गर्मियों में पूल पार्टी अरेंज करने के 8 टिप्स

अवसर चाहे छोटा हो या बड़ा हम उसे फेमिली और फ्रेंड्स के साथ इंजॉय करना ही चाहते हैं. अब चूंकि गर्मियों का मौसम प्रारम्भ हो चुका है और गर्मियों की हीट वेव से बचने के लिए आजकल पूल पार्टी का चलन फैशन में है. पूल पार्टी करना काफी आसान होता है क्योंकि इसमें सामान्य इंजॉय के साथ साथ पानी में भी मेहमान बहुत अच्छी तरह पार्टी का आनन्द उठा पाते हैं. ऐसी पार्टी को स्विमिंग पूल के आसपास के एरिया में प्लान किया जाता है. यदि आप भी ऐसी किसी पार्टी को अरेंज करना चाहते हैं तो ये टिप्स आपके बहुत काम आयेंगे-

1-ऐसी रखें सिटिंग

स्वीमिंग पूल के आसपास विविधता भरी सिटिंग का इंतजाम करना उचित रहता है. इसके लिए लम्बी और कम हाईट की बोहो टेबल चेयर्स, रग्स या दरियों का इंतजाम बैठने के लिए करना उचित रहता है. दोनों पर ही कम्फर्ट के लिए पिलो, और मसनद का प्रयोग किया जा सकता है. पूल पार्टी में सबसे महत्वपूर्ण है कि मेहमानों के आराम का बहुत अधिक ध्यान रखा जाये ताकि पूल में न जाने वाले मेहमान भी भरपूर आनंद ले सकें.

2-ड्रेस और कलर कोड हो ख़ास

कोई भी साधारण सा अवसर भी बेहद ख़ास बन जाता है जब आप उसमें कोई ड्रेस या कलर सेट कर देते है. महिलाओं के लिए साड़ी, सूट, शरारा सूट और पुरुषों के लिए कुरता पाजामा जैसा ड्रेस कोड पार्टी की थीम के अनुसार रखा जा सकता है. ड्रेस कोड किसी के लिए मुश्किल का कारण न बने इसके लिए आप कलर कोड भी रखें जिससे सारे मेहमान देखने में एक समान प्रतीत होते हैं. ड्रेस के कलर कोड के अनुसार ही पूल की सजावट भी करें. या फिर सजावट के अनुसार ट्रोपिकल, आल व्हाइट या कलरफुल ड्रेस कोड भी रखा जा सकता है. यदि थीम कलरफुल है तो निआन थीम भी रखी जा सकती है.

3-सीजन के अनुकूल हो ड्रिंक

यूं तो आजकल हर पार्टी में लिकर, बीयर जैसे ड्रिंक का होना सामान्य सी बात है. समर पार्टी के ड्रिंक में फ्रूट पंच, मोकटेल्स, ज्युसेज, गन्ने का ज्यूस, बर्फ का गोला और कोल्ड ड्रिंक रखा जा सकता है. ड्रिंक को सर्व करने के लिए आप अच्छी क्वालिटी के डिस्पोजेबल ग्लास और नल वाली केन या कंटेनर का प्रयोग करें इससे मेहमान खुद ही ले भी सकेंगें और हाइजीनिक भी रहेगा.

4-गेम्स और म्यूजिक हैं ख़ास

गेम्स के बिना तो हर पार्टी ही अधूरी रहती है. रंग बिरंगे पूल बैलून पूरे पूल में बिखेरकर हिट एंड कैच गेम, अच्छा ख़ासा इंजॉय हर उम्र के लोंगों के द्वारा किया जा सकता है. इसके अलावा आप तम्बोला. तीन पत्ती, अन्ताक्षरी जैसे गेम्स से पार्टी को और अधिक आकर्षक बनाया जा सकता है. पूल के अंदर डोनट्स, फ्लेमिंगो, यूनिकॉर्न और पाइन एप्पल शेप के फ्लोट पूल में बहुत आराम से डाले जा सकते हैं और इससे पूल में बहुत अच्छे से इंजॉय किया जा सकता है. म्यूजिक के लिए वाटर प्रूफ अलेक्सा का प्रयोग करें.

5-धूप का रखें ध्यान

भले ही पूल में कितनी भी ठंडक क्यों न हो परन्तु सूर्य की तेज धूप से बचाव बेहद जरूरी है. इसलिए पूल के एक कोने में टेबल पर तीन चार सनस्क्रीन का इंतजाम करकें रखें ताकि बार बार इसे एप्लाई किया जा सके साथ ही पूल के चारों तरफ टेंट के द्वारा शेड का इंतजाम करना बेहद आवश्यक है ताकि मेहमान धूप से प्रभावित होने से बचे रहें.

6-वेरायटी वाला फ़ूड

किसी भी पार्टी की जान होता है वहां सर्व किया जाने वाला फ़ूड. फ़ूड में वेराइटी और एज ग्रुप का ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है. मेन कोर्स के स्थान पर ऐसा फ़ूड रखना आवश्यक जिसे ब्रेक ले लेकर आराम से खाया जा सके. नूडल्स, पास्ता, वेजिटेबल सैंडविच, मिक्स वेज पकौड़े, सलाद, एवोकाडो, बीटरूट और पालक से बने सलाद के साथ साथ साउथ इंडियन फ़ूड को भी शामिल किया जा सकता है.

7-टाइम

चूंकि पूल पार्टी का आयोजन ही धूप से पूल के अंदर डोनट्स, फ्लेमिंगो, यूनिकॉर्न और पाइन एप्पल फ्लोट पूल में बहुत आराम से डाले जा सकते हैं बचने के लिए किया जाता है इसलिए इसका समय भी शाम का ही रखा जाना चाहिए ताकि शाम के ढलते सूरज और निकलते चन्द्रमा का आनन्द उठाया जा सके. इसे आप प्री डिनर या नाईट पार्टी का नाम दे सकते हैं.

8-चेंजिंग रूम और टावेल

चेंजिग रूम की साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखें. मेहमानों की संख्या के अनुसार कुछ टावेल का इंतजाम आप स्वयं करें साथ ही मेहमानों से भी अपनी टावेल साथ लाने को कहें. चेंजिग रूम में एक मग और बाल्टी की व्यवस्था भी करें. अंत में सबसे महत्वपूर्ण आप जैसे ही आप पूल पार्टी का प्लान करें तो जहां भी आप पार्टी का प्लान करें वहां बुकिंग कर लें ताकि ऐनवक्त पर कोई परेशानी न हो.

औरतों को कमजोर करने की साजिश

लोकतंत्र का मतलब है ऐसी सरकार जो जनता के रूप में शासन चला सके. हो उलटा रहा है. लोकतंत्र से सत्ता पाई जा रही है ताकि नेताओं के लिए शासन चलाया जा सके. भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने उस में एक बड़ा परिवर्तन किया है तो यह कि शासन मंदिरों और मंदिरों से जुड़े लोगों के ?लिए चलाया जा सके. नतीजा यह है कि हर धर्मस्थल के लिए हर देश में सुविधाएं जमा की जा रही हैं और बाकी शहरियों को मिलने वाली सुविधाएं कम होती जा रही हैं.

टाइम्स औफ इंडिया के 24 फरवरी के पृष्ठ 3 पर छपी वाटर क्राइसिस की खबर को देखें. वैसे इस खबर में कुछ नया नहीं है. दिल्ली जैसे अनेक शहरों में पूरे साल नलों से पानी न मिलने की शिकायत रहती है. रोमन युग में शासकों ने आज से 2500 साल पहले रोज के लिए पानी लाने के लिए 16 ऐक्वाडक्ट बनाए थे जिन से जमीन से 200 फुट ऊपर तक पत्थर की नहरें बनाई गई थीं, जो सैकड़ों मील दूर से पानी लाती थीं और रोम के अमीरों से ज्यादा यह सुविधा पब्लिक फाउनटेनों के लिए थी जहां से कोई भी पानी भर सकता था. बिना पंप, बिना बिजली, बिना मशीनों के यह सिस्टम उस देश ने डैवलप किया जिसे गुरु नहीं कहा गया और जहां कोई धर्म नहीं था.

टाइम्स औफ इंडिया की इस खबर का उल्लेख उस तसवीर के लिए किया जा रहा है जिस में बीसियों औरतें दिल्ली जल बोर्ड के टैंकरों के चारों ओर जमा हैं. जो देश फालतू के निर्माण को बनाने में लगा है वह उन औरतों की चिंता नहीं करता जो घंटों पानी के टैंकरों का इंतजार करती हैं. इस भीड़ में मर्द बहुत कम हैं. क्या घर चलाने का जिम्मा उन औरतों का ही है जो घर पर कोई मालिकाना हक तक नहीं रखतीं?

मुगलों ने बहुत सी नहरें बनाईं. दिल्ली और आगरा की नहरें मुसलिम राजाओं के समय की हैं, जिस कारण शहरों के बीच से नदियों का पानी 24 घंटे बहता रहता था. आज जब हर तरह की तकनीक मौजूद है, बिजली है, कंप्यूटर है, पानी के लिए औरतों की शक्ति और उन का समय बरबाद करना और गुणगान करना कि सनातनकाल लौट आया है, एक धोखा है.

निर्माण आम औरतों के लिए होने चाहिए. चौथी शताब्दी में रोमन सम्राट वेलंस ने इस्तेमाल के लिए 436 किलोमीटर का ऐक्वाडक्ट यानी ऐलीवेटेड नहर बनवाई. उस ने कोई मंदिर बना कर, कौरीडोर बना कर नाम नहीं कमाया. औरतों, घरों, बच्चों की सुविधाओं के लिए पानी मुहैया कराया.

भारत सरकार ने शुरू में शौचालयों की खूब बात की पर जब सीवर न हों, पानी न हो तो कैसे शौचालय? शौचालयों का इस देश में न होना, सीवर न होना, नालियां न होना असल में औरतों को कमजोर और बीमार करने की सोचीसमझी साजिश है. वे टैंकरों के लिए घंटों बरबाद करने की टे्रनिंग पा जाती हैं तो यह टे्रनिंग मंदिरों की लाइनों में लगने में इस्तेमाल आती है.

टैंकरों के लिए इंतजार करना या इन के दर्शन के लिए समय बरबाद करना औरतों पर घरों में बेहद दबाव बढ़ाता है, उन्हें घरों की देखभाल, खाना बनाने, बच्चों को पालने, पति को सैक्स सुख देने के बाद कुछ भी अपने लिए कुछ भी समय नहीं मिलता.

सरकार, समाज और धर्म तीनों मिल कर उन का समय टैंकरों के आगे, मंदिरों के आगे और मुफ्त या सस्ते राशन की दुकानों के आगे लगवा कर बरबाद करते हैं ताकि इन जगहों से कुछ पा कर वे अपने को धन्य मान लें और सरकार व समाज से सवाल न करें.

लाइनों में लग कर टैंकरों के दर्शन और किसी दर्शन में कोई खास फर्क नहीं है और दोनों में ज्यादातर अगर औरतें दिखें तो सवाल उठता है कि क्या यह अनायास है या सोचीसम?ा नीति है? इस का जवाब औरतों को खुद उठ कर ढूंढ़ना होगा. उन्हें लाइनों का बहिष्कार करना होगा. घर भूखा मरे, ईश्वरअल्ला की कृपा न हो, लाइन में लगने का काम उन्हीं का नहीं हो सकता. शासकों को लाइन संस्कृति समाप्त करनी होगी. धर्मस्थल नहीं, नल बनवाने होंगे. कौरीडोर नहीं सीवर डलवाने होंगे पर यह मांग औरतें करें, शासक उन्हें तश्तरी में नहीं देंगे.

 

अधूरी तसवीरें: आखिर रमला ने क्या फैसला लिया?

क्याकरे रमला? गैरजिम्मेदार ही सही लेकिन है तो आखिर बाप ही न, कैसे बेसहारा छोड़ दे. माना कि पिता को घर लाने का सीधासीधा अर्थ खुद अपनी खुशियों में सेंध लगाना ही है, लेकिन इस के अलावा कोई चारा भी तो नहीं. जब पति राघव ने पिता को अपने साथ रखने के प्रस्ताव पर चर्चा की है तब से ही रमला बेचैन है.

ऐसा नहीं है कि रमला को अपने जन्मदाता से प्रेम नहीं, है. बहुत है, लेकिन वह कंठहार ही क्या जो गले का फंदा बन जाए.

कितनी खुशहाल जिंदगी चल रही थी उस की. यों कहो कि जिंदगी का स्वर्णकाल शुरू ही हुआ था कि काल का पतन शुरू हो गया. अभी साल भी तो नहीं हुआ राघव से शादी हुई थी को इस से पहले तो जिंदगी घुटीघुटी सी ही थी.

हालांकि बहुत बड़ा परिवार नहीं था उस का. कायदे से चलता तो कोई कमी नही थी. मां सरकारी अध्यापिका थीं, रमला को भी खूब पढ़ाया था उन्होंने. बस पिता ही थे जो उन की मखमल की रजाई में टाट बने रहते थे.

मां ने प्रेम विवाह किया था. पिता अपने पिता यानी रमला के दादाजी की स्टेशनरी की दुकान पर बैठा करते थे जो सरकारी बीएड कालेज के पास थी. मां वहीं से पढ़ाई कर रही थीं. प्रेम हुआ और थोड़ी नानुकुर के बाद शादी.

मां को पिता की कम कमाई से कोई शिकायत नहीं रही क्योंकि वे खुद नौकरी करती थीं. उन्हें पिता का घर की दुकान संभालना अखरता नहीं था बल्कि वे तो खुद चाहती थीं कि बच्चों की देखभाल करने के लिए कोई एक अभिभावक घर पर उन के साथ रहे.

मां की इस छूट को पिता ने अपना अधिकार सम?ा लिया और धीरेधीरे वे दुकान से विमुख होने लगे. नतीजतन, दुकान में लगातार घाटा होने लगा. मां ने कई बार उन के व्यवसाय में जान फूंकने के लिए उस में पैसे भी लगाए लेकिन पिता एक बार लापरवाह हुए तो फिर होते ही चले गए.

घरबाहर संभालती मां चिड़चिड़ी होने लगीं और पिता से विरक्त भी. शायद यही कारण रहा होगा कि रमला के कोई दूसरा भाईबहन भी नहीं है.

इतना सबकुछ होनेसहने के बाद भी मां ने इस की आंच से रमला को हमेशा दूर

ही रखा था. पिछले साल जैसे ही कोरोना के केस थोड़े कम हुए, मां ने राघव और उस की सगाई को शादी में बदल दिया. रमला तो अपनी नई जिंदगी से खुश थी. उसे तो राघव के रूप में हमसफर मिल गया था, लेकिन मां बिलकुल अकेली रह गई थीं. एक रमला ही तो थी उन की पीड़ की सा?ादार, वह भी चली गई.

कोरोना की दूसरी लहर और भी अधिक घातक रूप ले कर आई थी. मां ने हालांकि वैक्सीन की दोनों डोज लगवा ली थीं फिर भी न जाने कैसे कोरोना की चपेट में आ गई थी. पिता तो थे ही सदा के लापरवाह. मां की बीमारी को हलके में लेते रहे. मां खुद भी कहां उसे सब

बता रही थीं. पता नहीं वह बेटीदामाद को परेशान नहीं करना चाहती थीं या उन्हें संक्रमण से दूर रखना चाहती.

उन्होंने रमला को बीमारी की गंभीरता का आभास भी नहीं होने दिया. जब भी बात होती तो जरा सा खांसीबुखार है कह कर टाल जातीं. जब सांस लेने में दिक्कत होने लगी तब राघव उन्हें ले कर अस्पताल गया. छाती का ऐक्सरे करवाया तो पता चला सीटी स्कैन का स्कोर 25 में से 22 है.

सुनते ही रमला के पांवों तले से जमीन खिसक गई. हाथपांव ठंडे पड़ गए. राघव ने किसी तरह भागदौड़ कर के उन्हें अस्पताल में भरती करवाया.

इधर सांसों के लिए जू?ाती मां हर पल मौत के एक कदम नजदीक जा रही थीं और उधर औक्सीजन की कमी, दवाओं की कालाबाजारी और प्रशासन की अंधेरगर्दी उन्हें मौत के कुएं में धक्का देने का काम कर रही थी. आम आदमी की मजबूरी है कि वह अपने किस्मत को कोसने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर पाता.

आखिर वही हुआ जिस का खटका रमला को हर पल लगा रहता था. एक मनहूस सुबह मां पीपीई किट में ही सिमट कर आ गईं. रमला न ठीक से मां की सूरत देख सकी और न ही उन का अंतिम संस्कार विधान पूर्वक हो सका. सरकारी नियमावली के अनुसार मां को सीधे श्मशान घाट ले जाया गया और पीपीई किट सहित मां पंचतत्व में विलीन हो गईं. रमला का मायका सूना हो गया.

रमला को तो राघव ने संभाल लिया, लेकिन पिता? उन्हें कौन संभाले? कुछ दिन तो खुद से ही कच्चापक्का बना कर खाया, फिर कभी पेट खराब तो कभी व्रतनागा होने लगा तो रमला ने पिता के लिए टिफिन लगवा दिया लेकिन केवल खाने भर से ही तो व्यक्ति की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता न? जिंदगी आराम से चलती रहे इस के लिए बहुत से दूसरे काम भी करने होने होते हैं. घर में पिता के अकेले रहने के कारण कोई कामवाली भी मदद के लिए आने को तैयार नहीं थी. कपड़ेबरतन तो पिता ने कभी धोए ही नहीं थे.

रमला ने उन्हें औटोमैटिक वाशिंगमशीन ला दी, लेकिन उन की तरफ से चिंतामुक्त फिर भी नहीं हो सकी.

रमला नहीं चाहती थी कि पिता को अपने साथ रख कर अपना सुखचैन दांव पर लगा दे, लेकिन संतान के फर्ज को भी तो नहीं भूल

सकती न, क्या यही दिन देखने के लिए लोग बच्चे पैदा करते हैं? कल को यदि खुद उस के बच्चे उन के साथ यही व्यवहार करें तो उन्हें कैसा लगेगा? ऐसे अनेक प्रश्न अपना जाल उस के इर्दगिर्द और भी अधिक मजबूत कर लेते. रमला छटपटा कर रह जाती.

‘‘सुनो, मैं सोचता हूं कि तुम्हारे पापा को यहां ले आऊं, अपने पास. वहां बेचारे बुढ़ापे में परेशान हो रहे हैं. कल को कोई हारीबीमारी हो गई तो? तब भी तो हमें ही देखना होगा न?’’ राघव ने एक रात कहा तो रमला को उस पर और प्यार उमड़ आया. मां के चयन पर गर्व हुआ, लेकिन अपने पिता को वह राघव से बेहतर जानती थी. कैसे कुल्हाड़ी पर पांव मार ले.

‘‘बेटीदामाद के घर तो शायद वे खुद भी न रहना चाहें, लेकिन हम उन्हें अपने पास ही कोई घर दिलवा देते हैं. उन का भी मान रह जाएगा और देखभाल भी हो जाएगी,’’ रमला ने सु?ाया.

राघव को हालांकि प्रस्ताव कुछ कम ही जंचा, लेकिन वह बापबेटी के बीच नहीं पड़ना चाहता था इसलिए चुप रहा.

रमला ने अपने पिता को घर के पास ही एक छोटा घर किराए पर दिला दिया. मां वाला बड़ा घर किराए पर उठा देने से पिता को अतिरिक्त आमदनी भी होने लगी. बापबेटी दोनों खुश.

जेब और पेट भरा हो तो मन चंचल होने लगता है. पुरुष और वह भी अकेला…

मन तो चंचल होना ही था. एक दिन अलसुबह एक महिला को पिता के घर से निकलते देखा तो रमला चौंक गई.

‘‘घर की साफसफाई के लिए बुलाई थी,’’ पिता से पूछने पर उन्होंने नजर चुराते हुए जवाब दिया. रमला सम?ा गई थी कि माजरा क्या है.

‘पिता हैं तो क्या हुआ, पुरुष भी तो हैं और फिर भूख सिर्फ पेट को ही तो नहीं लगती,’ रमला ने उदार हो कर सोचा और उस महिला के आनेजाने को सहज लेने की कोशिश की.

‘‘क्यों न इस महिला को पिता के जीवन में स्थाई रूप से लाया जाए?’’ रमला ने सोचा और राघव से बात करना तय किया. रमला की बात सुनते ही पहले तो राघव चौंक गया, लेकिन ठंडे दिमाग से सोचने पर उसे भी इस में कोई बुराई नजर नहीं आई.

‘‘लेकिन वह महिला कौन है? उस की बैकग्राउंड क्या है. क्या वह उन के लिए सही साथी साबित होगी? कहीं कोई फ्रौड या पेशेवर हुई तो?’’ राघव ने अपने मन में आए कई प्रश्न पूछे.

उस के प्रश्न सुन कर रमला भी सोच में पड़ गई. सभी अपनी जगह वाजिब थे. उस ने इस मामले की तह में जाना निश्चित किया. शाम को जब पिता खाना खाने आए तो रमला अपना मन बना चुकी थी. पूछा, ‘‘पापा, बुरा न मानो तो एक बात कहूं?’’

पिता ने आंखें उठाते हुए हां का इशारा किया.

‘‘मैं और राघव सोच रहे थे कि आप अपने लिए कोई साथी चुन लें,’’ रमला ने धीरे से कहा. पिता खाना रोक कर उस की तरफ देखने लगे. कुछ देर चुप्पी पसरी रही. तभी राघव भी आ गया.

‘‘रमला ठीक कहती है पापा. हालांकि आप के साथ रहने से हमें कोई परेशानी नहीं बल्कि सहारा ही है, लेकिन कोई एक मनचाहा साथी तो होना ही चाहिए न मन की बात कहनेसुनने के लिए,’’ राघव ने बातचीत का हिस्सा बनते हुए बात आगे बढ़ाई.

‘‘उस दिन जिसे मैं ने घर से निकलते हुए देखा था, यदि आप को ठीक लगती है तो बात कर सकते हैं,’’ रमला ने राघव की थाली परोसते हुए कहा.

‘‘अरे नहींनहीं वह तो बस यों ही. मैं ने बताया था न कि घर की साफसफाई के लिए बुलाया था,’’ पिता कहते हुए ?ोंप रहे थे.

रमला और राघव सम?ा रहे थे कि वह तो भूख मिटाने का तात्कालिक साधन है जैसे सड़क की चाटपकौड़ी. घर का खाना खाने के लिए तो पूरी रसोई नए सिरे से ही सजानी पड़ेगी.

‘‘कोई बात नहीं. हम कोई अच्छा सा मैच तलाशते हैं. कोशिश करने में क्या हरज है. देखते हैं कि क्या किया जा सकता है. बस, आप की सहमति होनी चाहिए,’’ राघव ने बात संभाल कर एक बार फिर अपनी सम?ादारी साबित की.

राघव ने समाचारपत्र में वैवाहिक विज्ञापन दिया. कुछ रिश्ते आए भी लेकिन उन्हें कोई सम?ा में नहीं आया.

कुछ माह बीत गए. इस बीच रमला ने महसूस किया कि पिता अपनी जिम्मेदारी सम?ाने लगे हैं. खाना तो दोनों समय रमला के पास खाते हैं, लेकिन चाय खुद अपने घर पर ही बना कर पीते हैं. शाम को आते समय 2 समय की सब्जी रमला को ला देते हैं. और तो और धीरेधीरे रसोई भी जमाने लगे हैं. काश, मां को भी कभी यह सुख मिला होता.

सबकुछ पटरी पर आने ही वाला था कि एक और वज्रपात हुआ. राघव की विधवा बूआ का इकलौता जवान बेटा कोरोना का ग्रास बन गया. पति को पहले ही खो चुकी बूआ बेटे के जाने के गम में पगला ही गई. रमला और राघव उन की हरसंभव मदद और देखभाल कर रहे थे.

इस बीच रमला को लगा कि उस के पांव भारी हैं. यह सुनते ही राघव खुशी से नाच उठा. डाक्टर ने रमला को खास देखभाल की हिदायत दी तो राघव ने बूआ से रमला की जिम्मेदारी संभालने का आग्रह किया. बूआ ने मान लिया और रमला को अपनी निगरानी में ले लिया.

बूआ अब राघव के घर की स्थाई सदस्य बन गई. रमला की देखभाल के साथसाथ उन्होंने शेष घर की जिम्मेदारी भी सहज ओड़ ली. समय आने पर रमला ने एक प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. घर में खुशियों की लहर आ गई.

इन सब में उल?ा कोई देख ही नहीं पाया कि रमला के पिता भी बूआ से प्रभावित होने लगे थे. वे उन के साथ सहज हासपरिहास करते रहते जिस से घर का माहौल खुशनुमा बना रहता. बूआ भी सुबहशाम चाय उन्हीं के साथ पीती. बच्ची के साथ बच्चे बने दोनों खेलने लगते तो समय का पता ही नहीं चलता. बूआ से ट्यूनिंग बैठने के बाद पिता ने एक बार भी अपने अकेलेपन को नहीं कोसा. अपनी गर्भावस्था और उस के बाद डिलिवरी पीरियड से बाहर निकलने पर रमला का ध्यान इस तरफ गया तो वह मुसकरा दी.

‘‘2 अधूरी तसवीरों को आपस में जोड़ दिया जाए तो?’’ एक रात बिटिया को थपकी देती रमला ने राघव से प्रश्न किया जिसे राघव बू?ा नहीं पाया.

‘‘बताओ न क्या होगा?’’ रमला अब शरारत पर उतर आई.

‘‘होगा क्या, एक पूरी तसवीर बन जाएगी और क्या?’’ राघव ने पत्नी की शरारत का मजा लेते हुए जवाब दिया.

‘‘तो क्यों न हम भी अपने घर की दोनों खंडित तसवीरों को जोड़ दें?’’ रमला ने फिर से शरारत से आंखें नचाईं.

‘‘यार, पहेलियां मत बु?ाओ. सीधेसीधे कहो ना जो कहना चाहती हो,’’ राघव ?ां?ाला गया.

‘‘मैं पापा और बूआ की बात कर रही हूं,’’ रमला ने हंसते हुए कहा तो आश्चर्य और खुशी के मारे राघव की आंखें चौड़ी हो गई.

‘‘कमाल है मैं क्यों नहीं देख पाया यह समाधान,’’ राघव ने रमला के हाथ पकड़ते हुए कहा. ‘‘तो अब देख लो,’’ रमला ने चहक कर कहा. रास्ता सू?ा जाए तो मंजिल मिलना आसान हो जाता है. रमला और राघव के प्रयासों से 2 अधूरी तसवीरें मिल कर एक हो गईं. कुछ दिन तो सब को उन के बीच का जोड़ दिखाई दिया, लेकिन बाद में सब सामान्य हो गया. रमला के पिता और राघव की बूआ कोर्ट मैरिज कर के एकसाथ रहने लगे. समय के साथ घिसता हर जोड़ एकसार हो ही जाता है.

क्यों जरूरी है मैंस्ट्रुअल हाइजीन

आप को जान कर हैरानी होगी कि भारत के सभी राज्यों में से सिर्फ 2 राज्य, गुजरात और मेघालय में ही 65% महिलाएं पीरियड प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती हैं, जबकि बाकी राज्यों में यह आंकड़ा काफी कम है. आधुनिकता और सूचनाओं के तमाम विकल्पों के बावजूद देश की तीनचौथाई से अधिक महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं करतीं और आज भी पीरियड्स के दौरान पुराने तौरतरीके अपनाती हैं, जिस का प्रमुख कारण अधिकांश लड़कियां व महिलाएं इस विषय पर बात करना भी शर्म की बात समझती हैं.

इस के कारण न सिर्फ संक्रमण का डर बना रहता है, बल्कि बांझपन व कैंसर का भी काफी खतरा रहता है. इसलिए जरूरत है जागरूकता की ताकि पीरियड्स के दौरान महिलाएं पीरियड प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर के खुद के हाइजीन का ध्यान रख सकें.

पीरियड्स के दौरान जब महिलाएं कपड़े का सब से ज्यादा इस्तेमाल करती हैं तो उस से योनि में इन्फैक्शन होने के चांसेज काफी ज्यादा हो जाते हैं, जिस का सीधा संबंध सर्वाइकल कैंसर से जुड़ा हुआ है. भारत में हर साल हजारों महिलाओं की यूटरस व सर्वाइकल कैंसर से मृत्यु हो जाती है.

इस में ज्यादा संख्या रूरल एरिया की महिलाओं की है, जो पीरियड्स के दौरान हाइजीन का जरा भी ध्यान नहीं रखती हैं. ये कैंसर सीधे तौर पर महिलाओं के जननांग से जुड़ा कैंसर होता है, जो सर्विक्स की कोशिकाओं को प्रभावित कर के कैंसर का कारण बनता है.

सस्ते नैपकिन खरीदना बड़ी समस्या

सभी जानते हैं कि महिलाएं अपने परिवार को प्राथमिकता देती हैं. फिर चाहे उन के खानपान की बात हो या फिर उन की हैल्थ की, इस चक्कर में वे खुद को पूरी तरह से इग्नोर कर देती हैं, जिस कारण उन में ढेरों कमियां रहने के साथसाथ पैसा बचाने के चक्कर में सस्ते नैपकिन या फिर घर में रखे कपड़े का ही इस्तेमाल कर लेती हैं. भले ही आप को ये नैपकिन कम दाम पर मिल जाते हैं, लेकिन इन में ब्लीचिंग सहित अनेक खतरनाक कैमिकल्स का इस्तेमाल होने के कारण ये ओवेरियन कैंसर के साथसाथ बांझपन का भी कारण बनते हैं.

अधिकांश महिलाएं नौनऔर्गेनिक सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं, जिस में एक पैड में 4 प्लास्टिक बैग जितनी प्लास्टिक होती है, जिस से आप अनुमान लगा सकते हैं कि ये महिलाओं की सेहत के लिए कितने हानिकारक होते हैं.

कैसे रखें हाइजीन का ध्यान

पैड्स का इस्तेमाल करने में न करें कंजूसी: अगर आप हर माह आने वाले पीरियड्स में कपड़े का इस्तेमाल कर रही हैं तो सावधान हो जाएं. क्योंकि इस में ढेरों जीवाणु होने के कारण ये आप की रिप्रोडक्टिव हैल्थ को खराब कर सकते हैं. इसलिए पीरियड्स के दौरान हमेशा अच्छे यानी और्गेनिक पैड्स का ही इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि ये नैचुरल होने के साथसाथ इन की सोखने की क्षमता भी काफी अच्छी होती है. साथ ही ये नैचुरल चीजों से बने होने के कारण यूरिन इनफैक्शन, कैंसर होने के चांसेज काफी कम हो जाते हैं. ये ज्यादा कंफर्टेबल होने के कारण वैजाइना की हैल्थ के लिए भी काफी होते हैं.

आप को इस बात का भी ध्यान रखना बहुत

जरूरी है कि चाहे आप के पीरियड्स का फ्लो ज्यादा न भी हो, तब भी हर 2-3 घंटे में पैडस बदलती रहें ताकि किसी भी तरह के इन्फैक्शन के चांसेज न रहें.

डेली बाथ लें: पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर में तरहतरह के बदलाव आते हैं. कभी पेट दर्द की समस्या तो कभी कमर दर्द की समस्या. ऐसे में कई बार लड़कियां व महिलाएं पीरियड्स के दौरान डेली बाथ लेना पूरी तरह से अवौइड कर देती हैं, जो योनि में इन्फैक्शन का कारण बन सकता है. ऐसे में खुद के हाइजीन का ध्यान रखते हुए इस दौरान डेली नहाने की आदत डालें ताकि खुद को इन्फैक्शन से बचा सकें.

टैंपून्स भी बैस्ट औप्शन: आप को अगर हैवी फ्लो आता है या फिर आप बारबार पैड्स बदलने के झंझट से बचना चाहती हैं तो टैंपून्स काफी सेफ व बैस्ट औप्शन है. इसे बस आराम से वैजाइना के अंदर इंसर्ट करने की जरूरत होगी. यह इजी टू यूज के साथसाथ काफी आरामदायक भी होता है. बस इस बात का ध्यान रखें कि 8 घंटे से ज्यादा एक टैंपून का इस्तेमाल न करें वरना यह इन्फैक्शन का कारण बन सकता है.

कौटन पैंटी पहनें: इन दिनों के लिए आप की पैंटी कौटन की व साफसुथरी होनी चाहिए क्योंकि अगर आप एक ही गंदी पैंटी को रोजाना इस्तेमाल करेंगी, तो इस से संक्रमण का खतरा काफी बढ़ जाता है, इसलिए अगर आप कौटन की पैंटी का इस्तेमाल करेंगी, तो यह कंफर्टेबल होने के साथसाथ स्किन फ्रैंडली भी होगी.

मेरे बाल बहुत औयली हैं, क्या मुझे तेल लगाना चाहिए?

सवाल-

मेरी उम्र 18 साल है. मेरे बाल बहुत औयली हैं. शैंपू करने के अगले ही दिन फिर औयली हो जाते हैं. मैं शैंपू करने से पहले बालों में नारियल तेल भी लगाती हूं. क्या मुझे तेल लगाना चाहिए?

जवाब-

आप की समस्या का कारण यह हो सकता है कि बालों में शैंपू करने से बालों का तेल अच्छी तरह न निकलता हो. बालों को पोषण देने के लिए तेल की जगह हेयर टौनिक लगाएं. इस से बाल हैल्दी रहेंगे और औयल कंट्रोल में रहेगा. औयल कंट्रोल करने के लिए अपने शैंपू में नीबू रस की कुछ बूंदें मिलाने के बाद उसे इस्तेमाल में लाएं. बाल धोने के बाद उन में स्कैल्प से 2-3 इंच छोड़ कर कंडीशनर लगाएं.

हममें से कई लड़कियों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि हम अपने बालों में शैंपू करते हैं और 2 दिन के भीतर ही बाल औयली औयली से हो जाते हैं. आप भी सोचती होंगी कि आखिर इसके पीछे की वजह क्या है. शायद यह एक ऐसा सवाल है जिसे हर लड़की खुद से जरुर करती होगी. इससे पहले की आप बाल औयली होने का उपाय ढूढें, अच्‍छा होगा कि आप इसके पीछे छुपे हुए कारण को जान लें. ताकि उसके लिये कुछ बेहतर उपाय सोंच सकें.

 हाथों का प्रयोग

कई लड़कियों की बुरी आदत होती है कि वे अपने बालों को अपने हाथों से सुलझाती और सहलाती हैं, जिससे हेयरफौल और औयली हेयर की समस्‍या हो जाती है. आप को नहीं याद रहता है कि आपने अपने हाथों से क्‍या काम किया है, हो सकता है कि आपने कोई औयली चीज अपने हाथ से छुई हो या फिर भोजन किया हो. इस कारण से बाल औयली हो जाते हैं.

तेल ग्रंथी

यह एक आम कारण है जिसमें तेल ग्रंथी से ज्‍यादा तेल रिसने लगता है. इसे सीबम के नाम से जाना जाता है. जब यह सीबम ज्‍यादा मात्रा में निकलता है तो यह सिर और बालों को औयली बना देता है. इस समस्‍या से छुटकारा पाने के लिये आप हर दूसरे दिन शैंपू कीजिये

सर्जरी से सुंदरता: फायदा या नुकसान

‘‘चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो खुदा की कसम लाजवाब हो…’’ अब यह हुस्न की लाजवाबी जब प्राकृतिक न हो कर आर्टिफिशियल यानी प्लास्टिक सर्जन की बदौलत हो तो भी कोई मलाल नहीं. हर युवती की चाह होती है कि उस के हुस्न का जादू हर किसी के सिर चढ़ कर बोले.

अगर चेहरे पर नाक तीखी हो, होंठ सैक्सी हों, गालों में अगर डिंपल्स हों, भौंहें धनुषाकार हों तो आप को देख कर आह भर उठेगा. कुल मिला कर नख से शिखर तक 100% ब्यूटी का लेबल आप ही के नाम हो सकता है. अगर कुछ ठीक नहीं है तो उसे भी मनमुताबिक कराया जा सकता है क्योंकि प्लास्टिक सर्जन के पास हर चीज का इलाज जो है.

मौडल, फिल्म कलाकारों के लिए तो प्लास्टिक सर्जरी एक ऐसा रामबाण बन गया है कि सालोंसाल आप के हुस्न का जादू बरकरार रहेगा. मगर हर महिला के मन में प्लास्टिक सर्जरी के विषय में कई प्रश्न घूमते हैं कि क्या यह हर एक के बस की बात है? खर्च कितना आता है? कहां करवानी चाहिए? इस के क्या साइड इफैक्ट्स होंगे? एक बार करवाने के बाद क्या इस हिस्से की प्लास्टिक सर्जरी दोबारा करवाने की भी जरूरत पड़ती है? एक कुशल प्लास्टिक सर्जन की क्या पहचान होती है? सर्जरी के बाद कैसी सावधानियां बरतने की जरूरत पड़ती है?

इन तमाम प्रश्नों के उत्तरों के लिए प्रीतम पुरा, दिल्ली स्थित ऐप्पलस्किन कौस्मैटिक ऐंड लेजर क्लीनिक की डयूमैटोलौजिस्ट डा. दीप्ति धवन से बात की. पेश हैं, उसी बातचीत के मुख्य अंश:

नोज सर्जरी करवाने का क्या उद्देश्य होता है किसकिस टाइप की नोज सर्जरी होती है और क्या यह 100% सेफ है?

नोज सर्जरी करवाने का उद्देश्य आमतौर पर यह होता है कि नोज को सही आकार दिया जा सके. इस के द्वारा हम बोन को सही शेप दे सकते हैं. अगर किसी की तोता आकार की नाक है तो हम उसे नोज सर्जरी के द्वारा उठा भी सकते हैं, जिस से पर्सनैलिटी में ग्रेस आने के साथसाथ कौन्फिडैंस भी बढ़ता है. इस में न तो ब्लड टैस्ट करवाने की जरूरत पड़ती है और न ही ऐनेस्थीसिया देने का ?ां?ाट. अगर किसी को सर्जरी का नाम सुन कर ज्यादा घबराहट होती है तो सिर्फ उस के कहने पर ही उसे ऐनेस्थीसिया देते हैं और वह भी सिर्फ नोज पोर्शन पर.

इस सर्जरी को करने में ज्यादा टाइम भी नहीं लगता. सिर्फ 30-40 मिनट में पूरा प्रोसीजर कंप्लीट हो जाता है. रिजल्ट के लिए भी लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता. सर्जरी के बाद अपनी नोज की शेप में तुरंत बदलाव देख सकते हैं.

इस सर्जरी का कोई साइड इफैक्ट नहीं होता और न ही खानपान में कोई परहेज, जो मन करे खाएं. बस, सर्जरी के बाद 7-8 दिनों तक उलटा नहीं लेटना होता है. 2-3 दिनों तक नोज पोर्शन पर हाथ नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इस से इन्फैक्शन का डर रहता है.

क्या नोज सर्जरी में किसी ऐक्ट्रैस या मौडल को कौपी किया जाता है?

अधिकांश युवतियां अपने माइंड में किसी ऐक्ट्रैस या मौडल की इमेज ले कर आती हैं कि हमें इस ऐक्ट्रैस जैसी नोज चाहिए, इस मौडल जैसे लिप्स चाहिए. मगर किसी के फेस के फीचर्स को कौपी कर के हम आप को अच्छा लुक दे सकते.

आज अधिकांश युवतियां प्रियंका चोपड़ा को कौपी करने की बात करती हैं. तब उन से कहा जाता है कि आप के फेस के अनुपात में ही आप की नाक की शेप हो ताकि आप का फेस भद्दा न लगे.

आजकल गर्ल्स में परमानैंट आईब्रोज का काफी क्रेज है? आप आईब्रोज सर्जरी के बारे में डिटेल में बताएं?

परमानैंट आईब्रोज करने के लिए 3 तरीकों का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार हैं:

सेमीपरमानैंट टैटू: इस में एक मशीन का यूज किया जाता है जिस में नीडल और डाई होती है. जिन युवतियों की आईब्रोज लाइट होती हैं या फिर ज्यादा गैप होता है उन्हें इस मशीन से डार्क और फिल करने की कोशिश की जाती है.

लेजर से: लेजर प्रक्रिया से जिन युवतियों के सैंटर में ज्यादा हेयर होते हैं उन्हें हटाया जाता है.

बीटोक्स: यह इंजैक्शन होता है जो आईब्रोज के अराउंड लगाया जाता है. यह आईब्रो को उठाने व शेप देने के लिए प्रयोग किया जाता है. मौडल्स, ऐक्ट्रैस इस का प्रयोग आईब्रोज को शेप देने के लिए करवाती हैं.

इस में रिजल्ट भी जल्दी मिलता है और इसे कितनी भी बार आईब्रोज पर अप्लाई करवा सकती हैं. इस का कोई साइड इफैक्ट भी नहीं होता.

आर्टिफिशियल ब्यूटी से क्या सच में नैचुरल लुक मिल सकता है?

बिलकुल आर्टिफिशियल ब्यूटी से नैचुरल लुक दे कर खूबसूरती में चार चांद लगाए जा सकते हैं. नैचुरल लुक देने के लिए हम हर चीज ओवर यानी ज्यादा नहीं करते. हम अंडरडू करने की ही कोशिश करते हैं ताकि उस में बाद में सुधार की गुंजाइश रहे क्योंकि अगर हम पहले ही ओवर कर देंगे तो उस में थोड़ेबहुत अपडाउन की भी गुंजाइश नहीं रहेगी, जिस से नैचुरल लुक नहीं मिल पाएगा. नैचुरल लुक आप तभी दे पाएंगे जब आप फेस के अनुपात को ध्यान में रखेंगे.

आप को नहीं लगता कि अनुष्का शर्मा की स्माइल पहले ज्यादा अच्छी थी, लेकिन जब से उन्होंने लिप्स की सर्जरी करवाई है तब से उन के लिप्स की क्यूटनैस के साथसाथ स्माइल पर भी इफैक्ट पड़ा?

उन की स्माइल पर इफैक्ट इसलिए पड़ा क्योंकि उनके फेस को देखते हुए लिप्स को शेप नहीं दी गई. उन का फेस छोटा है और उस पर बड़े लिप्स कर दिए गए जिस से उन का फेस भद्दा लगने लगा. लिप्स का साइज बड़ा होने से उन की क्यूटनैस भी खत्म हो गई है. अगर औलओवर फेस को देख कर लिप्स को शेप दी जाती तो शायद ऐसा परिणाम सामने नहीं आता.

स्मोकर्स लाइंस और फोरहैड लाइंस की सर्जरी करते समय किन बातों का खासतौर पर ध्यान रखा जाता है?

स्मोकर्स लाइंस उन्हें कहते हैं जो लिप्स के ऊपर पड़ती हैं. इस का एक कारण स्मोकिंग ज्यादा करना भी होता है. ये दिखने में अच्छी नहीं लगतीं. इन्हें हटाने के लिए हम बोटोक्स और फिलर का यूज करते हैं. स्मोकर्स लाइंस ठीक करने के लिए जो बोटोक्स इंजैक्शन दिया जाता है वह 6 महीने तक चल जाता है. उस के बाद दोबारा उस प्रक्रिया को दोहरा सकते हैं. बोटोक्स का इंजैक्शन मसल्स में लगाया जाता है. अगर इंजैक्शन लिप्स पर गलत ढंग से लगाया जाए तो बोलने, खानेपीने में दिक्कत आ सकती है. इस के लिए हम फिलर भी यूज करते हैं जो साल डेढ़ साल तक चल जाता है.

ठीक उसी तरह फोरहैड पर जो ?ार्रियां पड़ जाती हैं, डीप लाइंस दिखने लगती हैं उन के लिए हम बोटोक्स का यूज करना ही सही सम?ाते हैं क्योंकि उस से बैस्ट रिजल्ट मिलता है. हमें इस दौरान बिलकुल रोजन लुक देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस से फेस पर चालाकी वाले ऐक्सप्रैशन आने लगते हैं. लुक ऐसा देना चाहिए जिस से फेस ऐक्सप्रैशन जीरो न लगे.

क्या आप इस बात से सहमत हैं कि जो ब्यूटी आप को बाई बर्थ नहीं मिलती उसे डाक्टर्स सर्जरी के द्वारा दे सकते हैं?

जो ब्यूटी बाई बर्थ नहीं मिलती उसे डाक्टर्स सर्जरी के द्वारा दे सकते हैं और हों भी क्यों न जब कमियों को सर्जरी के द्वारा छिपाया जा सकता है. फिर क्यों सर्जरी करवाने में पीछे रहा जाए.

आज यंगस्टर्स में खुद के लुक को इंप्रूव करवाने वाली सर्जरी के प्रति ज्यादा क्रेज है क्योंकि आप जब तक प्रेजैंटेबल नहीं दिखेंगी तब तक सामने वाले को प्रभावित नहीं कर पाएंगी. कैरियर व इंटरव्यू के नजरिए से अगर आज देखा जाए तो सर्जरी करवाना जरूरी हो गया है.

यंगस्टर्स में इस के प्रति अवेयरनैस बढ़ी है. तभी तो वे इंटरव्यू से पहले इस तरह की सर्जरी को करवाना सही समझते हैं ताकि अपने लुक से फर्स्ट टाइम में ही इंप्रैशन जमा सकें.

पहले इतनी ऐडवांस तकनीक नहीं होती थी, जिस के कारण हमें मजबूरीवश कमियों को स्वीकार करना पड़ता था, लेकिन जब आज हमारे सामने ढेरों औप्शंस व सुविधाएं हैं तो फिर हम क्यों न उस का फायदा उठाएं ताकि कोई भी आप का लुक देख आप पर मर मिटे. हर किसी की तमन्ना भी आखिर यही होती है.

फेस के इन पार्ट पर की जाने वाली सर्जरी करते समय किस तकनीक का प्रयोग हैं:

फोरहैड: फोरहैड पर पड़ने वाली लाइंस को हटाने के लिए फिलर्स का यूज किया जाता है.

ओवर पड़ने वाली ऐक्सप्रैशन लाइंस को हटाने के लिए बोटोक्स का यूज किया जाता है.

नोज को शेप देने के लिए फिलर का यूज करना ही बैस्ट औप्शन है.

चीक्स टियर थौट को फिल करने के लिए ऐजिंग को कम करने के लिए फिलर्स का प्रयोग किया जाता है.

नोज फिट: जब  हम स्माइल करते हैं तो आंखों के  चारों ओर जो लाइनें पड़ती हैं उन्हें बोटोक्स द्वारा ही हटाया जाता है.

आई बैग्स: आंखों के नीचे हलकी सूजन या फिर जो उभरापन सा दिखता है उसे सर्जरी के द्वारा ही ठीक किया जाता है.

लिप्स: लिप्स को सही आकार में लाने यानी लिप शेपिंग के लिए फिलर्स का प्रयोग किया जाता है.

चिन: चिन छोटी है या फिर डबल चिन है तो उस के फैट को कम करने के लिए फिलर और बोटोक्स यूज किया जाता है.

क्या बिलकुल ब्लैक फेस को भी सर्जरी से फेयर बनाया जा सकता है इस सर्जरी का क्या नाम है तथा इस का क्या भविष्य में कोई साइड इफैक्ट पड़ता है?

ब्लैक फेस को 3 प्रक्रियाओं के द्वारा क्लीयर करने की कोशिश की जाती है जो इस प्रकार हैं:

आईवी इंजैक्शन: फेयर बनाने के लिए हम आईवी इंजैक्शन का प्रयोग करते हैं. इस के जरीए हम स्किन की 2-3 टोन ही अप करने की कोशिश करते हैं. यह ट्रीटमैंट सेमी परमानैंट रहता है. जब तक इंजैक्शन लगवाएंगे तब तक असर दिखेगा. इसे आप 3 से 6 महीनों में रिपीट करा कर अपनी स्किन को मैंटेन कर के रख सकती हैं.

स्किन लाइटनिंग: इस से स्किन का टैक्स्चर कोमल हो जाता है.

मैडिफेशियल: इस से स्किन का टैक्स्चर इंप्रूव होता है.

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अग्निपरीक्षा: क्या कामयाब हो पाया रंजीत

रंजीत 9 बजे कालेज के गेट के नजदीक बैठ जाता. कालेज परिसर में जाने के लिए विद्यार्थियों को पहचान पत्र दिखाना होता है, जो उस के पास नहीं था. जब वह कालेज में पढ़ता ही नहीं है तो उस का पहचान पत्र कैसे बनता? सारा दिन कालेज के आसपास लड़कियों के आगेपीछे घूमता.

रंजीत के 2 चेलेचपाटे भी उस के साथ रहते. रंजीत के मातापिता अमीर थे, जिस कारण उसे मुंह मांगा जेब खर्च मिल जाता था, जिसे वह रोब डालने के लिए अपने मित्रों पर खर्च करता था. कालेज के कुछ लड़केलड़कियां भी मौजमस्ती के लिए उस के दल में शामिल हो गए. बाइक पर सवार हो कर सारा दिन मटरगश्ती करता रंजीत एकदम स्वतंत्रत जीवन व्यतीत कर रहा था.

एक दिन रंजीत कालेज के बाहर बस स्टौप पर बैठा लड़कियों को देख रहा था. बस से उतरती एक लड़की पर उस की नजर अटक गई.

‘‘गुरू कहां गुम हो गए हो. एकटक कालेज के गेट को देखे जा रहे हो?’’

‘‘देख वह लड़की कालेज के अंदर गई है. गजब की सुंदर है. जरा उस का बदन तो देख, उस के आगे माशाअल्लाह अप्सरा भी पानी भरेगी.’’

‘‘गुरू कौन से वाली?’’ कालेज के गेट पर खड़ी लड़कियों के समूह को देख कर उस के चमचे ने पूछा.

‘‘वह लड़की सीधे कालेज के अंदर चली गई है. इस समूह में नहीं है. आज पहली बार यहां देखा है. आज कहीं नहीं जाना है जब तक वह कालेज से बाहर नहीं निकलती है. आज गेट पर ही धरना देना है.’’

‘‘जो हुक्म गुरू.’’

कुछ देर बाद कालेज में पढ़ाई से मन चुराने वाले लड़केलड़कियों का झुंड भी रंजीत के इर्दगिर्द जमा हो गया और रंजीत से बर्गर खाने की फरमाइश होने लगी.

‘‘देखो, बर्गर पार्टी तब होगी जब मुझे वह दिखेगी.’’

‘‘कौन?’’ एकसाथ कई स्वर बोले.

‘‘शायद मैं उसे पहली बार देख रहा हूं. तुम्हारी मदद चाहिए… उस से दोस्ती करनी है.’’

‘‘ठीक है गुरू. हम सब तुम्हारे साथ हैं,’’ सब कालेज के गेट की तरफ देखने लगे.

दोपहर के 2 बजे वह लड़की कालेज के गेट पर नजर आई.

‘‘देखो, उस लड़की को देखो. उस का नाम बताओ.’’

‘‘गुरू इस का नाम दिशा है और यह दूसरे वर्ष की छात्रा है.’’

‘‘पुरानी छात्रा है… परंतु मैं ने इसे पहली बार देखा है.’’

‘‘दिशा बहुत पढ़ाकू लड़की है. यह सुबह 8 बजे आ जाती है. आज थोड़ी देर से आई है इस कारण तुम्हें पहली बार नजर आई.’’

‘‘मुझे दिशा से मिलवा दो… दोस्ती करवा दो.’’

‘‘यह मुश्किल है. वह पढ़ने वाली लड़की है. हमारी तरह मौजमस्ती करने वाली नहीं है. तुम्हारे इतने मित्र बन चुके हैं… किसी के साथ

भी मौजमस्ती कर लो… दिशा तो हमें भी डांट देती है.’’

‘‘उस की अकड़ तो तोड़नी ही होगी. वह मेरे दिल में उतर चुकी है. उस की जगह कोई और लड़की नहीं ले सकती… मेरा काम तो तुम्हें करना ही होगा.’’

2 दिन बाद रंजीत के समूह की 2 लड़कियों ने उस से साफ कह दिया कि दिशा की उस में कोईर् रुचि नहीं है. वह सिर्फ पढ़ने वाले लड़कों से ही दोस्ती रखना चाहती है. वह रंजीत को गुंडा, मवाली समझती है जो सारा दिन कालेज के इर्दगिर्द आवारागर्दी करता रहता है. दिशा ने उन्हें भी रंजीत से दूर रहने की सलाह दी है.

यह सुन कर रंजीत आगबबूला हो गया कि ये दोनों लड़कियां उस के पैसों से मौजमस्ती

कर रही हैं और साथ दिशा का दे रही हैं. जब समूह की लड़कियों ने रंजीत का साथ नहीं दिया तब रंजीत ने एक दिन कालेज के गेट पर दिशा का रास्ता रोक कर मित्रता का प्रस्ताव रखा. दिशा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया और अपने रास्ते चल दी.

रंजीत ने हौसला नहीं छोड़ा. अगले दिन दोबारा दिशा का रास्ता रोक कर मित्रता का प्रस्ताव रखा. दिशा ने फिर प्रस्ताव ठुकरा दिया. 20 बार के असफल प्रयास के बाद एक दिन रंजीत ने दिशा का हाथ पकड़ लिया.

‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’ दिशा ने हाथ छुड़ाते हुए कहा.

‘‘मैं इतने दिनों से सिर्फ दोस्ती का हाथ मांग रहा हूं और तुम नखरे दिखा रही हो?’’

‘‘मैं तुम जैसे आवारा, गुंडे से कोई दोस्ती नहीं करना चाहती हूं. मेरा हाथ छोड़ो.’’

दिशा और रंजीत के बीच बहस देख कर कालेज के बहुत छात्रछात्राएं एकत्रित हो गए. कुछ प्रोफैसर भी बीचबचाव करने लगे. भीड़ देख कर रंजीत ने दिशा का हाथ छोड़ दिया.

‘‘खटाक… खटाक,’’ हाथ छूटते ही दिशा ने खींच कर 2 करारे थप्पड़ रंजीत के गाल पर जड़ दिए और फिर तेजी से अपने घर चल दी.

प्रोफैसरों ने रंजीत को चेतावनी दी कि आइंदा कालेज परिसर के पास नजर नहीं आना चाहिए वरना पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी जाएगी.

लुटेपिटे जुआरी की तरह रंजीत घर लौट आया. उस दिन के बाद कालेज के छात्रों ने उस का समूह छोड़ दिया. अब रंजीत अकेला अपने 2 चेलों के संग कालेज से थोड़ी दूर चहलकदमी करता रहता. अमीर परिवार के बिगड़े लड़के रंजीत ने इस किस्से को अपनी तौहीन समझा और फिर बदले की भावना से जलने लगा. कालेज के छात्रों से उस का संपर्क छूट गया. कालेज के गेट पर रंजीत पर कड़ी निगरानी रखी जाने लगी.

रंजीत के मन में दिशा रचबस गई थी. उस के प्रेम और मित्रता का प्रस्ताव दिशा ने ठुकरा दिया था और सब के सामने 2 थप्पड़ भी रसीद कर दिए थे. बदले की भावना ने उस के विवेक को जला दिया.

रंजीत ने एक दिन अपने चेलों को अपनी योजना बताई, ‘‘कान खोल कर सुनो… उस लौंडिया को उठाना है.’’

रंजीत की योजना को सुन कर दोनों चेले सन्न हो गए. बड़ी मुश्किल से गला साफ कर के कहने लगे, ‘‘गुरू, आप क्या कह रहे हो?’’

‘‘उसे जबरदस्ती उठाना है?’’

‘‘बहुत खतरनाक योजना है. तुम पहले से ही कालेज के छात्रों और प्रोफैसरों की नजरों में हो, सीधेसीधे समझो गुरू कि दिशा को उठाने

का मतलब है जेल. सब पुलिस को तुम्हारा नाम बता देंगे.’’

‘‘मुझे कोईर् फर्क नहीं पड़ता… उसे कहीं का नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘गुरू बात को समझो… इस योजना को छोड़ो. कुछ और सोचो.’’

‘‘तुम मेरा साथ दोगे?’’

‘‘नहीं,’’ दोनों कह कर भाग गए.

‘‘नामर्द हैं दोनों. फालतू में दोनों को खिलातापिलाता रहा… किसी काम नहीं आए. कोई बात नहीं. इस काम को मैं अकेला कर लूंगा.’’

अब रंजीत अकेला ही दिशा को उठाने की योजना बनाने लगा. उस ने अपना

हुलिया बदला, दाढ़ी बढ़ा ली और दिशा का पीछा कर के उस की दिनचर्या की पूरी खबर लेने के बाद उस के अपहरण की योजना बनाई.

दिशा जिस जगह रहती थी वह दोपहर के समय थोड़ी सुनसान रहती थी. कालेज से घर आने की बस पकड़ी. बस स्टौप से पैदल घर जा रही थी. रंजीत आज कार में था. रंजीत ने कार उस के आगे अचानक रोकी. दिशा घबरा गई. दिशा साइड से कार के पार जाने की कोशिश करने लगी. रंजीत ने फुरती से क्लोरोफार्म में डूबा रूमाल दिशा के मुंह पर रखा. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती, रंजीत ने कार का पिछला दरवाजा खोल कर उसे कार के अंदर धकेला.

क्लोरोफार्म की अधिक मात्रा होने के कारण वह कोई प्रतिरोध नहीं कर पाई. कार की पिछली सीट पर बेसुध पड़ गई. रंजीत ने कार को वहां से तेजी से भगाया.

शहर से दूर अपने पैतृक गांव के मकान के पास रंजीत ने कार रोकी. गांव में एक बड़ा मकान था, जिस की देखभाल चमन करता था. चमन अपनी पत्नी चंपा और 2 बच्चों के संग मकान के पीछे वाले हिस्से के एक कमरे में रहता था. चमन बहुत भरोसेमंद और पुराना नौकर था. मकान एक तरह से छोटा फार्महाउस था.

अपने पैतृक मकान पहुंच कर रंजीत ने हौर्न बजाया, तो चमन ने मकान का गेट खोला. रंजीत ने कार को मकान के अंदर पार्क किया और फिर चमन की मदद से दिशा को कमरे में लिटाया. दिशा अभी भी बेसुध थी. रंजीत ने कमरे को बाहर से बंद कर दिया और चमन को सख्त हिदायत दी कि दिशा को मकान से बाहर नहीं जाने देना है और फिर दूसरे कमरे में जा कर आराम करने लगा.

रंजीत कमरे में अपने बिस्तर पर लेटा हुआ आगे की रणनीति बना रहा था.

दिशा को कमरे में बंद करता देख चंपा स्थिति को भांप चमन से पूछने लगी, ‘‘यह लड़की कौन है?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘लड़की बेहोश लग रही है.’’

‘‘हां, लग तो बेहोश ही रही है.’’

‘‘सुनो मुझे हालात सही नहीं लग रहे हैं.’’

‘‘हां चंपा, कोई बात तो अवश्य है… खास नजर रखने को कहा है कि लड़की मकान से बाहर नहीं जाने पाए.’’

‘‘कुछ उलटासीधा तो नहीं कर दिया इस लड़की के साथ?’’

‘‘लगता तो नहीं है… अभी तक तो लड़की के कपड़े सहीसलामत हैं… लड़की होश में आए तब पता चले.’’

चमन के साथ बात करने के बाद चंपा कमरे के बाहर बैठी सब्जी काटती रही.

फिर साफसफाई में लग गई. लेकिन दिशा को क्लोरोफार्म की अधिक मात्रा दी गई थी, जिस कारण वह शाम तक बेसुध रही.

थोड़ी देर बाद रंजीत कमरे से बाहर आया और चंपा को कमरे के बाहर डेरा जमाए देख कर बोला, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो? अपने कमरे में जाओ… यहां मैं हूं… कुछ चाहिए होगा तब मैं आवाज दे दूंगा.’’

‘‘साहबजी, यह लड़की कौन है और कमरे को बाहर से बंद क्यों कर दिया है?’’

चंपा के इस प्रश्न से रंजीत का माथा भन्ना उठा और फिर गुस्से से चंपा पर बरस पड़ा, ‘‘देखो, तुम अपने काम से मतलब रखो… जिस काम के लिए तुम्हें नौकरी पर रखा है वह करो. मेरे से उलझने की जरूरत नहीं है.’’

रंजीत को गुस्से में देख कर चंपा खामोश रही. चमन उसे अपने कमरे में ले गया.

‘‘चंपा, तुम साहब से क्यों उलझ रही हो?’’ चमन बोला.

‘‘सुनो, यह गड़बड़ मामला है…मुझे पक्का शक है कि इस लड़की को जबरदस्ती उठा कर लाया गया है. लड़की बेहोश है… मुझे साहबजी के लक्षण सही नहीं लग रहे हैं.’’

‘‘चंपा हम नौकर हैं. हमें अपने दायरे में रह कर साहब लोगों से बात करनी चाहिए.’’

‘‘फिर भी एक लड़की की इज्जत का सवाल है. अगर इस लड़की के साथ साहब ने जबरदस्ती की तब मैं सहन नहीं करूंगी.’’

‘‘अगर वह लड़की अपनी मरजी से आई हो तब?’’

‘‘वह लड़की अपनी मरजी से नहीं आई है. अगर अपनी मरजी से आई होती तब वह बेहोश नहीं होती और कमरा भी बाहर से बंद नहीं होता. वह साहब के साथ हंसबोल रही होती.’’

चंपा की बात सुन कर चमन चुप हो गया कि उस की बात में वजन है. लेकिन वह एक नौकर है. उस के हाथ बंधे हुए हैं. वह मालिक के विरुद्ध नहीं जा सकता.

शाम के समय चमन रंजीत से रात के खाने का पूछने लगा, ‘‘साहबजी, रात को खाने में क्या लेंगे?’’

‘‘दालचावल और रोटी बना देना.’’

रात 8 बजे चमन रंजीत को खाना देने गया तो पूछा, ‘‘साहबजी, वह लड़की क्या खाएगी?’’

‘‘तुम मियांबीवी को उस की बहुत चिंता सता रही है… जब मैं ने कह दिया है कि उसे मैं देख लूंगा…’’

रंजीत ने अभी अपना वाक्य पूरा नहीं किया था कि साथ वाले कमरे से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. दिशा को होश आ गया था. स्वयं को अनजान जगह देख कर परेशान हो गई. कमरे का दरवाजा बाहर से बंद था. रंजीत ने तुरंत गोली की रफ्तार से उठ कर दरवाजा खोला.

‘‘कौन?’’ दिशा के इस प्रश्न पर रंजीत की क्रूर हंसी गूंज उठी.

रंजीत की हंसी सुन कर चंपा भी दौड़ी चली आई.

‘‘दिशा मुझे पहचाना नहीं… अपने रंजीत को नहीं पहचाना?’’

रंजीत नाम सुन कर दिशा चौंक गई. 5 घंटे बाद वह होश में आईर् थी. रंजीत को सामने देख वह एकदम भयभीत हो उठी. उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलकने लगीं. रंजीत ने दिशा को अपनी बांहों में भर कर उस के गालों को चूमने के लिए होंठ आगे किए कि तभी चुंबन लेने से पहले एक हाथ उस के होंठों और दिशा के होंठों के बीच आ गया.

उधर दिशा जब घर नहीं आई तब उस के परिवार वाले चिंतित हो गए. दिशा के मित्रों से संपर्क किया. सभी मित्रों ने एक ही बात बताई कि दिशा तो दोपहर को ही कालेज से घर रवाना हो गईर् थी. दिशा का परिवार सकते में आ गया. दिशा कहां जा सकती है…वह तो कालेज से सीधी घर आती है…अब तो रात के 9 बज रहे हैं. अंत में थाने जाना ही उचित समझा.

रंजीत के होंठों और दिशा के होंठों के बीच चंपा का हाथ था, ‘‘साहबजी, जुल्म मत कीजिए.’’

‘‘तू आगे से हट जा.’’

‘‘जबरदस्ती नहीं साहबजी, यदि लड़की हां कह देती है

तब मैं यहां से चली जाऊंगी,’’ चंपा दृढ़ता से दिशा को पकड़ कर अपने पीछे कर सुरक्षा कवच बन गई.

दिशा की गुमशुदा होने की रिपोर्ट पुलिस ने लिख ली. लेकिन रात के समय कोई काररवाई नहीं हुई. थाने में तैनात पुलिस अधिकारी ने कहा कि यदि कोई फोन आए तब तुरंत सूचित करें.

रंजीत की आंखों में खून उतर आया, ‘‘दिशा के आगे से हट जा, नहीं तो अंजाम बुरा होगा.’’

‘‘साहबजी, हम ने आप का नमक खाया है, इसलिए आप से विनती करती हूं कि दिशा को छोड़ दो.’’

‘‘तू ऐसे नहीं मानेगी,’’ रंजीत ने चंपा को पकड़ कर दिशा के आगे से हटाने की कोशिश की.

कोशिश को असफल बनाने के लिए चंपा ने दिशा को मजबूती से पकड़ लिया. रंजीत चंपा से उलझा तब चंपा ने अपनी हैसियत को भूल कर रंजीत को एक लात जमा दी. हालांकि चंपा दुबलीपतली छोटे कद की महिला थी, लेकिन उस की लात का प्रहार जोर से लगा और रंजीत का संतुलन बिगड़ गया. असंतुलन के कारण रंजीत लड़खड़ा गया.  लड़खड़ाते रंजीत को चमन ने संभाला.

‘‘साहबजी, आप दिशा को छोड़ दीजिए. आप को यह काम शोभा नहीं देता. हम 20 सालों से आप के नौकर हैं, लेकिन ऐसा काम बड़े साहबजी ने भी कभी नहीं किया.’’

दिशा के पक्ष में चमन और चंपा को देख रंजीत पीछे हट गया और फिर अपने कमरे में चला गया. जाते हुए चमन और चंपा को धमका गया, ‘‘दिशा को इस मकान से भागने नहीं देना है वरना तुम दोनों को भून दूंगा.’’

पूरी रात दिशा का परिवार सो नहीं सका. कालेज की सहेलियों के घर जा कर जानकारी जुटाते रहे. जब दोपहर को रोज की तरह कालेज से घर के लिए निकली तब वह कहां जा सकती है. इस प्रश्न का कोईर् उत्तर नहीं था. दिशा का फोन भी बंद या कवरेज क्षेत्र से बाहर आ रहा था, इसलिए संपर्क नहीं हो पा रहा था.

‘‘दिशा कुछ खा लो, दालचावल बने हैं.’’

‘‘नहीं खाया जाएगा… मुझे बहुत डर लग रहा है,’’ दिशा बुरी तरह डरी हुई थी.

डरी दिशा को चंपा अपने कमरे में ले गई. रंजीत चंपा और चमन के दिशा के बीच आने पर क्षुब्ध था, लेकिन बेबस था.

दिशा की एक सहेली ने रंजीत का जिक्र किया कि वह उसे परेशान करता था, लेकिन उस के पास रंजीत का कोईर् नंबर या घर का पता नहीं है.

पूरी रात दिशा भयभीत रही. चंपा और चमन दिशा को दिलासा देते रहे, लेकिन दिशा आशंकित रही. अगली सुबह दिशा का परिवार कालेज पहुंचा. कालेज के छात्रों और प्रोफैसरों से रंजीत के विषय में मालूम हुआ. रंजीत के समूह से जुड़े छात्रों से रंजीत के 2 चेलों का पता चला, जिन्होंने रंजीत का फोन नंबर और घर का पता दे दिया.

दिशा के गायब होने पर कालेज के छात्र एकत्रित हो कर मार्च निकाल कर पुलिस स्टेशन तक गए. छात्रों का समूह देख कर पुलिस ने तुरंत काररवाई शुरू कर दी. पुलिस के जांच दल ने पहले बस स्टौप से दिशा के घर तक जांच आरंभ की. दिशा का मोबाइल फोन गली की नाली में गिरा मिला.

जब रंजीत ने कार दिशा के आगे अचानक रोकी थी और क्लोरोफार्म लगा रूमाल दिशा के मुंह पर रखा तब फोन दिशा के हाथ से छूट कर नाली में गिर गया था और पानी में गिरने के कारण खराब हो गया, जिस कारण दिशा से संपर्क नहीं हो सका. पुलिस दल फिर रंजीत के घर पहुंचा.

अमीर मांबाप को नहीं मालूम था कि रंजीत कल से घर नहीं आया. पुलिस को देख कर रंजीत का परिवार सकते में आ गया कि रंजीत कहां है और घर पर एक कार भी नहीं है. कोठी में 4 कारें हैं. उन में से एक कार नहीं है. रंजीत सुबह ही घर से निकल जाता था. उस के मांबाप ने यह सोचा कि रंजीत रोज की तरह गया होगा. अब दिशा के गायब होने पर शक की सूई रंजीत पर घूम रही थी.

पुलिस ने रंजीत के चेलों से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती से उन्होंने रंजीत

के बारे में बता दिया कि रंजीत दिशा का अपहरण कर सकता है, लेकिन वे दोनों इस में शामिल नहीं हैं. पुलिस ने रंजीत के चेलों से फोन लगवाया. रंजीत ने फोन उठाया तो चेलों ने रोते हुए रंजीत को हालात से अवगत कराया. रंजीत को यह उम्मीद नहीं थी कि एक दिन में पुलिस केस बन जाएगा और ये दोनों भी 2 मिनट में पुलिस के सामने सब बक देंगे.

पुलिस ने दिशा के मांबाप और रंजीत के चेलों के साथ रंजीत के गांव के पुश्तैनी मकान पर दबिश की. रंजीत कुछ नहीं बोला. उस की योजना तो पिछले दिन ही चंपा और चमन ने असफल कर दी थी. पुलिस ने रंजीत को हिरासत में लिया.

रंजीत के मांबाप उस की हरकत पर शर्मिंदा थे. उन्होंने पुलिस से केस रफादफा करने की पेशकश की, पर पुलिस ने असमर्थता व्यक्त की.

दिशा अपनी मां से मिल कर फूटफूट कर रो पड़ी. चंपा ने दिशा के मातापिता को उस के सकुशल होने का यकीन दिलाया.

दिशा की मां दिशा के पिता को एक कोने में ले जा कर कहने लगीं कि लड़की एक रात अनजान लड़के के घर रही, समाज और लोग तरहतरह की बातें करेंगे. हम किसकिस को जवाब देते फिरेंगे. दिशा का पिता निरुत्तर था.

यह बात चंपा के कान में पड़ गई, ‘‘आप कैसे मांबाप हैं जो अपनी लड़की पर शक कर रहे हैं? जब मैं उस के संपूर्ण सुरक्षित और सकुशल होने की गारंटी दे रही हूं तब आप किस बात की चिंता कर रहे हैं?’’

‘‘तुम समझ नहीं रही हो, हम ने समाज में रहना है… लोग तरहतरह की बातें बनाएंगे.’’

‘‘जब मैं ने दिशा को सुरक्षित रखा है तब आप चिंता क्यों कर रहे हैं? लोगों का काम तो तमाशा देखना है. लड़की कालेज जाती है, वहां लड़के भी पढ़ते हैं. लोग उलटासीधा कुछ भी

कह सकते हैं. जब लोग सीता पर उंगली उठा सकते हैं तो किसी के भी बारे में कुछ भी कह सकते हैं… जब कुछ गलत हुआ ही नहीं है तब क्यों घबरा रहे हो?’’ कह चंपा बड़बड़ाती हुई वहां से चली गई.

पुलिस ने चंपा की बातें सुन ली थीं. अत: बोली, ‘‘अब चलो वापस…आप की लड़की सहीसलामत सुरक्षित मिल गई है. चंपा की बात में दम है. खुद को देखो, समाज को नहीं.’’

फिर पुलिस की जीप में बैठ सभी चले गए. दिशा स्थितियों का अवलोकन करने लगी कि सीता से ले कर दिशा तक लोगों की मानसिकता नहीं बदली है. कब तक अग्नि परीक्षा देनी होगी? धर्म की गलत बातों से निकम्मे हो चुके समाज से और उम्मीद ही क्या की जा सकती है?

जीवित रहना और उन्नति- स्तन कैंसर के शारीरिक और भावनात्मक प्रभावों को हराने की कहानी

किसी रोगी को कैंसर होने का पता चलने पर सबसे पहले मन में यही सवाल आता है कि ‘जीवन का कितना समय बाकी है? क्या मु?ो अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने का पर्याप्त समय मिल पाएगा? अपने परिवार के साथ और कितने दिन रह पाऊंगी? ’

ब्रेस्ट कैंसर से महिलाओं का केवल स्वास्थ्य ही प्रभावित नहीं होता बल्कि इसका असर उनके स्वाभिमान, दैनिक जीवन और प्रतिष्ठा पर भी होता है. सामान्य व्यवस्था में रोगी नसों के माध्यम से (इंट्रावेनस) उपचार लेने के लिए भीड़-भाड़ वाले भर्ती वार्ड में काफी समय बिताती हैं. समय लेने वाली यह प्रक्रिया रोगियों के रोजमर्रा के जीवन को मुश्किल बना देती है. कुछ रोगियों को नस में दवा चढ़ाने (इन्फ्यूजन) के लिए काफी लंबी दूरी तय करके आना पड़ता है. ब्रेस्ट कैंसर के रोगी के लिए समय का बहुत महत्त्व होता है क्योंकि उसे काम, परिवार और उपचार के बीच भाग-दौड़ करनी पड़ती है.

स्वास्थ्य देखभाल में नई खोजों का लक्ष्य जीवन को सहज और सरल बनाना है. हाल के वर्षों में अनेक नए-नए अणुओं (मॉलिक्यूल्स) को स्वीकृति मिली है जिन्हें जैविक उपचार पद्धतियां कहते हैं. इनका प्रयोग ब्रेस्ट कैंसर की शुरुआती और शरीर के दूसरे अंगों में फैल चुके (मेटास्टैटिक), दोनों अवस्था के लिए किया जा सकता है. इन उपचार-पद्धतियों से इलाज की गुणवत्ता बढ़ गई है और लंबे समय तक जीवित रहने में मदद मिली है.

[1] दवा देने में नवाचार के कारण रोगी अब मिनटों में उपचार प्राप्त कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, फेस्गो (पर्ट्युजुमैब, ट्रेस्ट्युजुमैब और हेल्युरोनीडेज) जो एक स्वीकृत नुसखा औषधि (प्रेस्क्रिप्तिओन्क मेडिसिन) है, अध:त्वचीय (त्वचा में) सूई के रूप में जांघ की त्वचा के नीचे दिया जा सकता है. [2] उपचार के इन नजरियों से एक मां को अपने बच्चों के साथ खूबसूरत पल तैयार करने में, महिलाओं को अपने शौक पूरे करने और कॅरियर में प्रगति करने तथा परिवारों को एक-साथ अपने खास अवसरों का जश्न मनाने में मदद मिल सकती है.

वेदांत, अहमदाबाद के परामर्शी कैंसर विशेषज्ञ और हीमैटोऑन्कोलॉजी क्लिनिक के निदेशक, डॉ. चिराग देसाई ने कहा कि परंपरागत कीमोथेरैपी के दौरान ट्रेस्ट्युजुमैब और पर्ट्युजुमैब चढ़ाने ने लिए कम-से-कम

1-1 घंटा समय लगता है. लेकिन फेस्गो द्वारा दोनों मोनोक्लोनल ऐंटीबॉडीज को आधे घंटे के भीतर में सूई से त्वचा के नीचे दिया जा सकता है. इस प्रकार इससे रोगी के समय की बचत होती है और उसे कम चीरा लगता है.

भर्ती वार्ड में रहना, जहां अलग-अलग तरह के कैंसर के लिए अनेक रोगियों का उपचार हो रहा हो, सदमे से भरा हो सकता है. इसलिए फेस्गो जैसे नवीन उपचार भर्ती वार्ड में रहने के समय और सदमे में कमी करने में सहायक हो सकते हैं.

41 वर्षीय हितेश्वरीबा जडेजा को शरीर के दूसरे अंगों तक फैल चुके ब्रेस्ट कैंसर (मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर) के बारे में पता चला तो पूरी उपचार अवधि के दौरान हर समय और हर जगह डर उन पर हावी रहा था. लेकिन फेस्गो के चलते उन्हें समय मिल गया है. वे कहती हैं, ‘‘मैं अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय बिता सकती हूं क्योंकि मु?ो अब पूरा दिन अस्पताल में नहीं बिताना पड़ता है. फेस्गो देने में लगभग 20 से 30 मिनट का समय लगता है. पहले मु?ो लगभग एक हफ्ते तक भूख नहीं लगती थी. लेकिन फेस्गो से मु?ो काफी मदद मिली है.’’

डॉ. देसाई ने कहा कि हितेश्वरीबा के कैंसर में लगभग 2 वर्षों से कोई वृद्धि नहीं हुई है और वे एक अच्छा जीवन जी रही हैं. लेकिन शुरुआत में यह भरोसा करना मुश्किल था, उन्होंने उपचार लेने से इनकार कर दिया था. उन्हें मौत का डर था. उन्हें आगे उपचार कराने के लिए प्रोत्साहित करने में मु?ो कुछ समय लगा.

जिन महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होने का पता चलता है, वे सदमे का शिकार हो जाती हैं. लोगों को न चाहते हुए भी गहरे डर का सामना करना पड़ता है. उन्हें सामने मौत खड़ी दिखने लगती है और वे भविष्य के बारे में जबरदस्त अनिश्चितता में उल?ा जाती हैं. उपचार कराने के बाद हितेश्वरीबा को जीने का एक नया उत्साह मिला है और वे जामनगर में अपने परिवार के साथ रह रही हैं.

हितेश्वरीबा की तरह ही अनेक रोगी उम्मीद खो देने के कारण उपचार नहीं कराना चाहती हैं. इसलिए कैंसर के उपचार में परामर्श एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है. हैदराबाद की 50 वर्षीय माधवी वाराल्वर परामर्शदाताओं की वकालत करती हैं. उनके मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर की पहचान एक संयोग से हुई थी. उनके डॉक्टर ने हर जरूरी ध्यान और सहायता दी, लेकिन उन्हें लगता है कि परामर्शदाता कैंसर रोगियों के डर को दूर करने में और ज्यादा मददगार हो सकते हैं.

उन्होेंने कहा कि पूरे दिन कई-कई रोगियों को हैंडल करने के कारण डॉक्टरों पर भी बहुत ज्यादा बो?ा रहता है. इसलिए रोगियों को सलाह देने, उन्हें साइड इफेक्ट की जानकारी देने और इलाज के प्रति उनके मन में भरोसा जगाने के लिए एक सपोर्ट ग्रुप होना चाहिए.

डॉ. देसाई का भी कुछ ऐसा ही मानना है. उनके अनुसार हमारे हॉस्पिटल में परामर्शदाता हैं, लेकिन उन्हें  कैंसर रोगियों की सहायता करने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया है. फिर भी साइको-ऑन्कोलॉजी नामक एक नई शाखा विकसित हो रही है.

ब्रेस्ट कैंसर के रोगियों के लिए समय उनका महत्त्वपूर्ण और मूल्यवान साथी होता है. खासकर जब वे बीमारी के डायग्नोसिस, उपचार और स्वास्थ्य लाभ के कठिन दौर से गुजरते हैं. भले ही उनके लिए समय मायने रखता है, अत्याधुनिक चिकित्सीय और सहयोगी हस्तक्षेपों से रोगियों को उनकी भावनात्मक सेहत और निजी ग्रोथ के लिए अवसर प्राप्त हो सकता है. ब्रेस्ट कैंसर का सदमा ?ोलना भारी लग सकता है. फिर भी इसी में उम्मीद, हौसला और वापसी करने तथा बीमारी से रिकवर होने के लिए मानवीय भावना की मजबूत क्षमता का प्रमाण भी छिपा होता है. उपचार में इन प्रगति की बदौलत आशा- जीवित रहने वालों के लिए जीवन की बेहतर गुणवत्ता के लिए उम्मीद की किरण हमेशा बनी रहती है.

 

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