Relationship Tips : कहीं आप का रिश्ता भी तो नहीं बदल गया ऐंबिवेलैंट रिलेशनशिप में ?

Relationship Tips :  जिंदगी की भागादौड़ में कब हमारे रिश्तों में दरार आने लगती है, हमें पता ही नहीं चलता. छोटीछोटी बातें राई का पहाड़ बनने लगती हैं. कभी पार्टनर एकदूसरे पर प्रेम और लगाव न्यौछावर करते हैं, तो कभी पलभर में ही पार्टनर की शक्ल तक देखना नापसंद कर देते हैं.

ऐसे में रिश्ता खुशियों भरा कम व तनावपूर्ण ज्यादा होता जाता है जोकि न सिर्फ शारारिक बल्कि मानसिक रूप से भी पीड़ादायक होती है. इस परिस्थिति का एक कारण रिश्ते में विश्वास की कमी होना भी है. ऐसा रिश्ता सिर्फ पतिपत्नी का ही नहीं बल्कि किसी के साथ भी हो सकता है फिर चाहे भाई-बहन, माता पिता, दोस्त कोई भी हो.

बात यदि लाइफ पार्टनर की करें तो यह जीवनभर के लिए कड़वा अनुभव होता है क्योंकि यह एक दीर्घकालिक संबंध है. इस रिश्ते में 2 लोग एकदूसरे से गहराई से जुड़े होते हैं, जिन के बीच न सिर्फ प्रेम बल्कि टकराव, संघर्ष जैसी भावनाएं भी मौजूद होती हैं. लेकिन जब प्रेम कम और टकराव रिश्ते में घर करने लगें तो समझ लें की रिश्ता ऐंबिवेलैंट रिलेशनशिप की तरफ जा रहा है, जिसे समय रहते समझ लिया जाए तो रिश्ता टूटने से बचाया जा सकता है.

ऐंबिवेलैंट रिलेशनशिप एक ऐसा रिश्ता है, जिस में व्यक्ति के मन में एक ही व्यक्ति के प्रति मिश्रित भावनाएं होती हैं. जैसेकि पलभर में ही प्रेम और घृणा का एकसाथ होना या कभी पार्टनर की और आकर्षित होना तो दूसरे ही पल उसे अस्वीकृत करना.

कारण को समझें :

● पार्टनर के बीच में संवाद की कमी का होना जिस कारण एकदूसरे की बातों को सही से समझ नहीं पाते.

● दोनों की सोच और प्राथमिकताएं एकदूसरे सेअलग होना.

● पार्टनर से अत्यधिक अपेक्षा रखना.

● बचपन की परवरिश में अस्थिर स्नेह या असुरक्षित परवरिश का प्रभाव का होना.

प्रभाव :

● अत्यधिक मानसिक तनाव, चिंता और डिप्रेशन जैसी स्थिति की संभावना बढ़ जाती है.

● रिश्ते में विश्वास व भावनात्मक रूप से जुड़ाव कम होना.

● रिश्ते से बाहर निकलने के बारे में सोचना लेकिन पार्टनर को खोने का डर भी साथ में बने रहना.

समाधान :

● गुस्सा शांत होने पर एकदूसरे से खुल कर बात करें.

● अत्यधिक अपेक्षाओं को हावी न होने दें. रिश्ते में सामंजस्य लाने का प्रयास करें.

● ममता और वात्सल्य बनाए रखें.

● एकदूसरे की खामियों को नजरअंदाज करने की आदत डालें.

● काउंसलिंग या थेरैपी की सहायता लें.

● आत्मविश्वास में कमी न आने दें.

● एक-मदूसरे के साथ क्‍वालिटी टाइम बिताएं.

● एकदूसरे के प्रति सम्मान की भावना बनाए रखें.

Solo Trip पर निकले हैं तो ब्यूटीफुल भी दिखें

Solo Trip : आमतौर पर सोलो ट्रैवलिंग का यह मतलब निकाला जाता है कि अकेले सैरसपाटे पर निकलना, अलगअलग शहरों की खूबसूरती को देखना, वेशभूषा, खानपान से रूबरू होना आदि. पर क्या सोलो ट्रिप सिर्फ बाहरी सुख का पर्याय है या खुद की खोज का एक जरीया?

उत्तर इस बात में छिपा है कि आखिर इंसान सोलो ट्रिप क्यों करता है? जब रोजमर्रा की जिंदगी में बोरियत महसूस होने लगती हो या कहें कि जब इंसान खुद में कशमकश कर रहा होता है, जब इंसान तनाव में हो और जिंदगी की रुकी हुई गाड़ी को ऐक्सिलेटर पर लाना चाहता है, तो ऐसे में सोलो ट्रिप एक इंसान को उस के अंतरात्मा से जुड़ने में मदद करता है.

सोलो ट्रिप यानी खुद की खोज में निकलना, अपनेआप के साथ वक्त गुजारना, खुद को समझना, दुनिया को अपने नजरिए से देखना और नईनई जगहों की खूबसूरती को ऐक्सप्लोर करना. लेकिन इस सफर में अकसर ऐसा होता है कि हम अपनी खुद की खूबसूरती के साथ कंप्रोमाइज कर बैठते हैं. यह सोच कर कि छोड़ो न यार यह स्किन केयर, अकेले घूमने जा रहे हैं तो कौन देख रहा है हमें? लेकिन क्या यह सफर सिर्फ बाहरी दुनिया को देखने का है या खुद को बेहतर और कौन्फिडेंट फील कराने का भी?

ब्यूटी = कौन्फिडेंस

सोलो ट्रिप पर होने का मतलब है इंसान खुद पर फोकस करना चाहता है और जब आप खुद अच्छे और फ्रेश और सुंदर दिखते हैं, तो आप के अंदर कौन्फिडेंस आता है जिस से आपको पौजिटिव वाइव्स मिलती है.

सुंदर दिखना केवल दूसरों के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए भी जरूरी है. पहाड़ों की सैर पर निकले हों या फिर रेगिस्तान की रेत में, बर्फीले चोटियों पर ट्रेकिंग हो या जंगल में ऐडवेंचर आप की ग्लोइंग स्किन, फ्रेश लुक और ड्रैसिंग स्टाइल आप का मूड अच्छा बनाए रखता है.

सोलो ट्रैवलर के लिए ब्यूटी मंत्र

नदी किनारे, पहाड़ की चोटियों पर या जंगलों के बीचों बीच में ऐडवेंचर तो बहुत है पर ब्यूटी पार्लर नहीं. ऐसे में अच्छा दिखने के लिए जरूरी है कि आप अपने साथ स्किन केयर के कुछ सामान ले कर चलें.

मिनिमल स्किनकेयर किट

फेशवाश, सनस्क्रीन, मॉइश्चराइजर, लिप बाम और एक लाइट मेकअप किट. वजन ज्यादा न हो इसलिए इन्हें आप आवश्यकतानुसार छोटे डब्बे में डाल लें. इस से आप के लगेज का भार नहीं बढ़ेगा.

स्कार्फ, सनग्लासेज और हैट

ट्रिप के लिए बैग पैक करते वक्त स्कार्फ, सनग्लासेज और हैट जरूर रखें. ये आप को धूप से बचाने के साथसाथ स्टाइलिश लुक भी देते हैं. साथ ही अगर आप बर्फीले पहाड़ों की सैर पर निकले हैं तो रंगबिरंगे मफलर और टोपी साथ रखें. ये आप को ठंड से बचाएंगे और मफलर के अलगअलग रंग आप की खूबसूरती में चार चांद लगाएंगे.

बूट्स और स्पोर्ट्स शूज

घर से निकलते वक्त अपने ट्रिप और डैस्टिनेशन को ध्यान में रखते हुए जूतों का चयन करें.

कंफर्टेबल और स्टाइलिश आउटफिट्स

सफर के दौरान आप की पोशाक आरामदायक होनी चाहिए, लेकिन अपने स्टाइल से समझौता न करें. कपड़ों की कौंबिनेशन अच्छे से बनाएं. किस रंग की कार्गो, किस रंग की टी शर्ट के साथ जाएगी इस का चयन घर से निकलने के पहले कर लें ताकि जल्दबाजी में अपने स्टाइलिंग कौंबिनेशन से कंप्रोमाइज न करना पड़े.

हाइजीन का ध्यान

सुंदर दिखने के साथसाथ हैल्दी और हाइजीनिक रहना भी सेल्फ केयर का ही हिस्सा है. सफर में अपने हाइजीन पर खास ध्यान दें और  हैल्दी भोजन करें. इस से आप के चेहरे और हैल्थ पर खासा असर दिखेगा.

सोलो ट्रैवल का मतलब यह नहीं कि दुनिया देखने के चक्कर में खुद को नजरअंदाज किया जाए. जहां भी जाइए, ब्यूटी और कौन्फिडेंस साथ ले कर जाइए. इस से प्रकृति की खूबसूरती और आप की खूबसूरती के बीच एक रिश्ता बनता है जो आप को पौजिटिव वाइब से भर देता है .

यकीन कीजिए, जब आप खुद खुश   होंगे, आप का हर लम्हा, हर सफर अकेले ही पर खुदबखुद खूबसूरत और यादगार बनता जाएगा.

Vegan Icecream : युवाओं की पहली पसंद

Vegan Icecream : कुछ समय पूर्व तक हम सिर्फ कुल्फी और आइसक्रीम के बारे में ही सुनते थे, जिसे दूध, शक्कर और कौर्नफ्लोर आदि से बनाया जाता था पर आजकल वीगन आइसक्रीम काफी चलन में है जिसे युवाओं द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है. इसे डेयरी के दूध के स्थान पर पौधों से प्राप्त फलों और बीजों से बनाया जाता है.

चूंकि गाय, भैंस आदि के दूध में फैट होता है जिस के कारण अपने वजन के प्रति जागरूक युवा दूध की आइसक्रीम को खाना पसंद नहीं करते, वहीं कुछ लोगों को लैक्टोज इंटौलरेंस यानि उन का पाचनतंत्र दूध को नहीं पचा पाता इसलिए ये लोग भी वीगन आइसक्रीम को ही प्राथमिकता देते हैं.

इस सब से इतर कुछ पर्यावरण प्रेमी युवाओं का मानना है कि डेयरी बेस्ड आइसक्रीम की अपेक्षा प्लांट बेस्ड आइसक्रीम खाने से दूध की खपत कम होगी जिस से पशुओं का अनावश्यक शोषण कम हो सकेगा.

क्या है वीगन आइसक्रीम

वीगन आइसक्रीम को शाकाहारी आइसक्रीम भी कहा जाता है यह एक ऐसी आइसक्रीम होती है जिसे दूध, क्रीम, मिल्क पाउडर और अंडा जैसे डेयरी उत्पादों के स्थान पर नारियल, बादाम, नट्स, सोया और फलों की प्यूरी के साथ बनाया जाता है.

इन में डेयरी के दूध के स्थान पर सोया, ओट्स, बादाम, काजू और नारियल को पानी के साथ पीस कर व छान कर पहले दूध तैयार किया जाता है फिर इस दूध में शक्कर, एसेंस, फूड कलर और फलों की प्यूरी को मिला कर बनाया जाता है.

ऐसे बनाएं वीगन आइसक्रीम

वनीला आइसक्रीम : 1/2 कप काजू को ओवरनाइट पानी में भिगो कर सुबह पानी से निकाल लें. अब एक ब्लेंडर में काजू, 1/2 कप ओट्स का दूध (ओट्स को 1 कप पानी में मिला कर छान लें), ¾ कप चीनी और 4-5 बूंदें वनीला एसेंस डाल कर अच्छी तरह ब्लेंड कर लें. इसे बितर से 15 मिनट तक फेंट कर मोल्ड में जमाएं. जब हलकी सी जम जाए तो एक बार फिर से ब्लेंड कर के जमाएं. 6-7 घंटे बाद जम जाने पर सर्व करें.

चौकलेट आइसक्रीम : पके हुए 4 केलों को छील कर छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर रातभर के लिए डीप फ्रीजर में रख दें. 15 बादाम को भी रातभर के लिए भिगो दें और सुबह इन्हें छील कर मिक्सी के जार में 1/2 कप पानी और 4 बूंदें चौकलेट एसेंस के साथ पीस लें. इस प्रकार बादाम का दूध तैयार हो जाएगा. अब इस में ¼ कप कोको पाउडर, 4 बीज निकले खजूर डाल कर अच्छी तरह पीस लें. फ्रोजन केले डाल कर फिर से बहुत अच्छी तरह ब्लेंड करें ताकि मिश्रण एकदम स्मूद हो जाए. अब इस तैयार मिश्रण को आइसक्रीम कंटेनर में डाल कर ऊपर से बारीक कटे काजू और चोको चिप्स डाल कर 6-7 घंटे तक जमा कर सर्व करें.

रखें इन बातों का ध्यान :

● वीगन आइसक्रीम बनाने के लिए आप ओट्स, नारियल, काजू, बादाम के दूध का ही प्रयोग करें.

● हमेशा ताजे और अच्छी तरह पके हुए फलों का ही प्रयोग करें। कच्चे और सड़े फल आप की आइसक्रीम के स्वाद को बिगाड़ सकते हैं.

● यदि आप शुगर पेशेंट हैं तो चौकलेट आइसक्रीम खाने से बचें क्योंकि चौकलेट की कड़वाहट को बैलेंस करने के लिए इस में अतिरिक्त शुगर मिलानी पड़ती है.

● यदि आप वजन कम करना चाहते हैं तो चीनी के स्थान पर मिठास के लिए खजूर और मिश्री का प्रयोग करें.

● चूंकि इसे प्लांट बेस्ड मिल्क से बनाया जाता है इसलिए बहुत अधिक मात्रा में बनाने से बचें क्योंकि हर किसी को इन का स्वाद कम पसंद आता है.

● आप एक बार बेस आइसक्रीम बना कर उस में अपनी इच्छानुसार फूड कलर और एसेंस मिला कर तरहतरह की आइसक्रीम बना सकते हैं.

● किसी भी फ्लेवर की आइसक्रीम को फलों के टुकड़े डाल कर सर्व किया जा सकता है.

Mother-Daughter : जब बेटी बन जाए मां की प्रोटैक्टर

Mother-Daughter : मां तो हमेशा से ही अपनी बेटी का खयाल रखती आई है, उसे संभालती आई है. लेकिन बेटियां जब बड़ी हो जाती हैं, तो बेटियां भी अपनी मां को ले कर बहुत प्रोटैक्टिव हो जाती हैं. वे खुद उन की मां बन बैठती हैं. उन की हर बात का खयाल रखना, उन के सारे गम बांटना आदि करने लगती हैं. वह मां की हमराही बन जाती है. मां अपनी हर छोटीबड़ी शिकायत बेटी से कहने लगती है. जब बेटी अपनी मां की देखभाल करने वाली बन जाती है, तो यह एक मजबूत मांबेटी के बंधन का प्रतीक है.

यह एक ऐसी स्थिति है जहां बेटी अपनी मां की भावनात्मक और व्यावहारिक जरूरतों को पूरा करने में मदद करती है, खासकर जब मां को मदद की आवश्यकता होती है. और ऐसे में मांबेटी का रिश्ता और भी ज्यादा मजबूत हो जाता है. आइए, जानें कैसे :

मातापिता का सैपरेशन होता है, तो बेटी मां को संभालती है

मातापिता के अलगाव के दौरान बेटी के द्वारा मां को संभालने का अर्थ है कि बेटी अपनी मां को भावनात्मक और व्यावहारिक रूप से सहारा देती है. अलगाव की कठिन अवधि के दौरान मां को भावनात्मक और शारीरिक रूप से समर्थन देती है, जिस में मां को अपने अलगाव के बाद अपनी जिम्मेदारियों को संभालने में मदद करना भी शामिल है। वह मां को एहसास दिलाती है कि आप का परिवार टूटा नहीं है, मैं हूं आप का परिवार. वह अपने और भाईबहनों को भी मां के साथ संभालती है.

अगर मातापिता में डिवोर्स की प्रक्रिया चल रही है तो भी बेटी ऐसे में मां का साथ देती है, उस के कोर्टकचहरी के काम कराती है. उसे अच्छा वकील ढूंढ़ने में मदद करती है.

सैपरेशन के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी संभाल लेती हैं बेटियां

अगर बेटी थोड़ी बड़ी है, तो वह अपने भाईबहनों की पढ़ाईलिखाई, उन की स्कूलकालेज की जिम्मेदारी, घर के बिल जमा करना, किचन देखना सब काम खुद ही करने लगती है. उसे लगता है कि मां अकेले क्याक्या संभालेगी, इसलिए वह कब मां का दूसरा हाथ बन जाती है उसे खुद भी पता नहीं चलता.

फाइनैंशियली भी सपोर्ट करती है बेटी

अगर बेटी की अच्छी जौब लग गई है और वह कमाती है तो वह मां को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने देती. मां की हर जरूरत खुद पूरा करती है. उस के लिए कपड़े लाने से ले कर उस के हर शौक को बिन बोले ही पूरा करती है.

इमोशनली प्रोटैक्ट करती है बेटियां

कई बार जिंदगी में कुछ चीजें ऐसी हो जाती हैं जब मां बिलकुल टूट जाती है फिर चाहे वह पति से अलगाव होना हो या फिर बेटेबहू के द्वारा अपमानित होना हो.

ऐसे मौके पर एक बेटी ही अपनी मां को संभाल सकती है. बेटी मां के साथ बात कर सकती है, उन्हें गले लगा सकती है और उन्हें आश्वस्त कर सकती है कि वह अकेली नहीं है। बेटी मां के साथ समय बिताती है, उस की बातें सुनती है और उसे समझाती है। वह मां को खुश करने के लिए हर छोटीछोटी बातें करती है।

बीमारी में खयाल रखती है बेटी

अगर मां बीमार हो तो बेटी अपनी पूरी जान लगा देती है. उस का समय समय पर पूरा हैल्थ चैकउप करवाती है. उस की दवाओं का ध्यान रखती है. भले ही मां के बुलाने पर वह किचन में न जाने के बहाने ढूंढ़ती हो लेकिन मां के बीमार होने पर वही बेटी यूट्यूब पर से ढूढ़ढूंढ़ कर रैसिपी बनती है, अपनी मां का सिर दबाती है और उसे दादी मां की तरह बिस्तर से न हिलने तक के हजारों इंस्ट्रक्शन दे डालती है.

मां की राजदार होती है बेटियां

अपने पति और बेटे तक से जो बातें मां शेयर नहीं कर पाती है वे बातें वह अपने बेटी से शेयर करती है. पति को ले कर कोई शिकायत है या सास की शिकायत लगानी हो वह डाइरैक्ट अपने मन की भड़ास बेटी के सामने निकालती है। बाकी लोगों को कुछ नहीं कहती है. अपने घर के खर्चों में से बचाए हुए पैसों को वह बैंक में या पोस्ट औफिस में बेटियों के साथ ही जमा कराती है. बेटियां ये बात कभी अपने पापा को नहीं बतातीं. किसी बात को ले कर कोई तकलीफ है या परेशानी है तो शादीशुदा बेटी को फोन कर अपने दिल का हाल बताती है और अपना मन हलका करती है. बेटियां भी मां की हर बात को ध्यान से सुनती हैं और उन्हें संभालती हैं.

प्रौपर्टी, पैसों आदि की देखभाल भी बेटियां करती हैं

अगर मां के नाम पर कोई मकान या दुकान है और वह रेंट पर दिए हुए हैं तो हर महीने आने वाले रेंट को लेना, उसे बैंक में जमा करना. किराएदारों से डील करना वगैरह बेटी के काम हो जाते हैं.

बेटी मां को पैंपर भी करती है

अकसर मां दिनभर घर के कामों में ही बिजी रह जाती है और कई बार इसी वजह से वह बेटी को भी वक्त नहीं दे पाती। लेकिन बेटी मां के साथ वक्त बिताने का मौका ढूंढ़ ही लेती है. वह अपनी मां की स्किन और ब्यूटी को ले कर भी बहुत सीरियस होती है. वह अपनी मां को बढ़ती उम्र में झुर्रियों के साथ नहीं देखना चाहती इसलिए वह खुद अपनी मां के साथ पार्लर और स्पा जाने की प्लानिंग करती है ताकि मां खुद को रिलैक्स करें.

फेशियल, मेनीक्योर, पेडीक्योर वगैरह सभी चीजों से अंदर से तरोताजा महसूस करें. वह खुद भी मां के साथ फेशियल आदि काम करवाती है। इस दौरान साथ में बातचीत करने का भी अच्छाखासा वक्त मिलता है, जिस में मांबेटी एकदूसरे से अपनी फीलिंग्स शेयर कर सकती हैं. बेटी मां को फिल्म देखने ले जाती है, उस के साथ शौपिंग करती है. हिल स्टेशन घूमने जाती है.

आतंकवादी हमले के बाद ही रिलीज हुई इसी विषय पर बनी Emraan Hashmi की फिल्म ग्राउंड जीरो ने सिनेमा घरों में दी दस्तक

Emraan Hashmi : किसी ने सच ही कहा है कल क्या होगा किसको पता अभी जिंदगी का ले लो मजा, आज के हालात कुछ ऐसे ही है जहां पर कोई भी कहीं भी सुरक्षित नहीं है. 22 अप्रैल2025 को आतंकवादियों द्वारा कश्मीर में घूमने आए कई शहरों के भारतीयों के साथ आतंकवादियों द्वारा जो नरसंहार हुआ वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था. अगर फिल्मी कहानी की बात करें तो ऐसा ही कुछ 25 अप्रैल को रिलीज हुई फिल्म ग्राउंड ज़ीरो की कहानी भी कुछ ऐसी ही कहानी कहती है जो कश्मीर में रहने वाले और वहां छिपे आतंकवादी की कहानी को दर्शाती है.

कश्मीर में आतंकवाद की दहशत काफी समय से चली आ रही है और इसी विषय पर कई फिल्में भी बनी है लेकिन इमरान हाशमी अभिनीत ग्राउंड जीरो की कहानी के अलावा फिल्म की मेकिंग डायरेक्शन और कलाकारों का अभिनय फिर को बेहतर बनाने के लिए मुख्य भूमिका निभाता है. चुंबन बौय की इमेज से ग्रस्त प्रभावशाली एक्टर इमरान हाशमी को फिर मैं अपनी कला और अभिनय दिखाने का पूरा मौका मिला है. इमरान ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय किया है. ऐसा लगा जैसे वह कमांडर नरेंद्र नाथ धर दुबे के किरदार को इस फिल्म में चरितार्थ करने में बेहद सुकून महसूस कर रहे है. शायद इसीलिए इमरान हाशमी कमांडर के रोल में हर सीन में नेचुरल नजर आए हैं.

ग्राउंड जीरो में भारतीय सेना के एक मिशन की असली कहानी को दिखाया गया है. जिसमें गाजी बाबा नाम के आतंकी को पकड़ने के लिए मिलिट्री कमांडोज की बहादुरी, देशभक्ति, आतंकवादियों को मुंह तोड़ जवाब देकर खुद भी शहीद होने की कहानी को बहुत ही निडरता और खूबसूरती से पेश किया गया है.
2001 के संसद हमले के मास्टर माइंड गाजी बाबा को मौत के घाट उतारने में भारत के सीमा सुरक्षा बल बीएसएफ के महत्वपूर्ण औपरेशन की सच्ची कहानी को दर्शाती है. 2003 में बीएसएफ के एक सीनियर ऑफिसर नरेंद्र नाथ धर दुबे के नेतृत्व में एक सटीक और जोखिम वाला ऑपरेशन अंजाम दिया गया जिसमें गाजी बाबा का खत्मा किया गया.

एक्सेल इंटरटेनमेंट के बैनर तले बनी फिल्म ग्राउंड जीरो में इमरान हाशमी बीएसएफ कमांडर नरेंद्र नाथ धर दुबे के किरदार में नजर आए है, जिनके जीवन पर आधारित इस फिल्म की कहानी केंद्रित है. सई ताम्हणकर इमरान हाशमी की पत्नी के रूप में नजर आई है जबकि जोया हुसैन और रजत कपूर अन्य कमांडर की भूमिका में है. फिल्म की कहानी के मुताबिक सभी ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय किया है. कई सालों से भारत में कश्मीर, आतंकवाद ,पाकिस्तान, जिहाद, पैसों का लालच देकर नवयुवकों को आतंकवादी बनाना और उनसे जघन्य अपराध कराने का सिलसिला बरसों से चला आ रहा है.

ना असल जिंदगी में यह खत्म हो रहा है और ना ही इस पर फिल्में बननी बंद हो रही है. ग्राउंड जीरो की कहानी भी बीएसएफ के कमांडर और आतंकवाद पर केंद्रित है. लेकिन इस फिल्म की खासियत यह है कि यह सच्ची घटना पर आधारित है और फिल्म के डायरेक्टर तेजस प्रभा विजय देओस्कर जो कि मराठी फिल्मों के प्रसिद्ध डायरेक्टर हैं और हिंदी में यह उनकी पहली फिल्म है, उन्होंने फिल्म के हर सीन में बारीकी से काम किया है  और फिल्म की स्क्रिप्ट पर भी कड़ी मेहनत की है. जिसके चलते पूरी फिल्म दर्शकों को बांधे रखती है. फिल्म में कई सारे ऐसे सीन हैं, जो आक्रमक भावुक करने वाले दिल दहलाने वाले सीन है. डायरेक्टर ने फिल्म को पूरी तरह से बांधे रखा है, बस फिल्म की लंबाई थोड़ी लंबी हो गई. आज के नाजुक माहौल में ग्राउंड जीरो का प्रदर्शन, इमरान हाशमी का सशक्त अभिनय, और डायरेक्टर की बेहतरीन मेकिंग दर्शकों को सिनेमा घर तक खींचने में कामयाब रहेगी.

कोरियोग्राफर Geeta Kapur की मां ने बताया गुड और बैड टच का फर्क

Geeta Kapur : 17 साल की उम्र से बतौर कोरियोग्राफर अपना डांसिंग करियर शुरू करने वाली गीता कपूर जिन्हें लोग डांस की दुनिया में गीता मां भी बोलते हैं. उन्होंने अपनी जिंदगी में कड़ा संघर्ष देखा है, उनकी जिंदगी गरीबी में बीती है . 10 /10 की खोली अर्थात छोटे से कमरे में अपना जीवन गुजारने वाली गीता मां ने पुरुष प्रधान समाज में अपने टैलेंट के जरिए अपना वर्चस्व स्थापित किया है.

गरीबी क्या होती है और गरीबों का लोग कैसे फायदा उठा सकते हैं, यह गीता मां से अच्छा कोई नहीं जान सकता. क्योंकि 51 वर्षीय गीता कपूर जिन्होंने बतौर असिस्टेंट कोरियोग्राफर फराह खान के साथ अपना संघर्षमय सफर शुरू किया था. उनकी मां जो उनकी पहली टीचर है, ने बताया था गुड और बैड टच क्या होता है, लोगों को कैसे परखा जाता है, पुरुष प्रधान समाज में स्थापित होने के लिए क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए , गीता कपूर की मां ने जो उनकी जिंदगी की पहली टीचर है ने उनको बहुत कुछ सिखाया है.

गीता मां के अनुसार मेरी मां मेरी पहली टीचर है जिन्होंने मुझे समाज में कैसे जीना है, कैसे रहना है आदि कई बातों की शिक्षा दी. मेरी मां ने मुझसे भी ज्यादा गरीबी देखी है और उनको जिंदगी का तजुर्बा, लोगों का मुखौटा वाला चेहरा, अच्छाई और बुराई की जानकारी बहुत अच्छे से है. इसलिए जब मैंने अपना करियर शुरू किया उस वक्त मैं बहुत छोटी थी, तब मेरी मां ही थी जिसने मुझे सही गाइड किया , गुड टच और बेड टच का फर्क बताया, लोगों को परखने की जानकारी दी, मेरी मां के अनुसार दुनिया में सब बुरे नहीं होते तो सब अच्छे भी नहीं होते, हमें सिर्फ यह देखना है कि हम किन के साथ काम कर रहे हैं. पैसे से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है मानसिक सुकून. इसलिए ऐसे ही लोगों के साथ काम करो जहां तुम पूरी तरह सुरक्षित हो. साथ ही सतर्क रहो ताकि तुम्हारा कोई फायदा ना उठा सके.

अपनी मां की दी हुई शिक्षा ने कामयाब बनने में ही नहीं, अच्छा इंसान बनने में भी पूरी मदद की है. मेरी मां ने मुझे बनाने के लिए अपने बारे में भी कभी नहीं सोचा. वह एक ग्रेट लेडी है मैं उनसे बहुत प्यार करती हूं.

Dr. Tanaya Narendra : यौन शिक्षा पर खुल कर बात की जाए

Dr. Tanaya Narendra : डा.  क्यूटरस के नाम से जानी जाने वाली डा. तनेया नरेंद्र स्त्रीरोग विशेषज्ञा यौन स्वास्थ्य शिक्षक, भ्रूणविज्ञानी, वैज्ञानिक और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं. उन्होंने चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में काफी योगदान दिया है. 2022 में तनेया को सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगदान के लिए नीति आयोग और आयुष्मान भारत द्वारा समर्थित आईएचडब्ल्यू परिषद से ‘हैल्थ इन्फ्लुएंसर औफ द ईयर’ और टौप 100 डिजिटल स्टार्स का पुरस्कार मिला है. इस के अलावा वे विभिन्न सरकारी और गैरसरकारी निकायों के लिए वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में भी काम करती हैं.

यह सही है कि सोशल मीडिया के इस दौर में कुछ ऐजुकेटर यौन संबंधी विषयों पर न केवल बात करते हैं बल्कि लोगों के आधेअधूरे ज्ञान को बढ़ाने का काम भी कर रहे हैं. इन्हीं यौन स्वास्थ्य शिक्षकों में एक महिला डाक्टर तनेया नरेंद्र का नाम काफी लोकप्रिय है जो एक साइंटिस्ट और यौन हैल्थ केयर ऐजुकेटर हैं.

अपने चैनल डा. क्यूटरस के माध्यम से डा. तनेया ने भारत में यौन स्वास्थ्य और शरीर की वैज्ञानिक विधि को समझाने में आसान तरीके को अपनाया है. उन की पुस्तक ‘डा. क्यूटरस: ऐवरीथिंग नोबडी टैल्स यू अबाउट योर बौडी’ में उन्होंने इसी विषय को स्पष्ट किया है.

यौन शिक्षा पर खुल कर की बात

2022 में प्रकाशित हुई इस किताब के कारण डा. तनेया काफी सुर्खियों में रहीं. पुस्तक बैस्ट सेलर बन गई और इस का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया. इस की एक मराठी संस्करण भी है. इतना ही नहीं वे सोशल मीडिया पर भी काफी ऐक्टिव रहती हैं और उन विषयों पर सक्रिय ज्ञान देती हैं, जिन पर लोग दबी जबान और चुपकेचुपके बात करते है. उन की वजह से यौन संबंधों पर बात करने वाली महिलाएं अब खुल कर यौन शिक्षा पर चर्चा कर रही हैं. उन का मानना है कि यौन शिक्षा को लोकलाज विषय बना कर उस पर चर्चा न करने के कारण वयस्कों को भी इस संबंध में गलत जानकारी होती है और एक गंभीर बीमारी का सामना उन्हें उम्र के अंतिम पड़ाव में करना पड़ता है.

तनेया ने 25 साल की उम्र से ही अपने उद्देश्य को समझ लिया था. वे पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहीं. यही वजह है कि उन्होंने मैडिकल कालेज से डाक्टरी की पढ़ाई पूरी की और बाद में यूके के औक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि हासिल की. उन के मातापिता गाइनेकोलौजिस्ट हैं. इस कारण उन्हें कम उम्र में ही यौन स्वास्थ्य के बारे में पता चल गया था. एमबीबीएस के बाद उन्होंने यूके से क्लीनिकल भू्रण विज्ञान में मास्टर की डिगरी हासिल की और 2020 से डा. क्यूटेरस नाम से इंस्टाग्राम अकाउंट शुरू किया और आज उन के लाखों फौलोअर्स हैं.

मिली चुनौती

शुरूशुरू में तनेया के लिए सैक्स एजुकेशन देना आसान नहीं था. इस के लिए उन्होंने खुद की लव लाइफ को उन के फौलोअर्स के सामने उदाहरणस्वरूप रखा और बताया कि कालेज टाइम में उन्हें किसी लड़के से प्यार हो गया था और यह प्यार 2 साल तक चला. किसी कारणवश रिश्ता टूट गया. इस के बाद उन के जीवन में दूसरा लड़का आया और सैक्स की डिमांड करने लगा. तनेया ने उसे भी छोड़ दिया. उन्होंने बताया कि अगर किसी लड़की का बौयफ्रैंड फ्यूचर रिलेशनशिप को छोड़ कर फिजिकल रिलेशनशिप के बारे में बात करता है तो उस लड़के को तुरंत छोड़ देना चाहिए क्योंकि इस रिलेशनशिप का कोई फ्यूचर नहीं होता यह उन्हें कभी खुशी नहीं दे सकती सिर्फ दुख देती है.

आज डा. तनेया महिला सशक्तीकरण का एक बेहतरीन उदाहरण हैं क्योंकि उन्होंने यौन से संबंधित हर छोटीबड़ी समस्या को आसानी से समझाया. पोस्ट के माध्यम से वे यौन और जननांग से जुड़े मिथकों को तोड़ कर जागरूकता बढ़ा रही हैं.

Tillotama Shome : मेरी मेहनत, मेरी उड़ान मेरी फिल्में ही मेरी पहचान

Tillotama Shome : बौलीवुड में जहां नित नए सितारे उदित होते हैं और गायब हो जाते हैं वहां लगातार 25 वर्षों से कायम रहना एक बड़ी उपलब्धि है. बौलीवुड में अपने अभिनय के दम पर ही तिलोत्तमा अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं, साथ ही उन्होंने फिल्मफेयर समेत कई पुरस्कार भी जीते. तिलोत्तमा शोम का जन्म कोलकाता में हुआ. उन के पिता अनुपम शोम भारतीय वायु सेना में थे.

आज तिलोत्तमा शोम एक जानीमानी अभिनेत्री के तौर पर अपनी पहचान बना चुकी हैं. उन्होंने मीरा नायर की फिल्म ‘मानसून वैडिंग’ (2001) में सहायक भूमिका निभाई थी. इसी फिल्म के साथ शोम ने फिल्मों में अभिनय की शुरुआत की थी. 2003 ‘तितली,’ 2004 ‘समय की छाया,’ 2009 ‘बूंद’, ‘ताली’ 2010, 2012 ‘शंघाई,’ 2013 ‘साहसी छोरी,’ 2014 ‘पत्र,’ ‘नयनतारा का हार’ 2015, 2016 ‘बुधिया सिंह- बौर्न टू रन,’ 2017 ‘गंज में एक मौत,’ 2018 ‘मंटो,’ 2019 ‘राहगीर,’ 2020 ‘धीत पतंगे,’ 2023 ‘लस्ट स्टोरीज 2,’ ‘दर्पण’ 2024, 2025 ‘शैडोबौक्स’ जैसी फिल्मों में उन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ी है.

टीवी और ओटीटी से फिल्मों तक

तिलोत्तमा शोम ने ड्रामा फिल्म ‘सर’ (2018) में एक हाउस वाइफ की मुख्य भूमिका निभाने के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड जीता. फिल्मों के अलावा टैलीविजन और ओटीटी प्लेटफौर्म पर भी शोम ने बेहतरीन काम किया है. ‘ए डैथ इन द गंज’ (2017) और ‘लस्ट स्टोरीज 2’ (2023) के साथसाथ टैलीविजन सीरीज दिल्ली क्राइम (2022), ‘द नाइट मैनेजर’ (2023) और ‘पाताल लोक’ (2025) जैसी लोकप्रिय सीरीज के जरीए तिलोत्तमा शोम ने टैलीविजन पर गहरी छाप छोड़ी है.

शोम दिल्ली के लेडी श्री राम कालेज से पढ़ी हैं और अभिनय में दिलचस्पी के कारण उन्होंने अरविंद गौड़ के अस्मिता थिएटर ग्रुप को जौइन किया था. तिलोत्तमा शोम न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी थिएटर में मास्टर प्रोग्राम के लिए न्यूयौर्क चली गईं और इस बीच उन्हें एक अमेरिकी जेल में हत्या के दोषियों को थिएटर सिखाने का मौका भी मिला. तिलोत्तमा के लिए यह जिंदगी का सब से हैरतअंगेज अनुभव साबित हुआ. मास्टर्स करने के बाद

वे मुंबई लौटीं और अभिनय में गहरी रुचि के कारण बौलीवुड का हिस्सा हो गईं.

काम को मिली पहचान

2018 में तिलोत्तमा की फिल्म ‘गंज में एक मौत’ फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए मनोनीत हुई.  2021 में तिलोत्तमा ने ‘महोदय’ में निभाई अपनी भूमिका के लिए बैस्ट ऐक्ट्रैस (क्रिटिक्स) का अवार्ड जीता. 2023 में ‘द नाइट मैनेजर’ के लिए उन्होंने फिल्मफेयर ओटीटी पुरस्कार जीता और 2023 में दिल्ली क्राइम के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री मनोनीत हुईं.

बौलीवुड में नैपोटिज्म एक कड़वी सचाई है. इस के चलते कई नए और बेहतरीन कलाकार वर्षों तक स्ट्रगल करते रह जाते हैं और जिन लोगों की फिल्मी बैकग्राउंड होती है वे बिना स्ट्रगल के ही मौका पा जाते हैं. फिल्मी जगत से तिलोत्तमा का दूरदूर तक कोई नाता नहीं था. उन्होंने बौलीवुड में जो भी कामयाबी हासिल की है वह उन्हें अपनी काबिलीयत के बल पर मिली है.

आज तिलोत्तमा अपनी मेहनत के बल पर उस मुकाम तक पहुंची हैं जहां से वे भविष्य की नारी के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गई हैं. तिलोत्तमा महिलाओं के लिए एक इंस्पिरेशन हैं इसलिए गृहशोभा ने उन्हें ‘इंस्पायर अवार्ड’ के लिए चुना. तिलोत्तमा अपने इस अवार्ड को अपने लिए मोटीवेशन मानती हैं.

Family Planning : मैं अभी बच्चा नहीं चाहती हूं, क्या दवाओं के साथ कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए?

Family Planning :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती हूं. अभी मैं और मेरे पति बच्चा पैदा करने के लिए तैयार नहीं हैं. मैं गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल कर रही हूं. मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या हमें कंडोम का भी प्रयोग करना चाहिए?

जवाब-

गर्भनिरोधक गोली या गर्भनिरोधक इंजैक्शन आदि अनचाहे गर्भ को रोकने में कारगर साबित होते हैं, लेकिन ये यौन रोगों या यौन संक्रमण से किसी भी प्रकार की सुरक्षा प्रदान नहीं करते, जबकि कंडोम का प्रयोग आप और आप के साथी को यौन रोगों से बचाता है, साथ ही अनचाहे गर्भ की समस्या को भी खत्म करता है.

किशोरावस्था में अकसर किशोर दूसरे लिंग के प्रति आकर्षित हो शारीरिक संबंध बनाने के लिए उत्सुक रहते हैं. वे प्रेमालाप में सैक्स तो कर लेते हैं, परंतु अपनी अज्ञानता के चलते प्रोटैक्शन का इस्तेमाल नहीं करते जिस के परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की लैंगिक बीमारियों का शिकार हो जाते हैं.

आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल 15 से 19 वर्ष की 1.6 करोड़ लड़कियां गर्भधारण कराती हैं. इस छोटी उम्र में गर्भधारण करने का सब से बड़ा कारण किशोरों का अल्पज्ञान और नामसझी है. बिना प्रोटैक्शन के किए जाने वाले सैक्स से सैक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फैक्शन सर्वाइकल कैंसर और हाइपरटैंशन जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है. ये बीमारियां लड़के व लड़की दोनों को हो सकती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz . सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Latest Hindi Stories : उसी दहलीज पर बारबार – क्या था रोहित का असली चेहरा

Latest Hindi Stories : घड़ी की तरफ देख कर ममता ने कहा, ‘‘शकुन, और कोई बैठा हो तो जल्दी से अंदर भेज दो. मुझे अभी जाना है.’’

और जो व्यक्ति अंदर आया उसे देख कर प्रधानाचार्या ममता चौहान अपनी कुरसी से उठ खड़ी हुईं.

‘‘रोहित, तुम और यहां?’’

‘‘अरे, ममता, तुम? मैं ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि यहां इस तरह तुम से मुलाकात होगी. यह मेरी बेटी रिया है. 6 महीने पहले इस की मां की मृत्यु हो गई. तब से बहुत परेशान था कि इसे कैसे पालूंगा. सोचा, किसी आवासीय स्कूल में दाखिला करा दूं. किसी ने इस स्कूल की बहुत तारीफ की थी सो चला आया.’’

‘‘बेटे, आप का नाम क्या है?’’

‘‘रिया.’’

बच्ची को देख कर ममता का हृदय पिघल गया. वह सोचने लगी कि इतना कुछ खोने के बाद रोहित ने कैसे अपनेआप को संभाला होगा.

‘‘ममता, मैं अपनी बेटी का एडमिशन कराने की बहुत उम्मीद ले कर यहां आया हूं,’’ इतना कह कर रोहित न जाने किस संशय से घिर गया.

‘‘कमाल करते हो, रोहित,’’ ममता बोली, ‘‘अपनी ही बेटी को स्कूल में दाखिला नहीं दूंगी? यह फार्म भर दो. कल आफिस में फीस जमा कर देना और 7 दिन बाद जब स्कूल खुलेगा तो इसे ले कर आ जाना. तब तक होस्टल में सभी बच्चे आ जाएंगे.’’

‘‘7 दिन बाद? नहीं ममता, मैं दोबारा नहीं आ पाऊंगा, तुम इसे अभी यहां रख लो और जो भी डे्रस वगैरह खरीदनी हो आज ही चल कर खरीद लेते हैं.’’

‘‘चल कर, मतलब?’’

‘‘यही कि तुम साथ चलो, मैं इस नई जगह में कहां भटकूंगा.’’

‘‘रोहित, मेरा जाना कठिन है,’’ फिर उस ने बच्ची की ओर देखा जो उसे ही देखे जा रही थी तो वह हंस पड़ी और बोली, ‘‘अच्छा चलेंगे, क्यों रियाजी?’’

शकुन आश्चर्य से अपनी मैडम को देखे जा रही थी. इतने सालों में उस ने ऐसा कभी नहीं देखा कि प्रधानाचार्या स्कूल का जरूरी काम टाल कर किसी के साथ जाने को तैयार हुई हों. उस के लिए तो सचमुच यह आश्चर्य की ही बात थी.

‘‘मैडम, खाना?’’ शकुन ने डरतेडरते पूछा.

‘‘ओह हां,’’ कुछ याद करती हुई ममता चौहान बोलीं, ‘‘देखो शकुन, कोई फोन आए तो कह देना, मैं बाहर गई हूं. और खाना भी लौट कर ही खाएंगे. हां, खाना थोड़ा ज्यादा ही बना लेना.’’

मेज पर फैली फाइलों को रख देने का शकुन को इशारा कर ममता चौहान उठ गईं और रोहित व रिया को साथ ले कर गेट से बाहर निकल गईं.

‘‘रुको, रोहित, जीप बुलवा लेते हैं,’’ नर्वस ममता ने कहा, ‘‘पर जीप भी बाजार के अंदर तक नहीं जाएगी. पैदल तो चलना ही पड़ेगा.’’

यद्यपि रिया उन के साथ चल रही थी पर कोई भी बाल सुलभ चंचलता उस के चेहरे पर नहीं थी. ममता ने ध्यान दिया कि रोहित का चेहरा ही नहीं बदन  भी कुछ भर गया है. पूरे 8 साल के बाद वह रोहित को देख रही थी. अतीत में उस के द्वारा की गई बेवफाई के बाद भी ममता का दिल रोहित के लिए मानो प्रेम से लबालब भरा हुआ था.

ममता को विश्वविद्यालय के वे दिन याद आए जब सुनसान जगह ढूंढ़ कर किसी पेड़ के नीचे वे दोनों बैठे रहते थे. कभीकभी वह भयभीत सी रोहित के सीने में मुंह छिपा लेती थी कि कहीं उस के प्यार को किसी की नजर न लग जाए.

जीप अपनी गति से चल रही थी. अतीत के खयालों में खोई हुई ममता रोहित को प्यार से देखे जा रही थी. उसे 8 साल बाद भी रोहित उसी तरह प्यारा लग रहा था जैसे वह कालिज के दिनों में लगताथा.

ममता ने रोहित को भी अपनी ओर देखते पाया तो वह झेंप गई.

‘‘तुम आज भी वैसी ही हो, ममता, जैसी कालिज के दिनों में थीं,’’ रोहित ने बेझिझक कहा, ‘‘उम्र तो मानो तुम्हें छू भी नहीं सकी है.’’

तभी जीप रुक गई और दोनों नीचे उतर कर एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान की ओर चल दिए. ममता ने रिया को स्कूल डे्रस दिलवाई. वह जिस उत्साह से रिया के लिए कपड़ों की नापजोख कर रही थी उसे देख कर कोई भी यह अनुमान लगा सकता था कि मानो वह उसी की बेटी हो.

दूसरी जरूरत की चीजें, खानेपीने की चीजें ममता ने स्वयं रिया के लिए खरीदीं. यह देख कर रोहित आश्वस्त हो गया कि रिया यहां सुखपूर्वक, उचित देखरेख में रहेगी.

ममता बाजार से वापस लौटी तो उस का तनमन उत्साह से लबालब भरा था. उस के इस नए अंदाज को शकुन ने पहली बार देखा तो दंग रह गई कि जो मैडमजी मुसकराती भी हैं तो लगता है उन के अंदर एक खामोशी सी है, वह आज कितना चहक रही हैं लेकिन उन का व्यक्तित्व ऐसा है कि कोई भी कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर सकता.

कौन है यह व्यक्ति और उस की छोटी बच्ची… क्यों मैडम इतनी खुश हैं, शकुन समझ नहीं पा रही थी.

ममता ने चाहा था कि कम से कम 2 दिन तो रोहित उस के पास रुके, लेकिन वह रुका नहीं… रोती हुई रिया को गोद में ले कर ममता ने ही संभाला था.

‘‘मैडमजी, इस बच्ची को होस्टल में छोड़ दें क्या?’’

‘‘अरी, पागल हो गई है क्या जो खाली पड़े होस्टल में बच्ची को छोड़ने की बात कह रही है. बच्चों को होस्टल में आने तक रिया मेरे पास ही रहेगी.’’

शकुन सोच रही थी कि सोमी मैडम भी घर गई हैं वरना वह ही कुछ बतातीं. जाने क्यों उस के दिल में उस अजनबी पुरुष और उस के बच्चे को ले कर कुछ खटक रहा था. उसे लग रहा था कि कहीं कुछ ऐसा है जो मैडमजी के अतीत से जुड़ा है. वह इतना तो जानती थी कि ममता मैडम और सोमी मैडम एकसाथ पढ़ी हैं. दोनों कभी सहेली रही थीं, तभी तो सोमी मैडम बगैर इजाजत लिए ही प्रिंसिपल मैडम के कमरे में चली जाती हैं जबकि दूसरी मैडमों को कितनी ही देर खड़े रहना पड़ता है.

दूसरे दिन सुबह शकुन उठी तो देखा मैडम हाथ में दूध का गिलास लिए रिया के पास जा रही थीं. प्यार से रिया को दूध पिलाने के बाद उस के बाल संवारने लगीं. तभी शकुन पास आ कर बोली, ‘‘लाओ, मैडम, बिटिया की चोटी मैं गूंथे दे रही हूं. आप चाय पी लें.’’

‘‘नहीं, तुम जाओ, शकुन… नाश्ता बनाओ…चोटी मैं ही बनाऊंगी.’’

चोटी बनाते समय ममता ने रिया से पूछा, ‘‘क्यों बेटे, तुम्हारी मम्मी को क्या बीमारी थी?’’

‘‘मालूम नहीं, आंटी,’’ रिया बोली, ‘‘मम्मी 4-5 महीने अस्पताल में रही थीं, फिर घर ही नहीं लौटीं.’’

एक हफ्ता ऐसे ही बीत गया. रिया भी ममता से बहुत घुलमिल गई थी. लड़कियां होस्टल में आनी शुरू हो गई थीं. सोमी भी सपरिवार लौट आई थी. शकुन ने ही जा कर सोमी को सारी कहानी सुनाई.

सोमी ने शकुन को यह कह कर भेज दिया कि ठीक है, शाम को देखेंगे.

शाम को सोमी ममता से मिलने उस के घर आई तो ममता ने बिना किसी भूमिका के बता दिया कि रिया रोहित की बेटी है और उस की मां का पिछले साल निधन हो गया है. रोहित हमारे स्कूल में अपनी बच्ची का दाखिला करवाने आया था.

‘‘रोहित को कैसे पता चला कि तुम यहां हो?’’ सोमी ने पूछा.

‘‘नहीं, उस को पहले पता नहीं था. वह भी मुझे देख कर आश्चर्य कर रहा था.’’

थोड़ी देर बैठ कर सोमी अपने घर लौट गई. उसे कुछ अच्छा नहीं लगा था यह ममता ने साफ महसूस किया था. वह बिस्तर पर लेट गई और अतीत के बारे में सोचने लगी. ममता और रोहित एक- साथ पढ़ते थे और वह उन से एक साल जूनियर थी. इन तीनों के ग्रुप में योगेश भी था जो उस की क्लास में था. योगेश की दोस्ती रोहित के साथ भी थी, उधर रोहित और ममता भी एक ही क्लास में पढ़ने के कारण दोस्त थे. फिर चारों मिले और उन की एकदूसरे से दोस्ती हो गई.

ममता का रंग गोरा और बाल काले व घुंघराले थे जो उस के खूबसूरत चेहरे पर छाए रहते थे.

रोहित भी बेहद खूबसूरत नौजवान था. जाने कब रोहित और ममता में प्यार पनपा और फिर तो मानो 2-3 साल तक दोनों ने किसी की परवा भी नहीं की. दोनों के प्यार को एक मुकाम हासिल हो इस प्रयास में सोमी व योगेश ने उन का भरपूर साथ दिया था.

ममता और रोहित ने एम.एससी. कर लिया था. सोमी बी.एड. करने चली गई और योगेश सरकारी नौकरी में चला गया. यह वह समय था जब चारों बिछड़ रहे थे.

रोहित ने ममता के घर जा कर उस के मातापिता को आश्वस्त किया था कि बढि़या नौकरी मिलते ही वे विवाह करेंगे और उस के बूढ़े मातापिता अपनी बेटी की ओर से ऐसा दामाद पा कर आश्वस्त हो चुके थे.

ममता की मां तो रोहित को देख कर निहाल हो रही थीं वरना उन के घर की जैसी दशा थी उस में उन्होंने अच्छा दामाद पा लेने की उम्मीद ही छोड़ दी थी. पति रिटायर थे. बेटा इतना स्वार्थी निकला कि शादी करते ही अलग घर बसा लिया. पति के रिटायर होने पर जो पैसा मिला उस में से कुछ उन की बीमारी पर और कुछ बेटे की शादी पर खर्च हो गया.

एक दिन रोहित को उदास देख कर ममता ने उस की उदासी का कारण पूछा तो उस ने बताया कि उस के पापा उस की शादी कहीं और करना चाहते हैं. तब ममता बहुत रोई थी. सोमी और योगेश ने भी रोहित को बहुत समझाया लेकिन वह लगातार मजबूर होता जा रहा था.

आखिर रोहित ने शिखा से शादी कर ली. इस शादी से जितनी ममता टूटी उस से कहीं ज्यादा उस के मातापिता टूटे थे. एक टूटे परिवार को ममता कहां तक संभालती. घोर हताशा और निराशा में उस के दिन बीत रहे थे. वह कहीं चली जाना चाहती थी जहां उस को जानने वाला कोई न हो. और फिर ममता का इस स्कूल में आने का कठोर निर्णय रोहित की बेवफाई थी या कोई मजबूरी यह वह आज तक समझ ही नहीं पाई.

इस अनजाने शहर में ममता का सोमी से मिलना भी महज एक संयोग ही था. सोमी भी अपने पति व दोनों बच्चों के साथ इसी शहर में रह रही थी. दोनों गले मिल कर खूब रोई थीं. सोमी यह जान कर अवाक्  थी… कोई किसी को कितना चाह सकता है कि बस, उसी की यादों के सहारे पूरी जिंदगी बिताने का फैसला ले ले.

सोमी को भी ममता ने स्कूल में नौकरी दिलवा दी तो एक बार फिर दोनों की दोस्ती प्रगाढ़ हो गई.

स्कूल ट्रस्टियों ने ममता की काबिलीयत और काम के प्रति समर्पण भाव को देखते हुए उसे प्रिंसिपल बना दिया. उस ने भी प्रिंसिपल बनते ही स्कूल की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और उस की देखरेख में स्कूल अनुशासित हो प्रगति करने लगा.

अतीत की इन यादों में खोई सोमी कब सो गई उसे पता ही नहीं चला. जब उठी तो देखा दफ्तर से आ कर पति उसे जगा रहे हैं.

‘‘ममता, तुम जानती हो, रिया रोहित की लड़की है. इतना रिस्पांस देने की क्या जरूरत है?’’ एक दिन चिढ़ कर सोमी ने कहा.

‘‘जानती हूं, तभी तो रिस्पांस दे रही हूं. क्या तुम नहीं जानतीं कि अतीत के रिश्ते से रिया मेरी बेटी ही है?’’

अब क्या कहती सोमी? न जाने किस रिश्ते से आज तक ममता रोहित से बंधी हुई है. सोमी जानती है कि उस ने अपनी अलमारी में रोहित की बड़ी सी तसवीर लगा रखी है. तसवीर की उस चौखट में वह रोहित के अलावा किसी और को बैठा ही नहीं पाई थी.

ममता को लगता जैसे बीच के सालों में उस ने कोई लंबा दर्दनाक सपना देखा हो. अब वह रोहित के प्यार में पहले जैसी ही पागल हो उठी थी.

पापा की मौत हो चुकी थी और मां को भाई अपने साथ ले गया था. जब उम्र का वह दौर गुजर जाए तो विवाह में रुपयों की उतनी आवश्यकता नहीं रह जाती जितना जीवनसाथी के रूप में किसी को पाना.

विधुर कर्नल मेहरोत्रा का प्रस्ताव आया था और ममता ने सख्ती से मां को मना कर दिया था. स्कूल के वार्षिकोत्सव में एम.पी. सुरेश आए थे, उन की उम्र ज्यादा नहीं थी, उन्होंने भी ममता के साथ विवाह का प्रस्ताव भेजा था. इस प्रस्ताव के लिए सोमी और उस के पति ने ममता को बहुत समझाया था. तब उस ने इतना भर कहा था, ‘‘सोमी, प्यार सिर्फ एक बार किया जाता है. मुझे प्यारहीन रिश्तों में कोई विश्वास नहीं है.’’

प्यार और विश्वास ने ममता के भीतर फिर अंगड़ाई ली थी. रोहित आया तो उस ने आग्रह कर के उसे 3-4 दिन रोक लिया. पहले दिन रोहित, ममता और सोमी तीनों मिल कर घूमने गए. बाहर ही खाना खाया.

सोमी कुछ ज्यादा रोहित से बोल नहीं पाई… क्या पता रोहित ही सही हो… वह ममता की कोमल भावनाएं कुचलना नहीं चाहती थी. अगर ममता की जिंदगी संवर जाए तो उसे खुशी ही होगी.

अगले दिन ममता रोहित के साथ घूमने निकली. थोड़ी देर पहले ही बारिश हुई थी. अत: ठंड बढ़ गई थी.

‘‘कौफी पी ली जाए, क्यों ममता?’’ उसे रोहित का स्वर फिर कालिज के दिनों जैसा लगा.

‘‘हां, जरूर.’’

रेस्तरां में लकड़ी के बने लैंप धीमी रोशनी देते लटक रहे थे. रोहित गहरी नजरों से ममता को देखे जा रहा था और वह शर्म के मारे लाल हुई  जा रही थी. उस को कालिज के दिनों का वह रेस्तरां याद आया जहां दोनों एकदूसरे में खोए घंटों बैठे रहते थे.

‘‘कहां खो गईं, ममता?’’ इस आवाज से उस ने हड़बड़ा कर देखा तो रोहित का हाथ उस के हाथ के ऊपर था. सालों बाद पुरुष के हाथ की गरमाई से वह मोम की तरह पिघल गई.

‘‘रोहित, क्या तुम ने कभी मुझे मिस नहीं किया?’’

‘‘ममता, मैं ने तुम्हें मिस किया है. शिखा के साथ रहते हुए भी मैं सदा तुम्हारे साथ ही था.’’

रोहित की बातें सुन कर ममता भीतर तक भीग उठी.

पहाड़ खामोश थे… बस्ती खामोश थी… हर तरफ पसरी खामोशी को देख कर ममता को नहीं लगता कि जिंदगी कहीं है ही नहीं… फिर वह क्यों जिंदगी के लिए इतनी लालायित रहती है. वह भी उम्र के इस पड़ाव पर जब इनसान व्यवस्थित हो चुका होता है. वह क्यों इतनी अव्यवस्थित सी है और उस के मन में क्यों यह इच्छा होती है कि यह जो पुरुष साथ चल रहा है, फिर पुराने दिन वापस लौटा दे?

ममता ने महसूस किया कि वह अंदर से कांप रही है और उस ने शाल को सिर से ओढ़ लिया, फिर भी ठंड गई नहीं. उस पर रोहित ने जब उस  का हाथ पकड़ा तो वह और भी थरथरा उठी. गरमाई का एक प्रवाह उस के अंदर तिरोहित होने लगा तो वह रोहित से और भी सट गई. रोहित उस के कंधे पर हाथ रख कर उसे अपनी ओर खींच कर बोला, ‘‘कांप रही हो तुम तो,’’ और फिर रोहित ने उसे समूचा भींच लिया था.

ममता को लगा कि बस, ये क्षण… यहीं ठहर जाएं. आखिर इसी लमहे व रोहित को पाने की चाहत में तो उस ने इतने साल अकेले बिताए हैं.

शकुन इंतजार कर के लौट गई थी. मेज पर खाना रखा था. उस ने ढीलीढाली नाइटी पहन ली और खाना लगाने लगी. फायरप्लेस में बुझती लकडि़यों में उस ने और लकडि़यां डाल दीं.

दोनों चुपचाप खाना खाते रहे. अचानक ममता ने पूछा, ‘‘अब क्या रुचि है तुम्हारी, रोहित? कुछ पढ़ते हो या… बस, गृहस्थी में ही रमे रहते हो?’’

‘‘अरे, अब कुछ भी पढ़ना कहां संभव हो पाता है, अब तो जिंदगी का यथार्थ सामने है. बस, काम और काम, फिर थक कर सो जाना.’’

बहुत देर तक दोनों बातें करते रहे. फायरप्लेस में लकडि़यां डालने के बाद ममता अलमारी खोल कर वह नोटबुक निकाल लाई जिस में कालिज के दिनों की ढेरों यादें लिखी थीं. रोहित को यह देख कर आश्चर्य हुआ, ममता की अलमारी में उस की तसवीर रखी है.

नोटबुक के पन्ने फड़फड़ा रहे थे. अनमनी सी बैठी ममता का चेहरा रोहित ने अपने हाथों में ले कर अधरों का एक दीर्घ चुंबन लिया. ममता ने आंखें बंद कर लीं. उस के बदन में हलचल हुई तो उस ने रोहित को खींच कर लिपटा लिया. बरसों का बांध कब टूट गया, पता ही नहीं चला.

‘‘क्या आज ही जाना जरूरी है, रोहित?’’ सुबह सो कर उठने के बाद रात की खामोशी को ममता ने ही तोड़ा था.

‘‘हां, ममता, अब और नहीं रुक सकता. वहां मुझे बहुत जरूरी काम है,’’ अटैची में कपड़े भरते हुए रोहित ने कहा.

ममता ने रिया को बुलवा लिया था. जाने का क्षण निकट था. रिया रो रही थी. ममता की आंखें भी भीगी हुई थीं. उस के मन में विचार कौंधा कि क्या अब भी रोहित से कहना पड़ेगा कि मुझे अपनालो… अकेले अब मुझ से नहीं रहा जाता. तुम्हारी चाहत में कितने साल मैं ने अकेले गुजारे हैं. क्या तुम इस सच को नहीं जानते?

सबकुछ अनकहा ही रह गया. रोहित लगातार खामोश था. उस को गए 5 महीने बीत गए. फोन पर वह रिया का हालचाल पूछ लेता. ममता यह सुनने को तरस गई कि ममता, अब बहुत हुआ. तुम्हें मेरे साथ चलना होगा.

वार्षिक परीक्षा समाप्त हो गई थी. सभी बच्चे घर वापस जा रहे थे. रोहित का फोन उस आखिरी दिन आया था जब होस्टल बंद हो रहा था.

‘‘रिया की मौसी आ रही हैं. उन के साथ उसे भेज देना.’’

‘‘तुम नहीं आओगे, रोहित?’’

‘‘नहीं, मेरा आना संभव नहीं होगा.’’

‘‘क्यों?’’ और उस के साथ फोन कट गया था. कानों में सीटी बजती रही और ममता रिसीवर पकड़े हतप्रभ रह गई.

दूसरे दिन रिया की मौसी आ गईं. होस्टल से रिया उस के घर ही आ गई थी क्योंकि होस्टल खाली हो चुका था.

‘‘रोहित को ऐसा क्या काम आ पड़ा जो अपनी बेटी को लेने वह नहीं आ सका?’’ ममता ने रिया की मौसी से पूछा.

‘‘सच तो यह है ममताजी कि शिखा दीदी की मौत के बाद रोहित जीजाजी के सामने रिया की ही समस्या है क्योंकि वह अब जिस से शादी करने जा रहे हैं, वह उन की फैक्टरी के मालिक की बेटी है. लेकिन वह रिया को रखना नहीं चाहती और मेरी भी पारिवारिक समस्याएं हैं, क्या करूं… शायद मेरी मां ही अब रिया को रखेंगी. एक बात और बताऊं, ममताजी कि रोहित जीजाजी हमेशा से ही उच्छृंखल स्वभाव के रहे हैं. शिखा दीदी के सामने ही उन का प्रेम इस युवती से हो गया था… मुझे तो लगता है कि शिखा दीदी की बीमारी का कारण भी यही रहा हो, क्योंकि दीदी ने बीच में एक बार नींद की गोलियां खा ली थीं.’’

इतना सबकुछ बतातेबताते रिया की मौसी की आवाज तल्ख हो गई थी और उन के चुप हो जाने तक ममता पत्थर सी बनी बिना हिलेडुले अवाक् बैठी रह गई. याद नहीं उसे आगे क्या हुआ. हां, आखिरी शब्द वह सुन पाई थी कि रोहित जीजाजी ने जहां कालिज जीवन में प्यार किया था, वहां विवाह न करने का कारण कोई मजबूरी नहीं थी बल्कि वहां भी उन का कैरियर और भारी दहेज ही कारण था.

तपते तेज बुखार में जब ममता ने आंखें खोलीं तो देखा रिया उस के पास बैठी उस का हाथ सहला रही है और शकुन माथे पर पानी की पट्टियां रख रहीहै.

ममता ने सोमी की तरफ हाथ बढ़ा दिए और फिर दोनों लिपट कर रोने लगीं तो शकुन रिया को ले कर बाहर के कमरे में चली गई.

‘‘सोमी, मैं ने अपनी संपूर्ण जिंदगी दांव पर लगा दी, और वह राक्षस की भांति मुझे दबोच कर समूचा निगल गया.’’

सोमी ने उस का माथा सहलाया और कहा, ‘‘कुछ मत बोलो, ममता, डाक्टर ने बोलने के लिए मना किया है. हां, इस सदमे से उबरने के लिए तुम्हें खुद अपनी मदद करनी होगी.’’

ममता को लगा कि जिन हाथों की गरमी से वह आज तक उद्दीप्त थी वही स्पर्श अब हजारहजार कांटों की तरह उस के शरीर में चुभ रहे हैं. काश, वह भी सांप के केंचुल की तरह अपने शरीर से उस केंचुल को उतार फेंकती जिसे रोहित ने दूषित किया था… कितना वीभत्स अर्थ था प्यार का रोहित के पास.

‘‘सोमी,’’ वह टूटी हुई आवाज में बोली, ‘‘मैं रिया के बगैर कैसे रहूंगी,’’ और उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. एक भयावह स्वप्न देख घबरा कर ममता ने आंखें खोलीं तो देखा सोमी फोन पर बात कर रही थी, ‘‘रोहित, तुम ने जो भी किया उस के बारे में मैं तुम से कुछ नहीं कहूंगी, लेकिन क्या तुम रिया को ममता के पास रहने दोगे? शायद ममता से बढ़ कर उसे मां नहीं मिल सकती…’’

रिया की मौसी ने रिया को ला कर ममता की गोद में डाल दिया और बोली, ‘‘मैं सब सुन चुकी हूं. सोमीजी… रिया अब ममता के पास ही रहेगी, इन की बेटी की तरह, इसे स्वीकार कीजिए.’’

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