मानसिक दबाव के बढ़ने के बारें में क्या कहती है ’83’ की एक्ट्रेस Wamiqa Gabbi, पढ़ें इंटरव्यू

पंजाबी परिवार में पैदा हुई वामिका गब्बी को फिल्में देखने का बहुत शौक था. उनके परिवार के सभी सदस्यों को किसी नई फिल्म के रिलीज होने पर हॉल में जाकर देखना पसंद करते है. वामिका जब बड़ी हुई तो उसे हमेशा कुछ अलग काम करने की इच्छा रहती थी, कई बार उन्हें आसपास कई ऐसी घटनाएं दिखती थी, जिसमें जागरूकता बढ़ाने की जरुरत है.

महिलाओं और बच्चों पर हुए नाइंसाफी को वह खास मानती है. वामिका को लोगों तक पहुँचाने का माध्यम फिल्म लगती थी, क्योंकि पूरा देश फिल्मों का शौकीन है. उनके पिता का ट्रान्सफरेबल जॉब था, इसलिए वामिका को अलग-अलग स्थानों में जाने का अवसर मिलता रहा. वामिका ने हिंदी फिल्मों के अलावा पंजाबी, तमिल, तेलगू और मलयालम फिल्मों में काम किया है. उन्हें अपना कैरियर बहुत पसंद है, फिल्म 83 में उन्होंने क्रिकेटर मदनलाल की पत्नी अन्नू लाल की निभाई है, जिसमें उनके काम को काफी प्रशंसा मिली. उनसे उनकी जर्नी के बारें में टेलीफोनिक बात हुई पेश है, कुछ खास अंश.

सवाल – फिल्मों में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

जवाब – बचपन से ही फिल्म देखने का शौक रहा और फिल्में भी हर भाषा में बनने के साथ-साथ हिंदी में भी बनती है, ऐसे में देखने वाले भी बहुत है. मेरे परिवार में सबको फिल्में देखना पसंद था, मैंने भी कई फिल्में देखी है. फिल्में हमेशा मुझे मोहित करती थी और कहानी कहने की इच्छा रहती थी, खासकर स्ट्रोंग और मनोरंजक, जिसे मैं अपनी तरह से कह सकती हूं. मौका था और मैं लकी थी कि मुझे फिल्म 83 मिली, जिसमें कहानी के साथ- साथ अच्छे निर्देशक, को स्टार सभी से कुछ न कुछ सीखने को मिला है.

सवाल –  दिल्ली से मुंबई कैसे आना हुआ?

जवाब – मेरे पिता की नौकरी का ट्रान्सफर हुआ करता था, ऐसे में मेरा जन्म दिल्ली में हुआ, लेकिन शिक्षा मैंने मुंबई में ली, इसके बाद मेरा फिर दिल्ली जाना हुआ और अंत में मैं मुंबई आ गयी, क्योंकि यही मेरी डेस्टिनेशन है. मैं पिछले 18 साल से मुंबई में काम कर रही हूं.

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सवाल –  पहली ब्रेक के मिलने में कितना समय लगा ?

जवाब – अभिनय के क्षेत्र में आने से पहले मैं एक फिल्म स्कूल में गयी. वहां मैंने एक शार्ट फिल्म बनायीं थी, इसके बाद कैंपस प्लेसमेंट से ही मुझे पहली फिल्म ‘मकबूल’ मिली थी. इसके बाद धीरे-धीरे काम आगे बढ़ता गया.

सवाल – रियल फिल्मों में काम करने की वजह क्या है?

जवाब – मैंने हमेशा से ही उन कहानियों को कहने की कोशिश की है, जो मेरे आसपास हो, इससे मनोरंजन के साथ-साथ एक सन्देश भी दर्शकों तक पहुँचता है. ऐसी कहानियों से ही सोच में थोडा परिवर्तन हो सकता है. भले ही दर्शक उसे पसंद न करते हो, पर सही स्क्रिप्ट से उसे मनोरंजक बनाया जा सकता है.

सवाल –  कोविड पेंड़ेमिक की वजह से आज ओ टी टी फिल्मों का बाज़ार बहुत बढ़ा है, हर तरह की कहानियाँ कही जारही है, लेकिन रीयलिस्टिक फिल्मों को दर्शक हॉल में देखना पसंद नहीं करते, क्या ऐसे में फिल्म मेकर को आगे किसी प्रकार का खतरा हो सकता है?

जवाब – ये समय स्टोरी टेलर्स के लिए अद्भुत है. निर्माता, निर्देशक,लेखक सभी प्रकार की फिल्मों को एक्स्प्लोर कर रहे है. पहले इन्हें समानांतर फिल्में कही जाती थी, लेकिन अब ऐसी फिल्में मुख्य धारा से जुड़ चुकी है. आसपास की कहानियों को पर्दे पर लाना ही मेरा उद्देश्य रहा है. अच्छी कहानियों को दर्शक भी पसंद करते है. ओटीटी की वजह से वे घर बैठकर आराम से पसंद की फिल्म को कभी भी देख सकते है.

सवाल – आपके आसपास घटित ऐसी कहानी जिसका प्रभाव आप पर अधिक पड़ा?

जवाब – कहानियां बहुत है, इसमें खासकर महिलाओं से सम्बंधित स्क्रिप्ट अधिक होते है, जिसमें एक महिला अलग-अलग परिस्थिति में कैसे रियेक्ट करती है, कैसे उन हालातों से गुजरती है ऐसी सभी कहानियां मेरे दिल के करीब है. मेरे आसपास के माहौल इंस्पायर्ड शो ‘हश हश हश’ है.

सवाल – क्या यूथ में बढ़ते मानसिक दबाव को लेकर क्या आप कुछ करने की इच्छा रखती है?

जवाब – आजकल मानसिक दबाव केवल बच्चों में ही नहीं, बड़ों में भी बहुत है, लेकिन इसमें जागरूकता की कमी है. शरीर ही नहीं, बल्कि दिमाग भी बीमार हो सकता है, लेकिन लोग इसे स्वीकार नहीं करना चाहते और बताने से भी शर्म महसूस करते है. मानसिक बीमारी को एक टैबू के रूप में लिया जाता है. इसमें परिवार को अपने बच्चे को समझाने की आवश्यकता है. जब वे किसी भी मानसिक परेशानी के शिकार होते है, तो सबसे पहले अपने नियर और डियर वन को बताएं. इसके अलावा सामाजिक और क्रिएटर्सका भी दायित्व है कि ऐसी बातों को फिल्मों के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाएं. एक ऐसी ही कहानी पर काम चल रही है और जल्द ही वह पर्दे पर आएगी.

सवाल – आगे की योजनायें क्या है?

जवाब –आगे ‘राम सेतु’ फिल्म है, जिसकी शूटिंग चल रही है. इसके अलावा फिल्म ‘जलसा’ और कई वेब सीरीज भी है, जिसकी शूटिंग चल रही है.

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सवाल – परिवार का सहयोग आपको कितना मिला?

जवाब –परिवार की सहयोग के बिना फिल्मों में काम करना मुश्किल है. हर रोज परिवार एक नए काम के लिए प्रोत्साहन मिलती है. इसमें मेरा बेटा, पति, सास-ससुर और माँ सभी का साथ रहता है. खुद की दृष्टि को बढ़ाने के लिए परिवार का साथ होना बहुत जरुरी है. मेरे पति आरिफ शेख एक फिल्म एडिटर है. मेरा बेटा कियान शर्मा शेख है, जो 11 वर्ष का है और उसे फिल्में देखने का बहुत शौक है. फिलहाल उन्होंने क्रिकेट को अपना कैरियर बनाया है.

सवाल – नये साल का स्वागत कैसे करने वाली है?

जवाब – नए साल को मैं खुशियों के साथ मनाने वाली हूं. पिछले 2 सालों में पेडेमिक ने हमें बहुत कुछ सिखाया है. इसके अलावा मेरी कोशिश अच्छी कहानियों को कहने की रहेगी. सबको प्यार बाँटे, परिवार के साथ खुश और सुरक्षित रहे.

समय सीमा: भाग 1- क्या हुआ था नमिता के साथ

‘‘नमिता,मैं अपनी कंपनी के उत्पादनों के लिए अमेरिका के बाजार में संभावनाएं तलाश करने जा रही हूं और तुम्हें मेरे साथ चलना है,’’ बिक्री निर्देशक पल्लवी ने कहा, ‘‘परेशानी बस इतनी है कि जिन शहरों में हम जाएंगे वहां मेरे

तो अपने रहते हैं और मैं उन्हीं के साथ रहूंगी, तुम्हारा प्रबंध होटल में करवा दूंगी. अकेले रह लोगी न?’’

यह बात 2016 की थी.

‘‘उस की जरूरत नहीं पड़ेगी मैडम,’’ नमिता ने जहां जाना था उन शहरों की लिस्ट पढ़ते हुए कहा, ‘‘संयोग से इन सभी जगहों पर मेरे भी करीबी लोग हैं जो अकसर मुझे बुलाते रहते हैं तो मैं भी उन के साथ रह लूंगी.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा है, वैसे आजकल शायद ही कोई ऐसा मिले जिस का अमेरिका में कोई अपना न हो,’’ पल्लवी हंसी.

अमेरिका की यात्रा व्यावसायिक दृष्टिकोण से अपेक्षा से अधिक लाभदायक रही सो पल्लवी और नमिता बहुत खुश थीं.

‘‘आप को नहीं लगता मैडम कि हमारा न्यूयौर्क में स्थाई औफिस होना चाहिए?’’ वापसी की उड़ान के दौरान नमिता ने पूछा.

‘‘होना तो चाहिए मगर भारत से यहां स्थाई सीनियर मैनेजर और स्टाफ भेजना बहुत महंगा पड़ेगा,’’ पल्लवी ने कहा.

‘‘स्थाई स्टाफ भेजने की क्या जरूरत है, मैडम? कुछ अरसे के लिए एक सीनियर मैनेजर को 2-3 सहायकों के साथ लोकल लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए भेज दीजिए.’’

‘‘बढि़या सुझव है, नमिता,’’ पल्लवी मुसकराई, ‘‘ऐसे ही सोचती रहो. जिंदगी में बहुत आगे बढ़ोगी. अमेरिका प्रवास कैसा रहा?’’

‘‘उम्मीद से ज्यादा अच्छा. जानपहचान वालों के साथ रहने से घूमने में बहुम मजा आया. आप का कैसा रहा, मैडम?’’

‘‘व्यावसायिक सफलता, सब से मिलने और उन के साथ घूमने तक तो बढि़या ही रहा, मगर मैं बराबर बच्चों और उन के पापा को मिस करती थी,’’ पल्लवी ने उसांस ले कर कहा, ‘‘सो मजा नहीं उठा सकी यानी व्यक्तिगतरूप से अच्छा नहीं रहा.’’

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नमिता ने कहना चाहा कि उस का तो व्यक्तिगतरूप से बहुत अच्छा रहा. भविष्य के जिस अनदेखे लेकिन अनिवार्य पहलू के बारे में उस ने कभी सोचने की जरूरत ही नहीं समझ थी, उस से रेणु दीदी ने उसे अनजाने में अवगत करा कर उस के प्रति जागरूक कर दिया.

रेणु दीदी उस से कई वर्र्ष बड़ी चचेरी बहन थीं. वह स्कूल में थी तभी रेणु दीदी अमेरिका चली गई थीं और उन की उपलब्धियों की कहानियां सुनने को मिलने लगी थीं. चाचाचाची उन के लिए आए दिन आने वाले शादी के प्रस्तावों से परेशान हो गए थे, लेकिन रेणु दीदी फिलहाल न तो शादी के लिए तैयार थीं न घर आने को.

चाची के बहुत कहने पर कि वह उन्हें देखने को तड़प रही हैं, रेणु दीदी ने उन के और चाचा के लिए टिकट भेज दिए थे.

अगले साल छोटी बहन कनु और भाई रवि को बुला लिया था. कनु को वहीं पड़ोस में रहने वाले एक इंजीनियर ने पसंद कर लिया और रवि के लिए अगले सत्र में एमबीए में प्रवेश की व्यवस्था हो गई. बच्चे के वहां जाने के बाद धीरेधीरे चाचाचाची भी भारत से उखड़ कर वहीं चले गए. परिवार के आ जाने से रेणु दीदी और भी लग्न से काम करने लगीं. आज वह अग्रणी और मशहूर सौफ्टवेयर कंपनी में प्रैसिडैंट थी. सुसज्जित बंगला, बड़ी गाड़ी और अमेरिका की दुर्लभ सुविधा नौकरानी उन के पास थी. कनु और रवि के अपने घर थे. चाचाचाची अधिकतर उन के पास रहते थे.

‘‘काम से थक कर आने पर आप के घर में बहुत सुकून और शांति मिलती है, दीदी,’’ नमिता ने कहा.

‘‘कुछ रोज को, उस के बाद सन्नाटा काटने लगता है.’’

‘‘ऐसा क्या?’’

‘‘हां नमिता, निरर्थक लगने लगता है यह सब तामझम… अकेले कितना आनंद लो इस सब का. कभी अपने लगने वाले दूसरे सब अपनी अलग दुनिया बसाने के बाद उस में मस्त हो

जाते हैं. उन्हें आने की फुरसत ही नहीं रहती. यदाकदा आप का स्वागत जरूरत है उन की दुनिया में जिस की रौनक अब आप को अधिक रास नहीं आती,’’ रेणु ने उमांस ले कर कहा, ‘‘जीवन में कुछ भी करने की एक समय सीमा होती है. अगर आप ने उसे नकार दिया तो बस जीवनभर ‘एकला चलो रे’ ही अलापना पड़ता है जो आसान नहीं है. अगर आप में योग्यता और क्षमता है तो जब भी मौका लगेगा आप को आप का लक्ष्य तो मिल ही जाएगा, लेकिन किसी का सान्निध्य जब चाहो तब मिल जाएगा, ऐसा सोचना महज एक खुशफहमी है.’’

रेणु दीदी ने बगैर उस से उस की भविष्य की योजना पूछे या प्रवचन दिए बहुत कुछ समझ दिया था जिसे नकारना मुश्किल था. उस ने सोचा कि अब जब कभी मां इस विषय में बात करेंगी तो वह हमेशा की तरह मना नहीं करेगी. अमेरिका से लौटने के कुछ रोज बाद ही पापा के दोस्त खुशालचंद अपने किसी रिश्तेदार का रिश्ता ले कर आ गए उस के लिए.

‘‘कुलदीप की अपनी ग्लास फैक्टरी है, बहुत अच्छी चल रही है. वह शादी करना चाह रहा है, लेकिन उसे लड़की बढि़या नौकरी

वाली चाहिए…’’

‘‘वह क्यों चाचाजी?’’ नमिता के छोटे भाई निखिल ने बात काटी.

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‘‘दूरदर्शिता,’’ खुशालचंद बोले, ‘‘कुलदीप का कहना है कि बिजनैस कभी भी डुबकी मार सकता है सो सिर को पानी से ऊपर रखने के लिए सैकंड लाइन औफ डिफैंस यानी स्थाई कमाई का जरीया होना जरूरी है और प्रोफैशनली क्वालीफाइड लड़की से शादी इस समस्या का स्थाई हल है. मुझे लगा कि यह कुलदीप की

ही नहीं तुम लोगों की समस्या का भी स्थाई हल हो सकता है क्योंकि नमिता भी तो इसीलिए

शादी नहीं कर रही कि वह अपनी नौकरी नहीं छोड़ना चाहती और कुलदीप छुड़वाएगा नहीं.

मेरे खयाल में जगदीश, तुम लोग एक बार इस लड़के से मिल तो लो. आप क्या कहती हैं अमिता भाभी?’’

‘‘मैं ने क्या कहना है भाईर् साहब, होगा तो वही जो नमिता कहेगीं,’’ अमिता बोली.

‘‘नमिता यहीं बैठी सब सुन रही है. बता बेटी क्या करें?’’ जगदीश ने पूछा.

‘‘जैसा आप ठीक समझें,’’ नमिता ने सिर झका कर कहा.

‘‘मैं उन लोगों से मिलने का समय तय

कर के तुम्हें बताऊंगा,’’ कह कर खुशालचंद

चले गए.

‘‘आप ने ऐसे कैसे हां कर दी, दीदी?’’ निखिल ने मौका लगते ही पूछा, ‘‘साफ जाहिर है कि या तो लड़के में आत्मविश्वास की कमी है या फिर वह बीवी की कमाई खाने वाला है. आप ऐसे आदमी से मिल कर क्यों अपना समय व्यर्थ कर रही हैं?’’

‘‘खुशालचंदजी के सामने जब यह सब कहने की तेरी ही हिम्मत नहीं हुई तो मेरी कैसे होती?’’ नमिता ने टालने के स्वर में कहा.

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कब रुकेगा यह सिलसिला

‘‘हद हो चुकी है इंसानियत की. ऐसा लगता है जैसे हम आदिम युग में जी रहे हैं. महिलाओं को अपने तरीके से जीने का अधिकार ही नहीं है. बेचारियों को सांस लेने के लिए भी अपने घर के मर्दों की इजाजत लेनी पड़ती होगी,’’ विनय रिमोट के बटन दबाते हुए बारबार न्यूज चैनल बदल रहा थे और साथ ही साथ अपना गुस्सा जाहिर करते हुए बड़बड़ा भी रहे थे. उन्हें भी टीवी पर दिखाए जाने वाले समाचार विचलित किए हुए हैं. वे अफगानी महिलाओं की जगह अपने घर की बहूबेटी की कल्पनामात्र से ही सिहर उठे.

‘‘अफगानी महिलाओं को इस का विरोध करना चाहिए. अपने हक में आवाज उठानी चाहिए,’’ पत्नी रीमा ने उन्हें चाय का कप थमाते हुए अपना मत रखा. उन्हें भी उन अपरिचित औरतों के लिए बहुत बुरा लग रहा था.

‘‘अरे, वैश्विक समाज भी तो मुंह में दही जमाए बैठा है. मानवाधिकार आयोग कहां गया? क्यों सब के मुंह सिल गए?’’ विनय थोड़ा और जोश में आए.

तभी उन की बहू शैफाली औफिस से घर लौटी. कार की चाबी डाइनिंगटेबल पर रखती हुई वह अपने कमरे की तरफ चल दी.

विनय और रीमा का ध्यान उधर ही चला गया. लंबी कुरती के साथ खुलीखुली पैंट और गले में झलता स्कार्फ… विनय को बहू का यह अंदाज जरा भी नहीं सुहाता.

‘‘कम से कम ससुर के सामने सिर पर पल्ला ही डाल ले, इतना लिहाज तो घर की बहू को करना ही चाहिए,’’ विनय ने रीमा की तरफ देखते हुए नाखुशी जाहिर की.

रीमा मौन रही. उस की चुप्पी विनय

की नाराजगी पर अपनी सहमति की मुहर लगा रही थी.

‘‘अब क्या कहें? आजकल की लड़कियां हैं. अपनी मरजी जीती हैं,’’ कहते हुए रीमा ने मुंह सिकोड़ा.

सवालिया निशान

शैफाली के कानों में शायद उन की बातचीत पड़ गई थी. वह अपने सासससुर के सामने सवालिया मुद्रा में जा खड़ी हुई. बोली, ‘‘आप को क्या लगता है तालिबानी सिर्फ किसी मजहब या कौम का नाम है?’’ कहते हुए शैफाली ने अपना प्रश्न अधूरा छोड़ दिया.

बहू का इशारा समझ कर विनय गुस्से में तमतमाता हुए घर से बाहर निकल गए. रीमा भी बहू के सवालों से बचने का प्रयास करती हुई रसोई में घुस गईं.

यह कोई कपोलकल्पित घटना नहीं है बल्कि हकीकत है. यदि गौर से देखें तो हम पाएंगे कि हमारे आसपास भी अनेक छद्म तालिबानी मौजूद हैं. चेहरे और लिबास बेशक बदल गए हों, लेकिन सोच अभी भी वही है.

इन दिनों हर तरफ एक ही मुद्दा छाया हुआ है और वह है अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा. चाहे किसी समाचारपत्र का मुखपृष्ठ हो या किसी न्यूज चैनल पर बहस हर समाचार, हर दृश्य सिर्फ एक ही तसवीर दिखासुना रहा है और वह है अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद महिलाओं की दुर्दशा.

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बुद्धिजीवी और विचारक केवल एक ही बात पर मंथन कर रहे हैं कि वहां महिलाओं पर हो रही अमानवीयता को कैसे रोका जाए? सोशल मीडिया पर तालिबानियों को खूब कोसा जा रहा है. महिलाओं को उन के ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरोध में आवाज बुलंद करने के लिए जगाया जा रहा है. सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि आम घरों के लिविंगरूम में भी यही खबरें माहौल को गरम किए हुए हैं.

कहां है बराबरी

कहने को भले ही हमारे संविधान ने महिलाओं को प्रत्येक स्तर पर बराबरी का दर्जा दिया हो, लेकिन समाज आज भी उसे स्वीकार नहीं कर पाया है. महिलाओं और लड़कियों को स्वतंत्रता देना अभी भी उसे रास नहीं आता.  किसी और का उदाहरण क्या दें, खुद कानून बनाने वाले और संविधान के तथाकथित रखवाले भी महिलाओं को ले कर कितने ओछे विचार रखते हैं इस की बानगी देखिए:

‘‘महिलाएं ऐसे तैयार होती हैं कि उस से लोग उत्तेजित हो जाते हैं,’’ भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय.

‘‘लड़के लड़के होते हैं, उन से गलतियां हो जाती हैं. लड़कियां ही लड़कों से दोस्ती करती हैं, फिर लड़ाई होने पर रेप हो जाता है,’’ सपा नेता मुलायम सिंह यादव.

‘‘अगर 2 मर्द एक औरत का रेप करें तो इसे गैंगरेप नहीं कह सकते,’’ जेके जौर्ज.

‘‘शादी के कुछ समय बाद औरतें अपना चार्म खो देती हैं. नईनई जीत और नई शादी का अपना महत्त्व होता है. वक्त के साथ जीत की याद पुरानी हो जाती है. जैसेजैसे वक्त बीतता है, बीवी पुरानी होती जाती है और वह मजा नहीं रहता,’’ कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश जायसवाल.

अभद्र बयान

सिर्फ बड़े नेता ही नहीं बल्कि स्वयं देश के प्रधानमंत्री पर भी महिलाओं को ले कर दिए गए अभद्र बयान के छींटे हैं. 2012 में उन्होंने एक चुनाव सभा में शशि थरूर की पत्नी सुनंदा थरूर को ‘50 लाख की गर्लफ्रैंड’ कह कर विवाद को जन्म दिया था.

इस के अतिरिक्त महिलाओं को ‘टचमाल’ कह कर दिग्विजय सिंह, ‘परकटी’ कह कर शरद यादव, और ‘टनाटन’ कह कर बंशीलाल महतो भी विवादों में घिर चुके हैं.

आज भी केवल भाई, पति, पिता और बेटा ही नहीं बल्कि हर पुरुष रिश्तेदार के लिए स्त्री की आजादी एक चुनौती बनी हुई है.

‘‘फलां की लड़की बहुत तेज है. फलां ने अपनी बहू को सिर पर चढ़ा रखा है. सिर पर नाचने न लगे तो कहना,’’ जैसे जुमले किसी भी आधुनिक पोशाक पहनी, कार चलाती या फिर बढि़या नौकरी करती अपने मन से जीने की कोशिश करती महिला के लिए सुने जा सकते हैं.

धर्म या समुदाय चाहे कोई भी क्यों न हो, महिलाओं को सदा निचली सीढ़ी ही मिलती है. एक उम्र के बाद खुद महिलाएं भी इसे स्वीकार कर लेती हैं और फिर वे भी महिलाओं के प्रतिद्वंद्वी पाले में जा बैठती हैं. यह स्थिति संघर्षरत महिला बिरादरी के लिए बेहद निराशाजनक होती है.

जानवर जिंदा है

हर व्यक्ति मूल रूप से एक जानवर ही होता है जिसे समाज में रहने के लिए विशेष प्रकार से प्रशिक्षित किया जाता है. अवसर मिलते ही व्यक्ति के भीतर का जानवर खूंख्वार हो उठता है जिस की परिणति बलात्कार, हत्या, लूट जैसी घटनाओं होती है. यही पाशविक प्रवृत्ति उसे महिलाओं के प्रति कोमल नहीं होने देती.

धर्म और संस्कृति के नाम पर सदियों से महिलाओं के साथ कायरता व्यवहार किया जाता रहा है. विभिन्न धर्मों में इसे भिन्नभिन्न नाम से परिभाषित किया जाता है, किंतु मूल में सिर्फ एक ही तथ्य है और वह यह कि महिलाओं की उत्पत्ति पुरुषों को खुश रखने और उन की सेवा करने के लिए ही हुई है. महिलाओं की यौनेच्छा को भी बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता है. यहां तक कि विभिन्न प्रयासों से इस नैर्सिगक चाह को दबाने पर भी बल दिया जाता है.

गलत प्रथा

मुसलिम समुदाय की खतना प्रथा यानी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन को इन प्रयासों में शामिल किया जा सकता है. 2020 में यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में करीब 20 करोड़ बच्चियों और महिलाओं के जननांगों को नुकसान पहुंचाया गया है. हाल ही में ‘इक्विटी नाऊ’ द्वारा जारी नई रिपोर्ट के अनुसार खतना प्रथा विश्व के 92 से अधिक देशों में जारी है. इस प्रथा के पीछे धारणा यह रहती है कि ऐसा करने से स्त्री की यौनेच्छा खत्म हो जाती है.

महिलाओं को अपनी संपत्ति सम?ो जाने के प्रकरण आदिकाल से सामने आते रहे हैं. बहुपत्नी प्रथा इसी का एक उदाहरण है. मुसलिम पर्सनल ला के अनुसार मुसलमानों को 4 शादियां करने की छूट है. हिंदू और ईसाइयों में हालांकि बहुपत्नी प्रथा को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया है, लेकिन यदाकदा इस की सूचनाएं आती रहती हैं.

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गुजरात प्रांत में ‘करार’ नामक प्रथा प्रचलित थी जो कहींकहीं लुकेछिपे आज भी जारी है. इस में स्त्रीपुरुष बाकायदा करार कर के साथ रहना स्वीकार करते थे. यह करार ‘लिव इन रिलेशनलशिप’ जैसा ही होता है. फर्क सिर्फ इतना है कि इस में लिखित में करार होने के कारण शायद महिलाएं मानसिक दबाव में रहती हैं और पुरुष के खिलाफ किसी तरह की कोई शिकायत कहीं दर्ज नहीं कराती होंगी. मैत्री प्रथा में पुरुष हमेशा शादीशुदा होता है. हालांकि गुजरात के उच्च न्यायालय ने मीनाक्षी जावेरभाई जेठवा मामले में इसे शून्य आदित घोषित कर दिया था.

स्त्रीपुरुष संबंधी मूल क्रिश्चियन मान्यता के अनुसार गौड ने मैन को अपनी इमेज से बनाया और वूमन को उस की पसली से. पुरुष को यह चाहिए कि वह महिला को दबा कर रखे और उस से खूब आनंद प्राप्त करे.

दोषी कौन

ताजा हालात के अनुसार अफगानिस्तान की महिलाएं पूरे विश्व के लिए सहानुभूति और दया की पात्र बनी हुई हैं क्योंकि तालिबानियों द्वारा लगातार उन की स्वतंत्रता को कैद करने वाले फरमान जारी किए जा रहे हैं. उन पर विभिन्न तरह की पाबंदियां लगाईं जा रही हैं.

तालिबान शासन में लड़कियों को पढ़ने की इजाजत तो दी गई है, लेकिन इस पाबंदी के साथ कि वे लड़कों से अलग पढ़ेंगी और उन से किसी तरह का कोई संपर्क नहीं रखेंगी.

यों देखा जाए तो इस तरह की व्यवस्था भारत सहित अन्य कई देशों में भी है, लेकिन यहां इसे महिलाओं के लिए की गई विशेष व्यवस्था के नाम पर देखा और इसे महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के रूप में प्रचारित किया जाता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार तालिबान में 90% महिलाएं हिंसा का शिकार हैं और 17% ने यौन हिंसा ?ोली है. मगर मात्र अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि विश्व के प्रत्येक कोने से लड़कियों और युवा महिलाओं के लिए इस तरह की आचार संहिता या फतवे जारी होने की खबरें अकसर पढ़नेसुनने में आती रहती हैं.

वैश्विक समुदाय के परिपेक्ष में देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं के खिलाफ हर घंटे लगभग 39 अपराध होते हैं, जिन में 11% हिस्सेदारी बलात्कार की है.

यौन हिंसा की शिकार

यूरोप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर हुए ताजा सर्वे बताते हैं कि लगभग एकतिहाई यूरोपीय महिलाएं शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार हुई हैं.

पैरिस स्थित एक थिंक टैंक फाउंडेशन ‘जीन सौरेस’ के मुताबिक देश की करीब 40 लाख महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा. यह कुल महिला आबादी का 12% है यानी देश की हर 8वीं महिला अपनी जिंदगी में रेप का शिकार हुई है.

जनवरी, 2014 में व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि दुनिया के सब से विकसित कहे जाने वाले देश में भी महिलाओं की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है. यहां भी हर 5वीं महिला कभी न कभी रेप की शिकार हुई है. चौंकाने वाली बात यह है कि इन में से आधी से अधिक महिलाएं 18 वर्ष से कम उम्र में रेप का शिकार हुई हैं.

न्याय विभाग द्वारा 2000 के अध्ययन में पाया गया कि जापान में केवल 11% यौन अपराधों की सूचना ही दी जाती है और बलात्कार संकट केंद्र का मानना है कि 10-20 गुना अधिक मामलों की रिपोर्ट के साथ स्थिति बहुत खराब होने की संभावना है.

कहीं खतना, कहीं खाप तो कहीं ओनर किलिंग हर तरफ से मरना तो केवल स्त्री को ही है. यह भी गौरतलब है कि इस तरह के फरमान अधिकतर युवा महिलाओं के लिए ही जारी किए जाते हैं और इन का विरोध भी इसी पीढ़ी द्वारा ही किया जाता है. तो क्या उम्रदराज महिलाएं इन फरमानों या शोषण किए जाने वाले रीतिरिवाजों से सहमत होती हैं? क्या उन्हें अपनी आजादी पर पहरा स्वीकार होता है या फिर 40-50 तक आतेआते उन की संघर्ष करने की शक्ति समाप्त हो चुकी होती है?

उम्रदराज महिला नेत्रियों के उदाहरण देखें तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बलात्कार के मामलों में लड़कों पर अधिक दोषारोपण नहीं करतीं. वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत शीला दीक्षित भी लड़कियों को ही नसीहत देती नजर आई थीं कि उन्हें ऐडवैंचर से दूर रहना चाहिए.

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उत्तर कोई नहीं

अमूमन घर की बड़ीबूढि़यां समाज के ठेकेदारों द्वारा निर्धारित इन नियमों को लागू करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. एक प्रकार से वे अपनेअपने घर में इन फैसलों का पालन करवाने के लिए अघोषित जिम्मेदारी भी लेती हैं. कहीं यह युवा पीढ़ी के प्रति उन की ईर्ष्या  तो नहीं? कहीं यह विचार तो उन से यह सब नहीं करवाता कि जो सुविधाएं या आजादी भोगने में वे नाकामयाब रहीं वह स्वतंत्रता आने वाली पीढ़ी को क्यों मिले? ठीक वैसे ही जैसे आम घरों में सासबहू के बीच तनातनी देखी जाती है.

सास ने अपने समय में अपनी सास की हुकूमत मन मार कर ?ोली थी, वह यों ही बिना किसी एहसान के अपनी बहू को सत्ता कैसे सौंप दे या फिर उम्रदराज महिलाओं के इस आचरण के पीछे भी कोई गहरा राज तो नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि पुरुषप्रधान समाज का कोई डर उन के अवचेतन मन में जड़ें जमाए बैठा है और वही डर महिलाओं से अपनी ही प्रजाति के खिलाफ खड़ा कर रहा हो?

प्रश्न बहुत से हैं और उत्तर कोई नहीं. जितना अधिक गहराई में जाते हैं उतना ही अधिक कीचड़ है. चाहे किसी भी धर्म की तह खंगाल लो, स्त्री को सदा ‘नर्क का द्वार’ या फिर ‘शैतान की बेटी’ ही समझ जाता रहा है और उस के सहवास को महापाप. सदियां गुजर चुकी हैं, लेकिन अभी भी कोई तय तिथि नहीं है जिस पर स्त्री की दशा पूरी तरह से सुधरने का दावा किया जा सके. हजारों सालों से जिस व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं आ सका उस की उम्मीद क्या आने वाले समय में की जा सकती है?

उम्मीद पर दुनिया कायम है या आशा ही जीवन है जैसे वाक्य मात्र छलावा ही दे सकते हैं कोई उम्मीद नहीं.

गुलाब जल के फायदे

गुलाब जल स्किन के लिए काफी फायदेमंद होता है. इस के एक नहीं बल्कि कई फायदे होते हैं, यह न सिर्फ स्किन को कूल करता है बल्कि -झुर्रियों को दूर रखने में भी मदद करता है. अगर आप इसका रोज इस्तेमाल करें तो फर्क खुद महसूस कर सकेंगे.

– गुलाब जल में रुई भिगाएं और फिर इसे फेस पर लगाएं. स्किन इसे सोख ले तो अपनी पसंद की क्रीम लगाएं.

– दही और नींबू के साथ गुलाब जल मिलाएं. इस मिक्स को चेहरे पर लगाएं. यह डार्क स्पॉट्स को हटाने में मदद करेगा.

– दही, बेसन और गुलाब जल को मिलाकर मिक्स तैयार करें. इसे फेस पर लगाएं और 10 मिनट बाद धो लें. इस से स्किन सॉफ्ट होगी और निखार आएगा.

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– गुलाब जल को आइस ट्रे में डालकर फ्रीजर में रख दें. जब यह क्यूब्स अच्छे से जम जाएं तो इनसे चेहरे को हल्के हाथ से रब करें. स्किन को ठंडक मिलने के साथ ही ब्लड सर्कुलेशन भी बेहतर होगा.

दही के साथ गुलाब जल मिलाकर लगाएं इससे स्किन व्हाइटनिंग में मदद मिलेगी.

– गुलाब जल का अगर रोज इस्तेमाल किया जाए तो इससे फेस पर आइल के कारण होने वाले पिंपल्स की समस्या दूर हो जाती है.

– धूप से स्किन जल सी जाती है. गुलाब जल इसमें राहत देता है.

– चेहरे पर जलन की समस्या हो तो गुलाब जल लगाएं. तुरंत राहत मिलेगी.

– इस से स्किन को हाइड्रेट रखने में भी मदद मिलती है.

– जलने और कटने के निशानों को हटाने में भी इससे मदद मिलती है. गुलाब जल पुराने समय से ही बहुत चर्चा में रहा है, क्यूंकि इसके नतीजे बहुत ही जल्दी देखे गए है. अयूर हर्बल्स रोज वाटर अभी तक का बेस्ट माना गया है, इस के एक इस्तेमाल से आपकी त्वचा पर निखार दिखाई देगा.

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क्यों सहें दर्द चुपचाप

हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों का हमकदम बनाने के लिए महिला आयोग बनाया गया है. हर राज्य में आयोग की एक फौज है, जहां महिलाओं की परेशानियां सुनी और सुलझई जाती हैं. लेकिन बीते कुछ समय से महिला आयोग संस्था की चाबियों का गुच्छा कुछ ज्यादा ही भारी हो गया है, इसलिए वह संभाले नहीं संभल रहा है और जमीन पर गिरने लगा है. केरल महिला आयोग में भी ऐसा ही कुछ हुआ.

आयोग की अध्यक्ष एम सी जोसेफिन ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला को रूखा सा जवाब देते हुए टरका दिया. दरअसल, आयोग अध्यक्षा टीवी पर लाइव महिलाओं की परेशानी सुन रही थीं. इसी बीच घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला आयोग की अध्यक्षा को फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहने लगी कि उस के पति और ससुराल वाले उसे काफी परेशान करते हैं.

अध्यक्षा को जब पता चला कि लगातार हिंसा सहने के बाद भी महिला ने कभी उस की शिकायत पुलिस में नहीं की, तो वे भड़क गईं और रूखे अंदाज में कहा कि अगर हिंसा सहने के बाद भी पुलिस में शिकायत नहीं करोगी तो भुगतो. उन का पीडि़ता पर झल्लाने का वीडियो वायरल हुआ तो उन्होंने अपने पद का ही त्याग कर दिया.

मगर जातेजाते वे यह कहना नहीं भूलीं कि औरतें फोन कर के शिकायत तो करती हैं, लेकिन जैसे ही पुलिसिया काररवाई की बात आती है, पीछे हट जाती हैं. इस के बाद से आयोग अध्यक्षा घेरे में आ गईं कि कैसे इतने ऊंचे पद पर बैठी महिला, तकलीफ में जीती किसी औरत से इस तरह रुखाई से बात कर सकती है. बात भले ही आ कर अध्यक्षा की रुखाई पर सिमट गई, लेकिन गौर करें तो मामला कुछ और ही है.

दरअसल, मारपीट की शिकायत ले कर आई महिला चाहती थी कि आयोग की दबंग दिखने वाली महिला उस के पति को बुला कर समझए या सास पर रोब जमा कर उसे डरा दे कि बहू को तंग किया तो तुम्हारी खैर नहीं वरना क्या वजह है कि औरतें शिकायत ले कर आती तो हैं, लेकिन पुलिस के दखल की बात सुनते ही लौट जाती हैं.

जुल्म सहने को मजबूर

ममता बदला हुआ नाम के पति और सास उस पर जुल्म करते हैं. रोतीकलपती वह अपने मायके पहुंच जाती है. पर उस में इतनी हिम्मत नहीं है कि उन की शिकायत ले कर पुलिस में जाए. कारण, एक डर कि अगर पति को पुलिस पकड़ कर ले गई और बाद में जब वह छूट कर घर आएंगे, तो उस पर और जुल्म होगा. दूसरी बात यह भी कि पति के घर के सिवा दूसरा आसरा नहीं है, तो वह कहां जाएगी? ममता 2 बच्चों की मां है और उस का मायका उतना मजबूत नहीं है, इसलिए वह पति और सास का जुल्म सहने को मजबूर है.

अकसर पति, ससुराल के हाथों हिंसा की शिकार महिला पुलिस के पास शिकायत ले कर नहीं जाती है यह सोच कर कि घर की बात घर में ही रहनी चाहिए और फिर अगर पति का घर छूट गया तो वह कहां जाएगी? लेकिन आसरा छूट जाने का और घर की बात घर में ही रहने वाली जनाना सोच औरतों पर काफी भारी पड़ रही है.

वूमन का डेटा बताता है कि हर 3 में से 1 औरत अपने पति या प्रेमी के हाथों हिंसा की शिकार होती है. इस में रेप छोड़ कर बाकी सारी बातें शामिल हैं. जैसे पत्नी को मूर्ख समझना, बातबात पर उसे नीचा दिखाना, उसे घर बैठने को कहना, बच्चे की कोई जिम्मेदारी न लेना या फिर मारपीट भी.

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यौन हिंसा

भारत में महिलाओं पर सब से ज्यादा यौन हिंसा होती है, वह भी पति या प्रेमी के हाथों. नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे ने 2016 में लगभग 7 लाख महिलाओं पर एक सर्वे किया था. इस दौरान लंबे सवालजवाब हुए थे, जिन से पता चला कि शादीशुदा भारतीय महिलाओं के यौन हिंसा ?ोलने का खतरा दूसरे किस्म की हिंसाओं से लगभग 17 गुना ज्यादा होता है, लेकिन ये मामले कभी रिपोर्ट नहीं होते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश और झरखंड जैसे कम साक्षरता दर वाले राज्यों के अलावा पढ़ाईलिखाई के मामले में अव्वल राज्य जैसे केरल और कर्नाटक की औरतें भी पति या प्रेमी की शिकायत पुलिस में करते ?िझकती है.

देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि देश में लगभग 5 करोड़ महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती है लेकिन इन में से केवल 0.1% महिलाओं ने ही इस के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है.

हिंसा का यह डेटा तो सिर्फ एक बानगी है. असल कहानी तो काफी लंबी और खौफनाक है. लेकिन बात फिर आ कर वहीं अटक जाती है कि जुल्म सहने के बाद भी महिलाएं चुप क्यों हैं?

घरेलू हिंसा का मुख्य कारण क्या है

हमारे समाज में बचपन से ही लड़कियों को दबाया जाना, उन्हें बोलने न देना, लड़कियों के मन में लचारगी और बेचारगी का एहसास ऐसे भरा जाना घरेलू हिंसा का मुख्य कारण है. अकसर मांबाप और रिश्तेदार यह कह कर लड़की का मनोबल तोड़ देते हैं कि बाहर अकेली जाओगी? जमाना देख रही हो? ज्यादा मत पढ़ो. शादी के बाद वैसे ही तुम्हें चूल्हा ही फूंकना है.

ज्यादा पढ़लिख गई तो फिर लड़का ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा. वगैरहवगैरह. फिर होता यही है कि चाहे लड़की कितनी भी पढ़ीलिखी, ऊंचे ओहदे पर चली जाए, रिश्ता निभाना ही है, यह बात उस के जेहन में बैठ जाती है और सहना भी आ जाता है. बचपन में पोलियो की घुट्टी से ज्यादा जनानेपन की घुट्टी पिलाने के बाद भी अगर लड़की न सम?ो, तो दूसरे रास्ते भी होते हैं.

लड़की अपना दुखतकलीफ अगर मां से कहे तो नसीहतें मिलती है कि जहां 4 बरतन होते हैं खटकते ही हैं. यहां तक कि गलत होने पर भी दामाद को नहीं, बल्कि बेटी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है ताकि रिश्ता न टूटे और बेटी अपनी ससुराल में टिकी रहे. लड़की को समझ में आ जाता है कि मायका उस के लिए सच में पराया बन गया और जब अपने ही उस की बात नहीं सुन रहे हैं, फिर पुलिस में शिकायत कर के क्या हो जाएगा? और रिश्ता ही बिगड़ेगा, यह सोच कर लड़की चुप रहती है.

आर्थिक निर्भरता नहीं

घरेलू हिंसा सहना और चुप्पी की एक वजह आर्थिक निर्भरता भी है. आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि अगर पति का आसरा छूट गया तो वे कहां जाएंगी? बच्चे कैसे पलेंगे? बच्चों व पति के बीच महिलाएं अपनी पढ़ाईलिखाई को भी भूल जाती हैं. उन के पास भी कोई डिगरी है, याद नहीं उन्हें. रोज खुद को मूर्ख सुनते हुए वे अपनी काबिलीयत को ही भूल चुकी होती हैं. वे मान चुकी होती हैं कि पति की शिकायत पुलिस में करने के बाद उम्मीद का आखिरी धागा भी टूट जाएगा और वे बेसहारा हो जाएंगी. मगर पुलिस में शिकायत के बाद भी क्या महिला को इंसाफ मिल पाता है?

कहने को तो लगभग हर साल औरतमर्द के बीच फासला जांचने के लिए कोई सर्वे होते हैं, रिसर्च होती हैं, कुछ कमेटियां बैठती हैं. लेकिन फर्क आसमान में ओजोन के सूराख से भी ज्यादा बड़ा हो चुका है.

पितृसत्तात्मक माने जाने वाले भारतीय समाज में जहां शादियों को पवित्र रिश्ते का नाम दिया गया है. वहां एक पति का अपनी पत्नी के साथ रेप करना अपराध नहीं माना जाता. मुंबई की एक महिला ने सैशन कोर्ट में जब कहा कि पति ने उस के साथ जबरदस्ती संबंध बनाए और जिस के चलते उसे कमर तक लकवा मार गया. इस के साथ ही उस महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस भी किया, तो कोर्ट ने कहा कि महिला के आरोप कानून के दायरे में नहीं आते हैं.

+???साथ ही कहा कि पत्नी के साथ सहवास करना अवैध नहीं कहा जा सकता है. पति ने कोई अनैतिक काम नहीं किया है. लेकिन साथ में कोर्ट ने महिला का लकवाग्रस्त होना कुदरती बताया और यह भी कहा कि इस के लिए पूरे परिवार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. 2017 में केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप का अपराधीकारण भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. वहीं 2019 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है.

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मैरिटल रेप क्या है

जब एक पुरुष अपनी पत्नी की सहमति के बिना उस के साथ सैक्सुअल इंटरकोर्स करता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है. मैरिटल रेप में पति किसी भी तरह के बल का प्रयोग करता है.

भारत में क्या है कानून

भारत के कानून के मुताबिक, रेप में अगर आरोपी महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता. आईपीसी की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है. यह कानून मैरिटल रेप को अपवाद मानता है. इस में कहा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक है तो पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सैक्सुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा. भले ही यह इंटरकोर्स पुरुष द्वारा जबरदस्ती या पत्नी की मरजी के खिलाफ किया गया हो.

2021 के अगस्त में भारत की अलगअलग अदालतों में 3 मैरिटल रेप के मामलों में फैसला सुनाया गया. केरल हाई कोर्ट ने 6 अगस्त को एक फैसले में कहा था कि मैरिटल रेप क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है. फिर 12 अगस्त को मुंबई सिटी एडिशनल सैशन कोर्ट ने कहा कि पत्नी की इच्छा के बिना यौन संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है और 26 अगस्त को छत्तीसगढ़ कोर्ट ने मैरिटल रेप के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि हमारे यहां मैरिटल रेप अपराध नहीं है. मैरिटल रेप के 4 केस कोर्ट तक पहुंचे, लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया. सोशल मीडिया पर इस फैसले को ले कर बहस छिड़ गई.

जैंडर मामलों की रिसर्चर कोटा नीलिमा ने ट्विटर पर लिखा कि अदालतें कब महिलाओं के पक्ष में विचार करेंगी? उन के ट्विटर के जवाब में कई लोगों ने कहा कि इस पुराने कानूनी प्रावधान को बदल दिया जाना चाहिए. लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं दिखें. एक ने तो आश्चर्य जताते हुए पूछा कि किस तरह की पत्नी मैरिटल रेप की शिकायत करेगी? तो दूसरे ने कहा उस के चरित्र में ही कुछ खराबी होगी.

ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का यह कानून भारत में 1860 से लागू है. इस के सैक्शन 375 में एक अपवाद का जिक्र है जिस के अनुसार अगर पति अपनी पत्नी के साथ सैक्स करे और पत्नी की उम्र 15 साल से कम की न हो तो इसे रेप नहीं माना जाता है. इस प्रावधान के पीछे मान्यता है कि शादी में सैक्स की सहमति छिपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है.

यह कैसा कानून

मगर दुनिया भर में इस विचार को चुनौती दी गई और दुनिया के 185 देशों में से 151 देशों में मैरिटल रेप अपराध माना गया. खुद ब्रिटेन ने भी 1991 में मैरिटल रेप को यह कहते हुए अपराध की श्रेणी में रख दिया कि छुपी हुई सहमति को अब गंभीरता से लिया जा सकता है. लेकिन मैरिटल रेप को अपराध करार देने के लिए लंबे समय से चली आ रही मांग के बावजूद भारत उन 36 देशों में शामिल है जहां मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है. भारत के कानून में आरोपी अगर महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता और इसी वजह से कई महिलाएं शादीशुदा जिंदगी में हिंसा का शिकार होने को मजबूर हैं.

फरवरी, 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक मैरिटल रेप का मामला पहुंचा. दिल्ली में काम करने वाली एक एमएनसी ऐग्जीक्यूटिव ने पति पर आरोप लगाया कि मैं हर रात उन के लिए सिर्फ एक खिलौने की तरह थी, जिसे वे अलगअलग तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे. जब भी हमारी लड़ाई होती थी तो वे सैक्स के दौरान मु?ो टौर्चर करते थे. तबीयत खराब होने पर अगर कभी मैं ने मना किया तो उन्हें यह बात बरदाश्त नहीं होती थी. 25 साल की इस लड़की के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दिया कि किसी एक महिला के लिए कानून नहीं बदला जा सकता है.

तो क्या भारत में महिला के पास पति के खिलाफ अत्याचार की शिकायत का अधिकार नहीं है?

सीनियर ऐडवोकेड आभा सिंह कहती हैं कि इस तरह की प्रताड़ना की शिकार हुई महिला पति के खिलाफ सैक्शन 498 के तहत सैक्सुअल असौल्ट का केस दर्ज करा सकती है. इस के साथ ही 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून में भी महिलाएं अपने पति के खिलाफ सैक्सुअल असौल्ट का केस कर सकती हैं.

इस के साथ ही अगर आप को चोट लगी है तो आप आईपीसी की धाराओं में भी केस कर सकती हैं. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मैरिटल रेप को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती  होगी. चारदीवारी के अंदर हुए गुनाह का सुबूत दिखाना मुश्किल होगा. वे कहती हैं कि जिन देशों में मैरिटल रेप का कानून हैं वहां यह कितना सफल रहा है, इस से कितना गुनाह रुका है यह कोई नहीं जानता.

चौकाने वाला सच

1980 में प्रोफैसर बख्शी उन जानेमाने वकीलों में शामिल थे जिन्होंने सांसदों की समिति को भारत में बलात्कार से जुड़े कानूनों में संशोधन को ले कर कई सुझव भेजे थे. उन का कहना था कि समिति ने उन के सभी सुझव स्वीकार कर लिए थे सिवा मैरिटल रेप को अपराध घोषित कराने के सुझव के. उन का मानना है कि शादी में बराबरी होनी चाहिए और एक पक्ष को दूसरे पर हावी होने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. आप अपने पार्टनर से ‘सैक्सुअल सर्विस’ की डिमांड नहीं कर सकते.

मगर सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक कानून का आपराधिकरण विवाह की संस्था को ‘अस्थिर’ कर सकता है और महिलाएं इस का इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं. लेकिन हाल के वर्षों में कई दुखी पत्नियां और वकीलों ने अदालतों में याचिका दायर कर इस अपमानजनक कानून को खत्म करने की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वाच और एमनेस्टी इंटरनैशनल ने भी भारत के इस रवैए पर चिंता जताई है.

कई जजों ने भी स्वीकार किया है कि एक पुराने कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है. उन का यह भी कहना है कि संसद को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर देना चाहिए.

नीलिमा कहती हैं कि यह कानून महिलाओं के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और इस में पुरुषों को मिलने वाली इम्यूनिटी अस्वभाविक है. इसी वजह से इस से संबंधित अदालती मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. भारत में आधुनिकता एक मुखौटा है. अगर आप सतह को खरोचें तो असली चेहरा दिखता. महिला अपने पति की संपत्ति बनी रहती है. 1947 में भारत का आधा हिस्सा आजाद हुआ था. बाकी आधा अभी भी गुलाम है.

वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के लिए एक अपमान की तरह है क्योंकि यहां दूसरे पुरुषों की तरह ही अपने पति द्वारा यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ और जबरन नग्न करने जैसे कृत्य पत्नियों के लिए किसी अपमान से कम नहीं हैं. पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न कर सकता है.

वैवाहिक बलात्कार और हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित कर सकता है. पारिवारिक हिंसक माहौल उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकता है. स्वयं और बच्चों की देखरेख में महिलाओं की क्षमता कमजोर पड़ सकती है. बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में रखना महिलाओं की गरिमा, समानता और स्वायत्तता के विरुद्ध है.

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एकतिहाई पुरुष मानते हैं कि वे जबरन संबंध बनाते हैं:

द्य इंटरनैशनल सैंटर फार वूमेन और यूनाइटेड नेशंस पौपूलेशन फंड की ओर से 2014 में कराए गए एक सर्वे के अनुसार एकतिहाई पुरुषों ने खुद यह माना कि वे अपनी पत्नी के साथ जबरन सैक्स करते हैं.

द्य नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे: 3 के मुताबिक, भारत के 28 राज्यों में 10% महिलाओं का कहना है कि उन के पति जबरन उन के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं जबकि ऐसा करना दुनिया के 151 देशों में अपराध है.

द्य एक सरकारी सर्वे के मुताबिक 31 फीसदी विवाहित महिलाओं पर उन के पति शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं. यूनिवर्सिटी औफ वारविक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफैसर रहे उपेंद्र बख्शी का कहना है कि मेरे विचार से इस कानून को खत्म कर दिया जाना चाहिए. वे कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े कानूनों में कुछ प्रगति जरूर हुई है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है.

मेरी माहवारी बंद होने वाली है, इसके कारण किन दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा?

सवाल-

मुझे लगता है मेरी माहवारी बंद होने वाली है. इस में मुझे किस प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा?

जवाब- 

माहवारी बंद होना यानी मेनोपौज के बाद आप को हौट फ्लैशेज और वैजाइनल ड्राईनैस जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. हौट प्लैशेज के कारण रात को अत्यधिक पसीना आने से आप की नींद खराब हो सकती है. वैजाइनल ड्राईनैस से बचने के लिए आप वाटर बेस्ड ल्यूब्रिकैंट या वैजाइनल ऐस्ट्रोजन क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं. कुछ महिलाओं में मूड स्विंग और वजन बढ़ने जैसी समस्याएं भी देखी जाती हैं. इन से बचने के लिए संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें, शारीरिक रूप से सक्रिय रहें और अनुशासित दिनचर्या का पालन करें.

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मासिकधर्म लड़कियों व महिलाओं में होने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है. इस दौरान शरीर में अनेक हारमोनल बदलाव होते हैं, जो शारीरिक और भावनात्मक रूप से प्रभाव डालने के कारण तनाव का कारण बन सकते हैं. कई कारण इस के जिम्मेदार हो सकते हैं.

कई महिलाएं मासिकधर्म शुरू होने से पहले या इस दौरान तनाव की ऐसी स्थिति से गुजरती हैं, जिस में उन्हें चिकित्सकीय इलाज की भी जरूरत होती है. यह सामान्य बात है कि तनाव, चिंता और चिड़चिड़ापन जिंदगी और रिश्तों को प्रभावित कर सकता है.

पीरियड्स के दौरान अगर थोड़ाबहुत तनाव महसूस हो, तो यह एक सामान्य स्थिति मानी जाती है. प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम के लक्षणों का मुख्य कारण ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोंस के लैवल में बदलाव आना होता है.

सामान्य तौर पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं में तनाव से ग्रस्त होने की आशंका ज्यादा होती है, जो मासिकधर्म के दौरान और बढ़ सकती है, क्योंकि ये हारमोनल ‘रोलर कोस्टर’ आप के ब्रेन में न्यूरोट्रांसमीटर्स, जिन में सैरोटोनिन और डोपामाइन हैं, पर प्रभाव डाल सकते हैं, जो मूड को ठीक रखने का काम करते हैं. इस के अलावा जिन लड़कियों या महिलाओं को पहले पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक ऐंठन या ब्लीडिंग होती है, वे पीरियड्स शुरू होने से पहले दर्द व असुविधा को ले कर चिंतित हो सकती हैं, जो तनाव का कारण बनता है.

ये लक्षण आप के दैनिक जीवन को प्रभावित करने के लिए काफी गंभीर होते हैं, जिन में चिड़चिड़ापन या क्रोध की भावना, उदासी या निराशा, तनाव या चिंता की भावना,मूड स्विंग या बारबार रोने को मन करना, सोचने या ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत, थकान या कम ऊर्जा, फूड क्रेविंग या ज्यादा खाने की इच्छा, सोने में दिक्कत, भावनाओं को कंट्रोल करने में परेशानी और शारीरिक लक्षण, जिन में ऐंठन, पेट फूलना, स्तनों का मुलायम पड़ना, सिरदर्द और जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द शामिल है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- पीरियड्स में तनाव से निबटें ऐसे

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विंटर बेबी केयर टिप्स

न्यू मौम को लोग उस के बच्चे को ले कर तरहतरह की सलाह देते हैं जैसे तुम बच्चे को पहली सर्दी में ऐसे कपड़े पहनाओ, यह औयल लगाओ, इस औयल से मसाज करो, यह प्रोडक्ट इस्तेमाल करो, उसे ऐसे पकड़ो बगैराबगैरा. उसे समझ नहीं होती है, लेकिन बच्चे की बैस्ट केयर के चक्कर में वह हर नुसखा, हर सलाह हर किसी की मान लेती है, जिस की वजह से कई बार दिक्कतें भी खड़ी हो जाती हैं. लेकिन यह बात आप जान लें कि आप से बेहतर उसे कोई नहीं जान सकता क्योंकि आप उस की मौम जो हैं.

ऐसे में हम आप को गाइड करते हैं कि कैसे आप विंटर्स में अपने नन्हेमुन्ने की केयर कर के उस का खास तरह से खयाल रख सकती हैं. तो आइए जानते हैं:

कंफर्ट दें लाइट ब्लैंकेट से

सर्दियों का मौसम है और वह भी आप के बच्चे की पहली सर्दी, तो सावधानी बरत कर तो चलना ही पड़ेगा. लेकिन हर पेरैंट्स यही सोचते हैं कि बस हमारा बच्चा ठंड से बचा रहे और लंबी नींद सोए, इस के लिए वे बच्चे को पहली ठंड से उसे हैवी ब्लैंकेट से ढक कर सुलाने की कोशिश करते हैं.

लेकिन वे केयर के चक्कर में यह भूल जाते हैं कि वह बच्चा है और जिस पर अगर बच्चे से ज्यादा ब्लैंकेट का भार डाल दिया जाए तो न तो वह सोने में आप के बच्चे को कंफर्ट देगा और सेफ्टी के लिहाज से भी ठीक नहीं है क्योंकि छोटा बच्चा ज्यादा हाथपैर नहीं चला पाता, ऐसे में अगर गलती से ब्लैंकेट से उस का मुंह कवर हो गया, फिर तो बड़ी दिक्कत हो सकती है.

इसलिए आप बच्चे को हैवी ब्लैंकेट की जगह लाइट लेकिन वार्म ब्लैंकेट से कवर करें जो आप के बच्चे को वार्म रखने के साथसाथ साउंड स्लीप देने का काम भी करेगा. ध्यान रखें कि ब्लैंकेट का आदर्श भार आप के बच्चे के वजन का 10% के करीब ही होना चाहिए.

कपड़े हों आरामदायक

जब घर में नन्हे के कदम पड़ते हैं, तो घर में हर किसी के चेहरे पर खुशी नजर आती है और वे अपनी इस नन्ही जान के लिए जो बन पड़ता है वह करते हैं. वे अपने बच्चे को अच्छा दिखाने व सर्दी से बचाने के लिए हर ऐसा कपड़ा खरीद लाते हैं, जो उसे सर्दी से बचा कर रखे. लेकिन आप शायद बच्चे के कपड़े की शौपिंग में यह भूल जाते हैं कि उसे वार्म रखने के साथसाथ उस के कंफर्ट का भी ध्यान रखना है, वरना कपड़ों के कारण डिसकंफर्ट होने पर बच्चा न तो चैन की नींद सोएगा और हर समय चेहरे से वह परेशान ही नजर आएगा.

इसलिए जब भी नन्हे के लिए विंटर के कपड़े खरीदें तो मोटे वूलन कपड़े न खरीदें, बल्कि सौफ्ट फैब्रिक से बने कपड़़े ही खरीदें. हाथपैरों को मोटे ग्लव्स व सौक्स से कवर करने से बचें. इन की जगह आप हलके व सौफ्ट फैब्रिक का चयन करें क्योंकि इस से बच्चे को डिस्कंफर्ट होने के साथसाथ उस की मूवमैंट में भी बाधा उत्पन्न होती है. नन्हे को घर में वेसीएस पहनाने से बचें क्योंकि यह बच्चे की मूवमैंट में पूरी तरह से व्यवधान पैदा करने का काम करता है.

आप इस तरह के कपड़ों को जब बच्चे को बाहर ले जाएं तब ही इस्तेमाल करें. इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे के कपड़े रूम टैंपरेचर के हिसाब से होने चाहिए.

डिस्कंफर्ट का कैसे पता लगाएं:

अगर आप के बच्चे का फेस पूरा लाल व शरीर जरूरत से ज्यादा गरम है और वह आप के स्पर्श मात्र से ही रोना शुरू कर दे तो समझ जाएं कि आप ने उसे जरूरत से ज्यादा कपड़ों से कवर किया हुआ है, जो उसे परेशान कर रहे हैं.

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मालिश जो बनाए स्ट्रौंग

नन्हे बहुत नाजुक होते हैं, इसलिए उन की खास केयर की जरूरत होती है और जब बात हो विंटर्स की तो उन्हें वार्म रखने के साथसाथ स्ट्रौंग बनाना भी बहुत जरूरी होता है, जिस में मसाज का अहम रोल होता है क्योंकि मसाज करने से बच्चे की हड्डियां मजबूत बनने के साथसाथ इस से शरीर की बनावट में भी सुधार होता है. यह ब्लड सर्कुलेशन को इंपू्रव कर के गैस व ऐसिडिटी के कारण होने वाले डिस्कंफर्ट को भी कम करने का काम करती है.

लेकिन मालिश के लिए जरूरी है सही तेल का चुनाव करना. वैसे तो सदियों से लोग सरसों के तेल से बच्चे की मसाज करते आए हैं और आज भी करते हैं, लेकिन आप इस की जगह कोकोनट औयल व औलिव औयल का भी चुनाव कर सकती हैं क्योंकि इस में हैं विटामिन ई की खूबियां, जो शरीर को मजबूती प्रदान करने के साथसाथ स्किन को भी हैल्दी रखने का काम करती हैं. इस की खास बात यह है डायपर के कारण स्किन पर होने वाले रैशेज व जलन को भी कम करने में मददगार है क्योंकि इस में है ऐंटीइनफ्लैमेटरी व ऐंटीमाइक्रोबियल प्रौपर्टीज जो होती हैं.

एशियन जर्नल रिसर्च की 2012 की रिपोर्ट के अनुसार, मसाज करने से बच्चे की पेरैंट्स के साथ सोशल बौंडिंग बनती है. वह उन के स्पर्श को जाननेपहचानने लगता है.

टिप: इस बात का ध्यान रखें कि जब भी आप बच्चे की मसाज करें तो आप का रूम वार्म हो ताकि कंफर्ट जोन में आराम से मसाज कर सकें. नहाने से पहले मसाज करने से बौडी में वौर्मनैस बनी रहती है. शुरुआत में मसाज हमेशा हलके हाथों से करें. कभी भी दूध पिलाने के तुरंत बाद मसाज न करें क्योंकि इस से बच्चे के उलटी करने का डर रहता है.

कैसा हो न्यूबौर्न का मौइस्चराइजर

इस संबंध में जानते हैं कौस्मैटोलौजिस्ट भारती तनेजा से:

बच्चों की स्किन बहुत ही सैंसिटिव होती है, जिस पर कोई भी प्रोडक्ट नहीं लगाया जा सकता क्योंकि उस से स्किन पर जलन, रैशेज व ईचिंग की समस्या हो सकती है. लेकिन सैंसिटिव के साथसाथ सर्द हवाएं उन की स्किन को ड्राई भी बनाने का काम करती हैं. ऐसे में आप अपने बच्चे की स्किन को बेबी औयल जैसे आमंड औयल व औलिव औयल से मौइस्चराइज करें क्योंकि इस में मौजूद विटामिन ई की खूबियां बच्चे की स्किन को सौफ्ट व हैल्दी बनाने का काम करती हैं, साथ ही आप अपने बच्चे के लिए कोको बटर, शिया बटर युक्त मौइस्चराइजर का भी चयन कर सकती हैं क्योंकि यह काफी सौफ्ट होते हैं.

जब भी अपने नन्हे के लिए मौइस्चराइजर का चयन करें तो देखें कि उस में परफ्यूम, कैमिकल्स व कलर्स न हों. हमेशा बच्चे की स्किन टाइप को देख कर ही मौइस्चराइजर खरीदें. आप को मार्केट में बायोडर्मा व सीबमेड के मौइस्चराइजर मिल जाएंगे, जो बच्चों की स्किन के लिए परफैक्ट होते हैं.

ब्रैस्टफीडिंग का रखें खास ध्यान

न्यूबौर्न बेबी का इम्यून सिस्टम विकसित हो रहा होता है, जिस के कारण उसे ज्यादा श्वसन संबंधित बीमारियों के साथसाथ बैक्टीरिया व वायरस से संक्रमित होने की भी ज्यादा संभावना होती है खास कर के सर्दियों के मौसम में. ऐसे में उसे वार्म और बीमारियों से दूर रखने के लिए उस की इम्यूनिटी को स्ट्रौंग बनाने की जरूरत होती है और इस में ब्रैस्टफीड का अहम रोल होता है क्योंकि मां के दूध में सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स होने के साथसाथ ऐंटीबौडीज भी होती हैं, जो बच्चे के इम्यून सिस्टम को स्ट्रौंग बनाने के साथसाथ बीमारियों से बचाने का भी काम करती हैं. इसलिए आप ब्रैस्टफीडिंग से अपने बच्चे की हैल्थ का खास ध्यान रखें. इस से आप का बच्चा भी सुरक्षित रहेगा और आप भी निश्चिंत रहेंगी.

टौपिंग ऐंड टेलिंग ट्रिक को अपनाएं

सर्दी का मौसम न्यूबौर्न के लिए किसी चैलेंज से कम नहीं होता है. ऐसे में नए बने पेरैंट्स नहीं सम?ा पाते कि उन्हें अपने बेबी को रोजाना बाथ देना है या फिर हफ्ते में 2-3. ऐसे में आप के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि अगर बाहर काफी ठंड है तो आप अपने नन्हेमुन्हे को रोजाना नहलाने की भूल न करें, बल्कि इस की जगह हफ्ते में 2-3 बार ही नहलाएं और वह भी ऐसे समय पर जब बाहर धूप निकली हो ताकि नहाने के बाद आप उसे नैचुरल गरमी दे कर उस की बौडी को वार्म रख पाएं.

रोजाना नहलाने के बजाय आप उस के हाथपैर, गरदन व बौटम एरिया को कुनकुने पानी से क्लीन करें. इसे ही टौपिंग ऐंड टेलिंग कहते हैं. इस से आप का बच्चा क्लीन भी हो जाएगा और उसे ठंड से भी बचा पाएंगी.

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दें विटामिन डी

यहां हम बच्चे को विटामिन डी के लिए किसी सप्लिमैंट को देने की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि सनलाइट से मिलने वाले विटामिन डी की बात कर रहे हैं, जो बच्चे की हड्डियों को स्ट्रौंग बनाने के साथसाथ इम्यूनिटी को बूस्ट करने का भी काम करता है. इस के लिए जब भी आप बच्चे को नहलाएं तो उस के बाद उसे धूप में जरूर ले जाएं क्योंकि इस से बच्चे को गरमी मिलने के साथसाथ जर्म्स का भी सफाया होता है.

Winter Special: स्नैक्स में बनाएं चीज पापड़ी

स्नैक्स हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी का अहम हिस्सा है. कुछ लोग स्नैकिंग हैबिट को अनहेल्दी कहते हैं. पर पिक्चर देखते देखते या दोस्तों के साथ बैठकर बातें करते करते स्नैकिंग का मजा ही कुछ और है. तो अगली पार्टी के लिए चीज पापड़ी बिल्कुल न भूलें.

कितने लोगों के लिए : 6

सामग्री :

– 2 कप मैदा

– चौथाई कप कसा हुआ चीज

– 2 टेबल स्पून तेल

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– 1 टी स्पून नमक

– तलने के लिए तेल.

विधि :

– चीज, मैदा और नमक मिलाकर उसमें 2 टेबल स्पून तेल भी मिला दें. अब थोड़ा सा पानी मिलाकर गूंथ लें.

– आधे घंटे के लिए ढककर रख दें.

– आधे घंटे के बाद चकले पर छोटी-छोटी पापड़ी बेलकर उसे कांटे से गोद दें.

– कड़ाही में तेल गरम करें. धीमी और मध्यम आंच करते हुए पापड़ी तल लें. सोख्ता कागज पर निकालकर ठंडा होने दें.

– आप इसे एयर टाइट कंटेनर में स्टोर भी कर सकती हैं.

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सही वसीयत: भाग 3- हरीश बाबू क्या था आखिरी हथियार

हरीश बाबू लेटेलेटे सोचने लगे, अच्छा होता अगर वे अनाथालय से कोई बच्चा गोद ले लेते. कम से कम एक बच्चे का तो जीवन सुधर जाता. करीबी संबंधी को गोद ले कर उन्हें क्या मिला? सुमंत तब तक उन का दुलारा रहा जब तक उसे उन की जरूरत थी. जैसे ही अपने पैरों पर खड़ा हुआ, अपने मांबाप का हो गया. आज की तारीख में उस को मेरी जरूरत नहीं. तभी तो बेगानों जैसा व्यवहार करने लगा. सोचतेसोचते कब उन की आंख लग गई, उन्हें पता ही न चला. अगली सुबह एक ठोस नतीजे के साथ फोन कर के उन्होंने अपने वकील को बुलाया.

‘‘क्या गोदनामा बदल सकता है?’’ एकाएक उन के फैसले से वकील को भी आश्चर्य हुआ.

‘‘यह तो नहीं हो सकता? पर आप ऐसा चाहते क्यों है?’’ वकील ने प्रश्न किया. हरीश बाबू ने सारा वाकेआ बयां कर दिया.

‘‘आप ही बताइए सुमंत को मैं ने अपना बेटा माना, बदले में उस ने मुझे क्या समझा. वह अच्छी तरह जानता है कि मैं ने उस के लिए क्याकुछ नहीं किया. तिस पर उस ने मेरी उपेक्षा की. क्यों? या तो उसे मेरी अब जरूरत नहीं या फिर वह यह सोच कर बैठा है कि भावनात्मक रूप से जुड़े होने के नाते मैं उस के खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लूंगा?’’

कुछ सोच कर वकील बोला, ‘‘आप चाहेंगे तो वसीयत बदल  सकते हैं और सुमंत को कुछ भी न दें.’’

‘‘आप वसीयत बदल दीजिए, ताकि उसे सबक मिले. इस तरह मुझे भी अपनी गलती सुधारने का मौका मिलेगा.’’

वकील ने वही किया जो हरीश बाबू चाहते थे. यानी वसीयत बदलवा दी. यह खबर किसी को कानोंकान न लगी. नटवर जब भी आता, यही रट लगाता कि आप गोदनामा बदल दें. मैं आप का सगा भाई हूं, जब तक जीवित रहूंगा, आप की सेवा करता रहूंगा. आप की संपत्ति गैर को मिले, यह बड़े शर्म की बात होगी. हरीश बाबू उस का मन टटोलने की नीयत से बोले, ‘‘क्या तुम लालच में मेरी सेवा करोगे?’’

‘‘नहीं भैया, ऐसी बात नहीं है,’’ नटवर सकपकाया.

‘‘मैं सिर्फ आप को राय दे रहा हूं. खुदगर्ज को देने से क्या फायदा? सुधीर को दे कर आप ने देख लिया.’’

‘‘तुम मुझे खून के रिश्ते का वास्ता दे रहे हो. मान लिया जाए कि मैं तुम्हें फूटी कौड़ी भी न दूं तो भी क्या तुम मेरी ऐसी ही देखभाल करते रहोगे?’’ नटवर ने बेमन से हामी भर तो दी मगर हरीश बाबू उसे अच्छी तरह से जानते थे कि उस के मन में क्या है?

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एक रोज हरीश बाबू अकेले पैंशन ले कर लौट रहे थे. रिकशे से गिर पड़े. टांग की हड्डी टूट गई. किसी तरह कुछ हमदर्द लोगों की मदद से अस्पताल ले जाए गए. जहां उन के प्लास्टर लगा. एक महीने से ज्यादा तक वे किसी काम के नहीं रहे. सुधीर को खबर दी तो भी वह नहीं आया, ‘सुमंत को दिक्कत होगी,’ बहाना बना दिया. सुमंत तो कहीं भी खापी सकता था. पर वे कैसे रहेंगे, वह भी इस हालत में? उस ने यह नहीं सोचा. नौकरानी ही उन्हें डंडे के सहारे उठातीबैठाती, उन की देखभाल करती व खाना बना कर देती. बुढ़ापे का शरीर एक बार झटका तो उबर न सका. एक सुबह खुदगर्ज दुनिया में उन्होंने अंतिम सांस ली. उस समय उन के पास कोई नहीं था.

मौत की खबर लगी तो नटवर भी भागेभागे आया. उस समय सगे में वही था. हरीश बाबू का एक और साला किशन भी आ चुका था. नटवर भाई का क्रियाकर्म करने का इंतजाम करने लगा. उसे ऐसा करते देख किशन बोला, ‘‘आप को परेशान होने की कोई जरूरत नहीं. उन का दत्तक पुत्र सुमंत बेंगलुरु से चल चुका है.’’

‘‘बेटा, कैसा बेटा, उन के कोई औलाद नहीं थी,’’ नटवर बोला.

‘‘आप अच्छी तरह जानते हैं कि उन्होंने सुमंत को गोद लिया था. कानूनन वही उन का बेटा है,’’ किशन को क्रोध आया.

‘‘मैं किसी सुमंत को नहीं जानता. मैं उन का क्रियाकर्म करूंगा क्योंकि वे मेरे सगे भाई थे. उन पर हमारा हक है. इस से हमें कोई नहीं रोक सकता,’’ नटवर हरीश बाबू के शरीर पर से कपड़ा हटाने लगा.

‘‘रुक जाइए,’’ किशन बिगड़ा, ‘‘अपनी हद में रहिए वरना मुझे पुलिस बुलानी पड़ेगी.’’

‘‘पुलिस, वह क्या करेगी? हम ने इन की हत्या तो की नहीं, जो लाश चोरी से जलाने जा रहे रहे हैं. भाई का क्रियाकर्म भाई नहीं करेगा, तो कौन करेगा?’’ नटवर ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया. जब नटवर नहीं माना तो किशन ने थाने में जा कर शिकायत की. पुलिस मामले की तहकीकात में जुट गई.

‘‘उन का कोई बेटा नहीं था,’’ नटवर बोला.

‘‘क्या यह सच है?’’ थानेदार ने किशन से पूछा.

‘‘हां, पर उन्होंने अपने साले के बेटे सुमंत को बाकायदा गोद लिया था. गोदनामा न्यायालय में रजिस्टर्ड है.’’

‘‘क्या आप मुझे वे कागजात दिखा सकते हैं?’’

‘‘क्यों नहीं? परंतु आप को 1-2 दिन इंतजार करना होगा. कागज उन्हीं के पास हैं.’’ थानेदार को किशन की बात में सचाई नजर आई. लाश का क्रियाकर्म उन के आने तक रुक गया.

प्लेन से आने में सुधीर, सुनीता व सुमंत को ज्यादा समय नहीं लगा. नटवर तो जानता ही था कि हरीश बाबू ने सुमंत को गोद लिया था. मगर जिस तरह से उस ने जल्दबाजी की वह सब की समझ से परे था. अंतिम संस्कार करने के बाद जब सब लौटे तो सुनीता हरीश बाबू के फोटो के सामने टेसुए बहाते हुए बोली, ‘‘कितना तो कहा, बेंगलुरु चलिए पर नहीं गए. कहने लगे इस शहर से न जाने कितनी यादें जुड़ी हैं. बेगाने शहर में एक पल जी नहीं सकूंगा.’’

तेरहवीं के बाद सुधीर वकील के पास गया. वह मकान पर जल्द से जल्द सुमंत का नाम चढ़वा देना चाहता था ताकि भविष्य में मकान बेच कर अच्छी रकम प्राप्त की जा सके.

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‘‘वसीयत में सुमंत के नाम कुछ नहीं है,’’ वकील बोला.

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं. गोदनामा तो बाकायदा रजिस्टर्ड है,’’ सुधीर को पैरों तले जमीन सिखकती नजर आई.

‘‘हरीश बाबू अपने जीतेजी अपनी संपत्ति के बारे में कुछ भी कर सकते थे,’’ वकील ने कहा.

‘‘मैं नहीं मान सकता. जरूर उन की मानसिक दशा ठीक नहीं होगी. किसी ने उन्हें बरगलाया है,’’ सुधीर की त्योरियां चढ़ गईं.

‘‘आप जो समझें.’’

‘‘फिर यह मकान किस का होगा?’’ सुधीर ने सवाल किया.

‘‘उन के भाई के बेटों का,’’ वकील कुछ छिपा रहा था जो सुधीर समझ न सका. नटवर को पता चला कि हरीश बाबू ने वसीयत में उस का नाम लिखा है तो मकान पर अपना मालिकाना हक जमाने चला आया.

‘‘मैं मकान खाली नहीं करूंगा. वे मेरे पिता थे,’’ सुमंत तैश में बोला.

‘‘करना तो पड़ेगा ही, क्योंकि वसीयत में तुम्हारा हक रद्द हो चुका है. सुना नहीं वकील ने क्या कहा,’’ नटवर ने कहा कि अब यह मकान मेरे बेटों का होगा. जाहिर सी बात है कि मुझ से ज्यादा करीबी कौन होगा? नटवर के चेहरे पर विजय की मुसकान बिखर गई.

‘‘अगर ऐसा है तो मैं इसे अदालत में चुनौती दूंगा. उन्होंने यह सब अपने मन से नहीं किया होगा,’’ सुमंत के तर्क को नटवर ने नहीं माना.

‘‘क्या इस वसीयत को अदालत में चुनौती दी जा सकती है?’’ सुधीर ने वकील से पूछा.

‘‘क्या सिद्ध करना चाहेंगे?’’

‘‘यही कि उन की मानसिक दशा ठीक नहीं थी. लिहाजा, यह वसीयत गैरकानूनी है.’’

उन की नई वसीयत में बाकायदा 2 प्रतिष्ठित लोगों के हस्ताक्षर हैं जिस पर साफसाफ लिखा है कि मैं पूरे होशोहवास में अपनी वसीयत बदल रहा हूं.

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सुधीर हताश था. वकील के चेहरे पर स्मित की हलकी रेखा खिंच गई. अब क्या किया जा सकता है? सुधीर इस उधेड़बुन में था. वह भारी कदमों से वकील के चैंबर से अपने घर जाने के लिए निकला ही था तभी वकील ने कहा, ‘‘जनाब, आप ने क्या सोचा था कि बिना जिम्मेदारी निभाए करोड़ों की संपत्ति पर कब्जा कर लेंगे?’’

‘‘इसी बात का अफसोस है.’’

‘‘अब अफसोस करने से क्या फायदा. वैसे, हरीश बाबू ने एक ट्रस्ट बना दिया है. न सुमंत को दिया है न भाई के बेटों को. उन्होंने इस मकान को गरीबों की शिक्षा के लिए स्कूल बनवाने के लिए दे दिया है,’’ वकील के कथन पर सुधीर का चेहरा देखने लायक था.

सुनीता ने सुना तो लगा वह बेहोश हो जाएगी. उसे विश्वास था कि किन्हीं भी परिस्थितियों में हरीश बाबू गोदनामा नहीं बदलेंगे, इसलिए वह उन के प्रति लापरवाह हो गई थी. उसी का फल उसे अब मिला. अब सिवा पछताने के, उन के पास कुछ नहीं रहा. हरीश बाबू ने सही वसीयत कर के लालची बिलौटों को सही जवाब दे दिया था.

सही वसीयत: भाग 1- हरीश बाबू क्या था आखिरी हथियार

हरीश बाबू और उन की पत्नी सावित्री सरकारी मुलाजिम थे. रुपए पैसों की कोई कमी नहीं थी, मगर निसंतान होने की कसक दोनों को हमेशा रहती. हरीश बाबू का साला सुधीर उन के करीब ही किराए के मकान में रहता था. उस की माली हालत ठीक न थी. उस का 4 वर्षीय बेटा सुमंत हरीश बाबू से घुलामिला था. एक तरह से दोनों की जिंदगी में निसंतान न होने के चलते जो शून्यता थी वह काफी हद तक सुमंत से भर जाती. हरीश बाबू अकसर सुमंत को अपने घर ले आते. कंधे पर बिठा कर बाजार ले जाते. उस की हर फरमाइश पूरी करते. उस की हर खुशी में वे अपनी खुशी तलाशते. सावित्री भी सुमंत के बगैर एक पल न रह पाती. दोनों सुमंत की थका देने वाली धमाचौकड़ी पर जरा भी उफ न करते. वहीं सुधीर व सुनीता, उस की बेजा हरकतों के लिए उसे डांटते, ‘‘जाओ फूफाजी के पास. वही तुम्हारी शैतानी बरदाश्त करेंगे.’’ एक दिन सुनीता सुमंत पर चिल्ला रही थी कि तभी हरीश बाबू उन के घर में घुसे. उन्हें देख कर सुमंत लपक कर उन की गोद में चढ़ गया.

‘‘बच्चे को डांट क्यों रही हो?’’ हरीश बाबू रोष से बोले.

‘‘आप के लाड़प्यार ने इसे बिगाड़ दिया है. हर समय कोई न कोई फरमाइश करता रहता है. आप तो जानते हैं कि हमारी आर्थिक स्थिति क्या है. उस की जरूरतों को पूरा करना हमारे वश में नहीं है,’’ सुधीर का भी मूड खराब था. उस रोज हरीश बाबू निराश घर आए. सावित्री से कहा, ‘‘अब वे सुमंत को नहीं लाएंगे.’’

‘‘क्यों, कुछ हो गया,’’ सावित्री आशंकित स्वर में बोली.

‘‘सुधीर को बुरा लगता है.’’

‘‘वह क्यों बुरा मानेगा? आप ही को कोई गलतफहमी हुई है. वह मेरा भाई है. मैं उसे अच्छी तरह से जानती हूं,’’ हंस कर सावित्री ने टाला.

2 दिन सुमंत नहीं आया. दोनों बेचैन हो उठे. उन का किसी काम में मन नहीं लग रहा था. बारबार ध्यान सुमंत पर चला जाता. हरीश बाबू से कहते नहीं बन रहा था, गैर के बेटे पर क्या हक? सावित्री, हरीश बाबू का मुंह देख रही थी. वह उन की पहल का इंतजार कर रही थी. जब उसे लगा कि वे संकोच कर रहे हैं तो उठी, ‘‘मैं सुधीर के घर जा रही हूं.’’

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‘‘जाने की कोई जरूरत नहीं,’’ उन्होंने रोका.

‘‘आप भी बच्चों की तरह रूठ जाते हैं. वह मेरा भाई है. आप न जाएं, मैं तो जा सकती हूं,’’ कह कर वह निकलने लगी.

‘‘सुमंत को लाने की कोई जरूरत नहीं,’’ हरीश बाबू ने बेमन से कहा. पर सावित्री ने उन के भीतर छिपे भावों को पढ़ लिया. वह मंदमंद मुसकराने लगी.

‘‘आप सच कह रहे हैं?’’ सावित्री ने रुक कर पूछा तो हरीश बाबू नजरें चुराने लगे. तभी फाटक पर किसी की आहट हुई. सुमंत, सुधीर की उंगली पकड़ कर अंदर घुसा. जैसे ही उस की नजर हरीश बाबू पर पड़ी, उंगली छुड़ा कर तेजी से भागा. हरीश बाबू उस की बोली सुनते ही भावविभोर हो गए. झट से उठ कर उसे गोद में उठा लिया.

‘‘आप के पास आने की जिद कर रहा था. रोरो कर इस का बुरा हाल था,’’ सुधीर थोड़ा नाराज था.

‘‘तो भेज देता. बच्चों को कोई बांध सकता है,’’ सावित्री रुष्ट स्वर में बोली. सुधीर बिना कोई प्रतिक्रिया जताए चला गया. हरीश बाबू, सुमंत के साथ 2 दिनों की कसर निकालने लगे. खूब मौजमस्ती की दोनों ने. हरीश बाबू ने उस के लिए बाजार से बड़ी मोटर खरीदी. सावित्री ने उसे अपने हाथों से खाना खिलाया. आइसक्रीम की जिद की तो वह भी दिलवाई. थक गया तो अपने सीने से लगा कर थपकी दे कर सुलाया. शाम को सुनीता आई. तब वह अपने घर गया. वह तब भी नहीं जा रहा था, कहने लगा, ‘‘मम्मी, तुम भी यहीं रहो.’’ लेकिन सुनीता किसी तरह से उसे पुचकार कर घर ले गई.

उस के जाते ही फिर वही उदासी, अकेलापन. हरीश बाबू और सावित्री के पास करने को कुछ था नहीं. साफसफाई का काम नौकरानी कर जाती. सिर्फ खाना बनाना भर रह जाता. हरीश बाबू का काम ऐसा था कि वे बहुत कम औफिस जाते. वहीं सावित्री के स्कूल की 2 बजे तक छुट्टी हो जाती. उस के बाद शुरू होती सुमंत की तलब. सुमंत आता, तो घर में चहलपहल हो जाती.

एक दिन हरीश बाबू सावित्री से बोले, ‘‘सावित्री, बुढ़ापे के लिए कुछ सोचा है. 15 साल बाद हम रिटायर हो जाएंगे. फिर कैसे कटेगी बिना औलाद के जिंदगी? अकेला घर काटने को दौड़ेगा?’’

‘‘तब की तब देखी जाएगी. उस के लिए अभी से क्या सोचना?’’ सावित्री ने टालने के अंदाज में कहा.

हरीश बाबू कुछ सोचने लगे. क्षणिक विचारप्रक्रिया से उबरने के बाद बोले, ‘‘क्यों न हम सुमंत को गोद ले लें?’’

‘‘खयाल तो अच्छा है, पर सुधीर तैयार होगा?’’ सावित्री बोली.

‘‘उसे तुम तैयार करोगी,’’ कह कर हरीश बाबू चुप हो गए. सावित्री ने अनुभव किया कि वे कुछ और कहना चाह रहे थे, पर संकोचवश कह नहीं रहे थे. सावित्री ने ही पहल की, ‘‘आप कुछ और कहना चाह रहे थे?’’

‘‘तुम्हें एतराज न हो तो?’’ हरीश बाबू बोले.

‘‘कह कर तो देखिए, हो सकता है न हो,’’ सावित्री मुसकुराई.

‘‘क्यों न सुधीर सपरिवार यहीं आ कर रहे. इतना बड़ा घर है. सब मिलजुल कर रहेंगे तो अकेलापन खलेगा नहीं.’’ हरीश बाबू का प्रस्ताव सावित्री को जंच गया. वैसे भी सुमंत को गोद लेने पर मकान उन्हीं लोगों का होगा. रुपयापैसा क्या कोई अपने साथ ले कर जाएगा. एक दिन मौका पा कर सावित्री ने सुधीर से अपने मन की बात कही. सुधीर तो यही चाहता था. इसी बहाने उसे रहने का स्थायी ठौर मिल जाएगा. साथ में दोनों का लाखों का बैंकबैलेंस. थोड़ी नानुकुर के बाद सुधीर सपरिवार आ कर रहने लगा. घर की रौनक बढ़ गई. घर संभालने का काम सुनीता के कंधों पर आ गया. हरीश बाबू, सावित्री नौकरी पर चले जाते तो सुनीता ही घर का सारा काम निबटाती. उन्हें समय पर खानापीना मिल जाता, साथ में मन बहलाने के लिए सुमंत की घमाचौकड़ी.

हरीश बाबू ने सुमंत की हर जरूरतें पूरी कीं. शहर के अच्छे स्कूल में नाम लिखवाया. जिस चीज की जिद करता, चाहे कितनी ही महंगी हो, अवश्य दिलवाते.

सुधीर के रहते हुए 6 महीने से ज्यादा हो गए. एक रात हरीश बाबू और सावित्री ने फैसला लिया कि जो काम कल करना है उसे अभी करने में क्या हर्ज है.

लिहाजा, आपसी सलाह से सुमंत को गोद लेने के फैसले को एक दिन दोनों ने मूर्तरूप दे दिया. गोदनामे की एक शानदार पार्टी दी. पार्टी में उन्होंने अपने सारे रिश्तेदारों और दोस्तों को बुलाया. उन का सगा भाई नटवर भी आया. वह हरीश बाबू के इस गोदनामे से खुश नहीं था. सो, अपनी नाखुशी जाहिर करने में उस ने कोई कसर नहीं छोड़ी. हरीश बाबू शुरू से अपनी पत्नी की ही करते आए.

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इस की सब से बड़ी वजह थी ससुराल के बगल में उन का स्थायी मकान का होना. नटवर का दोष यह था कि वह एक नंबर का धूर्त और चालबाज था. इसी वजह से हरीश बाबू उस को पसंद नहीं करते थे. उस रोज वह बिना खाएपिए चला गया. लोगों की नाराजगी से बेखबर हरीश बाबू अपने में खोए रहे.

गोदनामे के बाद जब सुधीर, हरीश बाबू के बल पर आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो गया तो अपने कामधंधे से लापरवाह हो गया. आलसी वह शुरू से था. फिर जब बिना मेहनत के मिले तो कोई क्यों हाथपांव मारे. वैसे भी व्यापार में अनिश्चितता बनी रहती है.

कुछ महीनों बाद सुधीर दुकान बंद कर के घर पर ही रहने लगा. हरीश बाबू चुप रहते मगर सावित्री बहन होने के नाते सुधीर को डांटडपट देती. धीरेधीरे हरीश बाबू को भी उस की बेकारी खलने लगी. वे भी मुखर होने लगे. इन्हीं सब वजहों से महीने में एकाध बार दोनों में तूतूमैंमैं हो जाती. एक दिन अचानक सावित्री को ब्रेन हैमरेज हो गया. 2 दिन कोमा में रहने के बाद वह चल बसी. हरीश बाबू का दिल टूट गया. वे गहरी वेदना में डूब गए. उस समय सुमंत न होता, तो निश्चय ही वे जीने की आस छोड़ देते.

सुमंत हाईस्कूल में पहुंच गया तो मोटरसाइकिल की जिद करने लगा. हरीश बाबू ने उसे तुरंत मोटरसाइकिल खरीदवा दी. घरगृहस्थी चलाने के लिए एकमुश्त रुपया वे सुधीर को दे देते. सुधीर उन पैसों में से अपने महीने का खर्च निकाल लेता. एक दिन हरीश बाबू ने पूछा, ‘‘जितना तुम्हें देते हैं, तुम सब खर्च कर देते हो, क्या कुछ बचता नहीं?’’

आगे पढ़ें- हरीश बाबू बूढ़े हो चले थे. उन की…

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