Rashmika Mandanna ने 6 घंटे तक ‘कचरे के ढेर’ में लगातार कीं शूटिंग

Rashmika Mandanna : साउथ एक्ट्रेस रश्मिका मंदना अपने सशक्त अभिनय और कड़ी मेहनत के चलते साउथ के साथ साथ बौलीवुड में भी धीरेधीरे अपनी खास जगह बना रही है , जिसके चलते नेशनल क्रश कहलाने वाली रश्मिका ने सलमान खान के साथ सिकंदर, रणबीर कपूर के साथ एनिमल, और विक्की कौशल के साथ छावा जैसी फिल्मों में काम करके कई बॉलीवुड हीरोइन को पीछे छोड़ दिया है. शोहरत की ऊंचाइयों पर पहुंचने वाली रश्मिका पर्सनली बहुत ही डाउन टू अर्थ है और पूरी तरह डायरेक्टर की एक्टर है. डायरेक्टर फिल्म के लिए उन्हें जो भी कुछ करने को कहता है वह कभी इंकार नहीं करती. इसी के चलते हाल ही में रश्मिका ने अपनी आने वाली फिल्म कुबेर से जुड़ा एक किस्सा शेयर किया.

धनुष और नागार्जुन स्टारर फिल्म में काम करने के अपने अनुभव को साझा करते हुए रश्मिका ने बताया कि मैं धनुष और शेखर सर के साथ काम करना चाहती थी इसलिए मैंने यह फिल्म कुबेर साइन की, मैंने ऐसा रोल पहले कभी नहीं किया था इसलिए मैं पूरी तरह से डायरेक्टर के भरोसे थी इस फिल्म में सबसे चैलेंजिंग मोमेंट मेरे लिए वह था जब मैं और धनुष 6 घंटे तक कचरे के ढेर में शूटिंग कर रहे थे मेरे लिए ऐसा काम करना बहुत ही चैलेंजिंग और अपनी जड़ों से जोड़ने जैसा था.

मैं इसे आई ओपनर भी कह सकती हूं इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मुझे काफी सारे अलगअलग अनुभव हुए जैसे की डायरेक्टर को रियल लोकेशंस पर काम करने की आदत है, सो जब हम शॉट दे रहे थे तब डायरेक्टर हमारे पीछे कैमरा लेकर भागते हुए शॉर्ट ले रहे थे, हम उस वक्त मॉनिटर तक नहीं देख पा रहे थे लेकिन मुझे पूरा यकीन था कि यह वाला शॉर्ट मास्टर पीस होगा, सच बात तो यह है धनुष और शेखर सर के साथ काम करना आसान नहीं है क्योंकि यह दोनों हाई लेवल के टैलेंटेड और मेहनती है. इनके साथ अगर मैं उनके 10% जितना भी मेहनत कर लूं तो मेरे लिए बड़ी बात होगी मैं अपने आप को खुशनसीब समझती हूं जो मुझे धनुष और शेखर सर जैसे मेहनती और टैलेंटेड लोगों के साथ काम करने का मौका मिला. क्योंकि बतौर एक्ट्रेस मुझे इनसे बहुत कुछ सीखने को मिला है.

62 साल की YRKKH फेम दादी सा फिटनेस और खूबसूरती में देती हैं सबको टक्कर

Anita Raj : अपने जमाने की प्रसिद्ध हीरोइन अनीता राज जो अपने अभिनय के साथसाथ खूबसूरती को लेकर भी हमेशा चर्चा में रहती थी. अनीता राज ने अपने अभिनय करियर में कई अच्छी साथ फिल्में जैसे जमीन आसमान, गुलामी, नौकर बीवी का, जरा सी जिंदगी, आदि कई बेहतरीन फिल्मों में काम करने के बाद उन्होंने फिल्मों से ब्रेक ले लिया था लेकिन बाद में छोटे पर्दे से एक बार फिर शुरुआत करने वाली अनीता राज ने टीवी सीरियल छोटी सरदारनी और यह रिश्ता क्या कहलाता है में काम करके भी फिल्मों की तरह छोटे पर्दे पर भी अपनी अलग पहचान बनाई.

इसके अलावा 62 वर्षीय अनीता राज अपने अभिनय करियर को लेकर जितना सीरियस है, उतना ही अपनी हेल्थ और फिटनेस को लेकर भी अनीता पूरी तरह सतर्क है, उनको फिटनेस फ्रीक भी कहा जा सकता है, क्योंकि चाहे जो हो जाए वह अपना जिम और एक्सरसाइज मिस नहीं करती और अपना काफी समय वर्कआउट करते हुए जिम में बिताती है.

ये रिश्ता क्या कहलाता है की दादी सा अर्थात अनीता राज फिटनेस के मामले में सबको फ़ैल करती हैं, उनके बायसेप्स देख उनके फैंस भी चौक गए ,अनीता राज इस उम्र में पुशअप और शोल्डर के लिए ज्यादा वेट उठाती है जिसकी वजह से उनके बाइसेप्स और मसल्स काफी मजबूत और शेप में है, स्क्रीन पर भले ही अनीता राज सीधी साधी सादगी से भरी नजर आती हो, लेकिन असल जिंदगी में वह बॉडीबिल्डर है.

उनके शोल्डर और बायसेप्स काफी अच्छे बने हुए हैं. गौरतलब है इस उम्र में बहुत कम लोगों को फिटनेस को लेकर सतर्क और जागरूक देखा जाता है लेकिन अनीता राज की फिटनेस और एक्सरसाइज के प्रति जागरूकता ऐसे लोगों के लिए सबक है जो उम्र का तकाजा देकर फिटनेस पर ध्यान नहीं देते हैं ,और बीमारी से जूझते रहते है. अनीता राज के अनुसार वह अपने शरीर को मंदिर मानती है और पूरी तरह उसकी देखभाल करती है. क्योंकि अगर तन स्वस्थ होगा तो मन अपने आप ही खुश और स्वस्थ होगा.

आउटडोर Mobile Photography में बननाा चाहते हैं ऐक्सपर्ट, तो अपनाएं ये टिप्स

Mobile Photography : ज्यादातर लोगों का मानना है कि अच्छी फोटोग्राफी के लिए महंगा मोबाइल फोन होना जरूरी है, लेकिन सचाई यह है कि कुछ आसान टिप्स और बेहतर तकनीक अपना कर आप अपने बजट में भी स्मार्टफोन से शानदार फोटो क्लिक कर सकते हैं. महंगे कैमरे, सेंसर या ढेर सारे लैंस की हमेशा जरूरत नहीं होती, फोटो खींचने के दौरान क्रिएटिविटी और सही तकनीक की जरूरत होती है और सस्ते फोन से भी अच्छी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की जा सकती है.

इस के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है प्राकृतिक रोशनी. सुबह या शाम की गुलाबी लालिमा से भरी पर्याप्त रोशनी खासतौर पर उगता सूरज और ढलता सूरज के दौरान जो लालिमा भरी रोशनी होती है उस में फोटो खींचने का कुछ अलग ही मजा होता है क्योंकि इस दौरान खींची गई फोटो बहुत सुंदर आती है. इस के अलावा कई और तकनीकी पक्ष है जिस की बदौलत आउटडोर फोटोग्राफी अच्छे तरीके से की जा सकती है. पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

कैमरा ऐप की सैटिंग्स को समझना जरूरी

कभीकभी हमारे फोन अपनेआप ऐक्सपोजर ऐडजस्ट कर लेते हैं और सब्जैक्ट या लैंडस्केप बहुत ज्यादा ब्राइट या बहुत ज्यादा डार्क दिखाई देता है. तसवीर लेने से ठीक पहले ऐक्स्पोजर को ऐडजस्ट करना न भूलें. स्क्रीन पर अपनी उंगली को ऊपर या नीचे टैप करने और खींचने से आमतौर पर ऐक्स्पोजर ऐडजस्ट हो जाता है. इस के अलावा पौपसोकैट का उपयोग कर के आप चलतेफिरते अपने फोन को संतुलित रख सकते हैं.

अगर आप फोटो में शामिल होना चाहते हैं तो रिमोट के साथ एक ट्राइपौड आप को अपनी बेहतरीन तसवीर लेने में मदद करेगा.

कैमरा ऐंगल को परफैक्ट करें

आप का फोन का सरल झुकाव पूरी फोटो को नया दृष्टिकोण दे सकता है। यह प्रकाश संबंधी समस्याओं को सही कर सकता है और बेहतर दिशा प्राप्त कर सकता है। अलगअलग ऐंगल से फोटो खींचने के लिए कुछ अधिक समय लेने के लिए हिचकिचाएं नहीं. आउटडोर फोटोग्राफी में प्रैक्टिस के लिए कोई खास विषय चुनें, जैसे अगर आप को सनसेट के समय फोटो खींचना पसंद है तो अलगअलग जगह से अलगअलग फोटो लेने और कैप्चर करने के बाद उस को ऐडिट करने की प्रैक्टिस करें.

लोकेशन सोर्स के लिए हैशटैग का उपयोग करें

फोटो खींचना भी एक कला है। फोटो खींचने के लिए नईनई तरकीब सीखने के लिए, नई लोकेशन, नए दोस्त बनाने के लिए सोशल मीडिया पर हैशटैग (#) के जरीए खोजने की कोशिश करें। अधिकांश क्षेत्रों में फोटो खींचने के लोकेशन तकनीकी और कई सारी जानकारी के लिए हैशटैग का उपयोग कर के मोबाइल फोटो फोटोग्राफी को और बेहतर बनाते हैं।

इस के अलावा फोटो खींचते समय बर्श्ट मोड का उपयोग जरूर करें। यह करीबन हर मोबाइल में होता है जिस के जरीए एकसाथ कई फोटो खींच सकते हैं।

इस मोड से तेजी से चलने वाले विषयों को जैसे तितलियां, पशुपक्षी, गिलहरियां, तेजी से एकसाथ कैप्चर किया जा सकता है और बाद में स्क्रोल कर के आप अपनी पसंदीदा फोटो सिलैक्ट कर सकते हैं.

इस के अलावा जो चीजें फोटो में नहीं चाहिए उसे अपनी खींची हुई फोटो को क्रौप कर के हटा भी सकते हैं.

जब आप ऐडिटिंग करें तो इंस्टाग्राम फिल्टर के बजाय मोबाइल में मौजूद ऐडिट ऐप्स का इस्तेमाल करें जैसे स्नैपशीट और लाइटरूम आदि.

मोबाइल फोटोग्राफी के दौरान दूरी के साथ अपने फोन के जरिए खेलें

कई बार आप ऐसी जगह पर चले जाते हैं जहां पर खराब लाइट और खराब बैकग्राउंड होने की वजह से मोबाइल फोटोग्राफी उबाऊ लगने लगती है। इस दौरान अपने सब्जैक्ट पर फोकस करें जैसे खूबसूरत फूल, जंगली जानवर, अन्य छोटे वन्यजीव आदि। सुरक्षित दूरी के साथ उस सब्जैक्ट को फ्रेम में लेने की कोशिश करें। शौर्ट्स के दौरान गतिशील ऐक्शन शौट्स के साथ मध्यम दूरी तक पीछे जाएं ताकि आप का सब्जैक्ट फ्रेम में पूरी तरह से आ सके.

अगर आप अधिक आकर्षक शौर्ट लेना चाहते हैं तो अपने विषय को आंखों के स्तर से शूट करें और ज्यादा प्रभावशाली अनुभव के लिए थोड़ा नीचे से शूट करने का प्रयास करें.

अपने विषय से मनचाही अभिव्यक्ति पाने के लिए वीडियोग्राफी करते समय चेहरे पर मुसकान रखें। शूटिंग के दौरान मजाक करते रहें या बात करते रहेंगे तो वीडियोग्राफी और सुंदर होने के साथसाथ आकर्षक भी लगेगी।

अगर आप अकेले ही फोटो खींच रहे हैं और आप खुद भी फोटो में खूबसूरती से शामिल होना चाहते हैं तो फोटो खींचते समय टाइमर का उपयोग कर सकते हैं. इस के बाद आप को अपने द्वारा खींची हुई फोटो में शामिल होने के लिए समय मिल जाएगा.

फोटोग्राफी करते समय आप यही कोशिश करें कि फोटो रौ फौर्मेट में शूट करें ताकि जब आप पोस्ट प्रोडक्शन में फोटो ऐडिट करें तो वहां पर आप को लचीलापन मिल सकें.

आउटडोर फोटो शूट के दौरान पहले ही मोबाइल कैमरे की सैटिंग अच्छे से जान लें। डिजिटल जूम का प्रयोग कम से कम करें ताकि तसवीरों की क्वालिटी बरकरार रहे। ज्यादा जूम करने से फोटो की क्वालिटी खराब हो जाती है.

ग्रीड लैंस का प्रयोग करें

आउटडोर फोटोग्राफी के दौरान मोबाइल में आसान सा फीचर जो सब्जैक्ट को सही जगह पर रखने में मदद करता है। इस के बाद आप की तसवीर संतुलित और खूबसूरत दिखाई देती है। ग्रिड लैंस को औन करने के लिए अपने कैमरा सैटिंग में जाएं। क्रिएट लैंस को इनेबल करें। इस के बाद आप की फोटो अच्छी तरह से कैप्चर हो पाएगी.

स्मार्टफोन में अलगअलग तरह के कैमरा मोड्स होते हैं जो फोटो की क्वालिटी को बेहतर बनाते हैं। अलगअलग प्राकृतिक दृश्यों को कैप्चर करने के लिए अलगअलग मोड्स का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे पोट्रेट मौड का इस्तेमाल बैकग्राउंड ब्लर करने के लिए किया जाता है. नाइट मौड का इस्तेमाल रात में या कम रोशनी में बिना फ्लैश के फोटो खींचने के लिए किया जाता है। पैनोरमा मोड का इस्तेमाल बड़ेबड़े नजारे या ग्रुप फोटो के लिए किया जाता है। मेंक्रो मोड का उपयोग क्लोजअप शौट में छोटीछोटी डिटेल्स को कैप्चर करने के लिए करते हैं.

निशुल्क और कम लागत वाले ऐडिटिंग ऐप्स के जरीए फोटो और वीडियो को और ज्यादा बेहतर बनाया जा सकता है.

इसी तरह कई सारी बातों को ध्यान में रख कर कम बजट वाले सस्ते मोबाइल से आउटडोर में भी आप खूबसूरत फोटोग्राफी का मजा ले सकते हैं.

Married Life : नई मैरिड लाइफ की प्रौब्लम को लेकर सुझाव दें?

New Married Life :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

मैं 24 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 2 महीने हुए हैं. सुहागरात को मुझे सहवास के दौरान थोड़ा दर्द तो हुआ पर रक्तस्राव नहीं हुआ. मैं ने कभी किसी से संबंध बनाना तो दूर किसी लड़के से मित्रता तक नहीं की. फिर रक्तस्राव क्यों नहीं हुआ? पति ने तो कुछ नहीं कहा पर मुझे स्वयं हैरत हो रही है कि ऐसा कैसे हो सकता है. मेरी 2 सहेलियों का मुझ से पहले विवाह हुआ था. दोनों ने ही बताया था कि प्रथम सहवास के दौरान उन्हें रक्तस्राव हुआ था. फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ?

जवाब-

प्रथम समागम के दौरान आप को रक्तस्राव नहीं हुआ तो यह कोई अनहोनी घटना नहीं है, जिस से आप इतनी चिंतित हैं. कई बार दौड़नेभागने, उछलनेकूदने, साइकिल चलाने या गिरने से कौमार्य झिल्ली फट जाती है. हो सकता है आप के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ हो. अत: इस प्रसंग को भुला दें. आप की नईनई शादी हुई है. अत: बेकार की चिंता छोड़ कर नववैवाहिक जीवन का भरपूर आनंद उठाएं.

ये भी पढ़ें-

दिल्ली के दीपक का मानना है कि शारीरिक संबंध तभी बनाया जाए जब इस की भूख हो. भावना और प्यार की इन की सोच में कहीं जगह नहीं है.

ऐसा अकसर देखने में आता है कि पतिपत्नी सहवास के दौरान एकदूसरे की इच्छा और भावना को नहीं समझते. वे बस एक खानापूर्ति करते हैं. लेकिन वे यह बात भूल जाते हैं कि खानापूर्ति से सैक्सुअल लाइफ तो प्रभावित होती ही है, पतिपत्नी के संबंधों की गरमाहट भी धीरेधीरे कम होती जाती है. ऐसा न हो इस के लिए प्यार और भावनाओं को नजरअंदाज न करें. अपने दांपत्य जीवन में गरमाहट को बनाए रखने के लिए आगे बताए जा रहे टिप्स को जरूर आजमाएं.

1. पत्नी की इच्छाओं को समझें

सागरपुर में रहने वाली शीला की अकसर पति के साथ कहासुनी हो जाती है. शीला घर के कामकाज, बच्चों की देखभाल वगैरह से अकसर थक जाती है, लेकिन औफिस से आने के बाद शीला के पति देवेंद्र उसे सहवास के लिए तैयार किए बिना अकसर यौन संबंध बनाते हैं. वे यह नहीं देखते कि पत्नी का मन सहवास के लिए तैयार है या नहीं.

सैक्सोलौजिस्ट डा. कुंदरा के मुताबिक, ‘‘महिलाओं को अकसर इस बात की शिकायत रहती है कि पति उन की इच्छाओं को बिना समझे सहवास करने लगते हैं. लेकिन ऐसा कर के वे केवल खुद की इच्छापूर्ति करते हैं. पत्नी और्गेज्म तक नहीं पहुंच पाती. आगे चल कर इसी बात को ले कर आपसी संबंधों में कड़वाहट पैदा होती है.

‘‘पति को चाहिए कि सैक्स करने से पहले पत्नी की इच्छा को जाने. उसे सैक्स के लिए तैयार करे. तभी संबंधों में गरमाहट बरकरार रहती है.’’

Family Story : मैं सिर्फ बार्बी डौल नहीं हूं

Family Story : खुद को आईने में निहारते हुए परी को अपने दाहिने गाल पर एक दाना दिखा. वह परेशान हो गई. क्या करे? क्या डाक्टर के पास जाए? फिर उस ने जल्दीजल्दी फाउंडेशन और कंसीलर की मदद से उस दाने को छिपाया और होंठों पर लिपस्टिक का फाइनल टच दिया. सिर पर थोड़ा सा पल्लू कर, पायल और चूडि़यां खनकाती वह बाहर निकली.

परी की सास और ननद उसे प्रशंसा से देख रही थीं, वहीं जेठानियों की आंखों में उस ने ईर्ष्या का भाव देखा तो परी को लगा कि उस का शृंगार सार्थक हुआ.

पासपड़ोस की आंटी और दूर के रिश्ते की चाची, ताई सब शकुंतला को इतनी सुंदर बहू लाने के लिए बधाई दे रही थीं. शकुंतला अभिमान से मंदमंद मुसकरा रही थीं. वे बड़े सधे स्वर में बोलीं, ‘‘यह तो हमारे मनु की पसंद है. पर हां, शायद इतनी खूबसूरत बहू मैं भी नहीं ढूंढ़ पाती.’’

नारंगी शिफौन साड़ी पर नीले रंग का बौर्डर था और नीले रंग का ही खुला ब्लाउज, जो उस की पीठ की खूबसूरती को उभार रहा था. पीठ पर ही परी ने एक टैटू बनवा रखा था जो मछली और एक परी के चित्र का मिलाजुला स्वरूप था.

परी को अपने इस टैटू पर बहुत गुमान था. इसी टैटू के कारण कितने ही लड़कों का दिल उस ने अपनी मुट्ठी में कर रखा था. परी की पारदर्शी त्वचा, दूध जैसा रंग, गहरी कत्थई आंखें सबकुछ किसी को भी बांधने के लिए पर्याप्त था. मनीष से उस की मुलाकात बैंगलुरु के नौलेज पार्क में हुई थी. दोनों का औफिस उसी बिल्डिंग में था. कभीकभी दोनों की मुलाकात कौफीहाउस में भी हो जाती थी.

मनीष अपने मातापिता की इकलौती संतान था. शकुंतला और कवींद्र दोनों ने ही अपनी पूरी ताकत अपनी संतान के पालनपोषण में लगा दी थी. बचपन से ही मनीष के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उसे हर चीज में अव्वल

आना है. कोई भी दोयम दरजे की चीज या व्यक्ति उसे मान्य नहीं था. पढ़ाई में अव्वल, खेलकूद में शीर्ष स्थान.

12वीं के तुरंत बाद ही उस का दाखिला देश के सब से अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में हो गया था. उस के तुरंत बाद मुंबई के सब से प्रतिष्ठित कालेज से उस ने मैनेजमैंट की डिग्री हासिल की और बैंगलुरु में 60 लाख की सालाना आय पर उस ने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर के रूप में जौइन कर लिया था जहां पर उस की मुलाकात परी से हुई और परी हर मामले में उस की जिंदगी के सांचे में फिट बैठती थी.

परी के मातापिता के पास अपनी बेटी के सौंदर्य और पढ़ाई के अलावा कुछ और दहेज में देने के लिए नहीं था. शकुंतला और कवींद्र ने मनीष की शादी के लिए बहुत बड़े सपने संजोए थे पर परी की खूबसूरती, काबिलीयत और मनीष की इच्छा के कारण चुप लगा गए. सादे से विवाह समारोह के बाद शकुंतला और कविंद्र ने बहुत ही शानदार रिसैप्शन दे कर मन के सारे अरमान पूरे कर लिए थे.

शाम को मनीष के दोस्त के यहां खाने पर जाना था. परी थक गई थी. उस का

कपड़े बदलने का मन नहीं था. जब वह उसी साड़ी में बाहर आई तो शकुंतला ने टोका, ‘‘परी तुम नईनवेली दुलहन हो. ऐसे बासी कपड़ों में कैसे जाओगी?’’

परी बुझे स्वर में बोली, ‘‘मम्मी, मुझे बहुत थकान हो रही है. यह साड़ी भी तो अच्छी है.’’

शकुंतला ने बिना कुछ कहे उसे मैरून रंग का कुरता और शरारा पकड़ा दिया. परी ने मदद के लिए मनीष की तरफ देखा तो वह भी मंदमंद मुसकान के साथ अपनी मां का समर्थन ही करता नजर आया.

फिर से उस ने पूरा शृंगार किया. आईने में उस ने देखा, अब वह दाना और स्पष्ट हो गया था. तभी पीछे से शकुंतला की आवाज सुन कर घबरा कर उस ने उस दाने के ऊपर फाउंडेशन लगा लिया और फाउंडेशन का धब्बा अलग से उभर कर चुगली कर रहा था.

बाहर ड्राइंगरूम की रोशनी में शकुंतला बोलीं, ‘‘परी फाउंडेशन तो ठीक से लगाया

करो. यह क्या फूहड़ की तरह मेकअप किया

है तुम ने?’’

परी घबरा गई. जैसे ही शकुंतला उस के करीब आईं तभी मनीष की कार का हौर्न सुनाई दिया. परी बाहर की तरफ भागी.

पीछे से शकुंतला की आवाज आई, ‘‘परी रास्ते में ठीक कर लेना.’’

कार में बैठते ही मनीष ने परी को अपने करीब खींच लिया और चुंबनों की बरसात कर दी. फिर धीरे से उस के कान में फुसफुसाया, ‘‘मन नहीं है मयंक के घर जाने का. कहीं उस की नीयत न बिगड़ जाए. जान, बला की खूबसूरत लग रही हो तुम.’’

मनीष की बात पर परी धीरे से मुसकरा दी. करीब 15 मिनट बाद कार एक नए आबादी क्षेत्र में बनी सोसाइटी के आगे रुक गई. मनीष ने घंटी बजाई और एक अधेड़ उम्र की महिला ने दरवाजा खोला. चेहरे पर मुसकान और मधुरता लिए हुए उन्हें देख कर ऐसा आभास हुआ परी को कि वह उन के साथ बैठ कर थोड़ा सुस्ता ले.

तभी अंदर से ‘‘हैलो… हैलो…’’ बोलता हुआ एक नौजवान आया. गहरी काली आंखें, तीखी नाक और खुल कर हंसने वाला. उस के व्यक्तित्व में सबकुछ खुलाखुला था. परी बिना परिचय के ही समझ गई थी कि यह मयंक है और वह महिला उस की मां है.’’

परी और मनीष 4 घंटे तक वहां बैठे रहे. परी को लगा ही नहीं कि वह यहां पहली बार आई है. जहां मनीष के घर उसे हर समय डर सा लगा रहता था कि कहीं कुछ गलत न हो जाए. हर समय अपने रंगरूप को ले कर सजग रहना पड़ता था, वहीं यहां वह एकदम सहज थी.

तभी परी के मोबाइल की घंटी बजी. शकुंतलाजी दूसरी तरफ थीं, ‘‘परी तुम्हें कुछ

होश है या नहीं, क्या समय हुआ है? मनीष

का तो वह दोस्त है पर तुम्हें तो खयाल रखना चाहिए न…’’

जब वे लोग वहां से बिदा हो कर चले तब रात के 11 बज चुके थे. घर पहुंच कर परी जब चेहरा धो रही थी तब उस ने करीब से देखा, उस दाने के साथ एक और दाना बगल में उग चुका था. वह गहरी चिंता में डूब गई. वह मन ही मन सोच में डूब गई कि अब कैसे सामना करूंगी? उस ने तो मुझे पसंद ही मेरी खूबसूरत पारदर्शी त्वचा की वजह से किया है.

मनीष अधीरता से बाथरूम का दरवाजा पीट रहा था, ‘‘डौल, मेरी बार्बी डौल जल्दी आओ.’’

उस की कोमल व बेदाग साफ त्वचा के कारण ही तो वह उसे बार्बी डौल कहता था.

फिर से उस ने फाउंडेशन लगाया और बाहर आ गई. मनीष ने उसे बांहों में उठाया

और फिर दोनों प्यार में डूब गए.

उषा की किरणों ने जैसे ही कमरे के अंदर प्रवेश किया, मनीष प्यार से अपनी बार्बी डौल

के गाल थपथपाने लगा. पर यह क्या, मनीष एकदम बोल उठा, ‘‘परी, तुम्हारे गाल पर यह क्या हो रहा है?’’

परी घबरा कर उठ बैठी और बोली, ‘‘मनीष सौरी वह कल से पता नहीं क्यों ये दाने हो गए हैं.’’

दरअसल, वे दाने भयावह रूप से मुखर

हो उठे थे और रहीसही कसर तनाव ने पूरी कर दी थी.

मनीष बिना किसी हिचकिचाहट के परी के करीब आया और बोला, ‘‘ये तो ठोड़ी पर भी हैं. आज डाक्टर को दिखा कर आना.’’

परी बहुत ज्यादा चिंतित हो उठी थी. उसे अपनी बेदाग त्वचा पर बहुत गुमान था. अब

ये दाने…

रात में प्रेम क्रीड़ा के दौरान भी परी के मन में अनकहा तनाव ही व्याप्त रहा. सुबहसवेरे ही उठ कर वह नहा ली. हलकी गुलाबी रंग की साड़ी उस के रंग में मिलजुल गई थी. साथ में उस ने मोतियों की माला और जड़ाऊ झुमके पहने. फिर आईने के आगे खड़ा हो कर गहरे फाउंडेशन की परतों में अपने दानों को छिपा लिया. अब पूरी तरह से अपनेआप से संतुष्ट थी.

बाहर आ कर देखा तो शकुंतला गाउन में घूम रही थीं. अपनी बहू का खिला चेहरा देख कर वे प्रसन्न हो गईं.

शकुंतला ने परी का माथा चूम लिया. परी रसोई की तरफ चली गई और नाश्ते की तैयारी करने लगी.

तभी शकुंतला आईं और अभिमान से बोलीं, ‘‘परी, तुम आराम करो. हमारे यहां बहू बस रसोई में हाथ ही लगाती है. सारे काम के लिए ये नौकरचाकर हैं ही.’’

परी ने चाय का पानी चढ़ाया और बाहर आ कर बैठ गई. शकुंतला भी उस के सामने आ कर बैठ गईं और उसे पैनी नजरों से दखते हुए बोलीं, ‘‘परी, तुम्हें बस सुंदर लगना है. इसी कारण से तुम इस घर की बहू बनी हो.’’

परी असमंजस में बैठी रही. उस का मन बहुत उदास हो चला था. यों 24 साल की परी आत्मविश्वास से भरपूर युवती थी. मनीष से पहले भी उस की जिंदगी में कई युवक आए और गए, पर मनीष के आने के बाद उस के जीवन में स्थिरता आ गई थी.

दोनों के परिवार वालों को इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं थी. कम से कम परी को तो पता था. पर यह तो उसे विवाह के बाद ही पता चला कि मनीष के मातापिता ने उसे पूरे दिल से स्वीकार नहीं किया था.

वह बुझे मन से अंदर चली गई. एक अनकहा भय उसे घेरे हुए था. इतना डर तो

उसे किसी ऐग्जाम में भी नहीं लगा था.

तभी जिया अंदर आ गई. वह मनीष की मौसी की बेटी थी और रिश्ते में उस की ननद. जिया बेहद खूबसूरत थी और कालेज के सैकंड ईयर में पढ़ रही थी. चिडि़या की तरह चहकते हुए वह बोली, ‘‘भाभी, चलो आज मूवी देखने चलते हैं. आप की बात भैया कभी नहीं टालेंगे.’’

मनीष उस को चपत लगाते हुए बोला, ‘‘मुझ से नहीं बोल सकती? चलो फिर भाभी ही ले जाएगी तुम्हें…’’

दोनों पूरे कमरे में धमाल मचा रहे थे. न जाने क्यों ये सब देख कर परी की आंखों

में आंसू आ गए. सबकुछ अच्छा है फिर भी बंधाबंधा महसूस हो रहा था.

जिया एकाएक सकपका सी गई. मनीष भी परी के करीब आ कर प्यार से उस का सिर सहलाने लगा और बोला, ‘‘परी घर जाना है तो आज ले कर चलता हूं.’’

परी बोली, ‘‘मनीष न जाने क्यों थकावट सी महसूस हो रही है. लगता है पीरियड्स शुरू होने वाले हैं.’’

जिया तब तक अपनी प्यारी भाभी के लिए एक गिलास जूस ले कर आ गई थी. परी का मन भीग गया और उस ने जिया को गले से लगा लिया. उसे लगा जैसे जिया के रूप में उस ने अपनी छोटी बहन को पा लिया हो.

शाम को मनीष के कहने पर परी जींस और कुरती पहन रही थी पर यह क्या जींस तो कमर में फिट ही नहीं हो रही थी. अभी 3 महीने पहले तक तो ठीक थी. झुंझला कर वह कुछ और निकालने लगी.

तभी मनीष बोला, ‘‘परी यह करवाचौथ टाइप की ड्रैस मत पहनो. जींस थोड़ी टाइट है तो क्या हुआ. पहन लो न.’’

परी ने मुश्किल से जींस पहन तो ली पर अपने शरीर पर आई अनावश्यक चरबी उस से छिपी न रही. वह जब तैयार हो कर बाहर निकली, तो मनीष मजाक में बोल ही पड़ा, ‘‘यार, तुम तो शादी के तुरंत बाद आंटी बन गई हो.’’

परी को यह सुन कर अच्छा नहीं लगा. तभी शकुंतला भी बाहर आ गईं और बोलीं, ‘‘परी खुद पर ध्यान दो और कल से ऐक्सरसाइज शुरू करो.’’

उस दिन परी फिल्म का आनंद न ले पाई. एक तो जरूरत से ज्यादा टाइट कपड़ों के कारण वह असहज महसूस कर रही थी, दूसरे बारबार परफैक्ट दिखने का प्रैशर उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था.

अपने शरीर में आए बदलावों से वह परेशान थी. ऐसे में उसे दुलार और प्यार की आवश्यकता थी. पर उस के नए घर में उसे ये सब नहीं मिल पा रहा था.

रात को उस ने मनीष को अपने करीब न आने दिया. मनीष रातभर उसे हौलेहौले दुलारता रहा. सुबह परी की बहुत देर से आंखें खुलीं. वह जल्दीजल्दी नहा कर जब बाहर निकली तो देखा, नाश्ता लग चुका था.

वह भी डाइनिंगटेबल पर बैठ गई. कवींद्र ने परी की तरफ देख कर चिंतित स्वर में कहा, ‘‘परी बेटा, यह क्या हो रहा तुम्हारे चेहरे पर?’’

एकाएक परी को याद आया कि वह आज मेकअप करना भूल गई.

शकुंतला भी बोलीं, ‘‘मनीष आज परी को डाक्टर के पास ले जाओ. चेहरे पर तिल के अलावा किसी भी तरह के निशान अच्छे नहीं लगते हैं.’’

मनीष भी परी को ध्यान से देख रहा था. परी को एकदम से ऐसा महसूस हुआ जैसे वह एक स्त्री नहीं एक वस्तु है.

शाम को जब मनीष और परी डाक्टर के पास गए, तो डाक्टर ने सबकुछ जानने के बाद दवाएं और क्रीम लिख दी.

1 महीना बीत गया पर दानों ने धीरेधीरे

परी के पूरे चेहरे को घेर लिया था. परी आईने

के सामने जाने से कतराने लगी. उस का आत्मविश्वास कम होने लगा था. वह सब से नजरें चुराने लगी थी. ऊपर से रातदिन शकुंतला की टोकाटाकी और मनीष का कुछ न बोल कर अपनी मां का समर्थन करना उसे जरा भी नहीं भाता था.

औफिस में भी लोग उसे देखते ही सब से पहले यही बोलते, ‘‘अरे, यह क्या हुआ तुम्हारे  चेहरे पर?’’

परी मन ही मन कह उठती, ‘‘शुक्रिया बताने का… आप न होते तो मुझे पता ही नहीं चलता…’’

परी के विवाह को 2 महीने बीत गए थे.

इस बीच घर, नए रिश्ते और औफिस की जिम्मेदारी के बीच बस वह एक ही बार अपने मायके जा पाई थी. परी का जब से विवाह हुआ था वह एक तनाव में जी रही थी. यह तनाव था हर समय खूबसूरत दिखने का, हर समय मुसकराते रहने का, हर किसी को खुश रखने का और इन सब के बीच परी कहीं खो सी गई थी. वह जितनी कोशिश करती कहीं न कहीं कमी

रह ही जाती.

इसी बीच एक सुबह उस ने अपनी ठोड़ी के आसपास काले बालों को देखा. बाल काफी सख्त भी थे. उस की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. नहाते हुए ऐसे ही बाल उस ने नाभि के आसपास भी देखे. वह घंटों बाथरूम में बैठी रही.

बाहर मनीष उस का इंतजार कर रहा था. जब आधा घंटा हो गया तो उस ने

दरवाजा खटखटाया. परी बाहर तो आ गई पर ऐसा लगा जैसे वह बहुत थकी हुई हो.

मनीष उसे इस हालत में देख कर घबरा उठा. बोला, ‘‘क्या हुआ परी? ठीक नहीं लग रही. क्या घर की याद आ रही है?’’

परी फफक उठी. वह अपने ऊपर रो रही थी. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

कवींद्रजी भी वहीं आ गए और मनीष

को डांटते हुए बोले, ‘‘नालायक, तुम ने ही कुछ किया होगा,’’ फिर परी से बोले, ‘‘बेटा, तुम इस की बात का बुरा मत मानो. मैं तुम्हें आज ही तुम्हारे मम्मीपापा के पास भेजने का इंतजाम

करता हूं.’’

अचानक से परी का मूड बदल गया. उसे लगा वहां वह खुल कर सांस ले पाएगी.

शाम को फ्लाइट में बैठते हुए उसे ऐसा लग रहा था मानो वह एकदम फूल की तरह हलकी हो गई है.

घर पहुंचते ही मम्मी ने उसे गले से लगा लिया. पापा भी उसे देखते ही खिल गए.

मम्मी ने रात के खाने में सबकुछ उस की पसंद का बनाया. परी का बुझाबुझा चेहरा उन से छिपा न रहा. रात को परी के कमरे में जा कर परी की मम्मी ने प्यार से पूछा, ‘‘परी क्या बात है, मनीष की याद आ रही है?’’

जवाब में परी फूटफूट कर रोने लगी और सारी बातें बता दीं.

कुछ देर रोने के बाद संयत हो कर परी बोली, ‘‘मम्मी, मैं अपने अंदर होने वाले बदलावों से परेशान हूं. मेरी ससुराल में हर वक्त सुंदर और परफैक्ट दिखने की तलवार लटकी रहती है. परेशान हो चुकी हूं मैं.’’

मम्मी उस के सिर पर तब तक प्यार से

हाथ फेरती रहीं जब तक वह गहरी नींद में सो न गई. अगले दिन तक परी काफी हद तक संभल गई थी.

मम्मी उस से बोलीं, ‘‘परी, मुझे पता है

तुम जिंदगी के बदलावों से परेशान हो, पर अगर समस्या है तो समाधान भी होगा. तुम चिंता मत करो हम आज ही किसी महिला विशेषज्ञा के पास चलेंगे.’’

डाक्टर ने सारी बातें बहुत ध्यान से सुनीं और फिर कुछ टैस्ट

लिखे. अगले दिन रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में पता चला परी को ओवरी की समस्या है, जिस में ओवरी के अंदर छोटेछोटे सिस्ट हो जाते हैं. डाक्टर ने रिपोर्ट देखने के बाद बताया कि परी को पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम है, जो हारमोनल बदलाव की वजह से हो जाता है.

इस के प्रमुख लक्षण हैं- चेहरे पर अत्यधिक मुंहासे, माहवारी का अनियमित होना, शरीर और चेहरे के किसी भी भाग पर अनचाहे बाल होना बगैरा.

ये सब बातें सुनने के बाद परी को ध्यान आया कि पिछले कुछ महीनों से उसे माहवारी में भी बहुत अधिक स्राब हो रहा था. डिप्रैशन, वजन का बढ़ना और बिना किसी ठोस वजह के छोटीछोटी बातों पर रोना भी पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम के दूसरे लक्षण हैं.

जब परी ने इस सिंड्रोम के बारे में गूगल पर सर्च किया तो उस ने देखा कि इस सिंड्रोम के कारण महिलाओं को मां बनने में भी समस्या हो जाती है. ये सब पढ़ कर वह चिंतित हो उठी. जब परी की मम्मी ने देखा कि परी 2 दिन से गुमसुम बैठी है तो उन्होंने मनीष को कौल किया और सारी बात बताई.

अगले दिन ही मनीष परी के घर आ गया. मनीष को देख कर परी फूटफूट कर रोने लगी और बोली, ‘‘मनीष, मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं.

मैं अब खूबसूरत नहीं हूं और शायद मां भी नहीं बन पाऊंगी.’’

मनीष बिना कुछ बोले प्यार से उस का सिर सहलाता रहा.

अगले दिन वह परी को साथ ले कर उसी डाक्टर के पास गया और डाक्टर के साथ बैठ कर ध्यानपूर्वक हर चीज को समझने की कोशिश की.

रात को खाने के समय मनीष ने परी के मम्मीपापा से कहा, ‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं कि परी इस दौर से गुजर रही थी और मैं समझ नहीं पाया उलटे उस पर रातदिन एक खूबसूरत और जिम्मेदार बहू होने का दबाव डालता रहा.’’

‘‘कल मैं अपनी परी को ले कर जा रहा हूं पर इस वादे के साथ कि अगली बार वह हंसतीखिलखिलाती नजर आएगी.’’

रातभर परी मनीष से चिपकी रही और पूछती रही कि वह उस से बेजार तो नहीं हो जाएगा? पीसीओएस के कारण परी की त्वचा

के साथसाथ बाल भी खराब होते जा रहे थे.

उस का वजन भी पहले से अधिक हो गया था और 2 ही माह में वह अपने खोल में चली

गई थी.

मनीष ने परी के किसी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया. अगले रोज घर पहुंच कर उस ने अपने मातापिता को भी बताया. शकुंतला जहां इस बात को सुन कर नाखुश लगीं, वहीं कवींद्र चिंतित थे. परी दुविधा में बैठी थी.

मनीष बोला, ‘‘परी, यह सच है तुम्हारी खूबसूरती के कारण ही मैं तुम्हारी तरफ आकर्षित हुआ था पर यह भी झूठ नहीं होगा कि प्यार मुझे तुम्हारी ईमानदारी और भोलेपन के कारण ही हुआ. तुम जैसी भी हो मेरी नजरों में तुम से अधिक खूबसूरत कोई नहीं है.

‘‘अगर कल को मैं किसी दुर्घटना के

कारण अपने हाथपैर खो बैठूं या कुरूप हो जाऊं तो क्या तुम्हारा प्यार मेरे लिए कम हो जाएगा?’’

परी की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. वह कितनी गलत थी मनीष को ले कर? वह क्यों अंदर ही अंदर घुटती रही.

मनीष परी को गले लगाते हुए बोला, ‘‘यह कोई बीमारी नहीं. थोड़ी सी मेहनत और ध्यान रखना पड़ेगा. तुम एकदम ठीक हो जाओगी.’’

परी यह सुन कर हलका महसूस कर रही थी.

5 महीने तक परी डाक्टर की देखरेख में रही, जीवनशैली में बदलाव कर और मनीष के हौसले ने उस में नई ऊर्जा भर दी थी. इस दौरान परी का वजन भी घट गया और त्वचा व बाल फिर से चमकने लगे.

शकुंतला की बातों पर परी अब अधिक ध्यान नहीं देती थी, क्योंकि

उसे पता था कि उस का और मनीष का रिश्ता दैहिक स्तर से परे है. संबल मिलते ही उस के हारमोंस धीरेधीरे सामान्य हो गए और 1 साल के बाद परी और मनीष के संसार में ऐंजेल आ गई.

परी ने मां बनने के बाद अब खुद का ब्लौग आरंभ कर दिया है. ‘मैं कौन हूं,’ जिस में वह अपने अनुभव तमाम उन महिलाओं के साथ साझा करती है, जो इस स्थिति से जूझ रही हैं. पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से जुड़ी हर छोटीबड़ी बात को परी इस ब्लौग में साझा करती है. चेहरे और शरीर पर अनचाहे बाल, ऐक्ने और वजन से परे भी एक महिला की पहचान है, यह परी के ब्लौग का उद्देश्य है. परी का यह ब्लौग ‘मैं कौन हूं’ तमाम उन महिलाओं को समर्पित है जिन का सौंदर्य शरीर और चेहरे तक सीमित नहीं है. उन की पहचान उन के विचारों और जुझारू किरदारों से है.

Short Hindi Story : दोगला – आखिर यामिनी को कौन सा कदम उठाना पड़ा

Short Hindi Story : 11बजे औफिस में मोहन अपने वर्क स्टेशन पर बैठे लैपटौप पर एक रिपोर्ट बना रहे थे. औफिस बौय ने चाय उन की टेबल पर रखी. औफिस नियमों के अनुसार 11 बजे चाय टेबल पर मिलती थी. आगेपीछे पीनी हो तब कैफेटेरिया में जा कर पीनी होती है.

औफिस का टाइम सुबह साढ़े 9 बजे खुलने का है. स्टाफ भी टाइम पर आता है. कंपनी सैक्रेटरी योगेश कभी भी 11 बजे से पहले नहीं आते हैं. उस का कारण था, उन को सिर्फ नाम के लिए रखा गया था. कंपनी ऐक्ट के मुताबिक एक चार्टर्ड सैक्रेटरी होना जरूरी है. नाममात्र का काम होता है, सारा दिन खाली बैठ कर स्टाफ के साथ, कभी किसी के साथ तो कभी किसी के साथ गप्पें ठोंकता रहता है.

मोहन फाइनैंस और टैक्स का काम देखते हैं और एक वर्क स्टेशन छोड़ कर बैठते थे. 11 बजे योगेश औफिस आए, कुछ थके हुए. अपनी कुरसी पर पसर गए. डैस्कटौप को खोला. औफिस बौय ने चाय उन के सामने रखी. अनिरुद्ध तो आईटी डिपार्टमैंट में कार्यरत थे, योगेश से बहुत मित्रता थी. मित्रता का मुख्य कारण कंप्यूटर पर आई दिक्कत को दूर कराना और फिर बोतल की यारी, जो सब से पक्की यारी होती है. अनिरुद्ध टहलते हुए आया और योगेश के पास टहलते हुए बैठ गया. ‘‘और पाजी, आज ढीले लग रहे हो?’’ ‘‘यार क्या बताएं तु?ा को रात की बात. हम ने बेगम को और बेगम ने हमें सोने नहीं दिया.’’ ‘‘छुट्टी कर लेते, यहां कौन सा काम पड़ा है. मालिक विदेश यात्रा पर 1 हफ्ते के लिए निकल गए. अब तो औफिस में मौज ही मौज है.’’ ‘‘अबे क्या बात कर रहा है, उस ने तो 3 दिन बाद जाना था.’’ ‘‘प्रोग्राम बदल गया, कल रात को निकल गए.’’

‘‘कोई बात नहीं, अपना तो रोज का सिलसिला है. आज रात फिर वही होगा, पूरी रात जागना है. न हम ने सोना है न बेगम ने. रात को जब 2 प्रेमी मिलते हैं, उसे मोहन बाबू क्या जानें,’’ योगेश ने तंज कसा.

मोहन ने उम्र का खयाल रखते हुए चुप्पी साध ली. 58 वर्ष के मोहन 35 वर्ष के योगेश और 30 वर्ष के अनिरुद्ध के मुंह नहीं लगना चाहते थे. दोनों की आदत है दूसरों पर तंज कसना. योगेश अपने बैडरूम में क्या करता है, उसे कोई मतलब नहीं. यह उम्र रिटायरमैंट की होती है. कंपनी भी रिटायर करने वाली है. अनिरुद्ध की शादी नहीं हो रही. 30 की उम्र में मोहन 2 बच्चों का पिता बन गया था और एक की शादी भी हो गई थी. अनिरुद्ध योगेश के साथ बातें कर के मजे ले लेता है. ‘मोहन को अनुभव होगा, उम्र है,’’ अनिरुद्ध ने अपना मत योगेश को दिया. मोहन अपने काम में व्यस्त रहे, उन्होंने दोनों की बातों को नजरअंदाज किया. ‘‘पुराने जमाने में वह सारी रात वाली बात नहीं होती थी. जो आज की पीढ़ी में है,’’ दोनों की बातें अब मोहन के बरदाश्त से बाहर हो गईं.

‘‘हर आदमी अपनी जिंदगी जीता है, उस के हालात दूसरे से जुदा होते हैं. तुम्हें मेरे जीवन की तुलना अपने से नहीं करनी चाहिए. हमारे विचार जुदा, रहनसहन जुदा, उम्र में अंतर, जरूरतें जुदा,’’ मोहन की बात सुन कर बाकी स्टाफ भी अपनी सीट छोड़ कर इर्दगिर्द खड़ा हो गया, जिस में युवा लड़कियां भी थीं.

योगेश ने अपनी बात ऊपर रखने के इरादे से फिर तंज कसा, ‘‘मान लो मोहन, बूढ़े हो गए हो. प्रेम का रोग तुम्हारे बस का नहीं है. यह हम जवान रगों में जो जोश खौलता है, वही बेगम को सारी रात जगा सकता है.’’ स्टाफ में एक 40 वर्षीय सुनील भी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था, ‘‘मोहन हमारे सीननयर हैं. रिटायरमैंट के नजदीक हैं. अपनी जवानी में ये भी सारी रात जागे होंगे. हमें कुछ इन के अनुभव से भी ज्ञान लेना चाहिए.’’

‘‘जवानी के काम जवान ही कर सकते. ज्ञान लेना है, मु?ा से लो. नए जमाने का ज्ञान दूंगा,’’ योगेश ने फिर तंज कसा. ?‘‘उम्र के हिसाब से शारीरिक जरूरतें भी बदलती हैं. मैं इस उम्र में आप युवाओं का मुकाबला नहीं कर सकता. मेरी उम्र में शारीरिक प्रेम से अधिक मानसिक प्रेम होता है.’’

‘‘मान गए न, तुम्हारे बस का कुछ नहीं.’’

मोहन ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली. इस उम्र में वह शारीरिक प्रेम नहीं कर सकता. स्टाफ चटकारे ले कर योगेश और अनिरुद्ध के साथ हीही कर रहा था. सुनील ने बात समाप्त की, ‘‘घर की बातें, वे भी रात्रि आनंद की बातें औफिस में करने बैठ गए हो. मालिक विदेश गया है, उस के जासूस तो हैं. मिनट में खबर उस के पास पहुंची नहीं कि तुम सब की खैर नहीं.’’ सुनील की बातें सब के भेजे में घुस गईं और सभी अपने वर्क स्टेशन पर काम में जुट गए. शाम को 6 बजे औफिस बंद होने पर मोहन अपने घर चला गया. योगेश अपनी मित्र मंडली के साथ दारू पार्टी का कार्यक्रम बनाने में व्यस्त था. 5 से 6 बजे तक कई फोन किए. 2 मित्र राजी हुए और योगेश अनिरुद्ध के संग पार्टी पर चले गए. पार्टी में काफी पी गईर्. पार्टी का मुख्य विषय ही रात को घर पहुंच कर पत्नी संग कैसा जश्न रहेगा. अनिरुद्ध कुंआरा उन की बातों को सुन कर ही खुश हो रहा था. मन ही मन वह अपनी शादी के बाद के मंसूबे बांध रहा था. अच्छा अनुभव मिल रहा है. वह भी ऐसा करेगा. पार्टी समाप्ति पर योगेश ओला टैक्सी से घर पहुंचा.

योगेश संयुक्त परिवार में  रहता था. ग्राउंड फ्लोर पर उस के मातापिता, प्रथम मंजिल पर उस का छोटा भाई. योगेश दूसरी मंजिल पर रहता था. रात के डेढ़ बजे थे. पूरी कालोनी में सन्नाटा पसरा था. कहींकहीं कोई कुत्ता भूंक कर चुप्पी तोड़ देता था. घर का मेन गेट बंद. डोरबैल सुन कर भी योगेश की पत्नी यामिनी ने गेट नहीं खोला. वह चुपचाप बिस्तर पर लेटी रही.

‘‘आर्या तुम्हारा नशेड़ी. डोरबैल पर हाथ रख कर बजाय जा रहा है. नींद खोल दी. पूरी रात जागना होगा,’’ योगेश की भाभी ने तुनक कर अपने पति को कहा.

‘‘मेरा नशेड़ी भाई है काम का. डोरबैल बजा कर एक शुभ संदश देता है. प्रेमश्रेम कर लो,’’ योगेश के भाईभाभी मुसकराते हुए एकदूसरे के आगोश में हो लिए. माता ने पिता को ?ां?ार कर उठाया, ‘‘खोलो गेट, नशेड़ी आ गया. मालूम नहीं किस घड़ी में पैदा हुआ था. हमारा बुढ़ापा खराब कर रखा है. रोज नशा करता है.’’ मजबूर हो कर पिता को उठना ही पड़ा. गेट खोलते ही पिता गरम हो गए, ‘‘आज आखिरी बार गेट खोल रहा हूं. अपनी लुगाई को बोल दे, अगर कल से उस ने दरवाजा नहीं खोला तब मैं भी नहीं खोलूंगा.’’

योगेश चुपचाप ?ामता हुआ सीढि़यां चढ़ने लगा. यामिनी ने बैडरूम का गेट भीतर से बंद कर रखा था. योगेश के चिल्लाने पर भी उस ने दरवाजा नहीं खोला. मजबूरन योगेश को ड्राइंगरूम के सोफे पर सोना पड़ा. यामिनी ने योगेश का नाइट सूट सोफे पर रख दिया था. नशे में धुत्त योगेश बिना नाइट सूट पहने सोफे पर लेट गया. सुबह योगेश रात के हैंगओवर में अभी भी सोफे पर अधलेटा था. यामिनी सुबह उठी, बेटे अनिकेत को स्कूल के लिए रैडी किया. स्कूल बस पर चढ़ाया और स्टौप से वापस आ कर जैसे ही घर के गेट को खोला, उस की सास ने रास्ता रोक लिया, ‘‘रात को गेट क्यों नहीं खोला?’’ यामिनी चुपचाप सीढि़यां चढ़ने के लिए आगे बढ़ी. सास ने उस का हाथ पकड़ लिया. ‘‘रास्ता छोड़ो.’’

‘‘देख कल रात तो गेट खोल दिया, आज से नहीं खुलेगा. तु?ो ही खोलना होगा.’’

‘‘जब नशे में आएगा, मैं नहीं उठूंगा. अपने लड़के को बोल दो… बोतल घर बरबाद कर देगी,’’ बोल यामिनी सास का हाथ ?ाटक कर सीढि़यां चढ़ गई.

नीचे मातापिता बहस में उल?ा गए, ‘‘निकाल मारो दोनों को घर से बाहर. अकल ठिकाने आ जाएगी,’’ माताजी बहुत नाराज थीं.

‘‘आने दो नीचे, आज फैसला कर ही दूंगा. रोज का तमाशा बना दिया है,’’ पिताजी को रोज रात को गेट खोलना पड़ता है. चोरी के डर से खुला छोड़ नहीं सकते. तमतमाती यामिनी जैसे ही दूसरी मंजिल पर पहुंची, योगेश ने यामिनी को बांहों में भर लिया, ‘‘जान, इतनी खफाखफा, दूरदूर क्यों रहती हो? वे शादी के तुरंत बाद के हसीन दिन याद करो.’’ यामिनी ने योगेश को ?ाटके से अलग किया, ‘‘पहले मु?ो मालूम नहीं था, नशेड़ी से शादी हुई है. कभीकभार हर कोई पी लेता है. तुम्हारी तरह हरकोई डाउन हो कर रात के 2 बजे बीवी के पास नहीं आता है. जो बीवी से प्यार करता है, वह रात 8-9 बजे तक घर वापस आ जाता है. तब प्रेमश्रेम की बातें होती हैं. ‘‘जब पति उस के साथ सुखदुख बांटता है. तुम सिर्फ पीना और भोगना जानते हो. मेरे अंग तब लगना जब नशेड़ी का बिल्ला तुम्हारे माथे से हट जाए,’’ यामिनी ने तुनक कर बैडरूम का गेट बंद कर दिया. योगेश आराम से साथ पसर गया. सोचने लगा, मालिक विदेश गया है, औफिस से छुट्टी ली जाए और बेगम का मूड सुधारने का यत्न किया जाए. वह सोच ही रहा था, मालिक के सैक्रेटरी का फोन आ गया, ‘‘योगेशजी, औफिस जल्दी पहुंच कर रिपोर्ट ईमेल करनी है… 11 बजे से पहले चाहिए.’’ ‘‘यामिनी, कमरा खोल.

कपड़े निकालने हैं. औफिस जल्दी पहुंचना है.’’ यामिनी ने कमरा खोला. योगेश नहा कर औफिस के लिए रैडी हुआ. यामिनी नाराज थी, उस ने टिफिन पैक नहीं किया. योगेश फटाफट 9 बजे से पहले औफिस पहुंच गया. फटाफट रिपोर्ट तैयार की. साढ़े 9 बजे स्टाफ आया. योगेश को सीट पर बैठा काम करता देख सभी हैरान थे. मोहन ने मुसकरा कर योगेश की ओर देखा और अपना काम करने लगे. मोहन ने योगेश को कुछ नहीं कहा. साढ़े 10 बजे योगेश ने रिपोर्ट तैयार कर मालिक के सैके्रटरी को ईमेल कर दी. रिपोर्ट भेजने के बाद योगेश अपने मूड में आ गया. अनिरुद्ध भी टहलता हुआ योगेश के पास खाली सीट पर बैठ गया, ‘‘और पाजी, रात को फिर क्या हुआ?’’ ‘‘वही जो हर रात करते हैं. बेगम हमारे इंतजार में पलके बिछाई बैठी थी. फिर पूरी रात हम थे और वह थी. न हम ने उसे सोने दिया, न बेगम ने हमे सोने दिया.’’ योगेश ने मोहन पर तंज कसा, ‘‘मोहन बाबू नाराज हो जाएंगे, चल कैफेटेरिया में बैठ कर आराम से बात करते हैं.’’

दोनों के कैफेटेरिया जाने के बाद सुनील मोहन के पास आ कर बैठ गया, ‘‘वह आप को जलीकटी सुना जाता है, आप चुपचाप सुन लेते हो?’’ ‘‘सुनील पत्नी के साथ बिताए अतरंग पल निजी रखे जाते हैं. उन को सार्वजनिक जो करता है सम?ा लो वह ?ाठ बोल रहा है. सचाई को छिपा कर अपने भीतर की भड़ास निकाल रहा है. हर युवा का दिल प्रेम के लिए धड़कता है. तुम्हारा भी दिल करता होगा. हमारा भी करता था.’’ ‘‘मोहन बाबू, यह आप नहीं, आप का अनुभव बोल रहा है.’’ मोहन मुसकरा दिया. सुनील के साथ कैफेटेरिया की ओर बढ़ चले. योगेश अपनी तूती हांक रहा था. चाय की चुसकियों के बीच मोहन और सुनील मुसकरा रहे थे. यामिनी आखिर भारतीय पत्नी थी. रात को पति को कमरे में घुसने नहीं दिया, सुबह भी योगेश को ?िड़क दिया था. टिफिन भी नहीं दिया था. फिर सासूमां से बहस भी हो गईर्. उस का मन उदास था. उस का दिल तो खाना बनाने का नहीं था, लेकिन बच्चे के लिए बनाना था. उस ने खाना बनाया. बच्चे का खाना माइक्रोवेव में रखा. जेठानी को कहा कि योगेश के औफिस टिफिन ले कर जा रही है. लड़के का खाना बना है, उसे खिला देना. यामिनी ने स्कूटी उठाई और योगेश के औफिस की ओर चल दी. एकसाथ लंच कर लें, थोड़ा मनमुटाव भी कम हो जाएगा. यही तो विवाहित जीवन है, कभी ?ागड़ा तो कभी प्यार. अगर वह पहल करेगी, कोई छोटी नहीं हो जाएगी. यही सोच कर यामिनी योगेश के औफिस पहुंची. योगेश अपनी सीट पर नहीं था.

रिसैप्शन से पता चला वह कैफेटेरिया में बैठा है. अभी साढ़े 12 बजे थे. लंच टाइम डेढ़ से 2 के बीच आधे घंटे का था, स्टाफ सुविधानुसार कैफेटेरिया लंच के लिए आता था. एक कोने में योगेश के साथ अनिरुद्ध, सुनील और 2 औफिस बौय बैठे योगेश के अंतरंग किस्से सुन रहे थे. यामिनी के कदम रुक गए. वह थोड़ा पीछे एक टेबल पर टिफिन रख कर योगेश की बातें सुनने लगी.

‘‘और पाजी, फिर क्या हुआ?’’ अनिरुद्ध ने फिर पूछा.

‘‘कुदरत ?ाठ न बुलाए.

अपन रात के डेढ़ से ढाई बजे के बीच ही महफिल समाप्त करने के बाद ही घर पहुंचते हैं. मजाल है बीवी हमारे बिना रात का डिनर कर ले. आंखें बिछा कर मेरा स्वागत होता है. थोड़ा डिनर होता है और हम होते हैं और बांहों में बीवी मचलती है. मोहन बाबू को क्या मालूम, विवाह के बाद सैक्स लाइफ क्या होती है.’’

सभी हां में हां मिलाने लगे, ‘‘बड़े खुशहाल हो योगेश बाबू, जो इतनी अच्छी बीवी मिली है.’’

योगेश ने और डींग हांकी, ‘‘बंदे में दम हो, बंदी खुद मचल जाती है.’’

यामिनी के तनबदन में आग लग गईर्. उसे इतनी उम्मीद नहीं थी कि योगेश रात और सुबह की ?िड़की के बाद भी अपनी सैक्स लाइफ के ?ांडे गाड़ रहा है जबकि योगेश के नशे के कारण उन की सैक्स लाइफ तो पिछले 5 महीने से बंद है.

यामिनी टेबल से उठी और योगेश के सामने टिफिन पटक दिया, ‘‘और योगेश बाबू, यह नहीं बताओगे कि कल रात जब देर रात घर लौटे थे, मैं ने बैडरूम का दरवाजा नहीं खोला था और तुम कहां सोए थे. वैसे हम दोनों ने पिछले 5 महीने से सैक्स किया ही नहीं, फिर कल रात तुम्हारी बांहों में कौन मचल रही थी?’’

यामिनी को औफिस में देख कर योगेश हैरान हो गया. उसे यामिनी के औफिस आने की उम्मीद कतई नहीं थी.

‘‘या… या… या… यामिनी तुम औफिस में कैसे?’’ योगेश हकलाते हुए बड़ी मुश्किल से बोल सका.

‘‘अगर रात को 8 बजे तक घर आ गए तो बैडरूम में सोने के लिए जगह मिल जाएगी. देर से आए तो उसी के साथ सोना जिस की चर्चा कर रहे थे,’’ और फिर यामिनी टिफिन को वही छोड़ कर औफिस से निकल गई. उस की आंखों में आंसू थे.

योगेश की महफिल के साथी उसे अकेला छोड़ कर अपनीअपनी सीट पर बैठ चुके थे. सभी योगेश के अपनी सैक्स लाइफ के दोगलेपन पर अचंभित थे. उन की नजर में यामिनी का व्यवहार उचित था. कौन बीवी नशेड़ी पति के साथ सैक्स कर के खुश रहेगी. कैफेटेरिया में योगेश अकेला एक लुटे जुआरी की तरह शून्य में ताक रहा था.

Story : पवित्र प्रेम – क्या था रूपा की खुद से नफरत का कारण?

Story : ‘‘रूपा मैडम, आप कितनी प्यारी हैं. आप का मन कितना सुंदर है. काश, आप की जैसी हिम्मत हम सब में भी होती,’’ रूपा की मेड नीना ने बड़े आदर से कहा और फिर कौफी का कप दे कर अपने घर चली गई.

रूपा मुसकराने लगी. वह पिछले 2 वर्षों से पर्सनैलिटी डैवलपमैंट की क्लासेज ले रही थी. इस क्षेत्र में उसे अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई थी. उस के सैंटर की ख्याति दूरदूर तक फैली हुई थी. 2 वर्षों में ही उस ने अपने व्यवहार, मेहनत, कौशल, आत्मविश्वास एवं आत्मीयता से समाज में सम्मान अर्जित कर लिया था. उस के गुणों

और आत्मिक सौंदर्य के आगे उस की कुरूपता एकदम बौनी हो गई थी. अनेक विषम परिस्थितियों में तप कर उस ने अपने सोने जैसे व्यक्तित्व को संवारा था. प्रेम की अपार शक्ति जो थी उस के साथ.

उस दिन नीना के जाने के बाद रूपा घर में बिलकुल अकेली हो गई थी. उस के पति विशाल और ससुर ऐडवोकेट प्रमोद केस की सुनवाई के लिए गए हुए थे. कौफी का कप हाथ में लिए सोफे पर बैठी रूपा अपने जीवन की गहराइयों में खो गई. उस की जिंदगी का 1-1 पल उस की आंखों में उतरने लगा.

रूपा की यादों में युवावस्था का वह चित्र जीवंत हो उठा, जब एक दिन अचानक एक सुनसान गली में आवारा रोहित उस का रास्ता रोक अश्लील फबतियां कसते हुए बोला, ‘‘मेरी जान, तुम किसी और की नहीं हो सकती, तुम बस मेरी हो.’’

रोहित की बदनीयत देख कर रूपा डर से कांपने लगी. उस दिन वह जैसेतैसे भाग कर अपने घर पहुंची थी. उस की सांसें बहुत तेज चल रही थीं. उस की मां गीता ने उसे सीने से लगा लिया. जब रूपा कुछ शांत हुई तब मां ने पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’

रूपा ने रोहित के विषय में सबकुछ बता दिया. रोहित के व्यवहार से वह इतनी डर गई थी कि अब कालेज भी नहीं जाना चाहती थी. जब कभी वह अकेली बैठती, रोहित की घूरती आंखें और अश्लील हरकतें उसे डराती रहती.

कुछ दिन बाद रूपा ने बड़ी मुश्किल से कालेज जाना शुरू किया, परंतु रोहित उसे रोज कुछ न कुछ कह कर सताता रहता था. एक दिन जब रूपा ने उसे पुलिस की धमकी दी तो उस

ने कहा, ‘‘पुलिस मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी. मुझ से शादी नहीं करोगी, तो मैं तुम्हें जीने भी नहीं दूंगा.’’

रूपा ने अपनी प्रिंसिपल को भी रोहित के विषय में सब बताया, परंतु कालेज के बाहर का मामला होने के कारण उन्होंने भी कोई खास ध्यान नहीं दिया. रूपा को अपने पापा की बहुत याद आती थी. वह सोचती थी कि काश पापा जीवित होते तो कोई उसे इस तरह तंग नहीं कर पाता.

रूपा और उस की मां का चैन से जीना दूभर होता जा रहा था. रूपा ने बड़ी मुश्किलों का सामना कर एमए (मनोविज्ञान) फाइनल की परीक्षा दी थी.

एक दिन उस की मां गीता ने उसे विवाह के लिए मनाते हुए कहा, ‘‘रूपा, चंडीगढ़ में मेरी सहेली का बेटा विशाल है. वह इंजीनियर है. बहुत ही समझदार है. क्या मैं उस से तुम्हारी शादी की बात चलाऊं?’’

रूपा तुरंत मान गई. वह भी उस गुंडे रोहित से अपना पीछा छुड़ाना चाहती थी. शादी की बात चली और रिश्ता तय हो गया.

विवाह के मधुर पलों की याद आते ही रूपा की आंखों में एक चमक सी आ गई. उस ने कौफी का कप एक ओर रख दिया और सोफे पर ही लेट गई. उस के विचारों की पतंग उड़े जा रही थी.

रूपा और विशाल का विवाह चंडीगढ़ में बड़ी धूमधाम से संपन्न हो गया. विशाल जैसे होशियार, रूपवान, समझदार और प्यार करने वाले युवक का साथ पा कर रूपा बहुत खुश थी. उसे जीवन की सारी खुशियां मिल गई थीं.

रूपा धीरेधीरे अपनी नई प्यारभरी जिंदगी में रचबस गई. वह अपने सासससुर की भी बहुत लाडली थी. उस ने घर की सभी जिम्मेदारियां संभाल ली थीं. सभी उस के रूप और गुणों के प्रशंसक बन गए थे.

रूपा ने रोहित के विषय में विशाल को भी सबकुछ बता दिया था. विशाल ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘‘डरना छोड़ो रूपा. होते हैं कुछ ऐसे सिरफिरे. तुम उसे भूल जाओ. अब मैं हूं न तुम्हारे साथ.’’

विवाह के 3 वर्ष बीत चुके थे. इस बीच कई बार रूपा और विशाल

चंडीगढ़ से लखनऊ गए, पर वह आवारा रोहित कभी उन के सामने नहीं आया. रूपा धीरेधीरे उसे भूल गई. उसे अपनी जिंदगी पर नाज होने लगा था.

एक दिन रूपा लखनऊ में अपने पति विशाल के साथ बाजार से लौट रही थी. तभी अचानक उस मनचले गुंडे रोहित ने रूपा के सुंदर चेहरे पर तेजाब फेंकते हुए कहा, ‘‘ले अब दिखा, अपना यह रूप विशाल को.’’

रूपा का सुंदर चेहरा पलभर में जल कर बदसूरत हो गया. वह रूपा से कुरूपा हो गई. मगर सुंदर चेहरे पर तेजाब डालने वाला रोहित अपनी जीत पर मुसकरा रहा था.

विशाल तो ये सब देख कर स्तब्ध सा रह गया. फिर तुरंत पुलिस को फोन किया और सहायता के लिए चिल्लाने लगा. कुछ ही देर में बहुत लोग एकत्रित हो गए. रोहित के हाथ में ऐसिड की बोतल थी. अत: कोई भी डर के मारे उस के पास नहीं जा रहा था. तभी पुलिस ने आ कर उसे पकड़ लिया.

विशाल रूपा को ऐंबुलैंस में अस्पताल ले गया.

औपचारिकताएं पूरी होने के बाद रूपा का इलाज शुरू हुआ. उस की दोनों आंखों की पुतलियां दिखाई ही नहीं दे रही थीं. उस का चेहरा इतना बिगड़ चुका था कि डाक्टर ने विशाल को भी उसे देखने की इजाजत नहीं दी. रूपा को इंटैंसिव केयर में रखा गया. 2 दिन बाद जब रूपा की मां गीता और विशाल को रूपा से मिलाया गया तब मां की चीख निकल गई. ऐसिड फेंकने का घिनौना अपराध करने वाले रोहित के प्रति उन का मन विद्रोह की आग से भर उठा.

लगभग ढाई महीने बाद रूपा को अस्पताल से छुट्टी मिली, परंतु

इलाज का यह अंत नहीं था. इस बीच न तो उसे दृष्टि मिली थी और न ही रूप. उस के और कई औपरेशन होने बाकी थे.

विशाल रूपा को वापस चंडीगढ़ ले गया. उस की आंखों और चेहरे के कई औपरेशन हुए.

धीरेधीरे आंखों की रोशनी वापस आ गई. जब रूपा ने इस घटना के बाद पहली बार दुनिया देखी तब उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, अपना चेहरा देखा तो चीख पड़ी. उसे शीशे में अपना ही भूत नजर आया. वह विशाल के सीने से लग कर जोरजोर से रोते हुए बोली, ‘‘विशाल, इस कुरूप चेहरे को ले कर मैं तुम्हारी जिंदगी नहीं बिगाड़ सकती. मैं जीवित नहीं रहना चाहती. मुझ से इतना प्यार मत करो.’’

विशाल की आंखें छलकने को थीं, पर उस ने अपने आंसुओं को किसी तरह पी लिया. उस ने रूपा को प्यार से गले लगाते हुए कहा, ‘‘रूपा, तुम मेरी बहादुर पत्नी हो. तुम ही तो मेरी जान हो. तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं है. मैं मात्र तुम्हारी सूरत से नहीं, अपितु तुम से प्यार करता हूं. तुम ऐसे हार मान जाओगी तो मेरा क्या होगा?’’

रूपा अपने कुरूप चेहरे पर विशाल के होंठों का स्पर्श पा कर फफकफफक कर रोने लगी. उस की हिचकियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं. वह विशाल के नि:स्वार्थ प्यार की गहराइयों में डूब कर अपनी कुरूपता को दोषी मान रही थी. उसे लग रहा था जैसे उस का चेहरा ही नहीं, बल्कि विशाल की खुशियां भी तेजाब से जल कर खाक हो गई हैं.

अपने डरावने चेहरे को देख कर रूपा की निराशा दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही थी. ऐसी विदू्रपता, विकृति को देख उस के मन को गहरी चोट पहुंची थी. जब वह लोगों को स्वयं को घूरते देखती तो ऐसा लगता मानों सब उस की कुरूपता को देख कर सहम गए हैं. हर नजर उस के मन को छेद देती थी.

रूपा एक दिन परेशान हो कर विशाल से बोली, ‘‘विशाल, मेरी जैसी कुरूप लड़की के साथ तुम क्यों अपना जीवन व्यर्थ करना चाहते हो? तुम क्यों दूसरी शादी नहीं कर लेते हो? अपनी खुशियां मेरी इस कुरूपता पर मत लुटाओ. तुम मुझे तलाक दे दो.’’

विशाल ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘रूपा, मैं ने विवाह का प्यारा बंधन तोड़ने के लिए नहीं जोड़ा. पतिपत्नी का मिलन 2 दिलों का मिलन होता है. क्या मात्र एक

दुर्घटना हमें जुदा कर सकती है? यदि मेरे साथ ऐसी दुर्घटना हो जाती तो क्या तुम मुझे तलाक दे देतीं?’’

रूपा ने विशाल के मुंह पर हाथ रख दिया. उस की आंखों से प्रेम के आंसुओं के झरने बहने लगे. उस का मन विशाल के त्याग और प्रेम को पा कर धन्य हो उठा.

चंडीगढ़ में रूपा का इलाज चलता रहा. तेजाब से जली त्वचा का महंगा

और लंबा इलाज विशाल की माली हालत तथा उस के काम पर भी दुष्प्रभाव डाल रहा था, किंतु उस ने रूपा को कभी ऐसा महसूस नहीं होने दिया. वह एक जिम्मेदार पति की तरह अपने कर्तव्यों को बखूबी निभा रहा था.

विशाल के पिता ऐडवोकेट प्रमोद नामी वकील थे. वे रूपा की न्यायिक प्रक्रिया के कार्यों में दिनरात लगे थे. उन्होंने उस जघन्य अपराधी को सजा दिलवाने की ठान ली थी. इस के अतिरिक्त इलाज आदि के लिए जो सरकार से मदद का प्रावधान था, उसे प्राप्त करने के लिए भी वे प्रयत्नशील थे.

अचानक रूपा की स्मृतियों में अपने रिश्तेदार की बातें कांटे की तरह चुभने लगीं. एक दिन रूपा को देखने रिश्तेदार आए थे. वे रूपा से मिले और चलतेचलते विशाल से बोले, ‘‘भैया, तुम्हारी ही हिम्मत है जो तुम इस की सेवा कर रहे हो. आजकल की लड़कियां तो प्रेम किसी से करती हैं और शादी किसी से. परिणाम तुम जैसे पतियों को भुगतना पड़ता है. पहले ही जन्मपत्री मिला कर शादी की होती तो ऐसी दुर्घटना से बच जाते. मेरी सलाह मानो तो दूसरी शादी कर लो. कब तक ढोओगे इस की बदसूरती को.’’

विशाल के पिता प्रमोद ये सब सुन रहे थे. वे तपाक से बोले, ‘‘भाई साहब, आप ने तो अपने बेटे की शादी खूब जन्मपत्री मिला कर की थी न, फिर क्या हुआ था? याद है न, आप की बहूरानी तो शादी के दूसरे दिन ही आप सब को छोड़ कर मायके चली गई थी. जन्मपत्री मिला कर आप ने कौन से फूल खिला लिए थे? हमारी निर्दोष बहू पर लांछन लगाने से पहले अपने गरीबान में तो झांक कर देख लिया होता.’’

उस दिन रिश्तेदार की बात सुन कर रूपा को ऐसा लगा था जैसे एक बार फिर किसी ने कटुता का ऐसिड उस पर डाल दिया हो. उस का मन छलनी हो गया था. वह मर जाना चाहती थी. अपना मुंह छिपा कर रोने लगी.

विशाल दिल पर पत्थर रख कर उस का हाथ अपने हाथ में ले कर बोला, ‘‘तुम चिंता मत करो रूपा. मैं तुम्हारा पति हूं और मैं तुम्हारे साथ हूं. जब कोई ऐसी बेतुकी बात करता है, तो मन करता है उस का मुंह नोच लूं. पर यह भी इस का समाधान नहीं… समाज में स्त्रियों को जब तक मानसम्मान नहीं मिलेगा तब तक यही स्थिति रहेगी. हमें ऐसे दकियानूसी और पाखंडी लोगों की सोच बदलनी होगी.’’

रूपा विशाल की गोदी में सिर रख कर रोए जा रही थी.

विशाल ने उस के बालों को सहलाते हुए कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि मेरी रूपा फिर से हंसना सीख ले. अपने को बारबार कुरूप कहना छोड़ दे. रूपा, मेरे लिए तुम आज भी उतनी ही सुंदर हो जितनी पहले थी. मैं जानता हूं कि तुम्हारा मन कितना सुंदर और पवित्र है.’’ और फिर विशाल ने रूपा को जूस पिला कर सुला दिया.

हर दिन एक नया दिन होता था. कुछ घाव सूखते थे तो कुछ वाणी के घाव नए बन जाते थे. विशाल ने रूपा का मन धीरेधीरे प्राणायाम की ओर आकर्षित किया. वह हमेशा उस से कहता कि अपने मन को महसूस करो, जो बहुत सुंदर है. रूपा तुम्हें ऐसे अपराधियों के विरुद्ध लड़ना है. तुम्हें हिम्मत बढ़ानी है. तुम सुंदर हो. शक्तिशाली हो, मनोविज्ञान की ज्ञाता हो. तुम्हारे अंदर असीम शक्तियां छिपी हैं. तुम ऐसे हार नहीं मान सकतीं. मन में आशा और विश्वास भर कर तुम्हें समाज की बुराइयों को दूर करना है.

रूपा पर विशाल की बातों का असर होने लगा था. वह मरमर कर भी जीना सीख रही थी. उस ने मन में विश्वास भर कर पर्सनैलिटी डैवलपमैंट की पुस्तकें पढ़नी शुरू कर दीं. उस के भीतर अपनी नई पहचान बनाने की लौ जाग उठी थी.

दूसरी ओर न्यायिक प्रक्रिया भी चल रही थी. विशाल और उस के पिता तारीख पड़ने पर कोर्ट जाते थे. 1 वर्ष बाद की तारीख में विशाल अपने मातापिता और रूपा को भी कोर्ट में ले कर पहुंचा था. अपराधी रोहित पहले से वहां था. विशाल रूपा को सहारा दे कर बड़े प्यार और सम्मान से जब कोर्ट में दाखिल हुआ तो उस नजारे को देख कर अपराधी रोहित की उम्मीदों पर तो जैसे पानी ही फिर गया. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसी बदसूरत लड़की को भी कोई पति प्यार करेगा.

विशाल ने रूपा की खुशियां छीनने वाले अपराधी रोहित को नफरतभरी नजर से देखते हुए कहा, ‘‘तुम ने जो हमारे संग किया है, उस का दंड तुम्हें बहुत जल्दी मिलेगा. मेरे हिसाब से तुम दुनिया के सब से कुरूप व्यक्ति हो… दुनिया में तुम्हें कोई पसंद नहीं करेगा, जबकि रूपा को इस हालत में भी सब चाहते हैं. वह हमेशा सुंदर थी और सुंदर रहेगी.’’

उस दिन रूपा भी रणचंडी बनी हुई थी. उस की आंखों में उस अपराधी के लिए घृणा के साथसाथ क्रोध की भी ज्वाला धधक रही थी. वह किसी तरह अपना गुस्सा पी रही थी.

रूपा अपने विचारों के सागर में डूबी हुई थी कि अचानक घड़ी के 5 घंटे सुनाई दिए तो सकपका कर उठ खड़ी हुई और फिर अपने काम में लग गई.

कुछ ही देर में विशाल और प्रमोद कोर्ट से घर लौट आए. वे बहुत खुश थे, क्योंकि रूपा की जीत हुई थी. उस अपराधी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

Stories In Hindi : फोन कौल्स – आखिर मीनाक्षी को फोन कौल्स करने वाला कौन था?

Stories In Hindi : ट्रिंग ट्रिंग… लगा फिर से फोन बजने,‘ फोन की आवाज से पूरा हौल गूंज उठा. आज रात तीसरी बार फोन बजा था. उस समय रात के 2 बज रहे थे. मीनाक्षी गहरी नींद में सो रही थी. उस के पिता विजय बाबू ने फोन उठाया. उस तरफ से कोई नाटकीय अंदाज में पूछ रहा था, ‘‘मीनाक्षी है क्या?’’

‘‘आप कौन?’’ विजय बाबू ने पूछा तो उलटे उधर से भी सवाल दाग दिया गया, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘यह भी खूब रही, तुम ने फोन किया है और उलटे हम से ही पूछ रहे हो कि मैं कौन हूं.’’

‘‘तो यह मीनाक्षी का नंबर नहीं है क्या? मुझे उस से ही बात करनी है, मैं बुड्ढों से बात नहीं करता?’’

‘‘बदतमीज, कौन है तू? मैं अभी पुलिस में तेरी शिकायत करता हूं.’’

‘‘बुड्ढे शांत रह वरना तेरी भी खबर ले लूंगा,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

विजय बाबू गुस्से से तिलमिला उठे. उन्हें अपनी बेटी पर बहुत गुस्सा आ रहा था. उन का मन हुआकि जा कर दोचार थप्पड़ लगा दें मीनाक्षी को.

‘2 दिन से इसी तरह के कई कौल्स आ रहे हैं. पहले ‘हैलोहैलो’ के अलावा और कोई आवाज नहीं आती थी और आज इस तरह की अजीब कौल…’ विजय बाबू सोच में पड़ गए.

मीनाक्षी ने अच्छे नंबरों से 12वीं पास की और एक अच्छे कालेज में बी कौम (औनर्स) में दाखिला लिया था. पहले स्कूल जाने वाली मीनाक्षी अब कालेज गोइंग गर्ल हो गई थी. कालेज में प्रवेश करते ही एक नई रौनक होती है. मीनाक्षी थी भी गजब की खूबसूरत. उस के काफी लड़केलड़कियां दोस्त होंगे, पर ये कैसे दोस्त हैं जो लगातार फोन करते रहते हैं तथा बेतुकी बातें करते हैं.

अगली सुबह जब विजय बाबू चाय की चुसकियां ले रहे थे और उधर मीनाक्षी कालेज के लिए तैयार हो रही थी, तभी विजय बाबू ने मीनाक्षी को बुलाया, ‘‘मीनाक्षी, जरा इधर आना.’’

डरतेडरते वह पिता के सामने आई. उस का शरीर कांप रहा था. वह जानती थी कि पिताजी आधी रात में आने वाली फोन कौल्स के बारे में पूछने वाले हैं क्योंकि परसों रात जो कौल आई थी, मीनाक्षी के फोन उठाते ही उधर से अश्लील बातें शुरू हो गई थीं. वह कौल करने वाला कौन है, उसे क्यों फोन कर रहा है, ये सब उसे कुछ भी मालूम नहीं था. वह बेहद परेशान थी. इस समस्या के बारे में किस से बात की जाए, वह यह भी समझ नहीं पा रही थी.

‘‘कालेज जा रही हो?’’ विजय बाबू ने बेटी से पूछा.

मीनाक्षी ने सिर हिला कर हामी भरी.

‘‘मन लगा कर पढ़ाई हो रही है न?’’

‘‘हां पिताजी,’’ मीनाक्षी ने जवाब दिया.

‘‘कालेज से लौटते वक्त बस आसानी से मिल जाती है न, ज्यादा देर तो नहीं होती?’’

‘‘हां पिताजी, कालेज के बिलकुल पास ही बस स्टौप है. 5-10 मिनट में बस मिल ही जाती है.’’

‘‘क्लास में न जा कर दोस्तों के साथ इधरउधर घूमने तो नहीं जाती न,’’ मीनाक्षी को गौर से देखते हुए विजय बाबू ने पूछा.

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं है पिताजी.’’

‘‘देखो, अगर कोई तुम्हारे साथ गलत व्यवहार करता हो तो मुझे फौरन बताओ, डरो मत. मेरी इज्जतप्रतिष्ठा को जरा भी ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए. मैं इसे कभी बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

मीनाक्षी ने ‘ठीक है’, कहते हुए सिर हिलाया. आंखों में भर आए आंओं को रोकते हुए वह वहां से जाने लगी. ‘‘मीनाक्षी’’, विजय बाबू ने रोका, मीनाक्षी रुक गई.

‘‘रात को 3 बार तुम्हारे लिए फोन आया. क्या तुम ने किसी को नंबर दिया था?’’

‘‘नहीं पिताजी, मैं ने अपने क्लासमेट्स को वे भी जो मेरे खास दोस्त हैं, को ही अपना नंबर दिया है.’’

‘‘उन खास दोस्तों में लड़के भी हैं क्या?’’ विजय बाबू ने पूछा.

‘‘नहीं, कुछ परिचित जरूर हैं, पर दोस्त नहीं.’’

‘‘ठीक है, अब तुम कालेज जाओ.’’

इस के बाद विजय बाबू ने फोन कौल्स के बारे में ज्यादा नहीं सोचा, ‘कोई आवारा लड़का होगा,’ यह सोच कर निश्चिंत हो गए.

शाम को जब विजय बाबू दफ्तर से लौटे तो मीनाक्षी की मां लक्ष्मी को कुछ परेशान देख उन्होंने इस का कारण पूछा तो वे नाश्ता तैयार करने चली गईं.

दोनों चायबिस्कुट के साथ आराम से बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगे, लेकिन विजय बाबू को लक्ष्मी के चेहरे पर कुछ उदासी नजर आई. ‘‘ऐसा लगता है कि तुम किसी बात को ले कर परेशान हो. जरा मुझे भी तो बताओ?’’ विजय बाबू ने अचानक सवाल किया.

‘‘मीनाक्षी के बारे में… वह… फोन कौल…‘‘ लक्ष्मी ने इतना ही कहा कि विजय बाबू सब मामला समझते हुए बोले, ‘‘अच्छा रात की बात? अरे, कोई आवारा होगा. अगर उस ने आज भी कौल की तो फिर पुलिस को इन्फौर्म कर ही देंगे.’’

लक्ष्मी ने सिर हिला कर कहा, ‘‘नहीं. पिछले 2-3 दिन से ही ऐसे कौल्स आ रहे हैं. मैं ने मीनाक्षी को फोन पर दबी आवाज में बातें करते हुए भी देखा है. जब मैं ने उस से पूछा तो उस ने ‘रौंग नंबर‘ कह कर टाल दिया. आज दोपहर में भी फोन आया था. मैं ने उठाया तो उधर से वह अश्लील बातें करने लगा. मुझे तो ऐसा लगता है कि हमारी बेटी जरूर हम से कुछ छिपा रही है.’’

‘‘तुम्हारा क्या सोचना है कि ऐसे लड़के मीनाक्षी के बौयफ्रैंड्स हैं?’’

‘‘कह नहीं सकती. पर क्या बौयफ्रैंड्स ऐसे लफंगे होते हैं. हमारे समय में भी कालेज हुआ करते थे. उस वक्त भी कुछ लड़के असभ्य होते थे. लड़कियां, लड़कों से बातें करने में शरमाती थीं कि कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा. वे तो हमें कीड़ेमकोड़े की तरह दिखते थे. फिर भी वहां लड़केलड़कियों में डिग्निटी रहती थी.’’

‘‘ऐसे कीड़े तो हर जगह होते हैं लक्ष्मी, जरूरी होता है कि हम उन कीड़ों से कितना बच कर रहते हैं. आज रात अगर फोन कौल आई तो हम इस की खबर पुलिस में करेंगे, तुम भी मीनाक्षी से प्यार से पूछ कर देखो,’’ विजय बाबू ने समझाया.

लक्ष्मी ने गहरी सांस लेते हुए सिर हिला कर हामी भरी और गहरी सोच में डूब गई. जवान होती लड़कियों की समस्याओं के बारे में वे भी जानती थीं. प्रेमपत्र, बदनामी, जाली फोटो, बेचारी लड़कियां न किसी को बता पाती हैं और मन में रख कर ही घुटघुट कर जीती हैं. कुछ कहने पर लोग उलटे उन्हीं पर शक करते हैं. कितनी यातनाएं इन लड़कियों को सहनी पड़ती हैं.

पहले जमाने में लोग लड़कियों को घर से बाहर पढ़ने नहीं भेजते थे बल्कि घरों में ही कैद रखते थे. लोग सोचते थे कि कहीं ऊंचनीच न हो जाए जिस से समाज में

मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. इस से उन के व्यक्तित्व पर कितना बुरा असर पड़ता है, लेकिन अब समय के साथ लोगों की मानसिकता बदली है. लोग बेटियों को भी बेटे के समान ही मानते हैं. उन्हें जीने की पूरी आजादी दे रहे हैं. इस से इस तरह की कई समस्याएं भी सामने आ रही हैं.

लक्ष्मी ने मन ही मन सोचा कि मीनाक्षी को बेकार की बातों से परेशान नहीं करेंगी तथा प्यार से सारी बातें पूछेंगी.

उस रात भी फोन कौल्स आईं. फोन एक बार तो विजय बाबू ने उठाया, फिर लक्ष्मी ने उठाया तो कोई जवाब नहीं आया. जब तीसरी बार फोन आया तो उन दोनों ने मीनाक्षी से फोन उठाने को कहा और उस का हौसला बढ़ाया. मीनाक्षी ने डरतेडरते फोन उठाया. मीनाक्षी बोली, ‘‘मैं तुम्हें बिलकुल नहीं जानती. मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो मेरे पीछे पड़े हो. मेरा पीछा छोड़ दोे.’’ यह कह कर वह फफक पड़ी. ‘अभी पूछना सही नहीं होगा,‘ यह सोच मीनाक्षी को चुप करा कर सभी सो गए. पर नींद किसी की आंखों में नहीं थी. अगली सुबह दोनों ने मीनाक्षी से पूछा, ‘‘बेटी, यह क्या झमेला है?’’

मीनाक्षी रोंआसी हो कर बोली, ‘‘मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘रात को फोन करने वाले ने तुझ से क्या कहा.’’

‘‘कह रहा था कि मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम बहुत खूबसूरत हो. क्या तुम कल सुबह कालेज के पास वाले पार्क में मिलोगी.’’

‘‘ठीक है, अब तुम निडर हो कर कालेज जाओ. बाकी मैं देखता हूं, इस के बारे में तुम बिलकुल मत सोचो, अब तुम अकेली नहीं, बल्कि तुम्हारे मातापिता भी तुम्हारे साथ हैं.’’

‘‘मीनाक्षी ने हामी भरी और कालेज जाने की तैयारी करने लगी. विजय बाबू सीधे पुलिस स्टेशन गए और वहां उन्होंने शिकायत दर्ज कराई और सारा माजरा बता दिया. इंस्पैक्टर ने उन्हें जल्द कार्यवाही करने की तसल्ली दे कर घर जाने को कहा.’’

2-3 दिन गुजर गए. अगले दिन पुलिस स्टेशन से फोन आया. मीनाक्षी को भी साथ ले कर आने को कहा गया था. विजय बाबू जल्दीजल्दी मीनाक्षी को साथ ले कर थाने पहुंचे.

पुलिस इंस्पैक्टर ने उन्हें बैठने को कहा और कौंस्टेबल को बुला कर उसे कुछ हिदायतें दीं. वह अंदर जा कर एक लड़के के साथ वापस आया.

इंस्पैक्टर ने पूछा, ‘‘क्या आप इस लड़के को जानती हैं?’’

‘‘जी नहीं, मैं इसे नहीं जानती.’’

‘‘मैं बताता हूं, यह कौन है और इस ने क्या किया है.’’ इंस्पैक्टर ने कहना जारी रखा, ‘‘आप अपनी सहेली नीलू को जानती हैं न.’’

‘‘जी हां, मैं उसे बखूबी जानती हूं. वह मेरी कालेज में सब से क्लोज फ्रैंड है.’’

‘‘और यह आप की क्लोज फ्रैंड का सगा भाई नीरज है. यह बहुत आवारा किस्म का इंसान है. यह अपनी बहन नीलू के मोबाइल में आप का फोटो देख कर आप का दीवाना हो गया और फिर उसी के मोबाइल से आप का नंबर ले कर आप को कौल्स करने लगा. इसी तरह यह आप के सिवा और भी कई लड़कियों के नंबर्स नीलू के मोबाइल से ले कर चोरीछिपे उन्हें तंग करता है. इस के खिलाफ कईर् शिकायतें हमें मिलीं हैं. अब यह हमारे हाथ आया है और मैं इस की ऐसी क्लास लूंगा कि यह हमेशा के लिए ऐसी हरकतें करना भूल जाएगा. मैं ने इस के मातापिता तथा नीलू को खबर कर दी है. वे यहां आते ही होंगे.’’

‘‘मैं इस पर केस करना चाहता हूं. इस तरह के अपराधियों को जब सजा मिलेगी तभी ये ऐसी घिनौनी हरकतें करना बंद करेंगे,’’ विजय बाबू ने जोर दे कर कहा.

मीनाक्षी चुपचाप उन की बातें सुन रही थी. वह अंदर ही अंदर उबल रही थी कि 4-5 थप्पड़ जड़ दे उसे.

इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘आप का कहना भी सही है पर ऐसे केस जल्दी सुलझते नहीं हैं. बारबार कोेर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं. इन्हें बेल भी चुटकी में मिल जाती है.’’

इतने में नीरज के मातापिता तथा बहन नीलू भी वहां आ पहुंचे. नीलू को देख कर मीनाक्षी उस के गले लिपट कर रोने लगी. नीलू की मां ने नीरज को जा कर 4-5 थप्पड़ जड़ दिए और बोलीं, ‘‘नालायक तुझे इतना भी खयाल नहीं आया कि तेरी भी एक बहन है और बहन की सहेली भी बहन ही तो होती है. इंस्पैक्टर साहब, इसे जो सजा देना चाहते हैं दीजिए.’’

नीरज के पिता, विजय बाबू से विनती कर बोले, ‘‘भाई साहब, इसे माफ कर दीजिए. मैं मानता हूं कि इस ने गलती की है.  इस में इस की उम्र का दोष है. इस उम्र के बच्चे कुछ भी कर बैठते हैं. ये अब ऐसी हरकतें नहीं करेगा. इस की जिम्मेदारी मैं लेता हूं और आप को विश्वास दिलाता हूं कि यह दोबारा ऐसे फोन कौल्स नहीं करेगा.’’ फिर बेटे की तरफ देख कर बोले, ‘‘देखता क्या है जा अंकल से सौरी बोल.’’

नीरज सिर झुका कर विजय बाबू के पास गया और उन के सामने हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए अंकल, अब मुझ से ऐसी गलती कभी नहीं होगी. आज से मेरे बारे में कोई शिकायत आप के पास नहीं आएगी,’’ फिर वह मीनाक्षी की ओर मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आई एम वैरी सौरी मीनाक्षी दीदी, प्लीज मुझे माफ कर दो. आज से मैं तुम्हें तो क्या कभी किसी और लड़की को तंग नहीं करूंगा.’’ गुस्से से लाल मीनाक्षी ने सिर उठा कर नीरज की तरफ देखा और फिर सिर हिला दिया.

Kahani In Hindi : दुविधा – क्या रघु को छोड़ पाई बुआ

Kahani In Hindi : कपड़े तहियाते हुए आरती के हाथ थम गए. उस की आंखें नेपथ्य में जा टंगीं. मन में तरहतरह के विचार उमड़नेघुमड़ने लगे. उसे लगा कि वह एक स्वप्नलोक में विचर रही है. उसे अभी भी विश्वास न हो रहा था कि पूरे 10 साल बाद उस का प्रेमी मिहिर फिर उस की जिंदगी में आया था और उस ने उस की दुनिया में हलचल मचा दी थी. वह बैंक में अपने केबिन में सिर झुकाए काम में लगी थी कि मिहिर उस के सामने आ खड़ा हुआ. ‘‘अरे तुम?’’ वह अचकचाई. उस चिरपरिचित चेहरे को देख कर उस का दिल जोरों से धड़क उठा.

‘‘चकरा गईं न मुझे देख कर,’’ मिहिर मुसकराया.

‘‘हां, तुम तो विदेश चले गए थे न?’’ उस ने अपने चेहरे का भाव छिपाते हुए पूछा,

‘‘इस तरह अचानक कैसे चले आए?’’

‘‘बस यों ही चला आया. अपने देश की मिट्टी की महक खींच लाई. तुम अपनी सुनाओ, कैसी गुजर रही है हालांकि मुझे यह पूछने की जरूरत नहीं है. देख ही रहा हूं कि तुम मैनेजर की कुरसी पर विराजमान हो. इस का मतलब है कि तुम्हारी तरक्की हो गई है. लेकिन लगता है कि तुम्हारे निजी जीवन में कोई खास बदलाव नहीं आया है. तुम वैसी ही हो जैसी तुम्हें छोड़ कर गया था.’’

‘‘हां, मेरे जीवन में अब क्या नया घटने वाला है? जिंदगी एक ढर्रे से लग गई है. सब दिन एकसमान, न कोई उतार, न चढ़ाव,’’ उस ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘यह रास्ता तुम्हारा खुद का अपनाया हुआ है,’’ मिहिर ने उलाहना दिया, ‘‘मैं ने तो तुम्हें शादी का औफर दिया था. तुम्हीं न मानीं.’’

आरती कुछ न बोली.

‘‘अच्छा यह बताओ, लंच के लिए चलोगी? तुम से मिले अरसा हो गया. मुझे तुम से ढेरों बातें करनी हैं.’’

वे दोनों काफी देर तक रेस्तरां में बैठे रहे. बातों के दौरान मिहिर ने कहा, ‘‘आरती, मेरा भाई अमेरिका में रहता है. उस ने मुझे वहां बुलवा लिया. शुरू में काफी संघर्ष करना पड़ा पर अब मुझे अच्छी नौकरी मिल गई है. मुझे वहां की नागरिकता भी मिल गई है. मैं ने वहां अपना घर खरीद लिया है. केवल गृहिणी यानी पत्नी की कमी है. मैं ने अभी तक शादी नहीं की है. मैं अभी भी तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं. तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं. इतने दिन तुम्हारी याद के सहारे जिया. अब मैं चाहता हूं कि हम दोनों विवाहबंधन में बंध जाएं. बोलो, क्या कहती हो?’’

‘‘अब मैं क्या बोलूं?’’ वह सिर झुकाए बोली.

‘‘वाह, तुम नहीं तो तुम्हारी जिंदगी के अहम फैसले क्या कोई और लेगा? आरती, तुम्हारा भी जवाब नहीं. तुम्हें कब अक्ल आएगी. मैं और तुम बालिग हैं, अपनी मरजी के मालिक. हमें अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का हक है.’’

‘‘मुझे सोचने का थोड़ा वक्त दो,’’ उस ने कहा.

‘‘हरगिज नहीं,’’ मिहिर ने दृढ़ता से कहा, ‘‘सोचविचार में तुम ने अपनी आधी जिंदगी गंवा दी. अब मैं तुम्हारी एक न सुनूंगा. तुम्हें फैसला अभी, इसी वक्त लेना होगा. अभी नहीं तो कभी नहीं.’’

आरती के मन में उथलपुथल मच गई. जी में आया कि वह तुरंत अपनेआप को मिहिर की बांहों में डाल दे और उस से कहे, मैं तुम्हारी हूं, तुम जो चाहे करो, मुझे मंजूर है. इस के सिवा उस के पास और कोई चारा भी तो न था. वह अपनी एकाकी गतिहीन जिंदगी से बहुत उकता गई थी. अब तक मांबाप का साया सिर पर था पर आगे की सोच कर वह मन ही मन कांप जाती थी. उसे एक सहारे की जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही थी. उस ने तय कर लिया कि वह मिहिर का हाथ थाम लेगी. यह निर्णय लेते ही उस के सिर से एक भारी बोझ उतर गया. उस के मन में हिलोरें उठने लगीं.

‘‘ठीक है,’’ वह बोली.

उसे वह दिन याद आया जब मिहिर से पहली बार मिली थी. पहली नजर में ही वह उस की ओर आकर्षित हो गई थी. वह बड़ा हंसोड़ और जिंदादिल था. धीरेधीरे उन में नजदीकियां बढ़ती गईं और एक दिन मिहिर ने विवाह का प्रस्ताव किया. आरती के मन में रस की फुहार फूट निकली. वह भविष्य के सुनहरे सपनों में खो गई. लेकिन उस के मातापिता को उस का प्रेमप्रसंग रास न आया. उन्होंने मिहिर का जम कर विरोध किया. उन्हें मिहिर में खामियां ही खामियां नजर आईं. वह पिछड़ी जाति का था और गरीब घर से था. उन्होंने आरती को समझाने की कोशिश की कि मिहिर उस के लायक नहीं है और वह उस से शादी कर के बहुत पछताएगी. जब उन्होंने देखा कि आरती पर उन की बातों का कोई असर नहीं हो रहा है तो उन्होंने अपना आखिरी दांव चलाया, ‘ठीक है, यदि तू अपनी मनमरजी करने पर तुली है तो यही सही. तू जाने, तेरा काम जाने. लेकिन इस के बाद हमारातुम्हारा रिश्ता खत्म. हम मरते दम तक तेरा मुंह न देखेंगे.’ आरती बहुत रोईधोई पर पिता की बात मानो पत्थर की लकीर थी. और मां ने भी पिता की हां में हां मिलाई.

आरती के मन में भय का संचार हुआ. उस में इतनी हिम्मत न थी कि वह मांबाप से बगावत कर के, समाज की अवहेलना कर के मिहिर से शादी रचाती. वह उधेड़बुन करती रही, सोच में डूबी रही, आगापीछा सोचती रही. दिन बीतते गए और एक दिन मिहिर उस से नाराज हो कर, उस से नाता तोड़ कर उस की दुनिया से दूर चला गया. आरती के मातापिता ने उस के लिए और लड़के तलाश किए पर आरती ने सब को नकार दिया. वह तो मिहिर से लौ लगाए थी. यादों में खोई आरती को मिहिर की आवाज ने झिंझोड़ा, ‘‘मैं कल शाम को तुम्हारे घर आऊंगा. हम अपने भावी जीवन के बारे में बात करेंगे और मैं तुम्हारे मातापिता से भी मिल लूंगा. पिछली बार उन्होंने हमारी शादी में अड़ंगा लगाया था. आशा है इस बार उन्हें कोई आपत्ति न होगी.’’

‘‘नहीं, और होगी भी तो अब मैं उन की सुनने वाली नहीं हूं,’’ वह जरा हिचकिचाई और बोली, ‘‘केवल एक समस्या है.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘रघु की समस्या.’’

‘‘यह रघु कौन है? क्या वह मेरा रकीब है?’’

‘‘हटो भी,’’ आरती हंस पड़ी, ‘‘रघु मेरा भतीजा है. मेरे बड़े भाई का बेटा. कुल 12 साल का है.’’

‘‘तो उस के साथ क्या प्रौब्लम है?’’

‘‘तुम कल घर आ रहे हो न. वहीं पर बातें होंगी.’’

मिहिर आरती के यहां बरामदे में बैठा हुआ था. आरती ने उसे रघु के बारे में विस्तार से बताया. उस के भाई सुरेश ने एक अति सुंदर कन्या से प्रेमविवाह कर लिया था. वे अपने नवजात शिशु को ले कर मुंबई रहने चले गए थे जहां सुरेश की नौकरी लगी थी. पर किन्हीं वजहों से उन में अनबन रहने लगी और एक रोज उस की पत्नी उस से लड़झगड़ कर उसे छोड़ कर चली गई. साथ ही, बच्चे को भी छोड़ गई. सुरेश मजबूरन रघु को बैंगलुरु ले आया क्योंकि मुंबई में उसे देखने वाला कोई न था. ‘तू चिंता मत कर,’ पिता माधवराव ने उसे आश्वासन दिया, ‘बच्चे को यहां छोड़ जा, यह यहां पल जाएगा.’ उन्होंने बच्चे को आरती की गोद में डालते हुए कहा, ‘ले बिटिया, अब तू ही इसे पाल. हमेशा कुत्तेबिल्ली के बच्चों के साथ खेलती रहती है. यह जीताजागता खिलौना आज से तेरे जिम्मे.’

आरती ने शिशु को हृदय से लगा लिया. उस के दिल में ममता का स्रोत फूट निकला. उस नन्ही सी जान के प्रति उस के दिल में ढेर सारा प्यार उमड़ आया. वह सचमुच बच्चे में खो गई. वह बैंक से लौटती तो रघु की देखभाल में लग जाती. रघु भी उस से बहुत हिलमिल गया था और हमेशा उस के आगेपीछे घूमता रहता. वह उसे छोड़ कर एक पल भी न रहता था. कभीकभी रघु को कलेजे से लगा कर वह सोचती कि क्या यही मेरी नियति है? और लड़कियों की तरह उस ने भी सपने देखे थे. उस के हृदय में भी अरमान मचलते थे. वह भी अपना एक घरबार चाहती थी, एक सहचर चाहती थी जो उस को दुलार करे, उस के नाजनखरे उठाए, उस के सुखदुख में साथी हो. पर वह अपनी अधूरी आकांक्षाएं लिए मन ही मन घुटती रही. उसे लगता कि प्रकृति ने उस के साथ अन्याय किया है. और उस के अपनों ने भी उस की अनदेखी की है. सुरेश ने दोबारा शादी कर ली और उस ने रघु को अपने साथ ले जाना चाहा. ‘बेशक ले जाओ,’ माधवराव बोले, ‘तुम्हारी ही थाती है आखिर. इतने दिन हम ने उस की देखभाल कर दी. अब अपनी अमानत को तुम संभालो. मैं और तुम्हारी मां बूढ़े हो चले. अशक्त हो गए हैं. कब हमारी आंखें बंद हो जाएं, इस का कोई ठिकाना नहीं.’

रघु से बिछड़ने की कल्पना से ही आरती का दिल बैठने लगा. ‘यदि मुझे मालूम होता कि इस बालक से एक दिन बिछड़ना होगा तो मैं इस के मोहजाल में न फंसती,’ उस ने आह भर कर सोचा. और जब 7 साल के रघु ने सुना कि उसे मुंबई जाना होगा तो उस ने रोरो कर सारा घर सिर पर उठा लिया, ‘मैं हरगिज मुंबई नहीं जाऊंगा. वहां मेरा मन नहीं लगेगा. मैं बूआ को छोड़ कर नहीं रह सकता.’ पर उस की कौन सुनने वाला था. सुरेश उसे जबरन ले गया. आरती ने बताया कि जबतब रघु फोन पर बहुत रोता और झींकता था. उसे वहां बिलकुल भी अच्छा न लगता था. एक दिन अचानक सुरेश का फोन आया कि रघु गायब है. सुबह स्कूल गया तो घर नहीं लौटा. वे सब परेशान हैं और उसे तलाश कर रहे हैं. घर के लोग चिंतातुर टैलीफोन के इर्दगिर्द जमे रहे. सुबह द्वार की घंटी बजी तो देखा कि रघु खड़ा है, अस्तव्यस्त, बदहवास.

आरती ने दौड़ कर उसे लिपटा लिया.

‘अरे रघु बेटा, तू अचानक ऐसे कैसे चला आया?’

‘बूआ,’ रघु सिसकने लगा, ‘मैं घर से भाग आया हूं. अब कभी लौट कर नहीं जाऊंगा. मुझे वहां बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था. मैं वहां रोज रोता था.’

‘सो क्यों मेरे बच्चे,’ आरती ने उस का सिर सहलाते हुए पूछा.

‘मेरा वहां कोई दोस्त नहीं है. स्कूल से वापस आता हूं तो मां पढ़ने बिठा देती हैं. जरा सा खेलने भी नहीं देतीं. टीवी भी नहीं देखने देतीं. पापा के सामने मुझे प्यार करने का दिखावा करती हैं पर उन की पीठपीछे मुझे फटकारती रहती हैं.’

‘अच्छा, अभी थोड़ा सुस्ता ले. बाद में बातें होंगी.’

‘बूआ, मुझे बहुत भूख लगी है. मैं ने कल से कुछ नहीं खाया.’ उस ने उस का मनपसंद नाश्ता बना कर अपनी गोद में बिठा कर उसे खिलाते हुए कहा, ‘यह तो बता कि तू इस तरह बिना किसी को बताए क्यों भाग आया? तुझे पता है, घर में सब तेरी कितनी फिक्र कर रहे हैं?’ रघु ने अपराधी की तरह सिर झुका लिया. जब सुरेश को सूचना दी गई तो वह बहुत आगबबूला हुआ, ‘इस पाजी लड़के को यह क्या पागलपन सूझा? यहां ऐसा कौन सा कांटों पर लेटा हुआ था? नर्मदा दिनरात उस की सेवाटहल करती थी. सच तो यह है कि आप लोगों के प्यार ने इसे बिगाड़ दिया है. खैर, मैं आ रहा हूं उसे लेने.’ रघु ने सुना तो रोना शुरू कर दिया, ‘मैं हरगिज वापस मुंबई नहीं जाऊंगा. अगर आप लोगों ने मुझे जबरदस्ती भेजा तो फिर घर से भाग जाऊंगा और इस बार वापस यहां भी न आऊंगा.’

‘छि: ऐसा नहीं कहते. हम तेरे पिता से बात करेंगे. कुछ हल निकालेंगे.’

मिहिर ने आरती की ये बातें सुनीं तो बोला, ‘‘इतना तो मेरी समझ में आ गया कि तुम ने रघु को बचपन से पाला है और तुम्हारा उस से गहरा लगाव है पर देखा जाए तो वह तुम्हारी जिम्मेदारी तो नहीं है. तुम ने उस की जिंदगी का ठेका नहीं लिया है. इतने दिन तुम ने उसे संभाल दिया, सो ठीक है. अब उस के मातापिता को उस की फिक्र करने दो. तुम अपनी सोचो.’’ आरती के माथे पर पड़े बल को देख कर उस ने झुंझला कर कहा, ‘‘आरती, मैं तुम्हें समझ नहीं पा रहा हूं. हमेशा दूसरों के लिए जीती आई हो. कभी अपने लिए भी सोचो. यह जीना भी कोई जीना है? बस, मैं ने कह दिया, सो कह दिया, कल हम कचहरी जाएंगे. तुम तैयार रहना.’’

‘‘ठीक है,’’ आरती ने कहा. उस ने एक विश्वास छोड़ा. वह मिहिर को कैसे समझाए कि अपना न होते हुए भी वह भावनात्मक रूप से रघु से जुड़ी हुई है. उस बालक ने मां की ममतामयी गोद न जानी. उस ने पिता का स्नेह व संरक्षण न पाया. आरती ही उस के लिए सबकुछ थी. आरती का उदास चेहरा देख कर मिहिर द्रवित हुआ, ‘‘आरती, अगर तुम रघु से बिछड़ना नहीं चाहतीं तो एक उपाय है. हम कानूनन रघु को गोद ले सकते हैं.’’

‘‘क्या यह संभव है?’’

‘‘क्यों नहीं. अमेरिका से कई संतानहीन दंपती भारत के अनाथालयों से अनाथ बच्चों को गोद लेते हैं. हां, इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है. बहुत कागजी कार्यवाही करनी पड़ती है, बहुत दौड़धूप करनी पड़ती है. अगर तुम चाहो और सुरेश इस के लिए राजी हो तो इस के लिए कोशिश की जा सकती है.’’

‘‘तुम इतना सब करोगे मेरे लिए?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. एक प्रेमी अपनी प्रेयसी के लिए कुछ भी कर सकता है.’’

आरती ने उसे स्नेहसिक्त नेत्रों से देखा. मिहिर उसे एकटक देख रहा था. उस की आंखों में कुछ ऐसा भाव था कि वह शरमा गई.

‘‘मैं तुम्हारे लिए चाय लाती हूं.’’

आरती ने चाय बना कर रघु को आवाज दी, ‘‘बेटा, जरा यह चाय बाहर बरामदे में बैठे अंकल को दे आओ. मैं कुछ गरम पकौड़े बना कर लाती हूं.’’

‘‘अंकल चाय,’’ रघु ने कहा.

‘‘थैंक यू. आओ बैठो. तुम रघु हो न?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘तुम्हारी बूआ ने तुम्हारे बारे में बहुतकुछ बताया है. सुना है कि तुम पढ़ने में बहुत तेज हो. हमेशा अपनी क्लास में अव्वल आते हो.’’

‘‘जी.’’

‘‘अच्छा यह तो बताओ, तुम अमेरिका में पढ़ना चाहोगे?’’

‘‘मैं अमेरिका क्यों जाना चाहूंगा जबकि यहां एक से बढ़ कर एक अच्छे स्कूल हैं.’’

‘‘हां, यह तो है पर वहां तुम अपनी बूआ के साथ रह सकोगे.’’

‘‘बूआ का साथ कितने दिन नसीब होगा? एक न एक दिन तो मुझे उन से अलग होना ही पड़ेगा. स्कूली शिक्षा के बाद पता नहीं कौन से कालेज में, किस शहर में दाखिला मिलेगा.’’ मिहिर के जाने के बाद आरती ऊहापोह में पड़ी रही. उस की जिंदगी में भारी बदलाव आने वाला था. वह अपने कमरे में सोच में डूबी हुई बैठी थी कि रघु उस के पास आया, ‘‘बूआ, मैं तुम से एक बात कहना चाह रहा था.’’

‘‘बोल बेटा.’’

‘‘मैं बोर्डिंग में रह कर पढ़ना चाहता हूं.’’

‘‘अरे, सो क्यों?’’

‘‘मेरे कुछ दोस्त ऊटी के स्कूल में पढ़ने जा रहे हैं. वे मुझे बता रहे थे कि चूंकि मैं ने हमेशा अपनी क्लास में टौप किया है, मुझे आसानी से वहां दाखिला मिल सकता है. बूआ, मेरा बड़ा मन है कि मैं अपने साथियों के साथ उसी स्कूल में पढ़ूं. तुम मेरी मदद करोगी तो यह संभव होगा.’’

‘‘तू सच कह रहा है?’’

‘‘हां बूआ, बिलकुल सच.’’

आरती का मन हलका हो गया. उस ने सपने में भी न सोचा था कि उस की समस्याओं का हल इतनी आसानी से निकल आएगा. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि रघु की स्कूली पढ़ाई समाप्त हो जाने पर वह उसे अपने पास बुला लेगी. वह तुरंत मिहिर को फोन करने बैठ गई. रघु उस के पास ही मंडराता रहा. उस ने बूआ और मिहिर की बातें सुन ली थीं. वह जान गया था कि बूआ और मिहिर एकदूसरे को चाहते हैं और विवाह करना चाहते हैं और उस ने अचानक आ कर बूआ को उलझन में डाल दिया था.

उस ने सहसा बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने का निश्चय कर लिया. और सोच लिया कि यदि वहां दाखिला न मिला तो वह मुंबई चला जाएगा. उस ने पलक मारते तय कर लिया कि वह अपनी बूआ की खुशियों के आड़े नहीं आएगा. उस ने अपनी बूआ को करीब से देखा और जाना है. उसे उन के दर्द और तड़प का एहसास है. उस ने बचपन से ही देखा है कि किस तरह उस की बूआ ने पगपग पर सब की मरजी के आगे सिर झुकाया है. वे कितना रोई और कलपी हैं.

क्या रघु भी औरों की तरह बनेगा? नहीं, वह इतना निष्ठुर नहीं बनेगा. वह अपनी बूआ के प्रति संवेदनशील है. वह हमेशा उन का ऋणी रहेगा. उस का रोमरोम बूआ का आभारी है. यदि बचपन में उन्होंने उस की सारसंभाल न की होती तो पता नहीं आज वह किस हाल में होता. उस ने मन ही मन ठान लिया कि वह भरसक कोशिश करेगा कि अपनी बूआ का आगामी जीवन सुखमय बनाए.

Story In Hindi : मन का बोझ – समाज के लिए बदली अपनी ज़िंदगी

Story In Hindi : पार्टी में अनुपम का उत्साह देख शुभा उसे आश्चर्य से देखती रह गई. वह सोच रही थी, क्या यह वही अनुपम है जिसे हर समय कोई न कोई काम रहता है, जो सुबह तड़के ही जब सब अभी मीठी नींद में होते, एक बार जा कर बांध स्थल पर चल रहे निर्माणकार्य का निरीक्षण भी कर आता. रात को भी भोजन के बाद रात की पारी वालों का कार्य देखने के लिए वह बिना नागा कार्यस्थल पर अवश्य जाता, तब कहीं उस की दिनचर्या पूरी होती. यदि काम में कोई समस्या आ जाती तब तो वह उसे निबटा कर ही रात के 2 बज गए.

मगर उस पार्टी में अनुपम को इतने उत्साह में देख शुभा हैरान थी. वह उस के भाई मनोज से बहुत हंसहंस कर बातें कर रहा था. शुभा अनुपम द्वारा उसे किए गए अभिवादन के स्टाइल पर गदगद थी.

कालेज जाने से पहले शुभा सुबह अंधेरे उठती, नहाधो कर अम्मां की आज्ञानुसार ध्यान करने बैठती, पर इन दिनों जब वह आंखें मूंदती तो अनुपम का वही मुसकारता चेहर उस की बंद आंखों के आगे आ खड़ा होता और वह घबरा कर आंखें खोल देती.

वह भोर के हलकेहलके प्रकाश में आंगन के पीछे का द्वार खोल बगीचे में टहलने लगती और उस की आंखें क्षणप्रतिक्षण अनुपम के द्वार की ओर उठ जातीं. कान उस की जीप की आवाज पर लगे रहते. वह सोचती, अनुपम अभी कार्यस्थल पर जाने वाला होगा और ज्यों ही जीप के चालू होने की आवाज आती वह उस की एक झलक देख ऐसी खिल उठती मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो. उस के चले जाने पर वह घबरा कर सोचने लगती, आखिर यह उसे क्या होता जा रहा है?

सांझ को अनुपम कभीकभी मनोज के साथ लौटता. कभी 2 मिनट को शुभा के घर पर भी रुकता. कभी बाहर से ही मनोज को छोड़ कर चला जाता. तब शुभा का मन निराशा से भर जाता. वह अपनेआप को फटकारती कि अनुपम से उसे क्या लेनादेना?

अनुपम उस रात अपने पड़ोस के मित्र के यहां रात्रि के भोजन पर चला गया था. शुभा को लौन से उस के हंसनेबोलने की आवाजें सुनाई देती रहीं तो वह देर तक घर के साथ वाले पार्क में टहलती उस की आवाज सुनती रही. उसे लगता रहा मानो अनुपम अपने मित्र से नहीं वरन उसी से बातें कर रहा है. वह रात देर तक उस के घर लौटने की प्रतीक्षा करती रही. रात के अंधेरे में उसे पार्क में यह डर भी न रहा कि कहीं कोई कीड़ा निकल कर काट ले तो.

जब अनुपम अपने मित्र के यहां से लौट कर अपने घर जाता दिखा तो शुभा खुशी से नाच उठी. अनुपम की पीठ देख कर ही उसे लगा कि उस ने सब कुछ पा लिया है. वह सोचने लगी कि काश, इस चांदनी से भीगी रात में अनुपम एक  बार मुड़ कर पीछे उस की ओर देख लेता. पर अनुपम बिना मुड़े तेज कदमों से अपने घर चला गया. उसे क्या पता था कि प्रतीक्षा में आतुर किसी की आंखें उस का पीछा कर रही हैं.

अगले दिन अनुपम मनोज के साथ शुभा के घर आया. मनोज ने आवाज देते हुए पुकारा, ‘‘शुभा देख, आज मेरे साथ अनु भाई आए हैं. तू ने नाश्ते में जो भी बनाया है, जल्दी से ले कर आ.’’

अनुपम ने शुभा की बनाई चीजों की खूब प्रशंसा की. वह बड़े उल्लास से कह रहा था, ‘‘आप इतनी स्वादिष्ठ चीजें बनाती हैं तभी तो मनोज कहीं बाहर जाने का नाम भी नहीं लेता. भाई मनोज, तुम खुशहाल हो, जो ऐसी होशियार बहन मिली है.’’

खाने के बाद अनुपम ने प्रस्ताव रखा, ‘‘मनोज, चलो आज अम्मां और शुभा को बांध स्थल का कार्य दिखा लाएं. वहां की मशीनों की घड़घड़ाहट और दिनरात चल रहे कार्य को देख इन्हें अच्छा लगेगा. हम लोग उधर अपना काम भी देखते आएंगे. मुझे तो अभी एक बार रात में भी जाना है.’’ शुभा को डर था कि कहीं उस के मन की बात भैया या अनुपम पर प्रकट तो नहीं हो गई. अतएव वह न जाने के लिए अपनी परीक्षा का बहाना ले बैठी. पर अनुपम और मनोज के आगे उस की एक न चली. अनुपम ने उसे बांध पर हो रहे कार्य के बारे में सब कुछ बताया और दिखाया कहां बांध बनेगा, कहां से नदी की धारा को मोड़ दिया गया है, कैसे नींव के पानी को बड़े पंपों द्वारा निकाला जा रहा है तथा कहां बांध की नींव को भरने के लिए कंक्रीट के पत्थर तैयार हो रहे हैं.

तेजी से चले रहे कार्य तथा अनुपम के उस में योगदान को देख शुभा मन ही मन उस के प्रति और आकृष्ट हो गई. अनुपम ने कहा, ‘‘आइए, आप लोगों को एकदम पास से वह नदी दिखला लाएं, जिस पर बांध बन रहा है.’’

वे सब एक छोटी सी नाव में बैठ कर नहर के उस पार पहुंच गए. वहीं रात हो गई. सब नदी तट पर बैठ नदी के शीतल जल में पांव डाले उस अंधेरी रात में बांधस्थल पर चल रहे कार्य तथा उस की तेज जगमगाती रोशनियों को देखते रहे. बात करते हुए सब ने नदी में दूर तक पत्थर फेंकने का अभ्यास किया. अनुपम का फेंका हुआ पत्थर सब से दूर तक पहुंचा. शुभा मन ही मन कह उठी कि यहां भी तुम ही सब से आगे निकले. उस दिन अनुपम की जीप खराब थी. अतएव कार्यस्थल पर जाने के लिए वह मनोज की मोटरसाइकिल लेने आया. शुभा ने कल्पना की कि अनुपम कुछ क्षण अवश्य ही उस के घर रुकेगा, पर वह नहीं रुका और मोटरसाइकिल लेते ही तुंरत अपने कार्य पर चला गया. शुभा का मन हुआ कि  वह उसे कुछ देर बैठने को कहे, पर वह संकोचवश कह न सकी. उस का मन अनुपम के जाने से बेहद उदास हो गया. वह सोचने लगी कि कैसा है यह पुरुष जिसे अपने कार्य के आगे कुछ भी याद नहीं रहता. शुभा के कालेज में वार्षिकोत्सव था. उस में शुभा के गायन का भी कार्यक्रम था.

शुभा ने मनोज से अनुपम को ले कर उत्सव में आने का वचन ले लिया था. मनोज कार्यक्रम आरंभ होने से पहले आ भी गया, यह शुभा ने देख लिया था, पर भैया के साथ अनुपम को न आया देख उसे बड़ी निराशा हुई. वह सोच रही थी अनुपम अवश्य अपने कार्य में व्यस्त होता और फिर उसे शुभा के गायन से क्या लेनादेना. अपना गीत गा कर शुभा सब से पीछे आ अपनी सहेलियों के साथ बैठ गई. अनुपम का न आना उसे खल रहा था.

तभी सहेलियों से बात करते हुए उस ने मुड़ कर जो एक नजर डाली तो देखा अनुपम अपनी आंखों में असीमित प्रशंसा के भाव लिए उसे ही देख रहा है. कार्यक्रम समाप्त होने पर बाहर आते हुए अनुपम ने कहा, ‘‘आप की आवाज तो बहुत ही मधुर है. मैं तो कुछ क्षणों के लिए आप के मधुर गायन में खो ही गया था. आप इतना अच्छा गाती हैं यह तो मैं जानता ही न था.’’ अब प्राय: शाम को अनुपम मनोज के साथ शुभा के घर आने लगा था. शुभा भी रोज खाने की नईनई चीजें बना कर रखती और भैया और अनुपम उस की बनाई चीजों की प्रशंसा करते न अघाते.

गरमियों के दिन आ गए थे. वे तीनों लौन की हरी शीतल घास पर बैठे बहुत रात गए तक बातें करते. रात के अंधेरे में भी शुभा को लगता कि अनुपम की टोही आंखें उस के चेहरे पर टिकी हुई न जाने क्या खोजने लगती हैं और तब वह घबरा कर दूसरी ओर देखने लग जाती. अनुपम की खिली हुई हंसी से सारा वातावरण महकने लगता. दिन न जाने कितनी तेजी से पर लगा कर निकलने लगे. सां?ा ढलते ही शुभा अनुपम के आने की बाट जोहने लगती.

अनुपम की आंखों में छाए नेह निमंत्रण को शुभा पहचान गई. फिर वह स्वयं भी तो उस के कितने निकट आ गई थी. पर वह अपने बारे में कैसे अनुपम को सबकुछ बताए. शुभा ने सोचा, अनुपम को सबकुछ बता ही देना चाहिए, वह क्यों अंधेरे में रहे. उस दिन शुभा ने अंतत: साहस बटोर कर अनुपम को एक पत्र लिखा: ‘‘आप आकाश में खिले हुए एक उदीयमान नक्षत्र हैं और मैं एक धूलधूसरित कुचली हुई स्त्री हूं, जो कभी भी ऊपर उठने का साहस नहीं कर सकती. मैं आप के योग्य नहीं. मैं एक विधवा हूं, जिसे हमारा समाज न तो प्यार करने का अधिकार देता है और न विवाह करने का ही. फिर भी आप के इस प्रभावशाली व्यक्तित्व को इस जीवन में भूल पाना संभव नहीं.’’ 2 दिन तक शुभा पत्र को अपने पास ही रखे रही. वह उसे अनुपम को देने का साहस न बटोर पाई. पर फिर एक दिन कालेज जाते हुए पत्र को अनुपम के घर के बाहर लगे डाक बक्से में डालती हुई चली गई. पत्र तो वह दे आई, पर विचारों के ?ां?ावात ने उसे बुरी तरह ?ाक?ोर डाला. 2 दिन तक अनुपम घर नहीं आया. इस से शुभा विचारों की ऊहापोह में बुरी तरह उल?ा गई. वह सोचती, अनुपम पर उस पत्र की न जाने क्या प्रतिक्रिया हुई हो… शायद वह अब कभी भी उस के घर न आए और अगर कहीं वह पत्र ले जा कर भैया को ही दे दे तो? वह भय से कांप उठी. भैया के आगे वह कैसे सिर उठा पाएगी? मां उसे क्या कुछ नहीं कहेंगी. उसे तो घुटघुट कर मर जाना होगा. यदि अनुपम नहीं भी आया तो वह जीवनभर उसे भूल सकेगी? उस के सर्वांगीण व्यक्तित्व से वह पूर्णतया अभिभूत हो चुकी थी. अनुपम को पत्र अवश्य ही बुरा लगा तभी तो वह 2 दिन से नहीं आया.

2 दिन बाद सांझ को अनुपम शुभा के घर आया तो वह बहुत गंभीर दिख रहा था. शुभा उस की सूरत देखते ही सहम गई. वह आते ही बोला, ‘‘शुभा क्षमा करना. कार्य की अधिकता से जल्दी नहीं आ सका. मैं अपनेआप को खुशहाल मानता हूं कि मुझे  तुम जैसी विवेकशील नारी का स्नेह मिला है… मैं मनोज से तुम्हें अपने लिए मांगना चाहता हूं.’’‘‘यह क्या कहते हो, अनुपम?’’ कांपते स्वर में शुभा बोली, ‘‘यह असंभव है. यह कभी नहीं हो सकता. हमारा हिंदू समाज कभी इस की स्वीकृति नहीं देगा. मां भी इसे कभी नहीं मानेंगी. भैया का दिल टूट जाएगा. आप इतने योग्य हैं, इतने ऊंचे पद पर हैं कि आप को तो बड़ी आसानी से सुंदर और योग्य पत्नी मिल जाएगी. मुझ में है ही क्या?’’

‘‘तुम समझती हो, शुभा कि तुम योग्य नहीं हो? तुम अपने को नहीं जानती. मैं ने इतने दिनों में तुम्हें अच्छी तरह जाना और परखा है. हमारे विचार, स्वभाव और रुचियां समान हैं. हम एकदूसरे को अच्छी तरह से समचुके हैं. मैं समझता हूं कि हमारा वैवाहिक जीवन बहुत ही मधुर होगा.

‘‘आज के इस प्रगतिशील युग में किसी एकदम अनजान लड़की से विवाह करना अंधेरे में टटोलना जैसा ही है. तुम विधवा हो यह तो मैं बहुत पहले से जानता था. फिर यह कोई तुम्हारा दोष तो नहीं है.’’

तब तक मां बाहर आ गईं. शुभा और अनुपम की धीमे स्वरों में हो रही बातों की भनक उन के कानों में पड़ चुकी थी. वे गुस्से से बोलीं, ‘‘कुछ तो शर्म कर, क्यों उस बड़े भाई की इज्जत उछालने पर तुली है, जो तुझे जान से ज्यादा चाहता है. उस का घर भी बसने देगी या अपना उजाड़ कर अब उस का भी घर न बसने देने का इरादा है?’’ तब तक मनोज स्वयं बाहर आ गया. मुसकराते हुए बोला, ‘‘अनुपम, तुम मां की बातों का बुरा न मानना, उन्हें क्षमा कर देना. मैं ने तो शुभा के विवाह के लिए विज्ञापन भी दे दिया था.’’

मां की ओर मुड़ते हुए मनोज बोला, ‘‘मां, तुम यह क्या सोचती हो? क्या मैं अपनी बहन का विवाह करने से पहले अपना कराऊंगा. नहीं, कभी नहीं. मैं शुभा के विवाह के लिए चिंतित हूं. वह विधवा हो गई तो क्या उस का मन भी मर गया है? अभी उस की उम्र ही क्या है? पूरी पहाड़ सी जिंदगी अकेले बिना किसी सहारे के वह कैसे काट पाएगी?’’ मां की बात सुन शुभा परकटे पक्षी की भांति विवश वहीं खड़ी रह गई थी. अब भैया की बात सुन कर उस में साहस का संचार हुआ. भैया के उदार दृष्टिकोण पर उस की आंखों से आंसू बह निकले. मां हैरान हो कर बोलीं, ‘‘मनोज, तुम ने मुझ से कुछ भी नहीं पूछा. अभी तक हमारे कुल में ऐसी अनहोनी बात नहीं हुई.’’

‘‘मां, मैं समझता हूं कि मैं जो कर रहा हूं वह बिलकुल उचित है. मैं ने इसीलिए तुम से राय लेने की आवश्यकता नहीं समझ. तुम अनुपम और शुभा को प्रसन्न मन से सुखी होने का आशीर्वाद दो. यह जीवन संवारने का मंगलमय पर्व है, अनहोनी नहीं.’’ ‘‘आओ, अनुपम, चलो अंदर बैठते हैं शुभा के लिए तुम जैसे योग्य और प्रतिभावान युवक को पा कर मैं आज परम प्रसन्न हूं. तुम ने मेरे मन से बहुत बड़ा बोझ हटा दिया है. हमारे समाज को तुम्हारे जैसे प्रगतिशील युवकों की आवश्यकता है. तुम पर मुझे गर्व है.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें