Crime Story: आस्तीन का सांप- कैसे हुई स्वाति की मौत

Crime Story: उस दिन गुरुवार था. तारीख थी 2018 की 13 दिसंबर. कोटा के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रैट (एनआई एक्ट) राजेंद्र बंशीलाल की अदालत में काफी भीड़ थी. वजह यह थी कि एक नृशंस हत्यारे को उस के अपराध की सजा सुनाई जानी थी. हत्यारे का नाम लालचंद मेहता था और जिन्हें उस ने मौत के घाट उतारा था, वह थीं बीएसएनएल की उपमंडल अधिकारी स्वाति गुप्ता. लालचंद मेहता उन का ड्राइवर रह चुका था. उस के अभद्र व्यवहार को देखते हुए स्वाति गुप्ता ने घटना से 2 दिन पहले ही उसे नौकरी से निकाला था.

3 साल पहले 21 अगस्त, 2015 की रात को लालचंद ने स्वाति की हत्या उन के घर के बाहर तब कर दी थी, जब वह औफिस से लौट कर घर पहुंची थीं. लालचंद ने स्वाति गुप्ता पर चाकू से 10-15 वार किए थे. इस केस में गवाहों के बयान, पुलिस द्वारा जुटाए गए सबूत और अन्य साक्ष्य अदालत के सामने पेश किए जा चुके थे. दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह भी हो चुकी थी. सजा के मुद्दे पर बचाव पक्ष के वकील ने कहा था, ‘‘आरोपी का परिवार है, उसे सुधरने का अवसर देने के लिए कम सजा दी जाए.’’

जबकि लोक अभियोजक नित्येंद्र शर्मा तथा परिवादी के वकील मनु शर्मा और भुवनेश शर्मा ने दलील दी थी कि आरोपी लालचंद मेहता मृतका स्वाति का ड्राइवर-कम-केयरटेकर था. परिवादी पक्ष ने उस की हर तरह से मदद की थी, लेकिन उस ने मामूली सी बात पर जघन्य हत्या कर दी थी. इसलिए अदालत को उस के प्रति जरा भी दया नहीं दिखानी चाहिए.

विशेष न्यायिक मजिस्ट्रैट राजेंद्र बंशीलाल जब न्याय के आसन पर बैठ गए तो अदालत में मौजूद सभी लोगों की नजरें उन पर जम गईं. गिलास से एक घूंट पानी पीने के बाद न्यायाधीश ने एक नजर भरी अदालत पर डाली. फिर फाइल पर नजर डाल कर पूछा, ‘‘मुलजिम कोर्ट में मौजूद है?’’

‘‘यस सर,’’ एक पुलिस वाले ने जवाब दिया जो लालचंद को कस्टडी में लिए हुए था.

न्यायाधीश राजेंद्र बंशीलाल ने अपने 49 पेजों के फैसले की फाइल पलटते हुए कहना शुरू किया, ‘‘अदालत ने इस केस के सभी गवाहों को गंभीरतापूर्वक सुना, प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों को कानून की कसौटी पर परखा, जानसमझा. बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष की सभी दलीलों को सुना. तकनीकी साक्ष्यों का गहन अध्ययन किया. पूरे केस पर गंभीरतापूर्वक गौर करने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि लालचंद मेहता ने स्वाति की हत्या बहुत ही नृशंस तरीके से की. यहां तक कि जब उस का चाकू हड्डियों में अटक गया, तब भी उस ने चाकू को जोरों से खींच कर निकाला और फिर वार किए. निस्संदेह यह उस का गंभीर, जघन्य और हृदयविदारक कृत्य था.’’

इस केस का निर्णय जानने से पहले आइए जान लें कि 35 वर्षीय गजेटेड औफिसर स्वाति गुप्ता को क्यों जान गंवानी पड़ी.

बुधवार 20 अगस्त, 2015 को रिमझिम बरसात हो रही थी. रात गहरा चुकी थी और तकरीबन 9 बज चुके थे. बूंदाबादी तब भी जारी थी. घटाटोप आकाश को देख कर लगता था कि देरसवेर तूफानी बारिश होगी.

कोटा शहर के आखिरी छोर पर बसे उपनगर आरके पुरम के थानाप्रभारी जयप्रकाश बेनीवाल तूफानी रात के अंदेशे में अपने सहायकों से रात्रि गश्त को टालने के बारे में विचार कर रहे थे, तभी टेलीफोन की घंटी से उन का ध्यान बंट गया. उन्होंने रिसीवर उठाया तो दूसरी तरफ से भर्राई हुई

आवाज आई, ‘‘सर, मेरा नाम दीपेंद्र गुप्ता है. मेरी पत्नी स्वाति गुप्ता का कत्ल हो गया है. हत्यारा मेरा ड्राइवर-कम-केयरटेकर रह चुका लालचंद मेहरा है.’’

हत्या की खबर सुनते ही थानाप्रभारी के चेहरे का रंग बदल गया. उन्होंने पूछा, ‘‘आप अपना पता बताइए.’’

‘‘ई-25, सेक्टर कालोनी, आर.के. पुरम.’’

‘‘ठीक है, मैं फौरन पहुंच रहा हूं.’’ कहते हुए थानाप्रभारी ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. बेनीवाल पुलिस फोर्स के साथ उसी वक्त घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. उस समय रात के करीब साढ़े 9 बज रहे थे.

थानाप्रभारी बेनीवाल अपनी टीम के साथ 15 मिनट में दीपेंद्र गुप्ता के आवास पर पहुंच गए. उन के घर के बाहर भीड़ लगी हुई थी. बेनीवाल की जिप्सी आवास के मेन गेट पर पहुंची. जिप्सी से उतर कर जैसे ही वह आगे बढ़े तो एकाएक उन के पैर खुदबखुद ठिठक गए. गेट पर खून ही खून फैला था. उन्होंने बालकनी की तरफ नजर दौड़ाई तो व्हीलचेयर पर बैठे एक व्यक्ति को लोग संभालने की कोशिश कर रहे थे, जो बुरी तरह बिलख रहा था.

स्थिति का जायजा लेने के बाद थानाप्रभारी बेनीवाल ने फोन कर के एसपी सवाई सिंह गोदारा को वारदात की सूचना दे दी. इस से पहले कि बेनीवाल तहकीकात शुरू करते, एसपी तथा अन्य उच्चाधिकारी फोटोग्राफर व फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट के साथ वहां पहुंच गए..

एसपी सवाई सिंह गोदारा और उच्चाधिकारियों के साथ थानाप्रभारी बेनीवाल बालकनी में व्हीलचेयर पर बैठे बिलखते हुए व्यक्ति के पास गए. पता चला कि दीपेंद्र गुप्ता उन्हीं का नाम था. बेनीवाल के ढांढस बंधाने के बाद उन्होंने बताया, ‘‘सर, फोन मैं ने ही किया था.’’

दीपेंद्र गुप्ता ने उन्हें बताया कि उस की पत्नी स्वाति गुप्ता बीएसएनएल कंपनी में उपमंडल अधिकारी थीं. लगभग 9 बजे वह कार से घर लौटी थीं.

जब वह मेनगेट बंद करने गई तभी अचानक वहां छिपे बैठे उन के पूर्व ड्राइवर लालचंद मेहता चाकू ले कर स्वाति पर टूट पड़ा और तब तक चाकू से ताबड़तोड़ वार करता रहा जब तक स्वाति के प्राण नहीं निकल गए. चीखतीचिल्लाती स्वाति लहूलुहान हो कर जमीन पर गिर पड़ीं.

दीपेंद्र की रुलाई फिर फूट पड़ी. उन्होंने सुबकते हुए कहा, ‘‘अपाहिज होने के कारण मैं अपनी पत्नी को हत्यारे से नहीं बचा सका. बादलों की गड़गड़ाहट में हालांकि स्वाति की चीख पुकार और मेरा शोर भले ही दब गया था, लेकिन जिन्होंने सुना वे दौड़ कर पहुंचे, लेकिन तब तक लालचंद भाग चुका था.’’

एक पल रुकने के बाद दीपेंद्र गुप्ता बोले, ‘‘संभवत: स्वाति की सांसों की डोर टूटी नहीं थी, इसलिए पड़ोसी लहूलुहान स्वाति को तुरंत ले अस्पताल गए, लेकिन…’’ कहतेकहते दीपेंद्र का गला फिर रुंध गया.

‘‘स्वाति को बचाया नहीं जा सका. मुझ से बड़ा बदनसीब कौन होगा. जिस की पत्नी को उस के सामने वहशी हत्यारा चाकुओं से गोदता रहा और मैं कुछ नहीं कर पाया?’’

वहशी हत्यारे की करतूत और लाचार पति की बेबसी पर एक बार तो पुलिस अधिकारियों के दिल में भी हूक उठी.

एसपी सवाई सिंह गोदारा ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘हत्यारे के बारे में मालूम है. वह जल्द ही पुलिस की गिरफ्त में होगा.’’ उन्होंने बेनीवाल से कहा, ‘‘बेनीवाल, मैं चाहता हूं हत्यारा जल्द से जल्द तुम्हारी गिरफ्त में हो. अभी से लग जाओ उस की तलाश में.’’

इस बीच फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और फोटोग्राफर अपना काम कर चुके थे.

‘‘…और हां,’’ एसपी ने बेनीवाल का ध्यान वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की तरफ दिलाते हुए कहा, ‘‘इस मामले में लालचंद को पकड़ना तो पहली जरूरत है ही. लेकिन सीसीटीवी फुटेज भी खंगालो, फुटेज में पूरी वारदात नजर आ जाएगी.’’

पुलिस की तत्परता कामयाब रही और देर रात लगभग 2 बजे आरोपी लालचंद को रावतभाटा रोड स्थित मुरगीखाने के पास से गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने उस के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू भी बरामद कर लिया.

इस बीच दीपेंद्र गुप्ता की रिपोर्ट पर भादंवि की धारा 402 और 460 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

गुप्ता परिवार ने खुद पाला था मौत देने वाले को  मौके पर की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने स्वाति गुप्ता की लाश मोर्चरी भिजवा दी. पोस्टमार्टम के बाद स्वाति का शव अंत्येष्टि के लिए घर वालों को सौंप दिया गया.

पुलिस के लिए अहम सवाल यह था कि आखिर इतनी हिंसक मनोवृत्ति के व्यक्ति को दीपेंद्र गुप्ता ने ड्राइवर जैसे जिम्मेदार पद पर कैसे नौकरी पर रख लिया. लालचंद पिछले 20 सालों से दीपेंद्र गुप्ता के यहां नौकरी कर रहा था. आखिर उसे किस की सिफारिश पर नौकरी दी गई थी. पुलिस ने यह सवाल दीपेंद्र गुप्ता से पूछा

‘‘उस आदमी के बारे में तो अब मुझे कुछ याद नहीं आ रहा.’’ दीपेंद्र गुप्ता ने कहा, ‘‘उस का कोई रिश्तेदार था, जिस के कहने पर मैं ने लालचंद को अपने यहां नौकरी पर रखा था. लालचंद झालावाड़ जिले के मनोहरथाना कस्बे का रहने वाला था. शायद उस का सिफरिशी रिश्तेदार भी वहीं का था.’’

बेनीवाल ने पूछा, ‘‘जब वह पिछले 20 सालों से आप को यहां काम कर रहा था तो जाहिर है काफी भरोसेमंद रहा होगा. फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि आप ने उसे नौकरी से निकाल दिया.’’

‘‘उस में 2 खामियां थीं…’’ कहतेकहते दीपेंद्र गुप्ता एक पल के लिए सोच में डूब गए. जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहे हों.

वह फिर बोले, ‘‘दरअसल, उसे एक तो शराब पीने की लत थी और दूसरे वह परिवार की जरूरतों का रोना रो कर हर आठवें दसवें दिन पैसे मांगता. शुरू में मुझे उस की दारूबाजी की खबर नहीं थी. पारिवारिक मुश्किलों का हवाला दे कर वह इस तरह पैसे मांगता था कि मैं मना नहीं कर पाता था. लेकिन स्वाति को यह सब ठीक नहीं लगता था.

दीपेंद्र गुप्ता ने आगे कहा, ‘‘स्वाति ने मुझे कई बार रोका और कहा, ‘बिना किसी की जरूरत को ठीक से समझे बगैर इतनी दरियादिली आप के लिए नुकसानदायक हो सकती है.’ लेकिन मैं ने यह कह कर टाल दिया कि कोई मजबूरी में ही पैसे मांगता है.’’

बेनीवाल दीपेंद्र की बातों को सुनने के साथसाथ समझने की भी कोशिश कर रहे थे. दीपेंद्र ने आगे कहा, ‘‘लेकिन…लालचंद ने शायद मेरी पत्नी स्वाति की आपत्तियों को भांप लिया था. कई मौकों पर मैं ने उसे स्वाति से मुंहजोरी भी करते देखा. मैं ने उसे आड़ेहाथों लेने की कोशिश की. लेकिन उस की मिन्नतों और आइंदा ऐसा  कुछ नहीं करने की बातों पर मैं ने उसे बख्श दिया.’’

दीपेंद्र गुप्ता से लालचंद के बारे में काफी जानकारियां मिलीं. लालचंद पिछले 20 सालों से गुप्ता परिवार के यहां काम कर रहा था. अपंग गुप्ता के लिए उसे निकाल कर नए आदमी की तलाश करना पेचीदा काम था.

दरअसल, दीपेंद्र गुप्ता भी एक सफल बिजनैसमैन थे, लेकिन जीवन में घटी एक घटना ने सब कुछ बदल कर रख दिया. दीपेंद्र गुप्ता को उन के दोस्त विनय गुप्ता के नाम से जानते थे. कभी शैक्षिक व्यवसाय से जुड़े दीपेंद्र का लौर्ड बुद्धा कालेज नाम से अपना शैक्षणिक संस्थान था. लेकिन सन 2011 में चंडीगढ़ से कोटा लौटते समय हुए एक रोड ऐक्सीडेंट में उन्हें गंभीर चोटें आईं. ऊपर से इलाज के दौरान उन्हें पैरालिसिस हो गया. तब उन्हें अपना संस्थान बेचना पड़ा.

उन की पत्नी स्वाति गुप्ता उपमंडल अधिकारी थीं, जिन का अच्छाखासा वेतन घर में आता था. इस के अलावा गुप्ता ने अपने आवास के एक बड़े हिस्से को किराए पर भी दे दिया, जिस से मोटी रकम मिलती थी. लालचंद मेहता को दीपेंद्र गुप्ता ने सन 2003 में ड्राइवर की नौकरी पर रखा था. उन की शादी स्वाति से सन 2004 में हुई थी, यानी लालचंद मेहता उन की शादी के एक साल पहले से ही उन के यहां नौकरी कर रहा था.

दीपेंद्र गुप्ता के व्हीलचेयर पर आने के बाद लालचंद सिर्फ ड्राइवर ही नहीं रहा, बल्कि गुप्ता का केयरटेकर भी बन गया. एक तरह से अब दीपेंद्र गुप्ता लालचंद पर निर्भर हो गए थे. लालचंद ने उन की इस लाचारी का फायदा उठाया. वह शराब पी कर घर आने लगा था. गुप्ता के सामने ही स्वाति से बदतमीजी से पेश आने लगा था. अब वह पैसे भी दबाव के साथ मांगने लगा था. उस पर गुप्ता की इतनी रकम उधार हो गई थी कि अपनी 2 सालों की तनख्वाह से भी नहीं चुका सकता था.

उस की दाबधौंस 20 अगस्त, 2015 को दीपेंद्र गुप्ता के सामने आई. उस समय वह दारू के नशे में धुत था. उस की आंखें चढ़ी हुई थीं और स्वाति से अनापशनाप बोल कर पैसे ऐंठने पर उतारू था.

आजिज आ कर स्वाति ने डांटा था लालचंद को पानी सिर से गुजर चुका था. इस से पहले कि गुप्ता कुछ कह पाते, स्वाति ने उसे दो टूक लफ्जों में कह दिया, ‘‘तुम्हें इतना पैसा दिया जा चुका है कि तुम सात जनम तक नहीं उतार सकते. तुम परिवार की जरूरतों के बहाने पैसे मांगते हो और दारू में उड़ा देते हो. फौरन यहां से निकल जाओ. आइंदा इधर का रुख भी मत करना.’’

एसपी सवाई सिंह गोदारा ने इस मामले की सूक्ष्मता से जांच कराई. इस केस में चश्मदीद गवाह कोई नहीं था, लेकिन तकनीकी साक्ष्य इतने मजबूत थे कि उन्हीं की बदौलत केस मृत्युदंड की सजा तक पहुंच पाया.

घर में लगे सीसीटीवी कैमरों में पूरी वारदात की फुटेज मिल गई थी, जिस में लालचंद स्वाति गुप्ता पर चाकू से वार करता हुआ साफ दिखाई दे रहा था.

जांच के दौरान मौके से मिले खून के धब्बे, चाकू में लगा खून और पोस्टमार्टम के दौरान मृतका के शरीर से लिए गए खून के सैंपल का मिलान कराया गया. मौके से मिले फुटप्रिंट का भी आरोपी के फुटप्रिंट से मिलान कराया गया. इन सारे सबूतों को अदालत ने सही माना.

न्यायाधीश राजेंद्र बंशीलाल ने सारे सबूतों, गवाहों और दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह सुनने के बाद 49 पेज का फैसला तैयार किया था. अभियुक्त लालचंद को दोषी पहले ही करार दे दिया गया था. 13 दिसंबर, 2018 को उसे सजा सुनाई जानी थी.

न्यायाधीश ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘इस में कोई दो राय नहीं कि लालचंद मेहता ने जिस तरह स्वाति की जघन्य हत्या की, वह रेयरेस्ट औफ रेयर की श्रेणी में आता है. लेकिन इस के साथ ही हमें यह भी देखना होगा कि उस ने केवल स्वाति की हत्या ही नहीं की बल्कि अपाहिज दीपेंद्र गुप्ता का सहारा भी छीन लिया. साथ ही उन की मासूम बेटी के सिर से मां का साया भी उठ गया.’’

न्यायाधीश राजेंद्र बंशीलाल ने आगे कहा, ‘‘सारी बातों के मद्देनजर दोषी लालचंद को मृत्युदंड और 30 हजार रुपए जुरमाने की सजा देती है.’’

फैसला सुनाने के बाद न्यायाधीश अपने चैंबर में चले गए.

जज द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद पुलिस ने मुलजिम लालचंद मेहता को हिरासत में ले लिया. अदालत द्वारा मुलजिम को मौत की सजा सुनाए जाने पर लोगों ने संतोष व्यक्त किया. ?

Crime Story

Winter Skincare: सर्दियों में जरूरी मौइस्चर सैंडविचिंग

Winter Skincare: सर्दियों में स्किन को बचाने का सब से आसान तरीका है मौइस्चर सैंडविचिंग. यह आप की त्वचा के लिए एक सरल, असरदार और बेहद प्यार भरा स्टैप है. दरअसल, सर्दियां आते ही हमारी स्किन सब से ज्यादा परेशान होने लगती है. हवा सूखी

हो जाती है, नमी कम हो जाती है और घर की हीटिंग भी त्वचा की नमी छीन लेती है. ऐसे में चेहरे पर खिंचाव, सफेदसफेद पैच, सूखापन और जलन होना बिलकुल आम है. इसलिए

इस मौसम में सही मौइस्चराइजेशन ही स्किनकेयर की असली चाबी है. इन्हीं समस्याओं के बीच एक तकनीक इन दिनों काफी चर्चा में है- मौइस्चर सैंडविचिंग. यानी त्वचा को हाइड्रेशन की ऐसी लेयर देना जो पूरा दिन नमी को लौककर के रखे.

मौइस्चर सैंडविचिंग आखिर है क्या

नाम से लगता है कि इस में कुछ लेयर्स होंगी और बिलकुल ऐसा ही है. यह एक लेयरिंग टैक्नीक है, जिस में आप हाइड्रेशन और मौइस्चराइजर को ऐसे क्रम में लगाते हैं कि नमी स्किन के अंदर बंद हो जाए और बाहर की ठंडी हवा उसे नुकसान न पहुंचा सके. इस में 3 बेसिक लेयर्स शामिल होती हैं-

  1. हाइड्रेटिंग बेस (जैसे टोनर/ऐसैंस).
  2. मौइस्चराइजर.
  3. औयल या क्रीम की एक हलकी लेयर जो नमी को सील कर दे.

यही लेयर आप की त्वचा के लिए सैंडविच का काम करती है, हाइड्रेशन बीच में, सुरक्षा दोनों तरफ.

सर्दियों में यह तकनीक क्यों कारगर है

सर्दियों में त्वचा में मौजूद पानी बहुत जल्दी उड़ जाता है. यही वजह है कि स्किन रूखी और संवेदनशील महसूस होती है. ऐसे में मौइस्चर सैंडविचिंग आप की मदद करती है-

– नमी लंबे समय तक बनाए रखने में.

– स्किन बैरियर को मजबूत बनाने में.

– फ्लैकीनैस और पैचेस कम करने में.

– मेकअप को स्मूद दिखाने में.

– त्वचा को मुलायम, स्वस्थ और प्लंप रखने में.

मौइस्चर सैंडविचिंग अपनाने का आसान स्टैपबायस्टैप तरीका

स्टैप 1: कुनकुने पानी से फेस वाश करें.

बहुत गरम पानी स्किन से नैचुरल औयल हटा देता है. इसलिए हलका कुनकुना पानी और एक जैंटल हाइड्रेटिंग फेस वाश इस्तेमाल करें.

स्टैप 2: चेहरा पूरी तरह न सुखाएं.

तौलिये से हलका सा थपथपा लें, लेकिन स्किन पर थोड़ी सी नमी रहने दें. यही नमी आप के आगे के स्टैप्स को और असरदार बनाती है.

स्टैप 3: हाइड्रेटिंग टोनर या ऐसैंस लगाएं.

ह्यालूरोनिक ऐसिड, गुलाबजल, ऐलोवेरा या ग्लिसरीन वाला टोनर स्किन को तुरंत आराम और नमी देता है.

– स्किन इंस्टैंटली मुलायम होती है.

– मौइस्चराइजर अंदर तक आसानी से पहुंचता है.

स्टैप 4: अच्छा मौइस्चराइजर लगाएं.

सर्दियों में मौइस्चराइजर भारी, रिपेयरिंग और नरिशिंग होना चाहिए. ऐसे इन्ग्रीडिएंट्स देखें-

– सिरेमाइड.

– शिया बटर.

– विटामिन ई.

– बादाम या और्गन औयल.

ये स्किन को गहराई से हाइड्रेट और प्रोटैक्ट करते हैं.

स्टैप 5: एक हलकी औयल या क्रीम की लेयर.

अब ऊपर से बहुत हलका फेस औयल या कोई नरिशिंग क्रीम लगाएं. यह लेयर नमी को सील कर के रखती है ताकि ठंडी हवा उसे उड़ा कर न ले जाए. अच्छे विकल्प- बादाम तेल, रोजहिप, जोजोबा, और्गन औयल.

स्टैप 6: रात में यह तकनीक और भी बेहतर काम करती है.

नींद के दौरान त्वचा खुद को रिपेयर करती है. रात में किया गया मौइस्चर सैंडविच सुबह चेहरा बेहद चमकदार, मुलायम और हाइड्रेटेड बना देता है.

इन गलतियों से बचें

– बहुत भारी प्रोडक्ट्स की कई लेयर एकसाथ न लगाएं.

– औयली स्किन वाले कौमेडोजेनिक औयल से दूर रहें.

– सबकुछ एक ही दिन में शुरू न करें, धीरेधीरे शामिल करें.

– नाइट टाइम में स्किन टाइप के अनुसार हलकी या भारी लेयर चुनें.

किन स्किन टाइप्स को सब से ज्यादा फायदा होता है यह तकनीक लगभग सभी स्किन टाइप्स के लिए सही है, लेकिन खासतौर पर-

– ड्राई स्किन.

सैंसिटिव स्किन.

– डिहाइड्रेटेड या डल स्किन.

फ्लेकी, पैची स्किन.

– मचूरिंग/एजिंग स्किन.

सौंदर्य विशेषज्ञा -ब्लॉसम कोचर

Winter Skincare

After Party: नए जोड़े की जश्ने शाम

After Party: ‘‘यार क्या जबरदस्त पार्टी थी श्वेता और विवेक की. मैं ने तो सोच लिया है मैं अपनी शादी के बाद बिलकुल ऐसी ही पार्टी रखूंगा,’’ जिस भी गैस्ट ने श्वेता और विवेक की शादी के बाद की पार्टी यानि आफ्टर पार्टी अटैंड की थी. वह यही कह रहा था.

शादी के बाद नए विवाहित जोड़े की शान में रिसैप्शन पार्टी पहले से ही रखी जाती है. मगर यह चलन अब धीरेधीरे कम होता जा रहा है और धीरेधीरे एक नया ट्रेंड शादी के सैलिब्रेशन में ऐड हो रहा है.

‘आफ्टर पार्टी’ यह पार्टी शादी की रिसैप्शन से काफी अगल होती है. यह पार्टी या शादी तो रिसैप्शन के ठीक बाद रखी जाती है या शादी या रिसैप्शन के 1 या 2 दिन बाद अथवा जैसा भी नए विवाहित जोड़े को ठीक लगे.

शादी की भागदौड़ और थकावट को दूर करने और रिफ्रैश होने के लिए नए जोड़े आजकल यह आफ्टर पार्टी करते हैं. यह पार्टी नया जोड़ा अपने खास दोस्तों और शुभचिंतकों के साथ ऐंजोय करता है. यह पार्टी आम वैडिंग पार्टी से अलग होती है. इस पार्टी में काफी अलग तरह के आयोजन होते हैं. जैसाकि नया जोड़ा अकसर यह पार्टी शादी के तामझाम से थक कर अपने रिलैक्स ऐंड ऐंजोय मूड के लिए रखते हैं. इसलिए इस तरह की पार्टी में अधिकतर दोस्त ही होते है. ताकि पारिवारिक रोकटोक या हिचक की गुंजाइश न हो.

इस तरह की पार्टी का चलन बाहरी देशों जैसे अमेरिका, इंगलैंड आदि का है. लेकिन अब भारत में भी धीरेधीरे बढ़ रहा हैं. ठीक वैसे ही जैसे प्री वीडिंग शूट अब शादी का एक हिस्सा सा बन गया है.

आफ्टर पार्टी के थीम्स: हरकोई अपनी शादी को यादगार बनाने की कोशिश करता है ठीक वैसे ही कोशिश अब आफ्टर पार्टी के लिए भी की जा रही है. पार्टी को रिलैक्स्ड और कैजुअल रखने के लिए एक बढि़या थीम के साथ इंटरैस्टिंग फूड और लोकेशन का चयन किया जाता हैं ताकि जितनी धूमधाम से शादी होती है, उतनी ही रंगीन रंग से आफ्टर पार्टी ऐंजोय की जाए.

इंटरैस्टिंग थीम का चयन कर अपनी शाम को बहुचर्चित करना हर जोड़े की शान से जुड़ गया है और इन्ही यूनीक थीम्स में से कुछ हैं:

लेट नाइट पार्टी, लाइव शोज (सिंगिंग ऐंड डांसिंग), कराओके, कार्ड ऐंड कैसिनो गेम, फाइन ड्रिंकिंग गैदरिंग विद लाइव म्यूजिक, डीजे नाइट, बानफायर, पूल पार्टी, सुपर हीरो थीम या रैट्रो, फ्लेवरड हुक्का.

यह नशे की पार्टी है और इस का बहुत नुकसान होता है पर आजकल चलन में है. इस का नशा भी दूसरे नशों की तरह स्वास्थ्य के लिए खतरा है.

और भी बहुत कुछ. जो आप की पार्टी की छाप हर गैस्ट्स के दिलोदिमाग में छोड़ जाए.

बहुत से जोड़े ऐसी पार्टी किसी होटल या रिसोर्ट में रखते हैं. वहीं कुछ दूसरे शहर जैसेकि डैस्टिनेशन वैडिंग होती है, ठीक वैसे ही डैस्टिनेशन आफ्टर पार्टी.

एक यूनीक थीम के चयन के साथ और भी बहुत सी बातें एक आफ्टर पार्टी की चैकलिस्ट से जुड़ी हुई हैं जैसे-

फूड चौइस: पार्टी की फूड चौइस या क्यूजिन भी जरा हट कर हो तो पार्टी में और मजा आ जाता है. इसलिए कोशिश करें कि आप की पार्टी का फूड मेनू भी डिफरैंट और माउथफुल फ्लेवर लिए हो क्योंकि आम और रैग्युलर फूड तो हर शादी और पार्टी में मिल ही जाता है. तो आप की में भी वही होने से क्या न्यू रहेगा.

म्यूजिक: एक डीजे तो आजकल हर पार्टी में मिल जाता है. लेकिन एक डिफरैंट म्यूजिक और इलैक्ट्रिफाइग वाइब हर पार्टी में नहीं मिलता. इसलिए अपनी पार्टी का म्यूजिक चयन जरा हट कर कौंसैप्ट को सोच कर रखें.

डैकोरेशन: शादी की डैकोरेशन बहुत भारीभरकम होती है. इसलिए अपनी पार्टी की डैकोरेशन कैजुअल ही रखें. इस से एक तो आप के पैसे बचेंगे दूसरे यह आप को और आप के गैस्ट को बहुत लाइट फील कराएगी.

लोकेशन: लोकेशन सलैक्ट करते वक्त अपने बजट और आराम को ध्यान दें. शोशेबाजी के चक्कर में कोई भी ओवरप्राइस्ड लोकेशन पसंद न करे. साथ ही न कोई आउटर सर्किट एरिया चुनें. बहुत से लोग ज्यादा मौजमस्ती करने के मूड में काफी आउटर एरिया जैसे कोई फौरेस्ट एरिया या कोई दूरदराज का बीच हाउस सलैक्ट करते हैं जो शहरी पहुंच से दूर होता है. माना एकांत और फुल मस्ती के लिए ये अच्छे विकल्प हैं लेकिन ये किसी अनहोनी या आपात स्थिति के एकदम से आने पर बहुत ही गलत चयन साबित हो जाएगा. यहां न समय पर सहायता मिल पाएगी और न सहायता के लिए स्वयं जा पाएंगे.

आउटफिट: शादी और उस से जुड़ी रस्मों में पहने कपड़ों पर पहले ही इतना खर्चा हो गया होता है जो एक समय के बाद बहुत चुभता है इसलिए अच्छा होगा कि आप पार्टी आउटफिट पर अधिक खर्चा न करें और कैजुअल आउटफिट का चयन कर अपनी जेब और बौडी को आराम दें.

यह आफ्टर पार्टी अगर दूल्हेदुलहन के दोस्त और युवा रिश्तेदार अपना कंट्रीब्यूशन दे कर करें तो ज्यादा अच्छा है और एक तरह से रिटर्न पार्टी का रूप ले सकती है. इस की प्लानिंग और डेट्स भी शादी के साथ हो पर मैनेजमैंट और थीम, मेनू का चयन आदि दोस्त, कजिन करें.

पहले हर जोड़े को रिश्तेदार अपनेअपने घर में बुलाते थे पर अब हर नए कपल के बहुत से ऐसे फ्रैंड्स और कजिन होते हैं, जिन का अपना पक्का सा ठिकाना नहीं होता. वे एकएक कर के रेस्तरांओं में यंग कपल को बुलाएं उस से अच्छा है छोटी मगर मजेदार आफ्टर पार्टी जौइंट हो.

After Party

Awareness: आप में तो नहीं मैसेज फौरवर्ड करने की आदत

Awareness: रिंकी कालेज जाने के लिए जल्दीजल्दी तैयार हो रही थी. तभी फोन पर मैसेज का नोटिफिकेशन आया. उस ने देखा, किस का मैसेज है, देखते ही सिर पकड़ लिया, किचन में जा कर देखा, उस की मम्मी मधु एक हाथ से कलछी चला रही थीं, दूसरे हाथ में फोन था. रिंकी ने कहा, ‘‘मम्मी, अभी यह गुडमौर्निंग का मैसेज फैमिली गु्रप में भेजना इतना जरूरी था? आप का हाथ भी जल सकता है. ऐसी क्या आफत आती है. अभी बाकी रिश्तेदारों की भी गुडमौर्निंग शुरू हो जाएगी.

यह जो रोज गुडमौर्निंग की सुनामी आती है न, मैं तो थक गई हूं. मैं गु्रप छोड़ दूंगी.’’ ‘‘न, न, गु्रप मत छोड़ना. तेरी चाची, ताई सोचेंगी कि तुझे किसी से मतलब नहीं. एक तो तुम बच्चे लोग गु्रप पर कोई रिस्पौंस नहीं देते, बुरा लगता है.’’ ‘‘तो आप लोग कभी सोचना कि हम क्यों रिस्पौंस नहीं देते. पूरा दिन मैसेज ही तो फौरवर्ड करते हो आप लोग,’’ रिंकी बड़बड़ाती हुई चली गई. आज का युग डिजिटल युग है, स्मार्टफोन और इंटरनैट के साथ व्हाट्सऐप जैसे मैसेजिंग प्लेटफौर्म ने सूचनाओं का आदानप्रदान तेज, सस्ता और व्यापक बना दिया है लेकिन इसी सुविधा ने एक और संकट को जन्म दिया है- फौरवर्ड मैसेज का अंधाधुंध प्रसार.

कई खूबियों और सुविधाओं के साथ आज की तकनीक की एक सब से बड़ी परेशानी बनते जा रहे हैं- फौरवर्डेड मैसेज. रोजाना दर्जनों संदेश, जिन में से अधिकतर बेतुके, पुराने घिसेपिटे या संदिग्ध जानकारी या फालतू ज्ञान से भरे होते हैं. उन्हें पढ़ने, समझने और आगे भेजने में लगने वाला समय हमारी दिनचर्या में अनदेखी बरबादी है. इस में सिर्फ हमारा समय ही बरबाद नहीं होता है बल्कि मानसिक ऊर्जा भी नष्ट हो रही है. बेकार के संदेश दिमाग में सूचना का शोर पैदा करते हैं, जिस से जरूरी सूचनाओं को पहचानना मुश्किल हो जाता है.

धीरेधीरे यह आदत डिजिटल अव्यवस्था में बदल जाती है, जिस में न तो व्यक्ति सही जानकारी पर ध्यान केंद्रित कर पाता है और न ही अपनी क्रिएटिविटी बनाए रख पाता है. अगर हम कोई भी मैसेज फौरवर्ड करने से पहले ज्यादा नहीं बस 30 सैकंड रुक कर ही सोच लें कि क्या यह सच है? क्या यह भेजना जरूरी है? तो हम न केवल अपने समय बल्कि अपनी मानसिक ऊर्जा को भी बचा सकते हैं और कुछ और सार्थक काम कर सकते हैं. देखा गया है कि आमतौर पर मध्यम आयु वाले और बुजुर्ग लगभग 40 से 65 वर्ष के लोग धार्मिक मैसेज ज्यादा फौरवर्ड करते हैं.

इस के पीछे कई कारण हैं-

परंपराओं से जुड़ाव: इस उम्र के लोग ज्यादा परंपरावादी होते हैं. वे सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों से गहरे जुड़े होते हैं, इसलिए ऐसे संदेश उन्हें भावनात्मक रूप से प्रभावित करते हैं. खाली समय और दिनचर्या: रिटायरमैंट के करीब या रिटायर हो चुके लोग या जिन की जिम्मेदारियां हलकी हो चुकी हैं, उन के पास मैसेज पढ़ने और भेजने के लिए अधिक समय होता है.

आस्था शेयर करने वाले: इन्हें लगता है कि धार्मिक मैसेज भेज कर वे पुण्य कमा रहे हैं या दूसरों का भला कर रहे हैं. व्हाट्सऐप उन्हें आस्था फैलाने का आसान मंच लगता है क्योंकि एक क्लिक में कई लोगों तक संदेश पहुंच जाता है.

सत्यता पर कम सवाल: धार्मिक संदेशों को अकसर बिना परखे श्रद्धा के साथ स्वीकार कर लिया जाता है इसलिए इन्हें आगे भेजने में हिचकिचाहट नहीं होती. उम्र बढ़ने के साथ धार्मिक मैसेज फौरवर्ड करने का प्रतिशत बढ़ता है जबकि मजाकिया मैसेज का झकाव युवा उम्र में ज्यादा होता है और राजनीतिक मैसेज मिडऐज ग्रुप में सब से ज्यादा फौरवर्ड किए जाते हैं. फैमिली ग्रुप पर जब युवाओं को जोड़ा जाता है, वे बेचारे धार्मिक मैसेजों से बोर हो कर छटपटाते रह जाते हैं. न उन से ग्रुप छोड़ते बनता है न वहां के धार्मिक और राजनीतिक ज्ञान हजम करते बनता है.

ऐसा नहीं है कि धार्मिक या कोई भी मैसेज फौरवर्ड करने का शौक हमें ही है, विदेशों में भी धार्मिक मैसेज फौरवर्ड होते हैं लेकिन उन का पैटर्न और तीव्रता देश, संस्कृति और वहां के डिजिटल इस्तेमाल की आदतों पर निर्भर करती है. भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका जैसे देशों से जुड़े प्रवासी समुदाय विदेशों में भी धार्मिक मैसेज काफी भेजते हैं क्योंकि यह उन्हें अपनी संस्कृति और भाषा से जोड़े रखता है.

– अरब देशों में इसलामी शिक्षाओं, कुरान की आयतों के रमजान से जुड़े फौरवर्ड बहुत आम हैं.

– ईसाई बहुल देशों में क्रिसमस, ईस्टर या बाइबिल के वचन फौरवर्ड किए जाते हैं.

– अमेरिका और यूरोप में व्हाट्सऐप का इस्तेमाल तो है ही, फेसबुक, मैसेंजर, टैलीग्राम और ईमेल पर भी धार्मिक संदेश भेजे जाते हैं.

– लैटिन अमेरिका में स्पेनिश और पुर्तगाली भाषा में धार्मिक मैसेज खासकर कैथोलिक परंपरा से जुड़े मैसेज बहुत फौरवर्ड किए जाते हैं. उम्र का पैटर्न विदेशों में भी 40+ उम्र के लोग धार्मिक संदेश अधिक फौरवर्ड करते हैं जबकि युवा इन्हें कम भेजते हैं. युवा अकसर मीम्स या न्यूज पर ध्यान देते हैं. सत्यता की जांच का रुझन पश्चिमी देशों में धार्मिक फौरवर्ड कम तथ्यहीन होते हैं क्योंकि वहां लोग स्रोत को परखने की आदत रखते हैं जबकि एशियाई प्रवासी समूह में भावनात्मक जुड़ाव ज्यादा हावी रहता है.

60 साल के रमेशजी सुबहसुबह मंदिर जाते तो वहां से फोटो ले कर अपने कई गु्रप्स में भेज देते. 10 मिनट के अंदर वही फोटो उन के पास पहुंच जाता और साथ ही लिखा होता कि इस फोटो को 11 लोगों को भेजो वरना… उन के बेटे ने जब यह सुना तो वह बहुत हंसा. कहने लगा, ‘‘आप को तो व्हाट्सऐप के अपने मैसेज पर आशीर्वाद का रिटर्न गिफ्ट भी मिलता है और वह भी हाथ के हाथ.’’ रेहाना रोज ही एक मैसेज अलगअलग ग्रुप में भेजती थी, उन की यह बात उन की बेटी से छिपी नहीं थी. बेटी एक दिन कहने लगी, ‘‘मम्मी. क्यों करती हैं आप ऐसा. रोज एक ही फाइल क्यों अपलोड करती हैं आप? सब बोर होते होंगे.’’ रमेश और रेहाना की तरह कई लोगों को लगता है कि धार्मिक मैसेज भेज कर वे बहुत पुण्य कमा रहे हैं.

कई युवा सचमुच अपने पेरैंट्स की मैसेज फौरवर्ड करने वाली आदत का मजाक बनाते हैं. उन्हें समझते भी हैं पर पेरैंट्स हैं कि उन का सारा भक्तिभाव फौरवर्ड करने में जागा रहता है, अपना टाइम भी खराब करते हैं, दूसरों का भी. ऐसे धार्मिक या चेन टाइप व्हाट्सऐप मैसेज फौरवर्ड करते रहने के कई नुकसान होते हैं जो व्यक्तिगत, सामाजिक और तकनीकी तीनों स्तर पर असर डालते हैं:

व्यक्तिगत नुकसान समय की बरबादी: रोजरोज बेकार के मैसेज पढ़ने और भेजने में मिनट नहीं, घंटे बरबाद होते हैं. यही समय कुछ रचनात्मक करने या अच्छी किताबें पढ़ने अथवा अपनी सेहत का ध्यान रखने में बिताया जा सकता है. मानसिक अव्यवस्था: लगातार आने वाले नोटिफिकेशन और मैसेज दिमाग को थकाते हैं और ध्यान भटकाते हैं. मन की एकाग्रता कम होती है.

50 साल की माया अपने पति सुमित की आदत से परेशान हैं. वे कहती हैं, ‘‘सुमित से चैन से बैठ कर बात करना मुश्किल होता जा रहा है, उन के फोन पर नोटिफिकेशन आते हैं तो सारी बात रोक कर पहले मैसेज देखते हैं. मैं पूछती हूं कि किस का मैसेज है तो बताते हैं कि कोई बेकार का फौरवर्ड था. मुझे गुस्सा आता है कि हर नोटिफिकेशन पर लपक कर फोन देखना इतना जरूरी भी नहीं और भेजने वाला तो मूर्ख है ही. बात करने का सारा मूड चला जाता है.’’

विश्वसनीयता पर असर: बारबार अजीबोगरीब मैसेज भेजने से लोग आप को गंभीरता से लेना बंद कर देते हैं.

सामाजिक नुकसान अफवाह और भ्रम फैलना: बिना सत्यता परखे भेजा गया धार्मिक या अंधविश्वासी मैसेज समाज में डर, गलतफहमी और तनाव फैला सकता है.

धार्मिक संवेदनशीलता: कभीकभी ऐसे मैसेज अनजाने में किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं. गु्रप में असंतोष: हरकोई धार्मिक मैसेज पसंद नहीं करता, लगातार ऐसे मैसेज भेजने से लोग परेशान हो जाते हैं और अपना समय बचाने के लिए चुपचाप गु्रप छोड़ सकते हैं.

तकनीकी नुकसान मोबाइल की स्टोरेज और डेटा का नुकसान: रोजाना आने वाली भारीभरकम तसवीरें और वीडियो मोबाइल की मैमोरी भर देते हैं.

स्पैम और फिशिंग का खतरा: कुछ धार्मिक चेन मैसेज के साथ लिंक आते हैं जो असल में स्कैम या डेटा चोरी का जरीया होते हैं.

नैटवर्क पर दबाव: अनावश्यक मीडिया फाइलें डेटा खपत और बैटरी दोनों बढ़ाती हैं. सुबह उठते ही दूसरों को निरर्थक मैसेज भेजने की आदत से बचना होगा. इस के बजाय खाली समय में कुछ ऐसा करें जिस से व्यक्तित्व का विकास हो, कुछ पढ़ने की आदत बनाएं, सैर पर जाएं, अच्छा संगीत सुनें, लोगों से मिलेंजुलें.

Awareness

Hindi Short Story: आशियाना- अनामिका ने किसे चुना

Hindi Short Story: “बहू कुछ दिनों के लिए रश्मि आ रही है. तुम्हें भी मायके गए कितने दिन हो गए, तुम भी शायद तब की ही गई हुई हो, जब पिछली दफा रश्मि आई थी. वैसे भी इस छोटे से घर में सब एकसाथ रहेंगे भी तो कैसे?

“तुम तो जानती हो न उस के शरारती बच्चों को…क्यों न कुछ दिन तुम भी अपने मायके हो आओ,” सासूमां बोलीं.

लेकिन गरीब परिवार में पलीबङी अनामिका के लिए यह स्थिति एक तरफ कुआं, तो दूसरी तरफ खाई जैसी ही होती. उसे न चाहते हुए भी अपने स्वाभिमान से समझौता करना पड़ता.

अनामिका आज भी नहीं भूली वे दिन जब शादी के 6-7 महीने बाद उस का पहली दफा इस स्थिति से सामना हुआ था.

तब मायके में कुछ दिन बिताने के बाद मां ने भी आखिर पूछ ही लिया,”बेटी, तुम्हारी ननद ससुराल गई कि नहीं? और शेखर ने कब कहा है आने को?” मां की बात सुन कर अनामिका मौन रही.

उसी शाम जब पति शेखर का फोन आया तो बोला,”अनामिका, कल सुबह 10 बजे की ट्रेन से रश्मि दीदी अपने घर जा रही हैं. मैं उन्हें स्टेशन छोड़ने जाऊंगा और आते वक्त तुम्हें भी लेता आऊंगा। तुम तैयार रहना, जरा भी देर मत करना. तुम्हें घर छोड़ कर मुझे औफिस भी तो जाना है.”

कुछ देर शेखर से बात करने के बाद जब वह पास पड़ी कुरसी पर बैठने लगी तो उस पर रखे सामान पर उस की नजर गई। उस ने झट से सामान उठा कर पास पड़ी टेबल पर रखा और कुरसी पर बैठ कर अपनी आंखें मूंद लीं.

कुछ देर शांत बैठी अनामिका अचानक से उठ खड़ी हुई. उस ने सामान फिर से कुरसी पर रखा और उसे देखती रही और फिर से वही सामान टेबल पर रख कर कुरसी पर बैठ गई.

इस छोटे से प्रयोग से अनामिका को यह समझने में जरा भी देर नहीं लगी कि कहीं वह भी इस सामान की तरह तो नहीं? कभी यहां तो कभी वहां…

अगले दिन जब वह शेखर के साथ ससुराल गई तो बातबात में उस ने कहीं छोटीमोटी जौब करने की इच्छा जताई तो शेखर ने साफ मना कर दिया.

लेकिन शेखर के ना चाहते हुए भी अनामिका ने कुछ ही दिनों में जौब ढूंढ़ ही ली. और जब अपनी पहली सैलरी ला कर उस में से कुछ रूपए अपनी सासूमां के हाथ में थमाए तो सास भी अपनी बहू की तरफदारी करते हुए शेखर को समझाने लगीं,”अनामिका पढ़ीलिखी है, अब जौब कर के 2 पैसे घर लाने लगी है तो इस में बुराई क्या है?”

अपनी मां से अनामिका की तारीफ सुनने के बाद शेखर के पास बोलने को जैसे कुछ नहीं बचा.

महीनों बाद जब घर में रुपयोंपैसों को ले कर सहुलत होने लगी तो शेखर को भी अनामिका का जौब करना रास आने लगा.

आज जब बेटी रश्मि का फोन आने के बाद सासूमां ने अनामिका को मायके जाने के लिए कहा तो हर बार की तरह मायूस होने की बजाय अनामिका पूरे उत्साह से बोली,”मांजी, मैं आज ही पैकिंग कर लेती हूं. कल शेखर के औफिस जाने के बाद चली जाऊंगी.”

एक बार तो आत्मविश्वास से लबरेज बहू का जबाव सुन कर सास झेंप सी गईं फिर सोचा कि बहुत दिनों बाद मायके जा रही है, शायद उसी की खुशी झलक रही है.

अगले दिन शेखर को औफिस के लिए विदा कर के अपना काम निबटा कर अनामिका ने मायके जाने के लिए इजाजत मांगी तो सास ने कहा,”मायके पहुंचते ही फोन करना मत भूलना.”

‘हां’ में गरदन हिलाते हुए अनामिका बाहर की ओर चल दी.

ससुराल से मायके का सफर टैक्सी में आधे घंटे से अधिक का नहीं था. लेकिन शाम के 4 बजने को आए थे, अनामिका का अब तक कोई फोन नहीं आया.

सासूमां ने उसे फोन किया तो आउट औफ कवरेज एरिया बता रहा था. फिर उस के मायके का नंबर मिलाया तो पता चला कि अनामिका अब तक वहां पहुंची ही नहीं.

सास के पांवों के नीचे से जमीन खिसकने लगी थी. झट से शेखर को फोन कर के इस बारे में बताया.

औफिस में बैठा शेखर भी घबरा गया। वह भी बारबार अनामिका के मोबाइल पर नंबर मिलाने के कोशिश करने लगा. और कुछ देर बाद जब रिंग गई तो…

“अनामिका, तुम ठीक तो हो न? तुम तो मेरे जाने के कुछ ही देर बाद मायके निकल गई थीं? लेकिन वहां पहुंची क्यों नहीं? घर पर मां परेशान हो रही हैं और तुम्हारी मम्मी भी इंतजार कर रही हैं. आखिर हो कहां तुम?” शेखर एक ही सांस में बोल गया.

“मैं अपने घर में हूं,” उधर से आवाज आई.

“लेकिन अभीअभी तुम्हारी मम्मी से मेरी बात हुई तो पता चला तुम वहां पहुंची ही नहीं.”

“मैं ने कहा… मैं अपने घर में हूं,”आशियाना अपार्टमैंट, तीसरा माला, सी-47,” जोर देते हुए अनामिका ने कहा.

“लेकिन वहां क्या कर रही हो तुम?” हैरानपरेशान शेखर ने आश्चर्य से पूछा.

“यहां नए फ्लैट पर चल रहे आखिरी चरण का काम देखने आई हूं.”

“नया फ्लैट? मैं कुछ समझा नहीं… लेकिन यह सब अचानक कैसे?”

“अचानक कुछ नहीं हुआ, शेखर। जब भी रश्मि दीदी सपरिवार हमारे यहां आती हैं, तो मुझे छोटे घर के कारण अपने मायके जाना पड़ता है. और जब मायके ज्यादा दिन ठहर जाती हूं तो मां पूछ बैठती हैं कि बेटी, और कितने दिन रहोगी?

“एक तो पहले से ही वहां भैयाभाभी और उन के बच्चे मां संग रह कर जैसेतैसे अपना गुजारा करती हैं, ऊपर से मैं भी वहां जा कर उन पर बोझ नहीं बनना चाहती.”

और फिर एक कान से दूसरे कान पर फोन लगाते हुए बोली,”औफिस में मेरे साथ जो डिसूजा मैम हैं उन्होंने ने भी 1 साल पहले इसी अपार्टमैंट में 1 फ्लैट खरीदा था.

“मैं ने उन से इस बारे में जानकारी जुटा कर फौर्म भर दिया और हर महीने अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा इस फ्लैट की ईएमआई भरने में लगाने लगी.

“तुम ने भी मेरी सैलरी और उस के खर्च को ले कर कभी कोई हस्तक्षेप नहीं किया, इसलिए इस में तुम्हारा भी बहुत बड़ा योगदान है.”

“अनामिका…अनामिका… प्लीज, ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा मत करो.”

“शर्मिंदा होने का समय गया शेखर… जब मैं किसी सामान की तरह जरूरत के मुताबिक यहां से वहां भेज दी जाती थी. लेकिन आज मैं अपने स्वाभिमान की बदौलत अपने आशियाने में हूं,” कहते हुए अनामिका भावुक हो गई.

Hindi Short Story

जैकी श्रौफ, सुनील शेट्टी और महिमा चौधरी मेंटल हैल्थ अवेयरनेस में एकसाथ

Mental Health Awareness: मुंबई में ‘राइड टू ऐंपावर-मुंबई साइक्लोथोन 2025’ का रविवार को एमएमआरडीए ग्राउंड, बांद्रा कुर्ला कौंप्लेक्स (बीकेसी) में सफलतापूर्वक समापन हुआ. लोहे फाउंडेशन ने स्पोर्ट्स अथारिटी औफ इंडिया (एसएआई) के सहयोग से एफाईटी इंडिया मूवमेंट के तहत इस आयोजन को सफल बनाया. 6,000 से अधिक साइकिल चालकों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया, जिन में शौकिया साइकिल चालक, पेशेवर एथलीट, परिवार और पैरा एथलीट सभी शामिल थे.

सशक्त प्रदर्शन

यह आयोजन मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता के समर्थन में एकजुटता का एक सशक्त प्रदर्शन रहा. बौलीवुड के जानेमाने अभिनेता और फिटनैस आइकन सुनील शेट्टी, वरिष्ठ अभिनेता जैकी श्रौफ, श्रीकृष्ण प्रकाश (आईपीएस), एडीजी फोर्स वन, प्लानिंग ऐंड कोआर्डिनेटर और अभिनेत्री महिमा चौधरी ने इस साइक्लोथोन को हरी झंडी दिखाई.

इस प्रेरणादायक शुरुआत के साथ ही शहर की सब से बड़ी सामुदायिक राइड ने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई.

भारत में बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों, खासकर युवाओं में, के बीच ‘राइड टू ऐंपावर मुंबई साइक्लोथोन’ जैसी पहल व्यापक जागरूकता फैलाने में अहम है.

खुली चर्चा

नीरजा बिरला द्वारा स्थापित भारत की अग्रणी मानसिक स्वास्थ्य संस्था एम-पावर ने इस आयोजन में भावनात्मक कल्याण पर खुली चर्चा को प्रोत्साहित किया. उन्होंने मानसिक बीमारियों से जुड़े कलंक को मिटाने और समय पर मदद लेने के महत्त्व पर जोर दिया.

एम-पावर ने इस ऊर्जाभरे सामुदायिक फिटनैस इवेंट के माध्यम से यह संदेश दृढ़ किया कि मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य जितनी ही महत्त्वपूर्ण है. संगठन का मानना है कि सामूहिक सामाजिक प्रयास वास्तविकता में सार्थक बदलाव ला सकते हैं. इस पहल ने जनता को मानसिक कल्याण के प्रति सक्रिय योगदान देने के लिए प्रेरित किया.

प्रमुख आकर्षण

इस कार्यक्रम का एक प्रमुख आकर्षण रहा इंडिया पोस्ट द्वारा जारी किया गया ‘राइड टू ऐंपावर मुंबई साइक्लोथोन’ का विशेष स्मारक कैंसिलेशन स्टैंप.

सुनील शेट्टी, महिमा चौधरी और इंडिया पोस्ट की नौर्थ डिविजन की प्रमुख दीपशिखा बिरला ने इस का अनावरण किया. यह विशेष कैंसिलेशन सिर्फ एक दिन के लिए जीपीओ, फोर्ट पर उपलब्ध था, जिस ने मानसिक स्वास्थ्य में इस आयोजन के योगदान को आधिकारिक मान्यता दी.

मुख्य श्रेणियां

साइक्लोथोन में 5 मुख्य श्रेणियां थीं : 100 किमी, 50 किमी, 25 किमी, 10 किमी और एक विशेष व्हीलचेयर राइड. सभी प्रतिभागियों को कस्टम साइक्लिंग जर्सी, फिनिशर मैडल, ई-टाइमिंग सर्टिफिकेट और व्यक्तिगत तसवीरें मिलीं। मार्ग पर हाइड्रेशन और मैडिकल सहायता की पूरी व्यवस्था थी.

आयोजन स्थल पर मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कियोस्क, ऊर्जावान जुंबा सत्र, लाइव म्यूजिक और स्वस्थ नाश्ता जोन जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध थीं.

इस के अतिरिक्त लोकप्रिय चैरिटी बीआईबी पहल ने एम-पावर के मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए महत्त्वपूर्ण धन जुटाने में मदद की, जिस से इस नेक कार्य को और बल मिला.

पुरस्कार व सम्मान

पुरस्कार वितरण समारोह में अभिनेत्री निकिता दत्ता सहित कई जानीमानी हस्तियों ने विभिन्न श्रेणियों के विजेताओं को सम्मानित किया. इस दौरान ‘अपने मन के लिए चलें. अपने शहर के लिए चलें. बदलाव के लिए चलें’ के प्रेरणादायक नारे ने सभी को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने और बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया.

आदित्य बिड़ला ऐजुकेशन ट्रस्ट द्वारा समर्थित एम-पावर भारत की एक अग्रणी समग्र मानसिक स्वास्थ्य पहल है. नीरजा बिरला, जो एक विश्वस्तर पर मान्यताप्राप्त मानसिक स्वास्थ्य समर्थक है, ने इस की स्थापना की है. एमपावर का लक्ष्य एक ऐसा वातावरण बनाना है जहां मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे लोग और उन के देखभाल करने वाले बिना किसी भेदभाव या कलंक के पेशेवर सहायता, स्वीकृति और देखभाल प्राप्त कर सकें. बहु-विषयक हस्तक्षेपों और समग्र उपचारों के माध्यम से एम-पावर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने, इस से जुड़े सामाजिक कलंक को खत्म करने और पुनर्वास में मदद करने के लिए लगातार प्रतिबद्ध है.

वर्तमान में इस की क्लिनिकल सेवाएं मुंबई, बैंगलुरु, गोवा और पिलानी जैसे शहरों में उपलब्ध हैं.

Mental Health Awareness

Bridal Makeup में क्या है स्किन फर्स्ट ट्रेंड

Bridal Makeup: ब्राइडल मेकअप से पहले स्किन को तैयार करने का मतलब होता है कि अगर स्किन में किसी भी तरह की कोई समस्या है, अनइवन स्किनटोन है, डल, रूखी, अपनी चमक खो चुकी है तो उसे मेकअप से पहले तैयार कर लें ताकि वह चमकदार हो जाए और मेकअप स्किन पर खिल कर आए.

अपनी स्किन का टाइप पता करें

पहचानें की आप की औयल स्किन है, कौंबिनेशन है या सेंसिटिव स्किन. अपने स्किन टाइप को समझने से आप अपनी त्वचा के मुताबिक सही स्किन केयर प्रोडक्ट्स खरीद सकते हैं. औयली स्किन के लिए अलग मेकअप प्रोडक्ट्स आते हैं और मिक्स स्किन के लिए अलग. इसलिए उसी के अनुसार प्रोडक्ट खरीदें.

स्किन को क्लीन करें

स्किन को क्लीन करने के लिए जो आप को सूट करता हो वो क्लींजर यूज करें और स्किन को क्लीन करें. इस से धूल, मिटटी और गंदगी निकल जाएगी.

रैगुलर ऐक्सफोलिएट करें

ऐक्सफोलिएशन की मदद से डेड स्किन सेल्स साफ होते हैं और स्किन स्मूद हो जाती है. इस के आलावा कौंप्लेक्स भी ब्राइट होता है. यह स्टेप मेकअप वाले दिन से 2-3 दिन पहले करें, न कि ठीक मेकअप से पहले, क्योंकि इस से स्किन लाल हो सकती है. एक हलका फेस स्क्रब या ऐक्सफोलिएंट का इस्तेमाल करें.

ऐक्ने या हाइपरपिगमेंटेशन  की समस्या है तो क्या करें

अगर आप को ऐक्ने की दिक्कत है तो सेलिसिलिक एसिड या बेंजौयल पेराक्साइड युक्त प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें. हाइपरपिग्मेंटेशन या डार्क स्पौट्स के लिए विटामिन सी या निआसिनामिड युक्त प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें जिस से स्किन टोन ईवन हो सके.

टोनिंग

टोनिंग करने से स्किन का पीएच संतुलन बना रहता है और यह रोमछिद्रों को भी कसने का काम करता है. इस के लिए एक रुई के फाहे पर अलकोहल-फ्री टोनर ले कर चेहरे पर हलके से थपथपाएं. इसे सूखने दें.

फेस सीरम

फेस सीरम कभी भी सीधे चेहरे पर नहीं लगाना चाहिए बल्कि सब से पहले इस की कुछ बूंदें हाथों में ले कर और मसल कर ही फेस पर लगाना चाहिए. ऐसा करने से फेस सीरम आसानी से स्किन के अंदर तक चला जाता है. अपनी स्किन की जरूरतों के हिसाब से (जैसे ह्यलूरोनिक एसिड, विटामिन सी या नियासिनमाइड युक्त) फेशियल सीरम की कुछ बूंदें लें और चेहरे पर मालिश करें.

स्किन को हाइड्रेट और मोइस्चराइज करें

क्लींजिंग करने के बाद हाइड्रेटिंग टोनर का इस्तेमाल करें, जिस से स्किन का पीएच बैलेंस वापस लौट सके. इस के बाद मोइस्चराइजर लगाएं जो आप की स्किन को सूट करता हो और अपनी स्किन को हाइड्रेटेड रखें. कई बार फाउंडेशन लगाने से चेहरा बहुत ड्राई हो जाता है, इसलिए मोइस्चराइज लगाना सही रहता है क्योंकि यह स्किन में नमी को बनाए रखता है ताकि फाउंडेशन केक जैसा न लगे. मोइस्चराइजर को पूरे चेहरे और गरदन पर लगाएं. इसे 5-10 मिनट तक स्किन में समाने दें. इस के बाद ही फाउंडेशन का उपयोग करें.

सीटीएम करें

सीटीएम यानि क्लींजिंग, टोनिंग और मोइस्चराइजिंग, मेकअप शुरू करने से पहले इस प्रोसेस को जरूर कर लें. पूरे चेहरे में अच्छे से मोइस्चराइजर की लेयर जरूर लगाएं. इस से स्किन में नमी बनी रहेगी और मेकअप करते समय स्किन ड्राई नहीं होगी. इस के बाद पूरे फेस पर प्राइमर को जरूर लगाएं. प्राइमर स्किन और मेकअप के बीच एक बैरियर का काम करता है. यह मेकअप से होने वाले किसी भी तरह के दुष्प्रभाव से चेहरे को बचाता है और साथ ही साथ प्राइमर लगाने के बाद चेहरे के ओपन पोर्स को यह ब्लर आउट कर देता है जिस से मेकअप के लिए स्किन एक कैनवस की तरह तैयार हो जाता है. इतना ही नहीं, प्राइमर लगाने से मेकअप देर तक चेहरे पर टिका रहता है.

लौंग लास्टिंग मेकअप चुनें

शादी का दिन लंबा होता है और दुलहन को घंटों तक मेकअप के साथ रहना पड़ता है. ऐसे में लौंग-लास्टिंग और वाटरप्रूफ प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें. खासकर बेस मेकअप और आई मेकअप लंबे समय तक परफैक्ट दिखना चाहिए. इस से पसीना, रोशनी या लगातार मूवमेंट के बावजूद मेकअप नहीं बिगड़ता.

अंडर आई क्रीम

चेहरे के साथसाथ आंखों के आसपास की त्वचा का भी खयाल रखना बेहद जरूरी होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि चेहरे की त्वचा के मुकाबले अंडर आई स्किन का पीएच लेवल अलगअलग होता है और अंडर आई एरिया काफी सेंसिटिव भी होता है.

प्राइमर

मेकअप लगाने से पहले एक प्राइमर का उपयोग करें, जो एक बैरियर का काम करता है, रोमछिद्रों को भरता है और मेकअप को लंबे समय तक टिकाए रखता है.

होंठों की देखभाल

फटे होंठों से बचने के लिए एक पौष्टिक लिपबाम लगाएं. शिया बटर, कोको बटर या बीसवैक्स जैसे इंग्रीडिएंट्स वाला लिपबाम इस्तेमाल करें. लिपबाम को हर रोज अच्छी तरह से लगाएं खासतौर से जब सोने जा रहे हों तब जरूर लगाएं. इस से होंठ हाइड्रेटेड रहेंगे.

लिपबाम या लिपस्टिक एसपीएफ से भरपूर वाली ही लगाएं, जो होंठों को सूरज की हार्मफुल यूवी किरणों से बचा सके.

Bridal Makeup

Family Kahani: बड़ी आपा- नसीम के किस बात से घर में कोहराम मचा

Family Kahani: तार पर नजर पड़ते ही नसीम बौखला गया. उस का हृदय बड़ी तीव्रता से धड़का. लगा, हलक से बाहर आ जाएगा. किसी तरह उस ने अपनेआप को संभाला और तार ले कर घर के अंदर बढ़ गया.

घर में सुरैया और अम्मी ने खाने से निवृत्त हो कर अभी हाथ ही धोए थे कि नसीम के लटके मुंह को देख कर उस की अम्मी पूछ बैठीं, ‘‘क्या बात है, नसीम, दफ्तर नहीं गए?’’

‘‘अम्मी..’’ कहने के साथ ही नसीम की आंखें भीग गईं, ‘‘असद भाई कल सुबह दिन का दौरा पड़ने से चल बसे. यह तार आया है.’’

नसीम का इतना कहना था कि घर में कुहराम मच गया. उस की बीवी सुरैया और अम्मी बिलखबिलख कर रो पड़ीं. दुख तो नसीम को भी बहुत था, लेकिन किसी तरह उस ने अपनेआप को संभाला तथा सुरैया और अम्मी को जल्दी से तैयार होने को कह कर अपने दफ्तर को चल दिया. दफ्तर से उस ने 3 दिन की छुट्टी ली और घर लौट आया. तब तक सुरैया और अम्मी तैयार हो चुकी थीं.

वह रिकशा ले आया और अम्मी तथा सुरैया को ले कर बस अड्डे को रवाना हो गया.

7 वर्ष पूर्व शमीम आपा की शादी असद भाई के साथ हुई थी. असद भाई अपने घर में सब से बड़े थे. घर का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर था. शमीम आपा को पा कर असद भाई अपने सारे गम भूल गए. शमीम आपा ने अपनी बुद्धिमानी से घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली थी और घर की चिंता से उन्हें पूरी तरह मुक्त कर दिया था.

सीधे और सरल स्वभाव के असद भाई रोजे, नमाज के बड़े कायल थे. इस के अतिरिक्त सभी धार्मिक कार्यों में रुचि लेते थे. हर जुम्मेरात को मजार पर जाना, अगरबत्ती सुलगाना उन का पक्का नियम था. उन के उसी नियम के कारण शमीम आपा को भी उन के कार्यों में शामिल होना पड़ता था. धीरेधीरे यही आदत उन के जीवन का अंग बन गई थी.

यों तो असद भाई और शमीम आपा के जीवन में कोई अभाव नहीं था, लेकिन शादी के 7 वर्ष बीत जाने पर भी उन के कोई संतान पैदा नहीं हुई थी. इस के कारण कभीकभी वे बेहद दुखी हो जाते थे. इस का कारण हमेशा ही वह मियां, फकीरों को बताते थे. कहते थे, फलां फकीर या मियां उन से नाराज हैं. इसी कारण उन्हें औलाद का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ है.

उधर उन के दोनों छोटे भाइयों के यहां 3-3 बच्चे थे. शमीम आपा ने जोर डाल कर डाक्टर को दिखाया था. डाक्टर से आधाअधूरा इलाज भी करवाया था. लेकिन लाभ होने से पहले ही छोड़ दिया गया, क्योंकि उन के अंदर भी यह अंधविश्वास बैठ गया था कि उन से कोई मियां नाराज हैं.

यही कारण था जब नसीम की शादी की बात आई तो उस की अम्मां ने पूरी होशियारी बरती थी. शमीम आपा तो सिर्फ मजहबी तालीम हासिल करने वाली लड़की को ही बहू बनाना चाहती थीं. लेकिन नसीम और उस की अम्मी की जिद के कारण ही सुरैया के साथ नसीम का निकाह हुआ था.

सुरैया इंटर तक शिक्षा प्राप्त सुलझे विचारों की लड़की थी. अपने छोटे से घर को उस ने आते ही व्यवस्थित कर लिया था.

अपनी इच्छा पूरी न होने के कारण बड़ी आपा नाराज हो कर अपनी ससुराल वापस लौट गई थीं तथा बहुत कोशिशों के बाद भी नसीम की शादी में शरीक नहीं हुई थीं.

पिछले 2 वर्षों से उन्होंने अपने मायके की सूरत भी नहीं देखी थी. सुरैया की सूरत से भी वह नफरत करती थीं.

अपने भाई और अम्मी को सामने देख कर शमीम आपा के धैर्य का बांध टूट गया. वह उन से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ीं. किसी तरह अम्मी ने समझाया, ‘‘बेटी, सब्र से काम लो. जो होना था सो हो गया. अब रोने से असद तो वापस आ नहीं सकता.’’

शमीम आपा की आंखें रोने के कारण सूज गई थीं. कई बार गम से वह बेहोश हो जाती थीं. सुरैया साए की भांति उन के साथ रहती थी. वह उन्हें दिलासा देती रहती.

तीसरे दिन नसीम सुरैया को ले कर लौट आया था. अम्मी शमीम आपा के पास ही रुक गई थीं. अभी उन्हें सहारे की आवश्यकता थी. नसीम चाहता था शमीम आपा को अपने साथ घर ले जाए. लेकिन अभी इद्धत (40 दिन तक घर से बाहर न निकलना) होना बाकी था.

घर पहुंचते ही नसीम गहरी सोच में डूब गया था. असद भाई की असमय मृत्यु ने उसे विचलित कर दिया था. उसे मालूम था, असद भाई की मृत्यु के बाद उन के भाई शमीम आपा को अपने साथ रखने से रहे. फिर वह स्वयं भी शमीम आपा को उन लोगों की मेहरबानी पर नहीं छोड़ना चाहता था.

उसे उदास और खोया देख कर सुरैया पूछ बैठी, ‘‘आप कुछ परेशान लगते हैं. मुझे बताइए, आखिर बात

क्या है?’’

‘‘आपा के बारे में सोच रहा था, सुरैया,’’ नसीम बोला, ‘‘भरी जवानी में वह विधवा हो गई हैं. शादी का सुख भी उन्हें न मिल सका.’’

‘‘हां, आप ठीक कहते हैं,’’ सुरैया ने एक गहरी सांस ली. फिर बोली, ‘‘लेकिन आप अधिक परेशान न हों. शमीम आपा को हम अपने साथ ही रखेंगे.’’

‘‘सुरैया,’’ नसीम ने आश्चर्य से कहा, ‘‘तुम्हें तो मालूम है, आपा तुम्हें पसंद नहीं करतीं.’’

‘‘तो क्या हुआ? मैं कोशिश करूंगी तो आपा मुझे पसंद करने लगेंगी.’’ सुरैया मुसकराई.

नसीम प्रसन्नता से सुरैया को देखता रह गया. उसे विश्वास हो गया, सुरैया शमीम आपा को जीने का सलीका सिखा देगी. एक बोझ सा उस ने अपने ऊपर से उतरता हुआ महसूस किया.

सवा महीने बाद शमीम आपा अम्मी के साथ अपने भाई के पास आ गईं. सुरैया ने उन्हें हाथोंहाथ लिया. उसे अपनी ननद से पूरी हमदर्दी थी. अब शमीम आपा हमेशा खामोश, उदास, परेशान सी रहती थीं. उन के होंठों की हंसी जैसे हमेशा के लिए मुरझा गई थी. सुरैया हमेशा उन का दिल बहलाने की कोशिश करती रहती थी.

एक दिन अचानक रात को चीखपुकार सुन कर नसीम और सुरैया की आंख खुल गई. कमरे से बाहर आ कर उन्होंने देखा तो चौंक पड़े. शमीम आपा अपने कमरे में बिस्तर पर पड़ी गहरीगहरी सांसें ले रही थीं. उन की आंखें बुरी तरह सुर्ख हो रही थीं. उन के पास ही घबराई हुई अम्मी खड़ी थीं.

‘‘क्या हुआ, अम्मी? क्या बात है?’’ नसीम ने पूछा.

‘‘सोतेसोते अचानक चीखने लगी, ‘अरे, मुझे बचाओ…मार डालेंगे…मार डालेंगे.’’ अम्मी ने बताया.

नसीम की समझ में कुछ नहीं आया. उस ने शमीम आपा से कुछ पूछना चाहा लेकिन वह कुछ भी बताने में असमर्थ थीं. उस रात फिर घर के किसी भी व्यक्ति को एक पल भी नींद नहीं आई.

सुबह को जब शमीम आपा की तबीयत कुछ ठीक दिखाई दी तो नसीम ने पूछा, ‘‘रात क्या हुआ था, आपा?’’

आपा ने एक गहरी सांस ली और बोली, ‘‘भैया, रात स्वप्न में तुम्हारे दूल्हा भाई मेरा गला दबा रहे थे. कह रहे थे, ‘तू सब मियां, फकीरों को भूल गई. किसी भी मजार पर नहीं जाती. हर जुम्मेरात को मजार पर नहीं जाएगी तो मैं तेरा जीना हराम कर दूंगा.’’’

नसीम ने एक गहरी सांस ली. वह समझ गया, ये सब बीती बातें हैं. इसी कारण उन्हें यह सब स्वप्न में दिखाई दिया.

अगली जुम्मेरात आने से पहले

ही एक रात को शमीम आपा फिर

चीख पड़ीं. पूरी रात वह रोती रहीं. नसीम और सुरैया ने किसी तरह उन्हें चुप कराया.

दिन निकला तो वह बोलीं, ‘‘मैं अब हर जुम्मेरात को मजार पर जाया करूंगी, नहीं तो वह मुझे जान से मार देंगे.’’

नसीम ने उन्हें इजाजत दे दी. उस ने अपने मन में सोचा, 2-4 बार मजार पर जाएंगी और इन के दिमाग से भ्रम निकल जाएगा तो वह आपा को समझा देगा. वह इन बातों को बिलकुल पसंद नहीं करता था. अंधविश्वास से उसे बुरी तरह चिढ़ थी.

अब आपा ने हर जुम्मेरात को मजार पर जाना शुरू कर दिया था. हर जुम्मेरात को आपा अच्छेअच्छे पकवान बनातीं और मजार पर जा कर नियाज दिलातीं.

नसीम चुपचाप खामोशी से सब कुछ देखता रहता. लेकिन 15 दिन में ही जब उस का वेतन इन खर्चों में समाप्त हो गया तो उसे अपने पैरों तले की जमीन खिसकती हुई सी प्रतीत हुई.

उस ने आपा को समझाना चाहा तो आपा भड़क उठीं. सारे दिन वह रोती रहीं. आपा का रोना अम्मी से न देखा गया तो वह भी नसीम को बुराभला कहने लगीं.

नसीम का परेशानी से बुरा हाल था. लेकिन वह किसी तरह सब्र कर रहा था. किसी तरह उस ने आपा को समझाया, ‘‘आपाजान, आप ही सोचो, एक मामूली सा क्लर्क हूं. मैं कोई बड़ा आदमी तो हूं नहीं, जो इस तरह से खर्च सहन करूं. लेकिन फिर भी आप थोड़ा सोचसमझ कर खर्च करें तो अच्छा होगा.’’

शमीम आपा पर उस के समझाने का इतना असर अवश्य हुआ कि खर्च में उन्होंने कुछ कमी कर दी, लेकिन मजार पर जाना कम नहीं किया.

नसीम इधर बेहद परेशान रहने लगा था. उस का बचत किया हुआ पैसा धीरेधीरे समाप्त होता जा रहा था. उधर सुरैया अपने पहले बच्चे को जन्म देने वाली थी. उसे अस्पताल में भरती कराना था, जिस के लिए रुपयों की आवश्यकता थी.

मानसिक परेशानियों के कारण एक  दिन उस की साइकिल स्रद्ध स्कूटर से टक्कर होतेहोते बची. वह तो संयोग की बात थी कि उस की साइकिल स्कूटर की टक्कर खा कर स्कूटर के आगे आ कर गिरने के स्थान पर विपरीत दिशा में गिरी जिस के कारण नसीम के हाथपैर में मामूली सी ही चोटें आईं.

सुरैया तो बेहद घबरा गई थी. शमीम आपा ने सुना तो बोलीं, ‘‘भैया, यह सब बुजुर्गों की बेअदबी के कारण हुआ है. तुम उन की अवमानना जो कर रहे थे.’’

‘‘ऐसी बातें तो मत करो, आपा,’’ सुरैया चीख पड़ी थी, ‘‘अपने ही भाई का बुरा चाहती हो? खुदा न करे उन्हें कुछ हो.’’

सुरैया की बातें सुन कर शमीम आपा रोने लगीं, ‘‘मैं तो हूं ही बुरी. मैं तो अपने भाई का बुरा ही चाहती हूं.’’

बड़ी मुश्किल से अम्मी और नसीम ने आपा को चुप कराया.

सुरैया नसीम की परेशानी को समझ गई थी. उस ने मन ही मन शमीम आपा को सही राह पर लाने की सोच ली. कई दिन तक वह योजनाएं बनाती रही. एक दिन उस के दिमाग में एक तरकीब आ ही गई.

उस रात को जब सब सो रहे थे तो अचानक सुरैया चीख पड़ी, ‘‘अरे बचाओ, मुझे भाई मार डालेंगे. अरे मेरा गला दबा रहे हैं.’’

घबरा कर शमीम आपा और अम्मी सुरैया के कमरे में पहुंचीं तो देखा सुरैया बुरी तरह चीख रही है. उस के बाल बिखरे हुए थे. वह किसी तरह संभल नहीं रही थी, हालांकि नसीम उसे बिस्तर पर बैठाने की कोशिश कर रहा था.

अचानक नसीम का बंधन ढीला पड़ गया तो सुरैया चीखती हुई शमीम आपा की ओर बढ़ी, ‘‘मैं तुझे जान से मार दूंगा,’’ अब वह पुरुषों की भाषा में बोलने लगी थी, ‘‘अरे, खापी कर मोटी भैंस हो रही है. तुझ से एक दिन यह भी न हुआ कि पांचों वक्त की नमाज पढ़े, रमजान रखे.’’

शमीम आपा का चेहरा भय से पीला पड़ गया था. वह हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘आगे से मैं ऐसा ही करूंगी, जैसा आप कहते हैं.’’

‘‘करेगी कैसे नहीं,’’ सुरैया चीखी, ‘‘मैं तेरा जीना हराम कर दूंगा. और सुन, अब तुझे मजार पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं. तेरे मजार पर जाने से बेपरदगी होती है जो मुझे स्वीकार नहीं.’’

किसी तरह अम्मी और नसीम ने सुरैया को काबू में किया. पूरी रात वह चीखतीचिल्लाती रही. कभी हंसने लगती तो कभी रोने लगती.

दिन निकलने पर बड़ी मुश्किल से सुरैया सो सकी. दोपहर बाद वह सो कर उठी. उस दिन घर का सारा कार्य शमीम आपा को करना पड़ा. सो कर उठने के बाद सुरैया पहले की तरह ही सामान्य थी. उस से अम्मी ने पूछा, ‘‘रात तुझे क्या हो गया था?’’

लेकिन उस ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. वह बोली, ‘‘मैं तो आराम से सोती रही हूं.’’

इस से शमीम आपा और अम्मी को विश्वास हो गया कि रात सुरैया पर असद भाई की रूह का असर था. उस दिन से शमीम आपा बेहद घबराईघबराई सी रहने लगीं. उन्होंने 10 दिन से पांचों वक्त की नमाज पढ़नी शुरू कर दी. एक दिन सुरैया ने चाहा कि वह उन्हें मजार पर ले जाए, लेकिन आपा इतनी बुरी तरह डरी हुई थीं कि उन्होंने मजार पर जाने से इनकार कर दिया.

इस तरह पूरे 6 महीने गुजर गए. इस बीच सुरैया ने एक सुंदर से शिशु को जन्म दिया. शमीम आपा में इस बीच काफी परिवर्तन आ गया था. अब वह पहले के समान उदास और परेशान नहीं रहती थीं. अब उन के चेहरे पर हमेशा मुसकराहट सी रहती थी. मजार आदि पर जाना वह बिलकुल भूल गई थीं.

एक दिन नसीम दफ्तर से लौटा तो सुरैया बोली, ‘‘एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानेंगे आप?’’

‘‘हां, बोलो, क्या बात है?’’ नसीम ने कहा.

‘‘मैं ने सोचा है कि शमीम आपा का घर बस जाए तो अच्छा होगा.’’

‘‘क्या कह रही हो, सुरैया?’’ नसीम चौंक पड़ा, ‘‘जमाना क्या कहेगा? लोग कहेंगे एक विधवा बहन का बोझ भी नहीं उठाया जा सकता.’’

‘‘हमें लोगों से कुछ लेनादेना नहीं है. हमें आपा की खुशियां देखनी हैं. औरत मर्द के बिना अधूरी है,’’ सुरैया बोली.

सुरैया की बात सुन कर नसीम गहरी सोच में डूब गया. काफी सोचनेसमझने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सुरैया की बात सही है. उस ने उसी दिन से आपा के लिए शौहर की तलाश शुरू कर दी.

शीघ्र ही उसे लतीफ मियां जैसे नेक और शरीफ व्यक्ति का पता मिल गया. लतीफ मियां एक स्कूल में अध्यापक थे. उन की पत्नी का कई वर्ष पूर्व देहांत हो गया था. एक छोटी सी बच्ची थी. नसीम ने तुरंत रिश्ता पक्का कर दिया. पहले तो शमीम आपा ने थोड़ा इनकार किया, लेकिन फिर निकाह के लिए राजी हो गईं.

ईद के महीने में नसीम ने शमीम आपा और लतीफ मियां का निकाह कर दिया. जब शमीम आपा की विदाई का समय आया तो सुरैया उन के गले लग गई और बोली, ‘‘आपाजान, मैं आप को किसी धोखे में रखना नहीं चाहती. उस रात जब मुझ पर असर हुआ था, वह सब एक नाटक था. सिर्फ आप का अंधविश्वास समाप्त करने के लिए मुझे ऐसा करना पड़ा. मुझे उम्मीद है, मेरी इस गलती को आप माफ कर देंगी.’’

‘‘भाभी, तुम ने गलती कहां की थी?’’ शमीम आपा बोलीं, ‘‘तुम ने जो कुछ भी किया मेरे भले के लिए किया. अगर तुम ऐसा न करतीं तो मैं आज भी उन्हीं अंधविश्वासों से लिपटी होती.’’

सुरैया मुसकरा पड़ी. अम्मी और सुरैया ने हंस कर बड़ी आपा को विदा कर दिया.

शमीम आपा का निकाह हुए 2 वर्ष बीत गए थे. आपा अपने जीवन से हर तरह से संतुष्ट थीं. लतीफ मियां ने उन्हें कभी कोई शिकायत का अवसर नहीं दिया था. जब भी आपा का दिल घबराता था वह अपनी अम्मी और भाभी से मिलने उन के घर आ जाती थीं. आपा को सुखी देख कर नसीम और अम्मी को बेहद प्रसन्नता होती. सुरैया तो शमीम आपा को देख कर फूल के समान खिल जाती थी.

एक दिन नसीम दफ्तर से लौटा तो बेहद प्रसन्न था. आते ही अपनी अम्मी और सुरैया से बोला, ‘‘अम्मीजान, एक खुशखबरी, शमीम आपा के घर चांद सा बेटा आया है.’’

‘‘सच,’’ दोनों ने आश्चर्यमिश्रित खुशी के साथ पूछा.

‘‘हां, अम्मीजान,’’ नसीम बोला, ‘‘आज लतीफ भाई दफ्तर में आए थे और मुझे यह खबर दे गए.’’

उसी समय तीनों तैयार हो कर शमीम आपा को बधाई देने उन के घर जा पहुंचे.

सुरैया अधिक देर अपने कुतूहल को न छिपा सकी. पूछ ही बैठी, ‘‘आपाजान, आप तो कहती थीं आप से मियां नाराज हैं, इसी कारण आप को संतान नहीं होती. लेकिन यहां आ कर तो सब उलटा ही हो गया. क्या मियां आप से खुश हो गए?’’

नजदीक ही बैठे लतीफ मियां ने सुरैया की बात पर एक ठहाका लगाया और बोले, ‘‘सुरैया, यह सब इन के अंधविश्वास का कारण था. असद मियां को एक लंबे इलाज की आवश्यकता थी. लेकिन वह अपने अंधविश्वास के कारण यह सब नहीं कर सके. उन्हें विश्वास था वह नियाज दिलवा कर, मजारों पर जा कर अपने लिए संतान मांग लेंगे. लेकिन क्या मजारों से भी संतानें मिली हैं?’’

उन्होंने शमीम आपा की तरफ देखा तो उन्होंने शरमा कर मुंह दूसरी ओर कर लिया.

Family Kahani

Short Story: नीली झील में गुलाबी कमल- ईशानी ने कौनसा प्रस्ताव रखा था

Short Story: ईशानी अपनी दीदी शर्मिला से बहुत प्यार करती थी. शर्मिला भी हमेशा अपनी ममता उस पर लुटाती रहती थी, तभी तो वह जबतब हमारे घर आ जाया करती थी. जब मैं ने शुरूशुरू में शर्मिला को देने के लिए एक पत्र उस के हाथों में सौंपा था, तब वह मात्र 12 वर्ष की थी. वह लापरवाह सी साइकिल द्वारा इधरउधर बेरोकटोक आयाजाया करती थी. मेरा और शर्मिला का गठबंधन कराने में ईशानी का ही हाथ था. जाति, बिरादरी से भरे शहर में हम दोनों छिपछिप कर मिलते रहे, लेकिन किसी को पता ही न चला. ईशानी ने एक दिन कहा, ‘‘तुम दोनों में क्या गुटरगूं चल रही है… मां को बता दूं?’’

उस की चंचल आंखों ने मानो हम दोनों को चौराहे पर ला खड़ा कर दिया. किसी तरह शर्मिला ने अंधेरे में तीर मार कर मामला संभाला, ‘‘मैं भी मां को बता दूंगी कि तू टैस्ट में फेल हो गई है.’’ वह सहम गई और विवाह तक उस ने हम लोगों की मुहब्बत को राज ही रहने दिया.

बड़ी बहन होने के नाते शर्मिला ने ईशानी की टीचर से मिल कर उस के इतिहासभूगोल के अंक बढ़वाए और पास करवा दिय?. शर्मिला ही ईशानी की देखरेख करती, सो, दोनों में मांबेटी जैसा ममतापूर्ण स्नेह भी पनपता रहा. अपनी सहेलियों से मजाक करतेकरते ईशानी दावा कर दिया करती थी, ‘मैं शर्मिला दीदी को ‘मां’ कह सकती हूं.’ यह बात मेरे दोस्त की बहन ने बताई थी, जो ईशानी की सहेली थी. समय ने करवट ली. एक दिन बाजार से लौटते समय ईशानी की मां को एक तीव्र गति से आती हुई कार ने धक्का दे दिया. उन्हें अस्पताल ले जाया गया, परंतु बिना कुछ कहे, बताए वे संसार से विदा हो गईं. ईशानी के बड़े भाई प्रशांत का इंजीनियरिंग का अंतिम वर्ष था. वह किशोरी अपने बड़े भैया को समझाती रही, तसल्ली देती रही, जैसे परिवार में वह सब से बड़ी हो.

उस की मां ने अपने पति के रहते हुए ही तीनों बच्चों में संपत्ति का बंटवारा करवा लिया था. इस से उन लोगों के न रहने पर भी आपस में मधुर संबंध बने रहे. मैं परिवार का बड़ा बेटा था. मुझ से छोटी 2 बहनें सुधा, सीमा हाई स्कूल और इंटर बोर्ड की तैयारी कर रही थीं. मैं बैंक में नौकरी करता था. पिता बचपन में ही चल बसे थे. मां ने अपनेआप को अकेलेपन से बचाने के लिए एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने का काम ले लिया था. कुल मिला कर जीवन आराम से चल रहा था.

एक दिन ईशानी बोली, ‘‘होने वाले जीजाजी, अब आप लोग जल्दी से शादी कर लीजिए.’’

मैं ने पूछा, ‘‘ऐसा क्यों कह रही हो… क्या भैया ने कुछ कह दिया है.’’

‘‘नहीं,’’ वह बोली, ‘‘बात यह है कि कल मामाजी आए थे. भैया ने उन से दीदी के लिए लड़का ढूंढ़ने को बोला है.’’

‘‘तो क्या हुआ, हम तुझ से शादी कर लेंगे.’’ यह सुन कर वह ऐसे मुसकराई जैसे मुझे बच्चा समझ रही हो. मैं ने झेंपते हुए उस से कहा, ‘‘फिर क्या करें? मेरे घर में तो सब मान जाएंगे… हां, तुम्हारे भैया…’’

‘‘उन को मैं मनाऊंगी,’’ वह चुटकी बजाते हुए हंसती हुई चली गई.

पता नहीं उस ने भैया को कौन सी घुट्टी पिलाई कि वे एक बार में ही हम लोगों का विवाह करने को राजी हो गए.

ईशानी हमारे यहां आतीजाती रहती थी और भैया के समाचार देती रहती थी. भैया इंजीनियर के पद पर नियुक्त हुए तो उस दिन वह बहुत खुश हुई और आ कर मुझ से लिपट गई. फिर झेंपती हुई अपनी दीदी के पास चली गई. हाई स्कूल का फार्म भरते समय ईशानी ने अभिभावक के स्थान पर भैया का नाम न लिख कर मेरा लिखा था. तब मैं ने उस से कहा, ‘‘ईशानी, गलती से तुम ने यहां मेरा नाम लिख दिया है.’’ ‘‘वाह जीजाजी, आप तो अपुन के माईबाप हो, मैं ने तो समझबूझ कर ही आप का नाम लिखा है,’’ कहते हुए वह खिलखिला पड़ी थी.

मेरे पिता बनने का समाचार भी ईशानी ने ही मुझे दिया था. पर मैं ने इस बात को सामान्यतौर पर ही लिया था.

‘‘जीजाजी, आज हम सब इस खुशी में आइसक्रीम खाएंगे,’’ वह चहक रही थी.

शर्मिला भी बोली, ‘‘सच तो है, चलिए…आज सब लोग आइसक्रीम खाएंगे.’’

‘‘ठीक है, आइसक्रीम खिला देंगे पर मैं तो इतनी बड़ी घोड़ी का बाप पहले से ही बना दिया गया हूं. तब तो किसी ने कुछ खिलाने की बात नहीं की,’’ मैं ने ईशानी की ओर देख कर कहा.

मेरी बात पर वह जोर से हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘बगल में खड़ी हो जाऊं तो आधी घरवाली लगूंगी और उंगली पकड़ लूं तो…’’

शर्मिला ने मीठी झिड़की दी, ‘‘चल हट, यह मुंह और मसूर की दाल…’’

मेरी बहन सुधा के विवाह में उस की विदाई पर ईशानी मुझे सांत्वना दे रही थी, ‘‘बेटियां तो पराए घर जाती ही हैं.’’

सीमा प्रेमविवाह करना चाहती थी, पर मां इस के लिए तैयार नहीं थीं, तब मैं ईशानी की बात सुन कर दंग रह गया. वह मां को समझा रही थी, ‘‘आप सीमा से नाराज मत होइए. आप के जो भी अरमान रह गए हों, मेरी शादी में पूरे कर लीजिएगा. आप जैसी कहेंगी मैं वैसी ही शादी करूंगी और जिस से कहेंगी, उस से कर लूंगी. बस, अब आप शांत हो जाइए.’’ मैं ने वातावरण को सहज करने के लिए मजाक किया, ‘‘मां कहेंगी, बच्चों के बापू से विवाह कर लो तो करना पड़ेगा…’’

मैं कई वर्षों बाद बेटे का बाप बना था. इस सुख ने मुझे अंदर से पुलकित और पूर्ण बना दिया था. बेटे का नाम रखना था, सो, सब ने अपनेअपने सोचे हुए नाम सुझाए पर निश्चित नहीं हो पा रहा था कि किस के द्वारा सुझाया हुआ नाम रखा जाए. फिर तय किया गया कि सब बारीबारी से बच्चे के कान में नाम का उच्चारण करेंगे, जिस के नाम पर वह जबान खोलेगा उसी का सुझाया गया नाम रखा जाएगा. सब से पहले शर्मिला ने उस का नाम लिया, ‘विराट’, सुधा ने ‘विक्रम’, सीमा ने ‘राघव’, मां ने पुकारा, ‘पुरुषोत्तम’. आखिर में ईशानी की बारी थी. उस ने बच्चे के कान के पास फूंक मारी और ‘अंकित’ कहते ही वह ‘ममम…ऊं…अं…मम…’ गुनगुना उठा.

सब लोग हंस पड़े, तालियां बज उठीं. मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘‘ईशानी, तू ने आधी घरवाली का रोल अदा किया है.’’ य-पि सुधा को यह अच्छा नहीं लगा था, परंतु मां का चेहरा दमक रहा था. वे बोलीं, ‘‘मौसी है न, मां ही होती है, गया भी तो मौसी पर ही है.’’

सुधा से न रहा गया. वह बोली, ‘‘सब कुछ मौसी का ही लिया है, क्या बात है ईशानी?’’ इस मजाक में य-पि सुधा की चिढ़ छिपी थी पर ईशानी झेंप गई थी. उस की झुकीझुकी पलकें मर्यादा से बोझिल थीं, परंतु होंठों की मुसकराहट में गौरव की झलक थी, ‘‘हां, मुझे मौसी होने पर गर्व है.’’

शर्मिला बीमार पड़ी तो पता चला कि उसे कैंसर ने दबोच लिया है. हम सब लोगों के तो जैसे हाथपांव ही फूल गए. एक ईशानी ही सब को दिलासा दे रही थी. अंकित की देखभाल अब ईशानी ही करती थी.

एक दिन ईशानी डाक्टर के सामने रो पड़ी, ‘‘डाक्टर साहब, मेरी दीदी को बचा लीजिए.’’ मृत्यु के पूर्व शर्मिला का चेहरा चमकने लगा था. उस के कष्ट जैसे समाप्त ही हो गए थे. ईशानी यह देख कर खुश थी. लेकिन उसे क्या पता था कि मृत्यु इतनी निकट आ गई है. ईशानी अंकित को पैरों पर बिठा कर झुला रही थी, ‘‘बता, तू मुझे दीदी कहेगा या मौसी? बता न, तू मुझे दीदी कहेगा… हां…’’

मैं आरामकुरसी पर बैठा आंखें मूंदे सोने की चेष्टा कर रहा था. पर ईशानी की तोतली बोली में ‘दीदी’ का संबोधन सुन कर मन ही मन हंस पड़ा. मां पास बैठी थीं, बोलीं, ‘‘ईशानी, नीचे गद्दी रख ले, गीला कर देगा,’’ और उन्होंने गद्दी उठा कर उसे दे दी. ईशानी गद्दी रखते हुए दुलार से अंकित से बोली, ‘‘अगर तू दीदी कहेगा तो गीला नहीं करना, मौसी कहेगा तो गीला…’’ मैं हंस पड़ा, ‘‘तुम मौसी हो तो मौसी ही कहेगा न.’’

शर्मिला की सहेलियां उस से मिल कर जा चुकी थीं. भैया भी आ गए थे. शाम हो गई, पर अंकित ने गद्दी गीली नहीं की थी. मां बोलीं, ‘‘देखो तो इस अंकू को, आज गद्दी गीली ही नहीं की.’’ ईशानी जूस बना रही थी, झट से देखने आ गई, ‘‘अरे, वाह, यह हुई न बात.’’ फिर मुझे आवाज दे कर बोली, ‘‘जीजाजी, देखिए, अंकू ने गद्दी गीली नहीं की,’’ और फिर खुद ही झेंप गई. उसी रात साढ़े 11 बजे शर्मिला हम सब से विदा हो गई. अंदर से मैं पूरी तरह ध्वस्त हो गया था, परंतु कुछ ऐसा अनुभव कर रहा था कि ईशानी मुझ से भी ज्यादा बिखर कर चूरचूर हो गई है. उस की गंभीर आंखें देख कर मेरा मन और भी उदास होने लगता. मैं अपना दुख भूल कर उसे समझाने की चेष्टा करता, परंतु वह मेरे सामने पड़ने से कतरा जाती.

समय बीतने लगा. अंकित ईशानी के बिना नहीं रहता था. वह उसे कईकई दिनों के लिए अपने साथ ले जाने लगी. मैं ही अंकित से मिलने चला जाता. अंकित का जन्मदिन आने वाला था. मां अपनी योजनाएं बनाने लगीं. सुधा, सीमा को भी निमंत्रण भेजा गया. ईशानी और मैं बड़े पैमाने पर जन्मदिन मनाने के पक्ष में नहीं थे. पर मां का कहना था कि वे अपने पोते के जन्मदिन पर शानदार दावत देंगी.

मां और ईशानी का विवाद चल रहा था. ऐसा लग रहा था कि मां खिसिया गई हैं, तभी उन्होंने यह प्रस्ताव रख दिया, ‘‘ईशानी, तुम जब अंकित पर इतना अधिकार समझती हो तो उसे सौतेला बेटा बनने से बचा लो,’’ और वे रोने लगीं. सब चुप थे. शीघ्र ही मां ने धीरेधीरे कहा, ‘‘तुम एक बार यहां इस की मां बन कर आ जाओ, बेटी. अंकित अनाथ होने से बच जाएगा…’’ ईशानी उठ कर चली गई थी. वह अंकित के जन्मदिन पर भी नहीं आई. अंकित रोता, चिड़चिड़ाता, बीमार पड़ा, तब भी वह नहीं आई. मां अंकित की देखरेख करती थक जातीं. मेरा बेटा ईशानी के बिना नहीं रह सकता, यह मैं जानता था. वह निरंतर दुर्बल होता जा रहा था. क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा था. लगभग 2 माह बीत गए. फिर इस विषय पर कोई बातचीत न हुई. एक शाम मैं उदास बैठा ईशानी के बारे में ही सोच रहा था. साथ ही, मां के प्रस्ताव की भी याद आ गई. लेकिन मैं ने ईशानी को कभी उस नजर से नहीं देखा था. मुझे उम्मीद नहीं थी कि विशाल नभ के नीचे फैली नीली नदी में भी झील उतर सकती है और उस में गुलाबी कमल खिल सकते हैं.

तभी भैया को आते देखा तो मैं उठ खड़ा हुआ, ‘‘आइए, मां देखो तो, भैया आए हैं.’’ मां झट से अंकित को गोद में उठाए आ गईं.

भैया ने कहा, ‘‘यह पत्र ईशानी ने दिया है,’’ और वह पत्र मेरे हाथ में दे दिया.

मैं कुछ घबरा गया, ‘‘सब ठीक तो है न, भैया?’’ ‘‘हां, सब ठीक ही है,’’ कहते हुए उन्होंने अंकित को गोद में ले लिया, ‘‘मैं इसे ले जा रहा हूं. घुमा कर थोड़ी देर में ले आऊंगा,’’ और वे अंकित को ले कर चले गए. ‘‘क्या बात है बेटा, देखो तो क्या लिखा है? मालूम नहीं, वह क्या सोच रही होगी, मुझे ऐसा प्रस्ताव नहीं रखना चाहिए था. सचमुच उस दिन से मैं पछता रही हूं. वह घर नहीं आती तो अच्छा नहीं लगता…’’ और मां की आंखों में आंसू आ गए. मैं ने पत्र खोला. उस में लिखा था…

‘मां, मैं बहुत सोचविचार कर, भैया से पूछ कर फैसला कर रही हूं. मुझे आप का प्रस्ताव स्वीकार है, ईशानी.’ मुझे अचानक महसूस हुआ जैसे सचमुच नीली झील में गुलाबी कमल खिल गए हैं.

Short Story

Emotional Story: मां- क्या मीरा को छोड़ कर चला गया सनी

Emotional Story: तीसरी बार फिर मोबाइल की घंटी बजी थी. सम झते देर नहीं लगी थी मीरा को कि फिर वही राजुल का फोन होगा. आज जैसी बेचैनी उसे कभी महसूस नहीं हुई थी. सनी भी तो अब तक आया नहीं था. यह भी अच्छा है कि उस के सामने फोन नहीं आया. मोबाइल की घंटी लगातार बजती जा रही थी. कांपते हाथों से उस ने मोबाइल उठाया-‘‘हां, तो मीरा आंटी, फिर क्या सोचा आप ने?’’ राजुल की आवाज ठहरी हुई थी.‘‘तुम फिर एक बार सोच लो,’’ मीरा ने वे ही वाक्य फिर से दोहराने चाहे थे.

‘मेरा तो एकमात्र सहारा है सनी, तुम्हारा क्या, तुम तो किसी को भी गोद ले सकती हो.’’‘‘अरे, आप सम झती क्यों नहीं हैं? किसी और में और सनी में तो फर्क है न. फिर मैं कह तो रही हूं कि आप को कोई कमी नहीं होगी.’’ ‘‘देखो, सनी से ही आ कर कल सुबह बात कर लेना,’’ कह कर मीरा ने फोन रख दिया था. उस की जैसे अब बोलने की शक्ति भी चुकती जा रही थी.यहां मैं इतनी दूर इस शहर में बेटे को ले कर रह रही हूं. ठीक है, बहुत संपन्न नहीं है, फिर भी गुजारा तो हो ही रहा है. पर राजुल इतने वर्षों बाद पता लगा कर यहां आ धमकेगी, यह तो सपने में भी नहीं सोचा था. बेटे की इतनी चिंता थी, तो पहले आती.अब जब पालपोस कर इतना बड़ा कर दिया, बेटा युवा हो गया तो… एकाएक फिर  झटका लगा था.

यह क्या निकल गया मुंह से, क्यों कल सुबह आने को कह दिया, सनी तो चला ही जाएगा, वियोग की कल्पना करते ही आंखें भर आई थीं. सनी उस का एकमात्र सहारा.पिछले 3 दिनों से लगातार फोन आ रहे थे राजुल के. शायद यहां किसी होटल में ठहरी है, पुराने मकान मालिक से ही पता ले कर यहां आई है. और 3 दिनों से मीरा का रातदिन का चैन गायब हो गया है. पता नहीं कैसे जल्दबाजी में उस के मुंह से निकल गया कि यहां आ कर सनी से बात कर लेना. यह क्या कह दिया उस ने, उस की तो मति ही मारी गई.‘‘मां, मां, कितनी देर से घंटी बजा रहा हूं, सो गईं क्या?’’ खिड़की से सनी ने आवाज दी, तब ध्यान टूटा.‘‘आई बेटा, तेरा ही इंतजार कर रही थी,’’ हड़बड़ा कर उठी थी मीरा.‘‘अरे, इंतजार कर रही थीं तो दरवाजा तो खोलतीं. देखो, बाहर कितनी ठंड है,’’ कहते हुए अंदर आया था सनी, ‘‘अब जल्दी से खाना गरम कर दो, बहुत भूख लगी है और नींद भी आ रही है.’’किचन में आ कर भी विचारतंद्रा टूटी नहीं थी मीरा की. अभी बेटा कहेगा कि फिर वही सब्जी और रोटी,

कभी तो कुछ और नया बना दिया करो. पर आज तो जैसेतैसे खाना बन गया, वही बहुत है.‘‘यह क्या, तुम नहीं खा रही हो?’’ एक ही थाली देख कर सनी चौंका था.‘‘हां बेटा, भूख नहीं है, तू खा ले, अचार निकाल दूं?’’‘‘नहीं रहने दो, मु झे पता था कि तुम वही खाना बना दोगी. अच्छा होता, प्रवीण के घर ही खाना खा आता. उस की मां कितनी जिद कर रही थीं. पनीर, कोफ्ते, परांठे, खीर और पता नहीं क्याक्या बनाया था.’’मीरा जैसे सुन कर भी सुन नहीं पा रही थी.‘‘मां, कहां खो गईं?’’ सनी की आवाज से फिर चौंक गई थी.‘‘पता है, प्रवीण का भी सलैक्शन हो गया है. कोचिंग से फर्क तो पड़ता है न, अब राजू, मोहन, शिशिर और प्रवीण सभी चले जाएंगे अच्छे कालेज में. बस मैं ही, हमारे पास भी इतना पैसा होता, तो मैं भी कहीं अच्छी जगह पढ़ लेता,’’ सनी का वही पुराना राग शुरू हो गया था.‘

‘हां बेटा, अब तू भी अच्छे कालेज में पढ़ लेना, मन चाहे कालेज में ऐडमिशन ले लेना, बस, सुबह का इंतजार.’’‘‘क्या? कैसी पहेलियां बु झा रही हो मां. सुबह क्या मेरी कोईर् लौटरी लगने वाली है, अब क्या दिन में भी बैठेबैठे सपने देखने लगी हो. तबीयत भी तुम्हारी ठीक नहीं लग रही है. कल चैकअप करवा दूंगा, चलना अस्पताल मेरे साथ,’’ सनी ने दो ही रोटी खा कर थाली खिसका दी थी.‘‘अरे खाना तो ढंग से खा लेता,’’ मीरा ने रोकना चाहा था.‘‘नहीं, बस. और हां, तुम किस लौटरी की बात कर रही थीं?’’ ‘‘हां, लौटरी ही है, कल सुबह कोई आएगा तु झ से मिलने.’’‘‘कौन? कौन आएगा मां,’’ सनी चौंक गया था.‘‘तू हाथमुंह धो कर अंदर चल, फिर कमरे में आराम से बैठ कर सब सम झाती हूं.’’मीरा ने किसी तरह मन को मजबूत करना चाहा था. क्या कहेगी किस प्रकार कहेगी.‘‘हां मां, आओ,’’ कमरे से सनी ने आवाज दी थी.मन फिर से भ्रमित होने लगा. पैर भी कांपे. किसी तरफ कमरे में आ कर पलंग के पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई थी मीरा.‘‘क्या कह रही थीं तुम, किस लौटरी के बारे में?’’ सनी का स्वर उत्सुकता से भरा हुआ था. मीरा ने किसी तरह बोलना शुरू किया,

‘‘बेटा, मैं आज तु झे सबकुछ बता रही हूं, जो अब तक बता नहीं पाई. तेरी असली मां का नाम राजुल है, जोकि बहुत बड़ी प्रौपर्टी की मालिक हैं. उन की कोई और औलाद नहीं है. वे अब तु झे लेने आ रही हैं,’’ यह कहते हुए गला भर्रा गया था मीरा का और आंसू छिपाने के लिए मुंह दूसरी ओर मोड़ लिया था उस ने.मां, आप कह क्या रही हो, मेरी असली मां कोई और है. तो अब तक कहां थी, आई क्यों नहीं?’’ सनी सम झ नहीं पा रहा था कि आज मां को हुआ क्या है? क्यों इतनी बहकीबहकी बातें कर रही हैं.‘‘हां बेटा, तेरी असली मां वही है. बस, तु झे जन्म नहीं देना चाह रही थी तो मैं ने ही रोक दिया था और कहा था कि जो भी संतान होगी, मैं ले लूंगी. मेरे भी कोईर् औलाद नहीं थी. मैं वहीं अस्पताल में नर्स थी. बस, तु झे जन्म दे कर और मु झे सौंप कर वह चली गई.’’‘‘अब तू जो भी सम झ ले. हो सके तो मु झे माफ कर दे. मैं ने अब तक तु झ से यह सब छिपाए रखा था. मेरे लिए तो तू बेटे से भी बढ़ कर है. बस, अब और कुछ मत पूछ,’’ यह कहते फफक पड़ी थी मीरा और जोर की रुलाई को रोकते हुए कमरे से बाहर निकल गई.अपने कमरे में आ कर गिर रुलाई फूट ही पड़ी थी. सनी उस का बेटा इतने लाड़प्यार से पाला उसे.

कल पराया हो जाएगा. सोचते ही कलेजा मुंह को आने लगता है. कैसे जी पाएगी वह सनी के बिना. इतना दुख तो उसे अपने पति जोसेफ के आकस्मिक निधन पर भी नहीं हुआ था. तब तो यही सोच कर संतोष कर लिया था कि बेटा तो है उस के पास. उस के सहारे बची जिंदगी निकल जाएगी. यही सोच कर पुराना शहर छोड़ कर यहां आ कर अस्पताल में नौकरी कर ली थी. तब क्या पता था कि नियति ने उस के जीवन में सुख लिखा ही नहीं. तभी तो, आज राजुल पता लगाते हुए यहां आ धमकी है. शायद वक्त को यही मंजूर होगा कि सनी को अच्छा, संपन्न परिवार मिले, उस का कैरियर बने, तभी तो राजुल आ रही है. बेटा भी तो यही चाहता है कि उसे अच्छा कालेज मिले. अब कालेज क्या, राजुल तो उसे ऐसे ही कई फैक्ट्री का मालिक बना देगी.ठीक है, उसे तो खुश होना चाहिए. आखिर, सनी की खुशी में ही तो उस की भी खुशी है. और उस की स्वयं की जिंदगी अब बची ही कितनी है, काट लेगी किसी तरह.लेकिन अपने मन को लाख उपाय कर के भी वह सम झा नहीं पा रही थी. पुराने दिन फिर से सामने घूमने लगे थे. तब वह राजुल के पड़ोस में ही रहा करती थी. राजुल के पिता नगर के नामी व्यवसायी थे.

उन्हीं के अस्पताल में वह नर्स की नौकरी कर रही थी. राजुल अपने पिता की एकमात्र संतान थी. खूब धूमधाम से उस की शादी हुई पर शादी के चारपांच माह बाद ही वह तलाक ले कर पिता के घर आ गईर् थी. तब उसे 3 माह का गर्भ था. इसीलिए वह एबौर्शन करा कर नई जिंदगी जीना चाह रही थी. इस काम के लिए मीरा से संपर्क किया गया. तब तक मीरा और जोसेफ की शादी हुए एक लंबा अरसा हो चुका था और उन की कोई संतान नहीं थी.मीरा ने राजुल को सम झाया था. ‘तुम्हारी जो भी संतान होगी, मैं ले लूंगी. तुम एबौर्शन मत करवाओ.’ बड़ी मुश्किल से इस बात के लिए राजुल तैयार हुई थी. और बेटे को जन्म दे कर ही उस शहर से चली गई. बेटे का मुंह भी नहीं देखना चाहा था उस ने.सनी का पालनपोषण उस ने और जोसेफ ने बड़े लाड़प्यार से किया था. राजुल की शादी फिर किसी नामी परिवार के बेटे से हो गई थी और वह विदेश चली गई थी.यह तो उसे राजुल के फोन से ही मालूम पड़ा कि वहां उस के पति का निधन हो गया और अब वह अपनी जायदाद संभालने भारत आ गई है, चूंकि निसंतान है, इसलिए चाह रही है कि सनी को गोद ले ले, आखिर वह उसी का तो बेटा है.

मीरा समझ नहीं पा रही थी कि नियति क्यों उस के साथ इतना क्रूर खेल खेल रही है. सनी उस का एकमात्र सहारा, वह भी अलग हो जाएगा, तो वह किस के सहारे जिएगी.आंखों में नींद का नाम नहीं था. शरीर जैसे जला जा रहा था. 2 बार उठ कर पानी पिया.सुबह उठ कर रोज की तरह दूध लाने गई, चाय बनाई. सोचा, कमरा थोड़ा ठीकठाक कर दे, राजुल आती होगी. सनी को भी जगा दे, पर वह जागा हुआ ही था. उसे चाय थमा कर वह अपने कमरे में आ गई. बेटे को देखते ही कमजोर पड़ जाएगी. नहीं, वह राजुल के सामने भी नहीं जाएगी.जब राजुल की कार घर के सामने रुकी, तो उस ने उसे सनी के ही कमरे में भेज दिया था. ठीक है, मांबेटा आपस में बात कर लें. अब उस का काम ही क्या है? वैसे भी राजुल के पिता के इतने एहसान हैं उस पर, अब किस मुंह से वह सनी को रोक पाएगी. पर मन था कि मान ही नहीं रहा था और राजुल और सनी के वार्त्तालाप के शब्द पास के कमरे से उस के कानों में पड़ भी रहे थे.‘‘बस बेटा, अब मैं तु झे लेने आ गईर् हूं. मीरा ने बताया था कि तू अपने कैरियर को ले कर बहुत चिंतित है.

पर तु झे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. करोड़ों की जायदाद का मालिक होगा तू,’’ राजुल कह रही थी.‘‘कौन बेटा, कैसी जायदाद, मैं अपनी मां के साथ ही हूं, और यहीं रहूंगा. ठीक है, बहुत पैसा नहीं है हमारे पास, पर जो है, हम खुश हैं. मेरी मां ने मु झे पालपोस कर बड़ा किया है और आप चाहती हैं कि इस उम्र में उन्हें छोड़ कर चल दूं. आप होती कौन हैं मेरे कैरियर की चिंता करने वाली, कैसे सोच लिया आप ने कि मैं आप के साथ चल दूंगा?’’ सनी का स्वर ऊंचा होता जा रहा था.इतने कठोर शब्द तो कभी नहीं बोलता था सनी. मीरा भी चौंकी थी. उधर, राजुल का अनुनयभरा स्वर, ‘‘बेटे, तू मीरा की चिंता मत कर, उन की सारी व्यवस्था मैं कर दूंगी. आखिर तू मेरा बेटा ही है, न तो मैं ने तु झे गोद दिया था, न कानूनीरूप से तेरा गोदनामा हुआ है. मैं तेरी मां हूं, अदालत भी यही कहेगी मैं ही तेरी मां हूं. परिस्थितियां थीं, मैं तु झे अपने पास नहीं रख पाई. मीरा को मैं उस का खर्चा दूंगी. तू चाहेगा तो उसे भी साथ रख लेंगे.

मु झे तेरे भविष्य की चिंता है. मैं तेरा अमेरिका में दाखिला करा दूंगी, यहां तु झे सड़ने नहीं दूंगी. तू मेरा ही बेटा है.’’ ‘‘मत कहिए मु झे बारबार बेटा, आप तो मु झे जन्म देने से पहले ही मारना चाहती थीं. आप को तो मेरा मुंह देखना भी गवारा नहीं था. यह तो मां ही थीं जिन्होंने मु झे संभाला और अब इस उम्र में वे आप पर आश्रित नहीं होंगी. मैं हूं उन का बेटा, उन की संभाल करने वाला, आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है, सम झीं? और अब आप कृपया यहां से चली जाएं, आगे से कभी सोचना भी मत कि मैं आप के साथ चल दूंगा.’’सनी ने जैसे अपना निर्णय सुना दिया था. फिर राजुल शायद धीमे स्वर में रो भी रही थी. मीरा सम झ नहीं पा रही थी कि क्या कह रही है.तभी सनी का तेज स्वर सुनाई दिया, ‘‘मैं जो कुछ कह रहा हूं, आप सम झ क्यों नहीं पा रही हैं. मैं कोई बिकाऊ कमोडिटी नहीं हूं. फिर जब आप ने मु झे मार ही दिया था तो अब क्यों आ गई हैं मु झे लेने. मैं बालिग हूं, मु झे अपना भविष्य सोचने का हक है. आप चाहें तो आप भी हमारे साथ रह सकती हैं. पर मैं, आप के साथ मां को छोड़ कर जाने वाला नहीं हूं. आप मु झे भी सम झने की कोशिश करें. मेरा अपना भी उत्तरदायित्व है.

जिस ने मुझे पालापोसा, बड़ा किया, मैं उसे इस उम्र में अंधकार में नहीं छोड़ सकता. कानून आप की मदद नहीं करेगा. दुनिया में आप की बदनामी अलग होगी. आप भी शांति से रहें, हमें भी रहने दें. आप मु झे सम झने की कोशिश करें. अब मैं और कुछ कहूं और अपशब्द निकल जाएं मेरे मुंह से, मेरी रिक्वैस्ट है, आप चली जाएं. सुना नहीं आप ने?’’ सनी की आवाज फिर और तेज हो गई थी.इधर, राजुल धड़ाम से दरवाजा बंद करते हुए निकल गई थी. फिर कार के जाने की आवाज आई. मीरा की जैसे रुकी सांसें फिर लौट आई थीं. सनी कमरे से बाहर आया और मां के गले लग गया और बोला, ‘‘मेरी मां सिर्फ आप हो. कहीं नहीं जाऊंगा आप को छोड़ कर.’’ मीरा को लगा कि उस की ममता जीत गई है.

Emotional Story

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