शादी बाद दूरी क्यों होती है जरूरी

विवाह बाद घर वालों से अलग रहने के फायदे हैं या फिर नुकसान, क्या जानना नहीं चाहेंगे…

आजकल एकल परिवारों का चलन तेजी से बढ़ रहा है. संयुक्त परिवार कहीं गुम होते जा रहे हैं. पहले की तरह वैसे भी परिवार बड़े नहीं होते. बच्चे 1 या 2 होते हैं जो जौब या शादी के बाद दूसरे शहर में सैटल हो जाते हैं. अगर नौकरी उसी शहर में मिल जाए या लड़का बिजनैस कर रहा है तो पेरैंट्स उम्मीद करते हैं कि बेटेबहू उन के साथ रहें. मगर इस में किसी का फायदा नहीं है क्योंकि अकसर बहू के आने के बाद घर में सासबहू की खटपट और कलह शुरू हो जाती है. ऐसे में अगर कुछ अप्रत्याशित घट जाए तो नतीजा पूरे परिवार को भोगना पड़ता है.

ज्यादातर घरों में देखा गया है कि जब बहूबेटे पेरैंट्स के साथ रहते हैं तो कहीं न कहीं पेरैंट्स बच्चों को ज्ञान देने से नहीं चूकते. बहू को कैसे काम करना चाहिए, कैसे पति का खयाल रखना चाहिए, कैसे घर मैनेज करना चाहिए या फिर कैसे बच्चे को संभालना चाहिए इन सब की सीख सासससुर लगातार देते नजर आते हैं.

?कई बार जब पतिपत्नी के बीच छोटेमोटे झगड़े हो जाते हैं तो पेरैंट्स उन्हें सुलझाने के बजाय उलझाने में सहयोग देते हैं. बहू की मां दामाद की गलतियां दिखाती है तो लड़के की मां बहू की खामियां बेटे को बताती है कि बहू देर से घर लौटती है, पूरा दिन फोन में लगी रहती है, घर गंदा रखती है, दूसरे मर्दों से हंसहंस कर बातें करती है वगैरहवगैरह.

नतीजा, बहूबेटे के बीच दूरियां बढ़ने लगती हैं और सासससुर इस में भी दोष बहू को देते हैं. इस से बहू के मन में भी इनलौज के लिए नफरत पैदा होने लगती है और जब पानी सिर से ऊपर चला जाता है या कुछ गलत घट जाता है तो बहू या उस के घर वाले लड़के के मातापिता, भाईबहन आदि पूरे परिवार को शिकंजे में कस देते हैं. पूरे परिवार पर बहू को सताने या घरेलू हिंसा आदि के आरोप लगा दिए जाते हैं. कई दफा बहू खुद ही ससुराल वालों के खिलाफ ?ाठी एफआईआर दर्ज कराती है. इस तरह सारा परिवार बलि चढ़ जाता है.

सुकून भी रहेगा और प्यार भी

ऐसे हालात पैदा हों उस से अच्छा है कि नव दंपती शादी और बच्चों के बाद अपना एक छोटा सा आशियाना ढूंढ़ लें. भले ही आप के मांबाप का घर काफी बड़ा हो और उस में कई कमरे हों मगर जब आप अपना अलग एक कमरे का मकान भी ले लेंगे तो उस में जो सुकून और प्यार रहेगा वह बड़े घर में संभव नहीं क्योंकि दंपती जब अलग रहेंगे तो उन दोनों के ही मांबाप अपने बच्चों को आपस में एडजस्ट करने और मिल कर सुखदुख बांटते हुए जीने की शिक्षा देंगे. वे उन में ? झगड़े कराने के बजाय झगड़े सुलझने में मदद करेंगे ताकि दोनों एकदूसरे का खयाल रख सकें.

खुद नव दंपती भी अपनी समस्याएं और झगड़े बढ़ाने के बजाय जल्द ही उन्हें सुलझाने में सक्षम होंगे क्योंकि इस समय कोई उन्हें एकदूसरे के खिलाफ भड़काने वाला मौजूद नहीं होगा. इस के विपरीत यदि वे संयुक्त परिवार में रहते हैं तो कुछ भी हो सकता है.

जरा कल्पना कीजिए एक ऐसी स्थिति की जब पति को पता चले कि जिस पत्नी की हत्या के आरोप में वह 13 महीनों से जेल में था वह जिंदा है और अपने प्रेमी के साथ इटावा में रंगरलियां मना रही है.

पतिपत्नी के बीच का एक ऐसा ही मामला आजमगढ़ से सामने आया (मार्च, 2023 में) जिसे सुन कर आप सम?ा सकेंगे कि संयुक्त परिवारों में कभीकभी बेचारे पुरुष और उस के पूरे परिवार को किस तरह बेबुनियाद आरोपों के तहत जेल की हवा खानी पड़ जाती है.

सनसनीखेज मामला

रुचि और दीपू की शादी 2019 में हुई थी. दोनों के बीच अकसर ?ागड़ा होता रहता था. एक दिन रुचि ससुराल से अचानक लापता हो गई. इस की रिपोर्ट दीपू ने थाने में दर्ज कराई. दूसरी तरफ रुचि की मां माया देवी ने कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उस की पुत्री रुचि को उस के पति दीपू, ससुर राजेंद्र, जेठानी विनीता ने दहेज के लिए प्रताडि़त करने के साथसाथ अपहरण कर हत्या के बाद लाश को गायब कर दिया है. उस के बाद पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

दीपू जब 13 माह बाद जमानत पर छूटा तो पत्नी की तलाश शुरू कर दी. उसे इस काम में कामयाबी हाथ लगी और जो राज सामने आया उस ने सब के होश उड़ा दिए. दीपू को पता चला कि रुचि इटावा जिले के इटैली गांव में प्रेमी के साथ रह रही है. दीपू ने जब पुलिस को सुबूत दिया तो पुलिस ने रुचि को पकड़ कर उस का बयान दर्ज किया.

ऐसा ही एक मामला जुलाई, 2022 में भी सामने आया जब एक नईनवेली दुलहन ने ससुराल पक्ष को ?ाठे मामलों में फंसाया. सचाई पता चलने पर अदालत ने सास, देवर और परिवार के अन्य सदस्यों पर घरेलू हिंसा व छेड़खानी का ?ाठा आरोप लगाने के जुर्म में बहू पर 2 लाख रुपए का जुरमाना लगाया.

मामला कुछ ऐसा था कि घर के बड़े बेटे का विवाह 1997 में हुआ था. विवाह के बाद 2001 में बहू अपने पति और बच्चों के साथ मायके में रहने लगी. ऐसे में महिला की सास ने बेटेबहू को संपत्ति से बेदखल कर दिया. इस के बाद महिला ने सास की संपत्ति पर हक जताते हुए मई, 2009 में द्वारका अदालत में मुकदमा दायर कर दिया, साथ ही उस ने जुलाई, 2009 में सास, देवर, देवरानी और उन के बेटे पर घरेलू हिंसा का केस दायर किया. इन दोनों मामलों में अदालत ने आरोपों को बेबुनियाद माना.

खानी पड़ी जेल की हवा

संपत्ति विवाद का मामला जुलाई, 2010 में खारिज कर दिया गया. इस के अलावा अदालत ने 13 साल से अलग रहने के आधार पर घरेलू हिंसा का मुकदमा दिसंबर, 2012 को खारिज कर दिया. 2015 में महिला के पति की मौत हो गई थी.

इसी दौरान महिला की सास कैंसर की बीमारी से पीडि़त हो गई जबकि देवरानी बेमतलब के मुकदमेबाजी की वजह से मानसिक रूप से बीमार रहने लगी. अदालत ने माना कि बगैर कुसूर रोजरोज पुलिस और कचहरी के चक्कर किसी को भी मानसिक रोगी बना सकते हैं.

इसी तरह अगस्त, 2022 को यूपी के बहराइच में एक सनसनीखेज मामला सामने आया जहां दहेज हत्या के आरोप में एक पति और उस के परिवार के 4 लोगों को जेल की हवा खानी पड़ी. लेकिन 13 साल बाद उस की पत्नी जिंदा निकल आई. आसपास के लोगों ने जब उसे जिंदा देखा तो सनसनी फैल गई. यह खबर जैसे ही पति को पता लगी तो उस ने फौरन पुलिस को इस की सूचना दी जिस के बाद पुलिस ने महिला को जिंदा बरामद कर लिया.

पीडि़त पति कंधई की शादी 2006 में रामावती से हुई थी. शादी के 3 साल बाद रामावती ससुराल से अचानक लापता हो गई जिस के बाद महिला के परिजनों ने कंधई और उस के परिवार के 4 सदस्यों पर दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस मामले में पुलिस ने काररवाई करते हुए कंधई, उस के 2 भाई और मां को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कंधई को पत्नी की दहेज हत्या करने के जुर्म में अदालत ने 10 साल की सजा और 17 हजार जुरमाने का फैसला सुनाया था.

फर्जी मुकदमे

इसी तरह अप्रैल, 2023 में उत्तर प्रदेश में एक शख्स गले में तख्ती लटका कर पुलिस कमिश्नर के दफ्तर पहुंचा. वह पत्नी पीडि़त था और अपने परिवार के साथ पहुंचा था. सभी के गले में तख्तियां लटकी थीं जिन पर लिखा था, ‘फर्जी मुकदमों से बचाओ.’

दरअसल, कानपुर के बर्रा निवासी आशीष मिश्रा अपने परिवार के साथ अधिकारी के यहां पहुंचे थे. उन्होंने अपनी पत्नी पर आरोप लगाया कि वह घर वालों पर आधा घर उस के नाम करने का दबाव बना रही है. इस के लिए वह पति और परिवार वालों के खिलाफ ?ाठे मुकदमे में फंसाने के लिए गलत आरोप लगा कर बारबार पुलिस को बुला कर प्रताडि़त करती है. बारबार पुलिस के आने पर बच्चे भयभीत हो जाते हैं. इसी वजह से वे लोग न्याय की आस में इस तरह पहुंचे हैं.

मई, 2023 में एक महिला ने अपने पति, ससुर और अन्य सदस्यों पर उस के साथ गैंगरेप करने का ?ाठा केस दर्ज कराया था. मगर जांच के बाद सामने आया कि महिला के आरोप ?ाठे हैं जिस के बाद कोर्ट ने महिला और उस के पिता के खिलाफ पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए.

महिला ने यह आरोप उस समय लगाया जब उस के वैवाहिक जीवन में कलह पैदा हुई. उस ने ?ाठे आरोप का सहारा लिया. महिला एक कानून की छात्रा थी और उस के पिता पेशे से वकील थे. महिला ने आरोप लगाया गया था कि आरोपी पति ने ससुर और ननद के साथ दहेज की मांग की और उस का इस्तेमाल किया. वे इस के लिए उसे पीटते और प्रताडि़त करते थे. उस के ससुर ने उस के पति और ननद की उपस्थिति में उस के साथ दुष्कर्म किया था.

कानूनों और अधिकारों का गलत इस्तेमाल

देखा जाए तो संयुक्त परिवारों में ऐसे बहुत से मामले आते हैं जहां महिलाएं अपने पति और उस के घर वालों के खिलाफ ?ाठी शिकायत करने के लिए महिला कानूनों और अधिकारों का गलत इस्तेमाल करती हैं. इस तरह वे उन्हें परेशान करती हैं. सिर्फ पति ही नहीं कई बार पूरा परिवार बहू के ?ाठे आरोपों का शिकार बन जेल की चक्की पीसने को विवश हो जाता है.

महिलाएं अपने पति पर ?ाठी शिकायत दर्ज करने के लिए धारा 498ए और दहेज अधिनियम  का इस्तेमाल करती हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए एक ऐसा प्रावधान है जिस के तहत एक पति, उस के मातापिता और साथ रह रहे रिश्तेदारों को उन की गैरकानूनी मांगों (दहेज) को पूरा करने के लिए किसी महिला के साथ कू्ररता के लिए मामला दर्ज किया जा सकता है.

आमतौर पर पति, उस के मातापिता और रिश्तेदारों को पर्याप्त जांच के बिना ही तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है और गैरजमानती शर्तों पर सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है. शिकायत ?ाठी होने पर भी आरोपी को तब तक दोषी माना जाता है जब तक कि वह अदालत में निर्दोष साबित नहीं हो जाता.

कई बार महिलाएं जब अपनी सास या ननद वगैरह से निभा नहीं पातीं या साथ नहीं रहना चाहतीं तो वे इस तरह का हथकंडा अपना लेती हैं. इस चक्कर में पति का पूरा परिवार आरोपों के घेरे में आ जाता है और उस परिवार की सुखशांति और सुकून सब खत्म हो जाता है.

इस तरह के मामले एकल परिवारों में होने की संभावना बहुत कम होती है क्योंकि यहां सिर्फ पतिपत्नी और उन के बच्चे रहते हैं. ऐसे में अगर पतिपत्नी के बीच किसी बात को ले कर ?ागड़ा या विवाद होता भी है तो वह बहुत उग्र रूप नहीं ले पाता. ?ागड़े के 1-2 दिन बाद ही पति और पत्नी में से किसी को अपनी गलती का एहसास हो जाता है और वे मामला सुलझा लेते हैं. जब तक कोई बहुत बड़ी बात या अफेयर का मसला न हो कपल्स अपने ?ागड़े सुल?ा लेते हैं और मिल कर जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ाते हैं.

संयुक्त परिवार में स्थिति विकट हो जाती है

संयुक्त परिवारों में स्थिति कुछ अलग होती है. इन परिवारों में अकसर पतिपत्नी के ?ागड़े के बीच घर के बड़े घुस जाते हैं खासकर सास या ननद इस में अहम भूमिका निभाती हैं सास को अपने बेटे की गलती सामान्यतया नजर नहीं आती और वे जानेअनजाने अपने बेटे का पक्ष लेने लगती हैं. बेटा अगर अपनी गलती मान भी लेता है तो उस की मां या बहन बहू के खिलाफ उसे फिर से भड़काने लगती है या बहू की गलतियां सामने रखने लगती है.

आर्थिक जिम्मेदारी

इस से पति ?ाकने को तैयार नहीं होता और पत्नी भी अपने आत्मसम्मान की आड़ में कोई सम?ाता करने से इनकार कर देती है. इस तरह ?ागड़ा बढ़ता जाता हैं और स्थिति विकट होने लगती है. घर में कलह बढ़ती है और बहू को लगने लगता है जैसे उस के ससुराल वाले ही दोषी हैं. उसे सास या ननद डायन और ससुर या देवरजेठ भेडि़ए नजर आने लगते हैं.

इस तरह जब मामला बिगड़ता है तो महिलाएं अपने अधिकारों का गलत प्रयोग कर पति और ससुराल वालों के खिलाफ आरोप लगा कर अपनी खुन्नस निकालने की कोशिश करती हैं.

कई समस्याओं की जड़

संयुक्त परिवार में रहने में और भी कई तरह की समस्याएं आती हैं. मसलन, इन में प्राइवेसी की कमी होती है. बड़ा परिवार होने के कारण हर समय आसपास कोई न कोई मौजूद होता है. संयुक्त परिवार में रहने वाले लोगों को कभी अकेलापन नहीं मिलता. ऐसे में कपल्स के बीच जो मधुर रिश्ता कायम रह सकता है उस में बाधा आती है.

यही नहीं संयुक्त परिवार में अपने जीवन से जुड़ा कोई फैसला लेना हो तो परिवार के प्रत्येक सदस्य खासकर बड़ेबुजुर्गों की स्वीकृति जरूरी होती है. इंसान अपनी मरजी से कुछ नहीं कर पाता. चाहे वह रात को 7 बजे के बाद बाहर जाने की बात हो या किसी दोस्त के यहां पार्टी करने की या फिर कोई मनपसंद कोर्स करना हो. इस के लिए भी उसे बड़ों से आज्ञा लेनी होती है. कभीकभी नई बहू को यह रवैया परेशान कर देता है और उस के अंदर गुस्सा भरने लगता है.

इसी तरह आर्थिक जिम्मेदारी की बात हो तो कई बार जब नई बहू का पति ही सारे घर की बागडोर संभालते हुए सारा खर्च कर रहा होता है और भाईबहनों को पढ़ाने या शादी करने का खर्च उठाता है तो बहुएं इस बात को सहज स्वीकार नहीं कर पातीं और उन के अंदर की विद्रोह की चिनगारी फूटने लगती है. यही नहीं संयुक्त परिवार में बच्चों की परवरिश कई लोगों के हाथों में होती है. ऐसे में हो सकता है कि अगर मातापिता अपने बच्चे को किसी चीज के लिए मना कर रहे हों लेकिन वही चीज घर के दूसरे सदस्य की नजर में गलत न हो. इस से संयुक्त परिवार के सदस्यों में आपसी वैचारिक मतभेद हो सकते हैं. बहू अपनी जिंदगी अपने हिसाब से नहीं जी पाती.

एक शोध की मानें तो संयुक्त परिवारों में महिलाओं को अधिक घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है. कुल मिला कर संयुक्त परिवारों में 95त्न महिलाएं घरेलू हिंसा का सामना करती हैं. यही सब कारण हैं कि संयुक्त परिवारों में बहुएं अपनी खुन्नस निकालने और ससुराल वालों को सबक सिखाने के लिए पूरे परिवार पर आरोप लगा देती हैं.

निजी खुशियों की कुरबानी

हमारे देश में परिवार को सब से ज्यादा अहमियत दी जाती है. लोग अपने परिवार की खुशी के लिए अपनी निजी खुशियों की कुरबानी देते हैं तो कुछ लड़के परिवार को खुश रखना ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लेते हैं. लेकिन भावनाओं में बह कर फैसले लेना उचित नहीं होता. उम्र के फर्क के साथसाथ मां और बच्चों के मूल्यों में अंतर आ जाता है. यहीं से टकराव की शुरुआत होती है. इस टकराव से बेहतर है कि अलग रहा जाए.

एकल परिवार में रहना हमेशा ही खराब हो ऐसा नहीं है. बहुत से केस में इस के नतीजे बहुत सकारात्मक रहे हैं. एक तलख रिश्ते में रहने से बेहतर है अलग हो जाना. ससुराल वालों से दूर यूनिट्री फैमिली का कौंसैप्ट आज के समय की मांग है. अकसर दूर रहने से मांबाप और भाईबहन के प्रति प्यार बढ़ता है. पतिपत्नी की जिंदगी भी बेहतर हो जाती है.

जिंदगी में आगे बढ़ने के मौके मिलते हैं. मर्द हो या औरत वह स्वाभाविक तौर पर आजाद रहना चाहती है और एक बहू अलग होने के बाद इस आजादी का मजा ले पाती है. उसे अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने का मौका मिलता है. इस से घर में खुशियां कायम रहती हैं और कोर्टकचहरी के मामले घटते हैं.

 

फर्क कथनी और करनी का: सुच्चामल ने क्या बुरा किया

सुच्चामल हमारी कालोनी के दूसरे ब्लौक में रहते थे. हर रोज मौर्निंग  वाक पर उन से मुलाकात होती थी. कई लोगों की मंडली बन गई थी. सुबह कई मुद्दों पर बातें होती थीं, लेकिन बातों के सरताज सुच्चामल ही होते थे. देशदुनिया का ऐसा कोई मुद्दा नहीं होता था जिस पर वे बात न कर सकें. उस पर किसी दूसरे की सहमतिअसहमति के कोई माने नहीं होते थे, क्योंकि वे अपनी बात ले कर अड़ जाते थे. उन की खुशी के लिए बाकी चुप हो जाते थे. बड़ी बात यह थी कि वे, सेहत के मामले में हमेशा फिक्रमंद रहते थे. एकदम सादे खानपान की वकालत करते थे. मोटापे से बचने के कई उपाय बताते थे. दूसरों को डाइट चार्ट समझा देते थे. इतना ही नहीं, अगले दिन चार्ट लिखित में पकड़ा देते थे. फिर रोज पूछना शुरू करते थे कि चार्ट के अनुसार खानपान शुरू किया कि नहीं. हालांकि वे खुद भी थोड़ा थुलथुल थे लेकिन वे तर्क देते थे कि यह मोटापा खानपान से नहीं, बल्कि उन के शरीर की बनावट ही ऐसी है.

एक दिन सुबह मुझे काम से कहीं जाना पड़ा. वापस आया, तो रास्ते में सुच्चामल मिल गए. मैं ने स्कूटर रोक दिया. उन के हाथ में लहराती प्लास्टिक की पारदर्शी थैली को देख कर मैं चौंका, चौंकाने का दायरा तब और बढ़ गया जब उस में ब्रैड व बड़े साइज में मक्खन के पैकेट पर मेरी नजर गई. मैं सोच में पड़ गया, क्योंकि सुच्चामल की बातें मुझे अच्छे से याद थीं. उन के मुताबिक वे खुद भी फैटी चीजों से हमेशा दूर रहते थे और अपने बच्चों को भी दूर रखते थे. इतना ही नहीं, पौलिथीन के प्रचलन पर कुछ रोज पहले ही उन की मेरे साथ हुई लंबीचौड़ी बहस भी मुझे याद थी.

वे पारखी इंसान थे. मेरे चेहरे के भावों को उन्होंने पलक झपकते ही जैसे परख लिया और हंसते हुए पिन्नी की तरफ इशारा कर के बोले, ‘‘क्या बताऊं भाईसाहब, बच्चे भी कभीकभी मेरी मानने से इनकार कर देते हैं. कई दिनों से पीछे पड़े हैं कि ब्रैडबटर ही खाना है. इसलिए आज ले जा रहा हूं. पिता हूं, बच्चों का मन रखना भी पड़ता है.’’

‘‘अच्छा किया आप ने, आखिर बच्चों का भी तो मन है,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘नहीं बृजमोहन, आप को पता है मैं खिलाफ हूं इस के. अधिक वसा वाला खानपान कभीकभी मेरे हिसाब से तो बहुत गलत है. आखिर बढ़ते मोटापे से बचना चाहिए. वह तो श्रीमतीजी भी मुझे ताना देने लगी थीं कि आखिर बच्चों को कभी तो यह सब खाने दीजिए, तब जा कर लाया हूं.’’ थोड़ा रुक कर वे फिर बोले, ‘‘एक और बात.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा, तो वे नाखुशी वाले अंदाज में बोले, ‘‘मुझे तो चिकनाईयुक्त चीजें हाथ में ले कर भी लगता है कि जैसे फैट बढ़ रहा है, चिकनाई तो दिल की भी दुश्मन होती है भाईसाहब.’’

‘‘आइए आप को घर तक छोड़ दूं,’’ मैं ने उन्हें अपने स्कूटर पर बैठने का इशारा किया, तो उन्होंने सख्त लहजे में इनकार कर दिया, ‘‘नहीं जी, मैं पैदल चला जाऊंगा, इस से फैट घटेगा.’’

आगे कुछ कहना बेकार था क्योंकि मैं जानता था कि वे मानेंगे ही नहीं. लिहाजा, मैं अपने रास्ते चला गया.

2 दिन सुच्चामल मौर्निंग वौक पर नहीं आए. एक दिन उन के पड़ोसी का फोन आया. उस ने बताया कि सुच्चामल को हार्टअटैक आया है. एक दिन अस्पताल में रह कर घर आए हैं. अब मामला ऐसा था कि टैलीफोन पर बात करने से बात नहीं बनने वाली थी. घर जाने के लिए मुझे उन की अनुमति की जरूरत नहीं थी. यह बात इसलिए क्योंकि वे कभी भी किसी को घर पर नहीं बुलाते थे बल्कि हमारे घर आ कर मेरी पत्नी और बच्चों को भी सादे खानपान की नसीहतें दे जाते थे.

मैं दोपहर के वक्त उन के घर पहुंच गया. घंटी बजाई तो उन की पत्नी ने दरवाजा खोला. मैं ने अपना परिचय दिया तो वे तपाक से बोलीं, ‘‘अच्छाअच्छा, आइए भाईसाहब. आप का एक बार जिक्र किया था इन्होंने. पौलिथीन इस्तेमाल करने वाले बृजमोहन हैं न आप?’’

‘‘ज…ज…जी भाभीजी.’’ मैं थोड़ा झेंप सा गया और समझ भी गया कि अपने घर में उन्होंने खूब हवा बांध रखी है हमारी. सुच्चामल के बारे में पूछा, तो वे मुझे अंदर ले गईं. सुच्चामल ड्राइंगरूम के कोने में एक दीवान पर पसरे थे. मैं ने नमस्कार किया, तो उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आई. चेहरे के भावों से लगा कि उन्हें मेरा आना अच्छा नहीं लगा था. हालचाल पूछा, ‘‘बहुत अफसोस हुआ सुन कर. आप तो इतना सादा खानपान रखते हैं, फिर भी यह सब कैसे हो गया?’’

‘‘चिकनाई की वजह से.’’ जवाब सुच्चामल के स्थान पर उन की पत्नी ने थोड़ा चिढ़ कर दिया, तो मुझे बिजली सा झटका लगा, ‘‘क्या?’’

‘‘कैसे रोकूं अब इन्हें भाईसाहब. ऐसा तो कोई दिन ही नहीं जाता जब चिकना न बनता हो. कड़ाही में रिफाइंड परमानैंट रहता है. कोई कमी न हो, इसलिए कनस्तर भी एडवांस में रखते हैं.’’ उन की बातों पर एकाएक मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘लेकिन भाभीजी, ये तो कहते हैं कि चिकने से दूर रहता हूं?’’

‘‘रहने दीजिए भाईसाहब. बस, हम ही जानते हैं. किचेन में दालों के अलावा आप को सब से ज्यादा डब्बे तलनेभूनने की चीजों से भरे मिलेंगे. बेसन का 10 किलो का पैकेट 15 दिन भी नहीं चलता. बच्चे खाएं या न खाएं, इन को जरूर चाहिए. बारिश की छोडि़ए, आसमान में थोड़े बादल देखते ही पकौड़े बनाने का फरमान देते हैं.’’

यह सब सुन कर मैं हैरान था. सुच्चामल का चेहरा देखने लायक था. मन तो किया कि उन की हर रोज होने वाली बड़ीबड़ी बातों की पोल खोल दूं, लेकिन मौका ऐसा नहीं था. सुच्चामल हमेशा के लिए नाराज भी हो सकते थे. यह राज भी समझ आया कि सुच्चामल अपने घर हमें शायद पोल खुलने के डर से क्यों नहीं बुलाना चाहते थे. इस बीच, डाक्टर चैकअप के लिए वहां आया. डाक्टर ने सुच्चामल से उन का खानपान पूछा, तो वह चुप रहे. लेकिन पत्नी ने जो डाइट चार्ट बताया वह कम नहीं था. सुच्चामल सुबह मौर्निंग वाक से आ कर दबा कर नाश्ता करते थे.

हर शाम चाय के साथ भी उन्हें समोसे चाहिए होते थे. समोसे लेने कोई जाता नहीं था, बल्कि दुकानदार ठीक साढ़े 5 बजे अपने लड़के से 4 समोसे पैक करा कर भिजवा देता था. सुच्चामल महीने में उस का हिसाब करते थे. रात में भरपूर खाना खाते थे. खाने के बाद मीठे में आइसक्रीम खाते थे. आइसक्रीम के कई फ्लेवर वे फ्रिजर में रखते थे. मैं चलने को हुआ, तो मैं ने नजदीक जा कर समझाया, ‘‘चलता हूं सुच्चामल, अपना ध्यान रखना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘चिकने से परहेज कर के सादा खानपान ही कीजिए.’’

‘‘मैं तो सादा ही…’’ उन्होंने सफाई देनी चाही, लेकिन मैं ने बीच में ही उन्हें टोक दिया, ‘‘रहने दीजिए, तारीफ सुन चुका हूं. डाक्टर साहब को भी भाभीजी ने आप की सेहत का सारा राज बता दिया है.’’ मेरी इस सलाह पर वे मुझे पुराने प्राइमरी स्कूल के उस बच्चे की तरह देख रहे थे जिस की मास्टरजी ने सब से ज्यादा धुनाई की हो. अगले दिन मौर्निंग वाक पर गया, तो हमारी मंडली के लोगों को मैं ने सुच्चामल की तबीयत के बारे में बताया, तो वे सब हैरान रह गए.

‘‘कैसे हुआ यह सब?’’ एक ने पूछा, तो मैं ने बताया, ‘‘अजी खानपान की वजह से.’’

एक सज्जन चौंक कर बोले, ‘‘क्या…? इतना सादा खानपान करते थे, ऐसा तो नहीं होना चाहिए.’’

‘‘अजी काहे का सादा.’’ मेरे अंदर का तूफान रुक न सका और सब को हकीकत बता दी. मेरी तरह वे भी सुन कर हैरान थे. सुच्चामल छिपे रुस्तम थे. कुछ दिनों बाद सुच्चामल मौर्निंग वाक पर आए, लेकिन उन्होंने खानपान को ले कर कोई बात नहीं की. 1-2 दिन वे बोझिल और शांत रहे. अचानक उन का आना बंद हो गया.

एक दिन पता चला कि वे दूसरे पार्क में टहल कर लोगों को अपनी सेहत का वही ज्ञान बांट रहे हैं जो कभी हमें दिया करते थे. हम समझ गए कि सुच्चामल जैसे लोग ज्ञान की गंगा बहाने के रास्ते बना ही लेते हैं. यह भी समझ आ गया कि कथनी और करनी में कितना फर्क होता है. सुच्चामल से कभीकभी मुलाकात हो जाती है, लेकिन वे अब सेहत के मामले पर नहीं बोलते.

 

अविश्वास: रश्मि ने अकेलेपन को ख़त्म करने के लिए क्या तय किया?

अपनेकाम निबटाने के बाद मां अपने कमरे में जा लेटी थीं. उन का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. शिखा से फोन पर बात कर वे बेहद अशांत हो उठी थीं. उन के शांत जीवन में सहसा उथलपुथल मच गई थी. दोनों रश्मि और शिखा बेटियों के विवाह के बाद वे स्वयं को बड़ी हलकी और निश्ंिचत अनुभव कर रही थीं. बेटेबेटियां अपनेअपने घरों में सुखी जीवन बिता रहे हैं, यह सोच कर वे पतिपत्नी कितने सुखी व संतुष्ट थे.

शिखा की कही बातें रहरह कर उन के अंतर्मन में गूंज रही थीं. वे देर तक सूनीसूनी आंखों से छत की तरफ ताकती रहीं. घर में कौन था, जिस से कुछ कहसुन कर वे अपना मन हलका करतीं. लेदे कर घर में पति थे. वे तो शायद इस झटके को सहन न कर सकें.

दोनों बेटियों की विदाई पर उन्होंने अपने पति को मुश्किल से संभाला था. बारबार यही बोल उन के दिल को तसल्ली दी थी कि बेटी तो पराया धन है, कौन इसे रख पाया है. समय बहुत बड़ा मलहम है. बड़े से बड़ा घाव समय के साथ भर जाता है, वे भी संभल गए थे.

बड़ी बेटी रश्मि के लिए उन के दिल में बड़ा मोह था. रश्मि के जाने के बाद वे बेहद टूट गए थे. रश्मि को इस बात का एहसास था, सो हर 3-4 महीने बाद वह अपने पति के साथ पिता से मिलने आ जाती थी.

शादी के कई वर्षों बाद भी भी रश्मि मां नहीं बन सकी थी. बड़ेबड़े नामी डाक्टरों

से इलाज कराया गया, पर कोईर् परिणाम नहीं निकला. हर बार नए डाक्टर के पास जाने पर रश्मि के दिल में आशा की लौ जागती, पर निराशारूपी आंधी उस की लौ को निर्ममता से बुझा जाती. किसी ने आईवीएफ तकनीक से संतान प्राप्ति का सुझाव दिया लेकिन आईवीएफ तकनीक में रश्मि को विश्वास न था.

अकेलापन जब असह्य हो उठा तो रश्मि ने तय किया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखेगी.

‘सुनो, मैं एमए जौइन कर लूं?’

‘बैठेबैठे यह तुम्हें क्या सूझा?’

‘खाली जो बैठी रहती हूं, इस से समय भी कट जाएगा और कुछ ज्ञान भी प्राप्त हो जाएगा.’

‘मुझे तो कोई एतराज नहीं, पर बाबूजी शायद ही राजी हों.’

‘ठीक है, बाबूजी से मैं स्वयं बात कर लूंगी.’

उस रात बाबूजी को खाना परोसते हुए रश्मि ने अपनी इच्छा जाहिर की तो एक पल को बाबूजी चुप हो गए. रश्मि समझी शायद बाबूजी को मेरी बात बुरी लगी है. अनुभवी बाबूजी समझ गए कि रश्मि ने अकेलेपन से ऊब कर ही यह इच्छा प्रकट की है. उन्होंने रश्मि को सहर्ष अनुमति दे दी.

कालेज जाने के बाद नए मित्रों और पढ़ाई के बीच 2 साल कैसे कट गए, यह स्वयं रश्मि भी न जान सकी. रश्मि ने अंगरेजी एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर ली. उस के ससुर ने उसे एक हीरे की सुंदर अंगूठी उपहार में दी.

शिखा की शादी तय हो गई थी. रश्मि

के लिए शिखा छोटी बहन ही नहीं, मित्र व हमराज भी थी. शिखा ने व्हाट्सऐप पर लिखा कि, ‘सच में बड़ी खुशी की बात यह है कि तुम्हारे जीजाजी का तुम्हारे शहर में अपने व्यापार के संबंध में खूब आनाजाना रहेगा. मुझे तो बड़ी खुशी है कि इसी बहाने तुम्हारे पास हमारा आनाजाना लगा रहेगा.’

व्हाट्सऐप में मैसेज देख कर और उस में लिखा पढ़ कर रश्मि खिल उठी थी. कल्पना में ही उस ने अनदेखे जीजाजी के व्यक्तित्व के कितने ही खाके खींच डाले थे, पर दिल में कहीं यह एहसास भी था कि शिखा के चले जाने के बाद मां और बाबूजी कितने अकेले हो जाएंगे.

शिखा की शादी में रमेश से मिल कर रश्मि बहुत खुश हुई, कितना हंसमुख, सरल, नेक लड़का है. शिखा जरूर इस के साथ खुश रहेगी. रमेश भी रश्मि से मिल कर प्रभावित हुआ था. उस का व्यक्तित्व ही ऐसा था. शिखा की शादी के बाद एक माह रश्मि मांबाप के पास ही रही थी, ताकि शिखा की जुदाई का दुख उस की उपस्थिति से कुछ कम हो जाए.

शिखा अपने पति के साथ रश्मि के घर आतीजाती रही. हर बार रश्मि ने उन की जी खोल कर आवभगत की. उन के साथ बीते दिन यों गुजर जाते कि पता ही न लगता कि कब वे लोग आए और कब चले गए. उन के जाने के बाद रश्मि के लिए वे सुखद स्मृतियां ही समय काटने को काफी रहतीं.

शिखा शादी के बाद जल्द ही एकएक कर

2 बेटियों की मां बन गई थी. रश्मि ने शिखा के हर बच्चे के स्वागत की तैयारी बड़ी धूमधाम और लगन से की. अपने दिल के अरमान वह शिखा की बेटियों पर पूरे कर रही थी. मनोज भी रश्मि को खुश देख कर खुश था. उस की जिंदगी में आई कमी को किसी हद तक पूरी होते देख उसे सांत्वना मिली थी.

शिखा के तीसरे बच्चे की खबर सुन कर रश्मि अपने को रोक न सकी. शिखा की चिंता उस के शब्दों से साफ प्रकट हो रही थी. उस ने तय कर लिया कि वह शिखा के इस बच्चे को गोद ले लेगी. इस से उस के अपने जीवन का अकेलापन, खालीपन तथा घर का सन्नाटा दूर हो जाएगा. बच्चे की जरूरत उस घर से ज्यादा इस घर में है. रश्मि ने जब मनोज के सामने अपनी इच्छा जाहिर की तो मनोज ने सहर्ष अपनी अनुमति दे दी.

‘शिखा, घबरा मत, तेरे ऊपर यह बच्चा भार बन कर नहीं आ रहा है. इस बच्चे को तुम मुझे दे देना. मुझे अपने जीवन का अकेलापन असह्य हो उठा है. तुम अगर यह उपकार कर सको तो आजन्म तुम्हारी आभारी रहूंगी.’ रश्मि ने शिखा से फोन पर बात की.

शाम को जब रमेश घर आया तब शिखा ने मोबाइल पर हुई सारी बात उसे बताई.

‘रश्मि मुझे ही गोद क्यों नहीं ले लेती, उसे कमाऊ बेटा मिल जाएगा और मुझे हसीन मम्मी.’ रमेश ने मजाक किया.

‘क्या हर वक्त बच्चों जैसी बातें करते हो. कभी तो बात को गंभीरता से लिया करो.’

रमेश ने गंभीर मुद्रा बनाते हुए कहा, ‘लो, हो गया गंभीर, अब शुरू करो अपनी बात.’

नाराज होते हुए शिखा कमरे से जाने लगी तो रमेश ने उस का आंचल खींच लिया, ‘बात पूरी किए बिना कैसे जा रही हो?’

‘रश्मि के दर्द व अकेलेपन को नारी हृदय ही समझ सकता है. हमारा बच्चा उस के पास रह कर भी हम से दूर नहीं रहेगा. हम तो वहां आतेजाते रहेंगे ही. ‘हां’ कह देती हूं.’

‘बच्चे पर मां का अधिकार पिता से अधिक होता है. तुम जैसा चाहो करो, मेरी तरफ से

स्वतंत्र हो.’

शिखा ने रश्मि को अपनी रजामंदी दे दी. सुन कर रश्मि ने तैयारियां शुरू कर दीं. इस बार वह मौसी की नहीं, मां की भूमिका अदा कर रही थी. उस की खुशियों में मनोज पूरे दिल से साथ दे रहा था.

ऐसे में एक दिन उसे पता चला कि वह स्वयं मां बनने वाली है. रश्मि डाक्टर की बात का विश्वास ही न कर सकी.

उस ने अपने हाथों पर चिकोटी काटी.

मनोज ने खबर सुनते ही रश्मि को चूम लिया.

उसी रात रश्मि ने शिखा को फोन किया, ‘शिखा, तेरा यह बच्चा मेरे लिए दुनियाजहान की खुशियां ला रहा है. सुनेगी तो विश्वास नहीं आएगा. मैं मां बनने वाली हूं. कहीं तेरे बच्चे को गोद लेने के बाद मां बनती तो शायद तेरे बच्चे के साथ पूरा न्याय न कर पाती.’ रश्मि की आवाज में खुशी झलक रही थी.

‘आज मैं इतनी खुश हूं कि स्वयं मां बनने पर भी इतनी खुश न हुई थी. 14 साल बाद पहली बार तुम्हारे घर में खुशी नाचेगी,’ शिखा बहन की इस खुशी से दोगुनी खुश हो कर बोली.

मां और बाबूजी भी यह खुशखबरी सुन कर आ गए थे. रश्मि के ससुर की खुशी का

ठिकाना ही न था.

रश्मि ने अपनी बेटी का नाम प्रीति रखा था. प्रीति घरभर की लाड़ली थी. शिखा व रमेश का आनाजाना लगा ही रहता. शिखा के तीसरा बच्चा बेटा था. रश्मि ने यही सोच कर कि घर में बेटा होना भी जरूरी है, शिखा से उस का बेटा नहीं मांगा.

रश्मि की खुशियां शायद जमाने को भायी नहीं. शिखा व रमेश रश्मि के पास आए हुए थे. उन की दूर की मौसी प्रीति को देखने आई थीं. रश्मि को बधाई देते हुए उन्होंने कहा, ‘रश्मि, तेरा रूप बिटिया न ले सकी. यह तो अपने मौसामौसी की बेटी लगती है.’

‘यह तो अपनेअपने समझने की बात है, मौसी, मैं प्रीति को अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करता हूं.’

मौसी का कथन और रमेश का समर्थन शिखा के दिल में तीर बन कर चुभ गए. जिन आंखों से प्रीति के लिए प्यार उमड़ता था, वही आंखें अब उस का कठोर परीक्षण कर रही थीं. प्रीति का हर अंग उसे रमेश के अंग से मेल खाता दिखाई देने लगा. प्रीति की नाक, उस की उंगलियां रमेश से कितनी मिलती हैं, तो क्या प्रीति रमेश की बेटी है? शिखा के दिल में संदेह का बीज पनपने लगा. मौसी का विषबाण अपना काम कर चुका था.

‘रश्मि बच्चे की चाह में इतना गिर सकती है और रमेश ने मेरे विश्वास का यही परिणाम दिया,’ शिखा सोचती रही, कुढ़ती रही.

घर लौटते ही शिखा उबल पड़ी. सुनते ही रमेश सन्नाटे में आ गया. यह रश्मि की

सगी बहन बोल रही है या कोई शत्रु?

‘तुम पढ़ीलिखी हो कर भी अनपढ़ों जैसा व्यवहार कर रही हो. तुम में विश्वास नाम की कोई चीज ही नहीं. इतना ही भरोसा है मुझ पर.’

‘अविश्वास की बात ही क्या रह जाती है? प्रीति का हर अंग गवाह है कि तुम्हीं उस के बाप हो. औरत सौत को कभी बरदाश्त नहीं कर पाती, चाहे वह उस की सगी बहन ही क्यों न हो.’

‘किसी के रूपरंग का किसी से मिलना

क्या किसी को दोषी मानने के लिए काफी है? गर्भावस्था में मां की आंखों के सामने जिस की तसवीर होती है, बच्चा उसी के अनुरूप ढल

जाता है.’

‘अपनी डाक्टरी अपने पास रखो, तुम्हारी कोई सफाई मेरे लिए पर्याप्त नहीं.’

‘डाक्टर राजेश को तो जानती हो न? उस की बेटी के बाल सुनहरे हैं, पर पतिपत्नी में से किस के बाल सुनहरे हैं? राजेश ने तो आज तक कोई तोहमत अपनी पत्नी पर नहीं लगाई.’

‘मैं औरत हूं, मेरे अंदर औरत का दिल है, पत्थर नहीं.’

बेचैनी में शिखा अपनी परेशानी मां को बता चुकी थी. उस की रातें जागते कटतीं, भूख खत्म हो गई थी. फोन करने के बाद मां कितनी बेचैन हो उठेंगी, यह उस ने सोचा ही न था.

मां अंदर ही अंदर परेशान हो उठीं. दोपहर को जब पति सोने चले गए तो उन्होंने शिखा को फोन किया, ‘‘तुम्हारी बात ने मुझे बहुत अशांत कर दिया है. रश्मि तुम्हारी बहन है, रमेश तुम्हारा पति, तुम उन के संबंध में ऐसा सोच भी कैसे सकती हो. रश्मि अगर 14 साल बाद मां बनी है तो इस का अर्थ यह तो नहीं कि तुम उस पर लांछन थोप दो. तुम्हारा अविश्वास तुम्हारे घर के साथसाथ रश्मि का घर भी ले डूबेगा. जिंदगी में सुख व खुशी हासिल करने के लिए विश्वास अत्यंत आवश्यक है. बसेबसाए घरों में आग मत लगाओ. रश्मि को इतने वर्षों बाद खुश देख कर कहीं तुम्हारी ईर्ष्या तो नहीं जाग उठी?’’

मां से बात करने के बाद शिखा के अशांत मन में हलचल सी उठी. सचाई सामने होते आंखें कैसे मूंदी जा सकती हैं. बातबात पर झल्ला जाना, पति पर व्यंग्य कसना शिखा का स्वभाव बन

चुका था.

‘‘बचपना छोड़ दो, रश्मि सुनेगी तो कितनी दुखी होगी.’’

‘‘क्यों? तुम तो हो, उस के आंसू पोंछने

के लिए.’’

‘‘चुप रहो, तमीज से बात करो, तुम तो हद से ज्यादा ही बढ़ती जा रही हो. जो सच नहीं है, उसे तुम सौ बार दोहरा कर भी सच नहीं बना सकतीं.’’

शिखा को हर घटना इसी एक बात से संबद्घ दिखाई पड़ रही थी. चाह कर भी वह अपने मन से किसी भी तरह इस बात को निकाल न सकी.

इधर रमेश को रहरह कर मौसीजी पर गुस्सा आ रहा था, जो उन के शांत जीवन में पत्थर फेंक कर हलचल मचा गई थीं. पढ़लिख कर इंसान का मस्तिष्क विकसित होता है, सोचनेसमझने और परखने की शक्ति आती है, पर शिखा तो पढ़लिख कर भी अनपढ़ रह गई थी.

एकदूसरे के लिए अजनबी बन पतिपत्नी अपनीअपनी जिंदगी जीने लगे. आखिर हुआ वही जो होना था. बात रश्मि तक भी पहुंच गई. सुन कर उसे गुस्सा कम और दुख अधिक हुआ. मनोज को भी इस बात का पता लगा, पर व्यक्ति व्यक्ति में भी कितना अंतर होता है. रश्मि के प्रति विश्वास की जो जड़ें सालों से जमी थीं, वे इस कुठाराघात से उखड़ न सकीं.

रश्मि ने मन मार कर शिखा को फोन कर कहा, ‘‘इसे तुम चाहो तो मेरी तरफ से

अपनी सफाई में एक प्रयत्न भी समझ सकती हो. हमारा सालों का रिश्ता, खून का रिश्ता यों इतनी जल्दी तोड़ दोगी? शांत मन से सोचो, मैं तो तुम्हारा बच्चा गोद लेने वाली थी, फिर मुझे ऐसा करने की आवश्यकता क्यों होती? रमेश को मैं ने हमेशा छोटे भाई की तरह प्यार किया है, इस निश्चल प्यार को कलुषित मत बनाओ.

‘‘वैवाहिक जीवन की नींव विश्वासरूपी भूमि पर खड़ी है. अपनी बसीबसाई गृहस्थी में शंकारूपी कुल्हाड़ी से आघात क्यों करना चाहती हो? तनाव और कलह को क्यों निमंत्रण दे बैठी हो? रमेश को तुम इतने सालों में भी समझ नहीं सकी हो.’’

शिखा इन बातों से और जलभुन गई. रमेश उस की नजर में अभी भी अपराधी है. घर वह सोने और खाने को ही आता है. उस का घर से बस इतना ही नाता रह गया है. मां द्वारा पिता की उपेक्षा होते देख बच्चे भी उस से वैसा ही व्यवहार करते हैं.

शिखा ने स्वयं ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि आज न वह स्वयं खुश है, न उस का पति रमेश.

शहादत: खूबसूरत पड़ोसिन को देख जब पत्नीव्रता पति का मन डोला

विश्वास कीजिए, मैं एक अदद पत्नी का पत्नीव्रता पति और एक जोड़ी बच्चों का बौड़म सा पिता हूं. दुनिया की ज्यादातर महिलाएं मेरे लिए मांबहन के समान हैं. ज्यादातर सद्गृहस्थों की तरह मैं भी घर से नाक की सीध में आफिस जाता हूं और इसी तरह वापस आता हूं.

अपने छोटे से परिवार के साथ मैं एक बड़े से मल्टीस्टोरी कांप्लेक्स में सुखपूर्वक रह रहा था. मेरे ऊपर मुसीबतों का पहाड़ तब टूटा जब मेरे पड़ोस वाले फ्लैट में एक फुलझड़ी रहने आ गई. आप की तरह मेरी भी तबीयत खूबसूरत पड़ोसिन को देख कर झक्क हो गई. किंतु मेरे दिल का गुब्बारा अगले ही दिन पिचक गया जब पता चला कि वह एक पुलिस इंस्पेक्टर की अघोषित पत्नी है.

जैसे सरकारी बाबुओं की घोषित संपत्ति के अलावा अनेक अघोषित संपत्तियां होती हैं वैसे ही समझदार पुलिस वालों की घोषित पत्नी के अलावा अनेक अघोषित पत्नियां होती हैं. बेचारों को जनता की सेवा में दिनरात पूरे शहर की खाक छाननी पड़ती है. चौबीसों घंटे की ड्यूटी. थक कर चूर हो जाना लाजमी है. ऐसे में वे शहर के जिस कोने में हों वहीं थकावट दूर कर तरोताजा होने की व्यवस्था को उन की जनसेवा का ही अभिन्न अंग माना जाना चाहिए.

अपनी खूबसूरत पड़ोसिन के बारे में जो सूचना मुझ तक पहुंची उस के अनुसार कुछ दिनों पहले तक हमारी पड़ोसिन निराश्रित और जमाने के जुल्मों की शिकार थीं. एक बार मदद लेने की आस में पुलिस स्टेशन पहुंचीं तो इंस्पेक्टर साहब ने उन्हें पूरा संरक्षण प्रदान कर दिया. रोटी, कपड़ा और मकान के साथसाथ सारी मूलभूत आवश्यकताओं (आप समस्याएं भी कह सकते हैं) का जिम्मा अपने सिर ले लिया. बेचारे कुछ दिनों तक तो हर रात अबला को सुरक्षा प्रदान करने आते रहे किंतु वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के पैरोकार थे. इसलिए किसी एक का पक्षपात करने के बजाय उन्होंने सप्ताह में अपना एक दिन हमारी पड़ोसिन के लिए आरक्षित कर दिया.

वह जब भी आते उन के दोनों हाथ भारीभरकम पैकेटों से लदे रहते. कई बार उन के साथ मजदूर टाइप के दोचार लोग भी होते जो कभी टीवी, कभी फ्रिज तो कभी वाशिंग मशीन जैसी चीजें उठाए रहते.

जिस दिन वह आते पड़ोसिन के फ्लैट में बड़ी चहलपहल रहती. बाकी के 6 दिन उन की आंखों में दुख का सागर लहराता रहता. कई बार मन में आता कि पड़ोसी धर्म का पालन कर उन के दुखदर्द को बांटूं किंतु इंस्पेक्टर का ध्यान आते ही सारा जोश फना हो जाता.

एक दिन मेरा बेटा नए मोबाइल के लिए जिद कर रहा था. मैं काफी देर तक उसे समझाता रहा और आखिर में अधिकांश भारतीय पिताआें की तरह उसे चांटा जड़ दिया. वह भी सच्चा सपूत था. रोरो कर बंदे ने आसमान सिर पर उठा लिया.

अगले दिन मैं आफिस जाने के लिए निकला तो लिफ्ट में पड़ोसिन मिल गईं. संयोग से वहां हम दोनों के अलावा और कोई न था. उन्होंने मेरी ओर अपनत्व भरी नजर से देखा फिर संजीदा होती हुई बोलीं, ‘‘देखिए, बच्चों का मन मारना अच्छी बात नहीं होती है. आप उस के लिए एक नया मोबाइल खरीद ही लीजिए.’’

‘‘जी, महीने का आखिरी चल…’’ मैं चाह कर भी अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया.

पड़ोसिन अत्यंत आत्मीयता से मुसकराईं और पर्स से 3 हजार रुपए निकाल कर मेरी ओर बढ़ाती हुई बोलीं, ‘‘यह लीजिए, मेरी ओर से खरीद दीजिएगा.’’

‘‘लेकिन मैं आप से रुपए कैसे ले सकता हूं,’’ मैं अचकचा उठा.

‘‘अरे, हम पड़ोसी हैं. एकदूसरे के सुखदुख में काम आना पड़ोसी का कर्तव्य होता है,’’ कहतेकहते उन्होंने इतने अधिकार से मेरी जेब में रुपए ठूंस दिए कि मैं न नहीं कर सका.

इस के बाद पड़ोसिन अकसर मुझे लिफ्ट में मिल जातीं और मेरी मदद कर देतीं. पता नहीं उन्हें मेरी जरूरतों के बारे में कैसे पता चल जाता था. जाने वह जादू जानती थीं या हम नौकरीपेशा गृहस्थों के चेहरे पर जरूरतों का बोर्ड टंगा रहता है. जो भी हो, मैं धीरेधीरे उन के एहसानों तले दबता चला जा रहा था.

मैं कमरतोड़ मेहनत करता था फिर भी बहुत मुश्किल से गाड़ी खींचने लायक कमा पाता था. उधर उन के पास जैसे जादू की डिबिया थी जिस में रुपए कभी कम ही नहीं होते थे. एक दिन मैं ने उन से पूछा तो वह खिलखिला पड़ीं, ‘‘जादू की डिबिया तो नहीं लेकिन मेरे पास जादू की पुडि़या जरूर है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘अब आप से क्या छिपाना,’’ पड़ोसिन ने अपने पर्स से एक छोटी सी पुडि़या निकाली. उस में सफेद पाउडर जैसा कुछ भरा हुआ था. वह उसे दिखाती हुई मुसकराईं, ‘‘मुझे जितने पैसों की जरूरत होती है इन्हें बता देती हूं. ये इस पुडि़या के दम पर उतने पैसे किसी से भी मांग लेते हैं.’’

‘‘लेकिन कोई ऐसे ही पैसे कैसे दे देगा,’’ मुझे उस पुडि़या की जादुई शक्तियों पर भरोसा नहीं हुआ.

‘‘क्यों नहीं देगा,’’ वह रहस्यमय ढंग से मुसकराईं फिर मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोलीं, ‘‘अगर इस पुडि़या में रखी कोकीन की बरामदगी आप की जेब से दिखा दी जाए तो आप क्या करेंगे? अपनी इज्जत बचाने की खातिर मुंहमांगी रकम देंगे या नहीं?’’

‘‘क्या वास्तव में यह कोकीन है?’’ मेरा सर्वांग कांप उठा.

‘‘यह तो फोरेंसिक रिपोर्ट आने के बाद कोर्ट में ही पता चलेगा, लेकिन तब तक आप की इज्जत का फलूदा बन जाएगा. सारे रिश्तेदार मान लेंगे कि इसी के दम पर आप कार पर घूमते थे,’’ उन्होंने बताया.

‘‘लेकिन कार तो मैं ने लोन ले कर खरीदी है,’’ मैं ने बचाव की कोशिश की.

‘‘सभी जानते हैं कि लोन आयकर वालों की आंखों में धूल झोंकने के लिए लिया जाता है,’’ उन्होंने मेरे रक्षाकवच को फूंक मार कर उड़ा दिया.

यह सुन कर मेरे चेहरे का रंग उड़ गया. यह देख वह हलका सा मुसकराईं फिर मेरे कंधे पर हाथ मारते हुए बोलीं, ‘‘लेकिन आप क्यों परेशान हो रहे हैं. आप तो हमारे शुभचिंतक हैं.’’

मेरी जान में जान आई और मैं सांस भरते हुए बोला, ‘‘इस का मतलब इंस्पेक्टर साहब जिस आदमी की चाहें उस की इज्जत मिनटों में धो सकते हैं?’’

‘‘आदमी की ही क्यों वह औरत की भी इज्जत धो सकते हैं,’’ वह नयनों को तिरछा कर मुसकराईं.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘दुनिया के सब से पुराने व्यापार में लिप्त बता कर. सभी जानते हैं कि आजकल अमीर घराने की महिलाएं अपने शौक की खातिर, मिडिल क्लास महिलाएं अपने ख्वाब पूरा करने की खातिर और गरीब महिलाएं अपना पेट पालने के लिए इस धंधे में लिप्त रहती हैं. इसलिए जिस पर चाहो हाथ धर दो, जनता सच मान लेगी,’’ उन्होंने सत्य उजागर किया.

‘‘बाप रे, तब तो आप के वह बहुत खतरनाक आदमी हुए,’’ मैं हड़बड़ाते हुए बोला.

‘‘लेकिन मेरे इशारों पर नाचते हैं,’’ वह गर्व से मुसकराईं और कंधे उचकाते हुए चली गईं.

2 दिन के बाद मेरी श्रीमतीजी अचानक कुछ काम से मायके चली गईं. उन के बिना खाली फ्लैट काटने को दौड़ता था लेकिन मजबूरी थी. शाम को मैं मुंह लटकाए आफिस से लौट रहा था कि लिफ्ट में पड़ोसिन मिल गईं.

‘‘सुना है भाभीजी मायके गई हैं?’’ उन्होंने अत्यंत शालीनता से पूछा.

‘‘जी हां.’’

‘‘अकेले में तो बड़ी बोरियत होती होगी,’’ उन्होंने मेरी आंखों में झांका.

‘‘मजबूरी है,’’ मेरे होंठ हिले.

‘‘मैं रात को आप के फ्लैट में आ जाऊंगी. सारी बोरियत दूर हो जाएगी,’’ उन्होंने मादक निगाहों से मेरी ओर देखा.

‘‘न, न…आप मेरे फ्लैट पर मत आइएगा,’’ मैं बुरी तरह घबरा उठा.

‘‘ठीक है, तो तुम मेरे फ्लैट पर आ जाना,’’ वह बड़े अधिकार के साथ आप से तुम पर उतर आईं.

मैं कुछ कहने जा ही रहा था कि लिफ्ट रुक गई. कुछ लोग बाहर खड़े थे.

‘‘मेरी बात ध्यान में रखना,’’ उन्होंने आदेशात्मक स्वर में कहा और लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही तेजी से बाहर निकल गईं.

मैं पसीने से लथपथ हो गया. हांफते हुए अपने फ्लैट में आया और ब्रीफकेस फेंक बिस्तर पर गिर पड़ा.

आज मेरी समझ में आ गया कि वह गाहेबगाहे मेरी मदद क्यों करती थीं. खुद तो किसी की रखैल थीं और मुझे अपना… छी…उन्होंने मुझे बिकाऊ माल समझ रखा है. मेरा अंतर्मन वितृष्णा से भर उठा. टाइम पास करने के लिए मैं ने एक पत्रिका उठा ली. किंतु उस के पन्नों पर भी पड़ोसिन का चेहरा उभर आया. उस की मादक हंसी मुझे पास आने के लिए मौन निमंत्रण दे रही थी किंतु मैं एक सदचरित्र गृहस्थ था. किसी भी कीमत पर उस नागिन के जाल में नहीं फंसूंगा. मैं ने पत्रिका को दूर उछाल दिया.

रिमोट उठा कर मैं ने टीवी चला दिया. एक आइटम गर्ल का उत्तेजक डांस आ रहा था. यह मेरा पसंदीदा गाना था. बच्चों से छिप कर मैं अकसर इस का आनंद लेता रहता था. आज तो घर में कोई नहीं था. मैं निश्ंिचत भाव से उसे देखने लगा. अचानक आइटम गर्ल की गर्दन पर पड़ोसिन का चेहरा चिपक गया. अपनी मादक अदाआें से वह मुझे पास आने का आमंत्रण दे रही थी. मेनका की तरह मेरी तपस्या भंग कर देने के लिए आतुर थी.

‘तुम मुझे अपनी तरह दलदल में नहीं घसीट सकतीं,’ मैं ने झल्लाते हुए टीवी बंद कर दिया और बिस्तर पर लेट गया.

धीरेधीरे रात गहराने लगी. मेरी भूखप्यास गायब हो चुकी थी. नींद मुझ से कोसों दूर थी. काफी देर तक मैं करवटें बदलता रहा. पड़ोसिन के शब्द मेरे कानों में अंगार की तरह दहक रहे थे. मेरे बारे में ऐसा सोचने की उस चरित्रहीन की हिम्मत कैसे हुई? अपमान से मेरा पूरा शरीर दहकने लगा था. अगर मेरे परिवार और रिश्तेदारों को इस बारे में पता चल जाए तो मैं तो किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहूंगा.

अचानक मेरी सोच को झटका लगा, ‘अगर मैं ने उस का कहना नहीं माना और उस ने इंस्पेक्टर से कह कर वह जादू की पुडि़या मेरी जेब से बरामद करवा दी तो क्या होगा? अपने जिस चरित्र को मैं बचाना चाहता हूं क्या उस की धज्जियां नहीं उड़ जाएंगी? क्या समाज के सामने मेरी इज्जत दो कौड़ी की नहीं रह जाएगी?

‘कुछ भी हो मैं उस के जाल में नहीं फंसने वाला. बड़ेबड़े महापुरुषों को सद्चरित्रता दिखलाने पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. मेरी भी जो बेइज्जती होगी उसे सह लूंगा,’ मैं ने अटल निर्णय ले लिया.

‘ठीक है. तुम तो महापुरुषों की श्रेणी में आ जाओगे लेकिन यदि उस घायल नागिन ने बदला लेने की खातिर इंस्पेक्टर से कह कर तुम्हारी पत्नी के दामन पर दाग लगवा दिया तो? क्या वह बेचारी बेमौत नहीं मारी जाएगी? उस की पवित्रता का दामन तारतार नहीं हो जाएगा? जिस ने जीवन भर तुम्हारी निस्वार्थ सेवा की है, क्या अपने स्वार्थ की खातिर उस का जीवन बरबाद हो जाने दोगे?’ तभी मेरी अंतरआत्मा ने दस्तक दी.

एकएक प्रश्न हथौड़े की भांति मेरे मनोमस्तिष्क पर बरसने लगा. तेज कोलाहल से मेरे कान के परदे फटने लगे.

‘‘नहीं,’’ मैं अपने हाथों को दोनों कानों पर रख कर सिसक पड़ा. पत्नी की इज्जत की रक्षा करना तो पति का कर्तव्य होता है. मैं ने भी सात फेरों के समय इस बात की शपथ खाई थी. चाहे मेरा सर्वस्व ही क्यों न बरबाद हो जाए, मैं उस के चरित्र पर आंच नहीं आने दूंगा.

मैं ने मन ही मन एक कठोर फैसला लिया और अपने परिवार की इज्जत बचाने की खातिर पड़ोसिन के समक्ष आत्म- समर्पण करने चल दिया.

फौरगिव मी: क्या मोनिका के प्यार को समझ पाई उसकी सौतेली मां

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Top 7 Health Tips in hindi: टॉप 7 हेल्थ टिप्स

इन दिनों  हर कोई हेल्थ से जुड़ी समस्या का सामना कर रहा है. सबसे ज्यादा सफर करती हैं हम महिलाएं जिनके कंधो पर दोनों जिम्मेदारी होती है, पहली वो घर भी संभालती है और दूसरी वो बाहर अपनी पहचान बनाने के लिए काम भी करती है. इस क्रम में हमे हेल्थ से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आज हम  आपके साथ कुछ ऐसे ही समस्याओं से जुड़े आर्टिकल शेयर कर रहे हैं.

प्रेगनेंसी के दौरान करें ये 5 एक्सरसाइज तो रहेंगी फिट

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कई प्रौब्लम का सामना करना पड़ता है. कई बार ये प्रौब्लम्स प्रेग्नेंसी में ज्यादा न करने व एक्सरसाइज न करने से होता है. इसीलिए जरूरी है कि प्रेग्नेंसी में एक्सरसाइज करना न भूलें. प्रेग्नेंसी के दौरान डौक्टर कुछ खास एक्सरसाइज बताते हैं, जिसे करने से मां और बच्चे की सेहत बनी रहती है. साथ ही प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली प्रौब्लम्स से भी छुटकारा मिलते है.

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जानें क्या हैं प्रेग्नेंसी में होने वाली प्रौब्लम और ऑटिज़्म के खतरे

ऑटिज़्म को विकास सम्बन्धी बीमारी के रूप मे जाना जाता है. इसे ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) कहा जाता है. डॉ रोहित अरोड़ा , निओनैटॉलॉजी और पेडियाट्रिक्स हेड ,मिरेकल्स मेडीक्लीनिक और अपोलो क्रेडल हॉस्पिटल का कहना है कि, “यह डिसऑर्डर (विकार)  बच्चे के व्यवहार और बातचीत करने के तरीके पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. बच्चों में होने वाली  यह बीमारी तब नज़र आती है जब बच्चे की सोशल स्किल्स, एक ही व्यवहार को बार-बार दोहराना, बोलने तथा बिना बोलकर कम्युनिकेट करने में परेशानी महसूस होती है तो इसे ऑटिज़्म  का लक्षण माना जाता है.

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जानिए रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस के लक्षण और उपचार

रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस एक जटिल बीमारी है, जिस में जोड़ों में सूजन और जलन की समस्या हो जाती है. यह सूजन और जलन इतनी ज्यादा हो सकती है कि इस से हाथों और शरीर के अन्य अंगों के काम और बाह्य आकृति भी प्रभावित हो सकती है. रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस पैरों को भी प्रभावित कर सकती है और यह पंजों के जोड़ों को विकृत कर सकती है.

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अनचाही Pregnancy से कैसे बचें

अनचाहा गर्भधारण न केवल एक नवविवाहित स्त्री के स्वास्थ्य पर असर डालता है अपितु उस का संपूर्ण विवाहित जीवन भी प्रभावित होता है. अनचाहा गर्भ ठहरने पर गर्भपात (एबार्शन) कराना इस का उचित समाधान नहीं है. शिशु को जन्म दें या नहीं, इस का निर्णय एक दंपती के जीवनकाल का अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है.

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महिला गर्भनिरोधक : क्या सही, क्या गलत

 

बचाव इलाज से ज्यादा अच्छा होता है, महिला गर्भनिरोधक उपायों पर यह बात बिलकुल सही बैठती है. बाजार में काफी पहले से महिला गर्भनिरोधक मौजूद हैं, लेकिन आज भी भारत में लाखों महिलाएं ऐसी हैं, जो नहीं जानतीं कि उनके लिए कौन सा गर्भनिरोधक उपाय सही है.

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Summer Special: डिहाइड्रेशन से हैं परेशान तो अपनाएं ये नेचुरल उपाय

पानी हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होता है. शरीर में पानी की कमी को ही डिहाइड्रेशन कहते हैं. सामान्यत: जब गर्मियों के दिनों में आपके शरीर में पानी की मात्रा में कमी आ जाती है, तो आपको डीहाइड्रेशन से गुजरना पड़ता है. शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर को ताकत देने वाले खनिज पदार्थ जैसे नमक, शक्कर आदि कम होने लगते हैं. आमतौर पर गर्मियों के दिनों में ऐसा होता है.

फिट ऐंड फाइन डिलिवरी के बाद भी

शिल्पा शेट्टी या करिश्मा कपूर की पतली कमर देख कर भला किस का दिल नहीं मचलेगा. इन अभिनेत्रियों की परफैक्ट फिगर व चमकती त्वचा को देख कर भला कौन कह सकता है कि ये न केवल शादीशुदा हैं बल्कि मां भी बन चुकी हैं अधिकतर महिलाएं शादी मां बनने के बाद खुद को रिटायर समझने लगती हैं और सोचने लगती हैं कि अब उन की फिगर पहले जैसा आकार नहीं ले सकती. इसलिए वे अपनी फिटनैस को ले कर लापरवाह हो जाती हैं, उसके लिए कोई कोशिश ही नहीं करतीं. नतीजतन उन का शरीर थुलथुला हो जाता है व त्वचा मुरझा जाती है.

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जब मायके जाएं शादी के बाद

जब मायके जाएं तो क्या करें कि आपकी इज्जत भी हो और सम्मान भी…

अकेले रहने वाली 70 साल की गौतमी आजकल अपने घर का रैनोवेशन करवा रही हैं. उन का सादा व साफसुथरा खुला सा घर अच्छी स्थिति में ही है पर फिर भी उन्होंने यह काम छेड़ दिया है. अस्वस्थ हैं पर फिर भी घर में इतनी तोड़फोड़ चल रही है कि शाम तक मजदूरों को देखने के चक्कर में उन की हालत पतली हो जाती है.

छोटा शहर है, आसपास के लोग बारबार पूछने लगे कि क्या जरूरत है ये सब करवाने की तो उन्होंने एक पड़ोसी से मन की बात शेयर कर ली. बताया, ‘‘बेटी सुमन जब भी आती है, नाराज ही होती रहती है कि आप के पास कैसे आएं, आप के पुराने जमाने का बना घर बहुत असुविधाजनक है. इतने पुराने ढंग का वाशरूम, न टाइल्स, न एसी, कोई सुविधा नहीं. आना भी चाहें तो यहां की तकलीफें देख कर आने का मन भी नहीं होता. न आप ने कोई खाना बनाने वाली रखी है. जब भी आओ, खाना बनाना पड़ता है.

‘‘अब एक ही तो बेटी है. बेटा अलग रहता है, उसे तो कोई मतलब ही नहीं. अब सुमन को यहां आ कर कोई परेशानी न हो, सब उस की मरजी से करवा रही हूं, मेरा खर्चा तो बहुत हो रहा है पर ठीक है, कितनी बार ये सब बातें बारबार सुनूं.’’

हर बात में नुक्ताचीनी

सुमन सचमुच जब भी मायके आती है. गौतमी का सिर घूम जाता है. उस की हर बात में नुक्ताचीनी, आप के पास यह नहीं है, वह नहीं है, अभी तक यह क्यों नहीं लिया, वह क्यों नहीं लिया. सुमन आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध है, जितनी देर मां के घर रहती है, अकेली रहने वाली अपनी मां को नचाने में कोई कसर नहीं छोड़ती. ऐसा भी नहीं कि मां के घर में कोई आधुनिक बदलाव चाहिए तो खुद रह कर कुछ काम देख ले या अपने पैसों से ही कुछ काम करवा दे. वह भी नहीं. बस फरमाइश. वापस जाने लगती है तो मां से मिले सामान पर बहुत मुश्किल से ही कभी संतुष्ट होती है.

गौतमी कभी बेटी और उस के बच्चों को कुछ सामान दिलाने बाजार ले जाती हैं तो उन्होंने बेटी को अपने बच्चों से साफसाफ कहते सुना कि नानी दिलवा रही हैं, महंगे से महंगा ले लेना.

बेटी के जाने के बाद गौतमी को बहुत देर तक अपना दिल उदास लगता है कि यह कैसी बेटी है जो जब भी आती है, किसी न किसी बात पर मन दुखा कर ही जाती है. उस का लालच है कि जाता ही नहीं, जबकि बेटी को पैसे की कोई कमी नहीं.

रोकटोक क्यों

इस के ठीक उलट मुंबई में रहने वाली नीरू जब रोहिणी, दिल्ली अपने मातापिता के पास मायके जाती है तो जितने दिन भी वहां रहती है उस की कोशिश होती है कि इन दिनों होने वाले हर खर्च को वह खुद देखे. जब उस के लौटने का समय होता है उस की मम्मी उस के हाथ में जो पैसे देती हैं वह उस में से बस क्व100 अपनी मम्मी का आशीर्वाद सम?ा कर ले लेती है और बाकी सब चुपके से एक जगह रख जाती है. बाद में फोन कर के बता देती है कि जितने लेने थे, ले लिए, बाकी आप वापस संभाल लो.

नीरू की मम्मी उसे हर बार ऐसा करने पर टोकती हैं पर नीरू कहती है, ‘‘जब मेरे रिटायर्ड पेरैंट्स अपने आप अपना खर्चा चला रहे हैं, मेरा जाना किसी भी हालत में उन पर बो?ा नहीं होना चाहिए. मैं जितना कर सकती हूं, उतना कर आती हूं. उन्होंने पढ़ालिखा कर, शादी कर के अपने सब फर्ज पूरे कर दिए हैं अब मेरा फर्ज बनता है कि जब भी जाऊं, उन्हें आराम ही दूं.’’

कोमल जब भी सहारनपुर मायके जाती है जाते ही कह देती है, ‘‘मां, भाभी, मु?ा से किचन के किसी काम की उम्मीद मत करना, अपने घर तो करते ही हैं, यहां भी करेंगे तो कैसे पता चलेगा कि मायके आई हूं.’’

वे तो उस की भाभी सरल स्वभाव की हैं जो हंसते हुए कह देती हैं, ‘‘हां, आप आराम करो, अपने घर ही काम करना. मायके का कुछ आराम मिलना ही चाहिए.’’

कोमल जितने भी दिन मायके रहती है मजाल है कि 1 कप चाय भी बना ले.

रिश्ते में मिठास जरूरी

उधर जयपुर में रेखा जितने दिन भी मायके रहती है उस के मायके में एक अलग ही रौनक रहती है. भाभी के साथ मिल कर नईनई चीजें बनाती है, कभी भाभी और मां को किचन से छुट्टी दे कर कहती है, ‘‘देखो, मैं ने क्याक्या सीख लिया है, आज सब मेरे हाथ का बना खाना खाएंगें.’’

किसी न किसी बहाने से हर रिश्ते में मिठास घोल देती है. कभी घर के सब बच्चों को कुछ खिलानेपिलाने ले जाती है. उस के पति जब उसे लेने आते हैं तो घर में कोई काम न बढ़े, सब सहज रहें, इस बात का विशेष ध्यान रखती है. सब को उस के आने का फिर दिल से इंतजार रहता है.

मायका आप का है, जहां कुछ दिन बिता कर आप फिर एक बच्ची सी बन जाती हैं, एक रिचार्ज हुई बैटरी की तरह अपने घरसंसार में लौट आती हैं. एक वयस्क महिला भी मायके जाते  हुए एक चंचल तरुणी सा अनुभव करती है. पर मायके जाएं तो ऐसे जाएं कि घर के किसी प्राणी पर आप का जाना बो?ा न लगे.

असुविधा हो तो सहन करें

आप अब मायके से जा चुकी हैं, आप का अपना घर है, आप के जाने के बाद आप के पेरैंट्स अकेले होंगें या भाभी होंगी तो इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आप के जाने से उन्हें किसी तरह की असुविधा न हो. आप को असुविधा हो भी तो सहन कर लें.

मायके के रिश्ते बहुत सहेज कर रखने लायक होते हैं. कुछ बुरा भी लगे तो मुंह से कुछ कड़वा कह कर किसी का दिल न दुखाएं. अगर आप मायके से ज्यादा समृद्ध हैं तो घमंड और दिखावे से दूर रहें. ये चीजें अकसर रिश्तों में दीवार खड़ी कर देती हैं. मायके में रहने वाले हर सदस्य को स्नेह, सम्मान दें.

ऐसा भी न हो कि आप भी इतना खर्च कर के मायके जा रही हैं, उन का भी खर्च हो रहा है और कोई भी खुश नहीं है. रुपएपैसे को इतना महत्त्व न दें कि भावनात्मक दूरी आए. आप को अपने हिसाब से अपने घर में रहने की आदत है तो मायके के भी हर सदस्य को अपने रूटीन की आदत है. वह मां का घर है, वहां प्यार, मुहब्बतें होनी चाहिए न कि कोई स्वार्थ या हिसाबकिताब. न ईगो, न दिखावा.

गर्मियों में न करें इंटिमेट हाइजीन को ईग्नोर

गर्मी के दिनों अपने हाइजीन का खास खयाल रखना क्यों जरूरी हो जाता है, जरूर जानिए…

मौसम बदलने के साथ ही शरीर को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. गरमियों में पसीना, रेशेज आदि समस्याएं पर्सनल हाइजीन से संबंध रखती हैं. इसलिए इस दौरान यह जरूरी हो जाता है कि आप अपने इंटिमेट हाइजीन पर खास ध्यान दें खासकर महिलाएं जिन्हें बहुत सारी बीमारियां पर्सनल हाइजीन को नजरअंदाज करने के कारण होती हैं.

किचन से ले कर औफिस मीटिंग तक महिलाएं दिनभर में न जाने कितने कामों को अंजाम देती हैं. ऐसे में वे अपने पर्सनल हाइजीन पर ध्यान नहीं दे पातीं. इंटिमेट हाइजीन पर ध्यान न दिए जाने के कारण महिलाओं को यूटीआई (यूरिन करते समय जलन और दर्द महसूस होना) जैसे कई तरह के इन्फैक्शन व अन्य समस्याएं हो जाती हैं. गरमी में तो यह समस्याएं पसीने के कारण और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं.

क्यों जरूरी है इंटिमेट हाइजीन

मासिकधर्म की तरह आज भी लोग पसर्नल हाइजीन के बारे में खुल कर बात करने से बचते हैं. इंटिमेट हाइजीन का ठीक तरह से ध्यान न रखने के कारण यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन (यूटीआई) और ड्राइनैस जैसी दिक्कतें होती हैं, बैक्टीरियल इन्फैक्शन भी बढ़ सकता है, जिस से रैशेज व खुजली होती है और कई मामलों में निमोनिया या ब्लड डिजीज भी हो सकते हैं.

अकसर लोग हाइजीन का खयाल नहीं रखते, जिस के कारण वे मानसिक और शारीरिक दोनों ही तनावों का शिकार होते हैं. यहां तक कि वे डिप्रेशन के शिकार भी हो जाते हैं.

गरमियों में इंटिमेट हाइजीन का रखें ध्यान

चूंकि ये समस्याएं गरमियों में ज्यादा बढ़ जाती हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रख कर आप इन समस्याओं से बच सकते हैं:

काम और ट्रैवल करते समय हमें अकसर पसीना आता है. गरमियों में तो कुछ दूरी का सफर भी आप को पसीने से नहला देता है. पसीना सूखने के बाद हमारे शरीर पर जर्म्स रह जाते हैं, जिन्हें हमें तुरंत साफ करने की जरूरत होती है. आप इंटिमेट एरिया से उन्हें सूखे कपडे़ से साफ कर सकते हैं. इस मौसम में त्वचा को साफसुथरा रखना बहुत जरूरी है. इसलिए दिन में 2 बार जरूर नहाएं. ऐसा करना आप की बौडी को साफ और स्वस्थ रखता है.

पसीने से होने वाली ऐलजी से बचने के लिए महिला हो या पुरुष अपने इंटिमेट एरिया को साफसुथरा रखें. नहाते वक्त रोजाना इंटिमेट वाश का ध्यान रखें. गरमियों में इंटिमेट एरिया की सफाई बहुत जरूरी हो जाती है. इस के लिए आप मार्केट में आने वाले कई तरह के इंटिमेट वाश प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर सकते हैं जो इंटिमेट एरिया का पीएच बैलेंस बनाए रखते हैं और इन्फैक्शन होने की संभावनाओं को कम करते हैं.

टौयलेट इस्तेमाल करते समय भी इस बात का ध्यान रखें कि वह साफसुथरा हो. हो सके तो टौयलेट सीट के डाइरैक्ट टच से बचें. खासकर महिलाएं टौयलेट यूज करते समय उसे पेपर से साफ कर लें.

भीगे अंडरगार्मैंट्स कभी न पहनें क्योंकि इन से रैशेज व इन्फैक्शन हो सकता है और टाइट अंडरवेयर या स्किन फिट जींस को भी अवौइड करें. टाइट कपडों से पसीना बाहर नहीं निकल पाता और बैक्टीरिया पनपने लगता है.

पीरियड्स में रखें खास ध्यान

पीरियड्स में इंटिमेट हाइजीन का ध्यान बाकी दिनों से ज्यादा जरूरी हो जाता है. पीरियड्स के वक्त प्राइवेट पार्ट अच्छी तरह क्लीन रखें. पीरियड्स के समय कंफर्टेबल अंडरवियर पहनें. हो सके तो कौटन अंडरवियर का उपयोग करें जो पसीने को आसानी से सोख लेता है.

अच्छे सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करें जो कौटन से बना हो. हर 4 से 6 घंटे में उसे चेंज कर लें. पीरियड्स के वक्त हाइजीन की अनदेखी इन्फैक्शन कर सकती है. इस दौरान पनपने वाले बैक्टीरिया शरीर में जा कर यूटीआई, योनि संक्रमण, त्वचा में जलन आदि परेशानियां पैदा करते हैं. इसलिए अपने हाइजीन का खास खयाल रखना जरूरी हो जाता है. अत: खुद को साफसुथरा रखना आप के शरीर को कई तरह की बीमारियों से बचा सकता है.

 

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Summer Special: हेयर रिमूवल के लिए अपनाएं ये 6 थेरैपी

अकसर महिलाओं को अचानक किसी पार्टी में जाना पड़ जाए, तो वे काफी परेशान हो उठती हैं कि कैसे आईब्रो और वैक्सिन करवाएं. लेकिन अब चिंता करने की जरूरत नहीं है. अब टैक्सिंग तकनीक आ चुकी है, जिस की मदद से अनचाहे बालों से हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है.

1. गेल्वेनिक

इस में बिजली से बालों को खत्म किया जाता है. सूई या प्रोब से हेयर फोलिकल्स को बिजली का करंट दिया जाता है और उस में कैमिकल चेंजेज कर दिए जाते हैं. ये कैमिकल चेंजेज हेयर फोलिकल्स को जड़ से खत्म कर देते हैं. इस से दोबारा बाल नहीं आते.

2. थर्मोलिसिस

थर्मोलिसिस में सिर्फ एक सूई के जरिए बाल हटाए जाते हैं. इस में आल्टरनेटिंग करंट से सूई के आखिरी सिरे पर गरमी पैदा की जाती है. इसी गरमी की मदद से हेयर फोलिकल्स को खत्म किया जाता है.

3. ब्लैंड

यह थेरैपी गेल्वेनिक और थर्मोलिलिस का मिलाजुला रूप है. सख्त बालों को हटाने के लिए यह थेरैपी कारगर साबित होती है.

4. ट्रांसडर्मल

इस में बालों को हटाने के लिए जैल इलैक्ट्रोड पैचेज या ट्वीजर का प्रयोग किया जाता है. पैचेज और जैल इस्तेमाल करने से इस में काफी कम समय लगता है.

5. लेजर थेरैपी

इस थेरैपी में वेवलैंथ के जरिए किरणें स्किन पर डाली जाती हैं. ये लेजर किरणें फोलिकल्स को आसानी से खत्म कर देती हैं.

6. जीन थेरैपी

इस में स्किन पर ऐंटीग्रोथ एजेंट लगाने के बाद करंट से बालों को हटाया जाता है. इस थेरैपी में बालों को विकसित करने वाले तंतु हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं. ध्यान रहे कि किसी भी तरह की थेरैपी को सीधे अपने फेस पर ट्राई न करें. पहले शरीर के किसी दूसरे हिस्से पर प्रयोग करें. इन थेरैपीज के अलावा वैक्सिंग, थ्रैडिंग, शेविंग, ब्लीच से भी आप अनचाहे बालों से नजात पा सकती हैं. 

 

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