Love Story: फ्रैंड जोन- क्या कार्तिक को दोस्ती में मिल पाया अपना प्यार

Love Story: ‘‘नौकरी के साथसाथ अपनी सेहत का भी ध्यान रखना बेटा, अच्छा?’’ कार्तिक को ट्रेन में विदा करते समय मातापिता ने अपना प्यार उड़ेलने के साथ यह कह डाला.

कार्तिक पहली बार घर से दूर जा रहा था. आज तक तो मां ने ही उस का पूरा ध्यान रखा था, पर अब उसे स्वयं यह जिम्मेदारी उठानी थी. इंजीनियरिंग कर कालेज से ही कैंपस प्लेसमैंट से उस की नौकरी लग गई थी, और वह भी उस शहर में जहां उस के मौसामौसी रहते थे. सो अब किसी प्रकार की चिंता की कोई बात नहीं थी. मौसी के घर पहुंच कर कार्तिक ने मां द्वारा दी गई चीजें देनी आरंभ कर दीं.

‘‘ओ हो, क्या क्या भेज दिया जीजी ने,’’ मौसी सामान रखने में व्यस्त हो गईं और मौसाजी कार्तिक से उस की नई नौकरी के बारे में पूछने लगे. उन्हें नौकरी अच्छी लग रही थी, कार्यभार से भी और तनख्वाह से भी.

अगले दिन कार्तिककी जौइनिंग थी. उसे अपना दफ्तर काफी पसंद आया. पूरा दिन जौइनिंग प्रोसैस में ही बीत गया. उसे उस की मेज, उस का लैपटौप व डाटाकार्ड और दफ्तर में प्रवेश पाने के लिए स्मार्टकार्ड मिल गया था. शाम को घर लौट कर मौसाजी ने दिनभर का ब्योरा लिया तो कार्तिक ने बताया, ‘‘कंपनी अच्छी लग रही है, मौसाजी. तकनीकी दृष्टि से वहां नएनए सौफ्टवेयर हैं, आधुनिक मशीनें हैं और साथ ही मेरे जैसा यंगक्राउड भी है. वीकैंड्स पर पार्टियों का आयोजन भी होता रहता है.’’

‘‘ओ हो, यंगक्राउड और पार्टियां, तो यहां मामला जम सकता है,’’ मौसाजी ने उस की खिंचाई की तो कार्तिक शरमा गया. कार्तिक थोड़ा शर्मीला किस्म का लड़का था. इसी कारण आज तक उस की कोई गर्लफ्रैंड नहीं बन पाई थी.

‘‘क्यों छेड़ रहे हो बच्चे को,’’ मौसी बीच में बोल पड़ीं तब भी मौसाजी चुप नहीं रहे, ‘‘तो क्या यों ही सारी जवानी निकाल देगा ये बुद्धूराम.’’

कार्तिक काम में चपल था. दफ्तर का काम चल पड़ा. कुछ ही दिनों में अपने मैनेजमैंट को उस ने लुभा लिया था. लेकिन उस को भी किसी ने लुभा लिया था, वह थी मान्या. वह दूसरे विभाग में कार्यरत थी, लेकिन उस का भी काम में काफी नाम था और साथ ही, वह काफी मिलनसार भी थी. खुले विचारों की, सब से हंस कर दोस्ती करने वाली, हर पार्टी की जान थी मान्या.

वह कार्तिक को पसंद अवश्य थी, लेकिन अपने शर्मीले स्वभाव के चलते उस से कुछ कहने की हिम्मत तो दूर, कार्तिक आंखों से भी कुछ बयान करने की हिम्मत नहीं कर सकता था. मान्या हर पार्टी में जाती, खूब हंसतीनाचती, सब से घुलमिल कर बातें करती. कार्तिक बस उसे दूर से निहारा ही करता. पास आते ही इधरउधर देखने लगता. 2 महीने बीततेबीतते मान्या ने खुद ही कार्तिक से दूसरे सहकर्मियों की तरह दोस्ती कर ली. अब वह कार्तिक को अपने दोस्तों के साथ रखने लगी थी.

‘‘आज शाम को पार्टी में आओगे न, कार्तिक? पता है न आज का थीम रेट्रो,’’ मान्या के कहने पर कार्तिक ने 70 के दशक वाले कपड़े पहने. मान्या चमकीली सी ड्रैस पहने, माथे पर एक चमकीली डोरी बांधे बहुत ही सुंदर लग रही थी.

‘‘क्या गजब ढा रही हो, जानेमन,’’ कहते हुए इसी टोली के एक सदस्य, नितिन ने मान्या की कमर में हाथ डाल दिया, ‘‘चलो, थोड़ा डांस हो जाए.’’

‘‘डांस से मुझे परहेज नहीं है पर इस से जरूर है,’’ कमर में नितिन के हाथ की तरफ इशारा करते हुए मान्या ने आराम से उस का हाथ हटा दिया. जब काफी देर दोनों नाच लिए तो मान्या ने कार्तिक से कहा, ‘‘गला सूख रहा है, थोड़ा कोल्डड्रिंक ला दो न, प्लीज.’’

कार्तिक की यही भूमिका रहती थी अकसर पार्टियों में. वह नाचता तो नहीं था, बस मान्या के लिए ठंडापेय लाता रहता था. लेकिन आज की घटना ने उसे कुछ उदास कर दिया था. नितिन का यों मान्या की कमर में आसानी से अपनी बांह डालना उसे जरा भी नहीं भाया था. हालांकि मान्या ने ऐतराज जता कर उस का हाथ हटा दिया था. मगर नितिन की इस हरकत का सीधा तात्पर्य यह था कि मान्या को सब लड़के अकेली जान कर अवेलेबल समझ रहे थे. जिस का दांव लग गया, मान्या उस की. तो क्या कार्तिक का महत्त्व मान्या के जीवन में बस खानेपीने की सामग्री लाने के लिए था?

इन्हीं सब विचारों में उलझा कार्तिक घर वापस आ गया. कमरे में अनमना सा, सोच में डूबे हुए उस को यह भी नहीं पता चला कि मौसाजी कब कमरे में आ कर बत्ती जला चुके थे. बत्ती की रोशनी ने कमरे की दीवारों को तो उज्ज्वलित कर दिया पर कार्तिक के भीतर चिंतन के जिस अंधेरे ने मजबूती से पैर जमाए थे, उसे डिगाने के लिए मौसाजी को पुकारना पड़ा, ‘‘अरे यार कार्तिक, आज क्या हो गया जो इतने गुमसुम हुए बैठे हो? किस की मजाल कि मेरे भांजे को इतना परेशान कर रखा है, बताओ मुझे उस का नाम.’’

‘‘मौसाजी, आप? आइए… आइए… कुछ नहीं, कोई भी तो नहीं,’’ सकपकाते हुए कार्तिक के मुंह से कुछ अस्फुटित शब्द निकले.

‘‘बच्चू, हम से ही होशियारी? हम ने भी कांच की गोटियां नहीं खेलीं, बता भी दे कौन है?’’ कार्तिक के कंधे पर हाथ रखते हुए मौसाजी वहीं विराजमान हो गए. उन के हावभाव स्पष्ट कर रहे थे कि आज वे बिना बात जाने जाएंगे नहीं. मौसी से कह कर खाना भी वहीं लगवा लिया गया. जब खाना लगा कर मौसी जाने को हुईं तो मौसाजी ने कमरे का दरवाजा बंद करते हुए मौसी को हिदायत दी, ‘‘आज हम दोनों की मैन टु मैन टौक है, प्लीज डौंट डिस्टर्ब,’’ मौसी हंसती हुई वापस रसोई में चली गईं तो मौसाजी फिर शुरू हो गए, ‘‘हां, यार, तो बता…’’

कार्तिक ने हथियार डालते हुए सब उगल दिया.

‘‘हम्म, तो अभी यही नहीं पता कि बात एकतरफा है या आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है’’, मौसाजी का स्वभाव एक दोस्त जैसा था. उन्होंने सदा से कार्तिक को सही सलाह दी थी और आज भी उन्हें अपनी वही परंपरा निभानी थी.

‘‘देख यार, पहली बात तो यह कि यदि तुम किसी लड़की को पसंद करते हो, तो उस के फ्रैंड जोन से फौरन बाहर निकलो. मान्या के लिए तू कोई वेटर नहीं है. सब से पहले किसी भी पार्टी में जा कर उस के लिए खानापीना लाना बंद कर. लड़कियों को आकर्षित करना हो तो 3 बातों का ध्यान रख, पहली, उन्हें बराबरी का दर्जा दो और खुद को भी उन के बराबर रखो. अगली पार्टी कब है? मान्या को अपना यह नया रूप तुझे उसी पार्टी में दिखाना है. जब तू इस इम्तिहान में पास हो जाएगा, तो अगला स्टैप फौलो करेंगे.’’

हालांकि कार्तिक तीनों बातें जानने को उत्सुक था, मौसाजी ने एकएक कदम चलना ही ठीक समझा. जल्द ही अगली पार्टी आ गई. पूरी हिम्मत जुटा कर, अपने नए रूप को ध्यान में रखते हुए कार्तिक वहां पहुंचा. इस बार नाचने के बाद जब मान्या ने कार्तिक की ओर देखा तो पाया कि वह अन्य लोगों से बातचीत में मगन है. कार्तिक को अचंभा हुआ जब उस ने यह देखा कि मान्या न सिर्फ अपने लिए, बल्कि उस के लिए भी ठंडेपेय का गिलास पकड़े उस की ओर आ रही है.

‘‘लो, आज मैं तुम्हें कोल्डड्रिंक सर्व करती हूं,’’ हंसते हुए मान्या ने कहा. फिर धीरे से उस के कान में फुसफुसाई, ‘‘मुझे अच्छा लगा यह देख कर कि तुम भी सोशलाइज हो.’’

मौसाजी की बात सही निकली. मान्या पर उस के इस नए रूप का सार्थक असर पड़ा था. घर लौट कर कार्तिक खुश था. कारण स्पष्ट था. मौसाजी ने आज मैन टु मैन टौक का दूसरा स्टैप बताया. ‘‘इस सीढ़ी के बाद अब तुझे और भी हिम्मत जुटा कर अगली पारी खेलनी है. फ्रैंड जोन से बाहर आने के लिए तुझे उस के आसपास से परे देखना होगा. एक औरत के लिए यह झेलना मुश्किल है कि जो अब तक उस के इर्दगिर्द घूमता था, अब वह किसी और की तरफ आकर्षित हो रहा है. और इस से हमें यह भी पता चल जाएगा कि वह तुझे किस नजर से देखती है. उस से तुलनात्मक तरीके से उस की सहेली की, उस की प्रतिद्वंद्वी की, यहां तक कि उस की मां की तारीफ कर. इस का परिणाम मुझे बताना, फिर हम आखिरी स्टैप की बात करेंगे.’’

अगले दिन से ही कार्तिक ने अपने मौसाजी की बात पर अमल करना शुरू कर दिया. ‘‘कितनी अच्छी प्रैजेंटेशन बनाई आज रवीना ने. इस से अच्छी प्रैजेंटेशन मैं ने आज तक इस दफ्तर में नहीं देखी’’, कार्तिक के यह कहने पर मान्या से रहा नहीं गया, ‘‘क्यों मेरी प्रैजेंटेशन नहीं देखी थी तुम ने पिछले हफ्ते? मेरे हिसाब से इस से बेहतर थी.’’

लंच के दौरान सभी साथ खाना खा रहे थे. एकदूसरे के घर का खाना बांट कर खाते हुए कार्तिक बोला, ‘‘वाह  मान्या, तुम्हारी मम्मी कितना स्वादिप्ठ भोजन पकाती हैं. तुम भी कुछ सीखती हो उन से, या नहीं?’’

‘‘हां, हां, सीखती हूं न,’’ मान्या स्तब्ध थी कि अचानक कार्तिक उस से कितने अलगअलग विषयों पर बात करने लगा था. अगले कुछ दिन यही क्रम चला. मान्या अकसर कार्तिक को कभी कोई सफाई दे रही होती या कभी अपना पक्ष रख रही होती. कार्तिक कभी मान्या की किसी से तुलना करता तो वह चिढ़ जाती और फौरन खुद को बेहतर सिद्ध करने लग जाती. फिर मौसाजी द्वारा राह दिखाने पर कार्तिक ने एक और बदलाव किया. उस ने अपने दफ्तर में मान्या की क्लोजफ्रैंड शीतल को समय देना शुरू कर दिया. शीतल खुश थी क्योंकि कार्तिक के साथ काम कर के उसे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा था. मान्या थोड़ी हैरान थी क्योंकि आजकल कार्तिक उस के बजाय शीतल के साथ लंच करने लगा था, कभी किसी दूसरे दफ्तर जाना होता तब भी वह शीतल को ही संग ले जाता.

‘‘क्या बात है, कार्तिक, आजकल तुम शीतल को ही अपने साथ हर प्रोजैक्ट में रखते हो? किसी बात पर मुझ से नाराज हो क्या?’’, आखिर मान्या एक दिन पूछ ही बैठी.

‘‘नहीं मान्या, ऐसी कोई बात नहीं है. वह तो शीतल ही चाह रही थी कि वह मेरे साथ एकदो प्रोजैक्ट कर ले तो मैं ने भी हामी भर दी,’’ कह कर कार्तिक ने बात टाल दी. लेकिन घर लौटते ही मौसाजी से सारी बातें शेयर की.

‘‘अब समय आ गया है हमारी मैन टु मैन टौक के आखिरी स्टैप का, अब तुम्हारा रिश्ता इतना तैयार है कि जो मैं तुम से कहलवाना चाहता हूं वह तुम कह सकते हो. अब तुम में एक आत्मविश्वास है और मान्या के मन में तुम्हारे प्रति एक ललक. लोहा गरम है तो मार दे हथोड़ा,’’ कहते हुए मौसाजी ने कार्तिक को आखिरी स्टैप की राह दिखा दी.

अगले दिन कार्तिक ने मान्या को शाम की कौफी पीने के लिए आमंत्रित किया. मान्या फौरन तैयार हो गई. दफ्तर के बाद दोनों एक कौफी शौप पर पहुंचे. ‘‘मान्या, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं,’’ कार्तिक के कहने के साथ ही मान्या भी बोली, ‘‘कार्तिक, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं.’’

‘‘तो कहो, लेडीज फर्स्ट,’’ कार्तिक के कहने पर मान्या ने अपनी बात पहले रखी. पर जो मान्या ने कहा वह सुनने के बाद कार्तिक को अपनी बात कहने की आवश्यकता ही नहीं रही.

‘‘कार्तिक, मैं बाद में पछताना नहीं चाहती कि मैं ने अपने दिल की बात दिल में ही रहने दी और समय मेरे हाथ से निकल गया. मैं… मैं… तुम से प्यार करने लगी हूं. मुझे नहीं पता कि तुम्हारे मन में क्या है, लेकिन मैं अपने मन की बात तुम से कह कर निश्चिंत हो चुकी हूं.’’

अंधा क्या चाहे, दो आंखें, कार्तिक सुन कर झूम उठा, उस ने तत्काल मान्या को प्रपोज कर दिया, ‘‘मान्या, मैं न जाने कब से तुम्हारी आस मन में लिए था. आज तुम से भी वही बात सुन कर मेरे दिल को सुकून मिल गया. लेकिन सब से पहले मैं तुम्हें किसी से मिलवाना चाहता हूं. अपने गुरु से,’’ और कार्तिक मान्या को ले कर सीधा अपने मौसाजी के पास घर की ओर चल दिया.

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Winter Recipes: सर्द मौसम में गरमी का एहसास दिलाएंगी ये रैसिपी

Winter Recipes

ऐप्पल टी सामग्री

–  2 कप पानी

–  1 सेब टुकड़ों में कटा

–  ग्रीन टी बैग

–  1 टुकड़ा दालचीनी का

–  थोड़ा सा शहद व नीबू का रस

–  थोड़ा सा अदरक बारीक कटा.

विधि

एक सौसपैन में पानी डाल कर उस में दालचीनी, ग्रीन टी बैग, ऐप्पल के टुकड़े व अदरक डाल कर 9-10 मिनट तक उबालें. फिर उसे छान कर उस में शहद व नीबू का रस डाल कर सर्व करें.

‘टोमैटो सूप बैस्ट ऐपिटाइजर है और इस का स्वाद भी बेहतरीन वैजिटेबल टोमैटो सूप’

सामग्री

–  3-4 टोमैटो

–  7-8 बींस

–  1 गाजर

–  आधा घीया

–  थोड़ा सा कालीमिर्च पाउडर

–  2 बड़े चम्मच टोमैटो कैचअप

–  2 गिलास पानी

–  थोड़े से ब्रैड क्रूटौंस

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

प्रैशर कूकर में टोमैटो कैचअप और क्रूटौंस को छोड़ कर बाकी सारी सामग्री डाल कर 2 गिलास पानी डालें. फिर 7-8 मिनट तक पकने दें. फिर सूप को ब्लैंड कर के छान लें. अब इस में टोमैटो कैचअप डालें. क्रूटौंस डाल कर गरमगरम सूप सर्व करें.

‘चिकन सूप के स्वाद को इस तरह से भी बढ़ाया जा सकता है.’

सामग्री

–  3-4 पीस बोनलैस चिकन

–  आधा घीया

–  1 आलू

–  1 प्याज

–  1/2 छोटा चम्मच अदरक

–  1/2 छोटा चम्मच लहसुन

–  थोड़ी सी कालीमिर्च

–  2 गिलास पानी

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

सारी सामग्री को प्रैशर कूकर में डाल कर 10 मिनट तक पकाएं. फिर ब्लैंडर में ब्लैंड कर के गरमगरम सर्व करें.

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Multistarrer Movies: 2 हीरो अभिनीत फिल्में क्यों हैं दर्शकों की पहली पसंद

Multistarrer Movies: मल्टीस्टार फिल्मों का दौर आज से 57 साल पहले यश चोपङा निर्देशित फिल्म ‘वक्त’ से शुरू हुआ. इस फिल्म में बलराज साहनी, सुनील दत्त, राजकुमार, शर्मिला टैगोर, साधना जैसे दिग्गज कलाकारों को एक ही फ्रेम में ला कर फिल्म बनाई गई थी.

मशहूर कलाकारों से सजी फिल्म ‘वक्त’ न सिर्फ उस जमाने की सुपरहिट फिल्म थी, बल्कि एक मल्टीस्टारर फिल्म के जरीए एक ही टिकट के दाम पर दर्शकों को अपने पसंदीदा कलाकारों को एकसाथ फिल्म में देखने का मौका मिल गया.

इस फिल्म की लोकप्रियता के बाद  कई सारी मल्टीस्टारर फिल्में बनीं, जैसे ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘क्रांति’, ‘डौन’, ‘नमक हलाल’, ‘शान’, ‘शोले’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘पूरब पश्चिम’ आदि.

तकरीबन हर सफल हीरोहीरोइन के दौर में मल्टीस्टारर फिल्मों का बोलबाला रहा, फिर चाहे वह शाहरुख खान की ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’, ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘दिल तो पागल है’ हो या सलमान खान के दौर में ‘हम आप के हैं कौन’, ‘जुड़वां’, ‘हम साथसाथ हैं’ आदि फिल्में ही क्यों न हों.

कहने का मतलब यह है कि सुनील दत्त, राजकुमार, शत्रुघ्न सिन्हा से ले कर अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सलमान खान तक करीबन सभी हीरो ने मल्टीस्टारर और 2 हीरो वाली फिल्मों में काम किया है. लेकिन पिछले कुछ सालों में मल्टीस्टारर फिल्में बननी कम हो गई हैं. इस के पीछे क्या वजह है? कई कलाकारों से सजी फिल्मों के क्या फायदेनुकसान हैं? आने वाले समय में कौनकौन सी मल्टीस्टारर और 2 हीरो वाली फिल्में रिलीज होने जा रही हैं, आइए जानते हैं :

मल्टीस्टारर और 2 हीरो वाली फिल्मों के फायदेनुकसान

जब से फिल्मों का निर्माण शुरू हुआ है, तब से फिल्म निर्माण को ले कर नएनए आयाम मेकर्स पेश कर रहे हैं, जिस के तहत रोमांटिक, हौरर, सामाजिक, ऐक्शन आदि फिल्मों का निर्माण बरसों से चला आ रहा है.

ऐसे ही फिल्मों के दौर में एक नया आयाम शुरू हुआ और वह आयाम है मल्टीस्टारर और 2 हीरो 2 हीरोइन अभिनित फिल्मों का दौर. जैसे अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, विनोद खन्ना, शशि कपूर, रेखा, हेमा मालिनी आदि कलाकारों की फिल्में देखने के लिए दर्शक हमेशा उत्साहित रहते थे.

ऐसे में जब मेकर्स इन सितारों को एकसाथ जमा कर के एक ही फ्रेम में ला कर कोई फिल्म बनाते थे तो वह मल्टीस्टारर फिल्म सुपरहिट होती थी. जैसे सुभाष गई की फिल्म ‘राम लखन’, ‘विधाता’, ‘खलनायक’, ‘कर्मा’, ‘ताल.’

पहलाज निहलानी की फिल्में ‘आंखें’, ‘शोला और शबनम’, ‘हथकड़ी’, ‘पाप की दुनिया.’ प्रकाश मेहरा की फिल्में ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘नमक हलाल’, ‘शराबी’, ‘लावारिस’ आदि.

सूरज बड़जात्या की फिल्में ‘हम आप के हैं कौन’, ‘हम साथसाथ हैं’, करण जौहर की फिल्म ‘कुछकुछ होता है’, जिस में शाहरुख, सलमान, काजोल और रानी मुखर्जी थे, बरसों से मल्टीस्टारर फिल्मों को दर्शकों द्वारा हमेशा पसंद किया जा रहा था.

लेकिन पिछले दिनों एक वक्त ऐसा भी आया जब मल्टीस्टार फिल्में बननी कम होने लगीं, जिस की वजह से कई मल्टीस्टार फिल्म का फ्लौप होना अहम वजह रही.

कई बिग बजट मल्टीस्टारर फिल्में जैसे संजय लीला भंसाली की रणबीर कपूर, सलमान खान, रानी मुखर्जी, सोनम कपूर अभिनीत ‘सांवरिया’, बोनी कपूर की फिल्म ‘रूप की रानी चोरों का राजा’, श्रीदेवी और अनिल कपूर अभिनीत, मल्टीस्टार कलाकारों से सजी ‘जानी दुश्मन’, सलमान खान की फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’, ‘सिकंदर’, ‘रेस 3’, ‘ट्यूबलाइट’, ‘अंदाज अपना अपना’, अक्षय कुमार स्टारर ‘सम्राट पृथ्वीराज’, ‘सैल्फी’, ‘बड़े मियां छोटे मियां 2’, ‘खेलखेल में’, शाहरुख खान अभिनीत मल्टीस्टार फिल्में ‘त्रिमूर्ति’, ‘जीरो’, ‘दिल से’, ‘किंग अंकल’ आदि कई मल्टीस्टार फिल्में फ्लौप रहीं, जिस के बाद मेकर्स ऐसी भव्य मल्टीस्टारर फिल्में बनाने से पीछे हटने लगे क्योंकि ऐसी फिल्मों का बजट बहुत ज्यादा होता है और सभी को एकसाथ जमा कर के सभी की डेट्स ऐडजस्ट करना, सभी कलाकारों का ध्यान रखना आसान नहीं होता. इसलिए अगर एक मल्टीस्टार फिल्म फ्लौप होती है तो उस का असर ऐक्टर पर कम मेकर्स पर ज्यादा होता है.

मल्टीस्टार और 2 हीरो वाली फिल्मों में काम करने को ले कर आज के हीरोज की प्रतिक्रिया

बौलीवुड में आज के समय में कई ऐसे कलाकार हैं, जो मल्टीस्टार फिल्में करने के इच्छुक हैं. फिर चाहे वह अक्षय कुमार, आयुष्मान खुराना हों या शाहरुख खान, सलमान खान ही क्यों न हों, कई कलाकार ऐसे भी हैं जो मल्टीस्टारर फिल्में करने से हिचकिचाते हैं. इस की वजह है कई सारे कलाकारों से सजी मल्टीस्टारर फिल्म में भीड़ का हिस्सा बनने से इनकार होना, अपने रोल को ले कर एडिटिंग में कट जाने या कम होने का डर, बड़े ऐक्टर्स के साथ काम करते वक्त खुद की मौजूदगी का कम होना आदि कई बातों से डर कर आज कई सारे ऐक्टर्स मल्टीस्टार फिल्में रिजैक्ट कर देते हैं जबकि कुछ पुराने मेकर्स के अनुसार पहले के ऐक्टर के साथ में काम करना इतना पसंद करते थे कि फिल्म की कहानी भी नहीं सुनते थे और सिर्फ अपने पसंदीदा ऐक्टरों के साथ काम करने के लिए फिल्म साइन कर लेते थे ताकि काम के साथसाथ मौजमस्ती करने का भी मौका मिल जाए.

इस के अलावा पहले के कलाकार अपना ईगो साइड में रख कर दूसरे कलाकारों के हिसाब से अपनी शूटिंग की डेट ऐडजस्ट कर लेते थे. लेकिन आज के भागदौड़ वाले युग में निर्माताओं के लिए ऐक्टर की डेट्स शूटिंग के लिए ऐडजस्ट करना बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है.

यही वजह है कि पहले के मुकाबले आज के समय में मल्टीस्टारर फिल्में कम बनती हैं जबकि आज भी मल्टीस्टार फिल्मों की डिमांड उतनी ही है जितनी कि पहले के समय में थी.

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Pre Wedding Shoot: कैसी हो तैयारी

Pre Wedding Shoot: आजकल कपल्स के लिए प्री वैडिंग शूट करवाना काफी कूल हो गया है. शादी के फंक्शन तब तक शुरू नहीं होते जब तक प्री वैडिंग शूट न करा लिया जाए. प्री वैडिंग शूट के बहाने लड़कालड़की की एकदूसरे से अच्छी बौंडिंग भी बन जाती है. लेकिन परेशानी तब होती है जब बिना किसी तैयारी के शूट किया जाता है और बेवजह की टैंशन हो जाती है. इसलिए जरूरी है कि प्री वैडिंग शूट से पहले उस की तैयारी अच्छी तरह से की जानी चाहिए.

फोटोशूट की चैकलिस्ट बनाएं

सब से पहले आप को यह तय करना होगा कि प्री वैडिंग शूट का मतलब आप के लिए क्या है? क्या आप उसे पर्सनल अपनी यादों के लिए रखना चाहते हैं या फिर शादी के दिन सब मेहमानों के आगे उसे चलवाना चाहते हैं? इस के बाद तय करें कि आप उस के लिए किस तरह की लोकेशन चूज करना चाहते हैं?

फोटोग्राफर चुनना भी एक बड़ा टास्क है

-प्रौप्स (कपड़ों के अलावा थीम को ध्यान में रखते हुए काम आने वाली चीजें, जैसे बारिश थीम है तो छाता)

-पोज कैसेकैसे बनवाने हैं, सब साथ बैठ कर प्लान कर लें.

पार्टनर की सहमति जरूरी

बात चाहे प्री वैडिंग शूट के लिए जगह का चयन करना हो या फिर समय, हर चीज के लिए आप की और आप के पार्टनर की सहमति जरूरी है.

प्री वैडिंग शूट के लिए फोटोग्राफर तय करने से पहले अपने पार्टनर से फोटोशूट का समय, तारीख और जगह को ले कर जरूर बात कर लें.

इस के साथ ही अपने पार्टनर के साथ पूरी तरह से कंफर्टेबल होने के बाद ही फोटोशूट करवाएं, ताकि तसवीरों में आप दोनों की बौंडिंग बखूबी कैद हो.

फोटोग्राफर फाइनल करें

इस के लिए आप को अपने बजट में एक अच्छा और जिस के साथ आप कंफर्टेबल हों वैसा फोटोग्राफर चुन लें. यह भी देख लें कि आप एक ही फोटोग्राफर को रखना चाहते हैं या फिर उस की पूरी टीम के साथ शूट करना चाहते हैं. इस के पैसे भी ज्यादा लगेंगे.

प्री वैडिंग शूट के लिए लोकेशन/ थीम का सिलेक्शन कैसे करें

इस के लिए आप को यह देखना है कि आप शूट अपने ही शहर में करवाना चाहते हैं या किसी आउटडोर लोकेशन पर. अगर ऐसा है तब तो थीम भी उसी के अनुसार हिल स्टेशन, बीच या फिर किसी अन्य हिस्टोरिकल प्लेस में होगी.

अगर ऐसी कोई थम चुन रहे हैं तो वहां आनेजाने और रहनेखाने का भी पूरा इंतजाम कैसे होगा, इस के बारे में फोटोग्राफर से बात कर लें. उस का वहां अपना कोई स्टूडियो है या फिर स्पैशल परमिशन ले कर कहीं शूट करने जाना है.

लेकिन अगर आप अपने ही शहर में शूट कर रहे हैं तो उस के लिए आप ने क्या थीम रखी है? क्या आप ट्रैडिशनल कुछ चाहते हैं या फिर इन में से कुछ चाहते हैं जैसेकि-

-रोमांटिक और क्लासी : (जैसे इवनिंग गाउन और सूट)

-फन और कैजुअल : (जैसे डैनिम और टीशर्ट)

-ट्रैडिशनल या एथनिक : (पारंपरिक पोशाकें)

-स्टोरी आधारित : (आप की पहली मुलाकात या कोई खास जगह)

-सिनेमैटिक/ड्रैमेटिक : आप तय करें कि इन में से आप को क्या पसंद है और आप क्या करना चाहते हैं.

शूट की डेट और टाइम फिक्स कर लें

फोटोग्राफर और आप मिल कर तय करें कि आप के लिए कौन सी डेट सही रहेगी और शूट रात में करनी है या दिन में. यह सब आप अपनी थीम के अनुसार तय करें.

ड्रैस और प्रौप्स की योजना बनाएं

ड्रैस कैसी हो : एक ही आउटफिट में पूरा शूट नहीं किया जा सकता. आप के पास कम से कम 3 या 4 ड्रैसेज का कलैक्शन होना जरूरी है.

तो चलिए, बताते हैं कि आप अपने आउटफिट को कैसे चूज कर सकती हैं.  2-3 अलगअलग लुक (जैसे एक फौर्मल, एक कैजुअल) प्लान करें. कपड़े आरामदायक होने चाहिए ताकि आप आसानी से पोज दे सकें. इस के लिए गाउन भी बैस्ट औप्शन है. आप किसी भी कलर का इवनिंग गाउन पहन सकते हैं. इस दौरान अपने पार्टनर के साथ मैचिंग करना न भूलें. साड़ी पहन कर भी शूट कराया जा सकता है. प्री वैडिंग फोटोशूट के लिए ट्विनिंग आप के लुक को कूल बना देगी.

स्मार्ट कैजुअल्स बैस्ट औप्शन है

आप चाहें तो एविएटर सनग्लासेस के साथ व्हाइट टीशर्ट और ब्लू डैनिम लुक ट्राई कर सकती हैं. कुछ हट कर दिखने के लिए कस्टम टीशर्ट भी बना सकती हैं.

प्रौप्स : अपनी थीम के हिसाब से चीजें (जैसे फूल, साइकिल, शैंपैन या पालतू जानवर) शामिल करें.

अंगूठी : इंगेजमेंट या वैडिंग रिंग को अलग से रखने के लिए एक छोटा डब्बा.

मेकअप और हेयर स्टाइलिस्ट

-इस के लिए फोटोग्राफर से बात करें कि क्या उन के स्टुडिओ पर तैयार करने की सुविधा होगी या आप को अलग से इस का इंतजाम करना होगा. अगर अलग से इंतजाम करना है तो इस के लिए पहले से ही उस दिन के लिए बुकिंग करा दें साथ ही फोटोग्राफर को बता दें कि मेकअप आर्टिस्ट आप के साथ आएगी ताकि वह चेंज करने वाले आउटफिट के हिसाब से आप को बारबार तैयार कर सकें.

-आप को एक दिन पहले क्या तैयारी करनी है.

-आप को जो कपड़े पहनने हैं वे सभी एक बैग में पैक कर लें.

-कपड़ों पर प्रैस कर लें और उन की फिटिंग चैक कर लें क्योंकि कई बार कपड़े फोटोग्राफर भी देते हैं. इसलिए उन की फिटिंग भी एक दिन पहले ही चैक कर लें.

-हर आउटफिट के साथ मैचिंग आरामदायक जूते/चप्पलें. शूट के बीच में पहनने के लिए आरामदायक स्लिपर्स या फ्लिप-फ्लौप जरूर रखें.

-ज्वैलरी, घड़ी, धूप का चश्मा, हेयर ऐक्सैसरीज (हेयरपिन, रबरबैंड) आदि.

-अगर शूट लोकेशन पर ठंड है तो शौल या जैकेट.

शूट में लगाएं अपने लव का तड़का

आप दोनों के मिलने की कहानी क्या है? लव मैरिज या अरैंज्ड, आप कैसे मिले थे, कब व कैसे रिश्ते शुरू हुआ था आदि का जवाब ही आप के फोटोशूट का आधार होंगे.

इस के लिए कुछ सवालों के जवाब तो दीजिए, जैसे आप ने शादी के लिए प्रपोज कहां किया था या फिर आप लोग पहली बार कब मिले थे? क्या पहली बर मिले थे तो लड़ाई हो गई थी या फिर यह पहली नजर का प्यार ही था. अगर आप लोग पहली बार कालेज में मिले थे तो फोटो वहां भी खींची जा सकती है. अपनी इस स्टोरी के हिसाब से सौंग्स का सिलेक्शन करें और एक अच्छा सा वीडियो तैयार करवाएं.

पब्लिक प्लेस में प्री वैडिंग शूट कर तमाशा न बनाएं

कई बार लोग दिल्ली के इंडिया गेट या अन्य जगहों पर भारी ट्रैफिक में शूट करवाने लग जाते हैं जिस से कई बार एक्सिडेंट होतेहोते बचता है क्योंकि लोग ड्राइव करने के बजाए शूट देखने में बिजी हो जाते हैं.

पब्लिक प्लेस में ऐसा करना पागलपन है. इस से आप का मजाक बन सकता है. यह आप की प्राइवेट चीज है, इसे प्राइवेट ही रखें या फिर परमिशन ले कर ऐसे समय पर शूट करें जब पब्लिक न हो. हो सके तो फोटोग्राफर के स्टूडियो में ही सैट लगवा कर शूट करवाएं.

Pre Wedding Shoot

Social Showoff: बड़ा मकान, बड़ी गाड़ी, बड़ी ईएमआई में पिसते लोग

सोशल मीडिया पर स्टेटस अपडेट करने, नए घर की फोटोज से ले कर लग्जरी गाड़ी की रील्स पोस्ट करने का ट्रेंड इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि हरकोई इस होड़ में लगा है. साथ ही  बड़ा मकान, बड़ी गाड़ी, प्रेमिका और बीवी को इंप्रेस करने के लिए भी लिया जाता है.

किट्टी पार्टी में या समाज में दिखावे का चलन इतना हो गया है कि लोग बिना जरूरत के सिर्फ अपने स्टेटस को बढ़ाने के लिए भी ऐसा कर रहे हैं. इस का नतीजा यह होता है कि कई लोग बिना सही फाइनैंशियल प्लानिंग के महंगे घर या गाड़ी लेने का फैसला कर लेते हैं और वहीं से शुरू होता है घर का बजट बिगड़ने का सारा खेल जिस के नीचे घर का सुकून और शांति दब सी जाती है.

‘बड़ा मकान, बड़ी गाड़ी, बड़ी ईएमआई में पिसते लोग’ एक ऐसी स्थिति को दर्शाता है जहां लोग अपनी वित्तीय क्षमता से बड़े या महंगे घर और कार खरीदने के लिए बहुत बड़ी ईएमआई (समान मासिक किश्त) के बोझ तले दब जाते हैं. यह दर्शाता है कि जीवनशैली को बनाए रखने की चाह में लोग अकसर अपनी आय का बड़ा हिस्सा लोन चुकाने में लगा देते हैं, जिस से उन्हें अन्य खर्चों के लिए कम पैसा बचता है और वे आर्थिक रूप से तनाव में रहते हैं.

ईएमआई के साथ ही और भी खर्चे बढ़ जाते हैं

बड़ा घर और बड़ी गाड़ी के खर्चे ईएमआई के साथ ही और भी खर्चे बढ़ा देते हैं. जैसे अगर आप ने फ्रीज या टीवी लिया तो खर्चे वहीं तक रहते हैं लेकिन घर और गाड़ी के खर्चे बढ़ जाते हैं. टीवी का बिजली का खर्च इतना नहीं बढ़ता. जैसे हर महीने की किस्त तो अपनी जमापूंजी में से दे दी, लेकिन बाद में क्या. यह बड़ी गाड़ी के रोज के खर्चे जैसे सर्विस, पैट्रोल, कोई पार्ट खराब हो गया तो बड़ा खर्चा, इंश्योरैंस का बड़ा खर्चा, बड़ी गाड़ी है तो आनाजाना भी ज्यादा होगा. उस का खर्च बढ़ जाएगा.

इसी तरह बड़े मकान को सजाने के खर्चे भी ज्यादा हैं. हर कमरे में एसी चाहिए, सोसाइटी की मैंटनेंस भी बड़ी होगी, वहां मैड के रेट भी ज्यादा होंगे. वहां पार्किंग भी महंगी होगी, वहां के पास के मार्केट में सब्जी भी महंगी होगी. ऐसा घर है तो बिजली का बिल भी ज्यादा ही आएगा.

ये सभी खर्च उस समय जोड़े नहीं जाते जब ये बड़ी चीजें ली जाती हैं. आमतौर पर आदमी सिर्फ दिखावे के लिए प्रौपर्टी लेता है. कई बार बड़ी कालोनी का मकान भी महंगा पड़ता है. आप का मकान भले ही छोटा हो लेकिन वह सोसाइटी महंगी है तो छोटा घर भी महंगा ही पड़ेगा.

बड़ी गाड़ी से जुड़े कुछ बड़े खर्चे

-बड़ी गाङियों में ज्यादा पैट्रोल और माइलेज कम.

-बड़ी गाड़ी रोज के खर्चे मांगती है.

-बड़ी गाड़ियों, खासकर एसयूवी और सेडान में इंजन बड़ा होता है, जिस से वे छोटी गाड़ियों की तुलना में ज्यादा पैट्रोल या डीजल पीती हैं. बड़ी गाडी का माइलेज भी 8-10 ही होगा जबकि आप की पुरानी व छोटी गाडी का माइलेज 14 था. यह खर्चा भी बढ़ जाएगा.

-इन गाड़ियों की सर्विसिंग और पार्ट्स महंगी होती हैं.

-इन गाड़ियों के पुर्जे (पार्ट्स) और सर्विसिंग महंगी होती है.

-इंजन औयल की मात्रा ज्यादा लगती है.

-पार्ट्स (जैसे ब्रेक पैड, फिल्टर) भी छोटे मौडल की तुलना में महंगे हो सकते हैं.

-बड़ी गाड़ियों के टायर भी महंगे होते हैं.

-गाड़ी के साइड मिरर भी महंगे आते हैं.

बीमा और टैक्स

ज्यादा कीमत वाली गाड़ियों का बीमा प्रीमियम और रोड टैक्स भी ज्यादा होता है.

बजट के हिसाब से लें गाड़ी

-अगर आप का बजट ₹50,000 जैसी मासिक आय पर निर्भर है, तो बड़ी गाड़ी न लें. ऐसे में कम रनिंग कास्ट वाली गाड़ी लेना बेहतर विकल्प है.

-अपनी जरूरत के हिसाब से ऐसी कार चुनें जो ज्यादा माइलेज देती हो.

-कार की मौडल और उस की सर्विसिंग लागत के बारे में पहले ही पता कर लें.

-खरीदने से पहले बीमा और रोड टैक्स का अनुमान लगा लें.

-गाड़ी खरीदते समय 25-5-10 का फौर्मूला फौलो करें.

-डाउन पेमेंट 25% ठीक रहेगा.

-आप जो भी गाड़ी खरीद रहें हैं, उस पर बहुत ज्यादा लोन लेना सही नहीं रहेगा बल्कि गाड़ी जितनी की भी आ रही हो उस का 25% आप को ऐडवांस देना चाहिए ताकि लोन कम रहे और ब्याज में बचत हो.

-5 साल का लोन लें. कार लोन की अवधि अधिकतम 5 साल की रखें. ज्यादा लंबी अवधि पर ब्याज का बोझ बढ़ता है.

-10% ईएमआई. आप की ईएमआई, आप की मासिक सैलरी का 10% से अधिक नहीं हो, ताकि दूसरे जरूरी खर्चों पर असर न पड़े.

बड़े घर के बड़े खर्चे

-25-30% तक डाउन पेमेंट का लक्ष्य रखें.

-ज्यादा डाउन पेमेंट देने से ईएमआई कम होती है और पूरे लोन अवधि में दिया जाने वाला कुल ब्याज भी घट जाता है. कम से कम 25-30% तक डाउन पेमेंट का लक्ष्य रखें, लेकिन इस दौरान इमरजैंसी फंड या लंबे समय की निवेश योजनाओं (जैसे रिटायरमेंट) को न छेड़ें.

-इस के अलावा, कम से कम 6-12 महीनों के खर्च जितना एक अलग इमरजैंसी फंड रखना भी बेहद जरूरी है. यह पूरा अनुशासित तरीका इस बात को सुनिश्चित करता है कि आप घर खरीदने की जिम्मेदारी आत्मविश्वास के साथ उठाएं, बिना अपनी वित्तीय स्थिरता को खतरे में डाले.

बिजली का बिल ज्यादा

-बड़े घर में ज्यादा कमरे होंगें, ज्यादा लाइट्स, ज्यादा एसी/हीटर होने की वजह से बिजली का बिल भी बढ़ जाएगा.

-मेंटेनेंस भी ज्यादा होगी.

-किसी अच्छे बिल्डर के बड़े अपार्टमेंट या सोसाइटी में रहने पर मेंटेनेंस चार्ज भी ज्यादा देना पड़ता है. भले ही आप का घर 2 कमरों का ही क्यों न हो लेकिन बड़ी सोसाइटी में रहने के ये खर्च तो निभाने ही पड़ेंगे. बड़ी छत, ज्यादा दीवारें, ज्यादा खिड़कियां, ज्यादा प्लंबिंग, मरम्मत और पेंटिंग का खर्च भी दोगुना हो जाएगा.

-घर की डैकोरेशन व फर्नीचर पर भी ज्यादा खर्च होगा.

-घर को सजाने और रहने लायक बनाने के लिए पेंटिंग, फर्नीचर और अन्य सजावटी सामान पर खर्च करना होता है. ज्यादा कमरों को भरने के लिए ज्यादा और महंगे फर्नीचर, परदे, कालीन आदि लेना पड़ेगा. वैसे भी जैसी सोसाइटी में आप रहते हैं वहां की लाइफस्टाइल को मैनेज करने खर्चे बढ़ जाते हैं.

-बड़े घर पर प्रौपर्टी टैक्स भी ज्यादा लगेगा.

-संपत्ति का मूल्यांकन ज्यादा होने के कारण प्रौपर्टी टैक्स भी ज्यादा होता है.   मूल्यांकन कम, टैक्स भी कम. यह एक नियमित खर्च है जो सरकार द्वारा लगाया जाता है.

-घर में काम करने वाले कर्मचारियों का खर्च भी बढ़ेगा.

-घर बड़ा होने पर उस की नियमित साफसफाई के लिए आप को शायद अतिरिक्त मदद (जैसे मेड या क्लीनिंग सर्विस) लेनी पड़े, जिस से मासिक खर्च बढ़ेगा. बड़े घर की साफसफाई का खर्च भी ज्यादा होगा. मेड इस का डबल पैसा लेगी.

-बीमा भी महंगा होगा. घर की कीमत ज्यादा होने के कारण होम इंश्योरैंस प्रीमियम भी ज्यादा होता है.

दूसरों की देखादेखी या फिर सोशल सर्कल में अमीर दिखने के लिए बड़ा घर और बड़ी गाडी ले कर अपना बजट बिगड़ना और लोन में दब जाना समझदारी नहीं है. अगर आप कम लोग हैं और 3 बैडरूम वाले फ्लैट से गुजारा चल सकता है, तो 4 या 5 बैडरूम वाला घर लेना सही नहीं है. इसी तरह गाडी भी अपनी फैमिली की जरूरतों के अनुसार ही लें.

अपनी जरूरतों को समझ कर ही प्लानिंग करें. वरना हर महीने लोन की ईएमआई चुकाने के चक्कर में आप के बच्चों की ऐजुकेशन, हैल्थ इमरजैंसी फंड या रिटायरमेंट फंड की प्लानिंग पर असर आ सकता है.

बड़े घर और लग्जरी कार में पैसा खर्च करने की जगह हैल्थ-लाइफ इंश्योरैंस में पैसा निवेश करें. अपनी मासिक आय का 25-30% से ज्यादा ईएमआई पर खर्च न करें. घर खरीदने से पहले अपने सभी खर्चों की गणना कर लें. आपातकालीन स्थिति के लिए हमेशा कुछ बचत रखें. ईएमआई कम करने के लिए पार्ट प्री-पेमेंट का विकल्प भी चुन सकते हैं. इस तरह भविष्य के लिए निवेश करें और खुश रहें.

Social Showoff

Rekha: सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरता रैड कारपेट पर ब्लैक मैजिक

Rekha: बढ़ती उम्र में खूबसूरती और स्टाइल बरकरार कैसे रखा जाता है यह कोई बौलीवुड की दिग्गज अदाकारा रेखा से सीखे. 71 साल की बढ़ती उम्र में उन की खूबसूरती, स्टाइल और फिटनैस, यंग ऐक्ट्रैस को भी मात देती है और वे अकसर अपने ग्लैमर और स्टाइल के कारण सुर्खियां बटोर लेती हैं. अब एक बार फिर रेखा अपने स्टाइल से सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं.

स्टाइलिश ब्लैक गौगल्स

हाल ही में ‘गुस्ताख इश्क’ की स्क्रीनिंग में रेखा का बेहद स्टाइलिश ब्लैक अवतार दिखाई दिया, जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस लुक में रेखा बहुत खूबसूरत लग रही हैं. लुक को स्टाइलिश बनाने के लिए उन्होंने ब्लैक स्टाइलिश गौगल्स लगाया हुआ था जो उन के लुक में चार चांद लगा रहा था.

ट्रैडिशनल ब्लैक स्टाइल

आप को बता दें कि रेखा स्क्रीनिंग में ब्लैक कलर की साड़ी पहने ट्रैडिशनल स्टाइल में नजर आई हैं. उन्होंने ब्लैक में गोल्डन पोलका डौट डिजाइन की साड़ी पहनी और उस पर ब्लैक धारीदार टैक्सचर वाला ओवरकोट डाल रखा था. लहराते लौंग पल्लू में उन का फोटोग्राफर को पोज देने का अंदाज वाकई कमाल का है, जो लोगों को खूब पसंद आ रहा है.

सिंदूर से किया लुक कंपलीट

इस के साथ ही वे साड़ी के साथ हैवी गोल्डन इयररिंग्स पहनी हुई थीं. हाथों में गोल्डन कंगन, सोल्डर पर क्रौस कर के गोल्डन पर्स लिया. हेयरस्टाइल में उन्होंने हाई बन बना रखा, इस के साथ ही मांग में सिंदूर लगा कर लुक को पूरा किया था. रेखा अपना अलग स्टाइल स्टेटमैंट रखती हैं, जो उन्हें सब से अलग दिखाता है.

अगर आप भी इस विंटर सीजन में स्टाइलिश नजर आना चाहती हैं, तो रेखा के लुक को फौलो कर सकती हैं. सोशल मीडिया पर उन की ब्लैक साड़ी और ब्लैक गौगल्स वाला यह लुक लोगों को काफी पसंद आ रहा है.

Rekha

Hindi Family Story: आभास- ननदों को शारदा ने कैसे अपनाया

Hindi Family Story: ‘‘ओह मम्मी, भावुक मत बनो, समझने की कोशिश करो,’’ दूसरी तरफ की आवाज सुनते ही शारदा के हाथ से टेलीफोन का चोंगा छूट कर अधर में झूल गया. कानों में जैसे पिघलता सीसा पड़ गया. दिल दहला देने वाली एक दारुण चीख दीवारों और खिड़कियों को पार करती हुई पड़ोसियों के घरों से जा टकराई. सब चौंक पड़े और चीख की दिशा की ओर दौड़ पड़े.

‘‘क्या हुआ, बहनजी?’’ किसी पड़ोसी ने पूछा तो शारदा ने कुरसी की ओर इशारा किया.

‘‘अरे…कैसे हुआ यह सब?’’

‘‘कब हुआ?’’ सभी चकित से रह गए.

‘‘अभीअभी आए थे,’’ शारदा ने रोतेरोते कहा, ‘‘अखबार ले कर बैठे थे. मैं चाय का प्याला रख कर गई. थोड़ी देर में चाय का प्याला उठाने आई तो देखा चाय वैसी ही पड़ी है, ‘अखबार हाथ में है. सो रहे हो क्या?’ मैं ने पूछा, पर कोई जवाब नहीं, ‘चाय तो पी लो’, मैं ने फिर कहा मगर बोले ही नहीं. मैं ने कंधा पकड़ कर झिंझोड़ा तो गरदन एक तरफ ढुलक गई. मैं घबरा गई.’’

‘‘डाक्टर को दिखाया?’’

‘‘डाक्टर को ही तो दिखा कर आए थे,’’ शारदा ने रोते हुए बताया, ‘‘1-2 दिन से कह रहे थे कि तबीयत कुछ ठीक नहीं है, कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है. डाक्टर के पास गए तो उस ने ईसीजी वगैरह किया और कहा कि सीढि़यां नहीं चढ़ना, आप को हार्ट प्रौब्लम है.

‘‘घर आ कर मुझ से बोले, ‘ये डाक्टर लोग तो ऐसे ही डरा देते हैं, कहता है, हार्ट प्रौब्लम है. सीढि़यां नहीं चढ़ना, भला सीढि़यां चढ़ कर नहीं आऊंगा तो क्या उड़ कर आऊंगा घर. हुआ क्या है मुझे? भलाचंगा तो हूं. लाओ, चाय लाओ. अखबार भी नहीं देखा आज तो.’

‘‘अखबार ले कर बैठे ही थे, बस, मैं चाय का प्याला रख कर गई, इतनी ही देर में सबकुछ खत्म…’’ शारदा बिलख पड़ीं.

‘‘बेटे को फोन किया?’’ पड़ोसी महेशजी ने झूलता हुआ चोंगा क्रेडल पर रखते हुए पूछा.

‘‘हां, किया था.’’

‘‘कब तक पहुंच रहा है?’’

‘‘वह नहीं आ रहा,’’ शारदा फिर बिलख पड़ीं, ‘‘कह रहा था आना बहुत मुश्किल है, यहां इतनी आसानी से छुट्टी नहीं मिलती. दूसरे, उस की पत्नी डैनी वहां अकेली नहीं रह सकती. यहां वह आना नहीं चाहती क्योंकि यहां दंगे बहुत हो रहे हैं. मुसलमान, ईसाई कोई भी सुरक्षित नहीं यहां. कोई मार दे तो मुसीबत. बिजलीघर में कर दो सब, वहां किसी की जरूरत नहीं, सबकुछ अपनेआप ही हो जाएगा.’’

‘‘और कोई रिश्तेदार है यहां?’’

‘‘हां, एक बहन है,’’ शारदा ने बताया.

‘‘अरे, हां, याद आया. परसों ही तो मिल कर आए थे सुहासजी उन से. कह रहे थे कि यहां मेरी दीदी है, उन से ही मिल कर आ रहा हूं. आप उन का पता बता दें तो हम उन्हें खबर कर दें,’’ शर्मा जी ने कहा.

वहां फौरन एक आदमी दौड़ाया गया. सब ने मिल कर सुहास के पार्थिव शरीर को जमीन पर लिटा दिया. आसपास की और महिलाएं भी आ गईं जो शारदा को सांत्वना देने लगीं.

तभी रोतीबिलखती सुधा दीदी आ पहुंचीं.

‘‘हाय रे, भाई रे…क्या हुआ तुझे, परसों ही तो मेरे पास आया था. भलाचंगा था. यह क्या हो गया तुझे एक ही दिन में. जाना तो मुझे था, चला तू गया, मेरे से पहले ही सबकुछ छोड़छाड़ कर…हाय रे, यह क्या हो गया तुझे…’’

बहुत ही मुश्किल से सब ने उन्हें संभाला. उन्होंने अपनी तीनों बहनों, सरोज, ऊषा, मंजूषा व अन्य सब रिश्तेदारों के पते बता दिए. फौरन सब को सूचना दे दी गई. थोड़ी ही देर में सब आ पहुंचे.

काफी देर तक कुहराम मचा रहा, फिर सब शांत हो गए पर शारदा रोए ही जा रही थीं.

सुधा दीदी कितनी ही देर तक शारदा के चेहरे की ओर एकटक देखती रहीं. शारदा के चेहरे पर 22 वर्ष पुराना मां का चेहरा उभर आया, जब बाबूजी गुजरे थे और उन्होंने बंगलौर फोन किया था, ‘बाबूजी नहीें रहे, फौरन आ जाओ.’

‘पर ये तो दौरे पर गए हुए हैं, कैसे आ सकते हैं एकदम सब?’ शारदा ने बेरुखी से कहा था.

‘तुम उस के दफ्तर फोन करो, वह बुला देंगे.’

‘किया था पर उन्हें कुछ मालूम नहीं कि वह कहां हैं.’

‘ऐसा कैसे है, दफ्तर वालों को तो सब पता रहता है कि कौन कहां है.’

‘वहां रहता होगा पता, यहां नहीं,’ शारदा ने तीखे स्वर में कहा था.

‘मुझे दफ्तर का फोन नंबर दो, मैं वहां कांटेक्ट कर लूंगी.’

‘मेरे पास नहीं है नंबर…’ कह कर शारदा ने रिसीवर पटक दिया था.

ऐसे समय में भी शारदा ऐसा व्यवहार करेगी, कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था. आखिरकार चाचाजी ने ही सब क्रियाकर्म किए. इस ने जैसा किया वैसा ही अब इस के आगे आया.

यह तो शुरू से ही परिवार से कटीकटी रही थी. हम 4 बहनें थीं, भाई एक ही था, बस. कितना चाव था इस का सब को कि बहू आएगी घर में, रौनक होगी. सब के साथ मिलजुल कर बैठेगी.

अम्मां तो इसे जमीन पर पैर ही ना रखने दें, हर समय ऊषा, मंजूषा से कहती रहतीं, ‘जा, अपनी भाभी के लिए हलवा बना कर ले जा…हलवाई के यहां से गरमगरम पूरियां ले आओ नाश्ते के लिए… भाभी से पूछ ले, ठंडा लेगी या गरम…भाभी के नहाने की तैयारी कर दे… गुसलखाना अच्छी तरह साफ कर देना…’

शाम को कभी गरमगरम इमरती मंगातीं तो कभी समोसे मंगातीं, ‘जा अपनी भाभी के लिए ले जा,’ पर भाभी की तो भौं तनी ही रहतीं हरदम.

एक दिन बिफर ही पड़ीं दोनों, ‘हम नहीं जाएंगी भाभी के पास. झिड़क पड़ती हैं, कहती हैं ‘कुछ नहीं चाहिए मुझे, ले जाओ यह सब…’

सरोज ने मां से 1-2 बार कहा भी, ‘क्या जरूरत है इतना सिर चढ़ाने की, रहने दो स्वाभाविक तरीके से. अपनेआप खाएपीएगी जब भूख लगेगी, तुम क्यों चिंता करती हो बेकार…’

‘अरे, कौन सी 5-7 बहुएं आएंगी. एक ही तो है, उसी पर अपना लाड़चाव पूरा कर लूं.’

पर इस ने तो उन के लाड़चाव की कभी कद्र ही न जानी, न ही ननदें कभी सुहाईं. आते ही यह तो अलग रहना चाहती थी. इत्तिफाकन सुहास की बदली हो गई और बंगलौर चली गई, सब से दूर…

ऊषा, मंजूषा की शादियों में आई थी बिलकुल मेहमान की तरह.

न किसी से बोलनाचालना, न किसी कामधंधे से ही मतलब. कमरे में ही बैठी रही थी अलगथलग सब से, गुमसुम बिलकुल…और अभी भी ऐसी बैठी है जैसे पहचानती ही न हो. चलो, नहीं तो न सही, हमें क्या, हम तो अपने भाई की आखिरी सूरत देखने आए थे…देख ली…अब हम काहे को आएंगे यहां…

‘‘राम नाम सत्य है…राम नाम सत्य है…’’ की आवाज से दीदी की तंद्रा टूटी. अर्थी उठ गई. हाहाकार मच गया. सब अरथी के पीछेपीछे चल पड़े. आज मां के घर का यह संपर्क भी खत्म हो गया.

औरत कितनी भी बड़ी उम्र की हो जाए, मां के घर का मोह कभी नहीं टूटता, नियति ने आज वह भी तुड़वा दिया. कैसा इंतजार रहता था राखीटीके का, सुबह ही आ जाता था और सारा दिन हंसाहंसा कर पेट दुखा देता था. ये तीनों भी यहां आ जाती थीं मेरे पास ही.

अरथी के पीछेपीछे चलते हुए वह फिर फूट पड़ीं, ‘‘अब कहां आनाजाना होगा यहां…जिस के लिए आते थे, वही नहीं रहा…अब रखा ही क्या है यहां…’’

अचानक उन की नजर शारदा पर पड़ी, जो अरथी के पीछेपीछे जा रही थी. उस के चेहरे पर मेकअप की जगह अवसाद छाया हुआ था, आंखों का आईलाइनर आंसुओं से धुल चुका था. होंठों पर लिपस्टिक की जगह पपड़ी जमी थी. ‘सैट’ किए बाल बुरी तरह बिखर कर रह गए थे, मुड़ीतुड़ी सफेद साड़ी, बिना बिंदी के सूना माथा, सूनी मांग…रूखे केश और उजड़े वेश में उस का इस तरह वैधव्य रूप देख कर दीदी का दिल बुरी तरह दहल उठा. रंगत ही बदल गई इस की तो जरा सी देर में. कैसी सजीसजाई दुलहन के वेश में आई थी 35 साल पहले, कितना सजाती थी खुद को और आज…आज सुहास के बिना कैसी हो गई. आज रहा ही कौन इस का दुनिया में.

मांबाप तो बाबूजी से पहले चल बसे थे, एक बहन थी वह शादी के दोढाई साल बाद अपने साल भर के बेटे को ले कर ऐसी बाजार गई, सो आज तक नहीं लौटी. एक भाई है, वह किसी माफिया गिरोह से जुड़ा है. कभी जेल में, कभी बाहर. एक ही एक बेटा है, वह भी इस दुख की घड़ी में मुंह फेर कर बैठ गया. उन्हें उस पर बहुत तरस आया, ‘बेचारी, कैसी खड़ी की खड़ी रह गई.’

अरथी को गाड़ी में रख दिया गया. गाड़ी धीरेधीरे चलने लगी और कुछ ही देर में आंखों से ओझल हो गई.

गाड़ी के जाने के बाद शारदा का मन बेहद अवसादग्रस्त हो गया.

जब हम दुख में होते हैं तो अपनों का सान्निध्य सब से अधिक चाहते हैं, पर ऐसे दुखद समय में भी अपनों का सान्निध्य न मिले तो मन बुरी तरह टूट जाता है. अकेलापन, बेबसी बुरी तरह मन को सालने लगती है.

यही हाल उस समय शारदा का हो रहा था. बारबार उसे अपने बेटे की याद आ रही थी कि काश, इस घड़ी में वह उस के पास होता. उसे गले लगा कर रो लेती. कुछ शांति मिलती, कितनी अकेली है आज वह, न मांबाप, न भाईर्बहन. कोई भी तो नहीं आज उस का जो आ कर उस के दुख में खड़ा हो. नीचे धरती, ऊपर आसमान, कोई सहारा देने वाला नहीं.

बेटे के शब्द बारबार कानों से टकरा कर उस के दिल को बुरी तरह कचोट रहे थे, जिसे जिंदगी भर अपने से ज्यादा चाहा, जिस के कारण उम्र भर किसी की परवा नहीं की, उसी ने आज ऐसे दुर्दिनों में किनारा कर लिया, मां के लिए जरा सा भी दर्द नहीं. बाप के जाने का जरा भी गम नहीं, जैसे कुछ हुआ ही न हो.

कैसी पत्थर दिल औलाद है. जब अपनी पेटजाई औलाद ही अपनी न बनी तो और कौन बनेगा अपना. सासननदें तो भला कब हुईं किसी की, वे तो उम्र भर उस के और सुहास के बीच दीवार ही बनी रहीं. सुहास तो सदा अपनी मांबहनों में ही रमा रहा. उस की तो कभी परवा ही नहीं की. इस कारण सदैव सुहास और उस के बीच दूरी ही बनी रही.

अब भी तो देखो, एक शब्द भी नहीं कहा किसी ने…सुहास के सामने ही कभी अपनी न बनी, तो अब क्या होगी भला. कैसे रहेगी वह अकेली जीवन भर?  न जाने कितनी पहाड़ सी उम्र पड़ी है, कैसे कटेगी? किस के सहारे कटेगी? उसे अपने पर काबू नहीं हो पा रहा था.

दूसरी ओर बेटे की बेरुखी साल रही थी. उसे लगा जैसे वह एक गहरे मझधार में फंसी बारबार डूबउतरा रही है. कोई उसे सहारा देने वाला नहीं कि किनारे आ जाए. क्या करे, कैसे करे?

उस ने तो कभी सोचा भी न था कि ऐसा बुरा समय भी देखना पड़ेगा. वह वहीें सीढि़यों की दीवार का सहारा ले कर बिलख पड़ी जोरजोर से.

सामने से उसे सुधा दीदी, सरोज, ऊषा, मंजूषा आती दिखाई दीं. उन्होंने उसे चारों ओर से घेर लिया और सांत्वना देने लगीं, ‘‘चुप कर शारदा, बहुत रो चुकी. वह तो सारी उम्र का रोना दे गया. कब तक रोएगी…’’ कहतेकहते सुधा दीदी स्वयं रो पड़ीं और तीनों बहनें भी शारदा के गले लग फफक पड़ीं, सब का दुख समान था. अत: जीवन भर का सारा वैमनस्य पल भर में ही आंसुओं में धुल गया.

‘‘हाय, क्या हाल हो गया भाभी का,’’ ऊषा, मंजूषा ने उस के गले लगते हुए कहा.

‘‘मैं क्या करूं, दीदी? कैसे करूं? कहां जाऊं?’’ शारदा ने बिलखते हुए कहा.

‘‘तू धीरज रख, शारदा, जाने वाला तो चला गया, अब लौट कर तो आएगा नहीं,’’ सुधा दीदी ने उसे प्यार से सीने से लगाते हुए कहा.

‘‘पर मैं अकेली कैसे रहूंगी, सारी उम्र पड़ी है. वह तो मुझे धोखा दे गए बीच में ही.’’

‘‘कौन कहता है तू अकेली है, वह नहीं रहा तो क्या, हम 4 तो हैं तेरे साथ. तुझे ऐसे अकेले थोड़े ही छोडे़ंगे. चलो, घर में चलो.’’

वे चारों शारदा को घर में ले आईं, ऊषा, मंजूषा ने सारा घर धो डाला. सरोज ने उस के नहाने की तैयारी कर दी. तब तक सुधा दीदी उस के पास बैठी उस के आंसू पोंछती रहीं.

थोड़ी ही देर में सब नहा लिए, ऊषा, मंजूषा चाय बना लाईं. नहा कर, चाय पी कर शारदा का मन कुछ शांत हुआ. उस वक्त शारदा को वे चारों अपने किसी घनिष्ठ से कम नहीं लग रही थीं, जिन्होंने उसे ऐसे दुख में संभाला.

उसे लगा, जिन्हें उस ने सदा अपने और सुहास के बीच दीवार समझा, असल में वह दीवार नहीं थी, वह तो उस के मन का वहम था. उस के मन के शीशे पर जमी ईर्ष्या की गर्द थी. आज वह वहम की दीवार गहन दुख ने तोड़ दी. मन के शीशे पर जमी ईर्ष्या की गर्द आंसुओं में धुल गई.

बेटा नहीं आया तो क्या, उस की 4-4 ननदें तो हैं, उस के दुख को बांटने वाली. वे चारों उसे अपनी सगी बहन से भी ज्यादा लग रही थीं, आज दुख की घड़ी में वे ही चारों अपनी लग रही थीं. आज पहली बार उस के मन में उन चारों ननदों के प्रति अपनत्व का आभास हुआ.

Hindi Family Story

Family Story in Hindi: दांव पर भविष्य

Family Story in Hindi: ‘‘यह कौन सा समय है घर आने का?’’ शशांक को रात लगभग 11 बजे घर लौटे देख कर विभा ने जवाब तलब किया था.

‘‘आप तो यों ही घर सिर पर उठा लेती हैं. अभी तो केवल 11 बजे हैं,’’ शशांक साक्षात प्रश्नचिह्न बनी अपनी मां के प्रश्न का लापरवाही से उत्तर दे कर आगे बढ़ गया था.

‘‘शशांक, मैं तुम्हीं से बात कर रही हूं और तुम हो कि मेरी उपेक्षा कर के निकले जा रहे हो,’’ विभा चीखी थीं.

‘‘निकल न जाऊं तो क्या करूं. आप के कठोर अनुशासन ने तो घर को जेल बना दिया है. कभीकभी तो मन होता है कि इस घर को छोड़ कर भाग जाऊं,’’ शशांक अब बदतमीजी पर उतर आया था.

‘‘कहना बहुत सरल है, बेटे. घर छोड़ना इतना सरल होता तो सभी छोड़ कर भाग जाते. मातापिता ही हैं जो बच्चों की ऊलजलूल हरकतों को सह कर भी उन की हर सुखसुविधा का खयाल रखते हैं. इस समय तो मैं तुम्हें केवल यह याद दिलाना चाहती हूं कि हम ने सर्वसम्मति से यह नियम बनाया है कि बिना किसी आवश्यक कार्य के घर का कोई सदस्य 7 बजे के बाद घर से बाहर नहीं रहेगा. इस समय 11 बज चुके हैं. तुम कहां थे अब तक?’’

‘‘आप और आप के नियम…मैं ने निर्णय लिया है कि मैं अपना शेष जीवन इन बंधनों में जकड़ कर नहीं बिताने वाला. मेरे मित्र मेरा उपहास करते हैं. मुझे ‘ममाज बौय’ कह कर बुलाते हैं.’’

‘‘तो इस में बुरा क्या है, शशांक? सभी अपनी मां के ही बेटे होते हैं,’’ विभा गर्व से मुसकराईं.

‘‘बेटा होने और मां के पल्लू से बंधे होने में बहुत अंतर होता है,’’ शशांक ने अपना हाथ हवा में लहराते हुए  प्रतिवाद किया.

‘‘यह तेरे हाथ में काला सा क्या हो गया है?’’ बेटे का हाथ देख कर विभा चौंक गई.

‘‘यह? टैटू कहते हैं इसे. आज की पार्टी में शहर का प्रसिद्ध टैटू आर्टिस्ट आया था. मेरे सभी मित्रों ने टैटू बनवाया तो भला मैं क्यों पीछे रहता? अच्छा लग रहा है न?’’ शशांक मुसकराया.

‘‘अच्छा? सड़कछाप लग रहे हो तुम. हाथ से ले कर गरदन तक टैटू बनवाने के पैसे थे तुम्हारे पास?’’ विभा क्रोधित स्वर में बोलीं.

‘‘मेरे पास पैसे कहां से आएंगे, मौम? बैंक में बड़ी अफसर आप हैं, आप. पापा भी बड़ी मल्टीनैशनल कंपनी में बड़े पद पर हैं पर अपने इकलौते पुत्र को मात्र 1 हजार रुपए जेबखर्च देते हैं आप दोनों. लेकिन मेरे मित्र आप की तरह टटपूंजिए नहीं हैं. मेरे मित्र अशीम ने ही यह शानदार पार्टी दी थी और टैटू आदि का प्रबंध भी उसी की ओर से था. पार्टी तो सारी रात चलेगी. मैं तो आप के डर से जल्दी चला आया,’’ शशांक ने बड़ी ठसक से कहा.

‘‘यह नया मित्र कहां से पैदा हो गया? अशीम नाम का तो तुम्हारा कोई मित्र नहीं था. उस ने पार्टी दी किस खुशी में थी? जन्मदिन था क्या?’’

‘‘एक बार में एक ही प्रश्न कीजिए न, मौम. तभी तो मैं ठीक से उत्तर दे पाऊंगा. आप जानना चाहती हैं कि यह मित्र आया कहां से? तो सुनिए, यह मेरा नया मित्र है. पार्टी उस ने जन्मदिन की खुशी में नहीं दी थी. वह तो इस पार्टी में अपनी महिलामित्र का सब से परिचय कराना चाहता था. पर मैं तो उस से पहले ही घर चला आया. अशीम को कितना बुरा लग रहा होगा. पर मैं समझा लूंगा उसे. मेरा जीवन उस के जैसा सीधासरल नहीं है. कल स्कूल भी जाना है,’’ शशांक ने बेमतलब ही जोर से ठहाका लगाया.

‘‘यह क्या? तुम पी कर आए हो क्या?’’ विभा ने कुछ सूंघने की कोशिश की.

‘‘इसे पीना नहीं कहते, मेरी प्यारी मां. इसे सामाजिक शिष्टाचार कहा जाता है,’’ विभा कुछ और पूछ पातीं उस से पहले शशांक नींद की गोद में समा गया था.

विभा शशांक को कंबल ओढ़ा कर बाहर निकलीं तो रात्रि का अंधकार और भी डरावना लग रहा था. पति के अपनी कंपनी के काम से शहर से बाहर जाने के कारण घर का सूनापन उन्हें खाने को दौड़ रहा था.

शशांक उन की एकमात्र संतान था. पतिपत्नी दोनों अच्छा कमाते थे. इसलिए शशांक के पालनपोषण में उन्होंने कोई कोरकसर नहीं छोड़ी थी. पर पिछले कुछ दिनों से वह अजनबियों जैसा व्यवहार करने लगा था.

अपने स्कूल, ट्यूशन और मित्रों की हर बात उन्हें बताने वाला शशांक मानो अपने बनाए चक्रव्यूह में कैद हो कर रह गया था जिसे भेद पाना उन के लिए संभव ही नहीं हो रहा था.

‘आज क्या हुआ मालूम?’ विभा के घर पहुंचते ही वह इस वाक्य से अपना वार्त्तालाप प्रारंभ करता तो उस का कहीं ओरछोर ही नहीं मिलता था. शशांक अपने सहपाठियों के किस्से इतने रसपूर्ण ढंग से सुनाता कि वे हंसतेहंसते लोटपोट हो जातीं.

पर अब उन का लाड़ला शशांक कहीं खो सा गया था. कुछ पूछतीं भी तो हां, हूं में उत्तर देता. अब रात को देर से लौटता और अपने मित्रों व परिचितों के संबंध में बात तक नहीं करता था.

शशांक तो शायद खापी कर आया था पर उस की हरकत देख कर विभा की भूखप्यास खत्म हो गई थी. विभा ने काफी देर तक सोने का असफल प्रयत्न किया पर नींद तो उन से कोसों दूर थी. मन हलका करने के लिए उन्होंने पति संदीप को फोन मिलाया.

‘‘हैलो विभा, क्या हुआ? सोईं नहीं क्या अभी तक? सब कुशल तो है?’’ संदीप का स्वर उभरा.

विभा मन ही मन जलभुन गईं. वह भी समय था जब जनाब सारी रात दूरभाष वार्त्ता में गुजार देते थे. अब 11 बजे ही पूछ रहे हैं कि सोईं नहीं क्या? पर प्रत्यक्ष में कुछ नहीं बोलीं.

‘‘जिस का शशांक जैसा बेटा हो उसे भला नींद कैसे आएगी,’’ विभा कुछ सोच कर बोलीं.

‘‘ऐसा क्या कर दिया हमारे लाड़ले ने जो तुम इतनी बेहाल लग रही हो?’’ संदीप हंस कर बोले.

‘‘अपने मित्रों के साथ किसी पार्टी में गया था. कुछ ही देर पहले खापी कर लौटा है. पी कर अर्थात सचमुच पी कर. मन तो हो रहा है कि डंडे से उस की खूब पिटाई करूं पर क्या करूं, अकेली पड़ गई हूं,’’ विभा ने पूरी कहानी कह सुनाई.

‘‘तुम क्यों दिल छोटा करती हो, विभा. हम 3-4 दिन में घर पहुंच रहे हैं न. सब ठीक कर देंगे,’’ संदीप अपने अंदाज में बोले.

‘‘आप घर पहुंचेंगे अवश्य पर टिकेंगे कितने दिन? माह में सप्ताह भर भी घर पर रहने का औसत नहीं है आप का,’’ विभा ने शिकायत की.

‘‘तुम क्यों चिंता करती हो. तुम तो स्वयं मातापिता दोनों की भूमिका खूबी से निभा रही हो. तुम चिंता न किया करो. शशांक की आयु ही ऐसी है. किशोरावस्था में थोड़ीबहुत उद्दंडता हर बच्चा दिखाता ही है. तुम थोड़ा उदार हो जाओ, फिर देखो,’’ संदीप ने समझाना चाहा.

‘‘चाहते क्या हैं, आप? रातभर घर से बाहर आवारागर्दी करने दूं उसे? पता भी है कि आज पहली बार आप का लाड़ला किशोर पी कर घर आया है?’’ विभा सुबकने लगी थीं.

‘‘होता है, ऐसा भी होता है. इस आयु के बच्चे हर चीज को चख कर देखना चाहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे छोटा बच्चा अनजाने में आग में हाथ डाल देता है,’’ संदीप ने और समझाना चाहा.

‘‘हां, और झुलस भी जाता है. तो शशांक को आग में हाथ डालने दूं? भले ही वह जल जाए,’’ विभा का सारा क्रोध संदीप पर उतर रहा था.

‘‘विभा, रोना बंद करो और मेरी बात ध्यान से सुनो. कभीकभी तरुणाई में अपनी संतान को थोड़ी छूट देनी पड़ती है जिस से उस में अपना भलाबुरा समझने की अक्ल आ सके, शत्रु और मित्र में अंतर करना सीख सके,’’ संदीप ने विभा को शांत करने का एक और प्रयत्न किया.

‘‘वही तो मैं जानना चाहती हूं कि ये अशीम जैसे उस के मित्र अचानक कहां से प्रकट हो गए. पहले तो शशांक ने कभी उन के संबंध में नहीं बताया.’’

‘‘सच कहूं तो मैं शशांक के किसी मित्र को नहीं जानता. कभी उस से बैठ कर बात करने का समय ही नहीं मिला.’’

‘‘तो समय निकालो, संदीप. 2 माह बाद ही शशांक की बोर्ड की परीक्षा है और उस के बाद ढेरों प्रतियोगिता परीक्षाएं.’’

‘‘ठीक है, मुझे घर तो लौटने दो. फिर दोनों मिल कर देखेंगे कि शशांक को सही राह पर कैसे लाया जाए. तब तक खुद को शांत रखो क्योंकि रोनापीटना किसी समस्या का हल नहीं हो सकता,’’ संदीप ने वार्त्तालाप को विराम देते हुए कहा था पर विभा को चैन नहीं था. किसी प्रकार निद्रा और चेतनावस्था के बीच उस ने रात काटी.

अगले दिन शशांक ऐसा व्यवहार कर रहा था मानो कुछ हुआ ही न हो. वह तैयार हो कर स्कूल चला गया तो विभा ने भी उस के स्कूल का रुख किया. बैंक से उस ने छुट्टी ले ली थी. वह शशांक की मित्रमंडली के संबंध में सबकुछ पता करना चाहती थी.

पर स्कूल पहुंचते ही शशांक के अध्यापकों ने उन्हें घेर लिया.

‘‘हम तो कब से आप से संपर्क करने का प्रयत्न कर रहे हैं. पर आजकल के मातापिता के पास पैसा तो बहुत है पर अपनी संतान के लिए समय नहीं है,’’ शशांक के कक्षाध्यापक विराज बाबू ने शिकायत की.

‘‘क्या कह रहे हैं आप? मैं तो अपने सब काम छोड़ कर पेरैंट्सटीचर मीटिंग में आती हूं पर अब तो आप ने पेरैंट्सटीचर मीटिंग के लिए बुलाना भी बंद कर दिया,’’ विभा ने शिकायत की.

‘‘हम तो नियम से अभिभावकों को आमंत्रित करते हैं जिस से उन के बच्चों की प्रगति का लेखाजोखा उन के सम्मुख प्रस्तुत कर सकें. शशांक ने पढ़ाई में ध्यान देना ही बंद कर दिया है. हम नियम से परीक्षाफल घर भेजते हैं पर शशांक ने कभी उस पर अभिभावक के हस्ताक्षर नहीं करवाए,’’ बारीबारी से उस के सभी अध्यापकों  ने शिकायतों का पुलिंदा विभा को थमा दिया.

‘‘आप की बात पूरी हो गई हो तो मैं भी कुछ बोलूं?’’ विभा ने प्रश्न किया.

‘‘जी हां, कहिए,’’ प्रधानाचार्य अरविंद कुमार बोले.

‘‘हम ने तो अपने बेटे का भविष्य आप के हाथों में सौंपा था. आप के स्कूल की प्रशंसा सुन कर ही हम शशांक को यहां लाए थे. और जब आप के द्वारा भेजी सूचनाएं हम तक नहीं पहुंच रही थीं तो हम से व्यक्तिगत संपर्क करना क्या आप का कर्तव्य नहीं था?’’ विभा आक्रामक स्वर में बोली.

‘‘आप सारा दोष हमारे सिर मढ़ कर अपनी जान छुड़ा लेना चाहती हैं पर जरा अपने सुपुत्र के हुलिए पर एक नजर तो डालिए. प्रतिदिन नए भेष में नजर आता है. स्कूल में यूनिफौर्म है पर लंबे बाल, हाथों से ले कर गरदन तक टैटू. मैं ने तो प्रधानाचार्य महोदय से शशांक को स्कूल से निकालने की सिफारिश कर दी है,’’ विराज बाबू बोले. सामने खड़े शशांक ने मां को देख कर नजरें झुका लीं.

‘‘अपनी कमी छिपाने का इस से अच्छा तरीका और हो ही क्या सकता है. पहले अपने उन विद्यार्थियों को बुलाइए जिन्होंने शशांक को बिगाड़ा है. वे रोज किसी न किसी बहाने से बड़ीबड़ी पार्टियां देते हैं. शशांक उन्हीं के चक्कर में देर से घर लौटता है,’’ विभा बोली.

‘‘कौन हैं वे?’’ विराज बाबू ने  प्रश्न किया.

‘‘कोई अशीम है, अन्य छात्रों के नाम तो शशांक ही बताएगा. आजकल वह मुझे अपनी बातें पहले की तरह नहीं बताता है.’’

‘‘अशीम? पर इस नाम का कोई छात्र हमारे स्कूल में है ही नहीं. वैसे भी, इंटर के छात्र इस समय अपनी पढ़ाई में व्यस्त हैं, पार्टी आदि का समय कहां है उन के पास?’’ प्रधानाचार्य हैरान हो उठे.

‘‘शशांक, कौन है यह अशीम? कुछ बोलते क्यों नहीं?’’ विभा ने प्रश्न किया.

‘‘यह मेरा फेसबुक मित्र है. नीरज, सोमेश, दीपक और भी कई छात्र उन्हें जानते हैं,’’ शशांक ने बहुत पूछने पर भेद खोला.

‘‘मैं ने तो तुम्हारा फेसबुक अकाउंट बंद करा दिया था,’’ विभा हैरान हो उठीं.

‘‘पर हम सब का अकाउंट स्कूल में है. प्रोजैक्ट करने के बहाने हम इन से संपर्क करते थे,’’ शशांक ने बताया.

राज खुलना प्रारंभ हुआ तो परत दर परत खुलने लगा. अशीम और उस के मित्रों की पार्टियों के लिए धन शशांक और उस के मित्र ही जुटाते थे और यह सारा पैसा मातापिता को बताए बिना घर से चोरी कर के लाया जाता था.

विभा ने सुना तो सिर थाम लिया. बैंक का कामकाज संभालती है वह पर अपना घर नहीं संभाल सकी.

‘‘मैडम, आप धीरज रखिए और हमें थोड़ा समय दीजिए. भूल हम से अवश्य हुई है पर भूल आप से भी हुई है. काश, आप ने यह सूचना हमें पहले दी होती. हम इस समस्या की जड़ तक जा कर ही रहेंगे. यह हमारे छात्रों के भविष्य का प्रश्न तो है ही, हमारी संस्था के सम्मान का भी प्रश्न है,’’ प्रधानाचार्यजी ने आश्वासन दिया.

3-4 दिन बाद फिर आने का आश्वासन दे कर विभा घर लौट आईं. शशांक भी उन के साथ ही था.

अब तक खुद पर नियंत्रण किए बैठी विभा घर पहुंचते ही फूटफूट कर रो पड़ीं.

‘‘मां, क्षमा कर दो मुझे. भविष्य में मैं आप को कभी शिकायत का अवसर नहीं दूंगा,’’ शशांक उन्हें सांत्वना देता रहा.

‘‘मुझ से कहां भूल हो गई, शशांक? मैं ने तो तुम्हें सदा कांच के सामान की तरह संभाल कर रखा. फिर यह सब क्यों?’’

अगले दिन संदीप भी लौट आए थे और सारा विवरण जान कर सन्न रह गए थे.

शीघ्र ही उन्हें पता लग गया था कि अशीम और उस के मित्र युवाओं को अपने जाल में फंसा कर नशीली दवाओं तक का आदी बनाने का काम करते थे. संदीप और विभा सिहर उठे थे. शशांक बरबादी के कितने करीब पहुंच चुका था, इस की कल्पना भी उन्होंने नहीं की थी.

‘‘मेरे बेटे के भविष्य से बढ़ कर तो कुछ भी नहीं है. मैं तो शशांक के लिए लंबी छुट्टी लूंगी. आवश्यकता पड़ी तो सदा के लिए,’’ विभा बोलीं.

‘‘मां, आज मैं कितना खुश हूं कि मुझे आप जैसे भविष्य संवारने वाले मातापिता मिले,’’ कहते हुए शशांक भावुक हो उठा.

‘‘अरे बुद्धू, मातापिता तो धनी हों या निर्धन, शिक्षित हों या अशिक्षित, सदैव संतान की भलाई की ही सोचते हैं. पर ताली तो दोनों हाथों से ही बजती है. तुम यों समझ लो कि अब तुम्हें हमारी आज्ञा का पूरी तरह पालन करना पड़ेगा. तभी तुम्हारा भविष्य सुरक्षित रहेगा. नहीं तो…?’’ विभा बोल ही रही थी कि संदीप वाक्य पूरा कर बोले, ‘‘नहीं तो तुम अपनी मां को तो जानते ही हो. वह अपना भविष्य दांव पर लगा सकती है पर तुम्हारा नहीं,’’ और तीनों के समवेत ठहाकों से सारा घर गूंज उठा.

Family Story in Hindi

Social Story: पंडों का चक्रव्यूह- क्या चाचाजी का दूर हुआ अंधविश्वास

Social Story: ’‘हम अंदर गए तो पंडितजी मंत्र का जाप कर रहे थे. पास में एक गाय खड़ी थी. चाचाजी बेसुध हो कर चारपाई पर अधमरे की स्थिति में लेटे हुए ??थे…’’

आज मैं जब अपने चाचाजी को देखने उन के घर गई तो उन्हें देख कर बहुत दुख हुआ. चाचाजी की हालत बहुत गंभीर थी. मैं ने चाचीजी से पूछा कि डाक्टर क्या कह रहा है? किस डाक्टर को दिखाया? अचानक क्या हुआ? 5 महीने पहले तो चाचाजी ठीक थे? तो चाचीजी ने बताया, ‘‘बिटिया, 4 महीने पहले तुम्हारे चाचाजी को बुखार आया था. डाक्टर की दवा से फायदा नहीं हुआ तो पड़ोसिन पंडिताइन ने एक अच्छे हकीम की दवा दिलवाई. ये कुछ दिन तो ठीक रहे फिर हालत बिगड़ती गई. फिर डाक्टर को दिखाया, पर ये ठीक नहीं हुए. बहुत दिनों तक दवा खाते रहे पर कोई फायदा नहीं हुआ. तभी एक दिन पंडिताइन ने चाचाजी की जन्मपत्री एक बहुत बड़े पंडित को दिखाई तो मालूम चला कि तुम्हारे चाचाजी ठीक कैसे होंगे. इन की तो घोर शनि और केतु की दशा चल रही है. तब से हम ने डाक्टर की दवा कम कर दी और इन के लिए जाप वगैरह करा रहे हैं.’’

सुन कर मेरा माथा ठनका. मैं ने कहा, ‘‘चाचीजी, जाप वगैरह से कुछ नहीं होगा. डाक्टर को ठीक से दिखा कर टैस्ट वगैरह कराइए. आप जो पैसा जाप में खर्च कर रही हैं, इन के खाने और दवा पर खर्च करिए.’’

चाचीजी ने कहा, ‘‘बिटिया, डाक्टर क्या पंडित से ज्यादा जाने हैं? जब पंडितजी ने बता दिया कि क्यों बीमार हैं, तो डाक्टर के पास जाने से क्या फायदा? अब हम किसी डाक्टर को नहीं दिखाएंगे,’’ और वे तमतमा कर अंदर चली गईं.

मैं ने अपनी भाभी यानी उन की बहू को समझाया. पर वे तो चाचीजी से भी ज्यादा अंधविश्वासी थीं. मैं चाचाजी से मिल कर दुखी मन से घर लौट आई. मैं समझ गई कि उस पंडित ने चाचीजी को अपने जाल में फांस लिया है.

मेरी चाचीजी को हमेशा पंडितों की बातों और उन के अंधविश्वासों पर विश्वास रहा. मैं पहले जब भी चाचीजी से मिलने जाती तो अकसर किसी पंडे या पंडित को उन के पास बैठा देखती. वे उस से घर की सुखशांति व निरोग होने के लिए उपाय पूछती दिखतीं और वह पंडा या पंडित जन्म और अगले जन्म के विषय में इस तरह से बताता जैसे सब कुछ उस के सामने घटित हो रहा हो. वह अकसर कौन सा दान करना जरूरी है, किस दान से क्या फल मिलेगा और अगर फलां दान नहीं किया तो अगले जन्म में क्या नुकसान होगा वगैरह बातें कर के चाचीजी के मस्तिष्क को अंधविश्वासों में जकड़ता जा रहा था और चाचीजी बिना किसी विरोध के उस का कहना मानती थीं.

चाचाजी उम्र बढ़ने के साथ व्याधियों से भी घिरते जा रहे थे. चाचीजी उस का कारण चाचाजी का पंडितों पर विश्वास न होना मानती थीं. चाचीजी और चाचाजी की उम्र में 12 साल का अंतर था पर चाचीजी का कहना था कि मैं इसलिए स्वस्थ हूं क्योंकि मैं पंडितजी के कहे अनुसार सारे धर्मकर्म करती हूं और चाचाजी चूंकि पंडितजी की बात नहीं मानते, इसलिए रोगों से ग्रस्त रहते हैं.उन की इस तरह की बात बारबार सुन कर उन की बहू भी अंधविश्वासी हो गई थी.

एक घर में जब 2 महिलाएं पंडितों और पंडों के चक्कर में फंस जाएं तो वे रोज नए तरह के किस्सों और कर्मकांडों द्वारा दानपुण्य से लूटने की भूमिका तैयार करते रहते हैं. वही चाचीजी के घर में हो रहा था. मैं हर दूसरे दिन फोन पर चाचाजी की खबर लेती रहती. कभी उन की तबीयत ठीक होती तो कभी ज्यादा खराब होती. 3 हफ्ते बाद मैं जब चाचाजी से मिलने गई तो पंडितजी बैठे थे और चाचीजी की बहू को कुछ सामग्री लिखा रहे थे.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हो रहा है, चाचीजी?’’

चाचीजी बोलीं, ‘‘बिटिया, पंडितजी कह रहे हैं अगर चाचाजी का तुलादान कर दिया तो ये ठीक हो जाएंगे. तुलादान व्यक्ति के वजन के बराबर अनाज वगैरह दान करने को कहते हैं और ये उसी का सामान लिखा रहे हैं.’’

फिर वे पंडितजी से बात करने में मशगूल हो गईं. पंडितजी चाचीजी की उदारता और पतिभक्ति की भूरिभूरि प्रशंसा कर रहे थे और मैं खड़ीखड़ी पंडित के ठगने के तरीके और अंधविश्वास में लिपटे इन लोगों को देख रही थी.

2 दिन बाद मैं ने फोन किया तो पता चला कि चाचाजी की तबीयत बहुत बिगड़ गई है. घर में मेरे भाई का डाक्टर दोस्त आया हुआ था. उसे खाना खिला कर मैं ने चाचाजी को देखने का प्रोग्राम बनाया. जब उसे मैं ने अपना प्रोग्राम बताया तो वह बोला, ‘‘दीदी, मैं आप को चाचाजी के घर छोड़ता चला जाऊंगा. हम घर से निकले और चाचाजी के घर पहुंचे तो मैं ने क्षितिज से कहा, ‘‘जब तुम यहां तक आ गए हो तो एक बार चाचाजी को देख लो.’’

‘‘ठीक है दीदी, मैं देख लेता हूं,’’ क्षितिज ने कहा. हम अंदर गए तो पंडितजी मंत्र का जाप कर रहे थे. पास में एक गाय खड़ी थी. चाचाजी बेसुध से पास की चारपाई पर लेटे थे और उन के हाथ को पकड़ कर चाचीजी ने उस में फूल, पानी, अक्षत, रोली वगैरह रखे हुए थे.

पूछने पर उन की बहू ने बताया, ‘‘दीदी, गौदान हो रहा है. पंडितजी कह रहे थे कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवीदेवता रहते हैं. इस का दान करने से बाबूजी तुरंत ठीक हो जाएंगे.’’ ये बातें सुन कर मेरा माथा ठनका. मुझे लगा इन पंडितों का जाल इन्हीं अज्ञानी लोगों की वजह से दिन पर दिन समाज में फैलता जा रहा है. मैं अपनी सोचों में ही डूबउतरा रही थी कि पंडितजी की पूजा समाप्त हुई. उन्हें दक्षिणा का लिफाफा चाचीजी ने थमाया तो वह गाय और साथ का सामान ले कर चलने लगे. धूप, अगरबत्ती के धुएं से चाचाजी को सांस लेने में कठिनाई हो रही थी और खांसतेखांसते उन का बुरा हाल था.

पंडितजी चाचीजी से बोले, ‘‘देखिए माताजी, बाबूजी का रोग कैसे बाहर निकलने के लिए लालायित है. अब ये कल तक ठीक हो जाएंगे.’’ चाचीजी बड़े आग्रह के साथ पंडितजी को खाना खिलाने ले गईं. उन्होंने चाचाजी की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया.

जब पंडितजी चले गए तो मैं चाचाजी के पास गई. उन के सिर पर हाथ रखा, सीने को सहलाया तो उन्हें कुछ आराम मिला. उन्होंने आंखें खोल कर मुझे देखा. मैं ने तभी क्षितिज को उन से मिलाया, ‘‘चाचाजी, आप ठीक हो जाएंगे, ये डाक्टर क्षितिज हैं.’’

चाचाजी की दर्द और कातरता से भरी आंखें आशा के साथ क्षितिज को देखने लगीं. क्षितिज ने चाचाजी का चैकअप किया और कुछ दवाएं लिखीं. उस ने चाचाजी को ढाढ़स बंधाया और दवा लेने चला गया.

क्षितिज ने दवा की एक खुराक उसी समय दी और अपनी क्लीनिक चला गया. मैं शाम तक वहीं रही. रात को खाना खा कर जब मैं वहां से अपने पति के साथ वापस आ रही थी, तो चाचाजी दवा की 2 डोज ले चुके थे और कुछ स्वस्थ से लग रहे थे. इधर चाचीजी और उन की बहू इस बात से आश्वस्त थीं कि गौदान करने से बाबूजी ठीक हो रहे हैं.

2 दिन बाद मैं ने फोन किया तो पता चला कि चाचाजी की तबीयत बहुत खराब है. मैं जल्दीजल्दी जब वहां पहुंची तो चाचाजी अंतिम सांसें ले रहे थे और वही पंडितजी मंत्र पढ़पढ़ कर न जाने कौन से दान और कर्मकांड करवा रहे थे. मालूम चला कि चाचीजी ने चाचाजी की दवा बंद करवा दी थी. सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया पर मैं क्या कर सकती थी?

मेरे देखतेदेखते चाचाजी ने अंतिम सांस ली. चाचाजी की मृत्यु को रोका जा सकता था, अगर उन की दवा बंद न की गई होती. पर चाचीजी तो पंडित के चक्कर में इतनी फंसीं कि उन्हें कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा था.

फिर शुरू हुआ पंडित द्वारा भगवान की मरजी आदि बातों को बताना. थोड़ी देर बाद चाचाजी का लड़का सब को फोन कर रहा था तो चाचीजी चाचाजी के पास बैठी सुबकसुबक कर रो रही थीं. उन की बहू अगरबत्ती जलाने, बैठने का प्रबंध करने आदि में लगी थी. पंडितजी एक सज्जन के साथ सामान की लिस्ट बनवाने में व्यस्त थे. पंडितजी ने चाचाजी के जीतेजी जितनी लंबी लिस्ट बनवाई थी, यह लिस्ट उस से और लंबी हो गई थी और वे न करने या कम करने पर मरने वाले की आत्मा को कष्ट होगा, यह दुहाई देते जा रहे थे.

शाम को जब चाचाजी का शरीर अंतिम यात्रा के लिए ले जाया गया तो घाट पर फिर वही सब पंडों के आदेश और उन पर चलता व्यक्ति. न खत्म होने वाली रस्में और उन में उलझते घर के लोग.

जब दाह संस्कार कर के लोग वापस आए तो सब थक कर भरे मन से अपनेअपने घर चले गए. पर पंडितजी एक कोने में बैठ कर अगले दिन की तैयारी व लिस्ट बनवाने में व्यस्त हो गए. उन का असली किरदार तो अब शुरू हुआ था. अब 10 दिन की कड़ी तपस्या, खानपान में परहेज, जमीन में सोना, अलग रहना, अपने प्रिय की जुदाई का दुख. फिर भी पंडितजी की लिस्ट में किसी तरह की कमी नहीं थी. बल्कि ऐसे भावुक समय को भुनाने की तो पंडों की पूरी कोशिश रहती है. ऐसे समय में कुटुंब और समाज के लोग भी पंडे की बातों का समर्थन कर के, ऊंचनीच समझा कर, दुख से पीडि़त व्यक्ति के घाव को हरा ही करते हैं.

एक तो व्यक्ति दुखी वैसे ही होता है. ऐसे में अगर यह कह दिया जाए कि अगर आप इतना सब नहीं करेंगे तो आप के पिता भूखे रहेंगे, दुखी रहेंगे, तो वह उधार कर के भी उस पंडे की हर बात मानने को मजबूर हो जाता है.

9 दिन इसी तरह लूटने के बाद 10वें दिन पंडित ने एक बड़ी लिस्ट थमाई जिस में दानपुण्य की सामग्री लिखी थी. जब चाचाजी के बेटे ने प्रश्नवाचक नजरों से पंडितजी को देखा तो पंडितजी समझाने लगे, ‘‘बेटा, इस समय जो दान जाएगा, वह तो शमशान के पंडित को ही जाएगा. यह सारी सामग्री इसलिए आवश्यक है, क्योंकि 9 दिन से तुम्हारे पिता प्रेतयोनि में ही हैं और प्रेम को कोई लगाव नहीं होता. अगर प्रेत असंतुष्ट रह गया तो वह तुम्हारा, तुम्हारे बच्चों या परिवार का अहित करने से नहीं चूकेगा. इसलिए 10वें के दिन वह सभी दान करना पड़ता है जो 13वीं के दिन किया जाता है. वरना प्रेत से छुटकारा पाना बहुत कठिन हो जाता है.

अपने भविष्य व अपने बच्चों के प्रति हम इतने सशंकित रहते हैं कि पंडों या पंडितों के चक्रव्यूह में बेबस हो कर फंस जाते हैं. इस पंडित ने जिस तरह से अपराधबोध और भय की सुरंग चारों तरफ फैला दी थी, उस से निकलने का कोई रास्ता चाचाजी के बेटे को नजर नहीं आ रहा था. इसलिए जैसाजैसा पंडित कहते जा रहे थे, वह बुरे मन से ही सही सब कर रहा था.

13वीं के लिए पंडितजी ने पुन: एक बार लंबी पूजा व दान की लिस्ट चाचाजी के बेटे को पकड़ाई और समझाया, ‘‘जजमान, 13वीं को आप के पिता आप के द्वारा दिए गए दान व तर्पण से प्रसन्न हो कर प्रेतयोनि से मुक्त हो कर पितरों के साथ मिलेंगे. अत: आप इन को वस्त्र, आभूषण, बरतन और अन्य सामग्री से प्रसन्न कर के पितरों के साथ मिलने में इन की सहायता करें.’’

चाचाजी का बेटा यह सब करतेकरते थक गया था. उसे तो इन सब पर विश्वास ही नहीं था, पर मां और पत्नी के डर से कुछ कह नहीं पा रहा था. पर जब 10वां हो गया और पंडित की मांगें सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही गईं तो वह बिफर गया और 13वीं के दिन का सामान देने के लिए राजी नहीं हुआ.

पंडित का कहना था कि अगर यह सब दान नहीं किया तो मृतात्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी. और भी कई भावुक बातें उस ने कहीं. चाचाजी के बेटे का सब्र का बांध टूट गया. उस ने कहा, ‘‘मैं अगर आप के कहे अनुसार चलता रहा तो यह सच है कि मैं इस जन्म में तो कर्ज से मुक्त नहीं हो पाऊंगा और जीतेजी मर जाऊंगा. अब बहुत हो गया. कृपया लूटने का नाटक बंद करें,’’ और उस की आंखों से आंसू बहने लगे. पता नहीं ये आंसू दुख के थे या पश्चात्ताप के.

उसी समय चाचीजी बेटे को दिलासा देने आईं और बोलीं, ‘‘बेटा, इतना सब अच्छे से किया है, तो अब आखिरी काम क्यों नहीं अच्छे से कर देता है? मेरे पास जो भी है, उन का दिया है. ले मेरे हाथ की चूडि़यों को. उन्हें बेच कर तू उन की गति संवार दें. मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूं,’’ और चाचीजी सुबकने लगीं.

उस ने चूडि़यां मां को वापस कीं. निर्लिप्त भाव से वह सब करने लगा, जो पंडित उस से कह रहा था पर चिंता की लकीरें उस के माथे पर स्पष्ट दिख रही थीं, क्योंकि अभी 11 पंडितों का खाना, दक्षिणा और संबंधियों का भोज बाकी था. पर वह इन के भंवर में इतना फंस गया था कि कुछ कहना व्यर्थ था.

घर के किसी भी व्यक्ति के जाने के बाद पीछे रहा व्यक्ति दोहरी पीड़ा झेलता है. एक तो अपने प्रियजन के विछोह की तो दूसरी व्यर्थ के कर्मकांडों की. पर अंधविश्वास व पंडों द्वारा फैलाए डर तथा अनर्थ की आशंका के कारण व्यक्ति इन का अतिक्रमण नहीं कर पाता.

हम सब एकसाथ 2 तरह की दुनिया में रहते हैं. एक भौतिक साधनों से संपन्न आधुनिकता से भरी दुनिया, तो दूसरी पाखंड और पंडों के द्वारा बनाई गई भयभीत करने वाली दुनिया, जिस में सत्य का या वास्तविकता का कोई अंश नहीं होता. भगवान के नाम पर, मृतात्मा के नाम पर ये पंडे, जिस तरह से व्यक्ति को लूटते हैं उस के बारे में सब को पता है कि यह सब शायद सत्य नहीं है पर फिर भी कभी डर से, कभी मृतात्मा के प्रति उपजे प्यार और आदर से, हम सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं और इन पंडों की कुटिल चाल में फंस जाते हैं.

खैर पंडितजी ने अपना सामान बांधा, चाचाजी के बेटे को पता दिया और सामान घर पहुंचाने का आदेश दे कर चलते बने.

Social Story

Drama Story: रिटायर्ड आदमी- क्या था आलोक के जीवन का सच

Drama Story: ‘‘सुनो, दीदी का फोन आया  था,’’ पति को चाय का प्याला पकड़ाते हुए प्रतिभा ने सूचना दी.

‘‘क्या कह रही थीं? कोई खास बात?’’ आलोक ने अपनी दृष्टि प्रतिभा के चेहरे पर गड़ा दी.

‘‘कुछ नहीं, यों ही परेशान थीं, बेचारी. अब देखो न, 5 वर्ष रह गए हैं जीजाजी को रिटायर होने में, अब तक न कोई मकान खरीदा है न ही प्लौट लिया है. अपनेआप को वैसे तो जीजाजी बुद्धिमान समझते हैं पर देखो तो, कितनी बड़ी बेवकूफी की है उन्होंने,’’ कहते हुए प्रतिभा ने ठंडी सांस भरी.

‘‘5 साल कहां होंगे उन की सेवानिवृत्ति में, 3 वर्ष बचे होंगे. वे तो मुझ से बड़े हैं. 4 वर्ष बाद तो मैं भी रिटायर हो जाऊंगा.’’

आलोक की बात सुन कर प्रतिभा हैरान रह गई. पति के कथन पर विश्वास नहीं हुआ था उसे. हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘सच कह रहे हो? 4 वर्ष बाद रिटायर हो जाओगे?’’

‘‘हां भई, ठीक 4 साल बाद,’’ आलोक निश्ंिचत हो कर चाय पीते रहे.

प्रतिभा को तो जैसे सांप सूंघ गया था. ऐसा कैसे हो सकता है? 4 वर्ष बाद आलोक घर में होंगे. आलोक जैसा चुस्त व्यक्ति निष्क्रिय घर पर कैसे बैठ सकता है? इतनी व्यस्त दिनचर्या के बाद एकाएक जब इंसान के पास कुछ भी करने को नहीं रह जाता तो वह कुंठाग्रस्त हो जाता है. कुंठा, तनाव को जन्म देगी और तनाव क्रोध को, फिर क्या होगा?

आलोक को वहीं छोड़ कर वह अनमनी सी रसोई की ओर चल दी. आया खाना पका रही थी. उस का पति रामदीन चटनी पीस रहा था. हमेशा प्रतिभा आया को बीचबीच में निर्देश देती रहती थी, पर अब वह चुपचाप उन्हें काम करते देखती रही. कुछ भी कहने को जी नहीं किया. सोचने लगी, ‘वैसे भी 4 साल बाद यह बंगला कहां होगा. जब बंगला नहीं होगा तो नौकरों के क्वार्टर और गैरेज भी नहीं होंगे. फिर ये नौकर, आया भी कहां. अब तो धीरेधीरे उसे हर नई परिस्थिति को झेलने के लिए अभ्यस्त होते जाना चाहिए.’

आलोक निदेशक के पद पर कार्यरत थे. खासी आय थी उन की. सरकार की तरफ से इंडिया गेट के पास ही उन्हें यह घर रहने के लिए मिला हुआ था. दोनों बेटे विशाल और कपिल इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहे थे.

इतने बड़े घर में अकेले बैठेबैठे प्रतिभा बोर हो जाती थी. काम करने के लिए आया और उस का पति था ही. यहां आसपास के सभी अफसर नौकरों के क्वार्टर किराए पर दे देते थे. वे लोग बड़ी ही तल्लीनता से साहब लोगों का काम कर देते थे और अफसरों की बीवियां क्लबों व किटी पार्टियों में अपना समय बिताती थीं. यही दिनचर्या प्रतिभा की भी थी. इतने बड़े बगीचे में उस ने सब्जियां और फूल भी लगवा दिए थे. कभीकभार सरकारी माली आ कर पौधों की देखभाल कर जाता. निगरानी के लिए तो रामदीन था ही. कुल मिला कर बड़ी खुशगवार जिंदगी थी.

रात का खाना मेज पर सजा हुआ था. आलोक टीवी पर अंगरेजी फिल्म देख रहे थे. थोड़ी देर के अंतराल के बाद वे हंस भी पड़ते थे, शायद कोई हास्य फिल्म थी.

प्रतिभा एकटक पति का चेहरा निहार रही थी. कैसा विचित्र स्वभाव पाया है इन्होंने? कोई और होता तो हर समय तनावग्रस्त रहता. 4 वर्ष तो ऐसे ही गुजर जाएंगे. दिन बीतते क्या पता चलता है. फिर क्या करेंगे ये? भविष्य के बारे में कोई योजना भी बनाई है या यों ही हाथ पर हाथ धर कर बैठने का इरादा है. वैसे जिस पद पर ये हैं और जो अनुभव इन के पास हैं उस से तो रिटायर होने के बाद काम मिल जाना चाहिए लेकिन एक पुछल्ले के समान ‘रिटायर’ शब्द तो जुड़ ही जाता है इंसान के साथ.

‘‘प्रतिभा, खाना ठंडा हो रहा है. आओ भई, बड़ी जोर की भूख लगी है.’’

आलोक ने पुकारा तो वह चौंक उठी.

लेकिन उसे भूख महसूस नहीं हो रही थी. पति को खाना परोस कर वह सोफे पर अधलेटी सी हो गई. एक बार फिर विचारों की दुनिया में उतर गई, ‘दीदी का तो मकान ही नहीं बना है न, कम से कम बच्चे तो व्यवस्थित हो चुके हैं. बिटिया नेहा का पिछले वर्ष ब्याह कर दिया था उन्होंने. बेटा डाक्टर बन गया है.

‘पिता सेवारत हों तो ब्याह का समारोह भी कितना भव्य होता है. जीजाजी उत्तर प्रदेश में सिंचाई विभाग में मुख्य अभियंता हैं. लाखों का दहेज दिया था बिटिया को. किसी ठेकेदार ने फर्नीचर उपहारस्वरूप भिजवा दिया था तो किसी ने पंडाल और हलवाई का खर्चा अपने जिम्मे ले लिया था. दीदी 5 तोले का नैकलेस पहने कैसी ऐंठी घूम रही थीं.

‘इसी वर्ष आलोक के सहयोगी निदेशक ने भी तो पांचसितारा होटल में बेटे का ब्याह किया था. उन के पद के अनुसार लोग भी आए थे. उपहारों के ढेर देख कर तो सब अचंभित ही रह गए थे. अब मकान नहीं है दीदी का तो क्या हुआ, पैसा तो है. कुछ समय तक किराए के मकान में रह कर अपना मकान खरीद लेंगे.

‘पर हमारे तो बच्चे ही अभी मंझधार में हैं. बड़ा बेटा अभी इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष में है और छोटा तो मात्र इसी वर्ष कालेज में पहुंचा है. कितने आराम से रह रहे हैं सब. जितना मांगा, जो मांगा, पिता बिना पूछे ही दे देते हैं. चलो, मान भी लें कि अगले वर्ष तक कपिल इंजीनियर बन जाएगा, लेकिन विशाल को तो 3 वर्ष और वहां रहना है. अवकाशप्राप्ति के बाद क्या वे पिता से अधिकार जता कर पैसे मांग सकेंगे? शायद नहीं.

‘मैं ने तो कल्पना के मोतियों को पिरो कर स्वप्निल संसार सजाया था. दोनों बेटों के पास अपनीअपनी गाडि़यां होंगी. पति दफ्तर की गाड़ी में चले जाएंगे तो भी उस की अपनी गाड़ी गैरेज में रहेगी. ससुर काम पर जाते हों तो सास का भी खासा रुतबा रहता है. एक बार बेटों ने कमाना शुरू कर दिया तो अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होती जाएगी. हम बच्चों पर निर्भर नहीं रहेंगे, बच्चे हम पर निर्भर नहीं रहेंगे. वैसे भी ससुर का घर पर रहना बहुओं को कहां भाता है.’

सहसा उसे लगा जैसे उस ने कोई रंगीन सपना देखा था. ताश के पत्तों से बना महल पति के एक कथन से ही धराशायी हो गया था.

आलोक न जाने कितनी देर से नींद के आगोश में कैद हो चुके थे पर प्रतिभा की आंखों में नींद कहां थी. सोचने लगी, ‘कैसी मीठी नींद सो रहे हैं. क्यों न सोएं, वे तो मानसिक रूप से तैयार ही होंगे इस स्थिति के लिए. दफ्तर में न जाने कितने लोगों को रिटायर होते देखते ही होंगे. कई बार विदाई समारोहों में भाग भी लिया होगा. इन के लिए विचलित होने जैसी कोई बात नहीं है. कितना बुरा समाचार सुनाया आज आलोक ने.’

दूसरे दिन सुबह पति के जागने से पहले ही वह उठ गई थी. वैसे जब तक आया उठती, वे दोनों सुबह की सैर से लौट चुके होते थे. प्रतिभा को चाय की ट्रे लाते हुए आलोक ने देखा तो वे चौंक उठे. पूछा, ‘‘आज आया नहीं आई? तुम क्यों चाय बना कर ले आईं?’’

‘‘यों ही, घर के काम की आदत पड़नी चाहिए.’’

‘‘तुम्हारी सुबह की सैर का क्या होगा?’’ उन्होंने शरारत से पूछा, पर वह बात को टाल गई.

लेकिन सोचने लगी कि अब सब काम करना ही पड़ेगा. धीरेधीरे ही तो आदत पड़ेगी. सोचने को सोच तो गई थी, पर उस की आंखों से आंसू टपक पड़े थे. निढाल सी कुरसी पर बैठ गई थी. न जाने आलोक कब तैयार हुए, कब नाश्ता खाया और कब दफ्तर के लिए चल पड़े, उसे पता ही नहीं चला. वह तो उन की आवाज सुन कर चौंकी थी. वे कह रहे थे, ‘‘प्रतिभा, तुम्हें कहीं जाना तो नहीं है? जाना हो तो गाड़ी भिजवा दूं?’’

गयादीन ड्राइवर सफेद वरदी पहने साहब का ब्रीफकेस हाथ में पकड़े हुए था. प्रतिभा ने सोचा, ‘आलोक अपना ब्रीफकेस खुद क्यों नहीं पकड़ लेते? और गाड़ी के लिए क्यों पूछ रहे हैं. उसे क्या पैदल चलना नहीं आता? वैसे बसें तो सड़कों पर रेंगती ही हैं,’ लगा, तनाव से उस के माथे की नसें फट जाएंगी. प्रत्यक्ष में उस ने दोटूक सा उत्तर दिया, ‘‘कहीं नहीं जाना है.’’

‘‘जाना चाहो तो फोन कर देना, गाड़ी भिजवा दूंगा.’’

उस ने गरदन हिला दी. आलोक चले गए तो लगा, कुछ काम निबटा दें. आलू छीलने बैठी तो रक्त की धारा बह निकली. कितने वर्षों से सब्जी काटी कहां थी. दर्द के मारे चीख निकल पड़ी.

मां की आवाज सुन कर बड़ा बेटा कपिल दौड़ा हुआ आया. वह छुट्टियों में घर आया हुआ था. चौंक कर बोला, ‘‘आप क्यों सब्जी काट रही थीं, मां? आया कहां है?’’

‘‘आया यहीं है. अब कुछ समय बाद सब काम करना ही पड़ेगा. सोचा, अभी से थोड़ीथोड़ी आदत डाल लेनी चाहिए,’’ वह बोली.

‘‘क्या मतलब?’’

4 वर्ष बाद तुम्हारे पिता रिटायर हो जाएंगे,’’ प्रतिभा को लगा, मन का बोझ बेटे के साथ बांट ले. बेटों की शिक्षा से ले कर नौकरी तक और उन के विवाह के जो भी सपने उस ने संजोए थे, बेटे को ज्यों के त्यों बता दिए. लगा, बेटा कुछ तो सहानुभूति दिखाएगा.

पर वहां तो प्रतिक्रिया ऐसी हुई कि बेटे को ही संभाल पाना मुश्किल हो गया था. रोंआसा सा कपिल मां पर झल्लाने लगा, ‘‘तुम्हें हमारे विवाह की चिंता हो रही है, पर यह तो सोचो कि हमारे भविष्य का क्या होगा? पिताजी तो इंटरव्यू बोर्ड में बैठने वाले किसी न किसी सदस्य को जानते ही होंगे. बिना सिफारिश के अच्छी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है, मां.’’

कपिल घर के बाहर चला गया. बात सौ फीसदी सही थी. वह सोचने लगी, ‘आलोक मिलनसार व्यक्ति हैं. इस पद पर उन के संबंध भी काफी बने हुए हैं. न जाने कितने लोगों ने उन के माध्यम से अच्छे पदों को पाया होगा. आज अपने बच्चों का समय आया तो कौन पूछेगा? उसे रहरह कर खुद पर भी क्रोध आने लगा था. जीवन के इस कड़वे सच की ओर उस का ध्यान क्यों नहीं गया.’

शाम को दफ्तर से आलोक हंसते हुए आए, चाय पी और टैनिस खेलने चले गए. उस ने तो 2 दिन से ढंग से खाना भी नहीं खाया था. ऐसा लग रहा था जैसे गश खा कर गिर पड़ेगी.

पति बाहर गए. बेटा दोस्तों के पास चला गया तो पुराने अलबम निकाल कर देखने लगी. गोलमटोल, थुलथुल से प्यारे बच्चे अब जवान हो गए थे. पिछले वर्ष का एक फोटो उस के हाथ लग गया. नजर आलोक के चेहरे पर अटक कर रह गई. सुंदर, सजीले, चुस्तदुरुस्त, कहीं भी उम्र की परतों का प्रभाव नहीं था.

अचानक उस की कल्पना में जर्जर, कमजोर से आलोक दिखाई दिए. उन पर क्रोध सा आ गया. क्या जरूरत थी, इतनी देर में ब्याह करने की? ब्याह देर से किया तो बच्चे भी देर से हुए. अब भुगतें खुद भी और हमें भी दुखी करें. कितना बुद्धिमान समझते हैं खुद को, हर काम योजनाबद्ध तरीके से करने का बखान करते हैं और अपना जीवन ही ढंग से जी नहीं पाए. अपनी ममेरी, फुफेरी, चचेरी बहनें एकएक कर याद आ गई थीं. वे सब दादी, नानी बन चुकी हैं और उन के पति अभी तक कार्यरत हैं. और एक वह है जो…

खाने की मेज पर प्रतिभा गुमसुम बैठी थी. अचानक आलोक का ध्यान उस के चेहरे की तरफ चला गया. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या सोच रही हो, प्रतिभा?’’

‘‘कुछ नहीं. सोच रही हूं 4 साल बाद क्या होगा?’’ वह मायूस थी.

‘‘क्या होगा?’’ तभी आलोक का ध्यान 3 दिन पहले कही बात की तरफ चला गया. सोचने लगा, ‘तो क्या प्रतिभा इसीलिए गंभीर है?’ उस की उदास आंखें दिल का हाल कह रही थीं.

आलोक ने उस का हाथ अपने हाथ

में ले लिया और बोले, ‘‘प्रतिभा, तुम पढ़ीलिखी हो, समझदार हो. मेरी जन्मतिथि कैसे भूल गईं? तुम यह भी जानती हो कि सेवानिवृत्ति की उम्र क्या है?’’

‘‘हां, उस हिसाब से तो तुम्हारी सेवानिवृत्ति में अभी 7 वर्ष बाकी हैं. फिर तुम ने…’’

‘‘मैं ने मजाक किया था,’’ प्रतिभा की बात काटते हुए आलोक बोले.

‘‘प्रतिभा, एक बात कहूं, जीवन में कुछ सच इतने कड़वे होते हैं कि उन पर विचार नहीं किया जा सकता. पर वे सनातन सत्य होते हैं. जैसे, सूरज का उदय और अस्त होना. जवानी के साथसाथ बुढ़ापा, जन्म के बाद मृत्यु. सेवानिवृत्ति

तो एक छोटी सी बात है. कल को मैं दुर्घटनाग्रस्त हो जाऊं या दिल का दौरा पड़ जाए तो क्या जीओगे नहीं तुम सब? सपने हमेशा यथार्थ के धरातल पर सजाने चाहिए, नहीं तो वे पानी के बुलबुले के समान मिट जाते हैं. सही इंसान वही है जो अपनी योग्यता से आगे बढ़े और जीवन की परिस्थितियों में खुद को ढाल ले.’’

वातावरण शांत हो गया था. सब जीवन के सच को जान चुके थे. तभी आलोक हंस दिए, ‘‘10-12 वर्ष बाद की चिंता में अभी से भोजन करना क्यों छोड़ रहे हो? भई, मुझे तो बड़ी जोर की भूख लगी है.’’

घर का बोझिल वातावरण खुशनुमा हो गया था. सभी खिलखिला रहे थे. प्रतिभा भी अब शांत थी.

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