कर रही थी. यह मेरे स्वतंत्र निर्णय और पहचान से जुड़ा मसला था.
‘‘पति मुझे इस धमकी पर छोड़ गया कि नौकरी छोड़ दूं तभी वह मुझे वापस ले जाएगा. वह कोई काम करता नहीं था, मातापिता थे नहीं उस के, अब नौकरी करने से मेरी आर्थिक स्थिति इतनी थी कि मैं उस की मुहताज नहीं थी और यह बात उसे बेहद खटकती थी. घर वालों ने एड़ी चोटी का जोर लगाया कि मैं अपने पति के घर जाने के लिए नौकरी छोड़ दूं. एक दिन मैं ने सख्ती से खुद को समझाया और अपने लिए आसरा ढूंढ़ने निकली. अपना नाम भी बदला. और मैं शमा हो गई.
‘‘शमा क्यों? हिंदू हो कर मुसलिम नाम?’’ अश्विना के पापा ने हैरत से पूछा, ‘‘जी क्योंकि नाम खुद ही एक पहचान है. उस की पहचान हिंदूमुसलिम की नहीं होती. यह दीवार इंसानी दिमाग की पैदा की हुई है, दूसरों को नीचा दिखाने और अपने को सब से अलग करने के लिए. नाम तो भाषा और लिपि का एक शब्द है, जिसे कोई भी इस्तेमाल या उपयोग कर सकता है. उर्दू बड़ी मीठी भाषा है और मुझे यह नाम बचपन से पसंद था, इसलिए मैं ने इसे अपने लिए चुना. मैं अपनी स्वतंत्र पहचान चाहती थी और पति और जबरदस्ती करने वालों से अपनी पहचान छिपाना चाहती थी, शमा का अर्थ रोशनी है और…’’
‘‘और मेरी जिंदगी में शमा आई है,’’ अश्विना ने दिल पर हाथ रख कहा.
‘‘शमा लखनऊ लौट आई थी और नव्या के हालचाल उसे ठीक नहीं लगे थे. मगर शमा सम?ा रही थी कि नव्या को रोकना मुमकिन नहीं. अश्विना के घर वालों पर कुछ तो असर हुआ था, अश्विना शमा को फोन पर बताती थी. शमा ने अश्विना से अभी एकाध महीने मायके में ही रुकने का अनुरोध किया था.
‘‘ऐसा क्या था महताब में जो लड़कियां खुद उस के पीछे चलने लगतीं. शमा
जानना चाहती थी. कुछ सोच कर शमा ने नव्या के इंस्टा से महताब को फौलो किया और उसे डीएम कर के यानी डाइरैक्ट मैसेज भेज कर सूचित किया.
‘‘तुरंत ही महताब ने शमा को फौलो कर लिया और संदेश दे कर प्यार और आभार कहा. अपना व्हाट्सऐप नंबर भी खुद ही महताब ने शमा को दे दिया. थोड़ेथोड़े हंसीमजाक के साथ शमा महताब के साथ घुलतीमिलती रही. एक दिन महताब ने उसे संदेश भेजा कि वह शमा से मिल कर अपनी दिल की बात उसे बताना चाहता है, वह शमा को अपनी जिंदगी में चाहता है.
‘‘शमा ने कहा, ‘‘यह तो मेरे लिए बड़ी खुशी की बात है जो महताब मुझे चाहता है वरना मुझ में है क्या?’’
‘‘क्या बात करती हो, तुम्हारे चेहरे का यूनीक फीचर, यह सलोना कृष्णचूड़ा सा रंग, यह गजब की स्टनिंग फिगर और सब से बड़ी खूबी…’’
‘‘रुकोरुको. सब से बड़ी खूबी आप मुझे मेरे सामने आ कर सुनाओ.’’
‘‘तय हुई कि अगले सप्ताह रविवार को महताब शमा के फ्लैट में आए, उस दिन वह अकेली होगी. अगले रविवार को महताब आए और फ्लैट के दोनों कमरों में किसी को न पा कर निश्चिंत हुए. शमा अपने कमरे में थी, महताब को भी वहीं ले गई. महताब उस के पलंग पर पसर कर बैठ गए. लगभग 39 साल के महताब अब सपना देख रहे थे 26 साल की शमा का.
शमा बोली, ‘‘तो आप बता रहे थे मेरी सब से बड़ी खूबी?
‘‘हां बता तो रहा था लेकिन उस से पहले यह हीरे की अंगूठी तुम्हारे लिए. अपना बायां हाथ दो.’’
‘‘यह तो बाद में, पहले कुछ बातें हो जाएं, मुलाकातें हो जाएं. कहिए न क्या खूबी है मुझ में जो आप ने अश्विना, नव्या को छोड़ मुझे चुना वह भी शादी के प्रस्ताव के साथ, कोई और भी था तो वह भी बता दीजिएगा. मैं इन सब बातों का बुरा नहीं मानती.’’
‘‘यही तो गजब की खूबी है तुम में. तुम और लड़कियों की तरह मेल पार्टनर पर दवाब नही बनाती कि एक ही से जिंदगीभर रिश्ता रखे. तुम में गजब का आत्मविश्वास है, इसलिए तुम्हें बुरा नहीं लगता अपने पार्टनर का दूसरी लड़की के साथ भी रिश्ता रखना.’’
‘‘आप को अच्छा लगेगा यदि आप की फीमेल पार्टनर आप के सिवा दूसरे के साथ वही रिश्ता रखे जो उस का आप के साथ है? आप को ठेस तो न पहुंचेगी?’’
महताब उसे एकटक देखता रहा, फिर बोला, ‘‘पहुंच सकती है. मेल इसे अपनी इज्जत पर लेते हैं.’’
‘‘इसलिए क्योंकि वे लड़की को अपनी जागीर समझते हैं, हैं न? जबकि अपनी पार्टनर को बगल में रख दूसरी, तीसरी को भी लिए चलते हैं क्योंकि फीमेल पार्टनर के प्रति पुरुष का नजरिया बराबरी का नहीं होता.’’
‘‘तुम तो नव्या के रहते मेरी जिंदगी में आई,’’ महताब शमा को सम?ाने की कोशिश कर रहे थे. उधर शमा अपने तरीके से आगे बढ़ रही थी. बोली, ‘‘आप अश्विना के साथ रिश्ते में रहते, कितने और रिश्ते में रहे? आप अपने बारे में बताइए तभी मैं आगे बढ़ सकूंगी.’’
‘‘पिछले 2 सालों से अश्विना के अलावा मेरे और 2 संबंध थे, जो टूट गए. नव्या से मेरा रिश्ता हंसीखेल का था.
‘‘आप खेल रहे थे उस के साथ? वह अभी बच्ची ही है आप लगभग 40 साल के.’’
‘‘मैं इस में क्या करूं? उस की मु?ा में रुचि थी, मैं उसे जो भी कहता वह तुरंत करने को तैयार रहती. अब अगर वह खुद ही बिछ रही है तो मैं क्यों पीछे रहूं?’’
‘‘और अश्विना के सच्चे प्यार की आप ने कद्र नहीं की? वह क्यों?’’
‘‘अश्विना की बात ही बेकार है. वह चाहती थी, उसी की तरह मैं भी उस का ही नाम जपता रहूं. वह खुद घर छोड़ कर मेरे साथ लिव इन में रही, उसे याद रखना चाहिए था, मैं शादी के ?ां?ाट में नहीं पड़ा ताकि हमारे बीच आजादी बनी रहे. 2 साल से मैं ने उस के साथ रहते दो और लड़कियों से रिश्ते रखे.’’
‘‘उसे भनक पड़ी?’’
‘‘नहीं क्योंकि मैं इस काबिल हूं कि सब को ले कर चल सकूं.’’
‘‘वाह क्या बात है महताबजी. आप ने तो प्यार, इज्जत, समर्पण, भरोसा हर
चीज का कौन्सैप्ट ही बदल दिया ताकि आप का सैक्सुअल डिसऔर्डर (डिजायर नहीं) संतुष्ट होता रहे.’’
‘‘अश्विना दी और नव्या आप लोग अब मेरे बाथरूम से निकल आओ. आप को महताबजी के बारे में अब तक पूरी जानकारी हो गई होगी,’’ शमा नव्या और अश्विना को अपने बाथरूम से बाहर आ जाने को आवाज दे रही थी. दोनों पूर्व साथियों को कमरे में देख महताब भौचक रह गए. शमा से कहा, ‘‘मैं ने सोचा था तुम मेरे धर्म की हो, अब घर ही बसा लूंगा.’’
‘‘महताबजी, जब धर्म को तवज्जो न दे कर आप सही सोच रखते हैं, तो धर्म के अनुरूप शादी क्यों? ऐसे भी मैं स्वर्णा हूं, जिस ने खुद को प्यार से शमा बुलाया है.’’
महताब जल्दी से जल्दी वहां से निकल गए. अश्विना ने कहा, ‘‘महताब यानी चांद, चांद किसी का न हुआ.’’
‘‘हम अपनेअपने दाग के साथ खुद ही चांद हैं अश्विना दी. फिर अपना चंद्रिम है न. हम 3 का दुलारा आप का बेटा,’’ शमा ने अश्विना और नव्या को अपनी बांहों के घेरे में ले लिया था.
नव्या ने कहा, ‘‘अश्विना दी, आप के बेटे का नामकरण कर दिया शमा मैम ने.’’
अश्विना ने कहा, ‘‘मां के पास बेटे को छोड़ कर आ रही थी तो मां ने उस का नाम सोचने को कहा था. अभी बता देती हूं उस का नाम. शमा का दिया नाम चंद्रिम होगा. कल ही मेरठ जा कर बेटे चंद्रिम को शमा मौसी के पास ले आती हूं.’’
‘‘सांझ के अंधेरे आकाश में उगा चांद उन की खिड़की से झांकता हुआ मुसकराने लगा था.’’